आपको समझना होगा कि स्वयं से इस भौतिकता के लबादे को हटाने के लिये आपको अपने ऊपर कार्य करना होगा। और एक बार जब आपने इसे नियिंत्रत कर लिया तो कम से कम ….. अब आप कहीं भी सो सकते हैं अगर नहीं तो कुछ समय तक जमीन पर सोने का प्रयास करें। सन-टैनिंग के लिये आप क्या नहीं करते हैं … लोग इन बेवकूफियों के लिये स्वयं को रोक ही नहीं सकते हैं क्योंकि इन विचारों को आपके अंदर डाला गया है। इन विचारों को डालने वालों ने आपको शोषण किया है … आपको ये करना चाहिये … वो करना चाहिये… ये करना आवश्यक है … वो करना आवश्यक है। उन्हें तो बस अपने उत्पादों को बेचना है।
कभी-कभी उपवास करने का प्रयास करें। मैंने भारतीयों को उपवास करने से मना किया है क्योंकि वे उपवास ही करते रहते हैं। छोटी-छोटी बातों के लिये वे उपवास करते हैं। भारत में अन्न की कमी है … इसलिये वे उपवास करते हैं। उनको उपवास करने की क्या जरूरत है? लेकिन यहाँ के लोगों के लिये ये आवश्यक है कि वे उपवास करना सीखें और भोजन की ओर ज्यादा ध्यान न दें। भोजन के प्रति आकर्षण का अर्थ है कि आपकी इंद्रियां आपको पागल बना रही हैं…. हैं कि नहीं? हमको सबसे पहले अपने शरीर और बाद में इंद्रियों पर आक्रमण करना चाहिये। हमारी सबसे बड़ी दुश्मन हमारी जीभ है। ये दो प्रकार से कार्य करती है। एक तो स्वाद … खाने का स्वाद और दूसरे ये कड़वे बोलों से दूसरों पर आक्रमण करती है। हम लोग या तो बिल्कुल नहीं बोलते हैं या जब भी बोलते हैं तो बस हम दूसरों पर प्रहार करते हैं। हम जरा भी दयालु नहीं हैं। हम करूणामय भी नहीं हो सकते। हम अपने दिल की बात भी किसी को नहीं बता सकते हैं। अपनी जीभ पर नियंत्रण रखें। सबसे पहले अपनी जीभ पर इन दो बातों के लिये नियंत्रण रखें। यदि आपको केक खाना पसंद है तो एक साल तक केक मत खाइये। मैं कहती हूं कि इसी तरह से आप अपनी जीभ पर नियंत्रण रख सकते हैं। यदि आप हर समय कड़ुवे बोल बोलते हैं तो ….या आप गाली देते रहते हैं तो इस को बदलने का प्रयास करिये। अपनी वाणी को मधुर बनाइये। इसे सुंदर व आकर्षक बनाइये।
सहजयोग में आप कटु वाणी से गुरू नहीं बन सकते हैं। ऐसे सभी गुरू खत्म हो चुके हैं। पहले ऐसे गुरू हुआ करते थे जो अपने हाथ में एक बड़ी सी छड़ी लेकर बैठा करते थे। जो कोई भी उनके पास जाता था उसको वे पहले 20-25 बार छड़ियों से मारते थे और यदि फिर भी कोई भागता नहीं था तो वे कहते थे कि जरा पास आओ और वे उनको दो चार थप्पड़ मारते थे। मेरा कहने का अर्थ है कि वे अपने शिष्यों को प्रताड़ित करने के लिये किसी भी सीमा तक जा सकते थे। वे अपने शिष्यों को कुंए में उल्टा लटका देते थे और फिर ऊपर खींचते थे और फिर डुबो देते थे ग्यारह बार और यदि फिर भी वो जीवित रहता था तो तभी वे उसकी सहायता करते थे। वे उनकी शरीरिक परीक्षा भी लेते थे। उनके शिष्यों को पहलवान होना होता था… बहुत स्वस्थ होना पड़ता था… उनके अंदर अत्यधिक शक्ति और सामर्थ्य होती थी। अन्यथा उनके गुरू उन्हें शिष्य नहीं बनाते थे। वे कहते थे कि एड्या गबाड्या च काम न आहे … ये ऐरे गैरों को काम नहीं है। वे केवल एक ही व्यक्ति को चुनते थे। वे अपने शिष्यों को कांटों पर या कीलों पर बिठाते थे। वास्तव में उस समय कीलों की सीट होती थीं। इन शिष्यों को इन सीटों पर बिठाया जाता था। मैं झूठ नहीं बोल रही हूं आप इसके बारे में पता कर सकते हैं। वे अपने शिष्यों के साथ इस प्रकार का व्यवहार करते थे मानों वे उन्हें मार डालना चाहते थे। शिष्य बनने के लिये इसी प्रकार के दृढ़ निश्चय की आवश्यकता थी। तभी उनको शिष्य बनाया जाता था … गुरू नहीं। सुबह से शाम तक उनकी पिटाई होती रहती थी।
लेकिन आपकी गुरू माँ हैं। मैं आपको कभी मारती नहीं हूं .. मैंने कभी भी अपने किसी शिष्य को मारा नहीं। आपको आपका साक्षात्कार प्राप्त हो गया है। मैंने पूरे प्रेम व करूणा से आपकी देखभाल की है । मैंने आपको अपना प्रेम व करूणा दी है। मैंने आपसे कभी कुछ माँगा भी नहीं और न ही कभी किसी प्रकार की शिकायत की। मैंने आपके साथ अत्यंत धैर्य का परिचय दिया है। अतः आपको मेरी ही प्रतिकृति होना चाहिये या मेरी ही तरह से होना चाहिये। इस महायोग में आप सहजयोग के गुरू हैं…. आप वो गुरू नहीं हैं जो 21 हजार वर्षों में एक ही शिष्य बनाते हैं। आपको कुंडलिनी का ज्ञान इन सभी गुरूओं से अधिक है। आपके पास इन सभी गुरूओं से अधिक शक्तियाँ हैं। बिना किसी भेदभाव के आपको ये सभी शक्तियाँ दे दी गई हैं।
जो एक अच्छे वृक्ष की भाँति विकसित होगा वही गुरू कहलाने योग्य होगा। इसीलिये आपको मालूम होना चाहिये कि आपको गुरू के रूप में किस प्रकार से विकसित होना है। इसके लिये सबसे पहले सहजयोग के प्रति सभी प्रकार की भौतिक प्रवृत्तियों का त्याग कर देना चाहिये। कई सहजयोगी तो सोचते हैं कि सहजयोग को किसी विशेष उद्देश्य के लिये प्रयोग किया जाना चाहिये। सहज से हमें घर मिलना चाहिये … हमें यहाँ रहने के लिये एक घर मिल जाना चाहिये। कुछ लोग सोचते हैं कि यहाँ उन्हें मुफ्त में खाना मिलना चाहिये। इससे हमारे वैवाहिक जीवन पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ना चाहिये। हम जैसे भी चाहें अपने वैवाहिक जीवन को चलायें …. हम अत्यंत स्वार्थी और स्वकेंद्रित वैवाहिक जीवन बितायें। इसके अलावा भी लोग सोचते हैं कि उनको सहज में एक भी पैसा खर्च न करना पड़े लेकिन इससे वे हर प्रकार का लाभ ले लें। ऐसे लोगों को कभी भी गुरू बनने का नहीं सोचना चाहिये। वे चाहे कितना भी दिखावा कर लें परंतु उनका पतन हो जायेगा।
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Guru Purnima
Chelsham Road Ashram, London (England)
1981-07-19 Guru Purnima Puja, London, UK, transcribed, 56' Download subtitles: EN (1)View subtitles:
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