Conceive something beyond

Doctor Johnson House, Birmingham (England)

1979-05-31 Public Program At Dr Johnson's House London NITL HD, 61'
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                                          सार्वजनिक कार्यक्रम

डॉ जॉनसन का घर, बर्मिंघम (इंग्लैंड)  31 मई 1979

[एक योगी द्वारा परिचय]: [अस्पष्ट] आध्यात्मिक व्यक्तित्व जिसने पृथ्वी पर पुनर्जन्म लिया है और उन्होने हममें से बहुतों को हमारे वास्तविक स्वरूप का बोध कराया है और मुझे आशा है कि आप सभी आज रात खुले दिमाग से यहां बैठेंगे और कोशिश करेंगे और जो वे आपको देना चाहती हैं वो प्राप्त करेंगे। और मैं केवल इतना ही कह सकता हूं कि आप बस उनके तरफ अपने हाथ रखें, आराम से बैठें और सुनें कि माताजी को क्या कहना है।

[श्री माताजी बोलते हैं]: मैं बाला और फिलिप, मेरे सभी बच्चों की आभारी हूं, जो इस हॉल की व्यवस्था करने में सक्षम हुए और आप सभी को इस कार्यक्रम के लिए यहां बुलाया है।

 जब भी इस धरती पर अवतार आए, उससे आधुनिक समय वास्तव में बहुत अलग है। जब क्राइस्ट इस धरती पर आए थे तब और आज जब किसी को साधकों का सामना करना पड़ता है तो इतना बड़ा अंतर है। ईसा के समय कोई साधक नहीं था, एक भी साधक नहीं था। जब वे इस पृथ्वी पर आए, तो उन्हें वास्तव में लोगों को समझाना पड़ा, उन्हें उनके लिए किसी प्रकार की समझाइश देना थी कि उन्हें इच्छा करनी चाहिए, कि परे कुछ ऐसा है जिसके लिए उन्हें प्रार्थना करना चाहिए। लेकिन आज यह बहुत अलग बात है, आज हमारे पास एक नहीं बल्कि लाखों साधक हैं; विशेष रूप से पश्चिम में, लोग खोज रहे हैं।

कुछ परे की कल्पना करने की हमारी क्षमता के माध्यम से प्राप्ति की इच्छा  हमारे पास आती है। हम नहीं जानते कि हम क्यों खोज रहे हैं, क्या खोज रहे हैं, लेकिन हमारे भीतर एक तृष्णा है जो हमें हर समय असहज महसूस कराती है। इस तथ्य के बावजूद कि हमारे चारों ओर इतनी समृद्धि है, मेरा मतलब है कि जहां तक ​​​​हमारे भोजन और हमारे कपड़े और हमारे आवास के प्रश्न हैं, उनमें से अधिकतर हल हो गए हैं। इसके बावजूद हमें लगता है कि हम सुखी, हर्षित महसूस नहीं कर पाए हैं और अपनी तृप्ति को नहीं समझ पाए हैं।

हम नहीं जानते कि हम इस पृथ्वी पर क्यों हैं, हमें मनुष्य के रूप में क्यों जन्म लेना है, जीवन में हमारा उद्देश्य क्या है। लेकिन बहुत से ऐसे हैं जो इसके बारे में नहीं सोचते हैं, उन्हें इसकी परवाह नहीं है। उदाहरण के लिए, पश्चिम के वैज्ञानिक यह नहीं सोचते कि वे अमीबा से एक इंसान क्यों बने हैं, भगवान ने उन्हें एक अमीबा, एक छोटे से एककोशिकीय जानवर, से इंसान क्यों बनाया है; और इतना जटिल यंत्र क्यों बनाया गया है, और इसे कैसे बनाया गया है। अंतर धारा क्या हैं? ऐसी कौन सी शक्तियाँ हैं जिन्होंने मनुष्य के रूप में जानी जाने वाली इस अद्भुत चीज़ को बनाया है?

इसका कारण क्या है, इसका पता नहीं चल पाया है। बेशक, वे जो कुछ भी देखते हैं, वे आपको बता सकते हैं कि “यह एक इंसान है, यही है, यह उसकी नाक है और ये उसकी आंखें हैं” और वे जो भी तथ्यात्मक चीजें खोजते हैं, वे आपको बताते हैं कि “यह है यह क्या है।” लेकिन हमारी मंजिल क्या है? उद्देश्य क्या है? और यही वह बात है जिसका वे उत्तर नहीं दे सकते और इसलिए हमारे पास दूसरे प्रकार के लोग हैं जो साधक हैं । लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दे कि परमात्मा ने आपके लिए पहले से ही व्यवस्था कर रखी है. आप अमीबा अवस्था से मनुष्य के रूप में आए हैं। आप का अपनी उत्क्रांति में क्या योगदान है? आपने अपने विकास के लिए, इंसान बनने के लिए क्या प्रयास किए? जरा सोचिए। कहते हैं तुम बंदर थे और आज तुम इंसान हो। इसमें तुमने क्या किया ? क्या आपको याद है कि आपने इंसान बनने के लिए क्या किया है? यह सब किसने किया है? किसी ने अपने प्रयास से किया है। और आपके साथ भी ऐसा ही होगा जब आपको अपनी उत्क्रांति, में और आगे जाना होगा तब वह स्रोत या वह ऊर्जा या यदि आप इसे पसंद करें तो मैं कहूंगी, सर्वशक्तिमान ईश्वर जिसने हमें बनाया है, वह हमें वह विशिष्ट अस्तित्व, हमारे भीतर एक जन्म देने जा रहा है। हम उसे उनकी कृपा से प्राप्त करने जा रहे हैं, और किसी के द्वारा नहीं।

अब यह कहा जाता है, केवल मेरे द्वारा ही नहीं, मैं जो कहती हूं उसकी पूरी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। तुम सुकरात के पास जा सकते हो और तुम ईसा-मसीह तक आ सकते हो, हर जगह तुम पाओगे जो मैं कहती हूं वह वहां लिखा हुआ है। मुझे उनसे बिल्कुल भी संघर्ष नहीं करना है; वे मेरे अपने हैं, वे मेरे साथ हैं। लेकिन मैं यहां आपको यह विश्वास दिलाने के लिए हूं कि उन्होंने जो कुछ भी कहा है वह सच है। इसके बारे में उपदेश देने से नहीं, विचार परिवर्तन करवाने से नहीं, इसके बारे में किताबें लिखने से नहीं, बल्कि आपको अपने स्व का अनुभव देकर, इसे आत्मसाक्षात्कार का बोध करने से, उन्होंने कहा है कि हमारे भीतर एक आत्मा है और हमें आत्मा के स्वरुप पुनर्जन्म लेना है। और वह आत्मा क्या है? और हम वह कैसे बनते हैं? यही हम अनुभव करने जा रहे हैं।

जैसे की मैं कहती हूं, “आप इसके बारे में कोई प्रयास नहीं कर सकते,” हमारे अहंकार को चुनौती मिलती है। ऐसा कैसा है? एक आधुनिक व्यक्ति के लिए यह समझना कठिन है कि परमेश्वर की कृपा काम करने वाली है। यहां तक ​​कि शंकराचार्य, आप आदि शंकराचार्य को जानते हैं, जिन्होंने भारत में हिंदू धर्म को प्रतिपादित किया था, उन्होंने कहा था कि “न योगेन, न संख्यें,” इनमें से किसी भी चीज से नहीं जो होने वाला है, लेकिन माता की कृपा से यह कार्यान्वित होगा कि आप को आत्मसाक्षात्कार होने वाला है, अन्य कोई रास्ता नहीं है। इसके बारे में सोचने, लिखने, प्रचार करने, बात करने का कोई तरीका नहीं है, इसे आपके साथ घटित होना होगा।

यह एक जीवंत चीज है जो आपके साथ होनी है। एक छोटे से बीज की तरह उसे अंकुरित होना है। अब बीज के सामने खड़े होकर हर तरह के आसन(व्यायाम) करने से कोई फायदा नहीं। बीज को व्याख्यान देने का कोई फायदा नहीं। बस थोड़ा सा प्यार का पानी और बीज अपने आप अंकुरित हो जाता है, वह अपने आप ऊपर आ जाता है। और इसी तरह तुम्हारा अपना बीज प्रकट होने वाला है, प्रकट होने की पूरी प्रक्रिया, स्वतःस्फूर्त। लेकिन हम प्रयास के बारे में सोचते हैं क्योंकि हम इसके अभ्यस्त हैं। हर चीज के लिए हमें प्रयास करना पड़ता है, इसलिए हम सोचते हैं कि आत्मसाक्षात्कार करने के लिए भी हमें किसी तरह के भयानक प्रयास में जाना होगा, लेकिन यह पूरी तरह से गलत विचार है।

यह एक सहज बात है, यह एक जीवंत प्रक्रिया है,  जब आप अमीबा नामक एक छोटे से जीव थे तभी से आप विशेष रूप से इस तरह से बनाये गए हैं। आज तक आपकी देखभाल की जाती है, आपको इस दिन तक लाया गया है और अब आपको घटित होना है।  अपने ही भीतर हमारी सरंचना किस प्रकार होती हैं, और कौन सी विशेषता है जो इस अभिव्यक्ति को सामने लाती है ? हमें इसके बारे में देखना होगा। लेकिन जब मैं आपसे बात कर रही हूं, तो आपको आंख मूंदकर  जो मैंने आपसे कहा है उस पर अमल करने की जरूरत नहीं है। लेकिन आपको इसके बारे में यह कहकर कि यह काम नहीं करेगा, अपना दिमाग बंद भी नहीं कर लेना चाहिए, क्योंकि यह किसी और तरीके से काम करने वाला है; और जब यह तुम्हारे भीतर काम करेगा, तो तुम स्वयं जानोगे कि यह हुआ है।

मुझे प्रमाणपत्र नहीं देना होगा; आप स्वयं इसके बारे में एक प्रमाण पत्र देंगे। अब यहां मैं आपको बताने जा रही हूं कि अपने भीतर हमारी बनावट कैसी  हैं। जैसा कि मैंने कहा है, आपको इसके बारे में अपना दिमाग बंद नहीं करना चाहिए; यह एक परिकल्पना है जिसे आपको अपने लिए देखना चाहिए। यदि यह काम करता है, यदि आप पाते हैं कि मैंने जो कुछ भी कहा है वह वास्तव में काम करता है और आप इसे कार्यान्वित कर सकते हैं और आप इसे संचालित कर सकते हैं और आप उन सभी शक्तियों को समझ सकते हैं जो आपके भीतर हैं;  तुम केवल तभी उस पर विश्वास करते हो, फिर उसे अस्वीकार नहीं करते।

तो आपके पुनर्जन्म या आत्म-साक्षात्कार को सामने लाने के लिए, पहले से ही एक तंत्र तैयार किया गया है, हम कह सकते हैं कि जैसे हमने यहां यह तंत्र प्रदर्शित किया है, वैसे ही हमारे भीतर एक तंत्र है जो कार्य करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। हम कह सकते हैं कि एक कंप्यूटर की तरह, हमारे अंदर एक कंप्यूटर बना हुआ है, केवल एक बात है कि, आपको मुख्य स्त्रोत्र से जोड़ना है, जैसे इस बिजली के तार को प्लग में लगाना है। अब बस यही बचा है, और यदि आपने प्रयास किया है, तो मुझे थोड़ा सा भी जो करना होगा, जिसे आप करना कहते हैं कि, आपके इतने प्रयास को ध्वस्त कर दूँ। क्योंकि किसी प्रयास की जरूरत नहीं है। केवल एक चीज है कि मुझे इस डोरी को लेकर मेनस् में लगाना है। लेकिन मान लीजिए कि मुझे नहीं पता कि यह कैसे करना है, तो मैं इसे खराब कर दूंगी। या यह भी कि, यह इस कार्य को स्वतः नहीं कर सकता।

आप एक मोमबत्ती को देखिए मोमबत्ती स्वयं प्रकाश नहीं कर सकती। लेकिन अगर कोई प्रज्वलित मोमबत्ती हो, तो वह उस दूसरी मोमबत्ती को रोशन कर सकती है। उसी तरह अगर कोई है जो प्रबुद्ध है, अगर वह जानता है कि यह कैसे करना है, तो वह आपके दीप को प्रकाशित कर सकता है। यह ज्ञान आपके पास आना है और आपको अपने भीतर वह प्रबोध प्राप्त करना है, तब आप वह बोध दूसरों को भी करवा सकते हैं। उस तरह आप पाएंगे कि यहां कम से कम पिच्चासी प्रतिशत लोग हैं जो यह जानते हैं, जिन्हें बोध हो गया है, और बाकी को यह क्यों नहीं मिलना चाहिए? उन्हें मिलना ही चाहिए; यह उनका अधिकार है, यही उनका जन्मसिद्ध अधिकार है और उन्हें इसे प्राप्त करना चाहिए।

सहज, सह का अर्थ है साथ, ज का अर्थ है जन्म। यह तुम्हारे भीतर पैदा हुआ है। वह तुम्हारे भीतर है, उसे पाने का अधिकार तुम्हारे भीतर है; और आप सभी उसके लिए बने हैं, और आपको केवल इसे अपने लिए प्राप्त करना है।

अब यह है यंत्र, मैं कहूंगी कि इसे इस तरह रखा गया है, जिसमें से यदि आप देखें, तो तीन ऊर्जाएं बह रही हैं।  बाएं हाथ की एक, यह काली वाली, फिर दूसरी दाईं ओर और एक बीच में। अब ये तीन ऊर्जाएं हमारे भीतर तीन स्वायत्त तंत्रिका तंत्रों को जन्म देती हैं। बाएं वाली हमारी बायीं अनुकंपी को जन्म देती है; दाहिनी ओर दायीं अनुकंपी और मध्य वाली परानुकम्पी है। ये रीढ़ की हड्डी में भी कपालीय हड्डियों में स्थित सूक्ष्म ऊर्जाएं हैं। अब इन ऊर्जाओं में से : बायां पक्ष हमें अस्तित्व देता है, जिससे हमारा अस्तित्व है, इस ऊर्जा से हमारा अस्तित्व है। लेकिन यह हमारे अवचेतन को संग्रहीत भी  करता है या हम कह सकते हैं कि हमारे भीतर जो संस्कार हैं उन्हें भी संग्रहीत करता है, क्योंकि जैसे, मैं आपको कुछ बता रही हूं, अब आप मुझे सुन रहे हैं और जो कुछ आप सुन रहे हैं वह आपके अवचेतन में जा रहा है, जो कुछ भी यहाँ संग्रहीत है।

दाहिनी ओर, जो ऊर्जा है वह हमारी शारीरिक और मानसिक गतिविधियों के लिए है। बायां ओर, जो ऊर्जा है हमारी भावनात्मक गतिविधि के लिए है, और दायां हाथ हमारी शारीरिक और मानसिक गतिविधि के लिए है। इस ऊर्जा से हम अपनी शारीरिक, कोई भी आपात स्थिति या शारीरिक गतिविधि करते हैं। जैसे अगर आपको दौड़ना है, तो आप हठ योग करते हैं, और आप हर तरह की उन्मत्त चीजें करते हैं। आजकल लंदन में हमारे पास ऐसे लोगों का एक समूह है जो हर समय न्यूड डांस कर रहे हैं। आप देखिए, ऐसे सभी कार्य इसी ऊर्जा द्वारा किए जाते हैं। इस चैनल का ऊपरी हिस्सा हमारी मानसिक ऊर्जा प्रदान करता है जिसके द्वारा हम सोचते हैं, योजना बनाते हैं और भविष्य के बारे में जो कुछ भी सोचते हैं। तो हम कह सकते हैं कि यह ऊर्जा भविष्य के लिए है और वह बायीं अतीत के लिए है, मध्य वर्तमान के लिए है।

अब आप वर्तमान में एक सेकेंड से ज्यादा नहीं रह सकते हैं, यहां तक ​​कि एक सेकेंड का भी विभाजन नहीं हो सकता है और यही वह ऊर्जा है जिसे आपने अपनी उत्क्रांति प्रक्रिया के माध्यम से विकसित किया है, जिसके द्वारा अब आप एक इंसान बन गए हैं। अब पूरी व्यवस्था ऐसी ही है, तुम्हारे भीतर सात केंद्र हैं। आप स्वयं देख सकते हैं: लाल, पीला, हरा, नीला, धुएँ के रंग का, और शानदार सफेद, या आप सुनहरी और शीर्ष कह सकते हैं। इस तरह सात केंद्र हैं, ये सूक्ष्म केंद्र हैं जो तुम्हारे भीतर हैं, तुम्हारे भीतर स्थित हैं; वे सब वहाँ हैं, पहले से ही वहाँ हैं। मुझे उन्हें बनाने की ज़रूरत नहीं है वे बस तैयार हैं और आपके अंदर खूबसूरती से रखे गए हैं और ये सभी केंद्र बाहर अभिव्यक्त होते हैं जिन्हें आप “जाल” कहते हैं। उदाहरण के लिए, निचला वाला श्रोणीय जाल pelvic plexus और महाधमनी जाल aortic plexus को प्रकट करता है, फिर हमारे पास सौर जाल solar plexus होता है।

[रिकॉर्डिंग में रुकावट]

[अस्पष्ट] होना है। जब ये दो गतिविधियां, भावनात्मक गतिविधि और, रचनात्मकता गतिविधि एक साथ काम करना शुरू कर देती है, एक उपोत्पाद के रूप में हम अपने सिर में दो चीजें आत्मसात करते हैं। एक को प्रति-अहंकार कहा जाता है और दूसरे को अहंकार, आप कह सकते हैं कि इन गतिविधियों से निकलने वाला धुआं वहां जमा हुआ है। तो अहंकार और प्रति-अहंकार मस्तिष्क में इस तरह मिलते हैं और यह सब एक साथ विलीन हो जाते हैं और हमें यह फॉन्टानेल हड्डी पूरी तरह से ढकी हुई प्राप्त होती हैं। जब ऐसा होता है तो आप मिस्टर एक्स बन जाते हैं, आप मिस वाई बन जाते हैं और आप मास्टर जेड बन जाते हैं। आप अलग-अलग लोग बन जाते हैं, आपको यह “मैं -पन” अपने भीतर प्राप्त होता है और आप समग्रता से अलग हो जाते हैं।

जैसा कि मैं कह सकती हूं, सबसे पहले मैं इस उपकरण को अलग करती हूं और इसे खुद इसी की बैटरी पर आजमाती हूं और फिर इसे मेन्स में जोडती हूं। आपको यह मैं-पन देकर,  आपको आजादी दी गई है, आप अपने साथ वह सब करने के लिए स्वतंत्र हैं जो आपको पसंद है। तो आप तलाश करना शुरू करते हैं, आप सोचना शुरू करते हैं, आप नौकरी शुरू करते हैं या आपके जीवन में हर तरह का उद्यम आता है। हमें पैसे की तलाश है। जिन लोगों के पास पैसे की तलाश नहीं है, वे पद या सत्ता की तलाश में हैं। कुछ लोग निश्चित रूप से परमात्मा को खोज रहे हैं। परन्तु इन सब खोज में हम सींगों के समान बाहर निकल जाते हैं। हम अंदर नहीं रहते, हम इसे बाहर खोजते हैं; हम अपना ध्यान अंदर नहीं ले जा सकते। उदाहरण के लिए, जब आप मेरी बात सुन रहे होते हैं, यदि मैं कहूँ, “अपना ध्यान अपने अंदर लगाओ,” तो आप ऐसा नहीं कर पाते। सारा चित्त बाहर है, ऐसा मस्तिष्क की इस तरह की व्यवस्था के कारण हुआ है, और अगर मैं आप सभी को इसके बारे में बता दूं, तो इसे एक और व्याख्यान की आवश्यकता होगी। लेकिन किस प्रकार से यह बाहर जाता है यह भी बहुत दिलचस्प बात है। केवल मनुष्यों में ही ऐसा होता है, क्योंकि हमारा दिमाग एक प्रिज्म की तरह होता है, और उसके कारण जो ऊर्जा हमारे पास आती है, वह वास्तव में बहुत कम अंदर जाती है, उनमें से अधिकांश बाहर जाती है, इसलिए हमारा चित्त बाहर होता है।

अब चित्त को भीतर कैसे लिया जा सकता है? उदहारण के लिए, तुम मेरी बात सुन रहे हो, ठीक है, अब अचानक अगर कुछ होता है, वह गिर जाता है, या तुम्हारे भीतर कुछ होता है तो तुम्हारा चित्त तुरंत उस ओर आ जाता है। यद्यपि आप मेरे प्रति बहुत चौकस हैं, फिर भी आपका चित्त उस ओर आकर्षित होगा। उसी तरह तुम्हारे भीतर भी कोई न कोई घटना होनी चाहिए। जब वह घटित होता है, तो तुरंत आपका ध्यान अंदर जाता है और घटना एक गोलाकार चीज से शुरू होगी, जो वहां रखी गई है, जो साढ़े तीन कुंडल में होती हैं और यही वह ऊर्जा होती है जिसे हम अवशिष्ट ऊर्जा कहते हैं, जिसे वहां एक कुंडल की तरह रखा जाता है।

जैसा कि मैंने तुमसे कहा था कि तुम्हें तथाकथित मुख्य में जोड़ दिया जाना है, और इसे कुंडलिनी कहा जाता है, और इस अवशिष्ट ऊर्जा को उठना होगा, और जब यह जागती है, और जब यह उठती है, तो यह इन सभी केन्द्रों से गुजरती है और, आपको पूरी तरह से एकीकृत करती है और फिर आप ईश्वर के साथ एक हो जाते हैं। तुम परमात्मा के प्रति उन्मुख हो जाते हो, और तुम पाते हो कि अहंकार और प्रति-अहंकार दोनों इसी तरह मुक्त होते हैं, और तुम एक नई चेतना में, एक नई जागरूकता में प्रवेश करते हो, जिसके द्वारा तुम सामूहिक रूप से सचेत हो जाते हो। अब सामूहिक चेतना क्या है, इसे समझना थोड़ा अधिक होगा। लेकिन जैसा कि मैं कहूंगी कि आपने संयुक्त राष्ट्र के सभी लोगों और सभी को यह कहते सुना होगा, “हम सभी भाई-बहन हैं, और हमें आपस में नहीं लड़ना चाहिए,” लेकिन यह सब बाहरी है। यह कहना सब बाहर ही बाहर है कि,  हम सब भाई-बहन हैं, हमें लगता नहीं है कि हम भाई-बहन हैं। या यूँ कहें कि यह सारा ब्रह्माण्ड एक है, हम सब एक हैं, एक का अंश हैं, और सारी आदिम अस्तित्व है और हम उसके अंश मात्र हैं। हम इस पर कैसे विश्वास करें? यह सब कहानियाँ हैं।

लेकिन आपके साथ ऐसा होता है कि आप दूसरे व्यक्ति को महसूस करने लगते हैं, अपनी उंगलियों पर आप चक्रों को महसूस करने लगते हैं। आप देखिए, यहां मैं आपको दिखाती हूं कि जब आप प्रबुद्ध होते हैं तो आप अपने चक्रों को अपनी उंगलियों पर महसूस करने लगते हैं। आप महसूस करने लगते हैं कि दूसरे व्यक्ति की समस्याएं क्या हैं। आप महसूस करने लगते हैं कि उन ऊर्जाओं में असंतुलन कहां है, कौन सी ऊर्जा अधिक है, कौन सी ऊर्जा कम है, इसे कैसे बढ़ाया जाए और इसे कैसे ठीक किया जाए। क्योंकि आप मुख्य की तरफ उन्मुख हैं, सभी तनाव समाप्त हो जाते हैं, आप परम आनंदित हो जाते हैं।

मान लीजिए कि आपकी कार में थोड़ा पेट्रोल है और यह खत्म होने वाला है, तो आपका धैर्य खत्म हो जाता है। लेकिन अगर आप जानते हैं कि एक पाइप है जो आपकी कार में हमेशा बहता रहता है, जो उस टैंक को भर रहा है, तो आप परेशान नहीं होते हैं। उसी तरह आप उस सर्वव्यापी शक्ति, उस कृपा के प्रति खुल जाते हैं, जो बाद में आपको हमेशा भरती रहती है और आप पूर्ण आनंद का अनुभव करते हैं। तनाव दूर हो जाते हैं और आप दूसरे व्यक्ति को महसूस करने लगते हैं, इसके चक्र और उसके चक्र और आप उन्हें ठीक भी कर सकते हैं। अब हमने कैंसर का इलाज कर लिया है, इसमें कोई संदेह नहीं है, और केवल यही आत्म-साक्षात्कार ही कैंसर को ठीक करने वाला है। अब यह मैं 1970 से कह रही हूं। जब उन्हें कैंसर हो जाता है तो वे मेरे पास आते हैं, यहां तक ​​कि डॉक्टर भी। वे निरोग हो जाते हैं, लेकिन जब वे कहते हैं कि “माताजी ने हमें ठीक कर दिया है,” तो लोग उन पर विश्वास नहीं करते। उनके लिए यह विश्वास करना बहुत अधिक है कि आत्म-साक्षात्कार से कैंसर को ठीक किया जा सकता है।

अब कैंसर क्या है? इन दो नाड़ियों, या इन दो चैनलों की अति सक्रियता के अलावा और कुछ नहीं है। वे इस तरह हैं, यह चैनल जैसे दाएं है, यह बाएं है। अब यह नाड़ियाँ है और ये चक्र हैं। जब वे बहुत अधिक काम करना शुरू कर देते हैं, जो कुछ भी, थोड़ी ऊर्जा संग्रहीत की गयी है, आप इसे खोना शुरू कर देते हैं। जब आप उनका बहुत अधिक उपयोग करते हैं तो वे अलग हो जाते हैं, और जब वे सम्पूर्ण से विलग हो जाते हैं तो वे अकेले अपने दम पर हो जाते हैं। एक बार जब वे अकेले अपने दम पर (खुद मुख़्तार) हो जाते हैं, तो वे असाध्य हो जाते हैं। सहज योग के साथ हम क्या करते हैं कि उस ऊर्जा को और अधिक उनमें डालें ताकि वे फिर से सामान्य स्थिति में आ जाएं, और फिर ऊर्जा पर्याप्त रूप से प्रवाहित हो रही है, कोई उर्जा रहित अवस्था नहीं है, और व्यक्ति पूरी तरह से ठीक महसूस करता है।

लेकिन यदि आप सहजयोगी के अलावा किसी और से यह कहते हैं, तो वे इस पर विश्वास नहीं करते हैं। मैंने अपनी चिकित्सा शिक्षा इसलिए प्राप्त की क्योंकि मुझे डॉक्टरों से बात करनी थी, और मैं अब इंग्लैंड, लंदन में डॉक्टरों से बात करूंगी, जब मैं भारत से वापस आऊंगी, और इसलिए मैंने अपनी चिकित्सा शिक्षा प्राप्त की। और मैंने पाया कि मेरे प्रोफेसर जो मुझे पढ़ा रहे थे, उनकी पत्नी को कैंसर हो गया और उन्हें माध्यमिक चरण का कैंसर था। और फिर उनकी पत्नी ने कहा कि, “क्यों न उसके माध्यम से कोशिश करें, आखिर तुम लोग मुझे ठीक नहीं कर सकते,” और उन्होंने कहा कि “यह एक माध्यमिक चरण है, यह भयानक है,” आप रोगी के बारे में नहीं कह सकते। केवल यही नहीं कि वह ठीक हो गई है बल्कि उसका (कैंसर का)कोई निशान नहीं बचा है और डॉक्टर यह नहीं बता सकते कि यह कैसे हुआ है।

मैं उन्हें बिल्कुल, वैज्ञानिक रूप से समझा सकती हूं कि हमने परानुकंपी  parasympathetic तंत्रिका तंत्र को प्रबंधित किया है, जिसे वे स्वायत्त कहते हैं। उनका कहना है कि यह अपने आप चलता है, स्वतः। अब यह ऑटो कौन है? आप कहते हैं कि यह एक कार है, ठीक है, कोई बैठा है और इसे चला रहा है, है ना? लेकिन इसे कौन चला रहा है? यह आप नहीं समझा सकते। डॉक्टर कहते हैं, “हम इस की कार्य प्रणाली को नहीं जानते हैं। हम यह नहीं कह सकते कि यह कैसे काम करता है, हम नहीं जानते।” वे इसके बारे में सच्चे हैं। लेकिन जब मैं कहती हूं, “आप उस पर पहुँच सकते हैं, आप उस परानुकंपी को नियंत्रित कर सकते हैं,” वे कहते हैं, “यह कैसे संभव हो सकता है?” यह है, मेरा विश्वास करो यह संभव है, यह होना ही है। आखिर अगर कोई यंत्र इतनी सावधानी से वर्षों से, हजारों वर्षों से बनाया गया है, तो क्या आपको लगता है कि यह सिर्फ परमात्मा की एक अनुपयोगी गतिविधि है? कि वह इसके बारे में कुछ नहीं करेगा? कि वह तुम्हें तृप्त नहीं करेगा? ऐसा  कैसे हो सकता है? कोई भी तर्कसंगत व्यक्ति इसे समझ सकता है; तार्किकता से तुम इन सब बातों को समझ सकते हो, लेकिन जो घटित हो रहा है वह परिवर्तन के लिए है, एक जीवंत प्रक्रिया है, और स्वतः काम करती है।

अब कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें मैंने देखा है कि खोजने में वे गलत जगहों पर चले गए हैं, उन्हें चोट लगी है, उन्हें परेशान किया गया है, उन्हें प्रताड़ित किया गया है, उन्हें गुमराह किया गया है, लेकिन कोई बात नहीं। यह एक जीवंत प्रक्रिया है और जीवंत प्रक्रिया एक मृत प्रक्रिया से बहुत भिन्न होती है। उदाहरण के लिए, इसमें कुछ गलत हो जाता है, जैसे कि एक हॉल, तो आप नींव के बारे में कुछ नहीं कर सकते। लेकिन जैसे, अगर कोई पेड़ परेशानी में हो, तो तुम पेड़ के साथ ऐसा व्यवहार कर सकते हो कि पूरा पेड़ ठीक हो सके, जड़ें ठीक हो सकें। उसी तरह, यह बात बिल्कुल एक जीवंत प्रक्रिया है, सब कुछ ठीक हो सकता है, और इसे काम करना होगा। अब लेकिन पश्चिम की सबसे बड़ी समस्या मिस्टर अहंकार है, जो कभी-कभी बहुत बड़ा होता है, और लोगों के लिए यह समझना बहुत मुश्किल है कि वे परमेश्वर के लिए भुगतान नहीं कर सकते, वे उसे खरीद नहीं सकते; आप नहीं कर सकते। हो सकता है कि आपके चर्चों में लोग पैसे लेते हैं और परजीवियों की तरह रहते हैं, लेकिन ईश्वर परजीवी नहीं है। ये भयानक लोग हैं, शायद आपके मंदिरों में, शायद आपकी मस्जिदों में, शायद कहीं भी लोग ईश्वर को खरीद रहे हों; लेकिन यह एक मिथक है, यह पूरी तरह से एक असत्य मान्यता है और परमात्मा का अपमान है। कोई भी परमेश्वर को खरीद नहीं सकता है, न ही आप उसकी कृपा और प्रेम के बारे में अधिकार रखते हैं।

इसलिए यह एक बड़ी चुनौती है और लोग इसे स्वीकार नहीं करना चाहते। और इतने सारे ठग जो भारत से आए हैं, मैं एक भारतीय के रूप में जिम्मेदारी लेती हूं, अगर आप मुझे भारतीय कहते हैं, तो निश्चित रूप से वे यहां आपको लूटने आए थे। लेकिन आप भी आंशिक रूप से जिम्मेदार हैं। आपका अहंकार संतुष्ट हुआ था जब उन्होंने कहा कि, “आप इसके लिए भुगतान कर सकते हैं,” कि आपको इन भयानक लोगों द्वारा लूट लिया गया था। और यदि उन्होंने तुम्हें लूटा है, तो उन्हें दण्ड दिया जाएगा, निःसंदेह उन्हें दण्ड दिया जाएगा, क्योंकि तुम साधक हो, उन्होंने तुम्हें लूटा है। यह इसका दुखद हिस्सा है। यदि आप सामान्य लोग होते तो ईश्वर को इसकी परवाह नहीं होती, लेकिन चूँकि आप साधक हैं, उन्होंने जानबूझकर आपको नुकसान पहुंचाया है, और उन्होंने आपको लूटा है।

अगर वे लुटेरे हैं तो उन्हें चोर बन जाना चाहिए। वे अच्छे चोर हो सकते हैं; वे इससे बहुत अधिक पैसा कमा सकते हैं; उन्हें तस्करी करनी चाहिए। लेकिन साधकों को कष्ट क्यों दिया? यह इतने सारे लोगों के साथ हुआ है और इतने सारे लोग जो यहां हैं, जिन्हें आत्मसाक्षात्कार हो गया है, वे भी एक नहीं बल्कि चार, पांच ठगी से गुजरे हैं, एक के बाद एक।

अमेरिका में लोगों ने मुझसे कहा, “माँ हम गुरु ख़रीददारी करने गए हैं।” मैंने कहा, “क्या अब तुम कहीं स्थिर हो जाओगे या अब भी शॉपिंग कर रहे हो?” वे ख़रीददारी के मूड में आ जाते हैं ताकि वे उस पर टिके न रह जाएँ। यह एक भयानक बात है, और यह आधुनिक समय में सबसे बुरा हुआ है।

वे कहते हैं कि इस कुंडलिनी को जागृत करना बहुत, बहुत कठिन बात है। मुझे विश्वास नहीं होता। ऐसा नहीं है, यह मेरे लिए सबसे आसान काम है, यह मेरा खेल है। मैं इसे ऐसे ही कर सकती हूं, मैं आपकी कुंडलिनी को ऐसे ही उठा सकती हूं और आप भी ऐसा ही कर सकेंगे। एक बार जब आपको बोध हो जाएगा, तो आप दूसरे की कुंडलिनी को भी चलाना शुरू कर देंगे। आप स्वयं देख सकते हैं कि आपकी आत्मा की शक्ति कैसे बढ़ती है। आप उनकी कुंडलिनी चढ़ा सकते हैं, आप उनका इलाज कर सकते हैं, आप समझ सकते हैं कि उनके चक्रों में क्या खराबी है, और आप उन सभी लोगों की देखभाल कर सकते हैं जिन पर आप ध्यान देना चाहते हैं। आप भी कर सकते हैं, क्योंकि समय आ गया है, बहार की बेला आ गयी है।

मुश्किल तब था जब एक ही फूल खिलना था, फिर तीन, चार फूल आए। अब बहार की ऋतु है, बहुतों को फल बनना है और कई तेजी से परिवर्तित हो रहे हैं। इसे सामूहिक रूप से करना होगा, यह इस तरह से काम कर रहा है। उनमें से कई के लिए इसे कार्यान्वित होना होगा, अन्यथा सृष्टि अब और नहीं रहेगी। पहले से ही विनाश हमारे मन में बस गया है। इस बार विनाश बाहर से नहीं बल्कि भीतर से आने वाला है क्योंकि हम इस बात से निराश होंगे कि हम जो खोज रहे हैं, उसका पता नहीं लगा पा रहे हैं।

लेकिन लोग विविध प्रकृति के होते हैं। अभी-अभी बाल ने रास्ते में मुझसे पूछा, “माँ, मैं ऐसा सौभाग्यशाली कैसे हूँ जो मुझे चाहिए, मुझे यह इतनी आसानी से मिल जाए? मैंने इसके बारे में कुछ नहीं किया है और मुझे प्राप्त हो गया।” क्योंकि आप विशेष रूप से आशिर्वादित हैं, आप विशेष रूप से धन्य हैं, इसी तरह आप इसे प्राप्त करने जा रहे हैं। अब इस बर्मिंघम में मैंने जन सैलाब सभी प्रकार का इस के अलावा कुछ नहीं देखा। लेकिन यहाँ हमारे पास कितने हैं? यह ऐसा ही है, इसलिए एक विकल्प है और एक चयन है और सही समय पर सही लोगों को ढूंढ निकलने का एक तरीका है। यह केवल उन लोगों के साथ काम कर सकता है जो वास्तव में इसके लायक हैं, लेकिन धीरे-धीरे यह बहुत बड़े तरीके से और बहुत बड़े तरीके से काम करता है और बहुत से लोग इसे प्राप्त कर सकते हैं और इसे पूरा कर सकते हैं।

यदि आपके कोई प्रश्न हैं तो कृपया मुझसे पूछें क्योंकि यह इतना विशाल विषय है, मुझे नहीं पता कि मैं एक व्याख्यान में कैसे कवर करूं? कल मैं बाला के घर जा रही हूँ। जो लोग मुझे व्यक्तिगत रूप से आकर मिलना चाहते हैं, वे आ सकते हैं और मुझे वहां मिल सकते हैं, मुझे उनका पता नहीं मालुम कि, उनका पता वह आपको बताएंगे। कल मैं 12 बजे तक वहीं रहूंगी। मुझे मिलने के लिए आप सभी का स्वागत है, लेकिन यहां भी यदि आपके कोई प्रश्न हैं तो आपको मुझसे अवश्य पूछना चाहिए और साथ ही हम इसके आत्मसाक्षात्कार पाने वाले भाग पर काम करने का प्रयास करेंगे।

[दर्शक]: प्रश्न अस्पष्ट

श्री माताजी : ठीक है, अब कर्म हैं- यह भी कर्म है। कर्म कौन करता है? आपका अहंकार। आप नहीं करते। यदि तुम पूछो उदहारण के लिए किसी पशु से, कहो बाघ से पूछो, वह कोई कर्म नहीं करता। हम, अपनी अज्ञानता में, सोचते हैं कि हम कर्म कर रहे हैं क्योंकि हमारा अहंकार वहां अच्छी तरह से स्थित है, और चूँकि हम कुछ हैं, जो इस कर्म का सुझाव देते हैं। लेकिन मान लीजिए मैं आपका अहंकार एक तरफ हटा दूं, तब फिर वहां कर्म कौन कर रहा है? तुम अब वहां नहीं हो, तुम अकर्म में चले जाते हो। इसके अलावा अगर मैं कुछ हूं, माना कि,  मैं कुछ हूं, तो मैं इसे भी स्वच्छ कर सकती हूं, संभावना है। ठीक है।

क्या आप जानते हैं मेरा नाम निर्मला, इसका क्या मतलब होता है? मतलब “पवित्रता,” अगर मैं अपने नाम का कुछ भी हूं, तो मैं इसे पूरी तरह से शुद्ध करने में सक्षम हो सकती हूं। अगर मैं तुम्हारी माँ हूँ तो मुझे यह करना होगा, यह मेरा काम है, और मैं कड़ी मेहनत करूँगी। तो आप अपने कर्मों पर न चिपके रहें, उनके साथ तादात्म्य न करें। वे मेरे लिए कुछ भी नहीं हैं, मैं इन सभी को अच्छी तरह से स्वच्छ करना जानती हूं। मैंने इन सभी के सभी क्रम परिवर्तन और संयोजनों का अध्ययन किया है। ठीक है? इन लोगों ने आपके दिमाग में यह विचार भी डाल दिया है कि आपके बहुत बुरे कर्म हैं, विशेष रूप से आप चर्च में देखते हैं कि आप कहते हैं, “आप पापी हैं।” पापी, सुबह से शाम तक।

जो लोग कहते हैं कि वे सबसे बड़े पापी हैं, यह मैं आपको बता सकती हूं, और जो आपसे स्वीकारोक्ति  confession लेते हैं, मुझे आश्चर्य है कि वे अभी तक पागल नहीं हुए हैं। उन्हें वैसा ही बन जाना चाहिए जैसे वे हर किसी से स्वीकारोक्ति  confession ले रहे हैं। जरा सोचो, बेतुका। मनुष्य सबसे सुंदर चीज है जिसे परमात्मा ने बनाया है, सबसे सुंदर: उसने कुछ गलतियां की हैं, ठीक है, लेकिन ईश्वर क्षमा का सागर है। आप यह जानते हैं: एक महासागर क्या है? तो उस तरह की चिंता न करें। मैं ही नहीं, आप भी कुंडलिनी को ऊपर उठाएंगे और उन्हें साक्षात्कारी बनायेंगे। ठीक है?

आपके मन में कुछ सवाल आ रहा है सर?

श्री माताजी: आपकी कुंडलिनी पहले ही बहुत ऊपर उठ चुकी है। जब यह इस बिंदु को पार कर जाती है तो आप सोचते भी नहीं हैं, आप निर्विचार समाधि में निर्विचार हो जाते हैं। पहले से ही अगर आपको किसी प्रश्न के बारे में सोचना है, तो आपको थोड़ा दबाव डालना होगा। यही तरकीब है।

कुछ सवाल? अस्पष्ट]

श्री माताजी : वे बिल्कुल आप लोगों की तरह हैं, जैसे मनुष्य हैं। आप देखें कि मनुष्य कैसे रहते हैं, वे चर्च जाएंगे और चर्च से सीधे पब तक। आप कैसे उस के बारे में समझायेंगे? आप देखते हैं कि घर में आपकी अपनी मां मर जाती है और आप शैंपेन लेते हैं| मनुष्य ऐसे ही हैं। उसी तरह ये सिर्फ साधारण इंसान हैं, ये साक्षात्कारी  आत्मा नहीं हैं। एक आत्मसाक्षात्कारी कभी किसी को चोट नहीं पहुंचाएगा। इसलिए वे अच्छा बनने की कोशिश करते हैं; वे बुरे होने की कोशिश करते हैं। वे आधे-अधूरे, अध-पके लोग हैं, तो ऐसे ही हैं, लेकिन किसी और की मदद क्यों लें, खुद क्यों न बनें?

आप देखिए, हम सामान्य रूप से किसी से मदद लेना पसंद नहीं करते, आप देखिए, खासकर पश्चिम में लोग नहीं सोचते कि उन्हें कोई मदद लेनी चाहिए। “मैं अपने दम पर।” लेकिन आध्यात्मिक जीवन में क्यों आप किसी प्रेतात्मा की मदद लेना चाहते हैं? आपको नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे परजीवी हैं। एक बार जब वे आप को ग्रसित कर लेते हैं, तो उनसे छुटकारा पाना असंभव होगा; और फिर वे तरह-तरह के हथकंडे करने लगते हैं, आप देखिए। उस दिन मेरी उपस्थिति में, “यह आपको याद है कि मारिया हमारे घर में आई थी, हमारा एक कार्यक्रम था और वहां सभी अध्यात्मवादी थे।” और उनमें से एक अचानक उठा और वह इस तरह हाथ हिलाने लगा, [अस्पष्ट] करता जा रहा था । उसने कहा, “मैं इसे नियंत्रित नहीं कर पाता।” मैंने कहा, ” बेहतर हो आप नियंत्रण करें। आप कहते हैं कि आप अध्यात्मवादी हैं, तो क्यों नही अपनी आत्माओं को नियंत्रित करते?” तो यह ऐसे ही चल रहा था, और इसी तरह से वह नियंत्रित नहीं कर सकता।

तो, ये सभी प्रकार के क्रमपरिवर्तन और संयोजन हैं, लेकिन मूल रूप से वे बाएँ और दाएँ हैं, लेकिन जैसा कि मैंने आपको बताया, वे संयोजन भी कर सकते हैं, और वे भयानक हैं। जितनी जल्दी आप उनकी चालाकी और उनकी मूर्खता के प्रति जाग्रत हों, उतना ही आपके लिए बेहतर है क्योंकि आप साधक हैं। तुम केवल इस जीवन के साधक नहीं हो, तुम कई जन्मों से खोजते रहे हो।

नल और दमयंती के समय ऐसा कहा गया है, जरा कल्पना करें,सत्य युग के दौरान, सत्य युग के अंत समय पर ; कहा सकते हैं थोड़ा द्वापर में, हजारों साल पहले कहा गया था कि आप इस तरह पैदा होंगे। क्योंकि, आप देखते हैं, यह कलि, यह आधुनिक समय, जो कलियुग है, जैसा कि आप इसे कहते हैं, वह इसके लिए जिम्मेदार है, आप देखते हैं, लोगों को उनके खिलाफ, साज़िश और भ्रमित करने वाले लोगों को भ्रमित करते हैं। तो वह वही है जो इस कलियुग का चालक है, हमें कहना चाहिए। तो, इस कलि को नल ने पकड़ लिया क्योंकि बेचारा नल एक बार इस कलि से प्रताड़ित था, और उसे इतना प्रताड़ित किया गया कि उसने अपनी पत्नी को त्याग दिया। उसने अपनी पत्नी को त्याग दिया, आप देखिए, और उसे प्रताड़ित किया गया और इस कलि को फिर से नल ने पकड़ लिया, और उसने कहा कि “मैं अब तुम्हें मारने जा रहा हूँ, इसलिए, क्योंकि तुम वही हो जो एक साज़िशकर्ता है, जो लोगों को भ्रमित करते हैं, और जो हर तरह की समस्याएं पैदा करने की कोशिश करते हैं। क्योंकि, आप देखते हैं, एक युग होने जा रहा है, ”जैसा कि उन्होंने कहा, कलियुग। वह जानता था कि उस समय हर कोई असमंजस में होगा।

तो उन्होंने नल से कहा कि “देखो, तुम थोड़ी देर प्रतीक्षा करो, और मैं तुम्हें बताऊंगा, तुमको समझाऊंगा कि मेरा महत्व क्या है, मेरा महात्मय क्या है, महत्व क्या है। जब तुम्हें मेरी अहमियत का एहसास होगा तब तुम मुझे छोड़ दोगे।”

तो उसने कहा, “ठीक है, तुम मुझे बताओ।”

कहा, “आप मुझे आपको समझाने के लिए कुछ समय दें”, और फिर उन्होंने उससे कहा कि “कलियुग में जब मैं उस युग का चालक बनूंगा, तो आप देखिए, जो लोग पैदा होंगे वे साधक होंगे जो आज खोज रहा है।” उन दिनों, आप देखिए, द्वापर में, जो लंबे समय से गुफाओं में, और जंगलों में, और जंगल में खोज रहे हैं, “जो परमात्मा की तलाश कर रहे हैं, वे सामान्य मनुष्य के रूप में पैदा होंगे, बहुत ही साधारण तरीके से गृहस्थ के रूप में रहते हुए  उन्हें उनकी प्राप्ति होगी। और इसलिए तुम्हें मुझे मारने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, क्योंकि कलियुग आना ही है। यदि भ्रम नहीं आता है, तो लोग उसकी उतनी तलाश नहीं करते हैं और इसलिए भ्रम से ही प्रकाश आता है। तो उस मुकाम तक पहुंचना ही था, उस चरम बिंदु तक पहुंचना था और वह केवल मैं ही कर सकता हूं, इसलिए आप मुझे बख्श दें, ”और वह छोड़ दिया  गया।

अब यह है, यह कब हुआ था? द्वापर का अर्थ है कम से कम छह हजार या आठ हजार साल पहले। यही था, ऐसा हुआ था। आठ हजार साल पहले ये बातें कही गई थीं या इससे भी पहले हम कह सकते हैं कि राम के समय से भी पहले, लगभग नौ हजार साल पहले की बात होगी। तो नौ हजार साल पहले यह कहा गया था कि तुम पैदा होओगे। तो आप साधक हैं, और आप इस जन्म में ही नहीं, कई जन्मों से खोज रहे हैं, और अब आप एक ऐसे बिंदु पर आ गए हैं जब आपको वह मिल जाना चाहिए जो आप खोज रहे थे, तो बस वही मांगें।

इन रस्सी कलाबाजियों के लिए क्यों प्रार्थना करें? तुम देखो, वह लुप्त तरकीबें, रस्सी की कलाबाजियों, ये सभी तरकीबें, क्योंकि इनका मतलब है सभी प्रेतात्माएं। यह तुम्हारी अपनी आत्मा नहीं है – भुत है। और अंग्रेजी भाषा में एक भ्रम यह है कि हर चीज के लिए है शब्द स्पिरिट है। स्पिरिट  तुम्हारा आत्मा है, तुम्हारे हृदय में तुम्हारे भीतर ईश्वर का प्रतिबिंब है; स्पिरिट एक प्रेतात्मा भी है और स्पिरिट वह भी है जो आप पब में बेचते हैं। तो ये सब बातें भ्रमित करती हैं। तुम देखो, एक भ्रम है, फिर एक बहुत बड़ा भ्रम है। लेकिन आपको पता होना चाहिए कि आपके दिल में परमात्मा वास करते हैं, और एक बार जब आप वह शक्ति बन जाते हैं तो आप अपने स्व बन जाते हैं। यही वह आत्मा है जिस का साक्षात्कार (अनुभूति)करना है, जिसे पाना है और जिस को पाने की प्रार्थना करना चाहिए; बाकी सब चीजें बेकार हैं।

ये सब बाहर हैं; आसन किस लिए हैं? अच्छा शरीर पाने के लिए, किस लिए? ठीक है, हमें अच्छा स्वास्थ्य रखना चाहिए मैं समझ सकती हूँ, लेकिन हर समय आपका ध्यान अपने शरीर पर रहता है, आप क्या करने जा रहे हैं? क्या आप कहीं कुश्ती करने जा रहे हैं या आप इन मुक्केबाजी मुकाबलों में शामिल होने जा रहे हैं, आप इन को क्या कहते हैं? तुम साधक हो, तुम बिलकुल अलग नस्ल हो, तुम उन भयानक लोगों में से नहीं हो जो सिर्फ एक दूसरे को ठिकाने लगाने के लिए अपनी नाक की हड्डी निकलवाते हैं। आप वो लोग नहीं हैं, आप अलग हैं, आप स्वयं को जोकर नहीं बना सकते। मेरा मतलब है कि तुम पूरी तरह से अलग लोग हो, सृष्टि के फूल।

आप इन सभी निरर्थक बातों को कैसे स्वीकार कर सकते हैं जो दूसरे कर रहे हैं? आप नहीं कर सकते। आप कोशिश करते हैं, आप इसे थोड़ी देर के लिए आजमाएंगे, और फिर इसे छोड़ देंगे। क्योंकि वहां तुम ‘वह’–जो कि स्व है, तुम्हारे भीतर तुम्हारा अपना अस्तित्व है, जो तुम खोज रहे हो,नहीं पाओगे। अब आप खुद पर भी कैसे विश्वास करें, कैसे जानें कि आत्म-साक्षात्कार क्या है? यही बात है क्योंकि यही जानना चाहिए; आत्म-साक्षात्कार होने पर हमें किस बात का ज्ञान होना चाहिए।

सबसे पहले यह सब शास्त्रों में वर्णित है, चाहे आप बाइबिल, कुरान, या कुछ भी लें। लेकिन मान लीजिए आप नहीं समझते हैं। लेकिन फिर भी आत्म-साक्षात्कार के बाद क्या होना चाहिए? जब आप स्व की अनुभूति करते हैं तो इसका मतलब है कि आपके पास आत्मज्ञान है। क्या होता है जब आपको इस कमरे में रोशनी मिलती है? तुम सब कुछ देखने लगते हो, तुम स्वयं को देखने लगते हो और तुम दूसरों को देखने लगते हो। उसी तरह जब आपको बोध, आत्म-साक्षात्कार मिलता है, तो सबसे पहले आपको अपने आप को देखने में सक्षम हो जाना चाहिए। इसका मतलब है कि आपको अपने चक्रों की अनुभूति होने लगना चाहिए, आपको उन्हें महसूस करने लगना चाहिए। अब तुम अपने हाथ मेरी ओर रखो, तुम अपने चक्रों को महसूस कर सकते हो जो कुछ तुम्हें पकड़ रहा है, तुम उसे अपने हाथों पर महसूस कर सकते हो।

आप अपने भीतर की खामोशी को महसूस कर सकते हैं और आप इसे महसूस कर सकते हैं। अगर आपको कुछ महसूस नहीं हो रहा है और ठंडी हवा आ रही है मतलब है कि, आपके चक्र साफ हैं, यानी आप वरिष्ठ हैं। कुछ समय बाद आप चकित होंगे कि आप अपने भीतर कुंडलिनी को उठती हुई, दबाव डालते हुए, इधर-उधर जाते हुए देखेंगे। वही बात, आप दूसरों में भी देख सकते हैं। आप कह सकते हैं कि, “कुण्डलिनी कहाँ है?” जब मैं आपसे पूछती हूं, आप कह उठते हैं, “माँ, यह यहाँ है,” “माँ, यह अभी तक नहीं उठी है।” ऐसा नहीं है कि मैं नहीं जानती, निश्चित रूप से मुझे पता है, लेकिन मैं सिर्फ आपसे पूछती हूं और मैं वह सब [अस्पष्ट] दिखाती हूं जो संभव है क्योंकि मैं चाहती हूं कि आप इसे सीखें और इसे देखें। तो मैं कहती हूँ, “ओह, वास्तव में वहाँ है! मुझे नहीं पता था।” लेकिन मैं एक भ्रम खेलती हूं जिसके द्वारा, आप मुझे सुनते हैं लेकिन आप इसमें विश्वास नहीं करते हैं, आप देखते हैं, और अगली बार आप इसे बहुत गंभीरता से करेंगे और मुझे यह पसंद है, क्योंकि तब आप इस कला को सीखते हैं। अन्यथा, आप देखिए, आप कहेंगे, “माँ, ही आप सब कुछ कर रही हैं तो हम क्यों करें?” इसलिए मैं चाहती हूं कि आप कुंडलिनी की इस कला को पूरी तरह से सीखें, कि आप अपने बारे में जानते हैं, कि आप अपने चक्रों के बारे में जानते हैं। आपको पता चलता है कि कुंडलिनी कहां है, कैसे काम कर रही है। तब आप दूसरों के बारे में जानते हैं, आप दूसरों के चक्रों के बारे में जानते हैं, यह कहां है, यह कहां घूम रहा है, और यह कैसे काम कर रहा है, ताकि आप सामूहिक चेतना में आ जाएं जिससे आप दूसरों को जानते हैं और आत्म-साक्षात्कार जिसके द्वारा आप स्वयं को जानते हैं। ये दो बातें होती हैं।

अब तीसरा क्या होता है, तीसरा यह होना चाहिए कि आप महसूस करें कि आप परमात्मा के साथ एकाकार हैं, इसलिए आपके मन में कोई दबाव नहीं है, कोई तनाव नहीं है। अब, आपको कैसा लगता है कि आप परमात्मा के साथ एकाकार हैं? उदाहरण के लिए माना कि,  आपको कैसा लगता है कि यह जुड़ा हुआ है? जब यह ऊर्जा आपके बीच से गुजर रही होती है, है न? अब जब आप ऊर्जा को अपने पास से गुजरते हुए देखते हैं, तो आप बस कहते हैं, “यह जा रहा है, यह आ रहा है,” आप यह नहीं कहते, “मैं यह दे रहा हूं।” आप चैनल (माध्यम) हैं, लेकिन आप ऐसा कभी नहीं कहते हैं, आप कहते हैं, “यह चल रहा है,” “यह वहां है,” “यह वहां नहीं है।” आप तीसरे व्यक्ति के रूप में सोचने लगते हैं। आप अपने आप को उससे अलग कर लेते हैं और आप देखना शुरू कर देते हैं कि “यह चल रहा है, यह नहीं है।” और, इसके अलावा, आप यह नहीं कहते कि मैं यह कर रहा हूं, न ही आपको लगता है कि आप इसे कर रहे हैं इसलिए आपका अहंकार समाप्त हो गया है। आप बस कहते हैं, “यह चल रहा है।” आप नहीं कह सकते। अब कल जब हम काम कर रहे थे तो एक डॉक्टर था और ये लोग गेविन थे। उन्होंने कहा, “नहीं माँ, अभी नहीं। नहीं, नहीं, यह नहीं हुआ है।” वे यह नहीं कह सके थे कि “हम यह कर रहे हैं,” और न ही वे कह सकते थे, “हाँ यह हो गया।” आप इसे यूं ही नहीं कह सकते। होता है तो होता है। यदि नहीं होता है, तो यह नहीं होता है।

देखिए, हो सकता है कि आपके अपने बेटे को बोध प्राप्ति न हो, शायद उससे भी कोई समस्या हो। इसकी काफी संभावना है, तो यह सच है और यह किसी को हो सकता है और दूसरे को नहीं हो सकता है। सत्य एक सत्य है, आप इसे किसी पर थोप नहीं सकते। इसे एक जगह पर पहुंचना है और इसे खुद ही सुलझाना है।

जैसे, यहाँ प्रकाश है। अब यहाँ प्रकाश है इसलिए तुम देख सकते हो, लेकिन यदि दूसरे कमरे में प्रकाश नहीं है, तो तुम यह नहीं कह सकते कि प्रकाश है। तुम जबरदस्ती नहीं कर सकते, तुम प्रमाण-पत्र नहीं दे सकते, एक गलत प्रमाण-पत्र, कि—“प्रकाश है।” आप स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि कोई प्रकाश नहीं है, इसलिए यह कहना ही ठीक होगा कि, कोई प्रकाश नहीं है। आप इससे लिप्त नहीं हैं। आप यह नहीं कह सकते कि “चूँकि वह मेरा भाई है, ओह, उसके पास प्रकाश होना चाहिए,” आप ऐसा नहीं कह सकते। या तुम झूठा भी नहीं कह सकते कि प्रकाश है, क्योंकि तुम स्पष्ट देख सकते हो। नहीं, वहां नहीं है तो नहीं ही है|

तो सत्य के साथ, आपकी पहचान बनती है, पहली बात। आत्म-साक्षात्कार से, आप सत्य के साथ पहचाने जाते हैं। यदि तुम असत्य के साथ तादात्म्य करने का प्रयास करो तो तुम नहीं कर पाओगे। आप कोशिश करने पर भी नहीं कर सकते, आप नहीं कर सकते, क्योंकि आप इसे कैसे कर सकते हैं? क्योंकि आप स्वयं देख सकते हैं कि यह कार्यान्वित नहीं हो पा रहा है; यह ऊपर नहीं जा रही है। ऐसा नहीं हो रहा है, तो आप कैसे कह सकते हैं? तो पहले तुम सत्य के साथ तादात्म्य कर रहे हो, और सत्य परमेश्वर का स्वभाव है, परमेश्वर के सत्य का स्वरूप ही तुम्हारी आत्मा के द्वारा व्यक्त किया जाता है, और जो वायब्रेशन तुम प्राप्त कर रहे हो वह अन्य कुछ नहीं  स्पंदन है जो कि, आत्मा बोल रही है, आत्मा आपसे बात कर रही है। आपकी जागरूकता और आत्मा के बीच एक संबंध है। वास्तव में, आत्मा आपको यह प्रकाश आपके द्वारा दे रहा है। आप अब आत्मा के दीपक बन गए हैं, और प्रकाश प्रबुद्ध हो गया है, इसलिए आप आत्मा के साथ पहचाने जाते हैं। तुम सत्य बन जाते हो।

फिर, दूसरी बात यह कह सकते हैं कि,  आपको स्थिर व्यक्ति बनना है। आपको इसमें स्थिर रहना होगा। जैसे, देखिये, आप किसी चीज में विश्वास करते हैं, ठीक है, अब आप जानते हैं कि यह पीला रंग है या यह सफेद रंग है, लेकिन मान लीजिए कि कोई कहता है, “नहीं, नहीं, नहीं, यह सफेद नहीं है, यह काला है,” और आप विचार करने लगते है कि कहीं यह सच में सफेद है या काला, यह सच है या नहीं। आप देखिए, आप इसके बारे में निश्चित नहीं हैं – इसकी निश्चितता, इसकी निश्चितता। अगर आप दस बच्चों को एक साथ रख दें और उनकी आंखें बांध दें और उन्हें किसी व्यक्ति विशेष के वायब्रेशन को देखने के लिए कहें, तो वे सभी एक ही उंगली उठाएंगे, हर कोई, की यहाँ पकड़ रहा है, सभी कहेंगे कि वे इसे पकड़ रहे हैं, कोई नहीं कहेगा वह [अस्पष्ट]। तो आपको पक्का और निश्चित सत्य मिलता है, सत्य एक निश्चित चीज है, दो सत्य नहीं हो सकते, यह एक होना चाहिए। आप इस बात को समझते हैं? तो सत्य जो आप देखते हैं वह बिल्कुल एक है, और जो एक सत्य है वह बहुत सूक्ष्म है, जो बहुत कठिन है|