[Hindi translation from English]
नाभी चक्र
फरवरी 1977.
यह बात भारत में पश्चिमी योगियों के पहले भारत दौरे (जनवरी-मार्च 1977) के दौरान दी गई थी। सटीक स्थान अज्ञात।
नाभी चक्र, हर इंसान के गुरुत्वाकर्षण के केंद्र में रखा जाता है। यदि यह वहां नहीं है, तो इसका मतलब है कि आप के लिए इसे इसके सही स्थान पर पहुंचाना थोडा मुश्किल होने वाला है। एक तरह की परेशानी है जो आप में से अधिकांश को होती है, शायद ड्रग्स या शायद नर्वस समस्या, युद्ध के कारण, या शायद आपके अस्तित्व के लिए किसी तरह का झटके के कारण सकती है। उदाहरण के लिए, युद्ध के दौरान, लोगों ने अपने मूल्यों को खो दिया, क्योंकि, उन्होंने ईश्वर में विश्वास खो दिया। शुद्धता पर विश्वास करने वाली पवित्र महिलाओं के साथ क्रूरतापूर्वक आक्रमण किया गया। बहुत धार्मिक लोगों को सताया गया, परिवारों को तोड़ा गया। कई लोग मारे गए, और बच्चे, महिलाएं और बूढ़े लोग बिखर गए। असुरक्षा का एक बहुत भयानक वातावरण, इन सभी राष्ट्रों पर हावी हो गया। फिर देखिये,यातना शिविर भी आए, जिसने मानव को चकनाचूर कर दिया, क्योंकि मनुष्य बहुत नाजुक यंत्र हैं। वे उत्कृष्ट रचना हैं, वे सर्वोच्च हैं और उन पर बम जैसी चीज़ों का दबाव था, जो मायने रखते हैं। इस प्रकार, मनुष्य में भावना, मर गई। लोगों ने प्यार में, सच्चाई में विश्वास खो दिया।
फिर सुरक्षा का नया ढांचा बनाया गया। औद्योगिक क्रांति ने इसका अनुसरण किया, परिणामस्वरूप, प्रेम की, सुरक्षा की, आनंद की कृत्रिम भावना को समाज ने स्वीकार किया। मनुष्य ने अपनी स्वतंत्रता में ऐसा ही किया, क्योंकि युद्ध मनुष्य द्वारा रचे गए हैं, यह भगवान का कृत्य नहीं है। लेकिन इसके साथ-साथ, बहुतसी
जिज्ञासु आत्माओं ने इस पृथ्वी पर जन्म लिया । उन्होंने इस कृत्रिम सुरक्षा जैसे भौतिकवाद से परे खोज शुरू की। साधकों के पास, उन्हें संगठित करने और उन्हें सही रास्ते पर ले जाने के लिए कोई उचित मार्गदर्शक नहीं थे। इसलिए उनके द्वारा की गई गलतियों ने एक बाधा पैदा की। इसलिए, मानव जागरूकता की बाधाओं के अलावा, कई अन्य अडचनें जुड़ गई, कई अन्य बाधाओं के जुड़ने के कारण सहज योग उनके लिए एक कठिन प्रक्रिया बन गया।
जिन देशों ने युद्ध में भाग लिया, केवल विकसित देश बन गए। एक प्रतिक्रिया के रूप में, नहीं यह केवल प्रतिक्रिया है, वे केवल विकसित लोग हैं, जो वास्तव में युद्ध में भाग ले रहे हैं। और जिन्होंने नहीं लिया, वे अविकसित हैं। तो, एक तरफ, हमारे पास ऐसे देश हैं, जो खोजने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि वे अति विकसित हैं, क्योंकि वे संपन्न हैं, लेकिन उनके जिज्ञासुओं ने विरोधी भावना के कारण अपने आधार अथवा मूल को ही खो दिया है। ठीक है? जबकि अन्य देश अभी तक विकसित नहीं हुए हैं, इसलिए वहां के खोजी अभी भी पैसे में ही तलाश रहे हैं। इस परिस्थिति में, सहज योग का पता चला, इस चरण के द्वारा ईश्वर के साथ मानवीय चेतना के योग का जो वादा था वह स्थापित किया गया है, जिसके माध्यम से आप अपने अचेतन, सर्वव्यापी ईश्वर की शक्ति, जो सोचती है,संगठित करती है और योजनाएं बनाती है|
केवल सहज के कुंडलिनी योग के माध्यम से, मानव विकसित होने जा रहे हैं। लेकिन जो लोग विकसित होने जा रहे हैं, उन्हें अपने धर्म को अक्षुण्ण रखना होगा।