6th Day of Navaratri Celebrations, Shri Kundalini, Shakti and Shri Jesus

Hinduja Auditorium, मुंबई (भारत)

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Kundalini Aur Yeshu Khrist Date : 27th September 1979 Place Mumbai Туре Seminar & Meeting Speech Language Hindi

श्री कुण्डलिनी शक्ति और श्री येशु खिस्त’ ये विषय बहुत ही मनोरंजक तथा आकर्षक है । सर्वमान्य लोगों के लिए ये एक पूर्ण नवीन विषय है, क्योंकि आज से पहले किसी ने श्री येशु ख़्रिस्त और कुण्डलिनी शक्ति को परस्पर जोड़ने का प्रयास नहीं किया। विराट के धर्मरूपी वृक्ष पर अनेक देशों और अनेक भाषाओं में अनेक प्रकार के साधु | संत रूपी पुष्प खिले । उन पुष्पों (विभूतियों) का परस्पर सम्बन्ध था । यह केवल उसी विराट-वृक्ष को मालूम है। जहाँ जहाँ ये पुष्प (साधु संत) गए वहाँ वहाँ उन्होंने धर्म की मधुर सुगंध को फैलाया। परन्तु इनके निकट (सम्पर्क) | वाले लोग सुगन्ध की महत्ता नहीं समझ सके। फिर किसी सन्त का सम्बन्ध आदिशक्ति से हो सकता है यह बात सर्वसाधारण की समझ से परे है । मैं जिस स्थिति पर से आपको ये कह रही हूँ उस स्थिति को अगर आप प्राप्त कर सकें तभी आप ऊपर कही गयी बात समझ सकते हैं या उसकी अनुभूति पा सकते हैं क्योंकि मैं जो आपसे कह रही हूँ वह सत्य है कि नहीं इसे जानने का तन्त्र इस समय आपके पास नहीं है; या सत्य क्या है जानने की सिद्धता आपके पास इस समय नहीं है। जब तक आपको अपने स्वयं का अर्थ नहीं मालूम तब तक आपका शारीरिक संयन्त्र ऊपर कही गई बात को समझने के लिए असमर्थ है। परन्तु जिस समय आपका संयन्त्र सत्य के साथ जुड़ जाता है उस समय आप ऊपर कही गयी बात को अनुभव कर सकते हैं । इसका अर्थ है आपको सहजयोग में आकर ‘पार होना’ आवश्यक है । ‘पार’ होने के बाद आप के हाथ से चैतन्य लहरियाँ बहने लगती हैं । जो चीज़ सत्य है उसके लिए आपके हाथ में ठंडी-ठंडी चैतन्य की तरंगे (लहरियाँ) आएंगी और वह असत्य होगी तो गरम लहरें आएंगी | इसी तरह कोई चीज़ सत्य है कि नहीं इसे आप जान सकते हैं । ईसाई लोग श्री येशु ख्रिस्त के बारे में जो कुछ जानते हैं वह बायबल ग्रन्थ के कारण है । बाइबल ग्रन्थ बहुत ही गूढ़ (रहस्यमय) है। यह ग्रन्थ इतना गहन है कि अनेक लोग वह गूढ़ार्थ (गहन अर्थ) समझ नहीं सके। बाइबल में लिखा है कि ‘मैं तेरे पास ज्वालाओं की लपटों के रूप में आऊंगा ।’ इज़राइली (यहूदी) लोगों ने इसका ये मतलब लगाया कि जब परमात्मा का अवतरण होगा तब उनमें से चारों ओर आग की ज्वालायें फैलेंगी इसलिए वह उन्हें देख नहीं सकेंगे। वस्तुत: इसका सही मतलब ये है कि मेरा दर्शन आपको सहस्रार में होगा । बाइबल में अनेक जगह इसी तरह श्री कुण्डलिनी शक्ति व सहस्ार का उल्लेख है । किन्तु यहाँ यह सब बिलकुल संक्षेप में कह सकते | हैं। श्री येशु ख्रिस्त जी ने कहा है कि, ‘जो मेरे विरोध में नहीं हैं वे मेरे साथ हैं।’ इसका मतलब है कि जो लोग मेरे विरोध में नहीं है वे मेरे साथ हैं। आपने अगर ईसाई लोगों को पूछा कि ये लोग कौन थे? तो उन्हें इसका पता नहीं है । श्री येशु ख्रिस्त में दो महान शक्तियों का संयोग है। एक श्री गणेश की शक्ति जो येश् ख्रस्त की मूल शक्ति मानी गयी है, और दूसरी शक्ति श्री कार्तिकेय की। इस कारण श्री येशु ख्रिस्त का स्वरूप सम्पूर्ण ब्रह्म तत्त्व, ॐकार रूप है। श्री येशु ख्रिस्त के पिताजी साक्षात श्री कृष्ण थे । इसलिए उन्होंने उन्हें जन्म से पूर्व ही अनेक वरदान दिये हुए

थे । उसमें से एक वरदान है कि आप हमेशा मेरे स्थान से ऊपर स्थित होंगे । इसका स्पष्टीकरण ये है कि श्री कृष्ण का स्थान हमारी गर्दन पर जो विशुद्धि चक्र है उस पर है, और श्री ख्रिस्त का स्थान आज्ञा चक्र में है जो अपने सर के पिछले भाग में जहाँ दोनो आँखों की ज्योति ले जाने वाली नसें जहाँ परस्पर छेदती हैं वहाँ स्थित है । दूसरा वरदान श्रीकृष्ण ने ये दिया था कि आप सारे विश्व के आधार होंगे। तीसरा वरदान है कि, पूजा में मुझे | जो भेंट प्राप्त होगी उसका १६ वाँ हिस्सा सर्वप्रथम आपको दिया जाएगा। इस तरह अनेक वरदान देने के बाद श्रीकृष्ण ने उन्हें अवतार लेने की अनुमति दी। आपने अगर मार्कण्डेय पुराण पढ़ा होगा तो ये सारी बातें आप समझ सकते हैं क्योंकि श्री मार्कण्डेय जी ने ऐसी अनेक बातें जो सूक्ष्म हैं खोलकर कही हैं। | इसी पुराण में श्री महाविष्णु का भी वर्णन किया है। आप अगर ध्यान में जा कर यह वर्णन सुनेंगे तो आप समझ सकते हैं किये वर्णन श्री येशु ख्रिस्त का है । अब अगर आपने श्री ‘ख्रिस्त’ शब्द का अध्ययन किया ( उसे सूक्ष्मता से देखा) तो ये ‘कृष्ण’ शब्द के अपभ्रंश से निर्माण हुआ है। वस्तुत: श्री येशु ख्रिस्त के पिताजी श्री कृष्ण ही हैं। और इसलिए उन्हें ख्रिस्त कहते | हैं। उनका नाम ‘जीजस’ जिस प्रकार बना है वह भी मनोरंजक है । श्री यशोदा माता को ‘येशु’ नाम से कहा जाता था। उत्तर प्रदेश में अब भी किसी का नाम ‘येशू’ होता है तो उसे वैसे न कहकर ‘जेशू’ कहते हैं। इस प्रकार ये स्पष्ट होता है कि, ‘यशोदा से ‘येशु’ व उसके ‘जशू’ व उससे ‘जीजस क्राईस्ट’ नाम बना है । जिस समय श्री ख्रिस्त अपने पिताजी की गाथाऐें सुनाते थे उस समय वे वास्तव में श्री कृष्ण के बारे में बताते थे, ‘विराट’ की बातें बताते थे । यद्यपि श्री कृष्ण ने जीजस ख्रिस्त के जीवन काल में पुन: अवतार नहीं लिया था, तथापि जीजस ख्रिस्त के उपदेशों का सार था कि साधकों विराट पुरुष सर्वशक्तिमान परमात्मा का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त कर सकते हैं । अर्थात् श्री ख्रिस्त की माता साक्षात् श्री महालक्ष्मी थीं । श्री मेरी माता स्वयं श्री महालक्ष्मी व आदिशक्ति थी । और अपनी माँ को उन्होंने ‘होली घोस्ट’ (Holy Ghost) नाम से सम्बोधित करते थे । श्री ख्रिस्त जी के पास एकादश रुद्र की शक्तियाँ हैं, अर्थात् ग्यारह संहार शक्तियाँ हैं । इन शक्तियों के स्थान अपने माथे पर हैं । जिस समय शक्ति का अवरण होता है उस समय ये सारी शक्तियाँ संहार का काम करती हैं। इन ग्यारह शक्तियों में एक शक्ति श्री हनुमान की है व दूसरी श्री भैरवनाथ की है। इन दोनों शक्तियों को बाइबल में ‘सेंट मायकेल’ तथा ‘सेंट गॅब्रियल’ कहा जाता है। सहजयोग में आ कर पार होने के बाद आप इन शक्तियों को अंग्रेजी में बोल कर भी जागृत कर सकते हैं या मराठी में या संस्कृत में भी बोल कर जागृत कर सकते हैं। अपने दायें तरफ की (right) नाड़ी (पिंगला नाड़ी) में भी श्री हनुमान जी की शक्ति कार्यान्वित होती है । जिस समय अपनी पिंगला नाड़ी में अवरोध निर्माण होता है उस समय श्री हनुमान जी के मन्त्र से तुरन्त अन्तर पड़ता है। उसी प्रकार ‘सेंट मायकेल’ का मन्त्र बोलने से भी पिंगला नाड़ी में अन्तर आएगा । अपने बांये तरफ की नाड़ी, इडा नाड़ी ‘सेंट गॅब्रियल’ या ‘श्री भैरवनाथ’ की शक्ति से कार्यान्वित होती है । उनके मन्त्र से इड़ा नाड़ी की तकलीफें दूर होती है । ऊपर कही गयी बातों की सिद्धता सहजयोग में आकर पार होने के बाद किसी को भी आ सकती है । कहने का अभिप्राय है कि अपने आपको हिन्दू या मुसलमान या ईसाई ऐसे अलग-अलग समझ कर आपस लड़ना मूर्खता में

है। अगर आप ने इसमें तत्त्व की बात जान ली तो आपके मस्तिष्क में आएगा कि ये सब एक ही धर्म के वृक्ष के | अनेक फूल हैं व आपस में एक ही शक्ति से सम्बन्धित हैं । आपको ये जानकर कदाचित आश्चर्य होगा कि सहजयोग में कुण्डलिनी जागृति होना साधक के आज्ञा चक्र की अवस्था पर निर्भर करता है। आजकल लोगों में अहंकार बहुत ज्यादा है क्योंकि अनेक लोग अहंकारी प्रवृत्ति में खोये हैं। अहंकारी वृत्ति के कारण मनुष्य अपने सच्चे धर्म से विचलित हो जाते हैं और दिशाहारा (मार्ग से भटक जाना) होने के कारण वे अहंकार को बढ़ावा देने वाले कार्यों में रत रहते हैं। इस अहंकार से मुक्ति पाने के लिए येशु ख्रिस्त बहुत सहायक होते हैं । जिस प्रकार भी मोहम्मद पैगंबर ने दुष्ट शक्तियों का कैसे विनाश करना है इसके बारे में लिखा है उसी प्रकार श्री ख्रिस्त जी ने बहुत ही सरल तरीके से आप में कौन -कौन सी शक्तियाँ हैं व कौन से आयुध हैं इसके बारे में कहा है। उन आयुधों में सर्वप्रथम ‘क्षमा’ करना है । जो तत्त्व श्री गणेश में ‘परोक्ष’ रूप में है वही तत्त्व मनुष्य में क्षमा के रूप में कार्यान्वित है । वस्तुत: क्षमा बहुत बड़ा आयुध है क्योंकि उससे मनुष्य अहंकार से बचता है। अगर हमें किसी ने दु:ख दिया, परेशान किया या हमारा अपमान किया तो अपना मन बार बार यही बात सोचता रहता है और उद्विग्न रहता है। आप रात दिन उस मनुष्य के बारे में सोचते रहेंगे और बीती घटनायें याद कर के अपने आपको दुःख देते रहेंगे। इससे मुक्ति पाने के लिए सहजयोग में हम ऐसे मनुष्य को क्षमा करने के लिए कहते हैं । दूसरों को क्षमा करना, एक बड़ा आयुध श्री ख्रिस्त के कारण हमें प्राप्त हुआ है जिससे आप दूसरों के कारण होने वाली ये परेशानियों से छुटकारा पा सकते हैं। श्री ख्रिस्तजी के पास अनेक शक्तियाँ थी और उसी में एकादश रुद्र स्थित है । इतनी सारी शक्तियाँ पास में होने पर भी उन्होंने अपने आपको क्रास (सूली) पर लटकवा लिया। उन्होंने अपने आपको क्यों नहीं बचाया? श्री ख्रिस्त जी के पास इतनी शक्तियाँ थी कि वे उन्हें परेशान करने वालों का एक क्षण में हनन कर सकते थे । उनकी माँ श्री मेरी माता साक्षात् श्री आदिशक्ति थी। उस माँ से अपने बेटे पर हुए अत्याचार देखे नहीं गए। परन्तु परमेश्वर को एक नाटक करना था। सच बात तो ये है कि श्री ख्रिस्त सुख या दुःख, इसमें फॅसे हुए नहीं थे। उन्हें ये नाटक खेलना था। उनके लिए सब कुछ खेल था। वास्तव में जीजस ख्रिस्त सुख, दुःख से परे थे। उन्हें तो यह नाटक | अत्यन्त निपुणता से रचना था । जिन लोगों ने उन्हें सूली पर लटकाया वे कितने मूर्ख थे? उस जमाने के लोगों की मूर्खता को नष्ट करने के लिए श्री ख्रिस्त स्वयं गधे पर सवार हुए थे। आपके कभी सिर में दर्द हो तो आप कोई दवाई | न लेकर, श्री ख्रिस्त की प्रार्थना करिए कि ‘इस दुनिया में जिस किसी ने मुझे कष्ट दिया है, परेशान किया है उन सबको माफ कीजिए’ तो आपका सर दर्द तुरन्त समाप्त हो जाएगा। लेकिन इसके लिए आपको सहजयोग में आकर कुण्डलिनी जागृत करवा कर पार होना आवश्यक है। उसका कारण है कि आज्ञा चक्र, जो आप में श्री ख्रिस्त तत्त्व है वह सहजयोग के माध्यम से कुण्डलिनी जागृति के पश्चात ही सक्रिय होता है, उसके बिना नहीं। ये चक्र इतना सूक्ष्म है कि डाक्टर भी इसे देख नहीं सकते । इस चक्र पर एक अतिसूक्ष्म द्वार है । इसलिए श्री ख्रिस्त ने कहा है कि ‘मैं द्वार हूँ’ इस अतिसूक्ष्म द्वार को पार करना आसान करने के लिए श्री ख्रिस्त ने इस पृथ्वी पर

अवतार लिया और स्वयं यह द्वार प्रथम पार किया । अपने अहंभाव के कारण लोगों ने श्री ख्रिस्त को सूली पर चढ़ाया, क्योंकि कोई मनुष्य परमेश्वर का अवतार बन कर आ सकता है ये उनकी बुद्धि को मान्य नहीं था । उन्होंने अपने बौद्धिक अहंकार के कारण सत्य को ठुकराया। श्री ख्रिस्त ने ऐसा कौनसा अपराध किया कि जिससे उनको सूली पर लटकाया? उलटे उन्होंने दुनिया के कितने लोगों को अपनी शक्ति से ठीक किया। जग में सत्य का प्रचार किया। लोगों को अनेक अच्छी बातें सिखाई । लोगों को सुव्यवस्थित, सुसंस्कृत जीवन सिखाया । वे हमेशा प्यार की बातें करते थें । लोगों के लिए हमेशा अच्छाई करते हुए भी आपने उन्हें दुःख दिया , परेशान किया। जो लोग आपको गन्दी बातें सिखाते हैं या मूर्ख बनाते हैं उनके आप पाँव छूते हैं। मूर्खता की हद है! आजकल कोई भी ऐरे- गैरे गुरू बनते हैं, लोगों को ठगते हैं, लोगों से पैसे लूटते हैं। उनकी लोग वाह वाह (खुशामद, प्रशंसा) करते हैं। | | कोई सत्य बात कहकर लोगों को सच्चा मार्ग दिखाएगा तो उसकी कोई सुनता नहीं, उल्टे उसी पर गुस्सा करेंगे। ऐसे महामूर्ख लोगों को ठीक करने के लिए परमात्मा ने अपना सुपुत्र श्री ख्रिस्त को इस दुनिया में भेजा था । पर उन्हें लोगों ने सूली पर चढ़ाया। ऐसे ही नाना प्रकार के लोग करते रहते हैं । आप इतिहास पढ़ेंगे तो आप देखेंगे कि जब – जब परमेश्वर ने अवतरण लिया या सन्त-महात्माओं ने अवतरण लिया तब तब लोगों ने उन्हें कष्ट दिया है। उनसे सीखने के बजाय खुद मूर्खों की तरह बतर्ताव करते थे। कुछ महाराष्ट्र के सन्त श्रेष्ठ श्री तुकाराम महाराज या श्री ज्ञानेश्वर महाराज इनके साथ यही हुआ। वैसे ही श्री गुरुनानक, श्री मोहम्मद साहब इनके साथ भी उसी प्रकार हुआ। मनुष्य हमेशा सत्य से दूर भागता है और असत्य से चिपका रहता है। जब कोई साधु-सन्त या परमेश्वर का अवतरण होता है तब अगर ऐसा प्रश्न पूछा जाए कि यह व्यक्ति क्या अवतारी, सन्त या पवित्र है? तो सहजयोग में लोगों द्वारा ऐसा सवाल पूछते ही तुरन्त एक सहजयोगी के हाथ पर ठंडी लहरें आ कर आप के प्रश्न का ‘हाँ’ में उत्तर मिलेगा। विगत (भूतकाल की) बातों से मनुष्य का अहंकार | बढ़ता है। उदाहरणत: किसी विशेष व्यक्ति का शिष्ट होने का दंभ । जो सामने प्रत्यक्ष है उसका मनुष्य को ज्ञान नहीं होता है। बढ़े हुए अहंकार के कारण मनुष्य ‘स्व’ (आत्मा) के सच्चे अर्थ को भूल जाता है। अब देखिए, ‘स्वार्थ’ माने ‘स्व’ का अर्थ समझ लेना जरुरी है। आज गंगा जिस जगह बह रही है, और अगर आप किसी दूसरी जगह जाकर बैठ जाये और कहने लगें कि गंगा इधर से बह रही है और हम गंगा के किनारे बैठे हैं तो ये जिस तरह हास्यजनक होगा उसी तरह ये बात है। आपके सामने आज जो साक्षात है उसी को स्वीकार कीजिए। श्री ख्रिस्त के समय भी इसी तरह की स्थिति थी । उस समय श्री ख्रिस्त जी कुण्डलिनी जागरण के अनेक यत्न किये। परन्तु महा मुश्किल से केवल २१ व्यक्ति पार हुए । सहजयोग में हजारों पार हुए हैं। श्री ख्रिस्त उस समय बहुतों को पार करा सकते थे परन्तु उनके शिष्यों ने सोचा श्री क्रिस्त केवल बीमार लोगों को ठीक करते हैं। उसके अतिरिक्त कुछ है उसका उन्हें ज्ञान नहीं था। इसलिए उनके सारे शिष्य सभी तरह के बीमार लोगों को उनके पास ले जाते थे। श्री ख्रिस्त ने बहुत बार पानी पर चलकर दिखाया क्योंकि वे स्वयं प्रणव थे। ॐकार रूपी थे। इतना सब कुछ था । तब भी लोगों के दिमाग में नहीं आया कि श्री ख्रिस्त परमेश्वर के सुपुत्र थे। मुश्किल से उन्होंने कुछ मछुआरों को इकठ्ठा करके (क्योंकि और कोई लोग उनके साथ आने के लिए तैयार

नहीं थे) बड़ी मुश्किल से उन्होंने उन लोगों को पार किया। पार होने के बाद ये लोग श्री ख्रिस्त के पास किसी न किसी बीमार को ठीक कराने ले आते थे । हमारे यहाँ सहजयोग में भी बहुत से बीमार लोग पार होकर ठीक हुए हैं । लोगों को जान लेना चाहिए कि अहंकार बहुत ही सूक्ष्म है । अब दूसरा प्रकार ये है कि अपने अहंकार के साथ लड़ना भी ठीक नहीं है । अहंकार से लड़ने से वह नष्ट नहीं होता है । वह अपने आप ( ‘स्व’) में समाना चाहिए । जिस समय अपना चित्त कुण्डलिनी पर केन्द्रित होता है व कुण्डलिनी अपने ब्रह्मरन्ध्र को छेदकर विराट में मिलती है उस समय अहंकार का विलय होता है। विराट शक्ति का अहंकार ही सच्चा अहंकार है। वास्तव में विराट ही वास्तविक अहंकार है । आपका अहंकार छूटता नहीं । आप जो करते हैं वह अहंकार है। अहंकरोति स: अहंकारः । आप अपने आप से पूछकर देखिए कि आप क्या करते हैं। किसी मृत वस्तु का आकार बदलने के सिवा आप क्या कर सकते हैं? किसी फूल से आप फल बना सकते हैं? ये नाक, ये मुँह, ये सुन्दर मनुष्य शरीर आपको प्राप्त हुआ है । ये कैसे हुआ है ? आप अमीबा से मनुष्य स्थिति को प्राप्त हुए हैं। ये कैसे हुआ है? परमेश्वर की असीम कृपा कि आपको ये सुन्दर मनुष्य देह प्राप्त हुआ है। क्या मानव इसका बदला चुका सकता है? आप ऐसा कोई जीवन्त कार्य कर सकते हैं क्या ? एक टेस्ट ट्यूब बेबी के है। निर्माण के बाद मनुष्य में इतने बड़े अहंकार का निर्माण हुआ है । उसमें भी वस्तुत: ये कार्य जीवन्त कार्य नहीं है । क्योंकि जिस प्रकार आप किसी पेड़ का cross breeding करते हैं, उसी प्रकार किसी जगह से एक जीवन्त जीव लेकर यह क्रिया की है। परन्तु इस बात का भी मनुष्य को कितना अहंकार है । चाँद पर पहुँच गए तो कितना अहंकार । जिसने चाँद-सूरज की तरह अनेक ग्रह बनाए और ये सृष्टि बनायी उनके सामने क्या आपका अहंकार? वास्तव में आपका अहंकार दाम्भिक है, झूठा है। उस विराट पुरुष का अहंकार सत्य है क्योंकि वही सब कुछ करता । है विराट पुरुष ही सब कुछ कर रहा है, ये समझ लेना चाहिए । तो श्री विराट पुरुष को ही सब कुछ करने दीजिए । आप एक यन्त्र की तरह हैं। समझ लीजिए मैं किसी माईक में से बोल रही हूँ व माईक में से मेरा बोला हुआ आप तक बह रहा है। माईक केवल साक्षी (माध्यम) है परन्तु बोलने का कार्य मेैं कर रही हूँ, वह शक्ति माइक से बह रही है। उसी भाँति आप एक परमेश्वर के यन्त्र है। उस विराट ने आपको बनाया है। तो उस विराट की शक्ति को आप में से बहने दो। उस ‘स्व’ का मतलब समझ लीजिए । यह मतलब समझने के लिए आज्ञा चक्र, जो बहत ही मुश्किल चक्र है और जिस पर अति सूक्ष्म तत्त्व ॐकार, प्रणव स्थित है, वही अर्थात श्री ख्रिस्त इस दुनिया में हुए थे। अब कुण्डलिनी और श्री ख्रिस्त का सम्बन्ध जैसे सूर्य का सूर्य किरण से जो सम्बन्ध है, उसी अवतरित तरह है, अथवा चन्द्र का चन्द्रिका से जो सम्बन्ध है उसी प्रकार है। श्री कुण्डलिनी ने माने श्री गौरी माता ने अपनी शक्ति से, तपस्या से, मनोबल से व पुण्याई से श्री गणेश का निर्माण किया। जिस समय श्री गणेश स्वयं अवतरण लेने के लिए सिद्ध हुए उस समय श्री ख्रिस्त का जन्म हुआ। इस संसार में ऐसी अनेक घटनाऐं घटित होती हैं जो मनुष्य को अभी तक मालूम नहीं । क्या आप ये विचार करते हैं कि एक बीज में अंकुर का निर्माण कैसे होता है? आप श्वास कैसे लेते हैं? अपना चलनवलन ( movement, action) कैसे होता है? अपने मस्तिष्क में कहाँ से शक्ति आती है? आप इस संसार में कैसे आये हैं?

ऐसी अनेक बातें हैं। क्या मनुष्य इन सबका अर्थ समझ सकता हैं? आप कहते हैं पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण की शक्ति है। लेकिन यह कहाँ से आयी हैं? आपको ऐसी बहुत सी बातें अभी तक मालूम नहीं हैं। आप भ्रम में हैं और इस भ्रम को हटाना जरुरी है। जब तक अपका भ्रम नहीं नष्ट होगा तब तक आपमें वह बढ़ता ही जाएगा। इस संसार में मनुष्य की उत्क्रान्ति के लिए उसके भ्रम का नष्ट होना जरुरी है । जिस समय मनुष्य ने या और किसी भी जीव ने उत्क्रान्ति के लिए यत्न किए तब इस संसार में अवतरण हुए हैं आपको मालूम है कि श्री विष्णु श्री राम अवतार लेकर जंगलों में घूमते थे । जिससे मनुष्य ये जान ले कि एक आदर्श राजा को कैसा होना चाहिए । इस लिए एक | सुन्दर नाटक उन्होंने प्रदर्शित किया। इसी प्रकार श्री कृष्ण का जीवन था। और इसी तरह श्री येशु ख्रिस्त का जीवन | था। श्री ख्रिस्त के जीवन की तरफ ध्यान दिया जाय तो एक बात दिखाई देती है। वह है उस समय लोगों की महामूर्खता, जिसके कारण इस महान व्यक्ति को सूली पर (फाँसी पर) चढ़ाया गया। इतनी मूर्खता कि ‘एक चोर को छोड़ दिया जाए या श्री ख्रिस्त को?’ ऐसा लोगों से सवाल किया गया तो वहाँ के यहदी लोगों ने श्री ख्रिस्त को फाँसी दी जाए यह माँग की। आज इन्हीं लोगों की क्या स्थिति है, ये आप जानते हैं। उन्होंने जो पाप किया है वह अनेक जन्मों में नहीं धूलने वाला। अभी भी ऐसे लोग अहंकार में डूबे हुए है। उन्हें लगता है, हमने बहुत बड़ा पुण्य कर्म किया है। अभी भी यदि उन लोगों ने परमेश्वर से क्षमा माँगी कि ‘हे परमात्मा, आपके पवित्र तत्व को फाँसी देने के अपराध के कारण हमें आप क्षमा कीजिए। हमने आपका पवित्र तत्व नष्ट किया इसके लिए हमें माफ कीजिए।’ तो परमात्मा लोगों को तुरन्त माफ कर देंगे। परन्तु मनुष्य को क्षमा माँगना बड़ी कठिन बात लगती है। वह अनेक दुष्टता करता है। दुनिया में ऐसे कितने लोग हैं जिन्होंने सन्तों का पूजन किया है। आप श्री कबीर या श्री गुरुनानक की बात लीजिए। हर पल लोगों ने उन्हें सताया । इस दुनिया में लोगों ने आज तक हर एक सन्त को दुःख के सिवाय कुछ नहीं दिया। परन्तु अब मैं कहना चाहती हूँ कि अब दुनिया बदल चुकी है । सत्ययुग का आरम्भ हो गया है। आप कोशिश कर सकते हैं, पर अब आप किसी भी सन्त-साधु को नहीं सता पाएंगे। इसका कारण श्री | ख्रिस्त हैं। श्री ख्रिस्त ने दुनिया में बहुत बड़ी शक्ति संचारित की है, जिससे साधु-सन्त लोगों को परेशान करने वालों को कष्ट भुगतने पड़ेंगे। उन्हें सजा होगी। श्री ख्रिस्त के एकादश रुद्र आज पूर्णतया सिद्ध है। और इसलिए जो | कोई साधु-सन्तों को सताएगा उनका सर्वनाश होगा। किसी भी महात्मा को सताना ये महापाप है। आप श्री येशु | ख्रिस्त के उदाहरण द्वारा समझ लीजिए । इस प्रकार की मूर्खता मत कीजिए । अगर इस तरह की मूर्खता आपने फिर की तो आपका हमेशा के लिए सर्वनाश होगा । श्री ख्रिस्त के जीवन से सीखने की एक बहत बड़ी बात है। वह है ‘जैसे रखूँ वैसे ही रहूँ’ उन्होंने अपना ध्येय कभी नहीं बदला । उन्होंने अपने आपको सन्यासी समझ कर अपने को समाज से अलग नहीं किया। उल्टे वे शादी ब्याहों में गए। वहाँ उन्होंने स्वयं शादियों की व्यवस्था की। बाइबल में लिखा है कि एक विवाह में एक बार उन्होंने पानी से अंगूर का रस निर्माण किया। ऐसा वर्णन बाइबल में है। अब मनुष्य ने केवल यही मतलब निकाला कि श्री ख्रिस्त ने पानी से शराब बनायी, अत: वह शराब पिया करते थे। आपने अगर हिब्रू भाषा का अध्ययन किया तो आपको मालूम होगा कि ‘वाइन’ माने शुद्ध ताजे अंगूर का रस उसका अर्थ दारू नहीं है ।

श्री ख्रिस्त का कार्य था आपके आज्ञा चक्र को खोलकर आपके अहंकार को नष्ट करना । मेरा कार्य है आप की कुण्डलिनी शक्ति का जागरण कर के आपके सहस्रार का उसके (कुण्डलिनी शक्ति) द्वारा छेदन करना। ये समग्रता का कार्य होने के कारण हर एक के लिए मुझे ये करना है। मुझे समग्रता में श्री ख्रिस्त, श्री गुरुनानक, श्री जनक व ऐसे अनेक अवतरणों के बारे में कहना है। उसी प्रकार मुझे श्री कृष्ण, श्री राम , इन अवतारों के बारे में भी कहना है। उसी प्रकार श्री शिवजी के बारे में भी, क्योंकि इन सभी देव – देवताओं की शक्ति आप में है। अब समग्रता ( सामूहिक चेतना) घटित होने का समय आया है। कलियुग में जो कोई परमेश्वर को खोज रहे हैं उन्हें परमेश्वर प्राप्ति होने वाली है । और लाखों की संख्या में लोगों को यह प्राप्ति होगी । इसका सर्व न्याय भी कलियुग में होने वाला है। सहजयोग ही आखिरी न्याय (Last Judgement) है । इसके बारे में बाइबल में वर्णन है। सहजयोग में आने के बाद आपका न्याय (Judgement) होगा। परन्तु आपको सहजयोग में आने के बाद समर्पित होना बहुत जरुरी है क्योंकि सब कुछ प्राप्त होने के बाद उसमें टिक कर रहना व जमकर रहना, उसमें स्थिर होना, ये बहुत महत्त्वपूर्ण है। बहुत लोग हमें पूछते हैं, “माताजी हम स्थिर कब होंगे?” ये सवाल ऐसा है कि, समझ लीजिए आप किसी नाव में बैठकर जा रहे हैं। नाव स्थित हुई कि नहीं, ये आप जानते हैं। या ऐसा समझ लीजिए आप साईकिल चला रहे हैं । वह चलाते समय जब आप ड्रगमगाते नहीं है कि आप का सन्तुलन हो गया व आप जम गए। ये जिस प्रकार आपकी समझ में आता है उसी प्रकार सहजयोग में आकर स्थिर हो गए हैं, ये स्वयं आपकी समझ में आता है। यह निर्णय अपने आप ही करना है। जिस समय सहजयोग में आप स्थित होते हैं उस समय निर्विकल्पता प्रस्थापित होती है । जब तक कुण्डलिनी शक्ति आज्ञा चक्र को पार नहीं कर जाती तब तक निर्विचार स्थिति प्राप्त नहीं होती । साधक में निर्विचारिता प्राप्त होना, साधना की पहली सीढ़ी है। जिस समय कुण्डलिनी शक्ति आज्ञा चक्र को पार करती है, उस समय निर्विचारिता | स्थापित होती है । आज्ञा चक्र के ऊपर स्थित सूक्ष्म द्वार येशु ख्रिस्त की शक्ति से ही कुण्डलिनी शक्ति के लिए खोला जाता है और ये द्वार खोलने के लिए श्री ख्रिस्त की प्रार्थना ‘दी लार्डस् प्रेअर’ बोलनी पड़ती है । ये द्वारा पार करने के बाद कुण्डलिनी शक्ति अपने मस्तिष्क में जो तालू स्थान (limbic area) है उसमें प्रवेश करती है। उसी को परमात्मा का साम्राज्य कहते हैं। कुण्डलिनी जब इस राज्य में प्रवेश करती है तब ही निर्विचार स्थिति प्राप्त होती है। इस मस्तिष्क के limbic area में वे चक्र हैं जो शरीर के सात मुख्य चक्र व और अन्य उपचक्रों को संचालित करते हैं। अब आज्ञा चक्र किस कारण से खराब होता हैं वह देखते हैं। आज्ञा चक्र खराब होने का मुख्य कारण आँखे हैं। मनुष्य को अपनी आँखों का बहुत ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि उनका बड़ा महत्त्व है अनधिकृत गुरु के सामने झुकने अथवा उनके चरणों में अपना माथा टेकने से भी आज्ञा चक्र खराब हो जाता है । इसी कारण जीजस ख्रिस्त ने अपना माथा चाहे जिस आदमी या स्थान के सामने झुकाने को मना किया है। ऐसा करने से हमने जो कुछ पाया है वह सब नष्ट हो जाता है। केवल परमेश्वरी अवतार के आगे ही अपना माथा टेकना चाहिए । दूसरे किसी भी व्यक्ति के आगे अपने माथे को झुकाना ठीक नहीं। किसी गलत स्थान के सम्मुख भी अपना माथा नहीं झुकाना चाहिए। ये बात बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। आपने अपना माथा गलत जगह पर या गलत आदमी के सामने झुकाया तो तुरन्त आपका आज्ञा चक्र पकड़ा जाएगा। सहजयोग में हमें दिखाई देता है, आजकल बहुत ही लोगों के आज्ञा चक्र

खराब है। इसका कारण है लोग गलत जगह माथा टेकते हैं या गलत गुरु को मानते हैं। आँखों के अनेक रोग इसी कारण से होते हैं । ये चक्र स्वच्छ रखने के लिए मनुष्य को हमेशा अच्छे पवित्र धर्म ग्रन्थ पढ़ना चाहिए । अपवित्र साहित्य बिलकुल नहीं पढ़ना चाहिए। बहुत से लोग कहते हैं ‘इसमें क्या हुआ? हमारा तो काम ही इस ढंग का है कि हमें ऐसे अनेक काम करने पड़ते है जो पूर्णत: सही नहीं है ।’ परन्तु ऐसे अपवित्र कार्यों के कारण आँखे खराब हो जाती | हैं। मेरी ये समझ में नहीं आता कि जो बातें खराब है वह मनुष्य क्यों करता है? किसी अपवित्र व गरन्दे मनुष्य को देखने से भी आज्ञा चक्र खराब हो सकता है। श्री ख्रिस्त ने बहुत ही जोर से कहा था कि आप व्यभिचार मत कीजिए । परन्तु आपसे कहती हूँ कि आप की नजर भी व्यभिचारी नहीं होनी चाहिए । उन्होंने इतने बलपूर्वक मैं हूं। कहा था, कि आपकी अगर नजर अपवित्र होगी तो आपको आँखों की तकलीफें होंगी। इसका मतलब ये नहीं कि अगर आप चष्मा पहनते है तो आप अपवित्र गलत व्यक्ति है। किसी एक उम्र के बाद चष्मा लगाना पड़ता है। जीवन की आवश्यकता है। परन्तु आँखे खराब होती हैं ये अपनी नजर स्थिर न रखने कारण। बहुत लोगों का चित्त बार बार इधर उधर दौड़ता रहता है। ऐसे लोगों को समझ नहीं कि अपनी आँखें इस प्रकार इधर उधर घुमाने के ये कारण खराब होती हैं। आज्ञा चक्र खराब होने का दूसरा कारण है मनुष्य की कार्यपद्धति । समझ लीजिए आप बहुत काम करते हैं, अति कर्मी हैं। अच्छे काम करते हैं। कोई भी बुरा काम नहीं करते। परन्तु ऐसी अति कार्यशीलता की वजह से, फिर वह अति पढ़ना, अति सिलाई हो या अति अध्ययन हो या अति विचारशीलता हो। इसका कारण है कि जिस समय आप अति कार्य करते हैं उस समय आप परमात्मा को भूल जाते हैं। उस समय अपने में ईश्वर प्रणिधान स्थित नहीं होता । कुण्डलिनी सत्य है। यह पवित्र है । ये कोई ढोंगबाजी या दुकान में मिलने वाली चीज़ नहीं है । ये नितान्त सत्य है। जब तक आप सत्य में नहीं उतरेंगे, तब तक आप ये जान नहीं सकते। वाम मार्ग (गलत मार्ग) का अवलम्बन करके आप सत्य को नहीं पहचान सकते । जिस समय आप सत्य से एकाकार होगे, तब ही आप जान सकते हैं कि सत्य क्या है, उसी समय आप समझेंगे, कि हम परम पिता परमेश्वर के एक साधन हैं, जिसमें से परमेश्वरी शक्ति का वहन (प्रवाह) हो रहा है, जो परमेश्वरी शक्ति सारे विश्व में फैली हुई है, जो सारे विश्व का संचालन करती है। उसी परमेश्वरी प्रेम शक्ति के आप साधन हैं । इसमें श्री ख्रिस्त का कितना बड़ा बलिदान है? क्योंकि उन्हीं के | कारण आपका आज्ञा चक्र खुला है। अगर आज्ञा चक्र नहीं खुला कुण्डलिनी का उत्थान नहीं हो सकता, तो क्योंकि जिस मनुष्य का आज्ञा चक्र पकड़ता है उसका मूलाधार चक्र भी पकड़ा जाता है। किसी मनुष्य का आज्ञा | चक्र बहुत ही ज्यादा पकड़ा होगा तो उसकी कुण्डलिनी शक्ति जागृत नहीं होगी। आज्ञा चक्र की पकड़ छुड़वाने के लिए हम कुंकुम लगाते हैं। उससे अहंकार व आपकी अनेक विपत्तियाँ दूर होती हैं। जब आपके आज्ञा चक्र पर कुंकुम लगाया जाता है तब आपका आज्ञा चक्र खुलता है व कुण्डलिनी शक्ति ऊपर जाती है। इतना गहन सम्बन्ध श्री ख्रिस्त व कुण्डलिनी शक्ति का है । जो श्री गणेश, मूलाधार चक्र पर स्थित रहकर आपकी कुण्डलिनी शक्ति की लज्जा का रक्षण करते हैं वही श्री गणेश आज्ञा चक्र पर उस कुण्डलिनी शक्ति का द्वार खोलते हैं। यह चक्र ठीक रखने के लिए आपको क्या करना चाहिए? उसके लिए अनेक मार्ग हैं । किसी भी अतिशयता

के कारण समाज दूषित होता है । और इसलिए किसी भी प्रकार की अतिशयता अनुचित है । संतुलितता से अपनी आँखों को विश्राम मिलता है। सहजयोग में इसके लिए अनेक उपचार हैं । परन्तु इसके लिए पहले पार होना आवश्यक है। उसके बाद आँखों के लिए अनेक प्रकार के व्यायाम है जिससे आपका आज्ञा चक्र ठीक रह सकता है। इसमें एक हैं अपना अहंकार देखते रहना और अपने आपसे कहना ‘क्यों? क्या विचार चल रहा है? कहाँ जा रहे हो?’ जैसे कि आप आईने में अपने आपको देख रहे हैं । उससे अहंकार से आँखों पर आने वाला तनाव कम हो जाता है। इसका महत्त्वपूर्ण इलाका (क्षेत्र, अंचल) सिर के पिछले भाग का वह स्थल है जो माथे (भाल) के ठीक पीछे स्थित है । यह उस क्षेत्र में स्थित है जो गर्दन के आधार (back of the neck) से आठ उंगलियों की मोटाई (लगभग पांच इंच) की ऊँचाई पर स्थित है। यह ‘महागणेश ‘ का अंचल ( इलाका) है । श्री गणेश ने ‘महागणेश’ के रूप में | | अवतार लिया और वही अवतार जीजस ख्रिस्त का है। श्री ख्रिस्त का स्थान कपाल (खोपड़ी) के केन्द्र (मध्य) | भाग में है और इसके चारों ओर एकादश रुद्र का साम्राज्य है। जीजस ख्रिस्त इस साम्राज्य के स्वामी हैं। श्री महागणेश और षटानन इन्हीं एकादश रुद्रों में से हैं। कुण्डलिनी जागृत होने के पश्चात यदि आप आँख खोलें तो अनुभव करेंगे कि आपकी आँखों की दृष्टि कुछ धुंधली हो गई है। इसका कारण यह है कि जब कुण्डलिनी जागृत होती है तब आपकी आँखों की पुतलियाँ कुछ फैल जाती हैं और शीतल हो जाती है। यह para sympathetic nervous system ( सुषुम्ना नाड़ी) के कार्य के फलस्वरूप होता है। जीजस ख्रिस्त के बारे में केवल सोचने से अथवा चिन्तन, मनन करने से आज्ञा चक्र को चैन प्राप्त होता है। साथ ही यह भी समझ लेना चाहिए कि जीजस ख्रिस्त के जीवन पश्चात निर्मित मिथ्या आचार विचार या उत्तराधिकारियों की श्रृंखलाओं का अनुसरण जीजस ख्रिस्त का मनन-चिन्तन नहीं है। अब जो कुछ सनातन सत्य है वह मैं आपको बताऊँगी । सर्वप्रथम किसी भी स्त्री की तरफ बुरी दृष्टि से देखना महापाप है। आप ही सोचिए जो लोग रात दिन रास्ते चलते स्त्रियों की तरफ बुरी नजरों से देखते हैं वे कितना महापाप कर रहे हैं? श्री ख्रिस्त ने ये बातें २००० साल पहले आपको कही हैं । परन्तु उन्होंने ये बातें खुलकर नहीं कही थी और इसलिए यही बातें मैं फिर से आपसे कह रही हूं। श्री ख्रिस्त ने ये बातें आपसे कहीं तो आपने उन्हें फाँसी पर चढ़ाया। श्री ख्रिस्त ने इतना ही कहा था कि ये बातें न करें, क्योंकि ये बातें गन्दी हैं। परन्तु ये करने से क्या होता है ये उन्होंने नहीं कहा था। गलत नजर रखने से उसके दुष्परिणाम क्या होते हैं, इसके बारे में उन्होंने कहा है। मनुष्य किसी पशु समान बर्ताव करता है क्योंकि रात दिन उसके मन में गन्दे विचारों का चक्र चलता रहता है। इसी कारण अपने योग शास्त्र में लिखा है अपनी चित्तवृत्ति को संभालकर रखिए और चित्त को सही मार्ग पर रखिए । अपना चित्त ईश्वर के प्रति नतमस्तक रखना चाहिए । हमें योग से बनाया गया है । हमारी भूमि योग भूमि है। हम अहंकारवादी नहीं है या हमारे में अहंकार आने वाला भी नहीं है । हमें अहंकारवादिता नहीं चाहिए । हमें इस भूमि पर योगी की तरह रहना है। एक दिन ऐसा आएगा जब हम सभी को योग प्राप्त होगा। उस समय सारी दुनिया इस देश के चरणों में झुकेगी। उस समय लोग जान जाएंगे श्री ख्रिस्त कौन थे ? कहाँ से आए थे और उनका इस भूमि पर यथाचित होगा । अपनी पवित्र भारत भूमि पर आज भी नारी की लज्जा का रक्षण होता है और उन्हें पूजन

सम्मान दिया जाता है। अपने देश में हम अपनी माँ को मान देते हैं। अन्य देशों के लोग जब भारत में आएंगे तब वे देखेंगे कि श्री ख्रिस्त का सच्चा धर्म वास्तव में भारत में अत्यन्त आदरपूर्वक पालन किया जा रहा है, ईसाई धर्मानुयायी राष्ट्रों में नहीं। श्री ख्रिस्त ने कहा कि अपना दोबारा जन्म होना चाहिए या आपको द्विज होना पड़ेगा। मनुष्य का दूसरा जन्म केवल कुण्डलिनी जागृति से ही हो सकता है । जब तक किसी की कुण्डलिनी जागृत नहीं होगी तब तक वह दूसरे जन्म को प्राप्त नहीं होगा और जब तक आपका दूसरा जन्म नहीं होगा तब तक आप परमेश्वर को पहचान नहीं सकते। आप लोग पार होने के बाद बाइबल पढ़िए। आपको आश्चर्य होगा कि उस में ख्रिस्तजी ने सहजयोग की महत्ता कही है, उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं। एक एक बात इतनी सूक्ष्मता में बताई है। परन्तु जिन लोगों को वह दृष्टि प्राप्त नहीं है वे इन सभी बातों को उल्टा स्वरूप दे रहे हैं। (मनमाने ढंग से उसकी व्याख्या कर रहे हैं।) वास्तव में बाप्तिस्म (baptism ) देने का अर्थ है कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करना और उसके बाद उसे सहस्रार तक लाना, तद्नन्तर सहस्रार का छेदन कर परमेश्वरी शक्ति और अपनी कुण्डलिनी शक्ति का संयोग घटित करना। यही कुण्डलिनी शक्ति का आखिरी कार्य है । परन्तु इन पाद्रियों को बाप्तिस्म की जरा भी कल्पना नहीं है । उल्टे वे अनाधिकार चेष्टा करते हैं, या फिर ऐसे ये पाद्रि भूत कामों में लगे हुए हैं । गरीबों की सेवा करो, बीमारों की सेवा करो वगैरा। आप कहेंगे ‘माताजी ये तो अच्छे हैं।’ हाँ ये अच्छा है, परन्तु ये परमात्मा का कार्य नहीं है। परमात्मा का ये कार्य नहीं है कि पैसे दे कर गरीबों की सेवा करें । परमेश्वर का कार्य है आपको उनके साम्राज्य में ले | जाना और उनसे भेंट कराना। आपको सुख, शान्ति, समृद्धि, शोभा व ऐश्वर्य इन सभी बातों से परिपूर्ण करना, यही परमेश्वर का कार्य है। कोई मनुष्य चोरी करता है या झूठ बोलता है या गरीब बनकर घूमता है, परमात्मा ऐसे मनुष्य के पांव नहीं पकड़ेंगे। ये सेवा का काम है, जो कोई भी मनुष्य कर सकता है। कुछ ख्रिश्चन लोग धर्मान्तर करने का काम करते हैं। जहाँ कुछ आदिवासी लोग होंगे वहाँ वे (ख्रिश्चन लोग) जाएंगे । वहाँ कुछ सेवा का काम करेंगे। फिर सब को ख्रिश्चन बनायेंगे। परन्तु एक बात समझना चाहिए कि ये परमात्मा का काम नहीं है । परमात्मा का कार्य अबाधित है। सहजयोग में लोगों की कुण्डलिनी जागृत करते ही लोग ठीक हो जाते हैं । हम सहजयोग में दिखावटी दयालुता का काम नही करते । परन्तु अगर हम किसी अस्पताल में गए तो २५- ३० बीमार को सहज (आसानी से) स्वस्था कर सकते हैं। उनकी कुण्डलिनी जागृत करते ही वे अपने आप स्वस्थ हो जाते हैं। श्री ख्रिस्त ने उन में बह रही उसी प्रेमशक्ति के द्वारा अनेक लोगों को स्वस्थ किया। श्री खरिस्त ने कभी किसी भी भौतिक वस्तुओं से | सहायता नहीं की। ये सब बातें आपको सुज्ञता (सूक्ष्मता) से समझ लेना आवश्यक है । पहले की गयी गलतियों की पुनरावृत्ति मत कीजिए। आप स्वयं साक्षात्कार प्राप्त कीजिए । ये आपका प्रथम कार्य है। आत्मसाक्षात्कार के बाद आपकी शक्तियाँ जागृत हो जाती है। इन जागृत शक्तियों से सहजयोग में कर्करोग (कॅन्सर) जैसी असाध्य बीमारियाँ ठीक हुई हैं। आप किसी को भी रोगमूक्त करा सकते हैं । कॅन्सर जैसी असाध्य बीमारियाँ केवल सहजयोग से ही ठीक हो सकती हैं। परन्तु लोग ठीक होने के बाद फिर से अपने पहले मार्ग और आदतों पर चले

जाते हैं। ऐसे लोग परमात्मा को नहीं खोजते । उन्हें अपनी बीमारी ठीक कराने के लिए परमेश्वर की याद आती है । अन्यथा उन्हें परमात्मा को खोजने की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती । जो मनुष्य परमात्मा का दीप बनना नहीं चाहते, उन्हें परमात्मा क्यों ठीक करे? ऐसे लोगों को ठीक किया या नहीं किया, उन से दुनिया को प्रकाश नहीं मिलने वाला। परमात्मा ऐसे दीप जलाएंगे जिनसे सारी दुनिया प्रकाशमय हो जाएगी । परमात्मा मूर्ख लोगों को क्यों ठीक करेंगे। जिन लोगों में परमेश्वर प्रीति की इच्छा नहीं, परमेश्वर का कार्य करने की इच्छा नहीं, ऐसे लोगों को | परमात्मा क्यों सहायता करें ? गरीबी दूर करना अथवा अन्य सामाजिक कार्ों को ईश्वरीय कार्य नहीं समझना चाहिए । कुछ लोग इतने निम्न स्तर पर परमेश्वर का सम्बन्ध जोड़ते हैं कि एक जगह दुकान पर ‘साईंनाथ बीड़ी’ लिखा हुआ था। यह परमेश्वर का मज़ाक उड़ाना, परमात्मा का सरासर अपमान करना है। सभी बातों में मर्यादा होनी चाहिए । हर एक बात परमात्मा से जोड़कर आप महापाप करते हैं, ये समझ लीजिए । ‘साईंनाथ बीड़ी’ या ‘लक्ष्मी हींग’ ये परमात्मा का मज़ाक उड़ाना हुआ। ऐसा करने से लोगों को क्या लाभ होता है? कुछ लोग कहते हैं ‘माताजी, इससे हमारा शुभ हुआ है।’ शुभ का मतलब है ज्यादा पैसे प्राप्त हुए। इस तरह से धन्धा करने से कष्ट होगा। इससे परमात्मा का अपमान होता है। श्री ख्रिस्त ने सारी मनुष्य जाति के कल्याणार्थ व उद्धारार्थ जन्म लिया था | वे किसी जाति या समुदाय की निजी सम्पदा नहीं थे। वे स्वयं ॐकार रूपी प्रणव थे । सत्य थे। परमेश्वर के अन्य जो अवतरण हुए उनके शरीर | | पृथ्वी तत्त्व से बनाये गये थे। परन्तु श्री ख्रस्त का शरीर आत्म तत्त्व से बना था। और इसलिए मृत्यु के बाद उनका पुनरुत्थान हुआ। और उस पुनरुत्थान के बाद ही उनके शिष्यों ने जाना कि वे साक्षात् परमेश्वर थे । बाद में तो फिर उनके नाम का नगाड़ा बजने लगा, उनके नाम का जाप होने लगा और उनके बारे में भाषण होने लगे। वे परमात्मा के अवतरण थे, यह मुख्य बात है। यदि लोग उनके उस स्वरूप को, अवतरण को पहचान कर अपनी आत्मोन्नति करें तो चारों तरफ आनन्द ही आनन्द होगा । आप सब लोग परमेश्वर के योग को प्राप्त हों । अनन्त आशीर्वाद !