परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी
”अंडा पुनर्जन्म से कैसे संबंधित है?”
कैक्सटन हॉल, यू.के.
04-10-1980
अभी हाल में ही मैंने आश्रम में आपको ईस्टर, ईसा मसीह के जन्म, उनके पुनरुत्थान और ईसाई धर्म का संदेश जो की पुनरुत्थान है, के बारे में बताया था।
एक अंडा बहुत ही महत्वपूर्ण है और भारत के एक प्राचीन ग्रंथ में लिखा है, कि अंडे के साथ ईस्टर क्यों मनाया जाना चाहिए। यह बहुत आश्चर्यजनक है। यह बहुत स्पष्ट है वहां अगर आप देख सके कि किस प्रकार ईसा मसीह को अंडे के रूप में प्रतीकत्व किया गया है।
अब, अंडा क्या है? संस्कृत भाषा में ब्राह्मण को
द्विज: कहते हैं। द्विज: जायते अर्थात जिसका जन्म दो बार हुआ हो। और पक्षी, कोई भी पक्षी द्विज: कहलाता है अर्थात दो बार जन्मा। क्योंकि पहले एक पक्षी एक अंडे के रूप में जन्म लेता है और फिर पक्षी के रूप में उसका पुनर्जन्म होता है। इसी प्रकार मनुष्य पहले एक अंडे के रूप में जन्म लेता है और फिर एक आत्मसाक्षात्कारी के रूप में उसका पुनर्जन्म होता है।
अब आप देखें कि कितनी महत्वपूर्ण बात है कि दोनों एक ही नाम से जाने जाते हैं। कोई भी अन्य जानवर द्विज: नहीं कहलाता जब तक कि उसका पहला निर्माण अंडे के रूप में ना हो और बाद में फिर किसी और रूप में। उदाहरण के लिए कोई स्तनधारी, कोई भी स्तनधारी द्विज: नहीं कहलाता सिवाय मनुष्यों के। यह उल्लेखनीय है जीव विज्ञान में अगर आप पड़ें, कि स्तनधारी अंडे नहीं देते। वह सीधे अपने बच्चों को जन्म देते हैं। और हम भी स्तनधारी हैं। इस के बावजूद भी पक्षियों की तरह मनुष्य को भी द्विज: कहा जाता है। तो इसका अर्थ है कि मनुष्य जब जन्म लेते हैं वो अंडे होते हैं या वो अंडा बन जाते हैं। वो अंडा किस प्रकार बनते हैं? जिस प्रकार अहंकार और प्रति अहंकार हमारे अंदर विकसित होता है।
अब आप सभी यहां सहज योगी है और समझ सकते हैं मै क्या कह रही हूं। जब अहंकार और प्रति अहंकार पूर्णत: विकसित हो जाते हैं ( श्री माताजी धीरे से किसी से कह रही हैं- (अस्पष्ट) माना जाता है। यहां कोई मानचित्र नहीं है?) और जब ब्रह्मरंध्र पूरी तरह सख्त हो जाता है तब आप अंडे बन जाते है। आप अपनी मां से, परमात्मा की सर्व्यव्यापी शक्ति से पूर्णत: अलग हो जाते हैं और आप एक अंडे रूप में अपने सहारे रह जाते हैं, जब तक आप अंदर से परिपक्व नहीं होते अंडे के खोल के अंदर, अपनी स्वतंत्रता में उस बिंदु तक, जब आप अंडे से निकलने के लिए तैयार हैं। मां पक्षी को अंडे के सिर पर छेदन करना होता है और तब आप पक्षी रूप में बाहर आ जाते हैं। आप पहले से ही अंदर तैयार और विकसित होते हैं, और फिर आप सर्वव्यापी दिव्य प्रेम की शक्ति के आकाश में उड़ जाते हैं।
तो ईस्टर कितना महत्पूर्ण है और ईसा मसीह क्यों? वे इस धरती पर आए क्योंकि उन्होंने विचार को समझ लिया था, उन्होंने इस विचार का अभ्यास किया था, या हम कह सकते हैं कि वो इस के विशेषज्ञ थे, कि वे खुद ही उस बाधा को पार कर सकते थे जिस से वे द्विज: बन जाते है। परन्तु वो पहले से ही वो (द्विज:) हैं। पर आप कैसे विश्वास करेंगे कि आप द्विज: हो सकते हैं आप का पुनर्जन्म हो सकता है? हर धर्म ने और हर पैगम्बर ने यह कहा है कि आपका पुनर्जन्म होना चाहिए। जब तक आप का पुनर्जन्म नहीं होता, अर्थात बपतिस्मा, पर वह बपतिस्मा नहीं बल्कि असली वाला। जब तक की यह खोल नहीं तोड़ा जाता आप के ब्रह्मरंध पर, आप द्विज: नहीं बन सकते। यह सारे ग्रंथों में लिखा है, सारे पैगम्बरों ने कहा है। किसी को आप को (कर के) दिखाना था, कि यह किया जा सकता है।
वह स्वयं दिव्य शक्ति यानि प्रणव होने के नाते, वह स्वयं ब्रह्म होने के नाते, उनका (ईसा मसीह) पुनर्जन्म उनका पुनरुत्थान, शारीरिक पुनरुत्थान था। जब की आप का पुनरुत्थान आप की चेतना में है और आप उसे स्पष्ट देख सकते हैं। यही वास्तव में ईस्टर है।
अब सहज योग में हमें पूरी तरह स्वयं का सामना करना पड़ता है। ईसा मसीह बहुत महान थे, परंतु वे इस धरती पर एक साधारण व्यक्ति की तरह आए। जीवन के सारे दुख दर्द से गुजरे, बाधाओं को पराजित किया और अनंत अस्तित्व बन गए। वह अनंत अस्तित्व थे, वह अनंत अस्तित्व बन गए और वह अनंत अस्तित्व हैं l परंतु आप को दर्शाने के लिए कि आपको भी वह अनंत जीवन बनना है, आपकी चेतना को उस अनंत अस्तित्व में विद्यमान होना चाहिए। यह तभी संभव है आत्मा साक्षात्कार के पश्चात, अगर आप उस अनंत अस्तित्व का मूल्य समझते हैं। अगर वह आपकी प्राथमिकता है, अगर वह उच्चतम है और आपको कुछ और नहीं, सिर्फ उसको प्राप्त करना है।
परंतु वास्तव में आप बहुत सारी चीजों से तादात्म्य का अनुभव करते हैं। जैसे कि हम कह सकते हैं कि अंडे कि अवस्था में जर्दी इत्यादि चीज़े थीं, और हम सारे परिवेश द्वारा दूषित हो गए, कि जब हमारा पुनरुत्थान भी हो जाता है, हम स्वयं का खुले आकाश से तादात्म्य अनुभव नहीं कर पाते। अभी भी हमारे पंखों को उगना है। अभी भी हम उड़ने से डरते हैं। और उस समय आप को देखभाल की आवश्यकता है। परंतु अगर आप अंडे की अवस्था में वापस जाने के लिए प्रवर्त है तो आप जा सकते हैं। यही एक अंतर है एक मनुष्य के अंडे में और एक पक्षी के अंडे में। वैसे मैं यह कहूंगी कि एक आत्म साक्षात्कारी अपनी जागृति को कभी खोता नहीं है परंतु वह इतना ढका हो सकता है कि हो सकता है विकास अवरुद्ध हो जाए। जिस वातावरण में आप रहते हैं वह इसके लिए जिम्मेदार है। आपकी अपनी इच्छा शक्ति होनी चाहिए, आपको अपनी समझ होनी चाहिए, आप का अपना चरित्र होना चाहिए उस के सामने टिकने के लिए।
आपको आश्चर्य होगा कि जो मुर्गा हम खाते हैं वह उड़ नहीं सकता, परंतु अगर आप उन्हें वन में देखना चाहते हैं तो आपको आश्चर्य होगा कि वह सबसे तेज चलने वाले पक्षियों में से एक हैं। वो बिल्कुल हूबहू वैसे हैं जैसे हमारे घर में मुर्गा होता है। कोई अंतर नहीं है। अगर आप उन्हें साथ में रख दें तो आप पाएंगे कि उनके रंग में, वजन में, दिखने में, चलने में तरीके में हर चीज़ में वे बिल्कुल समान है। पर आप अगर उन्हें साथ में रख दें, तो जरा से शांति भंग होने से, एक तो बहुत ऊंचा उठ जाएगा और दूसरे को समझ में नहीं आएगा कि वह किधर को भागे, वह घुरघुर (आवाज़) करेगा और छोटे से स्थान में भागेगा जहां पर वह दोबारा पकड़ लिया जाएगा, काट दिया जाएगा और खत्म हो जाएगा।
तो अगर मनुष्य को शाश्वत अस्तित्व का महत्व समझना है, उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि वह वातावरण को बदल सकते हैं। वह मुर्गे से बहुत अधिक शक्तिशाली हैं, हैं ना? मुर्गे वातावरण से दब सकते हैं। परंतु एक आत्म साक्षात्कारी अपनी स्पंदनमयी चेतना के द्वारा, जो विकिरण उसके अंदर से गुजर रहे हैं उसके द्वारा, वातावरण को बदल सकता है। अपने आसपास का माहौल बदल सकता है। वह अपने मित्रों को बदल सकता है। वह अपने माता पिता को, भाई, बहनों, को बदल सकता है। वह अपने रिश्तेदारों को बदल सकता है। अपने शहर को बदल सकता है, अपने देश को बदल सकता है, और सारे विश्व को भी बदल सकता है।
अब सहज योगियों की बहुत विशेष जिम्मेदारी है क्योंकि वह पहले हैं, जिन्होंने स्वयं को परिवर्तित किया है, मेरा मतलब जो आधुनिक हैं। वह पुराने लोग जो आत्म साक्षात्कारी थे, सहज योग के बारे में नहीं जानते थे। उन्हें सहज योगी नहीं कहना चाहिए क्योंकि वह कुंडलिनी के बारे में नहीं जानते। कुंडलिनी को कैसे उठाना है यह नहीं जानते। वह कुछ भी नहीं जानते। इसके अलावा, क्योंकि उन्हें कुछ इस बात का अहसास है कि वे दूसरों से अलग हैं, या तो वो दोषदर्शीमानवद्वेषी हैं या अहंकारी।
तो आधुनिक युग के सहयोगियों की जिम्मेदारी इतनी बड़ी है कि वो मुख्य बिंदु हैं। वे निर्णायक क्षण हैं। वे ही लहर को मोड़ सकते है। वो लहर जो बचा सकती है या क्षति पहुंचा सकती है। एक लहर गलत दिशा में उर्धगामी रुझान से नष्ट कर सकती है, हजारों लोगों को मार सकती है, और वही लहर उन्हे बचा कर किनारे तक पहुंचा सकती है।
तो जिम्मेदारी बहुत अधिक है और सहज योगियों का महत्व उन संतो से बहुत अधिक है जो इस धरती पर पहले जन्मे थे, क्योंकि उन संतों को पता नहीं था कि अगर वे गैरजिम्मेदार है गए तो अन्य लोगों का क्या होगा। उन में से कुछ ने अच्छी पुस्तकें लिखी हैं परन्तु मुझे विश्वास है कि इस बीच उन्होंने गलतियां की हैं। वे संत जो महान आत्म साक्षात्कारी थे, वे एक हज़ार वां हिस्सा भी नहीं जानते थे, जितना आप कुंडलिनी के बारे में जानते हैं। और उनके पास तो शक्ति भी नहीं थी दूसरों की कुंडलिनी उठाने और उन्हें आत्म साक्षात्कार देने की। बहुत कम को छोड़कर, जैसे ‘जॉन द बैपटिस्ट’ थे जो लोगों को (श्री माताजी हंसते हुए) को सिर के बल पानी में ले जाते थे, जल तत्व में पहले उनका भेदन करने के लिए, पानी में अच्छी तरह उन्हे बार बार डुबकी लगवाते थे और अपने चैतन्य से उनकी कुंडलिनी उठाते थे, परंतु मुझे अभी भी ज्ञात नहीं है कि क्या उन्होंने किसी को आत्म साक्षात्कार दिया। वह नहीं दे सके, क्योंकि उस समय के लोग, जब तक वह (सत्य को) खोज रहे थे, आत्मसाक्षातकारियों की तरह नहीं बोलते थे। उनकी खोज अभी भी खत्म नहीं हुई है। अभी भी उन्हें ज्ञात नहीं है।
भारत में ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने आत्म साक्षात्कार के बारे में लिखा है। वे लाभदायक स्तिथि में थे क्योंकि इस बारे में कई किताबें उपलब्ध हैं। जबकि ईसा मसीह के शिष्यों को वह लाभ प्राप्त नहीं था अन्यथा वे भी कई पुस्तकें लिख सकते थे। पर लिखना मुख्य बात नहीं है। आप एक आत्म साक्षात्कारी को पहचान सकते हैं उसके बोलने के अंदाज से। अगर वह एक आत्म साक्षात्कारी नहीं है, अगर वह अभी भी अधपका है आप जान सकते हैं। आप बहुत सरलता से एक अधपके सहयोगी को पहचान सकते हैं, जैसे आप एक सड़े अंडे को पहचान सकते हैं। आपको उसको तोड़ना नहीं पड़ता यह जान ने के लिए कि उसमें से बदबू आ रही है। आप वजन से देख सकते हैं, आप समझ सकते हैं कि अंडा सही है या नहीं, सिर्फ पानी पर उसे रख कर भी। बहुत सारे सरल तरीके हैं जिनसे यह ज्ञात किया जा सकता है कि अंडा सड़ा है या नहीं। कुछ अंडे ऐसे होते हैं जो सड़ने वाले होते हैं। कुछ अंडे पूरी तरह सडे होते हैं, और कुछ बहुत बदबूदार होते हैं। तो उनको भूल जाइए।
अब जो सबसे पहली चीज घटित होती है आत्म साक्षात्कारियों में, कि उनका चित्त सबसे सड़े हुओं पर जाता है, जरा सोचिए, और मुझे अनुगृहित करने के लिए वह उन लोगों को मेरे पास ले आते हैं। सबसे सड़े हुए, असुधार्य और मैं उनसे जूझती रहती हूं। मुझे यह नहीं पता कि हमारे अंदर ऐसा मनोविज्ञान क्यों विद्यमान है, कि हम सब से कठिन लोगों को ही मां के पास लाएं, कि सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य ही उनके लिए प्रस्तुत करें, उन्हें (श्री माताजी को) सबसे महानतम, पवित्रतम पद प्रदान करने के लिए। परंतु मुझे इस को लेकर कोई भी पछतावे नहीं हैं। ना ही मुझे कोई शिकायतें हैं, परंतु समय बर्बाद होता है। समय बहुत अधिक बर्बाद होता है, इसलिए यह अधिक अच्छा होगा कि हम ऐसे लोगों को ढूंढें जो ज्यादा सड़े हुए नहीं हैं। ऐसे लोगों को लाएं जो ठीक-ठाक हों, ज्यादा खराब स्थिति में ना हो, नहीं तो अगर खोल टूट गया, अगर सारी की सारी जर्दी नीचे गिर गई, तो हम उसे कैसे एकत्रित करेंगे?
अब हमारे पास ज्यादातर अंडे सुरक्षित हैं, परंतु हमारे पास उनके समीप जाने का कोई रास्ता नहीं है, क्योंकि इन अंडों में जो दूषितकरण होता है वह गर्मी के कारण होता है। वे खराब हो जाते है। गर्मी जो आपने देखा है शरीर में भी, कैंसर जैसी बीमारियों के कारण होती है। कुछ भी, जो गर्मी के रूप में एक सहज योगी से आती है, मतलब कुछ खराबी है।
और मां पक्षी की गर्माहट ही छोटे अंडों को आत्म साक्षात्कार देती है पक्षियों के रूप में। इसी तरह, यह दिव्य प्रेम की गर्माहट है जो यह कार्य (पुनरुत्थान का) करती है।परंतु फिर भी मनुष्य इस बात का महत्व नहीं समझता।
सर्वोत्तम वह हैं, जो पहले प्रस्फुटन पर ही उड़ जाते हैं। जो नहीं उड़ते वे बैठ जाते हैं, रूठ जाते हैं, सोचते हैं और विश्लेषण करते हैं या फिर डरे हुए भयभीत और सोचने लगते हैं कि उनकी प्रगति बहुत ही धीमी है। क्योंकि उनके जन्म के क्षण में प्रचंड शक्ति उनके पीछे हैं, और वह सरलता से बाहर जा सकते हैं। परंतु अगर आप रुठ जाते हैं और अपने भय के बारे में विचार करते हैं, तो डर आपके अंगों और पंखों में बस जाता हैं और आप उड़ नहीं पाते। आत्म साक्षात्कार के बाद जो विचार और विश्लेषण करने की प्रक्रिया चल रही है, वह आपके पंखों को भारी बना देती है।
इसीलिए मैंने देखा है कि भारत के गांव में जो लोग आत्म साक्षात्कार पाते हैं, जहां लोग कम जटिल है, बिना किसी भय के अपने पंखों का प्रयोग करते हैं। मैं देखती हूं कि वे हवा में उड़ रहे हैं, और वह उड़ना सीखने का प्रबंध कर लेते हैं, मानो कि वो उनका जन्म सिद्ध अधिकार है। वह बस अपने स्थान पर हैं, कोई समस्या नहीं। जब भी चाहे वे नीचे आ सकते हैं और फिर से वहां हो सकते हैं। परंतु जो भय या अहंकार या ग़लत पहचान के कारण भारी हो जाते हैं, जरा सा उड़ते हैं फिर नीचे आ जाते हैं, फिर जरा सा उड़ते है फिर नीचे गिर जाते हैं। हर बार जब वो नीचे गिरते हैं उन्हें कुछ हो जाता है। उन्हें चोट लगती है और फिर वो मुझे चोट देने की कोशिश करते हैं, मुझे दोष देकर, जो कुछ उनके साथ हुआ है उसके लिए। यह इसका सबसे दुखद हिस्सा है। क्योंकि वह सोचते हैं कि मैंने उनसे उड़ने के लिए कहा था, इसलिए वो नीचे गिर गए हैं। मैं उन्हें इसके लिए भी छूट देती हूं क्योंकि वे अभी भी छोटे, अभी भी काफी सीधे साधे हैं, परंतु सबसे अच्छा यह रहेगा कि जैसे ही आप को आत्म साक्षात्कार प्राप्त हो, अपने पंखों का प्रयोग करें।
अब मैं क्यों यह सब आपको बता रही हूं, विशेषकर उन लोगों को जिन्होंने काफी कुछ प्राप्त कर दिया है, क्योंकि आप लोगों ने बहुत समय लिया, आप में से ज्यादातर ने। तो अब आप जब नए लोगों को लाते हैं, जब नए लोगों से बात करते हैं, उन्हें बताइए कि, ‘हमने यह सब गलतियां की हैं और हम सच में सुस्ती में उस्ताद थे, और हम तीन कदम आगे बढ़ते थे तो चार कदम पीछे। अब हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप उड़ान भरिए और इस आनंद को प्राप्त करिए।’
तीसरी बात जिस को समझना बहुत ही महत्वपूर्ण है कि ये मन एक बहुत भ्रमित शब्दावली है। मैं नहीं जानती अंग्रेजी में मन का क्या अर्थ है, पर अगर आप सोचते है कि मन माने आप की’ बुद्धि ‘ जिस से आप सोचते हैं, तो इस मन में बहुत हलचल हैं, विशेषकर परदेस में। इसलिए जटिलता बहुत बुरी तरह है क्योंकि मन गोल गोल घूम रहा है। तो आत्म साक्षात्कार, पुनरुत्थान का पहला प्रभाव, कभी कभी ही आनंद का होता है। और अगर आनंद का अनुभव होता भी है तो वह स्थिति से नीचे आ जाता है। यह हो सकता है कई मामलों में, कि शायद सिर्फ एक घंटे के लिए आपको आनंद महसूस हो, और फिर आप अपने स्थान पर वापस आ जाते हैं। फिर दोबारा आप उठने लगते हैं और जब आप उठने लगते हैं, आप अपनी जटिलताओं और जटिल तरीकों का सामना करते हैं।
सबसे पहले आपकी प्राथमिकताएं ही गलत थीं, काम करने के आपके बौद्धिक तरीकों के वजह से। प्राथमिकताएं जैसे अपनी शक्ति, जैसे हम हमेशा करते हैं, मामूली चीजों पर बर्बाद करना। उदाहरण के लिए जैसे कि अभी ये ठीक से जमा नहीं है। तो सिर्फ उस पर गुस्सा करना। कोई देर से आता है तो आप क्रोधित है जाते हैं। अब देखिए यह मानदंड जो महत्वपूर्ण बना दिए गए हैं, कि आप को समय पर आना है। ‘समय बहुत महत्वपूर्ण है’ पर किसलिए? क्योंकि हमने युद्ध जीता, वाटरलू युद्ध जीता सिर्फ समय की वजह से। पर यहां हम कोई युद्ध नहीं लड़ेंगे, आप समझे? हम वह काम नहीं कर रहे जो यह लोग कर रहे थे। आप सोचिए हम वह सैनिक नहीं है जिन्हें युद्ध लड़ना था अपितु हम सैनिक हैं धीरज के।
तो समय है, हमारा तादात्म्य बहुत अधिक है ‘बिल्कुल सटीक समय’ से। तब दो प्रकार की ताकतें खेल में शामिल हो जाती हैं। एक तो आपका समय के साथ तादात्म्य, और दूसरा मेरा खेल आपको मूर्ख बनाने का। आत्म साक्षात्कार के पश्चात आपको कभी भी चीजें समय पर उपलब्ध नहीं होंगी। सब असमय होगा। तब आपको अनुभव होगा कि यह सब मूर्खता थी, क्योंकि सीधी सीधी बात आप समझते नहीं है।
एक सरल सा तादात्म्य जैसे ‘समय’ से, उसमें अगर थोड़ा आगे जाएं, अब देखें कुंडलिनी में समय निर्धारण क्या है? क्या आप कह सकते हैं कि किस समय आपको आत्म साक्षात्कार प्राप्त होगा? कौन सा वक्त आपकी घड़ी के अनुसार। मेरी घड़ी में 7:30 बजा है पर 7 भी बजा हो सकता है, 6:45 हो सकते हैं, 6:00 बजे हो सकते हैं, 1:00 बजे हो सकते हैं! यह मेरी अपनी घड़ी है। मैं इसे रखती हूं जैसे मैं चाहूं। इसी प्रकार (श्री माताजी के हंसने का स्वर) आपको भी अपनी घड़ी का गुलाम नहीं होना है।
अब, समय निर्धारण (श्री माताजी हंसते हुए) अगर आप और चालाकी करते हैं, ऐसी चीज़ें जैसे, मूर्खतापूर्ण चीज़ें उसके जैसी। उदाहरण के लिए लोग दूसरों की शैली के बारे में बहुत सतर्क हैं, अपनी नहीं अपितु दूसरों के। अगर दूसरों की शैली थोड़ा अजीब है, तो हो गया बस! ऐसे व्यक्ति के लिए उनके पास बिल्कुल धीरज नहीं। यह किसी व्यक्ति का बाहरी रूप है, क्योंकि आप उस व्यक्ति के अंदर को नहीं देख रहे। और जो ये ग़लत पहचान आप से कुछ ज्यादा ही चिपकने लगती हैं तो मुझे इस बारे में कुछ करना पड़ता है, है ना? मेरा मतलब, कोई और रास्ता नहीं सिवाय आप से दांव-पेंच खेलने के। तब आप सहज योग से भ्रमित होने लगते हैं। आप सोचते हैं, ‘अरे मैं तो बिलकुल ठीक ठाक था! मामला क्या है?’
अमेरिका में एक महिला थी जिसको मैंने आत्म साक्षात्कार दिया। वह एक भारतीय महिला थी जो दुकान चला रही थी। कल्पना कीजिए एक भारतीय अमेरिका में दुकान चलाते हुए- हो गया! मेरा मतलब है वह कुछ नहीं, सिर्फ एक दुकान थी। वह अपनी दुकान के अलावा कुछ और सोच ही नहीं पाती थी। जो कुछ भी दुकान में था वह उसके बारे में सब कुछ जानती थी। वह सब जानती थी, अपना लाभ, यह चीज, वह चीज। और जब उसे आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ वह सब कुछ भूल गई उस बारे में। वह बस भूल गई और उसे कुछ पता नहीं था कि उसका सामान वगैरा कहां है, आप समझे? और वह काफी चिंतित थी। उस ने कहा, ‘अब मुझे क्या हो गया है? मैं अपनी दुकान को लेकर चिंतित नहीं हूं और मुझे याद नहीं है कि मैंने सामान कहां रखे हैं और ऐसा होता है और वो सब।’ परंतु उसका परिणाम यह हुआ, यद्यपि वह इतने चिंतित और परेशान थी, उसको बहुत ज्यादा धन लाभ हो रहा था, पहले जो होता था उससे बहुत ज्यादा! और वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या मामला है? यह कैसे हुआ कि वह ऐसे झेमेले में थी?!
और वह मुझे बताने लगी, ‘मां मुझे समझ नहीं आ रहा है। ऐसा हो गया था और मैं इतनी भ्रमित थी कि मेरी दिशा की, समय और सब बातों कि सब समझ खत्म हो गई और मुझे इतना अधिक धन लाभ हो रहा था! तो, यह कैसे हुआ? मुझे क्या हो रहा है? मतलब मुझे यह समझ में नहीं आ रहा कि अब क्या करना है!’ और आप देखिए कि वह हिसाब किताब में बहुत अच्छी थी पर अब वह लेखांकन नहीं पर सकती! अंत में उस ज्ञात हुआ कि बिना कोई लेखांकन किए, जो धन उसने एकत्रित किया बहुत अधिक था। और संपत्ति में समृद्धि आने लगी। तो मैंने कहा, ‘इसे ऐसे ही छोड़ दो! तुम क्यों चिंता करना चाहती हो उसी स्थिति में वापस जाने के लिए जहां तुम्हें हर एक या दो डॉलर भी लिखना पड़ता था।’ अब वो कहती है, ‘मैं सौ डॉलर से लिखना शुरू करती हूं। अब तो यह हाल है।’
असल में क्या होता है कि जब यह घटित होता है, आप विचारों से परे चले जाते हैं और जब आप विचारों से परे चले जाते है इसको एक आशीर्वाद समझ कर स्वीकार कीजिए, उसे अपनी उपलब्धि समझ कर स्वीकार कीजिए, उसे अपना पुनरुत्थान समझ कर स्वीकार कीजिए, क्योंकि आप विचारों से परे चले गए हैं। इन विचारों से आप अत्यधिक सावधानी से काम कर रहे थे। आप के विचार गायब हो जाते हैं और आप को वह सब जानकारी नहीं मिलती, और वो पूरी कार्य क्षमता नहीं मिलती, वो विवरण नहीं मिलता जिस से आप को ज्ञात हो आप कार्य कुशल हैं या नहीं।
आप की कामों को देखने की कार्य कुशलता घट जाती है, परंतु कुल मिलाकर, क्योंकि आप निर्विचार समाधि में हैं, परमात्मा की कार्यचालन की पूरी गतिशीलता आप के लिए कार्य करने लगती है और आप परिणामों से आश्चर्यचकित होते हैं और आप पूर्णत: आराम में आ जाते हैं। जैसे कि वो सब आप के लिए कार्य करने लगते हैं, और आप सिर्फ देख रहे हैं कि जिस प्रकार वो हैं, और सोच रहे हैं कि यह क्या है!
परंतु जब तक आप निर्विचार समाधि का महत्व नहीं समझेंगे, उस बिंदु को जैसे, यही वो बिंदु है जहां मुझे बोलना है। इसी प्रकार आप उस निर्विचार समाधि, अपने पुनरुत्थान के, अपने दिव्य आशीर्वादों के साम्राज्य में प्रवेश करने के महत्व को समझिए अन्यथा आप अपने विचारों से चिपके रहेंगे। फिर आप अपने विचारों पर कार्य करने लगते है और फिर मैं (आप से) खेलूंगी कि कुछ भी आप के विचार अनुसार कार्यान्वित नहीं होगा, और बहुत स्पष्ट दिखेगा। आप किसी बारे में विचार करेंगे, किसी के बारे में योजना बनाएंगे, वह असफल होना ही चाहिए। अगर वो विफल नहीं होगा, तो आप अपने विचारों को नहीं त्यागेगे।
और बहुत लोग फिर से भ्रमित हो जाते हैं कि, ‘मां हम ये करना चाहते थे। पर मैं यह करना चाहता था। मुझे इस में विश्वास था। तो आप की सारी आस्थाएं और आप की सारी इच्छाएं पूर्णत: बेअसर हो जाती हैं और आप चकरा जाते हैं क्योंकि आप को यह सारी बातें परमात्मा के हाथ में छोड़नी होती हैं। वो सब कुछ करते हैं। आप कुछ नहीं करते। वो सर्वशक्तिमान है।
जब सर्वशक्तिमान हैं आप के कार्य करने के लिए, फिर आप अनावश्यक रूप से वो क्यों करना चाहते हैं?सिर्फ अपने अहंकार को सिर चढाने के लिए और वो अहंकार भी ग़लत है, क्योंकि आप कुछ भी नहीं करते। जरा सोचिए इस बारे में। सिर्फ परमात्मा ही अहंकार कर सकते हैं क्योंकि वो ही सब कुछ करते हैं, जब कि आप के अहंकार का कोई अर्थ नहीं। वो कुछ नहीं करता। और आप के आसपास जो हलचल हैं, जैसे आप ने अपना दिमाग बनाया है, जरा सोचिए, हर बार कुछ सामने आता है, फिर दूसरा।
00:31:17 ऑडियो में ये हिस्सा नहीं है
**चीजें उभर कर आती है फिर और चीजें उभर कर आती हैं। जिस तरह का आपका मस्तिष्क यहां अपने बना लिया है, आपको आनंद वाला हिस्सा प्राप्त नहीं होता। परंतु जो सबसे पहली चीज आपके साथ घटित होती है वह यह है कि आप सामूहिक चेतना का अनुभव करने लगते हैं कम से कम। आप अनुभव करने लगते हैं कि औरों के साथ क्या समस्या है, आप समझने लगते हैं। फिर आप जानना चाहते हैं कि वहां कौन कौन से देवता हैं। फिर आप जानना चाहते हैं- सब कुछ, कैसे? कैसे यह सब? यहां है और आप ज्ञान के बारे में सब कुछ जानना चाहते हैं। आप सहज योग के बारे में जानना चाहते हैं। बनना या परिवर्तन होना इतना नहीं होता। परंतु जब परिवर्तन हो रहा होता है सिर्फ आनंद होता है।
तब आप सत्य का प्रमाण पाना चाहते हैं तो सत्य भी आप पर उजागर होता है। ‘क्या यह एक आत्म साक्षात्कार व्यक्ति है? हां, यह है। क्या वो है? नहीं।’ ‘फिर ये है..क्या यह पुस्तक सही है? हां! चैतन्य आ रहा है। क्या यह वह स्थान है जो हम को विशुद्ध रूप में प्राप्त हुई है? हां!’**
00:31:19 प्रवचन जारी
यह नहीं है, वह नहीं है। इस प्रकार आप हर चीज को सत्यपित करने लगते हैं। लोग यह भी परखते हैं कि, ‘क्या मुझे यह खरीदना चाहिए या नहीं? क्या मुझे वह खरीदना चाहिए, क्या मुझे ये करना चाहीए? इस तरह। आप देखिए कि वे अपनी स्पंदनमयी चेतना के साथ हर समय उसका प्रयोग करते हुए चलते हैं। तो, तब सत्य आप के लिए जन्म लेता है। वे जानते है सत्य क्या है, क्या नहीं। वे उसे अपने चित्त से सत्यापित करने लगते है। पहले आप का चित्त जागृत होता है और उस जागृति में फिर आप सत्य को पाते हैं, परन्तु हलचलों के कारण आनंद अनुपस्थित है।
परंतु एक सुलझे हुए व्यक्ति के लिए, अगर उसे उसका पुनरुत्थान मिल जाता है वो तीव्रता से उठ जाता हैं। वे इन हलचलों की परवाह नहीं करता। जैसे एक छोटी सी चिड़िया जो अंडे से जन्मी है, सोचने लगे कि, ‘ अब मैं अपने पंख कैसे हिलाऊं?’ तो वो एक पुस्तकालय में जाती है और जानने का प्रयत्न करती है (हंसने के स्वर) अगर ऐसा नहीं किया तो फिर वो दूसरी छोटी छोटी चिड़ियाओं से परामर्श लेगी। आओ हम सब बैठें और पता करें कि हमें अपने पंख कैसे हिलाने हैं। (श्री माताजी के हंसने का स्वर) पंखों में उठने की शक्ति है। उन्हें उठने कि अनुमति दें। और यह सब होता है, इसलिए यह सब हलचलें यहां हैं। तो आप एक अलग पहलू पर चले जाते हैं, हर बात में सत्य खोजने। तो आप का चित्त सामूहिक चेतना और सत्य पर अधिक रहता है। तो स्वाभाविक है दूसरों के सत्य जानने के लिए आप तुरंत कहते हैं, अरे! उसको यह पकड़ आ रही है। उसको वह पकड़ आ रही है। उस में वह खराबी है, इस में यह खराबी है।
परंतु अगर आप आनंद की स्तिथि में हैं, जो मैं हूं। मैं सहज योग के बारे में ज्यादा जानती नहीं, असल में मुझे आप लोगों के द्वारा पता चलता है। मैं पूर्ण आनंद में हूं। और वहां अब देखते हैं, आप पाते हैं, ‘ओह वह ऐसे पकड़ रहा है, वह ऐसा है, कुछ लोग, इस व्यक्ति को यह समस्या है उस व्यक्ति को वह समस्या है और यह उसका कारण है कि ऐसा है।’ परंतु अब वह सब पक्षी बन गए हैं। अब वह अंडे नहीं रहे। थोड़ी बहुत यहां-वहां जर्दी रह गई है, उनके शरीर से चिपकी हुई है। मां उनको साफ कर देंगी। बात खत्म!
पर क्या होता है, कि हम अब भी सोचते हैं कि वह अभी भी अंडे के अंदर हैं, क्योंकि वह वापस खोल के अंदर चले जाते हैं और वह उड़ने से डरते हैं। तो वह कैसे उड़ सकते हैं वह तो अभी भी खोल के अंदर ही हैं और अभी भी अपने पंख बाहर की ओर उठाने के लिए चिंतित हैं। आप समझे? बाहर आना नहीं चाहते। तो आवरण को पूरी तरह हटना होगा। खोल को निकालने के बजाय आप अपने खोल में वापस घुस जाते हैं यह सोच कर, हे भगवान यह खोल के अंदर क्यों है? मुझे भी अपनी खोल के अंदर घुस जाना चाहिए! और ऐसा होता है, उस के साथ पुनरुत्थान में देरी हो जाती है। पुनरुत्थान तभी पूर्ण होता है जब आप आनंद की अवस्था में पहुंच जाते हैं।
परंतु, आइए देखते हैं कि भारत के एक साधारण ग्रामीण के साथ क्या घटित होता है जब मैं उसे आत्मसाक्षात्कार देती हूं! उसे आनंद मिलता है और वह इसके बारे में कुछ नहीं जानना चाहता। जान ना उसका कार्य नहीं है। वह सिर्फ आनंद को जानता है। अधिक से अधिक वह सिर्फ चक्रों के बारे में जानता है कि वह किस प्रकार कार्य करते हैं और वो सब बातें। मेरा मतलब है कि उसके देखने का तरीका वहां से है, वो सब कुछ बिल्कुल साफ सात देखता है।
आप जानते है, हमारे यहां भारत में कुछ बहुत महान सहज योगी हैं, बहुत ऊंचे स्तर के। अभी हाल ही में, उनमें से एक का पत्र मुझे प्राप्त हुआ और मुझे आश्चर्य हुआ जिस प्रकार वह स्वयं को अभिव्यक्त कर रहा है। बहुत अधिक आश्चर्य हुआ। वह बिल्कुल सुकरात की तरह बात कर रहा था। एक और आदमी है जो मुझसे मिला। वह एक साधारण गाड़ी चालक है। आप जानते हैं हमारे यहां जो बैलगाड़ी होती है। तो वह मुझे बैलगाड़ी में ले जा रहा था, हमारे यहां एक शोभायात्रा में जो गांव में होती है। और मैं उससे बात करने लगी और मुझे आश्चर्य हुआ कि यह तो बिल्कुल कबीर है! वो मुझसे बिल्कुल वैसी ही बातें कर रहा था। उसने कहा, संपूर्ण विश्व अब हमारे आगे खुला है। संपूर्ण ब्रह्मांड मेरी ओर खुलता है और सोचता है कि मैं कैसा कमल बन गया हूं और मेरी सुगंध फैलती है और मुझे उस पर बहुत आश्चर्य हुआ, जो कविता वह कहता जा रहा था एक बैल गाड़ी चालक। क्योंकि उसकी कोई हलचल नहीं हैं। वह वहां है। वह वहां पहुंच गया है।
और आप उससे पूछिए, इस व्यक्ति का क्या मामला है? वह कैसा है? ओह उस में सुधार हूं है। वह बहुत अच्छा है! अब वह बहुत अच्छा है! बहुत बेहतर! बहुत बेहतर! वह मुझे कभी नहीं बताते कि इस आदमी का यह चक्र पकड़ रहा है या वह चक्र पकड़ रहा है या अन्य विवरण। तो पूरी बात की अनुसूची इस प्रकार है कि 5:00 बजे उसे नाभि पर पकड़ आ रही थी। 5:02 पर उसके हृदय पर पकड़ आ रही थी। 2:05 पर उसके आज्ञा चक्र पर पकड़ आ रही थी और फिर अचानक उसके बाएं स्वाधिष्ठान पर पकड़ आने लगी। तो अब उत्तर दीजिए कि आखिर वो किस चीज से पीड़ित है? अब बैठकर परीक्षा करिए। क्योंकि परीक्षा देने की आपकी आदत है। तो आप पूरे विषय को इस प्रकार पढ़ना चाहते हैं जैसे कि आप चिकित्सा स्नातक की परीक्षा दे रहे हों। अब आप मरीज का पूरा इतिहास लिखना चाहते हैं और एक निष्कर्ष पर पहुंचना चाहते हैं और निष्कर्ष बिल्कुल गलत होगा क्योंकि तब तक उस व्यक्ति को आत्म साक्षात्कार प्राप्त हो गया होगा और वह आपके चक्रों को जांच रहा होगा! (हंसने की ध्वनि)
यह सहज योग का चढ़ाव उतार है, यह सब से दिलचस्प बात है जिस तरह से वह आप से खेलता है, और आप को समझाता है कि ये रास्ता नहीं है जिस प्रकार अपनी सारी हस्यवृती खोते जा रहे हैं, बहुत गंभीर लोग बन रहे हैं, फिर कुंठाग्रस्त हो कर आपा खो रहे हैं। नहीं! यह आनंद है जिस में आप को उतारना है। और वह आनंद आप को प्राप्त हो सकता है अगर आप वो हलचलें त्याग दें।
जैसे कुछ लोगों ने मुझे पत्र लिखा कि, ‘मां! हम ने ग्रेगॉयर की पुस्तक पढ़ी और वह हमारे लिए बहुत कठिन है। हम को एक शब्द भी समझ नहीं आता।’ जबकि वह बहुत महान सहज योगी हैं, उन्होंने कहा, ‘हमने हार मान ली। यह ठीक है कि हम अंग्रेजी अच्छे से जानते हैं पर यह किताब हमारे लिए कुछ ज्यादा ही है। यह अतिशय है, हम इसे समझ नहीं पा रहे हैं। और इतना हिस्सा तो सही था जब उसने अपनी खोज कि बात कही और जब वह आप से मिले। उसके बाद हमें पता नहीं वहां वो सब क्या लिखा है। हमें कुछ समझ ही नहीं आता है। अगली बार जब आप आएं, तो क्यों ना आप दूसरी पुस्तक लिखें। किताब जो स्पष्ट बताए कि हम ने क्या प्राप्त किया है।’ तो जैसे वो सरल हैं, वह सब पढ़े लिखे हैं। ऐसा नहीं कि वो नहीं है परन्तु उनको ये उलझनें नहीं है। और ये सारी पेचीदगियां जो पश्चिम में होती है, हमें उनके बारे में सावधान रहना चाहिए।
यह सिर्फ, मैं आप को बताती हूं क्यों, किसी तरह पश्चिम में प्रवृति बन रही है और हर चीज़ में हम चरम सीमा पर चले जाते हैं, है चीज़ में। आप उन्हे कुछ भी ला दें। मेरा मतलब उन्हे कोई साधारण चीज़ ला दें। अब जैसे की, मैं आप को दस फूल देती हूं, ठीक है? आप मुझे दस फूल दीजिए ठीक है! मैं उन्हे ले जाकर एक गमले में रख दूंगी। आप एक परदेसी को दस फूल दीजिए। वह आप को पत्र लिखेगा, ‘धन्यवाद दो कुमुद, दो गुलबहार के फूलों, एक ये, एक वो के लिए। (सहज योगियों के हंसने का स्वर) और मुझे पता है आप किस दुकान से वो लाईं हैं। और फिर वह दुकान में जाकर पता करेंगे कि मैंने कितना भुगतान किया होगा। (सहज योगी और श्री माताजी के हंसने का स्वर) फिर वह पता लगाएंगे कि उसका प्रतिफल कैसे किया जा सकता है। क्योंकि आपने उनको दस फूल दिए हैं तो एक और फूल होना चाहिए कम से कम ग्यारह तो हों। उसका मूल्य कितना होगा? तो मूल्यांकन किया जाएगा। फिर वह बैठकर विश्लेषण करेंगे कि इन चीजों का सौंदर्य शास्त्र क्या है और कौन सी चीजें हमें देनी चाहिए। मेरा मतलब है कि यह सिर दर्द है! मैं आप को बताऊं! एक साधारण बात जैसे दस फूल देने की। यह हुआ एक हद से बाहर जाना!
अब समस्या यह है कि इन सब चलते हालात से, इन सब घटनाओं से हम किस हद तक नीचे आ जाते हैं! हम कितने छोटे हो जाते हैं? क्या आप पहचानते हैं, क्या आप देखते हैं कि अब हमारे लिए सब से महत्पूर्ण बात क्या है? हमारी अर्थिंक गतिविधि नहीं। क्या है? नहीं! पीने की गतिविधि भी महत्वपूर्ण नहीं है। बेशक यह दूसरी सब से महत्वपूर्ण या तीसरी सब से महत्वपूर्ण बात है। या फिर मादक द्रव्यों को सेवन! कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। सबसे प्रारंभिक गतिविधि जो हर जानवर जानता है पश्चिमी दिमाग के लिए सबसे महत्वपूर्ण गतिविधि बन गई है। मेरा मतलब की हम सेक्स पाॅट बन कर रह गए हैं। मैं कहूंगी ये एक पागलपन है! अब आप का पुनरुत्थान हो गया है, आप इसे बिल्कुल स्पष्ट देख सकते हैं। पर उनका क्या जो यह नहीं देख सकते? आप उनसे क्या कहते हैं? आप उनसे किस प्रकार बातें करते हैं?और यह सबसे बड़ी समस्या है क्या आप यह नहीं जानते कि आप किस ओर अग्रसर हो रहे हैं। आप कहां हैं आपने अपनी स्थिर होने के साधन खो दिए हैं इन हलचलों के कारण। टिकने के साधन बिल्कुल खो गए हैं। आप उस गहराई को नहीं जान सकते कि आप कहां हैं! ये इस प्रकार है जैसे आप सब जगह घूम के वापस उसी स्थान पर आ जाएं।
जैसे मैंने एक चित्र देखा कि कुछ लोग एक हवाई जहाज में भटक गए और अचानक मूर्छित हो गए और उन्हें लगा कि वह अंतरिक्ष में बाहर की ओर जा रहे हैं और किसी नई जगह पर उतर रहे हैं। अचानक वह एक जगह पर उतरे और और वह बहुत ही सुन्दर स्थान था। वहां पर एक नदी थी बहुत सुंदर पहाड़ था। उन्हें लगा कि शायद वह चांद पर उतरे हैं या किसी ग्रह पर जो इतनी खूबसूरत और प्रचुर जगह थी। और वह बड़ी खुशी खुशी वहां व्यवस्थित हो गए उन्होंने कहा हम यहीं पर बस जाएंगे। रॉबिनहुड की तरह हम अपना घर यहां बना लेंगे और बहुत सुखी लोग हो जाएंगे। और यह सोचते हुए वह सो गए। और सुबह वह एक अंग्रेज पुलिस कर्मी द्वारा जगाय गए जो कह रहा था कि, ‘अरे आप लोग यहां क्या कर रहे हैं?’ वह लोग इंग्लैंड में ही थे!! उन्होंने इंग्लैंड से उड़ान भरी और वापस इस स्थान में उतरे और उन्हें पता नहीं चला कि वे कहां है।
यौन क्रिया के काल्पनिक संसार में आप नहीं जानते आप उसी प्रारंभिक बिंदु पर हैं, उसकी बुनियाद में, जहां आप ने कुछ भी नहीं किया है! किसी भी प्रकार की कोई उन्नति नहीं! आपने सिर्फ एक मिथ्या भास की रचना की है, एक बहुत ही नाटकीय सामग्री संपूर्ण विषय पर, और मुख्य बुनियादी समस्या यही है। इस और ध्यान ले जाने कि आवश्यकता है। यह इंगित किया जाना चाहिए। इसे समझने की आवश्यकता है।
और एक बार सहज योगी होने के नाते जब आप समझने लगते हैं, तब आप को अनुभव होगा कि आप लोग जो कि पश्चिम में हैं उनके लिए कितना महत्वपूर्ण है सहज योग में बड़े पैमाने में उतरना। और यही कारण भी है कि फिलहाल आनंद आप की पहुंच से बाहर रखा गया है, क्योंकि आप को वो हलचलें ज्ञात होनी चाहिए उनको समझाने के लिए क्योंकि मान लीजिए आप एक पश्चिमी दार्शनिक, बुद्धिजीवी से मिलें। मैं उनमें से कई से मिलती हूं, सिरदर्द मैं कहूंगी, क्योंकि मैं इन बातों में इतनी अच्छी नहीं हूं और वो एकदम से शुरू हो जाते हैं। ‘क्या आपने श्रीमान सनकी की किताब पढ़ी? मैंने कहा, ‘वो कौन हैं? अरे वो पी.एच.डी हैं उस विषय में, एम.ए.डी उस विषय में।’ ‘नहीं, मैंने नहीं पढ़ी।’ ‘ओह वह कहते हैं, ठीक है।’ आप को पूरा पुस्तकालय पढ़ना पड़ेगा उनसे वार्तालाप करने के लिए। फिर वह कहेंगे कि आपकी यह बात हमारी सभ्यता में अनुकूल नहीं बैठती।
कल्पना कीजिए क्या ये संस्कृति है अंग्रेज़ों या पश्चिमी लोगों की। आधुनिक बुद्धिजीवी, आप समझ सकते हैं, वे क्या हैं? वहीं बुनियादी बात, बस इतना ही! उस से अधिक कुछ नहीं। वो आप को अपने अहंकार को बनाए रखने के लिए कह रहे हैं, सिर्फ यही करने के लिए। सब कुछ वही पर आकर समाप्त हो रहा है। और यहां आप को ऐसे मूर्खों का सामना करना पड़ता है, तो यही अच्छा होगा कि आप उनसे बात करने के लिए पूर्ण विश्लेषण जानते हों। वो परमात्मा के विषय में सुनना नहीं चाहते, वह ईसा मसीह के बारे में सुनना नहीं चाहते, वह किसी और के बारे में सुनना नहीं चाहते परंतु सिर्फ उस व्यक्ति के जो उन्हें सिर्फ ‘वो’ बनने के लिए कहता है। वह अवमूल्यन कर रहे हैं आप कह सकते हैं, ना कि क्रमगत उन्नति। वे अधोगति में हैं। ऐसे व्यक्ति को आजकल स्वीकार किया जाता है और वह परमात्मा के समकक्ष माने जाते हैं।
यह सहज योगियों का कार्य है कि वह समझें और पहचाने उनके पश्चिमी होने के महत्व को। उन्हें कितना शक्तिशाली होना चाहिए, और इस से लडने कि कितनी इच्छाशक्ति उन में होनी चाहिए क्योंकि यह निर्णायक क्षण है। और मेरे लिए भी ये निर्णायक क्षण है। आप सब रहे हैं..सारे सहज योगी, कोई नहीं है! आह क्या आप पहले आई हैं? हैं ना?
(श्रोताओं में से एक आवाज़) नहीं! मै नई हूं।
श्री माताजी : अच्छा! मैं क्षमा चाहती हूं। क्या आप आज इन्हे आत्म साक्षात्कार दे सकते हैं क्योंकि आज मैं, हमेशा की तरह, समय मेरे लिए नहीं बैठता और मैं समय के लिए नहीं बैठती। मुझे किसी कार्य के लिए जाना है जो आप समझते हैं।
आप सब मेरे घर पर रात के भोजन के लिए आमंत्रित हैं, और सब कुछ आप के लिए पकाया गया है, जो जाना चाहते हैं। क्योंकि मैंने कुछ को आमंत्रित किया था। वह आज सुबह आए थे..दिन के भोजन के लिए पर मैं उन् सब को बता नहीं पाई। लेकिन मैं बाहर जा रही हूं जबकि मैं वहां हूं। जो जा सकते हैं और जो कुछ खाना चाहते हैं मेरे घर जा सकते हैं। वहां है, मुझे आशा है, काफी भोजन होगा। अगर नहीं तो मुझे आशा है कि कोई वहां इस पक्ष को सम्हाल लेगा।( श्री माताजी किसी सहज योगी से – अचार वचार भी बहुत है घर में। सब निकाल लेना। पूरी वूरी भी बनवा लेना तरीके से (जो मेरे घर जाना चाहते हैं उनका स्वागत है और जो भोजन बनाया गया है उसका स्वाद चख सकते हैं और आनंद लीजिए!
मैं क्षमा चाहती हूं आज, देखिए मुझे जाना है परन्तु आप को आत्म साक्षात्कार मिल जाएगा, कोई चिंता नहीं। क्या आपके हाथों में ठंडी हवा आई? कुछ नहीं? पक्का? अब जरा यह देखिए! फिर से उड़ने का कार्य! अब जरा देखिए आप को ठंडी हवा आ रही है या नहीं?
नई महिला: यहां और यहां!
श्री माताजी : फिर ठीक है! काम हो गया। अब आप उडिए! तेजी से उड़िए! तुरंत! तेजी से उड़ीए। अगर आप वापस फिर से गड्ढे में स्थापित हो गए तब तो मुश्किल होगा, ठीक है? उन्हें मिल गया है! यह अच्छा है, उन्हें कुछ कागज दीजिए। मुझे मालूम नहीं था आप नई हैं! परन्तु फिर भी कोई बात नहीं। कोई फर्क नहीं पड़ता। यह बातें सहज योगियों के लिए थीं क्योंकि यहां सब वास्तव में महान हैं, बहुत ही ज्ञानी हैं (हंसने की ध्वनि) असल में मुझे आप लोगों से बहुत कुछ सीखना है। मुझे बहुत सारी बातें नहीं पता। मैं आप को बताऊं और वो ऐसा ज्ञान था। मैं बहुत ज्यादा पढ़ती हूं उस को।
तो बहुत बहुत धन्यवाद और किसी को उनका मार्गदर्शन करना है। (श्री माताजी छाया से कह रही हैं- छाया? उनको लेकर जाओ और इतनों के लिए तो शायद नहीं होगा लेकिन जरा सा उस से कहना जरा चावल बना लो। और कुछ बना देगा वो। वैसे काफी है घर में सामान। आज खाना दे दो सबको जितने जाएं।)
जो जा सकते हैं, जाना चाहते हैं, जाएं! ठीक है? क्या है?
सहज योगिनी : आप का कोट!
श्री माताजी : मैंने कुछ बातें सीखी है इंग्लैंड में, वो है कोट पहनना। इसी प्रकार आपको भी कुछ चीजें सीखनी हैं।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
कारण ये है(अस्पष्ट) सब प्रकार के (अस्पष्ट) आप को प्राप्त हो रहे हैं जब से मैं यहां आयी हूं। सिर्फ आपके पास ही होता था (सफेद?) जल्दी और वो सब..क्या आप को याद है? क्या आपको वह याद है (अस्पष्ट)। वह कभी खोज नहीं पाया एक (अस्पष्ट) पहले मैंने आपको पहचान लिया था।
सुंदर! श्री गणेश आप का फिर से धन्यवाद! सिर्फ तुलना करने के लिए। अब आप ने क्या दिया ?
यह साड़ी है, अगर आप को याद हो, जो आपने मुझे दी थी पूजा के लिए।
धन्यवाद!
श्री माताजी :क्या आपने पता मालूम किया?
योगी : हां श्री माताजी!
श्री माताजी : क्या उसने फोन किया?
योगी : नहीं, वो गया है.. फोन नंबर नहीं ढूंढ पाया मां!
श्री माताजी: माफ कीजिए! क्या कहा आप ने?
योगी: वो टेलीफोन नंबर नहीं ढूंढ पा रहा। वह किताब में नहीं है और हाई कमीशन ने गलत नंबर दिया।
श्री माताजी: ठीक है! तो हम पंद्रह मिनट बात करेंगे! यह सुंदर है। तो क्या हम चलें अब? धन्यवाद! बहुत-बहुत धन्यवाद!
योगिनी: विलमा कैसी है?
श्री माताजी: हैलो! आप कैसी हैं? बेहतर? आप बहुत बेहतर दिख रही हैं। बहुत बेहतर। हां? पहले से बहुत जवान!
महिला: (अस्पष्ट)
श्री माताजी: अब मुझसे मत डरिए! ठीक है? वह कार्यान्वित होगा अब। ठीक है?
जैफ बड़ा वाला (खाने की वस्तु) लीजिए।आप उसको क्या कहते हैं?
योगिनी: नटीज़
श्री माताजी: हम इनको नग्गेट्स कहते हैं। आप इन्हें मेरे घर ले जा सकते हैं। हमारी बैठक खराब हालत में पड़ी है। आशा है आप को देखना बुरा नहीं लगेगा.. उस जैसा है।
ठीक है! अलविदा! परमात्मा आप को आशीर्वादित करें!
सहज योगी: अलविदा अलविदा!