Public Program New Delhi (भारत)

सहज योग जो है, यह अंतर विद्या है, अंदर की विद्या है. यह जड़ों की विद्या है,  इसलिए आँख खोलने की ज़रुरत नहीं। आँख बंद रखिये। अंदर में घटना घटित होती है, बाह्य में कुछ नहीं होता, अंदर  में होता है। अब इसी को, इस हाथ को आप ऊपर हृदय पर रख के कहें कि , ”मैं स्वयं आत्मा हूँ’। आप परमात्मा के अंश हैं। आप ही के अंदर उसकी रूह जो है, वह प्रकाशित होती है।  इसलिए कहिये कि ”मैं आत्मा हूँ’। बारह मर्तबा कहिये क्योंकि हृदय के चक्र पे बारह कलियाँ हैं।  जिनको हार्ट अटैक आदि आता है, उनके उनके लिए यही मंत्र है कि  ‘मैं आत्मा हूँ’। आत्मा जो है, निर्दोष है । उसमे कोई दोष नहीं हो सकता. निर्दोष है। अधिक तर लोग आदमी को जीतने के लिए ऐसे कहते हैं कि ‘तुम ऐसे खराब हो, ‘तुमने यह पाप किया, तुम फलाने हो, तुम किसी काम के नहीं हो और तुम को परमात्मा माफ़ नहीं करेंगे और तुम बड़े दोषी हो और तुम मानो के तुम दोषी हो’। उलटे हम कहते हैं ‘आपने कोई दोष नहीं किया। आप परमात्मा के बनाये हैं. परमात्मा के आगे, उनकी रहमत के आगे, उनकी अनुकम्पा के आप कोई दोष नहीं कर सकते क्योंकि  उनकी अनुकम्पा एक बड़े भIरी दरिया जैसी है।’  वह सब कुछ धो डाल सकती है।  इसलिए इस हाथ को फिर से ऊपर उठा कर के अपनी लेफ्ट साइड में विशुद्धि में रखें और कहें कि ‘माँ, मैं दोषी नहीं हूँ।  मैं निर्दोष हूँ, मैं आत्मा हूँ। मैं Read More …