How realisation should be allowed to develop Caxton Hall, London (England)

          बोध को कैसे विकसित होने दिया जाना चाहिए  कैक्सटन हॉल, लंदन, इंग्लैंड। 15 अक्टूबर 1979। आप में से अधिकांश यहाँ सहजयोगी हैं। अब जिन लोगों को साक्षात्कार मिल गया है, जिन्होंने स्पंदनों को महसूस किया है, उन्हें पता होना चाहिए कि वे अब दूसरे ही स्वरुप में विकसित हो रहे हैं । अंकुरण शुरू हो गया है, और आपको अंकुरण को अपने तरीके से काम करने देना चाहिए। लेकिन सामान्य तौर पर, जब हमें बोध भी हो जाता है, तो भी हमें यह एहसास भी नहीं होता है कि यह एक जबरदस्त चीज है जो हमारे भीतर घटित हुई है। कि यह प्रस्फुटन, जो एक असंभव कार्य है, हमारे भीतर घटित हो गया है, और इसे धीरे-धीरे कार्यान्वित होना है। इसे विकसित हो कर, और हमें उसमें उत्क्रांति प्रदान करना है, और चूँकि हम इसे महसूस नहीं करते हैं, हम इसे (आत्मसाक्षात्कार को )उतनी गंभीरता से नहीं लेते हैं, जितना हमें लेना चाहिए। इसके अलावा, वे ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं जिन्होंने वायब्रेशन महसूस नहीं किया है, वे इस क्षेत्र को नहीं जानते हैं; उन्होंने इसे कभी नहीं देखा है। जैसा कि गुरु नानक ने कहा है, यह ‘अलख’ है (अलक्ष्य :अदृश्‍य)। उन्होंने इसे नहीं देखा है, वे इसके बारे में नहीं जानते हैं, वे नहीं जानते कि ईश्वर की एक शक्ति मौजूद है, जो आपको समझती है, समन्वय करती है, सहयोग करती है, जो सामूहिक अस्तित्व में काम कर रही है, जो आपको जागरूक करती है, आपको उस सामूहिक अस्तित्व के बारे में और दूसरों के बारे में Read More …