The Real Becoming, Seminar

Old Arlesford Place, Arlesford (England)

1980-05-18 The Real Becoming, Old Alresford Place, Winchester, UK, 73' Download subtitles: EN,ZH-HANS (2)View subtitles:
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                                               “वास्तविक बन जाना”

 ओल्ड आर्लेसफोर्ड , नियर विनचेस्टर, हैम्पशायर, इंग्लैंड 

18 मई, 1980

… इन सभी मिश्रणों के साथ, अब इसके बारे में सोचो। यह केवल इसलिए है क्योंकि मैंने तुम्हें जन्म दिया है। इससे पहले कोई नहीं कर सका था, मैं आपको बताती हूं। आप दूसरों का इलाज कर सकते हैं; आप सहज योग पर भाषण दे सकते हैं। आप अपनी समस्याओं को जान सकते हैं; आप अपने माता-पिता का इलाज कर सकते हैं। आप अपने खुद के परिवेश को ठीक कर सकते हैं। आप खुद को और दूसरों को साफ कर सकते हैं। केवल आत्मसाक्षात्कार के साथ यह शुरू होता है। यह सब एक साथ एक गठरी में है। यह पहली जागरूकता से जब यह केवल एक इच्छा मात्र थी से क्या छलांग है और यहां आपने सब कुछ शुरू किया। लेकिन ये सभी चीजें जो शुरुआत में जब आप इच्छुक थे, काफी मज़ेदार लग रही थीं,  आप में एक बहुत ही सूक्ष्म,सुंदर स्वरूप बना कर वे आप में आ जाती हैं।

इस समय, आप अपने चक्रों, उनकी समस्याओं को महसूस करते हैं। आप फिर से उनका विश्लेषण करना शुरू करते हैं। पश्चिम में सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे विश्लेषण करना शुरू करते हैं। आप उन्हें एक केक देते हैं, वे इसका विश्लेषण करेंगे। उन्हें कुछ भी दें, वे इसका विश्लेषण करेंगे। उन्हें लगता है कि विश्लेषण सबसे बड़ी बात है और यह कि यह विश्लेषण व्यवसाय उनके लिए कितना दीवानापन है। यहाँ वे अपने आत्मसाक्षात्कार पर निर्भर हैं, दूसरी तरफ सब कुछ का विश्लेषण कर रहे है। आप देखते हैं, पैरों का विश्लेषण किया जाता है, चरणों का विश्लेषण किया जाता है, नाखूनों का विश्लेषण किया जाता है, फिर उन्हें माइक्रोस्कोप में लिया जाता है और देखा जाता है। कहाँ तो पैर ऊपर चढ़ने के लिए उपयोग किए जाने हैं, और यहां आप पैरों और चरणों का विश्लेषण कर रहे हैं। आप देखिए की, जो कुछ भी आप पर लदा हुआ है, उसी को आप अपनी पहचान बना लेते हैं तो पूरा उद्देश्य ही खो जाता है। इसलिए अब आपको कहना चाहिए, “अब हो चूका ! अब मैं एक परिवर्तित व्यक्ति हूं। ” सबसे बड़ी बात यह है कि आपकी इस जागरूकता में, जब आप आत्मसाक्षात्कारी होते हो, तो आपको स्वीकार करना चाहिए की , पहले जो व्यक्ति था [मेरा पिछला व्यक्तित्व]वह मर चुका है, समाप्त हो गया और चला गया। “मैं एक अलग व्यक्ति हूं।” यहाँ तक की लोगों को यह स्वीकृति भी मुश्किल लगती है, क्योंकि अहंकार है। (हँसी) यह आपको अनुमति नहीं देता है। यह कहता है, “हे भगवान, यह कैसे हो सकता है? मेरे कहने का मतलब है कि ‘मैं पूरी तरह से रूपांतरित हो गया हूं।’ “? आप बिल्कुल रूपांतरित हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आप लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिला सकते हैं! आप किसी को बताते हैं, वे कहते हैं, “ओह, मुझे यह पता है।” (हँसी) वे सब भाग जाएँगे! कोई भी आप पर विश्वास नहीं करेगा। लेकिन आप जानते हैं कि आप आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं। किसी को विश्वास नहीं होगा। वह महाजन योगी जिसने आपको आत्मसाक्षात्कार दिलाया, पहले उन्होंने कहा, “माँ, यह कैसे हो सकता है?” वह विश्वास नहीं कर सकता था कि वह बोध दे सकता है। बेचारा साथी इतने सालों से योगी ’के रूप में काम कर रहे हैं, शुरुआत में वह इस पर  विश्वास नहीं कर सके थे। वही व्यक्ति जिसने ‘फेलिसिटी’ को आत्मसाक्षात्कार दिया है। यहां तक कि, मेरा मतलब यह है कि यदि लोगों को यह विश्वास करने में समय लगता है की वे आत्मसाक्षात्कार दे सकते है। वे इस पर विश्वास नहीं कर पाते। तो बनने के लिए आप को कम से कम भरोसा करना होगा की हाँ आखिर आप आत्मसाक्षात्कार दे रहे हैं। यह तो ऐसा है की आपके सामने एक सफेद कपड़ा है, फिर भी आप कहते हैं कि यह काला है [या] हार्स ब्लू! इसलिए इन ‘हार्ट्स ब्लूज़’ के साथ  व्यवहार करना सबसे खराब स्थिति है (पिछले दिन की बातचीत से एक मजाक का जिक्र है ‘बनने की तैयारी’)। आप आत्मसाक्षात्कार दे रहे हैं। अब देखें, इयान, माना जाता है की वह एक मनोचिकित्सक के पास जा रहा है, वह उस मनोचिकित्सक को आत्मसाक्षात्कार दे सकता है! (हँसते हुए) जो डॉक्टर आपका इलाज करने जा रहा है, आप उसे आत्मसाक्षात्कार दिला सकते हैं। भरोसा रखो, तुम कर सकते हो। लेकिन जब वह उनसे यह कहता है, तो दूसरा व्यक्ति सोचता है, “ओह, वह अन्य सभी जैसा एक है!” लेकिन कम से कम आप खुद पर विश्वास करें। यहाँ आपको श्रध्दा होना चाहिए,यह श्रद्धा की आप को सहज योग से आत्मसाक्षात्कार से प्राप्त हुआ है। कि यह एक जबरदस्त शक्ति है, और यह कि एक सर्वव्यापी शक्ति है, जो कि पूर्णत: गतिशील है, और यह कि वह शक्ति आप में से प्रवाहित हो रही है, और यह कि आप बोध दे रहे हैं, और यह कि आपकी माँ कुछ विशेष है।

आस्था। श्रद्धा इसलिए नहीं क्योंकि मैं कह रही हूं, तो यह अंधा है, लेकिन आपने इसे देखा है। लेकिन यह जो है वो है! जब आप इसे देखते हैं, फिर भी इस पर विश्वास नहीं करते हैं, तो मैं इसे क्या कहूँ ? आप निश्चित रूप से जानते हैं कि ऐसा हो रहा है लेकिन फिर भी आप इस पर विश्वास नहीं करते हैं तो मैं क्या कह सकती हूँ ? यदि आप मानते हैं कि ऐसा है, तो यह श्रद्धा है। कल्पना कीजिए, विश्वास का अर्थ अंधापन? यह तो, जो भी जैसा है उसके प्रति आपकी दृष्टी को बहुत अधिक खोल रहा है और जो जैसा है वैसा स्वीकार कर रहा है।

और फिर श्रद्धा विकसित होना चाहिए। इस स्तर पर,श्रद्धा की शक्ति आपकी मदद करती है,  और कुछ नहीं केवल श्रद्धा की शक्ति। और , मुझे कहना चाहिए, श्रद्धा की शक्ति सबसे बड़ी शक्ति बनती है क्योंकि तब आपको पता चलता है कि अब तक आपने जो भी जाना था उसका कोई मूल्य नहीं है। यह कुछ इतना महान और इतना विशाल और इतना गतिशील है। यह अचानक से इतना कुछ है जो की आप पहले कभी नहीं जानते हैं, कि आप वास्तव में हतप्रभ हो जाते हैं और फिर आपको विश्वास होने लगता है। अब, तब, जब मैं कहती हूं कि आप सिर्फ इस तरह से अपने हाथ रखें  और एक बंधन डालें  – यह काम करता है, यह काम करता है। फिर आप यह भी देखना शुरू करते हैं कि जब माँ सिर्फ खुद पर ऐसा करती है, तब भी तो हम सभी इसे महसूस करते हैं। जब माँ खुदके हाथ पर फूंक मारती है  … (श्री माताजी अपने हाथ पर फूंकती  हैं और सभी योगी हंसते हैं।) … तो हमें यह महसूस होने लगता है कि हम उनमे हैं और वह हम में है – और हमें उसकी संपूर्णता के बारे में पता है और वह हमारी स्वास्थ्य-प्रदाता है। फिर विश्वास बढ़ने लगता है। आप इसका विश्लेषण नहीं कर सकते क्योंकि यह विश्लेषण से परे है, विचार से परे है। तो समर्पण शुरू होता है। अब यदि आप विश्लेषण करते हैं, तो आप नहीं कर सकते। अब आप  इसका विश्लेषण नहीं कर सकते। आप केवल मृत चीजों का आप विश्लेषण कर सकते हैं, जीवित का आप नहीं कर सकते। और यह जीवन से परे है। जो चीज जीवित को जीवन देती है – यह वही है जैसी की यह है। इसलिए आप इसका विश्लेषण नहीं कर सकते। इसलिए तुम समर्पण करने लगते हो।

जब आप समर्पण करना शुरू करते हैं और श्रद्धा आती है तो आपकी जागरूकता इससे अधिक बढ़ जाती है। और ये छोटी-छोटी, चीजें जो बारीक हो गई हैं, वे आपसे विदा होने लगती हैं। यह तीसरी अवस्था है जहां आप अपने तीन गुणों को देख सकते हैं, लेकिन वे आपको प्रभावित नहीं करते हैं।

तो पहली अवस्था में आपकी इच्छा होती है। दूसरी अवस्था में, जो एक बहुत बड़ी बात है, आप इच्छा को पूरा होते हुए देखते हैं लेकिन ये सभी सूक्ष्म चीजें आपके साथ मिश्रित होती हैं।

तीसरी अवस्था  में आप उन्हें देखते हैं, तीसरे चरण में, लेकिन वे आपको प्रभावित नहीं करती हैं। यह तीसरा चरण है जब व्यक्ति को यह देखना होता है कि वे आपको प्रभावित नहीं करती हैं। आप पकड़ देखते हैं, लेकिन तब आप उसे पकड़ नहीं कहते, आप ‘रिकॉर्डिंग’ कहते हैं। आपको लगता है कि आप एक उपकरण हैं, आप सिर्फ रिकॉर्डिंग कर रहे हैं। उस [पकड़ने] का प्रभाव बहुत छोटा, बहुत कम हो जाता है। आप इतने शक्तिशाली हो जाते हैं कि इस पकड़ने का प्रभाव बहुत कम होता है। आप इसे सिर्फ एक प्रभाव के रूप में रिकॉर्ड करते हैं। यह आपकी उन्नति  की तीसरी स्थिति है… ..

 (एक तरफ किसी अन्य व्यक्ति से ) हां इसे थोड़ी देर के लिए रखें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, इसे अपने पास रखें। ठीक है। इसे रख लो |

अब यह, इस तीसरी अवस्था में। इस तीसरी अवस्था तक उठने के लिए एकमात्र तरीका पूर्ण श्रद्धा है। विश्वास है, सबसे पहले आपको श्रद्धा के बारे में कुछ चीजें सीखना होगा: उनमें से एक प्रोटोकॉल है। लेकिन , यदि आप श्रद्धा के साथ प्रोटोकॉल सीखते हैं, तो आपको इसके बारे में बुरा महसूस नहीं होगा। लेकिन अगर आप मजबूरी से करते  हैं, तो आपको बुरा लगेगा। आप देखिए, मिलीजुली स्थिति अभी भी जारी है।

इसलिए श्रद्धा विकसित करने के लिए आपको सबसे पहले अपने आप को तर्कसंगत रूप से स्पष्ट रूप से बताना होगा कि, “क्या तुम देख नहीं रहे हो कि ऐसा हो रहा है? क्या आप इसे नहीं देख सकते? क्या आप देख सकते हैं कि यह बढ़ रहा है? क्या तुम नहीं समझ सकते? “खुद को बताओ। क्या यह गतिशील नहीं है? बैठ कर सोचो यह कितना अद्भुत है, कितना महान है। जरा पेड़ों से बात करो, सागर से बात करो, फूलों से बात करो, इन दीवारों से बात करो, वे कई मनुष्यों से बेहतर हैं! और उन्हें बताओ, “क्या आपको ऐसा नहीं लगता?” संग्रहालय में जाएं और सभी मूर्तियों को बताएं, “मैंने इसे पा लिया है, मुझे मिल गया है !”स्वयम को बताओ।देखिये खुद को बता बता कर आप अपनी श्रद्धा विकसित करेंगे अन्य कोई रास्ता नहीं है।

कई लोगों ने मुझसे यह सवाल पूछा है: “श्रद्धा कैसे विकसित करें?” अब, यह एक ऐसी बेतुकी बात है। यहाँ आप कुंडलिनी को आगे उठा रहे हैं, आप बोध दे रहे हैं और पलट कर पूछते हैं, “माँ, हम श्रद्धा कैसे विकसित करें?” मेरे लिए यह समझ से परे है कि … मेरा मतलब है, यहाँ हो क्या रहा है? अभी तुम क्या कर रहे हो?

यह श्रद्धा तब व्यापक होना शुरू होती है जो मैं कहती हूं: मतलब अवशोषित करना, ना की आलोचना, ना पीछे हटाना, बल्कि अवशोषित करना। यह अवशोषण कई अन्य तरीकों से भी बाधित किया जा सकता है। आप के उत्थान का एकमात्र तरीका अवशोषण है। एक पेड़ कैसे बढ़ता है? अवशोषण द्वारा। अवशोषण का मुख क्या है? निर्विचार है। निर्विचार क्या है? जहां आप इसके बारे में नहीं सोचते हैं।

अब जब मैं कहती हूं कि आप को सोचना नहीं हैं, तो निचले स्तर पर, लोग कहेंगे, “ओह, तुम जानते हो, वह बहुत हावी होती है, वह बहुत हावी है, मुझे कहना होगा!” (हंसी) यह विचार आएगा, लेकिन  अवशोषण केवल तभी संभव है जब आपके पास श्रद्धा हो। और सारी बात तुम्हारे भीतर उतर जाती है। तुम बस इसे बच्चे की तरह चूस लेते हो। आप के भीतर पूरी बात चली जाती है। बिना किसी लहर वाली एक स्थिर झील  की तरह जो अपने आसपास की पूरी रचना को प्रतिबिंबित करती है। यदि कोई तरंगें हैं, तो वहाँ भ्रम है, भ्रम की स्थिति है।

तो यह चरण श्रद्धा का है जो दूसरे चरण से शुरू होकर तीसरे तक जाता है। उदाहरण के लिए, अब हम मेरी तस्वीर का एक साधारण मामला लेंगे। पहले कोई फोटो नहीं थे। आपकी जानकारी के लिए केवल मेरे जीवनकाल में, फ़ोटोग्राफ़ी शुरू हुई हैं। इस फ़ोटोग्राफ़ी को भी आपने अपने दम पर विकसित किया है। बेशक, होली घोस्ट की मदद से, कोई संदेह नहीं है, ज़ाहिर है, यह बिना कहे समझा जाता है। लेकिन, आपने इसे विकसित किया है। मुझे स्वयम यह पता नहीं था, कि यह तस्वीर मुझे इतना पकड़ लेगी। मैं खुद नहीं जानती थी। आप आश्चर्यचकित होंगे, कि मैंने देखा कि ये तस्वीरें एक मूर्ति की तुलना में अधिक शक्तिशाली हैं, जो कि मेरे पिछले स्वरूप के अनुसार बनाई गई हैं। क्योंकि यह वर्तमान की चीज है। जैसी की मैं विद्यमान हूं। मैं खुद हैरान थी कि यह चैतन्य और प्रकाश उत्सर्जित कर रहा है, और यह कि मेरी तस्वीर इतनी अच्छी तरह से काम कर सकती है। आप देखिये की मुख्य समस्या यह थी कि इतने सारे लोगों से संपर्क कैसे करें? आप कह सकते हैं, एक सौ सहज योगी, आपके पास दो सौ हो सकते हैं, आपके पास अधिकतम दो हजार हो सकते हैं। आप इन ठगों को देखते हैं यह बहुत आसान है – आप बस एक पंजीकरण करो , आप पैसे भरते हैं और आप वहां पहुँच जाते हैं। लेकिन सहज योग अर्थात एक व्यक्ति का बनना है, जागृति और अहसास है। यह कैसे काम करे? यह मेरे लिए बहुत बड़ी समस्या थी। यह ऐसा नहीं है कि मैं आपको केवल एक पुस्तक दे दूँ की बस बैठकर पढो और कहो कि, “हां, मुझे मिल गया है, मैं बन गया हूं।” यह वास्तविक बनने, पकने, परिपक्व होने की, जीवंत प्रक्रिया है। अब मैं इसे कैसे करूं? और यहाँ इसका उत्तर है – एक तस्वीर है। फिर आपका टीवी, वह भी आधुनिक। बेशक, टीवी के लोगों ने मुझे अब तक स्क्रीन पर जाने की अनुमति नहीं दी है, लेकिन मैं भारत में स्क्रीन पर चली गयी हूं। केवल पूना में, यहाँ नहीं – थोडा कठिन है। पहले, उनके पास सभी ठग को जाने दो, फिर मैं जाऊंगी, जैसा की हमेशा से रहा है। तो यह वही है, जो आपके सभी मीडिया का उपयोग मेरी तस्वीर के माध्यम से किया जा सकता है। यह कितना सुंदर आशीर्वाद है! और, अगर आपको लगता है की , फोटोग्राफ मेरा प्रतिनिधित्व कर रहा है तो, मुझे लगता है कि आप इसे पूरी तरह से व्यक्त नहीं कर रहे हैं। मैं आश्चर्यचकित थी कि मेरी तस्वीरें किसी भी मूर्तियों यहां तक कि जो धरती माँ द्वारा निर्मित हैं, की तुलना में अधिक शक्तिशाली हैं, ! क्योंकि इन तस्वीर में इतने सारे तत्व मिले हैं। उदाहरण के लिए, आप देखते हैं, इसे प्रकाश तत्व मिला है, इसे जल तत्व मिला है, इसे पृथ्वी तत्व मिला है, इसे वायु तत्व भी मिला है। यदि हवा ठीक नहीं है, तो आपको एक तस्वीर नहीं मिल सकती है। और इसे आकाश तत्व भी मिला है। कोई भी प्रतिमा इन पांचो तत्व से निर्मित नहीं हो सकती। फोटो को आकाश तत्व इसलिए मिला है क्योंकि यदि आपके पास यहां एक तस्वीर है, तो आप इसे किसी अन्य स्थान पर भेज सकते हैं – जिसे आप कहते हैं? – इसे किसी भी स्थान पर संचारित करें। फोटोग्राफ प्रेषित किया जा सकता है। लेकिन आप प्रतिमा को वैसा की वैसा प्रसारित नहीं कर सकते है, केवल प्रतिमा की एक तस्वीर को आप प्रसारित कर सकते हैं। तो इसे आकाश तत्व भी मिला है।

अतः फोटोग्राफ किसी भी अन्य प्रतिमा की तुलना में अधिक शक्तिशाली है। इसके अलावा, यह एक प्रतिकृति है, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन पांच तत्वों के साथ वास्तविकता की प्रतिकृति है। इसलिए मुझे इस फोटो को सिर्फ अपना एक प्रतिनिधि नहीं कहना चाहिए, यह बिलकुल मैं ही हूँ । क्योंकि मेरा चित्त वहां है। हमने इसके साथ प्रयोग किया है। इन ‘शरायु गडकरी’ के पास मेरा एक फोटो था और उनकी रिश्तेदार उनके पास आई थी और वह तस्वीर का मजाक उड़ाती थी और सभी तरह की बातें कहती थी। वह फोटो मेरे पास लायी और  दिखाया कि यह सब काला, काला हो गया है। तो मैंने कहा, “वहां कौन था?” उसने बताया की, “वह मेरा, कोई रिश्तेदार थी जो वह आई थी वह इस तरह से करती थी। यह काला हो गया है। ” मैंने कहा, “आप इसे अभी समुद्र में डाल दिजिए। मेरा चित्त वहां नहीं है, कोई चैतन्य नहीं है। मेरा चित्त हट गया है, मैं देख पा रही हूँ की वहां से हट गया है। आपको फोटो को इस तरह नहीं रखना चाहिए था।”  इसलिए एक मूर्ति और एक तस्वीर के बीच बहुत बड़ा अंतर है, क्योंकि वहां मेरा चित्त है। बेशक, यहां तक कि स्वयंभू प्रतिमाएं भी, जो पृथ्वी माता द्वारा बनाई गई हैं, उनमें चैतन्य भी है और वे यह प्रदर्शित भी करती हैं की उनमे चैतन्य है, लेकिन वे आपको कुंडलिनी का जागरण नहीं दे सकती, चूँकि मेरी तस्वीर में मेरी इच्छा भी है। प्रतिमा नहीं कर सकती। अगर वे कर सकती होती, तो स्टोनहेंज करता। यदि आप इन मूर्तियों के पास जाते हैं, और अगर मैं वहाँ खड़ी हूँ, तो वे कोई चैतन्य नहीं देते हैं। केवल आपको अपना एक हाथ मेरे और तथा एक उनकी ओर रखना है,फिर वे उत्सर्जित करने लगते हैं और फिर यह शुरू होता है। लेकिन आपको मेरी अनुमति स्वीकार करनी होगी। यहां तक कि आपको जो श्री गणेश की जो मूर्ति मिली है, अब तो वह सब ठीक है, लेकिन शुरुआत में, जब तक इस तरह से कार्यान्वित नहीं किया गया था, तब तक वह कभी भी चैतन्य नहीं देती थी। लेकिन उनके पास अधिकार की कमी नहीं है।तो इन तस्वीरों का प्रोटोकॉल भी उस श्रद्धा को विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण है। आपको अपनी जेब में हर समय अपने साथ एक तस्वीर रखनी चाहिए। इसका सम्मान करो। जितना संभव हो, उनका सम्मान करें। सजावट के लिए नहीं, बल्कि सम्मान करने के लिए। सुबह आप फोटोग्राफ देखिए। मैं श्रद्धा की समस्या के कारण अभी आपको बता रही हूँ। इस अवतार का सबसे खराब हिस्सा यह है की,पूरी बात मुझे स्वयं बताना पड़ती है! क्योंकि अन्य चीजें जो आपने की हैं, उदाहरण के लिए, जो लोग ईसा मसीह का अनुसरण करते हैं, उनके पास सुबह उनकी तस्वीर होगी।  यदि वे हिंदू हैं विशेष रूप से, तो वे सुबह के समय, शाम के समय, गाने से पहले, बाहर जाने, बाहर आने, से पहले चरण स्पर्श करेंगे। उसी तरह, जब आपके पास एक तस्वीर होती है, तो आप उस समझ के साथ काम करते हैं, “यह श्री माताजी हमारे साथ है।” आप हैरान होंगे कि चीजें कैसे काम करती हैं।

मेरे भतीजों में से एक, सर्वेश, जिसे आप लोग जानते हो। वह माँ का बहुत बड़ा विश्वासी है, जो की मैं हूँ , और वह हमेशा उसके साथ एक तस्वीर रखता है। उसने लंदन की ट्रेन में अपनी हीरे की अंगूठी खो दी और वह वापस आ गया। उन्होंने कहा, “मुझे पता है कि मैं इसे वापस पा लूंगा क्योंकि मेरे पास अपनी चीज़ों में आपकी तस्वीर भी थी, मैं इसे गँवा नहीं सकता।” और उसने पाया। किसी ने इसे थाने में जमा किया और उसने पाया, वह मिल गयी। इसका श्रेय ब्रिटिश लोगों की ईमानदारी को जाता है, कोई बात नहीं। लेकिन मैं जो कह रही हूं, वह यह है कि आपको अपनी श्रद्धा और उस प्रेम को कैसे विकसित करना है। श्रद्धा आपकी मदद करेगी, बस श्रद्धा आप के सभी पकड़ों पर मरहम का कार्य करेगी। आप हर समय इस तरह के व्यक्ति नहीं रहेंगे की  “ओह, मैं झेल रहा हूं, ऊह, वेईआ, ऊऊह, वेईआआ” (ऐसा लगता है जैसे दर्द में हो रहा है) आप बस देख रहे होंगे, आप इसे तरह देखते हैं, जैसे कि हाथी चल रहा हो और उस पर भौंकते हुए सभी कुत्ते, वह बस चलता जाता है। यह उस तरह से।

तो तीसरी जागरूकता आती है कि आप यह सब को देखना शुरू कर रहे हैं, इसे रिकॉर्ड कर रहे हैं। यह तीसरी अवस्था है। फिर चौथी अवस्था आती है। चौथी अवस्था में, जिसे तुर्या दशा कहा जाता है, चौथा चरण है।

योगी: माँ, क्या आप इसे को दोहरा सकती हैं?

श्री माताजी:  क्षमा कीजिये क्या कहा आपने ?

योगी: आपने क्या कहा?

श्री माताजी: तुर्या – चौथी अवस्था है। चौथी अवस्था में आप इन तीन गुणों पर हावी हैं। आप सभी तत्वों को नियंत्रित करते हैं। इस स्तर पर, आप सिर्फ कहते हैं और यह काम करता है। आपने कल देखा कि मेरे साथ क्या हुआ। यह सिर्फ काम करता है। आप इन तीनों गुणों के मालिक बन जाते हैं।

जैसे मैं वर्णन करती थी कि: पहले आप कार में बैठे हैं और दूसरा कोई व्यक्ति आपकी कार चला रहा है। वह आपकी बाईं और दाईं बाजू का उपयोग करता है, या आप कह सकते हैं, ब्रेक और एक्सीलेटर, और कार चलाई जाती है। फिर वह आपको सिखाना शुरू करता है कि कैसे गाड़ी चलाना है। फिर आप अपने बाएँ और दाएँ – एक्सीलेटर और अपने ब्रेक का उपयोग करके सीखना शुरू करते हैं। फिर तीसरा चरण आता है जिसमें आप एक ड्राइवर बन जाते हैं लेकिन फिर भी आप उस शिक्षक के बारे में चिंतित होते हैं जो पीछे बैठा है, चिंतित होते हैं की क्या अब भी आप गलती कर रहे हैं, आप गलत कर रहे हैं। लेकिन फिर चौथा चरण आता है, आप निपुण हो जाएंगे, आप दूसरों को सिखायेंगे। यहाँ आप आदेश देते हैं, किसी को भी, सूर्य को आदेश, चंद्रमा को आदेश। आदेश का मतलब सिर्फ उन्हें कहना है, यहाँ मेरा मतलब, सवाल किसी वर्चस्व का नहीं है। केवल इच्छा मात्र करो, बस यह कहो, यह काम घटित होता है।

अब इस चौथे चरण को तुर्या दशा कहा जाता है। इसके बाद पाँचवाँ चरण आता है जिसका मैं आपको कोई नाम नहीं देना चाहती क्योंकि आप उस पर चिपक जाएँगे। वे इतने स्पष्ट नहीं हैं, वे एक दूसरे में मिल जा रहे हैं, और वे मिश्रण हैं। लेकिन तुर्या अवस्था में जब आप ठीक से परिपक्व हो जाते हैं तो आप पाँचवीं अवस्था में कूद जाते हैं, जिसमें आप भी नहीं होते हैं, आप संकल्प नहीं करते हैं, यहाँ तक की आप कुछ भी निर्धारित नहीं करते या कहते हैं। बस, आपके मुंह से कुछ भी निकल जाता है, हो सकता है कि वह ना भी निकले और यह कार्यान्वित होता है। एक अवस्था है। जहां आप पूरी स्थिति को यहाँ बैठे-बैठे संभालते हैं। यहाँ बैठकर, आप प्रत्येक वस्तु को जानते हैं। तब न केवल आपको इसमें महारत हासिल है बल्कि आप इसमें प्रवेश कर सकते हैं। अब, उदाहरण के लिए, मैं आपको बताती हूं कि मैं क्या कर सकती हूं: मैं आपके अवचेतन में, आपके सामूहिक अवचेतन में, आपके अचेतन में, सभी क्षेत्रों में प्रवेश कर सकती हूँ, आप देखिए, यदि मैं चाहूँ, मैं जा सकती हूं। यह तब होता है जब आप इसमे पूरी तरह से महारत हासिल कर लेते हैं, फिर आप इसमें प्रवेश करते हैं। जब तुम मालिक होते हो तो तुम उसमें प्रवेश करते हो। जब आप इस घर के स्वामी होते हैं तो आप किसी भी स्थान पर प्रवेश कर सकते हैं।इसके बाद सातवीं अवस्था आती है और यह अवस्था है जहां आप, बस आप हैं। आपका होना पर्याप्त है। बस वहाँ होना। अन्य कुछ भी मौजूद नहीं है लेकिन आप – स्वयम अपने लिए। अब आप इन सभी सातों अवस्थाओं तक पहुँच सकते हैं क्योंकि मैं उनसे परे खड़ी हूँ और मैं पहली अवस्था तक नीचे आई हूँ, और मैं आपको बाहर खींचने की कोशिश कर रही हूँ। यदि आप मुझे नीचे नहीं खींचते हैं तो मैं आपको बहुत तेजी से खींच सकती हूं। इसलिए केवल मेरा यही अनुरोध है की आप मुझे नीचे नहीं खींचें।

इस प्रकार से बनना घटित होगा, अब यह मौलिक बातें है। आप मूल संरचना कह सकते हैं। अब आप बीच-बीच में सारी खूबसूरत चीजें भर रहे हैं – कैसे करें। और सभी चीजों को अच्छी तरह से, फिर से व्यवस्थित किया जा सकता है और फिर से सजाया जा सकता है और ठीक से किया जा सकता है। लेकिन यह बनने की बुनियादी संरचना है। अब इस अवस्था या उस अवस्था में ही स्वयं को स्थापित करने का प्रयास न करें,  जो अभी भी इसके बारे में सोच-विचार कर रहे हैं उनके साथ ऐसा होना बहुत ही सामान्य है, । देखिये,यह बहुत सामान्य जिज्ञासा है की फिर, “माँ, मैं किस अवस्था में हूँ?” जब आप ही स्वयम को विकसित करते हैं, तो ऐसा आपके साथ होगा। आपको कुछ भी निर्धारित नहीं करना है। यह आप पर घटित होना चाहिए। इसे बढ़ने दें। इसे बढ़ने दें। लेकिन कम से कम आप एक ऐसी जगह पर हैं जहां आप निस्संदेह जागरूक हैं, आप में से अधिकांश। लेकिन फिर भी मैं कहूंगी कि मूल इच्छा अभी भी तीव्र नहीं है। कुंडलिनी का बल, मूल इच्छा उतनी तीव्र नहीं है। यह साफ किया जाना चाहिए। आप देखें, कभी-कभी ऐसा होता है कि घर ध्वस्त हो सकता है क्योंकि नीव ठीक नहीं हैं। मूल बातें में कभी-कभी गलतियाँ होती हैं। तो तुम अपने में उतरते हो, गोता लगाते हो, और ढूंढ लेते हो। “ओह, तो यह ऐसी बात अभी भी यहाँ है।” बाहर निकालो। आपको इन चीजों को बाहर निकाल देना होगा। और उस निराई को वास्तविक सतर्कता की आवश्यकता होती है। लेकिन आप आत्म-दया में न पड़ें या आप इस  अपराधबोध ’के धंधे में ना पड़ें। लेकिन खुद के प्रति एक बहुत ही सकारात्मक दृष्टिकोण रखें जैसे कि, “सब ठीक है, यह मेरी कार है, मुझे इसे सही रखना है।”यहां तक कि अगर आप कार के मालिक बन जाते हैं और कार बेकार है, तो क्या फायदा है? इच्छा कार है। कुंडलिनी। कुण्डलिनी वह इच्छा है। यदि आपकी कुंडलिनी कमजोर है, तो इसे थामे रखने की कोशिश करें, इसे बेहतर बनाने की कोशिश करें, इसे बढ़ाने की कोशिश करें। उसे पोषित करें। बनने की इच्छाओं के साथ अपनी कुंडलिनी को पोषित करें। आप इस एक इच्छा के द्वारा अन्य सभी इच्छाओं को बेअसर कर देते हैं। कुछ भी कहने के पहले, सोचें की , आप कह क्या रहे हैं? क्या आप एक इच्छा व्यक्त कर  रहे हैं? आपके पास सबसे बड़ा सौभाग्य है कि आपके यहाँ कोई है जो आपसे बहुत प्यार करती है और जो आपको यह सब दे सकती है। आप बहुत भाग्यशाली लोग हैं। इसलिए इसका उपयोग करें।

ईश्वर आपको आशिर्वादित करे।

लेकिन जिस स्तर पर आप हैं, आपको श्रद्धा विकसित करना होगी। आप सभी को अधिक श्रद्धा और अधिक विश्वास की आवश्यकता है, यही सब कुछ है । और जैसे ही यह श्रद्धा – जो की स्रोत है, जिससे की आप अवशोषित कर पाते हैं, यह आप में ही स्थित रस है जो इस पेड़ को विकसित करने जा रहा है। अधिक श्रद्धा और अधिक विश्वास और अधिक। चूँकि आपने अब शंका की सीमा पार कर ली है, इसलिए विश्वास इसे कार्यान्वित करने वाला है। हमारे पास मंत्रों के लिए समय है।

योगी: और आप देख सकते हैं कि वे यहाँ कहाँ बैठे हैं। प्रत्येक हमारा विचार जो हमारे चारों ओर घूमता है और आप अपने हर विचार को देख सकते हैं, …कहने का तात्पर्य है कि आप देख सकते हैं कि यह वहाँ बैठा है।

श्री माताजी: यदि आप वहाँ बैठे हुए भूतों को देखते हैं, तो उनसे छुटकारा पाएं – बहुत ही सरल है। तुम बस उन्हें कह दो की, “माताजी के नाम पर, बाहर निकलो!” ठीक है? और वे सभी उड़ जायेंगे। लेकिन जब आप कहते हैं कि “नाम में,” उस नाम पर आपकी श्रद्धा की ताकत क्या है? आपका अधिकार क्या है? क्या आप को मेरी बात समझ आई हैं?

योगिनी: जब आप कहते हैं कि आपकी एक इच्छा है, की हमें ऊपर खींचना । आप कहती हैं आप की एक इच्छा है।

श्री माताजी: यह  आपकी भी इच्छा है। देखिये, यह केवल आप की इच्छा है। मेरी कोई इच्छा नहीं है। यह आपकी इच्छा है; यह आप ही की शुद्ध इच्छा तुम्हारी माँ के रूप में आयी है, सब ठीक है? आपका सर्वोच्च स्व आपकी माता के रूप में आया है। वह भी आप ही का है | जब मैं कहती हूं कि मैं आपको बाहर निकालना चाहती हूं, तो मेरा मतलब है कि,  आपकी इच्छा यही है, इसीलिए। यदि आपकी यह इच्छा नहीं है, तो मैं यह नहीं करूंगी, ठीक है? यदि आप नहीं चाहते हैं, तो मैं यह नहीं करूँगी|

योगिनी: नहीं, मैं करती हूँ!

योगिनी: माँ, आपके यह कहने का क्या मतलब था की, “कृपया मुझे नीचे मत खींचो” या ऐसा कुछ?

श्री माताजी: नहीं, नहीं, आप मुझे इस अर्थ में खींचते हैं कि, देखिये,आपको ऊपर लाने के लिए मुझे जो शक्ति लगाना है और इस दौरान अब भी आप का चित्त कहीं और है| इसलिए जब कोई व्यक्ति आपको इससे बाहर निकालने की कोशिश कर रहा है, तो ने आप भी छुटने का प्रयास करें। क्योंकि तब आप जो व्यक्ति आपको बाहर निकालने की कोशिश कर रहा है उसके प्रयास को गिरा देते हो । क्या आप मेरी बात समझ सके हैं? चूँकि मैं तुमसे जुडी हूँ और तुम्हारे पास वजन है, इसलिए उन्हें छोड़ दो! ठीक है? क्या नहीं? इयान, क्या आप अब बेहतर हैं ?आप में कितनी श्रद्धा है यह केवल इस बात पर काम करने वाला है। FAITH आपके पास एकमात्र ऐसा शब्द है जो ‘श्रद्धा’ के बराबर अच्छा नहीं है, इसलिए मुझे ‘FAITH ‘ शब्द का उपयोग करना होगा। क्योकि, श्रद्धा अर्थात मान्यता है|

उन्हें भी 1 कागज़ (मंत्रों का) दें। आप सब इसे शेयर करें।श्री माताजी के 108 नामों के साथ पूजा का पालन किया।