The Difference Between East & West

Caxton Hall, London (England)

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

                                 पूर्व और पश्चिम के बीच अंतर

कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 19 जून 1978

हमारे पाश्चात्य समाज की समस्या यह है…

आप देखिए, पूर्वी समाज की अपनी समस्याएं हैं और पश्चिमी समाज की अपनी समस्याएं हैं। मूल रूप से वे दो अलग-अलग समस्याएं हैं, बिल्कुल दो अलग-अलग समस्याएं हैं, और पूर्व की समस्याओं के बारे में चर्चा करना आपके लिए किसी काम का नहीं होगा।

उदाहरण के लिए, भगवद गीता में, श्री कृष्ण ने कहा है कि, “योग क्षेम वहाम्यहम।” “मैं आपके योग की देखभाल करता हूं,” का अर्थ है भगवान के साथ मिलन। ‘वहाम्यहम’ का अर्थ है: मैं उसका वहन करता हूं, उस प्रक्रिया को करता हूं या मैं वह व्यक्ति हूं जिसे वह प्रक्रिया करनी है। और ‘क्षेम’, क्षेम का अर्थ है भलाई, “मैं भलाई की देखभाल करता हूं”।

लेकिन भारत में, लोग पूरी तरह से मानते हैं कि भगवान हमारे उद्धार की देखभाल करते हैं। मेरा मतलब है कि वे विश्वास करते हैं, मेरा मतलब है कि उनके पास ऐसी श्रद्धा है। जो एक बहुत बड़ा फायदा है, उन्हें ऐसा विश्वास नहीं होता कि वे स्वयं इसके बारे में कुछ कर सकते हैं। उनमें से अधिकांश, मेरा मतलब है कि बहुत थोड़े पश्चिमीकृत लोगों को छोड़कर, अन्यथा वे आमतौर पर सोचते हैं कि केवल ईश्वर ही उनके लिए यह करने जा रहे हैं। जैसे भी संभव हो। वह एक अवतार, या एक अवतरण, या कोई ऐसा व्यक्ति भेज सकता है जो हमें मुक्ति दिलाएगा। उन्हें विश्वास नहीं है कि वे इसके बारे में कुछ भी कर सकते हैं, और वे सही हैं, वे बहुत सही हैं, चीजों के बारे में बिल्कुल यही सही दृष्टिकोण है कि, योग का प्रबंधन नहीं किया जा सकता है – ‘योग’ का अर्थ है मिलन\मिलाप – किसी के द्वारा लेकिन परमात्मा की कृपा के लिए। किसी भी संशय से परे। जैसे आदि शंकराचार्य ने स्पष्ट रूप से कहा है कि, “न योगे, न सांख्ये” (मतलब: न तो योग से और न ही सांख्य से आप इसे प्राप्त कर सकते हैं)। आप देखिये, किसी भी चीज़ से, ऐसा करने से,  कलाबाजी वाली बातें या मुद्राएँ बनाना या कुछ भी करना, द्वारा आप अपने मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकते। किसी भी प्रकार के संन्यास को करने से जिसे कहते हैं – वैराग्य – आप इसे प्राप्त नहीं कर सकते। उन्होंने बहुत स्पष्ट रूप से यह कहा है: इन सभी चालों को करने से आप कुछ भी हासिल नहीं कर सकते, बल्कि माता की कृपा से। वह देवी माँ में विश्वास करते थे, इसलिए उन्होंने कहा कि देवी माँ की कृपा से ही यह कार्यान्वित होगा।

जो लोग इसे स्वयं करने का प्रयास करते हैं, वे स्वयं नर्क में उतरेंगे, और बहुत कष्टप्रद होंगे। उन्होंने बहुत स्पष्ट रूप से कहा है, लेकिन कोई भी शंकराचार्य को नहीं पढ़ता है, वे उन्हें नहीं समझते हैं, आप देखिए। वह उनके लिए बहुत ऊँचे है, वे सोचते हैं। वे उन्हें नहीं पढ़ते हैं। क्योंकि वह ऐसे स्तर पर है, जहां से वह बात करते है, लोग समझ ही नहीं पाते हैं। ऐसे ही हर जगह, हर धर्म में, सभी महान धर्मों में, सभी महान शास्त्रों में, इतना ही सब कुछ है, हर जगह कहा गया है कि, यह ईश्वर ही है जो आपको मोक्ष देता है। आप इसे हासिल नहीं कर सकते। आप धर्म में हो सकते हैं, मतलब आप मध्य मार्ग में हो सकते हैं, आप वहां हो सकते हैं, आप अपने आप को स्वच्छ रख सकते हैं, आप खुद को तैयार रख सकते हैं, लेकिन मोक्ष परमात्मा की कृपा से मिलता है।

लेकिन पश्चिमी मन अलग है, अलग ढंग से बना है और अलग अंदाज में निकला है। क्षेम के दूसरे भाग का अर्थ है ‘कल्याण’। कल्याण\भलाई से तात्पर्य है कि वह आपके पालन- पोषण की देखभाल करता है: इस भाग पर भारतीय बिल्कुल भी विश्वास नहीं करते हैं। पहला भाग, पश्चिमी लोग नहीं मानते, दूसरे भाग में भारतीय विश्वास नहीं करते। दूसरा भाग यह है कि वे आपकी भलाई की देखभाल करते हैं, वे आपके पिता हैं। इसलिए वे हर तरह की चोरियां करते हैं, वे हर तरह की चीजें करते हैं…मेरा मतलब है, भौतिक समस्याएं जो वे अपने लिए पैदा करते हैं। और यहां तक ​​कि भारत में अमीर लोग भी काला धन निकालने और चीजों की तस्करी करने और उन सभी चीजों में काफी सक्षम हैं। मेरा मतलब है कि वे सभी पैसे में रुचि रखते हैं, बिल्कुल इसमें, उनकी कोई और दिलचस्पी नहीं है! और अगर तुम भारत जाओगे तो लोगों से कहा जाता है कि तुम सब कुछ ताले में बंद रखो, नहीं तो वे तुम्हारा सामान चुरा रहे होंगे। हालांकि यह उस हद तक नहीं है, लेकिन, फिर भी, मैं कहूंगी कि लोगों को पैसे में रुचि है, वे हर समय सोचते हैं, भले ही वे मेरे पास आएं, वे कहेंगे, “माँ, क्या मैं अपनी बेटी की शादी कर पाऊंगा ? क्या मुझे मेरा मकान मिलेगा? क्या मेरे पास खाने के लिए खाना होगा?” ये सब बातें पूछते हैं। तो उनका सवाल आपसे अलग है।

अब, आपका पहला प्रश्न आपके उद्धार का है, और उद्धार पको लगता है कि आप इसे कर सकते हैं! पता नहीं कहाँ से, कौन सा पक्षी आया है और तुम्हारे कानों में यह बात कह दी है कि!  हम अपना उत्थान स्वयं कर सकते हैं। यह तो ऐसा है जैसे एक बीज सोचता है कि यह अपने ही प्रयास से फूल बन सकता है। यह बन जाता है, लेकिन अपने स्वयं के प्रयास से नहीं, बल्कि इसलिए कि यह उसे इस तरह से बनाया गया है। और पानी डालने के लिए और उसे ठीक करने और उस अवस्था में लाने के लिए माली की आवश्यकता होती है। तो यह गलतफहमी, मुझे लगता है, लोगों द्वारा सहज योग को ज्यादा न अपनाने के लिए जिम्मेदार है। इसके बारे में एक तरह की भयानक हठ है। क्यों? यह बात क्यों काम करती है, आइए अब देखें। बात यह है कि पूरा समाज, जैसा कि पूर्वी समाज और पश्चिमी समाज में है, उनकी दो बिल्कुल अलग समस्याएं हैं। वे जीवन के दो अलग-अलग पक्षों पर आधारित हैं। पहला शायद इसलिए कि आप सूर्य के उपासक थे, सूर्य के उपासक थे और आप दुनिया को कुछ दिखाना चाहते थे। आप यह प्रदर्शित करना चाहते थे कि आप की स्थिति कुछ भी नहीं हैं, और आपको इसे हल करना था, इसलिए आपने अपनी समस्याओं को हल करना शुरू कर दिया। आपने अपनी भौतिक समस्याओं पर विज्ञान के माध्यम से काम किया और आपने कई समस्याओं का समाधान किया, जिन्हें कहते हैं जैसे अर्थशास्त्र और सांसारिक समस्याएं। लेकिन आपके जीवन का एक पक्ष पूरी तरह से उपेक्षित है। उसी तरह, भारत में, हम कह सकते हैं कि, एक तरफ उन्होंने अच्छी तरह से काम किया, जो की उनका समाज, उनका पारिवारिक जीवन, उनका भावनात्मक जीवन है, लेकिन दूसरी तरफ उन्होंने पूरी तरह से उपेक्षा की।

अब परिवार की इस कमी के कारण बचपन से ही आपको अपने ही उपर निर्भर रहना सिखाया जा रहा है। मेरा मतलब है, यह ऐसा होगा जैसे की एक  छोटा सा पत्ता हो जो कह रहा है, “मैं अपने दम पर रहूंगा।” आप कैसे हो सकते हैं? आप एक बड़े पेड़ का हिस्सा हैं! यह सोचना कि आप अपने दम पर हैं, अपने दम पर होना गलत है। आपको उस बड़े पेड़ पर निर्भर रहना होगा, जो आपको बनाए रखने वाला है। अब ‘अपने दम पर’ यह बचपन से सिखाया जा रहा है। हो सकता है कि यह आपके अहंकार को संतुष्ट करने में मदद कर रहा हो, हो सकता है कि आपके माता-पिता ने मदद की हो, शायद कुछ हुआ हो। हमें अपने दम पर होना है।

मैंने १२ साल के बच्चों को देखा है, सुबह-सुबह जब हम ऑक्सटेड में थे, बहुत भयानक ठंड में, आप देखिए, हमारे पड़ोसी के बच्चे, काफी संपन्न लोग, बहुत अमीर, मुझे कहना चाहिए उनमें से कुछ लॉर्ड्स और लेडीज वगैरह थीं। उनके बच्चे साइकिल पर सवार होकर अखबार बांटने आते थे। मैं हैरान थी! और मैंने उनके माता-पिता से पूछा, “तुम अपने बच्चों के साथ क्या कर रहे हो? ऐसे छोटे बच्चे, 16 साल की छोटी बच्चियां, सुबह-सुबह सामान बांटने जाती हैं.” तो माँ बोली, “क्या गलत है ?” मेरा मतलब है, मैं इस सवाल का जवाब नहीं दे सकी, आप देखिए। लेकिन एक भारतीय दिमाग में यह नहीं आ सकता, क्योंकि, “हे भगवान, एक 12 साल का बच्चा, सुबह जल्दी उठना और जाना?” ऐसा सहन करना, समझना, यह महसूस करना बहुत अधिक है कि आपके अपने बच्चे, जो कि 12 वर्ष का है, को अपने जीवन यापन के लिए, इस छोटी सी उम्र में, जब उसे खेलना होता है, कमाना पड़ता है। यह खेलने का समय है। उस समय अपने दम पर होना,ठीक नहीं है, यानी खेलने के लिए अपने दम पर होना। वह उम्र है खेलने की, आनंद लेने की, प्रकृति को देखने की। लेकिन 12 साल की उम्र से ही आप बच्चे को अपने बूते पर रख देते हैं। तो वह साइकिल पर है, उसका दिल पहले से ही पकड़ रहा है। दिल पर ऐसा बोझ। और फिर बच्चा, वह क्या चाहता है? वह यह अहसास चाहता है कि कोई उसे चाहता है और कोई उससे प्यार करता है, और उसे थोड़ा-बहुत प्यार भी करता है। यह गलत नहीं होता है। यदि आप किसी बच्चे को लाड़-प्यार करते हैं तो उसके साथ कुछ भी गलत नहीं होने वाला है। यह गलत विचार है, बिल्कुल गलत विचार है। यदि आप अपने बच्चों को लाड़-प्यार नहीं करेंगे, तो आप किसे लाड़-प्यार करेंगे ?

यदि आप अपने बच्चों को प्यार नहीं करते चुंबन नहीं देते और गले नहीं लगते हृदय से नहीं लगाते तो फिर आप किस के साथ ऐसा करने जा रहे हैं? क्या आप एक कुत्ता लेने जा रहे हैं? और वे ऐसा करते हैं! मेरा मतलब है, वे वास्तव में ऐसा करते हैं! उनके शयनकक्ष में कुत्ते-बिल्लियाँ होंगे और पति-पत्नी बच्चों से अलग सो रहे होंगे! यह गलत है।

उन्हें प्यार दिया जाना चाहिए। उन्हें महसूस होना चाहिए कि वे बहुत वांछित हैं। वे महत्वपूर्ण होने चाहिए, बहुत महत्वपूर्ण। जबकि पति-पत्नी आपस में लड़ रहे हैं, आप देखिए! या पत्नी नववधू है और पति नवविवाहित दूल्हा है। यहां तक ​​कि अगर वह ८० वर्ष का है, तो वह दूल्हा है! अभी भी शादी के लिए तैयार! मेरा मतलब है, कैसी बात है! बेतुका है! बच्चों पर बिल्कुल ध्यान नहीं है।

बच्चों को अपने माता-पिता से पूरा प्यार, पूरा आश्वासन और एक छवि और एक आदर्श मिलना चाहिए कि शादी अपने आप में एक वरदान है। पति और पत्नी के बीच प्रेम और सद्भाव में ईमानदारी और निष्ठा उन्हें इस बात का एहसास देती है। लेकिन यह वैसा नहीं है। मुझे नहीं पता कि यह कैसे काम करता है कि, लोग अपने बच्चों को अपना प्यार नहीं दिखाना चाहते, वे डरते हैं। शायद किसी ने आपको बहला-फुसला दिया हो?

भारत में हमारे बच्चे, इस मायने में, हमारे साथ बहुत अधिक स्वतंत्रता लेते हैं। उनके पास हमारी चाबियां हैं, वे जो चाहें ले सकते हैं। वे मेरी कोई भी साड़ी इस्तेमाल कर सकते हैं। वहां कोई समस्या नहीं है। मेरा मतलब है, उन्हें यह करना होगा, लेकिन तब वे जिम्मेदार महसूस करते हैं। यहाँ के बच्चे की तरह वे इतना पैसा बर्बाद नहीं करते। यदि आप उन्हें संतुष्ट रखते हैं तो,  मेरा मतलब है कि वे कभी कुछ नहीं मांगते। लेकिन यह मूल समस्या है: बचपन से ही अपने ही बूते पर रहना। तो योग में भी तुम अपने बूते पर हो जाते हो!

सबसे पहले, पहला विच्छेद का बिंदु यहां आता है, सबसे पहले, कि आप वास्तव में नहीं जानते कि प्यार पर कैसे निर्भर रहना है। केवल अपने माता-पिता के माध्यम से ही आप जान पाते हैं कि प्रेम क्या है। तो ऐसे कई मामले सुनने को मिलते हैं, कि बाप भाग गया, मां भाग गई, ऐसी बात हो गई। अब बेचारे बच्चे क्या करें? मेरा मतलब है, यह बहुत दुखद मामला है, यह बहुत दुखद बात है जो बच्चों के साथ हो सकती है, कि माता-पिता अलग हो जाते हैं: प्यार नहीं। फिर, तुम अपने माता-पिता से लड़ते हो, तुम अपने माता-पिता से लड़ते हो, अपने परिवारों से बाहर निकलते हो। मेरा मतलब है, यह एक और महान शैतानी बात है, मैं आपको बता सकती हूं, क्योंकि केवल परिवार में ही परमेश्वरी शुभता और आशीर्वाद मौजूद है। तो, आप अपनी माँ में दोष पाएंगे। लेकिन इसके विपरीत, यदि आप मेरी बेटी को मेरे खिलाफ कुछ भी कहते हैं, तो वह आपकी सबसे बड़ी दुश्मन होगी, वह बर्दाश्त नहीं कर सकती, वह कहती है, “मेरे और मेरी मां के बीच जो कुछ भी है।” लेकिन उसके पिता भी उसे यह नहीं कह सकते कि, “यह ऐसा है”। तो, हम कहते हैं कि हमारी माँ खराब है, हमारे पिता बुरे हैं, और आपके मनोवैज्ञानिक भी आपको सिखाते हैं, सुबह से शाम तक, कि, “कुछ गलत है तो, माँ को दोष दें, पिता को दोष दें,” तो एक और सनसनी शुरू हो जाती है|

अब, जिन लोगों को अपने माता-पिता से वैसा आश्वासन नहीं है, वे अनाथों की तरह हैं, मेरा विश्वास करो! यह भयानक तरह से उजड़ जाने की एक अनाथ भावना है, पूरी तरह से तन्हा महसूस करने, आप जीवन में इतना खोया हुआ महसूस करते हैं। मेरा मतलब है, माता और पिता आपके भीतर, आपके स्व का अंश हैं। आप यह जानते हैं, हमने अब सहज योग में देखा है कि हमें आपके माता और पिता के चक्रों को कैसे ठीक करना है। वे तुम्हारे भीतर हैं, तुम उनसे छुटकारा नहीं पा सकते! तो यह एक बड़ी समस्या है जो हमारे सामने है, वह यह है कि, आप में प्रेम की कमी है। प्रेम के बिना मनुष्य का बीज एक प्रकार से बौना है। आप देख सकते हैं, अहंकार उन्मुखता के कारण, यह अहंकार को जन्म देता है। आप अपने बूते पर हैं, चूँकि आप अपने दम पर हैं,  बड़ा अहंकार काम करने लगता है। “ओह, मैं यह करने जा रहा हूँ, मैं वह करने जा रहा हूँ, मैं ऐसा बनने जा रहा हूँ।” अहं उन्मुखता शुरू होती है, फिर, जब आप अध्यात्म में आते हैं, तब भी अहंकार आदत में होता है, इतनी हद तक कि, आप चकित होंगे। इतनी बड़ी हद!

एक दूसरे दिन हमारे पास एक लड़का था, एंडी केर (?), उसका दोस्त आया था और हमारे साथ एक और अमेरिकी सज्जन थे, उनके पैर बिल्कुल लकवाग्रस्त थे और वह अंदर था, आप उन्हें क्या कहते हैं? बैसाखी, आप कह सकते हैं, बैसाखी। लेकिन वे उसके घुटनों से जुड़े हुए थे। वह मेरे पास आया और फिर मैंने उसका इलाज किया, वह ठीक था, उसने अपनी बैसाखी फेंक दी, वह चलने लगा, और मैं इस लड़के से बात कर रही थी। तो, वह अभी भी बोलता चला जा रहा था, “नहीं, मैं अपना ध्यान स्वयं करना चाहूंगा, मैं अपना स्वयं का ध्यान कर सकता हूं!” मैंने कहा। अब इसे देखिए। अभी वह देख रहा है कि, मैंने इस आदमी को ठीक कर दिया है! ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें बोध हुआ है। फिर भी वह यह नहीं देखना चाहता कि यह सत्य है, व्यक्ति को सत्य को स्वीकार करना ही होगा। वह तैयार नहीं था, वह मुझसे बहस कर रहा था। क्योंकि वह अपने दम पर है!

इसलिए, आपको यह अहसास करना होगा कि आप अपने दम पर बिल्कुल नहीं हैं। आप एक आद्य सत्ता के अभिन्न अंग हैं, एक मौलिक सत्ता हैं, आप उसी के अभिन्न अंग हैं। जिस क्षण आप सोचते हैं कि आप अपने दम पर हैं, आप मनमाने हो जाते हैं। जिस प्रकार शरीर की एक कोशिका में विषाक्तता (केंसर) कैसे आती है। यदि आप एक डॉक्टर हैं, तो आप समझेंगे, कि एक कोशिका महसूस करने लगती है की यह अपने ही बूते पर है और बढ़ने लगती है, बड़ी और बड़ी और बड़ी होने लगती है। इस वृद्धि से, क्या होता है – जिसे हम केंसर कहते हैं – इस वृद्धि से, यह अपने आस-पास की अन्य कोशिकाओं पर दबाव बनाती है और अनुपात से बाहर बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, नाक, यदि यह पूरे शरीर के साथ आधारभुत ढंग से नहीं मिलती है, तो यह इस तरह एक बड़ी नाक बन जाएगी, आप देखिए। या एक कान, कल्पना कीजिए, ऐसे ही बाहर आ रहा है! या एक हाथ इस तरह जा रहा है! बिना अनुपात, कोई सामंजस्य नहीं, पूरे शरीर से कोई संबंध नहीं। तो आप कैसे दिखेंगे? इसके अलावा इतने बड़े हाथ का क्या फायदा जो वहां तक जाता है? आप अपना सिर भी खुजला नहीं सकते।

तो, उस तरह की मनमानी, जब यह दिमाग में बैठती है, कि “मैं हर चीज में अपने दम पर हो सकता हूं!” एक बहुत ही सूक्ष्म प्रकार का, बहुत सूक्ष्म प्रकार का, मुझे कहना चाहिए, अंधापन आ जाता है, बहुत सूक्ष्म प्रकार का अंधापन। तुम बस वास्तविकता नहीं देख सकते। उस दिन मेरे पास एक लड़का आया था, ब्रिटिश पत्नी, अब वह एक अंग्रेज नहीं है, उसकी माँ अंग्रेज है उसके पिता एक ब्रिटिश हैं (??) और वह मेरे घर आया, वह केवल पंद्रह वर्ष का है, और वह आया और बैठा। उसने कहा, “क्या आपके पास कोई अच्छा संगीत है?” बहुत अशिष्ट, तुम्हें पता है, वह मेरे पति से किसी बात के लिए मिलने के लिए वहाँ आया था। मैंने कहा, “हां हमारे पास है, आप क्या सुनना चाहते हैं?”, “मुझे भारतीय संगीत बहुत पसंद नहीं है, लेकिन अगर आपके पास सितार में कुछ है तो मैं सुनना चाहूंगा।” मेरा मतलब है, यह बेहद अशिष्टता है। “मुझे यह पसंद नहीं है! मैं यह बात नहीं करता!”। मैंने कहा, “एक 15 साल का लड़का!” मेरे पति भी, जो अब ६० वर्ष के हैं, वे अपने ही भाई के सामने अपनी आँखें नहीं उठाते। लेकिन मेरा मतलब है कि उनका भाई कोई उनका गला नहीं काटता: मैं जो कह रही हूं, कुछ नहीं, इसके विपरीत, वे दोस्त हैं। मेरा मतलब है, वे मजाकिया हैं, यह सम्मान जैसा कुछ है। यह सूक्ष्मता आती है।

क्योंकि आपका मुख्य बिंदु ‘मान्यता’ समाप्त हो गया है। सम्मान की भावना समाप्त हो गई है। आपको लगता है कि आप सब कुछ हैं, आप बहुत सही हैं और बाकी दुनिया अपूर्ण है, आप एकमात्र पूर्ण व्यक्ति हैं जिन्हें आप जानते हैं। यह बहुत सूक्ष्म समझ है। यद्यपि आप कह रहे होंगे, “माताजी, मेरा अहंकार बहुत कष्टदायक है,” आप ऐसा कहेंगे। तुम मुझसे कहते हो – बिलकुल ठीक! आपने इसे कई बार कहा है, लेकिन फिर से मैं पाती हूँ कि, श्रीमान अहंकार कहीं से आ रहे है और वहां आपके सामने बैठे हैं और आप पीछे हैं। आप क्या कहती हैं पेट्रीसिया, यह सही है या नहीं?

उनमें से बहुत सारे। अब ऐसा क्यों है कि आप अहंकार को महसूस नहीं करते लेकिन आप प्रति- अहंकार को महसूस कर सकते हैं? यानी अगर कोई आपको ग्रसित किये है, आप पर कब्जा है। तुरंत आपकी गर्दन इस तरह  चलेगी। देखिए, अगर बाईं ओर ग्रसित है, तो आपकी गर्दन इस तरह जाएगी, या आपको दर्द होगा, आप सो नहीं पाएंगे, आप अपना सिर खुजलाएंगे, आप पागल हो जाएंगे। या आप कूद रहे होंगे, या आपके साथ कुछ हो रहा होगा। लेकिन अगर आप अहंकारी हैं तो अन्य लोगों के अलावा आपको कुछ नहीं हो सकता। आप दूसरों पर हावी रहेंगे। आपको अपनी पत्नी की, अपने पति की, अपने बच्चों की भी परवाह नहीं होगी। आप नहीं करेंगे। और आपको नहीं पता होगा कि आप परवाह नहीं कर रहे हैं। आप देखिए, एक प्रकार की आत्म मोह अथवा आत्म मुग्धता।

आप इसे एक आत्ममुग्धता कह सकते हैं, जैसे प्रेम, आत्म-प्रेम।  हर चीज में आप सबसे ऊपर हैं। स्वार्थपरता! आप दस बार आईने में देखेंगे, आप खुद को या तो बहुत अच्छी तरह से तैयार करेंगे या आप तैयार ही नहीं होंगे। दूसरा पक्ष, ऐसा भी हो सकता है कि आप इतने असाधारण रूप से विचित्र भी हो जाएंगे। आप यहां लाल चीज डाल सकते हैं और यहां लाल चीज डाल सकते हैं और कानों में कुछ डाल सकते हैं और, आप देखिए, मुझे नहीं पता कि आप किस तरह का काम करेंगे: बस उस हिस्से को दिखाने के लिए। यह सब आत्म-प्रेम है, इसका सामना करने का प्रयास करें। हम अपने निकटतम और प्रियतम की भी परवाह नहीं करेंगे। यह आत्म-प्रेम है, और आत्म-प्रेम इतना सूक्ष्म, इतना सूक्ष्म प्रकार है, कि हम इसे नहीं देख पाते हैं। लेकिन यह इस तरह से शुरू होता है, “मुझे यह पसंद नहीं है!” अब तुम कौन हो? कुछ लोग मुझसे ऐसे बात करते हैं जैसे वे ड्यूक ऑफ नोरफोक हों। मैं अब तक उनसे नहीं मिली हूँ! मैं उनसे नहीं मिली, लेकिन वह भी उन लोगों की तुलना में विनम्र होंगे ऐसा मैं आपको आश्वस्त कर सकती हूं!

तो, अहंकार-उन्मुख समाज अपना विश्वास खो देते हैं, ऐसा ही होता है। इसके बारे में सोचो। विश्वास, यह बहुत महत्वपूर्ण बात है। उन्हें अपने माता-पिता पर कोई भरोसा नहीं है। अब किस पर विश्वास करोगे? अपने ही बच्चों पर भरोसा नहीं है तो किस पर ईमान रखेंगे?  हमारे पास यह एक दुष्चक्र है। पहले माता-पिता को अपने बच्चों पर कोई भरोसा नहीं था, इसलिए बच्चों को माता-पिता पर कोई भरोसा नहीं है। इसे कहाँ ख़त्म करें? आइए इस बिंदु पर इसे ख़त्म करें और सुनिश्चित करें कि हम जहां भी हैं, हमें अपने आप पर विश्वास है। अपने आप में विश्वास। और जब हमें स्वयं पर विश्वास होता है, तो विश्वास अहंकार के समान नहीं होता।

अपने आप में विश्वास एक ऐसी चीज है जो विवेक से पैदा होती है। यह तर्कसंगतता से पैदा नहीं हुआ है। विश्वास का जन्म विवेक से होता है। विवेक हृदय और मस्तिष्क के संतुलन से उत्पन्न होता है। अहंकार उन्मुखता केवल दिमागी है, केवल मस्तिष्क है। आप देखते हैं कि इस तरह एक सींग निकल रहा है, दूषित। बोगदान आपको क्या लगता है? (हँसते हुए) हाँ, सींग हैं! हम गेंडे बन जाते हैं कभी-कभी आप जानते हैं। हम नहीं जानते कि हम हैं। भीड़ में हम जाते हैं और हम वास्तव में दूसरों को बहुत बुरी तरह चोट पहुँचाते हैं। जिस तरह से हम लोगों से रूखी बातें कहते हैं, मेरा मतलब है कि हम विश्वास नहीं कर सकते कि हम ऐसी बातें कह सकते हैं लेकिन हम करते हैं, और हमें नहीं करना चाहिए। कोई परवाह नहीं है, हमारे भीतर दूसरों के बारे में कोई चिंता नहीं है, क्योंकि यह आत्म-प्रेम है, पूरा चक्र हमारा है।

“मेरा अपना क्षेत्र, मेरा अपना कमरा, मेरा अपना घर, मेरी कार, मेरी, मेरी, मेरी, मेरी, मेरी”! लेकिन यह नहीं है, यह तेरा है, यह तेरा है। कबीर कहते हैं कि जब बकरी जीवित होती है, तो वह कहती है, “मैं. मैं, मैं” लेकिन जब वह मर जाती है और जब उसकी आंतों को बाहर निकालकर उसका हिस्सा बना दिया जाता है … आपके पास उस तरह की चीज नहीं है … हम इसे कपास कताई के लिए इस्तेमाल करते हैं, फिर वह कहती है “तू ही, तू ही, तू ही” (अर्थ) “एक आप ही हैं, एक आप ही हैं, आप एक हैं” |

इसलिए हमें खुद का सामना करना होगा। अब हम खुद का सामना क्यों करें? क्योंकि हमें स्व बनना है। क्योंकि अगर आप इसी तरह बहुत ज्यादा चलते चले जाते हैं, तो एक पलटा होगा और पुनरावर्तन इतना दुखद होगा, हम सोचने लगेंगे “हे भगवान, मैंने अपनी खुद की कितनी भयानक दुनिया बनाई है!” तो आप इसे एक तरफ फेंक देते हैं और आप दूसरी तरफ प्रति-अहंकार में चले जाते हैं! फिर ड्रग्स और यह और वह और पलायन करते जाते हैं। आप देखिये ? आप अपने आप से बचना चाहते हैं। मैं आपको एक अंतरराष्ट्रीय, या आप एक सार्वभौमिक कह सकते हैं, उदाहरण दूंगी या आप एक अंतरराष्ट्रीय उदाहरण कह सकते हैं। लोगों ने परमाणु बम बनाए, ठीक है? उन्होंने बनाया। परमात्मा ने परमाणु बम नहीं बनाए, इंसानों ने उसे बनाया। उन्होंने एक परमाणु बम का एक बड़ा राक्षस बनाया, उन्होंने उसे वहां तैनात कर दिया। अब वे उसी बम से डरते हैं! अहंकार भी वैसा ही कार्य करता है, वह भी वैसा ही कार्य करता है, और फिर उस बात का दूसरा चरण शुरू होता है।

यह मध्य में है, यह मध्य में है जहाँ कि आप स्व को पाते हैं। यह न तो इस चरम पर है और न ही उस चरम पर, बल्कि मध्य में है, आस्था में है। लेकिन विश्वास का मतलब किसी भी तरह से चर्च जाना नहीं है। इसमें कोई तार्किकता नहीं है। चर्च जाने में तार्किकता नहीं है, यह पागलपन है! तुम एक पुजारी को देखते हो, जो सिर्फ भगवान को बेच रहा है! आपको चर्च क्यों जाना चाहिए? यह ठीक है। आप एक पुजारी की बात कैसे सुन सकते हैं? यह सही है। लेकिन तब आप पब में भी नहीं जा सकते ! यह एक अन्य अति है। या तो आप चर्च जाएं या पब। बीच में कुछ है या नहीं? यही वह मध्य बिंदु है। कि हमें मध्य में होना है, हमें उस बिंदु पर पहुंचना है जहां हम स्व को पाते हैं। बीच में, जहां हम शुद्ध इच्छा से भर जाते हैं । जहां विश्वास काम करता है। विश्वास के बारे में सोचना शुरू करें।

कुछ भी देखते हैं, यह कितना अद्भुत घटना क्रम है, आप देखिए! इस ब्रह्मांड को देखें: हम इसे सामान्यत: लेते हैं, हम इसे हलके में लेते हैं। इस ब्रह्मांड को देखें, इन सितारों को देखें, लाखों और लाखों और करोड़ों और अरबों वर्षों से वे वहां हैं। और इस धरती को देखो, धरती माता, वह कैसे चीजों का निर्माण कर रही है, वह कैसे चीजों का निर्माण कर रही है, वह कितनी सुंदर है। यहां तक ​​​​कि अगर आप अपनी आंख को देखते हैं, जिसे आपने हल्के में लिया है, तो यह आंख जो यहां है, आप चकित होंगे कि यह उन महानतम कैमरों में से एक है जो आप सोच सकते हैं! आपकी सभी अहंकार उन्मुखता  के साथ कोई भी इस तरह का कैमरा नहीं बना पाया है! बस अपने इस शरीर को देखो, बस इसे अपने अस्तित्व को देखो। हम इस तरह कैसे हो गए हैं, इस पर आश्चर्य करना बहुत अच्छा है। और ईश्वर का कोई उद्देश्य रहा होगा, कि उसने हमें अमीबा से इस तक बनाया है। लेकिन हम इसके बारे में क्या कर रहे हैं?

हमारे भीतर वह विश्वास होना चाहिए, कि, नहीं, कोई कारण होगा कि प्रकृति ने, यदि आप इसे ईश्वर नहीं कहना चाहते हैं,  हमें बनाया है, हम यहां क्यों हैं। और यह तभी संभव है जब आप वास्तव में अपने आप का सम्मान करते हैं और वास्तविक अर्थों में अपने आप से प्यार करते हैं। जब आप अपने आप से प्यार करते हैं तो यकायक आप बाकी सभी से प्यार करेंगे। अविलम्ब। अगर आप वास्तव में खुद से प्यार करते हैं। मैं सच कह रही हूँ। क्योंकि आप पाएंगे, हर कोई जुड़ा हुआ है। आनंद लेना कितनी प्रसन्नता की बात है: दूसरों के साथ रहना, दूसरों में अपने आप को महसूस करना, सबसे खुशी की बात है। उन्हें हंसते हुए देखें और आप हंसें। उन्हें आनंद लेता देख आनंदित हों। यह देखना कितनी सुंदर चीज है कि दूसरे आपके माध्यम से चमक रहे हैं।

लेकिन नहीं, हम वहाँ नहीं जाते। अगर कुछ अच्छा होता है तो कोई नहीं आता। लोग ईर्ष्यालु हैं। देखिए, हर कोई बहुत दुखी हो जाता है। जैसे ऑफिस में किसी को प्रमोशन मिल जाता है, प्रमोशन पाने वाला भी डर के मारे मुस्कुराता नहीं है। उनमें से बाकी बहुत गंभीर हैं, लेकिन अगर कोई मर जाता है, तो वहां सैकड़ों लोग रोने-धोने के लिए  जा रहे होंगे।

तो अपने भीतर स्थित दूसरों का आनंद लेने का प्रयास करें, मनमाने व्यवहार से नहीं, कभी नहीं! बल्कि यह अहसास करके कि वे सब आपके भीतर हैं। वे आपके अस्तित्व का ही अंग-प्रत्यंग हैं। यदि आप दूसरों का भला कर रहे हैं, तो आप वास्तव में स्वयं का भला कर रहे हैं, किसी और का आप भला नहीं कर रहे हैं। कृपया इसे याद रखें। सहज योग में आपको यह बिल्कुल सही लगेगा कि, सहज योग में, यह व्याख्यान नहीं बनता है, यह आपका विचार परिवर्तन करवाना नहीं है: तब आप वह बन जाते हैं। आप को प्रसन्नता पूर्वक, आपको इसे दूसरों के साथ करना होगा, अन्यथा आप दुखी होंगे। आप सामूहिक रूप से जागरूक हो जाएंगे। आप साक्षात् इसे करते हैं। यह एक वास्तविकता है जिसे आप महसूस करते हैं। तो व्याख्यान मदद करने वाला नहीं है। यह भावना है, इस चीज़ का बोध। लेकिन जो चीज [जो] बाधक बनती है,  शुरुआत में, वह है अहंकार। अहंकारी लोगों को उन्नत करवाना बहुत मुश्किल है।

तो, क्या होता है? यहां गुरु आते हैं। वे तुम्हारे अहंकार को सहलाते हैं, बहुत बढ़ावा देते हैं। पहले अहंकार को यह कहकर बढ़ावा दिया जाता है, “ठीक है, पाँच पाउंड, अगर तुम मुझे भुगतान करोगे, तो मैं करूँगा।” तो आपका अहंकार थोड़ा संतुष्ट है। “ठीक है, मैं इस गुरु को खरीद सकता हूँ!” खरीद फरोख्त!

दूसरी… आप देखिए, फिर वे आपको धोखा देते हैं, आप देखिए, यह आपके अहंकार को बढ़ावा देने का एक अन्य तरीका है, मैं आपको सच में बताती हूं। मैं अमेरिका गयी थी: वहां एक सज्जन 275 डॉलर चार्ज कर रहे थे, किस लिए? उस व्यक्ति को एक भूत ग्रसित बनाने के लिए। उन्होंने मुझसे भी कहा, उन्होंने कहा, “माँ, वे तब तक नहीं समझेंगे जब तक आप उन्हें चार्ज नहीं करेंगे।” मैंने कहा, “यह कुछ ज्यादती है।” मेरा मतलब है, यह अपमान है!

तो इस तरह, सबसे पहले, वे आपके अहंकार को सहलाते हैं। फिर ऐसे और भी कई तरीके हैं जिनसे वे आपके अहंकार को सहलाते हैं। या वे आपको पूरी तरह से बेअसर करने की कोशिश करते हैं, आपको इतना कमजोर बना देते हैं कि आप उनके सामने आत्मसमर्पण कर देते हैं। दोनों गलत बातें हैं। प्रलोभन, सम्मोहन, ये सब बातें बिलकुल गलत हैं। यदि आपको स्व बनना है, तो आपको पूर्ण जागरूकता में, पूर्ण स्वतंत्रता में, पूर्ण चयन कर पाने की स्थिति में होना होगा। यह आप पर थोपा नहीं जा सकता। एक भी व्यक्ति हो तो भी मैं उसकी मदद नहीं कर सकती। यहां तक ​​कि अगर तीन व्यक्ति हैं तो भी मैं इसकी मदद नहीं कर सकती। हजारों हैं तो भी ठीक है। लेकिन इसे किसी पर थोपा नहीं जा सकता। इसे माँगना ही पड़ता है! केवल तभी … यह आपकी पसंद होनी चाहिए, तभी आप इसे कर सकते हैं।

अब, एक और बिंदु जो मैं अभिव्यक्त करना चाहूंगी और फिर हमारे पास आपकी जांच के लिए सत्र होगा।

आइए अब देखें कि आप वास्तव में इसे कैसे करते हैं, और हम इसे अपने आप में कैसे लाना चाहते हैं … इस समस्या के कारण, हमारे साथ क्या होता है और हम इसे कैसे नकारते हैं। और यह कुछ समय तक चलता रहता है, लोग कहेंगे कि, “यह कुछ समय तक चलता है।” इसलिए इसे बनाए रखना मुश्किल है, क्योंकि यह बहुत सूक्ष्म चीज है और मैं जो बात कहना चाहती हूं वह यह है कि परमात्मा का अपना प्रोटोकॉल है। तुम उनके साथ घटिया व्यवहार नहीं कर सकते, तुम उनके साथ सस्ता व्यवहार नहीं कर सकते, तुम उनके साथ उदासीनता का व्यवहार नहीं कर सकते। केवल तभी, यह बना रहता है, अन्यथा यह निकल सकता है, यह दूर जा सकता है।

यह बहुत सूक्ष्म बात है। और इसलिए मैं निवेदन करूंगी, क्योंकि सारा समाज इसी तरह मंत्रमुग्ध है! भारत में मुझे उन्हें अन्य एक बात बतानी है, वह यह है कि, आप अपनी धन की समस्याओं के बारे में चिंता नहीं करें, आप मुझसे धन नहीं मांगे। तुम देखो, वह अलग बात है, उस हिस्से को भूल जाओ। लेकिन यह हिस्सा, यही वह बिंदु है कि, यद्यपि आप भौतिक रूप से समृद्ध हैं, आप ठीक हैं, अब आपको भोजन की तलाश नहीं करनी पड़ती है। लेकिन फिर भी आध्यात्मिक भोजन के लिए मांग करनी होगी, नहीं तो यह मिलता नहीं है। यह एक बहुत, बहुत सूक्ष्म बात है, और, एक माँ के रूप में, आप कह सकते हैं, या परमात्मा और आपके बीच मध्यस्थ के रूप में, मैं आपको बहुत स्पष्ट रूप से बताना चाहूंगी: यह एक बहुत ही सूक्ष्म चीज है।

और हमारे सहज योगियों के साथ ऐसा ही होता है: वे यहां आते हैं, उन्हें बोध होता है और फिर वे गायब हो जाते हैं। फिर तीन-चार महीने बाद वापस आते हैं। “माँ, मैं पकड़ा गया, फिर से पकड़ा गया।” तो मैं उनसे सिर्फ इतना कहती हूं कि, “आप कितनी बार कार्यक्रम में आए?” उन्होंने कहा, “माँ, हमारे पास समय नहीं था, हम नहीं आ सकते थे, हम यह नहीं कर सकते थे और वह सब। ये हुआ, वो हुआ.” लेकिन मैंने कहा, “यदि, आप अपने आप को सहज योग के प्रति उजागर नहीं करते हैं, आप अपने आप को प्रस्तुत नहीं रखते हैं, फिर आप इसे बनाए नहीं रखते हैं। यह नीचे चला जाता है।” और यह बहुत महत्वपूर्ण है!

बोध प्राप्त करना उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना मैं कहूंगी, क्योंकि यह कार्यान्वित होगा। पहले शॉट में यह बहुत तेजी से काम करता है, क्योंकि आपकी कुंडलिनी प्रतीक्षा कर रही है, बस एक मौके की प्रतीक्षा कर रही है। जैसे ही वह मुझे देखती है, वह चली जाती है। कुंडलिनी जागरण होता है, मैं देखती हूं, बहुत स्पष्ट रूप से कुंडलिनी अचानक ऊपर उठती है, जैसे आप देखते हैं, गंगा की ओर बहने वाली नदियों की तरह तेज गति से। लेकिन यह वापस चली जाती है। आपको अपना बोध ठीक हो जाता है, लेकिन कुंडलिनी फिर से वापस जाती है और अलग-अलग जगहों पर सुधार करती है।

तो आपको सम्पूर्ण रूप से सहज योग का पालन करना होगा, और उसे समझना होगा। फिर भी, यदि आप इसके बारे में बहस कर रहे हैं, तो यह काम नहीं करता है। यह मदद करने वाला नहीं है। इसलिए आपको यह जानना होगा कि आप खोज क्या रहे हैं, आप क्या खोजने की कोशिश कर रहे हैं, और इससे पहले कि हम कुछ और शुरू करें, मैं जानना चाहूंगी: आप क्या खोज रहे हैं? आपकी क्या समस्याएं हैं? आप मुझे बताएं, और फिर मैं आपको बताऊंगी कि कैसे सहज योग आपके सभी सवालों का जवाब दे सकता है। आपकी सभी समस्याओं का समाधान सहज योग से ही हो सकता है। इस बात का मुझे यकीन है। शत प्रतिशत पक्का!

लेकिन समस्या यह है कि हम अपने अचेतन से मार्गदर्शन नहीं लेते हैं, हम अपने अहंकार से मार्गदर्शन लेते हैं। जब तक हम अपने अहंकार से मार्गदर्शन प्राप्त कर रहे हैं, यह हमें गुमराह करने वाला है, क्योंकि मन, अगर यह अहंकार से ग्रस्त है, तो यह हमारे लिए काम नहीं करेगा। हमें मन की सवारी करनी है, अहंकार की नहीं। जब अहंकार मन पर सवार होता है, तो मन इधर-उधर जाता है। लेकिन जब हम मन पर सवार होते हैं तो मन भी खुश होता है और मन ही आपको वहां ले जाता है और उस समय आपको वहीं पहुंचा देता है। क्योंकि, आप देखते हैं, जब आप अपनी मंजिल पर पहुंच जाते हैं तो आपको अपना मन भी छोड़ना पड़ता है। तो, किसी को पता होना चाहिए कि हमें अपने मन की सवारी करनी है, न कि अहंकार या प्रति-अहंकार। प्रति-अहंकार वह है जब लोग ग्रसित हो जाते हैं। यही है, यही बात है।

तो मैं कहूंगी कि, स्पंदनों को बनाए रखने के लिए, आपको कुछ चीजें करनी होंगी। और उनमें से कुछ चीजें यह हो सकती हैं कि अब हमें यहां कुछ टेप प्राप्त हो गए हैं। आपको अपने टेप लाने चाहिए और उन्हें अपने लिए टेप करवाना चाहिए – यह एक अच्छा विचार है। और आपको सीखना चाहिए कि कैसे चैतन्य देना है और दूसरों को आत्मसाक्षात्कार देना है। एक बिंदु पर जहाँ भी आप कर सकते हैं। और इसे कार्यान्वित करो! आप सभी यहां से टेप प्राप्त कर सकते हैं। इसकी शुरुआत आप खुद अपने सर्कल में अपनी दोस्ती में कर सकते हैं। इस तरह, आप देखते हैं, यह तेजी से काम करेगा। भारत में यह इसी तरह से काम करता है। लेकिन यहाँ आप जानते हैं, यह इतनी धीमी गति है और, मेरा मतलब है, जैसे ही कोई सहज योगी बोलना शुरू करता है, कोई भी पश्चिमी सहज योगी सहज योग के बारे में बात करता है, लोग कहते हैं, “ओह चुप रहो, तुम अच्छे नहीं हो।” तुरंत ही! “माताजी को ही उन्हें संबोधित करना चाहिए, नहीं तो वे आश्वस्त नहीं हैं।” क्योंकि उन लोगों से अहंकार टकराता है, ऐसा टकराव चलता रहता है। लेकिन भारत में ऐसा नहीं है चूँकि अहंकार वाला हिस्सा कम है। इसीलिए ऐसा नहीं है।

मान लीजिए एक आदमी है, जिसे मैंने बोध दिया है, माना कि, पुणे में, वह अपने गांव जाता है और वह उनसे कहता है, “मुझे मिल गया! मैंने यह पाया है! मैंने यह पाया है!” वे कहते हैं, “सच में? आपको मिल गया?” “हाँ!” सो सब उसके पास इकट्ठे हो गए। फिर वह उन्हें बताता है, “यही वह चीज़ है जो मैंने पाई है, यह वह चीज़ है, आप बस खुद परख लें और आप स्वयं देखें” और फिर वह दूर चला जाता है और, समाप्त, उस गाँव का काम पूरा हो गया है और वह गाँव, फिर मुझे नहीं करना है। जब मैं वहाँ जाऊँगी तो सभी गाँव वाले एक बड़े गाँव में आएँगे जहाँ मैं रहती हूँ। ये इतना सरल है। लेकिन यहाँ, आप देखते हैं, कोई भी आसानी से आश्वस्त नहीं होता है। तुम्हें अपना सिर फोड़ना है और मुझे अपना सिर फोड़ना है, सुबह से शाम तक। आज मैंने अपना सिर तोड़ा, कितने घंटे? मुझे बताओ। कई एक साथ घंटे! यह समझाते हुए कि कृपया अपने वायब्रेशन को बनाए रखने का प्रयास करें! लेकिन छोटी-छोटी चीजों में वे हार मान लेते हैं। यहां तक ​​कि अगर मैं कहूं कि, “अपने जूते निकालो।” इससे भी उन्हें दुख होता है। मेरा मतलब है, यह थोड़ा ज्यादा है, है ना? मेरा मतलब है, वे सोचते हैं कि खुद परमात्मा एक माला और रोशन मोमबत्ती के साथ आएं और उन्हें माला पहनाएं और उनके चारों ओर मोमबत्तियां लगाएं। क्या यह संभव है? क्या आप भगवान से ऐसा करने की उम्मीद करते हैं? उम्मीद करना बहुत ज्यादा है! है ना।

मैं तुम्हें लाड़ प्यार करती हूँ, मेरे बच्चों के रूप में, मैं करती हूँ। मुझे पता है, मैं तुम्हें अपने बच्चों के रूप में लाड़ प्यार करती हूँ। लेकिन मैं आपको इस हद तक लाड़-प्यार में बिगाड़ना नहीं चाहूंगी कि आप अपने चैतन्य खो दें। आप देखिए, यह गलत होगा, क्योंकि मेरा मकसद सिर्फ इतना है कि आप अपने स्पंदनों को ठीक रखें और आप वहां बने रहें, जो एक सूक्ष्म चीज है, और आप धीरे-धीरे उठते हैं। यदि आप अपने वायब्रेशन को खोने लगेंगे तो धीरे-धीरे आपकी स्थिति नीचे आ जाएगी।

आज मैंने कहा कि मैं थोड़ी अनौपचारिक रहूंगी क्योंकि यहां बहुत कम नए लोग हैं और मैं इस बारे में आपसे बात कर सकती हूं। इसलिए, मैं यह भी जानना चाहूंगी कि क्या कोई प्रश्न वगैरह भी है। इससे पहले हम इन तीन लोगों को अपना बोध प्राप्ति होते देखना चाहते हैं। अब अपने हाथ इस तरह रखो, ठीक है? चलो देखते हैं। इस प्रकार से। अब पॉलीन, क्या आप अपने हाथों में ठंडी हवा महसूस कर रहे हैं? वह बहुत मध्य में है, क्योंकि वह मेरे साथ चलकर आई थी, मैं देख सकती थी। वह बहुत मध्य में स्थित व्यक्ति है, बहुत ज्यादा, उसमें कोई अति नहीं है। अब, तुम्हारा क्या? क्या आप कुछ महसूस कर रहे हैं? आप क्या कहते हैं? बायां हृदय।

श्री माताजी: अब, क्या काम? आप बहुत मेहनती व्यक्ति हैं ना?

साधक : कभी-कभी, हमेशा नहीं, कभी-कभी।

श्री माताजी: कभी-कभी। इन दिनों? तुम क्या कर रहे?

साधक : सफाई।

श्री माताजी : सफाई। सफाई क्या?

साधक : कारखाने की सफाई करना।

श्री माताजी : हे भगवान! यह बात है। बहुत ज्यादा असंतुलन। क्या आपके पास कारखानों की सफाई के लिए मशीनें नहीं हैं?

साधक : नहीं।

श्री माताजी : आप देखिए, यदि आप अपनी दाहिनी ओर की गतिविधि का बहुत अधिक उपयोग करते हैं, शारीरिक श्रम और इस तरह की चीजें, तो बाईं बाजू, आप देखते हैं, पूरी तरह से उपेक्षित हो जाती है। और इसलिए आपका बायां हिस्सा कमजोर है। लेकिन यह कार्यान्वित करेगा। तो आप अपना दाहिना हाथ अपने दिल पर रखें, ठीक है। अपने दिल पर, इस तरफ। हाँ, थोड़ा नीचे, हाँ बस इतना ही। अब, उसके बारे में क्या? डेविड, क्या आप बता सकते हैं? आज मुझे फिलिप यहाँ नहीं मिला। वह नहीं आया? लिवर, हृदय?

योगी: सेंटर हार्ट।

श्री माताजी: यह क्या है, समस्या क्या है? क्या आप जीवन में सुरक्षित महसूस कर रहे हैं?

साधक : यह तो कठिन प्रश्न है।

श्री माताजी: क्यों? यहाँ आओ। यहाँ आओ। क्या वह ठीक है? वह ठीक है। बस बैठो, घूमो। आराम से बैठो, बिल्कुल आराम से। क्या आप आराम से हैं? ज़रूर? ठीक है, अब अपनी सांस रोको। सहज योग में एक मजबूरी है। आपको शर्ट के अंदर बनियान पहनना है, आप बिना बनियान के शर्ट नहीं पहन सकते। देखिए, इससे आपको सर्दी का अहसास होता है। मेरा मतलब है, यह एक साधारण बात है, आप जानते हैं, मेरी माँ ने मुझे बताया, मुझे बहुत अजीब लगता है लेकिन यह सच है। आपको केवल शर्ट नहीं पहननी चाहिए। मुझे पता है कि यह बहुत गर्म है, लेकिन भारत में आपको एक भी व्यक्ति नहीं मिलेगा, यहां तक ​​कि बच्चे भी नहीं। वे हमेशा बनियान पहनेंगे, क्योंकि जब मौसम गर्म होता है तो यह अधिक आवश्यक होता है। क्योंकि क्या होता है कि आपको पसीना आता है और आपको भयंकर सर्दी लग जाती है। इससे आपको निमोनिया हो सकता है। मुझे आशा है कि अगर मैं ऐसा कहूं तो आप आहत नहीं हो रहे हैं ?

साधक : नहीं, मैं जम्पर में आया था।

श्री माताजी : ठीक है। एक जम्पर के साथ भी आपको एक बनियान अंदर पहनना चाहिए, ठीक है? अब, इस के बारे में कैसा लग रहा है। वह ठीक है। अब, अपनी सांस रोको, क्या तुम कर सकते हो? ठीक है। कृपया। आप क्या कहते हैं? हम्म। आपके कंधे में कुछ समस्या है?

साधक : नहीं, मेरी गर्दन टूट गई है।

श्री माताजी : कब? आप की कब टूट गई?

साधक: छह साल पहले।

श्री माताजी : हे ईश्वर! वह ठीक है, मुझे लगता है कि उसे मिल गया है। वह ठीक है। वह बहुत मेहनती भी हैं। वे सब आपको महसूस कर रहे हैं। पॉलीन, तुम भी बहुत मेहनती हो?

योगी: वह योग की शिक्षिका रही हैं।

श्री माताजी : ओह! योग के शिक्षक? कितने समय से?

साधक : वर्षों से ।

श्री माताजी : ओह! यही बात है…हृदय. बस उसे संतुलन में रखो। मैं आपको योग के बारे में बताती हूँ, ठीक है पॉलीन? मैं आपको बताती हूँ, यह अच्छा नहीं है, अच्छा नहीं है। यह एक अभिनेत्री या पहलवानों के लिए है, योगियों के लिए नहीं, ऐसा नहीं है। यह अब ठीक है। यह बेहतर है। हा! अभी भी सहस्रार पर है। आइए इसे बाहर करते हैं। लेकिन आप देखिए, अगर आप योग शिक्षक रहे हैं, तो मैं आपको बता सकती हूं, यह फिर से आपके हृदय में उतर जाएगा। तो सावधान रहो। मेरा मतलब है, योग शिक्षक कहाँ चले गए हैं? वह आज नहीं आया है? हे ईश्वर। वह कब आ रहा होगा? आने वाला कल?

योगी : वह दो सप्ताह से लगातार काम कर रहा है, सुबह जल्दी से देर शाम तक।

श्री माताजी: है ना? वहां उसकी गर्दन बहुत खराब है। तुमने अपनी गर्दन कैसे तोड़ी?

साधक : मैं पैराशूट रेजीमेंट में था, सेना में।

श्री माताजी: पैराशूट? मैं आपको बताती हूं कि इस दुनिया में इंसानों ने हर तरह की अजीब चीजें विकसित की हैं! मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि पैराशूट करने की क्या जरूरत है? आप यह क्यों करते हैं? क्या जरूरी है? हमारा राजकुमार भी वहां पैराशूट करने जा रहा है। मेरा मतलब है, बेहतर हो कि तुम उसे बताओ! यह बेकार है। मेरा मतलब है, तुम समझो यह सब बेतुका है। सुबह से शाम तक बेतुकी बातें क्यों करते हैं?

साधक : हाँ मुझे पता है

श्री माताजी: हे भगवान, बेहतर हो की आप राजकुमार को लिखें कि, “मैंने अपनी गर्दन तुडवा ली है”, मुझे ऐसा राजा नहीं चाहिए जिसकी गर्दन टूटी हो। ये सब भयानक बातें क्यों करते हैं? मैं नहीं समझ सकती क्यों। पैराशूट करने की कोई जरूरत नहीं है। अब बेहतर है। लेकिन आप वादा कीजिये कि आप फिर कभी ऐसा नहीं करेंगे।

साधक : ओह, मैं नहीं करूँगा।

श्री माताजी : तो मैं तुम्हें ठीक कर दूंगी, नहीं तो मैं नहीं करूंगी। क्योंकि यहाँ मैं तुम्हारा इलाज करती हूँ, फिर तुम वापस जाओ और अपनी गर्दन तुडवा लो और वापस आओ, तुम देखो! क्योंकि लोगों के साथ भी ऐसा एक उन्माद है। आपने देखा कि एक बार जब वे पैराशूट करते हैं तो वे इसे रोक नहीं पाते, मुझे बताया गया है। (हँसी)

योगी: शायद यह पहला केस है, माताजी।

श्री माताजी : नहीं, मेरा मतलब है, मुझे ऐसा कहा गया है। कि एक बार जब आप कुछ करना शुरू कर देते हैं… … जिनके माता-पिता वगैरह हैं, वे आपसे नहीं जुड़ते हैं। आप देखिए, वे ऐसा नहीं करते, क्योंकि माता-पिता उन पर प्रतिबंध लगाते हैं, आप देखिए। जब मैंने अपनी बेटी से पूछा कि वह किस तरह का पति चाहती है, तो उसने कहा, “एक बात, हमारे पास सेना से, नौसेना से कोई नहीं होगा।” तो, यह वही है। बस इतना ही, बस इतना ही। क्या करें? यह एक भयानक बात है, यह हठ योग। आप जानते हैं, मैं आपको हठ योग के बारे में बताउंगी, अब पॉलीन। आप जानते हैं, यह हठ योग यहां एक सज्जन के माध्यम से आया है, जो भारत में था, शिवानी। और उसने इसे शुरू किया, मुझे लगता है, लगभग बीस साल पहले, शायद थोड़ा पहले। क्योंकि वह मुक्ति पाने के लिए हिमालय गए थे और उन्हें वह उसे पा नहीं सका। तो, आप देखिए, छह चीजें हैं जो एक गुरु के साथ की जानी हैं। सबसे पहले, आपको बिल्कुल ब्रह्मचारी होना होगा, ब्रह्मचारी। फिर यम-नियम है, लेकिन वे कठिन हैं। ईश्वर प्रणिधान, मन। इन सभी छह चीजों से आपको एक साथ, एक साक्षात्कारी  आत्मा के अधीन गुजरना होगा। यही शर्त है। यदि आप पतंजलि को पढ़ते हैं, जिन्होंने हठ योग की शुरुआत की है। तुम जाओ और उसे पढ़ो! अब [हठ योग में] वह सब छोड़ दिया गया है।

यह व्यक्ति वहां से बाहर निकला, सबसे ज्यादा मायूस। इसलिए वह कुछ आसनों को जानता था जिन्हें किया जाना है। अब ये आसन आपके भीतर के चक्रों से जुड़े हुए हैं। हमारे शरीर में कुछ चक्र हैं, वे आपको बताएंगे, सात चक्र, और ये आसन एक विशेष समय पर उन चक्रों के लिए किये जाने हैं। चक्र खतरे में होने पर किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, आपके सिर में दर्द होता है और मैं आपका हाथ दबाने लगती हूं, क्या होगा, आपके हाथ में भी दर्द होगा! इसके बारे में एक बड़ा विज्ञान है। अब, यह व्यक्ति इसे ले आया और इन तथाकथित अभ्यासों के कारण, आप देखिए, आप निश्चित रूप से अपना वजन कम करेंगे, काफी कुछ। लेकिन ऐसी और भी समस्याएं हैं जो विकसित होती हैं, और आप इस तरह के असंतुलन में चले जाते हैं, कि बायां बाजू हृदय पकड़ जाता है।

अभी हमारे यहाँ एलेक्स नहीं है। आपको उससे पूछना चाहिए, उसका एक मित्र है जो हठयोगी है, और वह इसे सहन नहीं कर सकता। क्योंकि ऐसे लोग, आप जानते हैं, बाईं ओर की उपेक्षा का बहुत अधिक होना इतना खिंचाव पड़ता है कि वे बिल्कुल शुष्क हो जाते हैं। और उनमें से अधिकतर अपनी-अपनी पत्नियों से तलाक ले लेंगे, क्योंकि वे शुष्क हो गए हैं। वे दाहिनी ओर इतना अधिक हो जाते हैं कि वे बिल्कुल शुष्क हो जाते हैं।

अब,  चिकित्सा विज्ञान में ऐसा कहीं वर्णित नहीं है, कि आपको भावनात्मक रूप से भी मजबूत होना चाहिए, आपको शारीरिक रूप से भी मजबूत होना चाहिए, और आपको मानसिक रूप से भी मजबूत होना चाहिए। एक संतुलन और एकीकरण होना चाहिए। इसके बारे में कोई नहीं सोचता। एक डॉक्टर एक डॉक्टर है और वह सिर्फ आपके शरीर की देखभाल करेगा। मनोवैज्ञानिक एक मनोवैज्ञानिक है जो आपके बाईं बाजू तरफ की देखभाल करेगा। इसलिए संतुलन की, उसे परवाह नहीं है। फिर क्या होता है?ये समस्याएं आती हैं|

लेकिन हमें परम प्राप्त करना है ना? आप ऐसा क्यों नहीं करना चाहते, परमात्मा को पाने के अलावा कोई अन्य कारण के लिए ? आध्यात्मिक योग मांगा जाना चाहिए, और उसके लिए इस हठ योग में, आपको वर्षों तक गुरु के साथ रहना होगा। आपको बचपन से ही वहाँ ले जाया जाता है और वे सफाई करते हैं। अब दो रास्ते हैं। एक तरीका यह है कि कमरे में अँधेरा है, तुम कमरे में आओ और मैं तुमसे कहूँगी कि, “तुम यह ठीक करो, तुम वह सुधार करो, तुम अमुक बात सुधारो और तुम इसे ऐसे ही करते रहो।” एक अन्य तरीका ऐसा हो सकता है कि मैं प्रकाश डालूं और फिर तुमसे कहूं, “अब इसे ठीक करो।” तो सहज योग वह प्रणाली है जिसके द्वारा, सबसे पहले, रौशनी लाई जाती है, और फिर आप अपने आप को सुधार सकते हैं। ठीक है?

तो इस हठ योग और इसमें एक बुनियादी अंतर है। और वह बहुत कठिन योग था क्योंकि बहुत कम लोग ही इसे कर सकते थे, बहुत कम लोगों ने इसे हासिल किया और इसे 25 वर्ष की आयु से पहले किया जाना था। उसके बावजूद बहुत कम लोगों को आत्म साक्षात्कार मिला। लेकिन, सहज योग के साथ, आपको पहले अपना बोध प्राप्त होता है और बाद में शुद्धिकरण होता है। यही अंतर है। ठीक है? अब, यह अंतर है। तुम क्या मांग रहे हो? आप जीवन में शांति, आनंद, प्रसन्नता मांग रहे हैं। आप दिव्य जीवन को अपने भीतर आने के लिए कह रहे हैं, वैसा ही जीवन दूसरों को देने में सक्षम होने के लिए, दूसरों को उस जीवन को प्राप्त करने में मदद करने के लिए। यदि  आपकी खोज ऐसी है, तो सहज योग आपके लिए है।

लेकिन अगर केवल यही मांग है कि आप लोगों का वजन कम करें, उदाहरण के लिए, आप देखिये, आपको अभी अभिनेत्रियां बनानी हैं, वे सभी चिंतित हैं कि अब उनके पास कुछ विशिष्ट माप नहीं है, यह माप होना चाहिए, यही माप होना चाहिए . और मेरी उम्र की बूढ़ी औरतें भी ऐसा बनने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं! मेरा मतलब है, मुझे नहीं पता, हम अपना उद्देश्य पूरी तरह से गँवा देते हैं। मेरा मतलब है, जीवन का उद्देश्य क्या है? क्या यह कहीं अभिनेत्रियों बनने के लिए है? मुझे नहीं पता कि ऐसी चीज की क्या जरूरत है। यहां तक ​​कि डॉक्टर भी हैं, मैं उन पर हैरान हूं। हर कोई कहेगा, “चीनी मत खाओ!” मेरा मतलब है, यह बेतुका है। लीवर के लिए चीनी की बहुत आवश्यकता होती है और इस देश में विशेष रूप से जहां यह अहंकार उन्मुखता है, आपका जिगर खराब हो जाता है और यदि आप चीनी नहीं खाते हैं, तो आप क्या करने जा रहे हैं? आपका चित्त सारा पागल होने वाला है। कोई आश्चर्य नहीं कि लोग मानसिक चिकित्सालय में पहुँचते हैं। वे सोचने लगते हैं कि वे मानसिक परेशानियों से पीड़ित हैं। यानी लीवर के लिए शुगर बहुत जरूरी है।

तो, सभी के लिए सामान्य नुस्खे हैं। एक गृहिणी के लिए, एक सामान्य जीवन जीने वाली महिला के लिए, इस तरह की कठोर बातों में जाने की जरूरत नहीं है। केवल उन महिलाओं के लिए जो अपने शरीर से पैसा कमाना चाहती हैं, जो एक गंदी चीज है। अपने शरीर को हर आदमी के आकर्षक के लिए क्यों बनाएं? उसका चित्त और आपका चित्त खराब करना। क्या जरूरत है? सारी विचारधारा गलत है। वास्तव में कोई भी आकर्षक महसूस नहीं करता है। अब जब यह इतनी सांसारिक चीजें हो गई है। और वह आकर्षण भी, यह इतना अस्थायी और इतना बेकार है। यह आपका चित्त खराब करता है, यह दूसरों का भी चित्त खराब करता है, आपका सारा जीवन आप सुबह से शाम तक एक नेल पेंटर के अलावा कुछ और नहीं बन जाते हैं। मेरा मतलब है, हमें अपने जीवन को इससे कहीं अधिक महत्व देना चाहिए। आप बहुत कीमती लोग हैं।

लेकिन शायद इस देश में या पश्चिमी देशों में लोगों को यह एहसास ही नहीं है कि ज्यादातर वे पैदायशी संत जैसे लोग हैं। वास्तव में संत, वे परमात्मा को खोज रहे हैं। वे किसी अन्य चीज की तलाश नहीं कर रहे हैं, यहां तक ​​कि जब वे हठ योग कर रहे हैं तब भी वे केवल परमात्मा की तलाश कर रहे हैं, आप देखिए। लेकिन वे नहीं जानते। वे सब ईश्वर की खोज़ कर रहे हैं। वे जीवन में इन सभी सस्ती चीजों की तलाश नहीं कर रहे हैं, वे इससे नफरत करते हैं। लेकिन समाज किसी भी तरह ऐसा है कि वे इसमें फंस जाते हैं। लेकिन आप इससे बाहर निकलिए और खुद देखिए।

आपको परमात्मा को खोजना है, आपको उनसे मिलना है और आपको वह बनना है। यही मुख्य बात है और मुख्य बात और मुख्य बात। यही एकमात्र चीज है जो मांगी जानी चाहिए।

“त्वमेवं शरण्यं, त्वमेवं वरेण्यम ” केवल आप ही हैं जिन्हें पाना है, यह केवल आप ही हैं जिनके प्रति समर्पण किया जाना है।

इस दुनिया में हमें और कुछ नहीं चाहिए। फिर सब कुछ आता है, तुम पाते हो। ठीक है? पॉलीन, क्या तुम समझी हो?  सहज योग की यही भूमिका है। हमें आपको इसे बहुत स्पष्ट बताना होगा। सभी के लिए। यह भूमिका है। अब बेहतर है?

साधक : हाँ।

साधक (जो ज्यादा ध्यान नहीं दे रहा है): क्या आप संतुलन के लिए हठ योग कर सकते हैं?

श्री माताजी: नहीं, नहीं, नहीं, नहीं। आप देखिए, मुझे कोई आपत्ति नहीं है, कभी-कभी आप किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो भुत बाधा से बहुत अधिक पीड़ित है, आप देखिए, ग्रस्तता है। किसी का कब्जा है। फिर अगर वह थोड़ा व्यायाम अपनाता है, टहलता है और वह सब करता है, तो वह दाहिनी बाजु तरफ ले जाता है। इससे थोड़ा संतुलन हो सकता है। लेकिन समस्या यह है कि आप देखिए, हम अति वादी लोग हैं। आप देखिए, हम एक पेंडुलम की तरह हैं, हम असली चरमपंथी हैं। हम एक स्प्रिंग की तरह हैं, आप क्या कह सकते हैं। हम एक छोर पर जाते हैं और दूसरे छोर पर जाने की कोशिश करते हैं हम बीच में कभी नहीं रुकते। हम बस दूसरे छोर पर जाते हैं। और वह शुरू हो गया है, वह दौर इस देश में शुरू हो चुका है। यह हिप्पीवाद वगैरह दूसरा चरण है। पहली से दूसरी तरफ तक शुरू हो चुकी है। तो आप देखिए, अगर आप हठ योग का प्रयोग शुरू करते हैं। मेरा मतलब है, कभी-कभार, निश्चित रूप से, मैं आपको बताती हूं, कैसे करना है, उदाहरण के लिए विशुद्धि चक्र को भस्त्रिका (श्वास व्यायाम) द्वारा ठीक किया जा सकता है। लेकिन केवल विशुद्धि चक्र की ही जरूरत है, और उस समय आपको भस्त्रिका  करना चाहिए जो कि एक बहुत ही सरल व्यायाम है, जो उसे ठीक कर सकता है। लेकिन इसकी लत नहीं होनी चाहिए। वह केवल तब तक ही ठीक है जब तक वह ठीक नहीं हो जाता, एक बार ठीक हो जाने के बाद उसे ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन अगर आप खुद को ओवरडोज़ कर लेते हैं, तो क्या होगा एक साधारण सी बात! क्या अब आप बेहतर हैं?

साधक : हाँ, लेकिन कंधा आपने अभी शुरू किया है, मेरा वो भी खिसका हुआ  है।

श्री माताजी : अब मैं आपकी अच्छी तरह मालिश कर रही हूँ। ठीक है, अब मैं देखती हूँ, अपने हाथों को पैरों के नीचे अच्छी तरह से रख दो। अब अपनी आँखें बंद करो। अब बहुत अच्छा, फिर भी? अब पॉलीन कैसी है? क्या वह बेहतर है? हाँ, देखिए, वे दो चक्र दिखा रहे हैं! (हंसी)

योगी :  दाहिनी तरफ यह बहुत अच्छा है।

श्री माताजी : अच्छा, वह ठीक है, तुम्हें पता है कि वह एक साधक है। वह एक वास्तविक साधक है। तो तुम अपने अस्तित्व को बनाए रखो, फैशन को मत अपनाओ, कि कोई कहता है, “यह ऐसा है, यह वैसा है” नहीं! आप एक साधक हैं। आप सत्य के साधक हैं और सत्य पर चलते हैं। ठीक है? यह ऐसा ही है। हर किसी की सुनने के लिए नहीं। आप देखिए क्योंकि इसके बारे में हमारा अपना व्यक्तित्व होना चाहिए। मुझे ऐसा लगता है कि, जब हमारे पास अहंकार हो तो कम से कम हमारा अपना व्यक्तित्व तो होना ही चाहिए। हमें स्वयं निर्णय लेना चाहिए। हा! यह बेहतर है। चूँकि आप एक साधक हैं और अब दूसरों को अपने ऊपर हावी होने देने की अनुमति ना दें। नहीं। आपको यह जानने की स्थिति में होना चाहिए कि आप एक साधक हैं और आप एक संत हैं। तो आपको संत बनना चाहिए। आपको अपनी शक्तियों को धारण करना चाहिए। ठीक है? आँखे बंद करो, देखते है। अपनी ऑंखें बंद करो। अब उसका भी क्या? बस बैठ जाओ।

योगी: उन्होंने अरबिंदो को पढ़ा।

श्री माताजी : अरे अरबिंदो आपने पढ़ा है। हमने भी अरबिंदो को भी पढ़ा है।

योगी: हाँ, इसलिए।

श्री माताजी: ठीक है, हम उसे संभाल लेंगे। अब उसे एक बंधन दो, वह ठीक है, वह बहुत अच्छी है। वह ठीक हो जाएगा, कोई बात नहीं..यह अरबिंदो! उनकी दासी (पत्नी) एक बड़ा बना रही है , बना चुकी है फ्रांस में एक बड़ी जगह। वह जवान होने वाली थी, तुम्हें पता है, बूढ़ी औरत। अस्सी साल की उम्र में वह जवान होने की कोशिश कर रही थी!

क्या वह अब बेहतर है? वह बहुत बेहतर है। उसे संतुलन और बंधन दें। अब आप कैसे हैं सर?

साधक : मैं ठीक हूँ।

श्री माताजी : अभी ठीक नहीं है। मुझे तुम्हारी गर्दन दबानी है, तुम देखो। एक और पैराशूटिंग। इस पैराशूट को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बैन कर देना चाहिए। तुम देखो, सच में, मैं समझ नहीं पा रही हूँ! मेरा मतलब है, मैं छोटे बच्चों को किसी चीज से कूदते हुए समझ सकती हूं और आपको उन्हें इसे बंद करने के लिए बताना पड़ता है। लेकिन बड़े लोग इसे बच्चों की तरह करते हैं। मैं यह नहीं समझ पाती। अगर वे घुड़सवारी करते हैं, तो भगवान ही उनको बचाएं। कुछ भी, फुटबॉल, पागलों की तरह। अब आप कैसे हैं? बेहतर? बस उसे देखो, मैंडी, क्या तुम उसके वायब्रेशन देख सकते हो। अब्दुल, आप कैसे हैं? क्या आप हमारे जमील से मिले हैं जो अपनी गर्दन पकड़े है क्योंकि मुझे लगता है कि वह इसे महसूस कर रहा है, आप देखिए, वहां हर कोई गर्दन को महसूस कर रहा है। आप देखिए, क्योंकि मैं आपकी गर्दन पकड़ी हुई हूं, हर कोई अपनी गर्दन को महसूस कर रहा है। यह ठीक हो जाएगी, मुझे यकीन है। अब, इसे ऐसे ही रखें, ढीला।

साधक : ओह, यही है बस।

श्री माताजी: ठीक है? अब बेहतर है?

साधक : हाँ।

श्री माताजी : अच्छा! ले देख? ठीक है। अच्छा? सामान्य?

साधक : हाँ, बहुत अच्छा।

श्री माताजी : पहले मुझे इसे ढीला करना था, यह बहुत सख्त है, बिल्कुल सख्त है, सभी हड्डियाँ एक साथ जमी हुई थीं। अब बेहतर है? आप उसके बारे में क्या सोचते हैं? अब्दुल, क्या तुम वायब्रेशन देख सकते हो? अब आगे आओ, अब जमील, साथ आओ। आप अपनी गर्दन के बारे में चिंता न करें, मैं उसे ठीक कर दूंगी। उसे देखें, यहाँ आओ, तुम दोनों। नहीं, यह महिला, यह वाली, बस उसका वायब्रेशन देखिए। आपके पैर सीधे होने चाहिए। हा!, यह सही है। क्या यह अब यहाँ बेहतर है? क्या आपको कोई जलन या कुछ भी महसूस हो रहा है? नहीं, हाथ में, कुछ नहीं? कहाँ है?

योगीः स्वाधिष्ठान।

श्री माताजी : स्वाधिष्ठान, बायाँ ? केवल? बस यही समस्या है?

योगी : लेफ्ट नाभी में भी उन्हें दिक्कत है.

श्री माताजी : नाभी, और क्या? आपका मतलब दायीं है। दायीं? और नाभी? बाएं नाभी। अब बेहतर है? अब कुंडलिनी कहाँ है?

योगी: नाभी क्षेत्र

श्री माताजी : स्वाधिष्ठान?

योगी: नाभी क्षेत्र

श्री माताजी: फिर भी नाभी? क्यों तुम इतने गंभीर हो? गंभीरता आपको स्वास्थ्य नहीं देती है, हल्के रहें, दिलकश बने, यह काम करता है। मैं आप सभी को हर समय हंसाने की कोशिश कर रही हूं। मजाक कर रही हूँ। आप इतने गंभीर क्यों दिखते हैं? पॉलीन, आपको गंभीर होने की जरूरत नहीं है। हा! यह अब अच्छा है, वह ठीक है। उसकी कुंडलिनी उठाओ वह ठीक हो जाएगी, मुझे यकीन है, वह अच्छी है। यह सज्जन कैसे हैं? अब आप कैसे हैं?

साधक : अच्छा धन्यवाद।

श्री माताजी : अच्छा, अब आपके हाथों में कोई धड़कन महसूस हो रही है? मेरे पैर पकड़ो, बस देखो। दोनों हाथ? उसे मिल गया है। अब अपनी आँखें बंद करो और देखो क्या तुम्हारे मन में कोई विचार है।

योगी: उसे अच्छा लग रहा है।

श्री माताजी: वह, ठीक है? मुझे लगता है कि वह ठीक है, वह बहुत अच्छी है। आपका उपनाम पॉलीन क्या है?

पॉलीन: ओ’डोनोवन

श्री माताजी: ओडन? लेकिन आपको थोड़ा सावधान रहना होगा नहीं तो यह वापस चला जाएगा। मैं यह नहीं कह रही हूँ, हो सकता है, क्योंकि सभी हठयोगियों को समस्या थी, आप देखिए, इसलिए मुझे आपको बताना चाहिए। लेकिन वे वापस आते हैं, वे इसे अच्छा कर रहे हैं। हमारे पास और कौन था, यहाँ तुम्हारे बीच एक हठयोगी? मैं नहीं सोचती लेकिन… अब आप कैसे हैं? यह उसका दर्द है जो तुम्हें मिल रहा है, अपने आप को बंधन में डाल लो। अब आप डोमिनिक कैसे हैं? हर कोई महसूस कर रहा है। यह उसका ही दर्द है, उसे दर्द है। आप देखिए, सामूहिक चेतना, इसलिए, सामूहिक चेतना में आप इसे महसूस करते हैं।

अब बेहतर है। क्या आप धड़कन का ठीक हो जाना महसूस कर रहे हैं? यह अच्छा है, अब बैठ जाओ। क्या कोई है जो उसे बताए कि कैसे करना है? सावधान रहो, वह सो रहा है। ठीक है? अपना समय लो, मेज पर बैठ जाओ, वहाँ बैठो, हाँ! अच्छी बात है। अब बेहतर है? अब आप दर्द महसूस नहीं कर रहे हैं। तुम देखो, चूँकि तुम मुझे महसूस कर रहे थे, क्योंकि मैं उसे छू रही थी। लेकिन मुझे कुछ भी महसूस नहीं हो रहा है। आप इसे महसूस कर रहे थे। अब तुम जानते हो। अगर शरीर में दर्द होता है, तो यहां सभी नसें महसूस करती हैं लेकिन मस्तिष्क नहीं करता है। उसी तरह से। अब आप इसे बिल्कुल भी महसूस नहीं कर रहे हैं। आप प्रसन्न महसूस कर रहे हैं। ख़त्म हो गया ! अभी भी थोड़ा वहाँ। तुम्हारे पास वह दर्द था ही, तो वह तुम्हारा है। वो आपका अपना है, लेकिन उसका वाला दर्द खत्म हो गया है। क्या वह ठीक है? ओह, यह देखने योग्य है कि सहज योग कैसे काम करता है। यह एक अद्भुत बात है। वह कैसी है? अब आप जा सकते हैं और वहां बैठ सकते हैं और पॉलीन को आने दो मैं उसे देख लूंगी। पॉलीन यहाँ आओ, आओ। बैठ जाओ। वैसे भी आप अभी ले सकते हैं, क्योंकि आप एक हठ योग शिक्षक हैं, आप पद्मासन या कुछ और ले सकते हैं! सिद्धासन आप जानते हैं? कैसे करें? या सहजासन इस तरह, सीधे। उस तरह, सीधे। और सहजासन बिल्कुल फैला हुआ है। बहुत अच्छा। और आपने अपना बायां हाथ अपने लीवर पर रखें, डेबी, इस तरफ, थोड़ा ऊंचा, हां, थोड़ा ऊंचा। बाईं तरफ। इसे उठाएं, इसे संतुलन में रखें।