Subtlety

London (England)

1980-06-08 Talk to Sahaja Yogis, Subtlety, 54' Download subtitles: EN,PL,PT (3)View subtitles:
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                                                 “कुशाग्रता”

 डॉलिस हिल आश्रम, लंदन (यूके), 8 जून 1980।

यह केवल उन लोगों के लिए संभव है जिनके स्वभाव में,  इस खंडित दुनिया में सहज योग के मूल्य को समझने,  सहज योग के मूल्यों को धारण करने,  और इसे बनाए रखने के लिए कुशाग्रता हैं।

दुनिया खंडित है और हर कोई अपने स्वयं के विनाश की ओर काम कर रहा है। लोग जिन सारे मूल्यों का अनुसरण करते हैं वे सतही मूल्य हैं। अधिकांश मूल्य बिल्कुल स्थूल हैं। तो सहज योग के लिए हमारे पास ऐसे लोग होना चाहिए हैं जो अपनी कुशाग्रता से न्याय करने की कोशिश कर रहे हैं।

ऐसे कुशाग्र लोग हमेशा सांसारिक भीड़ से थोड़ा अलग होते हैं; और ये लोग हमेशा अपने आप को इस तरह से व्यक्त करते हैं कि उनका अस्तित्व ही यह बताता है कि वे पूरी दुनिया को शक्ति प्रदान करने की कोशिश कर रहे हैं। आप ऐसा महसूस कर सकते हैं।

जो लोग महसूस कर सकते हैं कि हमारे भीतर एक तत्व है जो हमें दूसरों की मूर्खता पर हँसाता है, ऐसे लोग जो शायद खुद की दृष्टी में बहुत गंभीरता से कुछ चीजों को करते लग रहे हों। लेकिन हमें ऐसा लगता है जैसे कि यह उनके जीवन को बर्बाद करने वाली मूर्खता है। ऐसी एक क्षमता अलग ही लोगों की होती है।

पहले ये लोग, उनके अंदर ऐसी क्षमता और गतिशीलता रखने वाले, सहज योग में जमेंगे, न कि सामान्य सतही प्रकार के। लेकिन चूँकि हमारे दरवाजे सभी के लिए खुले हैं, क्योंकि कोई शुल्क या कुछ भी नहीं है,  किसी भी चीज़ के लिए, सभी प्रकार के लोग आते हैं। और जब वे आते हैं तो उन्हें पता नहीं होता कि वे क्या चाहते हैं। उनमें से कुछ सर्वाधिक सतही रूप हो सकते हैं। कुछ लोग सिर्फ कुछ चीजें उठा ले जाने के लिए अंदर चले जा रहे हैं, कुछ चोरी करने के लिए; संभवतः। मैंने हर तरह के लोगों को सहज योग में आते देखा है। ऐसे लोग जब पाते हैं कि वहाँ कुछ उपलब्ध है, तो वे आते हैं और चले जाते हैं।

एक अन्य प्रकार, शायद हो सकता है, जो यहां आ रहा है, वह ऐसा है जो अत्यंत सतही है, लेकिन वे ऐसा विचार रख सकते हैं कि वह यहां कुछ संपर्क कार्य कर सकते है; कि विभिन्न लोगों के साथ संबंध रखने से वह इसका फायदा उठा सकता है और इससे कुछ पैसे कमा सकता है।

तो पैसे की मानसिकता बहुत सतही चीज है, बहुत स्थूल चीज है। अगर लोग पैसे वाली मानसिकता के हैं तो सहज योग उनके साथ ठीक से काम नहीं करता है। यदि आप हमेशा पैसे के बारे में सोचते हैं, अपने बीमा के बारे में, कि कारपेट कैसे खराब हुआ है,  यह हुआ है, ऐसा हुआ है: ऐसे लोगों को बहुत कठिन हैं।

लेकिन इन से भी निम्न ऐसे लोग हैं जो सहज योग से किसी तरह का शोषण करने आते हैं। ऐसे सतही लोग भी आते हैं, और जब उन्हें समझ आता है कि,  वे अपनी योजनाओं पर काम नहीं कर सकते हैं, तो वे इससे बाहर निकल जाते हैं।

अब तीसरे प्रकार के लोग जो यहां आते हैं, वे सहज योग से कुछ भौतिक लाभ के लिए आते हैं, शायद शारीरिक लाभ भी: जैसे कोई बीमार है, इसलिए वे अपनी बीमारी के लिए आते हैं। यह चीजों को देखने का एक बहुत ही सतही तरीका है: ठीक होने के लिए सहज योग में आना। इसलिए जब वे ठीक हो जाते हैं तो वे गायब हो जाते हैं। (हँसते हुए) क्या यह बेवकूफी नहीं है!

तब कुछ लोग इस विचार के साथ आते हैं कि, “हो सकता है, माँ के आशीर्वाद से हमारी आर्थिक समस्याएँ हल हो जाएँ।” केवल उस विचार के साथ! फिर वे अपनी वित्तीय समस्याओं का समाधान भी पा लेते हैं, और वे बाहर निकल जाते हैं। लेकिन उनमें से कुछ, जैसा वे चाहते हैं उस अनुरूप करते नहीं हैं,  अथवा कर नहीं पाते हैं,  फिर वे परेशान हो जाते हैं।

अब सबसे अच्छी योग्यता, कुशाग्रतम प्रकार की, उस व्यक्ति की है जो केवल सहज योग की मांग कर रहा है, जो सिर्फ परमात्मा से योग कि इच्छा रखे है अन्य कुछ नहीं :वही श्रेष्ठ योग्यता है। ऐसा योग्य व्यक्ति कड़ी मेहनत करता है। उसमें बहुत एकाग्र प्रयास है। यह सहज योग को बहुत जल्दी समझता है।  केवल एक चीज यह है कि, पश्चिमी लोगों के सोचने की आदत के कारण, उनमें से कुछ लोग, हालांकि उनके पास एक योग्यता है, वे खुद के आसपास ही घूमते रहते हैं; वे इसके बारे में सोचते रहते हैं, इसके बारे में चर्चा करते हैं, इसके बारे में बहस करते हैं, और फिर वे एक बिंदु पर जम जाते हैं। (हँसते हुए) अन्यथा यह थोड़ा और गोल-गोल खुद के चक्कर खाते है। उनके पास एक योग्यता है, उनकी ऊंचाई है, उनके पास निश्चित रूप से है। उनके पास वह वजन है, वे अपने तत्व को महसूस कर सकते हैं, लेकिन फिर भी वे एक आदत के वश में चलते जाते हैं, क्योंकि वे इसके अभ्यस्त हैं; वे गोल-गोल घूमते हुए घूमते जाते हैं। उन्हें खुद को स्थिर करना होगा।

लेकिन एक ऐसा व्यक्ति जो सिर्फ बनना चाहता है, उसकी पात्रता, कभी भी किसी भी चीज़ से नहीं डिग सकती, क्योंकि वह एक तरह से कुशाग्र है; अपने जीवनकाल में वह अचेतन की गूढता को महसूस करता है। उसने इन देवताओं की आदिरूप आकृतियों को महसूस किया है। उसने उन्हें जान लिया है। उसके भीतर ये रहस्योद्घाटन हो चुके थे। जिन रहस्यों को उसने महसूस किया था उन्हें वह चिन्हित करता है और, पहचानता है और उनका मिलान वह सहज योग के साथ करता है, और सहज योग इस प्रकार उसको प्राप्त करता है।

अब ये परिष्कृत कुशाग्रता जिसका मैं आपको वर्णन कर रही हूं,  वे आप तक आप के इस जीवन भर के अपने मानसिक प्रयास के माध्यम से नहीं, बल्कि आपके द्वारा गुजारे गए कई जीवन के अनुभवों से आती हैं और जैसे ही आप सहज योग के नजदीक आते हैं, आप आत्मसात करना शुरू कर देते हैं। वही सबसे उत्तम योग्यता है। लेकिन, चूँकि दरवाजा कुछ खुला है, स्थूल का भी सतही अंदर आ सकता है। लेकिन कभी-कभी वे इस तरह से आते हैं और उसी तरह वापस जाते हैं। उनमें से कुछ, वे आधे रास्ते तक आते हैं और शिघ्रता से वापस चले जाते हैं। उनमें से कुछ अंदर आते हैं और दूसरी तरफ से बाहर निकल जाते हैं। लेकिन जो लोग स्वभाव से संवेदनशील होते हैं वे बने रहते हैं।

यह बहुत सूक्ष्म घटना है। यदि आपने अपनी संवेदनशीलता को खो दिया है: जैसे, कुछ लोगों ने जैसा कि मैंने बताया, यहां तक ​​कि अपनी उंगलियों के माध्यम से कड़ी मेहनत करते हुए, आप असंवेदनशील हो जाते हैं। यहां तक ​​कि अपनी उंगलियों के प्रति शारीरिक अनादर, आप थोड़ा असंवेदनशील हो जाते हैं, इसलिए जब आपको अपना बोध प्राप्त हो जाता है, तो भी आप वायब्रेशन को महसूस नहीं कर पाते हैं। लेकिन यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है। बेशक, आपको आत्मसाक्षात्कार के लिए चैतन्य महसूस होना चाहिए।

लेकिन हो सकता है कि कुछ बाहरी कारणों के कारण भी, या शायद कुछ शारीरिक समस्या के कारण, आपको ऐसी स्थिति मिल सकती है, जहाँ आपको वायब्रेशन का इतना एहसास न हो। लेकिन आपके मन में वायब्रेशन नहीं होने का संदेह नहीं उठेगा। आप बस यही सोचेंगे कि, “हाँ वायब्रेशन नहीं हैं, मुझे अपना विशुद्ध चक्र ठीक करना चाहिए। लेकिन यह वहाँ है। ” और अगर संदेह में आते हैं, तो भी एक कुशाग्र व्यक्ति इससे लड़ेगा, इसे तार्किकता से भी बाहर निकालेगा, लेकिन एक सतही व्यक्ति नहीं करेगा। कुशाग्र व्यक्ति एक बहादुर आदमी है और उसकी वीरता उन संवेदना की क्षमता से निर्मित है। वह संदेह के आगे नहीं झुकता। वह बस इसे देखता है और वह इसे लड़ता है। वह इसके आगे नहीं झुकता। लेकिन सहज योग एक ऐसी अद्भुत चीज़ है कि यहां तक ​​कि वे लोग जो कभी-कभी निरे सतही दिखते थे, अचानक संवेदनशीलता की इतनी सुंदर अभिव्यक्ति के साथ सामने आए कि आश्चर्य होता है। लेकिन ऐसा वह अपवाद स्वरुप ही है।

मन, और मानव मस्तिष्क, कुछ बिंदुओं पर संवेदनशील और कुछ बिंदुओं पर स्थूल है; यह सबसे आश्चर्यजनक है। शायद पृष्ठभूमि के कारण, शायद …

(एक अभिभावक से)

क्या आप उसे सबसे पीछे ले जा सकते हैं क्योंकि आप जानते हैं कि यह परेशान करने वाली है। न? बस अभी उसे पीछे ले जाओ,  सब ठीक है? अच्छा!

बस उसे बैठने के लिए एक सीट दो,  सब ठीक है? माफ़ करना! तब मैं तुम्हें अपनी गोद में लेने जा रही हूं, हुह? वह जगह छोड़ने से बहुत दुखी है!

यह एक बहुत ही सूक्ष्म विषय है, आप देखें। ध्यान दीजिए।

अगर कोई प्रतिभावान बनाया जाता है। वे इसे विलक्षण कहते हैं, लेकिन मैं इसे एक विशिष्ट स्वाभाविक प्रतिभा कहूंगी। विलक्षणता और प्रतिभा के बीच अंतर होता है: विलक्षण एक ऐसा व्यक्ति है जो अपने जीवनकाल के कुछ समय के लिए, अचानक बहुत प्रतिभाशाली हो जाता है, और कुछ समय बाद प्रतिभा दूर हो जाती है। और एक विलक्षण व्यक्ति मानसिक रूप से बिल्कुल, बहुत कम हो सकता है; बहुत हल्का। तो यह किसी प्रकार भुत ग्रस्त करके किया जाता है। लेकिन एक व्यक्ति जो एक विशिष्ट स्वाभाविक प्रतिभा है वह एक ऐसा व्यक्ति है जिसमें वो संवेदनशीलता हैं। जो विचारों से आच्छादित मन है, जो स्थूल है, जो सतही है, कुछ बिंदुओं पर बारीक हो सकता है और कुछ बिंदुओं के प्रति बहुत संवेदनशील हो सकता है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग संगीत के प्रति बहुत संवेदनशील हो सकते हैं, कुछ लोग कला के लिए हो सकते हैं, कुछ मनुष्य के लिए हो सकते हैं, कुछ अन्य चीज़ों के लिए हो सकते हैं, जो शायद उन्हें दुर्लभ व्यक्ति बनाते हैं। लेकिन ये परिष्कृत बातें, जो आपके व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं, हमेशा आपके व्यक्तित्व से इंगित करती हैं,  कि हमारी समझ से परे का कुछ है, जो आपके भीतर कुछ ख्यालों को प्रक्षेपित कर रहा है। ऐसे लोग ऐसी बातों के प्रति सचेत होते हैं: कि कुछ प्रतीक हैं जो आपके भीतर इन सूक्ष्म विचारों को प्रक्षेपित कर रहे हैं, और ऐसा कि,  वे आपके भीतर कुछ नई भावनाओं को प्रकट कर रहे हैं; और एक बार जब आप उन्हें महसूस करने लगते हैं तो आप उन्हें कहीं न कहीं अभिव्यक्त करने को मजबूर हो जाते हैं। इस तरह से कवियों को बनाया जाता है, संगीतकारों को बनाया जाता है और,  महान गुरु बनाए जाते हैं।

अब इन परिष्कृत विचारों को आचरण में प्रचलित करना एक और काम है। लेकिन इन परिष्कृत विचारों की सुंदरता यह है: कि वे स्वभाव से सार्वभौमिक हैं। अगर वे नहीं होते, तो वे सभी के लिए इतने आकर्षक नहीं होते। तो उनमें कुछ सार्वभौमिक है, और यह सार्वभौमिकता, जब किसी अभिव्यक्ति में प्रकट या प्रचलित किया जाता है, तो यह सार्वभौमिक रूप से आत्मसात किया जाता है।

अब यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह उन भावों के और अपनी आत्मा के भाव के कितना करीब है। यदि ऐसा व्यक्ति आत्मसाक्षात्कारी है, तो अभिव्यक्ति स्वर्ग तुल्य है। उन अभिव्यक्तियों कि बनावट, निश्चित रूप से, परिवेश, विभिन्न वातावरण, परंपराओं और उन सभी से निर्धारित होता है, जिसमें लोग रहे थे। वह इसके आचरण का हिस्सा है। लेकिन हर चीज का सार्वभौमिक सार, वह तत्व जो सार्वभौमिक है, एक विशिष्ट रूप में प्रकट होता है।

जितना अधिक व्यक्ति अपने स्व के पास होता है – यहां तक ​​कि आचरण भी स्वभाव से बहुत सार्वभौमिक होता है। तब ऐसा व्यक्ति परंपराओं से इतना ढलने की कोशिश नहीं करता है। लेकिन ऐसी परंपराएँ जो ध्यान के माध्यम से, या आत्मसाक्षात्कारी के माध्यम से आई हैं, निश्चित रूप से उसे अभिव्यक्ति का बेहतर मौका देती हैं।

तो आचरण भी विकसित होता है, धीरे-धीरे, हर देश में, हर जगह, जब तक यह उस बिंदु तक नहीं पहुंच जाता है जहां लोग उन्हें ध्यान में समझने लगते हैं।

अब दो प्रकार के आचरण हैं: एक ऐसा आचरण है जो बाहर से आता है, दूसरा अंदर से। अंदर से आने वाले आचरण महान गुरुओं की शिक्षाएं हो सकती हैं, जो आत्मसाक्षात्कारी हैं और इन महान गुरुओं के काम के बारे में आपकी अपनी समझ है। दूसरी शैली यह हो सकती है कि आप देखें कि लोग,  वे सभी, क्या उत्पन्न करते रहे हैं,और आप उसी से इकठ्ठा करते हैं, और उसी के अनुसार अपने आचरण की अभिव्यक्ति करते हैं। दूसरे प्रकार की चीज़ में वे आत्मसाक्षात्कारी हो भी सकते हैं और, नहीं भी हो सकते हैं|

अब जब हम सहज योग में जाते हैं, यहां तक ​​कि एक ऐसा व्यक्ति जो प्रतिभावान नहीं है, जो कभी प्रतिभावान नहीं रहा है, जिसे जीवन में किसी विशेष अभिव्यक्ति का कोई विचार नहीं था, वह बोध और उच्चतम प्रकार प्राप्त कर सकता है। शायद एक प्रतिभावान से बहुत अधिक, क्योंकि संभव है कि, प्रतिभावान अब तक एक जीन-गधा बन चुका हो ! उसका अहंकार फूला हुआ होगा तो, वह प्रतिभावान की जगह जीन-गधा भी हो सकता है!

लेकिन एक सहज योगी, जब वह अपनी प्रतीति प्राप्त करता है, तो उसका बोध उसकी कुशाग्रता की नहीं, उसकी कुंडलिनी की निशानी है कि, – वह किस हालत में है। यदि कुंडलिनी पूरी तरह से जमी हुई है, जिसका तात्पर्य है कि, किसी व्यक्ति को बोध पाने की कोई इच्छा नहीं है, तो वह सहज योग में इसलिए आ रहा है कि उसमें से कुछ पैसे कमाएं या कुछ नाम कमाएं, या वह सहज योगी के रूप में आने वाला एक चोर हो सकता है कुछ चोरी कर ले जाए, जैसे, मेरे जूते! ऐसा व्यक्ति आत्मसाक्षात्कार के लिए बहुत कठिन हो सकता है। लेकिन शायद कुछ अन्य लोगों के साथ, जिन्हें कुछ बुनियादी समस्याएं भी हैं, उनकी कुंडलिनी पूरी तरह से जमी हुई हो सकती है।

लेकिन बहुत साधारण वेशभूषा के लोग, बहुत ही सामान्य जीवन के, बहुत कुशाग्र हो सकते हैं, इन सभी जीन-गधे और प्रतिभाशालियों की तुलना में बहुत अधिक योग्य होते हैं – क्योंकि वे अपने स्व को महसूस कर सकते हैं। ऐसे लोग खुद को या दूसरों को धोखा नहीं देते हैं – कोई सवाल नहीं। सहज योग के प्रति उनका पूरा रवैया एक ऐसे व्यक्ति की तरह होता है जो मर रहा है और हवा के लिए तड़प रहा है। वे केवल सत्य को पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्हें जीवन में सत्य को पाने के अलावा कोई और दिलचस्पी नहीं है। ऐसे लोग बहुत दृढ़ निश्चय वाले हो सकते हैं, सामान्य से बहुत अलग हो सकते हैं। वे ऐसे विचार रख सकते हैं कि, कई बातें मूर्खतापूर्ण हैं। यहां तक ​​कि बस एक पत्नी और बच्चों और परिवार पाना काफी मूर्खतापूर्ण है, क्या ऐसा नहीं है?  यह जीवन की मंजिल  नहीं है। ऐसा समझना काफी बेवकूफी की बात है। मैं यह नहीं कहती कि आप इसे छोड़ दें, लेकिन यह जीवन की मंजिल नहीं है। यह सब ठीक है, यह इसका (जीवन का) एक हिस्सा है, लेकिन आपको इसमें खोना नहीं है। हम मानते हैं कि, शादी महत्वपूर्ण है और हम मानते हैं कि, विवाहित जीवन में पति, पत्नी को एक दूसरे को बहुत समझना चाहिए। दोनों के बीच प्यार होना चाहिए। आनंद होना चाहिए, ताकि बच्चों को भी परिवार की सुरक्षा महसूस हो, ताकि समाज में सुधार हो। यह सब ठीक है, लेकिन यह इसकी मंजिल नहीं है। भारत में आपको इस प्रकार के कई परिवार मिलेंगे: जहां पति, पत्नी अच्छी तरह से चल रहे हैं, बच्चे अच्छे हैं, उनका पैसा बैंक में है; जब वे मर जाते हैं, तो पैसा बच्चों को जाता है; फिर बच्चों की अच्छी तरह से शादी हो जाती है, फिर उनके बच्चे होते हैं, पैसा बैंक में जाता है; जब वे मर जाते हैं, तो पैसा उनके पास जाता है। यह दिन-रात ऐसा चलता जाता है। यह अन्य कुछ भी नहीं है, यह बहुत सांसारिक है। इसका मतलब यह नहीं है कि मैं तलाक में विश्वास करती हूं। बेशक, यह कुछ निरर्थक है। लेकिन विवाहित होने का मतलब है कि आपने जीवन में प्रवेश किया है। कम से कम आपको जीवन में प्रवेश करना चाहिए! जहां तक ​​प्रवेश करने का सवाल है, यह महत्वपूर्ण है। लेकिन यह सिर्फ मूल है, जीवन की मंजिल नहीं है!

यदि आप एक संवेदनशील-व्यक्ति हैं, तो आप यह नहीं सोचेंगे कि आप को  मौद्रिक रूप से क्या लाभ है, या आप क्या कर रहे हैं, क्या चीज है, आपको क्या लाभ मिला है। निश्चित रूप से आप देखेंगे कि जैसे योग स्थापित होता है, आपका क्षेम स्थापित हो जाएगा, आपकी भलाई स्थापित हो जाएगी। आप ऐसा स्पष्ट रूप से देखेंगे। आभारी होने के लिए यह देखा जाना आवश्यक है। और क्षेम सब ठीक है, क्योंकि आपको क्षेम की चिंता नहीं करनी होगी, लेकिन आपके पास खाली समय होना चाहिए कि आप खुद को ध्यान और सहज योग में समर्पित कर सकें: ताकि आपको बहुत ज्यादा चिंता न हो। इस तरह से क्षेम आता है|

लेकिन जब क्षेम आता है, तो व्यक्ति लालच के ही एक चक्र में जाना शुरू कर सकता है, अधिक से अधिक धन, अधिक से अधिक यह, बेहतर कपड़े, बेहतर घर, कैसे इसे प्राप्त करें: यह चक्र हो सकता है शुरू। इसका कोई अंत नहीं है, इसलिए आपको इसे काटना होगा। मैं यह नहीं कह रही हूं कि आपके पास सिर्फ एक पोशाक हो और आपका सारा जीवन एक ही पोशाक के साथ समाप्त हो; इसका यह मतलब नहीं है |क्योंकि आप जानते हैं कि अगर मैं कुछ भी कहूंगी, तो लोग दूसरे छोर की तरफ चले जाएंगे। मैं इसे मध्य में रखने की कोशिश कर रही हूं ताकि एक तरफ या दूसरे बाजु पर बहुत अधिक ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होगी; भोग की या तप की – इनमें से कोई नहीं। आप को कुछ भी त्याग करना नहीं हैं और न ही आपको किसी भी चीज़ में लिप्त होना है: लेकिन अपनी संवेदनाओं को महसूस करें, उन्हें बढ़ावा दें, उनका पोषण करें, उनकी देखभाल करें। आपको अपनी संवेदनाओं पर गर्व होना चाहिए: कि आपके पास ये सूक्ष्मतम मूल्य हैं, जबकि अन्य लोगों के पास नहीं है, और यह अपने आप में इतना शक्तिदायक होगा कि आप पूरी दुनिया के खिलाफ उन सभी मूल्यों को धारण कर सकें जो,  आप अपनी संवेदनशीलता से प्राप्त करते हैं।

क्योंकि दुनिया इतनी खंडित है, इतनी कटी हुई है, कि हर कोई अकेला महसूस करता है। लेकिन, किसी भी तरह से इसका यह मतलब नहीं है कि आप दूसरों के प्रति अभिमानी हों, आप दूसरों से संघर्षरत हों| नहीं! लेकिन अंधकार में एक दीप चमकता है। पूरा अंधेरा है। अगर दीप अंधकार को स्वीकार कर ले, तो वह अंधकार हो जाता है! इसलिए दीप को यह स्वीकार करना चाहिए कि: “मैं ही प्रकाश हूँ, और मैं ही मार्ग हूँ,” और खड़े हो जाना चाहिए। इसका किसी भी तरह से मतलब दूसरों के प्रति कोई अहंकार प्रदर्शन नहीं है, न ही दूसरों को दिखावा करना। लेकिन यह दीप है|और दीप, खुद ही, प्रकाश उत्सर्जन करता है।

जब ऐसा आपके साथ होता है, तो आप सबसे पहले खुद से नफरत नहीं करेंगे, बल्कि आप खुद से प्यार करेंगे और खुद का सम्मान करेंगे और अपने  गुणों का सम्मान करेंगे न कि आपकी स्थूलता का।

कुंडलिनी स्वयं आपको सूक्ष्मतर और संवेदनशील बनाती है। लेकिन अगर आप एक पत्थर हैं तो कुंडलिनी क्या कर सकती है? अब यह आप पर है कि आप कहाँ से पत्थर हैं। हृदय की बहुत खोज होनी चाहिए।

सबसे बड़ा पाषाण युग आजकल है (हंसते हुए)। दिल पत्थर की तरह है! यह चलता ही नहीं है दूसरों से बात करते समय, यह चलता नहीं है। इसमें कोई तरंग नहीं है, इसमें कोई आनंद नहीं है। यह एक पत्थर की तरह है जो सभी पर आघात करने के लिए बैठा है। आप देखिए कि,  कोई भी आपको देखता है, “ओह बाला! वह आ रहा है! दूसरी सड़क से जाओ!” “कौन?” “पत्थर दिल वाला बंदा!” और आपको लगता है कि आप बिलकुल ठीक हैं, आप बहुत अच्छे इंसान हैं क्योंकि आप पत्थर दिल हैं। आपको लगता है कि आप पूरी दुनिया पर हावी हो सकते हैं क्योंकि आप पत्थर दिल हैं, आप दूसरों को मनोवैज्ञानिक उपचार दे सकते हैं, चुप रह सकते हैं, किसी से बात नहीं कर सकते हैं, दूसरों पर चिल्लाते हैं और, जो भी आप चाहते हैं वह करते हैं, क्योंकि आपके पास पत्थर का दिल है। वहां स्थित तुम्हारे पत्थर को कुछ अहसास नहीं होता।

अब यह पत्थर दिली इस बात की निशानी है कि आपको सहज योग में नहीं रहना चाहिए। आप के पास आपकी माँ जैसा हृदय होना चाहिए: प्यार के साथ, करुणा के साथ, आनंद के साथ, प्रसन्नता के साथ, देने की भावना के साथ धड़कता हुआ। यही रवैया होना चाहिए, तर्कसंगतता नहीं, कुछ भी नहीं।

यह भावना है: दूसरों के दर्द , उनकी उत्कंठाओं और उनकी आकांक्षाओं के प्रति भावना| बस उन्हें, उनकी पूर्ण होने की और, स्वयं महासागर हो जाने की इच्छा अपने भीतर महसूस करना, अपने आप में इतना परिपूर्ण करने वाला हैं।

हमें आपसी व्यवहार मे अपने अपने मानक आदर्शों को बीच में नहीं लाना चाहिए। जैसे, “वह ऐसा करती है तो मुझे क्यों करना चाहिए?” “वह ऐसा करता है तो मुझे क्यों करना चाहिए?” यह बहुत ही औसत दर्जे का है। दूसरों को देखना, दूसरों की चिंता करना, दूसरों के बारे में बात करना बहुत निम्न श्रेणी का काम है। यह अत्यंत निम्न श्रेणी का है।

एक व्यक्ति जो किसी क्षमता का होता है, उसका स्तर इतना अधिक होता हैं कि वह दूसरों से अपनी तुलना नहीं कर सकता। ये सचमुच सत्य है। इसलिए, अगर मैं आपसे खुद की तुलना करने लगूं, तो मेरी स्थिति क्या होगी?  मेरा मतलब है, मैं यह नहीं कर सकती! तो आप कहेंगे, “यह आपके लिए सही है माँ!” यह सही है, मैं सहमत हूं, मेरे लिए यह सब ठीक है जैसी मैं हूं। लेकिन तुम भी मेरे जैसे हो सकते हो। लेकिन अगर मैं तुलना करना शुरू करूं और सोचूं, “हे भगवान, यह क्या है?” तो मुझे कुछ भी करने की सोच छोड़ देना चाहिए, “मैं कहाँ आ गयी?” लेकिन जब आप जानते हैं कि आप तुलना नहीं कर रहे हैं, तो आप बस दे रहे हैं, तुलना करने का सवाल बिल्कुल भी नहीं उठना चाहिए। यह सिर्फ अनुभूति है। मैं सिर्फ आपको महसूस करती हूं।

उसी तरह से आप एक दूसरे को महसूस करते हैं। कृत्रिम, विनम्र तरीके से नहीं: जैसे कुछ लोगों को लगता है कि, अगर उन्होंने अपनी सीट किसी अन्य व्यक्ति को दे दी है तो वास्तव में वे उदार व्यक्ति हैं, सबसे बड़े उदार लोग!

बस अब आप स्व हो जाओ: चलो देखते हैं। बस तुम स्व बनो, और यह कि, तुम प्रकाश हो। इसमें तुलना क्या है? तुलना तब होती है जब हमारी क्षमता कम है। यदि यह 24 कैरेट सोना है, तो क्या तुलना है? यह निरपेक्ष है। यदि आप एक पूर्ण बिंदु पर हैं, तो कोई तुलना नहीं है। इसलिए यह सुनिश्चित करने की कोशिश करें कि आपकी क्षमता वैसी हो, कि आप उस क्षमता के हैं और, सतही लोगों की परवाह नहीं करते हैं। सकल सकल हैं [और] सकल रहेंगे: आप बस उनके बारे में परवाह मत करो। आपको अपनी क्षमता को ठीक बनाये रखना चाहिए। और यही सहज योग का सबसे जरूरी हिस्सा है।

आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

पॉल विंटर: उन्होंने हमेशा मुझसे कहा कि वास्तव में आप ईश्वर हो, स्वयं पिता परमेश्वर। वैसे मैं ऐसा बिल्कुल नहीं देख पाता 

श्री माताजी: ठीक है, अब अपना हाथ मेरी ओर करो। प्रश्न पूछें: सबसे सरल कंप्यूटर। अपने कंप्यूटर पर काम करें और सवाल पूछें, समाप्त। वह, “वह ‘ई’ है, का अर्थ है वह वह है जो सर्वशक्तिमान ईश्वर की इच्छा है। वह ईश्वर की शक्ति है, और वह केवल वह है जो अवतार लेती है। ” यदि आप वेदों को पढ़ते हैं, तो यह कहा जाता है कि उसने अपने बच्चे की रचना की है, और पहली ध्वनि जो बनाई गई थी वह थी बच्चा। और वह ध्वनि वह ध्वनि है जिसे हम ब्रह्मा, या लोगोस कहते हैं, जैसा कि वे इसे कहते हैं।

तो अब, ईश्वर और ईश्वर की इच्छा में क्या अंतर है? सूर्य और सूर्य के प्रकाश के बीच क्या अंतर है? चाँद और चाँदनी में क्या अंतर है? शब्द और अर्थ में क्या अंतर है?

तो सर्वशक्तिमान ईश्वर जिसे लोग समझते हैं, वह सिर्फ एक साक्षी है।

जिस दिन ये दोनों चीजें मिलेंगी तब, कोई दुनिया नहीं बचेगी। जब तक वे अलग हैं, तब तक ये सब बातें हुईं। जब वे मिलते हैं, और एक-दूसरे में विलय हो जाते हैं, तो कुछ भी नहीं बचता है, वह सिर्फ ध्वनि बन जाता है, ब्रह्म।

हम इन चीजों को समझ नहीं सकते, क्योंकि हमने कभी दो चीजों को नहीं देखा है [जो हैं] जो ईश्वर और उनकी शक्ति के रूप में एक साथ लय हों। हम ऐसा कुछ समझ नहीं पाते क्योंकि कोई समानांतर उदहारण नहीं है।

अब, आप तार्किक ढंग से भी चीजों को भी देख सकते हैं, कि: लोग, जब वे मेरे सामने झुकते हैं, तो उनकी कुंडलिनी चढ़ने लगती है। शास्त्रों में लिखा है कि ऐसा आदि शक्ति के चरणों में ही होगा। केवल इतना ही नहीं, बल्कि आप लोग जो किसी सन्यासी जीवन या ऐसी किसी भी चीज़ से नहीं गुजरे हैं, उन्हें भी आत्मसाक्षात्कार मिला है और आपकी खुद की शक्ति उन्हें बोध दे रही है। क्या ऐसा नहीं है?

आज पूरी दुनिया में कोई नहीं है भले ही कुछ आत्मसाक्षात्कारी हो सकते हैं, जो दे सकते हैं, जिस तरह से आप दे रहे हैं, आत्मसाक्षात्कार| तुम जाओ और कुछ महान गुरुओं से बात करो: वे आपसे ईर्ष्या करते हैं। वे जानते हैं कि मैं कौन हूं, उन्होंने लोगों को बताया है कि,  मैं कौन हूं, लेकिन वे ईर्ष्या करते हैं। वे समझ नहीं पाते हैं कि क्यों सभी चीजों के ऊपर मैंने आपको वो शक्तियां दी हैं, जब कि उनके पास नहीं हैं। वे इस तरह से एक सेकेंड में आपको बोध  नहीं दे सकते हैं। कोई नहीं कर सकता। आप जा सकते हैं और उन पर एक नज़र डाल सकते हैं। वे महान लोग हैं कोई संदेह नहीं है। लेकिन आपकी कुंडलिनी एक जेट की तरह काम करती है। वे हाथियों की तरह चलते हैं, एक चक्र से दूसरे चक्र तक। कुंडलिनी उस तरह से आगे नहीं बढ़ती, जैसे वह आप में चलती है, क्योंकि मैंने आपको अधिकार दिया है।

आप उनसे जाकर मिल सकते हैं और वे आपको बताएंगे। ऐसे हजारों लोग हैं जो उन्हें शिष्य के रूप में मिले हैं, लेकिन वे उन्हें मेरे पास नहीं भेजते। उन्होंने कहा, “माँ आप को आप के लायक लोग मिल जायेंगे। ये सतही लोग, आप हमारे पर छोड़ दो। हम उन्हें प्रबंधित करेंगे,  हम उन्हें बाद में भेज देंगे। अभी बस अपने कुशाग्र लोग ढूंढ लीजिए। ”

सहज योगी कुछ कम क्यों हैं [क्योंकि] इस क्षमता के कुशाग्र लोग दुनिया में बहुत कम हैं। इसीलिए मैं आपसे हमेशा यह निवेदन कर रही हूं कि: अपना चित्त इधर-उधर न करें। स्थिर हों। अच्छे सहज योगी बनें। जहाँ तक और जब तक आप वास्तव में अच्छे सहज योगी नहीं बन जाते, तब तक मैं दूसरे स्तर पर नहीं जा सकती। चूँकि पहला स्तर अभी तक स्थापित नहीं हुआ है। वे निरर्थक बातों को लेकर चिंतित रहते हैं।

मेरा मतलब है कि मैं कभी-कभी, यह देखकर बहुत दुखी होती हूं कि आप आपस में लड़ते हैं। यह कुछ इतना दर्दनाक है, कि आप एक दूसरे को कठोर शब्द कहते हैं। मेरा मतलब है कि तुम मेरे लिए क्रीम ( सार )हो। तुम जाओ और गुरुओं में से किसी से पूछो, अगर वे आपकी तरह अपनी उंगलियों पर कुंडलिनी को हिला सकते हैं ! ये शक्तियां एक सामान्य व्यक्ति द्वारा नहीं दी जा सकती हैं। बेशक,  मैं साधारण दिखती हूं; मुझे दिखना होगा। लेकिन आपने मुझे अन्य रूपों में भी देखा है; वह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह है कि,] आपको अपना स्वयं का परिवर्तन देखना चाहिए और कितनी शक्तियाँ अभिव्यक्त हो रही हैं।

यदि आप जाते हैं और किसी को बताते हैं कि, “मैंने बोध देना शुरू कर दिया है और कुंडलिनी चढ़ाई है।” वे कहेंगे, “तुम पागल हो! ऐसा कैसे हो सकता है? असंभव! ” कोई भी आप पर विश्वास करने वाला नहीं है। आपको यह इतनी आसानी से मिल गया है: क्यों?”  क्योंकि मैं आप में कुशाग्रता को पहचानती हूं। ये गुरु मुझे पहचानते हैं। वे मेरे बारे में जानते हैं। वे जानते हैं कि मैं कौन हूं। वे दूसरों को बता रहे हैं। उनमें से बहुत सारे ऐसे हैं।

मैंने आपको यहां की महिला, अमेरिकी महिला की कहानी सुनाई। वह कभी-कभी आ सकती है। मुझे लगता है कि आप उससे मिले है, क्या नहीं? आप में से कुछ उससे मिले हैं। वह रंगून चली गई और वहाँ वह किसी बहुत महान, उच्च आत्मा से मिलने गई, जो एक पहाड़ पर रह रहे थे और वह कई लोगों से नहीं मिलते थे। लेकिन वह वहां गई और उन्होने वास्तव में उसका सम्मान किया। और जब वह अंदर पहुंची तो उन्होने कहा, “मैं तुम्हारे मुकाबले निचले स्तर पर बैठने वाला हूँ।” तो वह समझ नहीं पाई। उन्होंने कहा, “चूँकि आपने अपनी आँखों से माँ को देखा है। मैंने नहीं देखा है। फिर, मुझे आ कर उन्हें देखने के लिए मरना होगा। ” और तब वह हैरान थी।

लेकिन सबसे पहले यह जान लें कि आपके भीतर ये शक्तियां हैं। फिर जानो कि तुम उन्हें पा चुके हो क्योंकि मैंने तुम्हें चुना है। ठीक है? अच्छा!

अब देखो! केवल एक चीज: आप अपने अहं से छुटकारा पा लें, जो आपको विचार देता है। आप देखिये, कभी-कभी वे बड़े गुब्बारे की तरह आते हैं! तो अपने आप से कहो, “ओह मिस्टर अहंकार, कृपया बाहर निकल जाओ! ये शक्तियाँ मुझे इसलिए मिली हैं क्योंकि माँ ने मुझे चुना है, मुझे प्यार किया है, मेरा पोषण किया है और मुझे उनकी संतान के रूप में स्वीकार किया है। ” यह एक तथ्य है!

कोई भी विश्वास नहीं कर सकता है कि आप आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं, मैं आपको बताती हूँ। तुम जाओ और किसी को बताओ। तुम्हे करना चाहिए! लेकिन वे आप पर विश्वास करने वाले नहीं हैं। अगर यह फूल कहता है कि, “मैं प्रकाश स्तंभ में दीपक बन सकता हूं।” कोई भी इस पर विश्वास करने वाला नहीं है, क्योंकि प्रकाशस्तंभ के दीप एक विशेष कारखाने में एक विशेष विधि और तरीके से बनाया गया है। लेकिन माना कि, यह फूल ऐसा कहता है  या यदि यह फूल कहता है कि, “मैं आपकी बीमारियों का इलाज कर सकता हूँ।” किसी को विश्वास नहीं होता; लेकिन ऐसा हो सकता है।

जब कुछ शानदार होता है तो आपको विश्वास करना पड़ता है कि दिव्य कार्यरत है और इतना गतिशीलता से कार्यरत है। केवल एक बात है कि:अपनी उर्जा सतही लालसा, सतही भटकाव, और प्रलाप में बर्बाद न करें। सूक्ष्मतर और कुशाग्र होने की कोशिश करें।

ऐसा कुछ नहीं है जो मुझे कहना पड़े। अब आप इसके बारे में ईश्वरीय दृष्टिकोण से सोचें। आपको आत्मसाक्षात्कार दिया जाना है: पहला काम। यह एक सिरदर्द है जिसे आप जानते हैं! किसी को आत्मसाक्षात्कार देने का सिरदर्द उठाना होगा। एक बार सूली पर चढ़ा दिया जाना बहुत आसान है, लेकिन कई सौ बार,  बोध देते रहना, सभी तरह की अजीबोगरीब कुंडलिनी को उठाते रहना, आप कल्पना नहीं कर सकते हैं! (हंसते हुए) और फिर बोध देने के बाद भी आपको इसके बारे में सभी कुछ बताना: सभी चक्रों का रहस्य समझाना, आपको सभी चक्रों को दिखाना, आप को सभी को देवताओं, इन आदि रूपों और अन्य सभी चीजों के बारे में बताना। और इसका प्रत्येक शब्द सत्य है और भाग लेता है और कार्य करता है। आपने प्रयोग करके पता लगा लिया है।

किसी को आगे आना होगा। आने की यह मेरी बारी थी। मुझे कोई आपत्ति नहीं है, जैसा कि मैंने एक अन्य दिन कहा था, आप में से कोई भी मेरी सीट ले लेता तो,  मैं सहज योगी बनकर बहुत खुश होती! सच में, मैं आपको बताती हूँ! मैं सबसे खुश इंसान रहूंगी|  मैं आपको इस तरह की पाँच मालाएँ दूंगी और बाजार से सभी फूल आपके लिए लाऊँगी, अगर आप यहाँ बैठकर मेरे लिए काम कर सकते हैं।

संदेह करना, यह बहुत आसान है, लेकिन क्या आप यह कार्य कर सकते हैं? नहीं तुम नहीं कर सकते। यह पश्चिमी दिमाग के साथ परेशानी है, कि इसमें संदेह है। आप किस पर शक कर रहे हैं? संदेह करने के लिए क्या है? मैं खुद पर शक नहीं कर सकती, यह बहुत मुश्किल है। जब आप जानते हैं कि यह चाय है, तो आप कैसे संदेह कर सकते हैं? अब अगर आपको संदेह है, तो मैं क्या कर सकती हूं? इसे कैसे साबित किया जाये?

सबसे अच्छा तरीका है मेरे प्यार को समझना। उसके जरिए आप मुझे बेहतर समझ पाएंगे। मुझे अपने दिल से समझना बहुत आसान है,आपके दिमाग के बजाय क्योंकि मैं उन्हें झकझोरने में बहुत माहिर हूं; और मैं आपके साथ बहुत सारी चीजें खेलती हूं,  जिनके द्वारा मैं वास्तव में आपको बहुत कठिन समय देती हूं। क्योंकि अगर आप सोचना शुरू करते हैं, तो मैं आपको और अधिक सोचने को मजबूर करती हूं। यदि आपको संदेह होने लगे, तो मैं आपको और अधिक आशंका करवाती हूं। तो सबसे अच्छी बात है देखना। जैसा कि मैंने एक अन्य दिन बताया था कि, जो भी अगले कमरे में है, वहां जा कर देख लेना बेहतर है बजाय कि, यहाँ बैठ-बैठे शंका करते रहना, या इसे स्वीकार करना और यहाँ बैठना। नहीं न! खुद जाकर देख लो। और आपने इसे खुद देखा है।

लेकिन जरा सोचिए यह कितना जबरदस्त है। बस बैठो और सोचो, यह कितना महान है, यह कितना गतिशील है! कि आपने इसे अपनी आँखों से देखा है! जरा सोचिए, कि आपने इसे महसूस किया है। कि आप वो लोग हैं जो इसे पा चुके हैं। आप पहले कुछ लोग हैं जिन्होंने इसे जाना है। बाद में, हजारों और हजारों हो सकते हैं और पूरा ब्रह्मांड इसे अपना सकता है, लेकिन आप पहले कुछ हैं। अपनी क्षमता में सुधार करें। ऊपर उठो!

मुझे लगता है कि,  अगर आप मुझे विदाई दे सकते हैं, तो मैं जाना चाहूंगी क्योंकि पूरा दिन मैं वास्तव में बहुत मेहनत करती रही हूं। मैंने अपना खाना बनाया और भी किया।

अब, आप के साथ क्या मामला है? आप, अभी भी? अभी भी?  बेहतर है! ऐसे ही रखो!

ठीक है। अब क्या मैं आप से विदाई ले सकती हूँ?