Easter Puja and Havan, The Creation of Lord Jesus

Nirmala Palace – Nightingale Lane Ashram, London (England)

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ईस्टर पूजा, “प्रभु यीशु मसीह का सृजन”| नाइटिंगेल लेन आश्रम, लंदन (इंगलैंड), १९८२०४११|

आप सभी को ईस्टर की शुभकामनाएँ। आज हम उस  दिन का उत्सव मना रहे हैं जो बहुत, बहुत महत्वपूर्ण है, पूर्ण रूप से, सबसे अधिक महत्वपूर्ण दिन हम कह सकते हैं जब इतनी महान घटना घटित हुई। और इसे  इसी प्रकार घटित होना था क्योंकि, यह सब एक प्रकार से नियत था| 

मेरे पिछले व्याख्यानों में, मैंने आपको बताया है कि किस प्रकार ईसा मसीह का पहले वैकुंठ में सृजन हुआ। ‘देवी महात्म्य’ के अनुसार – यदि आप इसे पढ़ें – उनका सृजन महाविष्णु के रूप में हुआ; और यह बहुत स्पष्ट रुप से लिखा हुआ है कि पहले उनका सृजन एक अंडे के रूप में हुआ था। यह इस ग्रंथ में लिखा हुआ  है, जो संभवत लगभग  १४००० वर्ष पूर्व लिखा गया था।

यह ग्रंथ ईसामसीह के बारे में भविष्यवाणी करता है और और इसलिए लोग, विशेषकर पश्चिम में, एक दूसरे को मित्रता स्वरूप एक अंडा भेंट करते हैं । अतः, पृथ्वी पर सबसे पहले अंडे के रूप में जो अस्तित्व हुआ वह ईसा मसीह थे और उसका एक भाग उसी स्थिति में रखा गया और शेष भाग आदि शक्ति द्वारा , महालक्ष्मी द्वारा , ईसा मसीह के सृजन में उपयोग किया गया।

उस प्राचीन ग्रंथ में उन्हें ‘महाविष्णु’ कहा गया, अर्थात विष्णु का महत्तर स्वरूप। किंतु वास्तव में, विष्णु पिता हैं और वे आदिशक्ति द्वारा सृजित पुत्र हैं। मेरे व्याख्यान के पश्चात मैं चाहूँगी, यदि आपके पास वह ग्रंथ हो, तो  इनके लिए पढ़ा जाए- पूरा विवरण – कि कैसे ईसामसीह का सृजन हुआ तथा जब उनका सृजन हुआ, वे अपने पिता के लिए रोए; उसी प्रकार क्रूस पर भी वे एक बार रोए थे।

तथा वे बहुत वर्षों तक रोए और तत्पश्चात ईसामसीह को,महाविष्णु की स्थिति में ,उनके पिता द्वारा आशीर्वाद प्राप्त हुआ जिन्होंने कहा कि तुम्हारा पद मेरे से उच्चतर रखा जाएगा और तुम “आधार” बनोगे – अर्थात ‘ब्रह्मांड का आधार’। 

देखिए किस प्रकार वे मूलाधार से आधार बनते हैं। यह सब स्वर्गीय स्तर पर किया गया, आप कह सकते हैं ‘वैकुंठ’ स्तर पर । इसके बाद, उन्हें आदिशक्ति ने जन्म दिया जो इस पृथ्वी पर ईसामसीह की माँ थीं, जो और कोई नहीं अपितु महालक्ष्मी का अवतार थीं – अर्थात् वे राधा थीं। रा-धा| ‘रा’ का अर्थ ऊर्जा, ‘धा’ का अर्थ जो ऊर्जा को धारण करती हैं। 

ईस्टर के बारे में बहुत से तथ्य है, जिन्हें हमें समझना चाहिए, किंतु सबसे महत्वपूर्ण है “उनकी मृत्यु क्यों हुई और उनका पुनर्जन्म क्यों हुआ?” इस विषय पर कदाचित अभी तक मैंने इतनी स्पष्टता से बात नहीं की है – यही तथ्य है जो मैं आपको आज बताना चाहती हूँ। केवल आप ही लोग हैं जो ईसामसीह के जीवन के महत्व को समझ सकते हैं। और जब यह कहा जाता है कि आपको अपना आत्मसाक्षात्कार ईसामसीह के माध्यम से  लेना है, इसका अर्थ है कि उन्हें आज्ञा चक्र का बंधन करना था। उन्हें वहाँ स्थित होना था। यदि उन्होंने द्वार में यह अंतराल नहीं बनाया होता, तो हमें कभी भी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं होता। 

इसलिए यह कहा जाता है कि आपको स्वर्ग के द्वार केवल  ईसामसीह की कृपा से ही पार करने हैं। निश्चित रूप से, , इसका अभिप्राय चर्च से नहीं हैं, इसका अर्थ चर्च से कदापि  नहीं हैं, यह बात आप सहजयोगी होने के नाते समझते हैं, कि अंततः आपको आज्ञा चक्र में से गुज़रना पड़ता है, वह सबसे कठिन स्थल  है, जिसे मनुष्यों को पार करना पड़ा। क्योंकि आज्ञा चक्र पर आपका अहंकार व प्रतिअहंकार पूर्ण रूप से विकसित रहते हैं। केवल  मानव स्थिति में ही यह अहंकार विकसित होता है। अब, अहंकार को कैसे जीतना है, यह एक प्रशन  था, तथा इस अहंकार को जीतने के लिए ईसामसीह को यह करना था। 

जब उनका प्रारम्भ में श्री गणेश के रूप में सृजन हुआ था – आप वह कहानी जानते हैं कि वे कैसे सृजित हुए थे; कि ‘मल’,  यह पार्वती के शरीर से था, यानी आदिशक्ति,  के शरीर से  निकाला गया था क्योंकि उनके विवाह से पहले उन्हें, स्नान के लिए स्वयं को अनेक सुगंधित चीज़ों से आवृत करना पड़ा था, और इसे निकाला गया था – इन सभी वस्तुओं को – और उनकी चैतन्य लहरियाँ  बाहर आयीं। तथा उन्होंने इस बच्चे का सृजन केवल अपनी शुद्धता की रक्षा करने के लिए किया। उन्होंने अपने  स्नान कक्ष के बाहर उसे रखा और इस बारे में  पूरी कहानी आप जानते हैं। अब, उस बालक में भूमि तत्त्व का एक अंश था – “पृथ्वी तत्त्व” विद्धमान था। 

अन्य सभी चक्रों में, अन्य सभी चक्रों में, उन में कुछ तत्त्व होते हैं, कुछ तत्त्व जैसे पृथ्वी तत्त्व होता है, ‘पृथ्वी तत्व’ फिर आप में  ‘जल तत्त्व’ होता है, फिर ‘वायु तत्त्व’ होता है, और जब आप इस पर आते हैं- माथे पर  की आते हैं – यह ‘प्रकाश तत्त्व’  है, यह प्रकाश है। तथा, इसी स्थल  पर, आज्ञा चक्र पर, उन्हें अंतिम तत्त्व पार करना था, जो प्रकाश तत्त्व था, अर्थात् उन्हें वास्तविक स्वरूप में आना था- केवल दिव्य शक्ति,, ओंकार आप इसे चैतन्य कह सकते हैं अथवा परम – आप इसे ‘लोगों’ या ऐसा कुछ कहते हैं, प्रथम ध्वनि –‘ ब्रह्म’। 

अतः उन्हें ब्रह्म-तत्व  बनना पड़ा। ब्रह्म-तत्व  बनने के लिए, उन्हें अपने भीतर विधमान  अन्य समस्त तत्त्वों से मुक्त होना पड़ा। अतः, अंतिम  प्रकाश-तत्व था जिसे उन्हें पार करना पड़ा। तो  उनमें पृथ्वी तत्त्व था क्योंकि वे मल से निर्मित थे, व अन्य समस्त तत्त्व भी उनमें विधमान थे। किंतु जब आज्ञा चक्र पर आए तो उन्हें सभी तत्त्व त्यागने पड़े, उन्हें अपने भीतर विधमान उन सभी तत्त्वों कि मृत्यु प्राप्त करनी पड़ी – पूर्ण, परम, शुद्ध -आत्मा बनने के लिए। उन्होंने जो सूक्ष्म रूप में किया वह स्थूल रूप में कार्यान्वित होता है, और वह करने हेतु उन्हें मरना पड़ा, तथा जो कुछ भी उनमें मरा वह थोड़ा सा तत्व पृथ्वी तत्त्व और अन्य तत्त्वों, एवं जो उनमें से प्रकट हुआ वह था “शुद्ध आत्मा”

उनका पुनरुत्थान हुआ,  शुद्ध आत्मा, शुद्ध ब्रह्म -तत्त्व जिसने ईसामसीह की देह को निर्मित किया था, जो ईसामसीह का शरीर  था तथा यह घटना घटित हुई। ईसामसीह ने वही किया जो उनके बारे में अनुमानित था।  कि वे मुक्तिदाता हैं क्योंकि वे उस द्वार से गुज़रे ताकि लोगों को उनके शारीरिक अस्तित्व से बाहर – अर्थात् जो तत्त्वों पर निर्भर है – उससे पार कराना उस अस्तित्व की ओर  जो ‘आत्मा’  है।

अतः वह पुनरुत्थान वह है जहाँ आप (आत्मस्वरूप) ‘बनते’ हैं, आप अपने चित्त से आत्मा के चित्त में छलांग लगाते हैं, जब आप अपने चित्त का अनुभव करते हैं, जब आप ‘आत्मा’ बनते हैं। यही वह घटना है जो आपके साथ भी घटित हुई है। 

किंतु वे शुद्ध आत्मा बने, शुद्ध ब्रह्म- तत्त्व, जब उनका पुनरुत्थान  हुआ तथा यह पुनरुत्थान  दिव्य शक्ति दारा घटित घटना है जिसका आगमन मूलाधार चक्र से केवल पृथ्वी तत्त्व के रूप में हुआ, उसकी उत्क्रांति हुई। उसने वहाँ से जन्म लिया, आज्ञा चक्र तक आई, वहाँ ईसामसीह का सृजन इन सब तत्त्वों में से गुज़र कर, अंततः सहस्त्रार में प्रवेश करके संपूर्ण ब्रह्म तत्त्व बनने के लिए हुआ। तथा यह बहुत कठिन कार्य था, बहुत प्रयोगात्मक था; और यह प्रयोग अत्यंत संकट पूर्व था। यह असफल हो सकता था क्योंकि उनके भीतर वह मानव तत्त्व था, शारीरिक- तत्त्व, जो पीड़ित हुआ। और वे पीड़ित हुए, क्योंकि शारीरिक -तत्त्व पीड़ित होता है, आत्मा नहीं, आत्मा पीड़ित नहीं होती है, शारीरिक -तत्त्व पीड़ित होता है। 

इसलिए, उन्हें उस शारिरिक तत्व की पीड़ा सहन करनी पड़ी और उससे ऊपर उठना पड़ा, उससे बाहर आना पड़ा। तथा उससे बाहर आने के लिए, उन्हें अत्यंत साहसी बनना पड़ा। यह इतनी कठिन प्रक्रिया थी। उनके बिना कोई भी इसे प्राप्त नहीं कर सकता था। वे जानते थे  यह पहले से नियत था, किंतु यह घटित होने वाली सबसे कठिन प्रक्रियाओं में से एक थी। 

 मैं सोचती  हूँ कि कितने ईसाइयों को अंडे का महत्व ज्ञात होगा। अब एक अंडा उस स्थिति को दर्शाता है जहाँ आप, आत्मसाक्षात्कार से पूर्व स्थित होते हैं। जब आप अंडे के खोल के अंदर हैं – आप श्रीमान (एक्स) हैं, आप श्रीमती (वायी)  हैं, आदि आदि। किंतु, जब आप अंदर पूर्ण रूप से परिपक्व हो जाते हैं, तब पक्षी तैयार हो जाता है और यही वह समय होता है जब आप अंडे से निकाले जाते हैं। यह वह समय है जब आपका पुनर्जन्म (द्विज)होता है। 

अतः, वास्तव में ईसामसीह का पुनरुत्थान इसे दर्शाता है कि इसलिए हम लोगों को अंडा भेंट में  देते हैं,  यह कहते हुए कि आप एक अंडा है, उन्हें इसका पुनः  स्मरण करवाने के लिए।| और यह अंडा ‘आत्मा’ बन सकता है। तथा यह भी लिखा गया है कि  वे एक अंडा रूप में थे जब उनकी उत्पत्ति हुई, प्रथमत:  उनका सृजन  अंडे के रूप में हुआ – उसका आधा भाग श्री गणेश के रूप में रहा व इसका शेष आधा भाग महाविष्णु बना। फिर वे पृथ्वी पर आए एवं अपने सभी तत्त्वों के साथ विदा हुए एवं शुद्ध चैतन्य ने उनका शरीर बनाया। 

और वे आप सब के भीतर जागृत होने के लिए वहाँ स्थित रहे और जब कुंडलिनी आपके चित्त को उस बिंदु स्थल में से निकालते हुए ऊपर ले जाती है तो आप भी ‘आत्मा’  बन जाते हैं। इसलिए उन्होंने कहा कि , “मैं ही गेट हूँ, मैं ही द्वार हूँ।” उन्होंने यह नहीं कहा मैं ही आपका लक्ष्य हूँ, उन्होंने कहा मैं ही द्वार हूँ| क्योंकि आप ईसामसीह नहीं बन सकते। 

इसलिए उन्होंने यह नहीं कहा “मैं ही लक्ष्य हूँ”, जिसे आपको पाना है| किंतु, उन्होंने यह अंतराल आपके लिए सृजित कर दिया है। आप आध्यात्मिक रूप से जागृत हो सकते हैं, आप अपनी आत्मा बन सकते हैं। किंतु, ईसामसीह एक अवतरण हैं। वे ईश्वर के पुत्र थे, इसलिए वे एक अवतार हैं। तथा वे  अवतरण इस पृथ्वी पर आए आपको आपके तत्त्वों से बाहर निकालकर  आपको एक आत्मा बनाने के लिए।  

अब, यह कैसे एक सबसे कठिन कार्य था – क्योंकि मानव ने अपने मस्तिष्क में हर समस्त  की कृत्रिम बाधाओं का  निर्माण कर लिया है। आप देखिए हम जो कुछ भी सोचते हैं,एवं जो कुछ भी अपने  माँ  से करते हैं वे  सब मृतप्राय है, मानव निर्मित है, कृत्रिम है – क्योंकि सत्य आपके मन  से परे है, वह आपके मन  में नहीं है, आप उसकी कल्पना नहीं कर सकते हैं, आप उसे नहीं पकड़ सकते हैं। जो कुछ भी आपके मन  में हैं वह सत्य नहीं है| यह उस से परे है।

अतः,एक मानव के लिए किसी चीज़ को स्वीकार करना  जो मन से परे हो बहुत बहुत कठिन हो गया था, ईसामसीह के समय रोमवासी व अन्य लोगों के हावी होने  के कारण से । और हम इतिहास को पुनः दोहरा रहे हैं। वे इतने अहं-उन्मुख थे, अहंकार से इतने भरे हुए थे कि उनके अहंकार को नष्ट करने के लिए किसी व्यक्ति को यह करना था – एक मार्ग का सृजन करना था। उनकी मृत्यु से बहुत सी बातें सिद्ध हो गई हैं|

कि वे सब लोग , जिन्होंने उन्हें क्रूस पर चढ़ाया  मूर्ख लोग  थे, वे अहं-उन्मुख थे, वे अंधे थे, वे नहीं देख सके कि वे (ईसामसीह) कौन थे। वे नहीं देख सके कि वे कितने सच्चे व्यकितत्व के धनी थे।  उन्होंने उन्हें क्रूस  पर लटका  दिया। मेरा अभिप्राय है यह एक महानतम  मूर्खता है, तथा उन्होंने उन्हें क्रूस पर टांग  दिया| यह सब पहले से ज्ञात था क्योंकि ये लोग इतने मूर्ख थे कि वे केवल उन्हें क्रूस पर ही चढ़ा सकते थे।  वे और क्या कर सकते थे? 

क्योंकि वे अपने तुच्छ अहंकार से ऐसे व्यक्ति को सहन नहीं कर सके जो इतने  सरल है, जो इतने  सच्चे  है, जो इतने सही हैं। अतः, उन्हें क्रूस पर चढ़ाया, और वह ‘क्रूस पर चढ़ाना’  हमारे लिए एक छेदन रूपी सफलता बनकर आया। किंतु हमारे लिए संदेश ‘पुनरुत्थान’ वाला भाग है। हमारे लिए संदेश  क्रूस  पर चढ़ाना नहीं अपितु ‘पुनरुत्थान’ है  क्रूस  पर चढ़ाना संदेश नहीं है क्यों कि उन्होंने यह  हमारे लिए किया  है – यह वह मूल तत्व है जिसे यहूदियों को अवश्य समझना चाहिए। 

मैं उस दिन पढ़ रही थी – आज ही – कैंटरबरी के मुख्य धर्माध्यक्ष (आर्चबिशप) की कोई चर्चा  जो हुई थी,  और वह व्यक्ति जो उनसे पूछ रहा था , वह उनसे इस प्रकार प्रशन पूछ रहा था, जैसे वह ईश्वर से प्रशन पूछ रहा हो। एक प्रकार से, उसने ऐसा कहा भी कि “मैं यह प्रश्न ईश्वर से पूछूंगा| कि क्यों ऐसा हुआ कि बहुत से यहूदी मार डाले गए?” उन्होंने इसे  मांगा! वे चाहते थे कि वे पीड़ित हों क्योंकि वे पीड़ित होने का श्रेय ईसामसीह को नहीं देने वाले थे। उन्होंने सोचा हम सब को कष्ट सहना  है।

अहंकार। यह अहंकार है! “हमारे लिए कोई अन्य व्यक्ति कैसे पीड़ित हुआ, हमें अलग से पीड़ा सहन करना चाहिए।” वे ईसामसीह को यह श्रेय नहीं दे सके। और समस्त उत्तरकालीन विचारधारा यह रही कि हमें अवश्य पीड़ित होना चाहिए। 

अतः, जो कुछ भी आप सोचते हैं वह स्थूल स्तर पर क्रियाशील  होता है। इसलिए मिस्टर हिटलर का जन्म हुआ और उसने उन्हें पीड़ित किया; तथा मानव  की मूर्खता ही इन सभी समस्याओं के लिए उत्तरदायी है जो इस धरती पर निर्मित होती हैं। एक अन्य  प्रश्न था “बच्चों को  (रक्त कैंसर) कैसे हो जाता  है?”, वह  ईश्वर से पूछेगा ।“|बच्चों को कैसे होता है?

यदि माँ-बाप इतने उन्मत्त और उतावले होंगे, तो बच्चों को यह होना ही है। जब आप विवाहित हैं और जब आपका बच्चा होने वाला है,यदि तब आप तनावमुक्त नहीं हैं, आप तलाक और विभिन्न प्रकार की निरर्थक बातें सोचते हैं, यह उन्मत्तता बच्चे पर कार्यान्वित होगी। मनोवैज्ञानिक रूप से यह ‘बाएँ पक्ष’  की समस्या है, और जैसे ही बच्चा जन्म लेता है उसे रक्त कैन्सर का रोगी  होना ही है| ऐसा ही होता है! अतः, मनुष्य स्वयं ही मूर्खतापूर्ण  समस्याएँ उत्पन्न करते हैं। ऐसी कोई भी समस्या नहीं है जो ईश्वर ने आपके लिए उत्पन्न की हो। उन्होंने आपकी समस्त समस्याओं का समाधान किया। हमारी सभी समस्याओं को वे समाधान करते हैं। सहजयोग में आपने देखा है कि वे कैसे आपकी छोटी-छोटी समस्याएं भी सुलझाते हैं। 

परंतु, हम स्वयं अपने लिए समस्याएँ उत्पन्न करते हैं, अपनी मूर्खता से, तत्त्वों, भौतिक जड़ वस्तुओं, भौतिक आदतों की लत होने  से। जड़ हमारे मस्तिष्क पर सवार हो जाता है, यानि  हम कह सकते हैं कि पृथ्वी -तत्व के स्तर पर। फिर, हमारे पास अन्य समस्याएँ होती हैं, जैसे भावनात्मक मोह: यह मेरी बेटी है, यह  बच्चा मेरा  है, यह मेरा है….,, यह मेरी है,  अपने बच्चे से मेरा बहुत लगाव है। फिर, यह  देश मेरा है, यह आपका देश है। हम समस्याएं उत्पन्न करते हैं। 

यह फ़ॉकलैंड कैंप, यह फ़ॉकलैंड वाली बात एक कृत्रिम समस्या है, आप इसे देख सकते हैं। अर्थात्, जब ये लोग वहाँ गए, ये स्पेनवासी, इन सभी को स्पेन वापस भेज दिया जाना चाहिए! तथा वे सब जो ब्राज़ील में है  से सभी को पुर्तगाल वापस कर दिया जाना चाहिए। वे वहाँ क्या कर रहे हैं? यदि यह स्थिति है। किंतु वे सब मानव है। यह भूखण्ड का  मामला क्या  है? अतः लोगों को वहीं सुखी रहने देना चाहिए जहाँ भी वे हैं। यह क्षेत्र में से उन्हें क्या मिलने वाला है? 

परमात्मा ने अर्जेंटीना, चिली, इंग्लैंड, आदि कभी नहीं बनाए। उन्होंने एक समरूप संरचना बनाई और यह एक दूसरे की देखभाल करने के लिए है – जैसे एक ह्रदय बनाया जाता है, एक यकृत (लिवर) बनाया जाता है, एक मस्तिष्क बनाया जाता है, एक नाक बनाई जाती है। यदि ये लड़ना शुरू कर दें, जैसे यह आँख इस आँख से लड़ना शुरू कर दे… हम हँसते हैं। किंतु हम मनुष्य यही सब करते हैं। हम सदैव यही कर रहे हैं। यह मनुष्यों की मूर्खता है, जो समस्याएँ उत्पन्न कर रही है। और जब आप बहुत मूर्ख हो जाते हैं, कोई भयानक व्यक्ति उसका लाभ उठा लेता है और इस पृथ्वी पर आता है,  हिटलर की भाँति , और वह आपको ठिकाने लगाने का प्रयत्न करता है। 

आपको इस सब की आवश्यकता नहीं है। आपको मात्र सुबुद्धि एवं अपने आत्मसाक्षात्कार की आवश्यकता है। वही आज किया गया है – कि आपको आत्मसाक्षात्कार मिला है। अतः पूरे विश्व के सहजयोगियों के लिए ईस्टर बहुत महत्वपूर्ण घटना है: क्योंकि यदि यह घटित नहीं  हुई होती तो लोगों को आत्म-बोध देना संभव नहीं हो पाता। 

 मेरे विचार से देवी महात्म्य में ईसामसीह के बारे में जो कुछ लिखा है उसे गविन आपको बाद में पढ़ कर सुनाएगें यह ग्रंथ लगभग १४००० वर्ष पूर्व मार्कंडेय द्वारा लिखा गया था।

अतः, कल्पना करें १४००० वर्ष पूर्व! उन्हें दृष्टा होने के कारण, विदित था,(कवि) ब्लेक की भांति, कि क्या होने वाला था जब  ईसामसीह को अवतरित होना  था। किंतु उन्हें ‘महाविष्णु’ कहा गया। वे विष्णु नहीं थे| वे विष्णु के पुत्र थे। और कितने ईसाई लोग ईस्टर के बारे में यह बात समझते हैं? 

वे नहीं समझते हैं। आजकल ईसाई धर्म कुछ नहीं अपितु  एक मानसिक गतिविधि है, केवल वह सब जो मृतप्राय है, मात्र अर्थहीन, बस अन्य निरर्थक धर्मों के समान ही। यह एक अन्यमूर्ख, बुद्धिहीन धर्म बन गया है, जिसका कोई अर्थ नहीं है। जब तक आप अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं करते, जब तक आप चैतन्य का अनुभव नहीं करते, जब तक आप इस सर्वव्यापी दिव्य शक्ति का अनुभव नहीं करते, आप इसे कैसे समझेंगे? 

क्योंकि एकमात्र यही है जो सत्य है, केवल यही है जो वास्तविकता है। एवं जब तक आप इसे प्राप्त नहीं करते हैं आप ईसामसीह के बारे में कैसे जानेंगे? तथा उनके लिए लड़ना? आप कैसे लड़ सकते हैं? मैं वास्तव में समझ नहीं सकती। मेरे लिए यह मूर्खता है, जो एक अन्य अति पर पहुँच गई है। इसके द्वारा वास्तव में आप जो करते हैं, वह यह है कि इन महान अवतरणों का उपयोग एक दूसरे को समाप्त करने के लिए करना। क्या आप कल्पना कर सकते हैं?

 वे जो आपको उन्नत करने हेतु अवतरित हुए, आपको उच्चतर जीवन स्तर पर  उठाने आए अब उनका उपयोग, उन्हीं को, उन्हीं नामों का उपयोग एक दूसरे को समाप्त करने के लिए, एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए हो रहा है। अंततः, यदि आप उस स्तर  पर पहुँचते हैं जहाँ आप समझ नहीं पाते हैं, तब वे कहना शुरु करते हैं “यह एक रहस्य है।” रहस्य क्या है? 

सहजयोग में कोई रहस्य नहीं है। यह सब आपके सामने उपस्थित है। मेरे लिए मनुष्य एक रहस्य हैं। मैं उन्हें नहीं समझ पाती। मैं नहीं समझ सकती। ईसामसीह के पुनरुत्थान को अब ‘सामूहिक पुनरुथान’ बनना होगा। यही है जो ‘महायोग’ है। इसे सामूहिक पुनरुथान  होना होगा, तथा इस सामूहिक पुनर्जन्म के लिए सर्वप्रथम, सहजयोगियों को सामूहिक होने का निर्णय लेना होगा। क्योंकि कुंणडलिनी जागरण के माध्यम से आप इसे पार करते हैं, निःसंदेह – आप इस में से पार हो जाते हैं| किंतु आप सामूहिकता के एक क्षेत्र में पहुँचते हैं और यदि आप उस सामूहिकता को अपने अंदर व्याप्त नहीं होने देते, तब आप नीचे गिर जाते हैं।  

मान लीजिए आप तत्त्वों से परे की स्थिति प्राप्त कर लेते  हैं, वह स्थिति जहाँ आप एक सामूहिक अस्तित्व हैं| आप जागरूक हैं, सामूहिक अस्तित्व से,आपको बोध है कि आप विराट का एक अंग प्रत्यंग हैं| आपको बोध है कि आपको अपनी नाक एवं अपनी आँखों की सहायता करनी है क्योंकि आप विराट के अंग- प्रत्यंग हैं। आप उस अवस्था  में पहुँच जाते हैं जहाँ आप समझते हैं कि मैं उतना ही महत्वपूर्ण हूँ जितना दूसरे कोषाणु हैं तथा दूसरे कोषाणुओं को मेरे द्वारा सहायता प्राप्त होनी है और उन्हें मेरा पोषण करना है। हम एक हैं। संपूर्ण सामंजस्य होना चाहिए। 

यह जागरूकता आत्मसाक्षात्कार के बाद आती है और यदि आप यह नहीं समझते हैं कि यह जागरूकता, यह सामूहिक जागरूकता ही उस क्षेत्र में बने रहने का एकमात्र मार्ग है, अन्यथा आप बाहर हो जाएंगे| आप छोटे कुएँ खोदना आरम्भ कर देते हैं, और आप बस उनमें नीचे गिर जाते हैं।

जितना अधिक आप अपना विस्तार करना प्रारम्भ करते हैं आप उतना ऊँचा ऊपर उठते हैं और पुनः अपनी बाधाओं के साथ और जो कुछ भी यह है। किंतु, यदि आप सोचते हैं कि मुझे पूर्ण (सामूहिकता) के लिए जीवित रहना है, मैं पूर्ण के लिए उत्तरदायी हूँ, मैं एक कोशिका का एक केंद्रक बनने के लिए उत्तरदायी हूँ जो पूर्ण की देखभाल करने वाला है और यदि मैं नीचे गिरता हूँ तो शेष भाग को भी कष्ट होता है|

मेरे पास नीचे गिरने का विकल्प नहीं है क्योंकि इस स्तर पर मेरा पुनरुथान किया गया है; मैंने सामूहिकता की स्थिति में प्रवेश किया है जहाँ मेरा अस्तित्व, जो एक आत्मा है, सामूहिक अस्तित्व है और मुझे वहीं ठहरना है, मुझे वहीं पर स्थिर होना है, मैं नीचे  गिर नहीं सकता, यह मार्ग नहीं है जिसमें मैं जी सकता हूँ।

परंतु, मैंने आत्मसाक्षात्कार के बाद भी देखा है कि, लोग अपने कोष्ठ से बाहर नहीं आ पाते। वे अभी भी अपने आवरण में रहते हैं। वे अपने पंख फैलाकर गा नहीं सकते और अपने आवरण से बाहर आकर उड़ नहीं सकते। वे ऐसा नहीं कर सकते। वे अभी भी अपने जीवन की निम्न राह पर  तुच्छ प्रकार से, हर प्रकार से चिपके हुए हैं। 

अवकाश में आप जाते हैं, आप अलग से छुट्टी मनाना चाहते हैं। क्यों? 

यह अवकाश का समय है – शुभ दिवस, जैसा वे कहते हैं, शुभ दिवस (होली डे)। यह ‘शुभ दिवस’ है। जब आप दूसरे सहजयोगियों के साथ होते हैं तब आप वास्तव में अवकाश का आनंद ले रहे हैं। अन्यथा आप छुट्टी का आनंद कहाँ लेते हैं? कौन सा अन्य उपाय  है? 

उनका सानिध्य होना वास्तविक अवकाश है| और इसलिए यह समझना चाहिए कि आपको अपनी सामूहिकता का विस्तार करना चाहिए। यदि आप अपनी सामूहिकता का विस्तार नहीं करते हैं, तो आप व्यर्थ हैं। आप सहजयोगियों की अर्थहीन रचना हैं, जो, मुझे कहने में दुःख है, कि नीचे गिर जाएंगे।

ऐसे लोग – आरम्भ में दिखते भी हैं, धीरे-धीरे वे बेहतर से बेहतर से बढ़िया होना शुरू हो जाते हैं और एक बार जब आप वहाँ पूरी स्थिति में होते हैं तो आप वास्तव में एक दूसरे की संगति का आनंद लेते हैं उनके विषय में बिना किसी भय के, बिना किसी पर अधिकार के, बिना किसी प्रकार की अपेक्षाओं  के, बस मात्र एक दूसरे के साथ का आनंद लेते हैं। यही घटित होना है। जैसे हमारे शरीर में सभी कोशिकाएँ उसी प्रकार से हैं। यदि वे ऐसा कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं?

क्योंकि हमारे अन्दर बहुत अधिक समझ होती है –  कम से कम हम सोचते हैं कि हम कोशिकाओं की अधिक समझ रखते है। कम से कम यह अपेक्षित है क्योंकि हम एककोशिक से इस अवस्था तक इतना अधिक उन्नत  हुए हैं। और फिर आप परमात्मा के सृजन का प्रतीक हैं! आप सर्वश्रेष्ठ लोग हैं। तो क्यों नहीं? 

जब आपका पुनर्जन्म होता है तो पहली घटना जो आपके साथ घटित होनी  चाहिए वह है कि आप समझें कि अब आप एक व्यक्ति विशेष नहीं रहे, अपितु आप का एक सामूहिक अस्तित्व हैं। आप अब एक व्यक्ति विशेष नहीं रहे। सभी बातें जो  आपके व्यक्तित्व को सुन्नत करती है – उसे दूर  फेंक दीजिए। अब आप एक व्यक्ति विशेष नहीं रहे। सभी समस्याओं जो आपके सामने व्यक्तिगत समस्याओं के रूप में उभरती हैं पूर्णत्या  व्यर्थ, झूठी, हानिकारक हैं। 

सामूहिक समस्याओं के बारे में सोचिए। मैं ऐसे लोगों का आनंद लेती हूँ। जैसे उस दिन फर्गी (डेरेक फर्ग्युसन) ब्रिस्टल के बारे में जानने को उत्सुक थे, वहाँ कौन से स्थल हैं जो धरती माँ से चैतन्य प्रदान कर रहे हैं। वह संपूर्ण ब्रिस्टल के लिए, सभी जमैकन वासियों के लिए  चिंतित हैं। फिर सम्पूर्ण ब्रिटिश लोगों के विषय में, अंततः आपको पूरे विश्व के लिए । आपको ऐसा होना चाहिए। की आपको  चाहिए…….. 

व्यक्ति को यह नहीं सोचना चाहिए मेरी पुत्री का विवाह कैसे होगा; मुझे वहाँ जाने का टिकट कैसे मिल सकता है? इन सब निरर्थक के विचारों को छोड़ देना चाहिए| क्योंकि अब आपने परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर लिया है और वे अब आपकी देखभाल करने वाले हैं। क्योंकि वह स्थिति आप अपने भीतर स्थापित कीजिए – कि आप का एक सामूहिक प्राणी हैं। शेष सारी चीज़ें छूट जाएंगी।  

धीरे-धीरे प्रत्येक व्यक्ति पुनः ढल जाएगा। यहाँ तक कि अति कठिन प्रकार के व्यक्ति, मैंने  देखे हैं सुधरते हुए।किंतु आपके बारे में  क्या, वह जो अन्य सभी व्यक्तियों सुधार रहे हैं, आपके बारे में  क्या? आप कितने अग्रसर हुए हैं? आप अपनी आस्था में कितने अग्रसर हुए कि   जहाँ आप जानते हैं कि मैंने परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर लिया है और मेरा प्रत्येक कार्य  की उनकी(परमात्मा)  द्वारा देखभाल  की जाती है और निर्देशित की जाती है, और मुझे इसका आभास है। 

मुझे विदित है कि मैंने परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर लिया है, जिसकी अभिव्यक्ति मेरी सामूहिक चेतना के माध्यम से होती है।  अतः, सामूहिकता एक सहजयोगी का स्वभाव है और यही आपको समझना है  ।  

आप सबको परमात्मा का अनंत आशीर्वाद।