Guru Puja: Your own dignity and gravity Finchley Ashram, London (England)

                               गुरु पूजा, “आपका गुरुत्व एवं  गरिमा “  फिंचली आश्रम, लंदन (यूके), 21 जुलाई 1978 … अपने गुरु की पूजा, अपनी माता की नहीं, अपने गुरु की। गुरु शिष्यों में धर्म, निर्वाह स्थापित करता है। वह पोषक शक्ति क्या है, शिष्यों को इसके बारे में सभी स्पष्ट विचार देता है। वह पूरी दुनिया को उपदेश कर सकता है लेकिन अपने शिष्यों के लिए, वह बहुत स्पष्ट निर्देश देता है। अधिकांश गुरु, जब वे ऐसा करते हैं, तो वे वास्तव में हर शिष्य को तराशते हैं। पहले वे तौलते हैं कि शिष्य का आग्रह कितना है, शिष्य वास्तव में कितना ग्रहण कर सकता है, और फिर वे किसी को शिष्य के रूप में स्वीकार करते हैं कि यदि  शिष्य वास्तव में धर्म के बारे में निर्देश प्राप्त करने योग्य भी है। लेकिन सहज योग में नहीं क्योंकि आपकी गुरु एक माँ है। इसलिए वह आपका शिक्षारम्भ आपकी क्षमता,ग्रहण योग्यता,और आपके व्यक्तित्व के गुण जाने बिना करती है। यह गुरु की एक बहुत ही भिन्न शैली है जो की आप को प्राप्त है जिसमे आपके शरीर की, आपके मन की ,और आपकी समस्याओं की देखभाल करता है और फिर कुंडलिनी जागरण का आशीर्वाद देता है। लेकिन आम तौर पर गुरु ऐसा नहीं करते हैं। कारण है: वे केवल गुरु हैं, माँ नहीं। जब आप गुरु पूजा करते हैं, तो आप वास्तव में क्या करते हैं? आपको यह समझना चाहिए। इसका मतलब है कि मेरी पूजा के माध्यम से आप अपने अंदर स्थित गुरु के सिद्धांत की पूजा करते हैं। सिद्धांत तुम्हारे भीतर है: Read More …