Agnya Chakra means ‘to order’

Caxton Hall, London (England)

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                       “आज्ञा चक्र”

 केक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 18 दिसंबर 1978।

आज हम छठे चक्र के बारे में बात कर रहे हैं जिसे आज्ञा चक्र कहा जाता है। ‘ज्ञा’,  शब्द का अर्थ ‘जानना’ है, आज्ञा यानी जानना है। और ‘आ’ का अर्थ है ‘संपूर्ण’।

आज्ञा चक्र का एक और अर्थ भी है। आज्ञा का अर्थ है ‘आज्ञाकारिता’ या ‘आदेश  करने के लिए’। इसका मतलब दोनों चीजों से हो सकता है। यदि आप किसी को आदेश देते हैं तो यह एक आज्ञा है और जो आदेश का पालन करता है वह आज्ञाकारी है। वह जो आज्ञा देता है।

मानव में छठा चक्र तब बनाया गया जब उसने सोचना शुरू किया| विचार भाषा में व्यक्त होते हैं| 

यदि हमारे पास भाषा ना हो तो हम विचार नहीं कर सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे अंदर विचार नहीं आ रहे| यदि हम इसे व्यक्त नहीं कर पा रहे इस का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि हमारे अंदर विचार प्रक्रिया नहीं चल रही| लेकिन उस सूक्ष्म अवस्था में जब हम तक विचार आ रहे हैं वे भाषा में नहीं हैं, इसलिए वे हम तक प्रसारित नहीं हैं, और इसलिए यदि हमारे पास भाषा ना हो तो हम नहीं समझ सकते कि हम क्या विचार कर रहे हैं|  

आपने देखा होगा कि इसीलिए बच्चे जो चाहते हैं वो हमें नहीं बता पाते क्यों कि वे जो चाहते हैं उसे कह नहीं पाते| वे पेट में भूख महसूस करते हैं और माना कि पानी या अन्य कुछ माँगना चाहते हैं, लेकिन वे ऐसा हमें नहीं कह पाते, और इसीलिए वे विचार नहीं कर पाते जिस बारे में भी उन्हें व्यक्त करना हो|  

लेकिन बाद जब आप सोचना शुरू करते हैं और उसे भाषा में प्रयुक्त करते हैं, वह भाषा चित्र में दिखाए गए बाएं हिस्से में दिमाग में संगृहीत कि जाती है साथ ही उस पीले और काले रंग के दांयी तरफ, तब यह बाद में विचार तरंगों के रूप में वापस हम तक आती है| जैसे कोई हम से बातचीत कर रहा हो|  

लेकिन भाषा के भी शुरू होने से पहले, हम इसे प्रेरणा अथवा विचार प्रक्रिया कह सकते हैं, बहुत शुरूआती अवस्था में यह हमारे पास निश्चित रूपों में आती हैं, और ये रूप धुप छाँव में होते हैं| वे भाषा में नहीं अपितु धुप-छाँव में होते हैं| और सहज योग में आने के बाद जब आप अपने विचारों में गहनता में जाते हैं तो आप पायेंगे कि वे अन्य कुछ नहीं वरन आज्ञा चक्र को घेरे धुप-छाँव है| 

एक के बाद एक धुप फिर-छाँव फिर धुप, जैसे घूमता हुआ लाइट हाउस, वे हमारे दिमाग में एक तरह की आकृति बना देते हैं| अब हमारे द्वारा बहुत प्रारंभिक अवस्था में ही इन आकृतियों को भाषा में ढाल दिया जाता है और ये एक तरीके से भाषा के प्यालों में भर दिए जाते हैं और इन प्यालों को मस्तिष्क में सुरक्षित रखा जाता है और इस तरह यह हमें प्राप्त होते हैं| जब हम सोचते हैं वास्तव में हम समझ पाते हैं क्योंकि,  यह भाषा हम तक आती है| 

तब फिर जानवरों के साथ कैसा होता है? वे विचार करते हैं या नहीं? उन्हें विचार आते हैं, एक प्रेरणा लेकिन वे बस उस पर विचार ही करते नहीं रहेंगे| अब, जब वे मानवों के साथ रहना शुरू कर देते हैं तब ये प्रेरणा उन तक शब्दों में भी आना शुरू होती है| इसलिए हमारी तरह ये प्रेरणाएं फिर से विचारों में भी जाती है| उदाहरण के लिए, आप किसी को कोई नाम देते हैं, जैसे आप उसे कहें ‘टॉम’या कुछ अन्य- आप उसे पुकारते हैं एक कुत्ते को तो वह अब जानता है इस शब्द को कि, मुझे बुला रहे हैं| तो वह स्वयं को इस शब्द से जोड़ लेता है| लेकिन जब उसके पास यह शब्द नहीं होता, जब वह केवल एक पशु होता है, बस वह वहाँ है, वह सोचता नहीं है| इसीलिए वे बहुत सहज होते हैं और हम नहीं होते| पशु अत्यंत सहज होते हैं क्योंकि वे हमारी तरह सोचते नहीं हैं| और इसी ने मानवों के लिए सबसे बड़ी समस्या उत्पन्न कर दी है; कि विचारों के परे कैसे जाएँ| 

यह जरा जटिल बात है क्योंकि शायद मैं जिसे स्पष्ट देख पाती हूँ, उस तरह आप प्रकाश नहीं देख सकते| और फिर रौशनी भाषा बन जाती है, और फिर भाषा, हमारे अनुसार, हमारे विचार बन जाती है| लेकिन वास्तव में ये विचार हम पर संस्कार बन जाते हैं और वे प्रेरणास्पद बातें नहीं हैं| वे अंदर से नहीं आ रहे होते हैं इसीलिए वे सहज नहीं हैं|

उदहारण के लिए मैं अभी यहाँ बैठी हूँ, अब मानव के तौर पर मैं मौन नहीं रह सकती| मैं किसी बारे में सोचती रहूंगी| मैं सोचती रहूंगी कि, “मैं क्या कहने जा रही हूँ?” फिर, “मुझे यह कहना चाहिए या नहीं?” “यदि मैं ऐसा कहूँ तो कैसा, क्या यह ठीक रहेगा?” “यह उनके दिमाग तक पहुंचेगा या नहीं”? हर प्रकार के विचार मेरे दिमाग में आते रहेंगे| फिर एक तरफ से मैं खुद से प्रश्न पूछती रहूंगी| दूसरी तरफ से उत्तर आते रहेंगे,”ठीक है तुम यह कहो और यदि तुम इस तरह कहती हो वे तुम्हारी प्रशंसा कर सकते हैं| इस या उस तरह जाओ वे समझेंगे”| इस तरह आप देखिये| तो हमारे जीवन भर के अनुभवों के माध्यम से दिमाग में चयन प्रक्रिया (छंटाई)चलती जाती है|   

लोगों से व्यवहार करते हुए, दूसरों से अनुभव पाते हुए जो भी जीवन में हमारे अनुभव रहे हैं :वे सभी हमारे दिमाग में संस्कार बन जाते हैं और पूरी बात ही विचार प्रक्रिया बन जाती है, जो विचारों और कार्य के बीच संवाद के माध्यम से हम तक आती है, कार्य और विचार, जो केवल तरंगों को शुरू करती है-क्या कारवाई करना है, क्या विचार प्रस्तुत करना है, इसे कैसे हल करना है और हम सोचते हैं कि हम स्वयं का विश्लेष्ण कर रहे हैं| यह एक बहुत ही सतही बात है| वास्तव में आप कोई विशलेष्ण नहीं करते हैं चाहे कुछ भी हो, आप नहीं करते| जैसा एक अन्य दिन मैंने तुम्हे कहा कि, तुम कुछ नहीं करते हो|  

तो आपकी सोच कुछ और नहीं बल्कि एक क्रिया-प्रतिक्रिया चल रही है। क्योंकि यहाँ तक कि समुद्र भी, जो इतना गहरा है, इतना शांत है – जब यह तट को छूता है तो इसमें एक क्रिया और प्रतिक्रिया होती है। उसी तरह जब आप किसी चीज़ को देख रहे होते हैं, चूँकि आपका चित्त बाहर होता है, तो तुरंत एक विचार तरंग पैदा हो जाती है, जो वापस चली जाती है और आपको, जो भी आप उस विशेष चीज़ के बारे में जानते हैं इसके बारे में सभी छवियां देती है और,  यह सोचा प्रक्रिया के रूप में आप के लिए वापस आती है।

यह हर समय चल रहा है, और यह इतना पागल कर देने वाला हो सकता है कि हम अपने विचारों को रोक नहीं पाते हैं: यह सिर्फ पागल की तरह चलता है। आप नहीं जानते, आप सो नहीं सकते क्योंकि विचार आ रहे हैं। कभी-कभी वे भयानक हो सकते हैं, कभी-कभी वे संतुष्टिदायक होते हैं, कभी रोमांटिक, कभी बिल्कुल नकारात्मक, कभी-कभी बहुत सकारात्मक। कभी-कभी आपको लगता है कि “मुझे यह करना चाहिए,” कभी-कभी आपको लगता है कि “मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए”। लेकिन जब आप वास्तव में कर रहे होते हैं – आप विचार नहीं करते। यह आश्चर्य की बात है, हम कभी इस बात पर ध्यान नहीं देते हैं कि जब हम उस विशेष कार्य को कर रहे हैं, माना कि, मैं कहती हूँ, मैं बोलने जा रही हूँ, ये बातें। अब जब,  जो मैं बोलने वाली हूँ उसके बारे में मैंने सोचा था,  माना कि,  बोलने के 10 मिनट पहले मैंने सोचा था, जब मैं बोल रही हूँ उस वक्त मैं वह सोच नहीं रही हूँ जो बोलना मैंने तय किया था| क्योंकि मुझे लगता है कि उस समय मैंने अपने मस्तिष्क में सोचने की उस प्रक्रिया को  बनाया है और इसे कहीं संग्रहीत किया है और फिर, अब, जब मैंने यह भाषण शुरू किया है, तो यह सीधा ही मुझ तक आ रहा है।

इस प्रकार मनुष्य ने एक दुखदायी प्रक्रिया विकसित कर ली ,बहुत ही दुखदायी| और यह प्रकट होती है इन दोनों से, एक बाईं ओर है जिसे हम अहंकार कहते हैं, जो इस तरफ चला गया है, और दाईं ओर जिसे हम प्रति-अहंकार कहते हैं। द्द्न्यी तरफ प्रति-अहंकार में सभी संस्कार conditioning है, जो कि हमें, भय, खतरे, संभावनाएं देता है। जो भी हमारे पूर्व अनुभव हैं। जैसा कि लोग कहते हैं कि जो लोग दूध का जला छांछ भी फूंक कर लेगा क्योंकि आप जल चुके हो, आप जानते हैं कि किसी तरल से आप जल चुके हैं, तो आपको लगता है कि यह भी आपकी जीभ को जला सकता है। तो आप ऐसा करने (फूंक मार कर पीने) की कोशिश कर सकते हैं। यह इतना सहज है कि उस समय आपको लगता है कि, “ओह यह बहुत सहज है”, लेकिन दरअसल ऐसा नहीं है। यह आपके अनुभवों में पहले से संग्रहीत किया गया है कोई चीज़ जिससे आप डरते हैं और इस लिए आप ऐसा करते हैं|

यदि एक बार हम यह अहसास कर लें कि, हमारे अस्तित्व के लिए यह विचार प्रक्रिया बिलकुल जरूरी नहीं है| यदि आप मनुष्य के रूप में अस्तित्व में रहना चाहते हैं,  भविष्य के बारे में या अतीत के बारे में कोई विचार करने की आवश्यकता नहीं है। जानवर परवाह नहीं करते। उदाहरण के लिए जानवरों को पता है कि वे जंगल में जा रहे हैं। अब अचानक उन्हें पता चलता है कि वहाँ से कोई दूसरा जानवर आ रहा है और उन्हें जानकारी होती हैं कि आप वहाँ जाते हैं। अब उस जानवर के बारे में सोचने का क्या फायदा जो आने वाला है? मान लीजिए कि वह नहीं आता है तो यह सोचना कितना व्यर्थ है। लेकिन उनके पास यहाँ एक छेद है और उन्हें हमारी तरह कोई समस्या नहीं है क्योंकि उनके पास एक छेद है पूरी चीज़ बाहर निकल जाती है। वह यहां एक मिनट से ज्यादा नहीं टिकता है लेकिन आप उन्हें भी संस्कारित (condition कर सकते हैं। अनुभवों से वे संस्कारित conditioned होते  हैं। अन्य जानवरों और चीजों के बारे में अब तक के अनुभवों से, वे संस्कारित  होते हैं। और वे उसी के अनुसार कार्य करते हैं।

इसलिए हमारे और उनके बीच एक जबरदस्त अंतर है कि हम हर चीज के बारे में सोचते हैं। मेरा मतलब है, हम सोचते हैं कि बैठकर किसी भी बारे में सोचना बहुत बड़ी बात है। और हमें लगता है कि इसके बारे में बैठ कर सोचना बहुत बुद्धिमानी है।  कोई भी समस्या आती है आप सोचते है कि, “बेहतर है बैठ कर और इसके बारे में सोचो।” लेकिन अब एक समस्या आने पर हम क्या करते हैं? हम उसके संबंध में  जो कुछ भी पहले करते रहे हैं और जो भी हमारे अनुभव रहे हैं, उस तरह से सोचते हैं| उसी तरह वे सहज योग के बारे में सोचना चाहते हैं।

अब आप सहज योग के बारे में सोच नहीं सकते। सबसे पहले आप सहज योग में शुरूआत होने पर निर्विचार हो जाते हैं। आप सोच भी नहीं सकते। लेकिन यह एक  घटना है जिसके बारे में आप सोच नहीं सकते। यह एक जीवंत घटना है, सोच एक निर्जीव गतिविधि है, यह एक जीवंत गतिविधि नहीं है। हम में जो भी मृत है वही हमारे पास विचार के रूप में वापस आता है। प्रेरणा जीवंत है, सोच नहीं। प्रेरणा विचार से बहुत अलग है। उदाहरण के लिए, पुस्तकें पुस्तकालय में हैं, जो कुछ भी हमने सोचा है या उसे प्राप्त किया है या अनुभव किया है – यह किताबों में है। हमारे लिए जो भी नया आ रहा है वह प्रेरणा है। अब बस यह पता करें कि आप कितनी नई चीजें सोच रहे हैं, शायद एक वाक्य भी नहीं। अधिकतर आप कहते हैं कि “इस सज्जन ने ऐसा कहा,” “इस सज्जन ने ऐसा कहा,” “उस सज्जन ने ऐसा कहा”, या “मैंने ऐसा कहा”। यदि आप सोच सकते हैं जोकि अभी-अभी आपके भीतर उत्पन्न हो रहा है, तो आपको इसके लिए सोचना नहीं है, यह सिर्फ प्रकट होता है, यह आपके अंदर है, यह सिर्फ उभरता है और खुद को अभिव्यक्त करता है। तो वह सहज जीवंत चीज है। जिसे हम प्रेरणा कहते हैं: वह उस ज्ञान की अनायास झलक है जो हमें प्राप्त होता है। लेकिन जिस बारे में भी हम सोचते रहे हैं, वह सब निर्जीव चीज़ों का व्यवहार है।

तो यह ईसा-मसीह का एक केंद्र है। वह आज्ञा के चक्र में रहते है, और वह है, देवी पुराण में अगर आप पढ़ते हैं, तो वह बहुत-बहुत लंबे समय पहले पैदा हुऐ थे, बहुत पहले उनकी रचना कि गयी थी और कैसे वे महाविष्णु के रूप में विकसित हुए, आप स्वयं इसे पढ़ भी सकते हैं चूँकि यह एक बड़ा अध्याय है और मैं चाहती हूं कि आप सभी इसके बारे में जान सकें और पढ़ सकें और पता लगा सकें कि वह महाविष्णु के रूप में कैसे विकसित हुए। यह बहुत रोचक है। चूँकि ये सभी बातें संस्कृत भाषा में लिखी गई थीं, इसलिए हमें यह नहीं कहना चाहिए कि महाविष्णु बाइबल में नहीं थे, क्योंकि खुद बाइबल एक ही व्यक्ति द्वारा अथवा एक ही बार में नहीं लिखा गया था। इस तरह वह भाग ईसा-मसीह के रूप में उनके धरती पर आने से पहले ईसा-मसीह की रचना का खंड है |

वास्तव में ईसाइयों को उनके बनने के बारे में कुछ भी पता नहीं है: वह कैसे क्राइस्ट बने या क्राइस्ट या एक बेटे को नीचे आने की क्या जरूरत थी [और] क्यों नही खुद ईश्वर ही यह काम कर सकते। और यही कारण है कि मैं आपसे खुद अपने लिए महाविष्णु के अवतार के बारे में पढ़ने का अनुरोध करूंगी जिसके द्वारा आपको पता चलता है कि ईसा-मसीह का जन्म क्यों हुआ था।

और यह सबसे महत्वपूर्ण अवतार है क्योंकि वह तत्व है, वह सृष्टि का तत्व है, तत्व , जैसा कि वे इसे संस्कृत भाषा में कहते हैं, वह तत्व है। गणेश हालांकि, मूलाधार में रहते हैं, धीरे-धीरे विकसित हो कर इस स्तर पर ईसा मसीह बन जाते हैं। लाल चक्र से इस चक्र तक आकर वह ईसा-मसीह बन जाता है। वह तत्व है।

अब तत्व क्या है? हमारे भीतर हमारा तत्व क्या है? कह सकते हैं,  कुंडलिनी है|  इसमें (माइक्रोफ़ोन  में) विद्युत इस का तत्व है। उसी तरह से रचना,  यदि आप इसे इस तरह से लेते हैं, तो वह इस पूरी रचना का तत्व और आधार है। वह सार, सृष्टि के सार का प्रतिनिधित्व करता है।

जैसे हम कह सकते हैं कि, हमारा परिवार है, पति और पत्नी और बच्चा है। अब बच्चा पति और पत्नी का सार है, वह घर का, परिवार का सार है। पूरी चीज उसके लिए निरंतर बनी हुई है, उसके लिए ही बनाई गई है। जब तक उनके पास बच्चा नहीं था तब तक उस घर का कोई अर्थ नहीं था, उनके जीवन का कोई अर्थ नहीं था। लेकिन जब उनका बच्चा हुआ तो उन्हें एक उद्देश्य प्राप्त हुआ। उसी तरह, ईसा-मसीह ही सार है, वही तत्व है।

वह ॐ कार है जैसा कि लोग कहते हैं। वह पहली ध्वनि है, पहली ध्वनि जो बनाई गई थी – ॐ – जब आदि पिता और आदि माँ अलग हुए, उन्होंने यह ध्वनि बनाई। और वह वो ध्वनि है जो सर्वव्यापी शक्ति में भरी हुई है और देखभाल करती तथा आधार देती है। वास्तव में ज्यादा वह आधार ही है क्योकि देखभाल वाला कार्य पिता, या माता संभालते हैं। लेकिन वह सारे ब्रह्माण्ड का आधार है।

और चूँकि वह सिर्फ सार है, सार कभी नहीं मरता है। जैसे कहो कि,  मेरा सार मेरी आत्मा है, यह कभी नहीं मरेगा। शरीर मर जाता है या सृष्टि मर जाएगी लेकिन सार को तो होना ही है। अगर सार खो जाए तो कुछ भी नहीं रह सकता। इसलिए वह सबसे महत्वपूर्ण अवतार है, क्योंकि वह आधार है।

अब इस अवतार को हमारे आज्ञा चक्र में रखा गया है, यहाँ मध्य में, जहाँ दृष्टी तंत्रिका एक दूसरे को इस तरह से पार करते हैं। मध्य में एक बहुत ही सूक्ष्म बिंदु होता है जो दोनों तरफ इस तरह गतिशील रहता है और यह दो ध्वनियाँ बनाता है ‘हम’ क्षम ‘,’ हम ‘क्षम’, ‘हम’ क्षम ‘। ‘हम’ दाहिने बाजू की ओर है जहां आपने देखा है कि प्रति-अहंकार वहां है और क्षम ’बाएं हाथ की तरफ जहां अहंकार है। अब ये दो ध्वनियाँ दो तरह के कंपन पैदा करती हैं। ‘हम’ ध्वनि कंपन पैदा करती है, जो आपको अहसास देती है कि, “मैं हूं, मैं हूं”, ‘मैं’ हूं, ‘यह हमारी अस्तित्व शक्ति से आता है कि, हम जानते हैं कि हमें इस दुनिया में रहना है, हम मरने नहीं जा रहे। कोई भी इंसान जो खुद को मारने की कोशिश करता है वह असामान्य है। आम तौर पर हर इंसान… इन्सान ही क्यों हर जानवर या कोई भी जीवित चीज अपने जीवन को बनाए रखने की कोशिश करती है? ऐसा ‘हम’ की शक्ति के माध्यम से है, वह – ‘मैं’ हूं। अब बायीं ओर की नाडी पर का प्रति-अहंकार और दायीं ओर अहं क्षम है। ‘

लेकिन अब मैं आपको मस्तिष्क के दाहिने हाथ की ओर – प्रति-अहंकार के बारे में बताऊंगी। इस प्रति-अहंकार में जब आप इतनी सारी चीजों से जकड़े होते हैं, तो आप भयभीत होते हैं और आप चिंतित होते हैं क्योंकि ये अनुभव आपको उस प्रकार का व्यक्ति बनाते हैं जिसके मन में भय होता है। और यह डर सब आपके प्रति-अहंकार में बसा है। आप कह सकते हैं कि यह आपके विकास की अमीबा वाली अवस्था से ही शुरू होता है  और आज भी, वहाँ संग्रहीत किया जा रहा है। आप पुलिस से डरते हैं, आप उससे डरते हैं, आप इससे डरते हैं। कुछ लोग इन चीजों से नहीं डरते हैं, बल्कि किन्ही अन्य चीज से डरते हैं, क्योंकि जो भी आपकी परिस्थितियां हैं, जो भी आपके अनुभव हैं, सभी यहां संग्रहित हैं।

इस से भी आगे जब कोई ड्रैकुला की किताब पढ़ता है तो उसे ड्रैकुला शब्द से डर लगता है लेकिन जो बच्चे नहीं पढ़ते हैं उन्हें पता नहीं होता है कि ड्रैकुला क्या है। यदि आप कहें कि ड्रैकुला आया है, तो वे कहेंगे, “ठीक है, हम उस पर एक नज़र डालते हैं!” लेकिन वे बच्चे जिन्होंने ड्रैकुला के बारे में पढ़ा है, वे सचमुच भयभीत होंगे और वे कहेंगे , “हे भगवान, ड्रैकुला आ रहा है, कुछ भयानक होने वाला है!”

इसलिए, आपने जो भी पढ़ा है, जो कुछ भी आपने अनुभव किया है, जो कुछ भी आपके पास है – सब कुछ प्रति-अहंकार में संगृहीत है। इस प्रकार, इस केंद्र में स्थित प्रति-अहंकार यह संदेश भेजता है कि, “मैं हूं, तुम हो, तुम हो”, ‘हम’, ‘हम’: “डरो मत, डरो मत”, “आप हैं ”।

इसलिए जो लोग मेरे पास आते हैं, और आपने कुछ लोगों को देखा है जो मेरे पास आते हैं वे प्रति-अहंकार समस्याओं के शिकार हुए होते हैं। और इन लोग में  … वास्तव में केवल इस स्तर पर, आप वास्तव में दो प्रकारों के बीच भेदभाव कर सकते हैं: एक जो बहुत आक्रामक हैं, दूसरे वे जो हमें अधीनस्थ, भयभीत कहना चाहिए।

ये लोग जब मेरे पास आते हैं, तो मैंने देखा है कि, वे रोते-चले जाते हैं, “माँ तुम जानती हो कि ऐसा हुआ है,” और सचमुच तो मैं उनसे बात कर कर के थक गई। और इस तरह के बहुत सारे हैं कि सहज योगियों के रूप में वास्तव में आपको उन पर ध्यान देना पड़ेगा क्योंकि आपको उनसे निपटना होगा, कैसे उनका प्रबंध करना है और इसे कैसे कार्यान्वित करें। अब उस समय यदि कोई सहज योगी कहता है, ‘हम’, ‘हम’, ‘हम’, ‘हम’, एक सहज योगी कहता हैं, अगर वह ऐसा कहता है, तो वायब्रेशन भय को दूर कर देगा। यहां तक ​​कि अगर आप किसी भी डर से गुजर रहे हैं और आप घूम रहे हैं और आपको लगता है कि वहाँ भय है, तो आप सिर्फ ‘हम’, ‘हम’, ‘हम’ कहें। अब यह कहने के साथ ही वायब्रेशन इस पक्ष को बहुत अच्छी तरह से साफ कर देंगे। इसके अलावा, यह वह तरीका है जिससे आप ‘हम’ कहकर ईश्वरीय मदद प्राप्त कर सकते हैं।

अब ‘हम’ और ‘क्षम’ के बारे में बहुत सी बातें हैं लेकिन जैसा कि आप जानते हैं कि समय कम है, इसलिए मैं इसके बारे में अधिक विस्तार में नहीं जाना चाहती। लेकिन मैं कहूंगी कि मस्तिष्क के,  दाएं हाथ के लिए मंत्र ‘हम’ है और बाएं हाथ के लिए ‘क्षम’ है।

दायीं बाजू नाडी पर अहंकार होता है, आप जानते है कि, जो वास्तविक समस्या है,  जो कि वास्तविक भार है जिसका आपको सामना करना होगा, मेरा मतलब है कि, यदि मैं यहाँ-वहां छोटी सी बात कहूँ तो मैं क्या पाती हूँ कि सारी ही बात इस तरह मेरे सर पर आती है| तो एक भारी अहंकार का हल क्या है? केवल दूसरों को क्षमा करके ही भारी अहंकार पर विजय प्राप्त की जा सकती है।

जिन्हें अहंकार है उन्हें सीखना चाहिए, अगर उन्हें लगता है कि उन्हें चोट लगी है, तो उन्हें कहना होगा, “क्षमा किया।” फिर दूसरे व्यक्ति ने उन्हें चोट पहुँचाई, कहा, “क्षमा किया।” और न केवल क्षमा करें बल्कि क्षमा मांगें। दोनों चीजों को किया जाना चाहिए, अधिक बार क्षमा मांगे| यदि आपको बहुत अधिक अहंकार है तो आपको क्षमा मांगनी होगी। बहुत जरुरी है। क्योंकि अगर आपके पास बहुत ज्यादा अहंकार है तो इसका क्या मतलब है? यह कि आपने इसे बहुत अधिक लाड़ किया है। इसका मतलब है कि आपने इसका बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया है। आप लोगों पर हावी हो गए हैं और इसीलिए आपको इस तरह का अहंकार है। यदि आपके पास इतना अहंकार है, तो आपको अपने दिल में  हर समय नम्र बनने की कोशिश करनी चाहिए।

अब दिल में आत्मा का वास है। अहंकार, एक व्यक्ति में बहुत अधिक अहंकार, आपको हमेशा उस आत्मा से दूर ले जाता है। यही कारण है कि यह कहा जाता है, “अपने दिल में विनम्र बने।” इसका कारण यह है, कि आपके हृदय में आपका वह हिस्सा (आत्मा)रहता है जो आपके द्वारा अपने अहंकार को फुलाने के बाद पूरी तरह से उपेक्षित या विस्मृत हो जाता है। लेकिन अहंकार की अपनी सीमाएं हैं, वह बेवकूफी और मूर्खता में समाप्त हो जाती है। आप किसी भी व्यक्ति को, जो अहंकारी है और जो अपने ही स्वयं के बाजे बजा रहा है, आपको तुरंत पता चल जाएगा क्योंकि वह बेवकूफ होगा, यह समझे बिना कि वह क्या कर रहा है, वह ऐसी बेवकूफी कर रहा होगा कि आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे, खासकर बच्चे, “इस व्यक्ति में ऐसी क्या बात है ? काफी अजीब लगता है! ” और फिर अपनी ही मूर्खता से व्यक्ति का सामना होता है  – फिर वह खुद को देखता है सोचता है कि, “हे भगवान! मैं इतना मूर्ख कैसे हो गया? ”

लेकिन आप मूर्ख हो जाते है क्योंकि आप भगवान के अस्तित्व और विराट से अपने रिश्ते को भूल जाते हैं। आप सोचते हैं, “मैं अपने दम पर हूं। मुझे ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए? इसमें क्या गलत है, क्या गलत है? मुझे ये काम करना चाहिए। ” मेरा मतलब है कि इस देश में जिस तरह से लोग चीजों के लिए लड़ रहे हैं, मेरा मतलब है, आपको, किसी को भी, मेरा मतलब है, उन तथाकथित विकासशील देशों को यह समझ में नहीं आ सकता है: इन लोगों के साथ ऐसा क्या हो रहा है? क्योंकि एक अन्य दिन मेरा दामाद “लव” एक लेख पढ़ रहा था कि लोग अब यह माँग कर रहे हैं कि दामाद को सास से शादी करने की अनुमति दी जाए (हँसते हुए), और वह समझ नहीं पाया कि कैसे लोग एक साथ इकट्ठा हो कर और इस तरह की बेतुकी मांग कर सकते हैं। वो तुम्हारी माँ हैै। आप ऐसा कैसे कह सकते हैं? मेरा मतलब है कि यह लोगों के लिए एक असंभव बात है, सामान्य लोगों के लिए ऐसा सोचना भी, कि दामाद सास से शादी कर सकता है। और इसके बारे में कानून बनाने और इसके बारे में बात करने जैसा क्या है। यह बहुत कठिन बात है।

इस देश में हम हर तरह की बेवकूफी कर रहे हैं, जो वाकई हर किसी को हँसी से लोटपोट कर देती है। हमारे श्रीमान अहंकार साहचर्य के कारण है।

यह समझना आसान नहीं है कि वह हमें कैसे बेवकूफ बनाता है। यह हर समय हमें बेवकूफ बनाता है और फिर हम सोचते हैं कि “इसमें गलत क्या है?” एक अस्सी साल का आदमी बीस साल कि लड़की के पीछे दौड़ रहा था| और बीस साल की लड़की इस अस्सी साल के राजनेता समझे जाने वाले आदमी को बेवकूफ बना रही है और कहीं पर उसकी मूर्ति खड़ी कि जाती है। ऐसा कैसे हो सकता है? यह केवल अहंकार है जो आप से ये सभी निरर्थक और बेवकूफी की चीजों को करवाता है।

एक बार जब आप सहज योग में होते हैं, तो कभी-कभी आप नहीं जानते कि, अपनी हंसी को कैसे नियंत्रित करें, जिस तरह से लोग मूर्ख हैं, बेहद मूर्ख हैं। और यह ऐसा ही  है; यह मूर्खता,  पूर्ण मूर्खता पर समाप्त होता है। मेरा मतलब यह है कि यदि आप एक उपन्यास लिखना चाहें तो आपको ऐसे सुंदर चरित्र नहीं मिलेंगे जैसे आप अपने आसपास  पाते हैं| जब आप उन्हें सुनते हैं। और आप चौंक जाते हैं, “हे भगवान यह क्या चल रहा है!” और बहुत शर्मिंदा करने वाला,  बेहद शर्मनाक। और वे अपने अहंकार के साथ इतने मूर्ख हो जाते हैं कि व्यक्ति समझ नहीं सकता है कि विचार कर रहा इन्सान कैसा है, क्योंकि सोचने से तुम अपना अहंकार पा लेते हो, मूर्ख हो जाते हो।

जिस व्यक्ति का अहंकार इस तरह से पूर्ण रूपेण विकसित होता है, उसमें कोई विवेक नहीं होता है। अगर किसी के पास ऐसा अहंकार है उसमें विवेक नहीं है। आप देख सकते हैं कि वह नहीं जानता कि विवेक क्या है। वह ऐसे अपरिपक्व तरीके से व्यवहार करता है। वह एक बुजुर्ग व्यक्ति हो सकता है, किसी का परदादा लेकिन जैसे ही वह मुँह खोलता है आप को उससे धक्का लगता है । आप सोचते हैं कि यह जोकर कहां से आया है? परिपक्वता का पूरी तरह से अभाव है।

एक अन्य दिन किसी ने मुझसे कहा कि, “माँ, ऐसा कैसे है कि, हमारे माता-पिता इतने मूर्ख हैं और हम भगवान को खोज रहे हैं? और बुजुर्ग लोग इतने मूर्ख हैं और हम भगवान को खोज रहे हैं? ” 

और फिर मैंने कहा, “नहीं, शायद युद्ध के कारण माता-पिता अशांत हैं। अधिकांश माता-पिता युद्ध के दौरान परेशान थे ”

और उन्होंने कहा,“ उनमें से अधिकांश इस तरह के हैं। और युवा लोग ईश्वर को खोज रहे हैं और बहुत समझदार है | हम नहीं जानते कि उनके साथ समझौता कैसे किया जाए क्योंकि वे ईश्वर को नहीं खोज रहे हैं। ऐसा क्यों है कि वे भगवान को नहीं खोज रहे हैं और हम भगवान को खोज रहे हैं? और अगर वहाँ कुछ खोज भी रहे हैं तो, वे बहुत ही कम हैं।”

 अब मैंने कहा कि यह युद्ध के कारण हो सकता है |

लेकिन किसी ने कहा, “तो अमेरिका के बारे में क्या? आप देखिए, अमेरिका में लोगों को युद्ध का इतना सामना नहीं करना पड़ा,“ 

उनके पास जो मूर्खता है वह कभी-कभी आश्चर्यचकित करती है। जैसा मैंने कहा, वैसा ही है, मनुष्य में अहंकार का विकास।

अब अहंकार वह चीज है जो आपको हर चीज के बारे में सोचने पर मजबूर कर देता है। उदाहरण के लिए, अब हमें यहां से बर्मिंघम जाना है, ठीक है। तो हम अब सोचते हैं, “मैं कैसे जाऊंगा?” सरल तरीका यह है कि मैं एक ट्रेन लूँगा या मैं एक कार लूँगा और चला जाऊंगा। यदि कोई आरक्षण की आवश्यकता नहीं है, तो मैं बस ट्रेन में चढ़ जाऊंगा या कार से जाऊंगा। यदि कार उपलब्ध है, तो मैं कार से या ट्रेन से जाऊंगा! विषय समाप्त, इसमें सोचने के लिए क्या है? लेकिन नहीं! फिर हमें अवश्य इसकी योजना बनानी है, मैंने प्रोग्राम किया है! अब मुझे जाना होगा!” आप स्टेशन पर जाते हैं और पाते हैं कि ट्रेन नहीं है क्योंकि कुछ दुर्घटना हुई थी इसलिए ट्रेन नहीं चल रही है। तो आप बिल्कुल परेशान हैं क्योंकि आपको लगता है कि “ट्रेन अब चली गई है क्या करना है?” उस परेशानी में आपको यह भी याद नहीं रहता है कि आपके पास कार है और अब आपको कार से जाना है। यह पूरी बात आपको अस्त-व्यस्त कर देती है क्योंकि आपकी योजना ट्रेन से जाने की थी और आपने सब कुछ प्लान कर लिया था, अब आप वहां नहीं पहुंच सकते और क्या होगा? अब तुम यहाँ बैठे हो और इसकी चिंता कर रहे हो। एक व्यक्ति जो सहज है वह क्या करेगा? “ठीक है पर निर्भर करता है, मैं ट्रेन या कार से जा सकता हूं जो भी उस समय मुझे लगता है।” वह तैयार बैठा है। तो वह ट्रेन पर जाता है, देखता है कि क्या ट्रेन है। यदि यह है, तो अच्छी तरह से एक जगह उपलब्ध है, वह इसमें सवार हो जाता है। अगर ट्रेन उपलब्ध नहीं है, ठीक है, वह घर आता है अपनी कार लेता है और चला जाता है।

तो अब आप ने लोगों को सूचित किया है कि आपको अमुक-अमुक पर मिलना चाहिए – वह भी वहाँ है,। तो वे लोग भाग रहे हैं, नीचे – उपर और वे भी स्टेशन पर होंगे। अब क्या बात है? भले ही वे स्टेशन पर हों आप स्टेशन पर जा कर उनसे मिल सकते हैं। आप ट्रेन से जाते हैं और आप उनसे मिल सकते हैं। इसमें इतना परेशान होने जैसा क्या है ? आप देखिए कि, आप हमेशा उनसे संपर्क कर सकते हैं। लेकिन जिस तरह से हम परेशान हो जाते हैं हमने बर्मिंघम जाने का पूरा कार्यक्रम बिगाड़ दिया है, जो एक बहुत ही खूबसूरत कार्यक्रम है जो हमें मिला है। हमें नए लोगों से मिलना है, हमें कई लोगों से मिलना है, हमें खुद आनंद लेना है। वह सब खत्म हो गया! क्योंकि हमने कुछ योजना बनाई थी और यह कारगर नहीं हुई, हम चुक गए हैं!

  ये सभी बातें हमें एक दुखी व्यक्ति बनाती हैं। और हम इतने दुखी हैं और इतने शिकायती और इतने ऊबे हुए हैं कि जो आपके बगल में हैं वे बस इससे तंग आ गए और वे कहते हैं, “अब चुप रहो! यदि आप बर्मिंघम नहीं जा रहे हैं, अगर आप नहीं जा रहे हैं तो मत जाओ। लेकिन अब मेरा सिर मत खाओ! कई का एक सामान्य अनुभव है। यह मिस्टर अहंकार है, वह ऐसा ही है, इसलिए वह नहीं चाहता कि आप खुश रहें। वह नहीं चाहता कि आप आराम करें। वह हर समय आपको विचार देता है और आपको बताता है, “यह करो और वह करो और तुम्हें इसे पूरा करना चाहिए और यह करना है। बेहतर होता आपने उस व्यक्ति को सूचित किया होता, उसके बारे में सावधानी बरतें। ”और यह इस तरह की बारीकियों में जाएगा कि कुछ भी विफल हो जाता है तो आप बर्बाद हो जाते हो क्योंकि आपकी नसें पहले ही तनाव ग्रस्त हो चुकी हैं और बिखर चुकी हैं। कुछ भी, यहां तक ​​कि असुविधा की एक बूंद भी आप में आती है या यहां तक ​​कि गड़बड़ी का एक पंख भी आ जाता है, आप बर्बाद हो गए होते हैं। और इसलिए हर कोई बडबडा रहा है कि, “हमें तनाव है। हमें समस्या है| क्यों?

इन सब कामों को करने से क्या फायदा? आप जानते हैं कि कोई फायदा नहीं है । लेकिन फिर आप ऐसा क्यों करते हैं? क्योंकि आपके पास एक बड़ा अहंकार है, यह आपको रुकने नहीं देता है। आप जो भी कोशिश कर सकते हैं ऐसा नहीं हो पायेगा। तो उसका क्या हल है? सुबह से शाम तक भगवान से क्षमा मांगे। दोनों ओर से अपने कान खींचो और कहो, “हे भगवान, मुझे माफ कर दो। हे भगवान, मुझे माफ कर दो। और, हे भगवान मुझे माफ़ कर दो, “तब अहंकार का यह गुब्बारा थोड़ा नीचे चला जाता है।

उसे हर सुबह, शाम को याद करें। ईसा-मसीह को याद करना आपके अहंकार को बहुत नीचे लाता है। उसने जो भी संभव था वह सब कुछ किया ताकि आप अपने अहंकार को विकसित न करें। वह सब कुछ जो संभव था। वह एक साधारण बढ़ई के बेटे के रूप में पैदा हुए थे, जो कि पूरे सामान्य परिस्थिति में रहते थे, खुद को परिदृश्य में पीछे रखते थे। उनका जन्म रोमन सम्राट के रूप में हो सकता था। वह वहां कोई भी हो सकता था। लेकिन नहीं, वह स्वयं सामान्य ही पैदा हुए थे। आप जानते हैं कि उन्होंने जन्म भी एक ऐसे स्थान पर लिया जहाँ आम लोग भी नहीं जन्म लेते हैं। लेकिन, प्रकाश वहां भी था। वह जहां पैदा हुए, वहां प्रकाश और आनंद था।

और हमें ज्ञान होना चाहिए कि, हमने आनंद को खो दिया है क्योंकि हम सर्वशक्तिमान ईश्वर को भूल गए हैं। जब हम उसे भूल जाते हैं, कि वह प्रेम है और वह आनंद है, तो स्वाभाविक रूप से आनंद भी भुला दिया जाता है। और फिर हम देखते हैं कि लोग बिल्कुल खुश नहीं हैं; उनके पास संपन्नता है, उनके पास पैसा है, उनके पास सब कुछ है, लेकिन फिर भी वे प्रसन्न नहीं हैं। हर समय वे इस तरह के झंझट में रहते हैं कि आप समझ नहीं पाते कि उनसे बात कैसे करें। यदि आप यह शब्द अथवा वह शब्द भी कहें तो वे नाराज़ होंगे। वे बिलकुल भी सभी सामान्य मनुष्यों में से नहीं हैं, वे बीमार लोग हैं। उनके अहंकार से बीमार।

क्षमा माँगना एक बहुत ही साधारण सी बात है , लेकिन हम ऐसा कितनी बार करते हैं? दिन में एक बार भी नहीं, महीने में एक बार भी नहीं, साल में एक बार भी नहीं। क्रिसमस के दिन भी अगर हम कह सकें कि, ” जो कुछ भी अब तक हमने किया है, उसके लिए हे भगवान हमें क्षमा करें।” यह हो जाएगा। लेकिन उस दिन हमें और भी शैम्पेन चाहिए उसे और भी माफ़ करने के लिए। इसलिए हमारे पास गपशप  तथा अन्य अहंकारी बातें होनी चाहिए और तब तक क्रिसमस का भी समापन आ जाता है|

यह अहंकार, पीला पक्ष, वह है जो आपके प्रति-अहंकार को बहुत अधिक दबाता है। ऐसा होता है। यह कभी-कभी इसे इतना दबा देता है कि एक व्यक्ति यह भूल जाता है कि वो जो बातें करते हैं उससे दूसरे लोग आहत हैं। इसके विपरीत, वे जो काटने वाली, जो चोंट पहुँचाने वाली या दुखदायी ऐसी बातें हों उन्हें कहने के तरीकों को विकसित करते हैं। वे इस तरह की बातें कहते हैं, मेरा मतलब है कि हर समय यदि आप देखें,गाँव से आया व्यक्ति यदि आकर देखे तो वह सोचता है कि क्या वे झगड़ा कर रहे हैं, वे क्या कर रहे हैं? मेरा मतलब पूरी चर्चा, यहां तक ​​कि संसद में भी, मुझे आश्चर्य हुआ कि जिस तरह से उन्होंने एक-दूसरे से बात की थी, कोई सांड भी दूसरे सांड से इस तरह से व्यवहार नहीं करेगा! यहां तक ​​कि एक कुत्ता आम तौर पर दूसरे कुत्ते पर इस तरह नहीं भौंकता है। दुनिया का कोई भी जानवर हर समय अपने साथी पर भौंकता नहीं है। इतना मैं आप को बता सकती हूँ कि, पूरी दुनिया में कोई भी जानवर। केवल मनुष्य यदि दो व्यक्ति हों हर समय वे “हा हा हा हा” हर समय, उस तरह से चल रहे हैं। ऐसा कैसे हो सकता है? उसका अहंकार और उसका अहंकार या शायद उसके ही दोनों अहंकार एक दूसरे को डस रहे हैं। और एक प्रकार का अजीब अहसास है कि “ओह मुझे इस चीज़ में महारत हासिल है, मुझे चीज़ मिल गई है, मुझे मुद्दा मिल गया है।” मैंने बात साबित कर दी है! ” लेकिन उसमें मैंने वह सब कुछ खो दिया है जो मेरे भीतर इतना सुंदर और इतना आनंददायी था।

वास्तव में एक समझदार व्यक्ति उस जगह से हट जाएगा जहां दो लोगों के बीच बहस हो रही है।

बहस एक मूर्खतापूर्ण व्यवहार का संकेत है। मैंने किसी भी बहस को किसी भी अंत तक पहुँचते नहीं देखा है। अगर ऐसा हो तो यह ठीक है, लेकिन ऐसा कभी नहीं होता है। क्योंकि, माना कि,  आप मुझसे सवाल पूछते हैं, मैं आपको जवाब देती हूं, ठीक है। यदि आपको उत्तर पसंद नहीं है तो इसे छोड़ दें। लेकिन अगर आप मेरे साथ अभी भी बहस करते हैं और मैं आपसे बहस करती हूं तो इसका अंत कहाँ होगा? बहस आपको किसी ज्ञान की ओर नहीं ले जा रही है बल्कि आपके अंदर एक बहुत ही भयानक अहंकार पैदा कर रही है।

संपूर्ण आधुनिक अवधारणा अहं-उन्मुख है। सभी पश्चिमी देश अहं-उन्मुख हैं। वे आपके अहंकार को विकसित करना चाहते हैं और उसे ऊँचा चढ़ाना चाहते हैं। कई अन्य तरीके हैं जिनके द्वारा वे ऐसा करते हैं। मैं इसके बारे में अधिक बात इसलिए कर रही हूं [क्योंकि] हम सभी लोग पश्चिमी और संपन्न  माने जाते हैं। बहुत समझदार और अग्रणी या भ्रामक माने जाते है, विकासशील देशों का मुझे पता नहीं है। इसलिए हमें खुद को समझना होगा कि हम कहां हैं जहां तक ​​हमारी चीजों की समझ है।

हमारे भीतर अहंकार को सहलाया जाता है यह काफी बड़े पैमाने पर है। वे इन सभी तथाकथित उद्यमों के लिए सारे समय आपके अहंकार पर काम करते हैं। उदाहरण के लिए एक महिला के लिए वे कहते हैं, “ओह, आपके पास इस तरह की एक कमर होना चाहिए और आपके पास इस तरह का चेहरा होना चाहिए और आपके पास होना चाहिए …” एक आदमी के लिए, “आपका शरीर इस तरह का होना चाहिए।” आपको मिस्टर यूनिवर्स होना चाहिए या आपको कुछ होना चाहिए। तो आदमी तुरंत इस पर कार्यरत हो जाता है।आपको अवश्य करना|  इस ठंड में मैंने बहुत सारे लोगों को सड़कों पर दौड़ते देखा है, मुझे समझ नहीं आया। पागल की तरह, आप जानते हैं, और उनमें से कुछ संसद सदस्य हैं! पूरी रात वे जागते रहते हैं और पूरा दिन इधर-उधर भागते रहते है। 

मैं बोली- क्या कर रहे हो? इसे करने की क्या आवश्यकता है? “

अच्छा स्वास्थ्य रखने के लिए, आपको इसे करना चाहिए।”

 अच्छा स्वास्थ्य रखने के लिए पागल जैसे काम न करें, एक संवेदनशील और बुद्धिमान व्यक्ति बनें। अच्छी सेहत रखने, ठीक होने के लिए विवेक प्राप्ति की जरूरत है ना की इस तरह की पागल अहं-केंद्रित चीजों कि प्राप्ति की इच्छा की जानी चाहिए|

तो, एक तरीका यह है कि अपने शरीर सौष्ठव के बारे में अपने अहंकार को उत्तेजित करें। फिर अहंकार होता है, तुम्हारे पास एक बड़ी कार होनी चाहिए। आप देखते हैं, लोग अपनी संपत्ति दिखाने की कोशिश करते हैं। आपके पास एक बड़ी कार है, तो वे उस के बारे में बता रहे हैं मेरा मतलब है कि वास्तव में वे मुझे जोकर की तरह दिखते हैं। वे सभी बस यही हैं | मेरा मतलब है,  मैं समझ सकती हूं कि कार यह एक सुविधा है  और अच्छी गुणवत्ता वाली कार, अगर कोई इसे खरीद सकता है, तो यह उसके पास होना चाहिए, क्योंकि एक खराब कार रखना एक सरदर्द है। तो, यह ठीक है। लेकिन कार होने से आप कुछ महान बन जाते हैं। भले ही आपके पास घर में भोजन नहीं हो, लेकिन आपके पास बहुत अच्छी कार होनी चाहिए। और ये सारे विचार आते हैं। फिर वे विज्ञापन देंगे – “यह आपके लिए बहुत अच्छी कार होगी।” यह आपके लिए क्या है? यह आपके अहंकार को सहलाने के अलावा और कुछ नहीं है। ये सभी विज्ञापन कुछ भी नहीं हैं जिसके द्वारा आपका अहंकार ऊँचा उठाया जाता है। ये सभी चीजें उन्होंने बनाई हैं।

अब अमेरिका में, अगर आप जाते हैं, तो हर चीज़ का हेंडल अलग डिजाइन का होना चाहिए, सब कुछ अलग होना चाहिए। हर चीज़ में इतना अंतर क्यों? आप सब कुछ इतना अलग क्यों करना चाहते हैं? क्या आप सोचते हैं कि इसमें कुछ सौंदर्य है? इसमें कुछ सौंदर्य भी नहीं है, लेकिन सिर्फ आपके अहंकार को बढ़ावा देना है। यहां तक ​​कि तथाकथित कला पारखी भी अहंकार-बढाने वालों के अलावा कुछ नहीं हैं। आपका स्टांप कलेक्शन, यह, वह – यह सब कुछ और नहीं बल्कि अहंकार चापलूसी  है। और जो समय की बर्बादी है, आप जरा इसके बारे में सोचें।

यह अहंकार की बात हमारे अंदर इसलिए आती है क्योंकि, जैस कि मैंने कहा सबसे पहले, पश्चिम में, जीना बहुत कठिन था, उन्हें प्रकृति से लड़ना था। और जब तुम्हें प्रकृति से लड़ना है तो तुम्हें उससे लड़ने के लिए अपने अहंकार को विकसित करना होगा। या वास्तव में, जब आप प्रकृति से लड़ रहे होते हैं, तो आपके भीतर अहंकार विकसित होता है। और फिर, एक बार वह गति आप में शुरू हो गई है तब, इसे नीचे लाना बहुत मुश्किल है। यह इतनी भयानक बीमारी है कि लोगों ने इसे अपने जीवन का एक हिस्सा मान लिया है।

तुम अपने अहंकार नहीं हो। आप नहीं हो। जब मैं कहती हूं कि आपको खुद को भगवान के सामने समर्पित करना होगा तो वे कहेंगे “माँ हम क्यों समर्पण करें?” ‘अपने आप’ का अर्थ है कि वह अहंकार जिसके साथ आप पहचाने जाते हैं। मैं यह नहीं कहती कि आप अपने विवेक का समर्पण करें। या मैं कह सकती हूं: अपने अहंकार को अपने विवेक के सामने समर्पित करो।

लेकिन इसे छोड़ना इतना मुश्किल है, क्योंकि हमने इसके साथ रहना सीख लिया है, इसके साथ अपनी पहचान बनायी है। बस हम अपने अहंकार के बिना जीवन के बारे में नहीं सोच सकते, हम बस नहीं कर सकते। और यह इस हद तक चला गया है कि हम यह भी महसूस नहीं कर सकते हैं कि हम कितनी क्रूरता में चले गए हैं। जैसे, “मुझे यह पसंद है, मुझे यह पसंद है।” आप किसी के घर जाते हैं और आप इस तरह कहते हैं: इस तरह की बात करना अशोभनीय है। यह व्यक्त करना कि, “मुझे पसंद है …”अशिष्ट है, आप कौन हैं? क्या तुम भगवान हो? “मैं यह चाहता हूँ। मझे वह चाहिए। मैं इस बारे में बहुत खास हूं। मैं बहुत… ”आप हैं कौन? बस अपने आप से एक सवाल पूछें, “मैं कौन हूं? मैं आत्मा हूं। मैं वह सनातन हूं। क्या मैं वह बन गया हूं? ”

इसके विपरीत हम अपने अहंकार से हर किसी की आत्मा को चोट पहुँचा रहे हैं। हर पल, जब हम दूसरों से बात करते हैं, हम उन्हें चोट पहुँचा रहे हैं। दरअसल, लोगों ने ईश्वर में विश्वास खो दिया है, क्योंकि जो लोग ईश्वर के प्रभारी हैं वे इतने अभिमानी और इतने अहंकारी हैं कि किसी के लिए भी अपने अहंकार के परे कोई ईश्वर के बारे में सोचना असंभव हो गया है। आप हैरान होंगे, अहंकार बुलबुले की तरह बिल्कुल सतही है। यह एक गुब्बारे की तरह है, जो बस ऐसे ही फट सकता है! और इसे चले जाना चाहिए। यह इसलिए जाना चाहिए कि आपको उत्थान चाहिए। यह गायब हो जाना चाहिए ताकि आपका चित्त आपकी आत्मा में बढ़े और आप पूरी दुनिया को उस आत्मा के एक हिस्से के रूप में देखें जो आप हैं। यह वह सीमा है, जिसे आपको पार करना है और इसके लिए हमें ईसा- मसीह की मदद लेनी होगी।

ईसा-मसीह ने स्वयं को क्रूस पर चढ़ाया। क्यों? क्योंकि उसने किया क्या था? क्या उसने लोगों को लूटा? आज आपके पास हजारों ठग हैं और जो आपको लूट रहे हैं: कोई भी उन्हें क्रूस पर नहीं चढ़ाता। उसने किया क्या था ? उसने इन रोमनों और इन यहूदियों के अहंकार को चुनौती दी, जो उनसे नाराज थे, और इसीलिए उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया था।

और हमें उनके क्रॉस के माध्यम से अब अपने अहंकार को क्रॉस पर चढ़ा देना होगा, अन्यथा हम स्वयं के साथ फिर से वही करने जा रहे हैं, जो हमारे अपने अस्तित्व में है, हम अपने अहंकार द्वारा अपने मसीह को क्रूस पर चढ़ाते हैं। यह ईसा-मसीह की बहुत प्रतीकात्मक मृत्यु है। उनका जन्म सबसे विनम्र जगह में, बहुत विनम्र जगह में हुआ। वह दृष्टी ग्रंथि में पैदा हुए है, आप कह सकते हैं: यह वह जगह है जहां मस्तिष्क, सभी गतिविधियां आ रही हैं और, सभी, सभी प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, आप का सामना करना पड़ता है और वहीं वह रहते हैं। और आपको बस उसे वहां जागृत करना है ताकि आपके अहंकार को एक बार सभी के लिए क्रूस पर चढ़ाया जाए।

लेकिन मैं यह नहीं कहती कि, “आप अपने अहंकार से लड़ें,” क्योंकि यह लड़ाई उतनी महत्वपूर्ण नहीं है। तुम अपनी छाया से लड़ रहे हो। आपके पास छाया है, जिसे अहंकार कहा जाता है: जिसका मुकाबला करके उस पर अपनी ऊर्जा बर्बाद नहीं करना है। उससे लड़ने की कोई जरूरत नहीं है। केवल एक चीज है, यदि आप प्रकाश पुंज के सामने मध्य में खड़े हैं – तो आपको कोई छाया दिखाई नहीं देती है। यह इतना सरल है। यदि आप प्रकाश के केंद्र में खड़े हैं जो कि ईसा-मसीह है, तो आपको कहीं भी कोई भी छाया नहीं दिखाई देगी। लेकिन जब मैं यह कहती हूं, तो मैं अन्य लोगों की तरह लग सकती हूं जो उपदेश देते हैं, “मसीह की छाया में खड़े रहो” या “ईसा-मसीह के प्रकाश में खड़े रहो।” अब उसका मतलब क्या है? वह प्रकाश कहाँ है, वह स्थान कहाँ है जहाँ आपको खड़ा होना चाहिए? और वह स्थान यहां आपके दृष्टि ग्रंथि के मध्य में है जहां कोई विचार नहीं है। आपको निर्विचार जागरूकता में खड़ा होना होगा।

बहुत से लोग जिन्हें आज्ञा से समस्या है, बहुत से लोग जो आए हैं… (बातचीत में व्यवधान)… विचार रुक जाएंगे और वे विचार से परे हो जाएंगे। और यह सहज योगियों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण चक्र है, क्योंकि जब कुण्डलिनी ऊपर उठती है, तो आज्ञा चक्र के ऊपर – तुरंत निर्विचारिता होती है। आपको अहंकार या प्रति-अहंकार से कोई विचार नहीं मिलता है। लेकिन आपके असंतुलित तरीके के कारण आज्ञा चक्र में लड़खड़ाहट है। और असंतुलित तरीके हैं, कि कभी-कभी आप अहंकार के साथ या प्रति-अहंकार के साथ होते हैं।

पश्चिम में हमारे लोगों के साथ ऐसा हुआ है क्योंकि हमारे पास इतना अहंकार है कि हम वास्तव में इससे थक गए हैं। हम इससे भयभीत हो गए। फिर हमने अपने प्रति-अहंकार को बढ़ाने के लिए ड्रग्स और चीजों को लेना शुरू कर दिया। लेकिन ऐसा करने से, हम जो कर रहे हैं, वह एक अति से दूसरे अति पर ला रहा है और यह है कि हम इस तरह से अपने अहंकार और प्रति-अहंकार की हलचल कर रहे हैं, जिसके द्वारा हमें कोई फायदा नहीं हो रहा हैं।

इसलिए जो करना है, वह आज्ञा के बिंदु तक उत्थान करना है और अपने आज्ञा को स्थिर करने का प्रयास करना है।

कई लोगों ने मुझसे एक सवाल पूछा है: “आज्ञा को स्थिर कैसे करना है?” आज्ञा को हमारी नसों के क्रॉसिंग पॉइंट और दृष्टि ग्रंथि पर रखा गया है । अब, इसलिए यह कहा जाता है कि, अगर आपकी आँखें अस्थिर हैं, तो आपके पास अस्थिर आज्ञा होगी। आपको अपनी आंखों को स्थिर करना होगा, आपको उन्हें शांत करना होगा। अब यह बहुत गए गुज़रे समय की बात है, प्राचीन, पुराना ख्याल जो भी आप उन्हें कहें, लेकिन आपको अपनी आँखें स्थिर करनी चाहिए और उन्हें इस तरह से स्थिर करना चाहिए कि यह आँखों के लिए बहुत सुखदायक हो । जो आंखों के लिए सबसे सुखदायक चीज है वह है हरी घास। अगर आप हरी घास को अपनी आंखों से देख सकते हैं, तो इसका मतलब है कि आप अपनी दृष्टि जमीन पर रख कर चलते हैं, आपकी आंखें आराम पाएंगी, आपकी आज्ञा बिलकुल ठीक होगी।

यही कारण है कि ईसा-मसीह ने कहा कि, “मैं आपको व्यभिचारी आंखों के बारे में बताता हूं”। उसने व्यभिचारी आँखों के बारे में बात की। ऐसी आँखें जिसके द्वारा आप व्यभिचार करते हैं। इन दिनों एक बहुत ही आम बात है। प्रत्येक महिला को एक पुरुष कि तरफ दृष्टि अवश्य करना होती है ; हर आदमी को किसी भी महिला कीतरफ जरूर दृष्टि करना होती है। जैसे कि यह सबसे महत्वपूर्ण काम है, अगर आपने एक महिला को नहीं देखा है तो जैसे आप बर्बाद हो ! मेरा मतलब है कि  आधुनिक होना ऐसा हो रहा है। लेकिन मैं एक पुराने जमाने की महिला हूं, और जैसा कि ईसा-मसीह के समय में उन्होंने कहा था, “आपके पास व्यभिचारी आँखें नहीं होनी चाहिए।” और जिनके पास व्यभिचारी आँखें हैं, वे किसी अन्य से अधिक श्रेष्ठ नहीं हैं, लेकिन हमारे पश्चिमी ईसाई, जो हर समय, यहां तक ​​कि चर्च में भी, जब वे उपदेश दे रहे हैं, तो उनकी आँखें व्यभिचार के साथ घूम रही होती हैं।

जब आप अपनी आज्ञा को बिलकुल ठीक रखना चाहते हैं, तो ये आंखें बहुत, बहुत शुद्ध, बहुत गहरी, और बहुत प्यारी होनी चाहिए, क्योंकि आप अपनी आंखों के माध्यम से प्राप्त करते हैं। कहते हैं, यदि आपने अपनी आँखें बंद कर ली हैं, तो आप अपना चित्त किसी भी चीज़ पर नहीं लगाते हैं क्योंकि आपकी आँखें बंद हैं, आप खुद के अंदर अधिक विचार नहीं भर रहे हैं। लेकिन अगर आपकी आँखें खुली हैं, तो आप बहुत अधिक विचार जोड़ रहे हैं क्योंकि हर जगह आँखें जाती हैं, चित्त जाता है, और आप चीजों को देखते हैं और विचार बनाते हैं और उन को संग्रहित करते हैं। तो आपका चित्त जिसे आत्मा में जाना चाहिए , जिसे ईश्वर पर होना चाहिए, जिसे दिव्य की खिड़की से चमकना है:  जिस तरह से हम हमारी आंखों का उपयोग करते है,यह सुंदर चीज उससे बर्बाद हो जाती है और हम इसका सम्मान नहीं करते हैं।

जमीन या जमीन पर घास जैसा शुद्ध और सुंदर कुछ भी नहीं है, जो हमारे पैरों को आधार देता है, जो हमें सहारा देता है, जो हमारी देखभाल करता है, हमें समृद्ध करता है।  हर इंसान को देखने के बजाय हमें अपनी नजर धरती माता पर डालनी चाहिए।

लेकिन सहज योग के दृष्टिकोण से, अब आप में से कई लोग जानते हैं कि, जब आप किसी को देखते हैं तो आपकी आंखों के साथ क्या होता है: हो सकता है कि कोई भूत आपकी आंखों में प्रवेश करे। और, आप आश्चर्यचकित होंगे, कि यह उस भूत का खेल है जिसे हम छेड़खानी कहते हैं। मैंने इसके बारे में, इससे पहले भी बात की है, और जब मैंने लोगों को इसके बारे में बताया, तो लोगों को यह पसंद नहीं आया, लेकिन मैंने वास्तविक भूतों को आँखों से आँखों में प्रवेश करते देखा है। मैंने बहुत ही साधारण लोगों को ऐसी जगहों जिसे वे पार्टी कहते है देखा है। एक पार्टी में, लोग सिर्फ एक आंख से दूसरे में भूतों का आदान-प्रदान कर रहे होते हैं। एक बार जब यह किसी अन्य व्यक्ति के पास जाता है, तो वह अपना भूत किसी अन्य व्यक्ति में डालता है, और वह दूसरे व्यक्ति में चला जाता है। हर समय आपका चित्त भटका  दिया जाता है और आपको लगता है कि यह किसी चीज़ की ओर आकर्षित हो गया है, आप नहीं जानते कि यह क्यों आकर्षित होता है।

अब कुछ खास प्रतीकों को भी इस तरह बनाया जाता है। समस्याओं को जोड़ने के लिए, सभी समाज इस तर्ज पर काम कर रहे हैं – कि आपको इस तरह से प्रस्तुत  होना चाहिए कि हर पुरुष आपको देखे, हर महिला आपको देखे। क्यों? उपयोग क्या है? मान लीजिए मैं आपको देखती हूं तो मुझे क्या मिलता है? किसी व्यक्ति को देखकर मुझे क्या मिलता है? फायदा क्या है? बस एक व्यक्ति को देख रहा हूँ? हम इतनी ऊर्जा बर्बाद कर रहे हैं किस लिए?

उसी तरह अगर आप सड़कों पर चल रहे हैं, तो, जैसे, कोई हम कुछ सुंदर चीजें देख रहे हैं, ठीक है। यदि आपको कुछ खरीदना है, तो ठीक है, आगे बढ़ें, उन चीजों को देखें, जो भी आपको चुनना है वह ठीक है। लेकिन हर समय सिर्फ इसलिए कि आपकी आंखें ऐसी हैं, आप बस कर रहे हैं और आपको यह पता नहीं है कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं, हर समय आपकी दृष्टि भटक रही हैं। और वह पागल होने के लिए एक पक्का और निश्चित संकेत है। बिल्कुल, यह एक पक्का और निश्चित संकेत है, जब कोई व्यक्ति पागल होता है तो आप यह जान पाते हैं कि एक व्यक्ति पागल है? यदि आप देखते हैं कि उसकी आँखों कि पुतलियाँ हर समय भटक रही है, तथा वे उसे स्थिर नहीं रख पाते। या अगर वे बीमार हैं तब भी ऐसा हैं, आप देख सकते हैं कि उनकी ये आँखें हर समय भटक रही हैं, कोई दृढ़ता नहीं है।

इतना ही नहीं बल्कि आपने उन लोगों को देखा है जो सहज योग में आए हैं जब वे अपनी आँखें बंद करते हैं तो पाते हैं कि उनकी आँखें टिमटिमा रही हैं। उनकी पलकें झपक रही हैं। इसका मतलब है कि कुंडलिनी के चढ़ने में कुछ व्यवधान है। संपूर्ण तनाव यदि आप इसे सौ में से अंक दें तो इसका कम से कम 80% हिस्सा हमारी आंखों के माध्यम से आता है। इसलिए हमारी आँखों को हर तरह की बेकार गतिविधियों जो कि हम करते रहते हैं से बचाना कितना ज़रूरी है।

क्राइस्ट – क्राइस्ट का जीवन दूसरों का कैसे सम्मान किया जाए इसके कई पहलुओं को दर्शाता है। लेकिन उनमें से एक जिसका बहुत दुरुपयोग किया गया है वह वेश्या का है। उन्होने वेश्या को बचाया, बेशक, उन्होंने बचाया। लेकिन तुम वेश्याओं को बिगाड़ते हो। एक अच्छी महिला को आप वेश्याओं में परिवर्तित करते हो। आप उसे ऐसे विचार देते हैं जिससे वह वेश्या बन जाती है। एक अच्छी गृहिणी को एक अहंकारी व्यक्ति द्वारा वेश्या में बदल दिया जाता है।  छोटी-कुंवारी युवा लड़कियां आप की भद्दी दृष्टि से नष्ट हो रही हैं। क्या आपको इसका एहसास है कि, आप उसके ठीक विपरीत कर रहे हैं जो ईसा- मसीह ने किया था ? और आप कहते हैं कि उसने बचाया, ईसा-मसीह, तो भले ही हम वेश्याएं हैं, वह हमारी रक्षा करेंगे। लेकिन वेश्या क्यों बने? यह सोच की ऐसी मूर्खतापूर्ण शैली है कि,  हमें वेश्या बनना चाहिए ताकि ईसा-मसीह हमें बचाए।

सहज योग के उचित प्रकाश में इन सभी चीजों के बारे में सोचना होगा। जहाँ तक और जब तक आपको आत्मसाक्षात्कार नहीं हो जाता, तब तक मेरी बात आपके लिए बेकार है। लेकिन एक बार जब आपको आत्मसाक्षात्कार हो जाता है, तो आपको पता चल जाएगा कि, अगर आप किसी की ओर देखते हैं, तो आपको अचानक  सिर के पीछे कि तरफ दर्द हो सकता है, आपको ऐसा महसूस हो सकता है कि कोई तीर  आपके सिर में चला गया है या कुछ हो गया है, आपको लग सकता है कि किसी के चेहरे के साथ आप अंधे हो रहे हैं और आपको सभी प्रकार के अनुभव मिलेंगे, जिससे आप जान पाएंगे कि आपकी आँखें कितनी महत्वपूर्ण हैं।

आपकी सभी घबराहट और सब कुछ ठीक हो सकता है यदि आपके पास शुद्ध आँखें हैं। लेकिन यह एक ऐसा दुष्चक्र है, जो आपकी आंखों के माध्यम से, आप सभी बुराई  को इकट्ठा करते हैं, जो कि आज्ञा में जमा हो जाते हैं और आपको आंखों को साफ करने के लिए आज्ञा को साफ करना होगा। यह एक दुष्चक्र है। लेकिन यह एक बिंदु पर शुरू हो सकता है जैसा कि मैंने कहा, हमें क्षमा मांगनी होगी|  दूसरी बात हमें ईसा- मसीह को अपने आज्ञा चक्र में लाना है। तीसरा, हमें सभी ड्रग्स और सभी नशीले पदार्थों और सभी धूम्रपान छोड़ना होगा।

जब आप सहज योगी होते हैं तो यह अपने आप हो जाता है, यह स्वत: ही कार्यान्वित होगा | लेकिन आँखें आपके पूरे व्यक्तित्व को, आपके मस्तिष्क, आपके शरीर, आपके अंगों सब को व्यक्त करती हैं। और अगर आपकी आज्ञा ठीक है तो आपकी आंखें बिलकुल ठीक हैं। वे जहाँ भी नज़र डालते हैं,प्रेम के अलावा कुछ भी प्रसारित नहीं करते। केवल अपनी आँखों की एक दृष्टि से आप कुंडलिनी चढ़ा सकते हैं। केवल अपनी आँखों की नज़र से आप लोगों को ठीक कर सकते हैं। केवल अपनी नज़र से आप नष्ट और बर्बाद लोगों में आनंद ला सकते हैं।

तो ये जो आंखें तुम देख रहे हो, तुम्हारे हृदय की, तुम्हारे अस्तित्व की खिड़कियां हैं। जब आपकी आंखों के माध्यम से आत्मा को व्यक्त किया जाता है, तो आपने खुद देखा होगा कि, जब कुंडलिनी उठती है तो आँखों कि पुतलियाँ फ़ैल जाती हैं। और एक आत्मसाक्षात्कारी को काली आँखें मिली हैं क्योंकि उनकी पुतलियाँ फ़ैल जाती हैं। कम से कम जब मैं उन्हें देखती हूं तो वे सभी काली आंखों वाले होते हैं। इसके अलावा, एक आत्मसाक्षात्कारी को उसकी आँखों से पहचाना जा सकता है जो कि चमकती हुई होती हैं,  हीरे की तरह एक चमक है; वे हर समय निखरे हुए होते हैं और आप आँखों से यह जान सकते हैं कि यह व्यक्ति एक बोध प्राप्त आत्मा है। एक गैर-आत्मसाक्षात्कारी की आंखों और आत्मसाक्षात्कारी की आंखों के बीच एक जबरदस्त अंतर होता है। तो आप कल्पना कर सकते हैं कि आपकी आत्मा आपकी आंखों के माध्यम से कैसे देखती है, लेकिन अगर आंखें शुद्ध नहीं हैं, तो यह लंबे समय तक नहीं रहेगा। इसलिए अगर हमें ईसा-मसीह को समझना है, शारीरिक रूप से, हमें अपनी आँखों का सम्मान करना होगा, मानसिक रूप से,  जो भी हमारे दिमाग में अशुद्ध है वह सब छोड़ना होगा ।

अब, इसलिए हम मन की अशुद्धियों पर आते हैं: और मन की अशुद्धियाँ हैं, मेरा मतलब है, बहुत सारे जहर हैं, जिनके बारे में आप जानते हैं। मेरा मतलब है कि जहर के बारे में कई किताबें लिखी गई हैं। और माना जाता है कि, मनोवैज्ञानिक आपके सभी जहर को बाहर निकालने वाले हैं।

मुझे नहीं पता कि क्या वाकई वे ऐसा कुछ कर भी सकते हैं। लेकिन उनके पास सबसे खराब आज्ञा होती हैं। इन सभी मनोवैज्ञानिकों में सबसे खराब आज्ञा होती हैं और मुझे नहीं लगता कि वे मानसिक रूप से पीड़ित लोगों को वास्तव में कोई राहत देने में सक्षम हैं। मानसिक कष्ट दो प्रकार के होते हैं। वैसे कहो एक ही बात है कि, वायब्रेशन बहुत ख़राब … एक प्रकार की मानसिक परेशानियां हैं जहां लोग आपको बहुत परेशान करते हैं – आप क्रॉस को ढोते रहते हैं! अब ईसा-मसीह के बारे में यह एक बहुत ही गलत विचार है। क्रॉस उठाने का मतलब यह नहीं है कि, कोई भी कुछ भी उत्पीड़न करने की कोशिश करे, आप खुद को दासता तक ले जाओ। आपको  किसी की भी गुलामी नहीं करना चाहिए, चाहे जो हो। कोई भी व्यक्ति जो आपको गुलाम बनाने की कोशिश करता है, आपको उसका पूरी तरह से इनकार करना चाहिए! आपको कहना होगा “हम”,“ आप मुझ पर हावी होने वाले कौन हैं? ” चाहे आप काली त्वचा के हों, लाल त्वचा के हों या पीली त्वचा के, किसी को भी इस पूरी दुनिया में किसी पर हावी होने का अधिकार नहीं है, और यदि कोई ऐसा कर रहा है, तो “ओह, अब क्या करना है, आखिर हम गरीब लोग हैं,” या हम ऐसे ही हैं या वह सहारा दे रहा है, “और वैसा ही सब: तो वे खुद के प्रति अपने कर्तव्य से दूर भाग रहे हैं। ऐसे लोगों को बोध नहीं मिल सकता है। दास राजा नहीं बनने जा रहे हैं।

अतः जो दासता को क्रॉस उठाना समझना यह आधुनिक समय का एक और भ्रम है। हमें अपने स्वाभिमान में उत्थान करना होगा और हमें यह समझना होगा कि इस दुनिया में किसी को भी हम पर हावी होने का अधिकार नहीं है।

लेकिन तब क्रॉस उठाने का क्या तात्पर्य है? सबसे पहले उनके(ईसा-मसीह) स्तर के लोगों को कभी भी तकलीफ नहीं होती है। यह सिर्फ एक मजाक है। यह एक लीला है, यह उनके लिए एक नाटक है। वे कभी पीड़ित नहीं होते हैं, और भले ही वे तथाकथित कार्य को पीड़ित माना जाता हैं, वे ऐसा सिर्फ इसलिए करते हैं क्योंकि वे ऐसा करना चाहते हैं। वे असहाय लोग नहीं हैं, वे गुलाम नहीं हैं। और जो लोग सोचते हैं कि इसे सहन करके और ऐसी पीड़ा उठा कर के हम ईसाई बन रहे हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि वे मनोवैज्ञानिक मरीज हैं। और अगर वे रो -धो रहे हैं और हर समय कह रहे हैं, “क्या करना है? मैं प्यार में हूं और मेरा प्रेमी मुझे प्रताड़ित करता है। ” आप न तो प्यार में हैं और न ही आपका कोई प्रेमी है। यह एक तरह की मनोवैज्ञानिक जोड़ीदारी  है। कि वह एक दबंग आदमी है और आपको उसका प्रभुत्व पसंद है, इसलिए आप एक साथ हैं, एक साधारण तथ्य है।

इसलिए हर इंसान का अपना स्वाभिमान होता है। और उसे अपने आत्म का सम्मान करना चाहिए जो कि उसके भीतर की आत्मा है। और इस पर कुछ भी हावी नहीं होना चाहिए। चाहे आप इस देश के हों या उस देश के, या यह ‘वाद’ ’या वह ‘वाद’ हो। यह सब टूट जाएगा। परमेश्वर के शासन में किसी को भी किसी की आत्मा पर हावी होने का अधिकार नहीं है। लेकिन जब आपको स्वतंत्रता दी जाती है, तो आप दूसरी तरफ जाते हैं जो कि श्री मान अहंकार है। आप अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करना नहीं जानते हैं, इसलिए आप दूसरों पर हावी होने की कोशिश करते हैं। आपकी स्वतंत्रता का मतलब हो जाता है हर किसी की स्वतंत्रता को खतरे में डाल देना है। आप सभी के ऊपर हैं, और हर किसी की आत्मा पर अत्याचार कर रहे हैं। और आप जमीन से और संपत्तियों से या सम्पदा से हावी हो रहे हैं। तो या तो इस तरह से या उस तरह से, मानसिक रूप से अगर आप इस श्रेणी या उस श्रेणी के हैं, तो आप खुद के खिलाफ हैं।

बस मध्य में रहें और खुद देखें। बस इसे देखते रहने वाले बनो। क्या आप अन्य व्यक्ति के प्रति प्रेम का उत्सर्जन कर रहे हैं? अगर आप गुलाम हैं, तो आप कैसे प्यार कर सकते हैं? आप नहीं कर सकते। यदि आप ‘स्वतंत्र’ हैं और आवारा हैं, तो आप कैसे प्यार कर सकते हैं? प्रेम के अपने बंधन होते हैं, बहुत मधुर और सुंदर। आपको उन बन्धनों के साथ रहना होगा। आप उन बंधनों का आनंद लेते हैं। जैसे एक छोटा बच्चा आपके घर आएगा और बेशक, वह आपके घर को खराब कर देगा, और यह कि उसे ऐसा करना ही है, और आपको इसके खराब होने का आनंद लेना चाहिए। फिर  यदि आपकी स्वतंत्रता को एक छोटे बच्चे के रोने से चुनौती हो जाती है, तो आप विवेकशील लोग नहीं हैं। यह उन्मुक्तता है! या मैं कहूंगी कि यह एकलखोरपन है, वह आदि प्रकृति से, विराट से, जिस विराट से आप हैं, छिटक रहा है: दूसरों की स्वतंत्रता को बर्दाश्त करने में सक्षम नहीं है। एक बच्चे को घर में रोने की आजादी नहीं है? आप किस प्रकार की स्वतंत्रता की कल्पना करते हैं? एक माँ को अपने बच्चे के बारे में कुछ कहने का कोई अधिकार नहीं है? जो कि , उसका कर्तव्य है कि वह उसे बताए कि सही और गलत क्या है। अगर बेटे को अपनी मां के परिवार में अपनी पसंद का खाने का अधिकार नहीं है तो आपको किस तरह की आजादी है? यह बातों का ऐसा भ्रम है।

तो इस तरह की स्वतंत्रता दासता की विपरीत अति है। लेकिन मध्य में वह प्रेम है जहां आप सभी से जुड़े हैं। मैं अपने बच्चों से जुडी हूँ; हां, मैं हूं, मुझे उन पर गर्व है। उन्होंने मुझे जोड़ लिया है और मैंने भी उन्हें जोड़े रखा है। यह एक पारस्परिक जुड़ाव है जिसका हम आपस में आनंद लेते हैं। जब प्यार का ऐसा बंधन होता है तो ऐसा कुछ लेना और देना होता है। लेकिन क्या हम प्यार के बंधन के महत्व को समझते हैं? थोड़े बहाने हम इसे तोड़ देते हैं। जैसे, एक पत्नी कहती है, “मैं आज बाहर जाना चाहूंगी”। पति ने कहा “क्यों? क्या आप समझ नहीं रही हो कि, मैं बहुत थक गया हूँ?” या अगर पति कहता है, “मेरा कुछ खाने का मन कर रहा है,” या कोई खास चीज, तो वह पैनकेक या कुछ और कहता है, एक छोटी सी चीज। “ओह, मैं बहुत थक गयी हूँ, हमेशा आप कुछ ना कुछ मांग करते हैं  …” अगर वह जरा सोच सकती कि उस छोटी सी चीज को बनाने से, वह बहुत खुश होगा। उसे यह जानने के लिए अति उत्सुक होना चाहिए कि वह क्या चाहता है। और उसे वही करना चाहिए जो वह चाहती है। और फिर एक दूसरे की संगती का आनंद लें, अन्यथा आप मानव के रूप में प्राप्त सभी गुणों को व्यर्थ कर रहे हैं|

आप नहीं जानते कि आप एक दूसरे से प्राप्त होने वाला कितना व्यर्थ गँवा रहे हैं। हर पल ऐसे खूबसूरत बंधन से भरा होता है, जहां आदान-प्रदान होता है।  इस बारे में आप जिस तरह से झगड़ रहे है, व्यवहार कर रहे है, जरा मुझे देखने तो दो आपने क्या हासिल किया? 

जब आप मर जाते हैं तो आपको अखबार में घोषणा करनी होती है कि “XYZ मर चुके है” और आपको पता लगता है कि कोई नहीं आया है। और जब आप मर जाते हैं तो लोगों को बुलाने के लिए भी भुगतान करना पड़ता है। आज यही हाल है। ऐसी शुष्कता, ऐसा खालीपन, ऐसा अकेलापन मौजूद है। आपने इसके माध्यम से क्या हासिल किया है?

इसलिए ऐसा जुड़ाव हमें अपनाना होगा। और त्याग का कोई सवाल नहीं है, जिस तरह से हमें परिवार के लिए बलिदान करना चाहिए। आप क्या त्याग कर रहे हैं? मेरा मतलब है कि यदि आप अपने परिवार के लिए भुगतान करते हैं तो आपको खुशी मिलती है, इसलिए आप ऐसा करते हैं। यदि आपको अच्छी तरह जीवन यापन  करना है तो आप कुछ त्याग नहीं कर रहे हैं, बल्कि आप इससे लाभ प्राप्त कर रहे हैं, जिससे एक अच्छा जीवन चल रहा है। यदि आपकी पत्नी कहती है, “आप शराब खाने में नहीं जाएँ,” और यदि आप वहां नहीं जाते हैं, तो आपको यह नहीं कहना चाहिए, “वह एक रूढ़िवादी है, पुराने चलन की वगैरह है।” लेकिन इसके बजाय आपको सितारों का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि,  इस आधुनिक समय में भी, कोई है जो आपको सच बता रहा है। चूँकि पूरी आधुनिकता आ गई है, तो क्या आपके कहने का मतलब यह है कि सच्चाई नहीं बताई जानी चाहिए?  आप इस सब असत्य में रह रहे हैं, और अगर आपको खुश रहना है – वास्तविकता पर आओ ।

दोस्त, वही बात: दोस्तों के साथ हमारे किस तरह के संबंध हैं? हम उनसे क्या उम्मीद करते हैं? उन्हें एक क्रिसमस कार्ड भेजना और फिर अगर वे नहीं भेजते हैं, तो इसके बारे में बुरा महसूस करना। कोई गहरा संबंध नहीं है, हम उनके साथ जुड़े नहीं हैं। यदि आप स्वयं को उनके द्वारा जोड़ने की अनुमति देते हैं, तो वे भी हम से जुड़े होंगे।  बेहतर हो आप यह कोशिश करें। उनके द्वारा बाध्य होने की कोशिश करें, किसी और से डरें नहीं। बस दूसरों से जुड़े रहने की कोशिश करें और आप हैरान होंगे कि वे आपको कितना दे रहे हैं। मैं इसका जीता जागता उदाहरण हूं। मैं आपको बता सकती हूं कि, मैं इसका एक जीवंत उदाहरण हूं; मैं आप सभी से जुडी हूं। अगर कोई कहता है, “माँ तुम हमें कब छोड़ने वाली हो?” नहीं, मैं नहीं कर सकती। मैं नहीं कर सकती। मैं सिर्फ तुमसे बंधी हूं। मैं सिर्फ इसलिए नहीं छोड़ना चाहती क्योंकि मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं। मैं तुम्हें कैसे छोड़ सकती हूं? यह मेरे लिए असंभव है। तो फिर, मुझे इस जीवन से क्या लाभ है? हर – बात -जो कि – इस दुनिया में है!

तुम क्या चाहते हो कि, मैं क्या पाऊं? मैं यह भी नहीं गिन सकती कि मैं इससे क्या प्राप्त कर सकती हूं। अथाह सागर। मैं स्वयं एक महासागर बन जाती हूं। अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मुक्ति के बारे में अपने विचारों को छोड़ें, अपनी बुद्धि को मुक्त कर के आप अपने विवेक को छोड़ रहे हैं। और, चाहे आप बूढ़े हों या जवान मिठास और सुंदरता जो कभी खराब नहीं होती,  वह तुम्हारी अपनी होने वाली है।

 लेकिन ये जहर जो आपके अंदर और बाहर निर्मित किये जा रहे हैं, कृपया उन्हें फेंक दें। ये मानसिक जहर हैं। आज्ञा के माध्यम से आप उन्हें निकाल बाहर कर सकते हैं। आप देखिए, यह एक द्वार भी है जिसके माध्यम से कई चीजें बाहर निकल सकती  हैं। इसे कार्यान्वित करने की कोशिश करें। पेड़ को प्यार से देखो और तुम पाओगे कि पेड़ ही तुम्हें इसकी रचना का आनंद दे रहा है। क्योंकि आप निर्विचार हो जाएंगे। और जिस सृष्टिकर्ता ने उस सुंदर वृक्ष को बनाया है, वह उसमे संग्रहित सारा आनंद उंडेल देगा। प्रत्येक मनुष्य असीमित आनंद का भंडार है, ! मैं आपको विश्वास दिलाती हूं, मुझे विश्वास है। और उन्हें केवल इसलिए ज़ाया मत करो क्योंकि कोई व्यक्ति ठीक से कपड़े नहीं पहन रहा है, या वह वैसा नहीं है जिस तरह से आप चाहते हैं कि वह हो: जैसा कि आपने अपने पब्लिक स्कूल में सीखा था! हर घर की चौखट, हर जगह खूबसूरती पड़ी हुई है, उसे ज़ाया मत करो। लेकिन अगर आपके पास इसके बारे में एक मालकियत की भावना, एक लम्पटता है, तो आप इसका कभी भी आनंद नहीं ले सकते हैं| आप कभी भी उस सारी सुंदरता, उस सभी संग्रह, उस सभी संपत्ति का आनंद प्राप्त नहीं कर सकते हैं जो हर इंसान में है: हर पल यह प्रस्फुटित होती रहती है।

आज्ञा के लिए यह एक अच्छी बात है कि, क्रिसमस आ रहा है। और उस समय, जब मुझे आपको क्रिसमस की शुभकामनाएं देनी हैं, इस अवसर पर, मैं आज्ञा चक्र के बारे में बोल रही हूं, इसमें मैंने जो कहा, आज्ञा है: व्यक्ति को पता होना चाहिए कि क्या आदेश देना है और कैसे मानना ​​है ईश्वर के आदेश का पालन करें, अपने बुजुर्गों के आदेश का पालन करें, अपनी आत्मा का पालन करें न कि अपने अहंकार का – और फिर आप दूसरों को भी आदेश दे सकते हैं; न केवल मनुष्य, बल्कि आप सूर्य और चंद्रमा और दुनिया की सभी हवाओं और सब कुछ को भी आदेश दे सकते हैं। इस आज्ञा के माध्यम से आप सब कुछ नियंत्रित कर सकते हैं। आप एक चीज आजमाएं। यदि आप जानते हैं कि कोई व्यक्ति कुछ गलत करने जा रहा है, तो बस उसका नाम लें और उसे आज्ञा पर रख दें: वह ऐसा नहीं करेगा। इसे आजमाएं! यह एक तरीका है जो मैं उन लोगों के बारे में बता रही हूं जो आत्मसाक्षात्कारी लोगों के लिए हैं उन लोगों के लिए नहीं जिन्हें अभी तक बोध नहीं मिला हैं। लेकिन जो बोध प्राप्त हैं वे कोशिश कर सकते हैं। यदि दूसरा व्यक्ति कुछ गलत कर रहा है, तो आप अपनी आज्ञा को आजमा सकते हैं।

अपनी आज्ञा पर आप जो भी आदेश देंगे उसका सम्मान किया जाएगा लेकिन आपकी आज्ञा पर ईसा- मसीह का होना आवश्यक है। क्योंकि आपके पास आपके भीतर महान आधार जागृत है, जो ना केवल यहां, बल्कि हर आदमी के सिर में है। यह सर्वव्यापी है, यह सभी छोटे परमाणुओं और अणुओं में व्याप्त है, यह हर जगह, सूर्य में और आप जिस भी स्थान पर जाते हैं,  ये वहां है।

इसलिए अपने आज्ञा को विकसित करने का प्रयास करें, यही आप की खुद पर महारत है। जिनके पास अच्छी आज्ञा है वे किसी भी चीज़ में निपुणता पा सकते हैं|

और यह समझें कि सांसारिक चीजों में महारत (स्वामित्व)हासिल करने और मनुष्यों पर महारत (स्वामित्व)हासिल करने के बारे में विचार और उनमें से कुछ लोगों द्वारा शिल्प या कला जैसी और अन्य चीज़ों में महारत हासिल करने से अच्छी बात यह है कि आप आपकी आज्ञा पर महारत (स्वामित्व)हासिल करें! और तब आप वास्तव में खुद के स्वामी बन जाते हैं जिसके द्वारा आप कई चीजों में महारत हासिल कर सकते हैं।

और आज इस महान दिन पर जब मैं आपको एक हैप्पी क्रिसमस की शुभकामनाएं देती हूं, मैं चाहती हूं कि आपके पास सबसे शक्तिशाली आज्ञा हो कि, लोग जब आपके माथे को देखें, तो उनको पता लगना चाहिए कि ईसा-मसीह पुन:आपके अंदर जन्म ले रहे हैं।

परमात्मा आप पर कृपा करे!

हमारे पास आगे के दिनों में बाद में कोई कार्यक्रम नहीं है, मुझे खेद है। क्योंकि मैं भारत जा रही हूं। मैं 7 वीं, 9 वीं तारीख को जा रही हूं … मुझे लगता है कि मार्च के अंत में वापस आउंगी, आप सभी जो यहां आए हुए हैं, जिन्हें आत्मसाक्षात्कार हो गया है और जिन्हें आत्मसाक्षात्कार नहीं भी हुआ है, उन्हें पता होना चाहिए कि यह बहुत ही सूक्ष्म चीज है जो आपके भीतर काम कर चुकी है। और इसने आप सभी की हर तरह से मदद की है। तो, हमारे पास एक आश्रम भी है। आश्रम का पता अब आपको बताया जाएगा, ताकि आप इसे अपने लिए नोट कर लें कि आश्रम कहां है। यह डॉलिस हिल्स स्टेशन (स्पष्ट नहीं) के बहुत पास है। कृपया जाकर उन लोगों से मिलें। और अपने भाइयों और बहनों से मिलें जो वहां हैं, और एक टेलीफोन नंबर है। कृपया उनसे संपर्क करें, और संपर्क बनाए रखें। एक और बात यह है कि हम एक नए साल का दिन मनाने जा रहे हैं। हम सब एक साथ दोपहर का भोजन कर रहे हैं और आप सभी को वहाँ करीब बारह तीस के आसपास वहां होने के लिए आमंत्रित किया जाता है। और हम कुछ दोपहर का भोजन और कुछ संगीत और कुछ मिलना, आपसी जुड़ाव करेंगे। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

परमात्मा आपको आशिर्वादित करे!