Shri Krishna Puja: Vishuddhi Chakra Vienna (Austria)

                        “विशुद्धि चक्र”  वियना (ऑस्ट्रिया), 4 सितंबर 1983। अमेरिका जाने से पहले मैं विशुद्धि चक्र और हमारे भीतर स्थित श्रीकृष्ण के पहलू के बारे में और बात करना चाहती थी। जिनेवा में पहली पूजा में मैंने इसके बारे में काफी कुछ बोला। इसका कोई अंत नहीं है, निश्चित रूप से क्योंकि यह विराट का केंद्र है। लेकिन समझना यह होगा कि श्रीकृष्ण का संदेश ‘समर्पण’ करना था। अब,  हम स्थूल रूप से जिसे समर्पण सोचते हैं, वह एक शत्रु का दूसरे शत्रु के प्रति समर्पण जैसा है। तो जब ‘समर्पण’ शब्द बोला जाता है, तो ऐसा सोचकर हम अपनी रुकावटें बना लेते हैं कि अब हमें आत्मसमर्पण करना है – दूसरे पक्ष पर कुछ छोड़ दो। लेकिन जब श्री कृष्ण ने समर्पण की बात की तो वे कह रहे थे कि, “अपने शत्रुओं को मुझ पर छोड़ दो ताकि मैं उनसे छुटकारा करवा दूंगा।” अब हमारा सबसे बड़ा दुश्मन हमारा अहंकार है। और अहंकार के साथ ही अन्य सभी प्रकार की समस्याएं शुरू हो जाती हैं, क्योंकि यह हमारे विकास में सबसे बड़ी रुकावट है। और अहंकार शुरू होता है, जैसा कि आप जानते हैं, विशुद्धि चक्र से और विशुद्धि चक्र में शोषित भी हो सकता है। अब देखते हैं कि यह विशुद्धि चक्र कैसा बना है। हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले सभी स्वर विशुद्धि चक्र से आते हैं। और देवनागरी भाषा की तरह यह है [अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ रु ऋ ळ ण ॐ अः?] – सोलह। तो जैसा कि आप जानते हैं Read More …