Prem Dharma

मुंबई (भारत)

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Prem Dharma Date : 23rd March 1977 Place Mumbai Type Seminar & Meeting Speech Language Hindi

[Hindi Transcript]

ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK बहुतों को ऐसा लगता है जब वो पहली मर्तबा देखते हैं कि ये कोई बच्चों का खेल है कि कुण्डलिनी जागरण है? कुण्डलिनी जागरण के बारे में इतना बताया है दुनिया भर में कि सर के बल खड़ा होना, दुनिया भर की आफ़त करना , और इतने सहज में कुण्डलिनी का जागरण कैसे हो जाता है ? आप में से जो लोग पार हैं, यहाँ अधिक तर तो पार ही लोग बैठे हये हैं, उनकी जब कुण्डलिनी जागरण हुई तब तो आपको पता ही नहीं चला की कैसे हो गयी! लेकिन अब जब दूसरों की होती देखते हैं तो पता चलता है कि हाँ, भाई, हमारी हो गयी। क्योंकि आप एकदम से ही चन्द्रमा पर पहुँचते हैं। कैसे पहुँचे, क्या पहुँचे पता नहीं चला। उसका कारण तो है ही और उसका उद्देश्य भी है। | फलीभूत होने का समय जब आता है तभी फल लगते हैं। लेकिन इसका मतलब ये नहीं की बाकी जो होता रहा वो जरूरी नहीं था। वो भी था जरूरी और अब फल होना भी जरूरी है । कोई कहता है कि दस हजार वर्ष हो गये तब से तो कोई पार नहीं हुआ , अभी कैसे हो गये ? भाई, दस हजार वर्ष पहले तो चन्द्रमा पर कभी गये नहीं थे अब क्यों जा रहे हैं? और अगर जा रहे हैं तो उसमें शंका करने की क्या बात है? रामदास स्वामी ने बताया है कि दुनिया में कुछ लोग होते हैं उनका नाम होता है पढ़त मूर्ख । पढ़त मूर्ख का मतलब होता है, पढ़ पढ़ के जो महामूर्ख हो जाते है। जिसको कबीरदास जी ने कहा है कि ‘पढ़ी पढ़ी पण्डित, मूरख भय ।’ इस तरह की एक संस्था चलती रहती है। चाहे वो ईसामसीह का जमाना हो, चाहे वो ज्ञानेश्वरजी का जमाना हो, चाहे वो शंकराचार्य जी का जमाना हो, का जमाना हो, ये एक अपने को विशेष अतिशहाणे समझने वाले लोग, अपने को एक विशेष तरह के, बहुत उच्च तरह के विद्वान समझने वाले लोग हमेशा रहे, और रहेंगे। वो हर समय इस तरह के अडंगे करते रहेंगे और जीवन के जरतुष्ट अमूल्य क्षण हैं उसे इसी में बितायेंगे। उनका कोई इलाज नहीं। कलियुग में भी ऐसे बहुत हैं। जो किताबें रची सब पढ़ डाली, अब उस आदमी का दिमाग तो खराब हो ही जायेगा, इतनी मेहनत कर के किताबें खरीदी हैं, वो पढ़ी हैं। तो उसको ये समझ में नहीं आता कि, ‘इतना मेंने पढ़ा, इतनी मैंने मेहनत की, उपास किये, तब तो नहीं आया । माताजी के आगे ऐसे हाथ किया और मैं पार हो गया। कोई न कोई तो बात हमारे में है ही ये तो आप समझते हैं। समझ लीजिये, कोई बड़ा रईस आदमी है। तो उसके पास कोई रुपया माँगने को जाये और रुपया देने की उसकी इच्छा हो तो उसको चेक लिखना होता है, हो जाता है काम ! कोई न कोई तो संपदा तो हमने जोड़ के रखी है अपनी। हमारी तो कोई न कोई मेहनत तो है ही इसके पीछे में जबरदस्त। इसके लिये कोई आपको मेहनत करनी नहीं पड़ती। सब आपको मिल जाता है। न तो आपको पढ़ने की जरूरत है, न आपको कोई मेहनत करने की जरूरत है। पाने की जरूरत है। लेकिन एक बात जरूर, कि सहजयोग का आधार धर्म है। धर्म का मतलब जो बाह्य में हम हिन्दू, मुसलमान कहते हैं वो नहीं। धर्म का मतलब है मनुष्य का धर्म। मानवता का धर्म। अब मानवता का धर्म भी बहुत से लोग करते हैं कि दूसरों की सेवा करना, दूसरों को पैसा देना। बहुत से लोग ऐसे होते हैं कि चार लोगों को ठगेंगे और एक बड़ा भारी मन्दिर बना देंगे। और कहेंगे कि, ‘हमने बहुत बड़ा दान धर्म कर दिया।’ दूसरे लोग ऐसे होते हैं कि, अपने घर की बहू तो सतायेंगे, अपनी बहू को तो परेशान

Original Transcript : Hindi करेंगे, और दुनिया भर में धर्म फैलाते फिरेंगे। तीसरे लोग ऐसे होते हैं, कि अपना सर मुंडवायेंगे, गेरुअे वस्त्र पहनेंगे , चोगे पहनेंगे और सब दूर भगवान का नाम ले के फिरेंगे। पाँचवे ऐसे होते हैं कि सोचते हैं कि हम धार्मिक हैं और दसरे आधार्मिक हैं, तो उनके नीचे गिराते पफरेंगे। धर्म कि व्यवस्था हमारे अन्दर बनी पहले ही है। मनुष्य धर्म में ही पैदा होता है। और जब वो धर्म के विरोध में चलता है, तभी उसका पतन हो जाता है। और वो सहजयोग के लिये इतना उपयोगी नहीं होता। इसीलिये कुछ लोग पार नहीं होते और कुछ लोग पार होते हैं। कुछ लोग रुक जाते हैं, लोग जल्दी से पार हो जाते हैं। पहले अपने धर्म ठीक बाँधने चाहिये। फिर सारे धर्म का सार एक ही ‘प्रेम कुछ तत्त्व’ । प्रेम तत्त्व अगर आपके अन्दर हैं, अगर प्रेम तत्त्व से आप परिपूर्ण हैं, प्रेम तत्त्व का आपके अन्दर तत्त्व हैं और उसका आपके अन्दर में पूर्णतया प्रभाव है, आपके जीवन में उतरा हुआ है। तो इससे बढ़ के मनुष्य का धर्म और कोई नहीं। लेकिन प्रेम का मतलब ये नहीं होता है कि आप उसकी जाहिरात लगाते फिरें, कि हम बड़े प्रेमी हैं। हमने बड़े उपकार दुनिया पर किये और हम बड़े प्रेमी हैं, हम बड़े मातृप्रेमी हैं। ये एक अन्दर का धर्म अपना होता है | राम के जीवन आपने देखा है कि भिल्लीण ने उनको बेर दिये। आप लोग सहजयोग में जानते हैं कि हर एक खाने को आप वाइब्रेट कर के खाते हैं। जब तक ये वाइब्रेट नहीं होता आप खाते नहीं है। उसमें जब तक ग्रेस नहीं उतरती आप लेते नहीं है। रामचन्द्रजी ने भिल्ली के बेर ऐसे ही खा लिये। भिल्ली ने दाँत उसको लगाये थे, एक एक बेर चख के देखा था। सब झूठे बेर को रामचन्द्रजी ने सर आँखों पर लगा के खा लिये। इसका कारण ये है कि भिल्लीण प्रेम से परिपूर्ण थी। परमेश्वर के प्रति जो उसका प्रेम था, निष्कपट, निश्चल। पूर्णतया वो जानती थी कि राम एक अवतरण हैं और उससे वो नितांत प्रेम करती थी। उसको जो बेर मिले, उसे वो चख के और देखा कि कहीं कोई खड्टे न हो जायें, मेरे राम को खट्टा न लग जायें । उनको कोई तकलीफ़ न हो जायें । इस विचार को कर के उसने वो बेर खाये और राम को दिये। और राम ने वो खा लिये । उस भिल्ली की जो प्रेम शक्ति है, उसने कभी धर्म की व्याख्या भी नहीं जानी होगी। उसको पाप और पुण्य का कोई विचार भी नहीं होगा। उसने दुनिया की और भी कोई चीजें जानी नहीं होगी । ना तो वो अमीर जानती होगी, न तो वो गरीब जानती होगी। जंगलों में, कंधरों में रहती होगी। उसको विशेष कपड़े का ख्याल नहीं होगा। न ही उसमें कोई निर्लज्जता होगी, न ही लज्जा का विशेष आविर्भाव होगा। लेकिन उस में इतना प्रेम राम के प्रति था, कि उसने एक बेर को तीन दिन से उसने अपने दाँत से खाया और अत्यंत भोलेपन से राम को अर्पित कर के कहा कि, ‘देखिये , इस में से हर एक बेर को मैंने खाया है। जब मनुष्य प्रेम में उतरता है तब निष्कपट होते जाता है। निष्कलंक होता है। प्रेम एक बड़ी भारी साधना है। वो की नहीं जाती, वो हो जाती है। प्रेम का धर्म जब तक आप में जगेगा नहीं, आप का सहजयोग टिक नहीं सकता। हमारे बहुत से सहजयोगी है, हमें बताते हैं कि हम एक एक घण्टा माताजी, ध्यान में बैठते हैं। बैठिये! हम चार-चार घण्टे फलाना करते हैं और ठिकाना होता है हमको। लेकिन आपकी भावना क्या है? जब आपका परमात्मा के प्रती प्रेम उभरता है, जब आप परमात्मा में लीन हो के प्रेम करते हैं, तब आप उसके बनाये सारी सृष्टि को, उसके बनाये सभी प्राणीमात्र को, सब को आप पूरी हृदय से प्यार करते हैं। अगर आप उसे नहीं कर सकते हैं तो आप के प्रेम में क्षति है, कमी है । जब हम दूसरों को लेक्चर देते हैं और उनसे कहते हैं कि तुमको ऐसा नहीं करना चाहिये, तुमने ऐसा क्यों किया? तुमको ऐसा नहीं कहना चाहिए था। तब हम ये नहीं जानते की हमने इस आदमी से जो कहा है, वो क्या प्रेम में कहा है! अगर आप अतिशय प्रेम में किसी से कोई काम कहें , बाद में उसे बूरा नहीं लगता । 3

Original Transcript : Hindi सारे धर्मों का सार प्रेम है। परमेश्वर साक्षात् प्रेम है। सहजयोग में प्रेम ही संपूर्ण है । प्रेम के सिवाय और कुछ नहीं। उसमें त्याग अपने आप हो जाता है। उसको कोई भी चीज़ त्यागते हये विचार ही नहीं आता दूसरा। क्योंकि प्रेम की शक्ति त्याग को करवा देती है। प्रेम में प्रेम ही पाना, प्रेम ही करना यही लक्ष्य होता है। और जीवन में उसे कुछ नहीं चाहिये। लेकिन आप निर्दोष हो और आप प्रेम करते हैं, आप दूसरों को वाइब्रेशन्स देते हैं, लेकिन उसमें कुछ विचार है कि, ‘इस आदमी से कोई लाभ हो जायें , इसका कोई फायदा उठा लें,’ इसलिये अगर आप वाइब्रेशन्स कर रहे हैं, या उसका कोई उपयोग कर लें, तो आपके प्रेम में कमी रह जायेगी। किसी को अगर आप वाइब्रेशन्स देते वक्त पाते हैं कि उसमें एकाध दोष है, उसका कोई चक्र कम है। उसको भी अत्यंत प्रेमपूर्वक, बहला कर के उसका उद्दीपन करना चाहिये। सारा संसार आज द्वेष पे ही खड़ा है। कोई न कोई बहाना द्वेष करने का इन्सान ढूंढ लेता है। कुछ न कुछ तरीका, उसे ये मालूम है कि जिससे बड़े बड़े संघ तैयार हो जायें कि इसका द्वेष करो , उसका द्वेष करो। बड़े बड़े राष्ट्र, बड़ी संस्थायें संसार में प्रेम के बूते पर खड़ी हुई दिखायी नहीं देती। अधिकतर उसके पायें में, उसकी नींव में द्वेष की खाई है। इसलिये वो संस्थायें धीरे -धीरे खत्म हो जाती हैं । प्रेम की शक्ति कितनी अगाध है ये आप जानते हैं। आपके हाथ से जो शक्ति बह रही है वो साक्षात् प्रेम की शक्ति है। आप अगर पाषाण हृदय हैं और आपके अन्दर कोई भी दूसरों के लिये सहानुभूती नहीं है, आपके अन्दर कोई माधुर्य नहीं है, तो आप सहजयोग में बहुत आगे नहीं जा सकते। आपके बाल-बच्चे, अपने घरवाले, अपने नौकर-चाकर, अपने अडोसी-पड़ोसी, इधर उधर के कितने भी मिलने वाले हों उन सब से प्रेम करना चाहिये। फिर वो चाहे पार हो चाहे नहीं हो। आज नहीं तो कल सब पार हो सकते हैं। लेकिन आप अगर उनके साथ गिर गये, तो आपका भी पतन हो गया और उनका भी उत्थान होने की कोई भी बातचीत कर ही नहीं जा सकती। आपके प्रेम को ही देख कर के वो समझ सकते हैं सहजयोग की कितनी विशेषता हैं। प्रेम की शक्ति को मनुष्य ने कभी आजमाया ही नहीं। अभी अभी शुरू हुआ है, जब से सहजयोग से आप लोग पार ह्ये हैं, तब से आपने इस शक्ति को जाना है, कि कितनी प्रचंड शक्ति है, कितनी व्यापक है और कितनी कार्यान्वित होती है। इसको बाह्य से अगर कोई देखना चाहें, कोई उस लेवल का आदमी हो कभी नहीं मिल सकता है। इसलिये मैंने कहा था जो लोग पढ़त मूर्ख होते हैं, उनकी समझ में नहीं आता । लेकिन जो दयार्द है, जो हृदयपूर्ण है उनके लिये सहजयोग बहुत आसान है। क्योंकि ये अत्यंत सूक्ष्म वेदना है, और वो घटित ही हो सकती है जिनके अगर हृदय का स्थान अभी भी पूरेपूर संसार के लिये बना है । हृदय में ही शिवजी का स्थान है। और हृदय में ही परमेश्वर का प्रकाश आत्मास्वरूप हमारे अन्दर विराजता है। जिस आदमी का हृदय कठोर होगा, जो कठोरतापूर्ण दूसरों से व्यवहार करता होगा, उसका हृदय आत्मा दर्शन से वंचित रहेगा। सबको चाहिये कि अपनी ओर दृष्टि कर के देखें, कि हम प्रेम धर्म में कितने उठते हैं। उससे आपको | प्रेमधर्म खरा है या नहीं पता चलेगा। जैसे एक छोटी सी बात हैं। हमें मादकता नहीं करनी चाहिये। उन्मादक पदार्थ नहीं लेना चाहिये सहजयोग में। आप जानते हैं कि मादक पदार्थ लेने वाले लोगों का नाभि चक्र पकड़ जाता है और वॉइड भी पकड़ जाता है और ऐसे लोग पार नहीं होते। अब देखिये जो लोग शराब पीते हैं, वो एक तो स्वयं से प्यार करते हैं । उनको मालूम है कि शराब या कोई भी मादक पदार्थ से हमें नुकसान होाने वाला है। अपने घर वालों को नुकसान होता है। जो आदमी खूब शराब पीता है उनके घर वालें भूखे रहते हैं । उसके बच्चों के सामने क्या मॉडेल रहता है? उसके बच्चे देखते हैं 4

Original Transcript : Hindi कि सुबह से शाम तक मनुष्य शराब पी रहा है। उसका समाद्विक व्यवहार होता है। वो सिवाय अपने शराब के दुनिया में कोई महत्त्व नहीं रखता है। प्रेम का स्वरूप आप हर एक धर्म में देख सकते हैं। जिसको की हम लोग दस धर्मों के नाम से जानते हैं। हर एक धर्म में अगर प्रेम का व्यवहार करें तो आप समझ जायेंगे कि प्रेम ऐसी चीज़ है कि जैसे सोने परखना होता है उसी तरह अपना हर एक धर्म परखना पड़ता है। अब बहुत लोग कहते हैं कि हम लोग खान-पीन का बहुत विचार करते हैं। तो उनका मतलब ये हैं कि हम सौ मर्तबा हाथ धोते हैं, फिर हम इतना ही खाना खाते हैं, उतना नहीं खाते, इतनी मर्तबा हम उपवास करते हैं और दुनिया भर की सब को तकलीफ़ देते हैं। आपको खाने की इतनी परेशानियाँ हैं तो आप कभी किसी के घर मत खाईये। ये सब से बड़ी अच्छी बात है। जहाँ जो मिलता है खा लेना चाहिये। लेकिन उसमें भी एक बात को जानना चाहिये, कि जो भी दे रहा आपको खाने के लिये वो आपको प्रेम से दे रहा है या नहीं दे रहा है। अगर वो आप को प्रेम से नहीं दे रहा है तो आपको खाने की कोई जरूरत नहीं। आप उसको अस्वीकार्य कर सकते हैं या किसी तरह से उसे टाल सकते हैं कि नहीं, हमें खाना नहीं खाना है। सिर्फ एक ही चीज़ देखनी है, कि वो आदमी आपको खाना प्रेम से दे रहा है। लेकिन वही बात आप अगर शराब पर लगायें, कि कोई आदमी आपको प्रेम से शराब दे रहा है तो उसे पीना चाहिये या नहीं। तो बिल्कुल भी नहीं पीना चाहिये। क्योंकि जो आदमी शराब पिला रहा है वो खुद भी शराबी है, माने वो अपने से प्रेम नहीं करता और आपको भी गंदे काम सीखा रहा है जिस तरीके से वो प्रेम न करें। आप अगर किसी आदमी के यहाँ खाना खाने को जाये और बहुत ही प्रेम से आपको खाना खिलाये उस प्रेम की वाइब्रेशन्स से आपके अन्दर इच्छा होगी कि मैं भी किसी को अपने हाथ से खाना बना कर खिलाऊँ। जब आप प्रेम बाँटते हैं तो प्रेम बढ़ता है। जब आप घृणा बाँटते हैं तो घृणा बढ़ती है। हर एक सहजयोगियों को ये सोचना चाहिये कि जब तक वो प्रेम के मार्ग में उतरेंगे नहीं, जब तक उसने प्रेम में अपने को पूरी तरह से समर्पित नहीं किया तब तक उसका सहजयोग लाभान्वित नहीं होगा। वाइब्रेशन्स हैं, काफ़ी वाइब्रेशन्स आते हैं और सब लोग सोचते हैं कि हमारे अन्दर की शक्ति बह रही है। बहत से लोगों को के हाथ से अनेक लोग ठीक भी हये है। अनेक लोगों के फायदे भी हो गये। ये भी बात मान्य है। लेकिन सब बातें करते वक्त हम प्रेम को कहाँ रखते हैं? वो देखो! किसी भी बड़े अवतरणों की बात करते वक्त हमें ये ख्याल होना चाहिये कि हर अवतरण में प्रेम के दर्शन अत्यंत सुन्दर और मधुर हुये हैं। कृष्ण के घर में भी आप देखिये , कि विदुर के घर का खाना बड़े प्रेम से कृष्ण ने खाया था। कहते हैं, ‘दुर्योधन का मेवा त्यागो, विदुर घर साग खायीं, सब से ऊँची प्रेम सगाई,’ क्राइस्ट के जन्म में देखियेगा, एक प्रॉस्टिट्यूट को लोग पत्थर से मार रहे थे। और तब क्राइस्ट जैसा आदमी जिसे की प्रॉस्टिट्यूट से कोई मतलब नहीं वो जा कर के वहाँ खड़े हो गये। उन्होंने ये कहा कि, ‘कभी भी जिसने पाप नहीं किया हो वो इस और पे पत्थर मार सकता है। पर पहला पत्थर मुझे मारिये।’ और सब के हाथ रुक गये। ये सभी कार्य प्रेम से होता है। प्रेम पैसे से नहीं आता है, प्रेम दिखावे से नहीं आता है। प्रेम बोलने से नहीं आता है। प्रेम अन्दर ही अन्दर जानने से होता है कि परमेश्वर की हमारे उपर कितनी अनन्त कृपा है। विशेषकर सहजयोगियों को सोचना चाहिये । जैसे | आपने अभी प्रश्न पूछा इसी जन्म में क्यों हो गया ? इसी जन्म में क्यों हमने पाया? क्योंकि भर आया है| उनकी करुणा, उनका प्रेम वो आपके अन्दर भर आया है और जितना आपके अन्दर ये सूक्ष्म, अतिसूक्ष्म रास्ता बना पायेगा वैसे ही इस प्रेम की संवेदना भी गहरी होती जायेगी। लेकिन बार बार यही बात है कि ये उथले लोगों का

Original Transcript : Hindi काम नहीं है। जो लोग रात-दिन इसको, उसको क्रिटिसाइज करते रहते हैं, इनका काम ही है दूसरों को भला बूरा कहना, उनका ये काम नहीं । लेकिन जिन्होंने प्रेम किया संसार में, जिन्होंने हर जगह इस की पदवी पायी कि ये बड़ा प्रेमपूर्ण आदमी है। आप भी अपने जीवन में देखिये कि जब भी कोई याद आती है तब उसी आदमी को याद करते | हैं, जिसने नितांत प्रेम पूर्वक आपसे व्यवहार किया। आपको कोई , कितना भी रुपया दे दें उसकी याद नहीं आती। आप को कोई कितना भी बड़ा मान दे दें, आपको कोई बड़े उच्च जगह पहुँचा दें आपको उसी की उस वक्त याद आती है जिसने आपको अत्यंत प्रेम किया। सारे धर्म को, अपने अन्दर बसे हये सारे धर्म को हमें प्रेम से जानना चाहिये । धर्म की जो व्याख्यायें हमारे यहाँ बनायी गयी हैं वो इतनी संकुचित हैं कि प्रेम की जगह घृणा ही होती है । माने ऐसा धर्म बनाया गया है कि एक विधवा स्त्री है। उसको किसी के साथ खाना नहीं खाना चाहिये । कोई विधवा हो जाये, चाहे पुरूष विधवा हो जाये ये उसके उपर उठाया था। जब ऐसे उस पर आफ़त आ गयी है। तब एक सहजयोगी को चाहिये कि उसके साथ पूरी तरह से तन्मय हो के उसकी पूरी मदद करें और उसको एक सांत्वना दें। बजाय उसको की सतायें, उसको तकलीफ दें, ‘ये अधर्म हैं।’ किसी भी धर्म के नाम पे अगर अधर्म किया जायें तो वो हल नहीं हो सकता। किसी को शूद्र बना कर के, किसी को खराब बता कर के और उसे घृणा करने के लिये जो धर्म सीखाता है वो धर्म नहीं। हमारे सहजयोग में ऐसे धर्म के लिये किसी प्रकार की व्यवस्था नहीं होगी। जो असली धर्म है वो वो ही धर्म है, जिससे प्रेम उत्पन्न होता है। दूसरे तरह के भी अनेक धर्म है। जैसे हम …..(अस्पष्ट), आज हम ये उपवास करेंगे, आज हम ये फलाना करेंगे। जिससे हम दूसरों को तकलीफ दे सकते हैं। ऐसे धर्म कभी भी धर्म नहीं हो सकते। तिसरे तरह के यें कि चाहे अगर पैसा हो ना हों हम मन्दिरों में जाएंगे। हम वहाँ जा कर पैसा लुटायेंगे। हम जा कर के पंडितों को पैसा देंगे और चोरों पर हम पैसे लुटायेंगे। ये भी कोई धर्म नहीं होता। अपने घर के बाल बच्चों को जिनको खाने को नहीं है। अपने बच्चों की तरफ जब हमारा कोई ध्यान नहीं है। हम अपने घर वालों को जब देख नहीं सकते, तो इस तरह का व्यर्थ समय बर्बाद करने वालों को भी ….. जाना चाहिये। मैं तो यहाँ तक कहँगी कि मनन शक्ति में भी मनुष्य अगर अपना समय बर्बाद कर रहा है और अपने घर के लोगों को भूखा मार रहा है तो ऐसे मनन से अच्छा है आदमी मनन न करें। धर्म का मतलब है सब के प्रति प्रेम की पूर्ण व्यवस्था रखना। प्रेम पूर्वक सब तरफ जागरूक रहना। यही धर्म है और जब तक ये धर्म आप पाईयेगा नहीं तब तक आप धर्मातीत नहीं हो सकते। धर्मातीत तब मनुष्य होता जब वो प्रेमी हो जायें। उसमें और कुछ बच ही नहीं जाता है। वो जो भी करता है वो प्रेम में ही करता है। जैसे श्रीकृष्ण का संहार है। जब वो किसी का संहार भी करते हैं तो वो भी प्रेम में ही होता है। जब ईसामसीह ने हाथ में हंटर ले के लोगों को मारना शुरू कर दिया क्योंकि वो मन्दिरों में बैठ के बाजार कर रहे थे। वो भी प्रेम है। उसकी हर एक चीज़ भी प्रेम हो जाती है। और तब आदमी धर्मातीत हो जाता है। उसके लिये कोई धर्म नहीं बच जाता फिर । सिर्फ प्रेम ही प्रेम रहता है। वो जो भी करता है, जो भी कहता है, जो भी बोलता है, जो भी खाता है, पीता है, सब धर्म करता है और धर्म वही होता है जो कि प्रेम हो जायें । हमारे सहजयोग में मैं अनेक बार देखती हूँ कि आप मानव हैं और मानव से अति मानव होने के बाद भी आप इस बात को समझते नहीं है कि प्रेम की व्यवस्था सब से बड़ी होती है। प्रेम के प्रति जागरूक होना। कोई मनुष्य है, वो अपनी पत्नी को अगर मारता है, कोई स्त्री है वो अगर अपने पती को सताती है, और अपने को बहुत बड़ा 6.

Original Transcript : Hindi सहजयोगी समझती है, उसको समझ लेना चाहिये कि ये महापाप है। किसी को भी सताने की व्यवस्था सहजयोग में नहीं है। किसी को मारने की व्यवस्था सहजयोग में नहीं है। आप किसी पे भी हाथ फें आपके अन्दर से प्रेम ही की शक्ति बहेगी और प्रेम में हमेशा दसरों का हित ही होगा। अहित नहीं हो सकता। आप कितनी भी कोशिश करें आप किसी का अहित नहीं कर सकते। हाँ, अगर आप सहजयोग से हट जाये या गिर जाये, आपका पतन हो जाये , तब आप जरूर अहित कर सकते हैं। धर्म के प्रति आज तक हर एक धर्मों में ही लोगों ने बहुत पूरी तरह से खोल कर इस बात को बताया है। किसी ने ये बात को बताया ऐसे नहीं। लेकिन मनुष्य हमेशा मिथ की ओर दौड़ता है। इसलिये धर्म को जो भी विपरीत रूप बन जाता है उसी को हम मान लेते हैं। जैसे ईसामसीह ने बताया है, कि भूत और प्रेत इन सब चीज़ों से काम नहीं लेना चाहिये। मोहम्मद साहब ने बताया है, कि आपको शराब आदि चीज़ों का सेवन नहीं करना है। राजा जनक ने बताया है, कि आपको परमेश्वर में लीन, परमेश्वर के सामने हमेशा हर एक इन्सान को …. दृष्टि से देखना चाहिये। नानक ने बताया है कि सारे संसार में हर एक मनुष्य में परमात्मा का भाव है। उन्होंने भी मादक पदार्थ को एकदम मना किया है। लेकिन उनके धर्म को जो मानने वाले हैं और जो अपने को बहुत बड़े धार्मिक कहलाते हैं और कहते हैं, कि हम बड़े भारी नानक के, बड़े भारी सपोर्टर्स है। वो लोग आज क्या कर रहे हैं? क्राइस्ट के जो सपोर्टर्स हैं, वो लोग आज क्या कर रहे हैं? ईसामसीह ने सब से बड़ी चीज़ बतायी थी कि मनुष्य को अबोध, बच्चे जैसा होना चाहिये। हार्ट अटैक के मामले में ईसामसीह ने दिखाया था कि मनुष्य को बहुत सेलीगेट, अत्यंत व्यवस्थित, विवाहित रूप से ही जीवन में इस्तमाल करना चाहिये। लेकिन उनके शिष्यों ने आज क्या हालत कर दी। उन्होंने आज क्या व्यवस्था कर के रख दी। वो किस तरह से चल रहे हैं। उनको देखें तो आश्चर्य होता है कि क्या ये ईसामसीह के ही ईसाई हैं या कोई और ईसामसीह राक्षस पैदा हुआ था। उसके ये लोग ईसाई बने हुये हैं। हिन्दू धर्म में एक बहत बड़ी बात कही गयी है कि सब के अन्दर एक ही आत्मा का वास है। पर हम अनेक बार जन्म संसार में लेते हैं। अनेक बार इसको खोजते हैं, इसलिये एक ही जन्म में सब चीज़ को खोज डालो। जब हम अनेक बार जन्म लेते हैं, तब हम ये कैसे कह सकते है, कि कोई मुसलमान है, कोई हिन्दू हैं, हम ऐसे कैसे कह सकते हैं कि कोई निम्न है, कोई उच्च है? अनेक बार मैं आपको ये समझाती हैँ और आप इस बात को पूरी तरह से समझ लें कि प्रेम में जब तक आप पूरी तरह से लीन नहीं होगे सहजयोग इस संसार में बैठने वाला नहीं। जब आप प्रेममय हो जाएंगे, एक प्रेम का फूल अगर सींचा जायें तो सारे संसार में इसकी खुशबू आयेगी। आप भी अपने जिंदगी में सोचें कि एक इन्सान जिसको आपने पाया था कभी उसने कितना आपको प्रेम दिया था। ऐसा एक भी आदमी कहीं हों तो आपको आश्चर्य होगा उसके पीछे हजारों लोग घूमते हैं और उससे प्रेम की याचना करते हैं । उसको माँगते हैं। लेकिन वो लोग जो कि झूठे, प्रेम का दंभ कर के और लोगों को लूटते हैं, उनको खरचोटते हैं, उनसे झूठ बोलते हैं ऐसे लोगों को मनुष्य छोड़ देता है। प्रेम ऐसी चीज़ है जो हृदय तक पहुँचती है और उसी की चाव सब से ज्यादा होती है और यही परमात्मा का सबसे बड़ा धर्म है। परमेश्वर का कौन सा भी धर्म हो या उसका अगर कोई तत्त्व है तो वो सिर्फ प्रेम ! | आप अपने प्रेम तत्त्व पे थोड़ा सा मनन करें और जो लोग नये आयें हैं उनको हम रियलाइझेशन देंगे अभी । और कोशिश करेंगे की वो लोग पार हो जायें। सब लोग अपनी प्रेम तत्त्व की ओर देखें, कि हमने कहाँ तक प्रेम किया हुआ है।