Mahashivaratri Puja New Delhi (भारत)
1977-02-16 Mahashivaratri: Sat-Chit-Ananda, Delhi महाशिवरात्री, १९७७ फरवरी १६ आज का दिन कितना शुभ है की महाशिवरात्री के दिन हम लोग सब साथ शिव की स्तुती गा रहे हैं। शिव याने सदाशिव, इन्हीं से सृष्टी शुरू हुई है और इन्हीं में खत्म होती है। सबसे पहले गर आप ब्रम्ह को समझे तो ब्रम्ह से शक्ती और शिव, जैसे की एक cell के अंदर उसका न्युक्लिअस nucleus होता है, उसी की तरह शिव और शक्ती सबसे पहले ब्रम्ह में स्थापित होते हैं। सृष्टी कैसी हुई, किस प्रकार ये घटना घटित हुई, किस प्रकार ब्रम्ह शिव और शक्ती के रूप में प्रगट हुए ये सारी बातें मैं आपको शनिवार और रविवार में बताऊँगी। लेकिन शिव से निकलती हुई ये शक्ती जब एक paraboly में घूमती है, जब एक प्रदक्षिणा लेती हैं तो एक एक विश्व तैयार होते है। ऐसी अनेक प्रदक्षिणाएँ, शक्ती की होती रही। इसके बारे में भी मैं आपको बाद में बताऊँगी। अनेक विश्व तैयार होते रहे, अनेक भुवन तैयार होते रहे और मिटते भी रहे। शिव से शक्ती हटकरके विश्व बनाती हैं। शिव सिर्फ साक्षी स्वरूप रहते हैं। वे खेल देखते रहते हैं शक्ती का। शक्ती का अगर खेल उनकी समझ में न आए, तब वे जब चाहें तब अपनी शक्ती अपने अंदर खिंच ले सकते हैं। सारा ही खेल बंद हो जाता है। वे ही द्रष्टा हैं, वही देखनेवाले हैं। वही इस खेल के आनंद को उठानेवाले हैं। उन्ही के कारण सारा खेल है। इसलिए गर वो न रहें तो सारा खेल खत्म हो जाता है। वो स्थिति हैं। Read More …