(परम पूज्य श्रीमाताजी निर्मला देवी, श्रीमाताजी की उद्घोषणा, डॉलिस हिल आश्रम लंदन, इंग्लैंड, 2 दिसम्बर 1979।)
आज का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि बहुत समय पहले … जब ईसा नन्हे बालक थे तो उन्होंने उस समय के अनेकों लोगों को बताया कि वह एक अवतरण हैं … जो मानवता का रक्षा हेतु आये हैं। उस समय के लोगों का विश्वास था कि उनकी रक्षा हेतु कोई आने वाला है। बहुत समय पहले एक रविवार को उन्होंने उद्घोषणा की कि वही मानव मात्र की रक्षा के लिये आये हैं। इसी कारण आज … अवतरण रविवार (Advent Sunday) है। उनको
बहुत कम समय तक जीवित रहना था। अतः बहुत ही कम उम्र में उन्हें उद्घोषणा करनी पड़ी कि वह एक अवतरण थे। यह देखना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि किसी भी अन्य अवतरण ने सार्वजनिक रूप से ये बात कभी नहीं कही कि वे अवतरण हैं। श्रीराम तो भूल ही गये थे कि वह एक अवतरण थे। एक तरह से उन्होंने स्वयं को ही भुला दिया था …. उन्होंने अपनी माया से स्वयं को पूर्णतया एक साधारण मानव बना लिया था —
मर्यादापुरूषोत्तम। श्री कृष्ण ने भी केवल एक ही व्यक्ति … अर्जुन को युद्ध प्रारंभ होने से पहले यह बात बताई। अब्राहम ने भी कभी नहीं कहा कि वह एक अवतरण हैं जबकि वह आदि गुरू दत्तात्रेय के साक्षात् अवतरण थे। दत्तात्रेयजी ने भी स्वयं कभी नहीं बताया कि वह आदि गुरू के अवतरण हैं। ये तीनों धरती पर आकर लोगों का मार्ग दर्शन करने के लिये आये। मोजेज या मूसा ने भी कभी नहीं कहा … यद्यपि
वह जानते थे कि वह महान थे। उन्होंने प्रकृति पर अधिकार प्राप्त कर लिया था फिर भी उन्होंने कभी नहीं कहा कि वह एक अवतरण थे।
मैंने भी अपने बारे में कभी कुछ नहीं कहा क्योंकि ऐसा लगा कि मानव ने अहं का एक दूसरा ही आयाम प्राप्त कर लिया था ईसा के समय से भी भयानक। आप इसको चाहे कुछ भी नाम दे दें, आप इसको औद्यौगिक क्रांति कह सकते हैं क्योंकि आप प्रकृति से दूर हैं … आप इसे कुछ भी नाम दे सकते हैं। लेकिन मनुष्य वास्तविकता से बहुत दूर चला गया है। उनकी पहचान बनावटीपन से है और इस प्रकार की वास्तविकता को स्वीकार
करना उनके लिये एकदम असंभव होगा। इसीलिये मैंने अपने बारे में तब तक एक भी शब्द नहीं कहा जब तक कि कुछ संतों ने मेरे विषय में लोगों को नहीं बताया। कुछ बाधाग्रस्त लोगों ने भी मेरे विषय में बताया और लोग आश्चर्यचकित हो गये कि किस प्रकार से कुंडलिनी जागरण जैसा कठिन कार्य श्रीमाताजी की उपस्थिति में इतनी तेजी से संभव हो सकता है
भारत में एक मंदिर था और लोग इसके विषय में बिल्कुल नहीं जानते थे। लेकिन उनको धीरे धीरे पता चला कि पानी के जहाज एक विशेष बिंदु पर जाकर किनारे की ओर खींच लिये जाते थे और उन्हें वापस लाना काफी कठिन कार्य था। उस बल से जहाजों को दूर ले जाने के लिये उन्हें दोगुना बल प्रयोग करना पड़ता था। उन्हें यह मालूम नहीं था कि वहां पर कोई अन्य चीज कार्य कर रही थी। उन्होंने सोचा कि समुद्र की
गहराई में कुछ गड़बड़ है। लेकिन यह लगातार कई जहाजों के साथ हो रहा था। उन्होंने इसका पता लगाने की सोची कि आखिर क्यों कई जहाजों के साथ ऐसा हो रहा था। क्यों सभी जहाज अचानक से किनारे की ओर खींच लिये जाते थे। उन्होंने पता लगाने की सोची और वे जंगल में गये तो उन्हें वहां एक बड़ा मंदिर मिला और उस मंदिर के ऊपर एक बड़ा चुंबक लगा हुआ था।
अतः अपनी तार्किक सोच से लोग इस बिंदु पर पंहुचते हैं कि माताजी को कुछ विशेष ही होना चाहिये क्योंकि हमारे ग्रंथों में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि कोई ऐसा अवतरण इस पृथ्वी पर आया है जो अपनी दृष्टि के कटाक्ष मात्र से …. यहां तक सोचने मात्र से ही कुंडलिनी को उठा सकता है। कई संत जो इस भीड भाड़ भरे संसार से दूर रहकर हिमालय के जंगलों में तपस्या कर रहे हैं …. वे सब इसके विषय में जानते
हैं … क्योंकि उनकी चेतना इस (उच्च) स्तर की है। वे आप लोगों से कहीं अधिक इस बात को समझते हैं क्योंकि आप सभी अभी शिशु हैं…. नवजात शिशुसम। लेकिन वे (संत) परिपक्व हो चुके हैं।
लेकिन आज ही वह दिन है जब मैं उद्घोषणा करती हूं कि मैं ही वह हूं जो मानवता को बचाने के लिये आई हूं। मैं घोषणा करती हूं कि मैं ही वह हूं जो आदिशक्ति हैं …. जो सब माताओं की माता हैं … जो आदिमाता हैं.. आदिशक्ति हैं …परमेश्वर की इच्छा … जिसने धरती पर स्वयं को, इस सृजन को और मानव मात्र को अर्थ देने के लिये अवतरण लिया है … और मुझे विश्वास है कि अपने प्रेम एवं धैर्य के माध्यम से मैं वह सब
प्राप्त कर लूंगी।
मैं ही वह हूं जिसने इस धरती पर बारंबार जन्म लिया लेकिन आज मैं अपने पूर्णावतार और अपनी संपूर्ण शक्तियां लेकर मैं इस धरती पर आई हूं … न केवल मानव को मोक्ष दिलाने के लिये बल्कि उनको स्वर्ग का साम्राज्य दिलाने के लिये एवं वह असीम आनंद व प्रसनन्ता प्रदान करने के लिये जो उनके पिता परमेश्वर उनके ऊपर बरसाना चाहते हैं।
इन शब्दों को कुछ समय के लिये सहजयोगियों तक ही सीमित रखा जाय।
आज का दिन गुरूपूजा का दिन है….. मेरी पूजा का नहीं … बल्कि गुरू रूप में आपकी पूजा का । मैं आप सबको गुरूपद का आशीर्वाद देती हूं और आज ही मैं आप सबको बताऊंगी कि मैंने आपको क्या दिया है और कौन सी महान शक्तियां आपके अंदर पहले ही हैं।
आपमें से कई लोग ऐसे हैं जो अभी भी …. मुझे पहचान नहीं सके हैं। मेरी इस उद्घोषणा से वे भी स्वयं इसे जान जायेंगे….. पहचान जायेंगे। बिना पहचान के आप इस खेल को …. लीला को नहीं देख सकते हैं … बिना इस लीला के आपके अंदर आत्मविश्वास नहीं आ सकता …. और बिना विश्वास के आप स्वयं के गुरू या गुरू नहीं बन सकते हैं … और बिना गुरू बने आप किसी की भी सहायता नहीं कर सकते हैं … और बिना लोगों की सहायता
किये आप प्रसन्न नहीं रह सकते हैं। अतः श्रृंखला को तोड़ना तो अत्यंत आसान है पर आपको एक के बाद दूसरा और दूसरे के बाद तीसरे को इसमें जोड़ना है … और आपको यही कार्य करना है। यही आप सब बनना भी चाह रहे थे। अतः स्वयं पर विश्वास रखें … प्रसन्न रहें कि मेरी शक्तियां सदैव आपकी रक्षा करेंगी। मेरा प्रेम आपको पोषित करेगा और मेरे स्वभाव से आपके अंदर प्रेम व शांति के भाव भर जायेंगे।
परमात्मा आपको आशीर्वादित करें।