Shri Rama Navami Puja

Chelsham Road Ashram, London (England)

1982-04-02 Shri Rama Navami Puja, version 0, Chelsham Road, London, UK, 82' Download subtitles: CS,EN,ES,FR,IT,NL,PL,PT,RU (9)View subtitles:
Download video - mkv format (standard quality): Watch on Youtube: Listen on Soundcloud: Transcribe/Translate oTranscribeUpload subtitles

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

                                              श्री राम नवमी

 चेल्शम रोड, लंदन, इंग्लैंड, 2 अप्रैल 1982

(श्री माताजी बता रहे हैं कि नए लोगों से कैसे बात करें)

इसलिए सबसे पहले आपको ऊर्जाओं के बारे में बात करना शुरू करना चाहिए कि:  ये ऊर्जाएँ हमारे भीतर चल रही हैं और वे कैसे सक्रिय होती हैं। फिर आप तीसरी ऊर्जा की बात करते हैं जो वही है जिसने हमें विकसित किया है, और इस तरह हम यहां  हैं। और आप स्वयं  के बारे में बात करते हैं, अपने नियंत्रक के बारे में , जो आप को नियंत्रित कर रहा है, आत्मा।

इसलिए यदि आप एक अमूर्त रेखा पर चलते हैं, तो यह बहुत ही आकर्षक होगा। फिर बाद में, एक बार जब आप अपने भीतर स्थित ऊर्जाओं के बारे में बात कर चुके होते हैं, ऐसे, वैसे, यह, – तो आप देखेंगे कि, -एक बार लोग अहंकार महसूस करेंगे, “ओह, हमारे पास ये ऊर्जाएं हैं। हम इन ऊर्जाओं का उपयोग कर सकते हैं, ऐसा कर सकते हैं , वैसा कर सकते हैं। ” और फिर बाद में, आप उन्हें सहज योग तक ले जाते हैं। लेकिन शुरूआत में हम अमूर्त की बात करते हैं। क्योंकि भारतीय अलग हैं, मेरा मतलब है कि पश्चिमी लोग अलग हैं। वे धर्म से तंग आ चुके हैं, वे इस सब से थक चुके हैं। इसलिए अगर आप धर्म की बात करते हैं तो यह एक समस्या पैदा करता है। इसीलिए, शुरुआत में, वेद, जब लिखे गये थे, उन्होंने भगवान या देवताओं की बिल्कुल भी बात नहीं की थी। उन्होंने निर्माता रूपी परमात्मा के बारे में बात की, लेकिन केवल ब्रह्मदेव के बारे में। हर जगह उन्होंने बात : हिरण्यगर्भ, ब्रह्मदेव, राइट साइड की ही करी। और पूरी बात कही जाती है, मंत्र, “भु, भुर्व:, स्वाहा” है – तीन चीजें।

अब, भू वास्तव में मूलाधार है, मेरे अनुसार पृथ्वी मूलाधार है। मूलाधार चक्र और स्वयं ही मूलाधार है|

तब भुवः। भुवः वह है जिसे अंतरिक्ष [संपूर्ण सृष्टि] कहा जाता है, वह सब बनाया हुआ है, इसलिए यह ब्रह्मदेव की बात करता है। फिर स्वाहा। अग्नि की जलाने की क्षमता स्वाहा है।

यह बहुत आश्चर्य की बात है। और फिर वे मह:, तप:, तप और मह: की बात करते हैं। ” भू, भुर्व:, स्वाहा, मह: तपः”। इसलिए जब वे स्वाहा की बात करते हैं, तो वे मह: की बात करते हैं। मह: विष्णु है, जिसे आप “महान”, “अल्लाह हू अकबर” कहते हैं। और तप की। तप वह है जहाँ आपको तपस्वी बनना है, अर्थ है कि,एक व्यक्ति जो तपस्या में है – जो कि ईसा-मसीह है। और वे कहते हैं कि आपको सूर्य के माध्यम से प्रवेश करना है, यह बात आज्ञा चक्र पर है – सभी चीजें इतने अमूर्त तरीके से हैं – और फिर आप अपने मोक्ष पर पहुंच जाते हैं। इस प्रकार उन्होंने सभी चक्रों की बात की है। लेकिन अगर आप इसके अमूर्त भाग के बारे में बात करते हैं, तो लोगों को कोई आपत्ति नहीं है, वे इसे सुनेंगे, इसे इस तरह सुनेंगे कि[यह बहुत अच्छी बात है। क्योंकि इस बातचीत में कोई धर्म नहीं है|

इसलिए, आज मैं विशेष रूप से वेदों और इस हवन के बारे में बात कर रही हूं। जब हम हवन करते हैं तो यह एक यज्ञ है। ‘यज्ञ’ का अर्थ है ‘जिसके द्वारा आप जानते हैं’, ‘ज्ञ’ का अर्थ है ‘जानना’ – ‘य’ – ‘ज्ञ’। और यह वह जगह है जहाँ आप शब्द के रूप में ‘स्वाहा’ का उपयोग करते हैं। अर्थात आप आग के सिद्धांत का उपयोग करते हैं जो भी आप में गलत है उसे भस्म करने के लिए  – ‘स्वाहा’। और आप इसे भगवान के विभिन्न नामों को लेकर जागृत करते हैं। और यह राम के समय शुरू हुआ। आज राम नवमी है। मुझे कहना चाहिए कि यह शुरू नहीं हुआ था, हमें कहना चाहिए, लेकिन राम के समय में बहुत आह्वान किया गया था और वे उस समय यज्ञ करते थे। कारण यह था, लोगों को यह एहसास होना शुरू हो गया था कि कुछ उच्चतर भी है और द्रष्टाओं ने कहा कि, आपको उस उच्च स्व की पूजा करनी होगी। और उन्होंने सोचा कि सबसे अच्छी बात है यज्ञ करना।

वही बात बाईं ओर, बेशक लोगों ने भगवान की पूजा शुरू की और भगवान और उन सभी चीजों के लिए समर्पण किया। वह भक्ति है। लेकिन मुख्य रूप से उन्होंने राम के सामने जो किया वह यज्ञ, वेद थे। जिसके साथ उन्होंने विभिन्न तत्वों से प्रार्थना की – तत्वों ने हमारे चक्रों को बनाया है – और तत्वों के देवताओं के आवाहन की कोशिश की है। लेकिन वास्तव में यह एक ही बात है।

इसलिए, एक बच्चे के रूप में, राम एक बहुत महान संत के साथ अध्ययन कर रहे थे, और जब वह उनके साथ पढ़ रहे थे, तो वशिष्ठ महान संत का नाम था। और वशिष्ठ का एक आश्रम था जहाँ राम और उनके भाई अध्ययन करते थे।

(एक तरफ: साथ आओ! अंदर आओ, आगे आओ। उसे बैठने के लिए एक कुर्सी दे दो। क्या तुम, यहाँ एक सीट हो सकती है? मुझे लगता है कि गेविन जा सकते हैं, बहुत सी सीटें हैं।)

राम इन वशिष्ठ के पास अध्ययन कर रहे थे और वे पिता के यहाँ छुट्टियों के लिए आते थे। तब, उसके पास मात्र एक ही तीर से एक राक्षस को मारने की क्षमता थी। इसे एकबाणी कहा जाता है एक तीर श्री राम का पर्याप्त था। और वह एक छोटा सा बच्चा था, जो सात, आठ साल की उम्र का था। और लोग हैरान थे कि वह ऐसा कैसे कर सकता है। इसलिए जब भी वे एक यज्ञ करते थे – अब वास्तव में ये यज्ञ रीढ़ की हड्डी के अंदर के देवताओं को जगाने, आवाहन करने के लिए,किये जाते थे। और इन यज्ञों को वे उसी तरह बैठ कर करते थे  जैसे इन सभी हवनों को हम करते हैं। लेकिन उस समय, राक्षस आते थे और यज्ञों को बिगाड़ने की कोशिश करते,चूँकि यज्ञों को शुद्ध हृदय से और स्वच्छता के साथ और पवित्रता के साथ किया जाना चाहिए, इसका अपमान नहीं होना चाहिए, इसके बारे में एक प्रोटोकॉल है। जबकि उन्होंने(राक्षसों ने) सोचा था कि, “अगर हम वहां देवताओं का अपमान करते हैं, तो देवता गायब हो जाएंगे और उनके यज्ञों को समाप्त कर दिया जाएगा।” अब ये यज्ञ तब भी किए जाते थे, पुराने समय में भी, जब राम भी यहां नहीं थे। लेकिन राम के समय में भी कुछ ऐसे राक्षस थे जिन्होंने इन यज्ञों को बिगाड़ने में विशेष आनंद लिया और एक बच्चे के रूप में राम जाकर राक्षसों से उन कि रक्षा करेंगे|

और राक्षस किसी प्रकार का अज़ीब रूप ले लेते  और अदृश्य प्राणियों की तरह आते  और जानवरों की कुछ हड्डियों और चीजों को यज्ञ में डाल देते । और इससे यज्ञ का प्रभाव खराब हो जाएगा। और राम एक बालक के रूप में उसकी रक्षा करते। कल्पना कीजिए, एक बच्चे के रूप में वह ऐसा करते थे! वे यज्ञ कर रहे होंगे और वह अपने छोटे भाइयों के साथ बाहर बैठे होंगे और वे उन राक्षसों को मारेंगे जो यज्ञों को नष्ट करने की कोशिश करेंगे। यह राम का प्रारंभिक जीवन है जिसमें आप देखते हैं कि कैसे, एक बच्चे के रूप में भी, उन्होंने  तीर और धनुष में विशेषज्ञता की प्रचुरता दिखाई। इसलिए किसी भी समय आप एक प्रतिमा देखते हैं – श्री राम की प्रतिमा को यह देख कर पहचाना जाता हैं कि, क्या कोई तीर और धनुष है, तो यह राम की प्रतिमा है।

अब उनके इस पृथ्वी पर आने से हमारी राइट साइड का विकास हुआ और इसलिए यज्ञ भी राइट साइड में थीं। क्योंकि सबसे पहले जब मानव इस पृथ्वी पर आया था, तो वे उन सभी जानवरों से भयभीत थे जो उन पर  आक्रमण करेंगे,और सभी प्रकार के भयानक राक्षस वगैरह और नकारात्मक शक्तियां उन्हें परेशान करेगी। इसलिए, उस राज्य में उन्हें एक राजा, एक शासक, जो एक आदर्श राजा हो, बनाने की जरूरत थी और वह धर्म के नियमों के अनुसार शासन करेगा।

इसलिए वह उस युग का प्रभारी था, जिसे हम सतयुग कहते हैं | आप ऐसा कह सकते हैं, लेकिन वास्तव में, वह त्रेता युग में यहाँ थे। वह समय जब वह यहाँ थे, वह त्रेता युग और कृष्ण द्वापर युग के समय आए थे। और आज वह समय है, जब मैं आयी थी कलियुग। लेकिन अब, आज का समय, कृत युग का है, वह युग जब कि कार्य किया जाएगा : ’कृत’ का अर्थ है, “काम किया जाएगा”। यह वह समय है जहां काम किया जाएगा। तो कैसे चीजें एक से दूसरे में चली गई हैं?

अब त्रेता युग में जब श्री राम आए, तो राजसत्ता और शासन का विचार शुरू हुआ। तो सबसे बड़ा जोर लोगों की सदभावना पर था। लोगों को अन्य लोगों के लिए और राजा के लिए, और मानवता की भलाई के लिए;सदभाव (शुद्ध इच्छा)रखना था:। इच्छा , वह राइट साइड है।

तो लोगों में सदभावना कैसे पैदा करें? पहले नेता को बलिदान करना होगा और दिखाना होगा कि लोगों की नैतिकता और सदभावना को बनाए रखने के लिए वह कितना त्याग कर सकते हैं। तो श्री राम के आगमन से दायीं बाजू Right Side का निर्माण हुआ क्योंकि उन्होंने लोगों में जागरूकता पैदा करने का एक रास्ता दिखाया कि उन्हें शासित होना चाहिए, कि उन्हें अराजकतावादी नहीं होना चाहिए, एक प्रमुख होना चाहिए जो एक समूह की व्यवस्था करने, तालमेल करने , कार्यान्वित करने में सक्षम होना चाहिए।

आप देखें, जब हम एक राजा के बारे में सोचते हैं तो हम उसे बेदखल करना चाहते हैं क्योंकि या तो हमें शासित होने के विचार पसंद नहीं आता हैं। क्योंकि वह शायद एक अच्छा राजा नहीं है, या वह उन लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व नहीं करता है जो एक सर्व सामान्य इच्छा है जो उसे राजा बनाते हैं जो उस सदभावना को बनाये रखने के लिए शासन करता है । यह आपकी सदभावना की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है।

इसलिए जब आप एक कानून बनाते हैं, तो यह सभी सामान्य लोगों की अभिव्यक्ति, सामान्य अभिव्यक्ति भी होती है, आम भावना से कि उन्हें कानून का पालन करना चाहिए। यह आप को इस लिए प्राप्त नहीं हुआ है चूँकि आप एक दास हैं, या आपको अधीन होना है, या आपको नीचे रखा जाना है, लेकिन यह केवल आप लोगों की सर्व सामान्य इच्छा है, जो अच्छा है। सभी लोगों की इच्छा जो अच्छाई, धार्मिकता है, श्री राम के रूप में अवतरित हुई है और वह उस इच्छा को पूरा करता है। क्योंकि, कोई भी एक व्यक्ति यह कहना शुरू कर सकता है कि, “यह अच्छा नहीं है,” “यह अच्छा नहीं है।” एक व्यक्ति चीजों के बारे में एक अलग दृष्टिकोण ले सकता है। लेकिन आपके पास उस अच्छाई का कुछ प्रतीक होना चाहिए जो किसी पर रखा गया हो। और उन प्रतीकों को आपकी धार्मिकता, आपकी भलाई के प्रतीक के रूप में बनाया गया था, ताकि आप खुद को बचा सकें! मान लीजिए, आज, कोई आकर आप पर आघात करता है। अब आप महसूस कर सकते हैं कि किसी के द्वारा पीटा जाना या किसी दूसरे के द्वारा मृत्यु को प्राप्त होना कितना बुरा है, इसलिए आप तय करते हैं कि,  आपकी रक्षा करने वाला कानून होना चाहिए। लेकिन कल आप खुद भी ऐसा ही कर सकते हैं। इसलिए आप अपनी सदभावना को प्रदर्शित करने के लिए क्या करते हैं, इसे राज्य या एक राजा या एक शासी निकाय के रूप में प्रस्तुत करते हैं। इसलिए, चूँकि सरकार प्रतिनिधित्व करती है,  उसे प्रतिनिधित्व भी  करना चाहिए, यह दो तरफ़ा है । ऐसा नहीं है कि यह हमेशा प्रतिनिधित्व करता है। यह बिल्कुल नहीं भी करता हुआ हो सकता है, संभवतः नहीं। लेकिन, यह सरकार स्वयं आप में स्थित अच्छाई का, आप की पवित्रता का, शुद्ध रहने कि आप कि इच्छाशक्ति का, और आपकी सुरक्षित रहने कि भावना का प्रतिनिधित्व करे । और यह कि आपको भी इसका पालन करना चाहिए। यह एक बहुत ही आपसी बात है।

लेकिन ऐसा होता है, कि एक बार आप वैसे ही ऐसे किसी को चुन लेते हैं, या  बना देते हैं, या नियुक्त कर देते हैं, साधारणतया वह अहंकार यात्रा में चला जाता है। कि यह  एक साधारण बात है यह बिल्कुल सरल अहंकार यात्रा है। सरकार अहंकार यात्रा में शामिल हो जाती है, लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि लोग कैसे व्यवहार करते हैं। वे एक प्रधानमंत्री का चुनाव करते हैं, उनका समर्थन करते हैं, और अचानक आप पाते हैं कि प्रधानमंत्री क्रूर व्यवहार करते हैं और आप समझ नहीं पाते – “हमने किसी प्रधानमंत्री को यह सोचकर चुना है कि वह हमारा भला करेगा।” आप समझ सकते हैं। यह संभव है। और फिर क्रांतियां होती हैं जबकि लोग विद्रोह करते हैं, उससे लड़ते हैं। फिर से लोगों की इच्छा इससे लड़ती है और इसे ठीक बनाती है।

(एक तरफ: आओ, यहाँ आओ, फिर आगे आओ …)

इसलिए हमें कुछ निरपेक्ष पाना चाहिए क्योंकि ये सभी मूल्य हर समय बदल रहे हैं क्या ऐसा नहीं है?

हम सोचते हैं कि इस सरकार ने इतना अच्छा नहीं किया – उदाहरण के लिए, हम ऐसा सोचते हैं – इसलिए हम इस सरकार को गिराना चाहते हैं। फिर हम एक दूसरी वाली लाते हैं और पाते हैं कि वैसी ही बात हो रही है। देखिये, आप जो भी लाते हैं चाहे एक कम्युनिस्ट को लाते हैं या आप समाजवादी को लाते हैं या आप एक लोकतांत्रिक को लाते हैं या आपके पास एक राजतंत्र है, जो कुछ भी आपके पास है! लेकिन फिर भी, वास्तव में ऐसा होता है कि, ये सभी चीजें जो उभर आती हैं और चली जाती हैं …

(एक तरफ: गेविन यहां आओ। क्या आप थोड़ा आगे बढ़ सकते हैं ताकि हर किसी को बैठाया जा सके?)

… ये सभी परिवर्तन जो होते हैं,  आदमी में एक भावना पैदा करते हैं कि हमें अराजकतावादी होना चाहिए। हमारी कोई सरकार क्यों होनी चाहिए? हमारे पास कोई राजा क्यों होना चाहिए? हम पर किसी को शासन क्यों करना चाहिए? क्योंकि आप पाते हैं कि जो व्यक्ति शासन कर रहा है वह मापदंडों पर खरा नहीं है और वह आपको धोखा देने की कोशिश कर रहा है। उस स्थिति में आपके पास कुछ पूर्ण मानक होने चाहिए।

यदि आपके पास एक पूर्ण मानक है तो आप हमेशा आकलन कर सकते हैं कि यह राजा सही रास्ते से भटक रहा है, वह नहीं कर रहा है जो एक राजा को करना चाहिए।

एक राजा को राम जैसा बनना पड़ता है। उसे राम जैसा बनना है। आपकी इच्छा, आपकी सदभावना, उचित निर्णय की समझ, निष्पक्ष कार्य और धार्मिकता का प्रतिनिधित्व करना। यदि राजा धर्मी नहीं है तो आपकी सामूहिक सदभावना राजा के खिलाफ जाएगी।

अब तुम एक के बाद दूसरे को हटाते जाते हो। कहो, जैसे मैंने अब फ्रांस में देखा है: हमारे पास एक प्रकार का प्रधान मंत्री था। उसने बहुत सारे काम किए जो अच्छे नहीं थे इसलिए उसे फेंक दिया गया। तो आपके पास एक और ही तरह का था। अब वह एक और ही तरह के काम कर रहा है, इसलिए उसे फेंक दिया जाएगा। और हम बस खेल करते जा रहे हैं देखिये। जैसे ,सबसे पहले हम रखते हैं लेबर सरकार। हम इसे पसंद नहीं करते तो फिर हमारे पास एक और सरकार है, कंजर्वेटिव सरकार है। हम इसे भी पसंद नहीं करते इसे दूर फेंक दो! हर समय इसके साथ खेलते रहें। लेकिन निश्चित रूप से सापेक्षता में हम इसमें सुधार कर रहे हैं। हम अधिक जागरूक हुए हैं, इस जनता के मूल्य को समझ रहे हैं, और जनता भी समझ रही है। लेकिन तब जब बहुत से ऐसे लोग आ जाते हैं जो नकारात्मक हैं, वे भी इच्छाशक्ति, बहुत ही निम्न सामूहिक इच्छा को ले आते हैं। और लोग इन निरंकुश लोगों के साथ खुद को पहचानना शुरू करते हैं या, आप कह सकते हैं, वे लोग जो अहं-उन्मुख हैं, जिनके कोई नैतिक मूल्य नहीं हैं, जिन्हें ईश्वर का कोई डर नहीं है, जो धर्म को अस्वीकार करते हैं, जो उत्क्रांति को नकारते हैं और सरकार ऐसे व्यवहार करना शुरू कर देती है कि,  आप चकित हो जाते हैं – यह कैसी सरकार है? चिली और अर्जेंटीना की तरह,  जिस तरह से सरकार व्यवहार कर रही है और लोगों को नीचे कर रही है। ये सब बातें हो रही हैं। आप नहीं जानते यह एक सापेक्ष शब्दावली है। अल साल्वाडोर की तरह, आपको नहीं पता कि अब वहां क्या करना है – किसका समर्थन करना है।  अमेरिकियों का समर्थन करें, या रूसियों का समर्थन करें और वह सब। अब, इन परिस्थितियों में एक सहज योगी खड़ा हो सकता है और कह सकता है कि, “अब, क्या करना है? क्या हमें इसमें शामिल होना चाहिए या उसमे ? ” सब बेकार की बात है। यह सिर्फ एक खेल चल रहा है उन्हें अपना सिर फोड़ने दो। वे किसी काम के नहीं हैं। बेकार लोग। इसलिए आप इन समस्याओं को हल नहीं कर सकते हैं और आप से  अपेक्षा भी नहीं कि जाती है कि इनका हल करें। उन्हें अपना बोध प्राप्त करना चाहिए और परमेश्वर के राज्य की स्थापना करनी चाहिए। ताकि,  वास्तव में राम इस पृथ्वी पर शासन करें न कि ये भयानक राजा जो हर दिन अपनी नैतिकता बदलते हैं, जो हर दिन अपनी सोच बदलते हैं,  कभी-कभी जिनकी इच्छा किसी भौतिकतावाद के लिए होती है।

जैसा कि मैं अब हमारे देश [यूके] में कहूंगी कि हमने सोचा था कि हमारे पास श्रीमती थैचर होंगी। अच्छा, बहुत अच्छा, वह आ रही हैं, बहुत अच्छा है मुझे कहना चाहिए, कुछ अच्छी चीजें जो वह कह रही है, जैसे कि आत्म-संयम वगैरह, जो वह बातें कर रही हैं,  अच्छी बातें। लेकिन उनके खुद के बारे में क्या ! क्या वह स्वयं इसका पालन कर रही हैं | श्री राम ने न केवल यह बताया कि अच्छा क्या था, लेकिन उन्होंने उसका पालन किया। उन्होंने उसके लिए बलिदान दिया और उन्होंने उस सत्यवादी इच्छा के शुद्ध प्रतीक के रूप में अपना प्रतीक स्थापित किया, जो लोगों के भीतर है, जो सामूहिक सत्यवादी इच्छा है।

अब, उदाहरण के लिए, आप स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि अहंकार उन्मुख चीजें कैसे काम करती हैं, सबसे पहले, हमारे द्वारा गलत पहचान के कारण। अब अगर आप कम्युनिस्ट हैं, तो आपको कम्युनिस्ट बनना होगा। आप लोकतांत्रिक तरीकों और साम्यवाद के बीच समझौता नहीं कर सकते। वे कोई एकीकरण नहीं ढूँढ सकते है वे सोचते हैं कि अगर आपको यह होना है तो आपको यही होना चाहिए। अगर आपको वह होना है तो आपको बिल्कुल वही होना पड़ेगा। लेकिन, सहज योग में, जो आप पाते हैं उन दोनों का एकीकरण  हैं क्योंकि आपके पास पूरी पूंजी है और अब इसे वितरित करना है।
यहाँ यह पूर्णत: एकीकरण है। ये सभी वाद the isms ’और वे सभी,  जो कृत्रिम हैं, मन के हैं, बस मन कि एक कल्पना भर है, जो है, जो कुछ भी मानव निर्मित है,  कृत्रिम है, आपको पता है। लेकिन ईश्वर ने जो बनाया है वह सब एकीकृत है। कि, जो कुछ भी तुम्हारे अंदर प्राप्त है, उसे तुम्हे दूसरों को देना होगा।

अब देखिये, प्रशासन के लिए भी, सहज योग के बाद क्या होता है। जैसे, मैं तुम्हारी माँ हूँ, यहाँ, बैठी। आप चाहते हैं कि, मैं आपका मार्गदर्शन करूँ। आप मुझे अपने पर शासन करने के लिए पसंद करते हैं।मेरे द्वारा सुधार करने के लिए आप मुझे पसंद करते हैं, मेरे द्वारा डांटना आप पसंद करते हैं और यहां तक ​​कि आपके जीवन में सुधार को सुनिश्चित करने को। माना कि, मैं कहती हूं, ” ठीक है, मैं छोडती हूँ। मैं आपको परेशान नहीं करना चाहती! ” आपको पसंद नहीं आएगा। आप में से कोई भी ऐसी स्थिति को पसंद नहीं करेगा जहाँ मैं कहूँ, “ठीक है तुम एक गए- गुजरे मामले हो, मुझे कुछ नहीं करना है। तुम बाहर जाओ।” ऐसी स्थिति को कोई भी पसंद नहीं करेगा। आप चाहते हैं कि मैं आपको शासन दूं। आप चाहते हैं कि मैं आपकी देखभाल करूं। आपको वह पसंद आया। स्वचालित रूप से आप इसे पसंद करने लगे हैं। कोई दबाव नहीं है, लेकिन आप मेरा वर्चस्व चाहते हैं। आप चाहते हैं कि मैं आप पर हावी हो जाऊं। आप चाहते हैं कि मेरी सभी इच्छाएँ हावी हों – स्वतः। आप ऐसा क्यों महसूस करते हैं, “यह ठीक है, यह बहुत अच्छा है अगर माँ मुझमें दिलचस्पी लेती है, मुझे सही करती है। यह एक विशेषाधिकार है ” आप ऐसा क्यों सोचते हैं? क्योंकि उसके द्वारा एक व्यापक हित किया जाता है। यह आप में बनाया गया एक व्यापक हित है क्योंकि आप एकीकृत हो गए हैं। आपका शरीर, आपका मन और आपकी आत्मा, ये सभी उसी तरह सोचते हैं। वे सभी एक ही बात चाहते हैं। कोई अंतर नहीं है। एक बार एकीकरण होने के बाद आप पाएंगे कि सहज योग जीवन का आनंद लेने का सबसे आसान तरीका है। लेकिन अगर ऐसा नहीं है, तो यह नहीं है। उदाहरण के लिए, यदि आप एक आलसी व्यक्ति हैं, उदाहरण के लिए कहें, की आप बहुत गर्म स्वभाव के व्यक्ति हैं या आप एक दौगले व्यक्ति हैं, या आप खुद के साथ चाल खेल रहे हैं, आप खेल खेल रहे हैं, तो आप सहज योग को पसंद नहीं करेंगे। जब तक ये स्थितियां आप में हैं आप सहज योग को पसंद नहीं करेंगे। लेकिन एक बार जब यह स्थिति दूर हो जाती है, तो आप इसे पसंद करेंगे क्योंकि तब आपको पता चलेगा कि आपकी आत्मा के लिए जो भी अच्छा है वह आप सभी और सभी लोगों की भलाई के लिए है। एक बार जब यह भलाई अच्छी तरह से आ जाती है, तो हर कोई बिल्कुल पोषित और ताजा महसूस करता है।

इसलिए संचालन कार्य सुखद है। सुधार का हिस्सा और भी सुखद है। और यह कि  अपने भीतर एक ऐसी महान भावना है कि, आप अपनी माँ के चित्त में हैं।  “हाँ, मेरे साथ कुछ भी गलत नहीं होगा। वह मेरी देखभाल करेगी “वह मेरी देखभाल करने के लिए है।” लेकिन अहं की समस्याओं के कारण यह एकीकरण बहुत देर से घटित होता है।

 गलत प्रकार के लोगों के द्वारा को आपको संचालित किये जाने के कारण आपने अहंकार बनाया है। आपके बचपन से ही आपके पास बुरे माता-पिता हो सकते हैं जिन्होंने परमात्मा के बारे में, जीवन की अच्छी चीजों के बारे में कभी बात नहीं की। वे स्वयं त्यागमय जीवन नहीं जीते थे। बहुत ही स्व केन्द्रित माता-पिता ऐसी समस्या पैदा कर सकते हैं। उन्होंने आपको कभी भी सही प्रकार का जीवन नहीं दिया, एक उचित मूल्य प्रणाली जो होनी चाहिए थी। उन्होंने कभी यह शिक्षा नहीं दी कि जीवन में सत्यवादिता, सद्गुणों का आनंद कैसे उठाया जाए। संभवतः, बाद में, जिस देश में आप पैदा हुए हैं, दूसरे लोग जिनसे आप घिरे हैं, उन्होंने भी ऐसा किया होगा। इसके अलावा, आपकी सरकार, जिसे भी आपने जाना है, उसने ऐसा किया होगा। इसलिए जब ये चीजें बदल जाती हैं, जब आप पाते हैं कि आपने अपने भीतर उस तरह का एकीकरण हासिल कर लिया है कि: जो आपके शरीर को पसंद है वह आपकी आत्मा के लिए भी अच्छा है।

उदाहरण के लिए कहें, मैं खुद कुछ चीजों को पसंद नहीं करती। मुझे शराब पीना पसंद नहीं है, मैं इसे पसंद नहीं करती। मैं इसे पसंद नहीं करती कोई मुझे लुभा नहीं सकता। मेरा मतलब है, प्रलोभन का कोई सवाल नहीं है, मैं बस पसंद नहीं करती। मैं  स्वत: ही उन चीजों से नफरत करूंगी जो वास्तव में मेरी आत्मा के लिए खराब हैं । मुझे खुद को यह बताने की जरूरत नहीं होती है क्योंकि यह गुण वहीं पर है। झूठ बोलना मुझे पसंद नहीं है क्योंकि यह मुझे हानि करता है। मुझे यह पसंद नहीं है| 

इस एकीकरण के होते ही जो कुछ भी आपकी आत्मा के लिए अच्छा है, स्वचालित रूप से काम करेगा और यही आज सहज योग का काम है। इसलिए मैंने कहा कि यह कृत युग है, किया जाना है। और इस एकीकरण को अपने भीतर हासिल किया जाना चाहिए।

इसलिए कभी-कभी आपको अपने शरीर को इस स्तर पर लाना पड़ता है। हो सकता है कि आप कुछ भूतों के प्रभाव में हों इसलिए आपका शरीर आपकी मदद नहीं करता है। इसे संभव बनाने के लिए सहज योग के बाद थोड़ा तपस्विता या तपस्या की जरूरत है। और फिर एक बार जब आप इसका आनंद लेना शुरू करते हैं तो आप इसे पसंद करते हैं। जैसे कार चलाना – शुरुआत में यह मुश्किल है। या तैरना, कुछ भी, जब आप कोशिश करते हैं शुरुआत में यह कठिन होता है । जब मैं कहती हूं, “आपने जो कुछ भी अपने अतीत में किया है उसे अब आप भूल जाएँ और अब जो नई चीजों को अपनाएं। आपको यह करना है।”

तो आपको अपना दिमाग अपने पूरे जोश के साथ लगाना होगा। वह, “ठीक है, अगर मेरा शरीर मेरी मदद नहीं करता है – ठीक है – तो अब मैं अपने शरीर को बेहतर बनाने की कोशिश करुंगा क्योंकि मैं यह शरीर नहीं हूं।” “अगर मेरा मन मेरी मदद नहीं कर रहा है, तो मुझे अपने मन को सुधारना चाहिए। अगर मेरी, जिसे आप बुद्धि ’कहते हैं, वह उत्थान में बाधा बनती है,  मुझे अपनी बुद्धि को ठिकाने लगाना होगा क्योंकि आखिरकार मुझे एकीकृत होना है। अगर मैं एकीकृत नहीं हूं तो मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगने वाला है और न ही मैं अपने या दूसरों के लिए कुछ अच्छा कर पाऊंगा। तो फिर मैं यहाँ क्यों हूँ? मैं खुद को नष्ट करने की कोशिश क्यों कर रहा हूं?” 

लेकिन जब आप बिखर जाते हैं, तो आप हैरान होंगे। आपकी एक क्रिया आपकी दूसरी क्रिया को नष्ट कर देगी और दूसरी क्रिया तीसरी क्रिया को नष्ट कर देगी – जब आप विघटित होते हैं। मैं आपको एक उदाहरण दूंगी: मान लीजिए कि अब मैं यहां बैठी हूं और कोई मुझे बताता है कि यह आपको जला देगा। यह मेरी अपनी माया है। लेकिन शरीर खुद को जलाना चाहता है। यह कहता है, “नहीं, ठीक है, यह मत सुनो, बस इसको खुद जलने दो।” अब, जब मैं यह कहती हूं तो यह बेतुका लगता है। लेकिन, माना कि, मन कहता है कि आपको शराब नहीं लेनी चाहिए, लेकिन फिर भी आप शराब खाने में जाएंगे, तो आप विघटित ही हैं। धीरे-धीरे एक बार जब आप अपने शरीर की बहुत अधिक सुनना शुरू कर देते हैं, तो आपका मन विरोध करना बंद कर देता है। यह बस छोड़ देता है। आपके द्वारा किए जाने वाले हर काम में, यदि आप एकीकृत हैं, तो आप चकित होंगे कि आप वास्तव में सक्रिय  हो जाएंगे।

एकीकरण कुछ और नहीं बल्कि आपका आत्मा से पूर्ण संबंध है। आत्मा उसमें बहने लगती है। जीवन के हर पड़ाव में आप चकित होंगे कि अगर आप एकीकृत हैं तो आप कितने सक्रिय बन जाएंगे। बस अपनी आत्मा के साथ संबंध बिल्कुल हासिल किया जाना है। जब भी आप कुछ सोचते हैं, [अपने आप से पूछें] “क्या यह मेरी आत्मा के लिए अच्छा है?”

कुछ लोगों को यह सोचने की आदत होती है कि आध्यात्मिक जीवन ऐसा है कि आप कहीं भी हवा में लटके हुए रहते हैं और रोज़मर्रा के जीवन से कोई संबंध नहीं है। बहुत से लोग ऐसा ही सोचते हैं। उन्हें लगता है कि इस तरह के आदमी को किसी पेड़ या किसी चीज़ पर लटका हुआ एक पतला, दुखी प्राणी होना चाहिए (हंसते हुए) और बिल्कुल पागल अवस्था या वैसी ही किसी अवस्था में होना चाहिए। कि वह सारी दुनिया से भयभीत है; जो किसी से बात नहीं कर सकता, जो इतना अनोखा है कि वह वैरागी बन जाए। इन बेतुके विचारों को सहज योगियों द्वारा त्याग दिया जाना चाहिए।

आपको वहां पूरी तरह होना है, उन सभी के बीच बिल्कुल। लेकिन कुछ: आपको दुर्लभ, एक अलग प्रकार, एक अद्वितीय व्यक्तित्व होना चाहिए। आपको इन सभी चल रही चीजों के साथ होना चाहिए।

अब लोग भयभीत हैं, आप जानते हैं, सहज योगियों से भी। वे सहज योगियों से भयभीत हैं। [अगर] वे किसी को नकारात्मक देखते हैं, तो वे कहते हैं, “ओह, यह बात, वह बात।” अब उस व्यक्ति से झगड़ा कर लो। झगड़ लो। “आप ऐसा करने की हिम्मत कैसे कर सकते हैं, ऐसी बात? आप सहज योगी हैं! आएं! इससे तुम्हारा क्या मतलब?” आपको इससे लड़ना होगा। जब तक संभव हो आपको किसी व्यक्ति को उबारने की कोशिश करनी चाहिए, उससे उस तरीके से बात करें।

इसका दूसरा पक्ष यह है कि जब आप दूसरों से बात करते हैं, जब वे आपके पास आते हैं, तब आपके भीतर एक जबरदस्त गंभीरता होनी चाहिए। यदि आप उस गंभीरता  के साथ कर रहे हैं तो लोगों को पता चल जाएगा कि आप ईमानदारी के साथ कर रहे हैं। जब आप किसी व्यक्ति से बात करते हैं, तो उन्हें पता होना चाहिए कि वहाँ ईमानदारी है, कि आपका दिल वहाँ है। उदाहरण के लिए, आप उस व्यक्ति से बहुत मधुर तरीके से बात कर सकते हैं, लेकिन आपका दिल नहीं भी हो सकता है और वह व्यक्ति सोच सकता है, “ओह, वह सिर्फ चुनाव चाह रहा है।” ठीक है? लेकिन अगर आप किसी से गंभीरता से बात करेंगे तो आप कहेंगे, “आप ऐसा कैसे कर सकते हैं?” क्या आप स्वयं नहीं देख सकते हैं? क्या आप इसे कार्यान्वित नहीं कर सकते? यह ऐसा ही है। आप इसके लिए यहां हैं। ” अब ऐसा कहने में, आपकी ईमानदारी, जो आपके दिल से आ रही है, दिखना चाहिए, और यही श्री राम का चरित्र है, जैसे कि वे थे:  हृदय के दाहिनी तरफ, जिसका तात्पर्य है हृदय की गतिविधि।

क्या आप समझते हैं कि, जहाँ कबीरा ने कहा है, “मन ममता को थिर कर लूँ।” (अर्थ) “मैं अपने हृदय की करुणा – मन – करुणा को स्थिर करूंगा। “और पांच ही तत्व मिलाऊ,” (अर्थ) “और उन्हें पांच तत्वों में डाल दूँ।”

आप देखिए, उसी तरह, जब आप बाएं हृदय में होते हैं, तो यह आपकी गंभीरता है। यह आपके दिल की बात है। लेकिन हार्दिक बात का, क्या उपयोग है? आप देखते हैं, कई सहज योगी हैं जो वास्तव में महसूस करते हैं कि, यह दुनिया भयानक है और कुछ किया जाना चाहिए, सहज योग को प्रयोग में लाना होगा।लेकिन आप में से कितने उसे बिल्कुल कार्रवाई में लाते हैं? बिलकुल कार्यरत ? उसके बिना, आपके राम के तत्व में सुधार नहीं किया जा सकता है। राम तत्व में तभी सुधर हो सकता है जब आप श्री राम ने जैसे किया उसी तरह चीज़ों को कारवाई में डालते हैं।

इसलिए मनुष्य के उत्थान में, जब वह राम के स्थान पर आया, तो राम का आगमन मध्य में नहीं था, बल्कि दाईं ओर था। वह एक तरफ हट गये। इतना, कि वह अपने अतीत के बारे में भूल गये। उन्होंने कभी उल्लेख नहीं किया कि वह अवतार हैं। उन्होने कभी अपने पिता को नहीं बताया। उन्होने कभी अपनी मां को नहीं बताया। उन्होंने कभी किसी को नहीं बताया कि वह एक अवतार थे। बेशक यह स्पष्ट था कि वह थे। उनके भाई को इसके बारे में पता था। अब उनके दो भाई थे। बहुत ही रोचक। मेरा मतलब है कि उनके अन्य भाई भी थे, लेकिन भरत और एक और लक्ष्मण थे। ये दोनों भाई उसके साथ थे। अब वे इंसान के दो पहलू दिखाते हैं।

एक लक्ष्मण थे और वह उस उग्र प्रकार के थे, आप देखिए। वह राम के प्रति कोई दुर्व्यवहार सहन नहीं कर सकते थे। वह किसी के द्वारा श्री राम के साथ बहुत सांसारिक प्रकार से बात करना सहन नहीं कर सकते थे। और जो श्री राम के बारे में कुछ भी कहने की कोशिश करता था, वह इन सभी लोगों से इतना नाराज हो जाते थे कि वह किसी भी व्यक्ति पर बिजली कि तरह एक बड़ी गड़गड़ाहट कि तरह से उभर आते थे। यहां तक ​​कि परशुराम, जो श्री राम के समकालीन अवतार थे,। इसके बारे में एक बहुत ही दिलचस्प कहानी है। लेकिन, वह किसी भी तरह से परशुराम को सहन नहीं कर सके … (रिकॉर्डिंग में तोड़)

वह शेषनाग है जैसा वे इसे कहते हैं। भवसागर में सोता सर्प। जिस पर श्री विष्णु विश्राम करते हैं। उसी शेषनाग ने श्री लक्ष्मण के रूप में जन्म लिया था। अब एक पश्चिमी दिमाग के लिए, उनके लिए, साँप एक प्रकार के होते हैं … यदि आप उनसे साँपों के बारे में बात करते हैं, उनके लिए, वे केवल एडम और ईव सांप को ही जानते हैं बस , तो वे कुछ भी नहीं समझते हैं। और वे समझ नहीं सकते कि लोग सांपों की पूजा क्यों करते हैं। तुम देखो, सांप जैसे कोबरा वगैरह हैं, वे राजाओं की तरह हैं। वे भूमिगत के राजा हैं। और शेषनाग वही है जो पूरे ब्रह्मांड का भार उठाते है। इसलिए इस शेषनाग की पूजा की जाती है, जैसे भारत के कई गाँवों में आज भी कोबरा की पूजा की जाती है, क्योंकि वे वहाँ किसी को परेशान नहीं करते हैं। क्योंकि वे देवताओं की तरह हैं, भारत में पूजे जाते हैं। और कभी-कभार वे करते हैं, लेकिन ज्यादातर वे एक अच्छे धार्मिक व्यक्ति को नहीं काटते हैं।

साईं नाथ की एक कहानी है जहाँ सपेरे को श्री साईं नाथ को मारने के लिए बहुत सारे पैसे दिए गए थे। और चूँकि साईं नाथ, रात में, अचानक स्वयं के द्वारा निर्मित झूले पर चढ़ जाते थे, जो जमीन से लगभग तीस फीट ऊपर था। भगवान जानता है, किसी को नहीं पता था कि वह वहां कैसे जाते थे। लेकिन वे उन्हें वहाँ सोते हुए पाते थे। (हंसते हुए)। इसलिए इस सपेरे ने इस सांप को लिया और उसने सांप को साईं नाथ पर डाल दिया। और सांप वहां चला गया, और साईं नाथ ने उससे बात की और उन्होने कहा, “हे भगवान, आप इतने लंबे समय के बाद मुझसे मिलने आए हैं।आप को क्या काम है?

” सांप ने कहा, “इस भयानक सपेरे  ने मुझे आपको काटने के लिए कहा है। इसलिए मैं आपको बताता हूं कि आप इन लोगों से सावधान रहें। ” 

सपेरा विस्मय से देख रहा था कि वह उससे बात कर रहे हैं! 

उन्होंने कहा, “ठीक है, अब तुम जाओ।” 

उन्होने उससे बात की। ये सदियों पुराने सांप हैं, आप देखिए। तो साँप चला गया और सपेरे को डस लिया। (हँसी)। लेकिन देखिये, फिर वह अपने झूले से नीचे आये, और उन्होने उसका जहर चूसा और उसे फेंक दिया। ” उन्होंने सपेरे से कहा, “क्योंकि, आखिरकार, तुम देखो, सांप तुम से नाराज है क्योंकि तुमने ऐसी कोशिश की थी।” तो उन्होंने ने विष खींच लिया। ऐसी है यह करुणा। और उन्होंने उसका जहर बाहर निकाल दिया और वह व्यक्ति पूरी तरह से बदल गया और उसने कहा, “अब मैं सभी लोगों को बताने जा रहा हूँ कि,जो इन ब्राह्मणों ने मारने की कोशिश की,” कि वे श्री साई नाथ को मारना चाहते थे। और क्यों? वे इस आदमी (साईंनाथ)से इतने भयभीत क्यों थे? जबकि वे तो गाँव के बाहर ही रहते थे फिर भी वे उनसे बहुत डरते थे क्योंकि वे लोग परमेश्वर के नाम पर सभी गलत काम कर रहे थे। इसलिए वे सभी भयभीत थे कि कहीं वे लोग उजागर नहीं हो जाएं।

तो, यह ऐसा ही है, जो वह शेषनाग  पर सोता है। और शेषनाग वही है जो कभी-कभी सहज योगियों में व्यक्त होते है, मैंने क्रोध के रूप में देखा है, जब आप गैर-प्रोटोकॉल होने की कोशिश करते हैं या जब आप विचित्र होने की कोशिश करते हैं या आप उचित व्यवहार नहीं करते हैं। यह उनमें शेषनाग है। जिसकी कभी-कभी जरूरत भी होती है। आपको कभी-कभी शेषा बनना होगा क्योंकि अन्यथा लोग दुर्व्यवहार करना शुरू कर देंगे और इससे उन्हें नुकसान होगा। ऐसा नहीं है कि मुझे नुकसान पहुँचेगा, लेकिन उन्हें नुकसान होगा। तो उस तरह के स्वभाव की भी जरूरत है।

लेकिन अन्य एक स्वभाव बहुत दिलचस्प है, भाई भरत का। उन्होंने प्रदर्शित किया  कि जिस तरह श्री राम ने अपनी माँ कि व्यग्रता के कारण उन्हें राज्य दिया। और उसे पता नहीं था कि अब क्या करना है। इसलिए वह वापस राम के पास गये और उन्होने कहा, “आप अपना राज्य वापस ले लो। मुझे कुछ नहीं चाहिए आप को ही शासन करना चाहिए। मैं क्यों लूँ ? “

 तो राम ने कहा, ” ठीक है, तुम वहां राज्य के प्रभारी बनो। मुझे अपने पिता की बात माननी होगी, मुझे अपनी माँ की बात माननी होगी क्योंकि मैंने उन्हें एक वचन दिया है। ”

इसलिए श्री राम का एक और महान गुण है कि, वादा किया गया तो निभाना चाहिए। यह एक और गुण है जो हमारे पास होना चाहिए, यदि आपने कुछ भी वादा किया है, तो आपको इसे निभाना होगा। यदि आपने कहा है, “मैं यह करूँगा,”, तो आपको यह करना ही चाहिए। आपको इससे बचने के बहाने नहीं ढूंढने चाहिए। आपने जिन चीज़ों का वादा किया है, उन्हें करने से बचना यह ईश्वर विरोधी गतिविधि है। आपके देवता कभी प्रसन्न नहीं होंगे। आपको यह देखना होगा कि, आपने जो भी वादा किया है वैसा आपको अवश्य करना चाहिए।

अब, जब भरत को उनके द्वारा वापस भेजा गया था, उसने कहा, “ठीक है, मुझे अपनी खडाऊं दे दो जो मैं वहाँ ले जाऊंगा। और मैं उनका उपयोग ऐसे करूंगा जैसे कि आप के वहां होने का प्रतीक है। और उसने उन खडाऊं को सिंहासन पर रख दिया और उसने उस राज्य पर शासन किया और उसकी देखभाल की – भरत ने। 

हालाँकि जब वे राम को मिलने जा रहे थे तब लक्ष्मण ने उन्हें आते देखा और उन्होंने कहा, “यह देखो! वह अब आप पर आक्रमण करने के लिए यहाँ आ रहा है! उसने आपको राज्य से निकाल दिया है और अब वह आप पर आक्रमण करने आ रहा है। ” तो ऐसा भी है, मैंने सहज योगियों के बीच देखा है, वह ऐसा है कि,  सहज योगी जो शेष की तरह हैं, अन्य सहज योगियों की अच्छाई भी नहीं देख पाते हैं, जो बहुत अच्छे लोग हैं, अत्यंत त्याग करने वाले, अच्छे लोग हैं, लेकिन उनके इरादे नहीं  समझे जाते, उन्हें गलत समझा जाता है, जो एक बहुत दुखद बात है। आप अन्य  लोगों के इरादों को भी समझना चाहिए, जो इतने गर्म स्वभाव के नहीं भी हो सकते हैं, वे बहुत अधिक क्रोधित नहीं हो सकते हैं लेकिन उनके इरादे बहुत अच्छे हैं। वे वास्तव में श्री राम की खडाऊं मांगने आए हैं।

तो इन दो प्रकार के लोगों के बीच, मैंने देखा है कि वहाँ हमेशा एक गलतफहमी सी  चलती रहती है। इसलिए दोनों प्रकार के लोगों को समझने की कोशिश करनी चाहिए कि, हम दौनो कि सहज योग को आवश्यकता है|

मैं केवल एक प्रकार के लोगों के साथ काम नहीं कर सकती। हमारे पास दोनों प्रकार के लोग होना चाहिए जो कार्य की दोनों शैलियों को देखेंगे।

लेकिन जब आप दूसरों के साथ व्यवहार कर रहे हों उस वक्त तो एकता में जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति, माना कि कैक्सटन हॉल में आ रहा है और वह कुछ कहता है, तो आपको इसे आंकना चाहिए चाहे वह नया हो या पुराना। अगर वह एक नया है तो आपको सारी सज्जनता, दयालुता, सभी प्रकार की बाहरी चीजों को प्रदर्शित करना होगा जो उसे खुश करें। कारण यह है:वहआत्मसाक्षात्कारी नहीं है, वह आपकी सूक्ष्म चीज़ नहीं देखता है। वह वो देखता है, जैसे तुम बाहर दिखते हो। आप कैसे कपड़े पहने हैं, आप उनसे कैसे बात करते हैं, आप उनके प्रति कैसा व्यवहार करते हैं। वे सबसे पहले इन सभी चीजों को देखते हैं। वे यह नहीं देखते कि आपके अंदर क्या है। वे आपके दिल को नहीं देख सकते हैं, वे आपके वायब्रेशन  को महसूस नहीं कर सकते हैं, इसलिए आपको उनके प्रति बहुत दयालु होना चाहिए, आपको उनके लिए बहुत मधुर होना चाहिए।

मुझे किसी का पत्र मिला जिसमें लिखा था, “सहज योगी मेरे लिए बहुत अशिष्ट रहे हैं और बहुत क्रोधित हुए हैं।” एक अन्य दिन की तरह, कोई व्यक्ति आया था और पीछे बैठा था: वे उबरने की कोशिश कर रहे हैं, धर्म सम्प्रदायों द्वारा गँवा दिए गए  उन लोगों का बचाव है। वह पीछे बैठा था और जब मैंने कहा, “आगे आओ।” और वह आगे नहीं आया तो आपने कहा, “तुम बाहर निकलो!” आपको ऐसा नहीं कहना चाहिए! मुझे कहने दो। उस समय आपको चुप रहना चाहिए। किसी को यह नहीं कहना चाहिए, “बाहर निकलो! यदि आप आगे नहीं जा रहे हैं। क्योंकि बात यह है कि अगर हम कहते हैं, “हम उन लोगों की परवाह नहीं करते जो विनम्र नहीं हैं!” फिर हर हाल में वे लोग खो जाने वाले हैं। आइए हम उन्हें उचित मौका दें। पहले अपने व्यवहार से;  आइए हम उन्हें सहज योग में आने का उचित मौका दें।

अब, कुछ लोगों की आदत होती है, उनसे थोड़ी ज्यादा बात करने की। उन्हें बात नहीं करनी चाहिए। वह एक चीज़ जो मुझे महसूस होती है, वह यह है कि वायब्रेशन और वह सब देते हुए, ज्यादा से ज्यादा आपको पूछना चाहिए, “क्या आप किसी शीतल हवा को महसूस कर रहे हैं?” बहुत विनम्र तरीके से। और यह श्री राम का एक और गुण है, ‘ संकोच ‘ है। अंग्रेजी भाषा में कोई शब्द नहीं है, क्योंकि आपके पास ‘औपचारिकता’ है जो ‘।’ संकोच ‘का वर्णन करने के लिए एक बहुत ही ढीठ शब्द है।’ क्योंकि, आपके हृदय और औपचारिकता के बीच कोई एकाकारिता नहीं है। लेकिन अगर आप ‘दिल की एक औपचारिकता’ के बारे में सोच सकते हैं तो आप उसे क्या कहते हैं? आप अंग्रेजी भाषा में क्या कहेंगे?

श्री माताजी: हृदय की औपचारिकता।

योगिनी: Sincerity. गंभीरता ।

श्री माताजी: नहीं, Sincerity.गंभीरता अलग है। यह एक क्रिया है। Sincerity. एक अमूर्त चीज है। लेकिन औपचारिकता, दिल से। आप देखिए, ऐसी चीज़ को कैसे कहें?

योगिनी: ‘ ‘Honestly’ ईमानदारी से माँ। 

श्री माताजी: नहीं, नहीं। ‘ ‘Honestly’ ईमानदारी नहीं’ ये सभी अमूर्त शब्द हैं। कार्रवाई में।

आप देखें, उदाहरण के लिए माना, अब, मैं बैठी हूं। अब अगर वे मुझे एक कप लाएँ, तो ठीक है? यह एक टूटा हुआ कप है, उदाहरण के लिए, आप किसी के घर जाते हैं, और यह थोड़ा टूट गया है। तो, यदि कोई भारतीय है तो,  मुझे पश्चिमी शैली के बारे में पता नहीं है – वह इससे पी जाएगा। वह कुछ भी नहीं कहेगा कि, “यह टूटा हुआ है,” या कुछ भी। लेकिन शायद कोई अन्य कह भी सकता है कि, “यह एक टूटा हुआ कप है! यह टूटा हुआ है।”

या कहें, आप किसी के घर जाते हैं और आप को रंग योजना या कुछ और पसंद नहीं करते हैं। तो एक भारतीय व्यक्ति के लिए ऐसा तुरंत कहना उचित नहीं होगा – एक भारतीय व्यक्ति के लिए (हँसी)। आप देखते हैं, “दिल की औपचारिकता”। ऐसा कुछ नहीं कहना है कि आप व्यक्ति के कमज़ोर पक्ष को छूते हैं।

अब इस हद तक कि, श्री राम की एक अच्छी कहानी थी – मुझे लगता है कि मैंने इसे पहले भी कहा था, लेकिन फिर से मैं आपको इसे दोहराऊंगी – जिसका वर्णन तुलसीदास द्वारा लिखित एक अन्य रामायण में किया गया है। हालाँकि तुलसीदास आत्मसाक्षात्कारी नहीं थे, लेकिन कुछ बिंदुओं को उन्होंने बहुत अच्छी तरह से सामने लाया। वह कहते हैं कि: श्री राम रावण के सिर के खिलाफ तीर मार रहे थे। और उसके दस सिर थे। और उसे एक वरदान मिला था कि हर सिर जो गिर जाएगा, उसकी जगह एक दूसरा सिर और आ जाएगा। उसे जैसे वरदान मिला था। तो उनके भाई लक्ष्मण कहते है, “आप क्या कर रहे हो? आप जानते हैं कि वह सिर के पार तीर से नहीं मर सकता।आपको तीर उसके दिल में मारना होगा अन्यथा वह नहीं मरेगा।” ”

तो उनमे जो संकोच आता है और उन्होने कहा, “देखो, उसके दिल में मेरी पत्नी बैठी  है क्योंकि वह उससे प्यार करता है और वह उसके दिल में बैठी है। मैं उस के दिल में कैसे मार सकता हूं? वह आहत होगी। ” उनकी समझ की नाजुकता देखें। तो लक्ष्मण ने कहा, “फिर उसके सिर पर मारने से क्या वह मारा जायेगा ?” उन्होंने कहा, “देखो, एक बार उसका चित्त उसके सर पर जाएगा, तो उसका ध्यान उसके दिल से हट जाएगा। और एक बार ध्यान हटा लेने के बाद, मेरी पत्नी वहां नहीं रहेगी, तो मैं उसे मारूंगा और मैं उसे मार डालूंगा। ” (हँसी)

तो देखिए, संकोच ! आप देखिए, तब आप समझ जाएंगे कि हम कैसे असभ्य और अभिमानी हैं। इस तरह का अहंकार और अशिष्टता हमारे अंदर इसलिए आती है क्योंकि हमारे पास कोई संकोच नहीं है। हमें हर किसी को हर बात नहीं कहना चाहिए। हमें नहीं चाहिए। क्या हमें हर बात कहना चाहिए? उदाहरण के लिए, जैसे , आपकी पूजा में शायद आप कुछ ऐसा कर रहे हैं, जो नहीं करना चाहिए। मुझे पता है कि यह गलत है। जहाँ तक और जब तक यह बिल्कुल गलत नहीं है, मैं नहीं बताऊंगी। मैंने कहा, “धीरे-धीरे वे सीखेंगे।” क्योंकि अन्यथा तुम ऐसे ही हो जाते हो, देखो, तनाव ग्रस्त। जब भी मैं कुछ कहूँ आपको लिंडा का चेहरा अवश्य देखना चाहिए! वह ऐसी हो जाती है… (माँ प्रदर्शित करती है)।

तो वो संकोच, वो समझ आती है अगर आपको किसी से प्यार और उसकी समझ है  अब, आपको संसार के सभी साधकों से प्रेम करना है। उन्होंने गलत किया है, उन्होंने हर तरह की अहंकार यात्राएं की हैं, उन्होंने सभी प्रकार की गलतियां की हैं, लेकिन आपकी माँ उनसे प्यार करती है और आपको उनसे प्यार करना है। अगर उन्हें सुधारना है तो मैं ऐसा करूंगी। आप बस उस तरह से नहीं करें जिससे वे आहत महसूस करें। संकोच रखे| एक-दूसरे से बात करते हुए, अपने आप को उन चीजों को कहने के लिए प्रशिक्षित करें जो मधुर और अच्छी हैं, जो दूसरे व्यक्ति को यह अहसास कराएगी कि यह व्यक्ति सहज योग परंपरा में एक उचित ढंग से पोषित व्यक्ति है। तो हमारे पास सहज योग परंपरा भी है, जिसमें, जब हम एक-दूसरे से बात करते हैं, तो हमारे अंदर श्री राम जैसा संकोच हैं। और अगर आपके पास वह संकोच नहीं है तो आपको दायें हृदय कि पकड़ Right Heart (catch) मिलता है। और वह दायें हृदय कि पकड़ Right Heart (catch} इंग्लैंड जैसे देश में एक बहुत खतरनाक चीज है, जहां की जलवायु इतनी खराब है, क्योंकि यह आपको एक भयानक रोग देता है जिसे दमा asthma कहा जाता है। मैं आपको भयभीत नहीं कर रही हूँ, लेकिन यह सच है। अगर आपका दायें हृदय कि पकड़ Right Heart (catch) होता है तो आपको दमा हो जाता है। जरूरी नहीं कि दमा केवल दायें हृदय कि पकड़ Right Heart (catch)से ही हो – मध्य हृदय  centre heart से भी आ सकता है – लेकिन अगर आपको दायें हृदय कि पकड़ Right Heart (catch) मिलता है तो आपको निश्चित रूप से दमा होता है।

तो आप जो रवैया लेते हैं , जैसे अपने पिता की तरफ। मैंने सुना है कि लोग पिता से भी इस अजीब ढंग से बात करते हैं। आप अपने पिता से इस तरह बात नहीं कर सकते। वे मुझसे बहुत रूखेपन से बात करते हैं। मेरा मतलब है, मैंने लोगों को देखा है, सहज योगी, कभी-कभी, बहुत घटिया सांसारिक स्तर पर – या कह सकते हैं बहुत ही अशिष्ट तरीके से व्यवहार करते हैं। तब आप दायें हृदय कि पकड़ Right Heart (catch)में पहुंच जाएंगे।

तो व्यक्ति को इस संकोच को सीखना होगा, मर्यादा: अपने रिश्तों की सीमाओं का मतलब है। आप देखिए, “हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं,” इसका मतलब यह नहीं है कि हम दूसरे की निजता पर हमला करते हैं। आप एक-दूसरे से किस हद तक प्यार करते हैं इसका मतलब यह नहीं है कि आप इस तरह से आगे बढ़ते हैं कि आप किसी व्यक्ति कि सुन्दरता और निजता का अतिक्रमण करने का प्रयास करते हैं।

आप देखते हैं, अगर कोई व्यक्ति सीधे बेडरूम में चला आता है तो यह वह ढंग नहीं है जैसा सहज योगी का होना चाहिए। मुझे बताने की जरूरत नहीं है। लेकिन आपको दस्तक तो देनी ही होगी। और ऐसे समय में दस्तक दें जब आपको इसकी आवश्यकता हो! हर समय किसी को खटखटाना या किसी पर लद जाना उचित नहीं है।

संकोच एक पूर्ण सांस्कृतिक व्यवस्था है। तो हमारे पास एक सांस्कृतिक परंपरा है जिसे हमें श्री राम से सीखना है। वह अपने संकोच के लिए जाने  जाते है।  यह कैसे कहा जाए, हर बार मैं ऐसा नहीं बता सकती। हमारे भीतर भारत में यह बहुत अधिक है। बच्चों को उस तरह से शिक्षित किया जाना है, और एक बार उन्हें इस तरह शिक्षित किया जाता है कि वे संकोच सीखेंगे, और इससे उन्हें सामाजिक जीवन की उचित समझ मिलेगी।

जैसे अब आप देखते हैं, यह अग्नि की लो यहां है: यदि आप अपनी उंगली इसमें डालते हैं, तो यह जल सकती है और आप अपनी उंगली को हटा सकते हैं। लेकिन अगर आप किसी अन्य व्यक्ति के साथ हैं और यदि आप उस व्यक्ति के साथ छूट  लेने की कोशिश करते हैं तो एक दिन आ सकता है जब वह व्यक्ति आपके साथ दुर्व्यवहार करेगा या आपको नुकसान पहुंचाएगा या आपके साथ कुछ करेगा। लेकिन फिर भी आपको इस बात का एहसास नहीं होगा कि ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि आपके पास कोई संकोच नहीं है ।

इसलिए इस संकोच को हर तरह से बहुत खूबसूरती से क्रियान्वित करना पड़ता है: धन्यवाद देने में, किसी का आभार स्वीकार करने में, किसी दूसरे व्यक्ति से अपने प्यार का इजहार करने में – एक संकोची तरह से।

अब श्री राम अपनी सीमाओं के लिए जाने जाते हैं। वह सीमा पार नहीं करता है। कल, एक अन्य दिन मैंने आपको भोजन के बारे में बताया, कि आप भोजन की सीमाओं को पार नहीं करें, जैसे कि कीड़े और मच्छरों के प्रति दयालु होना। उसी तरह हर बात में हृदय का विवेक होना चाहिए। अब, अंग्रेजी भाषा में “हृदय के विवेक” के लिए कोई शब्द नहीं है, जो कि मर्यादा है। हृदय का विवेक अर्थात समझना जैसे, उदाहरण के लिए, यदि आप अपने पिता के प्रति असभ्य हैं, तो आपको क्या हासिल होगा? आपको कुछ प्राप्त नहीं होता। लेकिन अगर आप विनम्र हैं तो आप सफलता पा सकते हैं अपने पिता को बिलकुल ठीक पा कर । भले ही वह एक बुरे आदमी हो! क्योंकि प्रतिक्रिया में क्या होता है, अगर आप मनोवैज्ञानिक रूप से कहते हैं: मान लीजिए कि आप एक पिता के पुत्र हैं जो कुछ गलत कर रहा है और आप उसके लिए आज्ञाकारी हैं, तो उसे हमेशा एक डर रहेगा कि अगर वह आपके आदर्शों से नीचे गिर जाता है तो वह आपको खो देगा। तो उस विनम्रता से आप उनका उत्थान ही करेंगे।

यदि आप विनम्र हैं, यदि आपके माता-पिता के प्रति आपका व्यवहार श्री राम के समान है, तो इस में कोई नुक्सान नहीं है। आप अपने सिद्धांतों या किसी भी चीज़ में समझौता नहीं करते हैं। दिन-प्रतिदिन की चीजों में, जैसे कि, [अगर] आपके पिता बैठे हैं … मेरा मतलब है कि भारत में, अगर पिता हैं, तो आप उनके सामने नहीं बैठेंगे, आप किसी भी कीमत पर नहीं बैठेंगे। जब तक वह आपको दस बार ना कह दें, तब तक आप उनके सामने नहीं बैठेंगे। यह मदद करता है, तुम्हें पता है। फिर यह बात पिता पर इस तरह प्रतिक्रिया करती है कि, “अगर मैं  दुर्व्यवहार करता हूँ तो, मेरा बेटा  मेरा सम्मान नहीं करेगा।”

तो सम्मान का भाव भी आपके दिल से आता है। यह तभी संभव है जब आप अपने दिल से उस मर्यादा को जानते हों – मेरी सीमा क्या है। अपने पिता से, अपने पति से या अपनी पत्नी से असभ्य होने की क्या जरूरत है? किसी भी कीमत पर, कोई ज़रूरत नहीं है! जरुरत क्या  है? क्यों किसी को कठोर कहना? क्या ज़रुरत है? आप इससे क्या हासिल कर सकते हैं? मैंने नहीं देखा कि, कुछ भी कठोर कहने से लोगों में सुधार हुआ है। केवल जब गुरु कठोर होते हैं या, मेरा मतलब है, माता या पिता उनके बच्चों के लिए सख्त हैं जो उनकी मदद ही करते हैं। सामान्य रिश्तों में और कहीं भी यह मदद नहीं करता है। जैसे, भाइयों और बहनों, में भी नहीं | बड़े और छोटों में, अगर छोटे व्यक्ति सुधार करना चाहते हैं तो  बड़ों की कठोरता सहन करना पड़ती है। वहाँ अन्य कुछ भी इतना महत्वपूर्ण नहीं है! आखिरकार वे आपको गला घोंटने वाले नहीं हैं। माना भी कि वह आपसे कुछ बुरा कहते हैं – कोई बात नहीं। आप प्रयास करें। और वहाँ, जो व्यक्ति को याद रखना है कि,  मसीह ने कहा है, यदि कोई एक गाल पर मारे तो,  आपको एक और गाल सामने रखना चाहिए। इसलिए दिल के विवेक का उपयोग करें – किसी व्यक्ति के लिए कहाँ तक जाना है। इसके प्रभाव से आप अपने परिवार में, सहज योग में, कहीं भी, बहुत शक्तिशाली व्यक्ति होंगे। जो लोग मेरे आज्ञाकारी हैं वे बहुत शक्तिशाली सहज योगी हैं। यह आप जानते हैं| और जो आज्ञाकारी नहीं हैं बहुत तेजी से नीचे जा रहे हैं। मैं उन्हें बचाने की कोशिश करती हूं, सब कुछ करके, लेकिन मैंने देखा है – जो लोग अवज्ञाकारी हैं, जो मेरी बात नहीं मानते हैं, जो मेरे लिए अशिष्ट हैं, जो प्रोटोकॉल को नहीं समझते हैं, सहज योग में बहुत नीचे जाते हैं। बिल्कुल (उँगलियों को क्लिक करते हुए) जैसे! एक सेकंड में मैंने पाया कि वे सैकड़ों फीट नीचे जा रहे हैं। यह सच है।

क्योंकि तुम्हारे भीतर जो कमी है, वह विवेक है, मर्यादा है – कहाँ तक सीमा है। और यह एक और बात है कि हमें खुद को शिक्षित करना सीखना होगा।

तो जैसी श्री राम की शिक्षा थी,  मैंने आपसे कहा कि वह एक तीर से एक राक्षस को मार सकते हैं। आपको उन्हें एक सौ आठ बार नहीं पीटना होगा, एक पिटाई पर्याप्त होनी चाहिए। लेकिन आपको शक्तिशाली लोग होना चाहिए और एक व्यक्ति की शक्ति मर्यादा अपना कर बढ़ती है। मान लीजिए कि आपके पास गेहूं है, और आप इसे फैलाते हैं, यह सब तरफ फैल जाएगा, कोई भी, पक्षी आ जाएगा और इसे खा जाएगा, यह समाप्त हो जाएगा। लेकिन यदि आप उन्हें एक बोरी में डालते हैं तो इसका वजन होगा, इसका आकार होगा, यह ऊंचाई में बढ़ेगा और यह उपयोगी होगा। इसका सम्मान होगा। लेकिन जो बात सब तरफ पसरी हुई है, जिसकि कोई मर्यादा नहीं है, उसका कभी सम्मान नहीं किया जाएगा।

मर्यादा के बिना कुछ कार्यान्वित नहीं होता। यहाँ तक कि प्रकाश एक मर्यादा में रहता है। आपको अपनी मर्यादा रखना होगी। हमारे प्रशिक्षण का यह एक हिस्सा है, आप देखें।

उदाहरण के लिए, जैसे, एक हवाई जहाज है और यह किसी भी मर्यादा से बंधा नहीं है। आप देखते हैं, यह बंधा नहीं है। जब यह हवा में चला जाएगा तो यह पूरा खत्म हो जाएगा! हमारे सभी  स्वतंत्रता के विचारों को मर्यादा से बंधे रहना है। यदि स्वतंत्रता में कोई मर्यादा नहीं है तो वह उछ्रंख्लता है, यह बकवास है, यह हमारी मदद करने वाला नहीं है।

इसलिए हमें सहज योगियों में से महान राजनेताओं को बनाना होगा। यह भविष्यवाणी की गई है [नाडी ग्रन्थ में] कि यदि सहज योग नहीं फैला तो तीसरा विश्व युद्ध अवश्यम्भावी है। तीसरे विश्व युद्ध से लोगों को बहुत नुकसान होगा। इससे बचना संभव है यदि लोग बड़ी संख्या में सहज योग का सहारा लेते हैं। लेकिन अगर वे नहीं करते हैं, तो तीसरा विश्व युद्ध होगा और इसका प्रभाव लोगों को इतना नुकसान पहुंचाएगा कि अंततः यह सहज योगी हैं जिन्हें सम्मेलन के लिए बुलाया जाएगा न कि राजनयिकों को। सहज योगियों से परामर्श किया जाएगा, और वे तय करेंगे कि दुनिया के लिए क्या करना है और वे कल की दुनिया के शासक बन जाएंगे। इसलिए हमारे पास श्री राम जैसा शासक होने के पूरे विचार होना चाहिए।

हमें स्वयं बहुत दूर तक जाना है, खुद को प्रशिक्षित करना है, खुद को शिक्षित करना है, अपने अहंकार से छुटकारा पाना है और समझना है कि हमें विकसित होना है।

यह एक बहुत बड़ा कार्य है, यह एक महान कार्य है और कभी-कभी आप सोच सकते हैं, “माँ कैसे हमसे यह करने की उम्मीद कर सकती है?” लेकिन मुझे लगता है कि आप वे लोग हैं जो इसके लिए चुने गए हैं और आपको इसे हासिल करना है और इसे कार्यान्वित करना है। इसलिए हमें खुद को प्रशिक्षित करना होगा कि हम पहले खुद के शासक और फिर दूसरों के शासक बनें।

पहले हमें खुद पर शासन करना सीखना चाहिए। आप देखें, यहाँ केवल इस शरीर में  आप सीखेंगे कि कैसे खुद पर शासन करना है।

आराम, यदि आप आराम के शौकीन हैं, तो अपने शरीर को यह सुनिश्चित करने के लिए काम करें कि कोई आराम की आवश्यकता नहीं है। यदि आपका शरीर बहुत अधिक खाने या किसी भी चीज़ में लिप्त होता है, तो अपने शरीर को यह सीख दें कि इसमें लिप्त होना अच्छा नहीं है।

यदि आप बहुत ज्यादा बोलते हैं, बहुत ज्यादा बात करते हैं, अगर आप असभ्य हैं, तो बस यह तय करें कि, “मैं सुबह से शाम तक एक शब्द भी कहने वाला नहीं हूं।” मौन  में जाएं। तो तप, तपस्या का समय है, अब हमारे सामने है। उस तपस्या के साथ, सबसे बड़ी चीज जो आपकी सहायता करने वाली है, वह है सहज योग के बारे में जा कर बात करना  – मेरे आगमन का संदेश देना – और कैसे यह परिवर्तन का, और बहार का समय आया है, इस बारे में बात करें। यह आपको करना है, साथ ही आपको यह भी सीखना है कि कैसे खुद पर शासन करना है और फिर कैसे अपने दिल के माध्यम से दूसरों पर शासन करना है, अपने मन से नहीं। आपको हृदय के मेरे द्वारा बताये उन सभी गुणों को सीखकर अपने हृदय के माध्यम से राज करना है।

और मुझे आपको ‘ Blossom Time ‘ ‘ बहार कि बेला ‘विषय पर आपके द्वारा लिखे गए लेख के लिए बधाई देना चाहिए। मैंने इसे पढ़ा है। मैंने वास्तव में इसका पूरा आनंद लिया है। उन्होंने बहुत अच्छा किया है भगवान आप पर कृपा करे! और मुझे लगता है कि इसका एक अच्छा प्रभाव होगा … मुझे आश्चर्य है कि उन्होंने इसे कैसे प्रकाशित किया: क्या उन्होंने अपना मन बदल दिया है या क्या हुआ है? यह आश्चर्यजनक है! क्या आपने वह लेख देखा है?

यह बहुत अच्छा है।

और आपने मुझे जो अच्छी बेलें भेजी हैं, उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। देखिये, वे बहुत सुंदर हैं, वे अभी भी एक सदमे में हैं क्योंकि मैंने उन्हें आपकी कोमल देखभाल से निकाल कर अपने पास लिया था। और मेरी देखभाल कुछ कमजोर ही है|  लेकिन आज हमने उनके साथ कुछ न्याय करने की कोशिश की। मुझे यकीन है कि वे सभी हमने उन्हें एक बंधन दिया। (हंसते हुए)

श्री माताजी: आपका मतलब है कि आप अधिक बुद्धिमान बनना चाहते हैं?

योगी: नहीं, माँ बकवास से छुटकारा पाने के लिए।

श्री माताजी: बकवास जो कि सिर में है? आप देखते हैं, संस्कृत में सबसे अच्छा यह कहा जाता है, “या नेति नेति वचने निगमोर अवश्स्य ।” इसका मतलब है, आप अपने मन को बताते रहें, “यह नहीं है, यह नहीं है, यह नहीं है।” कोई भी विचार जो आपके दिमाग में आता है, आप बताते हैं, “यह विचार नहीं । यह नहीं, यह नहीं, यह नहीं। ” तब प्रेरणा आने लगती है। आप देखिये, मुझे क्या लगता है, लोग प्रेरित नहीं हैं।  एक तरफ उन्हें डर लग गया है। अचानक, आप उन्हें कुछ करते हैं वे एक भय, एक सदमे में चले जाते हैं। या फिर, यदि आप उनके लिए अच्छा बनने की कोशिश करते हैं, तो वे अहंकार-यात्रा में चले जाते हैं। इसलिए मध्य में रहने के लिए, आपको क्या करना है, यह कहते हुए जाना है “यह विचार नहीं ,” और, “यह विचार नहीं |” तब आप एक गहरे सहज योगी होंगे।

यही सबसे अच्छा है। क्योंकि बुद्धि कुछ भी नहीं है – तथाकथित बुद्धि। केवल भगवान के पास बुद्धि है, अन्य किसी के पास नहीं है! बहुत स्पष्ट हो कर कहती हूँ। (हँसते हुए) यह एक बड़ा मजाक है, क्या यह नहीं है? (हँसी) हर कोई सोचता है कि वे बुद्धिमान हैं लेकिन वे नहीं हैं, वे मूर्ख हैं। आप देखें, इन दिनों सभी मूर्खता को बुद्धिमत्ता माना जाता है। उदाहरण के लिए, चालाकी – यह कभी भी आपको फायदा नहीं देती है। बुद्धि क्या है?  बुद्धि के बारे में समझ केवल इतनी ही है, जैसे आदि शंकराचार्य ने लगाई थी – “ना योगे, न सांख्य,” [” विवेकचूडामणि ‘, पद 56. “न तो योग से, न सांख्य से, न काम से, न ही सीखने से, बल्कि किसी की पहचान की प्रतीति ब्रह्म के साथ होने से मुक्ति संभव है, और किसी अन्य माध्यम से नहीं।”]

ये सभी चीजें किसी काम की नहीं हैं। केवल अपनी माँ की सेवा ही सबसे अच्छा तरीका है। अपनी बुद्धि से पूछो, “क्या यह मेरी माँ की सेवा कर रही है?” बुद्धि आपको कहेगी, इंसान की तथाकथित बुद्धि, खुद को धोखा देने के लिए। यह आपको धोखा देती है। यह आपको पलायन देती है। यह आपको धोखा देती है।  बुद्धि हर समय यह कहकर काम कर रही है कि, “यह अच्छा हो सकता है, यह अच्छा हो सकता है” आप देखिए, लेकिन यह कभी वास्तविक अच्छा नहीं देखती है। यह अहंकार की चाल है, विकल्प देना अहंकार की चाल है। देखिये, अहंकार चयन का अवसर प्राप्त होना पसंद करता है। तो, “यह अच्छा है, यह बुरा है, यह मैं इस तरह पसंद नहीं करता, यह।” ‘ मैं ‘ के सभी ‘क्रियाकलाप छोड़ देना चाहिए और कहना चाहिए कि, “यह नहीं, यह नहीं, यह नहीं।” “हम” में आना चाहिए, “हम”, “मैं” नहीं।

अब आप ‘मैं के नहीं हैं, अब आप ‘ हम ‘ हैं’| इस प्रकार बुद्धि का वर्चस्व चला जाएगा। क्योंकि इस बुद्धि ने सब तरह की बकवास इकट्ठी कर ली है और इसका अस्तित्व नहीं है! यही सबसे बड़ी माया है! यह मौजूद ही नहीं है! बिलकुल भी कोई बुद्धिमत्ता अस्तित्वहीन है! बुद्धि क्या है, बस यह समझना है कि इस बुद्धि जैसा कुछ है ही नहीं  – आप कुछ भी नहीं हैं। आप देखें, उनकी ( परमात्मा कि )बुद्धिमत्ता का वर्णन करने  का मतलब होगा जैसे कि, चींटी को मानव सभ्यता के बारे में समझाने जैसा कुछ ! यह भी आसान है! उनकी बुद्धिमत्ता यह ऐसी है – और वह बहुत निर्दोष है। इतना सरल। मेरा मतलब है, कोई भी चकित होगा कि यह कैसे हो सकता है।

तो सबसे बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो जानता है कि हमारी बुद्धि सिर्फ एक अहंकार-यात्रा है। यही शुद्ध बुद्धि का संकेत है, शुद्ध समझ का संकेत है – कि हृदय शासक है और वहां आत्मा निवास करता है जो हमारे भीतर सबसे बुद्धिमान चीज है। और आत्मा की प्रेरणा परमेश्वर की शुद्ध बुद्धि की अभिव्यक्ति है।

और आज जो मैंने आपको बताया वह हृदय की बुद्धि है। लेकिन मस्तिष्क का – शून्य! लेकिन फिर, मस्तिष्क का उपयोग क्या है?

दिमाग क्यों है? क्यों नहीं केवल हृदय ही हो? यह ठीक होगा। लेकिन मस्तिष्क वह है जो कार्य करता है। दिल प्रेरणा देता है लेकिन मस्तिष्क इस पर काम करता है, यह संचार कर रहा है। लेकिन प्रेरणा, स्रोत, हृदय है, आत्मा है। फिर से अपने आप को आत्मा से जोड़ो। बुद्धिमानी से, आप कुंडलिनी जागरण की व्याख्या कैसे करेंगे? अकेले कुंडलिनी को छोड़ भी दें, आप अपनी बुद्धि के माध्यम से, बुद्धिमानी से बीज के अंकुरण को कैसे समझा सकते हैं? समझाएँ, अर्थात साधन करें, स्पष्ट करें कि क्यों, कैसे। बीज का अंकुरण, एक साधारण चीज जिसे आप एक हजार एक बार देखते हैं। कैसे समझाएंगे? बुद्धिमत्ता यह कहने में है कि, “मैं समझा नहीं सकता।” बहुत सीमित चीज। यह अहंकार है, लेकिन अहंकार के अलावा कुछ नहीं।

और एक बार जब तुम इससे मुक्त हो जाते हो तो शुद्ध बुद्धि भीतर आने लगती है।

आप देखते हैं, श्री योग सिंह के साथ, आप आश्चर्यचकित होंगे, आप देखिए, जो है, मेरा मतलब है कि वह हमारे पास बिल्कुल एक भूत के रूप में आया था। वह बहुत बदल गया है अब वह बोलता है, मैं तुमसे कहती हूं, वह संत की तरह बोलता है। मैं हैरान थी! वह कभी-कभी इतनी अच्छी तरह से बोलता है कि कभी-कभी मैं उसे उद्धृत करना चाहती हूं – जिस तरह से वह कुछ चीजों के बारे में बोलता है। मैं आश्चर्यचकित हूं कि उसने इस तरह से बात कैसे शुरू कर दी।

इसलिए आपको जो कुछ भी कहना हो उसे आप आत्मा से संबंधित कर दें और आप संतों की तरह बात करेंगे। इसे आत्मा से संबंधित करें, किसी अन्य चीज से नहीं, आत्मा से संबंधित करें और आप चकित हो जाएंगे।

उसने मुझसे कहा कि, “इस दुनिया में बहुत से लोग हैं जो बेतुके हैं।” मैंने कहा, “तुम्हें कैसे पता?” वह कहते हैं, “क्योंकि वे आपके बारे में कुछ नहीं जानना चाहते हैं। मुझे नहीं पता कि वे यहां क्यों हैं और क्यों आपने उनकी रचना की है! ” आप देखिए, वह एक ऐसा व्यक्ति था जिसके सिर पर इतने सारे भूत सवार थे। मैं कहती हूँ, वह इतना सुंदर आदमी है। वह ऐसा कहता है , “यह आपका सेवक है, ठीक है, लेकिन अगर उसे अच्छी तरह से जीना है तो उसे कुछ चीजें सीखनी होंगी। उसके पास स्वच्छता नहीं है। क्योंकि उसका मन खालिस ​​नहीं है। उसे बेहतर स्वच्छ बनना होगा। लेकिन उसका मन साफ ​​नहीं है। उसका दिल ठीक है। लेकिन मन साफ ​​होना चाहिए। ” मैं उस पर चकित थी। वह एक शिक्षित व्यक्ति जैसा कुछ भी नहीं है, केवल एक सामान्य व्यक्ति है। लेकिन वे पैगम्बरों की तरह बात करने लगते हैं।

मुझे लगता है कि आपने कुछ पैगम्बरों को बेहतर ढंग से पढ़ना चाहिए फिर आप भी उनकी तरह बात करना शुरू कर देंगे। आप को इन सभी लोगों को कबीर, खलील जिब्रान को पढ़ना होगा। विलियम ब्लेक क्या है? वह भी एक नबी ही था। आप उसकी तरह बात कर सकते हैं। क्यों नहीं? उन्होंने अपनी आत्मा के माध्यम से बात की है क्या ऐसा नहीं है? शुद्ध बुद्धि। यदि आप ऐसा कर सकते हैं तो आप श्री राम बन जाएंगे।

इसलिए आज का दिन बहुत अच्छा है मुझे खुशी है कि आप सब आ सके। और यह इतनी अच्छी तरह से कार्यान्वित हुआ है कि ऐसा है कि, मैं यहाँ आने वाली थी और श्री राम के बारे में बात करने जा रही थी और आप सभी को शुभकामना देती हूं कि आप उसका पालन करें। अपनी इज्जत करो! और यह आपकी ज़िम्मेदारी है कि आप अच्छे बने, वैसे ही बने, उसी तरह से काम करें।

परमात्मा आप को आशिर्वादित करें!

ठीक है। आप एक छोटी सी पूजा करना चाहते थे? आप मेरे पैर धो सकते हैं। और क्या आपको श्री राम के कुछ भी [मंत्र इत्यादि] मिल गये है?

(गेविन ब्राउन “वाल्मीकि की रामायण” से पढ़ते हैं, अध्याय 86)