How to go beyond the ego and know yourself, Meditation

London (England)

1979-11-18 How To Get To Meditation, London, 32' Download subtitles: DE,EN,FI,IT,RU,ZH-HANS,ZH-HANT (7)View subtitles:
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                         अहंकार के पार जाकर और स्वयं को कैसे जानें

डॉलिस हिल आश्रम, लंदन (यूके) में सलाह, 18 नवंबर 1979

लेकिन सहज योग, उस महान घटना की उत्प्रेरणा है जिस के माध्यम से ईश्वर की रचना अपनी परिपूर्णता को प्राप्त करने वाली है और उसका अर्थ जानने वाली है  – यह इतना महान है! शायद हमें इसका एहसास नहीं है। लेकिन जब हम कहते हैं, “हम सहजयोगी हैं,” तो आपको यह जानना होगा कि, एक सहज योगी होने के लिए, आपका सहज योग के सत्य के साथ कितना तादात्म्य होना चाहिए, और इतनी सारी गलत पहचान जो आप पर छायी हुई हैं, आपको इस से छुटकारा पाना चाहिए। 

लोग इसे एक त्याग कहते हैं। मुझे नहीं लगता कि यह बलिदान है। अगर आपको लगता है कि कुछ आपके रास्ते में बाधा डाल रहा है तो आप उस बाधा को दूर करने का प्रयास करेंगे। उसी तरह यदि आप अपने अवरोधों से अलग खड़े हो जायेंगे, तब आप समझ पाएंगे कि ये रुकावटें आपके रास्ते में खड़ी हैं और ये आपकी नहीं हैं और आपकी प्रगति को रोक रही हैं।

तो, आपको इस गलत पहचान को अपने दिमाग से पूरी तरह से निकाल देना चाहिए और अधिक से अधिक स्व बनने का प्रयास करना चाहिए, न कि गलत पहचान। यह एक समस्या है, मुझे लगता है, यहाँ के लोगों की है। जब भी मुझे कोई शिकायत या कुछ भी मिलता है, मैं समझती हूं कि सहज योग के बारे में अभी भी समझ का स्तर उस बिंदु तक नहीं है। यह एक जबरदस्त काम है! और उसके लिए, यदि आप वे लोग हैं जिन्हें उभर कर सामने आना है और यदि आप वे लोग हैं जिन्हें इससे संघर्ष करना है, तो आपको इसे पूरी तरह से समझना होगा और यह भी समझना होगा कि आप इसके लिए कहां खड़े हैं: आपको कितना करना है ? आपको खुद को कितना सुधारना है? क्योंकि आप वह लोग हैं जो सहज योग को उस स्थिति में ले जाने वाले हैं जहां उसे पहुंचना है। क्योंकि जहां तक ​​मेरा सवाल है, मुझे अब और कुछ नहीं करना है। मैंने यह किया है। अब इसे ग्रहण करना तुम पर निर्भर है, तुम्हें उसमें आत्मसात करना है और तुम्हें पूरी चीज को परिवर्तित करना है। यह आपका काम है और इसलिए यह एक गंभीर मामला है।

दूसरी बात, मैं हमेशा से कहती आई हूँ कि अहंकार की समस्या के कारण हम बहुत बिखर गए हैं। तुम इतने बिखर गए हो कि परमात्मा से संबंध कभी ठीक से स्थापित नहीं हो पाता। जैसा कि मैंने कहा है, कि यह यंत्र (माइक्रोफोन) यदि इसे पांच भागों में विभाजित किया गया है और सभी पांच भाग आपस में लड़ रहे हैं, तो आप इस उपकरण के माध्यम से कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते, हालांकि यह मुख्य उर्जा से जुड़ा हुआ है। उसी तरह यदि आप अभी भी विघटित रहते हैं तो आपको वह कनेक्शन नहीं मिल सकता है।

उदाहरण के लिए,मैंने देखा है, लोग यहाँ सहज योग के लिए आते हैं, अब उनके अन्य हित हैं और अन्य प्राथमिकताएं और अन्य चीजें हैं जो उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। वे हर समय उसके लिए अपना समय बर्बाद कर रहे हैं, और फिर वे कहेंगे कि, “माँ, हम सहज योग में ज्यादा प्रगति नहीं कर पा रहे हैं।” यदि आप निर्णय लेते हैं, जैसा कि उन्होंने (श्री वेणुगोपालन) आपसे कहा है कि,  “पहले हमें सहज योग करना है और अन्य चीजें गौण हैं,” तभी वास्तव में सहज योग वास्तव में आप के अंदर स्थापित हो सकता है।

हमारे पास बहुत उच्च स्तर के कुछ सहजयोगी होंगे, मुझे पता है कि, और हमारे पास कुछ बहुत ही औसत दर्जे के होंगे, कुछ बिल्कुल बेकार होंगे और कुछ बिल्कुल फेंक दिए जाएंगे। हमारे पास सभी प्रकार होंगे। वो भी मुझे पता है। अब यह आपको तय करना है कि आप किन में आते हैं? आप कहाँ तक पहुँचते हैं? यदि आप अन्य सहज योगियों और छोटी, छोटी-छोटी बातों और तुच्छ बातों के बारे में सोचने में अपना समय बर्बाद करने जा रहे हैं, जैसा कि उन्होंने कहा है, तो आपका बिखराव बढ़ने वाला है, आप बहुत अधिक पृथक होने जा रहे हैं क्योंकि यह सब निर्णय आपके अहंकार के माध्यम से लिया जाता है कि: “मुझे यह पसंद नहीं है, मैं इसे नहीं करता, मैं इसे नहीं देखता।” यदि आप किसी न किसी तरह अपने अहंकार को काम करते हुए देख पायें , तो आप इससे छुटकारा पा सकते हैं। और यही वह काम है जोकि करना है; अहंकार से लड़ना नहीं है। मैं कभी नहीं कहती, “अहंकार से लड़ो!” लेकिन समर्पण ही एकमात्र रास्ता है जिससे तुम्हारा अहंकार जा सकता है। और यही कारण है कि, जैसा कि आपने देखा है, पश्चिम में प्रगति, भारत की तुलना में बहुत कम है। अब, उनका मामला लें, मैं कहूंगी, [श्री] वेणुगोपालन का विशेष मामला: वह वास्तव में उल्लेखनीय हैं क्योंकि वह एक ऐसे व्यक्ति हैं जो भारत में एक बहुत बड़े पद पर आसीन हैं। यहाँ मैं देखती हूँ, भले ही कोई व्यक्ति बर्तन धोने वाला हो और वह सहज योग में आता है, फिर भी उसका अहंकार इतना बड़ा होता है कि हमारे प्रधान मंत्री के पास भी इतना बड़ा अहंकार नहीं होगा! मेरा मतलब है, जिस तरह से वह बात करेगा, “मुझे यह पसंद नहीं है, मैं यह करता हूं, इस तरह !” जिस तरह से लोग बात करते हैं मैं खुद हैरान हूं! आप देखिए, हर कोई इंग्लैंड का राजा बन गया है या क्या? जिस तरह से वे बात करते हैं! किसी व्यक्ति को यहाँ आने वाले लोगों को यह बताना चाहिए कि, “माताजी की ऊर्जा को बहस में और इस और उस में बर्बाद मत करो,” क्योंकि यहाँ हर कोई सोचता है कि उसका कोई पार नहीं है, और यही उनके लिए सबसे बड़ी बाधा है, यहां तक ​​कि जब वे पहली बार आते हैं, तुम्हें यह बहुत मुश्किल लगता है! मुझे उनके अहं के लिए अपनी सारी प्रशंसा हर समय प्रदर्शित करना पड़ती है, बस उन्हें संतुष्ट करने के लिए ताकि किसी तरह वे आ जाएं। और इस तरह प्रगति कम हो पाती है।

अब, उनके मामले में, (वेणुगोपालन) वह एक ऐसे व्यक्ति है जो सभी प्रकार के भयानक ‘गुरुओं’ के पास रहे है और भारत में एक और अति कि सभी संतों का अवश्य ही सम्मान करना चाहिए इस कारण उनकी पत्नी भी सभी प्रकार के भयानक ‘गुरुओं’ के पास गई है। लेकिन आजकल साधु नकली संत हैं, नकली संत ही नहीं, उनमें से कुछ तो शैतान भी हैं! तो वे यह नहीं कहने जा रहे हैं, “हम शैतान हैं।” जब वे यह नहीं कहते कि वे शैतान हैं या जो कुछ भी है, वे अपने असली रूप में तो आते नहीं हैं, फिर ये सरल, निर्दोष लोग, जो ईश्वर को खोज रहे हैं, बस उनके पास जाते है, अपनि भावनाएं दे देते हैं, सब कुछ करते हैं और फिर वे जान पाते हैं कि वे शैतान हैं। एक बार जब उन्हें पता चलता है कि वे शैतान हैं, तो वे हैरान रह जाते हैं। फिर वे वहां से वापस आते हैं, दूसरे गुरु के पास जाते हैं, दूसरे गुरु के पास जाते हैं, लेकिन नुकसान हो जाता है। लेकिन वे उस नुकसान से छुटकारा पा लेते हैं क्योंकि वे पहचानते हैं कि नुकसान हो गया है और वे जानते हैं कि सत्य क्या है, क्या उम्मीद की जानी चाहिए। मैं कहूंगी कि यह उस देश को आशीर्वाद प्राप्त है कि लोग जानते हैं कि क्या करना है। लोग नहीं जाना चाहेंगे, जो वास्तव में बहुत अच्छी गुणवत्ता वाले लोग हैं, वे किसी ऐसे व्यक्ति के पास नहीं जाएंगे जो किसी प्रकार की सनसनी या चमत्कार दिखाता है – कोई जादू  – वे नहीं जाएंगे, लेकिन वे अन्य रहस्यमय लोगों के पास जाएंगे, जो बहुत चालाक हैं और वे एक और तरह का दिखावा करते हैं और सिर्फ इतना कहते हैं, “नहीं, नहीं, यह वह तरीका है जिससे आप उच्चतम प्राप्त कर सकते हैं,” और इसी तरह भारत में गाँव के लोगों और जिले के कुछ लोगों को छोड़कर अधिकांश सहज योगी  – शहर के अधिकांश लोग किसी न किसी गुरु या किसी के पास भी रहे हैं। लेकिन इतना सब होने के बाद भी उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया है। मैंने उनसे कहा है, “तुम्हें उन्हें जूतों से पीटना है।” वे सब कुछ सुबह से शाम तक करेंगे… हर दिन वह एक घंटे के लिए अपनी साधना करते है, हालांकि वह बहुत व्यस्त व्यक्ति है। यहां सुबह जागने के लिए भी लोग परेशान रहते हैं। मेरा मतलब है,  ऐसे धीमी गति से चलने वाले लोगों के साथ आप क्या कर सकते हैं? आप देखिए, यह बिल्कुल मुश्किल है!

और यही मुझे लगता है कि हमें समझना चाहिए कि पश्चिम में हमारी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, क्योंकि यह लंदन में होना है, शुरुआत में इंग्लैंड में होना है, और इसलिए आप एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी वहन करते हैं बड़ी जिम्मेदारी। आपको अपना मूल्यांकन करना होगा और आपको बार-बार सहज योग का मूल्यांकन करना होगा। और जान लें कि जो चीज आपको धीमा बनाती है वह है आपका अहंकार – या यहां तक ​​​​कि प्रति-अहंकार भी है, इसमें कोई संदेह नहीं है – लेकिन अहंकार मुख्य समस्या है। मुझे आपको बताना होगा कि अहंकार मुख्य समस्या है लेकिन मैं किसी से यह कहने की हिम्मत नहीं करती कि, “यह तुम्हारा अहंकार है,” क्योंकि वह मेरे ही माथे पड़ेगा। लेकिन अपने अहंकार को देखने की कोशिश करो, यह कैसे भटक रहा है, क्योंकि,  आप जो खोज रहे हैं, यह आपका अपना आनंद है  यह आपकी अपनी संपत्ति है जिसे आप खोज रहे हैं, यह आपका अपना है जो आपसे छिपा हुआ है, जिसके लिए आप सदियों से खोज रहे हैं ; यही मुझे आपके लिए उजागर करना है। उस व्यक्ति के साथ क्या बहस करें, जो आपको सर्वोच्च देने की कोशिश कर रहा है? यह सिर्फ ऊर्जा की बर्बादी है। इन बातों पर, फालतू की बातों में, दोष खोजने में अपनी ऊर्जा बर्बाद मत करो।

अब वह हमारे दिल्ली कैंप का आयोजन करते रहे हैं, उन्होंने ही हमारी किताब और सभी की छपाई की व्यवस्था की है। मुझे वहां कोई समस्या नहीं पता है। आप बस उन्हें बताएं कि, “यह होना ही है,” “ठीक है!” मुझे नहीं पता कि कैसे यह काम हो जाता है। आप दिल्ली में रुके हैं। आपने देखा है कि कितने लोग थे। कभी कोई समस्या नहीं! क्या आपने किसी को शिकायत करते सुना? या कोई आपस में झगड़ रहा है या आपस में लड़ रहा है? ऐसा कुछ नहीं! देखो, यह विवेक की निशानी भी नहीं है। हर समय एक-दूसरे में दोष खोजने की कोशिश करना या खुद को दोष देने की कोशिश करना। दोनों बातें गलत हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि विवेक में प्रगति करना है, हमें विवेक में बढ़ना चाहिए। हम स्वयं देखेंगे कि हम विवेकवान और समझदार होते जा रहे हैं।

आप में से कुछ वास्तव में बहुत बड़े हो गए हैं और आप में से कुछ अभी भी ऊपर और नीचे जाते हैं, और आप में से कुछ अभी भी बहुत नीचे हैं। तो हम सभी को प्रगति करना है और हम सभी को एक साथ जाना है। अगर किसी ने भी कुछ हासिल कर लिया है तो यह सहज योग के लिए किसी काम का नहीं है, जैसा कि मैंने आपको बताया है, यह एक सामूहिक रूप से कार्यान्वित होने वाली बात है। आप सभी को इस पर काम करना है और यह इतना प्यारा है कि आज पूरी दुनिया में आपके सगे भाई-बहन हैं। जब आप पूरे मन से वहां जाएंगे तो वे आपका स्वागत करने जा रहे हैं जैसे आपने उनका पूरे दिल से स्वागत किया है। लेकिन हम सभी को उत्थान करना चाहिए! एक ऐसे मुकाम पर आ जाएं, जहां हम एक-दूसरे का सामना पूरे प्यार से, खुलेपन से, बिना किसी चिंता के, बिना किसी डर के कर सकें; परन्तु बस कि वे तुम्हारे भाई हैं और तुम उनके भाई हो और तुम्हें उनसे प्रेम करना है।

यह तभी संभव है जब हम यहां अपने डर से बाहर निकलेंगे। क्योंकि इसका एक दूसरा पक्ष यह भी है कि भय हमेशा अहंकार को रहता है; चूँकि वह दूसरों पर आक्रमण करता है,  इसलिए वह भी डरता है क्योंकि वह जानता है कि दूसरे आक्रमण कर सकते हैं।

तो यह एक ऐसा बिंदु है जिस पर हमें विचार करना है। लेकिन इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि किसी भी तरह से खुद का तिरस्कार करें, कभी नहीं! आप संत हैं, आपको यह पता होना चाहिए। आप साक्षात्कारी आत्मा हैं! इस दुनिया में साक्षात्कारी आत्माएं हैं ही कितनी? कुंडलिनी को ऊपर उठाने वाले कितने हैं? कितने ऐसे हैं जो समझते हैं कि वायब्रेशन क्या है?

मैं गुरु पूजा पर, आपको बताने जा रही हूं कि, आपने क्या हासिल किया है, और आपके भीतर कितनी चीजें हैं, जो अभी बनी हुई हैं, जो काम कर रही हैं, और सहज योग के माध्यम से आपके चक्र कैसे जाग्रत होते हैं। जैसा कि वे कहते हैं, “हाँ, ऐसा घटित हुआ है।” लेकिन इसके बारे में हम कर क्या रहे हैं? क्या आप जानते हैं कि, यह किसी के साथ हो सकने वाली महानतम घटना है। आप यह भी जानते हैं कि यह सबसे बड़ी घटना है अंतिम न्याय के रूप जिसकी भविष्यवाणी बहुत पहले कर दी गई थी। आप जानते हैं कि इस तरह से आपका आकलन किया जा रहा है, इसलिए हमें बहुत मेहनत करनी है, हमें काम करना है। यह आपको सहजता से दिया गया है, ठीक है, लेकिन इसे बनाए रखने के लिए, इस में और उत्थान करने के लिए, उसे बनाए रखने के लिए, हमें इस पर ईमानदारी से एक बहुत ही विनम्र दृष्टिकोण के साथ काम करना होगा – अधिक से अधिक प्राप्त करना, इसे अपने अस्तित्व में आत्मसात करना। इसे अपने अस्तित्व में बहने दें, इसे पूरी तरह से आच्छादित होने दें। वह आनंद, वह शाश्वत आनंद आप में आए। मैं इसके लिए बहुत चिंतित हूं। अपने आप को छोटा मत बनाओ। एक वृहद दृष्टिकोण रखें, ऊँचे विचार रखें क्योंकि अब आप बड़ी, सबसे बड़ी, सबसे ऊँची, सबसे विशाल, विराट से संबंधित हैं! अगर आपको अपने महत्व का एहसास होगा तो आप इसे पूरा करेंगे।

देखिए, अगर आप किसी भारतीय सहज योगी को देखेंगे तो हैरान रह जाएंगे! वह केवल दो, तीन घंटे या चार घंटे ही सो पाता है, लेकिन फिर भी वह अपनी साधना नहीं छोड़ेगा। अगर वह अपनी पूरी नींद ले सकता है तो ठीक है। पहली चीज जो वे सुनिश्चित करते हैं, वह है, “सुबह साधना के लिए एक घंटा। किसी तरह मुझे यह निकालना ही है। ” लेकिन नींद ? हम जिंदगी भर सोते रहे हैं! हमें खुद को सुधारना है, हमें प्रगति करना है, हमें आगे बढ़ना है – अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए। यही मुख्य बात है! अपना स्वार्थ देखिये, मैं बता रही हूँ! स्व को जानना सबसे बड़ा स्वार्थ है। यदि आप स्व को नहीं जानते हैं, तो सारा स्वार्थ व्यर्थ है। जैसा कि आप एक स्वार्थ कहते हैं, संस्कृत में इसे ‘स्वार्थ’ कहा जाता है। स्वार्थ का अर्थ है ‘स्वार्थ’। यदि आप इसे ‘स्व’ +’अर्थ’ इस तरह संधि विच्छेद करते हैं – यदि आप अपने ‘स्व’ का अर्थ जानते हैं, जिसका अर्थ है ‘स्व’, तो यह सबसे बड़ा स्वार्थ है।

तो यह ऐसा ही है और हम बहुत खुश हैं कि वह यहां है। हम भारत भी जा रहे हैं, अगले साल हम भी भारत जाने की योजना बना रहे हैं और आप उनसे मिलने जा रहे हैं। उनमें से बहुत से दिल्ली और बॉम्बे आ सकते हैं। वे सभी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं, वे सभी योजना बना रहे हैं कि कैसे आपका स्वागत किया जाए, वे इतने प्रसन्न हैं कि लंदन और दुनिया भर से इतने सारे सहजयोगी आ रहे हैं। और आप जानते हैं कि वे आपकी देखभाल कैसे करते हैं और कैसे खुश हैं और कैसे आनंदित हैं।

और कुछ चीजें निश्चित रूप से हमारे साथ गलत हुई हैं, हम यह जानते हैं। हमें इन्हें समझना चाहिए क्योंकि ये हमारे ज्यादा सोचने और ज्यादा पढ़ने और जरूरत से ज्यादा वर्चस्व होने की परेशानियां हैं लेकिन इनसे हम बहुत आसानी से छुटकारा पा सकते हैं। यह केवल स्व के निर्लिप्त करने के लिए है और खुद को अपने आप को संबोधित करते हुए देखना है कि, “अब श्रीमान आप कैसे हैं?” अगर आप ऐसा कहते हैं, तो तुरंत आपका चित्त जाएगा,  आप खुद अपने बाहरी अस्तित्व को देखेंगे। यह बहुत महत्वपूर्ण है। जितना अधिक आप खुद को स्पष्ट रूप से देखते हैं, उतना ही अच्छा है। आपको खुद का सामना करना होगा। और आप सामना नहीं करना चाहते हैं, आप स्वयं का सामना करने से डरते हैं, क्योंकि आप दूसरों पर हमला करते रहे हैं और आप एक तरह से खुद पर आक्रमण करने से डरते हैं। लेकिन कोई आक्रामकता नहीं होगी क्योंकि वह आदर्श स्थिति है जहां आप खुद को देखते हैं और न ही आप किसी पर हमला करते हैं और न ही आप पर किसी का हमला होता है, आप बस खुद को स्पष्ट रूप से देखते हैं। और यही आपको देखना है।

धीरे-धीरे आप अपने चक्रों को देखने लगते हैं, अपनी समस्याओं को, अपनी चीज को देखते हुए और आप जानते हैं कि कैसे यह धीरे-धीरे विकसित होता है। लेकिन हर कोई जल्दी परिणाम चाहता है। यह ठीक है, यदि आप शीघ्र परिणाम चाहते हैं, तो ठीक है, क्या आप ऐसे हैं? यदि आप ऐसे हैं तो आपको शीघ्र परिणाम प्राप्त होंगे; यदि आप नहीं हैं, तो अपने साथ धैर्य रखें, मेरे साथ नहीं, अपने साथ, मैं कह रही हूं, आपको धैर्य रखना होगा, क्योंकि आपके साथ एक समस्या है इसलिए आपको अपने साथ धैर्य रखना होगा, किसी और के साथ नहीं – यही मुख्य बिंदु है। यदि आप अपने आप में धैर्य रखते हैं, तो जो आपको मिलने वाली है वह एक लंबे समय से वादा की गई चीज है। लेकिन आपको खुद के साथ धैर्य रखना सीखना चाहिए और खुद पर गुस्सा नहीं करना चाहिए, खुद को घटिया नहीं करना चाहिए या दूसरों पर या खुद पर हमला नहीं करना चाहिए। यह बहुत सरल बात है, यह करना सबसे आसान काम है, लेकिन हमारे जटिल जीवन और हमारी जटिल सोच के कारण हम चीजों में काफी लिप्त हो गए हैं। इसे आसानी से निकाल बाहर किया जा सकता है, आप बिना किसी कठिनाई के बस इससे बाहर निकल सकते हैं। मुझे पता है कि आप ऐसा कर सकते हैं इसलिए इन सभी चीजों को भूल जाइए जैसे, “मेरे पिता, मेरी बहन, मेरे भाई।” जैसे ही आपका जीवन सीधा चलेगा, ये सभी समस्याएं कुछ ही समय में खाक हो जाएंगी। सब कुछ स्वाहा हो जाएगा, आपके प्रकाश के अलावा कुछ नहीं बचेगा और अन्य जो आपके पास आत्मज्ञान के लिए आएंगे,

मुझे पता है कि गुरु पूजा के लिए आपका एक बड़ा दिन होने वाला है। इससे पहले मैं आपसे अनुरोध करूंगी कि आप खुद को तैयार करें। मैं कुछ महान कर सकती हूं लेकिन मेरे पास एक उचित प्राप्तकर्ता होना चाहिए तो फिर उस के लिए आपको खुद को तैयार करना चाहिए। इसके बारे में सोचो – क्या आप दूसरों से प्रेम करते हैं? क्या आप प्यार में हैं? क्या आप सभी के प्यार में हैं? यह सोचना कि आप सभी से प्यार करते हैं, कितनी बड़ी बात है! मेरा मतलब है कि तुम मुझसे पूछो। सब कहते हैं, “माँ, आप बहुत जवान लगती हो! आप कैसे दिखते हैं?” ऐसा इसलिए है क्योंकि मैं हमेशा सोचती हूं कि मुझे कितना प्यार करना है। आप देखिये, मुझे दूसरों को इतना प्यार देना है। ज़रा सोचिए कि दूसरों से प्यार करना कितना अच्छा है। आप जानते हैं कि लोग मेरे साथ कभी-कभी कैसा व्यवहार करते हैं, कोई बात नहीं, फिर भी मैं प्रेम करूंगी। मुझे इस खेल में मजा आता है। आपको उसी प्रकार प्रेम करना चाहिए, और प्रेम वह चीज है जो इतनी खूबसूरती से प्रकट होने वाली है जैसे कमल अपनी पंखुड़ियां खोलता है और सुंदर सुगंध बहने लगती है। ऐसे ही तुम्हारा हृदय खुल जाएगा और प्रेम की सुगंध सारे संसार में फैल जाएगी, लोगों में गूंज उठेगी। मुझे पता है कि ऐसा हो सकता है, जितनी जल्दी उतना बेहतर होगा और चुनाव आपका अपना है आपको क्या चुनना है।

इसलिए मैं बहुत खुश हूं क्योंकि इतना खूबसूरत गाना सुनना और वह भी क्रिसमस से ठीक पहले जो मेरे लिए बहुत बड़ी बात है, आप जानते हैं। और इसी तरह अब हम एक और क्रिसमस मना रहे हैं, क्रिसमस हमारे भीतर उत्पन्न हुए एक नए ईसा-मसीह का जश्न मनाने के लिए। आइए हम उनके आगमन की तैयारी करें और आप तैयारी की प्रकार करते हैं, यह खुद से दूर भागकर नहीं है, फालतू की बातों में नहीं पड़ना है, बल्कि इसे खूबसूरती से कार्यान्वित करना है। अगर प्राणों के इस मंदिर में स्वयं को स्थापित करना है तो सफाई, सफाई करनी होगी।

परमात्मा आप सबको आशिर्वादित करें।

(निर्देशित ध्यान इस प्रकार है)

अब ध्यान करने से पहले, अपने दिल में, या, आपको अपने हृदय में झांकना चाहिए, और उसके अंतरतम भाग में वहां अपने गुरु को रखने का प्रयास करें। हृदय में स्थापित होने के बाद आपको पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ उसे प्रणाम करना चाहिए।

अब आप अपने मन से जो कुछ भी करते हैं, बोध के बाद, वह कल्पना नहीं है क्योंकि अब आपका मन, आपकी कल्पना, स्वयं प्रबुद्ध है।

तो अपने आप को इस तरह पेश करें कि आप अपने गुरु के चरणों में नतमस्तक हों और अब ध्यान के लिए आवश्यक स्वभाव, या ध्यान के लिए आवश्यक वातावरण के लिए प्रार्थना करें।

ध्यान तब होता है जब आप परमात्मा के साथ एक हो जाते हैं।

अब अगर विचार आ रहे हैं, तो पहले आपको पहला मंत्र बोलना होगा, और फिर अंदर देखना होगा। साथ ही आपको गणेश जी का मंत्र बोलना चाहिए, इससे कुछ लोगों को मदद मिलेगी। और फिर आपको अंदर देखना चाहिए और खुद देखना चाहिए कि सबसे बड़ी बाधा क्या है।

पहली बाधा विचार। अब विचार के लिए आपको निर्विचार का मंत्र बोलना होगा, कि, “त्वमेव साक्षात निर्विचार साक्षात श्री माताजी निर्मला देवी नमो नमः”

तीन बार कहना चाहिए।

(योगी मां द्वारा सुझाए गए मंत्र का थोड़ा अलग संस्करण तीन बार दोहराते हैं।)

अब हम आपके अहंकार की बाधा पर आते हैं क्योंकि, आप देखते हैं, विचार अब रुक गया है, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन अभी भी सिर पर दबाव है। तो, अगर यह अहंकार है, तो आपको कहना होगा, “त्वमेव साक्षात महतहंकारा …” – महत का अर्थ है ‘महान’, अहंकार का अर्थ है ‘अहंकार’ – “… सक्षात श्री माताजी निर्मला देवी नमो नमः।” इसे तीन बार कहें।

(योगी फिर से माँ द्वारा सुझाए गए मंत्र का थोड़ा अलग संस्करण तीन बार दोहराते हैं।)

अब, अब भी, यदि आप पाते हैं कि अहंकार अभी भी है, तो आपको अपने बाएं बाजु को अपने हाथ से वापस दाहिने बाजु तरफ धकेलने के लिए उठाना होगा; एक हाथ तस्वीर की ओर।

बाईं ओर को ऊपर और दाईं ओर को नीचे की ओर धकेलें ताकि अहंकार और प्रति-अहंकार संतुलन प्राप्त कर सकें। इसे सात बार करें। इसे महसूस करने की कोशिश करें, आप अंदर कैसा महसूस कर रहे हैं, आप देखें।

अब आप अपनी कुंडलिनी को उठाकर सिर के ऊपर  बांध दें।

फिर से अपनी कुंडलिनी को उठाकर सिर के ऊपर बांध दें।

फिर से अपनी कुंडलिनी को ऊपर उठाएं और उसे बांध दें।

अब सहस्रार में आपको सहस्रार के मंत्र का तीन बार उच्चारण करना चाहिए।

(योगी श्री कल्कि साक्षात, श्री सहस्रार स्वामीनी, मोक्ष प्रदायिनी माताजी, श्री निर्मला देवी नमो नमः तीन बार दोहराते हैं)

अब देखा जाए तो यह खुल जाता है। अब आप अपने सहस्रार को फिर से इस तरह खोल सकते हैं। बस इसे फिर से नीचे ले जाएं और देखें कि आप वहां स्थित हैं। एक बार यह हो जाने के बाद आप ध्यान में चले जाते हैं। यह सफाई की तरह है, आप देखते हैं, जिसे न्यास कहा जाता है।

अब यदि आपको कोई अन्य रुकावट दिखे तो भी आप कह सकते हैं, जैसे, यदि आपको महाकाली की समस्या है, तो आप उस मंत्र को कह सकते हैं, इसे साफ़ कर सकते हैं और फिर आप ध्यान के लिए बैठ सकते हैं। कोई भी व्यक्तिगत बात, आप उसे निकाल सकते हैं, जैसे, यदि आपको अहंकार की समस्या है, यदि आप सोचते हैं, तो आपको महत अहंकार से शुरुआत करनी चाहिए। आपको यह पता लगाना है: आपकी समस्या क्या है? कुंडलिनी कहाँ रुक रही है? आप इसे अपने भीतर महसूस कर सकते हैं।

आप में से कुछ लोग महसूस नहीं भी कर सकें। यदि आप इसे महसूस नहीं करते हैं, तो इसे अपनी उंगलियों पर महसूस करें। अगर आप अपने भीतर महसूस नहीं कर रहे हैं तो इसे अपनी उंगलियों पर महसूस करें, आप इसे महसूस कर सकते हैं।

आह, बेहतर।

अपनी सांस शिथिल करें, बेहतर होगा। अपनी श्वास को ऐसे कम करें जैसे रुक रही हो, लेकिन इसके बारे में कोई जोर ना लगायें।

अब यह कैसा है? बेहतर? समस्या कहाँ है? हम्म?

योगी: सेंट्रल हार्ट

श्री माताजी : मध्य हृदय? ठीक है, अपनी सांस रोको। बड़ी ताकत से नहीं, सामान्य तौर पर। ठीक है?

साक्षात जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा, साक्षत जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा, साक्षत जगदम्बा।

ठीक है? सांस छोड़ो। अब बेहतर है? एक बार फिर? ठीक है, अपनी सांस रोको।

साक्षात जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा। हा।

सांस छोड़ो। बेहतर। अपनी आँखें खुली रखो। फिर से। सांस रोको।

साक्षात जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा, साक्षात जगदम्बा।

सांस छोड़ो। अब बेहतर है? बहुत राहत। ठीक है?

मेरा मतलब है, अब बाईं ओर। अपना बायाँ हाथ मेरी ओर रखो, दाहिना हाथ वहाँ ऊपर। बायाँ हाथ मेरी ओर, दाहिना हाथ ऐसा…

हम्म। इस प्रकार। डगलस फ्राई, इस तरह। बेहतर? यह लीवर है। ज्यादा सोचने से लीवर समस्या भी मिलती है। बेहतर। बेहतर? ज्यादा बेहतर। यह नीचे आ रहा है।

…हम्म। अब बेहतर है? यह क्या है? आप कहाँ महसूस करते हैं? विशुद्धि?

अब बेहतर है।