Tattwa Ki Baat

New Delhi (भारत)

1981-02-15 Tatwa Ki Baat 1 Delhi NC Source NITL HD, 61'
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1981-02-15 Talk at Delhi University 1981: Tattwa Ki Baat 1, Delhi

Tattwa Ki Baat – 1 Date 15th February 1981 : Place Delhi Public Program Type Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript | 02 – 18 Hindi English Marathi || Translation English Hindi 19 – 30 Marathi

ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindii Chaitanya Lahiri कल मैंने आपसे कहा था कि………….. है? अगर धरती माता की वजह से ही सारा कार्य आज आपको तत्व की बात बतायेंगे जब हो रहा है तो घरती माता की वजह से यह जो हम एक पेड़ की ओर देखें और उसका उन्नतिगत पत्थर है वो क्यों नहीं पनपता ? इसका मतलब यह होना, उसका बढ़ना देखें, तो यह समझ में आता है कि अनेक तत्वों में एक तत्व है, लेकिन तत्व है कि उसके अन्दर कोई न कोई ऐसी शक्ति अनेक हैं । प्रवाहित है या प्रभावित है जिसके कारण वो पेड़ बढ़ रहा है और अपनी पूरी स्थिति को पहुँच रहा समाये हैं और यह जो अनेक तत्व हैं यह हमारे है। यह शक्ति उसके अन्दर है नहीं तो यह कार्य अन्दर भी स्थित हैं, अलग अलग चक्रों पर इनका नहीं हो सकता। लेकिन यह शक्ति उसने कहां से वास है, लेकिन एक ही शरीर में समाये हैं और पाई ? इसका तत्व मर्म क्या है ? जो चीज बाह्य एक ही ओर इनका कार्य चल रहा है, और एक ही में दिखाई देती है, जैसे कि पेड़ दिखाई देता है इनका लक्ष्य है और एक ही चीज़ को इनको पाना उसके फल,फूल, पत्ते सब दिखाई देते हैं, ये तो है। जैसे कि मूलाधार चक्र पर गणेश तत्व है, गणेश कोई तत्व नहीं। इस तत्व पर तो यह चीज जी का तत्व है। गणेश जी के तत्व के कारण हम आधारित नहीं वो चीज कोई न कोई इससे सूक्ष्म आप पृथ्वी पर बैठे हुए हैं, ऐसे फैंके नहीं जा रहे । है। उस सूक्ष्म को तो हम देख नहीं पाये, उसकी अगर हमारे अन्दर गणेश जी का तत्व नहीं होता तो यदि साकार स्थिति होती तो दिख जाता लेकिन इस पृथ्वी पर टिक नहीं सकते थे। इतने जोर से वो निराकार स्थिति में है, माने कि उसके अन्दर ये सब अनेक तत्व जो हैं वो एक में यह पृथ्वी घूम रही है, इस पर हम चिपके नहीं रहते कोई कहेगा कि ‘पृथ्वी के अन्दर ही यह चलता हुआ पानी है, वो भी उसका तत्व नहीं हुआ, हालांकि वहन कर रहा है। पानी ही उस शक्ति गणेश तत्व है माँ यह बात भी सही है। पृथ्वी के को अपने अन्दर से वहन कर रहा है। याने अगर गणेश तत्व की वजह से ही हम पृथ्वी पर जमे हुए पानी ही तत्व है तो पत्थर में पानी डालने से, वहां हैं। लेकिन जो पृथ्वी के अन्दर है उसको उसका कोई पेड़ तो नहीं निकल आते। तब तत्व में जानना axis कहते हैं, याने इस लाइन में वो तत्व बसा चाहिए कि हर चीज़ का अपना-अपना तत्व है । हुआ है उसको कहते हैं। हालांकि axis कोई है पानी का अपना तत्व है, पेड़ का अपना तत्व है नहीं, कोई ऐसी सलाख axis नहीं है पर मानते हैं और पत्थर का भी अपना तत्व है। उसी तरह कि जो शक्ति है इसके तत्व की वो इस लाइन पर मानव का भी अपना एक तत्व है, principle (सिद्धांत) चलती है, उसी के ऊपर होती है उसके बीचोंबीच, सो है, जिसके बूते पर वो चल रहा है, बड़ा हो रहा वो तत्व हमारे अन्दर क्या बनकर रहता है इससे है, उससे उसकी उद्देश्य प्राप्ति होती है। हमें दिशा का भान हो जाता है। ये तत्व एक हो नहीं सकते। जैसे कि जानवरों में यह तत्व ज्यादा होता है पक्षियों मैंने बताया कि पानी के तत्व से ही अगर, पौधा में यह ज्यादा होता है क्योंकि भोले भाले जीव हैं। निकल रहा है तो एक पत्थर से पौधा क्यों नहीं उनमें छल, कपट, वैराग्य कुछ नहीं, वह विचार नहीं निकलता। अगर बीज/पानी के तत्व से बीज पनप रहा है तो वो धरती माता की शरण क्यों जाता और न ही वो आगे का सोच सकते हैं ना ही वो कर सकते। उनमें विचार करने की शक्ति नहीं है 2

Original Transcript : Hindi पीछे का सोचते हैं। जो चीज़ सामने आती है उसी या पूरब जा रहे हैं या पश्चम में जा रहे हैं । पर से वो काम लेते हैं। पीछे का बिल्कुल नही सोचते आपको आश्चर्य होगा जब कोई बन्दर, आप देखिये, द्िशा का ज्ञान समाप्त होता जाता है दूसरी तरफ मर जाये, जब तक वो मरता नहीं तब तक बो हाय मनुष्य प्राणी में जो आदमी बहुत ज्यादा सोच-विचार तोबा मचायेंगे, जैसे ही वो मर जायेगा वो उसको के चलता है, कि मैं ये करें या न करूँ, इसमें छोड़ देंगे, भाग जायेंगे, मतलब यहीं खत्म । अब कितना लाभ होगा, इसमें कितना नुकसान होगा, इससे मर गया न, यह तो ऐसा हो गया जैसे, कोई इसमें रुपया लगाऊँ कि इसमें रुपया लगाऊँ, इस दूसरे पत्थर, अब इससे कोई मतलब नहीं, बिल्कुल तरह की फालतू बातों में जब अपना चित्त बरबाद बेकार चीज़ है। लेकिन धीरे धीरे उसके अन्दर यह कर देता है. उसको दिशा का भान कम हो जाता जरूर है कि अनुभव, जैसे आपने शेर को पकड़ने है उसको आप एक दिशा में खड़ा कर दीजिए कि की कोशिश की, दो तीन बार उसको जाल में फंसा आपको उत्तर में जाना है थोडी देर में देखियेगा, लिया. तो फिर वो ताड जाता है कि इसमें कोई वो दक्षिण की ओर चले जा रहे हैं। रास्ते का गड़बड है बहुत कुछ तो भगवान की दी हुई चीज़ उसको ज्ञान नहीं रहता। अगर आप उसको कहीं है लेकिन कुछ कुछ फिर वो सीख जाता है। खड़ा कर दीजिये आप उससे पूछिये रात में पूरब, आदमियों से भी तो बहुत कुछ सीख लेता है लेकिन पश्चिम, उत्तर, दक्षिण कैसे पता लगायें, तो है । जैसे-2 गणेश तत्व कम होता जाता है वैसे-2 1 सूरज उसमें परमात्मा की दी हुई चीज़ बहुत ज्यादा है। नहीं। जब आप का चित्त इसी तरह बाहर की ओर जिससे उसमें स्फूर्ति आती है। जैसे जापान में ऐसे ज्यादा हो जाता है, और या तो आप किसी की पक्षी हैं, जब बो उड़ने लगते हैं ज्यादा और भागने चालाकी से पस्त होते हैं. या आप किसी की कि अब चालाकी से डुबाना चाहते हैं, दोनों ही चीज़ हो लग जाते हैं, तब लोग समझ जाते हैं जलजला आने वाला है, भूकम्प आने वाला है। सकती हैं। आप या तो भयग्रस्त हैं कि दूसरा क्योंकि इन पक्षियों को गड़गड़ाहट बहुत पहले आपको चालाकी से खा न डाले और या तो आप सुनाई दे जाने लगती है। जानवरों को भी आवाज किसी के पीछे लगे हैं कि उसे चालाकी से कैसे मनुष्य से बहुत ज्यादा पहले सुनाई दे जाती है। डुबाया जाए- दोनों हालात में आपकी जो बहुत सुनने की शक्ति, देखने की शक्ति। अगर कोई अबोधिता है आपकी जो innocence है वो घटती चील ऊँचाई से देखें तो वो समझ जाती है कि यह जाती है। और जब ऐसी गति आ जाती है तो आदमी मरा है या जिन्दा। यह सारी जो आठ आपको दिशा का आभास नहीं रहता । एक छोटी इन्द्रियों की शक्तियाँ हैं ये जानवरों में इन्सान से सी बात बताएं, आप बुरा मत मानिये। मैं आजकल ज्यादा हैं और उसमें से सबसे बड़ी शक्ति जो देखती हैूँ पहले लड़कियों में ये बात थी लेकिन उसके पास होती है, जो गणेश तत्व से पाई जाती उनमें भी यह बात नहीं। दिल्ली शहर में ज्यादा है, है वो है दिशा का अनुभव, कौन सी दिशा में जाना कि हर आदमी की ओर नजर उठाकर देखने लगी चाहिए । मैंने कल आपसे बताया था कि जब पक्षी हैं। पहले तो मर्द ही देखते थे, अब औरतों ने भी साईबेरिया से आते हैं तो को उसी वजह से जानते शुरु कर दिया है। अब इसको आप सोचते हैं ये हैं कि वो उत्तर जा रहे हैं या दक्षिण जा रहे हैं, बहुत ही सीधी बात हैं, इसमें कौन सी ऐसी बात है। 3

Original Transcript : Hindi हर आदमी को और जरुरी है ऐसे देखना। लोग भटक नहीं सकते अगर आप किसी बिल्ली को कहेंगे इसमें शिष्टाचार की बात माँ कह रही है। घर से निकालना चाहें तो सात मील की दूरी पर ये गहरी बात है। जितना आप देखते हैं, उसको ले जाकर छोड़ दें, तो भी शायद वापस उतना ही चित्त आपका बाहर की ओर जाता है, चली आएगी। कुत्ते के तो क्या कहने, कुत्ता तो ऐसे जितनी आपकी दृष्टि बाहर की ओर जाएगी उतना सूँघ कर घूमता है कि उसे फौरन पता चल जाता है कि चोर कहाँ गया और कहाँ की चीज़ कहाँ गई लेकिन मनुष्य के अन्दर तो सूघने की शक्ति भी बड़ी नष्ट हो जाती है। उसे गंदगी की तो बहुत आपका मूलाधार चक्र खराब होगा। विशेष करके इस तरह की चीजों की ओर या बहुत से लोगों की ये आदत होती है कि हर रास्ते में जो चीज़ पड़ती बदबू है, हर advertisement पढ़ना चाहिए अगर एक आने लगती है लेकिन पाप की गंदगी की नहीं दो चीज़ छूट गई तो पीछे मुड़कर देखेंगे, बो पढ़ना आएगी। वो उसे नहीं सूँघ पाता है जो हमारे अन्दर है या हर चीज़ बाजार में दिख रही है, हर चीज पाप बन कर जी रहा है और जो आदमी है उनको देखना ही है। ये कौन सी चीज़ है, कौन महापापी। उसके साथ हम खड़े हैं। उसको उस सी चीज़ है, कौन सी चीज है । आँख का सम्बन्ध की बदबू जरूर आ जाएगी कि यहाँ गन्दा पड़ा है, हमारे मूलाधार चक्र से बहुत नजदीक का है । यहाँ सफाई नहीं है, यह नहीं है, वो नहीं है, पीछे की तरफ में यहाँ पर भी हमारा मूलाधार चक्र महापापी जो उसके पास खड़ा है उसकी बदबू है। इसका सम्बन्ध हमारी ऑँख से बहुत जबरदस्त उसको नहीं आयेगी। और वो महापापी कोई हो, होता है। इसलिए जो लोग अपनी आँखे बहुत मिनिस्टर हो कोई हो तो उसके तलुए चाटने में इधर उधर चलाते हैं उन को मैं आगाह कर देना इनको फरक नहीं पड़ेगा । चाहती हैँ कि उनका मूलाधार चक्र बहुत खराब हो जाता है और अजीब-2 तरह की परेशानियाँ उनको का सारा, यों कहना चाहिए कि, अस्तित्व खराब हो उठानी पड़ती हैं। सब से पहले तो बात यह हो जाता है और गणेश तत्व जो है उस पर चन्द्रमा का जाती है कि ऐसे आदमी का चित्त स्थिर नहीं रह वर्षाव है। चन्द्रमा जब विगड जाते हैं तो आदमी को पाता। क्योंकि वो अपनी दिशा भूल गया। Lunacy की बीमारी हो जाती है, आदमी पागल हो इधर-उधर धीरे-धीरे देखना भी दिशा भूल का एक नमूना है। जिस आदमी को अपनी दिशा में बात यह होती है कि जब आदमी इधर उधर मालूम है, वो सीधे चला जाता है। दिशा का भूल अपनी आँखें घुमाने लग जाता है, तो उस का चित्त जाना मनुष्य ही कर सकता है, जानवर नहीं कर अपने आप अपने काबू में नहीं रहता और कोई सी सकता। क्योंकि उसको कोई वजह ही नहीं, वो भी दुष्ट आत्मा उस पर आधात कर सकती है। जब दिशा क्यों भूले ! समझ लीजिये किसी एक जानवर विदेश के लोगों को मैंने बताया कि तुम लोग क्या ने किसी दूसरे जानवर को मार कर कहीं डाल कर रहे हो अपनी आँख के साथ। ईसा मसीह ने दिया, उसे मालूम है उसने उसे कहाँ डाला है, साफ शब्दों में कहा यह लिखा गया है कि Thou उसको उसकी सुँघ आएगी उस की समझ में shall not commit adultery’ लेकिन । would गणेश तत्व के खराब हो जाने से मनुष्य मा जाता है। और पागल तो क्या हो जाता है असल आएगा, वो बराबर अपने मौके पर पहुँच जाएगा| say unto’ Thou shall not have adultrous eyes.” 4

Original Transcript : Hindi हम इस तरह से अपना गणेश तत्व खराब करते लोग पंजाबी आये हैं। मजाल नहीं सरदार जी रहते हैं और जिसका गणेश तत्व खराब हुआ लोग किसी औरत को कभी बुरी निगाह से किसी ने उसकी कुण्डलिनी टिक नहीं सकती, फिर खिंचकर देख लिया तो खून-खराबी हो जाती थी। और वापस चली आती है। कितनी भी मुश्किल से ऊपर आज यह अपनी हालत हो गई है कि किसी को उठ कर कुण्डलिनी जैसे कि कोई चरखी हो इस किसी का पता नहीं। और अगर आप कहें कि यह तरह से गणेश जी उसे खींच लेते हैं । कैसे हो सकता है हमारा तो चित्त ही नहीं बच कुण्डलिनी उठती नहीं और उठती भी है सकता। अरे भई, पचास साल पहले यह नहीं था. चालीस साल पहले भी नहीं था तों आज क्या हो तो फिर जाकर दब जाती हैं। इसमें, अगर समझ गया है कि हम लोगों की सभी आँखों की शर्म और हया कहाँ चली गई ? अरे कोई बताता थोड़ी था लीजिये कोई आदमी चोर हो, चकार हो, चोरी करता हो तो परमात्मा की नज़र में इतना बड़ा कि शर्म, हया करो, वह तो सब अन्दाज हो ही गुनाह नहीं है। Govt. से चोरी करता है तो समझ लो कि Income है अपना ही Income है उसमें जाता था। इन्सान को पता रहता ही था। इसी तरह से पहले लोग रहते थे। आजकल बहुत पता नहीं कौन चोर है। Govt, चोर है या जिसका Income tax खाया जा रहा है वो चोर है। उसका लायक हो गए ना ? तो जैसे-2 चलते हैं अगर हमने इसमें अपना गणेश तत्व खो दिया, बहुत कुछ खो दिया। कल आपने पूछा तो मैं बता रही हूं वरना मैं कहती नहीं कि लोग बुरा मान जायेंगे। लेकिन मतलब यह नहीं कि आप Income tax न दें लेकिन परमात्मा की नज़र में वो आदमी बहुत दषित है जिसकी नजर स्त्री के ऊपर शुद्ध नही आजकल जो हवा है वो बहुत खराब है, बहुत है। सिवाय अपनी पत्नी को छोड़कर बाकी सब औरतें शुद्ध स्वरूप में देखनी चाहिए। लेकिन आज के लोग ऐसा मानते नहीं कि ऐसा होता था। जैसे ndiscipline (अनुशासन हीनता), खराबी और हमारी उम्र में हम तो अधिकतर लोगों को ऐसा ही नुकसानदेय है। इसी से हमारे यहाँ सब तरह के बदतमीजियों और दुष्टता आ रही है। जब आप इस देखते थे। अब इस उम्र में देखते हैं तो हमारी तरह के काम शुरु कर देते हैं। अब तो जब औरतें उम्र की औरतें, जों लोग बुड्ढे लोग हैं वो भी भी इस ढंग की हो गई, तो आदमियों का क्या हाल सत्यानाश हो गए। अपनी उम्र में उन्होंने अपने हागा? इस तरह आजकल औरतों का हाल है जवानों से ये बातें सीखी हैं और बुड्ढे ज्यादा ही आदमी तो आदमी औरतें भी इस तरह की होने लग गई इस संसार में। परमात्मा का राज्य आना बरबाद हो गए जवानों से। कुछ समझ में नहीं आता कि इन लोगों को अक्ल कब आयेगी। जब जवान थे, कोई मजाल नहीं जब हम लोग छोटे थे मुश्किल है। आजकल इस तरह के गुरु भी हो गए हैं जो सिखाते हैं कि ऐसे धन्धे करो तो भगवान मिल जायेगा तो और भी अच्छे ऐसे गुरुओं के इलाकों में लोग आ गए ऐसे गुरुओं के हाथ पड़ते तो कभी भी ऐसा सवाल नहीं उठता था। हम तो अकेलें चले जाते थे कहीं भी पंजाब में भी हम पढ़ हैं। यहाँ अब इतने बैठे हैं, ऐसे गुरुओं के पास दस हुए हैं। पंजाब में मजाल नहीं कोई बदतमीजी कर गुने बैठ जायेंगे। ये बातें किसी को अच्छी थोडी लगती हैं। अरे भाई आराम से जैसा करना है करो ले सब लोग फाड़ खायेंगे। और अब वहीं के ये 5

Original Transcript : Hindi देखिये, मंगलमय सहज -योग में आशीर्वादित अपने गणेश तत्व को कुचल मारो गणेश जी को जाता है। वो भी मना है। वैवाहिक जीवन दो। सुला होता है यहाँ तक कि सहज-योग के विवाह भी कुण्डलिनी तत्व जो है। ये साइन्स-बाइन्स (विज्ञान) की बात नहीं है ये तो पवित्रता की बात है। पवित्र आदमी की-Holiness, लोग मुझे Her Holiness तो कहते हैं पर Holi- ness (पवित्रता) की जब बात करती हूँ तो उनको समझ में नहीं आता कि आजकल तो कोई गुरु कोई होते हैं जो बहुत ज्यादा हमने देखे हैं. लाभदायक होते हैं। सहज-योग की तरफ से हम लोग विवाह करते हैं, उससे बहुत लाभ होता है। विवाह एक मंगलमय कार्य है और उसमें आप जानते हैं हम हमेशा गणेश की स्तुति करते हैं अगर आपमें पवित्रता नहीं है तो आप परमात्मा क ऐसा नहीं करता कि आपको पवित्र होना चाहिए। की बात नहीं कर सकते, सच बात में आप से कहूँ। माताजी तो एक अजीब गुरु है जो पहले ही शुरु कर देती हैं कि आपको पवित्रता रखनी चाहिए । वाह, अधिकतर तो गुरु यही कहत्ते हैं कि भाई जो इसलिए बहुत लोग कहते है, कि माँ हमारे क्मों के फलों का क्या होगा ? और हमारे कर्म अच्छे हैं नहीं । बहरहाल मेरे सामने यह बातें नहीं करने की क्योंकि माँ के लिये ये सब कुछ मुश्किल काम करना है वो करो पर पैसा जमा कर दो, बस काम खतम । पैसा तुमने जमा किया कि नहीं ? कुण्डलिनी-जागरण जो है, यह असलियत हैं, reality है, actualisation है। इसके लिए मनुष्य का पवित्र होना जरूरी है। अगर आप पवित्र नहीं हैं तो आपको कुण्डलिनी जागरण का अधिकार मिलना नहीं चाहिए। फिर भी माँ का रिश्ता है, मों मानने को तैयार कभी नहीं होती कि से जगा सकते हैं। जब यह परदेसियों में जम गया मेरा बेटा जो है वो गिर गया है। उसके लिए बड़ा नहीं। उनका नाम ही बनाया है पाप नाशिनी वगैरह, तो क्या है? लेकिन पार होने के बाद याद रखना कि आप पार नहीं थे अन्धेरे में थे चलो जैसे भी हो लेकिन उसके बाद यह बात जाननी चाहिये कि अपने गणेश तत्व को आप बहुत आसानी तो फिर आप लोगों में क्यों न जमे ? जब इन मुश्किल हो जाता है क्योंकि उसको ही लांछन लोगी ने सीख लिया है कि पवित्रता क्या है तो लगता है। इसी से तो सारी अपनी पुन्याई लगा क्या आप लोग नहीं जमा सकते ? कम से कम ऐसा हिन्दुस्तानी अभी तक मुझे नहीं मिला जो अपवित्रता को अच्छी समझता हो। करता है, पर के कहती हैं कि पूजा-पाठ तो करा दो पहले यह बात जानना चाहिए कि चाहे आप बुरा माने या भला अपने जीवन में पार होने के बाद आपको जानता है कि गुनाह है, गलती है, यह समझता जरूर पवित्र बनाना होगा। पवित्रता आप बहुत जरूरी आनी चाहिए। इसका यह मतलब नहीं कि है कोई हिन्दुस्तानी चाहे विदेश में रहा हो, करता में है पर जानता है गलत काम हैं। लेकिन यह तो आप सन्यासी बनकर घुमें, सन्यासियों को भी बैचारे यह भी नहीं जानते कि यह गलत काम है। यह तो सोचते हैं अच्छा काम है। वो तो कहते हैं कि करना ही चाहिए ऐसा। इसके बिना आपका कल्याण नहीं, ऐसा भी ये लोग सोचते है। इतने सहज-योग नहीं मिल सकता। यह मतलब मेरा बिल्कुल नहीं कि आप किसी unnatural (अप्राकृतिक) तरीके से रहिये, बिल्कुल नहीं। इससे आदमी बड़ा ही शुष्क हो जाता है, सूरखा इन्सान हो बैवकूफ हैं इस मामले में, यानि सरल है बेचारे। तब

Original Transcript : Hindi भी वो बच गए, आप भी बच सकते हैं लेकिन bathroom के पास रख दिया था। यह बात सही जिम्मेदारी आप पर है। इस गणेश तत्व को बनाये है, एक दूसरे माने में या एक दूसरे आयाम (di- रक्खें जैसे गणेश है। देखिये मूलाधार चक्र जो है mension) में । यह बात है कि वो अपनी मों की वो कहाँ पर हैं ? जो कुछ भी विसर्जित किया हैं रक्षा करें, कि उन की प्रतिष्ठा की रक्षा करें, उनके जितना protocol की. उनकी पवित्रता की रक्षा करें क्योंकि होता है उस पर श्री गणेश बैठा दिये गए हैं वो वो virgin (कुमारी) हैं वो कन्या हैं, इसी प्रकार सारा कार्य श्री गणेश करते हैं। क्योंकि श्री गणेश हमारे अन्दर जो कुण्डलिनी है गौरी स्वरूपा है, पत्ति उसको कहना चाहिए कि excretion जैसे कीचड़ में कमल होता है उस प्रकार हैं। अभी है, उनका उनके पति से मेल नहीं हुआ अपनी सुगन्ध से सारा सौरभ इतना लुटाते हैं कि उनके आत्मा-स्वरूप शिवजी हैं और गणेश वहाँ वो कीचड भी सुगन्धमय हो जाता है। आपको बैठे हुए हैं और उस दरवाजे पर श्री गणेश बैठे हुए आश्चर्य होगा कि जैसे ही आपका गणेश तत्व हैं और उस दरवाजे से शिवजी भी नहीं जा सकते। जमना शुरु हो जायेगा आपने सोचा भी नहीं होगा, इतना पवित्र चो दरवाजा है और यह दुष्ट लोग. आप जानते भी नहीं होंगे कि कितना आनन्द अन्दर इनको तो तान्त्रिक कहना चाहिए. उस तरह से से आने लगता है क्योंकि तत्व निर्मल है इसका। कोशिश करते हैं कुण्डलिनी माँ की ओर जाने की तत्व का मतलब ही निर्मलता है। जो चीज़ निर्मल और इसी वजह से उनको हर तरह की तकलीफ है, माने तत्व पर आ गई उसका मल ही सारा हट हो जाती है। जिस आदमी में पवित्रता नहीं है कुण्डलिनी अपने अन्दर जमने न दे कोई भी चीज़ जो निर्मल जागृत करे अगर ऐसा आदमी कोशिश करेगा तो करती है वो तत्व ही हो सकती है। क्योंकि तत्व से जरूरी है कि श्री गणेश उस पर नाराज हो जायेंगे कोई चीज़ लिपट नहीं सकती। हमेशा तत्व बनी और फलस्वरूप उसके अन्दर अनेक तरह की रहता है। इसलिए सबसे पहले हम लोग गणेश का विकृतियाँ आ जायेंगी कई लोग तो, मैंने सुना है, आह्मन करते हैं और उनकी आराधना करते हैं और नाचने लग जाते हैं, कई लोग हैं चिल्लाने लग उनको हम मानते हैं लेकिन आजकल लोग कुछ जाते हैं, कई लोग भ्रमित हो जाते हैं, और कई ऐसे निकल गए हैं कि कुण्डलिनी के नाम पर जानवर जैसी बोलियाँ निकालने लगते हैं। किसी गणेश जी का अपमान कर रहे हैं सुबह से शाम है कि उनके अन्दर तक। इतना अपमान कर रहे हैं कि मैं आपसे बता blisters (फफोडे) आ जाते है क्योंकि ऐसे लोगों के पास वो जाते है जो अपवित्र हैं, जिनको कुण्डलिनी कुण्डलिनी उनकी माँ है और वो भी के लिए कोई मालूमात नहीं और जब वो कुण्डलिनी कन्या कन्या स्थिति में वो भी जब पति के विवाह की ओर अग्रसर होते हैं, गलत रास्तों से और से पहले उनका स्वागत करने से पहले जब नहाने गलत तरीकों से तब उन पर स्वयं साक्षात् गणेश गई, विवाह उनका हो चुका था, लेकिन अभी पति गरजते हैं। साधक के श्री गणेश और साधक को से मुलाकात नहीं हुई थी तो जब नहाने गई थी बहुत तकलीफ उठानी पड़ती है। सारा तान्त्रिक तब उन्होंने श्री गणेश जी को बनाकर शास्त्र गणेश जी को नाराज करके पाया जाता गया और वो ही निर्मल होता है जो किसी मल को उसको कोई अधिकार नहीं है कि वो 1 किसी लोगों को मैने देखा नहीं सकती।

Original Transcript : Hindi हैं। जिनको लोग तान्त्रिक कहते हैं वो असल में आ जाती है इसलिये गणेशजी से हम कहते हैं तान्त्रिक नहीं हैं। जो वास्तविक निर्मल तन्त्र है वो कि हमारे अन्दर विवेक, सुबुद्धि हमारे अन्दर Wis- यह है, जो सहज-योग है । क्योंकि तन्त्र माने dom दीजिये मनुष्य के अन्दर यदि दिशा का कुण्डलिनी है, यन्त्र माने कुण्डलिनी है तो यह शास्त्र केवल सहज-योग में ही जाना जा सकता अच्छे बुरे का उसको ज्ञान होना जरूरी है। इसीलिये है। और बाकी जो तान्त्रिक हैं ये परमात्मा के हम उनसे माँगते हैं कि हमें आप विवेक दीजिये। विरोध में हैं, ये दुष्ट लोग हैं. ये देवी जी को नाराज इसीलिये वो विवेक देने वाले माने जाते हैं। यह करके, ये गणेश जी को नाराज करके उनके गणेश तत्व है। सामने व्यभिचार करके ऐसी सृष्टि तैयार करते हैं जहाँ वो दुष्ट कारनामें कर सकते हैं, जहां वो भूत तत्व है वो है विष्णु तत्व। विष्णु तत्व से हमारा धर्म विद्या, मशान विद्या आदि करके लोगों को भ्रमा धारण होता है अन्दर, जो कि हमारे नाभि चक्र से सकते हैं यह बहुत समझने की बात है, कि प्रवाहित होता है. जो हमारे नाभि में है नाभि में जिसका गणेश तत्व ठीक होगा उस पर कभी हमारे अन्दर धर्मधारण है। जैसे कि आप amoeba तान्त्रिक हाथ नहीं मार सकते, कभी नहीं, चाहे में थे तो आप अपना खाना पीना खोजते थे जब कितनी भी कोशिश कर लें। जिस आदमी का आप amoeba से और ऊँचे हो गए. इसान की गणेश तत्व ठीक है, उस आदमी का कोई बाल बॉका नहीं कर सकता। इसलिये गणेश तत्व जो और उससे आगे जब आप जाते हैं तो आप ‘परमात्मा ज्ञान नहीं भी हो तो कुछ फरक नहीं पड़ता लेकिन ब्भ अब हमारे अन्दर जो दूसरा बहुत महत्वपूर्ण दशा में आ गए तब आप अपनी सत्ता खोजते हैं को खोजते हैं। आप के अन्दर यह धर्म है कि आप कुछ सुरक्षा का तत्व है। सबसे बड़ी सुरक्षा गणेश तत्व से होती है। इसलिये अपने गणेश तत्व को आपको बहुत ही हैं वो परमात्मा को खोजे, यह मनुष्य का धर्म है जानवर नहीं खोज सकते। कोई भी प्राणी परमात्मा को नहीं ज्यादा सुचारू रूप से संवारना चाहिये। सबसे खोज सकता, केवल मनुष्य ही परमात्मा को खोज पहले तो अपनी नजर नीचे रखिये। लक्ष्मण जैसे सकता है । ये मनुष्य का धर्म है। और इसके दस आप बनें और अपनी आँख सीताजी के चरणों में धर्म हैं और ये धर्म का तत्व विष्णु जी से हमें मिलता ही रखिये । क्या उनके अन्दर कोई पाप नहीं था है। अब बहुत से लोग सोचते हैं कि विष्णु जी से लेकिन सीताजी के ही क्या इसका मतलब यह है हमें पैसा मिलता है, और विष्णु जी से हमें और लाभ कि उन्होंने चरण को ही देखा क्योंकि उन्हें ज्ञात होते हैं लेकिन ये बात नहीं है कि सिर्फ उनसे हमें था कि ऊपर देखना, किसी की ओर दौड़ना अपना पैसा ही मिलता है। ऐसी ऐसी गलत भावनाएं चित्त ही बिगाड़ना है। गणेश तत्व हमें पृथ्वी माँ से हमारे मन में बसी हुई हैं कि विष्णु जी से सारा क्षेम मिला मिला है, धरती माँ ने हमें गणेश तत्व दिया जो है हमें मिलता है और बाकी कोई मतलब नहीं। है। अब हम इसलिये पृथ्वी माँ का अनेक बार सारे क्षेम से क्या लाभ होता है, आप सोचिये ? जब धन्यवाद मानते हैं कि आपने हमें यह तत्व देकर के दिशा का ज्ञान दिया। जब मनुष्य के अन्दर गणेश तत्व जागृत हो जाता है, उसके अन्दर विवेक-बुद्धि मनुष्य क्षेम को पाता है, समझ लीजिए, आप एक दशा लीजिए। एक मछली है उसने यह जान लिया कि अब हम इस समुद्र से पूरी तरह से संतुष्ट हैं. 8.

Original Transcript : Hindi तो संतोष को पा लेती है तब उसे विचार आते हैं पर खड़ा है और उसकी गर्दन सीधी है-ये तो बाह्य कि समुद्र को तो सब देख लिया, उसका तो धर्म में हुआ-बहुत ही ज्यादा जड़ तरीके से, आप हमने जान लिया समुद्र का, अब हमें जानना है कि समझे ? लेकिन तत्व में क्या मनुष्य के पास जो कि जमीन का धर्म क्या है। तो वो अग्रसर होती है। हर बार जब भी आप कोई-सा भी काम करते हैं तो मछली का अवतरण जो हुआ है तो सिर्फ इसलिए तत्व अपने कार्य में भी उसी तरह से प्रभावित होना हुआ है, कि एक मछली उसमें से बाहर आ गई चाहिए। अब जब वो मछली बाहर आ गई-एक ही कर रहे हैं और हम समझ रहे हैं। लेकिन इससे भी मछली-वही अवतार हम मानते हैं जो पहले बाहर बढ़िया कोई चीज़ आ जाए तो ये मशीनरी जो काम और उसने बहुत सारी मछलियों को अपने करेगी वो भी नई होगी या नहीं। इसी प्रकार मनुष्य समझ लीजिए आज हम इसमें से बातचीत आई साथ खींच लिया। क्या सीखने के लिये ? कि धर्म के अंदर का भी जो तत्व है वो एक नया विकसित क्या है। कौन सा धर्म ? जमीन का धर्म क्या है ? तत्व है, और वो तत्व जो कि परमात्मा को खोजे, इसलिये नहीं कि वो मछलियाँ बाहर आ गई अब उनमें धर्म सीखने की बात आ गई। पहले इसलिए मनुष्य का प्रथम तत्व है परमात्मा को TI उसका जो तत्व है तो परमात्मा को खोजता है। दूसरा पानी का धर्म सीखा फिर अब जमीन का धर्म खोजना। जो मनुष्य परमात्मा को खोजता नहीं वो सीखने लगे। जब जमीन का धर्म सीखने लगे तो पशु से भी बदतर है। अब जब वो परमात्मा को रेंगते रेंगते उन्होंने देखा कि पेड़ भी है । पेड़ के भी खोजने निकला तब उसका तत्व जो है, नाभि चक्र आप पत्ते खा सकते हैं क्षुधा पहली चीज़ होती है का पूर्ण हुआ। अब वो अगले तत्व पर आया। कि जिससे कि आदमी खोजता है। खोजने की शक्ति जब परमात्मा को खोजने लगा तो उसने देखा कि नाभि में ही पहले इसलिए होती है कि उसमें क्षुधा संसार की सारी सृष्टि बनी हुई है। हो सकता है होती है। आपको इच्छा होती है कि किसी तरह से इन तारों में, ग्रहों में और इन सब में ही परमात्मा अपने.और जानवर हो जाने के बाद उसने सोचा हो। उसके तरफ उसकी दृष्टि गई तब उसे कि अब गर्दन उठाकर रहें। बहुत झुक-झुक कर हिरण्यगर्भ याद आए। उन्होंने वेद लिखे। उनका रहे अब गर्दन उठाकर रहें। जब उसने गर्दन अग्नि आदि जो पाँच तत्व की ओर चित्त गया उठाई तब वो मनुष्य बना। धीरे-धीरे फिर वो मनुष्य उसको जानने की उन्होंने कोशिश करी। उनको बना। गर हमारे अन्दर ये जो धर्म है कि हम धर्म जानते हुए उनको जो हवन वरगैरा करते थे, वो को धारण करते हैं, जैसे कि पहले मछली का धर्म किये और ब्रह्मदेव और सरस्वती की अर्चना की था कि वो पानी में तैरती थी, उसके बाद कुछुए का और सब कुछ करने के बाद भी उन्होंने देखा कि धर्म था कि वो रेंगता था जमीन पर, उसके बाद जो इस सबको तो हम जान गए, बहुत कुछ जान गए। जानवर थे उनका ये धर्म था कि वो चार पैर से जैसे कि Science में लोग सब कुछ जान गए. चलते थे लेकिन उनकी गर्दन नीचे थी। फिर घोड़े बहुत कुछ जान गए। लेकिन जब Science का जैसे उन्होंने अपनी गर्दन ऊँची की थी । उसके बाद नतीजा निकला तो उन्होंने कहा कि ये क्या, हमने उन्होंने सारा शरीर ही खड़ा कर दिया और दो पैर तो atom bomb बना दिया। अब उस कगार पर 1 1. पर खड़े हो गए। ये मनुष्य का धर्म है कि दो पैर आकर खड़े हो गए Science वाले भी कि हम आगे

Original Transcript : Hindi कहाँ जा रहे है, अब तो गड़ढा ही सामने है इससे परमात्मा को खोजना ही सब बात है तो आप समझ एक कदम आगे गए तो सारा संसार एक क्षण में सकते हैं कि Science के रास्ते से आपको परमात्मा खत्म हो जाएगा| अब उन्होंने किताबें लिखी हैं कि नहीं मिल सकते। Science के रास्ते से आपने जो आप अगर पढ़ें तो एक है कि shock पर, मतलब कुछ पाया है, जो कुछ आपने बड़ा भारी ज्ञान’ पाया ये कि कितना बड़ा shock है, और संसार में लोग है, उससे किसी ने भी आनन्द को नहीं पाया है। अज्ञान में बैठे हैं, इसलिए दुखी हैं। जैसे France हॉँ, ये जरूर है कि आप आलसी हो गए पहले से के लोग हैं तो हमेशा मुँह लटकाए रहते हैं। तो मैंने ज्यादा। अब आप चल नहीं सकते। England में कहा कि ये क्यों ? तो कहने लगे, माँ इन लोगों आप किसी दुकान में चले जाइए, अगर किसी को को अगर कहिये कि आप सुखी हैं और आनन्द में 2,4.6 तो कहेंगे आप से बढ़कर बुदधू कोई नहीं । और सकते तो उनको तो चाहिए- Computor , उसके आप विल्कुल ही इस दुनिया की बात नहीं जानते बगैर उनका काम नहीं चलता है, वो अगर खो तो मैंने कहा-अच्छा। क्योंकि ये कहते हैं कि हम गया, तो उनकी खोपड़ी गायब है। पहले तो अति तो पढ़ते लिखते रहते हैं और हमने ऐसी ऐसी सोचने से उनके हाथ बेकार हो गए । कोई भी किताबें पढ़ी हैं जिनसे से ज्ञात होता है कि दुनिया कशीदाकारी का काम खाना बनाने का काम, कोई पर बड़ी भारी आफत आने वाली है और सारा भी काम बो नहीं कर सकते। अब, जब उनकी संसार खत्म हो जाने वाला है। मनुष्य ने पूरी खोपड़ी ज्यादा चलने लग गई, उसके बाद मशीन तैयारी कर ली है कि अपने को एक मिनट में खत्म कर ले। और ये बड़ी भारी आफत की चीज़ है और डाल दिया। अब जब मशीन आ गई तो खोपड़ी भी आप सुख में बैठी हैं, आनन्द में बैठी है तो इन पर बेकार अब सब कुछ उनके लिए मशीन हो गई विश्वास नहीं होगा। तो मैंने कहा कि क्या इसीलिए उसके बगैर वो चल नहीं सकते अगर वहाँ पर लोग शराब पीते है ? क्योंकि बड़े दुखी जीव हैं, बिजली बंद हो जाए, तो लोग आत्महत्या कर लें । बड़े दुखी है न। मुँह लटकाने के वक्त तो दुखी हैं, तो अपने यहाँ, भगवान की कृपा से अच्छा है। अभी फिर शराब क्यों पीते हैं। अच्छा, ये भी कहिये कि भी लोगों को आदत है, कि बिजली चली जाती अपने गम गलत कर रहे हैं। हाँ ये भी एक बात है। और वहाँ लोग परेशान रहते हैं, कि गर वहाँ समझ लें, माँ, कि गम गलत कर रहे हैं। लेकिन एक बार बिजली चली -गई अमेरिका में बिजली गई हर मोड़ पर एक गन्दी औरत रास्ते में Paris में तो न जाने कितने accident हो गए, कितनी आपको खड़ी मिलेगी। ये किस सिलसिले में ? ये आफतें आ गई , कितनी परेशानियाँ आ गई, कि मैंने कहा कि आदमी ने अपने लिए एक नाटक बना तूफान हो गया, कि कभी जलजला आया हो तो कर रखा है कि भई मैं बड़ा दुखी हूँ, इसलिये मुझे इतनी आफत नहीं थी जितना कि बिजली का। शराब भी चाहिये और पाप भी करना चाहिए। उसका तो बड़ा नाटक हो गया। इस कदर उन्होंने अगर मै पाप नहीं करूगा तो मेरा दुख कैसे अपनी गुलामी कर ली और अब इनको पता हो रहा मिटेगा ? इस तरह की बेवकूफी की बातें करते हैं। है कि plastic के इन्होंने इतने बड़े बड़े पहाड़ अब कहने का मतलब ये है, कि गर तत्व में खड़े कर दिये। अब इन plastic का क्या करें ? का गुणन करके बताइए तो कर नहीं बन गई और उन्होंने अपनी खोपड़ी को मशीन में 10

Original Transcript : Hindi इनको नष्ट कैसे करें ? अब इसके पीछे लगे हुए और हम कहते हैं कि वे affiuent हैं, पैसे वाले अरे इनके पास क्या है ? सिवाय plastic के इनके पास क्या है ? plastic में खाना, plastic में रहना, की चीजें दिखाई देंगी। हिन्दुस्तानी लोगों का तो plastic में मरना और इनके घरों की हालत ये हो गई है कि रहे होटलों में मरे अस्पतालों में। ये तो कि विलायत से आते हुए nylon की साड़ी लाओ। खानाबदोश हो गए। इनका तो सारा ही कुछ मिट अरे भई, यहाँ इतनी बढिया cotton की साड़ी गया तो इनकी इतनी गलतियाँ हो गई हैं Sci- मिलती है, silk की साड़ी मिलती हैं काहे को वो ence वालों की, कि किसी भी बात पर में बात nylon पहनते हैं पर हम लोगों को तो nylon का करूंगी तो आप हंसते हंसते लोट-पोट हो जाएंगे Medical Science को देख लीजिए, कोई कहेगा है। वहाँ किसी को बता दें तो किसी को विश्वास मैडकिल Science में ये हो गया, वो हो गया। क्या हुआ है? खाक हुआ है। जरा देख लीजिए। अब बता रहे थे अभी अभी कि साहब आप तो मंजन मिलता ही नहीं। पहले उन्होंने खूब cotton के करते हैं यहाँ पर, उसका जो toothpaste होता है कपड़े बनाए। अब समझ लीजिए कि गर उनके तो chloroform उसमें मिला देते हैं उसकी बजह हैं। अब सर पकड़ कर बैठे हुए है एक घर में अगर आप जाइए तो आपको न जाने कितनी तरह दिमाग खराब हो रहा है । जब भी मुझसे कहते हैं 1. शौक हो गया है। हमें plastic का शौक हो गया नहीं होता कि हम इतने बेवकूफ हैं। वहाँ पर तो लोग cotton को भगवान समझते हैं क्योंकि उनको यहाँ शराब होती है घर में तो दस तरह के glass होगे इसके लिए ये glass, उसके लिए वो glass, उसके लिए वो glass, उसके लिए वो हिन्दुस्तान से मंगा दीजिए हमको नीम toothpaste glass। खाना खाने के लिए दूसरा चमचा, तीसरे उसमें chloroform नहीं होता है। मैंने कहा बहुत के लिए तीसरा चमचा उस के लिए दूसरी प्लेट अच्छा। क्योंकि chloroform मंहगा है हम कहाँ से उसके लिए चौथी प्लेट। अरे भाई, एक थाली लेलो भेजें हम तो लगा नहीं सकते chloroform उसमें । और इस हाथ से खाओ। पच्चीस तरह के glass यहाँ से चीजें जाना शुरू हो गई, हाथ में जो वो और पच्चीस तरह के ये और पच्चीस तरह की लोग साबुन लगाते हैं उसमें भी chemicals होते हैं तश्तरियाँ, भगवान बचाए ! अब ये हालत आ गई कि जितना भी था निकल गया पृथ्वी माता से थोड़े दिन में देख लीजिएगा, सारी दुनिया में चला सब कुछ तत्व निकाल डाला इन्होंने,खोखले हो जाएगा आप लोग अब शेयर वेयर मत लीजिए । गए। अब काहे में खाते हैं। सुबह, शाम हर वक्त क्योंकि हिन्दुस्तान का साबुन शुद्ध होता है, वो तत्व कागज में खाते हैं। हमारे एक रिश्तेदार गए थे पर बना होता है। कोई artificial पर नहीं। हरेक वहाँ अमेरिका बेचारे पुराने आदमी हैं। कहने चीज वहाँ की; मै तो कभी विदेशी चीज़ इस्तेमाल लगे साहब मैं तो तंग आ गया रोज Picnic नहीं करती। इसीलिए-क्योंकि सब चीज इनकी, करते करते हालत मेरी खराब हो गई। जब देखो तब वो अपनी या तो plastic की प्लेट और या तो होता है, क्या क्या होता है उसमें सारा और कागज की प्लेट । इनके घर में तो ये हालत है। से, तो chloroform मिला देने की वजह से अब कैसर होने लग गया है, तो कोई लोग कहेंगे कि असल साबुन नहीं होता है हिन्दुस्तान का साबुन दी | आप देखिये वो बड़े बड़े scents होते हैं, तंबाकू कुछ नहीं; तंबाकू है। तंबाकू से बना है इसलिए तंबाकू 11

Original Transcript : Hindi शब्द। और क्योंकि वो तंबाकू थोड़ी-थोड़ी चढ़ती पढ़ गए, और अब कगार पर खड़े हुए हैं कि एक जाती है, आदमी को नशा आता रहता है वो कदम आगे गए, और धड़ से सब के सब नीचे। तभी इस्तेमाल करेगा और वो समझता है कि मैं बड़ा हूँ, सब लोग shocked हैं बहुत दुखित रूप से। और में तबाकू इस्तेमाल कर रहा हूँ। तंबाकू है, यानि इस कदर परेशान हैं कि आप को बहुत कम लोग तंबाकू- का पानी, उससे बनाया हुआ है और वहाँ इस कदर मिलेंगे जिनकी कोई न कोई चीज़ अपने यहाँ के इत्र असल हैं। असल में होते हैं और न फड़क रही हो। ऑख फड़क रही है, नोक इनके सारे chemicals होते हैं, इस्तेमाल करने से फड़क रही हो, सिर ऐसे होता है और कई परेशानी। कोई भी चीज़ इनके यहाँ है ? अब ये कहते हैं कि कोई चीज वहाँ नहीं मिलेगी जो शांत हो। औरतें तो अपने यहाँ आदमी को मारती हैं, आदमी औरतों को मारते हैं तो पहले होता ही था तो मेंहदी वगैरा लगा लेते बच्चों को मारते हैं, बच्चे माँ-बाप को मार डालते हैं। कहीं सुना। मार डालते हैं। मतलब वहाँ की उससे कंसर हो जाता है। वहां इतनी artificiality statistics है, कम से कम दो तो मरते ही हैं और हो गई कि लोगों के भौहें उड़ गए। किसी के बाल तो भी आप सुनिये माँ बाप मारते हैं। तो ये इस उड़ गए, जवानी में ही किसी के दाढ़ी ही नहीं तरह की जहाँ संस्कृति बन गई है तो जानना आती, किसी के नहीं आती, अजीब बुरा हाल चाहिए कि उन्होंने तत्व को जाना नहीं, अगर है। पता हुआ कि वो कुछ ऐसी चीज़ इस्तेमाल जानते होते, तत्व को अगर जानते तो अज ये करते गए कि ये सब चीज़ होना उनका बंद हो हालत नहीं होती। ‘क्योंकि तत्व जो है आनन्द देने गया। वहाँ सरदार जी लोगों को बुरा हाल होगा। वाला है।” तो इन्होंने तत्व को खो डाला। तो ब्रह्म और वो लोग ज्यादा शराब पियेंगे तो और भी बुरा देव का तत्व भी गया। अब अपने देश में है हम लोगों ने कहा कि निराकार ब्रह्म है और उसको पाना चाहिए वेद में, ऐसे लिखा गया है ये है वो है, चीजों में जाने में-क्योंकि हमने अपने तत्व को जिद करके बैठ गए। लेकिन वेद में भी लिखा है जाना नहीं। गर इन सब पंचमहाभूतों के तत्व पर वेद माने विद माने जानना, गर सारा वेद पढ़ करके उतरने को कहें, तब भी हम जड़ में फंस गए। भी मनुष्य ने अपने को जाना नहीं तो बेद बेकार उसकी जो जड़ता है, तो उसका तत्व नहीं है। सारे हुआ कि नहीं हुआ और जब ये बात है तो पहली पंच महाभूतों का तत्व है ब्रहमा। और ब्रह्म तत्व चीज़ ये है कि वेद का पठन करने से आप को क्या उसको पाने के लिए सिर्फ आत्मा को पाने से आत्म ज्ञान नहीं हो सकता। उसके पढन से और ही वह हमारे अंदर से बहना शुरू हो जाता है। सब हो सकता है, लेकिन आत्म ज्ञान नहीं हो उस तत्व को तो हमने खोजा नहीं और खोजते सकता। गायत्री मंत्र है गायत्री बोले जा रहे हैं, गए, खोजते गए। वहाँ पहुँच गए जहाँ वो चीज़ गायत्री बोले जा रहे है । अरे भई ऐसे बकवास से बिल्कुल बाहर आ गई और जड़ हो गई इसलिए क्या गायत्री देवी जागृत हो सकती हैं ? किसी की ये हालत है कि उस देश में कोई लोग खुश नहीं हुई, दिखाई दिया आपको ? किसलिए आप गायत्री है। बड़ा Science मिल गया, बहुत विद्वान हो गए, का मंत्र बोलते हैं, ये भी पता नहीं आपको। गायत्री सर में कई लोग लगाते हैं न थे। और ये लोग जो चीज़ लगाते हैं, करते हैं. कुछ हाल होने वाला है। बहरहाल । कहने की बात ये है artificial 12

Original Transcript : Hindi को जागृत करने के लिए जरूरी है कि मनुष्य किसी तरह से खराब हो जाती है, उस वक्त ये चक्र पहले अपनी आत्मा को जाग्रत कर ले, नहीं तो पकड़ा जाता है। अब मैंने अभी तो कुछ दिन पहले गायत्री जो है-परमात्मा की ही एक शक्ति है-जब बताया था कि स्त्री में विशेषकर सुरक्षा बड़ी जल्दी तक आपने उस परमात्मा को जान न लिया, तब खत्म हो जाती है। जैसे कि एक स्त्री है, अच्छी है. तक आप गायत्री के सहारे कहाँ चलियेगा? समझ सद्गुणी है, लेकिन उसके पुरुष ने, मनुष्य ने लीजिये कि आपसे Prime Minister नाराज़ हैं, उसको सुरक्षा नहीं दी समझ लीजिए एक औरत समझ लीजिए, तो आप तो काम से गये। आपने है, उसको अपने पति पर शक है, शक ही है समझ किसी दूसरे को प्रसन्न कर भी लिया तो आप तो लीजिए कि वह अवारा किस्म का आदमी है, किसी काम से गए ही हुए कोई आप को बचा नहीं और औरत के साथ। उसका ये चक्र पकड़ जाता सकता। तो जब तक आपने परमात्मा को पाया है, इस वक्त आदमी को बजाए इसके कि उस पर नहीं तब तक ये सारी शक्तियाँ व्यर्थ हैं, ये ही नाराज़ हो उसका फिर से सुरक्षा चक्र ठीक करना इसका सारांश है और तत्व सिर्फ आत्मा ही है। चाहिए कि नहीं भई ऐसी बात नहीं, तुम्हारे सिवाय उसी को पाना है ये जो शक्तियाँ हैं, इनको पाने मेरे लिए कोई और चीज़ नहीं। उसके तरीके हैं। से आप परमात्मा नहीं पा सकते पर परमात्मा को उसको सोचना चाहिए कि किस तरह औरत को पाने से इन शक्तियों के तत्व पर आप उतर सकते सुरक्षा दे, बजाय इसके कि औरत से बिगड़े। वो तो हैं। आप जो हैं, जो हमको दूसरी ओर ऐसा चित्त खुलेआम औरत के सामने आकर ‘तुम कौन होती देना चाहिए कि इससे ऊपर जो शक्ति है. जो कि हो बोलने वाली ? तुम हमें टोकने वाली कौन होती “दैवी शक्ति’ मानी जाती है ये आपके हृदय-चक्र. हो ? तुम तो बड़ी ये हो, तुम तो बड़ी शक्की हो में होती है। हृदय चक्र- हृदय से मतलब नहीं है। और जाओ तुम अपने बाप के घर। सुरक्षा उसका दूसरा तत्व है जिसे हमें कहना चाहिये, हृदय चक्र खत्म। आदमी को हमारे हिन्दुस्तान में खासकर का जो तत्व है, वो दैवी तत्व है। अब दैवी तत्व क्या है हमारे अंदर। जब ये पाप ही नहीं करता, सारा जो भी chastity है, वो खराब हो जाता है तो क्या उससे नुकसान होते औरतों का ठेका है आदमी को कोई जरूरत नहीं हैं। इसको आप समझ लीजिए। “दैवी तत्व से chastity की । ऐसा अपने यहाँ शायद लोगों का हमारे अंदर सुरक्षा स्थापित होती है। इससे हम विचार है। उसका इलाज जो है कायदे से हो जाता सुरक्षित होते हैं। जब बच्चा 12 साल का होता है है। जैसे England में आप जाइए तो सब आदमी तब तक इस दैवी तत्व के अनुसार, हमारा जो हमाल हो गए हैं, बिल्कुल हमाल। सुबह से शाम sternum है जो कि सामने की हड्डी है, यहाँ पर, बिल्कुल गधे जैसे काम करते हैं। और घर में आए उस हड़डी में सैनिक तैयार होते हैं जिसे अंग्रेजी तो बीबी ने अगर उनको divorce कर दिया किसी में antibodies कहते हैं, ये देवी के सैनिक हैं और भी तरह से तो उनका घर बिक जाता है, आधी ये सारे शरीर में चले जाते हैं और वहाँ जा कर property बीवी की आधी आपकी जिस आदमी ने सजे रहते हैं कि आप पर कोई भी तरह का दो-तीन बार ऐसे किया, उसके साथ हुआ वो तो attack आए, उसे रोक दें । जब आपकी सुरक्षा बिल्कुल रास्ते पर पड़ गया। वो शराब पी पीकर मर ता मा लगता है कि वो जो चाहे सोचे ठीक है। वो कभी 13

Original Transcript : Hindi जाएगा और उसकी बीबी जो है उसके पास खुब अच्छा नहीं मिलता। मैंने कहा तुम क्यों नहीं पैसा हो जाएगा उसने दो-तीन शादियाँ कर लीं, बनाते ? बोला हमको तो कुछ आता ही नहीं। हो गए। फिर जब बाह्य से, तत्व से नहीं बाह्य से आदमी हो गए तो निठल्लू, फिर उनको कोई मतलब उसका इलाज जो होता है तो वहाँ के आदमी जो नहीं। मैं अभी एक हैं आपको विश्वास नहीं होगा कि वहाँ के आदमी साहब हैं education के Sec. हैं जो है बिचारे हर समय औरतों के पीछे दौड़ा करते करी। मुझे उनकी बातें सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ हैं। और वो उनके ऊपर हुक्म जमाती हैं बर्तन उन्होंने कहा कि दस साल के अंदर इस हिन्दुस्तान साफ नहीं किये आपने ? ऐसे बर्तन साफ किये में सिर्फ औरतें नज़र आएंगी। आदमी सब झाडू जाते है? चलो झाडू लगाओ। और तुमको झाडू लगाएंगे। मैंने कहा क्यो? कहने लगे इतने निठल्लू बड़े भारी Secretary उनसे बात – लगाना नहीं आता ? इस तरह से झाडू लगा रहे होते हैं आदमी कि students वहाँ हमने देखा कि हो। कभी तुम्हारी मां ने सिखाया नहीं झाडू लड़कों के जो Leaders होंगे वो दुनिया के गुण्डे लगाना ? और इस तरह से आदमी हर समय झाडू जो कभी पास नहीं होते, दस-दस साल एक ही class में बैठे हैं, वो उनके Leaders हैं। मैंने कहा। लगाता रहता है। मैंने देखा अपनी ऑँख से आश्चर्य होता है। और सारा बिस्तर उसको साफ तभी अपने देश का ये नजारा दिखाई दे रहा है। करना पड़ता है और सारी सफाई उसे करनी पड़ती और लड़कियों में जो है, जो लड़की first आती है class में, जो brilliant है, उसका स्वभाव अच्छा है, है। जरा भी गंदा हुआ, चार आदमी बैठै हैं चलिये उठाइए, उठो सफाई करने। और इसीलिए जिसमें शाइस्तापन है, और जिसमें कुछ विवेक है, वहाँ पर आपने देखा होगा, परदेस में kitchen की ऐसी लड़कियों उनकी Leaders हैं। आप लड़कियों जो व्यवस्था संस्था बहुत develop हो गई है क्योंकि को कोई बात समझाइये तो वो कायदे से समझ आदमियों को करना पड़ता है। यहाँ अगर चक्की जाएंगी, समझ जाएंगी। और लड़को को कहेंगे तो चुल्हे करने बैठे तो पता चले अपने आदमी लोगों वो हर समय लट्ठ लेकर खड़े हैं। और वो Lead- को काई भी काम करना नहीं आता। कोई भी ers ही ऐसे बुरे होते हैं, इतने शैतान होते हैं, कि की क्या जरूरत आप उनसे बात नहीं कर सकते, लड़कों को तो ये काम। आदमी यों ही गये हैं ? कोई भी घर का काम करना, कोई भी चीज़ है कि साहब लड़कियों को तो training ये दो सुबह ठीक से करना, इससे उनको कोई मतलब नहीं। से शाम ससुराल जाने की, तो उनको तो ससुराल पीत जैसे कि हमने देखा है, जैसे वो विलायत जाते हैं जाना है और लड़कों को training ये, कि ससुराल तो उनके छक्के पंजे छुट जाते हैं, आदमियों के। जाओ तो मोटर जरूर लेकर आना । तो इस तरह से खाना बनाना उनकों आता नहीं। बर्तन धोना उनको जब हम किसी भी ्यवस्था के ऊपर उसके तत्व आता नहीं, झाडू हाथ में लेना उनको आता नहीं, नहीं हूँढते और उसके तत्व से उसका इलाज नहीं कोई काम करना ही नहीं आता। वहाँ तो नौकर कर रहे हैं तब हमारे अंदर बड़े दोष आ जाते हैं। कोई होते नहीं। Students खासकर के उनका इसीलिए विवाह क़ा तत्व समझ लेना चाहिए और वो हाल खराब हो जाता है। कहेंगे माँ की बड़ी याद तत्व है कि इसके अंदर हमारी जो पत्नी है, वो आ रही हैं। क्यों ? क्योंकि अब यहाँ हमें खाने को हमारी पत्नी है। अपने देश के लोगों से ये कह रहे 14

Original Transcript : Hindi हैं, वहाँ ये उल्टा कहना पड़ता है, वहाँ आदमियों की सुरक्षा खराब है, उनकी हालत खराब हो जाती है। लेकिन यहाँ पर जिन औरतों का यह चक्र को ये लोग बंदूक चला देंगे , ये लोग मार डालेंगे, फलाना ढिकाना। मैंने कहा कि अगर किसी की हिम्मत हो तो चलाए बंदूक। और नाम तक मैंने खराब हो गया है उनको Breast-cancer की बताए सबकुछ बताया, और सब गए, मार खाया बीमारी हो सकती है। तपेदिक की बीमारी हो और मेरे पास आए। या तो Heart attack आ जाएगा। Heart attack नहीं दिया उन्होंनें, इतनी कृपा करके छोड़ दिया तो पागलपन दे देंगे या अगर करना है, तो उसके मर्द से कहें कि भई epilepsy दे देंगे। उस पर भी अगर उनको चैन सकती है। Breast- cancer की बीमारी ज्यादातर इसी से होती है। अब इसकी बीमारी को ठीक अपनी बीवी की सुरक्षा ठीक करो तो मेरी बात नहीं मानेंगे। वो कभी मानेंगे नहीं और Doctor तो नहीं आया, तो cancer दे देंगे सीधे -सीधे ले लीजिये क्योंकि आपने उनको रुपया चढ़ाया है तो उसको ठीक नहीं कर सकते बस वो कहेंगे कि कुछ तो आपको देना ही चाहिए। आखिर आपने operation कर डालो, काम खत्म। Cancer हुआ काट डालो। नाक काट डालो, कान काट डालो, इतनी सेवा करी गुरु की। उनकी इतनी जेब भरी है तो कुछ न कुछ आप को मिलना ही चाहिए। यहाँ से इनके ये काट डालो। बस Cancer का और गुरु तत्व जब हमारा खराब हो जाता है, तो इतने तरह के cancer इंसान को हो सकते हैं। मतलब ये पेशानी है, इसको किसी के सामने ‘सहजयोग ऐसी चीज़ नहीं है। सहजयोग झुकाने की ज़रूरत नहीं है। हर जगह मत्था आदमी चल रहा है, आधी चीज उसकी गायब है। और थोड़ी चीजें हैं, उसके सहारे चल रहा है। टिकाने की जरूरत नहीं है हाँ ठीक है अपने माँ बाप हैं, ठीक है आप टिकाइये। लेकिन किसी को तत्व पर उतरता है, इसका कौन सा तत्व खराब है, उसे देखता है, उसे ठीक करता है।” अभी नाभि चक्र के चारों तरफ जो महान गुरु मानकर उसके आगे माथा टिकाने की जरूरत नहीं है।पहले आप को मालूम होना चाहिये, कि गुरु वही जो परमात्मा से आप को मिलाता। अब उसका जो आधार है उसका जो मार्गदर्शन मेरा उल्टा है । मैं लोगों से कहती हूँ मेरे पैर मत तत्व हमारे अन्दर है, जिसे कि धर्म तत्व कहना चाहिए, उस धर्म तत्व को संभालने वाला जो तत्व करता है, तो ‘गुरु-तत्व है। ये गुरु-तत्व अगर छुओ। छ-छः हजार आदमी मेरे पैर पर सर मारते खराब हो जाए तो cancer की बीमारी बहुत हैं, ऐसे पैर मेरे फूक जाते हैं। vibrations से मैं आसानी से हो जाती है । सबसे आसान तरीका कहती हूँ मत छुओ तो नाराज हो जाते है माँ दर्शन cancer को अगर खोजना है तो आप किसी नहीं देना चाहतीं। और ये बीमारी लोगों में है, कि किसी ने कहा ‘ये आ रहे हैं श्री 108 420, चले गलत गुरु के पास चले जाइए। 5 साल में अगर आपके अन्दर कैंसर न आ जाए देखिये। और मैं सीधे ‘साष्टांग’ नमस्कार । उसके बाद चक्कर खा | दस साल पहले से बता रही हैूँ इन गुरुओं के नाम, ये कैसे गुरु घंटाल हैं। इनके पास मत जाओ, ये तुमको नुकसान करेंगे, सब मैं समझा रही हूँ तो सब मुझे ही समझाते हैं कि माँ ऐसा मत कहो तुम कर गिर गए। गुरु ने हमें आशीर्वाद दे दिया है और हम चक्कर खा कर गिर गये और देखा कि 5-6 साल में बराबर पागलखाने पहुँच गए। और दूसरे आदमी देखते भी नहीं कि इस आदमी की 15 ho

Original Transcript : Hindi कम से कम तन्दरुस्ती तो अच्छी रहती भाई जिसके थोड़े दिन उनको उल्टा टांग दिया। टंगे रहिए ! गुरु हैं। कम से कम इसको ये तो आराम होता उससे आपका वज़न घट रहा है। फिर उनको और हजारों की तदाद में, लाखों की तादाद में जा foam पर रखा कि इस पर कूदने की कोशिश रहे हैं। “आपके गुरु क्या करते हैं कि सातवीं मंज़िल पर बैठे हैं ? वो बोलते नहीं। मौनी बाबा हैं। शुरु कर दिया, उसके फोटो ले लिए। छपवा दिया बोलते नहीं। बोलेंगे क्या ? कुछ इस खोपड़ी में हो कि हम हवा में चल रहे हैं । ‘बिल्कुल झूठ, महा तो बोलें। वो बोलेंगे नहीं मौनी बाबा हैं। जाओगे झूठ, सफेद झूठ, बिल्कुल झूठ।” और कहने लगे तो चिमटा मार देंगे चिमटा खाने के लिए लोग हम चल रहे हैं । बताइए आपकी क्या मोटरें हैं, सौ-सौ रुपया देंगे। कि मौनी बाबा हैं, जितना वो गाड़ियाँ हैं उसमें चलिए। आप ऐसे ऐसे हवा में तमाशा करेंगे उतना अच्छा है। नए-नए तमाशे चलिएगा तो टक्कर खाइएगा आप सोचिए कि निकालते हैं। नए-नए तमाशे। हरेक ‘गुरु’ कोई न कोई तमाशा निकालता है। जैसे एक गुरु ने कहा, एक नया तमाशा निकाला कि तुमको हवा में उड़ना परम्’ होना चाहिए। परम् दया आनी चाहिए कि ये सिखाता हूँ। बच्चों को बहुत समझ में आ रहा है जब आप गुरु तत्व में अपनी अक्ल खो देते हैं और लेकिन बड़ों की समझ में नहीं आता। तीन-तीन हज़ार पौंड लिए। ‘तीन-तीन हज़ार’ पाउण्ड । सोचिये। उड़ना सीख रहे हैं। मैंने कहा नसीब के महाशय मुझसे कहने लगे कि माँ मेरी कर्म-गति मारो, तुम्हारे गुरुओं को ही क्यों नहीं उड़ा के का क्या होगा ? तो मैंने कहा कि तुम्हारे गुरु क्या दिखाने देते ? पहले उनको उड़वा लिया होता, कहते हैं ? कहने लगे कि मेरे गुरु ने कहा है कि फिर पैसे देते। उनको खाने को बेचारों को, पहले तुमने जो कर्म किए हैं, जितने पाप किए हैं, उनमें से आलू उबाले। ये भी सीधे लोग हैं बिल्कुल गधे । उबाल करके उनको पानी दिया तीन दिन। कहने हिसाब लगाया है इन्होंने। और बाकी का कौन लगे पहले तुम्हारा वज़न हल्का करना चाहिए खाएगा? इसका मतलब है कि और अढ़सठ गुरु उड़ाने के लिए। वो तीन हज़ार पाउण्ड में। तीन हजार पाउण्ड माने पता है कितना होता है ? मेरे होगे, क्योंकि बाकी का कौन खाएगा ? उसकी ख्याल से 60 हज़ार रुपए। एक-एक से 60-60 दुकान हज़ार रुपए, अच्छा उसके बाद में उनको 2 दिन वो लिया। और किसी के पास recommend करने लोगों में है, कि किसी ने कहा ‘ये जो उसके जो छिलके होते हैं वो खाने को दिए-आलू के। सबको के पास जाइएगा कि साहब मेरी आँख खराब है। कहने लगे वज़न तुम्हारा बढ़ना नहीं चाहिए । फिर तो कहेगा अच्छा, पहले दाँत examine करवा लाओ। जो सड़े हुए आलू थे वो आखिरी दिन दे दिए । तो फिर वहाँ सारे दाँत निकाल दिए आपके फिर उनको फिर diarrhoea लग गया तो कहा ये बहुत उन्होंने कहा पहले अपनी आँख examine करवाओ, ज़रूरी है। इसी से तुम्हारा वज़न घटेगा फिर आँख में फोड़ा है। सब कर लिया। बाद में पता करिये, जैसे घोड़े पर कूदते हैं उस पर कुदवाना 1 क्या ज़रूरत है ? क्या अब आदमी को पक्षी होने की ज़रुरत है कि उसको कोई विशेष चीज़-वो ऐसे बेवकूफों के पास जाते हैं तो आपका गुरु तत्व खराब हो जाता है, आप सोचते भी नहीं। एक 1/68 में खा सकता हूँ। अच्छा मैंने कहा कौन सा तुमको ढूंढने पड़ेंगे भइया। तब जाकर तुम पार कहाँ? क्योंकि इन्होंने तो अपना ‘माल’ खा का तरीका – Doctor लोग होते हैं न जैसे किसी 16

Original Transcript : Hindi हुआ कि आपके कुछ हुआ नहीं। उसी तरह का अपनी तरफ से कह दिया कि मैं शरण में आया इन लोगों का हाल है। ये सब आपस की साझेदारी लेकिन मुझे शरण में आना पड़ेगा न । ‘काम तो है, इन्होंने कहा कि बस मैं इतना ही लेता हूँ बाकी मुझको करने का है। मेरे हाथ से काम होना नहीं लेता हूँ। बाकी उस गुरु के पास जाओ। चाहिए। जब तक मेरे हाथ से काम नहीं बनेगा तब अगर गुरु दूसरे घायल बैठे हैं उन्होंने बाकी का तक तो बेकार ही चीज हो गई न और ये साफ-साफ इनका जितना पैसा था निकाल लिया पता हुआ मैं बता देती हूँ कि जो पार नहीं वो पार नहीं और रास्ते में खड़े हैं। घर बिक गया, बीवी बच्चे छूट जो पार हैं वो पार हैं। उसमें कोई झूठा certificate गए। रास्ते में खड़े हुए हैं। बच्चे बेचारे भीख मांग तो कोई दे नहीं सकता। चाहे आप मेरे से लड़ाई रहे हैं। जब हम अपनी अक्ल इस्तेमाल नहीं करते तब ऐसे गुरुओं के पास जाते हैं। और इस तरह से सोच लेना कि जो भी काम भगवान के नाम पर करो, झगड़ा करो, कुछ करो, मैं क्या करू ? नहीं वो तो नहीं हुए, हुए तो हुए। सीधा हिसाब इसका होता है कि मेहनत हम लोग कर सकते हैं लेकिन पार नहीं कर सकते “कोशिश हम कर सकते हैं। होता है, भगवान का काम है, बड़ी गलत बात है। जैसे आज ही हमें एक देवी जी वहाँ पर मिलीं। उन्होंने कहा कि हमारे गुरु पहुँचे हुए पुरुष थे। बढ़िया खाना बना सकते हैं, लेकिन आपके अगर उसमें कोई शक नहीं। लेकिन यहाँ बैठकर वो घंटा जीभ ही नहीं हो, तो हम खिलाएँगे क्या और आप बजा रही हैं कि हम तो गुरु के शरण में हैं । हम समझिएगा क्या ? आपकी जीभ जो है जागृत होनी तो गुरु के शरण में हैं। तो मैंने कहा कि फिर ? चाहिए जो समझे कि माँ ने बना के खिलाया है। तो कहने लगी अब तो मैं पार हो गई माँ। मैंने खाना तो आपको है या मैं आपके लिए खाना भी कहा अच्छा। अपना ही सर्टिफिकेट, अपना ही खा लूँ। प्यार हम दे सकते हैं। सब कर सकते हैं, ‘आपको’ होना होगा। जैसा कि हम खाना बना सकते हैं, 1. सबकुछ ? कैसे पार हो गए बेटा तुम ? मैं तो गुरु के शरण में चली गई, मैं तो पार हो गई मैंने कहा कि जो आप को गुरु सिर्फ परमात्मा से ही मिलता कि ऐसा तो ‘मेरी भी शरण’ में आने से नहीं हो है। जो परम् में उतारता है वो ही गुरु है और कोई ये समझ लेना चाहिए जो तत्व एक ही है सकता। अब मैं तो ज़िन्दा बैठी हूँ। तुम्हारे तो गुरु भी गुरु नहीं है । सब अन्धे हैं और अन्धा अन्धे को मर गए लेकिन तुम कहो कि माँ हम तुम्हारे शरण कहाँ ले जा रहा है भगवान ही जानता है ! ऐसे में हैं, हमें पार कराओ। थोड़ी तुम्हारी भी पूंजी शरण गति से कुछ नहीं । शरण गति तो सिर्फ पार लगती है और कुण्डलिनी का जागरण लगता है होने के बाद ही शुरु होती है। उससे पहले की पार होने का काम है जब तक आप पार नहीं हुए शरण गति कुछ नहीं। आपने देखा होगा कि पार तब तक ‘माँ तेरी शरण में हम आए कुछ नहीं किए बगैर मैं पैर पर किसी को लेना नहीं चाहती। काम बनने वाला, बेटी । साफ-साफ बता देँ बेटी, क्योंकि क्या अर्थ है इसमें। आप जब पार ही नहीं पार होना पड़ता है। जब तक आप पार नहीं हैं, तब हुए तो मैं क्या करू ? पार तो होना पहले ज़रूरी तक सब बातें बकवास हैं, बेकार हैं कि मैं तुम्हारी है। हाँ ये बात जरूर है कि कई लोग पैर पर आने शरण में आया हूँ और ये है। अरे ये तो सब आपने से ही पार हो जाते हैं। तो ठीक है। लेकिन कोई 1 17

Original Transcript : Hindi शरण गति की ज़रूरत नहीं है उस वक्त। शरणागत बाद में होना चाहिए। शरणागत जब आप होते हैं गंभीरता तो है लेकिन ‘लीला है। ये सारी लीला तब कम से कम शरण में आने के लिए वो ‘आत्मा है। इसलिए बिल्कुल शांतचित्त होकर के दोनों हाथ को होना चाहिए, प्रकाश तो होना चाहिए। बगैर मेरी ओर करें और चित्त को एकदम हल्का करें। मतलब नहीं कि बचकानापन आना चाहिए। इसकी प्रकाश के आप मेरे भी पैर पर मत आइए। पता नहीं शायद मैं भी 420 108 हूँ। क्या पता ? अगर इसलिए तत्व की बात करते हुए मैंने उसको इतना मैं हूँ तो आप कैसे जानिएगा कि हूँ या नहीं ? सादगी से बताया और इतने हल्के-फुल्के तरीके से बेकार की बकवास भी कर रही हुँगी तो आप कैसे बताया कि वो बड़ी गहनता और गम्भीर बात है। जानिएगा? कभी भी आप जब तक पार नहीं होते जिससे आपके ऊपर उसकी गहनता न छा जाए। आप मेरे पैर पर मत आइए। और इसीलिए मना क्योंकि जो गहनता है वो पाने की चीज़़ है ।वो पाने किया गया था कि किसी के सामने बंदगी नहीं की चीज़ है उससे दबता नहीं जाता आदमी। उसमें करना चाहिए, बंदगी उसी के सामने करना चाहिए बहकता नहीं है। उससे दबता नहीं है ? उसमें जो परमात्मा से आपको मिलाए। जब तक ये पनपता है.. घटना आप में घटित नहीं होती तब तक आपको अधिकतर लोग पार हो गए हैं मेरे ख्याल बिना तत्व के कोई भी चीज़ को मानना नहीं चाहिए। इसलिए जो हमारा सुरक्षा का तत्व है से। पार होते वक्त आप देखिएगा आपके अन्दर उसके बारे में मैंने आपको बताया कल बाकी के ठंडी हवा सी आएगी। और निर्विचार हो जाएंगे। तत्वों के बारे में बताउँगी। आज काफी लंबा चौड़ा अपने को निर्विचार रखने का प्रयत्न करें । विवरण दिया है। और मुझे एक बात की बहुत आँख बंद रखें-बिल्कुल-थोड़ी देर। मज़ा खुशी हुई क्योंकि सबने कल कहा था कि कल उठाएंगे अपना. सिनेमा है तो कोई नहीं आएगा माँ Programme में और मेरे पति आज ही बेचारे London जा रहे थे लोग पार हो गए। मैंने आज तक बात नहीं की। लेकिन उनको ऐसे ही छोड़कर मैं चली आई, आज पहली मर्तबा तत्व पर बात की। Airport भी नहीं गई। मैंने कहा नहीं, जाना चाहिए, बस अठखेलियाँ हो सकता है कोई लोग तो आएंगे ही और इसलिए चाहिए। मैं आई और मुझे बड़ी खुशी हुई कि आप लोग अपना सिनेमा’ छोड़ कर भी यहाँ आए, अपने तत्व आपके हाथों में ठंडी हवा सी आने लगेगी। यही को ज्यादा महत्व दिया और इसीलिए मैं बहुत पाने का है। सब जीवन का उद्देश्य बस यही है। आज खुश हूँ। परमात्मा की कृपा पार हो जाइएगा तो कल बड़ा मजा रहेगा और आत्मा का तत्व-ब्रह्म-तत्व, जो कि आपके हाथ से कल सब को लेकर यहाँ आइएगा। आपको मैंने लहरों की तरह बह रहा है। वहाँ हल्के फुल्के तरीके से समझाया, कोई चित्त पर seriousness नहीं आना चाहिए। लेकिन इसका …. सारे पार विषय बहुत गहन था लेकिन तो भी आप करते हुए तत्व को पा लेना सूक्ष्म है, इसलिए सूक्ष्मता से देखें से आज आप इस ब्रह्म तत्व को पाएं जो कि आत्मा का तत्व है। परमात्मा आपको धन्य करें 18