We have to seek our wholesomeness

Caxton Hall, London (England)

1979-07-24 Seeking What Are We Seeking London NITL HD, 61'
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                                            सार्वजनिक कार्यक्रम 

“हमें विराट से अपनी एकाकारिता की आकांक्षा करनी चाहिए”।

 कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके)। 24 जुलाई 1979।

कल, मैं एक महिला से मिली, और उसने मुझसे कहा कि वह ईश्वर को खोज रही है। मैंने कहा, “परमात्मा के बारे में आप की सोच क्या है, आप क्या खोज रही हैं?” जब हम कहते हैं कि हम खोज रहे हैं, तो क्या हम जानते हैं कि हमें क्या खोजना है, और क्या हम समझते हैं कि अपनी खोज़ की पूर्णता हम कैसे महसूस करने जा रहे हैं, कि हम मंजिल तक पहुंच गए हैं? पिछली बार की तरह, मैंने आपसे कहा था कि खोज वास्तविक, सच्चे दिल से होना चाहिए, और यह कि आप खरीद नहीं सकते, या आप इसके लिए प्रयास नहीं कर सकते। लेकिन आज मैं आपको बताना चाहती हूं कि हम क्या ढूंढ रहे हैं।

आइए देखें कि खोज हमारे भीतर कैसे आती है, कहां से? जैसा कि यहां दिखाया गया है, नाभी चक्र नामक एक केंद्र है, जो यहां मध्य में है [अश्रव्य], नाभी चक्र, जो हमारी रीढ़ की हड्डी में स्थित है, और सौर जाल solar plexus को अभिव्यक्त करता है जो आपकी नाभी के बीच में स्थित है। यह वह केंद्र है जो हमारे भीतर खोज का निर्माण करता है। खोज तभी संभव है जब कुछ जीवंत हो। उदाहरण के लिए, इस कुर्सी की क्या इच्छा है? यह सोच नहीं सकती, यह हिल नहीं सकती, आप इसे यहां रख सकते हैं या आप इसे सड़क पर रख सकते हैं। आप इसे तोड़कर फेंक सकते हैं, फिर से उस लकड़ी को किसी अन्य उद्देश्य के लिए उपयोग कर सकते हैं या उसमें से एक स्टूल बना सकते हैं। इसमें किसी प्रकार की कोई इच्छा नहीं है। जब कोई चीज अमीबा की तरह जीवंत हो उठती है, तभी आप एककोशिकीय अंडा ले सकते हैं। यह इच्छा को अभिव्यक्त करना शुरू कर देता है क्योंकि इसे इच्छा है। मृत नहीं। इसलिए जो कहते हैं कि हम खोज नहीं कर रहे हैं, वे मृत के समान हैं। जो कहते हैं कि हम खोज रहे हैं वे जी रहे हैं और संघर्ष भी कर रहे हैं।  अगर थोड़ा सा तुम समझो कि एक छोटे से जानवर, जिसे अमीबा कहा जाता है, के भीतर एक इच्छा पैदा की जाती है, उसे भूख देकर। जरा इस बारे में विचार करें। इसका कोई दिमाग नहीं है। इसमें एक छोटा सा केंद्रक होता है लेकिन यह महसूस कर सकता है कि यह भूखा है। इसे विकसित होने के लिए कुछ खाना पड़ता है। वह यह भी जानता है कि उसे पुनरुत्पादन करना है और फिर वह खोज़ करना शुरू कर देता है। यह भी जानता है कि भोजन को कैसे अंदर लेना है, लेकिन यह नहीं जानता कि यह कैसे पचता है। वह हिस्सा उसका काम नहीं है। हमारे लिए भी बस ऐसा ही है। तो इच्छा एक छोटे से अमीबा में शुरू होती है और पूरा विकास उस इच्छा पर आधारित खोज़ से होता है, धीरे-धीरे सुधार और खोज के तरीकों और साधनों में सुधार होता है, जबकि इच्छा केवल भोजन की होती है, अकेली। एक और इच्छा भी है या, आप कह सकते हैं, एक भावना, सबसे छोटे अमीबा में भी संरक्षण की भावना है। यह उन खतरों को जानता है जो उसके अस्तित्व को खत्म कर सकते हैं। जब यह नन्हा अमीबा हजारों-हजारों साल में इंसान बन जाता है, तो उसकी खोज़ बदल जाती है। शुरुआत में यह प्रारंभ होता है, निश्चित रूप से भोजन की तलाश जो अभी भी है, यही आधार है, शुरुआत के लिए आपके पास भोजन होना चाहिए। बेशक भोजन की तलाश के लिए तरीकों में सुधार, परिवर्तन, विकसित किया गया है, लेकिन यह भी एक बड़ी समझ है कि कैसे अपने और अपने कबीले को संरक्षित किया जाए। गुट बंदी बहुत कम उम्र से शुरू हो जाती है, चींटियां भी इसे समझती हैं। इसलिए वे समझते हैं कि अगर हमें अपनी रक्षा करनी है तो हम सभी को एक साथ जुटना होगा, एक साथ एकीकृत होना है, एक साथ रहना है। और विराट से एकाकारिता की यह खोज भी मनुष्य में धीरे-धीरे विकसित होती है और उसकी अभिव्यक्तियाँ, आप देख सकते हैं, अपनी रक्षा और एक साथ जुटने के हमारे सभी प्रयास में। ये प्रयास हमारे राजनीतिक और हमारे आर्थिक उद्यमों में व्यक्त किए जाते हैं। अब मनुष्य में एक नई खोज शुरू होती है: दूसरों पर अधिकार करना। जानवर सत्ता की तलाश नहीं करते, उनके पास है। उदाहरण के लिए, एक बाघ, एक गरीब खरगोश की तुलना में कहीं अधिक शक्तिशाली है। वह ऐसे ही पैदा होता है। और एक खरगोश बाघ नहीं बनना चाहता। वह हर डिक की तरह कोशिश नहीं करता, टॉम और हैरी प्रधानमंत्री बनना चाहेंगे। लेकिन एक खरगोश बाघ बनने की कोशिश नहीं करेगा, वह समझता है “मैं एक खरगोश हूं और मुझे अपने बचाव और आक्रमण के साधनों को विकसित करना चाहिए जिससे मैं अस्तित्व में रहूं।” जैसे बाघ कार्य करता है, वह अपनी शक्तियों से अवगत होता है और साथ ही वह अपनी सीमाओं से अवगत होता है। और कुछ जानवरों में नेतृत्व की शक्ति भी होती है। वे नेता बन जाते हैं। आपने कुछ पक्षियों को देखा होगा कि उनके पास एक नेता होता है, एक नेता जाता है और वह नेता जहां भी दिशा बदलता है, वे सभी उस नेता की पूंछ की तरह बदल जाते हैं। जिस प्रकार वह चिड़िया जिस प्रकार जाती है उसी प्रकार नेता जाता है सब उसका अनुसरण करते हैं।

तो, यह भी मनुष्य में बहुत विशाल तरीके से व्यक्त किया जाता है कि कुछ जन्मजात नेता होते हैं जो लोगों के एक समूह को किसी गंतव्य तक ले जाते हैं जिसमें वे उस समूह की आकांक्षाओं को पूरा करते हैं। अब समूहों की इच्छा  पैसा हो सकती है, ज्यादातर यह है। अब पैसा जानवर नहीं समझते, यह तो मनुष्यों की ही रचना है। तो, उनके लिए पैसा बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यह उनकी अपनी रचना है। हमारे पास वस्तु विनिमय प्रणाली थी, लेकिन फिर हमने सोचा कि किसी प्रकार का माध्यम होना बेहतर है जो एक वस्तु को दूसरी से अदल-बदल में सहायक होगा, इसलिए हम पैसा शुरू करते हैं। अतः मनुष्य का ध्यान भोजन से सत्ता की ओर और सत्ता से धन की ओर जाता है। कभी-कभी अगर किसी के पास बहुत पैसा होता है, तो वह सत्ता पाना चाहता है। यह स्वाभाविक भी है। सामान्यतया इसमें कुछ भी गलत नहीं है। मूल रूप से यह एक ऐसी चीज है कि, मनुष्य के लिए धन के पीछे भागना और फिर सत्ता के पीछे भागना अथवा इसका विपरीत क्रम स्वाभाविक है|

लेकिन एक और इच्छा इससे परे शुरू होती है, जो यह जानने की इच्छा है कि हम यहां क्यों हैं? हम यहां क्या कर रहे हैं? हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है? ईश्वर ने हमें क्यों बनाया है? किस मकसद से, किस मंज़िल के लिए या यह महज एक मजाक चल रहा है? क्या किसी अमीबा की तरह हम सिर्फ मूर्खता से पैदा हो रहे हैं, शादी कर रहे हैं, बच्चे पैदा कर रहे हैं और मर रहे हैं? या हमारा कोई और मकसद है? बहुत से मनुष्य धन या स्वास्थ्य से आगे नहीं जाते, वे अच्छा स्वास्थ्य चाहते हैं। मेरा मतलब है कि जहाँ तक मैं जानती हूँ जानवर कोई व्यायाम नहीं करते हैं। लेकिन इंसान अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, लेकिन किस लिए? मेरा मतलब है, आप पहलवान हो सकते हैं, किस लिए? सिर्फ एक दूसरे से लड़ने के लिए? आप इस धरती पर रहने वाले सबसे स्वस्थ व्यक्ति हो सकते हैं, लेकिन किस लिए? तुम बस बेकार में हो। आपका क्या उपयोग है? आप सबसे अच्छी कारों में जाने वाले सबसे धनी व्यक्ति हो सकते हैं और जो कुछ भी आप इसे कह सकते हैं, जीवन की सभी तथाकथित विलासिता और भौतिक कल्याण, लेकिन किस लिए? जब ऐसा कोई प्रश्न हमारे मन में आता है तब तो एक नई तरह की इच्छा और खोज शुरू होती है, जो यह सवाल करती है कि आप यहां क्यों हैं? क्या आप यहां सिर्फ सुबह से शाम तक इस चूहा दौड़ में दौड़ने, पैसा कमाने और शक्ति कमाने और सभी बेकार गतिविधियों को करने के लिए हैं, दूसरों को अपना पैसा दिखाने के लिए या दूसरों से कुछ पैसे निकालने के लिए? क्या यही आपके जीवन का उद्देश्य है?

अब यह चौथी स्तर की जांच की शुरुआत है, या आपकी जागरूकता में चौथा आयाम है। यह जिज्ञासा भी उसी अल्पविकसित चीज का पल्लवित होना है जिसे भूख कहा जाता है: आध्यात्मिकता की भूख, ईश्वर की भूख, जीवन की उच्च चीजों की भूख। यह हमारे भीतर शुरू होता है, जिसे मैं वास्तविक घटना कहती हूं। इस खोज में हम भ्रमित हो जाते हैं, क्योंकि जब तक आप में यह इच्छा शुरू होती है, तब तक आप पहले से ही भूखे और समाप्त हो चुके होते हैं। कैसे? क्योंकि आप पहले से ही चल रही सभी प्रकार की निरर्थक बातों से बद्ध हैं। आप खुद को ब्रिटिश या भारतीय या किसी तरह का ऑस्ट्रेलियाई कह सकते हैं या मैं उन सभी चीजों को नहीं जानती जो कि लोग खुद कहते हैं, लेकिन परमात्मा की नजर में, आप सिर्फ एक इंसान हैं, आप हैं, मेरा मतलब है आपके पास शुरू करने के लिए कोई पूंछ नहीं है, और आपका सिर इस तरह नीचे नहीं झुका है, आपका सिर सीधा है। चाहे आप अफ्रीका में हों या भारत में, या इंग्लैंड या अमेरिका में, सब कुछ एक जैसा ही है। जब तक आपका सिर उस तरह ऊपर है और आपके पास पूंछ नहीं है (निश्चित रूप से कुछ लोगों के पास होना चाहिए, जिस तरह से वे व्यवहार करते हैं), आप निश्चित रूप से एक इंसान हैं। और अगर एक इंसान अगर जीवन के विभिन्न अनुभवों के माध्यम से विकसित हुआ है और यह महसूस करता है कि इनमें से किसी भी अनुभव ने उसे वास्तव में पूर्णता और उसके प्रश्न का उत्तर नहीं दिया है “हम यहां क्यों हैं?” तब उसके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ आता है और वह एक साधक (मुमुक्षु)बन जाता है। उससे पहले नहीं।

जो लोग गुरुओं के पास जाते हैं और कहते हैं, “माँ, क्या आप कृपया मेरे बेटे को नौकरी देंगी,” तो आप नहीं जानते कि क्या कहें, आप ऐसे व्यक्ति से कहें, “अब मेरे बच्चे, तुम अभी तक सुपात्र नहीं हो , आप अभी यहाँ आने के लिए परिपक्व नहीं हुए हैं।” या अगर आप किसी के पास मांगने जाते हैं, जैसे कहें, हीरे की अंगूठी। या कोई कहता है कि मैं ईश्वर के नाम पर हीरे की अंगूठी देता हूं, और आप इस तरह के जवाब से काफी संतुष्ट हैं, तो आप एक साधक के रूप में ठीक नहीं हैं, अच्छे नहीं हैं। विशेष रूप से सहज योग के लिए अनुपयोगी। या कोई जो कहता है, “मैं तुम्हें ठीक कर दूंगा” और आरोग्य पाने  के लिए आप किसी के पास जाते हैं – ठीक है, वह व्यक्ति आपको ठीक कर सकता है, लेकिन आप एक साधक के रूप में ठीक नहीं हैं। जो ईश्वर को पाने का इच्छुक नहीं है, उसे ईश्वर क्यों ठीक करे? मेरा मतलब है, मैं इस उपकरण (माइक्रोफोन)की मरम्मत क्यों करूं अगर यह मेरी आवाज नहीं ले जा रहा है? या फिर आप में से कुछ, यदि आप किसी गुरु के पास जाते हैं, और यदि वह आपको इस तरह की कहानी सुनाता है कि, “तो आपको इसके लिए मुझे कुछ पैसे देने होंगे, क्योंकि यदि आप मुझे पैसे नहीं देते हैं तो आप इस तरह शामिल नहीं हो सकते”। बेहतर होगा कि आप ऐसे गुरु को उनके चेहरे पर थप्पड़ मार दें और उनसे कहें कि “आप मेरे बारे में क्या सोचते हैं?” क्योंकि यह आपकी ख़ोज के प्रति पूर्ण अपमानजनक है। वह आपसे पैसे लेकर आपको शामिल करना चाहता है। क्या आप यह नहीं देख सकते कि वह यह कहकर आपका अपमान कर रहा है कि आप इतने भौतिकवादी हैं, कि जब आप मुझे पैसे देंगे तब ही आप परमात्मा की खोज़ में संलग्न होंगे? जरा इस बारे में विचार करें। ऐसे सभी तर्क लोग आपको देते हैं और यदि आप उन्हें स्वीकार करते हैं और यदि आप ऐसे गुरुओं का अनुसरण करते हैं तो आप खोजने के लिए परिपक्व नहीं हो सकते।

जैसा कि आपको ईमानदार होना है, आपको यह समझने के लिए विवेक वान  होना होगा कि आप अपनी तृप्ति की तलाश कर रहे हैं। आप पैसे और हीरे की अंगूठियां और ये बैवकुफियां जो चल रही हैं और आप उन्हें और लोगों की इन मूर्खतापूर्ण जादुई चालों को देखने के लिए नहीं हैं, लेकिन आप परमात्मा के जादू को देखने जा रहे हैं। फिर खोज में भी आपको पता होना चाहिए कि यदि ईश्वर विश्वव्यापी है, तो कोई भी जो यह दावा करता है कि हम चुने हुए हैं और कोई और नहीं चुना जा सकता है या वह एकमात्र पैगंबर था और वह एकमात्र ईश्वर था और क्योंकि आप किसी संगठन से संबंधित हैं, यह बेतुकी कट्टरता और कुरूपता के अलावा और कुछ नहीं है। अपने आप को धोखा मत दो। कृपया समझने की कोशिश करें: आत्म-धोखा परमात्मा द्वारा कभी माफ नहीं किया जाएगा। अमीबा, अगर वह वहाँ का खाना देखता है, तो क्या वह खुद को धोखा देता है? या शेर हो या मेंढक भी, उसके पास इतना छोटा दिमाग है। वह समझता है कि वह किस बात का इच्छुक है, क्या वह अपने आप को धोखा देगा? लेकिन इंसान सुबह से शाम तक खुद को ही धोखा देते रहते हैं|

हमें इच्छा ईश्वर की करनी है। हमें अपनी तृप्ति की इच्छा करनी है। हमें उस संपूर्णता जो कि ईश्वर है, आदि अस्तित्व है, से संबंधित होना है| इस के पूर्ण से, यही वो है जिसकी हमें इच्छा करना चाहिए । इसी के लिए आप बनाए गए हैं।

यदि आप माँ के गर्भ में एक छोटे से भ्रूण का अध्ययन करते हैं, तो आप चकित होंगे कि माँ की गर्भ नाल द्वारा पूरे भ्रूण की देखभाल की जाती है, और यद्यपि भ्रूण के सभी भाग अभी तक पूरी तरह से विकसित नहीं हुए हैं ताकि शुरुआत से ही पूरी तरह मस्तिष्क से जुड़ा जा सके, फिर भी इस एक चैनल के माध्यम से इस का पोषण किया जाता है, देखभाल की जाती है, प्रबंधित किया जाता है। फिर बच्चे के जन्म के समय बच्चे को माँ से अलग कर दिया जाता है, और धीरे-धीरे इन सभी विभिन्न संवेदी अंगों और गति के अंगों और स्वचालित कार्यों के अंगों की सभी संवेदनाएं और समन्वय धीरे-धीरे, बहुत धीरे-धीरे, जैसे-जैसे वह बढ़ना शुरू होता है, बनाया जाता है। लेकिन एक बार संबंध स्थापित हो जाने के बाद, मनुष्य कार्यरत होना शुरू कर देता है। अपने आप ही सारा शरीर एक साथ कार्य करता है; यह महसूस कर लेता है जब चुटकी ली जाती है। यहां उंगली में पूरा शरीर जान जाता है कि आप की चुटकी ली जा रही हैं, सम्पूर्ण, जो हुआ है उसके बारे में सब कुछ जान जाता है। पूरा कनेक्शन स्थापित है। यह एक जीवंत प्रक्रिया है, यह एक उन्नतिशील प्रक्रिया है जो काम करती है। लेकिन इंसानों के साथ एक बहुत बड़ी समस्या है। सबसे बड़ी समस्या मैं कहूंगी कि वे हमेशा अपूर्णताओं, गलत विचारों के साथ पहचाने जाते हैं और इंसान में ही ये चीजें होती हैं, इसलिए सावधान रहना होगा। कुत्ता आपसे बेहतर सूंघ सकता है, और वह जानता है कि क्या खाना चाहिए, क्या नहीं खाना चाहिए। आप नहीं जानते। आप नहीं जानते कि असली गुरु और गंदा गुरु और भयानक गुरु और शातिर आदमी क्या है। आप पता नहीं लगा सकते। कोई जेल से भाग जाता है, वह एक पोशाक पहनता है, इंग्लैंड आता है कि, “मैं गुरु हूं” – महान, और उस तरफ हजारों भाग रहे होंगे। वे जानते नहीं है और उसके पास जितने अधिक होंगे, उसके लिए उतना ही अच्छा है।

लेकिन एक रास्ता है। परमात्मा ने इसे पहले ही आपके भीतर रख दिया है। उन्होंने आपके विकास के लिए इसे आपके भीतर रखा है,  वह केवल आपकी सच्चाई को परख रहे हैं, लेकिन यदि आप इतने हठी हैं कि कुछ गलत पहचान वाली बेतुकी चीजों पर टिके रहते हैं तो आप इसे कार्यान्वित नहीं कर सकते। इन सब बातों से मुक्त हो जाओ, अपने को खोलो। आप सभी को सम्पूर्ण के प्रति जागरूकता होनी चाहिए। आप सभी को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना है। हालाँकि इससे, परमेश्वर अपनी सृष्टि में आपकी तृप्ति को महसूस करेंगे, निस्संदेह, और उन्हें यही करना है, वह करेंगे, लेकिन उन्हें  बहुत मेहनत करनी होगी। और फिर भी और फिर भी यदि आप सत्य को स्वीकार नहीं करते हैं, तो निसंदेह सत्य व्यक्त किया जाएगा, लेकिन तब असत्य को नष्ट करना होगा। और उस समय असत्य से तादात्म्य रखने वालों का भी नाश हो जाएगा। इससे पहले, अपनी बुद्धि पर ध्यान दें और जानें कि हमें क्या खोजना है? हमें अपनी पूर्णता पाने की इच्छा करनी है, जिसे हमने अपने राजनीतिक और आर्थिक और सामाजिक मेलजोल में आंशिक रूप से व्यक्त किया है।

इन सभी को एकीकृत करना होगा, मनुष्य के विकास में जितने भी महान धर्म स्थापित किये गए हैं, जिन्होंने मानव के विकास में काफी मदद की है, जो उनके जीवन का आधार हैं, इस प्रयास में उन्हें एकीकृत करना होगा। उदाहरण के लिए, माना की मैं एक हिंदू से मिलती हूं, तो वह कहता है, “माँ, आप ईसा-मसीह के बारे में कैसे बात करती हैं? हम ईसा-मसीह में विश्वास नहीं करते हैं।” अब ईसा-मसीह में विश्वास ना करने से आप एक बहुत महान व्यक्ति हो जाते हैं क्या। आप होते कौन हैं जो ईसा-मसीह में विश्वास नहीं करते? तुम अपने आप को क्या समझते हो? आपका यह कहने का क्या अर्थ है कि आप ईसा-मसीह में विश्वास नहीं करते हैं? क्या आप जानते हैं कि इस धरती पर किसी भी महान अवतार के बारे में ऐसी भयानक बातें कहना ईशनिंदा है? कुछ ऐसे हैं जो कहते हैं, “हम मूसा, या गुरु नानक या मोहम्मद-साहिब में विश्वास नहीं करते हैं।” तुम हो कौन ? मुझे विश्वास नहीं है, मुझे विश्वास नहीं है। आपका विश्वास क्या है? यह किस पर आधारित है? आप ऐसी बातें क्यों कहते हैं? आप उनके बारे में क्या जानते हैं? केवल चर्चों में जाकर या इन मस्जिदों में जाकर या इन सभाओं में जाकर। वे अंधे हैं जो तुम्हें अंधा बना रहे हैं। आपने क्या हासिल किया है लेकिन कट्टर कट्टरता के अलावा कुछ नहीं? यह एक रोग है। यह बीमारी है। 

बस परमात्मा के राज्य में आओ, और तुम देखोगे कि वे सब वहाँ मंच पर बैठे हैं, वे सब एक साथ हैं और तुम मूर्खों की तरह लड़ रहे हो। क्या उन्होंने कभी ऐसा कहा, उदाहरण के लिए, जब ईसा-मसीह आये तो क्या उन्होंने ऐसा कहा कि मूसा गलत था, क्या उन्होंने ऐसा कहा? जब नानक आए, तो क्या उन्होंने कहा कि मोहम्मद गलत थे? क्या इन महान संतों में से किसी ने ऐसा कहा था? फिर आप कौन होते हैं उनकी निंदा करने वाले? यह तथाकथित साधकों की सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है। तब उनकी पहचान उनके गुरुओं से होती है। मैंने उनसे एक प्रश्न पूछा, “यदि आप अपने गुरु के साथ इतने अधिक पहचाने जाते हैं, तो उनके साथ आगे बढ़ें; तुम मेरे पास क्यों आते हो?” “मैं आपके पास इसलिए आता हूँ, माँ, क्योंकि मैं अस्थमा से पीड़ित हूँ, जब से मैं उस गुरु के पास गया था।” 

“फिर उससे कहो कि वह तुम्हारा इलाज करे। तुम मेरे पास क्यों आते हो? यदि आपके गुरु ने आपको वह दिया है जो आप चाहते थे, तो आप मेरे पास क्यों आएं? अगर वे सच्चे गुरु हैं, तो ऐसा मैं आपके चेहरे पर यह लिखा हुआ देख पाउंगी। मैं इसका पता लगा सकती हूं और मैं उस व्यक्ति की आराधना करूंगी जो एक वास्तविक गुरु है। मैं ऐसे व्यक्ति से मिलने के लिए बाहर जाऊंगी और मैं उसे अपने लिए सबसे बड़ा आशीर्वाद भी मानूंगी, लेकिन वे बहुत कम हैं और हिमालय या कुछ जगहों पर छिपे हुए हैं जहां से वे बात नहीं करते हैं। उनकी कोई नहीं सुनता। वे बहुत कम हैं। उनमें से एक ने अमेरिका जाने की कोशिश की; पांच दिनों के भीतर वह भारत वापस आ गया था। उसने मुझे यह कहते हुए लिखा, ‘माँ, बहुत मुश्किल है।'”

क्योंकि आपकी पहचान खेल से होती है, खेल खेलने से, आप ऐसे लोगों को पसंद करते हैं जो आपके साथ खेल खेलते हैं। आपको सच बोलने वाले लोग पसंद नहीं हैं। बात यह है। आपको इसे पाना चाहिए लेकिन दिलचस्पी इस में है की आपको ज्ञान होना चाहिए। आपसे प्यार करने वाला कोई भी व्यक्ति आपको कुछ ऐसा कैसे बता सकता है जो आपके लिए हानिकारक या घातक  या बिल्कुल खतरनाक हो? वे आपको नहीं बताएंगे, जो नकली हैं वे आपको कभी किसी के बारे में नहीं बताएंगे। वे कहेंगे कि पृथ्वी के दूसरी ओर सब कुछ ठीक है, जब तक कि कोई सच्चा व्यक्ति नहीं आ जाता। वे इसके बारे में एक शब्द भी नहीं कहने जा रहे हैं, यह मेरा दावा है|

इसलिए अपनी खोज में सबसे पहले आपकी गलत पहचानों को छोड़ देना चाहिए। आप बहुत सी चीजों के साथ इतने गलत हैं, जैसे लोग कहेंगे, “हमें ईसा-मसीह का अनुसरण क्यों करना चाहिए – वह एक यहूदी था।” मेरा मतलब है, उसे कहीं न कहीं पैदा होना है। और जैसा की होता है, आपको कहीं न कहीं किसी न किसी धर्म से ताल्लुक रखना पड़ता है। आपको इंग्लैंड में पैदा होना है या आपको भारत में पैदा होना है, या शायद टिम्बकटू में। मेरा मतलब है, आपको किसी जगह पैदा होना है। तो उनमें से बाकी कहते हैं “नहीं।” और जो लोग वहां रहते हैं वे भी कहते हैं, “वह अच्छा नहीं है क्योंकि वह हमारी ही तरह यहां पैदा हुआ था।” वे चाहते हैं कि कोई स्वर्ग से गिरे। यह बहुत ही हास्यास्पद है। तो हमारे लिए, जो सच्चे साधक हैं, उन्हें अपना दिमाग पूरी तरह से खोलना चाहिए और यदि आप अपना समय बर्बाद करना चाहते हैं, तो आगे बढ़ें; तुम अपने गुरुओं के साथ आगे बढ़ो, उनके चमत्कारों पर आश्चर्य करो, उन्हें पैसे दो, उन्हें अपनी औरतें दो, उन्हें अपनी संपत्ति दे दो, उन्हें अपना सब कुछ दे दो, बीमार हो जाओ, पागल हो जाओ, पागलखाने में समाप्त हो जाओ, मैं यह नहीं कहूंगी ” आओ, मेरे बच्चे, मेरे पास आओ”। लेकिन फिर भी पागलखाने से भी अगर आपको अपनी गलतियों का एहसास हो और आ जाए तो परमेश्वर क्षमा के सागर हैं।

लेकिन मुझे शुरू से ही आपको चेतावनी देनी है, ऐसे सभी लोग अपना समय और मेरा समय बर्बाद कर रहे हैं। तो कृपया ऐसे सभी लोग जो अभी भी बहुत गलत पहचान रखते हैं, कृपया मुझे अपने शास्त्रार्थ से अधिक परेशान न करें।

क्योंकि मैं हमेशा पाती हूँ कि वे कल आयी महिला की तरह सच्चे साधक माने जाते हैं और वह मुझसे कहने लगी, “क्या आपने यह किताब पढ़ी है?” और “क्या आपने वह किताब पढ़ी है?” मैंने कहा, “मैं पढूंगी, लेकिन इसे पढ़कर मुझे तुम में कुछ भी नहीं मिला। आपने उन्हें पढ़ा है, आपने क्या हासिल किया है? क्या तुमने कुछ हासिल किया है?” कुछ भी तो नहीं। “क्या आपने इस गुरु को और उस गुरु को और उस गुरु को और उस गुरु को देखा है?” मैंने कहा, “हो सकता है, लेकिन तुम्हारा क्या, तुम्हारे पास क्या है?” उसे अस्थमा है। एक आंख उड़ गई है, वह बैठ नहीं सकती, उसे शरीर की कठोरता  मिली है क्योंकि वह कहती है कि उसे गठिया है। वह वास्तव में ग्रसित है। और वहाँ वह एक साधक है और फिर वह मुझसे एक प्रश्न पूछती है, “माँ, मैं एक साधक हूँ और ईश्वर मेरे प्रति इतने निर्दयी क्यों हैं?” “आपने अपनी बुद्धि का उपयोग नहीं किया, मेरे बच्चे।” आज भी, अपने विवेक पर ध्यान दो, और जान लो कि तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें अपने पूरे दिल से, अपनी सारी भावना से प्यार करता है, चाहे तुम उससे प्यार करो या नहीं। इस इच्छा को उसने तुम्हारे भीतर रखा है। उसने इस सारी प्रणाली को तुम्हारे भीतर रखा है। उसने सभी चीजों को इतनी खूबसूरती से स्थापित किया है कि वह कुछ ही समय में स्वतः काम कर जाती है। लेकिन लोग ऐसे हैं, वे अनुभूति पाने  के लिए आते हैं और अगर मैं उनसे कहूं “ठीक है, तुम आओ और मेरे पास बैठो।” “नहीं, बैठेंगे नहीं ।” “आप कृपया अपने जूते निकाल दें”, “नहीं, मैं अपने जूते नहीं निकालूंगा।” ऐसे कई हैं। भले ही आप उनसे कहें कि “आप दोनों पैरों को इस तरह से रख कर क्यों नहीं बैठ जाते ताकि आप आराम से रहेंगे, आप देखिए।” मैं जो कहती हूं उसके और भी कई कारण हैं, मैं ऐसा क्यों कहती हूं। लेकिन फिर भी “नहीं, मैं क्यों करूं?” कुछ चीजें हैं जो आत्म-साक्षात्कार के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं यदि आप इसे प्राप्त करना चाहते हैं।  बेहतर है आप इस तरीके से करें। सारी वृत्ति समझने की होनी चाहिए, कि यहाँ तुम्हें मुझसे कुछ पाना है। यह आपके लिए एक उपहार है, और इस उपहार को लेने में कोई हठ रुकावट नहीं बनना चाहिए। मेरा मतलब है, कि  सामान्य मामलों में हम ऐसा बर्ताव नहीं करते हैं। अगर हमारे लिए कोई उपहार है, तो हम उसके बारे में जिद्दी नहीं बनते हैं। क्या हम ऐसा करते हैं? उपहार सामने आने पर क्या मनुष्य हठी हो जाते हैं? लेकिन जब परमेश्वर की बात आती है तो वे अपने जूते भी नहीं निकालते। यह इतनी बड़ी चीज है जिसे आप मांग रहे हैं, जो अमीबा अवस्था से मानव अवस्था तक आपकी खोज के परिणाम की प्राप्ति है। मानव अवस्था में भी आप हजारों वर्षों से खोज रहे हैं और आज जब आप इसकी दहलीज पर हैं, तो आप अड़ियल क्यों हैं?

मैं कहती हूं कि सहज योग में आपको आत्म-साक्षात्कार मिलता है। कोई पैसा देना या लेना नहीं है। उप-उत्पाद के रूप में, आप अपना स्वास्थ्य सुधार पाते हैं। बेशक, आपकी भौतिक चीजें भी सुधरती हैं । सहज योग के आशीर्वाद के रूप में कई चीजें बेहतर होती हैं। लेकिन असल चीज जो आपके साथ होती है वह यह है कि आपको आत्मज्ञान प्राप्त होता है। आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है। कि तुम्हारे भीतर ज्ञान का प्रकाश प्रकाशित होता है, और तुम अपने आप को, अपने चक्रों को और दूसरों के चक्रों को देखना शुरू कर देते हो, क्योंकि तुम भी समग्र से संपर्क में आ जाते हो, तुम्हें अपनी सम्पूर्णता मिलती है।

सहज योग के पास आपको प्रदान करने के लिए यही है और यदि आप इसे प्राप्त करना चाहते हैं, तो कृपया इसे प्राप्त करें। बाकी सब तो बस एक उपोत्पाद है, क्योंकि अगर कोई रोशनी है तो आप लड़खड़ाते नहीं हैं, आप सीधे चलते हैं। आप यह नहीं कहते कि, “चूँकि, रौशनी थी इसलिए मेरे पैरों में सुधार हुआ।” नहीं। “मेरी रोशनी के कारण मेरी दृष्टि में सुधार हुआ। रोशनी नहीं होने के कारण समस्या थी।” जैसे ही प्रकाश होता है सब कुछ ठीक हो जाता है और आप संपूर्ण को समझने लगते हैं, आप जानते हैं कि पूरी चीज कैसी है और आप सीधे चलना शुरू करते हैं और आप जानते हैं कि कहां बैठना है, और कुर्सी क्या है और व्यक्ति क्या है।

यदि आप इसी के इच्छुक हैं तो, आप एक साधक हैं और आप एक सच्चे साधक हैं और आपको आशीर्वाद दिया जाना है और यह सुनिश्चित करना मेरा काम है कि आप वहां पहुंचें। आपको अपनी शक्तियाँ मिलती हैं, अपने गुरु की नहीं, अपनी स्वयं की। और ऐसा कि, आप स्वयं को समझते हैं, आपको अपना आत्म-ज्ञान और संपूर्ण का ज्ञान प्राप्त होता है। लेकिन अगर आप वह नहीं हैं, मेरे बच्चों, मुझे खेद है, आप अभी भी अपनी आकांक्षा करने  में एक बच्चे हैं, आपको अभी भी और विकसित होना है, और अधिक बढ़ना है, और तब आप मेरे पास आते हैं जब आप काफी बड़े हो जाते हैं। अन्यथा उस तरह के व्यक्ति पर काम करना, या उन्हें आत्म-साक्षात्कार या कुछ भी देना सिरदर्द है।  कभी-कभी वे लोगों को स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए सहज योग का उपयोग कर रहे हैं। आप स्वस्थ हो जाते हैं, इसमें कोई शक नहीं। सहज योग से कैंसर को भी ठीक किया जा सकता है। यह हो सकता है। इसे सहज योग से ही ठीक किया जा सकता है। इसमें यही बात है। लेकिन यह फिर आपके पास वापस आ जाएगा। हम वादा नहीं कर सकते, कुछ भी गारंटी नहीं दे सकते। जब तक आप सहज योग में उत्थान नहीं करते और सहज योग में निपुण नहीं बन जाते, हम गारंटी नहीं दे सकते। आपको फिर से बीमारी हो सकती है।

ईश्वर में आपको सब कुछ देने की भावना क्यों नहीं होनी चाहिए, तभी तो आपको उपलब्ध है? वह आपसे प्यार करता है, इसमें कोई शक नहीं। वह आपको देना चाहता है क्योंकि वह आपसे प्यार करता है, लेकिन यदि आप स्वच्छंद हैं और यदि आप स्वभाव से विचित्र हैं, तो वह आपको क्यों देना जारी रखेगा यह एक सरल प्रश्न है जो आपको स्वयं से पूछना चाहिए और फिर बोध प्राप्ति के लिए प्रार्थना करना चाहिए, आपको मिल जाएगा . इसे प्राप्त करने के बाद भी संशय का दौर होता है क्योंकि पहले आपको निर्विचार समाधि मिलती है, जिसे निर्विचार समाधि कहते हैं। जब हम सामान्य शब्दावली में जागरूकता कहते हैं, तो इसका मतलब है कि किसी भी चीज के प्रति सतर्कता जागरूकता है। लेकिन जब हम समाधि कहते हैं तो इसका अर्थ होता है प्रबुद्ध जागरूकता। आपको निर्विचार प्रबुद्ध जागरूकता मिलती है। और तब आपको निस्संदेह प्रबुद्ध जागरूकता प्राप्त होती है। कुछ लोगों में दोनों के बीच की स्टेज इतनी कम होती है कि वे बस सीधे वहीं होते हैं। मेरे यहां कुछ लोग हैं जो अभी-अभी मिले हैं और वहीं हैं। वे इन दो चरणों से नहीं गुजरते हैं। लेकिन औसत दर्जे के भी हैं और बिल्कुल बैलगाड़ियाँ की गति वाले भी हैं ऐसा जिन्हें मैं कहूंगी, वे जेट के युग के साथ नहीं चल सकते। इस आधुनिक समय में, कल्पना कीजिए कि एक बैलगाड़ी को एक जेट द्वारा खींचा जा रहा हो – बड़ी समस्या। लेकिन अगर आप उस क्षमता और उस गुण के हैं तो आपको दोनों चरण जैसे एक साथ ही मिलते हैं। उसके बाद कोई शक नहीं रहता है। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो संदेह में पड़ जाते हैं। मुझे नहीं पता कि उन्हें यहाँ क्या संदेह है। उनके पास अनुभव था, वे वायब्रेशन महसूस करते हैं, वे अपने बीच से बहती ठंडी हवा को देखते हैं। वे इसे दूसरों पर काम करते हुए देखते हैं। वे कुंडलिनी के स्पंदन, कुंडलिनी के उदय को देखते हैं। वे स्वास्थ्य में बेहतर हो रहे हैं और सब कुछ सुधर रहा है। फिर भी वे संदेह कर रहे हैं और अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। और हर चीज में देरी हो रही है, उनके इलाज में देरी हो रही है, हर चीज में देरी हो रही है। ठीक है, तो हमारे यहाँ जेट विमान हैं, हमारे यहाँ सुपरसोनिक हैं, हमारे पास मिसाइलें हैं, और हमारे पास बैलगाड़ियाँ भी हैं।

देखिए, इस दुनिया को बनाने में बहुत कुछ लगता है, है न? और इसलिए मैं सब कुछ ले लेती हूं। ठीक है। अपने पूरे प्यार के साथ मैंने उन्हें समा लिया है। लेकिन मैं आपसे अनुरोध करूंगी कि इस तरह अपनी प्रगति को धीमा न करें। आप जिस बात पर संदेह कर रहे हैं वह यह है कि मुझे कुछ नहीं चाहिए। यदि आप किसी चीज के लिए भुगतान कर रहे हैं, तो आपको उस पर संदेह करना चाहिए। आप कुछ भी भुगतान नहीं कर रहे हैं। आप क्या संदेह कर रहे हैं? मुझे तुमसे क्या हासिल होगा? लेकिन फिर भी उनमें से बहुत से लोग कभी-कभी आते हैं और मुझसे कहते हैं, “माँ, अब हम संदेह कर रहे हैं।” मैं कहती हूं, “ठीक है, आगे बढ़ो, जब तुम्हारी शंकाएं समाप्त हो जाएंगी, तो तुम आकर मुझे मिल लो।” यह ऐसा ही है। मैं आपसे अनुरोध करूंगी कि आप अपने मन को यह बताने की कोशिश करें कि आपने हर तरह की चीजें की हैं। आप सभी प्रकार के गुरुओं के पास गए हैं। आप सभी प्रकार की निरर्थक पुस्तकों के संपर्क में रहे हैं और आप सभी प्रकार के संदेहों को लिए रहे हैं। अब कुछ देर संभल जाओ। शान्त होना। अपने मन से कहो कि आपको गुमराह न करें, और इसे प्राप्त करें। यह तुम्हारा अपना है; यह आपकी अपनी संपत्ति है; यह वहां रहने का आपका अपना अधिकार है। तो लीजिए, और अगर कोई शंका आ रही है, तो उन्हें कुछ देर रुकने के लिए कहें।

परमात्मा आप सबको आशिर्वादित करें।

मुझे आपके सवालों का जवाब देने में बिल्कुल भी ऐतराज नहीं है। मुझे उनका जवाब देना अच्छा लगेगा। लेकिन मेरा अनुभव यह है कि जब आप उन्हें एक प्रश्न पूछने के लिए कहते हैं तो वे ग्रसित लोगों की तरह बोलते हैं। उनमें कुछ चीजें हैं, उनके सिर में कुछ ग्रंथियां है और वे इसके साथ प्रकट होती हैं। और वे इस बात की परवाह नहीं करते कि माँ के पास दूसरों को बोध देने के लिए बहुत कम समय है, इतना बड़ा काम किया जाना है और वे कहीं से कुछ छोटी सी बात निकाल लेंगे और उस की रट लगाये रहेंगे और दूसरों को परेशान करते रहेंगे और समय गुज़ार देंगे। बहुत, बहुत स्वार्थीपन। और फिर झगड़ा शुरू हो जाता है जो [अश्रव्य] उनके सवालों का जवाब देने के लिए यहां कुछ ऐसे भी हैं जो कहेंगे कि उन सभी के साथ मैं बहुत अधिक धैर्यवान हूँ। और मैं जहां तक ​​संभव हो सभी उत्तर देने का प्रयास करती हूं, इसलिए मैं उत्तर देने का प्रयास करूंगी। लेकिन अगर आपको सिर्फ बात करने, बात करने, बात करने का शौक है, तो मैं वास्तव में थक गयी हूं, मैं आपसे अनुरोध करती हूं कि आप अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करें, सत्य के साथ स्थापित हों और अपने अस्तित्व को गौरवान्वित करें क्योंकि आप ईश्वर द्वारा प्रकाशित हैं, जिसने आपको बनाया है। यदि आपके कोई प्रश्न हैं तो आप पूछ सकते हैं लेकिन जैसा कि मैंने कहा है, सावधान रहें कि कहीं आप दूसरों को परेशान तो नहीं कर रहे हैं और मूर्खतापूर्ण, बेवकूफ, बेकार प्रश्न पूछ रहे हैं।

[निम्नलिखित मेरी रिकॉर्डिंग पर था लेकिन ट्रांसक्राइबिंग टीम द्वारा नहीं किया गया था। एमजी]

प्रश्न: [अश्रव्य]

श्री माताजी: यह बहुत आसान प्रश्न है, महोदया, और मुझे नहीं लगता कि मुझे इस स्तर पर उत्तर देना चाहिए, क्यों? क्योंकि यह सवाल आप खुद से पूछिए और आपको इसका जवाब मिल जाएगा, ठीक है?

प्रश्नकर्ता : लेकिन मेरे पास एक उत्तर है [अश्रव्य]

श्री माताजी: अब देखिए… ठीक है, मैं आपको एक बात बताती हूँ, ठीक है? प्रश्न ठीक है, यह सबके सामने आता है, जब वे मुझे देखते हैं तो ऐसा प्रश्न पूछते हैं, लेकिन मैं कहूंगी, मैं थोड़ी चतुर हूं,  क्योंकि जब क्राइस्ट ने कहा, “मैं प्रकाश हूं, मैं मार्ग हूं”, आपने उनके साथ क्या किया ?

प्रश्नकर्ता : सुन नहीं सकता

श्री माताजी : हाँ, उसने ऐसा कहा, तो उसके लिए आपने उसके साथ क्या किया? (प्रश्नकर्ता का अश्रव्य उत्तर) ठीक है, आपने नहीं किया लेकिन दूसरों ने किया, ठीक है? जब कृष्ण ने कहा, “मैं वह हूं जिसका आपको अनुसरण करना चाहिए, मैं वह हूं जिसे आपको समर्पण करना चाहिए”, आपने उनके साथ क्या किया – क्या उन्होने किसी और को बताया? उन्होने केवल अर्जुन से कहा- क्यों? (प्रश्नकर्ता का अश्रव्य उत्तर) तो फिर इसके बारे तुम्हे भी बताने का क्या फायदा? मुझे इसे कार्यान्वित करने दो, तब तुम्हें पता चल जाएगा। बेहतर होगा कि आप प्रकाश में आएं और मुझे देखें, ठीक है? और अपने आप को देखें। तो, हम यही करते हैं क्योंकि यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर प्रकाश में दिया जा सकता है। जैसे आप कह सकते हैं, “कोई चार्ज है या नहीं?” (प्रश्नकर्ता का अश्रव्य उत्तर) ठीक है … ठीक है। हाँ, अब, एक गुरु के रूप में आप ही के भीतर उस परमात्मा के लिए एक मार्गदर्शक है। वह बनना क्योंकि वह ईश्वर आपके चित्त से दूर है। आपका चित्त परमेश्वर के राज्य से बात नहीं कर रहा है। आपका चित्त उससे दूर है और यह एक तरीका है जिसके द्वारा आपके चित्त का उत्थान होता है और उस आत्मा के साथ एकाकर हो जाता है जो आपके हृदय में है, जो आपको जान रहा है, जो आपको समझ रहा है, जो आपको सुधार रहा है, आपका मार्गदर्शन भी कर रहा है और आपकी रक्षा कर रहा है, लेकिन आप वहां नहीं हैं, आप, जो आज हैं, आपका चित्त वहां नहीं है और इसलिए आप अभी तक सामूहिक रूप से जागरूक नहीं हैं। (प्रश्नकर्ता का अश्रव्य हस्तक्षेप) नहीं, यह ठीक है, लेकिन आपका चित्त नहीं है। फर्क देखें! उदाहरण के लिए, मेरा दिमाग, ठीक है, इसका चित्त है, उदाहरण के लिए, मेरी उंगली पर, ठीक है? लेकिन मेरी उंगली का मेरे दिमाग पर कोई चित्त नहीं है। (प्रश्नकर्ता का अश्रव्य हस्तक्षेप) आप देखते हैं कि वास्तविकता उस स्थिति में होने से ही हो सकती है। (प्रश्नकर्ता का अश्रव्य हस्तक्षेप) नहीं, आप तब तक नहीं कर सकते, जब तक कि आप वास्तविकता नहीं बन जाते। आपको [अश्रव्य रुकावट] बनना है नहीं, तो आप देखते हैं कि आप उस स्थिति में नहीं हैं, आप केवल बाहर से कैक्सटन हॉल देख सकते हैं। जब आप अंदर आते हैं, तो क्या आपको पूरा हॉल दिखाई देता है? (प्रश्नकर्ता की ओर से अश्रव्य व्यवधान) यह सच है, लेकिन आप बने नहीं हैं… आप बाहर से देख रहे हैं, आप अंदर नहीं हैं।

आपको प्रवेश करना है, इसलिए। आप देखिए, आपने अभी तक इसमें प्रवेश नहीं किया है। आप वहां हैं, लेकिन आपने अभी तक इसमें प्रवेश नहीं किया है। इसलिए कहा जाता है कि आपको परमात्मा के राज्य में प्रवेश करना है। आपको फिर से जन्म लेना होगा। आपकी जागरूकता उसमें प्रविष्ट नहीं हुई है। एक बार यह प्रवेश कर गयी, तो आप चकित रह जाएंगे, फिर आप सभी के चक्रों को महसूस कर पाएंगे और आपको पता चल जाएगा कि वे अंदर से  कैसे हैं, समस्या कहां है और आपको यह भी पता चल जाएगा कि इसमें समस्या कहां है। (प्रश्नकर्ता का अश्रव्य हस्तक्षेप) कौन? मैं यह कहना नहीं चाहती, मैं बहुत व्यवहार कुशल हूं, लेकिन मेरे बारे में कुछ है, निस्संदेह, जो आपको पता चलेगा – कुछ तो होना चाहिए … (प्रश्नकर्ता से अश्रव्य हस्तक्षेप) ठीक है? तो चलिए इसे पाते हैं। यह सच है, कुछ होना चाहिए, लेकिन मैं अभी कुछ नहीं कहना चाहती – उनमें से कुछ जानते हैं और आप भी इसे जानेंगे, और आपको पूरी बात भी पता चल जाएगी, लेकिन धीरे-धीरे इसे काम करने दें। (प्रश्नकर्ता का अश्रव्य हस्तक्षेप) ईसा-मसीह ने अपने उन शिष्यों से कहा जिन्होंने इस पर कभी विश्वास नहीं किया जब तक कि वह पुनर्जीवित नहीं हो गए [अश्रव्य] और आज मैं तुमसे कुछ भी कहती हूं, तुम मुझ पर विश्वास नहीं करोगे, मैं तुम्हें व्यर्थ नहीं जाने देना चाहती, इसलिए तुम पहले अपना बोध प्राप्त करो और फिर तुम जान जाओगे। पहले आप स्वयं को जानते हैं और फिर [अश्रव्य] अब हम इसे पाते हैं, ठीक है? (प्रश्नकर्ता का अश्रव्य हस्तक्षेप) मुझे पता है, हाँ, इसलिए मैंने कहा कि आपका चित्त उस स्थिति में नहीं है। बेशक, इसमें कोई शक नहीं। हां, इतना तो मुझे स्वीकार करना ही होगा। मुझे कई चीजों को स्वीकार करना और घोषित करना होगा, मुझे पता है, लेकिन ऐसा करने से मैं थोड़ा झिझकती हूँ! ठीक है?

श्री माताजी: [एक अन्य प्रश्नकर्ता के साथ एक भारतीय भाषा में बोलते हैं] उन्होंने मुझसे एक सरल प्रश्न पूछा है जो एक बहुत ही ईमानदार प्रश्न है। उन्होंने कहा, “हम कैसे विश्वास करें कि श्री कृष्ण या ईसा-मसीह वगैरह थे?”

यह भी एक और बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है, कि हम कैसे विश्वास करें कि वे वहां थे? क्या वे वहाँ थे या नहीं? अब यह एक प्रश्न है, जो, ठीक है। यह सही है या नहीं, मैं व्यवहारिक रूप से नहीं जानती, लेकिन मैं आपको बताना चाहती हूं कि इन सभी केंद्रों में, इन सभी चक्रों में, ये सभी देवता हैं, जिनके बारे में मैं आपको बताती रही हूं। ईसा-मसीह यहाँ हैं, और कृष्ण यहाँ हैं। (व्यवधान) अब, बस एक मिनट, बस एक मिनट। अब, आप कैसे जाने कि वे वहां हैं या नहीं? बात है। जब तुम आत्म-साक्षात्कार पाओगे तो पाओगे कि तुम्हारे हाथ से ठंडी हवा बहने लगेगी। तुम वह बन जाओगे, फिर पता लगाओगे कि यह कैसे हुआ। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि ये केंद्र (रिकॉर्डिंग इस हिस्से में अश्रव्य हो जाती है क्योंकि माँ शायद चार्ट पर विभिन्न चक्रों को इंगित करने के लिए माइक्रोफ़ोन से दूर चली गई हैं) … आपके सिर का शीर्ष भाग तालू … यहाँ, फॉन्टानेल हड्डी क्षेत्र में … और फिर आप को ठंडी हवा का अहसास होगा … उसके बाद आप हैरान रह जाएंगे…