गुरु पूजा, ह्यूस्टन, यू.एस.ए, २० सितंबर १९८३
तो, आज हम सबसे पहले गणेश पूजा करेंगे, क्योंकि गणेश अबोधिता हैं और हमें उन्हें किसी भी ऐसे स्थान पर स्थापित करना चाहिये, जहाँ हम कोई कार्य आरंभ करना चाहते हैं या इसके विषय में कुछ करना चाहते हैं । क्योंकि वे अबोधिता हैं और अन्य कुछ और सृजित होने से पूर्व अबोधिता का सृजन हुआ था। मुझे कहना चाहिए कि यह सबसे प्रबल शक्ति है: अबोधिता।
और तब हम गुरु पूजा करेंगे, जो वास्तव में आदि गुरु हैं, ‘प्राइमोर्डीयल मास्टर’ (आदिकालीन गुरु), जिन्होंने इस पृथ्वी पर अनेकों बार अवतरण लिया । और जैसा कि आप जानते हैं, दत्तात्रेय के रूप में उनका जन्म हुआ, फिर जनक, नानक व अन्य अनेक रूपों में उनका जन्म हुआ। वह सिद्धांत हमारे अंदर है और यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि हमें गुरु नानक या जनक या इनमें से किसी भी आदि गुरु के सिद्धांत को अपने अंदर विकसित करना चाहिए। क्योंकि यदि आत्मा गुरु है तो हमें स्वयं का गुरु बनना होगा। और गुरुओं की शक्ति यह है कि वे अबोधिता के मूलतत्व हैं – सृजनकर्ता की, पालनकर्ता की, तथा संहारक की । वे इन सभी की अबोधिता हैं। उनमें से, इस महान व्यक्तित्व – इन तीन व्यक्तित्वों की अबोधिता से – इस महान अवतरण का निर्माण हुआ।
और उनकी अबोधिता, वस्तुओं के प्रति उनकी निर्लिप्तता से प्रकट होती है। वे सब जगह अन्य मनुष्यों के समान रहते हैं: विवाहित, परिवारों में रहने वाले, किंतु पूर्णतः निर्लिप्त। जब तक आप में यह सिद्धांत जागृत नहीं होता, आप सहजयोग नहीं कर सकते।
सर्वप्रथम, यह गुरु तत्व आप में जागृत होना चाहिए जो आपको संतुलन देता है। तत्पश्चात उत्थान करना होगा – आत्मा के माध्यम से। जो कि शक्ति द्वारा होता है, स्वयं कुंडलिनी द्वारा। वह शक्ति है, वह कोख है: सर्वप्रथम, वही है जो पोषण करती है। वह पोषण करती है, हमारे अंदर की वह शक्ति हमारा पोषण करती है, हमारे सभी चक्रों का पोषण करती है, जिसके द्वारा वह हमारे मानसिक, भावनात्मक, शारीरिक, आध्यात्मिक अस्तित्व का उपचार करती है। क्योंकि कभी-कभी हम गलत लोगों के समक्ष झुकते हैं, जिससे हमारा आध्यात्मिक अस्तित्व भी बहुत आहत होता है।
तत्पश्चात, जब वह यह प्राप्त कर लेती है, तब वह आपके तालू भाग से ऊपर उठती है और आपको आत्मसाक्षात्कार देती है। इसलिए यह वही है जो आपको मोक्ष प्रदान करती है। यह वही है जो आपको शांति, और आनंद देती है। और यह आपकी माँ, आपके अंदर रहती है और यह आपको आत्म-साक्षात्कार देती है। इसलिए हम उसे, आपके अंदर शक्ति के रूप में, पूजते हैं, जिससे आप सशक्त हो जाते हैं, आप शक्तिशाली हो जाते हैं । परन्तु यह शक्ति आपको गुरु बनाती है। जब यह भवसागर में आती है, यह आपको गुरु बनाती है क्योंकि यह आपके अंदर उस गुरु तत्व को जागृत करती है और आप गुरु बन जाते हैं, आप स्वयं के गुरु बन जाते है, और इससे आप दूसरों के भी गुरु बन जाते हैं।
जो स्वयं का गुरु नहीं है, वह दूसरों का भी गुरु नहीं हो सकता है। इसलिए यह सर्वप्रथम आप पर कार्य करती है और फिर इसका विकिरण होता है, और यह विकिरण दूसरों को आपको गुरु के रूप में स्वीकार करवाता है। वह गतिशीलता तथा वह करुणामय वृत्ति, सब इस गुरु तत्व से विकसित होता है। परन्तु यह कुंडलिनी की कृपा है, कोख की, माँ की, जिसे हम कुंभ (ऐक्वेरियस) कहते हैं। यह हमारे अंदर विराजमान है, और हमें मात्र उसकी अभिव्यक्ति को स्वीकार करना है, और उदार ह्रदय से उसका स्वागत करना है और जानना है कि आज वह समय है जब हम मनुष्यों से अपेक्षा कर रहे हैं कि वे उस स्तर तक उन्नत हो जाएँ, जहाँ वे करुणा, प्रेम, स्नेह बन जाएँ। यह नई जागरूकता है जिसके साथ हम पूरी तरह से परिपूर्ण होने जा रहे हैं, और जब तक यह नहीं होता, तब तक मानव जाति के उद्धार की संभावना नहीं है, इसमें कोई संदेह नहीं है।
हमने बहुत स्थानों पर बहुत कुछ क्रियान्वित किया है और मुझे लगता है कि हर स्थान की एक अलग समस्या है। सबसे कठिन, जो मुझे लगता है, वह अमेरिका है। यह मथुरा के समान है जहाँ श्री कृष्ण को जा कर स्वयं को स्थापित करना पड़ा, वह श्री कृष्ण का राज्य था और जहाँ कंस शासन कर रहा था। तो मथुरा के लोग सबसे कठिन थे क्योंकि वे राक्षसों के शासन में थे तथा राक्षसों में अच्छे लोगों पर हावी होने की क्षमता होती है। उन सब पर (राक्षसों का) इतना प्रभाव था, कि जहाँ श्री कृष्ण रहते थे, उन्होंने वहाँ जा कर उन्हें नुकसान पहुँचाने और उन्हें मारने इत्यादि का प्रयास भी किया। और इन मथुरा के लोगों की सारी गतिशीलता कंस के द्वारा मार दी गई थी जिसे श्री कृष्ण द्वारा मारा जाना था।
आश्चर्यपूर्वक, पहले दिन जब मैं न्यू यॉर्क में पूजा के लिए आई, पहले दिन लिखा हुआ था ‘परिवर्तनी एकादशी’। अब एकादशा वह शक्ति है जिसके द्वारा लोगों का संहार होगा। अब वह ‘परिवर्तनी’ है , अर्थात् जिसके द्वारा आपका रूपांतरण होना है। तो यह कैसे है कि जो शक्ति नष्ट करने वाली है, वह आपका रूपांतरण करने वाली है?
सर्वप्रथम, यह उसे नष्ट करेगी जो अत्याचारी है, वह सब जो आपकी गतिशीलता को मारता है, वह सब जो आपको बंधक बनाता है, वह सब नष्ट होने वाला है। दूसरी बात, लोग डर जाएंगे – अपरिपक़्व लोग, जो ना तो इधर हैं ना उधर हैं, कि हम नष्ट हो जाएंगे और वह भय उन्हें बदल देगा। तीसरी बात, जब आप देखेंगे कि आपके मित्र और संबंधी नष्ट होने वाले हैं, तब आपमें उनके लिए और अधिक करुणा, और अधिक सहनशीलता होगी, और आप उन सभी को बचाने का प्रयास करेंगे।
अतः यह वैसा ही है, जब श्री कृष्ण को अपनी उंगली की नोक पर पूरा पर्वत उठाना पड़ा, आप देखिए इस प्रकार, दायीं ओर – ‘गोवर्धन धारी’ जैसा उन्हें कहा जाता था। वही कार्य मेरा यहाँ है; पुनः पर्वत को उठाना और इस प्रकार अपनी उंगली की नोक पर उठाना। किंतु इस उंगली को शक्तिशाली होना होगा और यह उंगली और कोई नहीं अपितु अमेरिका के सहजयोगी हैं और उन्हें अपने गतिशील व्यवहार और अपनी उचित समझ, उत्तरदायित्व द्वारा मेरी सहायता करनी होगी, पितृत्व के इस महान राष्ट्र के लोगों के रूप में। यह पिता की उंगली है और उस पितृत्व को गतिशील होना चाहिए, शक्तिशाली होना चाहिए और अत्यंत उत्तरदायी होना चाहिए। तथा उस उत्तरदायित्व में आप बहुत कुछ सीखते हैं।अतः वही मेरा कार्य है, वही मेरा लक्ष्य है।
उसने [पत्रकार ने] मुझसे टीवी पर पूछा, “माँ आप का लक्ष्य क्या हैं?” मैंने उसे नहीं बताया कि मुझे अपनी उंगली पर पर्वत उठाना है, आप देखें, वह उसे कभी नहीं समझ पाती। परन्तु आपको यहाँ ऐसा ही करना है। पर्वत को उठाना, और मुझे यह वैसा ही लगता है; पर्वतीय। तथा पर्वत का आधार ह्यूस्टन प्रतीत होता है जो इसका सबसे कठिन भाग है, वे हिलते ही नहीं हैं, वे हिलते ही नहीं हैं, यह ‘जड़’ है l यह बहुत, बहुत ‘तामसिक’ है, यह इतना अज्ञानता से भरा हुआ है और इतना भारीपन से भरा हुआ है। वह सबसे कठिन भाग है और इसलिए विशेष रूप से ह्यूस्टन के लिए हमें कुंडलिनी की अच्छे से पूजा करनी चाहिए ताकि वह ह्यूस्टन में जागृत हो ।
आप सबको परमात्मा का अनंत आशीर्वाद।
श्री माताजी: क्या आप मुझे कृपा करके रुमाल दे सकते हैं ?
सहजयोगी: यह कहा जाता है कि आज अनंत चतुर्दशी है ।
श्री माताजी: एह ..?
सहजयोगी: “अनंत चतुर्दशी”
श्री माताजी:आज? आहा बहुत बढ़िया ! हाँ, होना ही चाहिए ! मैं आश्चर्य कर रही थी “अनंत चतुर्दशी” |
अनंत चतुर्दशी वह दिन है जब हम विसर्जन करते हैं, श्री गणेश को पानी में विलीन करते हैं, क्योंकि वे दस दिनों के लिए स्थापित किए जाते हैं और दस दिन बाद…| उनका जन्म चतुर्थी को होता है। दस दिन के बाद वे पानी में विसर्जित कर दिए जाते हैं ताकि हर जगह उनकी शक्ति पानी के द्वारा फैल जाए। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि वहाँ एक पूजा थी। गणेश जी पानी में स्थापित हो गए हैं। यही अनंत चतुर्दशी है, श्री गणेश अनंत हैं। अनंत का अर्थ है जिसको नष्ट ना किया जा सके, अबोधिता नष्ट नहीं की जा सकती है।
और इसी कारण गणेश चतुर्दशी का अर्थ है वह दिन जब गणेश पानी में विलीन कर दिए जाते हैं, समुद्र में। या वे सृजित होते हैं, दस दिनों तक पूजा की जाती है और फिर से लौटा दिए जाते हैं ।
अतः आज बहुत बड़ा दिन है, मुझे कहना चाहिए जैसे ईसा मसीह का पुनर्जन्म, जो आप… , आपके पास यहाँ ईसा मसीह हैं, वे आप के साथ रहे हैं, और उसके बाद वे अपने पिता के पास चले गए। पिता समुद्र हैं, और इसलिए भारत में ऐसा करते हैं, चतुर्थी के दिन उन्हें स्थापित करते हैं और दसवें दिन वे उन्हें समुद्र में विसर्जित कर देते हैं।
सहजयोगी: हम स्कूल में यही चीज़ करते थे ।
श्री माताजी: क्षमा करें ?
सहजयोगी: मैंने कहा, हम यही चीज़ अपने स्कूल में करते थे।
श्री माताजी: अच्छा ?
सहजयोगी : यही चीज़ हम भी अपने स्कूल में करते थे।
अन्य सहजयोगी : वे कह रहे हैं यही वे भी अपने स्कूल में करते थे। वे गणेश बनाते थे।
श्री माताजी : सच में? कौन सा स्कूल ?
सहजयोगी : (विद्यालय का नाम)। तो हमारे पास एक प्रतिमा होती थी और चार लोग उन्हें ले जाते थे।
श्री माताजी: उसके बाद? विसर्जन ।
सहजयोगी: वहाँ नदी में बहाते थे।
श्री माताजी: परन्तु कोई समझता नहीं है। वे इसे मात्र करते हैं, बिना समझे कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं । तो यह बात है, यहाँ तक कि भारत में भी कितने लोग गणेश के विषय में जानते हैं, कोई भी नहीं जानता।
सहजयोगिनी: महाराष्ट्र के लोग ……
श्री माताजी: महाराष्ट्र के लोग उनकी बहुत पूजा करते है, किंतु वे इनके बारे में अधिक नहीं जानते हैं। वे नहीं जानते हैं कि गणेश कितने महत्त्वपूर्ण हैं, वे किसका प्रतिनिधित्व करते हैं, वे इस पृथ्वी पर कैसे आए, वे कुछ भी नहीं जानते हैं। उस तरह हम बहुत सतही हो गए हैं।
यह सब करके कम से कम आपका ध्यान वहाँ रहता है। आप देखिए, भारत में रहने का यह लाभ है, बच्चों को इस बात के लिए थोड़ा दबाव डालना पड़ता है, त्योहारों और बाक़ी चीज़ो के द्वारा वे खोजने का प्रयत्न करते हैं कि यह क्या है, वह क्या है, हमारा ध्यान वहाँ ज़्यादा रहता है, बाहर उतना नही होता, आप देखें, यह बात हैं।