5th Day of Navaratri Celebrations, Guru Tattwa (Mahima) and Shri Krishna

मुंबई (भारत)

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[हिंदी प्रतिलेख]

1979-0926-गुरू तत्व और श्रीकृष्ण शक्ति २६ सितम्बर १९७९, मुंबई 

गुरू का स्थान हमारे अंदर काफी ऊंची जगह है। गुरु का स्थान हमारे अंदर स्थित है, कोई इसमें नई चीज करने की नहीं है। परमात्मा ने ये जो साधन बनाया हुआ है, यह जो इंस्ट्रूमेंट है इसको बहुत ही सुंदरता से बनाया गया है। इसका एक एक चक्र जोकि हमारे लिए अद्रश्य ही हैं और हमारे अंदर स्थितः है जिससे ये विश्व जगत हमें जान पड़ता है बहुत सुंदरता से रचित है; किन्तु मनुष्य अति मैं रहता है, हमेशा अति पे जाने से उसने अपने इस साधन को बिगाड़ लिया है। उसी प्रकार गुरु का जो स्थान है उसे भी मनुष्य ने बिगाड़ लिया है. गुरु का स्थान हमारे अंदर इस पूरी जगह इस फ्रांस मैं है, इस पूरे देश मैं गुरु का स्थान है। पेट के अंदर चारों ओर नाभि चक्र से जुड़ा हुआ है। अभी तीन दिन पहले मैने नाभिचक्र पर आपसे बात की थी, इस नाभिचक्र पर श्री विष्णु  का स्थान है। विष्णुशक्ति के कारण ही मानव अमीबा से इंसान बने हैं। और उसी शक्ति से ही आप मानव से  अतिमानव बनने वाले हैं। । अब ये जो गुरु की शक्ति हमारे अंदर परमात्मा ने पहले से ही विकसित की हुई है इसके लिए अनेक गुरुओं के पहले अवतरण हुए हैं। अब पहले देखें की यह गुरूतत्व बना कैसे  है इसके लिए समझना चाहिए की गुरुतत्व अनादि है और उसको कैसे बनाया गया। हमारे अंदर  अदृश्य रूप से तीन  शक्तियां कार्यान्वित रहती हैं। प्रथम  शक्ति जो है उसे  हम कहते हैँ श्री महाकाली की शक्ति, कहिए की आपके अस्तित्व की शक्ति आप का अस्तित्व है, इस सृष्टि का अस्तित्व है, इस संसार मैं अस्तित्व है, वो शक्ति महा काली की है जो हमारे अंदर ईड़ा नाड़ी पर चलती रहती है। इस इड़ा नाड़ी का स्थान हमारे बाई, जिसे कहना चाहिए लेफ्ट साइड मैं रहता है ओर लेफ्ट साइड की ईड़ा नाड़ी लेफ्ट साइड के सिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम को चालित रखती है। इसलिए लेफ्ट साइड की जो हमारी ईड़ा नाड़ी है वो हमें इच्छा देती है। इच्छा करने से ही मनुष्य कार्यान्वित होता है इसलिए राइट साइड की जो पिंगला नाड़ी है वो हमें क्रिया शक्ति देती है।  इस  को हम श्री महासरस्वती की शक्ति कहते हैं । तो हमारे पास एक तो महाकाली की शक्ति है ओर दूसरी हमारे पास महासरस्वती की शक्ति। क्योंकि इनके नाम हम अंग्रेजी मैं नहीं कह  सकते इसलिए बहुत से लोग ये सोचते हैं की ये तो बड़ा आँसाइंटिफ़िक मामला है। लेकिन इससे बड़ा साइंस ओर कोई नहीं हो सकता। क्योंकि जो चीज अपने देखी ही नहीं जो आपके लिए अलग है, जो परोक्ष मैं है उसे आपने जाना नहीं। ऊपर से आपने देखा लेकिन उसके पीछे ही की शक्ति को आपने जाना नहीं तो उसके बारे मैं बात करने से भी आप उस पर विश्वाश नहीं कर सकते।  लेकिन सहज योग मैं जब कुण्डलिनी शक्ति जागृत हो जाती है, कुंडलनी ऊपर की ओर उठने लग जाती है, तब आप देख सकते हैं की यह दोनों नाड़ियों के असंतुलन आदि अनेक दोषों के कारण कुंडलनी किस तरह से रुक जाती है; ओर किस तरह से फिर इसे संतुलन देना पड़ता है।  यह दोनों शक्तियां एक ओर तीसरी शक्ति से पल्लवित है जोकि महत्वपूर्ण है जोकि हमारी मांये हैं’। आज जो हमारी मानव चेतना जिस स्तर पर पहुंची है यह तीसरी शक्ति की द्योतक है, यह महा लक्ष्मी की शक्ति है। इस शक्ति से हम आज अमीबा से इंसान बने । अगर मनुष्य अमीबा रह जाता तो क्या हर्ज था, ओर क्या ऐसी आफत आई हुई थी की इतनी योनियों मैं से गुजर के आज मनुष्य का ये सुन्दर स्वरूप परमात्मा ने निर्माण किया। क्या कभी आप सोचते हैं की क्यों परमात्मा ने हमें मनुष्य बनाया। क्या विशेषता हमारे अंदर है की जिसकी की हमें अभी तक तल्खी भी नहीं, हम जानते भी नहीं, उसकी हमें खबर तक नहीं है की क्यों हम संसार मैं आये हैं। ये साधन, एक विशेष तरह से जो मानव  बनाया गया है यह किस लिए बनाया गया है। इस मानव को पहले समझ लेना चाहिए की यह महा लक्ष्मी शक्ति से हमारे अंदर आज इस स्तिथि मैं पहुँचा है जहां मानव चेतना पहुंची है। यह तीनों शक्तियां हमारे अंदर  हैँ ओर इन तीनों शक्तियों का समन्वय जहां होता है, ये तीनों शक्तियां जब एकत्रित हो जाती हैं, ओर इन तीनों शक्तियों का जब बाल्य स्वरूप पैदा हो जाता है; यह जो किसी भी चीज से खराब नहीँ हो सकता, जिसमें किसी भी तरह की प्रक्रिया नहीं आ सकती, किसी भी तरह का अहंकार नहीं आ सकता, जो हमेशा नवीन रहता है; यह तत्व ही गुरु तत्व है। बालक के अंदर अहंकार नहीं होता, किसी चीज से लगाव नहीं होता; वो पूरी तरह से निर्लिप्त रहता है। आप देखिए छोटे बच्चे खेलते हैं, खूब नाटक बनाते हैं, क्या क्या चीजें बनाते हैँ; फिर उसे लात मार कर चले जाते हैँ। या ज्यादा थोड़ी देर खेले-कूदे, कुछ  नाटक किया ओर उसके बाद सब खत्म। उनके लिए सभी कुछ नाटक रहता है। ओर वो क्राइस्ट की तरह से बातें करते हैँ, उनको बोलो बच्चे अब तुम घर जाओ तो वो दूसरे की तरह से बात करते हैं की माँ यह मुन्ना जाएगा नहीं! यह मुन्ना जो है न, यह जाएगा नहीं; उनके लिए ये मुन्ना ओर है ओर वो मुन्ना कोई ओर; हमेशा क्राइस्ट जैसी बात करते हैं। ओर जैसे जैसे यह मनुष्य बड़ा हो जाता है तो धीरे धीर उसके अंदर दो ग्रंथियां या दो विशेष तरह की संस्थाएँ तैयार होती हैँ जिसको हम अंग्रेजी मैं ईगो ओर सुपर ईगो कहते हैँ। ये जो हमारे अंदर इच्छा शक्ति ओर क्रिया शक्ति है, उसके उपयोग से होती हैं। यदि मनुष्य बहुत अधिक इच्छा शक्ति से भरा हुआ हो ओर पूरे समय इच्छाएँ करता रहे तो उसके अंदर सुपर ईगो नाम की शक्ति तैयार हो जाती है। यह कहना चाहिए ये संस्था हो जाती है ओर वो संस्था हमारे सर के अंदर इधर से घूम कर के इस तरफ मैं छा जाती है, जिस तरह से यहाँ दिखाया गया है; दूसरी संस्था हमारे अंदर क्रिया शक्ति से पैदा होती है, जिसे हम अहंकार कहते हैँ, ईगो कहते हैं। यह हर इंसान मैं जो इंसान कोई सा  भी कार्य करता है, उसके अंदर पैदा हो जाती है। इस संस्था का मतलब यह है की मनुष्य यह सोचता है की मैने यह काम किया, मैंने ये मकान बनाया, मैंने ये घर बनाया। उस चीज के प्रति उसके मन मैं जब एक कर्तापन  उभर आता है, उस कर्तापन से ही ये संस्था तैयार हो जाती है। ये दोनों संस्थायें जाकर के जब सर के मध्य भाग मैं फ़ॉन्टेलनेल बोन के एरिया मैं एक के ऊपर एक जब जम जाती हैं तब यहाँ ‘कैल्सीफिकेशन’ जम जाता  हैं तब हमारे बचपन मैं  तालू ३-४ साल की उम्र तक पूरी तरह भर जाता  है। पर इसका पूरा पन असल मैं जब हम भाषा अच्छे से बोलने लग जाते हैं ओर भाषा पर प्रभुत्व पा लेते हैं तब ये अच्छे से जम जाता है। उसके भी अनेक कारण हैं पर आज हम गुरु तत्व की बात कर रहे हैं; यह गुरु तत्व जो है यह इन तीनों शक्तियों, महाकाली, महालक्ष्मी ओर महासरस्वती इन तीनों शक्तियों का समन्वय है। यह एकदम नूतन स्वरूप परमात्मा ने हमारे समाहित किया है। आप तो जानते ही है की दत्तात्रेय जी का जन्म किस तरह से हुआ था, इसके बारे मैं फिर से मुझे बताने का नहीं, लेकिन यह बात बिल्कुल सही है की जिस तरह से तीनों शक्तियां ब्रह्माँ, विष्णु, महेश जब पावित्र के सामने जाकर खड़ी हो गए तब उस पावित्र ने उसे नूतनता वो उनका भोलापन दे दिया; यह भोलापन से भरी हुई यह तीनों शक्तियां जो हैं एक दत्तात्रेय जी के अंदर समाई हुई हैं ओर वो हमारे पेट मैं, कहना चाहिए,जिसे हम भवसागर कहते हैं, समाई हुई हैं।  विराट के अंदर जो भवसागर है, उसमें समाई हुई हैं ओर अनेक बार जन्म लेती हैं।  जैसे आदिकाल से ये आदिनाथ यह भी इसे शक्ति के अवतार थे। एक ही शक्ति है वो अनेक बार जन्म लेती है;  आदिनाथ जी जोकि अभी भी जैनी ओर लोग प्रार्थना करते हैं, उनको मानते हैं। लेकिन वो जानते नहीं की ये शक्ति का अर्थ क्या है। सबसे पहले इस शक्ति के चीज यह है की इस शक्ति मैं कोई धर्मांधता नहीं, सन्यासी की कोई जाती नहीं होती; कोई उसका वर्ण नहीं होता है। सन्यासी का मतलब क्या है की वो सब जाती सब धर्म को मानता है। ओर अगर कोई भी गुरु अपने को किसी एक विशेष धर्म का अधिक अभिनेता समझे तो समझ लेन चाहिए की ये कोई गुरु नहीं।  गुरुत्व की पहली शक्ति यह है की उसके अंदर सर्व धर्मों का जो कुछ भी निचोड़ है, एसेंस है, भोलापन है, वो उसके अंदर भरा होना चाहिए।  कोई भी मनुष्य अपने को किसी धर्म गुरु के नाम से सामने आता है तो यह समझ लेना चाहिए की यह एक झूठा आदमी है ओर इसके पीछे का जो धर्म है वो भी महा झूठा है। इसका आपको उदाहरण हम बता सकते हैं आप आसानी से समझ सकते हैं। सहजयोग मैं एक महाशय हैं हमसे मिलने आए थे जब हम लंदन मैं थे।  कहने लगे ‘ माँ मेरे पेट का केन्सर है उसे आप ठीक कर दीजिए’। वो  मुसलमान हैं, ईरान के रहने वाले हैं, डॉक्टर हैं। मैने उनसे पूछा की तुम्हारा किस पर विश्वास है, कहने लगे की मुहम्मद साहिब पर; मैने कहा की क्या सिर्फ मुहम्मद साहिब पर ओर किसी पर नहीं, कहने लगे नहीं किसी ओर पर नहीं। तो मैने कहा की मैं तुम्हारे पेट का केन्सर ठीक नहीं कर सकती, मुझे माफ कीजिए। क्योंकि पेट का केन्सर इस तरह की धर्मांधता से होता है, की एक मात्र मुहम्मद साहिब हैं। मुहम्मद साहिब हैं, यह भी दत्तात्रेय के ही अवतरण हैं पूर्णतया ओर कुछ नहीं; मतलब यह की वो स्वयं साक्षात दत्तात्रेय हैं इसमें कोई शंका की बात नहीं, लेकिन वही एक अवतरण नहीं हैं। इसलिए मुहम्मद साहिब ही उनके पेट मैं जाकर गुस्से हो गए। समझ लीजिए आप इस देश के प्रेसीडेंट हैं ओर आप अगर महाराष्ट्र मैं आयें तो लोग आपका अदर करें की आप प्रेसीडेंट हैं ओर आप अगर आप बंगाल मैं जाएँ ओर आपका आदर  नहीं हो तो की प्रेसीडेंट साहिब आप से नाराज नहीं हो जाएँगे । उसी प्रकार यह एक ही शक्ति अनेक बार जन्मों मैं आती है ओर जब ये अनेक बार जन्मों मैं आती है, हालांकि,  उसके नाम अलग होते हैं, जगह अलग होती है; जिस तरह की जरूरत होती है उसी प्रकार यह शक्ति इस संसार मैं जन्म लेती है।  लेकिन इसका अर्थ कभी भी यह नहीं करना चाहिए की यह शक्ति एक बार जन्म लेने आई, उसके बाद कोई शक्ति नहीं आई।  इस प्रकार की लोग हमेशा करते रहेंगे की एक गुरु को मान लिया फिर ओर कोई गुरु हुआ ही नहीं। अब इन महाशय जी जिनकों कि बहुत तकलीफ थी पेट की दो तीन दिन बाद फिर आए की माँ इसको तो ठीक करना ही होगा; मैने कहा की इसको अगर ठीक करना है, तो तुम्हें दत्तात्रेय जी को मानना पड़ेगा, नानक जी को मानना पड़ेगा। उन्होंने कहा की अच्छा जो भी कहोगे मानुगा। फिर मैने कहा अच्छा तुम प्रार्थना करो नानक जी से वो छमा करें, मुहम्मद साहिब से भी प्रार्थना करो कि वो छमा करें ओर उसके बाद उनका केन्सर भी ठीक हो गया। आपको आश्चर्य होगा की आज कल इतनी संस्थाएँ पोलिटिकल भी, राजनीतिक आदि बन जाती हैं जिनमें यह सिखाते हैँ की इनके ये धर्म गुरु खराब हैं, उनके धर्म गुरु खराब हैं; वास्तविकता यह है की इनके जितने भी फॉलोरस, डीसैपल्स है जोकि एक धर्म के कहते है की मुसलमान उतने ही बुरे हैं जितने हिन्दू; हिन्दू उतने ही बुरे हैं जितने ईसाई ओर ईसाई भी उतने बुरे हैं जीतने कि ओर धर्म के लोग। इनके जितने भी डीसैपल्स है उन्होंने अपने गुरु को पहचाना नहीं ओर उनके कहने के अनुसार बिल्कुल चले नहीं।  इसका एक उदाहरण मैं आप से दे सकती हूँ कि समझ  लीजिए कि ईसाई लोग, ईसामसीह ने अगर कोई बात खास कर के कही कि  तुम लोग किसी मृत चीज के पीछे मत जा, ओर बहुत पिशाच आदि चीजों के पीछे मैं तो बिल्कुल नहीं जाना है। इसी तरह से आप को चाहिए की बहुत पिशाच आदि जोकि डेड हैं, उनसे दूर रहें। इतनी खोल के बात मेरे ख्याल से जो ईसा मसीह ने बताई है सिर्फ  नानक साहिब ने बताई है.। इतनी खोल के बात बताने पर भी आप किसी भी ईसाई धर्म को जानने वाले या पालन करने वाले, या किसी भी राष्ट्र मैं जाकर देखें तो आपको जानकर आश्चर्य होगा की लंदन मैं, जहां मैं रहती हूँ, हरेक चर्च मैं अंदर  नीचे  मुर्दे गड़े पड़े हैँ;  अब आप वहाँ पाँव रखें तो आपके पैर उचके खाते हैं। हरेक चर्च के अंदर, मंदिर के अंदर उन्होंने मुर्दे गाड़ कर रखे हैं। जिस चीज को मना किया गया था, उस चीज को ये लोग बराबर करते हैं। अब आप हिंदुओं की अक्ल देखिए! हिंदुओं की अक्ल उनसे भी बढ़ के है; हिंदुओं के लिए बताया गया था कि सर्व धर्म एक ही हैँ, इतना ही नहीं- इतना  बताया गया था की तुम्हारे अंदर, सब के अंदर एक ही आत्मा सवार है, एक ही परमेश्वर का प्रतिबिंब जो आत्मा है सब के अंदर एक आत्मा का वास है। अब ये जाति पाती लेकर के  झगड़ा करने वाले हिंदुओं से बढ़ कर तो कोई नहीं। जब सब के अंदर एक ही आत्मा सवार है ओर यह भी बताया गया कि तुम्हारा पुनर्जन्म होता है तो आज आप हिन्दू हैं तो कल मुसलमान होएगे;  ओर मुसलमान है तो कल ईसाई होंगे; नहीं तो कल आप चमार भी हो सकते हैँ ओर नहीं तो आप ओर भी निम्न श्रेणी के हो सकते हैं। बड़े बड़े अपने को बड़े कहने वाले लोग जोकि अपने को सोचते हैँ कि हम बड़े भारी हिन्दू हैं उनका व्यवहार ऐसा है कि चमारों से भी बहत्तर, उनसे शूद्रों से भी शूद्र अति शूद्रों जैसे वो लोग आप देखते हैं की जो मंदिरों मैं बैठके दक्षिण वगहरा लेते हैं, विश्वास नहीं होगा कि परमेश्वर ओर इनका कोई संबंध भी है; कि परमेश्वर के दुश्मन यहाँ बैठे हैं।  मैं वृंदावन गई थी, मैं जब मैने देखा तो बड़ा आश्चर्य हुआ कि जितने के जितने पंडे वहाँ बैठे हुए हैं सारे राक्षस हैं राक्षस ओर राक्षस ही नहीं हैं सारे कंस के अनुचर हैं; कैसे कृष्ण के सामने बैठ के कृष्ण की बदनामी कर रहे हैं। इतना ही नहीं जो जितना भी आते हैं उनमें भूत भर रहे हैं, सब का सर्वनाश कर रहे हैं। उन मंदिरों मैं से, उन सुंदर जगहों मैं से कृष्ण स्वयं उठ गए हैँ, वो वहाँ रहना ही नहीं चाहते ऐसी गंदी जगह ओर आप आँखों से देखते हैं की वो रातदिन लूट रहे हैं। आपसे इतनी ज्यादिती कर रहे हैं, आपको झुट बता रहे हैं। गाँजा ओर क्या क्या चीजें होती हैं वहाँ बेचते हैं, औरतों को बेचते हैं, जेवर चुराते हैं। कोई चीज, उन्होंने वहाँ छोड़ी नहीं तो भी हम उनको महा गुरु समझ कर के सब उनके चरणों मैं चले जाते हैं। आपने ये सब काम किए लेकिन आपके बच्चे ये काम नहीं करने वाले। इसका दुष्परिणाम एक ही होने वाला है। आपके बच्चे कहेंगे कि परमात्मा वर्मात्मा कोई नहीं यह सब झूठ बात है, यह सब ढकोसला है। ऐसा अनेक देशों मैं हुआ है, जैसे हमारे एक शिष्य हैं वो अल्जीरिया के रहने वाले हैँ, मुसलमान हैं लंदन आए , हमारे यहाँ जब लंदन आए कहने लगे मेरा तो कोई विश्वास ही नहीं भगवान मैं। हमारे यहाँ जितने भी लोग हैं, जो पढे लिखे हैं डॉक्टर्स हैं, आर्किटेक्ट हैं, वकील हैं उनका कोई भी विश्वास परमात्मा मैं नहीँ है। वो कहते हैं की यह सब फैनेटिसिज़्म  है सब झूठ है, ये पैसा कमाने के धंधे हैं। ओर ये सारी संस्था ही बिल्कुल गलत है; उसके बाद जैसा की सहज योग का बड़ा भारी वरदान रहता है वो एकदम से पार हो गए। पार होने के बाद वो सहज योग मैं एकदम से जम गए, उन्होंने पाँच सौ लड़कों को पार लगाया ओर उनका विश्वास एक दम दृढ़ हो गया। जब आप एक एक्सट्रिम्स से दूसरे, एक अति से दूसरी अति पर जाते हैं तो बीच मैं ये गुरुतत्व आपको पकड़ लेता है। गुरु का मतलब वो होता है जो आपको घसीट ले, खींच ले, आकर्षण कर ले; लेकिन आजकल के गुरु जो आपको आकर्षित करते हैं उन्होंने नानाविध ऐसी ऐसी चीजें यूज करते है की आप लोगों पे आश्चर्य होता है कि आप ऐसे गुरुओं को क्यों मानते हैं। यह तो कम से कम जानना चाहिए कि  गुरु के अंदर कुछ न कुछ, बेसिकली जिसे कहना चाहिए मूलयतः ऐसे कोई विशेषता होनी चाहिए। गुरु का मतलब है आपसे ऊंचे उठे हुए आदमी, आपसे एक ऊंची दशा मैं पहुंचे हुए आदमी। आप से जो निम्न स्तर पे हैं वो आपके गुरु कैसे हो सकते हैं। जो आदमी पैसा खाता है आपसे, आपके पैसे पर जीता है, जो एक पेरासाइट है;  आप किसी के यहाँ जाकर के मुफ़्त रहेंगे, मुफ़्त खाना खाएँगे।  जो आदमी जिंदगी भर यही करता आया है, वो आदमी आपका गुरु कैसे हो सकता है। वो आपका आश्रित हो सकता है, आपका नौकर हो सकता है; वो आपका गुरु कैसे हो सकता है, जिसने जिंदगी भर कोई काम धन्दा नहीं किया सिवाय आपसे पैसा लेके उस पर जीता रहा है। ऐसे पैरसाइट आप सुबह से शाम तक पालते रहते हैं ओर उनके गुरु मान्यता मान कर ओर उनके लिए दुनिया भर की वो चीजें भेजा करते हैं और उनकी पूरी करते हैँ। ओर वहाँ तक पहुँच गया है मामला कि कुछ कुछ गुरु तो अपने को सोने मैं, कभी हीरे मैं, कभी किसी चीज मैं तौल लेते हैं ओर वो सारा तौल अपने पास लेकर के रख लेते हैं।  कहते हैं की जो कुछ भी तुम मुझे दोगे वो तुम्हें परमात्मा के पास ले जाएगा। इस तरह की झूठी बातें अपने समाज मैं इतने सुशिक्षित होने के बाद भी हम लोग मान लेते हैं। मुझे आश्चर्य आप लोगों पर नहीं होता, ज्यादा आश्चर्य मुझे होता है उन परदेसी लोगों पर जोकि अपने को बड़े विद्वान, बड़े डेवेलपड समझते हैं; इतना गधापंथी करते हुए मैने इन्हें देखा हुआ है कि अगर मैं आज उनकी बातें आप लोगों को बताऊँ तो आप आश्चर्य कर जाएँगे। इतने हद तक तो आप लोग जाते ही नहीं गुरुओं के मामले मैं, गुरुओं कि अगर हम कहें तो उनकी निष्ठा भी उठाने के लिए तैयार रहते, इतनी हालत खराब है; तब विचार बनता है कि इतने पढे लिखे लोगों के गुरु तत्व मैं क्या खराबी आ गई कि इस तरह से मान लेते हैं। ओर इसका सरल बहुत ही सीधा सरल उत्तर यह है कि ये लोग गुरु तो नहीं हैं ये हिपनोटाइस करते हैं। इनकी इतनी पावर होती है कि हीपनोटाइस करते हैं। हिपनोटाइस करने से आदमी कि बुद्धि  सारी नष्ट हो कर के वो पूरी तरह से इस मैं बहता चला जाता है। ऐसे अनेक गुरु इस कलयुग मैं पैदा हुए हैं। उसमें से कुछ कुछ तो परले दर्जे के राक्षस हैं। इनको अनेक बार देवी ने मारा हुआ है, फिर से वापस आ गए हैं। ओर ये राक्षस लोग हरेक राक्षस प्रवर्तियां, हर अनेतिकता आपको सिखाते हैं ओर आप लोग बाहर देखते रहते हैं की क्या मेरे लिए प्रचंड पंडित, प्रकांड पंडित। गुरु के लिए जो पहला गुण जो है वो आपके पैसे आपके धन को अपनी ठोकर पे रखता है। उसको आपकी कोई चीज से कोई परवाह नहीं, वो अपनी लहर मैं चलता है। मन होगा तो आप से बात करेगा, नहीं तो नहीं। आपके पीछे दोड़ने वाला वो नहीं है। क्योंकि मैं आपकी माँ हूँ, मैं आपको समझा रही हूँ ओर मैं आपको समझाती हूँ कि बेटे अपने अंदर के गुरु को जानो, अपने गुरु को पहचानो; लेकिन जो जो मुझे मिले हैं वो तो कहते हैं की इन गधों को पचासों गालियां सुनाते हैं, कि क्यों इनको रियलाईज़ैशन देतीं हैं, कुछ दिन मरने दो इनको। इनको ये होने दो, इनकी तो वृति ही अलग है। इनके पीछे डंडा लेके, चिमटा लेके बैठे हैं ओर या तो पत्थर लेके बैठे हैं। कोई आदमी इनके पास आए तो पत्थरों से मारते हैं कि भगो यहाँ से कुछ नहीं है यहाँ पे। लेकिन माँ की दृष्टी ओर होती है, गुरु की दृष्टि ओर; ओर माँ को गुरु जब बनना पड़ता है तो बड़ी परेशानी होती है। मेरा हृदय तो इतना भर आता है करुणा से, ओर इतना सादर्य हृदय रहता है कि निर्वाच्य जो प्यार बहा जा रहा है वो माँ देने के लिए तड़पती रहती है ओर उधर गुरुता की वजह से थोड़ा सा डिसिप्लिन भी करना पड़ता है, आपको डांटना भी पड़ता है कि बेटा यह गलत बात है। वो कहते हुए भी तकलीफ होती है पर करना पड़ता है। ये गुरु तत्व आपके अंदर है। इसका अनेक बार आपने अपमान किया हुआ है। आपके अंदर बसा हुआ है, अब आप कि साधारण मनुष्य मैं भी ये गुरु तत्व कैसे कार्यान्वित होता है। जैसे की आप किसी के घर खाना खाने जाएँ, अगर आप अच्छे आदमी हैं तो, ओर आदमी वो अगर दुष्ट प्रकृति का हो या खराब प्रकृति का हो आप खान पचा नहीं सकते, आप वो खान उलट देंगे। आप घर आएँगे आप कहेंगे की बाबा रे बाबा क्या था वहाँ, जी मचलने लग गया।  कभी कभी तो यह होता है की चक्कर आने लग जाता है की ये आदमी है कौन।  इसी प्रकार हम कहीं खाना खाने गये थे तो बहुत ही शरीफ आदमी लग रहे थे, उनकी बीबी थीं तीन बच्चे थे; बच्चे बड़े ही शरीफ, घर मैं घूमा करते थे; वहाँ जाते ही सार मेरी हालत खराब हो गई साहब से कहा कि घर चलो, मेरे बस का नहीं। ऐसे कैसे यहाँ चीफ गेस्ट, मैने कहा जो भी हो मेरी तो हालत खराब हो रही है, घर चलिए आप मेरे बस का नहीं है। यहां बड़ी आतंक सी बात चल रही है जब मैं घर पर चली आई एक छोटी सी लड़की जो हमारी लड़की के साथ पढ़ती थी वह आई तो मैंने उससे पूछा उसका भी वही नाम था जो इन महाशय का नाम था तू मैंने बोला कि तुम उन्हें जानती हो तो बोली क्यों मेरे पिता है वह तुम्हारे पिता है तो तुम्हारी ऐसी दशा क्यों ,वह कहने लगी कि उन्होंने, उन्होंने मेरी मां को छोड़ दिया है मां की सारी प्रॉपर्टी ले ली और अभी इस औरत को रखा हुआ है घर में और यह तीन बच्चे ऐसे ही हैं जो उनके घर में आए उसकी आंख से आंसू छलक रहे थे; वह कहने लगी कि मेरी मां बहुत ही सरल स्वभाव की थी इतनी रोइ, इतना चीख पर उन्होंने उसे छोड़ दिया और इस औरत को अपने पास रख लिया । अब देखिए क्यों, अब देखिए उस घर में जो दुख था जो तकलीफ थी उससे सारा वातावरण दूषित था और उसमें जो आमोद प्रमोद हो रहा था उसमें मैं बिल्कुल हिस्सा नहीं ले पा रही थी । मेरा जी इतना दुखी हो रहा था और आंखों से आंसू बार-बार आ रहे थे, समझ नहीं आ रहा था कि वातावरण में ऐसा कौन सा दुख है ऐसा कौन सा दुखी जीव है जो कि मेरी आत्मा को अंदर से खींच रहा है और यह बात आप समझ लीजिए कि आपके बीच गुरु तत्व में है।  में, आप किसी के घर जाते हैं तो आप देखते हैं क्या आपको खाना पसंद नहीं आ रहा है , यह सब गुरुत्व आपके अंदर है लेकिन आप उसे जागृत नहीं रखते  । आप गुरु तत्व को मारने  के तरीके क्या हैं ; क्या है वह मैं आपको बताती हूं । मनुष्य किस तरह से अपने गुरु तत्व को मारते रहता है। किसी को बुरा नहीं लगना चाहिए क्योंकि मैंने कहा है कि मैं मां हूं , जो सही बात है मैं आपको बताऊंगी और मुझे बतानी पड़ेगी उसमें बुरा मानने की कोई भी बात नहीं है । सब लोग समझ से इस बात को समझ ले कि हम अपने गुरु तत्व को हर समय खराब करते रहते हैं और किस तरह से हम अपने गुरु तत्व को खराब करते हैं वह देख लीजिए। एक तो गुरु तत्व में हमारे अंदर जो चेतना है जिसे हम अवेयरनेस कहते हैं इसको संभालने वाला हमारा लिवर  है जिसको हम यकृत कहते हैं; तक हमारा यकृत , अवेयरनेस ठीक रहेगा हमारी चेतना ठीक रहेगी और जैसे ही हमारा यकृत खराब हो जाता है हमारी चेतना मचलने लग जाती है । आपने देखा होगा जिसे पित्त होता है उसे आदमी ने देखा होगा जब भी पित्त वाला आदमी जरा सा तली हुई चीज खा ले उसको फिर से वोमिटिंग शुरू हो जाती है। पेट के अंदर आपकी अवेयरनेस को पोषित करने वाला यह यकृत है और इस यकृत को ठीक रखना बहुत जरूरी है । अब यकृत क्या करता है; यकृत जो भी कुछ हमारा लीवर जो भी कुछ हम जहर खाते हैं या   गलती से जहर अंदर चला जाता है। उसको अलग कर देता है उसको एनालाइज कर लेता है और जो भी जहर है उसको वह खून के द्वारा खून में लौटा देता है । इसको कहना  सोर्सिंग आउट ऑफ़ द  प्वाइजनस  यह सारा काम लीवर करता है और अब इसका बिगड़ना बहुत देर से पता चलता है यह यह काम धीरे-धीरे  होता रहता है। पर कोई कोई ऐसी चीज हैं जिनके कारण यह  यकृत, जो लीवर है हमारे पेट के अंदर राइट साइड में बहुत ही जल्दी खराब होता है सबसे बड़ी चीज जो यकृत के विरोध में है वह है शराब। जितने भी गुरु आज तक संसार में हो गए चाहे वह अब्राहम हो चाहे वह मौजेस हो चाहे वह  लाउत्से   हो और चाहे वह सोक्रेट्स हो यह सारे ही  गुरुत्व हैं , और सारे गुरु तत्वों ने अवतार संसार में लिए थे वह सब लोग गुरु हैं इसमें से कोई भी गुरु हो सब ने कहा है कि शराब पीना मानव धर्म के विरोध में है। क्योंकि अपने 10 धर्म पेट में है उधर 10 धर्म पर आक्रमण होता है जबकि हमारी चेतना पर आक्रमण होता है। पर मनुष्य की चेतना ही कम हो जाए वह चेतना  के  ही विरोध में बैठती  है चीज तो वह हमारे लिए गलत है। लेकिन अभी कुछ दिन पहले हमारे एक शिष्य थे, जिन्होंने सहज योग में ही इस पर बड़ा काम किया है उनको अभी इस पर डॉक्टरेट मिली हुई है लंदन में (अस्पष्ट) ,मॉरीशस के रहने वाले हैं , उनका नाम रेडीज़्  है । क्या वजह थी, सूक्ष्म चीज है इसे आप समझ ले; हाइड्रोजन ओर ऑक्सीजन से बना हुआ पानी का एक परमाणु है हाइड्रोजन और ऑक्सीजन उसमें से ऑक्सीजन एक है उस परमाणु में और दो हाइड्रोजन के अणु  है इस प्रकार तीन अणुओं से बना हुआ एक परमाणु है । और जब यह न्यूट्रल स्टेट में रहता है और ऑक्सीजन बीच में रहता है  दोनों साइड में हाइड्रोजन रहता है। जब रक्त में पानी, रक्त का पानी साइड में हाइड्रोजन रहता है, रक्त का यह पानी जब हमारे लीवर के पास जाता है तो  यह जो पानी है यह जो कुछ भी उसके अंदर बसा हुआ जहर है पॉइजन है  उसे अपने अंदर खींच लेता है।  अगर यह न्यूट्रल स्टेट में रहा तो यह बहुत आसान रहता है लेकिन समझ लीजिए कि यह लीवर है और लीवर में वह न्यूट्रल स्टेट में आ जाए तो वह ले सकता है लेकिन अगर समझ लीजिए इस तरह से हो जाए तो कुछ भी रिसीव नहीं कर पाता।  जब आप शराब पीते हैं  तो शराब के फर्मेंटेशन के प्रेशर की वजह से ऑक्सीजन  नीचे आ जाता है और हाइड्रोजन ऐसे आ जाता है और यह कुछ भी रिसेप्शन नहीं हो पाता । कुछ भी स्वीकार नहीं कर पाता ,है इसके कारण उसके अंदर का जो पॉइजन  है वह वैसे ही बना रहता है। 

लेकिन आपने देखा होगा कि अगर कोई आदमी  शराब पीता है तो उसे टेंपरेचर नहीं आता । अगर  आदमी को शराब पीने से टेंपरेचर नहीं आता उसके अंदर की जो हीट है वह सिर्फ लीवर में या किसी न किसी ऑर्गन  में जमा होती रहती है लेकिन जो पानी है जो कि हमारे खून में बहुत ही जरूरी चीज है वह पानी  इस तरह से हो जाने की वजह से वो उसको सोशण नहीं कर पाता ओर जितने भी ऑर्गन्स हमारे बॉडी में है पहले तो लीवर चौपट होता है और उसके बाद और ऑर्गन  में भी धीरे-धीरे गर्मी आने लग जाती है।  और ऐसा आदमी गर्मी से झुलस ने लग जाता है , लिवर ही  मैं  ऐसा होता है ऐसा नहीं है सारे ही ऑर्गन्स में थोड़ा-थोड़ा होता है।  और यही बात बढ़  करके बहुत बड़ी हालत में कैंसर बन जाती है। केन्सर मैं भी ऑक्सीजन ओर  हाइड्रोजन  दोनों इस तरह से हो जाते हैं बहुत ही इस तरह से हो जाते हैं और इसीलिए आपने देखा होगा कि कैंसर पेशेंट को जब तक बहुत बुरी हालत न हो जाए बुखार नहीं आता। मुंह पर चकते  आएंगे  काले  चकते हो जाएंगे बदन पर चकते  हो जाएंगे  तरह-तरह की चीज होगी ।  बदन में गर्मी लगेगी बहुत ज्यादा गर्मी लगेगी लेकिन उसको टेंपरेचर नहीं होगा।  और यह बात जब उसने पता लगाई, तो आप सोचिए कि इंग्लैंड यूनिवर्सिटी ने उसे डॉक्टरेट दे  दी; और यह बात निर्विवाद है चाहे आप भला माँने  चाहे  बुरा माने  कि  शराब पीने से आपकी चेतना तो कम होती ही है लेकिन आपके अंदर का पॉइजन बना रहता है और दूसरी बात यह होती है कि आर्टिरीज का भी पॉइजन आप खींच नहीं पाते और क्योंकि इस तरह के हाइड्रोजन का जो झुकाव हो जाता है जिसके कारण एक हार्डनिंग जिसे कहते हैं वह आर्टिरीज में हो जाती है । और वह हार्डनिंग जो हो जाती है उसकी वजह से आर्टिरीज जो है वह शराबी आदमी की एकदम  फ्लैक्सिबल नहीं रहती इसलिए उसका खून नहीं सरकता और उसको ऐसी ऐसी बीमारियां होती हैं जैसे कि हार्ट और हार्ट के अलावा जैसे कि कहना चाहिए गैंग्रीन आदि होती है जिसमें के खून जाकर एक जगह जम जाए और यह सब जम जाए।  इतनी दुर्दशा करने की क्या जरूरत है।  वास्तविकता शराब जो है, जिसे फर्मेंटेड शराब कहते हैं; कि एक तो होता है कि वाइन वह तो बहुत अच्छी चीज है जिसमें फर्मेंटेशन नहीं हुआ सिर्फ रस होता है द्राक्ष का वह तो वाइन है पर जिसको हम लोग वाइन समझते हैं वह जो एल्कोहलिक वाइन होता है वह तो शराब होती है।  शराब को परमात्मा ने इसलिए बनाया है कि कोई चीज को पॉलिश करने के लिए ।  हर एक चीज को पॉलिश करना हो जैसे डायमंड को करना हो तो जिन  से  करिए और कोई चीज को पॉलिश करना हो तो स्पिरिट से करिए, यह पॉलिश है । यही पॉलिश जब हमारे आर्टिरीज में जाकर जमते जाता है , तो हार्डेनिंग आफ आर्टरीज तो होना ही है; भगवान ने कोई पीने के लिए शराब तो नहीं बनाई थी लेकिन मनुष्य का दिमाग जो है वह बंदर जैसा है उसको समझ में नहीं आता है कि कहां क्या चीज करनी चाहिए । और वह जाकर के जरूर शराब पिएगा , शराब पीने को उसको कहीं कहा नहीं था ; पता नहीं उसको यह कहां से मिल गई और उसने पिना शुरू कर दिया, उसको पीने लग गया। इससे आर्टरीज की हार्डेनिंग होने लग गई। उसको पीने मैं मजा इसलिए आता है कि आदमी की जो चेतना है वह बिल्कुल गुम हो जाती है। मनुष्य को इसलिए अच्छा लगता है कि उसकी चेतना गुम हो जाए कि वह खुद अपने को देख नहीं पाता । वह अपने को समझ नहीं पाता असलियत से भागता है , वह असत्य पर रहना चाहता है। सत्य तो उसको लगता है कि बड़ा भयंकर भयानक है  ; ऐसी बात नहीं सत्य तो अत्यंत सुंदर है , अत्यंत सुंदर है ,अत्यंत मनमोहक है और बहुत ही शांति दायक है सारे सुखों का आदर करता है । लेकिन आप अभी उस हालत में है कि ना तो आपने सत्य को पाया है  और ना आप असत्य में है; जो आप बीच की हालत में मानव दशा में आ गए हैं इसीलिए यह प्रश्न है।  इसीलिए इन गुरुओं का जन्म हुआ की आपको समझाएं  की बीच की हालत में आप पैदा हुए हैं।  इसलिए इतने घबराने की बात नहीं है; इसमें संपूर्ण है, संतुलन में रहिए, असंतुलन में मत जाओ अपना जीवन अच्छा बना ; अपने जीवन में, विवाहित जीवन में नम्रता से रहो संतुलन के साथ अपने घर में अपने व्यवहार में अपने समाज में सब का विचार रख के संतुलन के साथ रहो । यह नहीं की एक आदमी बहुत ज्यादा रईस हो गया ,एक आदमी है कि वह बहुत ज्यादा बलवान हो गया  कि उसने बहुत ज्यादा यश प्राप्ति कर ली ; क्योंकि जो नेचर है, जो नेचर है उसमें कोई भी चीज ज्यादा नहीं होती ,आप कभी नहीं सुना होगा की एक आदमी की ऊंचाई 7 फुट हो गई । कहीं नहीं सुनेगा की एक पेड़ जाकर कहीं 200 फीट ऊंचा हो गया । आम  के पेड़ की हाइट जो साधारण होती है वही होती है ; इसलिए मानव की भी हर चीज की जो एक उड़ान एक फ्लाइट है एक उड़ान है, उसकी जो हद होती है, वही होती है । जो आदमी अपने को कंपटीशन में डालकर इस तरह से पागल बना  दौड़ता है उसका वही हाल होता है जो आज वेस्टर्न कंट्रीज का हो गया है ।  एकदम पागल है पागल , इनको देखते हो तो मुझे आश्चर्य होता है कि इनमें से तो आधे तो पागल खाने जाने लायक हैं। तो मैंने जो स्टैटिसटिक्स पढ़े , तो आधे  तो है ही मेसोफ्रेनिक, आधे  वहां के लोग 50% लोग मेसोफ्रेनिक है ; आप उनसे क्या सीखने वाले हैं , क्या अब आप सबको भी पागलखाने में जाने का है ; यह जो कंपटीशन का  लाइक्स लगा दिया है इससे मनुष्य हमेशा असमाधानी ही रहेगा, वह प्रगति उस और कर रहा है जहां पूरी तरह का सर्वनाश है । संतोष से टेम्प्रन्स  से मनुष्य को अपने अंदर जागना चाहिए । यह जो गुरु का स्थान है यह धर्म का स्थान है , धर्म माँने जिस पर मैं हूं, धारण करें ; जैसे हम मनुष्य जाति के हैं ।  मैंने  कल बताया कि कार्बन का अपना धर्म होता है , सोने का अपना धर्म होता है, शेर का अपना धर्म होता है, बिच्छू का अपना धर्म होता है ऐसे ही मानव के भी 10 धर्म है । जब मनुष्य इन 10 धर्म से च्युत हो जाता है, जब उसे गिर जाता है, जब असंतुलन में आ जाता है तब उसका आगे का पता नहीं क्या होगा । क्योंकि मनुष्य के बाद या तो अतिमानव हो जाएगा या रक्षस हो जाएगा जानवर होने की तो कोई स्थिति दिखती नहीं है या कोई कोई होते भी होंगे जानवर लेकिन अधिकतर राक्षस प्रवृत्ति के ही होने चाहिए। यह 10 धर्म संभालने चाहिए , अगर कोई कहे की 10 धर्म में रहो 10 कमांडमेंट्स हमारे बाइबल में लिखे हुए हैं ; जब वह 10 कमांडमेंट्स की बात लिखी गई है कि यह करो यह नहीं करो तो साइकोलॉजिस्ट ने इसका इलाज निकाला कि यह सब कंडीशनिंग है । जबरदस्ती किसी चीज को मना करिए तो फिर कंडीशनिंग हो जाएगी; लेकिन अगर आप संस्कार सुसंस्कार अगर लोगों पर नहीं डालें , लोगों को संस्कृत न करें तो आपकी राइट साइड चलने लग जाएगी; लेफ्ट साइड तो आप रोक लेंगे लेफ्ट साइड का जिसको कहते हैं सुपर ईगो उसको तो आप संभाल लेंगे , कंडीशनिंग आप बना लेंगे ; लेकिन राइट साइड जो इगो है आप इगो ओरिएंटेड हो जाएंगे; आप हिटलर भी हो जाएंगे तो आपको पता नहीं होगा कि आप हिटलर हो गए । आप सोचेंगे मैं क्या हो गया हूं मैं क्या कार्य कर रहा हूं , सारे लोग मुझे हार पहना रहे हैं, मेरी आरती कर रहे हैं , वाह वाह वाह मैं कितना बड़ा आदमी हो गया। और होंगे आप पक्के गधे  और यह भी नहीं महाराक्षस होंगे आप ; लेकिन आप अपने लिए यही कल्पना करेंगे वाह वाह वाह सब दूर जाइए मेरी तो वाह वाह हो गई । मुझे क्या समझ रहे हैं क्योंकि जो एगो ओरिएंटेड आदमी होता है वह वास्तव में महा गधा होता है । उसका वर्णन अगर आप वाल्मीकि की रामायण पढ़े या यह हमारी तुलसीदास जी ने भी बहुत सुंदर किया हुआ है की नारद मुनि को एक बार अहंकार हो गया तो वह किस तरह से गधे हो गए । लेकिन आज एगो ओरिएंटेड आदमी इस कदर वल्गना  करता है बड़ी-बड़ी बातें करता है कि फिर लोग उसको इस तरह से सुनते हैं अभी भूत होकर के वह-वह ही सच्चे सक्सेसफुल मैन , कि अगर आप देखे उसे आदमी का जरा सा  ये निकाल के की कितना बेवकूफ इस कदर छ्छिलछिला पन उसके अंदर  होता  है , कि उसका दिखावा इस कदर ऊपरी होती है कितना आश्चर्य लगता है और यही बात है कि एगो ओरिएंटेड आदमी आप लोगों को ज्यादा इंटरेस्ट करता है ,आप लोगों को ज्यादा असर डालता  है। अगर कोई आदमी खड़ा होकर के तानाशाही करें और कहे कि मैं फलाना ढिकाना बाबा बाबा क्या अच्छा आदमी मिला। अगर आप कंडीशनिंग को हटा देते हैं तो आदमी बेशर्म हो जाता है ; बेशर्म ही नहीं होता है वह बिल्कुल बिक्यूट हो जाता है,जिसको आप एबंडेंट कहते हैं । धर्म बीचो-बीच , ना तो बिक्यूट ठीक है नहीं धर्मांधता ठीक है। नहीं तो बहुत ज्यादा अंधेपन की बात है नहीं कहें की हम सब कुछ हैं; उस अंधेपन में दौड़ने की बात है, बीचों-बीच परमात्मा का स्थान है बराबर बीचो-बीच धर्म स्थापना होती है । और इस धर्म को संभालना ही गुरुत्व की रक्षा करना है । इस गुरु तत्व की रक्षा करने के लिए हमें क्या करना चाहिए ; बहुत से लोग कहते हैं की मां हम अपने गुरुत्व की रक्षा कैसे करें ? 

पहली बात है कि अपने गुरु कौन है इसे समझना चाहिए ; अब एक महाशय है वह हमारे गुरु हैं । भाई क्या करते हैं ; बस कुछ नहीं उन्होंने हमें एक नाम दे दिया । एक नाम दे दिया बस हो गया ,अरे नाम देने के लिए कोई एक गुरु क्यों चाहिए, गधा भी दे सकता है । उन्होंने आपको नाम क्यों दिया कोई आपका कोई चक्र खराब है, क्या कोई आपका प्रदेश खराब है कि वहां के राजा का नाम आपको दे दिया । नहीं उन्होंने राम का नाम दे दिया राम का नाम जप रहे हैं । राम कोई आपका नौकर हैं , (अस्पष्ट ) कि आप राम का नाम लीजिए । आपके गुरु अगर अधिकारी हो तो कभी भी आपको इस तरह से कोई नाम नहीं देंगे ,पहली चीज ; कोई गुरु अगर आपको नाम दे तो समझ लीजिए की सबसे गलत बात है ,अब इस समय उदाहरण आपको बताएं ; अगर समझ लीजिए आपको बीमारी है कोई भी तो हम आपसे कहेंगे कि अच्छा भाई आपको कोई बीमारी है आप जाकर के यह दवा को ले लो , समझ लीजिए कि आपको पेट की बीमारी है और हम कहें क्या अच्छा ठीक है जाकर इंटर बाय फ्रॉम खा, लो समझ गए । लेकिन जिसको देखो हम उसको बोले कि हां इंटर बाय फ्रॉम खा लो तो बताएं आप क्या कीजिएगा । जब डॉक्टर ही नहीं है ,जब आपको निदान ही नहीं मालूम जब आपको तकलीफ ही नहीं मालूम आप कौन सी दवा दे रहे हैं । और क्या आप हमेशा के लिए वही दवा खाते रहोगे । तकलीफ कहां है , कौन सी तकलीफ । और फिर जब डॉक्टर नहीं है , तो आप प्रिस्क्रिप्शन कैसे दे रहे हैं । जो आदमी आत्म-साक्षात्कारी नहीं है , वह गुरु नहीं होता है । हम तो एक गुरु  से मिले हैं , बड़े मजेदार आदमी है ,बहुत पहुंचे हुए आदमी है बड़े मजेदार ; वह एक साहब को हमने भेजा उनके पास में जरा इनकी  तबीयत दुरुस्त करो । एक महीने  बाद  वह आए बिल्कुल थके हुए  दुबले पतले  मैंने कहा क्या हुआ , गुरु जी ने क्या किया ; रोज सुबह मुझसे  कहने लगे की शिव जी का मंदिर धोओ रोज  चढ़ना  पड़ता था एक मिल , रोज एक मील से  बाल्टी  में पानी ले जाता और मंदिर को धोता था  ; रोज तीन-तीन  चार चार बाल्टी पानी ले  जाऊं  और  धोऊं; उसके बाद आप कहें  अभी  साफ से नहीं हुआ फिर से धोओ; सारा  माने शिवजी का मंदिर पुरा मुझ से धुलवाया। मैंने गुरु जी से पूछा ऐसा क्यों किया कहने लगे गधे को गधे का काम और गधा आदमी है , उसको रिलाइजेशन आप दो मैं तो नहीं देने वाला, आपको देना हो दो।  इन गुरुओं का स्वभाव इसलिए इतना कड़क हो जाता है कि इनको मनुष्य के प्रति अरुचि हो गई ; जानते हैं की साधारण मनुष्य जो है बिल्कुल भी उथला है और करुणा नहीं जो माँ  की होती है।  और यह खुद मेहनत से सब कुछ कमाया हुआ है वही चाहते हैं कि यह भी सब मेहनत करें , इनको भी ठीक करना चाहिए ,खूब ठोक पीट करके जैसे धोबी नहीं मार मार के ठीक करते हैं ऐसे ही वह ठीक करना चाहते हैं। मां की बात और है , मां कहती है चलो भाई जैसा भी है बच्चे हैं ,  इनको देखते हैं यह बड़ा भारी अंतर पड़ता है । इनमें से एक गुरु महाराज की बात आपको बताएं , यह गुरुजी मुंबई के पास एक जगह है वहां हमारी शिक्षा रहती थी वहां पर आए उनसे कहने लगे आपकी माता जी कब आने वाले हैं उनसे बैठा हूं मैं उनके लिए 12 साल से बैठा हूं उन्होंने कहा है आप 12 साल से उनके लिए क्यों बैठे हैं; मेरे गुरु जी ने कहा है कि वह आएँगी  और वह तुम्हारा गुरु चक्र ठीक करेंगे ; उसके कुछ समझ में नहीं आया की माता जी तो आज्ञा चक्र 1 मिनट में ठीक करती हैं तो 12 साल तुम्हें यहां मरने के लिए क्यों भेजा है । क्या बताऊं सर दर्द से पड़ा हुआ हूं , जय माता की तबीयत ठीक करेंगे । जब मैं आई तो वह ले गए मुझे वहां पर जहां पर रहते थे बड़ा  उन्होंने बिठाया । कहने लगे मेरे गुरुजी भी आपसे मिलने के लिए आए हैं , वह गुरुजी सब एक तरफ मुंह करके बैठे हुए थे , वह बेचारे  पैर वैर छूए  फिर बैठ गए।  मैंने कहा कि आपने इनका आज्ञा चक्र क्यों नहीं ठीक किया 1 मिनट का काम और आप तो इतने पहुंचे हुए आदमी; कहने लगे मरने दो इसको , पचास तो उन्होंने गालियां दी। और मेरे सामने दो झापड़ मारे ,क्या कर रहे हैं इतनी जोर से उसको मारा क्यों ; ये  आपके आने से पहले सिगरेट पी रहा था ; मैंने कहा अच्छा आपने  कैसे जाना , कहा  कि इसके मुंह से धुआं निकल रहा था , इतना दुष्ट आदमी  इसका आज्ञा चक्र  आप ही ठीक कर सकते हैं ;  मैंने कहा देखो भाई जो भी हो , सिगरेट छोड़ देगा तुम अब इसका आज्ञा चक्र ठीक करो  । मैं नहीं ठीक करने वाला उसके बाद मैंने उसका  आज्ञा चक्र ठीक किया । उसके बाद वह मुझे कान में कहने लगा की मां के इनके सामने कुछ मत कहो तीन दिन से इन्होंने मुझे कुएं में बंद कर रखा था और तीन दिन मुझे कुएं से डुबोते थे और ऊपर करते थे और कहते थे  तुम्हारा आज्ञा चक्र ठीक हुआ कि नहीं  हुआ । तो मैंने कहा भई तुम ऐसे क्यों टिके हुए हो ऐसे आदमी के साथ , ऐसा गुरुत्व  तो दुष्ट है; मां क्या करूं अब तो आदत हो गई दुष्टता  की , ऐसे अगर प्यार से मुझे सिखाएगा तुम मेरे बस का नहीं है इन्होंने इतना मुझे मारपीट करके ठीक किया। यह दृष्टि  बहुत से गुरुओं की हो जाती है उसकी वजह कि जब तक आदमी कठोरता से पेश नहीं आए वह सोचते हैं कि मनुष्य ठीक से नहिं जाना। लेकिन मेरा विश्वास बहुत ज्यादा है , मेरी आशाएं बहुत ज्यादा है ,मैं सोचती हूं कि मनुष्य पहले ही  से ज्यादा बहुत संतप्त स्तिथि मैं है ।  और जब तक उसने देखा ही नहीं वो अलग है परोक्ष है  और  उसको जब तक देखा ही नहीं तब उनके साथ सद  व्यवहार करना चाहिए , उनको बताना चाहिए और उनको उस रास्ते से ले जाना चाहिए । अनेक गुरु जो संसार में आए , उन्होंने हमारा मार्ग अपनाया जैसे मेरा मार्ग है , जैसे ज्ञानेश्वर जी थे ; हमारे यहां तुकाराम जी हो गए नामदेव जी हो गए हैं वैसे ही नानक  जी हो गए , कबीर दास जी हो गए।  इन लोगों ने संसार में रहकर के लोगों की सेवा की उनको  धर्म सिखाया ; उन सब के साथ बहुत ज्यादिती  की गई , सबको इस तरह से सताया गया मारा गया पीटा  गया उनको खाने को नहीं , उनको भूखों  रखा ;  ज्ञानेश्वर जी की तो  बात सुनती हूं तो मुझे लगता है की कैसे लोग कर पाए , इतनी ज्यादती उनके साथ लोगों ने कैसे की! इतनी धूर्तता  उनके साथ करी  है , और आज उनकी पालकी लेकर के घूम रहे हैं , अब ज्ञानेश्वर जी की पालकी चली जा रही है । मैंने कहा वह कभी पालकी में बैठे भी थे! उन्होंने कभी पालकी का मूह भी  देखा था। 50 आदमी उनकी पालकी लेकर चले और सब उनका खाना खिला रहे हैं । कहना चाहिए की किस तरह का झूठापन , और किस तरह का अपमान है वह गुरु तत्व का आपने  जिस आदमी के लिए  कभी भी नहीं सोचा कि उसने खाना खाया या नहीं खाया उसकी आप पालकी बनाकर घूमते हैं उसके दम पर आप खाना खाते हैं । मनुष्य इतना  विक्कछिप्त है , इतना  विक्कछिप्त है ओर उसकी  विक्कछिप्तता के लिए परमात्मा ने उसे स्वतंत्रता दी है।  चाहे तो विक्कछिप्त हो , चाहे तू गधा हो तुझको जो करना है तू कर चाहे तू परमात्मा को पाले  ।  मैं मां हूं और माँ  हमेशा यही  प्रयत्न  करेगी  माँ  हमेशा यही कहेगी बेटे तू परमात्मा को ही पा। मेरी गुरुता  में इसी में मानती हूं, बहुत लोग सताते भी है परेशान भी करते हैं चाहे जैसा भी हो जैसा भी हो लेकिन मेरे साथ शायद यह भी है कि मेरे पास बहुत ज्यादा पेशेंस है। लोग कहते हैं की मां तुम्हारा यह निर्वाच्य प्रेम है , जो भी कहे लेकिन वास्तविकता यह है की मुझे उनकी परेशानी जरा भी नहीं लगती ना मुझे उसकी कोई तकलीफ होती; मुझे हर समय यही रहता है की कितनी जल्दी ज्यादा से ज्यादा लोग पार हो जाए (अस्पष्ट)..। आज सहयोग उस स्थिति पर आ गया है उस स्थिति पर आ गया है कि जिसे महायोग कहना चाहिए । जब तक ट्रेन स्टेशन के अंदर ना पहुंच जाए , हम नहीं मानते कि हम ट्रेन से आ गए । या जिस तरह से  हम कह सकते हैं की नदी जब तक समुद्र में ना मिल जाए तो हम उसे संगम नहीं कहते । उसी  प्रकार जब तक आपके जीव का शिव से संगम नहीं बनता , जब तक कुंडलनी ऊपर  उठकर के ब्रह्म रन्ध्र को छेद नहीं देती तब तक इसको योग नहीं कहना चाहिए ;तब योग के केवल प्रिपरेशंस होते हैं जो योग है अनेक योग है वह सारे इसके प्रिपरेशन है । और जब कुंडलनी  नीचे से ऊपर उठती है तो यह सारी योग अंदर घटित होते-होते कुंडलनी  सहस्रार पर आ जाती है और सहस्रार पर आकर के इसको छेद  देती  है। यह सबसे बड़ा महायोग है , इसलिए जो सहज योग अनादिकाल से चला आ रहा है , सहज जो आपके साथ पैदा हुआ है । जो आपके साथ अनेक वर्षों से चला आ रहा है जिसकी आज पर पूर्ति  होने की बात आई हुई है उस सहज योग  का आज महायोग नाम देना चाहिए । पर मैंने शुरुआत में यही विचार किया कि मनुष्य की बात है  अगर मैंने पहले ही महायोग शुरू किया तो यहाँ महाकाल शुरू कर देंगे और सब यह और सब यह पीछे लग जाएंगे हाथ धो करके की बड़े आए  महायोग करने वाले , आप कौन होते हैं महायोग करने वाले , सब खड़े हो जाएंगे डंडे ले ले करके इसलिए मैंने महायोग नहीं कहा लेकिन सहज योग की आज स्थिति महायोग पर पहुंच गई है और महायोग की स्थिति पर आ गए हैं । यह समय आ गया है आप के जितने भी  गुरु तत्व के आज तक के बने हुए हैं वह सारे के सारे फली भूत होने वाले हैं और उसके फल स्वरुप आज आपको वह चीज मिलनी चाहिए जो अनेक वर्षों से उन्होंने आपको देने की कही थी की आपको मिलेगा वह समय आने वाला है  होने वाला है।  होता था । एक दो पहले गुरु लोग एक या दो शिष्य रखते थे , ज्ञानेश्वर जी के कितने शिष्य थे एक , फिर उनके कितने शिष्य थे एक या दो । इतना समुदाय कोई अपना शिष्य या बच्चे नहीं बनाता था ना कोई इतनी आत्मज्ञान देने की बात करता था । लेकिन जब तक कोई चीज सामुदायिक नहीं होती है सर्व सामान्य को नहीं मिलती उसका कोई अर्थ ही नहीं रहता और समय आ गया है की और समुदाय को मिले की आप सबको यह मिलने का पूरा अधिकार है । कि आपके अंदर यह सारी चीज समाई हुई है कि आपके अंदर यह सारी चीज बसी हुई है और यह आपको मिलना चाहिए । मैंने यह कहा कि मुझे एक-एक विषय पर 7 दिन चाहिए तो आपने मुझे एक दिन में तीन-तीन विषय दे दिए। (अस्पष्ट) बड़ा  इसको कैसे छोटा करें, हालांकि इतना ही कहने का है, गुरु तत्व के प्रति सिर्फ नमस्कार करके मैं आपको कृष्ण शक्ति बताती हूं । कृष्ण शक्ति जो हमारे अंदर है यह मनुष्य की शुरुआत है । मनुष्य ने जब अपनी गर्दन ऊपर की तब उसके अंदर इस चक्र की स्थिति बनी है ; जिसको कि हम विशुद्धि चक्र कहते हैं इसके अंदर 16 पंखुड़ियां हैं क्योंकि हमारे पीछे के हिस्से जो कि हमारे पीछे के हिस्से में यहां अगर आप यहां गर्दन के पीछे के हिस्से मैं देखें , तो इस जगह पर वह है। जहां मनुष्य ने अपनी गर्दन उठा ली और सीधी गर्दन कर ली तो कृष्णा शक्ति जागृत हो गई । अब कृष्ण की शक्ति जो है यह समझना चाहिए कि इवोल्यूशन की परिपूर्णता है । पहले तो हम अंमीबा थे , वहां से मछली कछुआ वगैरा होते हुए हम राम और राम से आगे कृष्णा तक पहुंचे कृष्ण ही संपूर्ण शक्ति हैं। विराट! जब आपकी कृष्णा शक्ति जागृत हो जाती है तब आपका संबंध विराट से होता है । माँनो  की जिसे अंग्रेजी मेक्रोकोसम और मायक्रोकोसम, समईष्टि ओर समविष्टि कहते हैं । उस समईष्टि में आप समा जाते हैं , आपकी व्यक्ति उससे कनेक्ट हो  जाती है यह कृष्णा शक्ति से होता है । इसीलिए मेरा प्रोग्राम शुरू होने से पहले मैं आपसे कहती हूं क्या आप मेरे सामने इस तरह से हाथ करके बैठे , इस तरह से हाथ करके बैठने से आपकी कृष्ण शक्ति यहां जागृत हो जाएगी और आपका संबंध विराट से हो जाएगा ; विराट की शक्ति जो है उसका नाम विराटांगना है, वह शक्ति संपूर्ण हमारे अंदर समाई हुई है और जिस वक्त आपको यह शक्ति मिल जाती है जब आप कृष्ण की शक्ति को पा लेते हैं तब आपके अंदर में साथ ही साक्षीत्व  आ जाता है । मानो यह की आप किसी भी चीज की तरफ नाटक की तरह देखते हैं , वास्तविक है भी यह एक नाटक ,यह लीला है ; कृष्ण भी उसकी लीला माना  राम ने  जब नाटक किया तो ऐसे दिखाया गया कि मानो उसमें बह गए लेकिन कृष्ण की सिर्फ  लीला है, इसलिए उनको पूर्ण अवतार कहते हैं ;जब मनुष्य पूर्ण तो को  आ जाता है , तो सारे  संसार की ओर देखता  है की नाटक चल रहा है। पागलों के जैसे लोग कूद रहे हैं उसमें वह भ्रमता नहीं , उसमें वह दुखी नहीं होता , वह सुखी नहीं होता , वह आनंद की भावना में एक भावना है जिसमें समाई रहती है। यह कृष्ण की शक्ति है । श्री कृष्ण की शक्ति के हम दो अंग करते हैं एक लेफ्ट एक राइट और एक सेंटर । की जो शक्ति है वह विराट की ओर ले जाती है । लेफ्ट और राइट की शक्ति में से जो लेफ्ट की शक्ति है  , जिस आदमी के मन में बहुत ज्यादा गिल्ट  हो जाए और सोचे कि मैं बहुत बड़ी गलती कर दी , मेरी बड़ी गलत  बात हो गई मैंने  बड़ा गलत काम कर दिया और मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था डेवलपमेंट । यह फैशन आजकल  उधर बहुत है कि आप डेवलपमेंट पर पहुंच जाते हैं , बहुत ज्यादा डेवलपमेंट हो जाता है तब आप मैं  यह चीज सेटल हो जाती है । पहले तो आप एक चीज पर जाइए  मैं यह हूं और मैं वह हूं मुझे आगे प्रोग्रेस करना चाहिए जिधर अपना देश चला जा रहा है और तब आप उतरने पर आ जाते हैं तब वेस्टर्न कंट्रीज मैं शुरू हो गया है की जिसको देखो वह सुबह से शाम तक रो ही रहे थे , मैंने कहा क्या हुआ ; कहां लगे मैं बहुत पाप किए  है मां , मैंने कहा छोड़ो वह सब बातें पार हो जाओ । रोते रहेंगे उसी  चीज को , रात दिन उनका रोना सुन सुन के आदमी  परेशान हो जाए। इतने रोते हैं वह लोग कि  आश्चर्य  होता है। बहुत से लोग तो यह है की सोचते हैं  कि हमारे पूर्वजों ने जाकर के हिंदुस्तान जैसे योग भूमि पर आक्रमण किया। आजकल के वहां के जो नवयुवक  हैं बहुत और तरह के हैं जिन लोगों को हमने पहले देखा था वह और है , और यह दूसरे ।  और यह लेफ्ट साइड में जब जाने लग जाते हैं विशेषतया जिसमें मनुष्य मादक वस्तु लेने लगता है । क्योंकि उसको यह लगता है कि मैंने  यह गलती करी ,वह गलती करी । मैंने यह पाप किया है मैंने यह झूठ बोला है मुझे नहीं बोलना चाहिए था मादकता लेने लगता है । इसमें जो एक वस्तु है ,हमारे यहां बहुत चलती है जो सिगरेट; उसके बाद तंबाकू , तंबाकू खाना भी इस शक्ति के विरोध में बहुत ज्यादा बैठता है । आपको आश्चर्य होगा कि जो आदमी तंबाकू खाता है वह सहज योग में आने के बाद छोड़ना ही पड़ता है। वह छूट जाती है ,  उसकी अपने आप छूट जाती है ।  एक साहब  थे उन्होंने नहीं छोड़ी , तो वह अपनी  विल पावर नहीं लगा पाए , कभी-कभी चोरी चोरी छुपके  वह अपना खाता रहे; एक दिन आकर मुझसे कहने लगे कि माँ  में ध्यान में बैठता हूं तो मेरा मुंह ऐसे ऐसे फूलता चला जाता है , टेढ़ा मेढ़ा होता है मुझे कुछ समझ में नहीं आता मैं क्या करूं । मैंने कहा मुझे मालूम है क्या बात है , आप ये तंबाकू छोड़ दीजिए आज वचन दीजिए कि आप तंबाकू छोड़ देंगे । उसे दिन हुआ कि उनका लेफ्ट साइड खुल गया तब से उनकी कुंडलिनी ठीक से चलने लग गई । अब इसी प्रकार आपने देखा है कि वेस्टर्न कंट्रीज मैं  अब उसी प्रकार आपने देखा है कि वेस्टर्न कंट्रीज में लोग क्योंकि इगो- ओरिएन्टेड बहुत थे। पहले बहुत इगोइस्टिकल बातें करीं। वॉर किया। दुनियाभर के लोगों को मारा और अपना साम्राज्य फैलाया। सब किया। अब जब एक हद पर पहुँच गए और फिर वहाँ से जब पेन्ड्यूलम चला तब दूसरे हद तक पहुँच गये और वहाँ जाकर के देखा कि ‘बाप रे, बाप रे, अब हम क्या करें! तो अब हम कैसे करें, क्या करें? हम इतने बुरे, हम उतने बुरे।’ ये जब दिखाई दिया ।  तो चलो शराब पियो। शराब नहीं तो चलो, तम्बाकू खाओ। नहीं तो किसी तरह से वहाँ से भागना शुरू किया। अब तंबाकू चीज जो है वो पीने पाने के लिए भगवान ने नहीं बनायी है। आदमी की अकल इतनी ही है क्या बताऊँ मैं आपको ? ये पीने-पाने के लिए बनायी नहीं है भगवान ने तम्बाकू  ये जो चीज़ बनायी हुई है, ये तो इनसेक्टिसाइड है, इनसेक्ट्स को मारने के लिए बनायी है। आप लोगों ने उसको पता नहीं उसे कहाँ से जला लिया और शुरू कर दिया कि ‘तम्बाकू करें’ लेकिन तम्बाकू बड़ी हानिकारक चीज़ है और तम्बाकू से जो है  हमारा गुरुतत्व भी खराब हो जाता है। ये पेट में जाती है और वहाँ लीवर वरगैरा सबको खराब कर देती है। ओर गुरुतत्व जो है वो हमारे सागर में भरा हुआ है। ये जो सागर है वो हमारा गुरू है। जब कभी भी हम गुरुतत्व के खिलाफ चलते हैं तब सागर बिलकुल  बिगड़ जाता है और बिगड़ करके तहस-नहस करना शुरू कर देता है। जब एक बार मैं  वहाँ गयी थी गुंटूर में, आंध्र के लोग थे। मैंने उनसे कहा कि, ‘आप यहाँ पर महेरबानी से ये जो तम्बाकू लगा रहे हो, ये मत लगाओ।’ तो कहने लगे कि, ‘हम अपने देश वालों को नहीं देते हैं । हम तो सारे बाहर भेजते हैं।’ मैंने कहा कि, ‘तुम्हारे देश वाले। यहाँ आंध्र के जो गरीब लोग हैं वो इसे खाते हैं और काली विद्या करते हैं और तुम लोग इसे एक्सपोर्ट करके सोचते हो की बड़ा धर्मकांड कर रहे हैं। तो कहने लगे कि, ‘नहीं, नहीं माँ, इसके बगैर तो हम मर जाएंगे।’ तो मैंने कहा कि, ‘कोई नहीं मरने  वाला है। आप यहाँ पर कपास लगाईये और कपास से सब ठीक हो जाएगा। कुछ इनमें से कहा कि, ‘अच्छा माँ हम लगायेंगे। हम कपास की शुरुआत करेंगे’ और फिर काफी बिज़नेस उनका हो गया लेकिन मैंने जब दो-तीन बार कहा,टेप पर भी मेरा है लेकिन एक दिन जब वो बहुत मुझसे डिस्कस करने लगें तो मैंने कहा कि, ‘खबरदार, अब ज़्यादा मत डिस्कस करो अगर तुमने ऐसा जो किया तो ये समुद्र जो है ये तुम पर बिगड़ेगा ।’ आपको तो मालूम है कि उसके बाद आंध्र में कितनी जोर की तूफान आयी थी और कितने ही लोग तहस-नहस हो गए थे और उनको पता भी नहीं चला कि वो कहाँ गए । हमेशा उस साइड मैं आपने देखा कि समुद्र मैं  बड़े-बड़े तूफान आते हैं और लोग उसमें सत्यनाश हो जाते हैं। पर किसी से अगर कहो कि तुम  ‘तम्बाकू लगाना बन्द करो। ये बहुत अशुभ चीज़ है’ तो कोई सुनने को तैयार नहीं है | अब वहाँ पर सब खारी जमीन हो गयी है, वहाँ अब तम्बाकू लगा नहीं सकते। किसी तरह से तम्बाकू बढ़ नहीं सकती। तो अब वो अपने नसीब पर रो रहे हैं। सारा वहाँ जो एरिया है, जहाँ तम्बाकू लगता है और हमेशा बड़े-बड़े आप जानते हैं साइक्लोन्स आते हैं। वहाँ मारते हैं। जिस दिन लोग इस चीज़ को समझ लें कि तम्बाकू लगाने से और काली विद्या करने से, समुद्र हमसे नाराज हो जाता है , उस दिन वो समझ जाएंगे कि कितना परमेश्वर का हमें आशीर्वाद है । कितनी सुन्दर हमारे पास जमीन है, उसका उपयोग हम कोई और चीज़ करने में लगायें । लेकिन मनुष्य को छोटी चीज़ में समाधान नहीं होता। वो चाहता है कि सारे संसार की  जितनी भी सम्पत्ति है वो मैं ही ले लूँ। लेकिन वो ये नहीं देखता है कि, जिसके पास है सम्पत्ति वो कौनसा बड़ा सुखी बैठा है। वो कौन बड़ा आनन्द में बेठा हुआ है। तो ये जो लेफ्ट साइड की जो शक्ति है जिसे को कि हम विष्णुमाया की शक्ति कहते हैं। ये बहन की शक्ति है, जो विष्णुमाया आप जानते हैं कि श्रीकृष्ण की बहन, जो कि मारी गयी थी और जो आकाश में जाकर के जिसने आकाशवाणी की थी कि तुम्हारा मारने वाला अभी भी जीवित है। वही ये विष्णुमाया की शक्ति यह हैं। और ये बहन के रिश्तेदारी की बात है। अगर आपकी बहन बीमार हो तो आपका ये चक्र पकड़ जाएगा। आपके बहन को अगर कोई तकलीफ हो तो आपका ये चक्र पकड़ जाएगा। अगर आपकी रिश्तेदारी बहन के मामले में ठीक न हो, माने आप किसी को बहन मानते हो और अगर आपकी नज़र खराब हो । आजकल तो लोगों का ये चक्र बहुत खराब रहता है। क्योंकि इनमें पवित्रता नहीं है। अपनी पत्नी के अलावा सब औरतों को अपनी बहन या माँ मानना चाहिए। ये जो शास्त्रों में लिखा है इस पर लोग हंसते हैं कि, ‘ये कैसे हो सकता है, माँ ये तो हो ही नहीं सकता।’ क्योंकि सब लोग कुत्ते हो गये हैं ना?  कुत्तों को तो समझ में आती नहीं है बात कि इस तरह से भी कोई पावित्र्य होता है। आप करके देखिये कि आप सिर्फ अपनी छोड़ करके किसी भी दूसरी अन्य औरत को अपनी बहन ओर माँ मानिए । देखिये कितना सन्तोष आपके अन्दर आएगा। कितनी प्रॉब्लम सॉल्व हो जाएंगी। कितना समाज  विकसित हो जाएगा। अभी देखिए पहले के समाज  में कितने ही लोग घर में आते थे, रहते थे। कोई भी प्रॉब्लम नहीं रहती थी। विशेषतः विलायत में देखिए, विलायत में ये हालत हो गयी है कि हमारे शिष्य जो थे उनकी उमर सिर्फ २६ साल की थी और उनकी माँ की उमर थी समझ लीजिए कुछ ४२ या ४३ थी उनके घर में उनके एक दोस्त साहब आ गये थे रहने को। तो वो उनकी माँ उनके साथ भाग गयी थी। वो साहब २४ साल के थे। बेटे से २ साल छोटे थे। उनकी माँ इनके साथ भाग गयी। माने, किसी चीज़़ का सेन्स आफ प्रपोर्शन ही नहीं रहा। आप सोचिए कि लड़के का दोस्त घर में आया और उसकी माँ को लेकर  भाग गया । अभी आने से पहले हमने एक आर्टिकल पढ़ा जिसको सुनकर आप हैरान हो जाएंगे कि सतरह साल के लड़के ने अपने माँ से शादी कर ली और जाकर के अभी कोर्ट में लड़ाई कर रहे हैं दोनो माँ-बेटे कि हमारा मंजूर होना चाहिए कि हमने शादी की है। ये सारी बायीं तरफ की अपवित्रता है। ये हमारे सिनेमा वालों मै भी अकल नहीं है, वो  इतना पाप कर रहे हैं कि इसका फल उनको भोगना पड़ेगा। सबको सबके (अस्पष्ट) अपने पाप का फल भोगना पड़ेगा। इस तरह से जो हमने अपने अपवित्र हालत कर दी है, हमारी शक्लें देखिए कैसी हैं? इसमें न कोई टेजस्वता  है, न इसमें कोई भोलापन है, न इसमें कोई सादगी है। एक तरह से, हर समय में आँखे चलाना।  अब ये जो आँखे चलाने की बीमारी है ये भी कृष्ण शक्ति से ही दंडित होती है। आप देखिए कि हर समय मनुष्य  आँखे चलाता रहता है। आँखे चलाने से आपके अन्दर भूत घूस आता है। आपको पता नहीं कि अगर लेफ्ट साइड से आपके अन्दर भूत घूस आएं तो आपकी आँख चलने लगती है, आप कुछ करते ही नहीं, आँख चलाने के सिवाय आप करते ही क्या है! आँखे चलाने से आपको तो कुछ आनन्द तो आता ही नहीं है। एक मिथ्य है, इसमें आँख घूम रही है, इधर से उधर चल रही है। इसको देख रही है, उसको देख रही है और आपका जो विशुद्धि चक्र है लेफ्ट साइड का, वो पकड़ा जा रहा है। इस लेफ्ट साइड के पकड़ने से आपके अंदर गिल्ट बनता जाएगा। हर समय आप कभी भी सुखी नहीं रह सकते। आदमी कोपहले इसलिए हमारे जमाने मैं जब हम छोटे थे तब  हमारे माता-पिता कहते थे कि आँख अपनी जमीन पर रखकर हमेशा चलना चाहिए। आपने सुना होगा कि लक्ष्मणजी ने सिर्फ सीताजी के पाँव तक के अलंकार देखे थें। उसके ऊपर उन्होंने देखा ही नहीं। क्या उनको, वो कोई दुष्ट आदमी थे या कोई बुरे आदमी थे। ये क्या कानून था कि आप अपनी आँखे नीचे करके चलें। शहनशाह लोग जो थे वो हमेशा अपनी आँख नीचे करके चलते थे जो बिल्कुल हमेशा भिखारी, भूत जैसे थे, वो इधर-उधर देखकर चलते थे। जो आदमी खुद अपनी शान में, प्रतिष्ठा में होता है उसको क्या पड़ी किसीको क्या देखने की। और आपको पता होना चाहिए कि आप जैसे ही दूसरों को देखते हैं, उनकी जो दुर्गंध  ह, उसकी जो बुराई है वह आपके अन्दर आ जाती है। उसके अन्दर बसे हुए जो, जो कंडिशनिंग है वो आपके अन्दर आ जाती है। और ये इतनी ज़्यादा बीमारी बढ़ गई है लोगों में इस कदर लोग इससे भरे हुए हैं कि वो  समझते नहीं है कि इससे आँखें हम कैसे बचाएं। इससे आँखे लाल हो जाती है। आदमी की आँखों में कमजोरी आ जाती है। आँख बहुत तकलीफ देने लग जाती है। तभी बताया जाता है कि आप  घास पर चला करें, पृथ्वी माँ पर चला करें, जो आपकी माँ है। माँ को जानने से ही आप बहन को भी समझेंगे। जब तक आप अपनी माँ को नहीं जानिएगा तो बहन को नहीं न समझ सकते । लेकिन वास्तविकता ये है कि आप अपनी आँख नीचे नतमस्तक होकर रखें और रास्ते में चलते वक्त या किसी की ओर देखते वक्त बुरी दृष्टि से नहीं देखना चाहिए, ये पाप है। और गुरू ने भी इसे कहा है कि उन्होंने साफ कह दिया कि Adulterous eyes are equally evil as adulterous life | इस पवित्रता पे उन्होंने आपको पहुँचा दिया और उम्मीद की थी। लेकिन आज जहाँ संसार पहुँचा हुआ है कि अगर आज हम ये बात कहेंगे तो भी वो बुरा मान जाएंगे। लेकिन आप कोशिश करके देखिए।  देखिए आपने  जीवन में और बाकी सबके जीवन में इतनी सरसता  और इतना सौन्दर्य आ जाएगा कि आँखो को चलाना और इस तरह से अपने को नीचे गिरा लेना जिसको कि आगे चलकर प्रोस्टिट्यूशन आदि कहते हैं। अब आजकल के जो गाने हैं, औरतों को बैठ कर गाने का ढंग आदि वगैरा, सब मैं इस कदर छिछलापन और इस कदर अपने को चीप कर लेने के तरीके हैं कि समझ में नहीं आता, खासकर अपने मध्यमवर्गीय लोगों को इसकी क्या पड़ी है। आदमी पैसे वाला है तो बचने वाले नहीं है, वो तो जाएँ चूल्हे मैं। उनके पास तो साधन ही मिल गया है । जिसके पास अति पैसा है उसको लगता है कि मैं क्या करूँ या क्या न करूँ। इस पैसे को कौनसे ग्ढे में डालूँ  और मैं भी उसके साथ कूद जाऊँ। जैसे ही उसके पास में पैसा आता है, वो सोचता है कि मैं रेस में जाऊँ और फिर ये करू और फिर वो करूँ। आज इसलिए मैं पाप-पुण्य की चर्चा कर रही हूँ क्योंकि गुरू की बात हो रही है। पाप-पुण्य का विचार आपको इस विशुद्धि चक्र पे आता है, पाप और पुण्य क्या हैं? अगर आपको पाप-पुण्य का विचार विशुद्धि चक्र तक नहीं आया तो आप काम से गये। आपकी कुण्डलिनी जागृत नहीं होगी। संसार में पाप व पुण्य दोनों चीज़ हैं। लेकिन ये सोचते हैं कि माँ ये इतना पापी आदमी है फिर भी देखो, इसकी इतनी प्रगति हुई है। मैंने कहा कि, ‘आप इनके घर में जाकर देखो क्या हो रहा है। उसके जीवन में देखो क्या उसकी प्रगती हुई है? इस आदमी के मुख पर जरा भी आनंद है? जिस आदमी का नाम लेते ही लोग कहते हैं, ‘बाबा रे बाबा किसका नाम ले लिया !’ जिस आदमी के पीठ पीछे कभी भी कोई आदमी अच्छी बात नहीं कहता, ऐसे आदमी, ऐसे चरित्रहीन, ऐसे गिरे हुए लोगों को अगर आप आदर्श मानिएगा तो आपका भी ठिकाना वही  रहेगा। हमारे सहजयोग में आप जब पार हो जाएंगे तब अपने आप से आपके अन्दर शक्ति आ जाएगी। आप स्वयं ही अपनी प्रतिष्ठा को जानिएगा क्योंकि आप हैं, आप बहुत  प्रतिष्ठित हैं। आप जानते नहीं है कि परमात्मा ने कितनी मेहनत से इस चक्र को आपके अन्दर बनाया है। इसको कितनी सुन्दरता से बनाया है। इसको किस तरह घड़ा है और इस कुण्डलिनी को किस तरह से सुरक्षित रखा हुआ है। आप अपना ही अपमान कर रहे हैं। अपने ही को नीचे गिरा रहे हैं। आप अपनी गलती न समझें। अपना बड़पन्न समझें, अपने हालात को आप समझें। आप तो सारे संसार के फूल हैं और आपको फल में बदलना है। अगर  आप इस चीज़ को समझलें  कि आप ही परमात्मा के वरेणीय  हैं, परमात्मा आप ही को मानता है और आप ही  के सामने झुक रहा है और आपसे कह रहा है कि आप इसको पा लीजिए, जो आपका श्रेय है। श्रेयों को पहचानना भी मनुष्य की सुबुद्धि से   होता है। जब तक उसके अन्दर दुर्बुद्धि बनी रहेगी वो कर नहीं सकता है। ये सुबुद्धि भी विशुद्धि चक्र की जागृति से होती है। जब मनुष्य  अपने  विशुद्धि चक्र मैं जाग उठता है, उसके अन्दर अपने आप सुबुद्धि आ जाती है। उसके अन्दर सन्तुलन आ जाता है। एक होती है दुर्बुद्धि, एक होती है कुबुद्धि और एक होती है सुबुद्धि । बुद्धि से कोई भी फर्क नहीं पड़ने वाला है। क्योंकि बुद्धि गधी  भी हो सकती है और बेवकूफ भी हो सकती है। बुद्धि के रॅशनॅलिटी से एक आदमी चोरी करता है। वह कहता है कि, ‘मैं क्यों न चोरी करूँ? मेरे पास ये चीज़ नहीं है, उसके पास है, तो मैं क्यों न चोरी करूँ।’ तो रॅशनॅलिटी आ गई। । रॅशनॅलिटी जो है वो हर चीज को रेशनलाइज कर सकती है। लेकिन सुबुद्धि जो है वो कहेगी कि, ‘नहीं, दूसरे की चीज़ उसकी  अपनी है और मेरी ये चीज़ मेरी अपनी है। मेरी चीज़ में जो मजा आ रहा है वो उसमें  में नहीं है।’ओर ऐसे भी  कोई  चीज़ किसी की होती ही नहीं । किसी की कौन सी चीज है, सब  यहीं छोड़ कर जाना हैं। ये तो दिमागी जमा-खर्च है कि ये मेरी चीज़ है। ये तेरी चीज़ है। ये रजिस्ट्रार ऑफिस में लिखा है। जाते वक्त सब कुछ यहीं छोड़ कर जाना है। जाते वखत तो मनुष्य यूँही जाता है सब कुछ यहीं छोड़ के। एक  ये साधारण  बात है इसके पीछे क्यों इतनी मारधाड़  करनी । अब राइट साइड के हमारे जो चक्र हैं, जो कि राइट साइड की विशुद्धि चक्र का ये है कि ये श्रीकृष्ण और राधा की शक्ति से बना है। श्रीकृष्ण और राधा की जो शक्ति है, उससे जब मनुष्य उसके विरोध में खड़ा होता है तो कंस जैसा हो जाता है कि मैं ही बड़ा राजा हूँ, ओर मैं ही बड़ा भारी लीडर हूँ और मैं ही सब कुछ हूँ।  जब उसके अन्दर अहंकार कंस के जैसा बढ़ जाता है, क्योंकि अपनी सगी बहन को मारता है, अपने बहनोई को मारता है। अपने बहन के बच्चों को मारता है। किस तरह से मैं ही सब के ऊपर राज्य करूं। उसको दुनिया की कोई भी चीज़ दिखाई नहीं देती। उसको  राइट साइड की विशुद्धि चक्र की पकड़ होती है। लेकिन राइट साइड की विशुद्धि चक्र पकड़ तब शुरू होती है जब आपको जुकाम हो जाता है।  अब सब लोग बताते  हैं कि जुकाम के लिए तुलसी बहुत  अच्छी होती है। इसकी वजह ये है कि तुलसी शक्ति यहाँ  लेफ्ट साइड मैं  है वो बैलन्स कर देती है हमार राइट साइड में। अर्थात जुकाम वगहेरा  होना ऐसी  तो कोई सीरीयस बात नहीं है पर हमारे सहजयोग में जुकाम के लिए व्यवस्था भी बहुत अच्छी है और उसके लिए भी अगर आप जान लें कि किस तरह से आपका जो सर्वसाधारण जो जुकाम है सायनस वगैरा के प्रॉब्लेम है वो ठीक हो सकती है। लेकिन बीच की जो शक्ति है जिसे विराट की शक्ति कहते हैं। ये सबसे महत्वपूर्ण है। आज संसार में जहाँ भी लोग कुछ न कुछ खोज रहे हैं, जहाँ पर कि मनुष्य परमात्मा की खोज में लगा है ओर सत्य की खोज मैं लगा है । वो अपने हॉलसमनेस को, अपने विराट को खोज रहा है। वो यह खोज रहा है  कि मैं अगर  उस विराट का एक हिस्सा हूँ तो मैं उसको खोजूँ जिसका मैं हिस्सा हूँ। इसका मतलब ये है कि हमारी वो चीज़ जिसे सामूहिक चेतना कहते हैं, वो अभी तक नहीं आयी। हम कहते हैं कि ‘आप भाई हैं, आप बहने हैं। बड़े-बड़े लेक्चर देंगे कि ये स्थापित हुआ है इसलिए फिट है, माने इन्सान का ये है कि जो होने वाला है उसका नाटक पहले कर लेता है। जैसे कोई रिहर्सल हो। ये एक रिहर्सल सा लगता है कि आप भी भाई है, आप भी बहन है। आप सब लोग भाई-बहन हैं। सब लोग सामूहिक एक हैं। वास्तविक अभी तक ये सब झूठ बात है आपके लिए, हमारे लिए नहीं। जब आप सहजयोग में आ जाते हैं आपकी सामूहिक चेतना जागृत हो जाती है। सामूहिक चेतना जागृत होते ही आप महसूस करने लगते हैं कि दूसरा जो है वो मेरे अन्दर है और मैं उसके अन्दर हूँ। आप खुद ये देखने लगते हैं क्योंकि जब absolute पॉइंट जब आपको मिल जाता है तब आप रिलेटिव स्टेज में चले जाते हैं। आप कहाँ हैं इस absolute पॉइंट के इसमें और वो कहाँ हैं। अब सादे शब्दों में बताना ये है कि ये जो आपके उंगलियों के जो चक्र है वो जागृत हो जाते हैं। ये १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ये सातों चक्र लेफ्ट सिम्पथैटिक और राइट सिम्पथैटिक पर जागृत हो जाते हैं फिर ये जागृत हो जाते हैं तो इसमें क्या महसूस होने लग जाता है? इसमें ऐसा महसूस होता है मान लीजिए आपके सामने कोई खड़े हैं हाथ ऐसा करके। तो मैं तुरन्त बता दूँगी कि उसमें क्या बीमारी है। वो मैं कैसे समझ लेती हूँ? समझ लीजिए कि अगर मेरे राइट हैण्ड के इस उंगली में चमक आई या कुछ गरमी सी लग रही है तो मैं जान जाऊंगी कि इनके लिवर में खराबी है क्योंकि ये जो है ये नाभि चक्र है राइट हैण्ड साइड का और नाभी चक्र राइट हैण्ड साइड पर लिवर का स्थान है। ओर जब आदमी आगे बढ़ता है उसके बाद में छोटी-छोटी फ्रिक्वेन्सी भी पकड लेता है। यहाँ तक कि सहजयोग में तो उसके अन्दर वैसी ही भावना आने लग जाती है जैसी सामने में दूसरे की होती है। 

और जब लगता है कि लिवर में हेवीनेस और अगर आप पूछते हैं कि आपका लिवर हैं? तो वो कहता हैं कि हाँ, लिवर है। आप अपने हाथ ऐसे-ऐसे रगडिए। आपका भी लिवर ठीक होगा और उसका भी लिवर ठीक होगा। अगर किसी आदमी को सरदर्द हो रहा है तो उसके पास जाईये तो आपका भी सिर थोड़ा सा भारी हो जाएगा । आप कहियेगा कि ‘सिरदर्द हो रहा है?’ तो कहेगा ‘हाँ।’ उसके बाद आपने अपना सिर ऐसे दबा करके ठीक कर दिया। उस आदमी का देखिएगा कि उसका भी सिरदर्द ठीक हो जाएगा। कलेक्टिव कॉन्शसनेस आपके अन्दर जो आती है, सामूहिक चेतना आती है ये सब्जेक्टिविटी है। माने ये असल में आती है, माने ये अॅक्च्युअलाइजेशन होता है इसका। ये सिर्फ बातचीत नहीं होती है, ये हो ही जाता है। आपकी जो चेतना है वो इस स्तर पर आ जाती है। एक नया आयाम उसके अन्दर खुल जाता है। जिसके अन्दर आप सामूहिक चेतित हो जाते हैं। वो कहे अगर रियलाइज्ड होगा तो वो भी बतायेगा कि नानी इनको देखिये , इनके हार्ट में पकड़ है। तो हार्ट आपका पकड़ रहा है। हार्ट पर प्रेशर है | आपके। ये तो फिजिकल हो गया, इमोशनल भी आप बता सकते हैं। बहुत से लोग तो ऐसे लगते हैं ऊपर से वो होशियार लगते हैं पर अन्दर से तो पागल होते हैं। उसके पास गये तो दो ऐसे झापड़ मारते हैं आपको। लेकिन अगर आप रियलाइज्ड सोल हो तो आप जान जाओगे कि ये पागल हैं। आपको ये पता चल जाएगा यानी आज्ञा चक्र कहाँ है। यानी लेफ्ट साइड के अगर कोई न कोई चक्र पकड़ते हैं तो उसमें कोई न कोई मानसिक विकृति आ गयी है, कोई न कोई लेफ्ट साइड के आते हैं। राइट साइड के आते हैं तो फिजिकल और इमोशनल होते हैं। ये अपने विशुद्धि चक्र से कनेक्टेड है । बहुत से लोग पार हो जाते हैं, पर वो उनके अन्दर वायब्रेशन्स को फील नहीं कर पाते हैं, इसका कारण है विशुद्धि चक्र की खराबी। क्योंकि विशुद्धि चक्र मैंने बताये है कि आपके सिगरेट पीने से खराब होती है। शहर के वातावरण में आप सिगरेट नहीं भी पीते हैं तो एक आपके समझ लीजिए कि आपके पिताजी सिगरेट पीने वाले में से हों जो कुछ है तो ये जो विशुद्धि चक्र है यहाँ खराब हो जाता है। विशुद्धि चक्र अगर खराब हो जाता है तो विशुद्धि चक्र में से निकलने वाली जो दो नसे है, जिसे कि हमारे अन्दर, हमारे सेंट्रल नर्वस सिस्टम में ये जब चेतना आती है जब हम चेतित भी होते हैं तो भी हम इसे महसूस नहीं कर पाते। क्योंकि हमारी संवेदना खत्म हो जाती है। हमारी संवेदना इस चक्र से बढ़ सकती है अगर हमारा विशुद्धि चक्र पूरी तरह से जागृत होता है। तो इस चक्र के भी मन्त्र है ये समझ लेना चाहिए, उस मन्त्र के लिए कहे गये मन्त्र, बतलाये गये मन्त्र कहने से ये चक्र जागृत होता है। ये जो दो उंगलियाँ विशुद्धि चक्र की है अगर इसे कान में ड्राल कर के सर यूँ पिछे कर के अगर आप ‘अल्लाह हो अकबर’ अगर तीन बार कहें तो आपका ये चक्र साफ होगा। क्योंकि अकबर जो है वो विराट है। मोहम्मद साहब ने ये बात कही थी, कृष्ण की बात कही थी लेकिन कौन सुनता है? उन्होंने जो भी कुछ बताया कि इस तरह से हाथ करिए और फिर नमाज पढ़िए तो सारी कुण्डलिनी जागृत होगी लेकिन अगर ये किसी मानव को जाकर बताएंगे तो वो मुझे मारने को दौडेंगे। मोहम्मद साहब भी साक्षात दत्तात्रिय के अवतरण थे और मैं कहती हैँ कि कुण्डलिनी जागृति में उन्होंने जितना कार्य किया है उतना और किसी ने नहीं किया। शैतान को कैसे निकालना चाहिए? इसके उन्होंने कुछ तरिके बतायें हैं, वो एक से एक अभिनव है। जिसे हम अभी भी करते हैं अधिकतर। सहजयोग में हम उन्हें भी इस्तेमाल करते हैं अभी तक। हांलाकि हमारे पास आदि शंकराचार्य जैसे लोग हैं जिन्होंने तो बड़ी कमाल की चीज़ें लिख दी है और उनकी जो बारिकियाँ है अगर आप उन सारी बारिकियों को फॉलो करें तो आप पूरी तरह से स्थित हो जाते हैं। जिसके हमारे ऊपर अनेक उपकार हैं, इस देशपर, इन संतों-साधुओं के और इन बड़े-बड़े अवतारों के। ऐसे-ऐसे महान अवतार इस योगभूमि में हुए हैं, इस संत भूमिपर जिसे हम महाराष्ट्र कहते हैं। अनेक संत-साधुओं ने हमारा रक्त सिंचन किया है । इतनी मेहनत आप लोगों पर की है कि जरासे इशारे पर आप लोग पार होते हैं खास कर जब मैं गाँवों में जाती हूँ तो आप देखते हैं | कि हजारों के हजारो तादाद  में लोग आज आते हैं। अब आप देखिए कि हमारे लेक्चर में कितने लोग आएं हैं । यहाँ से शुरुआत है। लोगों को सत्य की पहचान नहीं है। सत्य का खिंचाव नहीं है । वहाँ जा रहे हैं लोग। अगर कोई आदमी कहे कि मैं आपको कपड़े खोलकर नंगे नचवाऊँगा तो आप सब वहाँ चले जाएंगे | पैसा दे कर वहाँ से नाच कर आप आएंगे और आप कहेंगे कि वाह ! वाह! क्या मजा आ गया। ऐसे बेवकूफ लोगों के लिए सहजयोग नहीं है। जो लोग गम्भीर हैं, जिनका कैलिबर है, जिन्हें कहते हैं कि ‘येऱ्यागबाळ्याचे काम नाही’। कोई आपके अन्दर जब तक वो पूरी तरह से श्रद्धा, पूरी तरह से प्रतिष्ठा ना हो तो वो दिख जाता है, उसके लिए ये नहीं है। इसके लिए कॉम्प्रोमाइज करना असत्य से बहुत ही आसान चीज़ है ऐसे व्यक्ति पर सहजयोग नहीं चलता । सहजयोग प्राप्ति के लिए बहुत बड़े पंडित या ज्ञानी होने की जरूरत नहीं है लेकिन दिल के पक्के होने चाहिए। शहनशाह किस्म के होने चाहिए। ऐसे आदमी पर सहजयोग यूं काम कर जाता है। अब कृष्ण शक्ति पर मैंने कहा कि बताने लगू तो साल बीत जाएगा। उसके सारे सोलह पड़दे खोलने के लिए और बताने के लिए काफी चीज़ चाहिए। और कुण्डलिनी क्या चीज़ है आज तक आपको पता नहीं। आपने देखा नहीं है। जिसे आपने देखा नहीं, जाना नहीं उसे आप जान सकते हैं। उसका स्पंदन आप अपनी नज़र से देख सकते हैं। उसका चढ़ना आप देख सकते हैं। उसका भ्रमण आप देख सकते हैं। अब ये चीजें अलग ही है, आपने जानी नहीं है। परायी चीज़ें हैं अभी आपने जाना नहीं, पर हैं। जैसे कि यहाँ पर अनेक चित्र है इस वक्त। आप नहीं देख पाते| आप टेलिविजन लगाइये, आप देख सकते हैं। अनेक यहाँ पर संगीत हो रहे हैं आप सुन नहीं सकते। लेकिन अगर आप रेडियो लगायेंगे तो आप सुन सकेंगे। उसी तरह से, ये परमात्मा की शक्ति सब तरफ दूर तक विराजमान है। अणू-रेणू, सब चीज़ में परमात्मा की शक्ति भरी हुई है। कुण्डलिनी अगर जागृत हो जाए, उसका अगर कॉर्ड मेन से लग जाए तो फिर उसका परमात्मा से संवाद शुरू हो जाता है। फिर इन्ही हाथों पर जिसको कि आप सोचते हैं कि ये विशेष नहीं है, इन्हीं हाथों पर आप जान सकते हैं, आप इस तरह से हाथ करके पूछिए कि ‘क्या संसार में परमात्मा हैं?’ तो आप देखेंगे कि आपके अन्दर ठण्डी-ठण्डी लहरें चलने लगेंगी । अपने प्रति प्रेमभाव होना चाहिए, आदर होना चाहिए, अत्यंत प्रेम होना चाहिए। क्योंकि परमात्मा ने आपको इसलिए नहीं बनाया कि आपका जीवन व्यर्थ हो जाए। किसी भी तरह से नहीं बनाया। अगर आपका जीवन व्यर्थ हो गया तो परमेश्वर का भी कोई अर्थ नहीं रहने वाला है। सृष्टि का भी कोई अर्थ नहीं रहेगा। ये अपने प्रति आदर रखते हुए और प्रेमभाव रखते हुए, पूरी आशा से ही आप इस कार्य में संलग्न रहो। सर्वव्यापी परमेश्वर के साथ चैतन्य लहरियों से आप बात कर सकते हैं क्योंकि ये परमेश्वरी शक्ति सारे चराचर में भरी है। 

आप सबको अनन्त आशीर्वाद।।