Devi Puja: “Our roots have to go down into dharma”

Djamel Metouri House, St Albans (England)

1977-07-06 Devi Puja Talk, St Albans, UK, 32' Download subtitles: EN,ES,PT,TR (4)View subtitles:
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देवी पूजा : “हमारी जड़ों को धर्म की गहराई में जाना होगा,” जमेल का घर, सेंट एल्बंस, इंग्लैंड,  

6 जुलाई, 1977                                                                 

तो आज मैं आपको पवित्रता के बारे में बताना चाहती हूं। वह मेरा नाम है, आप जानते हैं कि, निर्-मला। ‘नी’ का अर्थ है ‘नहीं’; ‘मला’ का अर्थ है ‘अशुद्धियाँ’। जिसकी कोई अशुद्धता नहीं है, वह निर्मला है, और वह देवी के नामों में से एक है।

पवित्रता एक आंतरिक गुण है। यह मौन में बोलता है। यह सबसे गैर-आक्रामक गतिविधियों में से एक है। यह आप में पैठ जाता है। यह किसी भी तरह से व्यक्त नहीं करता है। प्रेम भी शब्दों में, अथवा कार्य द्वारा व्यक्त कर सकते हैं। लेकिन यह अभिव्यक्तिहीन है, पवित्रता है,  सभी अशुद्धता को धो देता है। 

आप तार्किकता से यह नहीं समझ सकते कि यह काम कैसे करता है। आपको इसकी प्रक्रिया को जानना और महसूस करना होगा। यह बहुत सूक्ष्म है। कभी-कभी अत्यधिक भी होता है। लेकिन कभी भी चौंकाने वाला नहीं है | जब मैं कहती हूं कि, मुझे लगता है कि मानव उलटी खोपड़ी के बन गए हैं। जब हम विपरीत बुद्धि के हो जाते हैं, तो इसका मतलब नुकसानदायी है? जब हम किसी भी चीज में घिर जाते हैं। हम किसी ऐसी चीज़ में डूब रहे हैं जहाँ हम नष्ट होने वाले हैं। हम उल्टे हैं। यह अशुद्धियों से उत्पन्न होता है, कि आप चीजों को सीधे उनके सही परिप्रेक्ष्य में नहीं देख पाते हैं।

तो आइए देखते हैं कि कौन सी चीजें हैं जो हम में अशुद्धियाँ पैदा करती हैं।  दो शब्दों में : वासना और लालच। संस्कृत में वे कला (स्वर्ण) और काम: स्त्री और स्वर्ण कहेंगे। लेकिन ‘स्त्री’ का मतलब [नारी] नहीं है। ‘स्त्री’ का अर्थ है ‘वासना’ और ‘लालच’ का अर्थ है ‘सोना’। अब देखते हैं कि क्या वास्तव में ये अशुद्धियाँ हैं या ये हमारे अंदर अशुद्धता पैदा करती हैं, या ये दो चीजें हमारे लिए अशुद्धता का स्रोत क्यों बन गई हैं? क्योंकि हम पदार्थ और सेक्स को सही परिप्रेक्ष्य में नहीं समझते हैं। अगर हम उन्हें सही परिप्रेक्ष्य में समझ सकते हैं तो ये दोनों हमारे लिए खुशी और खुशी का स्रोत बन जाते हैं। उदाहरण के लिए, कहते हैं, एक पेड़, इसके दो पहलू हैं : इसमें तना और जड़ है। यदि जड़ ऊपर की ओर हो जाती है और तना नीचे की ओर हो जाता है तो यह जीवित नहीं रहेगा। जड़ को पृथ्वी में नीचे जाना पड़ता है और तने को ऊपर आना पड़ता है। जड़ में उन तरल पदार्थों को चूसने की क्षमता होती है जो मिट्टी के अंदर होते हैं। साथ ही यह पेड़ के लिए आवश्यक सभी आवश्यक लवणों को पचाने की क्षमता रखता है। मान लीजिए कि यदि जड़ ठीक से कार्य नहीं कर रही है और पेड़ के शरीर के लिए जरूरी शुद्ध चीजों के बजाय अशुद्धियों को चूसना शुरू कर दिया है, तो क्या होगा? कुपोषण होगा और पेड़ गिर जाएगा। लेकिन जड़ में अपने पोषण के लिए आवश्यक लवणों को लेने की बुद्धि होती है। यह वह जगह है जहां हमें यह समझना चाहिए कि हमारे पास अपने स्वयं के पोषण के लिए उचित समझ नहीं हैं और हम ईश्वर को दोष देते हैं, या हम प्रकृति को दोष देते हैं, हम समाज को दोष देते हैं, हम संस्कृतियों को दोष देते हैं, हम अपने माता-पिता को दोष देते हैं, हम अपनी सरकारों को दोष देते हैं, हम इस और उस पर दोष लगाते हैं। क्योंकि हमारे पास ऐसा कोई विवेक नहीं है| हम अशुद्ध ही ग्रहण करते है ,जो हमारे लिए आनंद,खुशी और पोषण की तुलना में अधिक समस्याएं ही पैदा करेगा।

अगर पेड़ की वृद्धि करना है तो उसे उन सभी चीज़ो से बचना चाहिए जो उसके लिए ज़हरीली है, अशुद्ध है। और दो विधियां हो सकती हैं। यदि आपकी तर्कसंगतता और बुद्धिमत्ता उस उच्च श्रेणी की है, तो आप जो कुछ भी आपके शरीर, आध्यात्मिक शरीर, मानसिक शरीर, भावनात्मक शरीर, के लिए अच्छा नहीं है उसको अस्वीकार कर देंगे | यदि आपके पास शुद्ध बुद्धि है, तो आप इसे अस्वीकार कर देंगे। लेकिन बुद्धिमत्ता अभी तक उस दिव्य स्तर तक नहीं पहुंची है, इसलिए हम आसानी से समझौता कर लेते हैं। लेकिन किसको नुकसान पहुंचा रहे हैं? आप खुद को नुकसान पहुंचा रहे हैं। 

हम अशुद्धियों को इकट्ठा करते चले जाते हैं, बहुत तेजी से। और जिसे मैं मानव स्वतंत्रता कहती हूं: यदि वह चाहता है तो वह अशुद्धियां एकत्र कर सकता है। पेड़ ऐसा होता है की अशुद्धियों को इकट्ठा नहीं करता, लेकिन अगर अशुद्धियों ने उस पर आक्रमण किया, तो वह मर जाएगा, वह [स्वयं] की रक्षा नहीं कर सकता है। इंसान को चुनने की आज़ादी है। इसके अलावा, मानव में अशुद्धियों से बचने की शक्ति है। और सहज योगियों में, जैसा कि आप जानते हैं, बहुत अधिक शक्तियां हैं। तो हमारी जड़ों को गहराई में जाना है, किस में? धर्म में, प्रेम की निरंतर शक्ति में। अगर वह कमजोर है तो जड़ें उखाड़ ली जाती हैं और ऐसे लोगों को उखाड़ दिया जाता है।

परंपराओं में, हमारे बुजुर्गों की ऐतिहासिक ग़लतियों और त्रुटियों में, हम देख सकते हैं कि उन्होंने क्या ग़लतियाँ की हैं और उनसे सीख सकते हैं, और उन अशुद्धियों से बच सकते हैं जो उनके पास थीं और जिसके कारण उन्होंने खुद को नष्ट कर दिया था। हम देख सकते हैं कि कितने बड़े साम्राज्य गिर गए,  नष्ट हो गए, कुछ ही समय में। क्यों? उन्होंने क्या किया? हम ऐसा नहीं करेंगे। लेकिन अभी तक मैंने किसी ऐसे राष्ट्र को नहीं जाना है जो शांति से बैठ कर देखता है और पूरी तस्वीर को व्यापक रूप से देखता है : कि वह राष्ट्र क्यों गिर गया? इन लोगों ने खुद को क्यों नष्ट किया? अब तक मैं उस प्रकार के किसी भी राजनीतिक नेता को नहीं जानती हूं। वे लीपापोती करेंगे, लेकिन उनमें से कोई भी यह देखने के लिए नहीं बैठता है कि पूरा आकाश क्यों ढह गया [या] उन लोगों के साथ क्या हुआ जो एक समय में एक बार इतने शक्तिशाली थे, अचानक ध्वस्त हो गए। अगर कोई इस तरह बैठ सकता तो  वे जानते कि उन्होंने अशुद्धियों को अपनाया था। अब आप अशुद्धियों को कैसे अपनाते हैं? आप उन्हें इसलिए अपनाते है, क्योंकि आपकी संवेदना कुंद हो जाती हैं। जब आपकी संवेदना कुंद होती हैं तो आपको पता नहीं होता कि आप क्या अपना रहे हैं। यह केवल तभी संभव है जब आप उलटी खोपड़ी हैं, यह शब्द ही इस तरह है। शुरुआत में शरीर और मन सभी अशुद्ध  चीजों का प्रतिरोध करता है, मैं कहूँगी, ज्यादातर मामलों में – (कुछ शैतान यदि वे पैदा हुए हैं, तो वे बच्चे भी हो सकते हैं लेकिन वे इसके अपवाद हैं) –  मनुष्य अबोधिता में पैदा हुए और उन्होंने प्रतिरोध किया। धीरे-धीरे आप अपनी संवेदना को नुकसान पहुंचाने लगते हैं और फिर अशुद्धता अंदर आने लगती है।

लोग कहते हैं,ये सभी चीजें इच्छा से शुरू होती हैं, स्पष्ट रूप से: राजा होने की इच्छा, सबसे सुंदर व्यक्ति होने की इच्छा, पूरी दुनिया का नेता बनने की इच्छा, खाने की इच्छा,  अधिकारी बनने की इच्छा, – सभी इच्छाएं। लेकिन यहाँ भी, मैं कहूँगी, आप में इच्छा की अशुद्धता है। और इन सभी चीजों में आंतरिक बिंदु आनंद है, आनंद : हम आनंद की कामना करते हैं।यदि आप आनंद की शुद्ध इच्छा रखते हैं, तो आप जाते हैं और इसे प्राप्त करते हैं : “तो कोई भी  चीज आनंद नहीं देती है। यह खुशी देने वाली चीज नहीं है। ” हम अपने चारों ओर देख सकते हैं। जो लोग पैसे की मांग कर रहे हैं  आपको जाकर उन्हें देखना चाहिए, क्या वे आनंद तक पहुंच पाते हैं? आपको पता चल जाएगा कि उन लोगों के पास प्रसन्नता नहीं है। और जब आप ऐसे लोगों के पास जाते हैं जो आनंद और शांति में होते हैं, तो आप पाएंगे कि वे किसी अन्य ही विषय पर बात कर रहे होते हैं। जब हमने गलत इच्छा को स्वीकार कर लिया, तो हम मुख्य इच्छा को ही नकार बैठते हैं।

लेकिन सार, तुम जानते हो,स्व। हम ‘स्व’ को सार कहते हैं।‘स्व’ का अर्थ है स्वयं। सब कुछ का सार यह है : यदि आप अपने घर के सामने एक सुंदर पेड़ रखना चाहते हैं, तो इच्छा प्रसन्न होने की है। एक पेड़ आपके लिए क्या मायने रखता है अगर वह आपको खुशी ना दे? दुनिया में जो कुछ भी आनंददायक है, मैं आपको दूंगी : वह आनंद, जो हर चीज का सार है, बशर्ते इसे शुद्ध रखा जाए, यह आपके लिए पौष्टिक है। जैसे पेड़ की जड़ें खुद को माँ की मिट्टी में गाड़ देती हैं और उसकी सुंदरता, और सार तत्व को आपको पोषण देने और खुद को समृद्ध करने के लिए शोषित कर लेती हैं। लेकिन किसी भी तरह इसका मतलब यह नहीं है कि आप अपने चरित्र या व्यक्तित्व को खो देते हैं – आप नहीं खोते है। आम का पेड़ एक आम का पेड़ ही होगा, केले का पेड़ एक केला होगा। क्योंकि बाहरी रूप तो अलग है, लेकिन भीतर वही है। और हर देश में धरती माता की अपनी किस्में हैं : तदनुसार आपके पास पेड़ होंगे, आपके पास पौधे होंगे। इंग्लैंड में आपके पास आम नहीं हो सकते। लेकिन आपके पास भारत में एक बर्च का पेड़ नहीं हो सकता। लेकिन इस का तब तक कोई फर्क नहीं पड़ता जब तक वे वास्तव में पोषित होते हैं।

इसलिए आपका चरित्र नहीं खोया, आपका व्यक्तित्व नहीं खोया। इसके विपरीत यह बेहतर बना है। हर चरित्र अपने शुद्धतम रूप में सुंदर है। प्रत्येक धर्म अपने शुद्धतम रूप में हीरे के विभिन्न पहलूओं में से एक ईश्वर की बैठक है, भगवान हैं। उन्हें वहां रहना होगा। और आप हर कोण से उन्हें चमकता हुआ देखते हैं। हर कोण पर वे चमकते हैं। एक हीरा हर कोण पर चमकता है। क्योंकि इसका स्वयं का चरित्र, अनोखी किस्म और अपने अलग-अलग रूप मिले हैं। तो उन दोनों के बीच आवश्यक एकता उस रस के माध्यम से है जो बह रहा है। यदि हमारा चित्त एकाकारिता की उस पवित्रता की ओर है तो हमारे भीतर व्याप्त कई अन्य अशुद्धियाँ भी बाहर निकल जाएंगी। आप जिस अन्य अशुद्धता से पीड़ित हैं, वह है, सामूहिकता का अभाव। पूरी दुनिया में एक जैसे कपड़े पहनने को हम बुरा नहीं मानते हैं। यदि एक जीन्स शुरू होता है, तो आप जापान में, यहां तक कि ऑस्ट्रेलिया तक, यहां तक कि चीन, कम्युनिस्ट देशों में भी जाते हैं, कहीं भी, सभी जगह हर कोई जीन पहने हुए है। लेकिन हमारे भीतर शुद्धतम रूप में आवश्यक एकता, कहीं नहीं। बेशक ये संवेदनाएँ आप सहज योग के बाद विकसित करते हैं। लेकिन अगर आप अपने धर्मों में विफल हो जाते हैं,जो की वह आधार,जड़ है, अगर हम उन जड़ों को ठीक से नहीं संवारेंगे, तो पेड़ खड़ा नहीं हो सकता है। यह आवश्यक है।

बेशक, अवतार इसके ठीक विपरीत है: उनकी जड़ें आकाश में हैं। वह शरीर पर पल्लवित होता है। एक अवतार अपने धर्म को नहीं तोड़ता – वह स्वयँ धर्म है। उसे जरूरत नहीं है, वह धर्मातित है, वह धर्म से परे है। वह जो कुछ भी करता है वह पूरी दुनिया का धर्म है! उसे कुछ नहीं छूता। उसकी जड़ें केवल दैवीय बल में होती हैं। उनमें अशुद्धता का कोई सवाल नहीं है, उन्हें शुद्ध करने या उन्हें स्नान करने का कोई सवाल नहीं है, क्योंकि वह ईश्वरीय शक्ति में है और वह उसे शोषित कर के आपको दे रहा है। वह इस पृथ्वी पर पल्लवित हो रहा है, यह उल्टा फूल है, जो आप में अंतर्निहित है। तो एक अवतार के लिए कोई धर्म नहीं है, यह धर्म से परे है। वह गुणातीत है, वह सभी मनोदशाओं (गुणों) से परे है। वह सब कुछ परे है। लेकिन मानव को सबसे पहले अपने धर्म का विकास करना होगा, फिर, अहं से परे सामूहिक चेतना में उत्थान करना होगा। और फिर जब वे विपरीत दिशा में जाते हैं तो वे अवतार बन जाते हैं। ऐसा हो सकता है। अब तक दो व्यक्तियों ने ऐसा किया है: बुद्ध और महावीर आप उन्हें देवता कह सकते हैं। केवल इन दो व्यक्तियों ने किया है। और सहज योग में, यदि हम ऐसा करते हैं, तो हम अवतार हो सकते हैं। जहां हमारी जड़ें दिव्यता में होंगी। यहां आपको तब तक चुनाव करना है, जब तक कि चुनाव की स्वतंत्रता आपके भीतर मौजूद है। मेरे लिए आज़ादी बिल्कुल नहीं है। मैं अशुद्धता का चयन नहीं कर सकती। इसलिए मैं कहती हूं कि मुझे कोई मोह नहीं है। मेरे लिए परिग्रह का कोई अर्थ नहीं है। मेरे लिए किसी भी चीज का चुनाव बिल्कुल भी नहीं है। समय और स्थान मेरे लिए नहीं है। मैं बेदाग हूं। मैं कालातीत हूं, क्योंकि मेरी जड़ें मेरी अस्तित्व में हैं परन्तु स्वयँ के भीतर विकसित होने और अन्य लोगों के लिए आनंद प्रदान करने हेतु, यहाँ तक कि खुद को पोषण करने के लिए, आपको अपने धर्म को ठीक से स्थापित करना होगा। तो हम वासना और लालच के सवाल पर आते हैं। इस प्रकाश में वासना और लालच को इस प्रकाश में देखना है की क्या हम ईश्वर को पाने के लिए, उसकी दौलत के लिए लालची हैं? यदि आप ऐसा प्रश्न पूछते हैं, तो आप शुद्धता देखते हैं। हम लालच और वासना के बारे में सोचने में तो बहुत समय बर्बाद करते हैं, लेकिन इस आवश्यक इच्छा के बारे में सोचने के लिए बहुत कम समय है।

अब, दो प्रकार की चीजें हैं, एक मनुष्य की है और एक अवतार की। इसीलिए मनुष्य को अवतार की तरह व्यवहार करने की पात्रता नहीं है। यह एक बहुत बड़ी ग़लती है जो हम हमेशा करते रहे हैं। और कृपया सावधान रहें: आप अभी अवतार नहीं हो सकते हैं, और आपको एक अवतार के व्यवहार के अनुसार अपने व्यवहार का निर्धारण नहीं करना चाहिए। क्योंकि एक अवतार इन सभी चीजों से ऊपर है। जैसा कि मैंने आपको बताया, यह बिलकुल अलग बात है।

एक पेड़ को अपना पोषण दिव्य में अपनी जड़ के माध्यम से लेना चाहिए । आपको अभी भी उस अवस्था तक उठना है। जहाँ आपकी पैठ उसमें हो सकें। और हो सकता है कि वृक्ष जाएं और उस तरफ दिव्य को सूचित करें। तो जीवन का जो प्रारूप किसी अवतार का होता है उसका अनुसरण किया जाता है और इसलिए झूठे धर्म विफल होते हैं। उदाहरण के लिए, हम देखेंगे कि ईसा मसीह ने एक कोड़ा को अपने हाथ में लिया और लोगों को जब वे भगवान को बेच रहे थे,  मारना शुरू कर दिया । मुझे भी ऐसा ही लगता है और मैं इसे कर रही हूं।

यदि आप कबीर को पढ़ते हैं, तो आप पाएंगे कि वह इन सभी लोगों को फटकार रहा है। अगर आप मोहम्मद साहब को पढ़ते हैं तो उन्होंने उनकी आलोचना की है। लेकिन आप अवतार नहीं हैं। आप अवतार नहीं हैं। जब आप के अंदर वे सब अशुद्धियाँ है क्योकि मैं देखती हूँ की मानव उन को अपने अंदर पोषित कर के उसका तमाशा देखना पसंद करते हैं| उदाहरण के लिए, वे नाटक या चल चित्र देखने जाते हैं: और वे किसी क्रूर व्यक्ति को मारते हुए देखेंगे। और वे कहते हैं, क्या क्रूर आदमी है! वह भयानक है!” लेकिन वे यह नहीं जानते हैं कि उस क्रूरता को स्वयं वे अपने भीतर पोषित करते हैं। वे दूसरों को क्रूर कहना चाहते हैं, लेकिन उनके भीतर मौजूद क्रूरता को नहीं देख पाते। जहां तक दूसरों का संबंध है वे साक्षी बन जाते हैं, लेकिन स्वयं को नहीं देखते हैं। अगर वे खुद के प्रति साक्षी हो पाते हैं, अगर वे खुद को देख सकते हैं, तो होगा यह कि उनके भीतर उनकी पवित्र करने वाली शक्ति कार्यशील होंगी – विशेष रूप से सहज योगियों के लिए, क्योंकि यह अब खुल गया है, स्त्रोत्र खुला है, आपकी आत्मा बस उत्सर्जित कर रही है अभी। अगर तुम चित्त से केवल देखते हो कि वह अस्तित्व में कहाँ है। तुम बस इसे अपने अंदर पाले हुए हो! इसे यह कहकर उचित ना ठहराए की, “मेरा समाज खराब है! मेरे माता-पिता बुरे हैं! ऐसा हुआ, इस वजह से ऐसा हुआ है। नहीं! वे वहां हैं क्योंकि आप उन्हें पाल रहे हैं। दूसरों में वे स्पष्ट रूप से देख सकते हैं, लेकिन अपने आप में आप नहीं देख सकते हैं। एक मानव मन ऐसा ही है: एक बहुत ही अजीब दिमाग है, जो इस तरह से विकसित किया गया है। आप एक पुस्तक पढ़ते हैं, उदाहरण के लिए यदि आप किसी की पुस्तक पढ़ते हैं: तुरंत आप नायक के साथ तादात्म्य कर लेते है और खलनायक के साथ कभी नहीं। हमें पता नहीं है कि [खलनायक] हमारे अंदर नायक की तुलना में बहुत अधिक है। यह एक सामान्य कहानी है जिसे मैंने मनुष्यों के साथ देखा है। आप देखिए, मैंने अब इस पृथ्वी पर कई जन्म से सीखा है कि एक इंसान क्या है। इसके बस  ठीक विपरीत एक चीज है एक अवतार। आप देखें,  माना कि आपके भीतर एक समस्या है, तुरंत मैं अपने भीतर देखने की कोशिश करती हूं कि यह समस्या है भी या नहीं। अपनी व्यापकता में मैं इसे सुधार करती हूं और आप इसे प्राप्त करते हैं, क्योंकि आप मेरे शरीर हैं। आप मेरे भीतर हैं, आप सभी पूर्णत: मेरे भीतर हैं, जिसे मैं खोजती हूं और खोज लेती हूं। इस प्रकार मैं इसे करती हूँ ,जब तक मैं ऐसा नहीं करती, तब तक मुझे सब ठीक नहीं लगता, आपने देखा है।

मेरी समस्याएं आपसे बहुत अलग हैं। इसलिए हमने खुद पर ध्यान दिया है। लेकिन एक तरह से ध्यान जो बहुत शुद्ध ज्ञान है – एक गहरा ध्यान है, सतही नहीं है। व्यक्ति को सीखना चाहिए कि कैसे अपने आप में गहराई तक जाएं और स्वयं को देखें, “क्या हम क्रूर लोग हैं? क्या मैं क्रूर हूं? मेरा कौन सा हिस्सा क्रूर है? मेरा कौन सा हिस्सा दूसरों को नुकसान पहुंचा रहा है? ” अब यह लड़का जो आया था, उसने अपने मोजे नहीं निकाले क्योंकि उसे लगा कि इसमें से बदबू आ रही है। क्या हम खुद सुगंधित हैं? क्या हम इसके बारे में विचार कर रहे हैं कि हम समान रूप से सुगंधित हैं? यह एक मौन प्रक्रिया है, यह आपके अंदर कार्यरत एक शांति है।और यह वहाँ होना है। और क्योंकि, जैसा कि मैंने कहा, पश्चिमी देशों में आप दुर्घटनाग्रस्त लोग हैं – आपने महसूस किया है कि आप दुर्घटनाग्रस्त हो गए हैं –  तुम लोगों को कठिन परिश्रम करना उन लोगों की तुलना में अधिक ज़रुरी है जो अभी दुर्घटनाग्रस्त होना बाकी है। वे बस करने ही वाले हैं, उनमें से अधिकांश बस आपके पीछे आ ही रहे हैं। और आपको एक हॉर्न के साथ घोषणा करनी होगी, “अब दुर्घटना मत करो! हम पहले दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं।” जो आपको करना है, वह बहुत महत्वपूर्ण है कोई भी आदमी जिसके पास कोई विचार है, दूसरों के लिए कोई भी भावना है, अगर उसको अपने रास्ते पर एक पत्थर से चोट लगी है, तो वह तुरंत वहां खड़े होंगे और कहेंगे, “ओह, यहां एक पत्थर है, अब जाओ। गिरे नहीं , सावधान रहें, । “जब हम कुछ ग़लतियों और मूर्खताओं से आहत होते हैं, या आप उन्हें अपने अंदर इकट्ठा की हुई अशुद्धियों भी कह सकते हैं, हमारे अपने अहंकारी कार्य| चलो, हम दुनिया को यह घोषणा करते हैं कि: “हम मूर्ख हैं, हमने यह किया है, हम हैं टूटे हुए लोग, हमने अपने हाथ तोड़ दिए हैं, हमने अपने सिर तोड़ दिए हैं, हमने अपने चक्रों को तोड़ दिया है। अब भगवान के लिए आप नहीं! “ क्योंकि वे आपका पीछा कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि आप उत्थान पर जा रहे हैं। उन्हें पता नहीं है कि आप ने बहुत कुछ गलत किया है। हर तरह से आपको घोषणा करनी होगी। लेकिन घोषणा लोगों द्वारा अपेक्षित है। आप देखते हैं, आदर्श व्यक्ति बनने के लिहाज से ऐसी अजीब दुनिया है।

इसलिए वे भी आपका उत्थान चाहते हैं। यही तो दुनिया है। यदि आज आप कहते हैं, “मैं दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, मैं समाप्त हो गया था, मेरे पास आपको देने के लिए कुछ भी नहीं है।” वे कहेंगे, “फिर तुम किस बारे में बात कर रहे हो, चुप रहो!” लेकिन फिर भी, आपके पास जीवन में कुछ देने के लिए है। और आपके पास जो है बताने के लिए वह ज्ञान है, की “हम इस वजह से दुर्घटनाग्रस्त हो गए हैं।” यह इतने सारे लोगों की मदद करेगा, आप नहीं जानते! लेकिन अगर आप केवल इतना ही कहेंगे तो लोग आपको नकार देंगे। लेकिन अगर आप कहते हैं, “नहीं, मैं दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, लेकिन अब मैं पूरा ठीक हो गया हूं।” लेकिन आपके अस्तित्व से घोषणा की जानी चाहिए कि आप पुनर्जीवित हो गए हैं। इसके विपरीत यदि आप लालची हैं, यदि आप अभी भी उसी शैली के हैं जो की आप थे, तो फिर कौन यह विश्वास करने वाला है? तो सहज योग ने आपको वह मार्ग दिया है जिसके द्वारा आप प्रगति करते हैं। और जब आप उन्नति करते हैं तो आप लोगों को यह कहते हुए आगे बढ़ सकते हैं, “मत गिरो! यदि आप गिरे तो उन्नति करना मुश्किल हो जाता है जैसा कि हमारे साथ हुआ है, इसलिए गिरना नहीं है! एक सरल ,छोटा रास्ता है, शॉर्ट रास्ते के लिए आओ।” आपका धर्म स्थापित होना बहुत आवश्यक है। इन सभी दुर्घटनाग्रस्त समाज में धर्मों की स्थापना की जानी है। हम इसके बारे में क्या कर रहे है?

विकासशील देशों में वे एक गलत आधार जो उनके पास है, पर अपनी अशुद्धियों को इकट्ठा करते हैं। वे सोचते हैं, “ओह, हमें विकास करना चाहिए। हमारे पास कारें होनी चाहिए, हमारे पास टेलीफोन होना चाहिए।” पूरा ध्यान इस बात पर है कि आप कहां तक अपनी भौतिक चीजों से प्रभावशाली हैं, जब वे अपनी गरीबी से छुटकारा पाने लगते हैं, तो वे भूल जाते हैं कि उन्होंने अपनी गरीबी को दूर क्यों किया, किस लिए? यह एक दूल्हा की तरह होगा जिसे शादी करने के लिए तैयार होना होगा, फिर वे उसे तैयार करेंगे, वह शादी करने के लिए तैयार है। अब वह शादी के लिए तैयार है। फिर, वह विवाहित हो जाता है। अब रात आ गई है, उसे अपनी पत्नी से मिलना है [लेकिन] फिर भी वह अपनी पोशाक को मूर्ख की तरह पहन कर चल रहा है। उसने शादी क्यों की? अपनी पत्नी से प्रेम करना है। एक मूर्ख की तरह वह अभी भी अपनी पोशाक में है, अपने बाहरी रूप पर घमंड करता है जो उसने उसे यह समझे बिना पहना था की इसका भी एक उद्द्येश्य या अर्थ है।

हम किस लिए गरीबी हटाते हैं? हम इन सभी समस्याओं को किस लिए दूर करते हैं? हम किस लिए विकसित होते हैं?

हम इतना विकसित होते हैं ताकि हमारा दिन-प्रतिदिन का जीवन आसान हो जाता है और हमारे पास भगवान के लिए समय होता है, हमारे पास ध्यान के लिए समय होता है।