The Guru Principle

Caxton Hall, London (England)

1980-07-28 The Guru Principle London NITL HD, 71' Download subtitles: EN (1)View subtitles:
Download video - mkv format (standard quality): Watch on Youtube: Watch and download video - mp4 format on Vimeo: Transcribe/Translate oTranscribeUpload subtitles

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

“द गुरु प्रिंसिपल”, कॉक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 28 जुलाई 1980

कल मैंने आपको भवसागर, धर्म के बारे में बताया था जिसे मनुष्य को स्थापित करना है।

आधुनिक समय में लोगों ने अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग उस सीमा तक किया है, वो बहुत आगे चले गए हैं, इस अति तक या उस अति तक। उन्होंने अपने केंद्रीय मार्ग को त्याग दिया है और स्वयं को स्वीकार और पहचान लिया है इस प्रकार के, प्रत्येक चीज़ के बारे में अतिशय विचारों के साथ, कि लोगों को यह समझाना कठिन है कि उन्होंने अपना मार्ग खो दिया है। कोई भी अतिशयता अनुचित हैं। संतुलन वह मार्ग है जिससे हम वास्तव में समस्या का समाधान करते हैं। किन्तु मानव जाति इस प्रकार की है कि प्रत्येक बहुत तेज़ी से दौड़ना आरंभ कर देता है, आप देखें और इसमें एक प्रतियोगिता निर्धारित है: कौन पहले नरक में जाता है। 

यह मात्र एक दिशा में नही है, आप किसी भी दिशा को ले सकते हैं, किन्तु ये सभी दिशाएं रैखिक हैं। वो सीधे जाते है और घूम जाते हैं और नीचे जाते हैं – उस प्रकार का कोई भी संचलन। उदाहरण के लिए मानो, हमारा औद्योगिक विकास।

हमने अपने औद्योगिक विकास का आरंभ सम्पूर्ण को समझे बिना किया है, सम्पूर्ण संसार, कि सम्पूर्ण संसार ईश्वर द्वारा बनाया गया था, एक भाग नहीं, एक राष्ट्र। संपूर्ण के साथ संबंध को समझे बिना, जब हम औद्योगिक रूप से आगे बढ़ना आरंभ करते हैं, तब हमने उद्योगों का निर्माण किया और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए हमें अन्य उद्योगों का निर्माण करना पड़ा। फिर भूखी मशीनों को काम कराने के लिए हमें उन्हें कुछ खिलाना पड़ा।

और इस प्रकार हमने उनका प्रयोग करते हुए, धरती माँ की चीज़ों को निकालने की एक भयानक प्रणाली बनाई। हमारे पास बहुत सी चीज़ें हैं, किन्तु हमारे पास वह चीज़ नहीं है जो आपकी आत्मा है।

हमने वह कभी नहीं सोचा कि अंत में यह सारी विषयवस्तु किसलिए है? ये सब बातें किसलिए हैं? सुविधा के लिए? वह भी, यदि संतुलन में नहीं किया जाता है, तो हम नष्ट हो जाएंगे, पूर्णतः नष्ट। हम कीड़ों की तरह हो जाएंगे।

धरती माँ आपके लिए उपलब्ध हैं, इसका तात्पर्य यह नहीं है कि आपको विवेकहीन होना चाहिए और इसे अपनी सुविधा के लिए प्रयोग करना चाहिए। वह आपकी सुविधा के लिए है, इसमें कोई संदेह नहीं है, वह आरामदायक तत्व है जो हमें मिला है, सबसे बड़ा आराम देने वाला तत्व। किन्तु हम नहीं जानते कि हम उसे अपने आराम के लिए कैसे प्रयोग करें। जिस प्रकार से हम उसका उपयोग करते हैं, उससे  बाहर निकालकर, उसे निचोड़ कर उपयोग किया जाता है। अब यदि मैं कहती हूँ कि दूसरी अतिशयत होगी, “हमारे पास कोई संपत्ति नहीं होगी, कुछ भी नहीं, आर्थिक रूप से सुदृढ़ हुए बिना, बहुत बुरी आर्थिक स्थिती में रहेंगे”। ऐसी चीज़ों पर विश्वास करने वाले लोग भी हैं जो रहना चाहते हैं, आर्थिक रूप से निम्न स्तर पर और उन्हें शारीरिक, मानसिक सभी प्रकार की बीमारियाँ होती हैं, क्योंकि वो रह रहे हैं, असामान्य रूप से, इस प्रकार से कि वो स्वयं का धरती माँ से बिलकुल भी सम्बंध स्थापित नहीं करते हैं। या तो आप उसे पूर्णतः सारगर्भित कर लें, जो भी उनके पास है या उनका सारा मांस, रक्त, सब कुछ छीन लो और नहीं तो आपके पास इसके अतिरिक्त करने के लिए कुछ भी नहीं है। ये दो अतिशय सीमाएं हैं!

और एक बार जब आप ऐसा करना आरंभ कर देते हैं, तब आप पाते हैं कि आप दोनों तरह से दास हो जाते हैं, क्योंकि आप इन स्थितियों की सहायता से स्वभाव बनाने लगते हैं। स्वभाव बनाना दासता है, पूर्ण दासता, यहाँ तक ​​कि उपवास जैसी प्रवृत्ति भी। अब कुछ लोगों को उपवास करना होगा। उन्हें किसने उपवास करने के लिए कहा है मुझे नहीं पता। उन्हें उपवास करने की क्या आवश्यकता है, जो लोग पहले से ही जिगर की बीमारी से पीड़ित हैं और छड़ी जैसे दुबले हैं, 

यह तब ठीक है, यदि किसी को उपवास करना है क्योंकि उसका वजन बहुत अधिक है या मान लीजिए कि वो पेट को थोड़ा आराम देना चाहते हैं, तब ठीक है। किन्तु यह उपवास भी एक ऐसा स्वभाव बन सकता है, ऐसी प्रवृत्ति कि जिस दिन आप उपवास नहीं करेंगे, आप कहेंगे, “ओह! आपने पृथ्वी पर सबसे बड़ा अपराध किया है। हे ईश्वर! मैंने गुरुवार को उपवास नहीं किया, मुझे उपवास करना चाहिए था।” भारत में हमें ऐसे बहुत से मूर्ख लोग मिलते हैं। वो विक्षिप्त हो जाते हैं क्योंकि उन्होंने उपवास नहीं किया। कुछ ऐसे हैं जो विक्षिप्त हो जाते हैं क्योंकि उन्होंने अपना भोजन नहीं खाया है। मेरा तात्पर्य है कि वो ठीक हैं, किन्तु यदि उन्होंने अपना दोपहर का भोजन नहीं खाया तब उनके लिए यह सबसे बड़ा अत्याचार है, उनके साथ किया गया सबसे बड़ा अन्याय है कि वो अपना दोपहर का भोजन नहीं खा पाए हैं।

ये स्थिति आपको दास बनाने लगती है और आपका मस्तिष्क उस स्थिति का दास बन जाता है। आप नहीं जानते कि यह धरती माँ किस रूप में है, जो आपको परम देने के लिए है, ये वह है जो आपके भीतर मूलाधार चक्र में रहती हैं, आपको अबोधिता प्रदान करने हेतु। वह आपको अबोधिता प्रदान करती हैं। उनके अबोधिता के उस सार को लेने के स्थान पर आप वह तत्त्व लेते है, जो मृत है। धरती माँ का जीवंत सिद्धांत अबोधिता है उनकी आकर्षण शक्ति, उनका गुरुत्वाकर्षण है। इनके स्थान पर आप उनसे जो लेते हैं यह वस्तु है। या तो आप इससे दूर भागते हैं या आप इसकी ओर भागते हैं। मध्य में कुछ भी नहीं।

अब वहाँ तत्त्व है आपके उपयोग के लिए, इसमें कोई संदेह नहीं है; किन्तु इसका उपयोग करने के लि याए ताकि आप पर वह हावी न हों, क्योंकि आप सर्वोच्च जीव हैं जिसे ईश्वर ने बनाया है। आप सर्वोच्च हैं, सभी तत्व आप में कार्यान्वित हैं। संसार में कोई भी प्राणी नहीं है जिनके भीतर यह सभी तत्व इतनी सुंदर प्रकार से कार्यान्वित है, कि आप स्वयं की इच्छा व स्वतंत्रता को विकसित करते हैं। यह एक ऐसी जटिल प्रक्रिया है जो मनुष्य में कार्यान्वित है, जिसके प्रति हम जागृत नहीं हैं, जहाँ आप अपनी इच्छा, अपनी स्वतंत्रता को विकसित करते हैं।

किन्तु पुनः आप क्या करते हैं? आप अपनी इच्छा से अपनी स्वतंत्रता को हर समय खोते है। उदाहरण के लिए एक ऐसे व्यक्ति को लीजिए जो विलासिता में लिप्त है। मेरा तात्पर्य है कि वह कभी-कभी मूर्खतापूर्ण है, मेरा तात्पर्य है कि वह वास्तव में एक मूर्ख बन जाता है, जिस प्रकार से वो यह सब करता रहता है। मेरा तात्पर्य है कि आप देख सकते हैं कि वह एक बुद्धिहीन और मूर्ख व्यक्ति है। दूसरा व्यक्ति, वो कहेगा कि यह विलासिता आसक्ति है। वह व्यक्ति बहुत ही मूर्ख और बुद्धिहीन है, जैसे कि आप देख सकते हैं। इसलिए वह कहता है,”ठीक है! मुझे इसे त्यागने दो।” वह एक अतिशयता पर जाता है, ऐसी अतिशयता पर कि वह एक नीरस व्यक्ति बन जाता है, पूर्णतः नीरस।

अबोधिता केंद्र में है।

उदाहरण के लिए, धरती माँ का सबसे अच्छा उपयोग उसके कार्य को देखना है। प्रकृति को देखो, प्रत्येक पेड़ देखो, प्रत्येक पेड़ का कितना सुंदर व्यक्तित्व है। पेड़ का प्रत्येक पत्ता आकाश के सम्मुख खड़ा है। मेरा तात्पर्य है कि यह एक कविता की तरह है, इसे पैरों से महसूस करना। वह कितनी कोमल होती हैं जब वह आपके लिए पुष्प उत्तपन करती हैं। आपको उनसे बहुत कुछ सीखना है जो वह करती हैं। वह सुगंध फैलाने के लिए पुष्प बनाती हैं, देने के लिए, देते रहने के लिए। वह मात्र देती हैं। उनकी अबोधित व्याकुल नहीं होती कि आप क्या हैं, यदि आप इसके अधिकारी हैं या नहीं, यदि आप एक अच्छे व्यक्ति हैं या बुरे व्यक्ति हैं या आप उनके संसाधनों का क्या प्रयोग करेगें, वह मात्र देती हैं। वह आपको आंकती नहीं हैं। निर्वाज्य – यह बहता है। मूल ब्याज के बिना बहता है। यह मात्र बहता और बहता जाता है और यही निर्वाज्य शब्द है। यह नहीं सोचती हैं कि वह किसे दे रही हैं, चाहे वो इसके अधिकारी हों या नहीं, यदि वो पापी हैं या वो ऐसे या वैसे हैं। किन्तु अब यह आप पर है कि आप अपनी विवेक का प्रयोग करें और उन्होंने आपके भीतर ज्ञान के इस देवता की संरचना की है और आपको उन देवता को जागृत रखना है।

वो आये, इस धरती पर ईसा मसीह के रूप में अवतरित हुए। उन्हें देखिए! उनके जीवन को देखिए। वह कैसे रहते थे। वो बढ़ई के पुत्र थे, वो बढ़ई के बेटे की तरह रहते थे। उन्होंने धन संचय नहीं किया।

और तीस वर्ष की उनकी आयु में इतना सक्रिय जीवन! इतना गतिशील जीवन, जिसमें से उन्होंने मात्र चार वर्ष लोगों के साथ बिताए।

हमारी सभी विलासिताओं के साथ और हमारी सभी सुख-सुविधाओं के साथ, हमारे सभी संचारों और हवाई जहाजों के साथ और यह सब, ऐसे कितने हैं जिन्होंने इस प्रकार के सक्रिय जीवन का निर्माण किया है? हम कितनी सक्रियता को दिखाने में सक्षम हैं, पृथ्वी की सक्रियता। “हमारे पास यह होना चाहिए, हमारे पास वह होना चाहिए, हमें यह प्राप्त करना चाहिए, हमें इसका आनंद लेना चाहिए।” ठीक है! किन्तु अनंत क्या है? मेरा तात्पर्य है कि हम इसे कितना आत्मसात कर पाए हैं और हम दूसरों को क्या दे रहे हैं, हमारा फल क्या है? इस वृक्ष का जो हम हैं?

कारण है, हमारे पास विवेक की कमी है। वो विवेक थे, वो वह हैं जो विवेक का उत्सर्जन करते हैं, जो हमारे अहंकार, प्रतिअहंकार, सब कुछ को संतुलित करते हैं। आप जानते हैं कि वह कहाँ स्थापित हैं, वह देवता। किन्तु जो लोग उनका अनुसरण करते थे या जो स्वयं को ईसाई कहते थे, वह विवेक कहाँ गया? विवेक वह एक चीज़ है जिसकी उन सब में कमी है।

क्या कारण है? क्योंकि हमने मात्र यह सोचा था कि उन्हें इसलिए सूली पर चढ़ाया गया क्योंकि वो एक निर्धन व्यक्ति थे या मुझे नहीं पता कि हम उनके बारे में क्या सोचते हैं। मैं मनुष्यों को नहीं समझ सकती, हमने उनके जीवन से क्या शिक्षा ली है? और ईसाई राष्ट्र भौतिक रूप से बहुत उन्नत हुए हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं? वो नहीं जानते कि निर्धनता कभी-कभी बहुत आनंददायक चीज़ होती है।

और उसके बाद अब एक प्रतिक्रिया आरंभ हुई है। मुझे विश्वास है कि प्रतिक्रिया भी आपको एक और अतिशयता पर ले जाएगी, आप लक्ष्य को खो देंगे। जैसे एक पागल व्यक्ति एक छोर की ओर दौड़ता है और जब वह जाता है, वहाँ से दूसरे छोर की ओर दौड़ने लगता है। 

क्या आपने कभी जंगली सूअर को भागते हुए देखा है? क्या आपने कभी जंगली सूअर को भागते देखा है? आप देखिए, जंगली सूअर के रास्ते से बाहर निकलना बहुत सरल है क्योंकि वह मात्र सीधा चलता है, जब तक उसे अवरोध नहीं मिलता। सीधा, वह इस ओर, उस और नहीं देखेगा। यदि आप मात्र उस रेखा से दूर रह सकते हैं जहाँ से वह आगे बढ़ रहा है तो वह आपको नहीं मारेगा। फिर वह उसी रास्ते से वापस आता है। इस रास्ते जाता है, वापस आता है। यही हमारी गतिशीलता है स्वयं के बारे में। हमने अपने जीवन में क्या किया है? चलो देखते हैं! जब हम सक्षम होते हैं, हम बीज हैं जो वास्तविक फल प्रदान करेगा। हम सक्षम हैं, आप अब इसे जानते हैं और इसीलिए सबसे पहले हमने स्वयं को सबसे बड़ी हानि पहुंचाई है अपने भीतर के सभी अवलंबन को नष्ट करके। जैसा कि मैंने आपको भाषण में एक दिन बताया था कि हमें अपने अवलंबन को कैसे बनाए रखना है।

मुझे आशा है कि यह आपके लिए बहुत अधिक नहीं था – यदि आपको लगता है कि मैं लोगों को यह बताने की प्रयास कर रही हूँ, तब वो भी कहते हैं, लोगों का एक समूह जो यह सोचता है कि यह सभी झूठी मर्यादाएं है। वास्तव में हम आधुनिक समय में हर चीज़ के बारे में बहुत भ्रमित हैं। मान लीजिए एक विमान को उड़ान भरनी है, उसके सभी पुर्जे एक उचित अनुपात में होंगे, एक साथ मुख्य ढांचे  से बंधे होंगे। अन्यथा सब कुछ अस्त व्यस्त हो जाएगा, है ना? अब यदि आपको अपने अचेतन में कूदना है, आपके सभी अंगों को शरीर के गुरुत्वाकर्षण से जुड़ा होना चाहिए, आपके जीवनाधार के लिए, अन्यथा आप अस्त व्यस्त हो जाएंगे। क्या आप यह कहेंगे कि विमान को उस प्रकार से रखना इसकी झूठी मर्यादाएं  है, इसकी स्वतंत्रता के लिए? आपके पास बहुत अधिक स्वतंत्रता होती है जब इसे ठीक से किया जाता है।  

एक व्यक्ति जो इस उड़ान के लिए उचित प्रकार से सज्ज है, उसके पास उन लोगों की तुलना में बहुत अधिक स्वतंत्रता है जो सोचते हैं कि नाक इधर रखी है, और कान दूसरी ओर रखें हैं, फिर आँखें दूसरी ओर जा रही हैं, उसका मस्तिष्क तीसरी ओर जा रहा है, उसका पेट दूसरी ओर जा रहा है। 

यहाँ वह मुझे सुन रहा है और वह अपने भोजन के बारे में सोच रहा है। उसकी आँखें कुछ और देख रही हैं। उसके पैर हिल रहे हैं। वह उछल-कूद कर रहा है। कोई उचित बंधन नहीं है और इसीलिए संस्कृत भाषा में एक शब्द है, संस्कार! संस्कार। अब “सं” का अर्थ है “अच्छा, सुंदर,” या आप कह सकते हैं “जो आपकी आत्मा के लिए अच्छा है।” यहाँ तक ​​कि  समझने के लिए वो “सुसंस्कार” कह सकते हैं, जिसका अर्थ है “उचित मर्यादाएं”, जहाँ आपको तराशा जाना है।

और उस तराशे जाने में यदि आप समझते हैं कि यह न मात्र आपके अच्छे के लिए है परंतु आपकी उड़ान के लिए भी है, तब आप हवाओं को सब कुछ नहीं देते हैं और यह सबसे बड़ी भूल है जो हमने की है, जब हमने अपनी स्वतंत्रता की उड़ान का प्रारंभ किया था।

आप स्वतंत्रता कैसे हो सकते हैं जब आप प्रत्येक चीज़ से बंधे होते हैं। 

आपको संध्या को मदिरालय जाना ही है। आपको अपने नृत्य के लिए जाना ही है। आपको एक मित्र से मिलना  ही है जो धूम्रपान करता है और उसके साथ धूम्रपान करना ही है। आपको एक दावत में सम्मिलित होना है जहाँ आपको पीना ही है। आपको एक विशेष समय पर सोना ही है। क्योंकि आप सो नहीं पाते इसलिए आपको गोलियां लेनी ही होंगी। आपके पास गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड होने ही हैं, उनके उपर धन खर्च करना ही है। मुझे नहीं पता कि आप क्या कहते हैं – डेट और इस प्रकार की चीज़ें। मेरा तात्पर्य है, मुझे यह सब बातें कितनी तुच्छ लगती है। भारत में भी यही बात है। मेरा तात्पर्य है कि उनके पास अन्य तुच्छ, तुच्छताएं हैं।

किन्तु जब आप अपने आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से अपने आत्म-सम्मान को समझते हैं, तब आप प्रयास करते हैं, सोचने का “फिर मैंने अपने जीवन का क्या किया है?” आप धूल में फेंके गए हीरे की तरह हैं। आपको इन सभी व्यर्थ चीज़ों के साथ अपने सापेक्ष संबंध का पता लगाना चाहिए जहाँ धन नष्ट होता है, आप व्यर्थ नष्ट हो गए हैं, आपका समय नष्ट हो गया है, सब कुछ नष्ट हो गया है, बस पता लगाएं। एक बार जब आप उसे खोज लेते हैं, तो आप उससे स्वयं को पृथक करना आरंभ कर देते हैं। किन्तु सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात जो मुझे कहते हुए खेद है – इन्हें झूठी मर्यादाएं या कुछ भी कहा जा सकता है, ये महत्वपूर्ण चीज़ें हैं, दस बातें हैं जो मैंने आपको दूसरे दिन बताई थीं।

अब सभी गुरु, सभी गुरु जो आए थे, उदाहरण के लिए हम सुकरात से आरंभ कर सकते हैं, फिर अब्राहम, मूसा – यह गुरु तत्त्व है, गुरु का सिद्धांत है, आदिकालीन गुरु। सिद्धांत बार-बार जन्म लेता है। भारत में हम आदिनाथ कह सकते हैं, हमारे यहाँ आदिनाथ थे, बहुत समय पहले के गुरु। उसके पश्चात् हमारे यहाँ दत्तात्रेय थे, हमारे यहाँ जनक, नानक, साईं नाथ थे। हमारे यहाँ मध्यपूर्व में मोहम्मद साहब, चीन में लाओत्से, कन्फ्यूशियस – गुरुओं के ये सभी महान सिद्धांत जो जन्में थे उनके पास एक कार्य था, आपका धर्म स्थापित करना। उनका कार्य आपको साक्षात्कार देना नहीं था, आपको समझना चाहिए, हर किसी का अपना कार्य होता है।

देखें मेरा काम प्रचंड है क्योंकि मुझे सभी का कार्य करना है ।

किन्तु उनका कार्य मात्र आपका धर्म स्थापित करना था। वो उस समय आए, उन स्थानों पर जहाँ इनकी सबसे अधिक आवश्यकता थी।

इसलिए इन दस सिद्धांतों को जैसा कि मैंने आपको बताया, उन्होंने स्थापित किया। उनकी भवसागर में रचना होती है, जैसा कि आप यहाँ भवसागर को देखते हैं, यह भाग जल तत्व से बना है। इसलिए उन्होंने जो भी चमत्कार किए, उनका जल से कुछ सम्बन्ध था, जैसे वो कहीं भी जल बना सकते थे, जहाँ भी वो चाहते थे। वो लोगों का उपचार नहीं करते थे। उन सभी ने जल का निर्माण किया है रेगिस्तान में या उन स्थानों पर, जहाँ … जैसे … नानक ने निर्माण किया, जिसे वो पंजा साहब कहते हैं, प्रत्येक स्थान पर वो जल बनाने में सक्षम हैं। उन्होंने जो भी स्पर्श किया उसमें से वो जल उत्तपन कर देते थे।

जल जीवन है, जीवन शक्ति है जो हमें जीवित रखती है; जल के बिना हम नहीं रह सकते, यही आधार है। किन्तु वो वास्तव में एक महासागर के, समुद्र के प्रतीक हैं, क्योंकि वो हमें नमक देते हैं, जीवन का नमक, जो हमें आधार देता है। यदि आप देखें, नमक, यदि हमारे शरीर में नमक नहीं होगा, तो हमारे पास कोई आधार नहीं होगा। मसीह ने कहा है, “आप नमक हो।” ये “आप” कौन हैं? वो लोग हैं जिनका मैं कल और आज सामना कर रही थी।

आप आज के गुरु हैं।

किन्तु देखें कि आप कितनी शक्तियाँ लेकर आए हैं। थोड़ा इसके बारे में सोचिए। इन गुरुओं को साक्षात्कार नहीं देना था। आप कुंडलिनी चढ़ा सकते हैं, आप साक्षात्कार दे सकते हैं, आप लोगों को ठीक कर सकते हैं।

आज जमील ने मुझसे पूछा कि, “माँ! क्या इनके पास उपचार करने की शक्तियाँ थीं?”

मैंने कहा, “शक्तियाँ उनके पास हो सकती हैं, किन्तु उन्होंने कभी भी उस शक्ति का प्रयोग नहीं किया क्योंकि उनसे करने की अपेक्षा नहीं थी। वो मात्र इन महान सिद्धांतों को बनाए रखने और उनका पालन करने के लिए थे।” उन्होंने उपचार किया, विशेष रूप से अंतिम गुरु साईं नाथ ने, उन्होंने लोगों का उपचार किया। किन्तु जमील ने स्वयं एक महिला को ठीक किया है जो मर रही थी,पूर्णतः। डॉक्टरों ने आशा छोड़ दी थी और उसने उसे ठीक कर दिया। अब वह ठीक है और वह भारत चली गई है।

मात्र इसके बारे में सोचिए, कि आपके पास इन गुरुओं की सारी शक्तियाँ हैं, हालाँकि – यद्यपि धर्म में आप अभी भी असफल हो रहे हैं। आप पूर्ण नहीं हैं। आपको इसे ठीक करना होगा, आपके धर्मों को ठीक किया जाना है।

अब हमारे भीतर धर्म क्या है, हमारा चित्त है। जैसा हमारा चित्त है, आप किसी व्यक्ति का धर्म जान सकते हैं। मज़हब उस शब्द को व्यक्त नहीं कर सकता है। धर्म का अर्थ है जो आपको संभालता है “धारयति सा धर्मा” वह जो आपको संभालता है। आपका धर्म वही है जिस प्रकार का आपका चित्त है। पूर्ण संतुलित चित्त रखना हवाई जहाज की तरह है, पूर्णतः संतुलित और पूर्णतः विकसित। यदि आपके धर्म में असंतुलन है, तो सबसे पहली और मुख्य बात कट्टरता है। यदि आप एक कट्टरपंथी हैं, तो आप अभी तक पैदा हुए सबसे बड़े अधर्मी हैं। धर्म संतुलन है। सबसे पहले और महत्वपूर्ण यह जानना है कि सभी धर्म एक ही कमल के हैं “नाभि”।

नाभि में दस पंखुड़ियाँ हैं और ये दस पंखुड़ियाँ हमारे भीतर दस जीवनाधार हैं। यदि आप देखें कि नाभि में दस पंखुड़ियाँ हैं – नाभि चक्र, सौर तंत्रिका। जो सभी सौर तंत्रिका से प्रकाशित होता है। और यदि आपकी ये दस जीवनाधार सही हैं, तो आपका ध्यान बहुत संतुलित होगा। जब तक एक पुष्प संतुलित नहीं होगा तब तक वह एक फल के रूप में विकसित नहीं होगा।

प्रथम संतुलन है। किसी भी प्रकार की कट्टरता, किसी भी धर्म या किसी भी अवतार की निंदा करना धर्म के विरुद्ध है। जो आपको असंतुलन देता है। इसका तात्पर्य है कि आप धर्म के सार को नहीं समझ पाए हैं क्योंकि आप नेत्रहीन हैं।

यह कहना कि मसीह ने जो उपदेश दिया उसमें कुछ गलत है, वह उतना ही गलत होगा जैसे यह कहना कि जो मूसा ने उपदेश दिया वह गलत है या जो दत्तात्रेय ने उपदेश दिया या जो नानक ने उपदेश दिया। वास्तव में मोहम्मद साहब ने सोचा था कि उन्होंने जो कुछ भी कहा वह आवश्यक था, ताकि उन्हें वापस आने की कोई आवश्यकता न हो। किन्तु जब उन्होंने इन भयानक कट्टरपंथियों को देखा, जो आज भी हैं, उन्होंने सोचा, “बाबा! अच्छा होगा कि मैं फिर से जन्म ले लूं, अब क्या करना है इन पागल लोगों के साथ? जिस चीज़ का मैंने प्रचार किया, वो उसके बिलकुल विपरीत जा रहे हैं। क्योंकि मैंने कहा कि मैं नहीं आऊंगा, इसलिए वो इस प्रकार के कट्टरपंथी बन रहे हैं।” उन्हें अपना जन्म लेना पड़ा क्योंकि, आप देखें, मनुष्य ऐसा मूर्ख प्राणी हैं कि ये अवतार नहीं जानते कि क्या करें। आप नहीं जानते कि वो कैसा व्यवहार करेंगे!

इसलिए उन्होंने धरती पर नानक के रूप में पुनर्जन्म लिया और उनकी अपनी पुत्री आदि शक्ति ने उनकी बहन के रूप में जन्म लिया। जो नानक ने पूरे और पूरे समय प्रचार किया वह ये था कि हिंदू और मुसलमानएक जैसे हैं, ईश्वर की दृष्टि में और आप सभी एक साथ मिलते हैं और एक हो जाते हैं।

यदि ऐसा कुछ है जो उन्होंने सिखाया है या कबीर ने पढ़ाया है वो यही है! यही है! यही है। किन्तु सिखों को देखें, जिस प्रकार से वो मुसलमानों से लड़ते हैं और देखो जैसे मुसलमान भारत में सिखों से लड़ते हैं। हमने इसमें से दो राष्ट्र बनाए हैं। कल्पना कीजिए! उन्होंने जो प्रचार किया, लोग उससे ठीक उलट कर रहे हैं। आप कैसे समझाते हो मैं नहीं समझती। मेरा तात्पर्य है जब किसी ने कहा है, “यह प्रकाश है,” आप इसे अंधेरा कैसे बनाते हैं, मैं समझ नहीं सकती। यह मानवजाति की विशेषता है, प्रकाश से अंधकार बनाते हैं।

अब यह धर्म जो उन्होंने प्रचार किया था, उनका प्रचार सभी ने किया और वो विशेष रूप से उन सभी के विरुद्ध हैं थे जो चेतना के विरुद्ध जाते हैं, क्योंकि यदि आपका चित्त  ठीक नहीं है तो आपकी चेतना ठीक नहीं होगी। और इसलिए वो बहुत चिंतित थे  पूरे कार्यकाल में वो, वो सभी, उन्होंने उपदेश दिया कि कुछ भी मत लो जिससे आपकी चेतना कम हो। इसलिए वो शराब के विरुद्ध थे, वो नशा और उस तरह की चीज़ों के विरुद्ध थे। कदाचित उस समय कोई सिगरेट नहीं थी जब मोहम्मद साहब आए थे, तो उन्होंने यह नहीं कहा, “किसी सिगरेट को न लें,” क्योंकि सिगरेट बाद में आई। किन्तु नानक ने कहा, “सिगरेट बिल्कुल नहीं।” अब आपको पता चल रहा है कि सिगरेट से कैंसर होता है। “यह मात्र कैंसर का कारण बनता है, यह सब ठीक है, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता, क्योंकि कैंसर – अधिक से अधिक शरीर मर जाएगा आप फिर से जन्म लेंगे कोई बात नहीं।” परंतु ऐसा नहीं है। इससे विशुद्धि में समस्या उत्तपन होती है, इतनी बुरी कि आप अपना साक्षात्कार प्राप्त नहीं कर सकते हैं, आप में से बहुतों को समय लगता है और आपकी बेचारी माँ को आपके सिगरेट के आनंद के लिए एक साथ कई दिनों तक काम करना पड़ता है। मैंने कठोर परिश्रम किया है, आप जानते हैं।

फिर नशेड़ी लोग। उन्होंने बहुत अच्छी प्रकार से अपने नशे का आनंद लिया है। वो नशा लेते रहे हैं, आप देखें, स्वयं आनंद ले रहे हैं, बेसुध हो रहे हैं, या जो कुछ भी वो इसे कहते हैं। मुझसे पूछें। मुझे कितना काम करना पड़ा, अपनी आँखों में आँसू के साथ  क्योंकि मुझे पता है कि आप संत हैं, आप उच्च स्तर लोग के लोग बनने के लिए हैं और मुझे आपको बाहर निकालने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ा। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि चार साल तक मैं लंदन में छह हिप्पीयों के साथ संघर्ष कर रही थी, मात्र छह और जो सबसे पहले मेरे पास आए जो वास्तव में प्रसन्न थे, उन्होंने स्वयं के लिए अच्छा कार्य किया था। एकमात्र लाभ यह था कि एल एस डी(नशे का एक प्रकार) जैसी चीज़ लेते थे, इसलिए वो पराचेतन स्तर पर थे और वो मात्र मेरे भीतर से आते हुए प्रकाश को देख सके, उन्होंने सभी पराचेतन चीज़ों को देखा, प्रकाश और चीज़ें और सब कुछ, इसलिए वो मुझ पर चिपक गए या मैं उन पर चिपक गयी, ठीक है! किन्तु वो भी मुझ पर चिपक गए।

आज वो हमारे सबसे अच्छे सहज योगियों में से एक हैं। वो सबसे उच्च स्तर के सहज योगी हैं। वो सबसे सुंदर सहज योगी हैं हम कह सकते हैं। क्योंकि वो संत थे, मैं उनकी आत्मा को चमकते हुए देख सकती थी। मैं उस दृश्य को नहीं खो सकती थी, उनके लिए बहुत परिश्रम किया। वो संत हैं। वो नशे में खो गए क्योंकि उन्हें लगा कि वो खोज रहे हैं। उन्होंने इसे चलन के लिए नहीं किया।

भारत में आप देखें, जब भारतीय युवा आपको नशा लेते हुए देखते हैं, वो सोचते हैं, “ओह! कुछ बहुत अच्छा होगा।” आप देखें, भारत में आजकल युवाओं में नशा लेना और जींस पहनना बहुत चलन में है। वो सोचते हैं कि वो प्रगतिशील हो रहे हैं। किन्तु वो नहीं जानते कि आपने ऐसा क्यों किया, वो वास्तव में नहीं जानते हैं। वो नहीं जानते कि आपने इसे खोजने के लिए किया है। वो ऐसे मूर्ख भारतीय हैं, आप देखें कि वो ऐसा कर रहे हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि यह बहुत चलन में है। आप जानते हैं! हर कोई उन्हें “आधुनिक” कहेगा। वो नहीं जानते कि आपने अपने घरों को क्यों छोड़ा, आप इस प्रकार के क्यों बने। वो आपके जीवन के गहरे पक्ष को नहीं जानते। वो मात्र सतही तौर पर देखते हैं। और यह अब विश्वविद्यालयों और अन्य में बहुत आम है, यह एक बड़े स्तर पर आरंभ हो गया है। किन्तु वो सहज योग के लिए अच्छे नहीं हैं, व्यर्थ लोग नकल करने का प्रयास कर रहे हैं। वो आपकी खोज की नकल कैसे कर सकते हैं, उस गहराई की। 

इसलिए ये लोग उन सभी चीज़ों के बहुत विरुद्ध थे जो आपकी जागरूकता को धुंधला कर देती हैं। अब भी मैंने ऐसे लोगों को देखा है जो सहज योग में नशा और वो सब ले रहे हैं। जैसे ही वो मुझे देखते हैं वो “आ…!” सो जाते हैं। वो सो जाते हैं। क्योंकि तुरंत, जैसे ही आप इन नशों या इन सभी मदिरा को लेना आरंभ करते हैं, आप अपनी बाईं ओर या अपनी दाईं ओर चले जाते हैं। अधिकतर आपकी बाईं ओर। विशेष रूप से शराब से बाईं ओर। अपनी बाईं ओर जाकर, आप देखें, आप अपने सामूहिक अवचेतन में जाते हैं। आप अपनी ईड़ा नाडी के पार जाते हैं और अपने अवचेतन से परे सामूहिक अवचेतन में चले जाते हैं। आप बहुत गैर-आक्रामक हो जाते हैं, निःसंदेह। यह बहुत अधिक चेतना के कारण भी है कि आप अहंकारी हैं, आपने ऐसा करना आरंभ कर दिया है। आपने सोचा था कि “ओह! हमारा अहंकार बहुत अधिक है।” आप अपने अहंकार को नहीं देख सकते हैं, इसलिए आपने कहा, “नहीं, चलो कुछ पीते हैं।” उसके द्वारा आप दूसरी ओर चले जाते हैं। जब आप बाईं ओर बहुत अधिक बढ़ना आरंभ करते हैं तो आप जानते हैं कि क्या होता है। आप भूतग्रस्त हो जाते हैं, क्योंकि शैतानी ताकतें स्वतंत्र हो जाती हैं, आप बाधित हो जाते हैं। अब जब आप उसके पश्चात् सहज योग में आते हैं तो आपको सदेव घसीटा जाता है। आप सदेव पीठ पर भारीपन महसूस करते हैं, आप सभी। बाई आज्ञा दाईं नहीं – प्रति अहंकार। आपको बहुत नींद आती है, आप रोना चाहते हैं, हर समय रोते हैं, आप बहुत भयभीत महसूस करते हैं, आप कोई निर्णय नहीं ले पाते। कोई भी प्रश्न आता है, कोई भी समस्या आपके सामने आती है आप कांपने लगते हैं। यह पलायन है, वास्तविकता से भागना है। जैसे कि वास्तविकता इस कमरे में है, यदि आप इस कमरे से भागते हैं, इस ओर या उस ओर, आप वास्तविकता से दूर भाग रहे हैं। मैं कहूँगी युद्ध के बाद बहुत से लोग मारे गए, संभवतः। संभवतः जो असंतुष्ट आत्माएं थीं और बहुत बुरी अवस्था में थी। हिटलर एक दानव था, यथार्थ में दानव, बाद में ये सभी शक्तियां इन गुरुओं के द्वारा छोड़ दी गयी या जो कुछ भी था और उन्होंने तुम्हें पकड़ लिया। संभवतः आप इन सब चीजों में पड़ गए। ये हमारे अस्तित्व के लिए अत्यंत हानिकारक हैं।

मैं एक बार त्रिचू गयी। उन्होंने मुझे आमंत्रित किया था और ये सभी लोग मुझे लेने के लिए बड़ी कारों में आए थे, मैं अत्यंत आश्चर्यचकित थी ऐसा यदा कदा ही होता है। कभी सहज योगी लोग इतने धनी नही होते हैं। मेरा तात्पर्य है, इतने कि उनके पास इतनी कारें होंगी। मैंने पूछा, “आप सभी क्या व्यवसाय करते हैं?”

उन्होंने कहा, “आप देखिये, वास्तव में हम सभी लोग तंबाकू का उत्पादन कर रहे हैं।”

और मैंने कहा, “बहुत अच्छा!” वो अब उत्पादन भी रहे हैं, आप देखें, न मात्र खा रहे हैं बल्कि उत्पादन कर रहे हैं। और मैंने कहा, उनके घरों में आप हैरान होंगे, उनके पास इंग्लैंड में बनी टाइलें थीं, उनके पास इंग्लैंड में बने नल थे। ये सभी पुरातन चीजें जो आपके पास हैं जिन्हें आप आज अनोखी वस्तु के रूप में मानते हैं, वो सभी उन सभी के पास इंग्लैंड में बनी हुई थीं। मैंने कहा, “इंग्लैंड में बनी! आप यहाँ इन सभी चीज़ों को कैसे प्राप्त करते हैं?” आपके पास जो चीजें यहाँ नहीं हैं, वो वहाँ थीं। मैंने कहा, “आपको यह कैसे मिली?”

उसने कहा, “हम इंग्लैंड को तंबाकू निर्यात करते हैं।” मैंने कहा, “बहुत अच्छा! आप अच्छा काम कर रहे हैं, इंग्लैंड को तंबाकू निर्यात करके।” मैंने कहा, “क्या आपको नहीं लगता कि ऐसा करना पाप है? क्या आप भारतीय होने के नाते नहीं जानते कि तम्बाकू धर्म के विरुद्ध है?” उन्होंने कहा, “हम जानते हैं, किन्तु हम नहीं लेते” और यदि आप इसे दूसरों को देते हैं, तब यह गलत नहीं है।

यह उस व्यक्ति की तरह है जो सभी घुड़दौड़ के मैदानों का मालिक है, कहता हैं, “मैं कभी नहीं देखता, मैं अपना पैसा कभी घोड़े पर नहीं लगाता, मैं मात्र इकट्ठा करता हूँ। मैंने कभी घुड़दौड़ का मैदान नहीं देखा।” इस प्रकार के व्यक्ति, वो इस प्रकार का दृष्टिकोण रखते थे। तो मैंने कहा, “बहुत अच्छा! आप अपना सारा तंबाकू इंग्लैंड में निर्यात कर रहे हैं।” मैंने उनसे कहा, “यह मत करो। आप समुद्र के बहुत समीप हैं और समुद्र गुरु हैं, वह आपको बहुत विनाशकारी सबक सिखाएंगे। मैं आज आपको बता रही हूँ, अब यह समुद्र के चित्त में है। मुझ पर विश्वास करो! इसे हटाइये! कोई तंबाकू न भेजें। उत्पादन न करें! आप कर सकते हैं “

उन्होंने कहा,”हमें क्या उत्पादन करना चाहिए? “

मैंने कहा, “आप बहुत अच्छी कपास उगा सकते हैं”।

वहाँ पर तीन-चार लोग थे जिन्होंने मुझे गंभीरता से लिया। उन्होंने कहा, “ठीक है माँ! हम कपास उगाएँगे।” और उन्होंने वास्तव में बहुत धन कमाना आरंभ कर दिया क्योंकि उन्होंने बहुत लंबे धागे का उत्पादन किया। ठीक मिस्र के कपास की तरह उन्होंने करना आरंभ किया। उनमें से अन्य लोगो ने मुझे पसंद नहीं किया। उन्होंने मुझे धन्यवाद नहीं दिया, वो मुझे स्टेशन पर विदा करने नहीं आए – उनकी सभी कारें बस गायब हो गई। मुझे लगा कि मुझे अब स्टेशन जाने के लिए टैक्सी लेनी होगी। 

किन्तु क्या आप कल्पना कर सकते हैं एक साल के भीतर एक तूफ़ान आया। एक और बात चल रही थी। ये लोग इसे इंग्लैंड में निर्यात कर रहे थे और तम्बाकू बेच रहे थे, … आप देखे, सस्ते प्रकार के तम्बाकू, आप देखे, जो भी अवशेष हैं, जिसे आप शीरा कह सकते हैं वो इसे गरीब लोगों को बेच रहे थे और गरीब लोग उसे बहुत गाड़ा ले रहे थे, खा रहे थे। इसलिए उन्होंने काला जादू माया को अपनाया। ये सभी काला जादू कर रहे थे। अपनी छोटी छोटी झोपड़ियों में बैठे वो काले जादू कर रहे थे, क्या आप कल्पना कर सकते हैं? अपने गांवों में काला जादू कर रहे हैं। और समुद्र बहुत क्रोधित हुआ, तूफ़ान द्वारा। आपने उस क्षेत्र में बड़ी बाढ़ के बारे में सुना होगा।

मुझे ब्राईटन लोगों को चेतावनी देनी चाहिए। समुद्र अब विराम ले रहा है, आप बस उसे देखें, क्योंकि आप समुद्र का अपमान कर रहे हैं, हर समय आप उसका अपमान कर रहे हैं। अब यह छुट्टी मनाना – यह पश्चिमी लोगों में एक बीमारी है, अवकाश। सहज योग में एक लड़की है, उसकी बहन भी कभी-कभी आती है, उसे बच्चा होने वाला था, वह एक महिला चिकित्सक है, बहन। वह छुट्टी के लिए गई। बिना किसी चोट के उसे शल्यक्रिया करवानी पड़ी, क्या आप कल्पना कर सकते हैं? सभी सहज योगी अपना सारा चित्त बच्चे के जन्म पर लगा रहे थे और यह महिला बहुत आराम से छुट्टी मनाने गई है क्योंकि छुट्टी मनाना आवश्यक था। आप देखे, छुट्टी के बिना वह कहीं नहीं है। यह सब आयोजित है, आपको छुट्टी मनाने जाना होगा। छुट्टियों पर जाकर आपने क्या प्राप्त किया है, यह मैं जानना चाहती हूँ, क्या समझदारी है? धूप में बैठने के अतिरिक्त, चर्म रोग ले लेना और मेरे ठीक करने के लिए त्वचा का कैंसर। धूप में इतना अधिक जाने की क्या आवश्यकता है, मुझे समझ नहीं आती। आप क्या प्राप्त कर रहे हैं?

आपका स्वास्थ्य बद से बदतर होता जा रहा है। आपके पूर्वजों का आप लोगों से अधिक अच्छा स्वास्थ्य था। बावजूद इन सभी स्वास्थ्य के लिए कार्यो को जो आप क्या कर रहे हैं, आपका स्वास्थ्य कैसा है? आपके यकृत ख़राब हैं। यदि आप …

यह अच्छा है, मुझे प्रसन्नता है कि सूर्य आ रहा है, अब आप अपनी शराब छोड़ देंगे। सूर्य को आपको झुलसाने दो फिर आप अपनी शराब छोड़ेंगें। नहीं तो आप नहीं छोड़ेंगे। यहाँ आप धूप में जाते हैं, वहाँ बैठते हैं, वहाँ सभी शराब ले जाते हैं, सभी शराब पीते हैं – समुद्र की उपस्थिति में। कोई आश्चर्य नहीं है कि ये सभी तेल टैंकर वहाँ टूट रहे हैं और आपके स्वास्थ्य के स्थानों को खराब कर रहे हैं।

ऐसा ही होगा।

आपको इसका कोई विचार नहीं है कि समुद्र वहाँ हैं, आपके गुरु है और आप मूर्खों की तरह पी रहे हैं। वहाँ बैठी नग्न महिलाएं त्वचा काली कर रही हैं। यह क्या निरर्थकता हो रही है? मेरा तात्पर्य है कि मुझे समझ में नहीं आता कि अपने शरीर को इस तरह से  काला करने की क्या आवश्यकता है? किसने आपसे कहा कि आप सुंदर दिखते हो? आप इसके साथ भयानक दिखते हैं। मैं कह रही हूँ वास्तव में आप भयंकर दिखते हैं। यहाँ आप नस्लीय बिंदुओं पर भेदभाव कर रहे हैं, यह कहते हुए कि लोग काले हैं, आप स्वयं को क्यों काला कर रहे हैं? मैं समझ नहीं पा रही हूँ, क्या विवेक है? आपको पता है कि दूसरे चरम पर जा रहे हैं। ठीक है! कभी कभी जब आप धूप में बैठते हैं, कुछ करते हैं, तब ठीक है।

किन्तु आपको अपनी छुट्टी के बारे में इतना चिंतित होने की क्या आवश्यकता है और छुट्टी में पीना, पत्नी के साथ लड़ाई करना, वापस आकर और तलाक लेना। सदैव छुट्टी के बाद आप शराब के परिणाम बहुत स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। भारत में, ईश्वर का धन्यवाद है कि हम छुट्टियों के लिए बिल्कुल भी बाहर नहीं जाते हैं, हम छुट्टी मनाने में विश्वास नहीं करते हैं, बिल्कुल भी। बहुत अधिक यदि आपको कहीं जाना है तो हम किसी त्योहार पर या किसी के विवाह या किसी और कार्यक्रम में जाते हैं। यदि कोई अवसर होता है तभी हम घरों से बाहर निकलते हैं, हम गृहस्थ हैं, हम परिवार में बसते हैं, गृहस्थ जो गृह में रहते हैं, गृहस्वामी। हम खानाबदोश जिप्सियों की तरह नहीं हैं हर समय घूमते रहना। कभी कभी के लिए ठीक है पिकनिक या किसी चीज़ का आनंद लेना। मेरा तात्पर्य है कि आप पूरा जीवन पर्यटक नही हैं। हाँ यह बहुत मूर्खतापूर्ण है आप नहीं जानते। मेरे पति के कार्यालय में दो बड़े अधिकारी हैं, अंग्रेज़, वो साईकिल से कार्यालय जाते हैं। यह कितना विचित्र लगता है, आप जानते हैं, नेकर में। इतने बड़े कार्यालय में, यह कैसा लगेगा, दो नेकर पहने लोग आ रहे हैं, नेकर में और पसीने व गंध में और सब कुछ के साथ। यह बेतुका है! 

किन्तु इस सभी उन्मत्त प्रयास के पीछे कुछ है कि आप कुछ खोज रहे हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि छुट्टियों पर जाकर आप कुछ प्राप्त कर लेंगे। मेरा तात्पर्य है कि संगीत, अब आपने संगीत में क्या प्राप्त किया है, में नही समझ सकती। इन छुट्टियों में जाकर, यदि आपने इस प्रकार का संगीत प्राप्त किया है, जो आपकी त्वचा के हर भाग को छिन्न भिन्न करता है, मेरा तात्पर्य है जब मैं इसे सुनती हूँ, आप जानते हैं, पूरा कंपन करता रहता है, अवरोध उत्तपन्न।

और आपका खराब लीवर, कम से कम उसके बारे में सोचिये, खराब लीवर, आपकी त्वचा की बीमारियाँ, आपकी त्वचा के कैंसर। यह सब गुरु की उपस्थिति में, समुद्र। क्या आप कल्पना कर सकते हैं? इसमें कोई पवित्रता नहीं है, आप समझते नहीं हैं।

समुद्र की पूजा की जानी चाहिए। यह एक मंदिर है। यह आपको सिखाता है, इसने आपको बहुत कुछ दिया है। समुद्र के बारे में सोचिये, उन्होंने आपको क्या दिया है। समुद्र के बिना, आपकी क्या दशा होती? विशेष रूप से इंग्लैंड में। इसने आपको चुनौती देना सिखाया, इसने आपको विचार दिया कि विदेश कैसे जाना है, इसने आपको बहुत कुछ दिया है। आपकी सारी समृद्धि समुद्र से आई है और आप अपनी लक्ष्मी के बारे में क्या कर रहे हैं? और क्या आप जानते हैं, लक्ष्मी तत्व जो केंद्र में रहता है, समुद्र से उत्पन्न हुआ है। वास्तव में वो आपके नाना हैं। क्या आप में उनके  प्रति कोई सम्मान है? इतना कुछ है समुद्र से सीखने के लिए, गुरु से। यह अपनी सीमाओं को कभी नहीं छोड़ता है। यह उसी में रहता है। यदि आप समुद्र को एक ओर से दबाने का प्रयास करते हैं तो यह दूसरी ओर दिखाई देगा, कहीं पर। इतनी बड़ी चीज है, इसे संपूर्ण संसार से सारा पानी मिलता है, किन्तु यह अपनी सीमाओं को बनाए रखता है। यह कभी भी इसे पार नहीं करता है, जब तक आप इसे दबाते नहीं हैं।

यह एक उदार महान व्यक्तित्व का संकेत है: यह अपनी सीमाओं को बनाए रखता है, मेरा तात्पर्य है अब तक और यही नहीं इनकी गरिमा यह है। मुझे नहीं पता कि अंग्रेजी भाषा में मर्यादा जैसा शब्द है- शालीनता और मर्यादा की सीमा है।

तब यह आपको वर्षा देता है। यह आपको आपके भोजन का आधार देता है। समुद्र पिता हैं और वो कहाँ मिलते हैं वास्तव में सबसे सुंदर प्रकार से, समुद्र और धरती माँ ? वो हिमालय पर सहस्रार में मिलते हैं जहाँ सभी बादल जम जाते हैं और पूर्णतः धरती माँ को ढँक देते हैं, जहाँ ऐल्प्स पहाड़ों पर चारों ओर बर्फ है। यह पूर्ण शुद्धता है।

ये उन लोगों के लिए बहुत ही सूक्ष्म चीज़ें हैं जो खोज नहीं रहे हैं, किन्तु मैं साधकों से बात कर रही हूँ। आपको समुद्र की सुंदरता समझने के लिए सूक्ष्म होना होगा। यह गुरु की कविता है। जब यह दहाड़ता है, आप देखें, समुद्र की गर्जना आपको चुनौती देती है: “मेरे बच्चे आओ! मेरे शिष्य आओ! आओ! साथ आओ!”

मेरे लिए समुद्र पिता के समान हैं। मैंने समुद्र से बहुत यात्रा की है, बहुत अधिक। और जब भी मैंने यात्रा की है वो मुझे एक बहुत ही सौम्य माँ की तरह ले गए हैं। कभी भी खराब मौसम नहीं, इतना अच्छा मौसम, सदैव वो बहुत दयालु हैं, वो मेरे लिए बहुत दयालु हैं। एक बार मैं जापान से आ रही थी और उन्होंने कहा, “वहाँ तूफ़ान आ रहे हैं!” पांच तूफ़ान आ रहे थे। उन्होंने कभी मेरे जहाज को नहीं छुआ, कहीं भी नहीं। लोग चकित थे और हम कोलंबो से बॉम्बे आ रहे थे, जब हम पहुंच रहे थे तो वहाँ मानसून था। उन्होंने कहा, “अब!” कप्तान काफी चकित थे, आप देखें। उन्होंने कहा, “किन्तु अब आप सहायता नहीं कर सकती। हवा दूसरी दिशा में जाएगी और हमारा समय कठिन होगा।” किन्तु कितना सहज समुद्र, एक दर्पण की तरह, सुंदर! एक सौम्य माँ की तरह। मुझे प्रतीत हुआ वह मुझे अपने आँचल पर ले गई, बहुत सुंदर!

और ऐसे समुद्र का आप अपमान करते हैं, क्योंकि आप अज्ञानी हैं, क्योंकि आप अंधे हैं। काश समुद्र आपको क्षमा कर देते, किन्तु गुरु सरलता से क्षमा नहीं करते। माँ अलग है। गुरु कठोर अधिकर्मी हैं, आप देखिए। वो सामान्यतया आपको क्षमा नहीं करते हैं।

अब आपने रविशंकर के बारे में सुना है जो एक महान संगीतकार हैं जो सितार बजाते हैं। मुझे पता है कि जब वह पढ़ाई कर रहे थे- वह प्रारंभ में अलाउद्दीन खासा के शिष्य थे। अलाउद्दीन खासा एक साक्षात्कारी आत्मा, एक महान व्यक्ति, एक प्रतिभाशाली, एक प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। पूर्णतया सच्चे गुरु, आपको कहना चाहिए। उन्होंने कभी नहीं पिया और वह मुस्लिम थे किन्तु काली के उपासक थे, आप देखिए और यह सब। और वह मुझे “माँ ” कहते थे, माता।

मैं अपने पिता के साथ थी, जो राजनीतिक सलाहकार थे उस राज्य के, मैहर। मेरा तात्पर्य है कि आप देख सकते हैं कि वो सभी वास्तव में इतने प्रतिभाशाली थे और वो उस बड़े ड्रम को बजाते थे जिसे उन्होंने कहा था कि मैहर में सबसे अच्छा बनता है, इसीलिए वो वहीं बस गए। जिसे हम “पखावज” कहते हैं, यह बहुत बड़ा ड्रम है, आप देखे।

वो जबरदस्त बजाते थे। वो मात्र इस तरह के गूँज और सुंदर प्रस्तुतीकरण में चलते थे और वो बहुत सी चीज़ों में निपुण थे -सरोद – उनका बेटे स्वयं अली अकबर खान साहब हैं। उनकी बेटी अन्नपूर्णा एक महान गायिका हैं और वह सब।

और मुझे याद है कि अल्लाउद्दीन, जब हम वहाँ गए थे तो वो मेरे पिता का बहुत सम्मान करते थे और – इसलिए भी कि मेरे पिता संगीत के बड़े पारखी थे और स्वयं एक साक्षात्कारी आत्मा थे, एक महान व्यक्ति।

इसलिए एक बार जब वो पखावज बजाने जा रहे थे और रवि शंकर भी वहाँ बैठे थे, आप देखे, अपना चेहरा कोने पर छिपा कर। इसलिए जब उन्होंने पखावज बजाया, तो मेरे पिता ने कहा, “तुम मेरे लिए सितार क्यों नहीं बजाते, मैं यह देखना चाहता हूँ कि तुमने कितना सीखा है।”

उन्होंने कहा: “नहीं, नहीं, सर, आज नहीं, आज नहीं।” तो फिर वो भीतर गए, किसी चीज़ के लिए – गुरु।

उन्होंने कहा, “देखिये, आप यहाँ कुछ देख सकते हैं?” उन्होंने पूछा, “क्या?”

“बड़ी सूजन, आप देख रहे हैं, यहाँ थी”, उन्होंने कहा, “उन्होंने आज मेरे सिर पर अपना सितार मारा क्योंकि मैंने दो सुर गलत बजाये। देखिये श्रीमान!” 

वह बात तो थी। गुरु बहुत, बहुत कठोर लोग हैं, उन्हें होना है और जिस प्रकार से वो शिष्यों के साथ व्यवहार करते थे। ऐसा नहीं है, जिन गुरुओं को आप जानते हैं, वो गुरु हैं जो आपके अहंकार को संतुष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं। क्यों? क्योंकि उन्हें आपका बटुआ चाहिए। वो आपको प्रबुद्ध नहीं करना चाहते हैं। वो कहते हैं, “सब ठीक है, आप क्या पीते हो? ठीक है, कोई अंतर नहीं पड़ता। मैं आपको और दे सकता हूँ। तुम जो चाहो मैं तुम्हें दूंगा। मात्र बटुआ मुझे दे दो, मात्र! आप इन्हें क्यों लेना चाहते हैं…धातु, ये कुछ धातु जैसी, धातु जैसी चीजें, कहिये रोल्स रॉयस, क्या उपयोग है इस धातु की चीज़ का? आप इसे मुझे दे दो। मै इसकी देखभाल करूँगा। इस भव्य महल को रखने की आपको क्या आवश्यकता है? इसे मुझे दे दो। मै इसकी देखभाल करूँगा। बस आप सब मेरे लिए छोड़ दो। मैं आपको प्रबुद्ध करूंगा।”

यहाँ तक ​​कि यदि आपके पास महल और कुछ भी हो, सच्चे गुरु आपकी ओर नहीं देखेंगे। वह लोगों के पीछे कभी लालायित नहीं होते, कभी नहीं। यह एक वास्तविक गुरु का संकेत है कि वह आप पर लालायित नहीं होते “मेरे साथ आओ! मेरे साथ आओ! ठीक है, कितने लोग आ रहे हैं? अब एक संगठन बनाओ और इसके बारे में एक बड़ा मिशन चलाते हैं।” और फिर लोग आ रहे हैं और आपके नाम लिखते हैं और आप समाज के सदस्य बन गए हैं और वह सब।

एक वास्तविक गुरु किसी अनोखे स्थान पर बैठेगा, जहाँ आपको सात मील ऊपर जाना होगा, पैदल, गिरते हुए, कहीं छिपा हुआ और वहाँ आप जाते हैं और आप पाते हैं कि वह वहाँ नहीं हैं। आप रास्ते में अपने पैर तोड़ते हैं।

किन्तु वो बहुत सारी बातें जानते हैं। उनके अनुसार आपके साथ ऐसा दयालु व्यवहार नहीं किया जाएगा। और वो मुझे बताते हैं कि “माँ, आपका क्या तरीका है?” और “हम समझ नहीं सकते। अपने लिए, हमें यह चैतन्य प्राप्त करने के लिए बहुत परिश्रम करना पड़ा।” एक सज्जन ने बताया कि, “मैं एक मेंढक था, तब से मैं खोज रहा हूँ और मैंने कितने वर्ष व्यतीत किए मुझे नहीं पता। चैतन्य पाने के लिए कई हज़ार साल व्यतीत किए हैं, जबकि माँ ने आपको मात्र ऐसे ही दे दिया है। आपकी विशेषता क्या है? क्या आप माँ के लिए अपनी जान देने जा रहे हैं?” और सभी प्रकार के प्रश्न। 

इसलिए मैंने उससे पूछा, “आपने उन्हें ऐसा क्यों कहा? मुझे उनका जीवन नहीं चाहिए। उनके जीवन का क्या उपयोग है? मुझे उनकी आत्मा चाहिए।”

उन्होंने कहा, “किन्तु ये क्यों?” मैंने कहा, “क्या आपको ईर्ष्या हो रही है?” 

वो कहते हैं कि, “माँ! आप उनके साथ संबंध रखिये। हम इसका सामना नहीं कर सकते, मनुष्य भयानक हैं” और मैंने आपको बताया था कि मैंने एक व्यक्ति को अमेरिका जाने के लिए कहा, वह दो दिनों के भीतर भाग गया, दो दिनों के अन्दर। वह अमेरिकियों का सामना नहीं करेंगे, वास्तविक वाले। अवास्तविक बहुत अच्छे हैं, आप देखिए। उनके बीच आपसी समझ चल रही है।

इसलिए ये कठोर अधिकर्मी बहुत सुंदर हैं। बाहर से वो बहुत कठोर दिखते हैं, अंदर से वो बहुत सुंदर हैं। आपको पता होना चाहिए कि उन्हें कैसे प्रसन्न करना है।

उदाहरण के लिए मैं एक बार एक गुरु को मिलने गयी और सभी लोग इसके विरुद्ध थे। उन्होंने कहा, “माँ! हम किसी भी गुरु पर विश्वास नहीं करते, आप क्यों मिलने जा रही हैं?”

मैंने कहा, “मैं किसी भी गुरु पर विश्वास नहीं करती, आपको किसने बताया? मैं सभी गुरुओं में विश्वास करती हूँ। मैं अगुरुओं पर विश्वास नहीं करती। “मैंने कहा, “आप चैतन्य देखें।” हमें ऊपर चढ़ना पड़ा और यह और वह। और हम वहाँ चले गए। और बहुत तेज वर्षा हो रही थी, बहुत भारी। और गुरु बहुत क्रोधित थे वो वहाँ बैठे थे, क्योंकि वो पानी को नियंत्रित कर सकते थे, मैंने आपको बताया था वो वर्षा को नियंत्रित कर सकते है, आप जानते हैं। इसलिए जब मैं ऊपर गई तो वो ऐसे कर रहे थे, बहुत अप्रसन्न। उन्होंने मुझे देखा भी नहीं। मैं जाकर बैठ गई, पूरी तरह से वर्षा के पानी में भीगे हुए।

उन्होंने कहा, “आपने मुझे वर्षा को रोकने की अनुमति क्यों नहीं दी? क्या यह मेरे अहंकार के कारण है कि आप मुझे दंडित करना चाहती थी? मैं नहीं चाहता था कि आप भीग जाएं जब आप मुझसे मिलने आएं।” क्या शानदार बात है। मेरा तात्पर्य है कि उन्होंने मुझसे ऐसे बात की जैसे कि वो मुझे जानते थे आप देखे, जिस प्रकार से उन्होंने बात की थी। उन्होंने कहा, “यहाँ तक ​​कि मेरे गुरुओं और उनके गुरुओं के पास कभी ऐसा अवसर आया होगा, कि आप मुझे देखने आ रही हैं और मैं बस यहाँ तैयार था और यहाँ आप आए, पूरी तरह से भीगे हुए। मेरे लिए यह लज्जा की बात है कि मैं इस वर्षा को नियंत्रित नहीं कर सका। यह सब आपका कार्य है, माँ आपने ऐसा क्यों किया?” मैंने कहा, “क्या मुझे आपको बताना चाहिए कि मैंने ऐसा क्यों किया?” उन्होंने कहा, “क्यों?” मैंने कहा, “आप देखे, आपने मेरे लिए एक साड़ी खरीदी है, है ना? और मैं एक संन्यासी से साड़ी नहीं लूंगी, किन्तु यदि मैं भीग गयी तो मुझे लेनी पड़ेगी।” 

पूरी बात पसीज गई। सारी बात, पूरा क्रोध, सब कुछ पसीज गया। यह कितना मधुर था, बहुत मधुर। मेरे साथ एक कलाकार थे, जिन्होंने चित्र बनाया था। इतना सुंदर! प्रेम दिखाते हुए, आप देखे। वह बस मेरे पैर में गिर गए। उन्होंने कहा, “माँ! लोगों ने आपकी प्रशंसा की है। मुझे आपकी प्रशंसा करने के लिए किन शब्दों का उपयोग करना चाहिए? “

मेंने कहा, “कुछ नहीं! आपकी साड़ी, आप मेरे लिए ले आओ। सबसे पहले, मुझे आपकी साड़ी पहननी चाहिए, मैं पूरी भीगी हुई हूँ।” बहुत प्रसन्न! यह पूरी बात बहुत सुंदर है। यह वही है जो यह है।

आप सभी को गुरु बनना है। मुझे पता है, पहली चीज़ जो आप सीखते हैं, वह है बहुत बड़े कठोर अधिकर्मी बनना। आरंभ में आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। आपको अपने साथ कठोर अधिकर्मी बनना होगा और फिर आपकी माँ जो आपकी गुरु हैं, बहुत प्यारी और सहनशील, बहुत दयालु, असीम धैर्यवान हैं। आपको ऐसे लोगों से निपटना होगा, क्योंकि हम उन लोगों के साथ व्यवहार नहीं कर रहे हैं जो उस गुण वाले साधक हैं, जो ईश्वर को पाने के लिए कुछ भी करेंगे। हम ऐसे लोगों से निपट रहे हैं जो भ्रमित हैं, पूर्णतया भ्रमित हैं। वो संत हैं, किन्तु वो भ्रमित हैं। देखें, हमारे कार्यक्रम में लोग आते हैं, गायब हो जाते हैं। वो अपना साक्षात्कार प्राप्त करेंगे और गायब हो जाएंगे। फिर आपको उन्हें बंधन देना होगा, यह बात। आप देखें, वो अभी भी भ्रमित हैं और बहुत सारे गुरु हैं जो अभिनय कर रहे हैं, बहुत सारी चीजें हैं जो हो रही हैं, इसलिए हम उनके साथ आक्रामक नहीं हो सकते हैं। हमें बहुत धीरज रखना होगा और हमें अपने अतीत के बारे में सोचना होगा कि हम माँ के पास कैसे आए, कैसे उन्होंने हमें विश्वास दिलाया, हमने उनके साथ कितना तर्क किया, हमने क्या किया। इसलिए ये लोग आ रहे हैं, आइए हम उनके प्रति दयालु होने का प्रयास करें और उनसे बात करें, और इस प्रकार से बताएं जो अनुकूल है, जो सुंदर है।

उन गुरुओं की तरह नहीं क्योंकि उनके पास मात्र एक गुरु और एक शिष्य था, क्या आप जानते हैं? संबंध मात्र एक के साथ एक था और कई बार वह भी छोड़ दिया जाता था। एक व्यक्ति की तरह जिन्हे मैं जानती हूँ, जिनसे मैं मिली, उन्होंने मुझे बताया, “मेरे पास मात्र एक शिष्य है और मैंने उसे छोड़ दिया है। वह समुद्र में फेंक दिया गया है, वह व्यर्थ है।”

मैंने कहा, “क्या हुआ?”

उन्होंने कहा, “मैंने उसे पच्चीस साल तक प्रशिक्षित किया और वह बिलकुल व्यर्थ हैं। अब वह अच्छा समय बिता रहा है, धन कमा रहा है। वह एक साक्षात्कारी आत्मा है, मात्र कल्पना करें। और वह अच्छा समय बिता रहा है और वह इससे धन कमा रहा है। यह अंतिम बात है जो मैं आपको बता रहा हूँ।”

मैंने कहा, “ठीक है! वह कहाँ है?” उन्होंने मुझे उसका नाम बताया, यह महाराज। मैंने कहा, “ठीक है! मैं उसे देखूंगी, आप चिंता मत करो।”

और जब यह व्यक्ति बंबई आया, तो एक महिला ने मुझे फोन किया, “माँ, आप इस महाराज जी से मिलना चाहती हैं, वह मेरे घर आ रहे हैं।”

मैंने कहा, “ठीक है! उन्हें बताओ कि मैं उनसे मिलने आ रही हूँ।”

मैं उसे मिलने के लिए वहाँ गयी, वह सिगरेट पी रहा था, इस तरह, ऐसे बैठा हुआ। “ओह! माताजी आयी हैं, बहुत अच्छा” और वह सब।

उसने, निःसंदेह, मेरा तात्पर्य है, उसने मेरे पैरों को इस प्रकार स्पर्श किया, “ठीक है! बैठ जाओ।” और वहाँ औरतें उसके पैर दबा रही थीं, इस प्रकार की बात और वह उनसे बहुत बात कर रहा था … मेरी उपस्थिति में बहुत उद्दंडता दिखाने का प्रयास कर रहा था। मैं मात्र उसे देख रही थी।

फिर उसने कहा, “ओह! तो मेरे गुरु आपको बॉम्बे मिलने आए हैं। वह अपन स्थान क्यों छोड़ रहे हैं?  उन्हें ऐसा क्यों करना चाहिए?” और हर प्रकार की बात वो अपने गुरु के विरुद्ध कर रहा था।

मैंने कहा, “ठीक है! अब मैं जा रही हूँ, किन्तु मैं आपके माथे पर कुछ सिंदूर लगाऊंगी, बस आपके माथे पर तिलक लगाने के लिए,” मैंने कहा। तो मैंने कुछ सिंदूर लिया, उसके माथे पर लगाया; आज्ञा चक्र। मैंने उसे घुमा दिया। फिर मैंने कहा, “अब तुम लगाओ।”

जब उसने लगाना आरंभ किया… मैंने उसका हाथ खींच लिया, आप देखें पूर्णतः और उसने आरंभ किया, “ऐ-ही-ही-ही-ही-हे-हे-हे -हे -हे -हे -हे -हे -हे -हे-हे ।” उसने कहा, “माँ! माँ! आप क्या कर रही हैं, आप क्या कर रही हैं?”

मैंने कहा, “मैं क्या कर रही हूँ? क्या आप कृपया अपने गुरु के बारे में कहे गए सभी शब्दों को वापस लेंगे? आपको कोई शर्म नहीं है। पच्चीस साल उस आदमी ने आप पर कार्य किया और आप उनको यहाँ शर्मिंदा कर रहे हैं। क्या आप अपना हाथ हटाएंगे?”

उन्होंने कहा, “मैं नहीं कर सकता! मैं नहीं कर सकता! मैं नहीं कर सकता! आप मेरे साथ क्या कर रही हैं?”

मैंने कहा, “जब तक आप वचन नहीं देते कि आप अपने गुरु के विरुद्ध एक शब्द नहीं कहेंगे और अपने कान पकड़ेंगे, दूसरे हाथ से या अपने पैरों के साथ, तभी मैं आपको छोड़ूंगी। उन्होंने कहा, “मुझे क्षमा करें! मुझे क्षमा करें!, आप छोड़ दें…?”

अब दूसरों को यह सब बातचीत दिखाई नहीं दे रही थी, आप देखें, उन्होंने मात्र उसे कांपते हुए देखा है, आप देखें। जब मैं दूर चली गयी तो उसने कहा, “देखो! मैं कितना शक्तिशाली हूँ? देखो।” जैसे वो मूर्ख थे, उन्होंने कभी नहीं महसूस किया कि वह कांप रहा था और और कांपना क्या होता है, आप देखें! और उसने उन्हें ऐसा मूर्ख बनाया। उन्होंने सभी से सवा तोला सोना लिया, आप देखें, दक्षिणा, गुरु दक्षिणा के रूप में और कहा कि “देखिए! माताजी की सारी शक्तियाँ मुझमें मिल रही थीं, उनकी सभी शक्तियाँ मुझमें अवशोषित हो रही थी और इन मूर्खों ने उस पर विश्वास किया, आप देखें। और फिर उनमें से एक की मुझसे एयरपोर्ट पर भेट हुई और उन्होंने मुझसे कहा कि “उसने हमसे इतने पैसे ले लिए। उस दिन ही मात्र उसने हमें गुरु दक्षिणा के लिए सवा तोला सोना देने को कहा।

मैंने कहा, “ठीक है! मैं उसे एक दिन फिर देखूंगी।” किन्तु वो सभी उस तरह से नष्ट हो गए थे। तो, यह वही है जो यह है। और वह लोगों के लिए कितना आकर्षक है, आप जानते हैं। और तब वह एक बहुत बड़ी चीज़ पर बैठा था और हजारों लोग वहाँ पहुंच रहे हैं। किन्तु फिर मैंने कुछ व्यवस्था की। अब वह ठीक है, सीधे जेल में है! सीधे जेल में! यह वही है।

किन्तु हमारे यहाँ इसी प्रकार की एक सहज योगिनी थी। उन्हें अपना साक्षात्कार मिला और मैंने उससे कहा, “आपका गुरु अच्छा नहीं है और आप उससे कुछ भी न लें, क्योंकि वह आपको कुछ सिद्धियाँ देने का प्रयास करेगा और आप लोगों को प्रभावित करने का प्रयास करेंगा।”

उन्होंने कहा, “नहीं! नहीं माँ! मुझे परम चाहिए, मुझे अनंत चाहिए, पूर्ण चाहिए, मुझे वह सब नहीं चाहिए।” क्योंकि उसका गुरु कुछ साँपों को ले कर घूमता था और हर प्रकार का छल करता था आप देखे और क्रोध करता था।

जब मैं अमेरिका गयी, तो मैंने उसके बारे में सुना कि उसके तीन हजार शिष्य हैं, मेरे पास उस समय इतने बॉम्बे में भी कभी नहीं थे, मेरे पास कठिनाई से दो सौ लोग किसी प्रकार होते थे, इस पर अडिग।

मैंने कहा, “तीन हजार! वो क्या कर रही है?” मैं वास्तव में चिंतित हूँ, आप जानते हैं, मैंने उसे बंधन दिया और सब कुछ।  

किन्तु जब मैं वापस आयी, तो आप विश्वास नहीं करेंगे, उसके पास चांदी के जल पात्र थे, आप देखें, ये घड़े, वह मेरे पैर धोने के लिए लायी थी और मैं बहुत शर्मिंदा थी, बहुत शर्मिंदा थी और उसने मुझे दिखाया, “देखो माँ! मैं क्या कार्य कर रही हूँ।” वहाँ मेरा इतना बड़ा फोटो रखा था, और चारों ओर सभी भूत। मैं उन सभी को मँडराता हुआ देख सकती थी, आप देखें, वो सभी  

मैंने कहा, “वह क्या कर रही है? वह क्या कार्य कर रही है और वह क्या करना चाहती है? क्योंकि वह पूरी तरह से अंधकारमय और प्रेतवाधित हो गयी थी।” मैंने उससे पूछा, “तुम इन लोगों के साथ क्या कर रही हो?”

“ओह माँ! आप नहीं जानती। मैंने आपका नाम वहाँ फैला दिया है। मैं लोगों को यह भी बता सकती हूँ यदि उन्होंने अपनी संपत्ति कहीं खो दी है, जहाँ भी छिपा हुआ धन है या मैं बहुत सारी बातें बताती हूँ…। मैं यहाँ तक उस घोड़े का नाम भी बता सकती हूँ जो प्रथम आने वाला है।” मैंने कहा, “बहुत अच्छा! यहाँ क्या अच्छा सहज योग चल रहा है, आप देखें? तो मैंने उससे कहा, “ठीक है! आप आइए और मुझसे कल घर पर मिलिए।” वह आयी। मेरे पास दो-तीन लोग बैठे थे, मैंने कहा, “ठीक है, उनके बारे में बताओ।” उसने कहा, “आप एक पुल के पास रहते हैं।”

उन्होंने कहा, “नहीं! कभी नहीं! मैं एक समुद्र के पास रहता हूँ। आप पुल को समुद्र कैसे कह सकती हैं?” फिर उसने यह कहा वह कहा । उन्होंने कहा, “नहीं! कुछ भी नहीं।”

फिर उसने दूसरी महिला से कहा। उसने कहा,”कुछ नहीं।”

तीसरे व्यक्ति ने कहा, “कुछ नहीं, यह सच नहीं है। आप बस कुछ ऐसा बता रही हैं जो सच नहीं है।”

तो वह मेरे पास भागी आयी, “माँ! क्या आपने मेरी सारी शक्तियाँ छीन ली हैं?” 

मैंने कहा, “यदि वो आपकी शक्तियाँ होतीं तो मैं आपको यहाँ रहने देती। ये शैतान की शक्तियाँ हैं। ईश्वर को यह बताने में क्या रुचि है कि ‘घोड़ा क्या आ रहा है और वह सब? आपको ये सब बातें क्यों बतानी चाहिए? ये आपकी शक्तियाँ नहीं हैं, ये आत्माओं की शक्तियाँ हैं जो आपको बाधित कर रही हैं, और जिन्हें आपने पकड़ लिया है और आपका गुरु यह सब काम कर रहा है।”

“हे ईश्वर! मुझे कभी पता नहीं चला।”

मैंने कहा, “यह यही है! ठीक है! कहिये कि ‘मै छोड़ती हूँ। मै छोड़ती हूँ।’ तीन बार कहिये ।

उसने कहा, “ठीक है! मैं कहूँगी, माँ। मुझे परम चाहिए, मुझे परम चाहिए”। वह घर चली गई, किन्तु आप इस लोकप्रियता को जानते हैं, यह सस्ती लोकप्रियता एक बहुत ही मोहक चीज़ है। वह फिर से लिप्त हो गयी और अब वह पागलख़ाने में है। यह वही है जो यह है क्योंकि ये आत्माएं जो आपकी सहायता करती हैं, आप पर वापस आती हैं और आपको प्रताड़ित करती हैं।

तो वो सभी लोग जो भटकने की प्रयास करते हैं, साक्षात्कार के बाद भी, मात्र गुरु के सिद्धांत से सही होते हैं। आज्ञा के सिद्धांत के साथ, आप साक्षात्कार देते हैं, बोध देते हैं। सहस्रार के सिद्धांत के साथ आप एकीकरण देते हैं, किन्तु गुरु के सिद्धांत के साथ आप उन्हें धर्म देते हैं। इसलिए इतने सारे लोग, आप सभी जो मेरे पास आए थे, इन सभी आदतों को बहुत सरलता से छोड़ दिया है, क्योंकि आपने आत्मा को पा लिया, आनंद और फिर आप वह सब नहीं चाहते हैं। मुझे आपको यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि आप छोड़ दें, आप बस छोड़ देते हैं, आप इसे बस भूल जाते हैं, क्योंकि आपका ध्यान अब आपकी आत्मा से जुड़ा हुआ है।

यह गुरु का कार्य है। ऐसा कहा जाता है कि “गुरु वह है जो आपको साहिब से मिलवाता है।” अर्थात “आपको प्रभु से मिलवाता है।” वह गुरु है। अन्यथा ये सभी गुरु नहीं हैं। किन्तु जिसने आपके धर्म को भी स्थापित नही किया है, जिसके पास अपना धर्म नहीं हैं, आप उसे गुरु कैसे मान सकते हैं?

ईश्वर आप सबको आशीर्वादित करे।  

श्री माताजी: यह एक जन्मजात साक्षात्कारी बालक है। 

नमस्ते! आप कैसे हैं? 

वो क्या पकड़ रहे हैं? वह अपने पैरों से दिखा रहा है, सभी ओर का दाहिना सहस्रार।

दाहिनी ओर सहस्रार! इसका का क्या अर्थ? प्रतिअहंकार। यह दाईं ओर आता है। पूरी दाहिनी ओर भारीपन महसूस कर रहे हैं, छोटा बच्चा दिखा रहा है।

वो कार्य कर रहे हैं, वो हर समय व्यस्त हैं। हर समय वो व्यस्त रहते हैं। गैविन के बच्चे, ऐसी छोटी सी चीज़… हर समय। आपको साफ करने का प्रयास कर रहे हैं – वो महान लोग हैं। हर समय वो कार्य कर रहे हैं। इसलिए मैं चाहती हूँ कि आप सभी शीघ्र अतिशीघ्र शादी कर लें, इतने सारे महान बच्चों का आपसे जन्म होना है।

ठीक है! मैं इसे आपके लिए इसे ठंडा कर सकती हूँ, यह सब ठीक है, आप चिंता न करें।

आपको चंद्रमा के बारे में सोचना होगा जो आपके मामा हैं। उनका जन्म लक्ष्मी के साथ हुआ था। चौदह चीज़ें हैं जो समुद्र से उत्तपन हुई थीं। उनमें से एक चाबुक भी है, छड़ी ग्रेगोर ने मुझे कल दी थी, वह भी समुद्र से बाहर आयी थी। वह चौदहवीं चीज़ थी।

अब, जो लोग पहली बार आए हैं उन्हें आगे आना चाहिए। यह अच्छा है, आगे की पंक्ति में कहीं अच्छा होगा और दूसरी पंक्ति हो सकती है। यह सब ठीक है! ये लोग पहली बार आए हैं, आप सब?

ठीक है! क्या आप इन पहली तीन पंक्ति पर आ सकते हैं, ठीक है। अब और कौन है जो पहली बार आए हैं? कृपया आगे आइए।

जैसा कि आप जानते हैं सहज योग एक बहुत ही सूक्ष्म चीज़ है और मुख्य बात यह है कि इसे कार्यान्वित होना चाहिए, इसे वास्तव में होना चाहिए, कुंडलिनी को ऊपर उठना चाहिए। आपको अपना साक्षात्कार मिलना चाहिए, यही मुख्य प्रयोजन है। आप कुछ भी कह सकते हैं, कुछ भी आपके तर्क हो सकते हैं या कोई समस्या हो सकती है, हम उस बारे में चिंतित नहीं हैं। हम उस बारे में चिंतित हैं कि आपको स्वयं से मिलना चाहिए। यही वह मुख्य बिंदु है जिस पर हम हैं और यही हमें प्राप्त करना है।

अब, हमारे जीवन में समस्याएं असंतुलन से उत्तपन होती हैं और बहुत सारी चीज़ों से। यह जो भी हो, अभी भी, बल इतना अधिक है कि आपको अपना साक्षात्कार मिलेगा। मैं यह आपको क्यों कह रही हूँ, कि मैं लोगों से मिलती हूँ, एक बार जब उन्हें उनका साक्षात्कार मिल जाता है तो वो सोचते है कि अब हो गया, हम प्रसन्न हैं, फिर वो नहीं आते। यह मात्र अंकुरण हुआ है, कुंडलिनी खुल गई है, क्योंकि वह इन दिनों प्रतीक्षा कर रही है, आप देखे, इसलिए पूरी बात एक बड़े अनुभव के रूप में सामने आती है।

किन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि आपने इसे स्थापित कर लिया है।

तो दूसरी चीज़ जो आपको करनी है वह है स्थापित करना, यह बहुत महत्वपूर्ण है। मुझे लगता है साक्षात्कार मिलने से अधिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि साक्षात्कार यदि होता है और नीचे गिर जाता है, तो इसका क्या लाभ?

इसलिए आप अपना साक्षात्कार लें, जो आपको मिलेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है, क्योंकि आप सभी इस प्रकार के देखते हैं। किन्तु तब आपमें आत्म-सम्मान होना चाहिए और समझना चाहिए कि आपको यह मिल गया है। क्योंकि आप इसके अधिकारी थे। भारत में कुछ लोगों को यह नहीं मिला है जो मेरे साथ सात साल से हैं, किन्तु आपको मिलेगा मुझे विश्वास है। जो मैं स्पष्ट रूप से देख सकती हूँ कि आप सभी इसे प्राप्त करने वाले हैं। किन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि यदि आप इसे प्राप्त करते हैं तो आप इसे फिर से नष्ट कर दें, क्योंकि यह वही है जो आप अपने जीवन भर खोजते रहे हैं।

क्योंकि पश्चिम में समस्या यह है: यद्धपि यहाँ ऐसे संत हुए हैं फिर भी उनका मन भटकता रहता है और वो विचार करने लगते हैं। आप इसे अपनी तर्क शक्ति के माध्यम से प्राप्त नहीं करते हैं। आप इसे अपनी कुंडलिनी के माध्यम से प्राप्त करते हैं, जिसके विषय में आप विचार नहीं कर सकते। इसलिए आप इसे बढ़ने दें, स्वयं प्रगट होने दें और आप उतने ही अच्छे बन जाते हैं जितना कि दूसरे हैं।

अब वो सभी विशेषज्ञ और गुरु हैं, आप जानते हैं, वो कुंडलिनी के बारे में इतना कुछ जानते हैं। आप चकित हो जाएंगे, वो सभी विशेषज्ञ हैं, वो आपकी तरह ही दिखते हैं! वो कुंडलिनी उठा रहे हैं, वो साक्षात्कार दे रहे हैं, वो इसके बारे में सब कुछ जानते हैं।

तो उसी प्रकार आपको होना है। यह एक बहुत ही साधारण बात है जो किसी भी उम्र में हो जाती है, किसी भी समय, किसी भी जाति, कुछ भी । मुख्य बात यह है कि आपके पास आत्म-सम्मान होना चाहिए, आपको पता होना चाहिए कि आप संत हैं। आप वर्षों से संत हैं और आप इस प्रकार से बड़े हुए हैं। आप खोज रहे हैं, खोज रहे हैं, खोज रहे हैं। अब जब आप इसे प्राप्त कर चुके हैं, आप इसे बढ़ने दें, क्योंकि यह बहुत महत्वपूर्ण है और आपको अपना महत्व पता होना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है। क्योंकि मैं आपको महत्व देती हूँ, क्योंकि मैं बहुत गहराई से देखती हूँ जो आप नहीं देख सकते हैं। किन्तु आप यह नहीं देखते हैं, धीरे-धीरे आप देखना आरंभ कर देंगे, ठीक है? इस वचन पर, मैं आपको साक्षात्कार दूंगी ।

अपने हाथ इस प्रकार रखिये। दोनों पैर जमीन पर रखें, सीधे। कभी-कभी मुझे लगता है, आप देखें, मैंने लोगों पर बहुत परिश्रम किया है और वो खो गए, मुझे इसका बहुत दुख है।

बायां स्वाधिष्ठान, आप देखें – उसे दे दो …

एक संत की तरह वह यहाँ बैठा है, महान गुरु। 

अब अपने हाथों को मेरी ओर रखिए, इस प्रकार और अपनी आँखें बंद कर लीजिए।

कृपया अपनी आँखें बंद करें।

अब क्या होता है कि पहले आप विचारहीन जागरूक हो जाते हैं, निर्विचार समाधि। समाधि का अर्थ है प्रबुद्ध जागरूकता। आप प्रबुद्ध जागरूकता प्राप्त करते हैं जो विचारहीन है। आप विचारहीन जागरूक हो जाते हैं, प्रथम।

और दूसरी घटना में, जब यह आज्ञा पार कर जाता है, यह आपके साथ घटित होता है, और जब यह पार हो जाता है, तो इस बिंदु के माध्यम से बेधती है जिसे तालू कहते है, फॉन्टनेल हड्डी क्षेत्र, आप अपने हाथों में अपनी आत्मा के प्रकाश को महसूस करना आरंभ करने लगते हैं,  चैतन्य की तरह।

क्या आप अपने हाथों में ठंडी हवा महसूस कर रहे हैं? पहले से ही आपको मिल गया है!

आपको नहीं मिला, थोड़ी समस्या है। ठीक है, मुझे यहाँ देखिए, थोड़ा सा । वहाँ? बिना विचार किए, मात्र मुझे देखें, यह कार्यान्वित होगा।

मैंने जो भी कहा है, तुम उसे भूल गए। आप देखें, यदि आपने नशा लिया है तो कोई बात नहीं, चिंता न करें। मैं वह सब पी सकती हूँ; बस बाहर चूस लुंगी। आप इन सब बातों की चिंता मत करो, भूल जाओ, किसी भी प्रकार का कोई अपराधबोध न रखें, ईश्वर के लिये। मैं प्रेम के सागर की बात कर रही हूँ जो सागर है। आप अपराधबोध कैसे रख सकते हैं? बस एक कलंक। तो कृपया, कोई अपराधबोध न लें, इसके विपरीत मुझसे कहें कि “माँ! हम दोषी नहीं हैं – मैं दोषी नहीं हूँ।” अपने हृदय में, बस यही कहें। मात्र यही तथ्य आपको पकडना है।

आजकल यह एक फैशन भी है किसी भी चीज़ के बारे में दोषी महसूस करना। अब आंखें बंद कर लें। कृपया अपनी आँखें बंद करें। यह जान लीजिए कि आप बिल्कुल भी दोषी नहीं हैं, कि आप बहुत सुंदर हैं।

दाईं से बाये.. दाहिने से ले जाएँ – अपनी आँखें …। क्या आपको महसूस हो रहा है? यह कार्यान्वित होगा। बस रहने दो, रहने दो, देखें, जाने दो, जाने दो। अपनी आँखें बंद करें। आपको इसे प्राप्त करना होगा। स्वयं से चिंतित न हों। क्या आप अपनी आलोचना कर रहे हैं? क्या आप?

साधक: बस डर गया।

श्री माताजी: एह?

साधक: बस डर गया।

योगी: भयभीत।

श्री माताजी: भयभीत, किस बारे में? आपके पास जो सुंदरता है उसके बारे में? बिलकुल नहीं डरना है। डरने की कोई बात नहीं। क्या मैं भयभीत दिखती हूँ?

साधक: कुछ नहीं।

श्री माताजी: हा?

साधक: कुछ नहीं।

श्री माताजी:  ठीक। अब बंद करें, अपनी आंखें बंद करें।

नहीं, भयभीत होने की कोई बात नहीं है, यह सबसे आसान चीज़ है जो हो सकती है, बिल्कुल यह वहाँ है, यह एक बीज के अंकुरण की तरह है। बस आंखें बंद कर लें, घबराने की कोई बात नहीं। बस इसे होने दो, इसे होने दो, बस। यह सबसे सरल बात है।

उसे यह प्राप्त हो गया है। बस ऐसे ही।

आपको शराबखाने और उन जैसी चीज़ों से डरना होगा, आप जानते हैं। मैं वास्तव में शराबखाने से डरती हूँ ।

दाईं से बाएँ, जाइये, बाएँ से दाईं। आइये उसके चैतन्य को अनुभव करते हैं, साथ आइये। आप में से कुछ साथ आइये। नहीं, पीठ पर ।

बस बैठ जाइये, बैठ जाइये। वो बस इसे कार्यान्वित करेंगे। अपनी आँखें बंद करिये, अपनी आँखें बंद करिये, वो मात्र तुम्हारी सहायता कर रहे हैं, बस, अपनी आँखें बंद करिये। बस- आप देखें, यह ऐसा है, कि वो तैराकी जानते हैं और वो मात्र आपकी सहायता करने की प्रयास कर रहे हैं। एक बार जब आप किनारे पर होते हैं, तो वो आपको तैरना भी सिखाएंगे और फिर आप दूसरों को बचाने जाएंगे।

हम्म! उस पर काम करो।

अपनी आँखें बंद करिये, इसके बारे में मत सोचिये। बस आनंद लें, यह सबसे बड़ी चीज़ है जो आपको मिली है।

सहस्रार, सही। नहीं, नहीं, यह कार्यान्वित होगा, आप चिंता न करें, हम आपकी समस्या जानते हैं। बस नहीं – अपनी आँखें बंद करिये। हम आपकी समस्या जानते हैं।

दाईं से बाएँ। हम आपकी समस्या जानते हैं, हम सब कुछ जानते हैं कि यह कहां हो रहा है। अपनी ऑंखें बंद करिये। डरने की कोई बात नहीं है, मेरा तात्पर्य है, क्या होने वाला है?

कोई आपको अंदर से डरा रहा है। ऐसा ही है, मुझे कहना चाहिए। डरने की कोई बात नहीं है।

साक्षात मोक्ष दायिनी, अहम् साक्षात् मोक्ष दायिनी, अहम् साक्षात् मोक्ष दायिनी, साक्षात मोक्ष दायिनी, अहम् साक्षात् मोक्ष दायिनी, अहम् साक्षात् मोक्ष दायिनी, अहम् साक्षात् मोक्ष दायिनी, अहम् साक्षात् मोक्ष दायिनी, अहम् साक्षात् मोक्ष दायिनी, अहम् साक्षात् मोक्ष दायिनी,अहम् साक्षात् मोक्ष दायिनी, अहम् साक्षात् मोक्ष दायिनी, अहम् साक्षात् मोक्ष दायिनी, अहम् साक्षात् मोक्ष दायिनी, अहम् साक्षात् मोक्ष दायिनी, अहम् साक्षात् मोक्ष दायिनी

हाथ से। … मार्कस, बस खड़े हो जाओ और इसे बाहर खींचो।

यह उन पर काम कर रहा है। यह एकदम ठीक है, वो इसे कार्यान्वित कर रहे हैं। यह आरंभ हो गया है, अब नहीं … यह आरंभ हो चुका है, अब आरंभ हो चुका है। अपनी आँखें बंद करिये। यह कार्यान्वित हो रहा है। आप चिंता मत करो यह काम कर रहा है। उसे यह बहुत अच्छी तरह से मिला है।