Talk on Attention

Bordi (भारत)

1977-01-26 Collectivity And Responsibility, Bordi (India), 38'
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[Hindi translation from English]

ध्यान पर बात

बोर्डी, भारत, 1977-0126  

वे इसे कैसे कार्यान्वित करते हैं। यही कारण है कि जब मोहम्मद साहब आए, तो उन्होंने उपदेश दिया कि आपको किसी के सामने नहीं झुकना चाहिए। जो भी हो, क्योंकि झुकने के बारे में, वह जानते थे कि जब वास्तविक व्यक्तित्व आएँगे, तो कुछ भी हो आप उन्हें  पहचान ही लेंगे। लेकिन एक सामान्य दृष्टिकोण था, जिसे की यहाँ तक ​​कि नानक साहिब भी नहीं बदल सके थे। और नानक साहिब ने कई महान आत्माओं के द्वारा कही ज्ञान की बातों का संग्रह “गुरु ग्रन्थ साहिब” में किया, जिससे सभी इस ग्रन्थ के आगे सजदा करे किसी अन्य के नहीं। मुहम्मद साहिब ने भी अपने उपदेशो में यही कहा था, परन्तु  अनुयायियों ने हमेशा की तरह, इस तरह की मुर्खतापूर्ण भूल की है कि, ऐसा प्रतीत होता है कि वे अनुयायी नहीं हैं, बल्कि वे इन महान अवतारों के शत्रु हैं।

यह अच्छा है कि सहजयोग में, जब आप आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करते हैं, तो आरम्भ में नहीं, लेकिन कुछ समय बाद, आप स्वयं अनुभव करने लगते है पाप के कष्ट और पापियों को। इसलिए आप पापियों की संगति से बचते हैं। आपको करना होगा। यदि आप पापियों  की संगति में रहते हैं, तो आप जानते हैं कि आपको सिर दर्द और, आपको आज्ञा चक्र की समस्या हो सकती है, आपको सभी प्रकार की जटिलताएँ हो जाती हैं और आप ऐसी जगह से भागना चाहते हैं। और कोई भी आपको भागने को नहीं कहता है, पर आप स्वयं भागना चाहते हैं, क्योंकि, आप इसे सहन नहीं कर सकते और आपका शरीर भिन्न हो गया है।

लेकिन सबसे अच्छा तरीका, स्वयं को परिपक्व करने का, एक साथ रहना है, सहजयोगियों के रूप में। आपको कार्यक्रमों में सम्मिलित होना चाहिए, जब वहाँ सामूहिक, आरती या पूजा या ध्यान हो। आपने देखा होगा कि जब आप सामूहिक होते हैं तो आपके अन्दर कुछ घटित होता है। यदि आप घर पर बैठे कुछ करते हैं, तो अधिक कुछ कार्यान्वित नहीं हो पाता। कहीं भी, जब लोग सामूहिक ध्यान में बैठते हैं, सहजयोग स्वयं कार्यान्वित होता है, क्योंकि यह एक सामूहिक घटना है। यह एक ऐसी सामूहिक घटना है, मैं ग्रिगोयर का एक उदाहरण देती हूँ। एक दिन वह मेरे साथ बैठे थे और उन्हें कोई चैतन्य लहरियों का अनुभव  नहीं हो रहा था और वह इस विषय में बहुत चिंतित थे। मैं खिड़की से बाहर देख रही थी और वह बस मेरे सामने बैठे थे, और कोई सहजयोगी पहाड़ी से ऊपर चढ़ कर मेरे घर आ रहे थे। तुरंत उन्होंने कहा मुझे चैतन्य लहरियों का अनुभव हो रहा है। उन्होंने कहा कि यह अचानक कैसे चैतन्य बहना शुरू हो गया है?  मैंने कहा कि पीछे मुड़कर देखो, कौन आ रहा है। और उन्होंने उस सहजयोगी को पहाड़ी पर चढ़ते देखा। उनकी उपस्थिति से ही, उनके आने से ही चैतन्य लहरियों में वृद्धि हो गई। यह एक सामूहिक घटना है।

यह सामूहिक रूप से कैसे कार्यान्वित होता है, यह सामूहिक रूप से क्यों कार्यान्वित होता है, यह एक प्रश्न है जो कि मेरा कार्य है, आप का नहीं है। लेकिन मैं कह सकती हूँ कि इसके पीछे एक गणित है। इसके पीछे एक गणित है! आपको पता होना चाहिए कि हर चीज़ के पीछे एक गणित है। सब कुछ गणित से ही कार्यान्वित है। ऐसा क्यों है? यह ऐसे ही बनाया जा रहा है। और सहजयोग इसके पश्चात ही कार्यान्वित होता है जब सात से अधिक लोग होते है।

आपको यह समझना होगा कि सामूहिक घटना कैसे कार्य करता है। यदि कोई आत्मसाक्षात्कारी है, तो वह कम से कम दो या तीन दैवीय शक्तियों से घिरा रहता है। परन्तु  कुछ मामलों में, जब एक आत्मसाक्षात्कारी है, और वह अब तक, कह सकते है, उतना अच्छा नहीं है, कह सकते है उदाहरण के लिए, सिगरेट पीता है, उदाहरण के लिए। और मान लें कि ऐसे आदमी का अनुसरण करने वाला केवल एक ही है। यदि उसके सभी चक्र खराब हैं और इसके बावजूद वह धूम्रपान भी करता है और वह पीता भी है और ऐसी ही चीजें। तब शायद एक ही हो, शायद उसके साथ हो या कभी एक भी न हो। लेकिन ज्यादातर, कम से कम एक है, न्यूनतम एक, जिसे आप कह सकते हैं। तो प्रत्येक आत्मसाक्षात्कारी के साथ कुछ लोग होते हैं। और अगर कोई थोड़े समय के लिए कोई पापपूर्ण कार्य करता है, उदाहरण के लिए, वह कुछ बुरा करता है, वास्तव में बहुत बुरा। तो ये लोग थोड़े समय के लिए चले जाते है पर फिर वापस आ जाते हैं। अब जब ऐसा व्यक्ति अनुभव प्राप्त करने के लिए संघर्ष रत है, और यदि वहाँ एक सकारात्मक व्यक्ति है, एक बहुत ही सकारात्मक व्यक्ति आता है, हो सकता है कि उसके साथ अधिक लोग हों, तो वह अपने कुछ लोग प्रदान कर, इस व्यक्ति को ऊपर उठाने में सक्षम होता हैं।

तो यह बिलकुल परमाणुओं की वैलेंसी की तरह कार्य करता है। लेकिन दोनों में केवल इतना अंतर है कि मनुष्य जितना चाहे उतना संग्रह कर सकता है, बदल सकता है, लेकिन परमाणु नहीं बदल सकते। वे लोग जो अबोधिता में कुछ गलतियाँ कर देते हैं, और कुछ इस तरह। और वे सहजयोग में बहुत क्रियाशील हैं और अच्छे लोग हैं, उनको भी मुश्किल, कठिन होता है, कभी कभी अपनी आदतों से उभर पाना, ऐसा होता हैं। तो उन्हें यह पता होना चाहिए कि यदि उस समय वे किसी अन्य सहजयोगी के पास जाते हैं, जिन्हें आदत नहीं है, ये विशेष आदत नहीं है, जैसे तंबाकू खाने की, नशा लेने की। तब दूसरे व्यक्ति के मार्गदर्शक जो उस पर मँडरा रहे हैं, इस व्यक्ति की किसी अन्य व्यक्ति की तुलना में बहुत अधिक मदद कर सकते हैं जो एक नशा करने वाला है और यदि आप उसके पास में जाते हैं, तो वह पहले से ही व्यस्त है और वह उन तीनों को ले जाएगा जो आप के साथ थे। फिर आप दोनों ही अच्छे से नशा करने लगोगे। लेकिन वे तुम्हारे मानस में प्रवेश नहीं करते, अंतर यह है। वे आपके मानस में प्रवेश नहीं करते हैं, लेकिन वे चारों ओर एक ब्रह्मांडीय परिवर्तन लाते हैं।    

लेकिन मान लीजिए कोई व्यक्ति भूत-बाधा से पीड़ित है, या वह किसी गुरु के पास गया है, तो वह गुरू उस व्यक्ति के अन्दर और भूत बाधा डाल देता है। वे हमें ऐसा बताते हैं। अब, जब यह व्यक्ति कुछ बुरा कर्म करने का प्रयत्न करता है, तो वह किसी अन्य भूत बाधित व्यक्ति से प्रोत्साहित होगा। इन भूतों का भाई चारा और सक्रिय हो जाता है। आपने सहजयोग में इसका उदाहरण देखा है। आप देखते हैं, अगर कोई एक व्यक्ति, जिसे भूत बाधा है, आप प्रधान से पूछें क्योंकि उनका बेटा इससे पीड़ित है। वह ऐसे लोगों में बहुत दिल चस्पी रखता हैं, जिन्हें भूत बाधा है। तो क्या होता है कि जब ऐसा व्यक्ति अपनी भूत बाधा के बारे में बात करता है, दूसरा व्यक्ति तुरंत उसका समर्थन करने के लिए आएगा। वह विवश हो जाएगा। इसमें कोई स्वतंत्रता नहीं होगी। वह एक चुंबक की तरह उस व्यक्ति की ओर आकर्षित होगा जिसमे भूत बाधा है, तुरंत। और वह कमजोर होता जाता है। इतना ही नहीं, यह हो सकता है कि जिस व्यक्ति को अत्यधिक भूत बाधा हो, वह एक कम भूत बाधा वाले व्यक्ति को आकर्षित करेगा और उसे प्रभावित कर खराब करेगा।

अब क्या अंतर होता है? सबसे पहले आपको ऐसे सहजयोगी की संगति में रहने का चुनाव करना होगा, जिसमें ये आदतें नहीं हैं। उदाहरण के लिए यदि कोई क्रोधी है। ऐसा व्यक्ति  जब क्रोधित होता है, अगर वह किसी शांत स्वाभाव वाले व्यक्ति पर चित डाले, तो उसे आश्चर्य होगा की कैसे उसका क्रोध शांत हो गया। लेकिन यदि कोई अत्यधिक शांत स्वाभाव का व्यक्ति जिसे अपनी माँ का अपमान होने पर भी क्रोध नहीं आता ,परन्तु बुरा लगता है, तो यदि ऐसा व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचे जो यह सहन नहीं करता है, तो उसे शक्ति प्राप्त होगी। लेकिन अंतर बहुत बड़ा है। दोनों में अत्यधिक अंतर है। एक आपको स्वतंत्रता में चुनना होगा, दूसरा विवश होकर। लेकिन आपको बहुत सारे ऐसे सहजयोगी भी मिलेंगे, जो नकारात्मकता की ओर आकर्षित होते हैं, ऐसे ही। वे नहीं जानते कि कैसे वे उस में दिल चस्पी लेते हैं, लेकिन सकारात्मकता के लिए उन्हें स्वयं प्रयास करना होगा। यह एक प्रणाली है जो कभी-कभी कार्य करती है। इसलिए मैं लोगों से कहती हूँ कि समान कमजोरी वाले लोगों का संयोजन न रखें। जब मैं कहती हूँ तब लोगों को कभी-कभी बुरा लगता है। लेकिन आप हमेशा पाएँगे, इनमें मित्रता है।  

जैसे कि दो सहजयोगी हैं जो सहजयोग के बारे में बुराई करते हैं, सुबह से शाम तक सहजयोग के दोष खोजते हैं। उनमें आपस में मेल होगा, आप देखे। बेहतर होगा की विभिन्न प्रवृति वाले व्यक्तियों का आपस में मेल हो ताकि वे एक दुसरे के पूरक होते हैं, बजाए उन लोगों की अपेक्षा जो एक ही परिवार के सामान प्रवृति के हैं। मान लीजिए कि वे एक ही परिवार के लोग हैं, तो आप उनके सामने सहजयोग की चर्चा नहीं न करें। या तो वे लड़ेंगे या वे सहजयोग में एक गुट बना लेंगे। 

तो सबसे अच्छी बात यह हैं कि सहजयोग में करने के लिए, हमें सबसे पहले बैठ कर अपने दोषों को ढूँढना हैl आप इसे लिखें, मेरे अवगुण क्या हैं? यह मेरे अवगुण है। कोई दिखावटी है, वह हर समय दिखावा करता है। आप देखिए, वह दिखावे के लिए कुछ अवश्य कहेगा। अब दूसरे दिखावटी व्यक्ति को उस से दूर भागना चाहिए। उसे ऐसे व्यक्ति के साथ बैठना चाहिए जो शर्मिला है। और यह एक अलग ही शैली है जो नकारात्मक लोगों से बहुत भिन्न है, क्योंकि नकारात्मकता में, दो नकरात्मकताओं को अच्छे से साथ मिलकर और रौद्र नकारात्मकता बनना होता है। लेकिन सहजयोग में, दो विपरीत प्रवृति वालों को एक साथ मिलना होगा, अच्छे सहजयोगी बनने के लिए। परन्तु यह पूर्ण स्वतंत्रता में, पूरी समझ के साथ किया जाना चाहिए। 

अच्छा सहजयोगी होने का क्या दायरा है? एक शब्द में आप समझ सकते हैं। केवल एक छोटी सी चीज़ है, “जिम्मेदार होना”। यदि आप एक जिम्मेदार सहजयोगी हैं, तो आप अपना रास्ता स्वयं ढूँढेंगे। अगर आप नहीं हैं, तो आप कयामत में जाएँगे। क्योंकि अगर आप जिम्मेदार हैं तब ही परमात्मा आपको अधिक देने वाले हैं। यदि आप गैर-जिम्मेदारी से पेश आते हैं, आप गैर-जिम्मेदाराना ढंग से बात करते हैं, अगर आप नहीं सोचते कि आप सहजयोग के लिए क्या कर सकते हैं, तो आप सहजयोग में आए हैं, एक तरह के बोझ बनकर सहजयोग पर और आप हमेशा कहते है- वो जिम्मेदार हैं। उसे करना चाहिए था, मैं क्यों करूँ? मैं क्या कर सकती हूँ? मेरा मतलब है कि वह कौन है, आप कौन हैं? वह सहजयोगी हैं, आप भी सहजयोगी हैं- वो लोग जो हर तरह से जिम्मेदार हैं, अपने व्यवहार में।

मोहम्मद साहब इस सम्बन्ध में बहुत विशेष रहें हैं और उन्होंने बहुत स्पष्ट रूप से कहा है कि नमाज़ करते समय, परमात्मा की उपस्थिति में, वहाँ से हिलना भी नहीं चाहिए, आप जहाँ बैठे हैं, आपको हिलना नहीं चाहिए, आपकी आँखों घूमनी नहीं चाहिए, आपको जम्हाई नहीं लेनी चाहिए। बहुत सी बातें हैं यदि आप मुझसे पूछें, मैं आपको यह भी नहीं बता सकती कि उन्होंने इस पर कितनी बातें कही हैं। व्यवहार कैसे करे इस सम्बन्ध में उन्होंने बड़ी अच्छी बातें कही हैं। एक बार जब आप खुद को जिम्मेदार महसूस करने लगेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि कैसे व्यवहार करना है, क्या करना है, क्या नहीं करना है। फिर, जब आप जिम्मेदार होंगे तो आपको आश्चर्य होगा कि आप अपनी अधिकांश आदतों को छोड़ देंगे, सहज ही, किसी भी आदत को। मान लीजिए कोई बहुत बातूनी व्यक्ति है। यह आदत छूट जाएगी क्योंकि आपको पता चलेगा कि बहुत अधिक बातें करने से कभी-कभी आप गलतियाँ कर रहे हैं। तो यह एक संतुलन में आ जाता है। अगर कोई बिलकुल बात नहीं करता है, तो उससे समझ आएगा जिम्मेदारी के नाते कि यह मदद नहीं करेगा, आपको बात करना होगा। वह बात करना शुरू कर देगा। केवल एक शब्द है कि जिम्मेदार होना है।

एक बार जब आप सहजयोग की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले लेते हैं, तुरंत आपके नवीन जीवन के सभी आयाम खुल जाएँगे। ज्ञान आपके भीतर बरसेगा| आप जीवन से एक नए तरीके से संबंधित होंगे। और समझ की एक नई शैली विकसित होगी। आपके सामने जीवन की सूक्ष्मताएँ खुल जाएँगी। आप पर आनंद बरसेगा, जब आप सोएंगे, तो आपको ऐसा अनुभव होगा जैसे माँ गंगा आपके सहस्रार के ऊपर बह रही है, जमुना आपके पैरों को धो रही है। आप वास्तव में ऐसा महसूस करते हैं। परन्तु आपको जिम्मेदार होना होगा। मैं देख रही हूँ कि बहुत कम उम्र के लोग भी हैं। हमारा मोर्सको बहुत जिम्मेदार लड़का है, वह बहुत छोटा है। जो भी संभव है, वह करना पसंद करता है, सहजयोगियों के लिए, वह बहुत छोटा है, वह इतना जिम्मेदार है। इसके लिए आपके पास पैसा होना आवश्यक नहीं है, इसके लिए कुछ भी नहीं चाहिए, जिम्मेदार होने के अलावा। इसका मतलब यह नहीं है कि अगर आप दस बार मेरे घर आते हैं और अगर आप मेरे साथ, मेरे बगल के कमरे में हैं, तो आप जिम्मेदार हैं। यह एक गलत विचार है।

जिम्मेदार होने का यह भी अर्थ है कि दूसरों को भी मौका दिया जाना चाहिए, मुझे ही क्यों? और जब आप एक जिम्मेदार सहजयोगी का जीवन व्यतीत करने लगते हैं, तो हजारों विकसित आत्माएँ आपके आस पास मंडराने लगेंगी। आपके चेहरे पर एक अलग सा तेज़ होगा। आपको आश्चर्य होगा कि जब आप बोलेंगे तो आप अचंभित हो जाएँगे कि आप कैसे बोल रहे हैं। कैसे सब घटित हो रहा है, हर क्षण कैसे सब कुछ कैसे कार्यान्वित हो रहा है। वैसे भी आप जानते हैं कैसे सब सहज हो रहा है, कैसे यह कार्यान्वित होता है, आप जानते हैं कि यह हर क्षण क्रियाशील है।

आपको केवल मंच पर जिम्मेदारी निभानी है, अन्यथा बहुत लोग कार्य करने के लिए हैं। मंच पर कुछ ही लोग हैं, मंच के पीछे, हजारों हैं। उदाहरण के लिए राहुरी में ये जो तीन लोग है। वे कितने जिम्मेदार हैं और उन्होंने कितनी जिम्मेदारी से व्यवहार किया है। और जब आप इस विषय पर विचार करना शुरू करते हैं कि, मैं इसके लिए जिम्मेदार हूँ , तब आपको स्वयं कार्य करने के तरीके ढूँढने होंगे। यदि आपको लगता है कि आप अपने परिवार के लिए जिम्मेदार हैं, तो आप अपने परिवार को चलाने के सभी तौर- तरीके ढूंढ लेंगे। लेकिन अब आप सहजयोग के लिए जिम्मेदार हैं।

जिम्मेदारी की भावना केवल आपकी स्वतंत्रता के माध्यम से आ सकती है, सहजयोग कि यह समस्या है। परन्तु एक नकारात्मक व्यक्ति के लिए यह बात उसके पास अपने आप ही मस्त हो जाती है। हर जगह मैंने इन गुरुओ को नकारात्मकताओं से ओत प्रोत देखा है, वह व्यक्ति इन गुरुओ के बारे में बात करना शुरू कर देता है। उन्होनें अपने गुरु को देखा भी नहीं होगा, हो सकता है उसे एक पाई बराबर चीज़ भी न मिली हो, लेकिन वह फिर भी उस कुगुरू के बारे में बात करता है। आप उससे पूछें कि उसने आपके लिए क्या किया है, वह क्यों अच्छा है? कुछ नहीं। क्योंकि वह नकारात्मकताओं से भरा है, कोई स्वतंत्रता नहीं है। क्या इसका अर्थ यह है कि स्वतंत्रता में मनुष्य जिम्मेदार नहीं हो सकता है? क्या यह है कि मनुष्य अभी तक इतना विकसित नहीं हुआ की जिम्मेदार हो सके? कोई उन पर हावी हो या उन्हें चलाये अन्यथा वे कुछ भी जिम्मेदारी से नहीं कर सकते हैं। तो सहजयोग में हम अपने स्वयं के विकास और अपनी स्वयं के उत्थान के बारे में सोचते हैं, हमें ज़िम्मेदार होना होगा। मैंने आपको इस विषय में कुछ नहीं बताया। मुझे आपको कुछ बताने मे भी बहुत दुःख होता है। मुझे स्वयं अच्छा नहीं लगता। क्योंकि किसी को कुछ कहना पड़े यह मुझे अभद्र लगता है।

मैं कई बार इस सम्बन्ध मे बहुत कुछ जानती हूँ पर मेरा कुछ कहना मुझे अच्छा नहीं लगता। आखिर में, माँ के साथ एक गुरु होना बहुत कठिन है, यह एक बहुत कठिन समस्या है। आपको यह ज्ञात नहीं है। क्योंकि मैं आपको इतना प्रेम करती हूँ इसलिए मैं आपको कोई कठोर बात नहीं कह सकती। यदि मैं कोई बात कहती हूँ तो बहुत आहत हो जाती हूँ और कभी कभी रो भी लेती हूँ, मुझे कहना पढता है। यदि आप रोज़ थोड़े और ज़िम्मेदार हों। प्रत्येक व्यक्ति को यह सोचना चाहिए “मुझे कम से कम दस व्यक्तियों को सहजयोग में लाना चाहिए”। यह हमारा कर्त्तव्य है, और इस प्रकार से दस लोगो को सहजयोग मे लाकर उन्हें स्थापित करें, वे अच्छी तरह से तैयार हो, वे तैयार हों। विभिन्न तरीके और विधियों ढूंढिए। किसी ने मुझे कोई नीति बनाकर नहीं दी है कि सहजयोग की गतिविधियों को कैसे बढ़ाया जाए। बैठकर इस विषय में विचार करेl मैंने आपको पहले एक तरीका बताया है कि एक सहजयोगी के घर पर कार्यकम हो, और आप सभी वहाँ जाएँ और पड़ोसियों को बुलाए यह कहकर कि हमारे घर पर एक कार्यकम होगाl जब हल्दी-कुमकुम जैसी छोटी रस्म के लिए आप 500 से अधिक महिलाओ को आसानी से एकत्रित कर सकते है तो सहजयोग के लिए भी कर सकते हैंl तरीके और विधियों ढूंढिए। तरीके और विधियों ढूंढिए। कैसे आप अधिक लोगो को सहजयोग में ला सकते हैं? एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से ज्यादा ज़िम्मेदारिया लेता हैंl ऐसा नहीं होना चाहिएl ऐसी कई बाते हैं जो आप लोगो को समझनी चाहिएl उदाहरण के लिए लोग मुझे पत्र लिखते है बहुत से चीजों के लिए- मुझे ध्यान करना हैं, मुझे प्रायश्चित करना है इसीलिए मुझे एक पुस्तक लिखनी है, उस तरहl मैं बहुत व्यस्त हूँl आप जानते हैं, मैं स्वयं के लिए समय नहीं बचातीl मैं उन पत्रों का जवाब नहीं देतीl कभी कभी मैं नहीं कर सकतीl अगर आपको पत्र नहीं मिलता है तो भी आपकी देखभाल की जाएगी। स्मरण रहेl पर पत्र आवश्य लिखिएl कई ऐसे व्यक्ति है जो बिलकुल भी पत्र नहीं लिखतेl मैंने ऐसा देखा है, बस नहीं लिखतेl आपको पत्र लिखना सीखना चाहिएl आज मुझे श्रीमती नाइट और उनके पति द्वारा लिखा एक अत्यधिक सुन्दर पत्र प्राप्त हुआl वह एक पूजा की समान है, वह इतना सुन्दर थाl आपको बहुत सुन्दर पत्र लिखने चाहिएl यह बहुत गैरजिम्मेदाराना व्यवहार है कि आप बिलकुल पत्र नहीं लिखतेl कम से कम मुझे अवश्य पत्र लिखिए और दूसरे सहजयोगियो को भीl मैं कहूँगी जैसे “शिरायु” बहुत जिम्मेदार हैl मैं उसको कभी पत्र नहीं लिखती हूँ, मुझे कभी वक़्त नहीं मिलता हैl वो मुझे लिखती है, उसको कितनी समस्याएँ हैं, उसके बच्चे हैं, उसका पति है, पर वो मुझे बहुत सुन्दर पत्र लिखती है, मैं उसके पत्रों का उत्तर नहीं देती हूँ फिर भी उसे बुरा नहीं लगता हैl यदि उसने मुझे इतने सुन्दर पत्र नहीं लिखे होते तो वह इतनी सुन्दर कविताओ की रचना नहीं कर पातीl

दूसरी राउल बाई हैंl मेरे पास बहुत कम वक़्त होता है कि मैं उनको पत्र लिख सकूँ ,परन्तु वह मुझे पत्र लिखती हैंl यदि मैं आपको उत्तर नहीं देती हूँ तो इसका बुरा नहीं मानिये, यह एक बात है जिसका निश्चय आपको करना चाहिए कि आपकी माँ के पास बिलकुल वक़्त नहीं है, और वह बहुत व्यस्त हैंl निश्चय ही आपके पत्र मुझे बहुत आनंदित करते हैं और आप मुझे अवश्य लिखेl पर लोग यदा कदा ही लिखते हैं, वास्तव में मुझे बहुत कम लोग पत्र  लिखते हैं, उनके पास पत्र लिखने का बिलकुल वक़्त नहीं होता है, यह कोई तरीका नहीं हैl

अब मैं आपको एक रहस्य बताती हूँl यह अत्यधिक सरल हैl आपने सारे शास्त्र पढ़े हैं, और सारी इश्वर स्तुति और देवी स्तुति आपने यह सब पढ़ा हैl हम लोग अपने निमंत्रण पत्र में क्या लिखते हैं? “आइये, जगदम्बा प्रसन्न” l इसका अर्थ है कि माँ अत्यधिक प्रसन्न हैं, वह बहुत प्रसन्न हैं, और वह बहुत आनंदित हो रही, तो आप यह जानने का प्रयत्न करें कि माँ किस बात से प्रसन्न होंगीl मुझे किस बात से प्रसन्नता होगीl आप जो भी करें उसे परख लें, क्या माँ प्रसन्न होंगी यदि हम यह करेंगेl यदि हम इस तरह से बात करेंगे या इस तरह की बातें कहेंगेl क्या माँ प्रसन्न होंगी? यह बहुत आसन हैl आप मुझे अच्छी तरह से जानते हैं, मुझे इस बात से प्रसन्नता नहीं होगी, हो सकता है मैं इसके बारे मैं कुछ न कहुँ, और इस विषय में मौन रहूँ, परन्तु मुझे वह अच्छा नहीं लगेगाl यह एक समझने वाली बात है, वह मत कीजिये जो आप करना चाहते है और जो आपको पसंद हैl यह गलत तरीका हैl बिलकुल गलतl परन्तु आप वह करें जो मैं चाहती हूँ कि आप करेंl और आप मुझे बहुत अच्छी तरह से जानते हैl और यह वही है जिसे कहते हैं कि “श्री माताजी प्रसन्न“ और यह एक प्रकार का प्रमाण पत्र है जो हम पाते हैं जैसा हम लिखते हैं “माताजी प्रसन्न हैं”l जब भी कोई घर पर शुभ कार्य हो या विवाह हो, तो श्री माताजी प्रसन्न हों ऐसा कार्य, सब कुछ ऐसे अनुमति लेकर करेंl

वैसे भी मैं अत्यधिक प्रसन्न हूँ, मैं कहना चाहूँगी क्योंकि इस बारl आप सब उभर कर ऊपर आये हैं, और काफी प्रगति हुई हैl यहाँ बड़ी प्रगति हुई हैl लेकिन इसे नियमित रूप से किया जाना चाहिए, और इसे बनाए रखना चाहिएl यह मैं नहीं जानती कि आपको कैसे बताऊँ कि आपके साथ क्या घटित हुआ हैl यह एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो घटित हुई हैl और यह सुचारू रूप से कार्यान्वित हुई हैl अब आप अपने चक्रों की छोटी चोटी कमियों को देखेंगे जिससे आप अनभिज्ञ थे और जिसके लिए आप चिंतित नहीं थेl इसलिए यदि आपके चक्रों पर कोई भी बाधा है तो उसको साफ़ कीजिये और उन्हें साफ रखिएl और अपने प्रति और सहजयोग के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का आदर करेंl यह एक ऐतिहासिक सम्मलेन है, बहुत बहुत कम लोगो काl और जो भी कार्य हमने यहाँ किया है उससे हमको बहुत सहायता मिली हैl अपने ह्रदय में कोई द्वेष न रखें, केवल आनंद कि आपको ऐसा स्थान मिला जहाँ पर इतने सारे सहजयोगियों में आपस में सद्भावना है, जो की आत्मसाक्षात्कारी हैl जब इनकी संख्या बढती है तो विकसित आत्माओं का अनुपात बढ़ता है जो कई अनुपात होता हैl और आप कह सकते है ज्यामितीय अनुपात, वह सही तरीका है, यही गणित हैl जैसे जैसे आप अधिक संख्या में होते है, उतना बेहतर है और आपकी ज़िम्मेदारी होती है कि आप में विवेक हो, और कुछ परिणाम दिखाएँ जब तक मैं मुंबई में और भारत में हूँl अब देखते हैं कि कैसे लोग इसके अनुसार चलते हैंl

और भारतीय विद्या भवन में कार्यक्रम होने वाले हैl कभी कभी मुझे धक्का लगता है कि सहजयोग के बड़े कार्यक्रमों में सहजयोगी सबसे देर में आते हैंl सभी अन्य लोग वहाँ पर उपस्थित होते हैं मगर सहजयोगी गायबl इसलिए सबसे पहले ऐसे दस लोग ढूँढे जो सहजयोग के लिए आएl अगले कार्यक्रम के विषय में ये लोग आपको बता देंगे, मुझे इसके बारे में पता नहीं है कि कार्यक्रम कहाँ होना है, हमने अभी निश्चित नहीं किया हैl भारतीय विद्या भवन में 3 और 4 और घाटकोपर में 2-4 [मराठी में एक अन्य योगी के साथ बातचीत]। भारतीय विद्या भवन में तीन व चार। इसलिए आप लोगों को पता लगाना चाहिए कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं। वे इसमें क्यों नहीं आए और इसके साथ आगे बढ़ें। मैं सहजयोगियों को भी जानता हूँ जो खो गए हैं आप जा सकते हैं और उनसे बात कर सकते हैं और यदि संभव हो तो इसे हल कर सकते हैं। नहीं तो उन्हें भूल जाओ। नए लोगों को उनसे बात करने दें और उन्हें सहज योग के बारे में बताएं। और मुझे उम्मीद है कि यह तीन और चार बहुत अच्छा कार्यक्रम होगा।

अब सबकी जिम्मेदारी होगी। पता लगाना चाहिए कि किसी को फूल चाहिए तो कोई फूल ला सकता है। कोई उदबत्ती ला सकता है, कोई कार्यक्रम के लिए कुछ ला सकता है। और कोई ला सकता है…। आप देखिए जब मैं वहाँ जाती हूँ तो रेडियो का समायोजन शुरू हो जाता है और वहाँ यह चीज़ और वह चीज़, और समय की इतनी बर्बादी होती है और यह अच्छा नहीं है। लेकिन आप देखते हैं कि हम दूसरों में दोष ढूंढते हैं। हम खुद को नहीं देखते कि हमने इसके बारे में क्या किया है। आप देखिए, मान लीजिए कि कोई लाउडस्पीकर नहीं लाया है। तो वह आदमी लाउडस्पीकर नहीं लाया है तो यह बहुत गलत है, आप देखिए। लेकिन आपने इसके बारे में क्या किया है? क्या आपने इसके बारे में कुछ किया है, क्या आपको इसके बारे में कुछ पता किया? और अगर हर कोई इस पर काम करता है, कैसे सजाना है, इसे कैसे ठीक करना है और सब कुछ, हम इसे कैसे विस्तारित करने जा रहे हैं, तो चीजें ठीक हो जाएँगी।

एक और कार्यक्रम जो आप सभी को पता होना चाहिए वह है 21 मार्च को और मैं चाहूँगी कि अन्य सभी लोग भी आएँ। राहुरी से आप कुछ लोगों को ला सकते हैं, जो लोग आना चाहते हैं, 21 मार्च। 

19, 20 और 21. कम से कम एक दिन के लिए आ सकते हैं तो ठीक है 

मराठी में: यदि आप 2-3 दिन में आते हैं तो भी ठीक है कि हमें रहने के लिए जगह मिल जाएगी ताकि रहने की समस्या का समाधान मिल सके । 

19, 20, 21 हम उस स्थान पर नियमित रूप से तीन दिवसीय कार्यक्रम कर सकते हैं। लेकिन जो भी हो, हम इस बार 19, 20, 21 कुछ बेहतर आयोजित करते हैं।