गुरु पूजा
“गुरु के सिद्धांत को जागृत करना”
लॉजहिल (यूके), 24 जुलाई 1983
आज आप सभी यहाँ गुरु पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। आपकी गुरु, पहले एक माँ है और फिर एक गुरु है और इस बात ने मेरी बड़ी मदद की है। हमने पहले भी कई गुरु पूजन किए हैं, ज्यादातर इंग्लैंड में। और आपको आश्चर्य होना चाहिए कि माँ हमेशा किसी भी तरह गुरु पूजा लंदन में क्यों कर रही हैं। समय चक्र हमेशा इस तरह से चलता है कि, गुरु पूजा के दिनों में, मैं यहां हूं, उस दौरान मुझे लंदन में रहना होगा। इतने सालों से हम इंग्लैंड में गुरु पूजा कर रहे हैं। यदि सभी चीजें ऋतुमभरा प्रज्ञा से होती हैं तो निश्चित ही कोई कारण है की माँ यहाँ गुरु पूजा के लिए इंग्लैंड में है।
पुराणों में कहा गया है कि आदि गुरु दत्तात्रेय ने तमसा नदी के किनारे माता की आराधना की थी। तमसा वही है जो आपके थेम्स के रूप में है और वह स्वयं यहां आकर आराधना करते है। और ड्र्यूड्स,( जिसमे की स्टोनहेंज वगैरह की अभिव्यक्ति थी), उस प्राचीन समय से शिव के आत्मा रूपी इस महान देश में उत्पन्न हुआ है।
इसलिए आत्मा यहाँ उसी प्रकार बसी हुई है जैसे की मनुष्यों के हृदय में रहती है और सहस्रार हिमालय में है जहाँ कैलाश पर सदाशिव विद्यमान हैं। हमारे यहाँ इतने गुरु पूजन होने का यह महान रहस्य है। इसे संपन्न करने के लिए और आपकी माँ के साठवें जन्मदिन के वर्ष में इस विशेष प्रकार की गुरु पूजा का विशेष महत्व है, इसका बहुत ही विशेष महत्व है क्योंकि गुरु षष्ठी है – आपके गुरु के साठ साल पूरे होने पर आज मनाया जाता है। यह एक बहुत बड़ा अवसर है कि आप सभी फिर से ऋतुमभरा प्रज्ञा के प्रभाव में इकट्ठा हुए हैं। तो जो कुछ भी हुआ है वह आपको प्रकृति का उपहार है और सब कुछ इतना अच्छा कार्यान्वित हुआ है क्योंकि यह ईश्वरीय रचना और दैवीय इच्छा थी।
तो तमस नदी, जिसे हम थेम्स कहते हैं – आप देखते हैं, अंग्रेजों में सब कुछ अंग्रेजी बनाने की एक विधि है। बॉम्बे की तरह जैसा की उन्होंने इसे बनाया – बॉम्बे मुंबई था, आप देखते हैं, कलकत्ता की तरह, जैसे अन्य सभी शब्द। जैसे वाराणसी को बनारस, बनाया गया था, टेम्स नदी को वास्तव में तमसा कहा जाता था। अब तमसा नाम से किसी को पता होना चाहिए कि यह तमो गुण का स्थान है। एक जगह है जहाँ लंबे समय से वाममार्गी लोग निवास करते थे। इसलिए लोग बहुत भावुक किस्म के, आराधना करते रहने वाले वाममार्गी थे| वे ईश्वर की उपासना तथा उस से भी अधिक वे यज्ञ वगैरह में जाते थे। दत्तात्रेय यहाँ रहते थे और टेम्स नदी के तट पर ध्यान करते थे। इसीलिए यहाँ पर की जा रही गुरु पूजा हमें गुरु सिद्धांत के जागरण के लिए एक अच्छी पृष्ठभूमि प्रदान करती है।
हमें हर चीज की जड़ों तक जाना होगा ताकि हम इसके महत्व को समझें। जब तक आप जड़ों और परंपराओं को नहीं जानते हैं, तब तक आप किसी भी पूजा की गहराई, गंभीरता, तीव्रता को नहीं समझ सकते। आज हम यहां फिर से गुरु पूजा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। कारण यह है कि हमने अपने भीतर एक गुरु सिद्धांत प्राप्त किया है जैसा कि मैंने पिछली बार आपको बताया था और साथ ही मैंने विस्तृत रूप से दस आज्ञाएँ दी हैं जो हमारे भीतर व्यक्त की गई हैं जो हमारे भीतर विभिन्न प्रकार के सत्वों का वर्णन कर रही हैं। गुरु पूजा का सार हमारे भीतर जागृत होना है। इस प्रकार यह कार्यक्रम हम यहां कर रहे हैं। अब यह महत्वपूर्ण है कि हमें अपने भीतर धर्म की स्थापना करनी होगी। धर्म के बिना आपका उत्थान नहीं हो सकता। और जैसा कि मैंने आपको पहले भी बताया है कि आपकी स्वच्छता इस बात पर निर्भर करती है कि आप धर्म का पालन कितनी दृड़ता से करते हैं। मूसा के समय इस पर काम किया गया था और सभी नियम और कानून आत्मसाक्षात्कारीयों लिए बनाए गए थे। लेकिन जैसा कि मैंने एक किताब में पढ़ा है – यह बहुत अच्छा था, क्योंकि अगर मैंने यह कहा होता, तो लोगों को विश्वास नहीं होता – कि इसे बदलना होगा।
[एक बच्चा जोर से रो रहा है।] मुझे लगता है कि भाषण के दौरान बच्चों को यहां नहीं होना चाहिए, उन्हें बाहर निकालना बेहतर है। भाषण के बाद आप उन्हें साथ ला सकते हैं – जो शोर करते हैं। जो चुप हैं वे सब ठीक हैं, लेकिन जो शोर कर रहे हैं वे उनको आप बेहतर ढंग से बाहर ले जा सकते हैं। यदि वे शोर करने जा रहे हैं, तो बाहर या दरवाज़े के पास होना बेहतर है ताकि यदि वे शोर करते हैं तो आप बाहर निकल सकते हैं, इसलिए कोई गड़बड़ी नहीं है। और पूजा के दौरान सब ठीक है, आप गेट, दरवाज़े या किसी ऐसी जगह पर हो सकते हैं जहाँ से आप जा सकें|
इसलिए मानव को जो कानून और नियम दिए गए थे, वे वास्तव में उन आत्मसाक्षात्कारी आत्माओं के लिए थे जो उसे समझेंगे। लेकिन जब मूसा ने इंसानों के रहने के तौर-तरीके को जाना होगा, तो उसे बहुत ही सख़्त नियमों में बदल दिया होगा, क्योंकि इंसानों के साथ जैसा कि वे हैं, वैसा ही किसी को भी बेहद सख़्त होना चाहिए। वे डर के अलावा कुछ भी नहीं समझ सकते। यदि आपके हाथ में एक छड़ी है, तो आप उन्हें सही चला सकते हैं। उस छड़ी के बिना इंसान कोई बात नहीं सुनेंगे। अगर डर है तो ही वे सही हैं। अब यदि आप सभी राष्ट्रों की आज की स्थिति को देखते हैं, जो नेता, या प्रधान मंत्री, या राष्ट्रपति हैं, वे सभी लोग बेहद सख़्त, बहुत हावी और बहुत शुष्क हैं। और आम तौर पर लोग ऐसे लोगों को पसंद करते हैं। यहां तक कि हिटलर भी उस स्वभाव के कारण सफल हुआ।
इसलिए अब तक एक गुरु का चरित्र उन लोगों के लिए बहुत सख़्त प्रकृति का रहा है जो कि आत्मसाक्षात्कारी नहीं है। आम तौर पर एक गुरु – एक अच्छा गुरु, सतगुरु, वह लोगों से ज्यादा बात करना पसंद नहीं करते है। वे पत्थर फेंकते हैं या वे उन लोगों से बात करना पसंद नहीं करते हैं जो आत्मसाक्षात्कारी नहीं है। लेकिन अगर उन्हें आत्मसाक्षात्कार हो जाता है तो ये गुरु उन लोगों के प्रति अपना रवैया बदल देते हैं जो उनसे मिलना चाहते हैं। भगवान के प्रोटोकॉल में एक आत्मसाक्षात्कारी और गैर- आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के बीच एक ज़बरदस्त अंतर है। एक आदमी राजा या कुछ भी हो सकता है उसे बाहर रहने लिए कहा जाएगा। इसका इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि आप किस पद पर विराजित हैं। यदि आप एक आत्मसाक्षात्कारी है और बाधित नहीं है तब उसे सर्वोच्च स्थान दिया जाता है। लेकिन अगर आप बाधित हैं तो गुरु उसे बताएगा कि “तुम यहाँ से निकल जाओ, पहले अपनी बाधा से छुटकारा पाओ और फिर आओ।“ और ये सभी सख़्त नियम थे, कि ऐसे और ऐसे व्यक्ति को मार दिया जाना चाहिए, और ऐसे व्यक्ति को हाथ काटने, पैर काटने, यहां तक कि आंखों को नष्ट करने की सजा दी जानी चाहिए। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि वे आत्मसाक्षात्कारी नहीं थे। यह मूसा की महान अनुभूति थी, कि मुझे लगता है, कि उन्होने एक और ही तरह का कानून बनाया, जिसे अब शरिया के नाम से जाना जाता है और जिसका मुसलमान तबका अनुसरण कर रहा है यह मुझे एक तरह से उचित लगता है, क्योंकि जो लोग अभी सामान्य लोग हैं वे वास्तव में इस तरह के नियम के लायक हैं, लेकिन यह इतना कट्टर नहीं होना चाहिए कि आप एक आत्मसाक्षात्कारी और एक गैर-आत्मसाक्षात्कारी के बीच भेद नहीं कर सके।
अब आपके भीतर का गुरु तत्व जागृत हो जाएगा यदि आप खुद के साथ कठोर हैं। यह एक बिंदु बहुत महत्वपूर्ण है जब तक और जब तक आप खुद पर सख़्त नहीं होंगे तब तक गुरु आपके भीतर जागृत नहीं होंगे। जो लोग आलसी हैं, जो कुछ भी त्याग नहीं कर सकते हैं, जो आराम के बहुत शौकीन हैं, वे कभी गुरु नहीं हो सकते, इसे मुझसे जान लो। वे अच्छे प्रशासक हो सकते हैं, वे कुछ भी हो सकते हैं, लेकिन गुरु कभी नहीं। एक गुरु को परिस्थिति के अनुसार जीने के लिए तैयार रहना चाहिए। उसे पत्थरों पर सोने में सक्षम होना चाहिए, उसे किसी भी परिस्थिति में सोने में सक्षम होना चाहिए। ऐसा नहीं है कि शिष्य को उस पर ज़बरदस्ती करना चाहिए, बल्कि यह उसका अपना स्वभाव होना चाहिए, कि वह खुद को समायोजित कर सके। आराम एक गुरु पर हावी नही हो सकता। अब जो लोग अपने गुरु सिद्धांत को जागृत करना चाहते हैं उन्हें पता होना चाहिए कि आपको आराम की मांग नही करना चाहिए। यहां तक कि आराम जैसी चीज भी नही, कल आपने नाच देखा था, एक असली तपस्या करनी है। गहन तपस्या आपको करना है, नृत्य जैसी चीज भी आप तपस्या के बिना नहीं सीख सकते। इसलिए गुरु को तपस्या से गुजरना जरूरी है। सहज योगी को करने की जरूरत नहीं है, लेकिन एक गुरु सहज योगी को यह करना होगा। हमें तपस्या करनी है, और तपस्या आपकी किसी भी प्रकार की इच्छा की हो सकती है। माना कि, आप भोजन के बहुत शौकीन हैं, बस उस भोजन को ना खाएं जो आप खाना चाहते हैं। यदि आप मीठे भोजन के बहुत शौकीन हैं, तो एक सो आठ गुना की शक्ति का कुछ कड़वा खाएं। और यदि आप किसी विशिष्ट प्रकार के बहुत शौकीन हैं … – जैसा कि भारतीय हैं, कभी-कभी … बहुत मसालेदार भोजन करते हैं, तो बिना नमक का भोजन करें। अपनी जीभ को सही व्यवहार करना सिखाएं। अपना ध्यान भोजन पर लगाना एक गुरु को शोभनीय नहीं है। मैंने कुछ सहज योगियों को देखा है, वे तभी ठीक हैं जब भोजन मिलता है, काफी एकाग्र होते है, लेकिन जब कार्यक्रम की बात आती है तो उनके पास कोई एकाग्रता नहीं होती है। ऐसी दुखद बात, ऐसे लोग गुरु नहीं हो सकते। वे रसोईये हो सकते हैं, अच्छे हो सकते हैं, या भोजन-चखने वाले या इस तरह के कुछ हो सकते हैं। उनके लिए बेहतर होगा, लेकिन अगर उन्हें गुरु बनना है तो उन्हें अपनी जीभ और अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करना सीखना चाहिए। मेरा मतलब है उपवास ऐसे लोगों के लिए अच्छी बात है, उपवास बहुत अच्छा है। हर समय वे चिंतित रहते हैं कि हम दोपहर के भोजन के लिए क्या लेने जा रहे हैं, हम रात के खाने के लिए क्या करने जा रहे हैं? ऐसे लोगों का ना तो गुरु तत्व जाग्रत हो सकता है, ना ही वे गुरु हो सकते हैं। इसलिए कृपया सावधान रहें।गुरु का जीभ पर नियंत्रण होना चाहिए। उसे पता होना चाहिए कि कब गुस्सा करना है और कब कोमल होना है। उसे पता होना चाहिए कि कब, क्या और कितना कहना है। इसीलिए ना बोलने से कई गुरु अधिक प्रभावी रहे हैं। दूसरों की मदद करने का मौन सबसे अच्छा तरीका है| लेकिन जब सहज योग की व्याख्या करने की बात आती है, तो आपको बोलना चाहिए। लेकिन मैंने कुछ लोगों को देखा है कि जब वे निरर्थक बातें करते हैं तो वे बहुत स्पष्ट होते हैं, लेकिन जब सहज योग की बात आती है, तो वे सहज योग के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं। तो आपको सहज योग का विशेषज्ञ बनना होगा यदि आपको गुरु होना है, ना केवल बात करने में, बल्कि आपके व्यवहार में, हर चीज में। …( मुझे नहीं पता कि आप करिश्माई शब्द का उपयोग करते हैं, करिश्माई वे इसे कहते हैं या आप कहते हैं,) एक यह और करामात है कि कुंडलिनी को कैसे चढ़ाएं, इसे सहस्रार पर कैसे डालें, कैसे सहस्रार तोड़ें, ये सभी बातें जो आपको पता होनी चाहिए, अपने ज्ञान को कैसे उपयोग करना है, उसे संस्कृत में विनियोग कहते है। गुरु तत्व एक व्यक्ति में तब जागृत होता है जब वह स्वयं कुछ उपलब्धि प्राप्त कर लेता है। एक अधपके हुए गुरु की कल्पना कीजिए जो एक गुरु के रूप में बात कर रहा हो। वह ज्यादा से ज्यादा अंत में एक शिष्य ही साबित होगा। तो आपको अपने स्वयं का गुरु होना चाहिए, लेकिन जब गुरु तत्व जागृत होता है, तो उसे दूसरों को देना होगा, चूँकि यह दूसरों को देने का प्रश्न है। इसलिए आपको दूसरों को देने के लिए एक उच्च स्तर पर होना चाहिए, बहुत उच्च स्तर पर होना चाहिए। अगर आप धन से लिप्त हैं, अगर आप भोजन से लिप्त हैं, अगर आप जीवन की सांसारिक चीजों से लिप्त हैं, तो आप नहीं दे सकते। अब इससे उच्च स्थिति प्राप्त की जा सकती है, जो स्वाभाविक रूप से मेरे पास है, लेकिन आप लोगों द्वारा भी प्राप्त की जा सकती है यदि आपको किसी तरह की कोई भी नियम और कानून की निर्भरता नहीं है, कि यह कहना पड़े कि मैं भोजन की कोई चिंता नहीं करूँगा ,या मुझे उपवास करना चाहिए, यह – यह सब समाप्त हो जाता है। आप की वह अवस्था होना चाहिए की आप जब आप भोजन करते हैं, लेकिन खाना नहीं खाते हैं| वह अवस्था होनी चाहिए, जिसमें आप खाना खा रहे हों और यदि आप से कोई पूछें, “क्या आपने अपना दोपहर का भोजन किया है?” “मुझे नहीं पता …” “क्या आपका दोपहर का भोजन होगा?” “मैं नहीं जानता …” शरीर की समस्याओं के लिए बिल्कुल उदासीन। “तुम कहाँ सोये?” “मुझे नहीं पता …” “आपने क्या खाया, आप क्या लेंगे खाने के लिए ?” “मुझे नहीं पता …”इस तरह की स्थिति को अतीत अवस्था कहा जाता है, जहां आप किसी भी घटना से परे होते हैं, और आप जो भी करते हैं, आप कर रहे होते हैं क्योंकि यह किया जाना है। इस पर कोई ध्यान दिए बिना, स्वचालित है। कुछ भी अन्य इस से अधिक महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन यह है – अतीत अवस्था पाने से पहले आपको अपने आप को स्थिर करना और समझाना पड़ता होगा कि, “कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है,”| आप देखते हैं, इसे लोग आविर्भाव कहते हैं,जो की एक तरह का ड्रामा है जिसे आपको अपने ही अंदर लाना है। “ओह” कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है, यह क़ालीन महत्वपूर्ण नहीं है, मुझे सीमेंट पर सोने की कोशिश करनी चाहिए।“ शुरुआत में आपको वह करना होगा। लेकिन कुछ समय बाद ऐसा होता है कि आपको याद नहीं रहता कि आप सीमेंट पर या खाट पर सोए थे, “मैं कहाँ सोया था? मुझे नहीं पता।” वह अतीत अवस्था है। और उस अवस्था को अब कई सहज योगियों द्वारा प्राप्त किया जाना है- जिस अवस्था में आप परे चले जाते है। मान ले की, कोई है जो आपके सामने है और आपको गुस्सा करना है। सब ठीक है, आप उन्हें बाएँ, दाएँ, बाएँ, दाएँ अच्छी तरह से डांट देते हैं और फिर आप अगले पल मुस्कुरा रहे हैं। क्या आपको उस व्यक्ति पर गुस्सा आया? “मुझे नहीं पता, क्या मैंने किया था?” जैसे बुद्ध ने एक बार एक गांव में कुछ कहा था और एक भयानक व्यक्ति था, जो उठा और उन्हें बहुत सारी बातें सुनाई। और जब वह अगले गाँव गये तो उस व्यक्ति को लगा कि “ओह, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था,” लेफ्ट विशुद्धी, शायद। तो वह अगले गांव गया और कहा, “मुझे क्षमा करें सर, कि मैंने ऐसा कहा है और मुझे यह नहीं कहना चाहिए था, मुझे नहीं पता था कि आप प्रबुद्ध हैं, इसलिए ऐसा हुआ, इसलिए मुझे क्षमा करें।” उन्होंने कहा “कब, कहाँ कहा?” उन्होंने कहा, “आखिरी गांव में।” “ओह, पिछले गाँव का सब कुछ मैं वहीं छोड़ आया हूँ जो मुझे अपने साथ नहीं ले जाना है।” यही वह अतीत अवस्था है जिस तक आपको पहुंचना है। यहां तक कि महसूस करने के लिए भी नहीं, यह महत्वपूर्ण नहीं है। जब यह पहचान पूरी तरह से समाप्त हो जाती हैं तब आप अकर्म की स्थिति में काम कर रहे होते हैं, जहां, जैसे सूरज चमक रहा है, उसे यह पता नहीं है कि यह चमक रहा है। जब चैतन्य प्रवाहित हो रहे है, तो आप नहीं जानते है कि यह बह रहा है। पहले से ही आप में काम करना शुरू कर चुके है। आप हैरान हैं, आप हाथ उठाते हैं और कुंडलिनी चढ़ रही है। आप नहीं जानते कि आप वास्तव में कुंडलिनी चढ़ा रहे हैं। आप इसे कैसे चढ़ाते हैं? आप नहीं जानते, यही तो बात है। वह अतीत अवस्था आप में पहले से ही कार्यान्वित हो चुकी है, लेकिन इसे जीवन के हर क्षेत्र में, सब कुछ में, स्थापित हो जाने दें, की आप परे है। और यदि आप इसे व्यवस्थित कर सकते हैं तो, यही वह उच्च अवस्था है जहाँ की आपको पहुंचना है।
अब अवतार के साथ यह बहुत अलग है, यह दूसरा तरीका है। सब कुछ दूसरे तरीके का है। उन्हें कोई तपस्या नहीं करनी पड़ती है उन्हें भूखा नहीं रहना होता है, उन्हें खुद को शुद्ध नहीं करना है, जो कुछ भी वे करते हैं वह पुण्य है। उन्हें पुण्य भी एकत्र नहीं करना होगा। अगर वे किसी को कत्ल करते हैं तो यह धर्म है। अगर वे किसी को मारते हैं तो यह धर्म है। कुछ भी वे गलत नहीं करते हैं। वे बिल्कुल बेदाग हैं। यदि वे किसी को मुर्ख बनाते हैं, वे किसी को धोखा देते हैं, यह पूरी तरह से ठीक है। क्योंकि एक उच्च लक्ष्य के लिए आपको छोटे लक्ष्यों को छोड़ना होगा। आप देखेंगे की, यह हमारे दैनिक जीवन में उचित है कि आप अपने देश का बचाव कर रहे हैं, जब आप के सामने दुश्मन है, अगर आपको अपने देश की रक्षा करनी है तो आप उसे मार सकते हैं। आप उसे धोखा दे सकते हैं, राजनयिक रूप से आप उसे धोखा दे सकते हैं। की अनुमति है, क्यों? क्योंकि उच्च लक्ष्य के लिए आपको छोटे लक्ष्य को छोड़ना होगा। लेकिन एक अवतार के लिए यह हमेशा उच्च लक्ष्य होता है। वह छोटे लक्ष्यों के बारे में बिल्कुल भी परेशान नहीं है। उसे अपने आप को तौलने, सोचने, युक्तिसंगत बनाने या खुद को प्रशिक्षित करने या कुछ नाटक या कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है, यह सब उचित ही किया है। यहां तक कि गति, हर गति, एक अवतार के हर आंदोलन में एक लहर है, जो की अच्छे के लिए है। अन्य कुछ भी नहीं ,यहां तक की एक पल भी ऐसा नहीं है जो दुनिया की भलाई के लिए नहीं है। तो अवतार एक बहुत अलग चीज है, जिसे हासिल नहीं किया जाना है, वह तो होना होता है। अब उदाहरण के लिए अवतार भोक्ता है, भोक्ता है, वह हर चीज का आनंद लेने वाला है, जिसे की जैसे, कई लोगों ने रचा है। अब यहाँ तुर्की से लाया गया क़ालीन बिछाया है। अवतरण के बैठने के लिए इन कालीनों को कुछ समय पहले तुर्की के लोगों ने बनाया था। इसलिए ऋतुमभरा प्रज्ञा इसे इस तरह से सामने लाएगा कि कम से कम मैं इसे देखु, या मैं रख लु , ताकि उनकी आत्माएं धन्य हो जाएं, ताकि वे अच्छा महसूस करें। जैसे माइकल एंजेलो ने बनाया है लेकिन पोप के लिए नहीं, मैं आपको बता सकती हूं। और उन सभी बकवास लोगों के लिए भी नहीं जो वहां जाते हैं। ना तो ब्लैक ने उन सभी बेकार लोगों के लिए काम किया जो नग्नता कलाकृतियां को देखना चाहते हैं। यह सब अवतार के देखने के लिए किया गया था। यही कारण है कि उन्होंने सबसे अधिक आशीर्वाद दिया है, क्योंकि वे परे हैं, कुछ भी उन्हें छूता नहीं है, कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन यह तर्कसंगत या अन्य भी नहीं है जो उन्होंने खुद को प्रशिक्षित किया है, लेकिन यह स्वतः ही उनके पास है। जैसे श्री कृष्ण को सोलह हजार स्त्रियों से विवाह करना पड़ा। क्या तुम कल्पना कर सकते हो? एक पत्नी वाद के उन दिनों में उन पर सौ गुना मुकदमा चलाया जाता। कारण उसके पास सोलह हजार शक्तियों थीं और उन्हें इस पृथ्वी पर उन सोलह हजार शक्तियों के साथ पैदा होना था और पांच तत्व उसकी रानियां बन गए। उन्हें अपने आसपास रखने के लिए कुछ औचित्य प्रदर्शित करना पड़ा। और जैसा कि मेरे पास अब सहज योगी हैं जिन्हे मैने आत्मसाक्षात्कार दिया है। इसलिए स्वतः ही मैं आपकी माता हूं, स्थापित है। लेकिन उसके लिए अपनी सोलह हजार शक्तियों से शादी करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। और इसलिए उन्होंने शादी कर ली, लेकिन उन्होंने कभी शादी नहीं की, वह जीवन भर कुंवारे थे पूर्ण रूप से, हर तरह से। क्योंकि वह योगेश्वर है और वह एक ब्रह्मचारी है। उनसे कौन शादी कर सकता है? इसलिए उनके लिए ये सभी सांसारिक चीजें सिर्फ एक नाटक हैं, जिसका कोई मतलब नहीं है। यह सिर्फ एक नाटक है। एक व्यक्ति जो अवतार नहीं है उसे ऐसा बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। यह मनुष्य का अधिकार नहीं है। सड़क पर खड़े एक पुलिस वाले की तरह, अगर वह अपने हाथों को दाएँ, बाएँ करता है – हम इसका पालन करते हैं। लेकिन आप किसी पागल आदमी को वहां जाकर खड़े होने के लिए कहते हैं, तो उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। सामान्य लोगों के लिए, यहां तक कि आप एक गुरु हैं तो भी आप को उन्हें अपने पैरों को छूने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। केवल एक अवतार के पैर को छुआ जाना चाहिए और किसी और के पैर को नहीं छूना चाहिए। बेशक समयानुसार, जैसे भारत में हमारे पिता के पैर छूने का रिवाज है, लेकिन क्योंकि पिता आप में पिता तत्व के प्रतिनिधि है, इसलिए – या माँ। लेकिन वह प्रतीकात्मक है, लेकिन वास्तव में आप को किसी और के प्रति नहीं बल्कि केवल एक अवतार में स्वयं को समर्पित करना चाहिए। इसके अलावा अगर आपके कमरे में कोई शिक्षक, कोई भी कला के या वैसे भी गुरु हैं, तो आपको उनके पैर छूने चाहिए। यहां तक कि उसका नाम लेने के लिए भी आपको अपने कान खींचने होंगे। लेकिन जो कोई भी सामान्य इंसान है उसे आपके पैर छूने की अनुमति नहीं होना चाहिए, खासकर सहज योगियों को नहीं। किसी को भी आपके पैर छूने के लिए नहीं कहना चाहिए। एक बुजुर्ग के रूप में, हो सकता है ( यह एक अलग मुद्दा हैं), लेकिन एक गुरु के रूप में नहीं। एक बहुत ही खतरनाक चीज है, एक बार जब आप इसे शुरू करते हैं, तो आप जानते हैं कि क्या होता है, कि इतने सारे लोगों के साथ, वे सहज योग से बाहर निकल गए हैं।
इसलिए अपने अंदर गुरु तत्व को विकसित करने के लिए सबसे पहले आपको खुद को, पूरी तरह से विकसित करना होगा। अब अपने आप को गुरु तत्व में कैसे विकसित किया जाए, यह देखना होगा। हमें अपने भीतर दस सिद्धांत मिले हैं, जैसा कि मैंने आपको पहले बताया था और हमें इन सभी दस सिद्धांतों को इस तरह से विकसित करना चाहिए, कि हम दूसरों से भिन्न खड़े हों। कल जैसा कि मैंने आपको बताया था कि जब हम ध्यान,धारणा-समाधी करते हैं और ऋतुमभरा प्रज्ञा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, तो उस पूरी चीज़ को अलग-अलग क्षेत्रों में डाल दिया जाता है, जिसे देस या भूमि कहा जाता है। आप उन्हें किस तरह उपयोग करते हैं यह विचारणीय है – यह मंत्र के माध्यम से है, इसे मंत्रों के माध्यम से साफ़ करें, अपने ध्यान के माध्यम से इसे साफ़ करें, हर दिन आपको पता होना चाहिए कि किस चक्र को साफ़ करना है। आपको अपने बारे में पता होना चाहिए कि समस्या कहां है, इसे कैसे साफ किया जाए, हमें इसे कैसे निकालना है। इसे हलके में ना ले, नज़रअंदाज ना करें। कई लोग, जैसे की जिन्हें, कहते हैं, बाएँ तरफ समस्या है, वे बस उन्हें नींबू और मिर्च लाएंगे और सोचेंगे कि माँ ने काम कर दिया है। मैं केवल अस्थायी रूप से काम कर सकती हूं, लेकिन अगर एक वैक्यूम(ख़ामियाँ) है तो आप फिर से समस्या को अंदर खींच लेंगे। आप देखिए … आपके भीतर की ये ख़ामियाँ आप को कुछ और होने के लिए फिर से उकसाया करती हैं। तो उस वैक्यूम (कमियों) को निकालना आपका काम है और इसके लिए आपको अपने सभी दोषों के पीछे पूरी श्रद्धा से पड़ जाना होगा|यही आप सभी के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात है, और इन सभी अलग-अलग देशों पर पूरा चित्त देने की कोशिश करें- राष्ट्र हैं, उन्हें इस तरह कहा जाता है। और एक बार जब आप इसे साफ कर चुके होते हैं, तो यह प्रबुद्ध हो जाता है, प्रकाश से भरा होता है, फिर आप इसे प्रदेश कहते हैं, इसका अर्थ है कि देश प्रबुद्ध हो गया है। एक बार जो हासिल कर लिया तो आप उस मुकाम पर पहुंच गए हैं कि आप गुरु बन सकते हैं, लेकिन फिर भी आप सतगुरु नहीं हैं। सतगुरु बनने के लिए आपको अतीत अवस्था को प्राप्त करना होगा। अतीत अवस्था ऐसी है कि जो व्यक्ति अच्छा आदमी नहीं है वह आपके सामने कांपने लग जाएगा। जो आदमी जो झूठा है, जिसने दूसरों को धोखा दिया है उसकी जबान लड़खड़ाने लग जाएगी। वह आदमी जिसकी आँखें व्यभिचारी हैं, ऐसा पुरुष जिसका महिलाओं के संबंध में अपने मन पर, अथवा ऐसी महिला जिसका पुरुष के संबंध में मन पर नियंत्रण नहीं है, ऐसे व्यक्ति की आँखों में घबराहट होगी| उन में से कुछ कांपेगे, जो की बाधा ग्रस्त हो सकते है| सदगुरु के प्रकाश में उनकी असलियत उजागर हो जाएंगी। जब आप यह स्थिति हासिल कर लेते हैं तब, आपको उनसे लड़ना नहीं पड़ता है, तो उनका खुद ही खुलासा हो जाएगा और आपको कुछ भी नहीं करना होगा। एक दिन मुझे बताया गया कि परिवार में एक नौकर, महिला-नौकर है, जो एक बहुत ही बाधा ग्रस्त व्यक्ति है। तो मैंने कहा “उससे छुटकारा पा लो।” मैं एयरपोर्ट गयी। मेरे रास्ते में, मैं उस घर पर रुक गयी और नौकरानी बस अंदर चल कर आ रही थी , आप देखें और वहाँ एक बडी नाली बह रही थी, मेरा मतलब है एक खुली हुई नाली, और उसने मुझे देखा और वह उसमें गिर गई। मैंने कहा, “हे भगवान,” तो मैंने ड्राइवर से कहा कि कार को थोड़ा आगे ले जाओ। और वह गिर गई। ऐसा होता है। मैं एक दिन विमान से यात्रा कर रही थी और सामने वाला सज्जन बस कूदने लगा। तो एक सहज योगी ने पूछा, “क्या आप ‘टी एम’ से हैं?” उन्होंने कहा, “आप कैसे जानते हैं?” उन्होंने कहा, “हम जानते हैं।” तो मैं पीछे बैठ गयी। यह हो सकता है कि वे सभी हो सकते हैं … एक दिन आ सकता है जब वे इस तरह कूदना शुरू कर सकते हैं। या एक पायलट कूदना शुरू कर सकता है। यह मेरे लिए एक बड़ी समस्या है। [माँ और योगी हँसते हैं।]यहां तक कि रोशनी … … आप एक चर्च में प्रवेश करते हैं और अचानक आप पाते है की रौशनी बंद हो जा रही है । बड़ी दावतों में भी, मैं पाती हूँ, जब मैं वहाँ बैठी होती हूँ और अचानक सब लोग आकर बैठ जाते हैं और उनके सभी भूत आस पास आ जाते हैं, वे कूदने लगते हैं और फिर लोग यह तमाशा देखना शुरू कर देते हैं, “क्या हो रहा है, क्या आग लगी है?” तो बहुत सी चीजें हो सकती हैं, जैसे एक सज्जन एक युद्ध के समय से बहुत बाधित थे और हम एक जहाज़ में जा रहे थे और एक छोटा सा मंच था जिस पर हमें पहले कूदना था और मंच ने ऐसा वैसा हिलना शुरू कर दिया, और साथी समझ नहीं पाए की ऐसा क्यों हो रहा है, और अब इसका क्या करें| इसलिए जब आप उस स्थिति में पहुंच जाते हैं, तो आपको बहस करने या कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है, ज़रा आप अपनी आँख भर उठा कर देखें, ऐसा होता है कि व्यक्ति समस्याओं में पड़ जाता है। या कुछ अहं-उन्मुख लोग हो सकते हैं, वे पिघल जाएंगे।
शुरुआत में आपको एक गुरु जैसा व्यवहार करना है,साधारण तरह के कपड़े पहने और नम्रता का व्यवहार हो, क्योंकि आपको उन्हें आकर्षित करना है। “आओ, साथ चलो, साथ आओ।” यह विज्ञापन है , विज्ञापन विभाग। और एक बार जब यह हो जाता है, यह नाटक पूरा हो जाता है तो यह बहुत जल्द सामने आ सकता है, अगर उन्हें पता चलेगा कि आप वास्तव में अच्छे नहीं हैं, आप सिर्फ एक नाटक बाज़ हैं। एक बार ड्रामा हो गया तो बहुत चतुराई से आप उनके सामने अपना असली आत्मस्वरूप ला सकते हैं। इसलिए पहले आप उन्हें यह ना दिखाए कि आप एक वास्तविक, कठिन कार्यपालक हैं। कभी नही। पहले अपने सभी मीठे गुणों का उपयोग करें। जितना अधिक वे कठिन हैं उतना ही अधिक मैं उनके साथ कोमल हूं। फिर वे अंदर आते हैं। फिर आप मिल में डालते हैं और आप उन्हें ठीक कर सकते हैं। पहले उन्हें तैयार करो। सबसे पहले कभी-कभी वे इतने भयभीत होते हैं, वे बहुत परेशान होते हैं, वे बहुत परेशान होते हैं, कभी-कभी बहुत अधिक अहंकार से। इसलिए कोमल रहो। धीरे-धीरे वे आपकी कंपनी में भी खुद को मजबूत करेंगे और फिर, भले ही आप उन्हें चोट दें फिर भी उन्हें परेशानी नहीं होगी। इस प्रकार यह बहुत ही चतुराई से किया जाना है। और यदि आप गुरू पद को प्रबंधित करने के मेरे तरीके को समझें हैं तो आप भी प्रबंधित कर सकते हैं। लेकिन गुरु की कुंजी धैर्य, पूर्ण धैर्य और सर्वशक्तिमान ईश्वर पर पूर्ण निर्भरता है। यह कुंजी पूर्ण धैर्य है। पहले आप उन्हें बताएं कि यह ऐसा होना चाहिए, लेकिन वे स्वीकार नहीं करेंगे। वे तर्क देंगे – कैसे, क्यों, यह, वह। सब ठीक है, आगे बढ़ो। फिर वे सूजी हुई आँख के साथ वापस आएँगे। या वे टूटी हुई नाक के साथ वापस आ सकते हैं। फिर आप कहते हैं, “सब ठीक है, मैं इसे ठीक कर दूँगा।” आप इस को ठीक कर देते हैं, और फिर उन्हें बताते हैं। तो यह समझदारी है, आप के पास योगेश्वर का विवेक होना चाहिए। लोगों के साथ कैसे व्यवहार करना यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है, मैं योगेश्वर क्यों कहती हूं। क्योंकि गुरु की अवस्था में आपको इसे सामूहिक स्तर पर देना होता है। एक बार जब आप एक गुरु बनना शुरू करते हैं, व्यक्तिगत स्तर खत्म हो जाता है और आप सामूहिकता में प्रवेश कर जाते हैं।
तो ये सभी तरीके जो मैंने अन्य एक दिन मोदी को समझाए, आप समझ सकते हैं कि, एक बार आपकी भवसागर पर की दस समस्याएं हल करने के बाद – आप विशुद्धि की सोलह समस्याओं को हल कर लेते हैं। और एक बार सोलह समस्याओं को पार कर लेने के बाद आप आज्ञा चक्र के पास आते हैं। और आज्ञा चक्र में त्याग को महसूस किए बिना इतना ज़बरदस्त बलिदान प्रतीक्षा कर रहा है। और हर किसी को यह देखना होगा कि आप उस अतीत अवस्था में क्या त्याग कर सकते हैं, क्योंकि आप कुछ भी नहीं त्यागते हैं। सब कुछ पहले से ही बलिदान है, बलिदान करने के लिए बचा ही क्या है? और ऐसी अवस्था को साकार करके प्राप्त किया जाना चाहिए कि तुम आत्मसाक्षात्कारी हो। आप सामान्य लोग नहीं हैं और आपके लिए सामान्य, सांसारिक प्रकार के नियम और कानून नहीं हो सकते हैं। जैसे यम और नियम, नियम अपने लिए हैं, दूसरों के लिए यम, कुछ भी नहीं। आपके साथ पूर्ण सत्य होना चाहिए। इतना ही कि आप उन्हें प्रकट करें और इन सभी सच्चाइयों में शक्तियाँ हैं। हर उस सत्य से जो तुम्हारे भीतर स्थापित है, आपको कुछ भी नहीं करना होता है, वे स्वयं कार्यान्वित होते हैं। इसलिए सबसे पहले आपको अपने चक्रों को ठीक करना चाहिए। चक्रों पर आपको अपना चित्त लगाना चाहिए। समाधि अवस्था के बाद आप उन्हें ठीक से खोलना शुरू कर देंगे। उन्हें शुद्ध करें। जानिए वो कौन से चक्र हैं जो ठीक नहीं हैं। मैंने ऐसे लोगों को देखा है जिनके बहुत कम चक्र खराब है, और कई अच्छे चक्र हैं, लेकिन वे केवल अच्छे चक्रों का आनंद लेंगे और ख़राब चक्रों के बारे में चिंता नहीं करेंगे। अपने बुरे चक्रों पर ध्यान दें, उन्हें साफ़ करें, उन्हें साफ़ करें। अपना सारा ध्यान उसी पर लगाओ। उस ईश्वर का ध्यान करो, जिस देवी की तुम पूजा करते हो और, तुम … अपने भीतर उनकी शक्ति का पूर्ण प्रकटीकरण प्राप्त करोगे। इसलिए सभी चक्रों को, सभी प्रदेशों को स्थापित करने के लिए साफ़ करें और उन प्रदेशों की स्थापना के बाद आपको सामूहिक स्तर पर दूसरों के साथ तालमेल स्थापित करना होगा। तब एक अवस्था होती है, जब आप आज्ञा चक्र में पूर्ण आत्मा बन जाते हैं।
सहज योग में यह सबसे आसान है, और मैंने आपको इसका कारण बताया है, क्योंकि आप ऐसे भाग्यशाली लोग हैं। सबसे आसान से भी आसान है, सहज योग। सहज योग का सार यह है कि यह करने के लिए सबसे आसान काम है। और यही कारण है कि हमें उस आसान विधि का पूरा फायदा उठाना चाहिए, जो आसान है, बिल्कुल आपके लिए है। यह आपके लिए गुरु पूजा का आशीर्वाद है कि आप सभी अगले साल तक गुरु बन जाएं। बस आपको अपने दिल में आज मुझे समर्पित करने और कहने की ज़रूरत है, मुझे अपने दिल में यह वादा करने की, कि माँ, हम कोशिश नहीं करेंगे बल्कि हम होंगे ही और तीन बार आप कहेंगे, “हम होंगे, हम होंगे।”
अब सब से आखिरी मैं आपको बताना चाहती हूं कि अब मैंने अपना साठवां साल पूरा कर लिया है और मेरे जन्मदिन का अब और कोई भी जश्न नहीं किया जाए, यह आखिरी है। कृपया इसे याद रखें। आपने जो कुछ भी कहा है, उसे मैंने स्वीकार किया है, क्योंकि साठवां जन्मदिन बहुत शुभ होता है। इसके बाद मेरे साठवें जन्मदिन का कोई और उत्सव नहीं।
आपने पहले ही मुझे सभी यूरोपीय लोगों की तरफ से कुछ भेंट देने के बारे में सोचा है। साठवें जन्मदिन पर मैंने स्वीकार कर लिया है, लेकिन इस तरह की कोई भी योजना अब साठवें जन्मदिन के लिए नहीं होनी चाहिए, जो अब बहुत हो चुका है। मैं आपको बहुत स्पष्ट रूप से बता रही हूं, सब ठीक है? इसलिए कोई भी अब मेरा साठवां जन्मदिन नहीं मना रहा है। मुझे आशा है कि यह आपके लिए स्पष्ट है।
तो गुरु और माता के प्रोटोकॉल को सहज योग में अनुभव करके समझा जाना चाहिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप इसके दूसरे पक्ष का अनुभव करने के लिए मर्यादा से बाहर चले जाए। अधिक से अधिक मर्यादित आचरण होने से आप पाएंगे कि आपको बहुत अधिक सहायता मिलेगी। जैसे की ‘निक’ एक दिन की मैंने उससे कहा, वह आपको बताएगा कि, दो महिलाएं थीं जो बेल्जियम जाना चाहती थीं। मैंने उन्हें कहा कि वे कल जा रहीं हैं। और उन महिलाओं ने कहा, “नहीं, हम आज जा रहे हैं।” ‘निक’ ने कहा कि, “माँ ने कहा है कि तुम कल जा रहे हो, इसलिए तुम कल जाओ, चाहे वह कुछ भी हो।” वे बोली, “नहीं, हम आज जा रहे हैं। माँ ने कैसे कहा कि हम कल जा रहे हैं? ” निक ने कहा, “लेकिन माँ ने कहा था” – पर वे नहीं सुनेंगी। इसलिए हमने उन्हें हवाई अड्डे पर भेजा और उन्होंने पाया कि उन्हें अगले दिन जाना था।
तो यह ऐसा है, कि प्रोटोकॉल ऐसा होना चाहिए की, “हाँ, माँ ने कहा है, फिर यह कोई बात नहीं है। यह गलत हो सकता है, कोई बात नहीं। वह जो भी कहती है, उसे स्वीकार करें और देखें”| केवल अनुभव करके आप जान पाएंगे, लेकिन शुरुआत में आप केवल यही कहेंगे, “नहीं, हम ऐसा नहीं करेंगे और ऐसा या वैसा” – यह अच्छा नहीं है। तो प्रोटोकॉल पालन करने के लिए सबसे सरल है, इसलिए सहज योग का सार, सरलतम का प्रोटोकॉल है। यदि आप उस प्रोटोकॉल को समझते हैं तो आपको कुछ नहीं करना होता है, तो आप इसके द्वारा स्वचालित रूप से प्रगति करेंगे। लेकिन चूँकि आप में प्रोटोकॉल की कमी है और इसीलिए आप समझते नहीं है। यही मुख्य बात है, कि सहज योग में श्रेष्ठ प्रगति होने के लिए प्रोटोकॉल को जानना चाहिए, जिसे आप दूसरों से पूछ सकते हैं। अनुभवी लोगों से आप पूछ सकते हैं, या यदि आप स्वयं अनुभव से सीखना चाहते है तो कर सकते है। लेकिन कुछ लोग दूसरे ही तरीके से कोशिश करते हैं, जैसे मुझे वापस जवाब देना, हर तरह की बातें कहकर वे सोचते हैं कि “चलो प्रयोग करके देखते है क्या होता है”। और फिर वे अपनी गर्दन तुड़वा लेते हैं और इलाज के लिए मेरे पास आते हैं। तो ऐसा नहीं होना चाहिए, अनुभव पाने के लिए प्रयास बेहतरी के लिए होना चाहिए। और यह है कि यदि आप दूसरों से पूछ सकते हैं, तो उन लोगों की सलाह लें, जो साधारण से उच्चतर की और बढ़ रहे हैं, कि प्रोटोकॉल क्या है? और अपना चित्त इस पर लगाएँ कि आप अपने प्रोटोकॉल की समझ को कैसे बेहतर बना सकते हैं, प्रोटोकॉल का पालन करने के लिए हमें क्या करना चाहिए, हम क्या गलत कर रहे हैं, आप कहां गलत हो रहे हैं? क्योंकि सहज योग का सार आज प्रोटोकॉल है, जो सबसे सरलतम होना चाहिए। करने के लिए यह सबसे आसान काम होना चाहिए और एक बार जब आप प्रोटोकॉल को जानते हैं कि “अगर उन्होंने यह कहा है, अगर यह मतलब है, तो यह उचित ही है।” लेकिन कुछ लोग इतने मजेदार होते हैं कि वे मुझे संदर्भ के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं। “माँ ने कहा है कि हर किसी को उपवास करना चाहिए।” मैंने किसी से कहा कि “आप बेहतर है की उपवास करें।” तो एक दुबला आदमी अगले दिन लस्त-पस्त होता हुआ आता है, मैंने कहा, “क्या हुआ?”
जब मैं किसी विशेष व्यक्ति से कुछ कहती हूं तो वे इसे प्रसारित करते हैं, क्योंकि वे सोचते हैं, “मुझे अकेले क्यों उपवास करना चाहिए, हर किसी को उपवास करना चाहिए।” एक बड़ी समस्या है, कि वे हमेशा मुझे उद्धृत करते हैं। किसी को भी मुझे दूसरों को उद्धृत नहीं करना चाहिए, क्योंकि हर एक बात महत्वपूर्ण है, जो कुछ भी आपको कहना है कि आप इसे नोटिस बोर्ड पर रख सकते हैं शायद मेरे हस्ताक्षर के साथ, बेहतर – सामान्य चीजों के लिए। और विशेष रूप से मैं जो कुछ भी मैं कहती हूं, आपको इसे विशेष रूप से करना चाहिए। कम से कम इतना विवेक तो हम सभी को होना चाहिए। और कोशिश करें। आपको बहुत मदद मिलेगी, आप आश्चर्यचकित होंगे, आपको बहुत मदद मिलेगी, क्योंकि यह सब कुछ आपकी बेहतरी और एक विशेष अनुग्रह के लिए है, यदि आप प्रोटोकॉल का सार समझते हैं। इसलिए मैं आपको उस बिंदु पर ले जा रही हूं, जहां आप यह समझना शुरू कर देंगे कि एक तरह से, आप को माँ को कुछ भी समर्पित नहीं करना है, क्योंकि वह कुछ भी नहीं लेती है, कुछ भी उसके पास नहीं जाता है। यह आप का समर्पण तो उस सब का त्याग है जो की, स्वयं आप के लिए अनावश्यक है| यह एक बहुत ही सौदर्य वर्धक प्रक्रिया है, जिसे हर किसी को अपनाना चाहिए| आप सभी बहुत आगे आ चुके हैं और आपको बहुत आगे बढ़ना है, मुझे यकीन है कि आप आगे बढ़ेंगे और अगले साल तक, जैसा कि आपने आज वादा किया है, महान गुरु बन जाएंगे।
तो, मुझे पता नहीं है, कि आज पूजा की प्रक्रिया क्या है, जो भी प्रक्रिया है, शुरू होने दें।तो अब पहले श्री विष्णु के इक्कीस नाम है, क्योंकि यह अस्तित्व के लिए है। फिर गणेश पूजा, गणेश पूजा है। फिर तीसरी बात … फिर संकल्प। संकल्प समर्पित व्रत है यह आप सभी को कहना है की,-आप यह पूजा किस लिए कर रहे हैं,। फिर गणेश पूजा। गणेश की पूजा के बाद आप गुरु पूजा करते हैं और गुरु पूजा के बाद, हम देवी पूजा करेंगे| देवी पूजा के बाद हम हवन के लिए निकलेंगे, उसके बाद – अगर आप चिंतित नहीं हैं, तो मैं आपको बताऊंगी – दोपहर का भोजन है।
तो बस अब आप अपना सारा ध्यान पूजा पर लगाए।
थोड़ा सुझाव यह है कि ये मंत्र आपके सुषुम्ना नाड़ी के मध्य मार्ग के लिए हैं। हर मंत्र का बहुत बड़ा अर्थ और गहरा महत्व होता है। मंत्र के अनुनाद को आपके चक्रों को खोलने में मदद करनी चाहिए। सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात, आपको इसे अपने दिल से कहना चाहिए। अपनी ज़ुबान से नहीं बल्कि अपने दिल से। इसे अपने दिल से कहें, तो तीव्रता बहुत अच्छी होगी। हम कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं जो सिर्फ साधारण मंत्र कह रहे हैं। हम आत्मसाक्षात्कारी है, हमें इसे अपने दिल से कहना होगा। यह वह भाग है जिसे संकल्प कहा जाता है, जहां आपको मेरे लिए समर्पित घोषणा करनी होगी कि आप यह पूजा क्यों कर रहे हैं। यह सभी दुनिया के लिए, सभी के लिए, सभी दिशा के लिए को, सभी देवताओं के लिए, हर शब्द को ऐतिहासिक दस्तावेज़ में नोट किया जाता है। तो आपको कहना है कि आप पूजा क्यों कर रहे हैं, इस दिन इस समय, कहाँ …यहाँ नदी का नाम क्या है? तुम उसे बताओ। अरुण।
सहज योगी: इस दिन, रविवार को जुलाई 1983 में 24-वें दिन, लॉज हिल में और ससेक्स काउंटी में अरुण नदी के पश्चिमी तट पर, यूरोप के इंग्लैंड देश में, गर्मियों के मौसम में, 10:25 बजे सुबह, जब सूर्य सिंह राशि में है और चंद्रमा कुंभ राशि में है, हम अपनी माता श्री आदि शक्ति की यह गुरु पूजा कर रहे हैं। पूर्णिमा के दिन। पूर्णिमा के दिन, गुरु पूर्णिमा। हम यह पूजा विश्व के सभी देशों के सभी सहज योगियों की ओर से करते हैं। और सभी धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, हम सभी अपने सभी परिवारों के साथ, अब भलाई के लिए प्रार्थना करते हैं, आध्यात्मिक भलाई, सभी बाधाओं पर विजय, निर्भयता, दीर्घायु के लिए, हमारे गुरु की दीर्घायु के लिए, स्वास्थ्य के लिए, धन के लिए, सहज योगियों की सभी बाधाओं के निर्मूलन के लिए, आठ सिद्धियों के स्वामी होने के लिए, सभी ,चाहे वह दो पैरों पर हो या चार पर को शांति देने के लिए। हम उन सभी लोगों के लिए स्वास्थ्य, संतुष्टि और शुभता के लिए प्रार्थना करते हैं, जो अब विकलांग हैं, सभी लोगों के लिए। उन्हें उच्चतम ज्ञान देने के लिए। और जो कुछ भी हमारी शक्तियाँ हैं, हमारा ज्ञान, जो भी प्रसाद हम ला सकते हैं, ध्यान के माध्यम से या जो भी साधनों से, सोलह बार दिया जाता है, ये हम पूजा में समर्पण करते हैं। और माता के आसन पर, जल पात्र, शंख और घंटी, हम सभी की पूजा कर रहे हैं। हम सभी नदियों से अनुरोध करते हैं कि वे हमारे शरीर को शुद्ध करें। इन सबसे ऊपर हम महागणपति की पूजा करते हैं और उनसे बिना किसी बाधा के इस पूजा को जारी रखने का अनुरोध करते हैं। और हम देवी को आमंत्रित करते हैं, ओह, माँ, जिनमें सभी हजार पुरुष निहित हैं| आपकी हजार आँख हैं और आप की शक्तियां अपार हैं, हम आपसे निवेदन करते हैं, आपको विनम्रतापूर्वक आमंत्रित करते हैं, इस अवसर पर पूजा के लिए पधारें।
श्री माताजी: आप इस पानी के बारे में बताइए। बस खड़े हो जाओ और कहो कि आप इसे क्यों लाए है।
सहज योगी: यह गुलाब जल है।
श्री माताजी: जोर से।
सहज योगी: गुलाब जल, गुलाब की पंखुड़ियों से और हाइलैंड प्रपात के जल से, बनाया गया। गुलाब, स्कॉटलैंड में गुरु दिवस पर, आज से तीन दिन पहले, गुरुवार को गिर गए, ताकि हम इस गुलाब जल से माँ के पैरों को धोने के साथ नमन करें ताकि माँ के आशीर्वाद से, स्कॉटलैंड और सभी देशों के गुरु तत्व माँ को भेंट कर सकें ।
श्री माताजी: इसे उस पानी में डाल दो ताकि…।
सहज योगी: हमारे कानों सत्य को सुन सकें|, हमारी आंखे वह देख सकें जो , शुद्ध है, हमारा अस्तित्व जो दिव्य है उसकी प्रशंसा करें, और जो मेरी आवाज़ सुनते हैं, वे उसमे परमात्मा का विवेक जाने । आइए हम उसी गीत, उसी शक्ति और उसी ज्ञान के साथ पूजा करें और अपने ध्यान को प्रबुद्ध और समृद्ध करें। हमारे मध्य दया और शांति रहने दो।
अब प्रार्थना: श्री गणेश को प्रणाम, साक्षात् श्री यीशु साक्षात् श्री निर्मला देव्यै नमो नमः। प्रारम्भ का भी प्रारम्भ आप ही है। आप ही सभी कर्मों के, जो किया गया है, किया जा रहा है, और किया जाएगा कर्ता है। यह आप हैं जो उन सभी चीजों का आधार प्रदान करते हैं जो आधारित हैं। यह आप ही हैं जो उन सभी चीजों की रक्षा करते हैं जो संरक्षित हैं। यह आप ही हैं, जो संपूर्ण, आत्मा, ईश्वर की दिव्य ऊर्जा हैं। स्पष्ट विचार सत्य वक्ता। कुंडलिनी द्वारा हममें आप की जागृत उपस्थिति होने दो, बोलो; कुंडलिनी द्वारा हमारे भीतर आप की जागृत उपस्थिति हो , सुनो; , कुंडलिनी द्वारा हम में आप की उपस्थिति जागृत हो, आशीर्वाद; कुण्डलिनी द्वारा हममें आप की उपस्थिति जागृत करो, रक्षा करो; , कुंडलिनी द्वारा हम में जागृत हो अपनी उपस्थिति में, शिष्य बनने दें। आप सभी पवित्र साहित्य और पवित्र शब्दों का सार हैं और आप पवित्र शब्दों को समझने वाली ऊर्जा हैं। आप पूर्ण सत्य, संपूर्ण आनंद और पूर्ण ऊर्जा के दिव्य संयोजन हो कर इस से परे हो। आप संपूर्ण ज्ञान हैं, और आप ही वह उपयोग हैं, जिसके लिए ज्ञान रखा गया है, आप सभी चीजों के अंत तक मौजूद हैं, और सभी चीजों के अंत के बाद आप हैं। आप सभी चीजों का अंत बनाते हैं, और सभी चीजों के अंत के बाद, आप उदासीन रहते हैं। तुम पृथ्वी हो, तुम जल हो, तुम अग्नि हो, तुम वायु हो, और तुम आकाश हो। आप गुण हैं और आप गुणों से परे हैं। तुम शरीर हो और तुम शरीर से परे हो। आप समय के सार हैं और आप समय से परे हैं। आप और केवल आप मूलाधार चक्र में स्थित हैं। आप आत्मा हैं और आप आत्मा से परे हैं; और जो लोग परमात्मा के साथ योग करेंगे वे तुम्हारा ध्यान करेंगे। आप ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र हैं; आप इंद्र, अग्नि, वायु हैं; आप दोपहर के समय सूर्य हैं, आप पूर्णिमा हैं; इन सभी के माध्यम और उससे भी अधिक, आप अबोधिता और ज्ञान की सभी व्यापक ऊर्जा हैं। आप दिव्य सेवक हैं जो संतों के पैर धोने के लिए रुकते हैं; आप सभी चीजों के लघुतम मूल हैं, जिनके बिना विशाल भी उद्देश्यहीन है; आप सभी शास्त्रों के पुस्तकालयों की कुंजी हैं, जिसके बिना सत्य उजागर नहीं होता है; आप पूर्ण विराम हैं जो वाक्य को पूरा करते हैं, और जिसके बिना वाक्य अपना अर्थ खो देता है। आप अर्धचंद्राकार हैं, आप ग्रह हैं और आप सितारों से परे हैं; सभी चीजें, छोटे बिंदु से ब्रह्मांड तक, आप हैं।
श्री माताजी: आप को अपना हाथ अंदर नहीं डालना हैं। मंत्रों के कहने पर बस मेरे चरणों पर पानी डालें।
सहज योगी: आप भविष्य हैं और भविष्य से परे हैं। सभी रूपों में आप हैं। जहाँ ध्वनियाँ संयोजित होती हैं वह स्थान आप है ; नाद के बीच का मौन आप हो; सभी संगीत और सभी प्रार्थनाओं की लय आप हैं। यह निर्मल गणेश का ज्ञान है, और आप, निर्मल गणेश, उस ज्ञान और सभी ज्ञान के स्वामी हैं। देवी और देवता आप ही हैं ।ॐ गं निर्मल गणपतये नम:|आप की शक्तियों को हम समर्पण करते है| बाएँ पक्ष की स्मरण शक्ति और दाएं पक्ष की कार्य शक्ति आप को समर्पित करते है| आप का आलोक व्यापक होने दो। एक दन्त ,चार भुजा वाले हैं, पाश एवं अंकुश धारण किये है| तीसरा हाथ आशीर्वाद में उठा हुआ है और चौथा जीविका प्रदान करता है। हाथ में मूषक अंकित ध्वजा धारण किये हुए है| ध्वजा का रंग लाल है, बड़े पेट वाले, सूप के सामान बड़े कानों वाले, लाल वस्त्र धारी, सुगन्धित सिंदूर से श्रंगारित है, और आप लाल फूलों से पूजे जाते हैं। भक्तों पर कृपा करते है, संसार के कारण है, निर्दोष है, और आपसे प्यार करने वालों के लिए आप अवतरित होते हैं| आप रचना की शक्ति, सर्वव्यापी उर्जा और रक्षाकारी आत्मा हो| योगी ,योग प्राप्ति के लिए आपसे प्रार्थना करते हैं। जो ईश्वर से मिलन की कामना करते हैं, वे आपकी पूजा करते है | ॐगंनिर्मल जीसस। आपकी शक्तियों के लिए, ॐ जीसस, सब समर्पण कर दें;बाएँ पक्ष की स्मरण शक्ति और दाएँ पक्ष की कार्य शक्ति आप को समर्पित करते है |आप का आलोक व्यापक होने दो। आप आदि और अनादी शब्द हैं। आप वह हैं जो कुंवारी से पैदा हुए, और क्रास पर चढ़ गए| आप वह हैं जो सभी पापों को अवशोषित करते हैं, और जो पुनरुत्थान लिए मर गए। आप मनुष्य में भगवान हैं, और आपकी पूजा लाल फूलों से की जाती है। आप उन लोगों के लिए दया करते हैं जो आपसे प्यार करते हैं, और यह उन लोगों के लिए है जो आपसे प्यार करते हैं कि आप इस धरती पर आते हैं। आप रचना की शक्ति है, व्याप्त ऊर्जा है और रक्षाकारी आत्मा है। योगी आपके माध्यम से प्रार्थना और आपकी पूजा करते हैं| ॐ गं गणपतये नमो नम:|ॐ श्री निर्मल जीसस नमो नम:| वह जो प्रथम पूज्यनीय है उनको नमस्कार| सभी बाधाओं का नाश करने वाले को नमस्कार|श्री शिव पुत्र जो साक्षात् अनंत आशीर्वाद प्रदायक है को नमस्कार। साक्षात् मैरी माता के पुत्र, जो अनंत प्रेम है को नमस्कार है। साक्षात माता निर्मल देवी, जो अनंत आनंद है, को नमस्कार है।
श्री माताजी: अब संस्कृत के श्लोकों का अंग्रेजी में अनुवाद किया जा रहा है जैसा कि आपने सुना है कि यह कहा जाएगा, उस समय जब वे मेरे पैरो पर पानी डाल रहे होंगे, जिसे अभिषेक कहा जाता है।
जोर से बोलो। पर धीरे- धीरे से।तुम्हें हाथ लगाना होगा, उसे पकड़ना होगा। अब देखिए विनियोग, शब्द आया है – इसका उपयोग। श्री गणेश के नाम का उपयोग क्या है? जब आप उसे याद करते हैं, तो आप उसे कहाँ उपयोग करते हैं? विनियोग, बहुत अच्छा शब्द है। ठीक है।
(लड़कियाँ आती हैं।)
श्री माताजी: नहीं, अविवाहित। अब वे अंग्रेजी में श्री महाविष्णु के बारे में पढ़ेंगे, जो एक अवतार थे, इस धरती पर भगवान ईसा मसीह के रूप में आए थे। उनकी कैसे रचना की गयी थी, और उसका सार|यह था … कि जब, श्री गणेश का वह एक सार थे और वह अंततः इस धरती पर श्री भगवान श्री यीशु मसीह के रूप में आए थे। लेकिन वह महाविष्णु कैसे बने और उनका आशीर्वाद क्या था, हमें कहना चाहिए कि श्री कृष्ण के पुत्र कौन थे।
प. पु. श्री माताजी निर्मला देवी