The Right Side

Caxton Hall, London (England)

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                                                 “राइट साइड,”

 कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके), 18 मई 1981।

मैं आपसे राइट साइड, दायें तरफ की अनुकंपी प्रणाली Right Side sympathetic nervous system के बारे में बात करूंगी, जो हमारी महासरस्वती की सूक्ष्म ऊर्जा द्वारा व्यक्त की जाती है, जो हमें कार्य करने की शक्ति देती है।

बाईं बाजु से हम कामना करते हैं और दाईं ओर, पिंगला नाड़ी की शक्ति का उपयोग करके, हम कार्य करते हैं।

मैं उस दिन आपको राइट साइड के बारे में बता रही थी। आइए देखें कि हमारा राइट साइड कैसे बनता है। जो लोग पहली बार आए हैं उनके लिए मुझे खेद है लेकिन हर बार जब मैं विषय का परिचय शुरू करती हूं, तो फिर वही हो जाता है लेकिन बाद में मैं आपको सहज योग के बारे में समझाऊंगी।

अब यह दाहिनी ओर, पिंगला नाडी, एक बहुत ही महत्वपूर्ण ऊर्जा देने वाली शक्ति है जो हमें कार्य करने और सक्रिय करने के लिए प्रेरित करती है।

अब यह सभी पांच तत्वों से बना है: आप उन सभी पांच तत्वों को जानते हैं जिन्होंने हमारे भौतिक अस्तित्व और हमारे मानसिक अस्तित्व को बनाया है। इस तरह यह हमारी सभी शारीरिक और मानसिक समस्याओं, मानसिक गतिविधियों और मानसिक और शारीरिक विकास को पूरा करने में हमारी मदद करता है।

अब यह, उन पांच तत्वों द्वारा निर्मित होने के कारण, जब, पहली बार, मनुष्य किसी भी संदर्भ में कुछ कार्रवाई करने के बारे में सोचने लगे, जैसे कहो भारत में उन्होंने पहले विचार किया कि, “क्यों नहीं, किसी न किसी तरह, इन तत्वों के उस सिद्धांत तक पहुंचें, जो भौतिकी से परे है, जो रसायन शास्त्र से परे है?” और उस बिंदु तक पहुंचने के लिए, उन्होंने सोचा कि यह बेहतर होगा कि हम उन पांच तत्वों को नियंत्रित करने वाले देवताओं का आह्वान करें या उन्हें जगाने का प्रयास करें।

हालाँकि, यह एक बहुत बड़ी गलती थी, मुझे कहना चाहिए, क्योंकि मनुष्य, जो कुछ भी कार्य हाथ में लेते हैं, वे नहीं जानते कि कहाँ रुकना है! यदि आप उनसे कहते हैं कि आपको अपने दांत प्रतिदिन साफ ​​करने हैं, तो वे बारह घंटे में बारह बार इसे साफ करते रहेंगे। यदि आप उन्हें कुछ भी कहें, तो वे इस हद तक चले जाएंगे कि वे उस उपकरण को नष्ट कर देंगे जिस की देखभाल की जाना चाहिए थी। यह मनुष्यों का स्वभाव है: उनके पास स्वयं के लिए नियंत्रण नहीं हो सकते। उनके पास अपने जीवन को संतुलित करने के लिए सामान्य ज्ञान नहीं है। तो, जो कुछ भी आप उन्हें देते हैं, वे इसके बाद इतने पागल हो जाते हैं कि, मराठी में, एक शब्द है [अर्थात्] वे अंततः अपने सिर पर राख डालते हैं, यह कहने के लिए कि, “मैं अब मर चुका हूं, मैं राख हो गया हूं ।” इस तरह वे इतने उन्मत्त हो जाते हैं कि इन सिद्धांतों का जागरण करते हुए भी वे भूल गए, अपनी दृष्टि खो दी, कि हम अपनी आत्मा की खोज़ में हैं ना की इन तत्वों की। हम उससे परे हैं, हमें उससे आगे पहुंचना है।

ये सभी तत्व हमारे लिए बस एक ऐसी स्थिति प्राप्त करने के लिए उपयोगी हैं जिसमें हम चीजें बना सकते हैं और हमारे पास आत्म-साक्षात्कार का आनंद लेने के लिए ध्यान में समर्पित करने हेतू ज्यादा समय हो सकता है। इस तरफ की प्रगति से वे पूरी तरह से अंधे हो गए, जो शुद्ध और सरल शब्दों में, भौतिकवाद है। वे इतने जिम्मेदार, इतने कुशल बन गए।

वेदों में सबसे पहले लिखा है, पहला श्लोक ऐसा है कि, “इन वेदों को पढ़ने से यदि आप अपनी आत्मा को नहीं जान पाते हैं तो यह बिल्कुल बेकार है।” लेकिन इस छंद को वे लोग हमेशा बंद करते हैं मुझे लगता है। फिर वे उन देवताओं की पूजा करने लगे, यह, वह, उन्हें उत्तेजित करते हुए और सभी कर्मकांड और वह सब करने लगे। और वे बस सिर के बल लेट गए, बिल्कुल सिर के बल। फिर वे पीछे नहीं हटेंगें।

तो इन तत्वों को उत्तेजित करके उन्होंने इन तत्वों के सिद्धांतों की खोज की; उदाहरण के लिए, उन्होंने पाया कि गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी माता का सार है। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। वह धरती माता का सार नहीं है, वह वह शक्ति है जो उनके द्वारा व्यक्त की गई है, लेकिन उसका सार उसकी सुगंध है।

वे उस सीमा को पार नहीं कर सके जहां वे वास्तव में सूक्ष्म चीज देख सकें किगुरुत्वाकर्षण की इस ऊर्जा का सूक्ष्म सिद्धांत सुगंध है। सभी सुगंध उसी से आती हैं। बेशक मानव निर्मित सुगंध हैं, वह अलग है, लेकिन मानव निर्मित भी उससे आ रहे हैं, यदि आप इस बिंदु तक जा कर इसके स्रोत का पता लगायें, यह वहीँ से है।

इसी तरह वे वेदों के समय से सूक्ष्म, तथाकथित सूक्ष्म, ऊर्जा या इन तत्वों के सिद्धांतों की खोज करते रहे।

फिर विज्ञान बन गया। लोगों ने भौतिकी, रसायन शास्त्र, यह, वह: जो भी उनके समक्ष आया उसे समझना शुरू कर दिया और यह पता लगाने की कोशिश करते रहे कि यह किस चीज से बना है। उदाहरण के लिए, वे परमाणुओं में गए, वे अणुओं और चीजों में गए और उन्होंने पता लगाने की कोशिश की। और वहाँ उन्होंने प्रोटॉन के दोलन को पाया और उन्होंने इन परमाणुओं को जाना और वे समझ नहीं पाते हैं कि, “अब, इस दोलन की यह ऊर्जा कहाँ से आ रही है?” वे उस ऊर्जा को पकड़ नहीं सके इसलिए उन्होंने सोचा कि, “बेहतर हो की इस ऊर्जा का उपयोग करें।” इसलिए उन्होंने ऊर्जा का उपयोग करना शुरू कर दिया।

अब यह पूरी बात की इतनी हद तक चला गया है कि, अब मैंने पढ़ा, देखा कि, माइक्रोचिप्स या ऐसा ही कुछ और भी आ रहा है। कुछ समय बाद आप अपने हाथों या सिर या किसी भी चीज़ का उपयोग नहीं कर रहे होंगे, यह होगा कि माइक्रोचिप्स चल रही होंगी। लेकिन इस तरह की बातों से, इस चरम व्यवहार से, तुम खुद मशीन बन जाओगे, मशीन के गुलाम बन जाओगे। आज पेट्रोल खत्म हो गया है, कल बिजली खत्म हो गई है, तो आप क्या करने जा रहे हैं? आप दो में दो जोड़ना भी नहीं जानते! तो आप बिना किसी गिनती के रह गए हैं| तुम वही आदिम आदमी बन जाओगे और मुझे नहीं पता कि तुम क्या करने लगोगे, पेड़ों पर चढ़कर और बंदरों की तरह रहोगे? मुझे नहीं पता कि क्या होगा।

तो यह सारी प्रगति जो आपने की है वह बहुत आगे तक चली गई है। लेकिन बहुत अधिक दक्षता, बहुत अधिक जिम्मेदारी और उन सभी के परिणामस्वरूप, आप इसके आदी हो गए और फिर, इस सब से आप अन्य लोगों पर हावी होने लगे। मशीनरी आई; इसके साथ आपने इतनी सारी मशीनरी सामान का उत्पादन किया कि आपको नहीं पता था कि इसका क्या करना है इसलिए आपको उन बाजारों का पता लगाना होगा जहां आप उन्हें बेचेंगे, इसलिए आपने अन्य बाजारों पर कब्जा करना शुरू कर दिया जहां आपने उन्हें बेचना शुरू किया और इस तरह ये सभी आर्थिक समस्याएं और ये सब शुरू हो गया है। विकासशील देश हैं, विकसित देश हैं, इस पागल दुनिया में यह सब कुछ चल रहा है। ठीक है!

लेकिन अब हम एक ऐसे बिंदु पर पहुंच जाते हैं जहां हमें एहसास होता है कि इस मशीन ने हमारे भीतर कुछ बेहूदा काम किया है। जब हम उस बिंदु पर पहुँच जाते हैं, तो हम सोचने लगते हैं, “अब, हमें क्या करना है?” हम बहुत जिम्मेदार रहे हैं, आप लोग नहीं बल्कि आपके पूर्वज, जो पूरी दुनिया से लड़ने गए और ऐसा किया और उन्हें सही समय पर सही जगहों पर होना पड़ा और हर तरह की चीजें करनी पड़ीं। उस अति-जिम्मेदारी से तुम ऊब गए हो। आपको अभी नहीं पता था कि क्या करना है। उदाहरण के लिए, सुबह आप ग्रे सूट पहनते हैं, रात में आपको टेलकोट पहनना होता है और फिर अगर आपको अपनी वाइन पीनी है, तो आपको एक अलग गिलास लेना होगा; या उसके लिए, यह। यह बहुत अधिक उलझन भरा हो गया, तो आपने कहा, “उन्हें समुद्र में फेंक दो! हम ऐसी सब बकवास नहीं करेंगे। हमने इन सभी रूपों और भयानक चीजों को एकत्र किया है, जिन्होंने हमें इतना अड़ियल बना दिया है। इस तरह आपने सब कुछ फेंकने की कोशिश की लेकिन फिर भी जब आप फेंक देते हैं, तो आप कहां पहुंचे? मेरा मतलब है कि आपको अस्तित्व में रहना है, आप सिर्फ हवा में नहीं लटके रह सकते। तो आपने सोच कि, अब एक अन्य शैली अपना लो। और दूसरी शैली और भी बदतर है, और भी बदतर। क्योंकि तब: कोई जिम्मेदारी नहीं, कोई सम्मान नहीं, कोई समझ नहीं। तो यह शक्ति बिल्कुल शून्य हो जाती है और आप बहुत जल्दी थक जाते हैं। मैंने बीबीसी वगैरह में युवा लोगों को देखा है, और मैं उनकी तुलना में एक बहुत बूढ़ी औरत हूं, दो तीन शब्द कहने के बाद, “हाह!” वे नीचे जाते हैं। फिर कुछ कहने के बाद, “हाह!”  इन दिनों ऐसी गतिविधि बहुत अधिक है! किसी भी नाटक में आप देखते हैं कि एक व्यक्ति कहता है, “हाह!” इस तरह का नाटक करने में लगता ही क्या है? यह वही है जो अब बहुत आम है, आप इसे नोटिस करें। कारण यह है कि तुम थके हुए हो, तुम बिलकुल थके हुए हो। क्यों? क्योंकि आपका दिमाग वही पुराना दिमाग है और आपने एक नया जीवन अपना लिया है, और आप खुद उससे सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे हैं। आप कहते हैं कि, “अब मैं कुछ नहीं कर रहा हूँ। मैं अब और कुशल नहीं होने जा रहा हूँ और वह सब, मैं बैठ रहा हूँ,” लेकिन दिमाग जा रहा है, “चुक, चक, चक, चक, चक, चक, चक, चक,” सुबह से शाम तक। इस दिमाग को कैसे रोकें? यह मस्तिष्क इतनी मेहनत कर रहा है, आपकी सारी ऊर्जा का उपयोग कर रहा है इसी लिए आपके पास कोई शक्ति नहीं है।

तो इसका विरोध करने के लिए आप कहेंगे, “आइए हम किसी ऐसी चीज को अपनाएं जिससे हम इस पागलपन से बाहर निकल सकें।” आइए कुछ ऐसा लेते हैं जो आपको ले जाता है, जिसे कि हम राइट या लेफ्ट साइड कहते हैं, कुछ ऐसा लें जैसे हैशीश, या कुछ और – जैसे कोई और चीज जो उन्होंने ली – एलएसडी, दाईं या बाईं ओर जाने के लिए। अब इसके साथ क्या होता है आप अच्छी तरह से जानते हैं। अब, भगवान का शुक्र है, आपने यह भी महसूस किया है कि वह भी बेतुका था, वह अच्छा नहीं था।

हमारे भीतर ये दो क्षेत्र हैं जिन्हें आदि भौतिक और आदि दैविक कहा जाता है। अब, आदि भौतिक वे हैं जो आपको बाईं ओर ले जाते हैं जो अवचेतन है। और आदि दैविक वे हैं जहां आप देवों का आह्वान करने का प्रयास करते हैं और वह सब जो दाहिनी ओर है, वह एक आदि दैविक है जहां हम इसे अति-चेतन क्षेत्र कहते हैं। वास्तव में ये दोनों मनुष्य के किसी काम के नहीं हैं। वे आपके लिए नहीं बने हैं। वे उन लोगों के लिए हैं जो मर चुके हैं, जो मृत आत्माएं हैं, जो व्यर्थ हैं। अब, उन्हें आत्मसाक्षात्कार नहीं हो सकता। यह आपके लिए नहीं है। यही वह क्षेत्र है जिसमें आपको नहीं रहना चाहिए। लेकिन आप अपनी अति-वादी प्रकृति के कारण इन क्षेत्रों में प्रवेश करते हैं।

कुछ लोग इन नशीले पदार्थों में जाकर, कुछ लोग किसी प्रकार के आंदोलनों जैसे कि मंत्रमुग्धता, अध्यात्मवाद अन्य सभी प्रकार के वादों को अपनाने के माध्यम से प्रवेश करते हैं। दायीं ओर के कुछ लोग, ऐसे नस्लवादी कहलाने वाले लोगों, सभी नस्लीय संगठन इस या उस तरह के, को पसंद करने के कारण, और आप उस तरह के सभी लोगों को जानते हैं, जैसे हिटलरिश टाइप। यह सब कुछ नहीं बल्कि एक प्रकार का नशा है जो आपको इस वास्तविकता को भूला देता है कि आप एक इंसान हैं, कि आपको आत्मा बनना है, ऐसा कि, सच्चाई यह है की तुम आत्मा हो।

अब पश्चिमी जीवन की वर्तमान प्रवृत्ति इस देश में बहुत अधिक स्थापित है, जिसके बारे में मुझे बहुत चिंता है। मैंने इस के बारे में कई लोगों से व्यक्तिगत रूप से बात की है, और अन्यथा भी, दिमाग की गुणवत्ता – चूँकि हम अंग्रेज लोगों के साथ हैं, चलो अंग्रेजों के बारे में बात करते हैं – अंग्रेजों के मन की गुणवत्ता उत्कृष्ट है, मैंने इसे हमेशा कहा है। और इंग्लैण्ड के युवाओं के मन का गुण बहुत अच्छा है, लेकिन उनका हृदय ऐसा ही है। वे किस बात से डरते हैं? भगवान ही जाने, लेकिन वे डरे हुए हैं। या उन्होंने यह रास्ता अपना लिया है? मुझे नहीं पता। अब कोई काम करने में भी डर लगता है। मान लीजिए हम इस रंग को लगाते हैं तो यह मेल नहीं खा सकता है: अगर यह मेल नहीं खाता है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्या फर्क पड़ता है? उन पूर्वाग्रहों के कारण वे कुछ भी करने से बहुत डरते हैं। हालांकि वे कहते हैं कि उन्होंने उन सभी विचारों को तोड़ दिया है और उन्होंने एक नए मुक्त रास्ते को अपना लिया है और वह सब कुछ। लेकिन यह मुक्ति भी एक अन्य पागलपन है जिसमें उनका भय नहीं गया है।

तो हम अंग्रेज़ सहजयोगियों और अंग्रेज़ों के मन की गुणवत्ता उत्कृष्ट है। यदि आप उनसे बात करते हैं तो आप समझेंगे कि आप किसी विद्वान से बात कर रहे हैं; मेरा मतलब शेक्सपियर से कम नहीं है! वे बहुत अच्छे पढ़े-लिखे हो सकते हैं। आप उनसे जो कुछ भी पूछेंगे, उसके बारे में उन्हें ज्ञान होगा, “यह सड़क क्या है?” “यह सड़क है!” “अब, इस सड़क का नाम क्या है?” “यह सज्जन है।” वह कौन था, उसके दादा, उन्होने क्या किया, उनके बारे में क्या अफवाह थी, घोटाले, सब कुछ! आप उनसे सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं। वे हर चीज के बारे में सबकुछ जानते हैं।

कभी-कभी जिस तरह से लोग चीजों के बारे में सभी विवरणों के बारे में जानते हैं कि, मुझे आश्चर्य होता है कि, उसके पास कितनी महिलाएं थीं, और उसने कितनी पत्नियों को तलाक दीं और उसने क्या किया और वह कहां गया और उसने क्या लिखा। किसी को भी ले लो! एक लेखक ले लो, या एक कलाकार ले लो, एक गुंडे ले लो, या एक डाकू या किसी को भी ले लो जो अखबार में छपा है। मानो उनकी याददाश्त में सारा अखबार पी रखा हो। उनके दिमाग में पूरी बात इतनी स्पष्ट है कि कभी-कभी यह आश्चर्यजनक होता है। लेकिन अगर आप उन्हें एक कुर्सी ठीक करने के लिए भी कहें, तो उस कुर्सी पर कभी भरोसा न करें! (हँसी) इस पर कभी भरोसा मत करो! यदि आप उन्हें कुछ भी करने के लिए कहते हैं, तो वे आपको बताएंगे, “ठीक है, कल ठीक 7 बजे, मैं वहाँ पहुँचूँगा!” अगर वह सात दिन बाद भी आ जाए, तो भी अपने भाग्यशाली सितारों का शुक्रिया अदा करें! मैं ऐसे लोगों को जानती हूं जिन्होंने मेरे साथ ऐसा किया है और अब चार साल हो गए हैं, मैंने फिर कभी उनके चेहरे नहीं देखे। उन्हें ऑक्सफोर्ड से एक्सवाईजेड और कैम्ब्रिज से एबीसीडी माना जाता है। उनके पास प्रथम श्रेणी वगैरह है लेकिन यदि आप उनके कमरों में जाते हैं, तो आप पाएंगे कि यह एक सुअर के निवास की तरह है! आप नहीं समझ पाते हैं कि, आप कहां पहुंचे हैं। मेरा मतलब है, आप को भरोसा नहीं होता कि यह किसी शिक्षित व्यक्ति का है! उनके दिमाग में जिम्मेदारी का कोई भाव नहीं बचा है। मेरा मतलब है कि यह ऊर्जा जो सिर में काम कर रही है, अगर इसे एक जिम्मेदार चैनल में नहीं डाला जाता है, तो यह कोई आश्चर्य नहीं कि, हम पाते हैं कि हर तीसरा व्यक्ति एक पागल है: मस्तिष्क में कुछ गड़बड़ है।

मस्तिष्क के साथ क्या गलत है कि यहाँ इतनी ऊर्जा है और आप इसे बिल्कुल भी सदुपयोग नहीं कर रहे हैं!

हम इसे किन तरीकों से प्रणाली बद्ध कर रहे हैं? बोध होने के बाद भी, मुझे लगता है कि लोगों के मन में किसी भी चीज़ के लिए कोई सम्मान नहीं है। कभी-कभी यह सबसे अधिक आश्चर्य की बात है कि मस्तिष्क की इन सारी गतिविधि के चलते हुए भी , उन्हें आत्मा से सारी संतुष्टि मिलती है, वे कुंडलिनी उठा रहे हैं वगैरहा-वगैरहा, लेकिन उन्होंने जिम्मेदार होने की क्षमता खो दी है। और इसलिए, सहज योग में भी, वे जिम्मेदार नहीं हैं। ऐसा केवल उनके अपने निजी काम के बारे में ही नहीं बल्कि सहज योग के बारे में, हर चीज के बारे में चलता जाता है। तो मन के इस गुण में कोई हृदय-भावना नहीं है। उनकी किसी भी चीज़ के प्रति भावना नहीं है!

मान लीजिए मैं आपको कुछ बता रही हूं: वैसा मैं सहज योगियों के बारे में नहीं जानती, लेकिन अब मैंने लोगों के साथ ऐसा देखा है कि, अगर आप उन्हें एक साल, एक घंटे के लिए भी व्याख्यान देते हैं, तो यह व्यर्थ गया, समाप्त हो गया! वे बस वही हैं! क्या हुआ? यह केवल चैतन्य है, यह तो केवल आप इसे कैसे कार्यान्वित करते हैं कि जीवन बदल जाता है और ऐसा सब। लेकिन जहां तक ​​उनका संबंध है, स्मृति में कुछ भी दर्ज नहीं है। कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं कैसे बात करूं? क्या यह अधिकतर उनके दिमाग में गया या ज्यादा उनके पैरों के नीचे से बह गया है? यह कहाँ बह रहा है?

तो कारण यह है कि वहां हृदय नहीं है। यदि आप इसे अपने हृदय से दर्ज करते हैं, तो आप इसे करेंगे। अगर आप अपना दिल चीजों में लगाते हैं, तो आप इसे करेंगे। यदि दिल ऐसा है, जैसा कि मैंने तुमसे कहा था, छोटा सा दिल है, बिल्कुल मुर्गे का दिल है। तो इसीलिए, हमारे चरित्र में यह कमी है।

उसके लिए अब वह अवस्था आ गई है कि, हमें अपना राइट साइड उठाना है, लेफ्ट साइड को नहीं। हमारा दायाँ बाजू बिल्कुल खत्म हो गया है और वहां दायें बाजु के नेता दो व्यक्ति हैं। देवता दो व्यक्ति हैं। बेशक ब्रह्मदेव जो हैं जो निर्माता हैं, जिन्होंने इस ब्रह्मांड को बनाया है और जो अभी भी आप लोगों के लिए बहुत सी चीजें बनाने और करने में व्यस्त हैं। लेकिन मेरा सुझाव है कि आपको इतिहास में हमारे पास मौजूद दो आदर्शों पर ध्यान देना होगा, इसके लिए यह समझना होगा कि हमारे पास किस तरह के आदर्श होने चाहिए। क्योंकि राइट साइड एक रजोगुण है जिससे आप राजसी हो जाते हैं, आप शाही हो जाते हैं, आप सभी रजोगुण प्राप्त कर लेते हैं जैसा कि आप जानते हैं।

अब इसमें वास्तव में दो व्यक्तियों का अनुसरण किया जाना है। उन्हीं में से एक हैं श्री राम। श्री राम दाहिने हृदय में निवास करते हैं और पिता हैं। वह पिता है और वह पितृत्व है। वह वही हैं जो इस धरती पर हमें एक राजा के रूप में पिता बनने की शिक्षा देने आये थे। वह एक पिता राजा है, वह एक परोपकारी राजा है, जिसका वर्णन प्लेटो ने किया था। वह कल्याणकारी राजा है। वह आदर्श थे जो इस धरती पर हमें यह सिखाने के लिए आए थे कि कैसे दूसरों के प्रति जिम्मेदार होना है, दूसरों का सम्मान कैसे करना है, दूसरों की भावनाओं को कैसे समझना है। वह इस हद तक गये कि, उन्हें अपने राज्य के लिए अपनी पत्नी का त्याग करना पड़ा। उन्होने वैसा ही किया और उन्हें अपनी गर्भवती पत्नी से एक महान ऋषि के पास जाने और रहने के लिए कहना पड़ा। कोई कह सकता है कि, “वह अपनी पत्नी के बारे में क्या कर रहे थे?” वह देवी थी। वह इतनी विलक्षण थी कि उन्हें उसकी परवाह नहीं थी। वह उनकी शक्तियों के प्रति इतने आश्वस्त थे कि उन्होने ऐसा किया। और हर समय देवी के साथ हस्तक्षेप करने के बजाय, चीजों को कार्यान्वित करने के लिए देवी को त्यागने में कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन इस सज्जन श्री राम ने एक राजा की जिम्मेदारी को समझा और उस जिम्मेदारी की हम में कमी है: वह जिम्मेदारी अपने प्रति और दूसरों के प्रति।

यह बहुत ही आश्चर्यजनक है। मेरा मतलब है कि मैं भारत से आई हूं। मैं इंग्लैंड आने से पहले तक कभी अंग्रेजों से नहीं मिली थी, मुझे कहना चाहिए, क्योंकि इससे पहले हम सभी मिशनरियों से मिले थे। सभी लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए सभी मिशनरी अत्यधिक जिम्मेदार थे। वे सुबह जल्दी उठते, अपनी बाइबल लेते, सभी जगहों पर घूमते, सभी गंदी गलियों को साफ करते और सभी बच्चों को भलेमानुस की तरह साफ करते, आप देखिए! वहां सभी गंदे लोगों को साफ करना, उन्हें चूमना और लोगों को धर्मांतरण करने के लिए सभी प्रभावशाली चीजें करना। वे उन्हें धर्मान्तरित  करने के लिए जंगल में भी जाते थे। वे इसके बारे में इतने जिम्मेदार थे और उन्हें लगा कि उन्हें यह करना है, यह ईश्वर का काम है, वे परमात्मा का काम कर रहे हैं, उन्हें परिवर्तन करना होगा। और वे इसके साथ चलते चले गए और इसी तरह, कुछ लोग जिनसे मैं मिली। तब शासक अत्यंत जिम्मेदार थे। वे निर्दयी थे और उन्हें लगा कि जो वे कर रहे थे यही सबसे बड़ा काम है, ब्रिटिश राज का प्रसार करना था और यह उनकी जिम्मेदारी थी। जब परमात्मा के राज को फैलाने की बात आती है तो हम नहीं हैं। अपने जीवन में सबसे पहले हमें यह देखना चाहिए, “क्या हम जिम्मेदार हैं?”

अब, आधुनिक समय में, मैंने पाया है कि हमने जिम्मेदारी की भावना से छुटकारा पा लिया है। इसे घटती जिम्मेदारी की भावना कहा जाता है। हम बस यही कहेंगे, “हाँ, हाँ, मुझे पता है। मुझे नहीं करना चाहिए। मैं जानता हूँ मैं जानता हूँ।” मैं नहीं समझ पाती: यदि आपके पास दिल है, तो आप कैसे कह सकते हैं कि “मुझे पता है कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था”? “मुझे पता है कि मुझे यहाँ होना चाहिए था।” इसका कारण यह है कि हृदय-भावना नहीं होती है और दिल हमेशा पकड़ता है जब आपका दायाँ बाजु अति क्रिया-शील होता है। इसका मतलब है कि आपका मस्तिष्क बहुत अधिक कार्य कर रहा है और वास्तव में कोई क्रिया नहीं है, जो की इसका परिणाम है। आप बहुत ज्यादा सोचते हैं और इसका क्रियान्वयन नहीं करते हैं। “मुझे जाना चाहिए था,” “मुझे यह करना चाहिए था,” “मुझे ऐसा कहना चाहिए था।” और यही हमारी दायें बाजू की समस्या है।

अब, हमारे सहजयोगियों में भी, मुझे लगता है कि लोगों को दायें बाजु की समस्या है। राइट साइड की पूजा करने के लिए, हमें श्री राम को देखना होगा: कैसे वे पूरी दुनिया के लिए जिम्मेदार महसूस करते थे, वे लोगों की देखभाल कैसे करते थे, वे दूसरों की चीजों की देखभाल कैसे करते थे, दूसरों के प्रति उनका व्यवहार कैसा था। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात है जो हमें सीखनी है।

लेकिन मैं आते हुए लोगों को देखती हूं कि, अगर यह चीज़ किसी और की है, तो वे फेंक देंगे। वे बस किसी चीज में कूद पड़ेंगे और कहेंगे कि, “ठीक है, यह मेरा घर है, जैसे मैं चाहूँ, वैसे ही मैं यहाँ रहता हूँ ।” इसमें जरा भी जिम्मेदारी का भाव नहीं है, कि आप किसी और के घर आ गए हैं, आपको इसका कुछ ख्याल रखना होगा। उसी तरह आपको यह जानना होगा कि आप ईश्वर की दुनिया में आ गए हैं, यह परमात्मा का राज्य है जहां आपने प्रवेश किया है। तुम अजनबी रहे हो। आज आप उनके घर अतिथि हैं, आप इसके बारे में क्या कर रहे हैं? आप कैसा व्यवहार कर रहे हैं? क्या आप जिम्मेदार हैं? क्या आप श्री राम की तरह हैं जिन्होंने दुनिया की सभी समस्याओं को अपने ऊपर ले लिया और फिर भी वे इतने जिम्मेदार थे? इतना भी नहीं कि वह किसी व्यक्ति को परेशान करे। जहाँ तक संभव हो वह सांत्वना देने का प्रयास करना चाहते हैं, और अच्छे जीवन की औपचारिकताएँ पूरी करना चाहते हैं। औपचारिकता अच्छे जीवन और अच्छी समझ के लिए होती है।

जब तक आपमें यह जिम्मेदारी का बोध नहीं होगा, तब तक आपकी सामूहिकता ठीक नहीं हो सकती। आप सामूहिक रूप से ठीक नहीं हो सकते। इसके लिए आपको मशीन होने की जरूरत नहीं है। जापानीयों की तरह मशीन होने की कोई आवश्यकता नहीं है – केवल एक व्यक्ति बोलता रहता  है, दूसरा बात नहीं करता। लेकिन यह एक तरह का अजीब व्यक्तिवाद जो आपको मिला है, वह आपको वह सामूहिकता कभी नहीं देगा जिसकी सहज योगियों से अपेक्षा की जाती है। हम सभी को एक होना चाहिए, एक दूसरे के लिए जिम्मेदार होना चाहिए। सिर्फ एक या दो लोगों के प्रति नहीं, क्योंकि वह मेरा दोस्त है, वह मेरा पति है, वह मेरी पत्नी है बल्कि हम सभी के लिए है। हमें उनके लिए, उनकी चीजों के लिए, उनके बच्चों के लिए, उनके घर के लिए, हर चीज के लिए जिम्मेदार होना होगा। हमें जिम्मेदार होना होगा। और यदि इस उत्तरदायित्व की भावना का अभाव है, तो अपने आत्म-साक्षात्कार के प्रति आपकी जिम्मेदारी कैसे होगी? बस यह एक आत्मकेंद्रित चीज़ हो सकती है, यह सोचकर कि, “मैं बहुत बेहतर हूं, मेरी शक्तियां बेहतर हैं। मेरे पास और शक्तियाँ होनी चाहिए। लेकिन अगर आपमें यह जिम्मेदारी का बोध नहीं है तो ईश्वर आपको शक्तियाँ भी क्यों दें?

मुख्य बात यह है कि आपका दाहिना भाग आपके भीतर पूर्ण है, वह है सूर्य नाड़ी, वह नाड़ी है जिसे ऐसी नाड़ी कहा जाता है जिससे लोग अपने प्राण धारण करते हैं। तो यह आपको प्राणशक्ति देती है। यह आपके भीतर की प्राणशक्ति, आपके भीतर ऊर्जा की जीवंत शक्ति है, जिसकी कमी है।

अब यह कमी, आपके हृदय के कारण से और बढ़ जाती है। कम से कम ऐसे व्यक्ति के मामले में जिसकी प्राणशक्ति समाप्त हो गई हो। कम से कम ऐसे व्यक्ति के लिए यदि भावना है तो वह वास्तव में उस शक्ति का उपयोग कर सकता है जो सिर में जमा हो रही है और उसे थका रही है, जैसे कि उसके मस्तिष्क को खा जाना, यदि उसके पास वह भावना है।

अब यही मैंने आपको पिछली बार बताया था कि जब सहज योग की बात आती है तो इंसान का दायाँ बाजु बहुत महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि जब कुण्डलिनी उठती है तो आपका दाहिना भाग भी, दायाँ भाग भी जाग्रत होता है।

अब प्रश्न यह है कि सहज योग अब तक इंग्लैंड में क्यों नहीं फैला? बहुत अच्छा सवाल है मुझसे कई लोगों ने पूछा है। जबकि ऑस्ट्रेलिया में यह इतनी तेजी से फैला है। इसका कारण राइट साइड गायब है। राइट साइड को जगाने के लिए सबसे पहले कोई राइट साइड होना चाहिए! अगर राइट साइड नहीं है, तो आप क्या जगा सकते हैं? अगर दीप ही नहीं है तो आप क्या जगाने जा रहे हैं? जलाने के लिए कोई दीया भी होना चाहिए।

तो ये सभी विषय और बातचीत जो हमारे पास समाज में है, “मुझे पता है! मैं जानती हूँ!” और फिर आप उनसे पूछते हैं तो वे बस कहते हैं, “मुझे पता है!” “आप कैसे हैं?” इस तरह से। ये सभी लहज़े और वह सब, व्यक्ति को छोड़ देना चाहिए। किसी भी व्यक्ति को पता होना चाहिए कि आपको जिम्मेदार होना है: यह जीवन की एक बहुत ही महत्वपूर्ण चीज है।

मैं व्यक्तिगत रूप से सोचती हूं कि, जब तक आप सहज योग में उस जिम्मेदारी, उस भावना को महसूस नहीं करते हैं, तब तक आप मेरी बात का बस उसी तरह आनंद लेंगे जैसे आप किसी और चीज का आनंद लेते है। वास्तविक आनंद तब आता है जब आपकी आत्मा वास्तव में वायब्रेशन को प्रवाहित करती है। तुम मेरे चैतन्य ले रहे हो, ठीक है, तुम उन्हें महसूस कर रहे हो, लेकिन तुम्हारे अपने चैतन्य के बारे में क्या? क्या आप अपने वायब्रेशन प्रसार कर रहे हैं या वे सिर्फ आपके दिमाग को प्रसारित कर रहे हैं। सरल प्रश्न यह है कि क्या आप बाहर कोई चैतन्य प्रसारित कर रहे हैं? हमारे पास कुछ सहजयोगी हैं, जब वे घर में प्रवेश करते हैं तो तुरंत ही सभी को इसका अनुभव होता है। हर कोई यह महसूस कर सकता है कि कोई आ गया है। तुरंत पूरी चीज कुछ ही समय में ठंडी हो जाती है। कोई आया है। यहां भी ऐसे कुछ हैं, ऐसा नहीं है कि कोई नहीं है, लेकिन वे कुछ ही लोग हैं।

आपको अपने चैतन्य को प्रसार करना होगा अन्यथा आप बस स्वयं के प्रति एक बोझ हैं। आप वायब्रेशन क्यों नहीं प्रसारित करते? क्योंकि आप जिम्मेदार महसूस नहीं करते हैं। अपने दैनिक जीवन में, सुबह से शाम तक, आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आप अपने भीतर जिम्मेदारी के इस साधन को विकसित करें, अन्यथा चैतन्य का प्रसार नहीं हो पायेगा, क्योंकि इसका मुख्य कारण यह है कि हमारा तंत्रिका तंत्र हमारे दाहिने हिस्से के माध्यम से हमारे पास आता है। 

हमारा तंत्रिका तंत्र हमारे दाहिने हिस्से द्वारा निर्मित होता है। हमारे भीतर के सभी तत्वों ने इसे निर्मित किया है। यदि तत्व कमजोर हो जाते हैं, यदि इन तत्वों द्वारा बनाए गए चक्र – जैसा कि आप जानते हैं कि ये सभी चक्र तत्वों द्वारा बनाए गए हैं – यदि धारण करने वाला बर्तन कमजोर है, तो कुछ भी कार्यान्वित नहीं होगा। उस पात्र को प्रेम के जल, या आप आनंद का जल कह सकते हैं  को धारण करने में सक्षम होना चाहिए तथा इसे दूसरों पर उंडेल पाने में सक्षम होना चाहिए। जब तक आप ऐसा करने में सक्षम नहीं होंगे, सहज योग नहीं फैलेगा। यह बहुत धीरे-धीरे फैलेगा। मुझे लगता है कि अंग्रेज और आस्ट्रेलियाई लोगों के बीच यही अंतर है कि दिमाग की गुणवत्ता आस्ट्रेलियाई लोगों की तुलना में हजारों गुना बेहतर है। वे विद्वान नहीं हैं। मुझे वहां बहुत कम लोग मिले जो स्नातक भी हैं। यहां हर कोई पीएचडी या शायद एमएडीहै: लेकिन वे सभी बहुत अच्छी तरह से शिक्षित हैं। इतना सब होते हुए भी सहज योग नहीं फैलता, क्यों? कारण यह है कि मन की गुणवत्ता अच्छी है, लेकिन क्रिया बहुत खराब है, क्योंकि तुम थके हुए हो, थके हुए हो, मन में लड़ रहे हो। आप ऐसा कुछ नहीं कर रहे हैं जिससे आप इसे प्रसारित कर दें।

राइट साइड वह है जिसे आप ब्रह्मा, ब्रह्मदेव की सृष्टि और ब्रह्म शक्ति कहते हैं, जैसा कि वे इसे कहते हैं। यह ब्रह्मा की शक्ति है जो आप में प्रवाहित हो रही है। हम इसे आत्मा की शक्ति कहेंगे, यह सच है। लेकिन आत्मा, आत्मा की शक्ति, आपके केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर प्रवाहित होती है। अगर यहां बिजली पूरी तरह से जमा हो गई है और बहुत कमजोर तार हैं, तो आप उस संचित ऊर्जा का क्या कर सकते हैं? तारों को सुधारना पड़ता है और इस तार के लिए अपने दाहिने हिस्से में बहुत सुधार करना पड़ता है।

हर मिनट आपको जिम्मेदार होना होगा, और यही कमी है। तब मैं देखती हूं कि जब कुछ लोग जो जिम्मेदार होते हैं, उन्हें बहुत दुख होता है और उन्हें लगता है कि उन्हें सच में चीखना-चिल्लाना चाहिए और कुछ करना चाहिए। वे नहीं जानते कि ये वास्तव में संत हैं, वे साकार-आत्मा हैं। वे महान लोग हैं, निस्संदेह, लेकिन उनका दाहिना पक्ष कमजोर है। लेकिन ऐसा स्वीकार करना कोई बड़ी अच्छी बात नहीं है, यह बहुत बुरी बात है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आपको दोषी महसूस करना चाहिए – फिर से, मैं कह रही हूं। क्योंकि यह दोषी महसूस करना इस चीज़ को प्रबंधित करने का बहुत बढ़िया तरीका है। क्योंकि दोषी महसूस करना सबसे अच्छा तरीका है, “मुझे क्षमा करें, मुझे क्षमा करें। मुझे ऐसा करना चाहिए था। मुझे पता है, मुझे पता है, मुझे पता है!” – बस सब ख़त्म! फिर आप कैसे सुधर सकते हैं? यदि आपके पास यहां एक थैली है (बाएं विशुद्धि में अपराधबोध की) हर समय जिम्मेदारी से वंचित है, तो उसमें से जो भी कचरा आपने उत्पन्न किया है, आप उस थैली में भर ले रहे हैं और फिर आप कहते हैं, “हाँ, हाँ, मुझे पता है , मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था!” अब आप क्या कर सकते हैं? आई, माँ के रूप में आप ऐसा भी नहीं कह सकते कि, “आप अपने आप को निकटतम पेड़ से लटका लें!” मैं क्या करूं? लेकिन मैं आपको भौंचक्की हो कर देखती हूं, मैंने कहा, “सच में?” “हाँ, मुझे करना चाहिए था लेकिन मैंने नहीं किया।” उदाहरण के लिए, मुझे किसी को बताना होगा कि, बेहतर होगा कि आप दस लोगों के लिए खाना बनायें, वे आ रहे हैं। और वह व्यक्ति कहता है, “नहीं, मुझे क्षमा करें, मैं भूल गया, मैंने खाना नहीं बनाया।” आपकी तो आफत हो गयी! आप उसे तवे से नहीं मार सकते, क्या आप ऐसा कर सकते हैं| क्या करें? इस तरह आप स्तब्ध रह जाते हैं और आप वास्तव में नहीं जानते कि उन्हें कैसे खाना मिले!

मुद्दा यह है: आत्मा और ईश्वर संबंधी इस विषय की बातचीत में, किसी को यह जानना होगा कि वाहक को बेहतर होना चाहिए। वाहन इतना खराब है कि वह लेजाने में सक्षम नहीं है: अन्यथा आप इस तरह के वायब्रेशन का उत्सर्जन करेंगे। मैं जानती हूँ तुम कर सकते हो। आप जहां भी खड़े होंगे आप लोगों को आकर्षित करेंगे। लोगों को आपके आसपास इकट्ठा होना चाहिए! आपको आश्चर्य होगा, मैं कितने महीनों के लिए ऑस्ट्रेलिया गयी थी? ज्यादा से ज्यादा एक महीने में, और मैं वहां से वापस आ गयी: पहले ही सात केंद्र शुरू हो चुके हैं और हर केंद्र में कम से कम तीन सौ नियमित लोग आ रहे हैं!

यह दोषी महसूस करने के लिए नहीं है: मैं ऐसा करने को नहीं कह रही हूँ, लेकिन खुद को जगाने के लिए, इस बिंदु तक जागृत होने के लिए, यह समझने के लिए कि आपको उस बिंदु तक उठना है और आपको उस स्थिति को उपलब्ध होना है क्योंकि तुम सत्य के योद्धा हो। आप वे लोग हैं जो साधक हैं, आप युगों से हैं, और आपके पास गैर-जिम्मेदार होने का कोई काम नहीं है और आपको यह करना होगा। मेरी दिली तमन्ना है कि मैं जो कह रही हूं उसे आप समझ सकें।

केवल बैठना, ध्यान करना, मेरी ओर हाथ रखना या तस्वीर की ओर रखना ही सब कुछ नहीं है। आप अभी भी प्राप्त कर रहे हैं। अभी भी आप एक प्राप्त कर्ता ही हैं। आपको देने की स्थिति में होना होगा। तुम वह कैसे करोगे? कभी-कभी इतने वायब्रेशन आते हैं कि कुछ समय बाद आप यह महसूस भी नहीं कर पाते, यह इतना भरा हुआ है, घड़ा इतना भर गया है। लेकिन इसे उंडेलने के बारे में क्या? आप इसे प्रसारित क्यों नहीं कर पाते? इसका कारण यह है कि आपके भीतर का वाहन, जो कि दायीं बाजु है, पिंगला नाडी है, ठीक से कार्य-क्षम नहीं है। और किसी व्यक्ति को यही बात समझना है।

इसे तभी निर्मित किया जा सकता है जब आप श्री राम के जीवन के बारे में जानेंगे, जिस तरह से उन्होंने अपना जीवन व्यतीत किया। उनके जीवन का प्रत्येक क्षण गतिशील था। जीवन में एक मिनट भी बर्बाद नहीं किया। हर मिनट, चाहे वह जंगल में हो या वह अपनी पत्नी के साथ एक स्थान पर गये जब वह निर्वासन में थे, और वहां – वह जानते थे कि उनकी पत्नी एक बहुत ही शर्मीली महिला थी और वह उस खुले स्थान में स्नान नहीं करेगी – तो वहाँ एक चट्टान है जिसे पूरी तरह से ढाला गया है, इतनी बड़ी चट्टान को ढाला गया है, क्या आप कल्पना कर सकते हैं? (राहुरी के पास सीता-नहानी नामक स्थान) अंदर, पानी के नल की तरह की कोई चीज बाहर प्रकट हो रही है, वहां से पानी निकल रहा है। ताकि यहां एक पत्थर हो, यहां पत्थर हो, वहां पत्थर हो, और इसके अंत में एक झरोखा हो ताकि इस तरफ से प्रकाश आ रहा है और इस तरफ से प्रकाश आ रहा है। लेकिन अंदर अगर तुम जाओ, तो कोई भी तुम्हें नहीं देख सकता। ऐसे पेड़ हैं जिनके साथ यह छिपा हुआ है। ऐसे पेड़ हैं जिन्हें शिकाकाई कहा जाता है (शिकाकाई बालों के शैम्पू के रूप में इस्तेमाल किया जाता है) जिसका अर्थ है कि एक प्रकार का साबुन देने वाला पेड़ है, जिसे उन्होंने अपनी पत्नी के लिए बनाया है।

वे जहाँ कहीं भी रहे थे उन्होंने एक नया आयाम, एक नया घर, जीवन की एक नई शैली का निर्माण किया। निःसंदेह वह एक अवतार थे ऐसा आप कह सकते हैं। लेकिन वह आपका आदर्श है न कि वे लोग जो घंटों बैठकर कुछ पीते हैं और सोचते हैं कि वे महान शहीद हैं। मैं उन सभी को यहाँ हमारे चर्च के पास बैठे हुए देखती हूँ और उनमें से एक को वहाँ से गुजर रहे किसी राहगीर ने पूछा, “तुम क्या कर रहे हो?” “हम खुद को मार रहे हैं!” बहुत गर्व से कहते हुए! मेरा मतलब है कि मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि उन्हें खुद को मारने का क्या काम है? ईश्वर को उन्हें बनाने में कितना समय लगा है? और यहाँ वे बैठ कर और गर्व से कह रहे हैं कि, “हम खुद को मार रहे हैं!”

यह वह स्थिति है जिसमें मैं अचानक खुद को पाती हूं। तो मैं आपसे पूछती हूं कि मुझे क्या करना चाहिए? मुझे कैसे करना चाहिए?

आपको जीवन के हर तरीके में जिम्मेदार महसूस करना होगा। लेकिन आप को यह विचार नहीं आता  हैं कि, अगर आप हंकी-पंकी नुमा व्यक्ति हैं तो इसमें कुछ गलत है। अगर आपके पंख हर जगह गिर रहे हैं तो आपको लगता है कि, यह ठीक है! आपके लिए यह कोई मायने नहीं रखता लेकिन परमात्मा के लिए यह मायने रखता है। इसका मतलब है कि कोई व्यक्ति ईश्वर का संदेश नहीं दे सकता, ईश्वर के आनंद का संचार नहीं कर सकता, वह प्रेम नहीं डाल सकता।

हमें हर दिन के जीवन में बहुत जिम्मेदार बनना है, ऐसा केवल सहज योग में हो ऐसा मेरा कहना नहीं है, बल्कि हर दिन दैनिंदनी जीवन में, आप जिस तरह रहते हैं, जो भी आप करते हैं। क्या आप केवल अपने बारे में चिंतित हैं या आप दूसरों के बारे में चिंतित हैं? क्या आप दूसरों के लिए जिम्मेदार हैं? मेरा मतलब है कि आधुनिक शैली ऐसी है कि, सुप्रभात का अभिवादन ना करना भी – बुरा व्यवहार माना जाता है। आप देखिए, किसी के लिए दरवाजा खोलना भी बुरा व्यवहार है, बुरा व्यवहार है, उन्हें लगता है कि यह गुलामी है। मेरा मतलब है, सभी शिष्टाचार और ऐसी सभी चीजें, सभी जिम्मेदारी, को गुलाम मानसिकता स्वरूप में माना जाता है। और इस तरह के आधुनिक विचार जो हवा में तैर रहे हैं, आपको उन्हें फेंक देना चाहिए! और आपको एक बहुत ही महान कोटि के इंसान बनना है। आपको ऐसे लोग बनना है जिन्होंने नई दुनिया बनाई है। आप इसे बनाने जा रहे हैं, मुझे पता है। आपको बस उस बिंदु तक प्रगति करना है और अपने अपराध बोध में नहीं डूबना है और ऐसा नहीं कहना है कि, “हे भगवान, हम क्या कर रहे हैं?” नहीं! जागो और उठो और जो करना है उसे पाओ।

मैं इंग्लैंड के बारे में ऐसा ही महसूस करती हूं। इंग्लैंड बहुत महान है और यह दिल है, यह हृदय है। और देखो दिल का हाल! आपका दिल बहुत कमजोर है, और किसी भी चीज़ में भावना नहीं है। ठीक है, तुम मुझसे प्यार करते हो और मैं तुमसे प्यार करती हूँ, लेकिन तुम दूसरों से प्यार करने के बारे में क्या सोचते हो? और अन्य चीजों से प्यार है? प्रेम का अर्थ प्रेम पत्र लिखना नहीं है। इसके बारे में कुछ करना ! और यही है, कमी कुछ करने की है, और कमी है। और यही हमें अपने राइट साइड को ठीक से, उचित आकार में बनाना है। अगर हमें वास्तव में खाना बनाना है तो हमें यह जानना होगा कि अपने भीतर की आग कैसे जलाएं ना की बैठकर चिंता करें कि इसे कैसे किया जाए।

मेरे लिए इंग्लैंड आना बहुत बड़ी बात है, सचमुच, एक कारण यह है कि यह वह जगह है जहां सहज योग कार्यान्वित होने वाला है। यह पूरी दुनिया में प्रसारित होने जा रहा है, मुझे पता है, आप लोगों के माध्यम से। लेकिन अगर आप अपने संचार के तारों को नहीं सुधारते हैं तो यह पूरी तरह से स्थिर हो जाएगा, और इस गतिरोध की जिम्मेदारी लंदन के सहजयोगियों पर होगी, क्योंकि आपने अपने जीवन को एक साथ नहीं रखा, इसलिए यह कार्यान्वित नहीं हुआ। यह एक जबरदस्त जिम्मेदारी है। बेशक, गलत चीजों के लिए जिम्मेदार होना गलत है, लेकिन दैवीय कार्य के लिए जिम्मेदार नहीं होना, जबकि ईश्वर ने आपको आत्म-साक्षात्कार का आशीर्वाद दिया है, तो यह बिल्कुल भगवान के खिलाफ है, आपके स्वयं के खिलाफ है, सहज योग के खिलाफ है।

मैं जिस दूसरे व्यक्तित्व की बात कर रही थी, वह श्री हनुमान है। श्री हनुमान एक ऐसे महान शक्तिशाली व्यक्तित्व हैं जिनके बारे में मैंने आपको नहीं बताया। मेरा मतलब है, आप देखिए राम को, उनके भाई को एक तीर से घायल किया गया था। और राम ने हनुमान से कहा, कि, “क्यों नहीं आप जा कर और उसके लिए एक विशेष प्रकार की दवा लाते हैं जो एक विशेष पर्वत पर मिलती हैं, तो आप जाकर उस विशेष चीज़ को हासिल करें।” तो उसके पास एक शक्ति थी, उसके पास नौ शक्तियाँ थीं, उसके पास नवधार शक्तियाँ थीं, नौ शक्तियाँ थीं: जिससे वह छोटे हो सकते थे, वह बड़ा हो सकते थे और वह कुछ भी उठा सकते थे। उसके पास उस तरह की बहुत सारी शक्तियाँ थीं, इसलिए नौ शक्तियाँ: अनिमा, लघु, गरिमा, वैसी। वह इतना भारी हो सकते थे कि कोई उसे उठा नहीं सकता था (गरिमा)। मेरा मतलब है कि उन्हें दायें बाजु की ये शक्तियाँ प्राप्त हुई हैं। तो वे उस पहाड़ तक गए और उन्हें वो औषधि कहीं दिखाई नहीं दी, वह बस ढूँढ नहीं सके। उन्होने कहा, “क्यों न पूरे पहाड़ को उठा लिया जाए?” उन्होने सारा पहाड़ खुद उठा लिया और वह उसे राम के पास ले आये और उसने कहा, “अब आप जो चाहो चुन लो!” वह वापस आ सकते थे और कह सकते थे, “ओह, मुझे नहीं मिला! मुझे खेद है, मुझे पता है, मैं बेकार हूँ!” (हँसी) अगर वह अंग्रेज होता! लेकिन उसने कहा, “ठीक है, यदि आप चाहते हो!” वह पूरे पहाड़ को ले आया,”आईये अब इसमे ले लीजिये!” उनके जीवन के हर तरीके में, आप उनकी जिम्मेदारी की भावना को देखते हैं और वह किस तरह आगे बढ़ते है।

उदाहरण के लिए, उन्हें रावण के पास भेजा गया था और उनसे रावण ने पूछा था, उसने उनसे कहा कि, “तुम इस जगह पर नहीं रह सकते, तुम यहां क्यों आए?” दरअसल, पहले वे सीता के पास गए और उन्हें बताया कि, “श्री राम ने मुझे भेजा था,” और उन्होंने अंगूठी दिखाई, और उन्होंने पहचान लिया कि वह उनके पति की अंगूठी थी। और उन्होने कहा, “माँ अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें अपनी पीठ पर बिठा सकता हूँ।” लेकिन सीता ने कहा, “नहीं। पहले से ही मैं एक ऐसी महिला हूं जो दूसरे पुरुष के साथ आई है। मैं दूसरा नाम बदनाम नहीं करना चाहती और तुम्हारा नाम बदनाम होगा, इसलिए मैं नहीं आऊंगी। तो यह सब ठीक है। तुम वापस जाकर राम से कह सकते हो कि मैं ठीक हूँ। एक पति के रूप में आप आओ और इस आदमी से लड़ो। अन्यथा मैं तुम्हारे साथ नहीं आने वाली।‘” तो फिर उन्हें पकड़ लिया गया और रावण के पास ले जाया गया।

अब रावण ने कहा कि, “तुम बंदर हो और क्या करने आए हो?” उन्होंने कहा कि, “बेहतर होगा कि आप श्री राम की पत्नी को रिहा कर दें और वह इस इस प्रकार से और ऐसे हैं।” तो उन्होंने कहा कि, “अरे बंदर, तुम मुझे ये बातें बता रहे हो?” “ठीक है,” उसने कहा, “उसकी पूंछ जला दो।” उन्होंने कहा, “अगर वे मेरी पूंछ जलाते हैं, तो मुझे पता है कि कैसे उपयोग करना है!” वह जानते है कि पूंछ की जिम्मेदारी कैसी होती है! उन्होने अपनी पूंछ से पूरी लंका को जलाना शुरू कर दिया और वह ऐसा कह सकते थे कि, “ठीक है, उसने मेरा सामान जला दिया, बेहतर होगा कि मैं भाग जाऊं! ऐसा काम क्यों करें? तुम्हें पता है, इससे बच जाना बेहतर है, बाहर निकलो, तो इसे भूल जाओ! मैं राम के पास नहीं जा रहा हूँ, उसने मेरा सामान जला दिया, कल कुछ और करेगा।” [ऐसा सोचने के बजाय उन्होने पूरी लंका को जला दिया, पूरी लंका को जला दिया जब तक कि रावण को कहना पड़ा कि, “कृपया क्षमा करें और चले जाओ।” उन्होने यह प्रदर्शित करने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए कि वह वास्तव में शक्तिशाली है।

 जिम्मेदारी की भावना और उनके समर्पण और प्यार को उन्होंने इतने सारे तरीके से व्यक्त किया हैं। लेकिन, कहा जाता है किअगर आप एक बार उनका नाम भी ले लें तो जो भी काम आप करना चाहते हैं, वह क्रियान्वित किया जा सकता है। जिस भी काम को आप पूरा करना चाहते हैं वह हो जाएगा। और उनका दिन मंगलवार है। मंगलवार के दिन आप उनसे कुछ भी मांगेंगे तो वह काम करने में आपकी मदद करेगा। लेकिन ऐसा नहीं है कि तुम बैठ जाओ और कहो कि, ” हनुमान अब आगे आओ, कृपया क्या तुम यह काम कर दोगे?” (हंसी) लेकिन अगर आप काम कर रहे हैं, तो वह आपकी मदद के लिए आते है। यानी वह सक्रिय करते है, सक्रिय करते है और वह आपकी ऊर्जा को उस दिशा में प्रवाहित करते है जिससे आपका काम हो जाता है। वह इतने तरीकों से इतने मददगार है कि आप सोच भी नहीं सकते। हमारे बहुत से सहजयोगियों ने उनके साथ इसे आजमाया है। और उन्होने ऐसे चमत्कार किए हैं। विशेष रूप से आस्ट्रेलियाई लोग, किसी तरह उनके लिए ऐसी भावना रखते हैं, मुझे कारण पता है, लेकिन उनके पास उनके लिए ऐसी भावना है कि हर बार, कुछ भी हो, वे हनुमान से मांगते हैं, “हनुमान, अब कृपया हमारी देखभाल करें!” और उन्होंने मुझे बताया है कि जब से वे श्री हनुमान का उपयोग कर रहे हैं, तब से ऐसी चमत्कारी चीजें हुई हैं।

लेकिन इस हनुमान को ले जाने के लिए आपके पास वाहन होना चाहिए! वह आपके भीतर एक बहुत ही सूक्ष्म देवता है और यदि आप गैर-जिम्मेदार हैं, तो वह ऐसे लोगों से नफरत करता है, वह नफरत करता है, वह इसे सहन नहीं कर सकते। वह सोचते है कि वे बिल्कुल बेकार लोग हैं! वह ऐसे लोगों पर ध्यान नहीं देते, जो जिम्मेदार नहीं हैं। वे कोई भी बहाना दे सकते हैं, वे दिखावा कर सकते हैं, वे कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन उन्हें ऐसे लोगों की परवाह नहीं है। जो लोग जिम्मेदार नहीं हैं, उनके लिए उनके पास कोई प्यार, सम्मान, कोई चित्त नहीं है।

एक बहुत अच्छी अंग्रेजी कहावत है, “ईश्वर उनकी मदद करते हैं जो खुद की मदद करते हैं।” अंग्रेजी भाषा में बहुत सारी खूबसूरत चीजें हैं, इसकी सारी बच्चों की कविता और सब कुछ। काश, लोग उन बातों को केवल कहते ही नहीं बल्कि उन पर अमल भी करते। वे मेरी सुनते हैं लेकिन ऐसा करते नहीं। अब आपने मेरी बात सुन ली है, अब देखना होगा कि आप कितने जिम्मेदार हैं।

अब हमारा पहला आश्रम था और अगर कोई और है तो कृपया मुझे क्षमा करें, क्योंकि यह एक खुली बात है और हमें इसके बारे में बात करनी है। और मुझे आश्चर्य हुआ कि हमारे पहले आश्रम में, जब मैं वहाँ गयी, तो चकित रह गयी! मेरा मतलब है, सूअरों की तरह जीने वाले युवा! मैं समझ नहीं पायी। मेरा मतलब है, वे हिप्पी नहीं हैं, वे कोई धूम्रपान, पेय या कुछ भी नहीं ले रहे हैं। वे कितने गैर जिम्मेदार हैं! वे बाथरूम में जाते हैं, वे ऐसे निकलते हैं जैसे चीनी मिटटी के बर्तन की दुकान में कोई बैल घुस गया हो! और वास्तव में वे इसी तरह रह रहे थे, मैं चकित थी! वे ऐसा कैसे कर सकते थे? और वे सभी स्नातक, एमएडी, पीएचडी, और सब कुछ थे। मैं सोच रही थी, “इन लोगों को क्या हो गया है?” धीरे-धीरे, धीरे-धीरे उनमें सुधार हुआ। लेकिन यह झुंड चला गया फिर एक नया झुंड आया और एक नया लॉट आया। और यह इतनी आश्चर्य की बात है कि एक बार वे जिम्मेदार और अच्छे बन गए, तो किसी न किसी तरह हनुमान उन्हें बाहर निकाल लेते हैं, , और वे बस इससे बाहर निकल आते हैं।

अब, आज मुझे आपको तय करने के लिए कहना है, यह तय करना है कि आपके जीवन के हर पल और गतिविधि को आप हनुमान की तरह से जिम्मेदारी से महसूस करने जा रहे हैं। कोई भी काम जो आप उन्हें बताते हैं: उनके बारे में कहा जाता है, “राम काज़ करने को तत्पर।” मतलब कोई भी काम करने के लिए, वह बस तैयार है! वह अभी तैयार है! आप उन्हें कुछ भी बताएं, वह बस उसे करने के लिए तैयार है। यह उनका गुण है जो आपके पास होना चाहिए। और उस गुण की आज इंग्लैंड में बहुत कमी है। आपकी सभी हड़तालें, आपकी सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है।

जब मैं पहली बार आई तो हैरान रह गयी, मैंने किसी से पूछा, ”  क्या आप कामक़ाज़ी हैं?” 

उन्होंने कहा, “नहीं, मैं सफलतापूर्वक बेरोजगार हूं!” (हँसी) 

मैंने कहा, “सच में? आप सफलतापूर्वक बेरोजगार हैं तो आप कैसे खाते हैं?” “ओह, हमें हमारे अनुदान मिलते हैं।” 

“क्या सच मे?” 

“हमारे पास प्रतिभूतियां हैं।” 

क्या प्रतिभूतियां है, यह बकवास है, तुम परजीवी हो! कोई स्वाभिमान नहीं है। दूसरों से सम्मान तो छोड़ो, स्वाभिमान नहीं है। मैं हैरान थी! फिर मैंने उनसे कहा, “आप सभी को काम पर जाना है। कोई भी व्यक्ति जो अनुदान पर आश्रित है वह आश्रम में नहीं रहेगा।” काश आपकी सरकार इस पर कुछ ध्यान देती! कि हमें जिम्मेदार नागरिक बनाना है। इंग्लैण्ड में ही हमें दिखाना है कि सहज योग से आपने पटल पर दृश्य बदल दिया है, अब आपके पास चतुर, कुशल, जिम्मेदार लोग हैं। यही हमें दिखाना है। एक बार जब आप ऐसा दूसरों को प्रदर्शित करेंगे, तो लोग इसे देखकर चकित रह जाएंगे!

दूसरे के पैसे के बारे में भी वही बात है। अगर आप किसी और का पैसा रोक  सकते हैं तो यह सबसे अच्छी बात है! यह सब एक बहुत ही सामान्य घटनाक्रम है।

सहजयोगी जब पहली बार भारत गए और फिर जब वे यहां वापस आए, उन्होंने फिर कभी वहां पत्र लिख कर, उन्हें धन्यवाद नहीं दिया। और मैं चकित थी। छह महीने तक, मैंने कहा, “तुम क्या कर रहे हो?” “मुझे पता है कि हमें लिखना चाहिए था। मुझे पता है कि हमें लिखना चाहिए था।”

 “तब क्यों? क्यों नहीं लिखा?” कोई जिम्मेदारी की भावना नहीं! यह क्या है, मैं समझ नहीं पायी। धीरे-धीरे वे विकसित और विकसित और विकसित हुए। अब वे महसूस करते हैं। लेकिन जिन्होंने महसूस करना शुरू कर दिया है वे परिपक्व सहजयोगी हैं ऐसा मुझे कहना चाहिए। लेकिन जो लोग आ रहे हैं उन्हें पता होना चाहिए कि आपको जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए।

कभी-कभी जिन लोगों को आत्मसाक्षात्कार होता है, वे ऐसा महसूस करने लगते हैं कि, “ओह, अब हमें बोध मिल गया है! अब कुछ नही! बस जाओ, माँ का आनंद लो। बैठ जाओ और इसका आनंद लो,” कुछ करना नहीं है! यह आनंद रुक जाएगा! आपको इसे दूसरों को देने में सक्षम होना चाहिए, आपको उत्सर्जन करना चाहिए। यदि आप स्वयं उन चैतन्य का उत्सर्जन नहीं कर सकते हैं … यदि आप प्रबुद्ध हैं, तो आपको दूसरों को प्रकाश देने में सक्षम होना चाहिए। आप कुंडलिनी को ऊपर उठा सकते हैं, ठीक है, लेकिन आपके अपने व्यक्तित्व का क्या जो इतना गैर-जिम्मेदार है? जो कही भी हनुमान के आस-पास भी नहीं है। अपने स्व  के प्रति पूर्ण आज्ञाकारिता की यह हनुमान की शैली, उस प्रेम का पूर्ण उत्सर्जन जो आपको मिला है, वह दिव्य शक्ति जो आपको प्राप्त हुई है। जब तक आप उस अवस्था को प्राप्त नहीं कर लेते, तब तक आपको अपनी आत्म-साक्षात्कार से संतुष्ट नहीं होना चाहिए।

आत्म-साक्षात्कार तभी पूर्ण होता है जब आप स्वयं प्रकाश के दाता बन जाते हैं। आप गुरु, आप महान सितारे: यही मेरी महत्वाकांक्षा है। मुझे पता है कि मैं कभी-कभी अपने बच्चों से बहुत उम्मीद करती हूं। और मैं चाहती हूं कि वे समझें कि मैं चाहती हूं कि आप वास्तव में परमेश्वर के राज्य में अपनी माता के महान पुत्रों के रूप में सम्मानित हों।

परमात्मा आपको आशिर्वादित करे।

लेफ्ट साइड भी, आप इसे जानते हैं, लेकिन इसे जारी रखें।

मैं ये सब बातें कहकर सुधार करती हूं। मैं तुम्हारे भीतर हनुमान और श्री राम को जगाती हूं, निस्संदेह, मुझे यह पता है। लेकिन उन्हें जगाए रखें, सतर्क रहें।

और आपको सतर्क और सक्रिय, जिम्मेदार और सम्मानजनक होना होगा। आपको यह महसूस करना होगा कि आप संत हैं, एक विशेष गुण के संत हैं। जो संत दूसरों को साक्षात्कार दे सकते हैं! ऐसे संत न अनेक हुए, न पहले हुए, यहाँ तक की आज भी नहीं हैं। ऐसे संत हैं जो साक्षात्कारी-आत्मा हैं लेकिन वे नहीं जानते कि कैसे आत्मसाक्षात्कार देना है। वे इतना नहीं जानते। आपके पास इतना ज्ञान और सब कुछ है, सिवाय इसके की वाहन कमज़ोर है, यह आनंद का प्रसारण नहीं कर सकता।

और प्याला ठीक होना चाहिए अन्यथा वह इस पृथ्वी पर बरस रहे प्रेम के सुंदर फव्वारे को आगे नहीं ले जा सकता | और इसी तरह तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हारे भीतर यह जाग्रत है, जाग्रत रखो, चलते रहो।

कृपया अपनी आँखें बंद करें, पैर सीधे जमीन पर। दोनों हाथ मेरी ओर ऐसे ही रखो।

विचार अब चले गए हैं, विचार नहीं हैं। तो अगर आप दोषी महसूस करना चाहते हैं तो भी आप नहीं कर सकते।

दोषी महसूस करने योग्य कुछ भी नहीं है। यह खुद को, अपने भीतर, आत्मा की उस अग्नि को जगाना है, जो आपको अभिव्यक्त और उत्सर्जित करती है।

हमें बहुत गति से चलना है। हमें इसे बहुत तेजी से हासिल करना है। हमारे लिए ज्यादा समय नहीं बचा है। यह कहना आसान है कि, “यह काफी कठिन है,” और वह सब। ये बातें हमें नहीं बोलनी हैं। यह कुछ नाटकों और चीजों के लिए ठीक हो सकता है परन्तु यह उन लोगों के लिए नहीं है जिन्हें परमेश्वर ने चुना है।

बस अपने हाथों को थोड़ा ऊपर उठाएं और आप इसे हाथ में महसूस करेंगे।

अब बेहतर?

दाहिना पक्ष बहुत खुल रहा है!

डरने की कोई बात नहीं, कुछ भी नहीं। आप जानते हैं कि आपकी मां आपसे कभी नाराज नहीं हो सकती, कभी नहीं। लेकिन मुझे तुम्हें जगाना है। कि मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं, कि मैं चाहती हूं कि तुम्हें अपना हक मिले: सभी संदेश और सारी महिमा।

अब अपनी आंखें बंद करो और इसे प्रवाहित होने दो, इसे बहने दो। देखिए आत्मा की जिम्मेदारी कितनी बड़ी है। आपका वाहन जैसा भी हो, एक बार जाग्रत हो जाने पर यह दूसरों को आत्मसाक्षात्कार देता है, कार्य करता है। उस आत्मा की तरह जिम्मेदार बनो। यदि आप आत्मा बन जाते हैं तो आप उस आत्मा के समान होंगे।

अपनी आँखें बंद करें। बस अपनी ऑंखें बंद करो।

अपने दाहिने पक्ष का उत्थान करके ही आप वास्तव में अपने बाएं तरफ को संतुलन दे सकते हैं: अन्यथा कोई रास्ता नहीं है।

तुम सिर्फ जिम्मेदार होने की कोशिश करो, तुम चकित रह जाओगे। तुम सिर्फ जिम्मेदार होने की कोशिश करो और तुम चकित हो जाओगे, तुम्हारी सारी आर्थिक समस्याएं, तुम्हारी सारी समस्याएं, हल हो जाएंगी, क्योंकि तुम जाग गए हो! और आपके पास एक विशेष शक्ति है। आपको बस यही शक्ति बनना है! जिम्मेदारी आपके भीतर एक स्वर्गीय शक्ति बन जाती है। आपको हृदय से शक्ति मिलती है। इसमें अपना दिल लगाएं। भावना लगाओ। इन सब बातों को अपने हृदय में उतारो: मुझे इसे अपने हृदय से करना है! मुझे अपने दिल से जिम्मेदार होना है। मुझे स्वाभाविक रूप से जिम्मेदार होना होगा।