1977-02-16 Mahashivaratri: Sat-Chit-Ananda, Delhi
महाशिवरात्री, १९७७ फरवरी १६
आज का दिन कितना शुभ है की महाशिवरात्री के दिन हम लोग सब साथ शिव की स्तुती गा रहे हैं। शिव याने सदाशिव, इन्हीं से सृष्टी शुरू हुई है और इन्हीं में खत्म होती है। सबसे पहले गर आप ब्रम्ह को समझे तो ब्रम्ह से शक्ती और शिव, जैसे की एक cell के अंदर उसका न्युक्लिअस nucleus होता है, उसी की तरह शिव और शक्ती सबसे पहले ब्रम्ह में स्थापित होते हैं। सृष्टी कैसी हुई, किस प्रकार ये घटना घटित हुई, किस प्रकार ब्रम्ह शिव और शक्ती के रूप में प्रगट हुए ये सारी बातें मैं आपको शनिवार और रविवार में बताऊँगी। लेकिन शिव से निकलती हुई ये शक्ती जब एक paraboly में घूमती है, जब एक प्रदक्षिणा लेती हैं तो एक एक विश्व तैयार होते है। ऐसी अनेक प्रदक्षिणाएँ, शक्ती की होती रही। इसके बारे में भी मैं आपको बाद में बताऊँगी। अनेक विश्व तैयार होते रहे, अनेक भुवन तैयार होते रहे और मिटते भी रहे। शिव से शक्ती हटकरके विश्व बनाती हैं। शिव सिर्फ साक्षी स्वरूप रहते हैं। वे खेल देखते रहते हैं शक्ती का। शक्ती का अगर खेल उनकी समझ में न आए, तब वे जब चाहें तब अपनी शक्ती अपने अंदर खिंच ले सकते हैं। सारा ही खेल बंद हो जाता है। वे ही द्रष्टा हैं, वही देखनेवाले हैं। वही इस खेल के आनंद को उठानेवाले हैं। उन्ही के कारण सारा खेल है। इसलिए गर वो न रहें तो सारा खेल खत्म हो जाता है। वो स्थिति हैं। उन्ही के कारण existence होता है। मनुष्य के हृदय के कारण ही वो जीवित माना जाता है। जिस वक्त उसका हृदय बंद हो जाता है तो उसे मृत माना जाता है। जब शिव अपनी आँखें बंद कर लेते हैं, तो उसे संहारक कहा जाता है। वही स्थित होते हैं और वही लय हो जाते हैं क्योंकि वो स्थित हो सकते हैं, वो लय भी हो सकते हैं। इस कुंडलिनी शास्त्र में शिव का स्थान आपसे मैंने बताया था, हृदय में मनुष्य के अंदर एक दीपज्योति की तरह हर समय जलते रहते हैं। जिसके कारण हमारे अंदर सत्-असत् विवेक बुद्धि जागृत रहती है। जो हमें मना करती रहती है की ये नहीं करो, ये गलत है, ये अधर्म है, ये बुरी बात है, ये कपट है, ये लोभ है, ये मद है, ये मत्सर है, ये अधर्म है, ये मनुष्य की प्रतिष्ठा से गिरा हुआ काम है, ये शोभनीय नहीं है। लेकिन मनुष्य में जो स्वतंत्रता है उसे वो बुरी तरह से उपयोग में लाता है। और शिव की अवहेलना करता है। शिव सारे संसार का गरल पी लेते हैं। जितना भी विष हमारे हृदय में बसा रहता है, दूसरों के प्रति घृणा, हिंसा आदि अत्यंत बुरे विचारों से जो हमारा हृदय विषैल हो जाता है, उसको शिव हमारे अंदर जब जागृत होते हैं तो उसे पी लेते हैं। शिव का खाद्य ही, उनका पीना ही गरल है, जो कुछ भी नशैली चीजें हैं, मद्य आदि, जो चेतना के विरोध में नुकसान पहुंचाती हैं, उन्हें शिव प्राशन कर लेते हैं। संसार का जितना भी इस प्रकार का विष है, उसे वो ग्रहण कर लेते हैं अपने अंदर। इसीलिए उनको महाशिवरात्रि के दिन हम लोग प्रतीक रूप में भंग आदि नशैली चीजें अर्पित करते हैं। इसका अर्थ मनुष्य ये लगा लेता है, की अगर शिव भंग पीते हैं तो हम भी पीये। गर शिव शराब पीते हैं तो हम भी शराब पियेंगे। आप क्या शिवजी हैं? उनके पाँव के धूल के बराबर भी आप हैं? जिन्होंने संसार का सारा गरल पी लिया- उसके भी पीनेवाले कोई चाहिए। देवी सारे भूतों को खा जाती हैं। रक्तबीज का जो रक्त संसार में गिरता था उसके एक एक बूँद को देवी चाट गयी। क्या आप लोग उसे चाट सकते हैं? आप लोगों का क्या उनसे मुकाबला है, जो आप शिव जैसे भंग पीने निकले? शिव चाहें दुनिया भर की भंग पी लें उनपे चढती नहीं। आप लोगों का ये हाल है? शिव एक दैवी संपदा हैं, अवतरण हैं। अवतरण हम समझते नहीं चीज क्या होती है। उसका लोहा ही दूसरा होता है। उसकी व्यवस्था दूसरी होती है। क्या आप उस तरह से बने हुए हैं? क्या आप उस कार्य के लिए बने हुए हैं, की दुनियाभर का आप जहर पी लें? बहोत से लोग ये कहते हैं की माँ हमारे कुछ शराब चढती नहीं। इससे बढकर और कोई भी झूठ नहीं हो सकता। कुछ बडे बडे गुरु भी जैसे की साईनाथ शिर्डी के, वे भी एक अवतरण थे। वे चिलम पीते थे। तो अब सब लोग चिलम पीने लग गए। क्या आप साईनाथ है? वे तो इसलिए पीते थे की आपके हाथ कोई चिलम ही न लगे, सबकी चिलम ही पी डाले एकदम। सबकी चिलमें पचाने के लिए वो पीते थे। क्या आप लोगों में ये शक्ती है की आप चिलम पी सकते हैं? उनको कॅन्सर नहीं हो सकता था। शिव के भक्त जो हैं उन्हें शराब छूना भी नहीं चाहिए। उसके पास भी नहीं जाना चाहिए। उससे दूर भागना चाहिए। बजाय इसके जितने भी तांत्रिक हैं वो पाँच मकान लेके बैठे हुए हैं। वो क्या करते हैं? अपने को शाक्त कहलाते हैं, शक्ती के पुजारी कहलाते हैं, शिव के पुजारी कहलाते हैं, और इस कदर व्यभिचार! शिव और व्यभिचार.. जो पूर्ण ब्रम्हस्वरूप हैं उसका नाम लेकर इतना महापाप करना, अपनी दुर्गति की पूर्ण व्यवस्था कर लेना है। एक माँ के नाते मैं आपसे बताती हूँ की इस तरह की गलतफहमी में कभी मत रहना। तंत्र का तरीका जो है बिल्कुल शैतानी तरीका है। आज महाशिवरात्रि के रोज मैं चाहती हूँ के आपको उसके बारे में थोड़ा सा जरूर बताऊँ। तंत्र की व्यवस्था ये होती है की जो चीज परमेश्वर को पसंद नहीं है, जो चीज देवी को पसंद नहीं है, वही करो। देवी के सामने ही गलत गलत काम करना शुरू किया। व्यभिचार। सब तरह की विद्रूप बातें। जिसे देवी देखकर के घृणा से वहाँ से हट जाये। शुरू में तो देवी उनपे उत्पात करती हैं। कूदते हैं, नाचते हैं, चिल्लाते हैं, चीखते हैं, गर्मियाँ होती हैं, फोडी निकलती है बदन पे। जिसको कुंडलिनी जागृती भी बहोत से लोग कहते हैं। मेरे पास ऐसे बहोत से लोग आये ट्रीटमेंट के लिए जो कहते हैं की हमारे अंदर ऐसे लग रहे है जैसे हजारों बरैय्या काट रहे हैं। हमारी कुंडलिनी जागृत हुई है। और भी ऐसे आते हैं जो बताते हैं की यहाँ से लेकर के यहाँ तक सब हमारे अंदर बडे बडे पपुंदे आ गये। यहाँ इंस्टिट्यूट में एक डॉक्टर साब है उनका नाम मैं भूल गयी.. what’s his name? डॉ. पाल. वो मेरे पास आये थे, वो बता रहे थे की उनकी कुंडलिनी किसीने जागृत की और उनके बदन में हजारों बिच्छू उनको काट लिया। और बेचारे कूदते हुए खडे रहे मेरे पास, माँ मुझे बचाओ, मुझे बचाओ। मैंने उनकी कुंडलिनी उतारी। मैंने कहा १२:४५ बेटे जरा सबको दे दो। एक मिनट के अंदर उनकी कुंडलिनी मैंने शांत कर दी। कुंडलिनी नहीं, श्री गणेश जो की शिवजी के पुत्र हैं। जो शक्ती के पुत्र हैं। उनका गुस्सा था वो। मैंने जब उनसे पूछा तो मैं समझ गयी, जिस इन्सान ने उनकी कुंडलिनी जागृत की थी उसका वो नाम उन्होंने मुझे बताया, वो किसीको बताते भी नहीं है डर के मारे, घबडाहट के मारे। कुंडलिनी के नाम से वो घबडाते है बेचारे। ये उनकी हालत कर दी और उनसे कहा, की तुम्हारी कुंडलिनी जागृत हो गयी। सारे बदन में ऐसा समझ लीजिये की जैसे सब हाथ पैर जल गये। ब्लिस्टर्स सारे बदन में ! एक मिनट के अंदर कुंडलिनी शांत हो गयी। सो गये। सिर्फ गणेश। श्री गणेश। क्योंकि वे मुझे जानते हैं। ऐसे तांत्रिकों से बहोत बचके रहने की जरूरत है। देवियों के सामने जा करके, खजुराहो में आप जाके देखिये, इन तांत्रिकों ने क्या उत्पात कर रखा है। छठी सदी में,.. शंकराचार्य के बाद में तो इन्होंने एक नया ही जंग खडा कर दिया। जैसेही देवी की बात उन्होंने कही, उन्होंने सोचा की हाँ, अब माँ का राज्य आनेवाला है, चलो इसके पीछे लग जाये। उस वक्त के राजा लोग बहोत ही गिरे हुए, बहोत ही बुरे नजर से देवी की ओर देखते थे। कितने दुष्ट लोग उस वक्त राज्य करते थे। पूरा पट्टा के पट्टा यहाँ से बंगाल तक। और उनके जो मंत्री लोग थे वो यही थे, जैन। जैन लोगों में, खाने के मामले में तो पट्टे बाँधके घूमते हैं मुँह पर। औरत के मामले में कोई झगडा नहीं। मुँह पे पट्टे बाँधके घूम लेते हैं, सोचते हैं हो गये आउट। १५:०० कृष्ण को नाम धरते हैं की वो संहारक था। राम को नाम धरते हैं की वो संहारक था। हालाँकि महावीर बहोत ऊँची चीज हैं। जैसे हमने सबका ही ठिकाना किया है वैसे जैनियों ने महावीर का भी ठिकाना कर दिया। ये तो सभी के एक एक ढंग होते है। उन्होंने ये प्रथा चलाई की छोटे छोटे लडके लडकियों को भी वो आश्रमों में भेज देते हैं। जैसे की पोप करते हैं। उस वजह से इस कदर अनैतिकता बढ गयी, जबरदस्ती की बात, यहाँ तक की ब्राम्हणोंने भी ये बात उठायी की विवाह के पश्चात भी मनुष्य को बिलकुल संयमित रहना चाहिए और ब्रम्हचर्य में रहना चाहिए। बिलकुल अननैचरल सी बातें, उसके जो दबाव से खजुराहो जैसी गंदी चीजें तैयार हो गयी। हालाँकि खजुराहो में मैं जरूर कहूँगी की कलाकारों ने भी कमाल कर दिया। जहाँ जहाँ उन्होंने मूर्तियाँ बनाई वहाँ वहाँ देवी देवताओं की मूर्तियाँ काफी बडी बडी बनायी, मोटी मोटी, क्योंकि होते ही- देवी देवतायें मोटे ही होते हैं। क्योंकि उनको पानी की बहोत जरूरत होती है, इतने चक्र चलते रहते हैं तो पानी तो उपर से चाहिए ही। नहीं तो चलेगा कैसे? १६:१४ और बाकी ये छोटी छोटी, लंबी लंबी, पतली पतली कहीं कहीं उन्होंने लगा दी राजा को खुश करने के लिए। लेकिन वो कोणार्क का जो वो था तांत्रिकी था, वो उसका क्या कहिए ? और वहीं पर आप देखिये पास ही में ऐसे भी मंदिर हैं जहाँ पर ये वाममार्गी जाकरके और देवी को असंतोष में डालते हैं। मदिरा पीते हैं, शराब पीते हैं और व्यभिचार करते हैं। और जब वहाँ से देवी का चित्त हट जाता है. जहाँ तक हमारा फोटोग्राफ से भी बताते हैं आपसे अभी तो आप को व्हायब्रेशन्स् आयेंगे अगर आप देखिये तो। लेकिन गर इसके सामने व्यभिचार होना शुरू हो गया तो इसमें से, फोटोग्राफ में से हम गायब। आपको कोई व्हायब्रेशन नहीं आनेवाला। चित्त हट जाता है हमारा। चित्त ही हट गया क्योंकि व्यभिचार और गंदगी के पास देवी क्यों रहने चली? वैसी जगह शिवजी बैठते हैं, काफी देर तक और तडाखें भी बहोत देते हैं वहाँ पर। भैरवनाथ भी वहाँ जमे रहते हैं। उनके तडाखें के बगैर लोग ठीक नहीं होते। पहले खूब तडाखें खाते हैं, बडी हालत खराब होती है उनकी। पर तो भी बेशरम जैसे लगे ही रहते हैं। वो इसे तपस्या कहते हैं। बीमार पड़ते हैं, आफतें होती हैं, उल्टियाँ होती हैं, खून गिरता है, सब होता है। बदन में आग हो जाती है, पर तो भी जमे रहते हैं। फिर शिवजी भी वहाँ से लुप्त हो जाते हैं। फिर अपना वहाँ अड्डा जमाया, चरस, भांग घोल कर के और गज्जडियों की वहाँ मैफिल बैठती है, रात में व्यभिचार होते हैं। और उसके बाद सब स्पिरिट्स बुलाये जाते हैं। और उन स्पिरिट्स को हाथ में ले करके फिर उसीसे सब ये जो धंधें जो मैंने कल आपको बताये थे वो किये जाते हैं। शिवजी के भोलेपन की ये हद है, इतना innocence का वो पुतले हैं, की जब रावण ने उनसे कहा की अब तुम मुझे अपनी शक्ती ही दे दो, तो उन्होंने उसको भी दे दिया। इतना भोलापन ! निष्पाप ! जिनको की पाप ही क्या है नहीं मालूम ! पाप को भी खा जाये, सब के सब चीज खा जाय, लाओ जो कुछ खाना है खा जाये। जैसे गंगा में सारे पाप धुलते हैं, कहते है। सो आप समझ सकते हैं की गंगा में इसलिए पाप धुलते हैं की शिवजी के जटा से उतर आयी, इसीलिए। जिनके जटा को छूने से ही इतने पाप धुलते हैं जो स्वयं साक्षात जो होंगे सो क्या होंगे सो बता दीजिये। जिनका साक्षात करने से ही सारे जिसके पाप डूब जाते हैं, जिनको याद करने से ही सबके जो इतने भव के, भवसागर के जितने भी लगे हुए, पशु पक्षी के तरह से चिपके हुए जो कुछ भी गंद, मैल आदि जीवित और निर्जीव जो कुछ भी हो, सारी बाधाएँ जिसकी खत्म हो जाती है, ऐसे शिवजी के लिये लोग ये कहते हैं की व्यभिचार से शिवजी खुश होते हैं। १९:५५ ऐसे संसार में क्या बात की जायेगी? ये तांत्रिक शिवजी के दुश्मन है, ये नर्क में मरेंगे, किडे के मौत से। हजारों वर्षों तक ये नर्क में रहेंग। इसमें कोई शंका नहीं। लेकिन जो लोग इनकी बातों में फँसते हैं, और उनके चक्करों में घूमते हैं, भूतप्रेतादि को इस्तेमाल करते हैं, दूसरों का नाश करते हैं, वे भी उनके पीछे ही जानेवाले हैं। शिवजी के इस महापर्व के दिन सहजयोगी जितने भी हैं, उनको निश्चय कर लेना चाहिये की हमारा हृदय अत्यंत स्वच्छ हो। उसमें सारल्य हो, सज्जनता हो; हम अपने को देखिये और शरमाये की क्या हम इतने दुर्जन है, जो इस तरह की बातें हम सोचते है? अपने हृदय को देखिये और पूछिये की क्या हम इतने कपटी और गिरे हुए लोग हैं, की हम इस तरह की बातें सोचते हैं। २१:०८ शिवजी को जागृत रखने के लिये मनुष्य को अत्यंत सरलहृदय होना चाहिये। शिवजी भोले थे, ऐसे आदमी बडे भोले होते हैं। और लोग कहते हैं की ऐसे लोग ठगे जाते हैं। सारी दुनिया ने भी ठग लिया तो कुछ नहीं गया। आपके ठगने पे सभी चला जाता है। आप किसीको मत ठगिये। इसमें कोई बडी भारी बहादुरी नहीं है की आप बेवकूफी करे। आपने गर किसीको एक मर्तबा ठगा, उसकी माफी नहीं हो सकती। २१:५० आप को कोई हजार बार ठग ले, आपका कुछ नहीं बिगडता। जो आदमी भोला होता है उसको कोई ठग ही नहीं सकता। ये तो मन के भाव हैं की इसने इसको ठग लिया, उसने उसको ठग लिया। आप ठग करके क्या इकठ्ठा करते है? धन? ठगा हुआ धन, दूसरे को ठगा हुआ धन कितना नुकसानदायी होता है आपको पता नहीं। २२:२२ अभी राहुरी में एक सज्जन मेरे पास आये और मुझसे ये कहने लगे की हमारे पुरखों का कुछ पैसा जमीन में गडा हुआ है माँ और हमे मालूम है वो गडा हुआ। तीन पुश्त पहले किसीने वो निकालने की कोशिश की। उसी दिन उस घर में तीन मृत्यू हो गयी। उसके बाद दूसरे पुश्त ने शुरू किया। उस वक्त भी फिर तीन मृत्यू हो गयी। फिर चौथी मर्तबा ऐसा हो गया। अब हम है। अब हम क्या करे? मैंने कहा, ‘ भूल जाओ उस धन को, बिल्कुल भूल जाओ। उसको खत्म होने दो। उसको छूने की जरूरत नहीं।’ किसीको मारके, किसीके बालबच्चे भूखे रखके, किसीकी आत्मा को तडपाके आप ये पैसा ले करके आये है। उनकी आत्मायें जो तडपती हैं वो बहोत बडी (चीख) चीज है। प्रचंड शक्ती है। आपके बच्चों के बच्चों के बच्चों तक खा जायेगी। वो शिवजी के काम हैं। ये शिवजी के काम है। शिवजी भोले बहोत हैं। लेकिन उनका गुस्सा आप जानते नहीं। उनका गुस्सा भयंकर है। और उनके गले में जो नाग रहता है वो सब समझता है। २४:०० जो कोई भी इस तरह से किसी की आत्मा को दुखी करेगा, क्योंकि आत्मा में शिवजी का स्थान है, उस आदमी का पुश्तनपुश्त हाल ये होगा। मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ। आप कह रहे हो माताजी ऐसे ही बातें करते हैं। अभी हैद्राबाद में एक सज्जन के घर वो मुझे कहने लगे, ‘चलिये आप। बहोत रईस आदमी है, बहोत ये है, बहोत वो है।’ मैंने कहा ‘भई रईस वईस.. मुझे कोई मतलब नहीं। मैं अपनी गरीब हूँ, मैं गरीबी में ठीक हूँ।’ बहोत पीछे पडे, ‘चलिये माताजी। उन्होंने बडा बुलाया, बडा बुलाया।’ मैंने कहा ‘अच्छा भाई, रस्ते में पडेगा तो चलेंगे।’ जैसे मैंने उनके घर में कदम रखा तो एक पैर पीछे हट गयी। कहने लगे, ‘क्या बात है?’ मैंने कहा ‘इस घर पे शाप है बहोत बडा।’ कहने लगे ‘आपको कैसे मालूम?’ मैंने कहा, ‘है या नहीं सच सच बोलो तुम। मैं अंदर नहीं आनेवाली। सच बोलो।’ कहने लगे, ‘हाँ है।’ उस घर के दो जवान बच्चे हमेशा ऐसे ही कुर्सी पे बैठे हुए है। २५:०० दोनों पैर हाथ ऐसे, खाते भी ऐसे हैं, सोते भी ऐसे हैं। मेरे से कहने लगे की माताजी इनको ठीक करिये आप। मैंने कहा, ‘ बेटे मुझे क्षमा करो। मैं जा रही हूँ।’ वैसे ही मैं बाहर निकल आयी। मैंने कहा, ‘अब भी तुम वही काम कर रहे हो जो तुम्हारे पुरखों ने किया है?’ कहने लगे, ‘हमारे खानदान में हमेशा दो बच्चे ऐसे ही होते आये हैं।’ तो भी आपकी नहीं बात छूटी? ‘और इस पुश्त में तो यही दो बच्चे हैं। तीसरा है ही नहीं। तो इस खानदान का क्या होगा?’ मैंने कहा, ‘आप खानदान लेकर बैठो, पैसा लेकर बैठो और उसको चाटो आप! और खाओ और इनके चिपकाओ चारों तरफ और उतना भी नहीं होगा तो प्रोसेशन निकालो।’ किसी की आत्मा को दुःख देना, विशेष कर किसी गरीब को दुःख देना, उसकी आत्मा से आह लेना, आपको पता होना चाहिये की शिवजी का राज सबदूर चल रहा है। आपको दिखने में लगता है की आप निकुडके ले आये उसके घर का सारा सामान लूटके आप चले आये। २६:२३ घर में बहू आयी है, उनको सता रही है सास। उसको बडा मजा आ रहा है सताने में। उसको छल रही है। मेरे को इतना मेरे सास ने छला तो मैं भी इसको छलू। उसकी आहें मत लो। किसी गरीब की आहें मत लो। किसीके हृदय की आह मत लो। कभी भी मत लेना। शिवजी वहाँ बसते हैं, जान लो। और जितना आदमी भोला होगा उतना ही वहाँ शिवजी का राज्य ज्यादा होगा। किसी भोले आदमी का कभी फायदा मत उठाना। भोले आदमी के सामने हमेशा नतमस्तक रहो। क्योंकि शिवजी वहाँ जाग रहे हैं। तभी वो भोला हैं। आदमी तभी भोला होता हैं जब उसके अंदर शिवजी जाग रहे हैं। भोले आदमी को लोग बहोत सताते हैं। उसको छलते हैं। जिनको खास कर पैसे का बहोत समझ में आता है, एक-एक, दो-दो पैसा जो जोडते बैठते है वो भोले आदमी को उल्लू बनाते फिरते है। पैसा तो कभी मिल भी जायेगा। लेकिन शिवजी के शाप से आप विमुक्त नहीं हो सकते। आप कहेंगे की माँ तुम यूँ ही हमें डरा रही हो। मैं बिलकुल नहीं डरा रही हूँ। मैं सजग कर रही हूँ। सजग हो जाओ। शिवजी के कार्य जो हैं बहोत गहन और बडे ही दिनों तक चलनेवाले हैं क्योंकि अंत तक शिवजी ही हैं। सब लय जब होगा तब भी शिवजी हैं और जब उत्पत्ती होगी तब भी शिवजी हैं। और बीच में, बाद में मैं आपको जब बताऊँगी तब बताऊँगी, विष्णुजी कब आते हैं और कब — आज महाशिवरात्रि के दिन सबको यही निश्चय करना है की हम किसी भी प्रकार किसीकी भी आह नहीं लेंगे। किसी के साथ हम ज्यादती नहीं करेंगे; किसी भी चीज की। कोई गरीब है, कोई मजबूर है, कोई हमारे नीचे है, कोई हमारा आश्रित है, जो भी ऐसा है वहाँ शिवजी का राज्य है। उनसे सज्जनता से रहे। नौकर है घर के, उसको खाने के लिए नहीं देंगे, उसको भूखो मारेंगे, उसका पैसा मार लेंगे, दो-दो पैसे (के लिए) लोग अपने नौकरों को मारते हैं। समझते नहीं, उसके अंदर शिवजी बसे हुए हैं और शिवजी का कोप आप पे आयेगा। मैं आप से सच सच बता रही हूँ। इसमें से एक अक्षर, एक बूँद भी झूठा नहीं है। आप चाहे तो व्हायब्रेशन्स से देख लें जितने सहजयोगी हैं की कितने जोर से व्हायब्रेशन्स इसको आता है। गर मैं एक भी अक्षर झूठ बोल रही हूँ तो आप के व्हायब्रेशन्स रुक जायेंगे। किसीके साथ ज्यादती करना शिवजी के सामने गुनहगार होना है। सज्जनता, सौजन्य, नम्रता, झुकना, ठगा जाना भी ठीक है। शिवजी की अविद्या ना हो। ‘ठगे गये थे बेटे? कोई बात नहीं, मैं देख लूँगा।’ अरे, उनके पास भैरवनाथ खडे हुए हैं। एक सोटा लगायेंगे तो ठीक हो जाओगे तुम लोग सब। अभी भैरवनाथ के चक्कर को आप लोग समझे नहीं। वो तो एक पैसा नहीं मारते हैं, चारों तरफ चलता उनका सोटा और वो इस तरह से मारते हैं की पुश्तनपुश्त चलता रहेगा। पुश्तनपुश्त! उनसे हनुमानजी जरा हल्के हैं मामले में। थोडा बहोत ठीक है। पर भैरवनाथजी के बीच में ना जाना। इसलिए अपने से जो नीचे है, अपने से जो दलित हैं, अपने से जो आश्रित है, अपने उपर जो निर्भर हैं, उन सब पे रहम, उनसे अत्यंत प्रेम, compassion होना चाहिये। शिवजी को देखिये बैठे कहाँ हैं। श्मशान में जहाँ कोई भी नहीं बैठ सकता। राख में बैठे हैं, इनसे बढके कम्युनिस्ट आपको कोई नहीं मिलेंगे। शादी में आये तो राख फासके आये। गले में वो साँप-वाप ले करके, नंदी पे सवारी। बताइये, बैल पे कोई बैठता है! बभूत लगाकर के, अजीब सी शकल बनाके, बाल-वाल सब दूर से, जटाजूट, कपडे भी खास नहीं पहने हुए, एक शेर का वो व्याघ्रचर्म पहन लिया और उनके साथ एक से एक भूत चले आ रहे हैं, उनकी जो औरते चली आ रही हैं, उनके किसीके एक आँख है, किसीके दो नाक है, किसीके चार सिंग हैं। जितने भी विद्रूप, विक्षिप्त, तडित लोग हैं, जिनको की हम नीची निगाह में देखते हैं, किसी में शारीरिक दोष होता है, उसके उपर हँसी करते है, मजाक करते है। कोई गर बहरा है उसका मजाक हो रहा है। परमात्मा का शुकर करो जो तुम्हारे दोनों कान ठीक हैं। परमात्मा का शुकर करो जो तुम्हारी दोनों आँखे ठीक हैं। कभी अंधे के हाथ तुमने पकडे नहीं। उसको उल्टा धक्के देने में मजा लेते हो। ऐसे शिवजी भगवान को देखो की उनकी बरात आ रही है और पार्वतीजी के घर के तो सब लोग बडे बडे हैं, विष्णुजी उनके भाई खडे हुए हैं साथ में, सब बडे sophisticated लोग हैं एक साइड में और एक साइड में ये बरात चली आ रही शिवजी की। पर किसीकी हिम्मत नहीं की शिवजी को हँसे? या उनके लोगों पर हँसे। दुनियाभर के जितने विद्रूप और कद्रु लोग हैं सबको लिये चले आ रहे हैं बडी शान से। नीची निगाह से नहीं। हम लोग तो गर हमारा बाप गरीब होयेगा तो उसको दफ्तर में आने के लिये, बोलेंगे, ‘मत आना भैया।’ उसको कपडे भी नहीं देंगे। अपने बाप से तक हम शरमाते है। इतने हम गिरे हुए लोग है। सबको बडी शान से लिये चले आ रहे हैं की वाह भाई व्वा! कोई बिचारे नंग- धुणंग, बेचारे कपडे नहीं, कुछ नहीं, जैसे भी हैं चले आ रहे हैं शिवजी के साथ और पार्वतीजी देखके घबडा रही हैं, मेरा दूल्हा भी आया मेरे घर, तो मेरी नाक कटा रहे हैं, कोई दो-चार अच्छे तो ले आते कम से कम सामने में। लेकिन अब भोले तो बोले ही क्या? भैरवनाथजी सामने चले आ रहे हैं। सोचिये इनकी शादी भी क्या। लेकिन पार्वतीजी के मन तो वही भाये हुए हैं। उनको तो कोई और पसंद नहीं। उनको तो कोई और पसंद नहीं। जैसे भी हैं, ससुराल के लोग जैसे भी हैं, चाहे उनके यहाँ औरतों की एक ही आँख हो, लेकिन तो भी पती के घर के लोग आये, उनका मान, उनका पान। उनको नीची निगाह से देखना,.. क्योंकि मैं बडे विष्णुजी के घर, मेरे भाई खडे हुए हैं विष्णुजी जैसे, कुबेर जिनके घर में पानी भरते हैं और मैं हिमालय की बेटी हूँ।.. ऐसे ही पार्वतीजी का विचार करके हमें ये सोचना चाहिये की संसार में जिस शिवजी को हम मानते है, जिनके उपर सारा संसार निर्भर है, जो एक क्षण में ही हम सबको खत्म कर सकते हैं, जब संहार होगा तो ग्यारह रूद्र के रूप से वे निकल करके सबका संहार करते हैं और जो भी संयत भाव से ये सारा खेल देख रहे हैं, जिनके लिये संसार की सारी कुछ सृष्टि आदि कुछ भी नहीं और जो साक्षीमात्र सब मजा देख रहे हैं दुनिया का और जो हरएक भोले इन्सान के हृदय में जागृत हैं, जिनका स्थान ही ऐसे जगह है जहाँ कोई भी नहीं जा सकता, बीहड से बीहड, फूहड से फूहड, गरीबी जिसको कहते है, उसमे। उनका कोई श्रृंगार नहीं, उनका कोई भी बाहरी वैभव नहीं, किन्तु उनके सिवाय किसीके पास कुछ भी नहीं शोभा देता। ऐसे शिवजी को जो इन्सान मानता है वही इन्सान है। क्योंकि वो इंसानियत को मानता हैं। इसलिए नहीं की फलाना एक बडा भारी अफसर है, क्योंकि फलाने के पास इतना रुपया-पैसा हैं, क्योंकि फलाने के पास इतनी विद्या है, दूसरे के पास में ये है, पर इसलिए की एक बडा मानव है वो। वो चाहे गरीब है, चाहे आमिर है, चाहे छोटा है, चाहे बडा है लेकिन एक बडा मानव है और बडा मानव वही होता है जो साक्षात शिवजी के चरणों में होता है। आज का दिन ऐसा नहीं है की आपको मैं दुखी भी करूँ। क्योंकि आज का दिन है बहोत शुभकारी। लेकिन एक बात मैं जरूर बताऊँगी की महाशिवरात्रि के दिन उपवास करने की कोई जरूरत नहीं। बिलकुल उलटी बात है। जिसने भी ये बात कही है पता नहीं इसका क्या शास्त्राधार है मैं पूछती हूँ। मुझे बताये कोई भी पंडित की कौन सा शास्त्र में लिखा हुआ है? शिवजी के विवाह के रोज आप लोग क्या उपवास करेंगे? क्यों साहब? इसका कोई शास्त्राधार मुझे बताइये, मैं जानना चाहती हूँ। शास्त्र भी काफी गडबड चडबड कर दिए लेकिन तो भी मैं जानना चाहती हूँ की इसका क्या शास्त्राधार है की गलत जगह पे,.. आज तो खुशियाँ मनाओ, मौज मनाओ। आज खुशियाँ मनाने का दिन है। कितने लोग उपवास करके आये हैं? हाथ उपर करें। जिन्होंने जिन्होंने उपवास किये है, आप लोग पार नहीं हो सकते आज। कोशिश कर लें और आप जो पार हैं आप भी बच जायेंगे आज। नहीं आनेवाले व्हायब्रेशन्स, देख लो। कोशिश करो। कोशिश करके देख लो। आ रहे हैं व्हायब्रेशन्स? कुछ नहीं आ रहे हैं, हल्के हो गये है। झूठ नहीं बोलो तुम। अ? (एक बहन – मेरे तो इतना ठंडा ठंडा शुरू हुआ है) तुमने तो नहीं किया है उपवास, इसीलिए तो आज मैं खुश हूँ तुमसे। तुमने नहीं किया? अच्छी बात है। राजा बेटे हो तुम। आज के दिन उपवास नहीं करने का। आज खूब खाओ-पियो। घर जाके लड्डू खाना। उपवास, खा-पी के? (एक बहन- नहीं, मतलब फलाहार किया है।) फलाहार क्यों करना? आज तो खूब खाना है। उनका खाना है बादाम पिश्ता। खाओ, खूब खाओ। वो खाते हैं चना। चना खाओ। देवीजी चना खाती हैं। आप लोग भी चना खाओ। फल-फूल कौन खाता है? उल्टी-वुलटी बातें सब करते है। आपको शारीरिक शास्त्र से देखना चाहिये की शिवजी गर स्थिति हैं हमारे, existence हैं, तो existence के लिये क्या चीज जरूरी है? क्या चीज खानी चाहिये आपको? बताइये। आप लोग जानते हैं कार्बोहाइड्रेट्स। उसके बगैर हमारे अंदर शक्ती नहीं आ सकती। आज के दिन सबको कार्बोहाइड्रेट्स खाना चाहिये, हर तरह की। या प्रोटीन्स खाना चाहिये।जितने भी आप प्रोटीन्स खाये अच्छे है। अधिक से अधिक आप प्रोटीन्स खाये। चने में प्रोटीन्स हैं। चना सिर्फ प्रोटीन है। गर आप चना खायें तो आपने प्रोटीन खा लिये। आज हर तरह के आपको प्रोटीन खाना चाहिये। जो भी प्रोटीन हो वो आज शिवजी के लिये खाना चाहिये। हृदय के लिये कितनी अच्छी चीज है प्रोटीन! गर आप कृश प्रकृती के हैं तो आपको कार्बोहाइड्रेट्स भी खाना चाहिये। पर सबसे बडी चीज है प्रोटीन खाना चाहिए और आज के दिन आप फल-फूल खाएंगे जो की नहीं खाना चाहिये। उसका कोई कहीं शास्त्राधार तो मुझे समझ में नहीं आता है पर रूढी चल गयी तो चले सब। अभी जिसने चलायी वो ये तांत्रिक ही होयेंगे। कोई, और तो कोई नहीं हो सकता। मुझे तो और कोई समझ में नहीं आता। की कोई भी जानबूझ करके ऐसा काम करेंगे। एक सीधा हिसाब सोचना चाहिये के जिस दिन किसी का जन्म हो या विवाह हो उस दिन भूखे नहीं रहते लोग। उस दिन मोद करते हैं, खुश होते हैं लोग।कोई मरता है उस दिन भूखे रहना चाहिये। हम लोगों के यहाँ हिसाब ऐसा- जिस दिन कोई मरे या नर्क के दरवाजे खुले उस दिन उपवास नहीं करना, उस दिन सबेरे उठके खाना! तो आज सब लोग खुश खुश खाये पिये। हाँ, नरकचतुर्दशी के दिन उपवास करना चाहिये। तो उस दिन सबेरे नहा-धोकर के, चार बजे उठकर के पहले फराल (फराळ) करते हैं। देखिये कितना उल्टा है! अब मैं ये बात कहूँ तो आप मुझे कबीर जैसे तो कह नहीं सकते। लेकिन हाँ, आप कहेंगे की माताजी तो सब उल्टी बातें बता रही हैं। लेकिन जो बातें सीधी हैं उसे सीधी मानो और जो बातें उल्टी हैं उसे उल्टी मानना होगा क्योंकि सत्य जो है वो सत्य ही है। उसको कोई बिगाड नहीं सकता। उसको कोई मिटा नहीं सकता। और सत्य है या नहीं, आप अपनी व्हायब्रेशन्स पे देखिये। मैं जो बात कह रही हूँ गर झूठ हो तो आप लोगों के व्हायब्रेशन्स पे पता चलेगा। सब आपके कंप्यूटर खुद चलने लगे हैं। बहोत से लोगों के चल रहे हैं। जिनके नहीं चल रहे वो भी चलायेंगे अभी। इस बात पे जरूर व्हायब्रेशन्स आयेंगे सबके। है? (एक बहन – खुश्बू आती है बहोत सी।) खास करके तुम में तो बहोत ज्यादा शिवजी का स्थान है, भोली जो हो बहोत ज्यादा। हाँ, तो अब कहिये तो थोडी देर ध्यान भी कर लें? क्योंकि ये कह रहे थे की बहोत से लोग रियलाइजेशन के लिये.. have your friends come for realisation?