Knots On The Three Channels Caxton Hall, London (England)

                                         “तीन नाड़ियों की ग्रंथियां”  कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 2 अक्टूबर 1978 यह जो ब्रह्म का तत्व है, यह सिद्धांत है उस स्पंदित भाग, हमारे ही अंदर निहित शक्ति का तत्व, जिसे हमें महसूस करना है, और जो हर चीज में स्पंदित होती है। यह सहज योग के साथ होता है, बेशक, कुंडलिनी चढ़ जाती है, लेकिन यह इसका अंत नहीं है,  क्योंकि, मानव वह साधन है जिसमें यह प्रकाश प्रकट होता है। लेकिन एक बार प्रकट होने के बाद यह जरूरी नहीं है कि यह हर समय ठीक से जलती रहे। एक संभावना है, ज्यादातर यह एक संभावना है, कि प्रकाश बुझ भी सकता है। अगर कोई हवा का रुख इसके खिलाफ है, तो यह बुझ भी सकता है। यह थोड़ा कम भी हो सकता है। यह बाहर आ सकता है यह झिलमिला सकता है, यह थोड़ा कम हो सकता है। क्योंकि मनुष्य, जैसे कि वे हैं, वे तीन जटिलताओं में पड़ गए हैं। जैसे ही वे मनुष्य बनते हैं, ये तीन जटिलताएं उनमें शुरू होती हैं। और तीन, इन तीन जटिलताओं के कारण, किसी व्यक्ति को यह जानना होगा कि यदि आपको उससे बाहर निकलना है, तो आपको कुछ निश्चित गांठों को तोड़ना होगा – उन्हें संस्कृत भाषा में ग्रन्थि कहा जाता है – जो आपको यह मिथ्या दे रही है – मिथ्यात्व है। मिथ्यात्व यह की,  हम सोचते हैं कि, “इस दुनिया में, आखिर सब कुछ विज्ञान ही है, और जो कुछ भी हम देखते हैं और उससे परे सब कुछ विज्ञान है …” और वैसी सभी प्रकार Read More …