“गलत पहचान छोड़ें”
डॉलिस हिल आश्रम, लंदन (यूके)। 22 अप्रैल 1979।
… और ईसा-मसीह के पैरों की सफाई होने के कारण उन्होंने कहा, “हम इतना तेल क्यों बर्बाद करें? आप इसे बेच सकते हैं और गरीबों को दे सकते हैं।” और क्राइस्ट ने कहा – अब देखो उन्होंने क्या कहा – कि क्राइस्ट ने खुद ये शब्द कहे हैं और अगर उन्हें उसी तरह वर्णित किया गया है। आप बस अर्थ देखें और जो आपको समझना चाहिए। उनका कहना है कि, “ये गरीब तो हमेशा के लिए हैं, लेकिन मैं थोड़े समय के लिए ही हूं।” आप समझ सकते हैं? उन्होंने कितने स्पष्ट रूप से कहा है कि इसमें परोपकार का कोई कार्य शामिल नहीं है। लेकिन लोग दूसरा ही अर्थ लेते हैं! मुझे नहीं पता कि आपको दूसरा अर्थ कहाँ से मिलता है? कि आपको गरीबों की देखभाल करनी चाहिए। यह तुम्हारा काम बिल्कुल नहीं है! ठीक है, अतुल? गरीबों की देखभाल करना आपका काम नहीं है। हमें जो काम करना है वह मध्य में है। जिससे हम दाएं और बाएं दोनों को किनारों पर खींच सकते हैं। आपको मध्य पथ पर ही रहना होगा! जब हम मध्य में होते हैं, तो हम सबसे पहले अपने आप को अच्छी तरह से व्यवस्थित कर लेते हैं, और फिर बाएँ और दाएँ को समाया जा सकता है। गरीब और अमीर।
अति-अमीर भयानक लोग हैं! वे धूम्रपान करते हैं, वे शराब पीते हैं, वे मनहूस लोग हैं। जुआ, यह, वह, हर तरह की चीजें वे करते हैं। वे अपना जीवन बर्बाद करते हैं। वे खुद का सामना करना नहीं जानते। वे सबसे खराब स्थिति में हैं। और गरीब एक दूसरी ही शैली है, श्रमिक वर्ग और वह सब।
तो आपको उन्हें मध्य में लाना होगा। पर कैसे? स्वयं आप में ही गहराई है। आप सभी को इसमें एक साथ खींच सकते हैं। पहला उपाय है मध्य मार्ग में आना होगा। ठीक है?
तो यह बात है कि, जब आप अपना परोपकार का कार्य करना शुरू करते हैं तो आप इसे सहज योग के साथ नहीं कर सकते, आप नहीं कर सकते। बेशक, मेरा मतलब है कि, गरीब ठीक है, भारतीय गांवों में मैं इसे कार्यान्वित कर सकती हूं, लेकिन बहुत गरीब सहज योग को नहीं अपनाएंगे। वे शराब पीना, धूम्रपान करना, या यदि कुछ समय बचा है, तो चोरी करना या धोखा देना शुरू कर देंगे। वे इन चीजों को अपनाएंगे, क्योंकि उनके लिए खाना ही मुख्य चीज है। बिल्कुल जानवरों की तरह हैं। और बहुत अमीरों के लिए, वे दूसरे प्रकार के जानवर हैं – वे गिद्ध हैं। वे समाज पर परजीवी बने बिना नहीं रह सकते। अगर आप उन्हें कुछ भी बताएंगे तो वे आपको नहीं समझेंगे।
तो, उच्च वर्ग अनुपयोगी है और निम्न वर्ग हमारे लिए व्यर्थ है। हमारे लिए मध्यम वर्ग है, जिसे सहज योग के मूल्यों के साथ स्थापित होना है। और फिर एक बार जब वे आपको देखेंगे, नदी को बहता हुआ, कि वे समृद्ध हो सकते हैं तब वे हमारे पास आ जाएंगे। आप एक नदी की तरह हैं और हमें दोनों किनारों को समृद्ध करना है, इस तरफ या उस तरफ। यह महत्वपूर्ण है। एक तरफ आपको शुद्ध करना है, उच्च वर्ग को और निम्न वर्ग को आपको उन्हें समृद्ध करना है। लेकिन अगर वह आपके भीतर नहीं है तो कैसे आप इसे करने जा रहे हैं?
मध्यम वर्ग के लिए सहज योग काम करने वाला है। यह सही बात है। गरीबों और लालची लोगों के लिए नहीं। और ऐसा करना एक बहुत ही गलत बात है कि गरीबों पर ध्यान दिया जाता है। यह हमारा काम नहीं है। हमने गरीब नहीं बनाया है ना? हम ने नहीं। उन्हें किसने बनाया है? उच्च वर्ग। हम उन्हें एक साथ जोड़ सकते हैं, उच्च और निम्न वर्ग। तो वे कहेंगे, “हमारे पास लेबर सरकार होगी।” दोनों एक जैसे ही हैं! यही आप देखते हैं। वे सोचते हैं कि ईश्वर को नकार कर हम ईश्वर को चुनौती दे रहे हैं। वे सोचते हैं कि, अगर वे भगवान को अस्वीकार करते हैं तो ईश्वर उनके चरणों में गिरेंगे, इसलिए वे इनकार करते हैं। अन्यथा क्या जरूरत है? क्या मायने रखता है? क्या वह किसी चुनाव के लिए खड़े हैं? क्या वह कोई चुनाव लड़ रहे हैं जो आप कह रहे हैं, “हम ईश्वर में विश्वास नहीं करते!”? क्या फर्क पड़ता है? तो इस तरह हम समझते हैं कि ये मूर्ख हैं।
मारिया: क्या कोई रास्ता है, माँ कि..
श्री माताजी : मैंने यही तो कहा था, रास्ता यह है कि मध्यम वर्ग का विकास हो।
मारिया: …इन लोगों के लिए जो इस तरह की अति पर हैं, जैसे, कहते हैं, “मुझे विश्वास नहीं है और मैं गुस्से में हूं।”
श्री माताजी : तो रहने दो। आप उन्हें विश्वास नहीं दिलायें।
मारिया: हाँ, लेकिन क्या शुरुआत में उन्हें समझने में मदद करने का कोई तरीका है?
श्री माताजी: यदि आप ऐसा सोचते हैं कि आप इन लोगों को विश्वास दिला सकते हैं, तो आप नहीं कर सकते। यह गलत है। वो नहीं चाहेंगे। वे ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि जितना अधिक आप इसे करने का प्रयास करेंगे, उतना ही वे जारी रखेंगे, क्योंकि उनके अहंकार को ठेस पहुंचती है। वे वे लोग हैं जिनके अहंकार को चोट लगी है क्योंकि वे कुछ लोगों को अमीर पाते हैं। लोग जो इस किनारे पर हैं या उस किनारे पर : वह यह देखता है, वह यह देखता है। हम यहाँ कहीं नीचे हैं, ठीक है? और वे एक दूसरे को देख रहे हैं। तो उनके अहंकार को बहुत ठेस पहुँचती है। और यहाँ ऐसे लोग हैं जो अहंकारी हैं। इसलिए दोनों ईश्वर को नहीं मानते। उनके मानने या न मानने से क्या फर्क पड़ता है? ईश्वर है। वे सिर्फ यह कहना चाहते हैं। “यहाँ यह है, एक बड़ा शब्द!” मैंने सभी को कहते हुए देखा है, “मुझे विश्वास है..” अब, आप कौन हैं? हर कोई कहता है, “मुझे विश्वास है…” मेरा मतलब है, विश्वास करना, यह आया कहाँ से ? आपको यह विश्वास कहाँ से मिला? आपका अनुभव क्या है? तो कैसे वे इसे करते हैं?
तो उनका कहना है, अगर कोई राजनेता आकर व्याख्यान देता है। “मुझे विश्वास है कि यह ऐसा है।” तो हर कोई यह सुनता है, इसलिए वे घर जा कर वे कहते हैं, “मुझे इस पर विश्वास है!” यह एक बजती हुई घंटी दूसरी घंटी के नजदीक ला कर उसे बजाने जैसा है और प्रतिध्वनि शुरू होती है. फिर हर कोई कहता है कि, मुझे विश्वास है (हंसी)
मैं देखती हूं, इस देश में एक साधारण भिखारी भी ऐसी बात करता है! किसी प्रकार की कोई विनम्रता नहीं है। इसलिए वे इस तरह बात करते हैं- उनमें विनम्रता की कमी है। वे इतने आक्रामक हैं। आप देखिए कि वे कितने आक्रामक हैं। उन्होंने दुनिया की सभी संस्कृतियों पर आक्रमण किया है। अब आज का लेख, मैं इसे विशेष रूप से आपके देखने के लिए लाया हूं। अब, तेहरान में, उन्होंने जो कुछ भी किया है, तेहरानियों ने किया है, उन्होंने एक महिला पर चादर डाल दी है और कहते हैं, “आप चादर पहनो।” तो एक अंग्रेज महिला इसके बारे में लिखती है। वह कहती है, “उन्होंने हमारे शरीर को …..बनाया ” आप देखिए, अब, जीवन के प्रति आपका रवैया – आप ब्रिटिश रवैया कह सकते हैं या आप इसे पश्चिमी रवैया कह सकते हैं – यह है कि आपका शरीर बहुत सुंदर है इसलिए आपको इसे प्रदर्शित करना चाहिए। क्यों? अपने आप को धोखा क्यों? यह ऐसा इसलिए नहीं है कि चूँकि आपका शरीर सुंदर है इसलिए आप दिखावा कर रहे हैं बल्कि चूँकि, आप इसे पकड़ना चाहते हैं। यह आसान है। यह बहुत ही सरल है। सामना करो! लेकिन आप चाहते हैं कि पूरी दुनिया, पूरी दुनिया की महिलाएं आपके जैसी हों। यह इतनी सूक्ष्म आक्रामकता है। आप नहीं जानते। उन्होंने इस तरह की समझ के साथ दुनिया की सभी संस्कृतियों को मार डाला है कि, “हम सबसे अच्छे, सबसे शिक्षित और परिष्कृत लोग हैं!। ”
लेकिन दूसरों का अस्तित्व भी रहना चाहिए। उनकी अपनी संस्कृतियां हैं, उन्हें समझें और सोचें। यदि आप इस तरह नहीं कहते हैं कि, “कृपया, मुझे यह दे दो,” तो वह असंस्कृत के रूप में माना जाता है। यह हर किसी की संस्कृति पर इतना सूक्ष्म आक्रमण है। इसी तरह आपने दक्षिण अमेरिका और उत्तरी अमेरिका से सभी मूल निवासी इंडियन को हटा दिया है। जहाँ भी ये लोग गए हैं, उन्होंने संस्कृतियों को खत्म कर दिया है। यह इन लोगों के पास एक बहुत ही विशेष प्रकार की आक्रामकता है, और आक्रामकता की हमेशा प्रतिक्रिया होती है। या तो दूसरी संस्कृति के लोग, वे लोग जिनकी अन्य संस्कृतियां हैं, इस संस्कृति जैसा बनने का प्रयास करेंगे, क्योंकि इसे सबसे महान माना जाता है। ऐसा कहने के लिए कि, “हमें दिखावे से नहीं डरना चाहिए, हमें अपने शरीर पर शर्म नहीं रखनी चाहिए।” हमारे भीतर गोपनीयता जैसी कोई चीज क्या है? क्या प्राइवेसी जैसी कोई चीज नहीं है? हमें अपने शरीर का सम्मान करना चाहिए!
अब अगर यह रवैया अपनाया जाए, की हर कोई कहता हो, “ओह, इस महिला को रोक दिया गया है क्योंकि वह अपने शरीर का प्रदर्शन नहीं करती है।” देह का दिखावा और कुछ नहीं बल्कि एक सूक्ष्म वेश्यावृत्ति है! आप देखते हैं कि ऐसा चलन में है , और चालू है, और चालू है। यह बहुत सूक्ष्म है। अब वहाँ से एक और सुझाव आता है कि, वे विश्वास नहीं कर सकते कि पच्चीस साल तक लोग ब्रह्मचारी रह सकते हैं क्योंकि इस देश में लोग नहीं कर सकते। लेकिन ऐसे कई देश हैं जहां वे शादी होने तक वास्तव में अविवाहित रहते हैं; उनमें से बहुत सारे। लेकिन उनके अनुसार यह संभव नहीं है, इसलिए शेष लोग हैं वे गलत हैं, वे झूठ बोल रहे हैं। और वे इसे दूसरों पर थोपते हैं कि, “आप हमारे जैसे ही बन जाएँ ! क्योंकि हमारी नाक कटी हुई है तो तुम भी अपनी नाक काट लो। सभी प्रकार के लोगों पर। यदि कहीं भी आप जाएं, तो सभी पश्चिमी लोगों ने, जो उन्होंने बर्बाद किया है, वह संस्कृति है, संस्कृति की विविधता है। और ऐसी सूक्ष्मता वाली संस्कृतियां वे समाप्त हो गई हैं! और अपनी आक्रामकता से उन्होंने लोगों से कहा है कि, “हम ऊँचे से भी ऊँचे हैं। अंग्रेजी भाषा आपको अवश्य पता होनी चाहिए! आप को फ्रेंच जानना चाहिए! आपको यह पता होना चाहिए!”
तो, मैं जो कह रही हूं वह यह है: जब हम समझ जाते हैं, तो हमें परिवर्तन करना होगा। हमें पता होना चाहिए कि हमें वास्तव में विनम्र होना है। भाषा में नहीं, व्यवहार में नहीं बल्कि अंदर से। यह सुनिश्चित करने के लिए कि हम दूसरों पर आक्रमण नहीं करते। ठीक है?
तो यह लेबर [पार्टी] और यह एक समस्या केवल आक्रामकता की है। यहां एक समुदाय। अब, मान लीजिए कि आप एक कुलीन व्यक्ति, तथाकथित अभिजात वर्ग को लेते हैं। इसलिए मुझे ‘इविता’ पसंद आई – उन्होंने सभी कुलीनों पर एक बड़ा व्यंग्य किया है। नृत्य ‘वे’ कैसे करते हैं। उन्होंने सभी उच्च वर्गों और सभी निम्न वर्गों और उस प्रकार के सभी पर एक बड़ा व्यंग्य किया है। यह बहुत अच्छा वाला है, मुझे कहना होगा। बहुत अच्छा व्यंग्य है – ‘इविता’। बहुत अच्छा व्यंग्य है बहुत पहले से।
तो, अब, यदि आपके भीतर वह आक्रामकता मौजूद है, तो बेहतर है कि उसे बाहर निकाल दें। आप के अंदर ‘आत्मा’ की संस्कृति को आना चाहिए। यानी उस स्थिति में होना है। अगर वह संस्कृति नहीं आ पाती है, तो ये दूसरी सभी संस्कृतियां बहुत आक्रामक हैं, और ये कभी भी किसी को कोई आनंद नहीं दे सकती हैं। लेबर [पार्टी] लोग सोचते हैं कि उन्हें कुलीनों, या अमीरों या उच्च वर्ग द्वारा चोट पहुंचाई गई है। लेकिन वे क्या बनने की ख्वाहिश रखते हैं? वे खुद अमीर लोग बनने की ख्वाहिश रखते हैं! वे अमीरों से आहत हैं और वे अमीर बनना चाहते हैं। यह तो ऐसा ही हुआ कि, अगर आपको किसी के जूते से चोट लगी है, तो आप खुद जूता बन जाते हैं। अगर आप अमीर लोगों से आहत हैं तो आप अमीर क्यों बनना चाहते हैं? यह एक साधारण प्रश्न है। मेरे जैसे व्यक्ति के लिए जिसके पास कोई भौतिकवाद नहीं है, मैं इसे नहीं समझ पाती।
साइमन: क्या मैं अपनी राजनीतिक व्यवस्था के बारे में कुछ कह सकता हूँ?
श्री माताजी: हाँ।
साइमन: यह तीन गुणों पर स्थापित किया गया था, आपके पास radicals कट्टरपंथी हैं जो रजस हैं, Conservatives रूढ़िवादी हैं जो तमस हैं और आपके बीच में Liberals उदारवादी हैं जो सत्व , बुद्धि हैं।
श्री माताजी : लेकिन मैं तुमसे कहती हूँ कि उदारवादियों को भी आत्मसाक्षात्कारी बनाने की ज़रूरत है! उनका पुनर्जन्म होना है। अन्यथा आपके पास एक भयानक जेरेमी थोर्प (हत्या का आरोपी एक समलैंगिक सांसद) होगा! आपने उन्हें कहीं भी (संसद में) सीट क्यों दी। आपने उसे सीट दी, आपने उसे सीट क्यों देना चाहिए? आपको ऐसा कहने का साहस होना चाहिए कि, “बेहतर है कि वहां न रहें।” उसे सीट मिल गई है!
योगी: वह अपनी सीट पर वापस जा रहे हैं। वह फिर से अपनी सीट के लिए खड़ा है।
श्री माताजी : हाँ, मैं जो कह रही हूँ वह यह है कि, जब तक वे आत्मसाक्षात्कार नहीं पायेंगे तब तक यह काम नहीं करेगा।
योगी: मैंने डेविड स्टील को माताजी के बारे में बताया, मैंने डेविड स्टील को माताजी के बारे में बताया।
श्री माताजी : जो मैं कह रही हूं ऐसा है कि: केवल यह प्रस्ताव करने से कि तुम मध्य में हो, तुम नहीं हो जाते। “सहज, सहज,” कबीरा ने कहा है: “सहज सहज, सब करत” (अर्थ) “वे सभी सहज, सहज कहते हैं, लेकिन वे हैं नहीं!” आपको शर्मिंदा होना चाहिए ऐसे भयानक नेता पर जो इतने दिनों से आपके पास था!
साइमन: जेरेमी थोर्प? वैसे वह हमारे पास मौजूद कुछ लोगों से बेहतर है।
श्री माताजी: नहीं, नहीं, वह भयानक है! आप बस उसके वायब्रेशन देखें। भयानक व्यक्ति वह है! नहीं नहीं नहीं। सब एक जैसे ही हैं! मेरे लिए वे सभी समान हैं – चुनने के लिए कुछ भी नहीं है। लेकिन अगर आपके पास कोई विकल्प है …
साइमन: आप देखिए, इंग्लैंड: हम एक आक्रामक राष्ट्र नहीं हैं और आपका ऐसा कहना कि हम एक आक्रामक राष्ट्र हैं, मुझे पसंद नहीं!
श्री माताजी : नहीं, नहीं, नहीं। जब किसी और चीज की बात आती है तो आप आक्रामक नहीं होते हैं। लेकिन जब संस्कृतियों की बात आती है, तो आप ऐसा करते हैं।
साइमन: वैसे हम अशिक्षित हैं, मैं मानता हूँ। जब हम भारत आए तो हमें नहीं पता था कि हम क्या कर रहे हैं, इसलिए हमने इससे नाता तोड़ लिया और हमें इससे कोई लेना-देना नहीं था।
श्री माताजी : अंग्रेज़ भारत से क्या लाये ? पजामा (हंसी) जोधपुर, वरांडा। आपने और क्या खरीदा? तो, आप उस तरह से आक्रामक हैं। आप समझ सकते हैं? तो इन सब चीजों को बदलना होगा। जैसे भारतीयों को बदलना चाहिए और जो कुछ भी आप उन्हें देते हैं उन्हें स्वीकार नहीं करना चाहिए।
साइमन: भारत में रहने का हमारा उद्देश्य आक्रामक नहीं था। और हम आक्रामक नहीं थे!
श्री माताजी: भारत में?
नया व्यक्ति: मुझे ये बातें सुनना अच्छा नहीं लगता!
श्री माताजी : हो सकता है आपको यह पसंद न आए लेकिन हम ने ये पाया है !! आप नहीं जानते कि उन्होंने हमारे साथ कैसा व्यवहार किया। साइमन, आपको कुछ पता नहीं है।
साइमन: जब मैं भारत जाता हूं और वे “विक्टोरिया रानी” क्यों कहते हैं? मैं जानना चाहता हूं कि भारत में वे क्यों कहते हैं “ओह, हम [विक्टोरिया] रानी वापस चाहते हैं।”
श्री माताजी : अरे! अगर आप किसी को पैसे देते हैं!
एक अन्य व्यक्ति: वैसे मैं उन भारतीयों से मिला हूं जो हमें बाहर निकालने के लिए जर्मनों को पसंद करते हैं क्योंकि वे कहते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध के बिना …
श्री माताजी : नहीं, नहीं, मैं आपको बहुत ही सरल तरीके से बताती हूँ। बस साइमन, साइमन। सुनो सुनो! मैं आपको बताउँगी। तुम समझ जाओगे। बहुत सरल। यह बहुत ही सरल है। यह एक गरीब देश है। तुम उन्हें पैसे दो, वे तुम्हें कुछ भी बेच सकते हैं। उन्होंने किताबे दीं और ये… दीं, हमारे पास ये कभी नहीं थीं। जैसे उन्होंने किसी को [एक शीर्षक के साथ] बुलाया। आप उसे क्या कहते हैं? ये सभी एम.ए., पीएचडी और वह सब, जो आपके पास यहां है? ‘शीर्षक’! उन्होंने उपाधियाँ दीं और उन्होंने यह और वह दी। अंग्रेज जानते है कि यह कैसे करना है। और उन्होंने इसके बारे में कुछ कहने के लिए कुछ लोगों को इकट्ठा किया। लेकिन जिस तरह से उन्हें इससे लड़ना पड़ा, आप नहीं जानते। आप नहीं जानते। तुम वहाँ नहीं थे।
साइमन: क्या आपने सत्यजीत रे की फिल्म ‘द चेस प्लेयर्स’ (शतरंज के खिलाड़ी) देखी है? सत्यजीत रे भारत के सर्वश्रेष्ठ फिल्म निर्माता हैं।
श्री माताजी : आप लोग यही सोचते हैं क्योंकि वह हमारी गरीबी के बारे में सब कुछ बताते हैं! वह हमारी भारतीय संस्कृति के बारे में कुछ नहीं जानता, एक शब्द भी नहीं। वे अध्यात्म के बारे में कुछ नहीं जानते – सत्यजीत रे। वह ठीक है, लोग उसे पसंद करते हैं क्योंकि वह साम्यवाद की गाथा गाता है। इसलिए लोग उसे पसंद करते हैं। वह भारत नहीं है! वह कभी भारत का प्रतिनिधित्व नहीं करते। यह ठीक है कि, वह बहुत बूढ़े लोगों जिन्होंने कहीं न कहीं अपने सभी पसलियों और पेट वगैरह को दिखाया है को ढूंढने में बहुत अच्छा है। वह ऐसा ही करता है और लोग इसे पसंद करते हैं, क्योंकि एक तरह की परपीड़न है: हम गरीबी देखना पसंद करते हैं, हम कुछ लोगों को प्रताड़ित होते देखना पसंद करते हैं क्योंकि हमें लगता है कि हम पर अत्याचार हो रहा है। साइमन, यह बहुत सूक्ष्म है, मैं आपको बताती हूं। आप एक भिन्न व्यक्ति हैं, आप इसे नहीं समझ सकते। लेकिन अब तुम अलग ही व्यक्तित्व हो। मैं उन लोगों की बात नहीं कर रही हूं जो भारत आए थे, लेकिन मैं कह रही हूं आज भी, जैसे पश्चिमी दिमाग है। आपकी तर्कसंगतता के साथ, आपके पास जो तथाकथित छात्रवृत्तियां हैं, तथाकथित हम औद्योगिक कह सकते हैं …
साइमन: भारतीय इन दिनों बर्ट्रेंड रसेल के लिए दीवाने हो जाते हैं …
श्री माताजी : वही तो मैं कह रही हूँ! मैं यही कह रही हूँ! जैसा तुम कह रहे हो, मैं वही कह रही हूं। आप उन्हें दे रहे हैं और वे ले रहे हैं, चाहे वह जहर हो या कुछ भी! मैं यही कह रही हूं। वे दूसरे प्रकार के मूर्ख हैं! आप एक प्रकार के हैं, वे दूसरे प्रकार के हैं। आप आक्रमण करते हैं और वे इसे स्वीकार कर लेते हैं। अगर भारत से कुछ आता है तो वे स्वीकार कर लेंगे। अगर इंग्लैंड से कुछ जाता है तो वे इसे स्वीकार कर लेंगे! मजेदार बात हो रही है।
योगी: लेकिन हमें ये सारे नकली गुरु भारत से मिलते हैं।
श्री माताजी : हाँ, मैं यही कह रही हूँ! तुम उनसे लेते हो, वे एक और संप्रदाय हैं। वे आपके पास कुछ गुरु भेज रहे हैं, आप उन्हें स्वीकार करते हैं! और यही आपसी समझ चल रही है। ठगों की एक बड़ी बिरादरी है!
योगी: आखिर आपने उनके लिए एक शानदार वेम्बली बिल्डिंग बनाई!
श्री माताजी: (हँसते हुए) अब देखो! आप मजाक देखें! पूरी बात! एक बार जब आप कहते हैं कि, “हम ब्रिटिश हैं या नहीं,” – वहीं समाप्त हो गया। आप बस कहिये, “हम इंसान हैं,” और फिर आप पूरा चुटकुला देख सकते हैं। अगर मैं कहूं, “मैं एक भारतीय हूँ”, मैं गई, समाप्त!
योगी: यह कोई राजनीतिक बात नहीं है।
श्री माताजी : देखिए, यह राजनीतिक रूप से नहीं है। यह बहुत ऊँची बात है। आप किसी भी समूह के साथ अपनी पहचान नहीं बनायें और तब आप इस मजाक को देख सकते हैं। अगर आपकी पहचान है तो आप नहीं कर पायेंगे|
नया व्यक्ति: आपको इसे शाब्दिक रूप से नहीं लेना है। श्री माताजी जो कह रहे हैं उसका सार आपको लेना है। आप सुनिए, माताजी जो कह रहे हैं, आप उसका सार लीजिये ना की शाब्दिक अर्थ।
श्री माताजी : नहीं, नहीं, नहीं। अगर आप मेरी बात सुनेंगे तो पूरी बात समझ में आ जाएगी, बहुत साफ-साफ, जो मैं कहना चाह रही हूं। क्रोध मत करो। जब मैं कह रही हूं “आक्रामकता है”, तो आप देखिये, जो मुझे समझ में नहीं आता है कि लोग दूसरों का अध्ययन नहीं करते हैं और अपने विचारों को दूसरे पर थोपने की कोशिश करते हैं – यह महान आक्रामकता है। अब, मेरे अपने घर में, मेरी दो बेटियां हैं: मैंने उन्हें यह नहीं बताया कि कुंडलिनी क्या है! क्या आप इस बात को गौण कर सकते हैं? क्या आप इसे पीछे छोड़ सकते हैं? उन्हें यह भी नहीं बताया कि कुंडलिनी क्या है, आत्मसाक्षात्कार देने की तो बात ही छोड़िए। ऐसा ही मेरे पति के साथ भी | अगर वे यह नहीं चाहते हैं, तो मैं दबाव नहीं डालने जा रही हूं। यह गैर-आक्रामकता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं उनसे आक्रामकता स्वीकार करती हूं। इसलिए, जब आप आक्रामकता को स्वीकार करते हैं तो यह वैसा ही होता है जैसे आप आक्रामकता करते हैं, अगर आप आक्रामकता करते हैं। मेरे लिए दोनों चीजें एक जैसी ही हैं।
इसलिए, जब हमें खुद को बदलना है, तो हमें कहना चाहिए, “हम क्या करते हैं?” “हम कहाँ है?” “क्या हम दूसरों पर हमला कर रहे हैं या हम आक्रामकता ले रहे हैं?” अब, मान लीजिए कि अतुल दोषी महसूस करता है, तो वह आक्रामकता ले रहा है। यदि आप एक अहंकारी तरीके से ऐसा महसूस करते हैं, “यह गलत है! वह गलत है!” तो आप दूसरों पर हमला कर रहे हैं। इन सभी बातों को इसके पूरे संदर्भ में और पूरी बात के पूरे नजरिए से देखा जाना चाहिए, तो आप समझ जाएंगे। लेकिन होता ऐसा है कि हम जीवन के एक हिस्से के साथ अपनी पहचान बनाते हैं। हम कहते हैं, “यही बात है।” और या तो हम उस मामले में दूसरों पर हमला करते हैं या हम आक्रामकता लेते हैं। यह बीमारी है। यह बीमारी का लक्षण है। जब भी ऐसा होता है, बीमारी शुरू हो जाती है। और यही दुनिया भर के सभी मनुष्यों की बीमारी का कारण है।
लेकिन एक बार जब आप अपनी पहचान समग्र से कर लेते हैं तो आप समग्र को एक रोगग्रस्त वस्तु के रूप में देखने लगते हैं। और फिर आपको अहसास होने लगता है जैसे आप उस बीमारी का इलाज डॉक्टर के रूप में कर रहे हैं। तब आप अपनी पहचान किसी बीमारी से नहीं बनाते हैं। ठीक है? यही ‘सहज’ जीवन है।
तो, अब अगर आपके पास कोई बीमार है – ठीक है – तो अब आप समझते हैं कि उस व्यक्ति, बीमार विशेष की मदद करके … बेशक, अगर आपकी यही इच्छा है तो यह भी किया जाएगा, क्योंकि आप सम्पूर्ण के साथ एकाकार हैं। लेकिन उस बीमारी के प्रति दृष्टिकोण कठिन है। क्या आप मेरी बात समझ पाए हैं? यह मदद करने का एक तरीका है क्योंकि वह बीमार है, वह गरीब है – अलग बात है। मैं जो कह रही हूं: दृष्टिकोण यह होना चाहिए कि हम सहज योग के प्रति पूर्ण रूप से आश्वस्त हो जाएं। हम पूर्णतया अपनी शक्तियाँ स्थापित करते हैं। और फिर हम उन्हें भी वही बनाते हैं। चूँकि वे बीमार पड़ेंगे, उन्हें सभी समस्याएं होंगी, जब तक कि वे ठीक नहीं हो जाते। तो यह प्राथमिक काम है जो किया जाना चाहिए। क्योंकि एक तरफ वे ऐसे लोग हैं जिनके अहंकार को ठेस पहुंची है, तो दूसरी तरफ वे लोग हैं जो अपने अहंकार से पीड़ित हैं। तो अगर आपको उन दोनों की मदद करनी है, तो आपको उन्हें मध्य में लाना होगा। ठीक है? क्या अब आप मेरी बात समझ रहे हैं?
अब उन्हें मध्य में लाने का तात्पर्य उनकी खुशामद करना नहीं है। उस तरीके से नहीं। लेकिन मध्य को विकसित करके। मध्य को दोनों तरफ दूर तक विकसित होने दें, ताकि वह उन सब को समा ले। क्या आप मारिया को समझते हैं?
मारिया: हाँ माँ।
श्री माताजी : वे कभी भी ईश्वर में विश्वास नहीं करेंगे क्योंकि इस तरह से वे अपने अहंकार को प्रदर्शित कर सकते हैं। भारतीय मूर्खों का एक दूसरा समूह है, बिल्कुल मूर्खों का समूह, क्योंकि सीमा के परे जा कर जिस तरह से वे आप लोगों का अनुसरण कर रहे हैं! मेरा मतलब है कि आप पहले से ही खाई में हैं तो, वे कहाँ जा रहे हैं? सबसे पहले, उनमें ईमानदारी के बारे में उनके पास कोई कीमत ही नहीं है – यह समाप्त हो गया है। अब अगर वे अन्य आचरण, मूल्य भी आपसे प्राप्त कर रहे हैं तो ये बीमार लोग, वे कहाँ पहुंचेंगे? वैसे भी वे चोर हैं। चोर जब अनैतिक बन जाएगा तो अब क्या होगा? जैसे किसी को बिच्छू ने काट लिया हो और उसके ऊपर शराब पी लेता है, तो ऐसे व्यक्ति का क्या होता है?
तो आक्रामकता भीतर है, जिसे ठीक किया जाना है। सभी आत्म्साक्षात्कारियों के लिए, यह देखना महत्वपूर्ण है कि क्या हम अपने भीतर कोई आक्रामकता झेल रहे हैं, यह उतना ही गलत है जितना दूसरों पर आक्रामकता करना ।
हमें ऐसे लोगों का एक समूह विकसित करना है जिनके पास वास्तविकता का विचार है, जो समझते हैं कि सत्य क्या है। जो लोग दूसरे प्रकार से स्थापित होने जा रहे हैं, जो इस दुष्चक्र को काट देंगे। हमारे पास उस तरह की सोच होना चाहिए, जिससे हम समग्र की बीमारी को देखें और उसे ठीक करने का प्रयास करें। इस तरह हम प्रबंधन कर सकते हैं। लेकिन अगर आज भी, आप उनमें से किसी एक के साथ पहचान बनाना शुरू कर दें, तो मैं कहूंगी कि, आप गलत हैं। अब आप मेरी बात समझे?
आप बस उनमें से किसी एक के साथ पहचान नहीं बनायें ! आरंभ करने के लिए आपको स्वयं को वास्तविकता के साथ, स्व के साथ पहचान बनानी होगी। जब तुम वो बन जाओगे…
योगी : निर्गुण !
श्री माताजी: जरूरी नहीं कि निर्गुण। आप सगुण से ही शुरुआत करें। क्योंकि मैं सगुण में हूँ, क्या करें? यदि आप सगुण में नहीं आते हैं – सगुण ‘रूपों के साथ’ है – यदि आप रूप में नहीं आते हैं, कोई समझ नहीं पाता, कौन बात करेगा तुमसे? एक निर्गुण आपसे बात नहीं कर सकता। इसलिए सगुण को आना पड़ा।
अब आप अपने भीतर सगुण की पूरी समझ को स्थापित कर लें। अब, ज्यादा संदेह न करें। यदि आप एक संदेह करने वाले थॉमस हैं तो आप शून्य उपलब्धि के साथ समाप्त होंगे! मैं आपको इतना बता सकती हूं। हमारे पास सालों से लोग हैं। एक सज्जन सात साल से आ रहे हैं और आप उन्हें जानते हैं, और कुछ भी नहीं किया जा सकता है। और वह गणित में निपुण माना जाता है! तो, आपको उन लोगों को देखना होगा जिन्होंने सगुण को समझ लिया है और वे कहाँ तक पहुंचे हैं; और, अगर आपको प्रगति करनी है, तो आप इसे अभी समझने की कोशिश करें, सबसे पहले।
दूसरे, आपको यह भी समझना चाहिए कि आप ही वे लोग होंगे जो पूरी दुनिया को एक नई जागरूकता में, एक नए जीवन में, एक नए आयाम में ले जाने वाले हैं! इसलिए अपनी पहचान उन लोगों के जैसी न बनाएं जो अभी भी अंधे हैं, जो नहीं देखते हैं। वे तुम्हें और अंधा बना देंगे। उन लोगों जैसी अपनी पहचान बनाएं जिन्होंने कुछ देखा है। जिन लोगों को अनुभव हुआ है, आप उन्ही जैसी पहचान बनायें। अपना चित्त उन्ही पर लगाएं, तभी आप देख सकते हैं। और यह तभी संभव है जब आप अपनी गलत पहचान को छोड़ना शुरू कर दें।
क्या तुम देखते हो? जब तक तुम पहचान ही गलत रखते हो, तुम पगला जाओगे! आपको यह समझ नहीं पड़ेगा कि इसके बारे में क्या करना है। वह बीमारी है। आप धीरे-धीरे इन तादात्म्यों में शामिल होते गए, क्योंकि वातावरण ऐसा ही है, पूरा परिवेश ही वैसा है। हर तरफ से आपके पास ऐसे लोग हैं जिन्होंने बस आपको लील लिया है। वे आपको इसमें शामिल करते हैं! आपको इसमें अच्छी तरह से आना होगा! आपकी आजादी समाप्त कर दी गई है। आप इसके बारे में सोचने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं। और इस तरह आप गलत पहचान से मुक्त नहीं हैं। शुरू में तो आप ठीक थे, लेकिन धीरे-धीरे आप अपनी गलतियों से घिरे और पहचाने जाने लगे।
इस देश में तुम्हारे पूर्वजों ने जो किया है, या मेरे पूर्वजों ने मेरे देश में जो किया है, उसके लिए तुम कैसे जिम्मेदार हो? मुझे बताओ। वे आपके लिए कौन हैं? हो सकता है कि वे अब चीन में चिंकी आंखों के साथ पैदा हुए हों। (हँसी) बस! या राई (?) में हो सकता है, या सैनिकों के रूप में ईदी अमीन के साथ भाग रहे हो सकते है। कहीं भी हो सकता है! और उन्होंने जो कुछ भी किया है, उसके लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। ठीक है? उस बिंदु पर रखें।
अब, यदि आप अपने गोत्र के किसी भी व्यक्ति के लिए भी जिम्मेदार महसूस करते हैं, तब भी यह गलत है, क्योंकि आप अलग-अलग लोग हैं। जब आप वह बन जाते हैं तो आपको अपनी पहचान उस नए सम्प्रदाय के साथ करनी चाहिए, जिसने सत्य को जाना है।
लेकिन मनुष्य बहुत आसानी से किसी ऐसी चीज से तादात्म्य कर लेता है जो इतनी भ्रामक है: जैसे यदि आप इंग्लैंड में पैदा हुए हैं तो आप अंग्रेज हैं, यदि आप भारत में पैदा हुए हैं, तो आप भारतीय हैं। आपका जन्म टिम्बकटू या किसी भी स्थान पर हुआ होगा! ये सभी गलत पहचान आप में यह समस्या पैदा करती हैं।
फिर इस पहचान के साथ भी, आप पुरे चक्करों में जाते हैं। यदि आप एक भारतीय हैं, तो आप एक भारतीय की तरह बोलना शुरू करते हैं, एक भारतीय की तरह व्यवहार करते हैं: इसके अच्छे और बुरे सभी प्रकार। अंग्रेजों के साथ भी ऐसा ही, फ्रेंच के साथ भी, हर चीज के साथ ऐसा ही। धीरे-धीरे आप शुरू करते हैं, यह गलत पहचान आपके अंदर काम करने लगती है। लेकिन, तुम भीतर की शुद्ध वस्तु हो। ये सभी अशुद्धियाँ आपको ढक लेती हैं। तो स्वयं को इन सभी अशुद्धियों से, किसी भी प्रकार से मुक्त करने के लिए। मैं तुमसे कहती हूं कि यह तुम पर किसी कब्जे के समान है।
इन सब चीजों से पूरी तरह मुक्त होना ही अंतिम लक्ष्य है।
तो, ये सभी विचार, जब वे आपके दिमाग में आते हैं, तो कृपया याद रखें कि ये सभी हमारे पास आए हैं क्योंकि हम एक विशेष समाज, एक विशेष जाति, एक विशेष धर्म के हैं।
अब, उदाहरण के लिए, उस दिन, आप जानते हैं, एक सज्जन थे जिन्होंने कहा, “मैं हर समय बहुत दोषी महसूस करता हूं।” तो मैंने कहा, “क्या आप कैथोलिक हैं?”
वह बोला, नहीं।”
तो मैंने कहा, “आपके पास दोषी महसूस करने का कोई काम नहीं है!” (हंसी) क्योंकि अगर आप कैथोलिक हैं, तो आपको हर समय दोषी महसूस कराया जाता है! यह एक सामूहिक है। बचपन से अगर किसी को बार-बार ब्रेन वाश हो जाए, एक नन्हा बच्चा समझ नहीं पाता यदि तुम जा कर उससे कहो कि, “तुम पापी हो।”
वह बोला, नहीं?”
तुम उसे बताते चले जाओ, वह कहेगा, “क्या मैं पापी हूं?” फिर वह चर्च जाता है। तब वे कहते हैं, “तू पापी है।”
योगिनी: आपको कबूल करना होगा!
फ्रांसीसी योगी: ‘पश्चाताप करो, पश्चाताप करो’!
श्री माताजी: पश्चाताप करो, पश्चाताप करो। अब वह कहता है, “मुझे क्या पश्चाताप करना चाहिए?” तो वह इसके बारे में सोचता है, वह पुजारी के पास जाता है और उससे कहता है कि, “मैं एक बात के लिए पश्चाताप करता हूं।” उन्होंने कहा, “क्या?” “क्योंकि मैंने नल खोला है।” उन्होंने कहा, “क्या?” “मैंने नल खोला और मेरी माँ ने मुझे इसके लिए डांटा। मैं इसके लिए पछताता हूं।” तो यह वहीं से शुरू होता है, और पूरी बात काम करने लगती है। फिर बेचारा किसी और चीज के लिए पछताता है। लेकिन अंदर ही अंदर, जब वह पछता रहा होता है, तो वह एक थैली बना रहा होता है। और इस तरह ये भयानक लोग, तथाकथित ‘ईसाई’ – या तथाकथित ‘हिंदू’ भी हम कह सकते हैं – ये सभी एक जैसे हैं। परन्तु मैं इनके विषय में कह रही हूं, कि वे किस तरह से ईसा-मसीह के विरुद्ध गए हैं। एक चीज जो उन्होंने सिखाई वह है गैर-आक्रामकता! आप किसी को दोषी महसूस कराते हैं और वही भाव आप में आ जाता है! बिल्कुल शैतानी! क्या बाइबल में कोई उल्लेख है कि ईसा-मसीह चाहते थे कि कोई उस के सामने कबूल करे? उन्होंने किसी भी मौके पर कहां उल्लेख किया?
योगी: नहीं, नहीं।
श्री माताजी : तो फिर इन लोगों ने स्वीकारोक्ति का यह धंधा क्यों शुरू किया है? और ईसा-मसीह की तुलना में वे कौन हैं, कि वे कॉन्फेशन मांगते हैं? किसी थियोलॉजिकल कॉलेज द्वारा नियुक्त! कुछ लोगों द्वारा चुने जाते हैं जहां चिमनी से धुआं निकलता है! (वेटिकन में जब नया पोप चुना जाता है)
बिना सोचे-समझे ये सारी मूर्खतापूर्ण बातें आप पचा लेते हैं और फिर आपकी की पहचान गलत हो जाती है,मारिया की भी। ठीक है? तो, आपको समझना चाहिए। खुश और आनंदित रहें कि आपने वह शाश्वत जीवन पाया है और इसके साथ एकाकार हो जाओ।
मारिया: मैं करुँगी, माँ
श्री माताजी : ठीक है। और आप उन्हें बता दें कि, “तुम सब मूर्ख मूर्ख हो। और तुम अपनी मूर्खता के साथ आगे बढ़ो! और जब तुम बिलकुल डूब जाओ, तो हमारे पास आना!”
मारिया: मैं ऐसा तब तक करती थी जब तक उन्होंने मेरा दमन नहीं कर दिया। तभी माँ, आपने मुझे ढूंढा और आपने मुझे उसमें से निकाला।
श्री माताजी : मैं जानती हूँ।
मारिया: यही मैं अध्यात्मवादियों से कहा करती थी। मैं उनके बारे में जो सोचती थी , वही उन्हें बताती थी ।
श्री माताजी: लेकिन क्यों? एक अध्यात्मवादी वे कौन हैं? क्या आप जानते हैं कि कौन लिप्त है? ये सब घटिया बातें। ऐसा ही भारत में भी ! हमारे पास ये सभी भयानक तांत्रिक हैं, यह, वह। देखा जाए तो तांत्रिक ज्यादातर बंगाल, बिहार, यूपी, केरल, मद्रास, असम में प्रचलित हैं।और वहां आप पाते हैं गरीबी, सबसे अधिक बिहार में जहाँ अधिकतम गरीबी है|
मेरा मतलब है, इन लोगों की बेतुकी बात देखिए: हम जिस जगह गए, कोवलम, वह केरल में है। लोग बेहद गरीब हैं और अखबार वालों के लिए यही मुख्य मुद्दा है- गरीबी। वे हर समय इसका फायदा उठाना चाहते हैं – गरीबी। जैसे कि वे बहुत गरीब हैं, गरीबों की तरह रहते हैं। और इन लोगों ने मेरे कार्यक्रम को एक बड़े हॉल में व्यवस्थित किया, और यह एक कालीन या कुछ और था, मुझे नहीं पता कि यह क्या है; तो, उन्होंने प्रकाशित किया कि माताजी दीवार से दीवार तक बिछे कालीन वाले कमरों के सुइट में रह रही थी, वगैरह की बकवास! मैं, बेचारी, इन लोगों के साथ रह रही थी! लेकिन क्यों? क्योंकि वे इसका मतलब निकालना चाहते थे कि, वह विलासिता में रहती है या जो कुछ भी है। मैं हमेशा विलासिता में रहती हूँ चाहे मैं गरीब हूँ या अमीर – मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता! तो, उनके पास यही भाषा है। लेकिन गरीबी क्यों है, वे क्यों नहीं सोचते?
क्या आप जानते हैं, उस देश में, ऐसी दयनीय स्थिति है, कि श्री आदि शंकराचार्य का जन्म उस देश में हुआ था, और इन लोगों ने मुझसे कहा कि, “हम नहीं जानते कि वह कौन थे और हम यह भी नहीं जानते कि उनका जन्म किस देश में हुआ था।” उन्हें खुद पर शर्म आनी चाहिए! और दूसरा काम जो उन्होंने किया था कि, उन लोगों ने उन्हें प्रताड़ित किया क्योंकि जब वह वापस आये, जब उसकी माँ बीमार थी, तो वे उसे पानी भी नहीं देते थे, उन्होंने कहा, “तुम एक सन्यासी हो, तुम्हारा अपनी माँ के पास आने का कोई काम नहीं है। “और जब वह मर गई तो उन लोगों ने उसे न जलाया। इसलिए, उसने उसे घर में ही जला दिया और उसे जलाने के लिए उसने केले के सभी पेड़ों का इस्तेमाल किया। और फिर उन्होंने उस देश को श्राप दिया कि, “जिस तरह से मुझे अपनी माँ को जलाना पड़ा था, तुम वही करोगे।” इसलिए अब वे जल नहीं सकते। तो वे क्या करते हैं कि, वे कब्र खोदते हैं और उन्हें अपने घरों के सामने रखते हैं। तो कल्पना कीजिए कि हर घर में हजारों भयानक लोग मरे हुए मंडरा रहे हैं! हमने एक गांव में जाकर लोगों का हाल जाना। वे सब भाग गए! उन्होंने [योगियों] ने कहा, “हे भगवान!” रुस्तम से पूछो – उन्होंने कहा, “माँ, यह कैसा गाँव है?” और फिर आप इन भयानक निरर्थक लोगों की मुक्ति करने की बात करती हैं! भगवान को ऐसा क्यों करना चाहिए?
वे तांत्रिकों के पीछे भागना चाहते हैं, फिर भूत आते हैं और आप अपनी गरीबी की समस्या को कैसे हल कर सकते हैं? कोई देश बताओ जहां इतने भूत हैं और दौलत है। हमेशा आप पाएंगे कि अमीरों की तुलना में गरीब लोग इसमें अधिक लिप्त हैं! और एक बार जब अमीर इसमें लिप्त होने लगेंगे तो आप भी बन जाएंगे। यह बहुत ही साधारण सी बात है। अगर आप लोग नहीं जानते तो, मैं समझ सकती हूँ, लेकिन भारतीय यह जानते हैं कि, अगर आपके घर के अंदर एक भूत आ रहा है, तो आपकी सारी लक्ष्मी नष्ट हो जाएगी लेकिन फिर भी वे ऐसा करते हैं – । यह बात तो सभी जानते हैं लेकिन फिर भी भारत में ऐसा करते हैं।
रुस्तम: इसमें कोई शक नहीं है माँ कि जिस क्षण आप लंदन लौटते हैं, बायीं आज्ञा चली जाती है। और जब आप इसे छोड़ते हैं तो आप इसे मुक्त होते हुए महसूस कर सकते हैं। जब मैं जर्मनी जाने वाले विमान में था तो मुझे यह महसूस हो रहा था कि यह छूट रही है और जब मैं वापस आ रहा था तो यह फिर से पकड़ा गया।
श्री माताजी : इंग्लैंड इससे भरा हुआ है। लेबर और कंजर्वेटिव्स और वह सब लाने का कोई फायदा नहीं। अगर वे मेरी बात सुनना चाहते हैं, तो इन सभी तांत्रिकों को यहाँ से नष्ट कर दो, एक और सब – तुम ठीक हो जाओगे। आप कोई भी तरकीब आजमाइए – आपको परेशानी ही होगी। लेकिन मेरी सुनेगा कौन? किसी समय वे चुड़ैलों और उस सब पर विश्वास करते थे। डायन का शिकार और वह सब होता था, लेकिन उन्होंने इसे रोक दिया है। अब इस देश में चुड़ैलें बहुत अच्छी तरह से बसी हुई है।
साइमन: कई ईसाई चुड़ैल हैं माँ।
श्री माताजी: हाँ! तथाकथित ईसाई!
साइमन: नहीं। इसका मतलब यह नहीं है कि वे बुरे हैं। नहीं! इसका मतलब यह नहीं है कि वे बुरे हैं।
श्री माताजी : वे बुरे नहीं हैं, लेकिन एक तरह से बुरे हैं, क्योंकि वे सभी भूतों को बाहर से लाते हैं।
साइमन: नहीं, वे खेतों में फसल को उगाते हैं और हमें यहां चुड़ैलों को रखना होगा अन्यथा हमें फसल नहीं मिलेगी।
श्री माताजी : कोई भूत आपके द्वारा बोल रहा है। (हँसी) कोई भूत आपके माध्यम से बोल रहा है, आप जानते हैं।
साइमन: मुझे क्षमा करें।
श्री माताजी : साइमन, तुम ठीक हो, लेकिन आप में एक डायन है जो बोल रही है, आप ऐसा नहीं कह रहे हैं। आप ऐसा कैसे कह सकते हैं कि चुड़ैलों को यहाँ होना चाहिए जब मैंने अभी-अभी आप सभी को उनके बारे में बताया है कि वे क्या करती हैं? क्या आप चाहते हैं कि लोग गरीबी से पीड़ित हों? सभी प्रकार के मानसिक रोगों और परेशानियों से ग्रसित हों? हम उन्हें यहां नहीं चाहते हैं।
साइमन: (पागल की तरह शांत आवाज में बड़बड़ाता रहता है)
श्री माताजी : आप क्या चाहते हैं, आप नहीं जानते। सबसे पहले आप पता करें कि आप क्या चाहते हैं, इसे लिख लें और मुझे बताएं। सबसे पहले आपको अपने ऊपर इन सभी दबावों से छुटकारा पाना चाहिए। खुद आपके कमरे में ही, एक समस्या है: ये चुड़ैलें हैं, आसपास। वे सब यहाँ हैं। आपको उन्हें साफ़ करना होगा। इन सभी को इस देश से बाहर निकलना है। अगर मेरे यहाँ आने से, इतना भी नहीं हो सकता तो मेरे यहाँ आने का क्या फायदा? लेकिन अगर आप उनके साथ तादात्म्य रखते हैं तो मैं इसके बारे में क्या कर सकती हूं?
सभी चर्च ऐसा कर रहे हैं। जैसा कि मैं आपको पहले ही बता चुकी हूं कि यह दोष स्वीकारने के धंधा बहुत गलत है। किसी देश विशेष की जो भी समस्या है, उसे उस देश विशेष में ही निपटाया जाना है, है न? भारत में भी इसी तरह की हमारी समस्या है। लेकिन वह बहुत अलग प्रकार है। मेरा मतलब है कि यह एक संगठित धर्म नहीं है इसलिए मैं इसे बेहतर तरीके से नष्ट कर सकती हूँ लेकिन यह यहां व्यवस्थित है! सेवंथ डे एडवेंटिस्ट, ये एक और भयानक पेंटेकोस्टल, वे संगठित हैं, उन्हें कानून द्वारा स्वीकार किया जाता है, वे ये सब चीजें यहां कानून के माध्यम से कर रहे हैं!
अरनौद: माँ, क्या आपको नहीं लगता कि, जब वे आपको दोषी होने की भावना वगैरह देते हैं, ईसाई और कैथोलिक चर्च के माध्यम से, [कि] वे उसी समय में अपनी शक्ति बढ़ाना चाहते हैं?
श्री माताजी : बिल्कुल! यही नाटक है, यही नाटक है। लेकिन केवल एक बुद्धिमान व्यक्ति ही देख सकता है कि यह सच है। आप किसी को बहुत दोषी महसूस कराते हैं, इस तरह वे आपका सोच परिवर्तन करते हैं! यह केवल ब्रेनवॉशिंग है। जिस तरह हिटलर जर्मनों का ब्रेनवॉश कर सकता था, उसी तरह इन लोगों ने भी आपका सोच परिवर्तन किया है। भारत में भी, वे वही काम करते हैं – आपका ब्रेनवॉश करते हैं। उन्होंने हर तरह का ब्रेनवॉश किया है लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि पश्चिमी धर्म सभी संगठित हैं।
इसलिए जब वे संगठित होते हैं तो वे दृढ़ हो जाते हैं और उनके पास एक असंगठित धर्म की तुलना में बहुत अधिक शक्ति होती है। आप उन्हें बेहतर तरीके से प्रहार कर सकते हैं! अब यहाँ के पुजारी का कितना सम्मान है! भारत में एक पुजारी का इतना सम्मान नहीं किया जाता है। उससे पूछो, वह ब्राह्मण है! (हँसते हुए) अगर हमारे घर में कोई पुजारी आता है तो हम उसका सम्मान नहीं करते। वह पैसा लेता है, हम जानते हैं कि वह पैसा लेता है। हम उसका सम्मान नहीं करते जिस तरह यहां पुजारी का सम्मान किया जाता है। क्योंकि यह संगठित है। उन्होंने कुछ सम्मान करके अपने मानदंड और चीजें बनाई हैं।
अरनौद: कितना भयानक है यह कि, उन्होंने भ्रम दिया; और मध्य युग के दौरान वे पश्चिमी देशों को ज्ञान, ज्ञान का धर्म देते हैं। क्योंकि ज्ञान के माध्यम से वे धर्म का परिचय देना चाहते थे। और बाद में धर्म ज्ञान बन गया।
श्री माताजी : तो दुष्चक्र शुरू होता है। इसलिए आपको इसे तय करना होगा और आपको सबसे पहले अपनी गलत पहचान को छोड़ना होगा। क्योंकि तुम्हारे सारे रोग तुम्हारी पहचान से आते हैं। ठीक है? जैसे, अब तुम यूनानी हो। अब यूनानियों की भी कुछ गलत पहचान हैं, उनमें से काफी कुछ!
मारिया: बहुत सारे!
श्री माताजी: (हँसते हुए) तो, एक बार जब आप सहज योगी या सार्वभौमिक व्यक्तित्व बनने लगते हैं, तो आप बस उस सब से अलग हो जाते हैं, आप उसके लिए खड़े नहीं होते हैं। लेकिन अगर आप असली यूनानी हैं, तो आपको अन्य सभी यूनानियों को भी बताना होगा कि, “यह ऐसा है!” अगर आप उन्हें सच में प्यार करते हैं।
अरनौद: मुझे यह कहते हुए खुशी होगी कि आप मेरी मौसी को जानती हैं।
श्री माताजी: (हँसते हुए) तुम्हारी मौसी के बारे में मुझे इतनी चिंता नहीं है! क्योंकि वे अब एक उम्र पर पहुँच गई हैं। लेकिन आने वाले भविष्य का क्या? अब जो लोग इस तरह के संगठित धर्मों के हैं, जैसा कि उनके पास है, जैसा भारत में हुआ है: वैसे ही यहां भी होने जा रहा है, कि वे किसी भी धर्म में विश्वास नहीं करेंगे। जैसा आपने कहा, दूसरा पक्ष शुरू हो गया है! वे किसी ईश्वर को नहीं मानते।
मारिया: मैं सच में नहीं जानती कि उन्हें क्या पता लगाना है।
श्री माताजी : कुछ नहीं! यह एक अति से दूसरी अति की ओर केवल एक झूला है, बस इतना ही। कोई दिशा नहीं है, कोई मार्गदर्शन नहीं है। यह सिर्फ बहुत अधिक विश्वास करने ( कट्टरता) से एक दुसरे छौर अविश्वास पर झूल कर चले जाना है! हमारा सहज योग ऐसा बिल्कुल नहीं है। चरम, आप जानते हैं, चरम।
तो एक अति से दूसरी अति पर वे स्वतः ही चले जाते हैं। मेरा मतलब है कि यह बिल्कुल अपरिहार्य है। आपको मध्य में रुकना होगा। और जो रुक रहे हैं उन्हें विकसित होना चाहिए ताकि वे उस सब को समा लें। यही मैं आपको बताने की कोशिश कर रही हूं। ठीक है?
और जब आप उन्हें देखना शुरू करेंगे, तब आपको पता चलेगा कि वे कितने भयानक हैं।
मारिया: यह बहुत दर्दनाक है।
श्री माताजी : वे कितने भयानक हैं, यह देखना बहुत दुखद होता है, यह सच है। बेशक हमें उनका इलाज करना है, लेकिन पहले हमें ठीक होना चाहिए, हम सब, और हमें इन सभी चीजों को एक साथ खींचना चाहिए।
रुस्तम: मुझे नहीं पता माँ, मैंने देखा है कि नकारात्मकता इस तरह काम करती है कि यह लोगों पर हमला करती है और फिर यह आपको उनके लिए खेद महसूस कराती है और फिर यह आपकी सारी ऊर्जा को चूस लेती है ताकि आपको सहज योग के लिए कोई काम करने का मौका न मिले ।
श्री माताजी : देखिए, नकारात्मकता भी है। जैसे रुस्तम को पहले यह समस्या थी – वह अति-सहानुभूति रखता था। यदि आपके पास सहानुभूति है … यदि आप ‘सहानुभूति’ का अर्थ देखते हैं – इसका अर्थ है ‘दुःख
में सहभागिता’।
आप उनके दुःख को साझा करते हैं, है ना! (हंसते हुए) तो यह भी है। और अब मैंने ऐसा क्यों कहा कि आपने, इन पश्चिमी देशों में, आपने अपने [पूर्वजों] की आक्रामकता देखी है, इसलिए आप दूसरे रास्ते पर जा रहे हैं। आप अति-सहानुभूतिपूर्ण हैं। और वह बात आपके खिलाफ ही बोलने वाली है, बिल्कुल। सहानुभूति करने के लिए कुछ भी नहीं है। इतना मजबूत होना है, कि तुम बस इसी तरह की समस्याओं का समाधान करो। यहां बैठकर आपको समस्या का समाधान करने में सक्षम होना चाहिए। इसलिए अपनी शक्तियों का विकास करें। ठीक है साइमन? यह वही है। आपको अपनी शक्तियों का विकास करना चाहिए। और आप उन्हें कैसे विकसित करेंगे, यह है कि भीतर मौन और मौन रहकर और स्वयं को देखकर। आपको बस धारण करना है! आपके पास पहले से ही शक्तियां हैं। आप सभी आदि शक्ति से समृद्ध हुए हैं। आपके लिए सब कुछ किया गया है। तुम्हें यह प्राप्त हो गया है। आप पहले से ही सशक्त हैं। बस इसका इस्तेमाल करें। क्या आप इस बात पर संदेह कर सकते हैं कि आप सशक्त नहीं हैं? आपके पास पहले से ही शक्तियाँ हैं और आप में से अधिकांश यह भी जानते हैं कि क्या करना है। आप जानते हैं कि इस शक्ति का उपयोग किस लिए किया जाना है। आपको ज्ञान भी है। लेकिन केवल इसे धारण कर लेना है! आपको मान लेना है।
मारिया: हमें विवेक की भी जरूरत है।
श्री माताजी: आपके पास है! आपको जरूरत नहीं है, मारिया। आपके पास इसका बहुत कुछ है। केवल एक चीज उनके साथ सहानुभूति नहीं करें| बस उनकी चिंता मत करो। वे मूर्ख लोग हैं।
मारिया: मैं हर समय यही करती रही हूं।
श्री माताजी : यह ठीक नहीं है। आप उस पर अपनी ऊर्जा बर्बाद नहीं करें, इसलिए तूम बहुत पतली हो गई हो । उर्दू में एक कहावत है, “काज़िदली बिड़ली कशाये दक्या देशकते” (?) वे कहते हैं, “पुजारी, तुम इतने बीमार क्यों हो? क्योंकि आप पूरी दुनिया के लिए चिंतित हैं”!
[विराम]
चित्त दें। लेकिन ऐसे मामले में आपका निर्लिप्त चित्त होना चाहिए। अगर यह निर्लिप्त चित्त नहीं है तो तुम ऐसा नहीं कर सकते।
मारिया: सहज योग के माध्यम से ही मुझे बहुत सारी अतिरिक्त शक्तियां महसूस होने लगती हैं। इन चीजों से निर्लिप्तता । लेकिन मुझे अभी लंबा सफर तय करना है।
श्री माताजी : नहीं, नहीं, कठिन नहीं है। यह केवल एक सेकंड है जिसकी आपको आवश्यकता है। आप बस कहिये , “तुम सभी दूर हटो!”
बच्चा: चले जाओ!
श्री माताजी: तो, इसका एक उदाहरण हमारे पास दिल्ली में था। हमारे पास रामकृष्ण मिशन के लोग थे। उसी आश्रम की एक महिला थी जिसे कैंसर था और उसने कहा, “क्यों? मैं उपकार कर रही थी, मैं दूसरों की मदद कर रही थी। मैं उनकी देखभाल कर रही थी।” मैंने कहा, “फिर आपको कैंसर क्यों हुआ?” उसने कहा, “अब मेरे उपकार में मुझे यह मिल गया है।” तो मैंने कहा, “अब आप इसका आनंद लें!” आपने उपकार करके इसकी कीमत चुकाई है! आप इसे बिना किए ही करते हैं। आप यह भी नहीं जानते कि आप यह कर रहे हैं। यह इतना आसान है। ठीक है?
मारिया: यह आपके आंतरिक धर्म का हिस्सा बन जाता है।
श्री माताजी : हाँ, अन्यथा, आप सोचते हैं कि आप कुछ कर रहे हैं, इसका मतलब है कि आप में अभिमान आता है, और सब कुछ बर्बाद हो जाता है।
अरनौद: लेकिन माँ, हम जितना समर्पण करेंगे और जितना विश्वास करेंगे, उतना ही ठीक होगा।
श्री माताजी : हाँ, ठीक हो जाएगा। अगर आप बिलकुल ठीक हैं, अगर आप मजबूत लोग हैं, तो विराट ठीक हो जाता है, आदिम ठीक हो जाता है – अगर आप एक मजबूत शरीर बन जाते हैं। अगर शरीर का कोई अंग बीमार है तो आप उसका इलाज कर सकते हैं। उनसे लड़ने के लिए आपको कितनी कोशिकाओं की आवश्यकता है? बहुत ज्यादा नहीं।
लेकिन हम लड़ने वाले सेल हैं। हमें उनके साथ की पहचान न बना कर उनसे लड़ना है। आपको उनसे इस तरह लड़ना है कि आप उनके लिए रोएं नहीं। [इसका] मतलब है कि आप उनसे प्रभावित नहीं हैं। नहीं! आप विरक्त हो। आप बस कहते हो, “तुम ठीक हो जाओगे,” और वे ठीक हो जाएंगे। आपके पास इतनी शक्तियाँ हैं! क्या तुम जानते हो? लेकिन एक बार जब आप उनके लिए रोना शुरू कर देते हैं, तो शक्ति निष्प्रभावी हो जाती है। यह बिना किसी गाइड के किया जाना चाहिए, कुछ भी, आप बस कहते हैं, “ठीक है, आप ठीक हो जाएंगे।”
जो सब ठीक और अच्छा है। नहीं तो हमारे लिए प्रतिष्ठा का कोई सवाल ही नहीं है! अगर कोई ठीक हो जाता है, अच्छा और अच्छा। हमने हर किसी का ठेका नहीं लिया है कि हमें करना चाहिए। हम चाहेंगे तो करेंगे। अगर हम नहीं चाहते हैं तो हम ऐसा नहीं करेंगे। यह पूरी स्वतंत्रता में है कि हम इसे करते हैं। कम से कम मैं करती हूँ! यह पूर्ण स्वतंत्रता में है। अगर मैं करना चाहती हूं, तो मैं करूंगी; अन्यथा मैं नहीं करूँगी। उसी तरह आपको होना चाहिए। तो फिर निर्लिप्तता आती है। पूर्ण स्वतंत्रता भी पूर्ण वैराग्य है, और वह है पूर्ण प्रेम।
मारिया: कभी-कभी माँ जब मैं किसी स्थान पर जाती हूँ तो लोग कहते हैं कि, वे मुझे पहले से जानते थे और मेरा उनके प्रति भावना और उसका प्रदर्शन था, और क्या सहज योग के माध्यम से आप भावना रहित हो जाते हैं … इस प्रकार वे इसकी व्याख्या करते हैं।
श्री माताजी: भावना रहित ? नहीं, आपको कहना चाहिए, “अब मैं समझ गयी हूँ कि, क्या कमी थी। और मेरे मन में तुम्हारे लिए बहुत अधिक भावना है। आप सहजयोगी बन जाते हैं।” वे हमेशा आप पर निर्भर थे और आपको उन्हें देना ही था। अब तुम्हे कहना चाहिए, “तुम भी दाता बनो! सहज योग के द्वारा आप मेरे समान बन सकते हैं। मैं चाहती हूं कि तुम वह बनो।” किसी के लिए बैठना और रोना अच्छा नहीं है। और कुछ लोग ऐसे भी होते हैं।
मारिया: उन्हें सहानुभूति पसंद है?
श्री माताजी : उन्हें चीज़ का दिखावा अच्छा लगता है। जैसे कि आप एक जगह जाते हैं और वे कहते हैं, “ओह, क्या तुमने देखा है? क्या वह उसके साथ थी?” वह सब चला जाना चाहिए।
मारिया, मेरे जैसे व्यक्ति के लिए, मैं बस करूंगी, मैं शायद परवाह भी न करूं। मुझे क्यों करना चाहिए? मैं लिप्त नहीं हूं। लेकिन फिर लोग इसे पसंद करते हैं अगर कोई आता है और बहुत ज्यादा पूछता है। यह भावना नहीं है! भावना तब होती है जब वह शुद्ध निर्लिप्तता में होती है। आप संवेदनहीन नहीं हैं, आप भावहीन नहीं हैं, लेकिन आप भावना हैं। आप भावना बन जाते हैं। भावना पूरी तरह से आपके साथ पहचानी जाती है। क्या तुम समझ रहे हो?
मारिया: हाँ।
श्री माताजी : आप भावना हैं। संपूर्ण महासागर: भावनाओं का सागर। आप भावना उत्पन्न करते हैं! जब आप लोगों के साथ होते हैं तो वे भावनाओं में आ जाते हैं। आप उनमें भावनाओं को प्रेरित कर सकते हैं। लेकिन किसी की भावना का आप पर प्रभाव न पड़े, तभी यह संभव है। समुद्र भी तालाब नहीं बन सकता।
मारिया: माँ, क्या आपको याद है, चिट्ठी में मैंने एक वाक्य लिखा था कि मुझे काम की थोड़ी दिक्कत है. यही समस्या थी। हालांकि मैंने लोगों के नाम पर बंधन दिए और घर पर उनके लिए प्रार्थना करती हूं, काम पर मैं उनकी भावनाओं और उनकी समस्याओं से निर्लिप्त हो जाती और इस वजह से वे परेशान होते कि वे मेरा ध्यान क्यों नहीं आकर्षित कर पाए। आप देखिए, मेरा ध्यान उस बिंदु पर आकर्षित हुआ, लेकिन उसका हिस्सा बनने की ओर नहीं गया और इससे वे परेशान हो गए और इसलिए मुझे समस्या थी क्योंकि वापस उन्होंने बहुत ही नकारात्मक वायब्रेशन भेजे जो अंततः मैं बर्दाश्त और महसूस नहीं कर सकी।
श्री माताजी : नहीं, आपको इसमें चतुराई से काम लेना चाहिए। आपको व्यवहार कुशल होना चाहिए। आपको उनके बारे में व्यवहार कुशल होना चाहिए। वह बात नहीं है। केवल एक चीज है, भले ही आप खून बहाएं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता जब तक कि यह आपको अंदर से चोट न पहुंचाए। अगर यह सब उपरी है, तो ठीक है। जब आप किसी पर चित्त देते हैं, तो आपको अपने प्रति पूरी तरह चौकस रहना चाहिए।
मारिया: लेकिन माँ, जिस प्रकार के चित्त की उन्हें ज़रूरत थी, वह एक स्वार्थ परक था जिसका मैंने सत्कार नहीं किया।
श्री माताजी : उन पर विचार मत करो। मैं जो कह रही हूं, वह यह है कि जैसे ही आपको बोध प्राप्त होगा, आपको आश्चर्य होगा कि आप बिल्कुल अलग धरातल पर हैं, बिल्कुल अलग स्थिति में हैं। और दूसरों के साथ तालमेल बिठाना थोड़ा मुश्किल होने वाला है क्योंकि वे चाहते हैं कि आप पहले जैसे थे वैसे ही बने रहें। तुम वही नहीं हो सकते। आप एक अलग हैं। यह सिर्फ ऐसा ही था कि आप उन्हें कुछ समय के लिए कुछ दे सकते थे, बस। लेकिन अब, उन्हें पता चल जाएगा कि आपके पास उपचारात्मक शक्तियां हैं; आप उनका इलाज कर सकते हैं, आप चीजें कर सकते हैं। आपका मूल्य [उनके लिए] बहुत अधिक बढ़ जाएगा! तो आपको इन चीजों के बारे में चिंता करने की कोशिश करने की जरूरत नहीं है। धीरे-धीरे वे आपको स्वीकार कर लेंगे।
मारिया: चीजें अपने आप सुलझ गई ।
श्री माताजी: हाँ, वे इसे सुलझा देंगे ! आपके पीछे हजारों लोग हैं! आप नहीं जानते कि चिरंजीव (शाश्वत प्राणी) हैं, आपके पीछे महान व्यक्तित्व हैं। तो तुम बस जाने दो। और हमें उनके मानदंडों द्वारा निर्देशित नहीं होना है, उनके द्वारा नहीं। हमें अपने मानदंड खुद बनाने होंगे क्योंकि हम भिन्न लोग हैं। लेकिन पहले खुद पर भरोसा रखें! वह पहली बात है।
क्या आप बेहतर हैं अतुल? अब, साइमन, आप कैसे हैं? क्या आप किसी चीज़ के लिए दोषी महसूस कर रहे हैं?
साइमन: (बुदबुदाया) नहीं।
श्री माताजी : अब तुम एक छोर से दूसरे छोर तक मत झूलो, बस मध्य में रहने का प्रयास करो। आपने बहुत कुछ पढ़ा है और आप बहुत कुछ जानते हैं, इसे ध्यान कहा जाता है। आपको ध्यान मिला है। लेकिन आपको बोध प्राप्त नहीं हुआ है। इसका मतलब है कि आपका ध्यान अभी तक प्रबुद्ध नहीं हुआ है। ठीक है? क्योंकि एक ‘जानना’ है, और दूसरा यह ‘जानना है कि ज्ञान प्रबुद्ध है’। दोनों में यही अंतर है। ठीक है?
दूसरे दिन गेविन ने मुझसे पूछा, “समाधि क्या है?” तो मैंने उससे कहा कि, यह प्रबुद्ध जागरूकता है। प्रबुद्ध जागरूकता। आप जागरूक हैं, लेकिन आप प्रबुद्ध नहीं हैं। समाधि वह है।
तो सहज योग में, सबसे पहले आपको निर्विचार समाधि मिलती है – वह है निर्विचार प्रबुद्ध जागरूकता। और दूसरी बात आपको निर्विकल्प समाधि मिलती है – यह संदेह रहित प्रबुद्ध जागरूकता है। तो संदेह रहित स्थिति में जाने के लिए आपको पता होना चाहिए कि संदेह से कैसे बचें| आपको अपने दृष्टिकोण की शैली को बदलना होगा। अन्य चीजें जो आपने संदेह से प्राप्त की होंगी, लेकिन सहज योग आप समा जाने से प्राप्त करते हैं।
गेविन: शुरुआत में आपको यह दिखावा भी करना होगा कि आपको कोई संदेह नहीं है।
श्री माताजी : तुम्हें अपने साथ नाटक करते रहना है। अपने मन से कहो, “मैं संदेह करने वाला नहीं हूँ।” कुछ समय तक ऐसा करते रहें। तब यह काम करता है।
श्रद्धा जैसा कुछ नहीं है। श्रद्धा, मैं कह रही हूँ, अंध विश्वास नहीं, बल्कि विश्वास। अब आपको वायब्रेशन प्राप्त हुए हैं । अब उन पर विश्वास करो! यही एकमात्र तरीका है! और कोई रास्ता नहीं है जो कि मैं आपको इतना बता सकूं। जिन लोगों ने संदेह करना शुरू कर दिया है, वे उस तक कभी नहीं पहुंचेंगे। आपको हर समय संदेह के साथ फेंक दिया जाएगा। और एक समय ऐसा भी आ सकता है जब मेरा ध्यान हट जाए और तुम वैसे ही छुट जाओगे । आप ऐसे सहज योग नहीं कर सकते। लेकिन अंध विश्वास की जरूरत नहीं है। सबसे पहले आप वायब्रेशन महसूस करते हैं। आप खुद देख लीजिए।
या तो हम पूरी तरह से अंध विश्वास रखते हैं या फिर हमारे पास तार्किकता है। क्या हम बीच में कुछ नहीं हो सकते? जो लोग बिल्कुल अंधे हैं वे बेकार हैं। उन्हें बचाया जा सकता है क्योंकि अगर वे मुझसे सवाल पूछ सकते हैं कि, “क्या आप यह हैं? क्या आप वही हैं?” तभी उन्हें बचाया जा सकता है। अगर वे उस बिंदु पर आते हैं! लेकिन जो तर्कबुद्धि वाले हैं, वे इसमें कभी नहीं आ सकते! क्योंकि यह बंदर की तरह एक शाखा से दूसरे तक उछल-कूद करने जैसा है, आप कभी नीचे नहीं उतर पाते।
यह केवल विश्वास के माध्यम से है, श्रद्धा, समर्पण के माध्यम से ऐसा होगा कि आप उस स्थिति को प्राप्त करने जा रहे हैं। और फिर कोई भी इधर-उधर की छोटी-छोटी लहरें, कुछ भी आपको परेशान नहीं करने वाली हैं। आप अपने भीतर उस अवस्था का आनंद लेने जा रहे हैं। अपनी श्रद्धा को अनुमति दें की यह आपको डूबा सके।
आप जानते हैं कि समय बहुत कम है। आपको अपना साक्षात्कार मिल गया है और उसके बाद आप उस तक पहुंचने में इतना समय लेते हैं कि, समय बहुत नष्ट हो जाता है। ऐसा क्यो करें? अब आपने देखा कि जिन लोगों की श्रद्धा है, वे कितनी दूर चले गए हैं, तो क्यों न उनका अनुसरण किया जाए?
तो यह बहुत महत्वपूर्ण है कि, संदेह करने से आपको कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है! आप भटक रहे होंगे। लेकिन आपको वास्तव में रखना है …
श्री माताजी : बड़ी लड़कियाँ निकल गयी हैं (हँसी) बड़ी लड़कियाँ बाहर खेलने गई हैं, तुम भी बाहर जाकर उनके साथ खेलो, ठीक है?
बच्चा: ठीक है। (हँसी)
श्री माताजी : ठीक है। देखो, कितना विश्वास है! क्योंकि वे निर्दोष हैं। उन्हें खुद पर विश्वास है। इसलिए अपनी तार्किकता बंद करो। यह आपको कहीं नहीं ले जाएगी! आपको अपनी श्रद्धा विकसित करना सीखना होगा। यहां तक कि अगर आपको आत्मसाक्षात्कार मिलता है, आप लोगों को ठीक करते हैं, आप कुछ भी करते हैं।
हमारे पास किसी ऐसे व्यक्ति का उदाहरण है जिसे आप जानते हैं। उनकी मां ऐसे ही ठीक हो गईं। वह वैसे ही ठीक हो गया था। उसे वैसे ही नौकरी मिल गई। वह जो चाहता था वह मिल गया, और फिर अचानक वह बाहर निकल गया! बिना किसी श्रद्धा के। तो यह ऐसा ही है। बहुतों ने ऐसा इसलिए किया है क्योंकि अगर आपके पास श्रद्धा नहीं है, तो आप एक से दूसरे में कूदते-कूदते थक जाते हैं। आप हर समय इसी पर संदेह करते रहते हैं। यह सिर्फ एक मानसिक उपलब्धि है। हम थोड़ी देर के लिए सर्कस करना पसंद करते हैं, यह ठीक है, लेकिन इसे भूल जाओ! अब इसमें कूद पड़ो और इसे प्राप्त करो! अब आप क्या खोते हो? आप कुछ भी नहीं खोते हैं!
योगी: हम अहंकार खो देते हैं।
श्री माताजी: अहंकार। आप अपना अहंकार खो देते हैं लेकिन आपको अपना व्यक्तित्व मिल जाता है। तुम क्या खोते हो? कुछ भी तो नहीं। आपको सारी शक्तियाँ मिलती हैं। अब समय बहुत कम है और आप इसे करने में बहुत अधिक समय ले रहे हैं। और आप में से कुछ थके हुए होंगे, अपनी शंकाओं के साथ हर समय ऐसे ही उछलते-कूदते, इस तरह, उस तरह। और किस बात पर शक कर रहे हो? यह सब मुफ़्त है। आपको इसके बारे में कुछ नहीं करना है। और लोगों पर शक करना काफी बेवकूफी भरा हो सकता है। वे हर बेहूदा बात पर शक करते हैं जिसका कोई मतलब ही नहीं है। वे ऐसी चीजें देखते हैं जो मौजूद नहीं हैं क्योंकि यह सिर्फ एक आदत है, या आप एक लिप्तता कह सकते हैं; आप इस में संदेह करना लोगों के लिए मनोरंजन कह सकते हैं। और फिर शंका । आप देखिए, वे बंदरों की तरह उछल-कूद कर रहे हैं। बंद करो!
आप में से कोई भी जो श्रद्धा में गहन जाता है और विलीन हो जाता है वह परमात्मा के हाथों में एक महान साधन बन जाता है! यहां तक कि यह कहना कि, “मुझे शक है,” गलत है। ये लोग सोचते हैं कि ऐसा कहने वाले हम बहुत ईमानदार हैं, “मुझे संदेह है। मुझे माँ पर शक है।” कृपया ऐसी ‘ईमानदारी’ छोड़ दें! यह बेतुका है! यह अहंकार है जो आपको ये बातें कह रहा है कि, “मुझे संदेह है।” क्योंकि ऐसा कहने से ही वह अस्तित्व में है और आपको लगता है कि आप बहुत ईमानदार हैं। ऐसा नहीं है कि आप संदेह कर रहे हैं, आपका अहंकार संदेह कर रहा है। जब आप यह जान जाते हैं कि आपका अहंकार संदेह कर रहा है, तो यह आसान हो जाएगा। “यह मैं नहीं हूं जो संदेह कर रहा है, यह मेरा अहंकार है जो शक कर रहा है। या हो सकता है कि मुझ पर कुछ बाधा है जो संदेह कर रहा है। ” “क्या मैं किसी बाधा या अपने अहंकार के हाथों में खेल रहा हूँ?”
यह वही है – सौ प्रतिशत! क्योंकि जिन लोगों ने संदेह नहीं किया, वे बहुत आगे चले गए हैं। आपने भारत में लोगों को देखा है। आपने धूमल को देखा है – उन्होंने कभी संदेह नहीं किया! उनके अपने भाई, उनकी इतनी मदद की गई: उनके पास खाना खाने के लिए भी पैसे नहीं थे, वे उस स्थिति में चले गए थे क्योंकि उन्होंने एक व्यवसाय में बहुत पैसा लगाया था जो विफल हो रहा था। जब वे सहज योग में आए तो उनका व्यवसाय ठीक वैसे ही कमाई करने लगा। वह एक पैसे वाला आदमी बन गया। उसका बच्चा बीमार था, वह ठीक हो गया था। वह बीमार था, वह ठीक हो गया था। उसकी पत्नी किसी लाइलाज बीमारी से बीमार थी, वह ठीक हो गई। लेकिन फिर भी उसे शक था। इसके बाद उसने शराब पीना शुरू कर दिया। वह कभी ड्रिंक नहीं करता था लेकिन शक करने के बाद उसने ड्रिंक लेना शुरू कर दिया। उन्होंने अपनी बात को सिद्ध करने के लिए वह सब किया जो सहज योग में वर्जित था। और अब वह कहाँ है?
मैं कहूंगी, अपने स्व पर ध्यान दो, अपने संदेहों पर नहीं! आपके मन के कुछ अंधेरे कोनों से शंकाएं आ रही हैं जो आपके पास हैं। बिंदु यह है कि, आप क्या खोने जा रहे हैं, इस पर आपको गौर करना चाहिए। इसे वहीँ व्यवस्थित करें। दूसरों ने क्या खोया है? उन्होंने हासिल किया है। जिन लोगों ने संदेह किया है, उन्होंने समय गंवाया है। इसलिए व्यर्थ की बातों में अपना समय बर्बाद न करें। संदेह की कोई बात नहीं है। मेरा हर शब्द सत्य और सत्य है।
वायब्रेशन देखें। आप समझ सकते हैं! मुझे आत्म प्रशंसा करनी पड़ती है ताकि वायब्रेशन प्रवाहित हों। आप समझ सकते हैं! हर शब्द। तो शक मत करो! बस इसे ले लो और इसे ले लो। मैं खुद यह सब जानती हूं। आपको ये बातें बताकर मैं कुछ हासिल नहीं करने जा रही हूं, सिवाय इसके कि आप मुझे जानेंगे और मैं आपको जानूंगी।
आपको कुछ खोना नहीं है। आपको हासिल करना है। तो अपने मन को कुछ देर चुप रहने को कहो! यह पहले से ही बहुत तेज गति से चल रहा है।
अच्छा!
हम पूर्ण संदेह रहित जागरूकता की उस अवस्था तक पहुंचना चाहते हैं और उसके लिए क्या हम इन शंकाओं को अपनी जेब में लेकर चलेंगे? उनका कोई मतलब नहीं है। उन सभी को निष्प्रभावी कर दिया जाएगा। आपने ऐसे लोगों को देखा है जिन्होंने इसे बेअसर कर दिया है। लेकिन जो ऐसा (संदेह) करते हैं उनके लिए …मेरे पास कोई शब्द नहीं है।
अपनी श्रद्धा स्थिर करो। इसे स्थिर करो! यह एक बल है। यह मोमबत्ती की एक लौ की तरह है। इसे स्थिर करो! लेकिन अपनी शंकाओं से आप उस पर भारी दबाव डाल रहे हैं और उसे उन शंकाओं का सामना करना पड़ रहा है। आप खुद को कमजोर कर रहे हैं! इसे स्थिर करो। आप सभी इसे स्थिर करें।
साइमन, आपको ठीक होना होगा। अब, आप युगों-युगों से साधक हैं। कई जन्मों में तुम खोजते रहे हो। और अब आप इधर-उधर और नहीं खेलेंगे। ठीक है? आप होने जा रहे हैं कुछ निश्चित ?? . पूर्णतया
साइमन: माताजी क्या मैं अभी जा सकता हूँ?
श्री माताजी : ठीक है। तुम जा सकते हो।
साइमन: मिलते हैं।
श्री माताजी: और तुम उन्हें फेंक दो और सात और नींबू मेरे घर लाओ।
साइमन: कल रात?
श्री माताजी : कल रात।
साइमन: आप किस समय मेरा आना पसंद करेंगी ?
श्री माताजी : ओह, लगभग पाँच बजे से किसी भी समय, यह बेहतर है। ठीक है? पांच, छह, कभी भी। मेरे घर आओ, उन्हें ले आओ। और फिलिप्पा से कहो कि वह भी यदि संभव हो तो कल शाम को आकर मुझसे मिलें, क्योंकि मैं उससे इस बारे में बात करूंगी कि क्या दिया जाना है।
साइमन: सात मिर्च और साथ ही सात नींबू?
श्री माताजी : हाँ, हाँ। ठीक है? और जैसा कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ, अपने आप से प्यार करने की कोशिश करो। और अब अपने पीछे मत पड़ो।
मैंने आपको बताने की कोशिश की क्योंकि आज समय है मैं आपको इन चीजों के बारे में बता सकती हूं, कुछ चक्रों के लिए की उन्हें कैसे साफ किया जाए, शारीरिक रूप से भी आप कोशिश कर सकते हैं। उनमें से एक विशुद्धि चक्र का है।
अब विशुद्धि चक्र के लिए मैंने आपको बहुत सी बातें बताई हैं लेकिन आप एक और चीज आजमा सकते हैं जो आपकी मदद करेगी। अपना सिर इस प्रकार भूमि पर रखना है, बिस्तर के पास, बिस्तर पर अपने पैरों के साथ, बिस्तर पर पैर आराम से रखे हुए। और अधिक से अधिक बिस्तर पर आने की शरीर को लाने की कोशिश करो। इसे बेड पर धकेलें ताकि सारा प्रेशर यहीं ऊपर आ जाए। ठीक है। और फिर मेरा फोटोग्राफ नजदीक ही रखें। उस अवस्था में आप मेरी तस्वीर देखें। यह आपकी विशुद्धियों में सुधार करेगा। ऐसे में यदि आपके पास विशुद्धि बाएं तरफ है, तो आप अपना मुंह दायीं ओर मोड़कर देखें। यदि आपको दायीं विशुद्धि की समस्या है तो अपना मुंह बायीं ओर मोड़ो और मेरी तस्वीर देखें। इससे आपको मदद मिलेगी क्योंकि आप सभी को विशुद्धि की समस्या है। यह मददगार होगा।
योगी: आपका मतलब फर्श पर गर्दन है?
श्री माताजी : यदि आप जमीन पर लेट जाएं तो। अब बस लेट जाइए, उस तरफ की तरफ मुंह करके…हां, अब आगे बढ़ो, ऐसे ही। गेविन सावधानी से रहें। अब, नीचे जाओ। आप नीचे जाएँ, और भी अधिक -अधिक । फिर से इस निचले हिस्से को ऊपर लाने की कोशिश करें।
रुस्तम : शरीर को सीधा करें।
श्री माताजी: हाँ। ताकि ज्यादा हठ योग न हो। क्या आप देख सकते हैं? हाँ।
योगी: क्या आप अपने कंधों या सिर पर भार रखते हैं? गर्दन पर दबाव?
श्री माताजी: विशुद्धि पर अधिक। अब बेहतर है?
योगी : फोटो कहाँ रखेंगे यदि आप मेरी तरफ नहीं देख रही हों ?
श्री माताजी : नहीं, नहीं। आप जिस भी तरफ आप देखते हैं फोटो आपके पास है।
योगी: हाँ, मुझे पता है। लेकिन अगर आप बाएं या दाएं नहीं देख रहे हैं?
श्री माताजी : आप अपना फोटो अपने साथ घुमाइए। आपको तस्वीर दिखनी चाहिए, है ना? क्योंकि यह हमेशा आपकी आज्ञा को मदद करता है। यदि इससे आपकी आज्ञा स्वच्छ हो जाती है। अन्यथा आज्ञा अवरुद्ध है। आप समझ सकते हैं? बेहतर?
गेविन ब्राउन: हम्म। यह बहुत अच्छा है।
श्री माताजी : यह तो बहुत अच्छा है। आप सभी को यह चीज जरूर ट्राई करनी चाहिए। स्वाधिष्ठान के लिए क्या करना चाहिए, इसके बारे में मैंने आपको बता दिया है। यह आपको याद है?
योगी: क्या मुझे उन्हें दिखाना चाहिए?
श्री माताजी : हाँ, उन्हें दिखाइए कि स्वाधिष्ठान के लिए क्या करना है – शारीरिक रूप से।
योगी: और आप मन्त्र कहते हो ?
श्री माताजी : हाँ, आप मन्त्र बोल सकते हैं, अच्छा रहेगा।
अब उन लोगों के लिए जिन्हें मूलाधार की समस्या है, या जो जमीन पर बैठकर कुछ नहीं कर सकते हैं: उनके लिए अपने दोनों पैरों के साथ इस तरह अभ्यास करना [सहायक] है। उन्हें ऐसे ही लगाएं, आपको भी यही समस्या है। इस तरह इन दोनों पैरों को एक साथ रख दें। आप देखिए, आप इसे ज्यादा नहीं बढ़ा सकते। इसे नीचे (घुटनों को) जमीन पर फैलाने की कोशिश करें! जितना हो सके कोशिश करें, कोशिश करें! नहीं, एक बार में आप यह नहीं कर पायेंगे!
योगी: आपको अपने घुटनों को नीचे करने के लिए [कोशिश] करनी होगी?
श्री माताजी: हाँ। अपने घुटनों को नीचे रखो। उन्हें जमीन को छूना चाहिए। मैं अपने मोटे होने के बावजूद बहुत कुछ ऐसा कर सकती हूँ! इसे ऊपर उठाने की कोशिश करें और इसे नीचे धकेलें। धीरे-धीरे करना होगा। आप इसे कर लेंगे, एक महीने में, आप इसे पूरा कर लेंगे। वह बहुत अच्छा है। आप इसे उठाएं ताकि केवल आपका मूलाधार छू रहा हो।
पहले आप इसका अभ्यास करें फिर वह कार्यान्वित हो जाएगा।
कोशिश करो। देखो! यह काम कर रहा है। यह अब बहुत बेहतर है। धीरे-धीरे है। यह काम कर रहा है। आप देखिए, यह अब बहुत बेहतर है। आप देखते हैं कि धीरे-धीरे यह काम करेगा, धीरे-धीरे, अगर आप इसे करते हैं।
यह मूलाधार के लिए अच्छा है। उन सभी लोगों के लिए जिन्हें मूलाधार की समस्या है, यह एक अच्छा विचार होगा।
तो धीरे-धीरे हमें अलग-अलग चक्रों को देखना चाहिए, सब कुछ। अब हंसा के लिए भी, हंसा , मैं तुम्हें बताती हूँ कि क्या किया जाना है। आप अपने शरीर पर ऐसे ही लेटते हैं, अपने पेट के बल।
योगी : किस चक्र के लिए ?
श्री माताजी: हंसा के लिए। अब साथ आओ! अपनी इन चीजों को, मूलाधारों को, यहाँ हंसा पर रखो, और अब धरती माँ से अपनी समस्या को शोषित करने के लिए प्रार्थना करो। लेकिन उस पर काफी दबाव होना चाहिए।
अब आप इसे घुमाएँ। बेहतर? आप बेहतर महसूस करते हो? आप नीचे की तरफ सनसनी महसूस कर सकते हैं। उन्हें गायब होने दें। यहां, आपका दबाव भी दूर हो जाएगा…आप दबाव से राहत महसूस करेंगे। बेहतर?
अब ध्यान करो।
यहां तक कि यह आपकी विशुद्धि पर भी, धरती माता से कहना एक अच्छा विचार होगा।
ओम् साक्षात ओंकारा स्वरूपिणी।
ओंकार है और यहीं क्राइस्ट बनते हैं। तो ओंकारा को यहाँ ले लो।
कोई देवता नहीं, क्योंकि यह एक निर्गुण है।
यह बस शिथिल हो रहा है। और अपनी भुजाओं को आराम देने के लिए आप लेट सकते हैं आप अपना सिर धरती माता पर रख सकते हैं। धरती माँ पर कोई सा भी गाल रख कर, आप देखिए।
लेकिन यही सब आखरी तरीका नहीं है! आपको मंत्रों का प्रयोग करना है, और समर्पण और भक्ति के साथ।
बेहतर? अब बहुत हल्का। यह अच्छा है।
क्या हाल है? आप समुद्र पर गए हैं?
योगी: नहीं, समुद्र पर नहीं, लेकिन मैं समुद्र में जाता रहा हूं।
श्री माताजी : अच्छा। (हँसते हुए) इसने आपकी सभी समस्याओं का समाधान कर दिया होगा! यह एक अच्छा विचार है। मैं यही कहती हूं: समुद्र में उतरो। अच्छा। बहुत अच्छा।
योगी: क्योंकि इन जगहों पर जहां हम जाते हैं, आप देखिए, यह उन लोगों से घिरा हुआ है जो गैर-धार्मिक चीजों के लिए आते हैं। तो तुम उनके बीच में होते हो और समुद्र में कूद जाओ!
श्री माताजी : लेकिन अब उनका समय खराब चल रहा है। अब आप जिधर भी देखें, इन सभी रिसॉर्ट्स का बुरा समय चल रहा है। रिसॉर्ट्स और इन चीजों पर भूकंप आ रहे हैं। भूकंप और बहुत सारे तूफान और ये सब चीजें हो रही हैं, क्योंकि अगर आप अधार्मिक काम करते हैं तो समुद्र खुद ही क्रोधित हो जाता है।
योगी : क्या आपको याद है पिछले साल स्पेन में आग से नौ सौ लोगों की मौत हुई थी?
श्री माताजी : हाँ बहुत। ऐसा भी हुआ। सभी प्रकार आप जानते हैं। ग्रीक का यह जहाज यह टैंकर उतरा। फ्रांस में एक ऐसा रिसॉर्ट है जो इस चीज से खत्म हो गया था। और स्पेन में यह समाप्त हो गया जब वे एक गैस लाए, यह बात। तो, हर जगह। अब एक तूफान है और दूसरे दिन मैंने एक भूकंप आने के बारे में पढ़ा।
योगी: वैसे कैरिबियन में अभी ज्वालामुखी फट रहा है
श्री माताजी : हाँ, ज्वालामुखी फट रहा है। सभी कैरेबियन समुद्र जिसका अधार्मिक चीजों के लिए दुरुपयोग किया गया था।
अरनौद: माँ, मैंने हेराल्ड ट्रिब्यून में एक लेख पढ़ा, मैंने एक लेख पढ़ा जिसमें कहा गया था कि, युद्ध ही नहीं, प्रकृति क्रोधित हो रही है और हमें बहुत सावधान रहना चाहिए। और मैंने ग्रेगोइरे को यह लेख दिया।
श्री माताजी: लेकिन यह सब आप गलत कर रहे हैं। समुद्र के सामने ऐसा व्यवहार करने की कल्पना करें!
योगी: लेकिन कैरिबियन के कुछ हिस्सों में वे बहुत धार्मिक लोग हैं। मैंने एक कार्यक्रम देखा जहाँ एक बुढ़िया बाइबल पढ़ रही थी। वह कैश रजिस्टर की प्रभारी थी और वह ग्राहकों की सेवा करती थी और फिर बाइबल पढ़ती थी।
श्री माताजी : वहाँ भी कुछ आ रहा है।
योगी: लेकिन इसमें थोड़ा सा अध्यात्मवाद मिला हुआ है।
श्री माताजी : कुछ भी स्पष्ट नहीं है, आप जानते हैं। निरपेक्ष रूप से कुछ भी नहीं। तो, ये छोटे, छोटे पैचवर्क, वे क्या मदद कर पायेंगे? आपको ज्वालामुखी चाहिए! वास्तव में! क्या करें? इसलिए मैं कहती हूं, “इन भयानक लोगों के साथ सहानुभूति रखने का क्या फायदा?” उन्होंने पूरे कैरेबियन सागर को बर्बाद कर दिया है। इसे पूरा का पूरा ।
योगी: और कैलिफोर्निया।
श्री माताजी: कैलिफोर्निया एक और है! यह बहुत अच्छी तरह से विस्फोट होने वाला है!
योगी: पिछले साल उन्होंने आगजनी पायी थी|क्या ऐसा नहीं हुआ था? जिससे काफी संपत्ति और क्षेत्र को नुकसान पहुंचा था। क्या तुम्हें याद है?
श्री माताजी: ओह, उनके यहाँ हाल ही में वहाँ कुछ हुआ था?
योगी: हाँ।
श्री माताजी : मेरे विचार से एक तूफान आया।
योगी: कैलिफोर्निया?
श्री माताजी: हाँ। बहुत हाल में।
योगी: कैलिफोर्निया नहीं, फ्लोरिडा।
श्री माताजी : नहीं, नहीं। कैलिफोर्निया ही। वहां था।
योगी: एक आग।
श्री माताजी : आग लग गई हाँ, आग लग गई।
योगी: मैं उस जगह से ड्राइव करता गुज़रा, जहां फ़िल्मी सितारों के घर है। वे आग नहीं रोक पाए।
योगी: हॉलीवुड दुनिया की सबसे खराब जगहों में से एक है.
श्री माताजी : वे पाप उत्पन्न करते हैं।
योगिनी: और वे इसे पूरी दुनिया में निर्यात करते हैं।
श्री माताजी : हाँ, वे वह सब उत्पन्न करते हैं जो ईशनिंदा है। वे लोगों को पाप करना सिखाते हैं। वे लोगों को अनैतिकता देते हैं। उन्हें वह सारी शक्ति देते हैं जो निरपेक्ष, सत्य से लड़ने के लिए आवश्यक है। वे आपका ब्रेनवॉश करते हैं।