Diwali Puja: Become The Ideals

Temple of All Faiths, Hampstead (England)

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

                  दीवाली पूजा, “आदर्श बनना”

“सभी धर्मों का मंदिर”, हैम्पस्टेड, लंदन (यूके), 6 नवंबर 1983

आज के चैतन्य से आप देख सकते हैं कि जब आपकी पूजा के लिए तैयारी  होती हैं तो आपको कितनी प्राप्ति होती है। आज आप इसे महसूस कर सकते हैं।

तो ईश्वर बहुत उत्सुक हैं, कार्य करने के लिए| केवल एक बात है कि, स्वयं तुम्हें तैयारी करनी है। और ये सभी तैयारियां आपकी काफी मदद करने वाली हैं। जैसा कि हम अब सहजयोगी हैं, हमें यह जानना होगा कि हम जो थे उससे कुछ अलग हो गए हैं। हम योगी हैं, हम दूसरों से ऊंचे लोग हैं। और ऐसे में हमें एक बात और भी समझनी होगी कि हम दूसरे इंसानों की तरह नहीं हैं जो कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं, जो पाखंड के साथ जी सकते हैं.

इसलिए सारी समस्याएं सभी धर्मों से उत्पन्न हुई हैं। एक व्यक्ति जो कहता है कि वह एक ईसाई है, वह पूरी तरह से मसीह विरोधी है; जो कहते हैं कि जो  इस्लामिक है, वह बिल्कुल मोहम्मद विरोधी है; जो कहता है कि वो हिंदू है, बिल्कुल श्रीकृष्ण विरोधी है।

यही मुख्य कारण है कि अब तक सभी धर्म असफल रहे हैं, क्योंकि मनुष्य आदर्शों की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं।

वे सभी कहते हैं कि हमारे पास यह आदर्श है, वह आदर्श है, लेकिन वे खुद आदर्श नहीं हैं, वे उन आदर्शों के साथ नहीं रह सकते। आदर्श उनके जीवन में नहीं हैं, वे बाहर हैं। लेकिन वे यह कहते चले जाते हैं कि ये हमारे आदर्श हैं, वे कट्टर हो जाते हैं, लेकिन वे आदर्श नहीं हैं।

सहज योग के द्वारा अब, आपके पास विधि है, आपके पास संभावना है, कि आप आदर्श बन सकते हैं। आदर्श को सबसे पहले अपने दिमाग से समझना होगा, विशेष रूप से पश्चिम में। वो आदर्श क्या हैं जो हम बन गए हैं या जैसा हमें बनना है, हम क्या हासिल कर सकते हैं, इसका विचार आपके पास होना चाहिए।

और दूसरी बात, आपके पास अपनी ध्यान शक्ति को गहरा करने की क्षमता होनी चाहिए, ताकि ये आदर्श आपके दिल में आपके अस्तित्व के अंग प्रत्यंग बन इस तरह स्थापित हो जाएं, कि आप इन आदर्शों के बिना नहीं रह सकते।

हम ईसा-मसीह का उदाहरण ले सकते हैं। क्राइस्ट के लिए वह और उनके आदर्श एक ही थे, दोनों में कोई अंतर नहीं है। उन्होंने ऐसा नहीं किया  कि, कोई एक बात की, दूसरा काम किया और तीसरे काम को अंजाम दिया। सहजयोगियों और गैर सहजयोगियों में यही अंतर होगा कि सहज योगी को जो भी आदर्श हैं, उन्हें अपने जीवन में हर पल व्यक्त करना है, क्योंकि आप वही हैं।

अगर आप सोना हैं, तो सोना हर समय सोना है। ऐसा नहीं होता की कभी सोना, कभी लोहा तो कभी मिट्टी, सोना हर समय सोना ही रहता है। केवल मनुष्य ही ऐसे होते हैं, कि कभी-कभी वे सांप, शेर भी हो सकते हैं और लोमड़ी भी हो सकते हैं। लेकिन सहजयोगियों के रूप में आप शुद्ध मनुष्य बन जाते हैं और यही ज्ञान हमें पाना है।

इसके लिए प्रयास करना कठिन नहीं है, कठिन नहीं है, क्योंकि अब आपके पास अपनी जड़ों को अपने हृदय तक गहरा करने की शक्ति है।

तो दिमाग का उपयोग स्पष्ट रूप से समझने के लिए किया जाना चाहिए कि एक सहज योगी के आदर्श क्या हैं; एक सहज योगी को क्या करना चाहिए; उसे जीवन में कैसा व्यवहार करना चाहिए; उसे किन तरीकों का पालन करना चाहिए। और फिर उसे ध्यान प्रक्रियाओं के माध्यम से, समर्पण के माध्यम से इसे अपने हृदय में लाना होगा।

मैं तुम्हें दूसरा जन्म कैसे देती हूं, यह आप अच्छी तरह जानते हैं। मैं तुम्हें अपने हृदय में धारण करती हूँ, अन्यथा मैं ऐसा नहीं कर पाती। चूँकि मेरा हृदय बहुत पवित्र है, वह तुम्हें शुद्ध करता है; मेरी करुणा, मेरा प्रेम तुम्हें शुद्ध करता है, और फिर मैं तुम्हें अपने सहस्रार से उत्पन्न कर सकती हूँ, अन्यथा मैं यह कैसे करूँगी? और जब ऐसा हुआ तो तुम एक नए व्यक्तित्व बन गए हो।

तो आप अन्य सभी से बहुत अलग हैं क्योंकि एक आत्मा ने आपकी आत्मा को जन्म दिया है। आप आत्मा द्वारा शुद्ध किए गए हैं।

तो आप उस तरह नहीं जी सकते जैसे अन्य सभी इंसान जी रहे हैं। सभी संघर्ष, मनुष्य की सभी समस्याएं इसलिए हैं क्योंकि वे वैसे नहीं हैं जैसा की वे बोलते हैं। आदर्श उनके जीवन से बाहर हैं।

इस तरह किसी और की तुलना में एक सहज योगी खुद को प्रस्तुत करेगा।

जैसे, अब्राहम लिंकन का उदाहरण लें, ठीक है? अब्राहम लिंकन का मानना ​​था कि सभी को स्वतंत्रता होनी चाहिए और सरकार जनता के लिए, लोगों के लिए होनी चाहिए। उसने जो कुछ भी बोला, उसने उसी का कार्यान्वित किया। वह जिस बात पर विश्वास करता था, उसे कार्यान्वित करता था और उसके लिए उसने अपना जीवन दिया, इसलिए वह एक महान व्यक्ति है। महात्मा गांधी के बारे में सोचो। वे क्राइस्ट की तरह -अवतार नहीं थे।

किसी महापुरुष के बारे में सोचो, शिवाजी महाराज के बारे में सोचो। संतों में से कोई एक – वे मनुष्य थे। लेकिन एक बार जब वे जान गए कि यही वह सिद्धांत है जिस पर हमें जीना है, तो वे सिद्धांतों के साथ एकरूप हो जाते हैं, वे समझौता नहीं करते।

तो सहजयोगी को कैसा होना चाहिए, हमें समझना चाहिए।

सहजयोगी वह व्यक्ति है जिसे कुंडलिनी के माध्यम से बोध हो गया है, और कुंडलिनी आप में मातृत्व है, आपके भीतर देखभाल करने वाली, पोषण करने वाली शक्ति है।

लेकिन मां बेटे से कभी समझौता नहीं करेगी। अगर वह किसी का वध करना  चाहता है तो वह कहेगी: “नहीं।” मेरा मतलब है एक असली माँ। वह उस बेटे को गोली भी मार देगी जो गलत काम करने की कोशिश करता है।

उसी तरह अगर तुम खुद अपनी माँ बनोगे, तो तुम्हें अपनी देखभाल करनी होगी, उसी तरह तुम अपना और दूसरों का भी पालन-पोषण करते हो; आपको उनका पोषण करना है, उनकी देखभाल करनी है, और गलत कामों, अधार्मिक और, बेतुकी बातों से समझौता नहीं करना है।

अब जब मैं आपको यह बताती हूं, तो आपको दोषी महसूस करने की आवश्यकता नहीं है [हँसी]। हमें ऊपर की ओर देखना होगा। जो नीचे की सीढ़ी पर भी खड़े हैं यदि वे, ऊपर की ओर देख रहे हैं तो ठीक हैं, लेकिन जो ऊपर की सीढ़ियों पर खड़े हैं और नीचे की ओर देख रहे हैं, वे नीचे जाएंगे।

तो आगे देखो। हमें अपने रोज़मर्रा के जीवन में साधारण रिश्तों में क्या करना है – यहाँ तक कि पति, पत्नी, बच्चे, माता-पिता – क्या आप अपने भीतर मौन हो रहे हैं? क्या आप इसका अपने मौन से, अपनी करुणा से पोषण कर रहे हैं, या आप किसी ऐसी चीज का समर्थन कर रहे हैं जो पूरी तरह से ईश्वर विरोधी है?

यदि आप आदर्श बन जाते हैं, तो आदर्शों की शक्ति ही आपको इतना गतिशील बना देगी कि आपको किसी से परामर्श लेने की आवश्यकता नहीं है, आप आदर्श बन जाते हैं। वे मशाल की तरह हैं। आपके आदर्श स्वयं प्रबुद्ध होंगे। तो पहले, रवैया ऐसा होना चाहिए कि: “हम अपने आप को कैसे गहरा करते हैं?” पहले ऐसा रवैया होना चाहिए।

अब कहो पति-पत्नी सुबह से शाम तक झगड़ रहे हैं – वे सहजयोगी नहीं हो सकते। बेतुका है। यदि वे झगड़ रहे हैं तो वे सहजयोगी नहीं हैं, मान लीजिए।

अब आपको क्या करना है अगर दो व्यक्ति झगड़ रहे हैं, जो सहज योगी है वह उस पत्नी को छोड़ देगा: “मुझे पत्नी से कोई लेना-देना नहीं है, मेरी कोई पत्नी नहीं है, कुछ भी नहीं है।” बाहर रहो, भीतर से पूरी तरह से निर्लिप्त हो जाओ। बस उस पत्नी से बात मत करो। चर्चा मत करो, इसकी परवाह मत करो, बस निर्लिप्त हो जाओ। अगर बेटा ऐसा है, तो बस निर्लिप्त हो जाओ, एक हद तक – लेकिन कोई झगड़ा नहीं, कोई तर्क नहीं, कुछ भी नहीं। पूर्ण मौन, एक मौन विरोध, विकसित किया जाना चाहिए।

लेकिन उस मौन में भी आपको कायर व्यक्ति नहीं होना चाहिए। इतने सारे लोग कायर हैं, और उस कायरता में, उन्हें लगता है कि उनका मौन विरोध है। एक व्यक्ति जो वास्तव में शक्तिशाली है, वह डरकर रुकेगा नहीं, आक्रामक नहीं होगा, लेकिन आक्रामकता झेलेगा भी नहीं।

तो अपने ध्यान में आपको बैठना होगा। अब आप ध्यान में क्या कहते हैं? सभी चक्रों को देखने का प्रयास करें कि कौन से चक्र पकड़ रहे हैं, स्वयं इसका सामना करें। ये आपके पिछले जन्म के हो सकते हैं, कुछ चक्र कमजोर हैं। उन्हें पूरी तरह ठीक करने की कोशिश करें, उन्हें मजबूत करने की कोशिश करें। क्योंकि आदर्शों को कार्यान्वित होना होता है, साधन ठीक होना चाहिए। अगर यंत्र पागल है, तो आप कैसे करेंगे? [श्री माताजी हंसते हैं]

तो, सबसे पहले, आपको अपने उपकरण को ठीक से विकसित करना चाहिए, यह संतुलित, शक्तिशाली होना चाहिए, कायर नहीं। लोगों को आपकी शक्ति महसूस होना चाहिए। बेशक ताकत प्यार की है, लेकिन प्यार का मतलब यह नहीं है कि आप सभी बेतुकी बातों से समझौता कर लें। समझौता कतई नहीं होना चाहिए। ऐसी एक अवस्था अत्यंत ही स्वयं-प्रमाणित होती है।

हम यह नहीं कह सकते कि ऐसा कब होता है, हम यह नहीं कह सकते। अवस्था स्वयं ही प्रमाणित करेगी कि “अब मैं बिलकुल सही हूँ, मैं उस अवस्था में पहुँच गया हूँ”। हम यह नहीं कह सकते कि पांच घंटे, तीन मिनट, दो सेकेंड के बाद आप ऐसे बन जाएंगे। [श्री माताजी हंसते हैं] आप बस परिपक्व हो जाते हैं और आप अपने भीतर उस परिपक्वता को देखते हैं।

एक बार जब आप समझ जाते हैं कि जब तक आप खुद अपने आदर्श के सामान नहीं बन जाते, तब तक आप सहज योगी नहीं हैं। हर कोई खुद को सहज योगी कह सकता है, कोई समारोह नहीं है, हमारे पास किसी भी तरह का कोई विश्वविद्यालयीन समारोह नहीं होता है – एक ऐसा विश्वविद्यालय का समारोह जहां लोग आकर अपनी डिग्री और डिप्लोमा प्राप्त कर सकें कि: “ठीक है, आप (द्विज)दो बार पैदा हुए हैं।” कुछ ऐसे भी होते हैं जो कई बार द्विज (दो बार जन्म) होते हैं । वे आज दो बार जन्म लेते हैं, कल वे नहीं होते हैं, फिर वे आते हैं – दो बार जन्म लेते हैं, फिर से दो बार जन्म लेते हैं। उनमें से कुछ हैं जो एक सो आठ बार सहज योग में दो बार पैदा हो सकते हैं। [हंसते हुए:] और फिर भी वे प्रमाणित नहीं हैं। इसलिए आपको खुद को एक प्रमाणपत्र देना होगा। ऐसा करने के लिए कोई विश्वविद्यालय नहीं है।

आपको खुद ही समझना होगा कि आपकी परेशानी क्या है, आप ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं। आप खुद को एक बच्चे के रूप में मानिए। जरूरत पड़ने पर खुद को डांटना पड़ता है। जब आपको गौरवान्वित होना हो, तो आप स्वयं पर गौरव करें।

तो अब तुम अलग हो जाओ। तुम माँ बनो, आत्मा माँ है, और तुम, जो कुछ भी हो, जिसे विकसित होना है, वह बच्चा है। माँ आदर्श है, वह प्रेरणा है, वह शक्ति है, और बच्चा प्राप्तकर्ता है। अगर बच्चा जिद्दी शख्स है, तो आप इसमें कुछ नहीं कर सकते। यह भी पता लगायें – आप भी उनमें से एक हो सकते हैं। मैं जानती हूं कि ऐसे वे कौन हैं।

बहुत सारे हैं और आप उन्हें कुछ ही समय में खोज सकते हैं। अड़ियल लोग, अगर वे दस लोगों के साथ रहते हैं, तो अचानक हमें उनके अस्तित्व की खबरें सुनाई देती हैं। वे काफी वाकपटु होते हैं, भले ही वे एक शब्द भी नहीं बोल रहे हों, लोग आपको बता सकते हैं: “मेरा अमूक शख्स के साथ झगड़ा हुआ था। उस शख्स ने मुझसे ऐसी-ऐसी बात कह दी, वो शख्स मेरे साथ इतना क्रूर था, उस शख्स ने ये मांग की.” आप जानते हैं कि यह कौन सा व्यक्ति है, कहां है।

तुम देखो, जैसे हीरा पहचाना जा सकता है, कांटों को भी पहचाना जा सकता है। जब भी आप कांटे के पास जाते हैं, बिना किसी अपवाद के, यह सभी को काटेगा। यह छोड़ने वाला नहीं है, यह एक कांटा है। तो कांटे को कांटा बनना है। लेकिन अगर आप सहज योगी हैं तो आपको फूल बनना होगा। और एक मजबूत फूल और एक शाश्वत फूल, जो हमेशा बढ़ता है, मुरझाता नहीं है। हमेशा विकसित होते रहना, कभी मुरझाना नहीं, ऐसा फूल आपको होना ही है। तब आपको आश्चर्य होगा कि आप अहंकार की यात्रा में नहीं पड़ते, न ही आप प्रति-अहंकार के पूर्ण पतन में जाते हैं।

इतना तो आप जानते हैं कि आप में से किसी को भी विद्वान कहा जा सकता है, मैं आपको बता सकती हूं। मेरा मतलब है, कई बार लोगों ने मुझसे पूछा है: “क्या वे सभी विद्वान हैं जो आपके पास हैं – आपके शिष्य?” आप इतना जानते हैं, जितना कोई संत कभी नहीं जानता था, मैं आपको आश्वस्त कर सकती हूं। लेकिन तुम सिर्फ दिमाग में, बाहर जानते हो। यह सब ब्ला ब्ला ब्ला है। [हँसी]

यह दिमाग तक आता है, आप दूसरों को दिखावा करने के लिए इसका उपयोग करते हैं, और समाप्त हो जाते हैं। यहाँ तक की यह वहां स्थापित भी नहीं होता, फिर दिल में कैसे जाएगा?

इसलिए हर कोई बड़ी बात कर रहा है, वे लोगों को प्रभावित कर सकते हैं। मेरा मतलब है कि अगर कुछ पत्रकार यहां आयें तो वे सहजयोगियों से इतने प्रभावित होंगे कि इंग्लैंड में इतने सारे बुद्धिमान लोग [हंसी] यहां बैठे हैं। पर तुम खुद पर हंसते हो; आप यह सब जान गए हैं क्योंकि मैं बहुत ज्यादा बोलती रही हूं। आत्मा भी प्रकाशित हो रही है। अपनी आत्मा को इस तरह चमकने दें कि लोगों को पता चले कि यह एक ऐसा व्यक्ति है जो पूरी तरह से एकीकृत है: आत्मा, बात, व्यवहार, जीवन ही पूरी तरह से एकीकृत है और यही सहस्रार है।

तो अगर कोई एकरूपता नहीं है तो आपने अपना सहस्रार बिल्कुल हासिल नहीं किया है। कान खींचने की जरूरत नहीं पड़ेगी। एक दिन ऐसा आना चाहिए जब आप सब बड़े गर्व और शान से सिर उठायेंगे क्योंकि आपके आदर्श, आपके आदर्श आभूषणों की तरह चमकेंगे। मैं उन दिनों को देखना चाहती हूं जब सहजयोगी होने का दावा करने वाले सभी वैसे ही बन भी जाते हैं। यह सबसे महत्वपूर्ण बात है, बाकी सब चीजें बेकार हैं। आश्रम प्राप्त करना, यह प्राप्त करना, यह करना, वह करना – भूल जाओ!

आपको जो संभालना है वह यह बच्चा है जिसे विकसित होना है, जो अभी भी शरारती होता है, कभी-कभी गलत व्यवहार करने की कोशिश करता है। अब इसे ठीक कर लें। आप इसे एक नाम दें। आप अपने आप को सहज योगी और उस बच्चे को मिस्टर एक्स, मिस्टर वाई कहिये, चाहे आपका नाम कुछ भी रहा हो। और हमेशा यह बताने की कोशिश करें: “अब क्या तुम स्वयं उचित व्यवहार करोगे? सुबह उठो, स्नान करो [हँसी], ध्यान के लिए बैठ जाओ ”। “मैं आलस महसूस कर रहा हूँ,” बच्चा कहता है, “मैं नहीं कर सकता।” तब तुम बच्चे को [हँसी] स्वीकार कर लेते हो, फिर बच्चा माँ बन जाएगा और तुम अपनी शक्तियों को खो दोगे। बहाने!

बच्चा जानता है, बहुत बुद्धिमान है, बहुत होशियार बच्चा है, बहुत बुद्धिमान है, तुम्हें धोखा देना जानता है। लेकिन बच्चा भी सहज रूप से जानता है कि उसे क्या चाहिए। अगर यह पता चलता है कि आप में मां ने वैसा व्यक्तित्व विकसित किया है, तो यह मां के व्यक्तित्व को स्वीकार करता है। लेकिन अगर बच्चे को पता चले कि मां खुद कमजोर है तो वह मां का फायदा उठाने लगता है.

तो आपको अपने आप से नहीं लड़ना है बल्कि वश में करना है, और यह बहुत आसान है। आप अपने आप को देखकर इसका आनंद लेना शुरू कर देंगे: “ओह मिस्टर X वगैरह।” तब आप नाराज नहीं होंगे। “मुझे पता है कि तुम्हें कैसे संभालना है, तुम वहाँ पीछे छिपे हो, ठीक है, बहाने दे रहे हो।” और बच्चा बड़ा हो जाता है, इतना बड़ा हो जाता है कि माँ उसे देख कर चकित रह जाती है।

जैसे श्रीकृष्ण के बचपन में माता यशोदा थीं और बालक श्रीकृष्ण थे, बहुत प्रतीकात्मक है। और वह बहुत शरारती चाल [हँसी] खेलते थे और उसने कहा: “तुमने वहाँ से जाकर उस मिट्टी को खा लिया। मुझे पता है तुमने खा लिया है।” 

उन्होंने कहा: “मैं कैसे खा सकता हूं, मैं कैसे कर सकता हूं, मैं घर से बाहर भी नहीं जा सकता। मैं यहाँ नीचे बैठा हूँ। कीचड़ कहाँ है? मैं कैसे खा सकता हूँ?”

 “तुमने खाया, मुझे पता है कि तुमने खा लिया है, इसलिए मुझे अपना मुंह दिखाओ।” 

वह कहते है: “वास्तव में?”। और फिर मुंह खुल जाता है और पूरा विश्व स्वरूप, पूरे विश्व का पूरा दर्शन वह देखती है और माता उनके चरणों में गिर जाती है। यही होना चाहिए। इस मां को विकसित हो चुके बच्चे के चरणों में गिरना है। बहुत प्रतीकात्मक। इसी तरह आपको उस विश्व स्वरूप में, उस सामूहिक अस्तित्व में, उस विराट में विकसित होना है।

अर्जुन और श्रीकृष्ण एक और बहुत अच्छी प्रतीकात्मक बात है। अर्जुन एक मित्र था जो श्रीकृष्ण से छुट पा लेने का आदी था। श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता के बारे में, ये सब बातें बताने की कोशिश की। लेकिन फिर भी श्री कृष्ण उन्हें इस बारे में समझा नहीं पाए। ये सब “ब्ला ब्ला बातचीत” उस के समझ के ठीक बाहर रही; जैसे माँ की बातें हैं।

माँ की बातें बहुत मनोरंजक होती हैं, आप जानते हैं, बहुत विनोदी, उन्हें सुनना बहुत अच्छा लगता है, माँ की बातों को सुनना किसी भी संगीत को सुनने से बेहतर है। और तब लोग सोचते हैं कि यदि वे माता की बात सुन रहे हैं तो वे पहले ही माता बन चुके हैं।

अर्जुन के साथ भी यही हुआ है। लेकिन फिर भी उसे पता चला कि उसमें कुछ कमी है, कि वह आदर्श नहीं बन पाया है। फिर भी उसका ध्यान उस तरफ नहीं है जैसा उसे होना चाहिए था। तो उन्होंने श्री कृष्ण से प्रार्थना की कि: “मुझे लगता है कि मैं आपकी महान छवि देखूं।” 

कृष्ण ने कहा: “ठीक है, क्या तुम तैयार हो?” 

उन्होंने कहा, “हां, मैं तैयार हूं।”

 और फिर वे विराट बन गए, विराट के दर्शन और जब अर्जुन ने इसे देखा, तो उसने कहा: “इसे रोकिए, यह मेरे लिए बहुत अधिक है।”

आपके मित्र जो कि यह बच्चा है, के साथ ऐसा ही होना चाहिए। कि वह विराट हो जाए और जब आप उसे देखें तो आप खुद पर चकित हो जाएं: “हे भगवान, मैं इतना बड़ा हो गया हूं।” जैसे यशोदा छोटे बच्चे के चरणों में गिरती है, वैसे ही आपको उस बच्चे के चरणों में गिरना पड़ता है जो आपके भीतर है। मुझे यकीन है कि यह अब होगा।

तो याद रखें कि कोई तर्क नहीं, कोई स्पष्टीकरण नहीं। माँ क्षमाशील है। वह तुम्हें सब कुछ माफ कर देगी, तुम्हें पता है। तुम जो कुछ भी करोगे मैं तुम्हें माफ कर दूंगी, भले ही तुम मेरी हत्या कर दो, मैं तुम्हें माफ कर दूंगी। लेकिन आप खुद को माफ नहीं कर पाएंगे। तो उस बच्चे को बढ़ने दो, पूरी तरह विकसित होने दो।

श्री माताजी : कौन-कौन बच्चे हैं जो इस तरह रो रहे हैं? वे क्यों रो रहे हैं? वह कौन सा बच्चा है?

योगी: आरती।

योगिनी: आरती।

योगी २: आरती, माँ।

श्री माताजी: एह?

योगियों: आरती, माँ।

श्री माताजी : आरती को दिक्कत है। आरती को बाहर निकालो। आपको उसे निरंजित करना होगा, उसे इतने दिनों से समस्या है। आपको उस बच्चे को स्वच्छ करना होगा। थोड़ी देर के लिए उसे बाहर निकालो। अभी भी चिल्ला रही है, बेहतर है उसे बाहर निकालो।

आपको उनकी देखभाल करनी चाहिए और पता लगाना चाहिए कि अगर आपके बच्चे रो रहे हैं तो उनके साथ क्या गलत है। मुझे पता है कि बच्चे क्या हैं, फिर भी ठीक नहीं है। बस उनके अहंकार को पुचकारो मत करो। इसका हल निकालो। उन्हें निरंजित करें। यह महत्वपूर्ण है। उन्हें भूतिया नहीं बनने देना चाहिए। सारा जीवन वे इसी तरह भूतिया रहेंगे।

मैंने ऐसे बहुत से बच्चों को देखा है। वे मुझे देखते हैं, वे रोते हैं, रोते हैं, चिल्लाते हैं। यह स्वस्थ बच्चे की निशानी नहीं है। राजेश का बेटा मेरी तरफ देखता भी नहीं था, चिल्लाता था। अब उसे देखो, वह कितना अच्छा हो गया है। तो कोई भी बच्चा जो ऐसा है, आप ऐसा कह कर – विषय को टालें नहीं। उस बच्चे की देखभाल करो, उसे ठीक करो। आपको यह देखना होगा कि बच्चा ठीक है।

 जैसे आपको अपने बच्चे को ठीक करना है, वैसे ही उस बच्चे को भी ठीक करें जो वास्तव में आपका बेटा है और उस तरह की गलतफहमी के साथ न रहें। अगर कोई बच्चा इस तरह रोता है, तो बच्चे के साथ कुछ गड़बड़ है। उन्हें पहचाना जा सकता है।

यदि आप पाते हैं कि आपका ध्यान इधर-उधर जा रहा है, यदि आप कार्यक्रम में चौकस नहीं हैं, तो आपके साथ भी कुछ गड़बड़ है। यदि आप सोने के लिए चले जाते हैं, तो आपके साथ कुछ गंभीर रूप से गलत है। उस समय अगर आप दूसरी चीजों के बारे में सोच रहे हैं तो आपके साथ कुछ गड़बड़ है। आपको सिरदर्द होता है, आपके साथ कुछ गड़बड़ है। अपने आप को परखें, निरंजित करें, आपको साफ़ करना होगा, यह बहुत महत्वपूर्ण है। यदि आप अभी भी गुस्से, जलन, क्रोध में पड़ रहे हैं, तो आप में कोई संतुलन नहीं है, आपके साथ कुछ गड़बड़ है। यदि आप अपने क्रोध को नियंत्रित करना जानते हैं, तो यह ठीक है। आपको पता चल जाएगा कि हर जगह छोटी-छोटी बातों में नकारात्मकता कैसे काम करती है।

हर कोई सुधार कर रहा है लेकिन यह काफी धीमा है। यदि आप ध्यान करते हैं तो यह बहुत तेज़ी से हो सकता है, यह बहुत महत्वपूर्ण है। आपको अपने चक्रों को ठीक करने का तरीका जानना होगा। आपका मंत्र सिद्ध होना है। मंत्र ऐसे हों कि वे यांत्रिक न हों, जैसे केवल यंत्रवत कुछ कह रहे हों। आपको इसे अपने दिल से कहना चाहिए। फिर से, यदि आप हृदय से मन्त्र नहीं कहते हैं, तो मंत्र सिद्ध नहीं है – अर्थात आप सौ बार बोलते रह सकते हैं, इसका कोई प्रभाव नहीं होगा।

सिद्ध मन्त्र वह है, जो तुम कहते हो, उसका प्रभाव होता है, वह काम करता है। अगर यह काम नहीं करता है तो आपके मंत्र का कोई मतलब नहीं है। तो विकास भीतर और बाहर होना चाहिए और आपको खुद को प्रमाणित करना होगा। कोई और आपको प्रमाणित करने वाला नहीं है। अगर आप खुद को झूठा सर्टिफिकेट देना चाहते हैं तो आगे बढ़ें। अगर आप खुद को धोखा देना चाहते हैं तो दें। यह किसी के लिए मददगार नहीं होगा। लेकिन अगर आप वास्तव में स्वर्ग स्थित परम पिता की कृपा का आनंद और आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, तो इससे बाहर आएं। उस सुंदरता का आनंद पाने के लिए कई गलत पहचानों को छोड़ना पड़ता है। आप सभी से मिलने के कारण  आज का दिन बहुत अच्छा है।

आज का दिन भारत में हम इस तरह मनाते हैं जिसमे भाइयों और बहनों का रिश्ता स्थापित करना होता है। वे बहुत शुद्ध हैं। भाई-बहन का रिश्ता बिना किसी वासना या लालच के होता है। यह शुद्ध संबंध है जहां बहन भाई की रक्षा के लिए प्रार्थना करती है, और भाई बहन के क्षेम की आत्मनिर्भरता के लिए प्रार्थना करता है। तो इस बार आपको अपनी अन्य सहज योगिनियों और सहज योगियों के बारे में सोचना होगा जो आपके भाई-बहनों की तरह हैं। आपको ऐसा सोचना होगा। अपने दिलों को शुद्ध करो।

इन देशों में यह कुछ अजीब है, आप यह जानते हैं, ऐसे संबंध कुछ यहाँ नहीं है। आज अपने मन को उस बिंदु पर शुद्ध करो, कि बाकी सब मेरे भाई या बहन हैं। अगर आप शादीशुदा हैं तो ठीक है। लेकिन सबकी तरफ दृष्टी, सबको भाई और बहन के रूप में देखने की कोशिश करो। यह दोनों रिश्ते मौजूद नहीं हैं। यह एक अजीब देश है जहां कोई रिश्ता नहीं है जो शुद्ध हो। यह ऐसी गंदगी है जो मैं आपको बताती हूं। यदि आप उनका अध्ययन करें  तो आप विश्वास नहीं कर पायेंगे, इस तरह की विकृति है।

खासकर बच्चों जैसे मासूम लोगों पर हमले होते हैं। उन्हें कुंवारी समझो। सावधान रहे। और युवा लड़कियों को पता होना चाहिए कि वे कुंवारी हैं। यदि वे लड़कों के साथ घूमती हैं और वे सहजयोगी हैं, तो वे नहीं हैं। सहज योगिनियों को पवित्र स्त्री होना चाहिए, शक्तिशाली, पवित्रता ही उनकी शक्ति है; और पुरुष भी। सहज योग के बाद पुरुषों को अपनी शुद्धता के प्रति जागरूक होना चाहिए, यही उनकी शक्ति भी है।

आप देखिए, यह खानाबदोशों का युग था, जब पुरुष शिकार के लिए जाते थे और महिलाएं घर में खाना बनाती थीं। माना जाता था पुरुष पाँच स्त्रियाँ रख सकता था – वे खानाबदोश लोग थे, फिर वे परिष्कृत हो गए। फिर एक पत्नी व्यवस्था शुरू हुई जो एक निश्चित बिंदु तक पहुंच गई। फिर शुरू हुआ इस तरह का दुश्चरित्र जीवन। यह आवारा जीवन है! अब महिलाएं भी आवारा हो गई हैं। स्त्री और पुरुष सभी आवारा और आदिम हैं। कृत्रिमता के बात से वे आदिम हो गए हैं, यही समस्या है। लेकिन अब आपको उच्च प्राणी बनना है जहां रिश्ते शुद्ध संबंध हैं।

कोई भी संबंध – मान लीजिए कि मेरे और इस यंत्र (माइक्रोफोन)के बीच में कुछ अवांछित होता, हम इसका उपयोग नहीं कर सकते। बीच में कुछ बाधा होने पर कोई भी कनेक्शन विच्छेद हो सकता है। सबसे अच्छा संबंध होना शुद्ध रिश्ता रखना है और यह विवेकाधीन होना चाहिए। माँ माँ होती है, पिता पिता होता है, बहन बहन होती है, भाई भाई होता है। ये सब अलग-अलग हैं, अलग-अलग तरह के रिश्तों को समझना चाहिए।

महिलाओं को समझना चाहिए कि वे महिलाएं हैं और पुरुषों को समझना चाहिए कि वे पुरुष हैं। साथ ही अपने स्व से रिश्ता भी बहुत जरूरी है। महिलाओं को पुरुष बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए – हम नहीं हो सकते! – और पुरुषों को महिला बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। गलत है। क्योंकि मूल रूप से वे अलग-अलग लोग हैं। वे पैदा ही भिन्न होते हैं। क्या भिन्नता है? एक आदमी अधिक सूक्ष्म गणनाकार है, वह मशीनों के बारे में अधिक जानता है, उसके बारे में विस्तृत विवरण में। एक महिला स्वरुप या आकार देखेगी। स्त्री धुन को अधिक सुनेगी, पुरुष यंत्रों को देखेगा।

वह प्रकृति है ईश्वर ने आपको बनाया है। आखिर किसी को यह विषय देखना है और किसी को वह विषय देखना है, दोनों सुंदर हैं। कोई भी ऊंचा या नीचा नहीं है। लेकिन एक महिला होने के नाते खुद का आनंद लें, एक पुरुष होने के नाते खुद का आनंद लें। लेकिन पुरुष का मतलब यह नहीं है कि आप महिलाओं पर यह सोचकर आक्रामक हों कि आप विकास में महिलाओं से ऊपर हैं।

या फिर महिलाएं यह सोचकर पुरुषों पर हावी होती हैं कि वे उन पर हावी होकर उन्हें सुधार सकती हैं। इस तरह वे कभी उन्हें ठीक नहीं कर पाई है। वे बिलकुल बंद गोभी हो गए हैं, आदमी अपने ही दायरे में क़ैद (बंद गोभी) बन गए हैं। जहां कहीं भी महिलाएं हावी होती हैं, पुरुष अपने ही दायरे में क़ैद (बंद गोभी)बन जाते हैं। उन्होंने उन्हें सुधार नहीं है। तो दोनों गुणों को पोषित और विकसित किया जाना चाहिए, और पुरुष और महिला के बीच संबंध शुद्ध प्रेम, शुद्ध प्रेम का होना चाहिए।

एक बार जब आप अपने आप को शुद्ध करना शुरू कर देंगे, तो ये चीजें अपने आप कार्यान्वित हो जाएंगी, और आप एक-दूसरे का सम्मान करेंगे। वास्तव में आप सब योगी हैं। मुझे तुम्हारा सम्मान करना है; और आपको एक दूसरे का सम्मान करना होगा। इसके विपरीत मुझे लगता है कि कोई सम्मान नहीं है। आप सभी महान संत हैं। हाँ तुम हो। सम्मान करें, एक दूसरे का सम्मान करें। तुम्हें किसी से कठोर बात नहीं करनी है, किसी को कष्ट नहीं देना है। जितना हो सके दूसरों के लिए करने की कोशिश करें। हमें इसी तरीके से बदलाव लाना है। इसमें किसी भी संस्कृति का कोई ब्रांड नहीं है, हम जिस की बात कर रहे हैं, वह परमात्मा की संस्कृति है उनके राज्य की संस्कृति है। जहां हम दूसरों को देते हैं, देने का आनंद लेते हैं, दूसरों के लिए करते हैं, दूसरों से प्यार करते हैं, दूसरों की देखभाल करते हैं – बिना किसी प्रतिफल के। यदि आप अपनी थोड़ी सी भी सहायता करें, तो परमात्मा इसकी बहुत परवाह करते हैं।

आपने देखा है कि आज चैतन्य इतने अधिक हैं कि वास्तव में मुझे आपसे बात करना भी मुश्किल हो रहा है। शोषित करें, यह चल रहा है। बस एक छोटी सी बात जो आपने कल या आज सुबह की। जबरदस्त वायब्रेशन हैं, और आप उसमें फेंक दिए जाएंगे, आप कुछ नवीन ही बन खिलेंगे।

बस चित्त अपने आप पर लगाओ; और सबसे पहले आत्मसम्मान रखें क्योंकि आप एक योगी हैं। आप घटिया नहीं हो सकते, आप मूर्ख नहीं हो सकते, आप घमंडी नहीं हो सकते, आप बेईमान नहीं हो सकते। आपको एक मधुर, परिपक्व व्यक्तित्व होना चाहिए क्योंकि आप एक योगी हैं। मेरा मतलब है कि आपको खुद को योगी एक्स, वाई, जेड कहना चाहिए। आपको चाहिए, आप हैं! लेकिन योगी नाम रख कर आपस में लड़ते-लड़ते एक दूसरे के बाल खींचे तो मैं कहूंगी [हंसी, श्री माताजी हंसते हैं] योगी ना कहलाना ही बेहतर है। [हँसी, श्री माताजी हँसते हैं] अपनी समस्याओं से छुटकारा पाने का प्रयास करें जो बहुत सरल हैं। यदि आप ऐसा नहीं कर पाते हैं, तो आप मुझे बताएं, मैं आपको बताऊंगी कि उनसे कैसे छुटकारा पाया जाए। उनका सामना करो।

परमात्मा आप सबको आशिर्वादित करें।

अब आज हमारा कोई हवन नहीं होगा, जो हमने तय कर लिया है क्योंकि दीवाली में हवन करने की कोई जरूरत नहीं है, लेकिन हम सिर्फ पूजा करेंगे। अब आज पूजा है – जैसा कि आप जानते हैं कि दीवाली मनाने के पांच दिन होते हैं।

पहला दिन तेरह वां दिन होता है जब गृह लक्ष्मी का दिन होता है। गृह लक्ष्मी का दिन है, उस दिन गृह लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लेकिन एक गृह लक्ष्मी को पूजा के योग्य होना चाहिए; और फिर गृह लक्ष्मी को कुछ बर्तन दिया जाता है।

गृह लक्ष्मी को उपहार के रूप में किसी प्रकार का बर्तन देना है। उस दिन लक्ष्मी का जन्म हुआ था, लक्ष्मी का जन्म धरती माता से हुआ था। हमें कहना चाहिए, धरती माता से लेकिन वह समुद्र मंथन के बाद निकली, इस तरह लक्ष्मी का जन्म होता है। वह धन, धन की दाता है जो भौतिक होने के साथ-साथ आध्यात्मिक भी है।

एक पत्नी जो ऐसा कहती है कि: “ठीक है, सारा ही पैसे तुम बचाओ,” बच्चों को स्वार्थी होना सिखाती है और पति को स्वार्थी होना सिखाती है, सारा पैसा बचा कर बैंक में रखना और परोपकारी नहीं होना लक्ष्मी नहीं है। वह वह है जो आपको सिखाती है कि कैसे परोपकारी होना चाहिए, दूसरों को कैसे देना है। एक महिला जो अपने पैसे और बैंक बैलेंस के बारे में बहुत खास है, वह लक्ष्मी नहीं है। उसे खर्च करना है। वह वहाँ खर्च करने के लिए है। आदमी को अपना पैसा बचाना पड़ता है लेकिन औरत को खर्च करना पड़ता है [हंसी, श्री माताजी हंसते हैं]। उसे (पुरुष को)कमाना है क्योंकि उसे (महिला को)खर्च करना है, लेकिन उचित तरीके से, इसे न केवल अपने लिए बल्कि परिवार के लिए, बल्कि पति के लिए उचित ढंग से खर्च करें।

वह सोचती है: “मैं अपने पति के लिए, अपने बच्चों के लिए, अन्य सहजयोगियों के लिए, अन्य लोगों के लिए क्या खरीदूँ?” – यही उसका सारा काम। पति कमाता है और उसे देता है और वह वही करती है। यह काम का बहुत प्यारा वितरण है।

तो उस दिन गृह लक्ष्मी का जन्म होता है। उसके पास ये गुण होने चाहिए, यदि वह एक कंजूस, गणना करने वाली महिला है, तो पहली बात तो वह एक महिला नहीं है। अगर उसे अपने कपड़ों और अपनी सुख-सुविधाओं और अपनी चीजों की चिंता है, तो वह गृह लक्ष्मी नहीं है। वह दूसरों से काम करवाती है और खुद बैठ जाती है और आदेश देती है – वह गृह लक्ष्मी नहीं है। उसे दूसरों के लिए काम करना है, उसे दूसरों के लिए करना है, उसे देखभाल करनी है। वह तेरहवां दिन है।

फिर चौदहवाँ दिन वह दिन है जब नरकासुर का वध हुआ था। आप जानते हैं कि नरकासुर ने जन्म लिया है और उसे मारा जाना है – सहजयोगी उसे मारने वाले हैं। आपको एक बिंदु तक आना होगा और निश्चित रूप से उसे मारा जा सकता है।

जब आपके भीतर कार्तिकेय जागृत हो जाते हैं तो उसे मारा जा सकता है। लेकिन उसके लिए आपको बिल्कुल सोने जैसे निष्कलंक लोगों की तरह बनना होगा। ऐसा करने के लिए आपको मजबूत लोगों की जरूरत है। एक तलवार जो उसे मार सकती है, उसे आपकी धातुओं से बाहर आना होगा, तब नरकासुर को मारा जा सकता है। वह संभवतः सबसे खराब असुरों में से एक है। वह चौदहवाँ दिन है। जब वह मारा गया तो नरक का द्वार खोल दिया गया और जो उसके शिष्य या उसके अनुयायी या शैतानी लोग थे, उन्हें डाल दिया गया। यही एकमात्र दिन है जब आप देर से सो सकते हैं [हँसी], और यहाँ आपके लिए एक अच्छी खबर है [हँसी]।

फिर पंद्रहवां दिन, जो हमारी सबसे अंधेरी रात थी – सबसे अंधेरी रात। वह रात है जब आप रोशनी करते हैं। चूँकि यह सबसे अंधेरी रात है जिसमें नकारात्मक शक्तियां प्रवेश कर सकती हैं; तो रौशनी कर दी जाती है ताकि लक्ष्मी आ सके। आपको आश्चर्य होगा कि लक्ष्मी जी ऐसी हैं, कि अगर शराब की एक बोतल एक छोर से प्रवेश करती है तो वह दूसरे छोर से ग़ायब हो जाती है। यदि परिवार में कोई स्त्री है जो भूतिया है, परिवार में कभी भी लक्ष्मी का आनंद नहीं कर सकते। लक्ष्मीजी उनसे दूर भागती हैं। उनके पास पैसा हो सकता है, लेकिन वे आनंद नहीं ले सकते। लक्ष्मीजी भाग जाएँगी। ऐसा व्यक्ति इतना अशुभ होगा मैं आपको बताती हूं।

मान लीजिए जैसे, आप कुछ खरीदना चाहते हैं, कुछ खरीदना चाहते हैं और ऐसा भूतिया व्यक्ति आपको फोन कर देता है – नहीं मिल सकता है, समाप्त हो गया। सबसे पहले आपके कान जहर से खत्म हो जाएंगे, और फिर आप जो भी काम कर रहे हैं वह कभी सफल नहीं होगा।

अब यह देश ऐसी भूतिया औरतों से इतना भरा हुआ है – अलक्ष्मी, कि मुझे नहीं पता कि वे कैसे ठीक होंगी। महिलाओं को अपने भूतों से छुटकारा पाने का फैसला करना है न कि उनके साथ आगे बढ़ते जाना है। उन्हें ध्यान करना चाहिए, उन्हें कोशिश करनी चाहिए, अगर उन्हें नींद आती है तो उन्हें जाकर स्नान करना चाहिए, दो बार जाना चाहिए, तीन बार जाना चाहिए, कभी-कभी खुद को थोड़ा जला लें, कोई बात नहीं। यह सुनिश्चित करें कि आप उनींदे और स्वप्नग्रस्त न हो। अगर आप स्वभाव से सपने देखने वाले हैं तो आप भूतग्रस्त हैं। लक्ष्मी को अक्षुण्ण रखना महिलाओं का दायित्व है।

तो वह लक्ष्मी दिवस है, जब हम कहते हैं कि लक्ष्मी पूजा होती है, क्योंकि वह दिन है जब आप लक्ष्मी को अंदर आने के लिए आमंत्रित करते हैं – राजलक्ष्मी, वह लक्ष्मी जिससे आप परिवार के राजा बनते हैं, या शाही आशीर्वाद ऐसा इसे आप कह सकते हैं, परिवार में शालीनता की भावना – वह दिन है।

फिर वह दिन आता है, उसके आगे महीने का पहला दिन होता है… वह कैलेंडर है, मेरे पूर्वजों, चूँकि आप सभी मेरे बच्चे हैं, आपको एक ही कैलेंडर, शालिवाहन कैलेंडर का उपयोग करना है और वह शालिवाहन का पहला दिन है। पंचांग। और इसे मनाने के लिए वे सुबह के समय क्या करते हैं? वे इनमें से एक कलश, जिसे कुंभ कहते हैं और उसके साथ एक शॉल डालते हैं। और इसे एक ध्वज के रूप में रखा जाता है, जो कलश और माता के शॉल का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए उन्हें शालिवाहन कहा जाता है – जो माता की शॉल धारण करते हैं, “माँ के शॉल के वाहक”। इस तरह उन्होंने इसे लगाया। शॉल, जिसके ऊपर कलश है। यही वास्तव में सहजयोगियों का झंडा होना चाहिए, कि आप इसे कुम्भ बना दें या हम घड़ा कह सकते हैं – इसे आप क्या कहते हैं? पिचर हम्म? मटकी। या घड़ा नहीं बल्किन यह लोटा व्यवसाय, आप देखिए, आप इसे क्या कहते हैं? वहाँ नहीं है – यहाँ ऐसा कुछ भी उपयोग नहीं किया गया है।

वही कुम्भ है, हम उसे कुम्भ कह सकते हैं। और शॉल वहाँ है, इसलिए उन्होंने इसे रखा – इसलिए इसे गुड़ी पड़वा कहा जाता है, पड़वा का अर्थ है – पहला – चंद्रमा का पहला दिन पड़वा है, और गुड़ी का अर्थ है [श्री माताजी ने अपने शॉल को छुआ]। इसलिए उन्होंने इसे उपर रखा और इस तरह वे कहते हैं कि आज शालिवाहनों के लिए नए साल का दिन है। शॉल आपकी माँ का आवरण है जो इसे गर्माहट देता है और साथ ही यह उनकी लज्जा को भी ढकता है। शाल शालीनता और पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक है। तो आप अपनी माँ के लिए खड़े हैं। आप इसकी रक्षा गणेश की तरह करते हैं।

एक ही बात पर वे क्रोधित हो जाते हैं, यदि कोई माताजी के विरुद्ध कुछ कहता है या कुछ करता है, तो वे नीचे आ जाते हैं। इसलिए ईसा-मसीह ने कहा है: “जो कुछ मेरे विरुद्ध है वह मैं सहन करूंगा, परन्तु पवित्र आत्मा(होली घोस्ट) के विरुद्ध कुछ भी क्षमा नहीं किया जाएगा।” वह एक बेटा है जो माँ के बारे में बात कर रहा है, ऐसा ही होता है।

तो आज दूसरा दिन है। दूसरा दिन है “बीज” – है, हम इसे “भैया द्विज” या “भाऊ बिज” कहते हैं – वह दिन है जब भाई और बहन, जो एक ही पेड़ के बीज हैं, स्नेह का शुद्ध आदान-प्रदान करते हैं। बहन भाई की आरती करती है, उसे टीका देती है और फिर भाई उसे अपने प्यार की निशानी के रूप में उपहार के रूप में कुछ देता है।

हमने बम्बई में इसकी शुरुआत की और उन्होंने भाई-बहन बनाए। काश आप भी किसी को एक अच्छे भाई के रूप में ढूंढ पाते। लेकिन मैंने पाया कि इन रिश्तों को भारत में इतनी खूबसूरती से संभाला गया है कि अगर उन्हें यहां प्रबंधित किया जा सकता है, तो यह मेरे लिए वास्तव में परमानंद का एक महान दिन होगा, क्योंकि इसका मतलब है कि आपने अनैतिकता के इस शैतान पर काबू पा लिया है। पवित्रता, जो अपने मन से वासना और लोभ को पूरी तरह से दूर करे, और उस स्नेह को किसी ऐसे व्यक्ति के लिए देना जो आपकी बहन है।

भारत में बहुत आम है, वहां हर किसी की एक बहन होती है; सभी सहजयोगियों की एक बहन होती है और वे उसी तरह अपनी बहन की देखभाल करते हैं। बहुत प्यारा एहसास है। और एक बहन के साथ इस तरह व्यवहार किया जाता है – जैसे राउलबाई धूमल की बहन है, आप कल्पना कर सकते हैं [श्री माताजी हंसते हैं] – और एक बहन के साथ वैसा ही व्यवहार किया जाता है जैसा कि अपनी बहन के साथ सभी रिश्तों और हर चीज के साथ किया जाता है।

तो यह पांचवां दिन द्विज है। इसलिए चन्द्रमा के तेरहवें दिन से पांच दिन तक वे दिवाली मनाते हैं। हमारे लिए दिवाली का बहुत बड़ा महत्व है। अर्थात् एक प्रकाश से अनेक ज्योतियाँ जाग्रत होती हैं और उन्हें एक पंक्ति में डाल दिया जाता है, इसलिए उन्हें दीपावली कहा जाता है – अर्थात ‘एक पंक्ति में प्रज्वलित दीप ‘।

तो जब आप मेरे हाथों को एक साथ पकड़ते हैं – उसके माध्यम से ऊर्जा गुजरती है और प्रबुद्ध रस स्थापित होता है, और पूरी दुनिया को आपकी मां का वह सुंदर सपना बनना है जहां आपके पिता के आनंद और उनके परमानंद के अलावा कुछ भी नहीं है जब वे देखते हैं उसकी अपनी रचना उस परमानंद के सागर में नाच रही है।

परमात्मा आप पर कृपा करे।

…पहले से ही चैतन्य [अस्पष्ट शब्द] हम पूजा कर सकते हैं, [लेकिन?] यह पहले से ही बहुत अधिक है।

आप पूजा करना चाहते हैं, ठीक है, करो, लेकिन मेरा पहले ही हो गया है । [हँसी]