New Year Puja, Who Is A Sahaja Yogi?

New Delhi (भारत)

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1984-01-03, New Year Puja: Who Is A Sahaja Yogi?, Delhi

Nav Varsh Puja – S. Sahajyogi Ki Pahechan 3rd January 1984 Date : Place Delhi :

ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindi Nirmala Yog लेकिन माँ की व्यवस्था और है कि पहले चैतन्य को पा लो. जान लो कि परमात्मा है, उस पर विश्वास करो जो अन्धविश्वास नहीं है, सत्य के रूप हर साल नया साल आता है और पुराना साल खत्म हो जाता है। सहजयोगियों के लिए हर क्षण एक नया साल है, क्योंकि वो वर्तमान में रहते है। न तो वो भविष्य में रहते हैं, और न ही वो बीते हुए भूत में और अब थोड़ी सी मेहनत से भी बहुत बड़ा काम हो सकता है। जैसे कि किसी को पहले सिखाया जाये कि देखो पानी से डरना नहीं। लैक्चर दिया जाए। पहले अपने को जमीन पर ही तैरा के देखो। वहीं काल में रहते हैं। हर क्षण उनके लिए एक नया साल है, एक नई उमंग है, एक नई लहर है। तुम पर हाथ मारो दो-चार। और काफी दिन से मेहनत की जाए और फिर धीरे-धीरे पानी में लाया जाए। जैसे पानी देखा फिर भाग गए। जैसे कि समुद्र पर तैरते हुए हर क्षण कोई समुद्र के प्यार से उछाला जाय, उसी प्रकार हरेक सहजयोगी को आनन्द, प्रेम, शान्ति का आहुलाद मिलते रहता है। बस बात ये है कि क्या हम तैरना सीख गये हैं या नहीं। सहजयोंग में जिसने तैरना और एक होता है पानी में ढकेल दो, फिर सिखाते रहेंगे। इसी तरह आप लोग आनन्द के सागर में धकेल दिए गये अब इसका मज़ा उठाना है तो सीख लिया वो आनन्द में ही तैरता है, आनन्द के सागर में तैरता है। सहज योग में अगर कोई दोष है या त्रुटि है, तो इतना ही है कि पार होने के बाद बनना पड़ता है। बगैर बने सहजयोग हाथ नहीं लगता माँ ने आपको पानी में उतार दिया लेकिन तैराक बन करके भी आपको सीखना होगा कि आप दूसरों को कैसे तैरा सकते हैं, दूसरों को कैसे बचा सकते हैं, दूसरों को तैरना कैसे सिखा सकते हैं। आपको पूरी तरह से थोड़ा सा कष्ट उठाना पड़ेगा। और वो कष्ट ऐसा है आपको बनना होगा। बने बगैर नहीं होता। सहजयोगी उसे कहना चाहिए जिसमें पूरा समाधान हो. जिसने पा लिया, जिसकी शुद्ध इच्छा पूरी हो गयी। क्योंकि कुण्डलिनी शुद्ध इच्छाशक्ति है। जिसकी शुद्ध इच्छाशक्ति पूरी हो गयी, जिसकी शुद्ध बनना पड़ता है। और यही अगर एक त्रुटि है, तो सहजयोग में है, लेकिन वो अनेक त्रुटियों को इच्छा शक्ति ने पूरी तरह से अपना चमत्कार दिखा दिया, फिर कोई इच्छा ही नहीं रह गयी जो आदमी पूरी तरह से समाधानी ही हो गया. वो असल में सहज योगी है। कोई सा भी असमाधान बचा हुआ है, भरता है। जैसे पहले गुरु लोग आपकी शान्ति और इसका मतलब कुण्डलिनी का जागरण ठीक से नहीं हुआ। अभी तक आप पूरी तरह से सहजयोगी बने नहीं। आनन्द की व्यवस्था नहीं करते थे। पहले तो वो आपसे मेहनत कराते थे “मेहनत करो” सफाई कराते थे. मन की शान्ति उससे पहले मन की शुद्धता करो । शारीरिक सुख से पहले शरीर को काफी तकलीफ दो। बहुत तपस्या के बाद लोग परमात्मा को पा सकते थे, और इस चैतन्य को, जो आपने सहज में पाया, बड़े आश्चर्य की बात है, कि बगैर सहजयोगी बने हुए भी आशीर्वाद आते ही रहते हैं, चमत्कार होते ही रहते हैं, लाभ होते ही रहते है. आप जानते रहते हैं कि “हम चल रहे हैं, ठीक हो रहा है, मामला बन रहा है उसे जान सकते थे।

Original Transcript : Hindi सहजयोग में ये तो अनायास ही हो जाना चाहिए। क और हम अग्रसर हो रहे हैं।” अनायास’ ही सब घटित होता है । अगर ये नहीं तो सहजयोग क्या बना? जब आप वृक्ष हो गये लेकिन सहजयोगी का सबसे बड़ा आशीर्वाद ये है कि उसमें देने की क्षमता आ जाती है, वो देता है और देता ही नहीं है। उस देने का जो आनन्द है, जो हुआ तो वृक्ष की छाया में जो बैठे हैं उस पर तो कोई सी भी आफत नहीं आ सकती न! वृक्ष सारी आफत उठा लेता है। आपकी छाया में जितने लोग हैं उनसे आपके सम्बन्ध बहुत ही प्रेममय और निकटतम होने चाहिए। कि बहुत ही अनूठा आनन्द है उसे वो मोगता है। वो आनन्द आप किसी सांसारिक चीजों से कभी पा ही नहीं सकते। और सारे जितने blessings (वरदान) वगैरह हैं इसे किसी से आप पा नहीं सकते। सबसे बड़ी blessing है कि आपकी अपनी गुरु शक्ति बढ़़ जाए और आप में ये क्षमता आ जाए कि आप दसरों को दे सकें। ये जिस दिन क्षमता आप में आ गई, बस फिर समझ लीजिए, कि माँ का काम तो पूरा हो गया और आपका काम शुरु हो गया। ऐसी जब तक दशा नहीं आती तब तक मेहनत करनी होगी और बनना अब मैं जो कह रही हूँ सब आपको अलग-अलग आप ही को, कह रही हूँ। किसी और के लिये नही कह रही, ये बात समझ के सुनिएगा। बहुत से लोग है जैसे मैं कहती हैं तो दूसरे का सोचते हैं कि माताजी उनके बारे में तो नहीं कह रही। तो अपनी ओर ये चित्त देना चाहिए कि माँ हम सब को अलग-अलग प्यार करती है। हरेक के बारे में जानती है अलग-अलग। इसी प्रकार हमको भी हरेक बारे में अलग-अलग जानना है। जब हम अपने घर वालों को होगा। यही एक सहजयोग की त्रटि है जिसे एक माँ के रूप में मैं कहती हैं कि मैं पूरी कोशिश करती हैं कि अपनी तरफ से कोई ऐसी कमी न रह जाए बहुत कुछ करती हैँ, कि अपनी तरफ से कुछ न रह जाए, कि मेरी किसी बात की वजह से मेरे बच्चों में कमी रह ही प्यार नहीं कर पाएँगे तो हम बाहर वालों को नहीं कर सकते। घर वालों की जरूरतें-मानते है बहुत से लोग पार भी नहीं होते हो सकता है उनमें त्रुटियाँ होंगी। लेकिन उनकी जो जरूरत हैं, उसे करिये। पार की जाए। लेकिन आपकी भी तपस्या जरूरी है। उसके बात तभी मानेंगे जब आप में कोई अन्तर देखेंगे। अगर आप डंडा लेकर कहें “तुम पार क्यों नहीं होते हो, तुम सहजयोग में क्यों नहीं आते. तो कोई सहजयोग में नहीं आएगा। उल्टे यह तरीका सहजयोग का नहीं बगैर काम नहीं होगा। पर जो तपस्या का स्वरूप उग्र है या संतप्त है, ऐसा नहीं हैं। ‘शान्त’ तपस्या है। इसमें कोई कठिन तपस्या नहीं है। कोई मेहनत की तपस्या नहीं है। है। सहजयोग का तरीका है कि पहले अपने आदर्श से. अपने स्वयं के व्यक्तित्व से दूसरों को प्रभावित करना। जब दूसरा प्रभावित हो जाएगा, तो धीरे-धीरे उसे सहज में लाओ। कोई ठेल-ठाल के आप ले भी आए, समझ लीजिए. ढकैलते हुए वहां से, ले आए किसी को आप, बिठा दिया। तो क्या वो पार हो जाएगा?- यह तो पहली तो चीज सहजयोगियों को प्रेम करना सीखना चाहिए सबसे बड़ी चीज़ है जैसे मैं किसी के लिये शिकायत सुनती हूँ, कि ये सहजयोगी, आप तो कहते है कि सहजयोग बड़ी अच्छी चीज है. अपनी माँ को ही il-treat (दुर्व्यवहार) करते हैं। उनकी बीबी की बात चलती है। वो अपनी बहन को पीटते हैं. अपनी बीवी को मारते हैं। कोई है, अपने पति का घ्यान नहीं रखते। बच्चों की तरफ ध्यान नहीं है । आप ही बताइये। पूर्ण स्वतन्त्रता में उसे आना होता है। आज नहीं. कल ठीक हो जाएगा। तो ये ख्याल रखना चाहिए कि जब हम बन रहे हैं तो हमारे साथ 3

Original Transcript : Hindi अनेक’ बन रहे हैं। और वो जो अनेक है उनकी दृष्टि हमारे ऊपर है। हम कैसे बन रहे हैं, ये बहुत जरूरी चीज़ है। और इसमें ये बात है समझ लीजिए. आपके कोई गुरु हों, realised soul भी हों, तो वो बिचारे अपनी ही मेहनत से जो कुछ करना है करते हैं। आपसे नहीं कहेंगे कि आप भी कुछ बनिए। कहेंगे ये तो बेकार हैं ही, चलो बस हमको गुरु मान लिया इसी में धन्य समझो, अगले जन्म में देखा जाएगा| लेकिन माँ ने जरा बड़ा काम निकाला है। वो चाहती हैं कि हरेक को गुरु बनाना है। जरा कठिन काम है। और नहीं भी है। आप जानते है कि आप लोग सब बन रहे है, धीरे-धीरे। सब घड़ते जा रहे हैं. बनते जा रहे हैं। इसलिए जिस वक्त आप बन रहे हैं, आप दूसरों का करें। आपके अड़ोसी-पड़ोसी सब लोग. कि “माँ देखो मुझे ये तकलीफ थी और ये मेरी तकलीफ ठीक नहीं हुई” तो मैं भी कह सकती हूँ मुझे time नहीं था चाहे मैं आपसे मिलेँ या न मिलँ आपके लिए मेरे पास हमेशा time रहता है। मेरा काम चौबीस घन्टे चलते रहता है। आपको सिर्फ अपना ही काम करने का है। इसके लिए आपको time और discipline जरूर जोड़ना पड़ेगा। इस शरीर को discipline किए बगैर ये वैसी ही मोटर-कार हो जाएगी, जो सबको रौंदती चलेगी और न जाने किस गढ़ढे में जाकर गिर जाए। इसको discipline करने के लिए बहुत आसान तरीका है। पहले अपने ओर देखें कि इसके अन्दर दो शक्तियाँ जो चल रही है, एक तो इच्छा शक्ति और दूसरी कार्य शक्ति। इच्छा शक्ति जो है उसमें से होना चाहिए एक ही इच्छा होनी चाहिए, ख्याल बहुत सबको आप लोग क्या माफ कर कर देते हैं? क्या आपने सबको क्षमा कर दिया? क्षमा करना बहुत सीखना है। बहुत बारं कहा है कि ये क्षमा जो है, ये बड़ा साधन और सबसे बड़ा आयुध हमारे पास है। और इस जब बड़े आयुध को हम इस्तेमाल नहीं करेंगे, इसका उपयोग नहीं करेंगे, तो हमारे पास और कोई इस कलियुग में और साधन नहीं जुट पायेंगे। ‘क्षमा का साधन करके, ‘क्षमा की दृष्टि से लोगों की ओर देखना चाहिए। क्षमा, से ही शान्ति आती है। जिसमें शुद्ध इच्छा । शुद्ध इच्छा क्या है? कि आत्माकार हम हो जाएं। आत्मा से एकाकार हो जाए। ये शुद्ध इच्छा है। बाकी सब इच्छाएँ आप छोड़ दीजिए. अभी इस वक्त। एक क्षण के लिए तो छोड़िए। और कुछ नहीं माँ से माँगना, “बस, आत्मा से एकाकार हो जाएं।” एक ही शुद्ध इच्छा को माँगें बाकी सब छोड़ दीजिए कि ये होना है. ये चाहिए, वो चाहिए, घर चाहिए, मकान चाहिए, ये सब चीजू छोड़ दीजिए इस वक्त। इस वक्त सिर्फ, ये अपने मन में विचार करें कि “एक शुद्ध इच्छा है, कि परमात्मा से एकाकार होना है, और हमें आत्मा से एकाकार होना है और हमें कोई इच्छा नही है।” देखिये कुण्डलिनी इसी वक्त सब आपकी चढ़ में क्षमा नहीं आएगी, उसे शान्ति नहीं मिल सकती। पहले तो आप सब को क्षमा करें और फिर अपने को भी क्षमा करें। दोनों चीजें जब आप कर पायेंगे तभी आप देखियेगा कि आपके अन्दर स्वयं शान्ति आ जाएगी। आज्ञा चक्र खुल जाएगा तो शान्ति के द्वार गई। खुल जाएंगे। और दूसरी, क्रिया शक्ति में ये होना चाहिए कि जो कुछ भी हो वो सहज हमसे हो। सहज का मतलब लोग सोचते हैं कि हम बैठे रहें और हमारे गोद में चीज आ जाए। ये बड़ी गलत भावना है। ये बड़ी गलत भावना हमारे अन्दर सहज के बारे में आयी कि हम बैठे रहें और हमें सब चीज मिल जाए। आपने अब दूसरी बात जो मेरे सामने हमेशा रहती है और मैं आपसे कहती भी हूँ, कि इस बनने में आप की मेहनत जो है उसमें एक तरह का discipline (अनुशासन) आना पड़ेगा। बहुत से लोग-“माँ मुझे time (समय) नहीं मिलता।” और फिर आप कहिएगा 4

Original Transcript : Hindi नहीं है। समझदारी से कहता है। बड़प्पन की निशानी है, maturity की निशानी है सहजयोग में जो आदमी mature (परिपक्व) नहीं हो सकता वो सहजयोग के लायक नहीं है, सहजयोग के लायक नहीं है आपको mature होना पड़ता है और समझदार भी। देखा है कि एक बीज है, उसको जब हम माँ के इस पृथ्वी में छोड़ते हैं. उसके उदर में, तो दिखने को तो वो सहज ही से sprout (अंकुरित) होता है। लेकिन क्या वो सहज है? आपने उसकी मेहनत देखी. बिचारे एक छोटे से एक उसके अंकुर की, जो कि उस धरती को फोड़कर निकल आता है। आपने उस छोटे से मूल की मेहनत देखी जिसका एक छोटा सा cell (कोष) किनारे में होता है. आख़िरी होता है. जो कितनी मेहनत से अपने को अन्दर गढ़ता है। अब उसकी शुद्ध इच्छा क्या है, कि इस पेड़ू को मैं गढ़ दूँ जैसा भी हो। उसकी और कोई इच्छा आपने देखी? उसमें सिर्फ एक ही विचार होता है किसी तरह से मैं जमीन के अन्दर ऐसी जगह पहुँच जाऊँ जहाँ से पानी खींचकर के मैं इस पेड़ को दे सकेँ। और वो कुछ नहीं सोचता । और “कितनी’ मेहनत, पत्थरों से लड़ता है, मिट्टी से लड़ता है, तो कोई उसे रौदता है कभी कुछ करता है। सब चीज से गुजरता हुआ धीरे-धीरे, बड़े wisdom (बुद्धि) के साथ अपना चलते जाता है। कोई पेड़ आया या दिखने में चीज जितनी कठिन है उतनी नहीं है। हमने छोटे छोटे बच्चों को भी देखा है सहज योग में, बड़े समझदार, और हर चीज को बड़ी समझदारी से समझते हैं। उसी तरह से आप में ये समझदारी का तिलक लग गया है कि आप सहजयोगी हैं और समझदार भी और इसमें आपके माँ की शान की बात है। जो नासमझ हैं उनके लिए लोग ये ही कहेंगे कि इनकी मां ने कोई इनको शिक्षा नहीं दी, बिल्कुल बेकार। कहने को तो आदिशक्ति है. और कुछ बच्चे देखो तो बिल्कुल बेकार हैं। इस समझदारी को लेते हुए आदमी को अपनी ओर देखना चाहिए “कि हमारे ऊपर इसका उत्तरदायित्व है जिम्मेदारी है. कि हम संसार के सामने एक समझदार इन्सान बने। कुछ आया बीच में तो उसके गोल घूम जायेगा. उसकी जड़े आयेंगी तो उसके गोल घूम जाएगा। और कहीं आज नए साल के इस शुभ अवसर पर मैं आपसे एक बात कहना चाहती हूँ कि अब सहजयोग में हम लोगों को बहुत mature होना है नये लोग आए, बड़ी खुशी की बात है। उनके आगे जो पुराने सहजयोगी है, उनकी समझदारी आनी चाहिये। आए हैं, अभी अगर कोई पत्थर-वत्थर होगा तो उसके भी गोल घूमकर और अपना मार्ग बना लेगा। उसी तरह, एक सहजयोगी को बहुत सूझ-बूझ के साथ चलना चाहिए और समझदारी अपने ऊपर जिम्मेदारी के तौर पर लेनी चाहिए, कि पार नहीं हुए, कुछ है। किसी में थोड़े vibrations (चैतन्य-लहरियां) आ रहे हैं, किसी में नहीं आ रहे हैं। कुछ कमी है किसी में कुछ problem (बाधा) है। कोई एकदम से ही ज्यादा पार हो गया है तो वो अपने को समझ बैठा कि मैं बहुत बड़ा आदमी हूँ। सब तरह की गलतियाँ होती हैं। आपने भी ये गलतियाँं करी हैं. उसको भूलना नहीं, इसलिए उनके प्रति एक तरह का “हम समझदार हो गये हैं।” हमारे अन्दर समझदारी जो है ये हमारा एक प्रतीक है, हमारा एक ध्येय है। समझदारी जो है उसको हम अपने ऊपर -जैसे कोई आदमी शान से तिलक लगाता है ऐसे समझदारी का हमने तिलक लगाया और हम समझदार हैं। समझदारी बड़प्पन-बड़प्पन का मतलब नहीं कि नखरे करना या अपने को दिखाना कि हम कोई बड़े आदमी हैं। बड़प्पन का मतलब है कि एक तरह की paternal पिता जैसी’ eeling भावना है पितृत्व की feeling. का मतलब है जो आदमी समझदार होता है वो Tantrum (झुंझलाहट) में नहीं जाता बिगड़ता नहीं। छोटी- छोटी चीजों के लिए फिसलता नहीं है, और कहता नहीं है कि ये चीज ठीक नहीं है, वो चीज ठीक 5

Original Transcript : Hindi मातृत्व की feeling । इससे उनकी ओर देखना, उनके प्रति प्रेम, जो कि माँ का आप पर प्रेम है, उसी तरह का आपको प्रेम होना चाहिए। अगर हम ये सोचते कि दुनिया के लोग जो हैं वो बिल्कुल बेकार है, तो कुछ काम होता क्या सहजयोग में? या अगर हम अपने सी तौलते बैठे रहते, तो हम तो बिल्कुल अकेले हैं दुनिया में किस से तौलें अपने को? लेकिन वो सबाल ही नहीं उठता यहाँ तो ये है कि.कितनों को अपने आंचल में मर सकता। “योग क्षेम वहाम्यहम् योगः क्षेम वहाम्यहम् । फिर से कहेंगे, योगः क्षेम वहाम्यहम्। योग होने के बाद क्षेम की जिम्मेदारी हमारी है। इसलिए कोई, भी गड़बड़ काम करने की जरूरत नहीं, बाकी सब हम देख लेगे। कैसे कैसे हालात से आपको परमात्मा ने बचाया है और वो बचायेंगे आपको। उसके लिए आप निश्चिन्त रहिए। इसलिये किसी भी चक्कर में आने की जरूरत नहीं है। आजकल हजारों चक्कर चल पड़े है। हर तरह के चक्कर है जिनमें से सहजयोगियों को निकलना है। समझदारी क्या है? अब जैसे कि हमारे यहाँ भी dowry system (दहेज प्रथा) चल रहा है। सहजयोगियों को किसी को भी dowry देना शोभा नहीं देता. न लेना। मर लें। अभी हमारा वजन ही कम हो रहा है। इस आँचल में किस-किस को भर लें, किसे-किसे रखे-यही फिक् लगी रहती है। इसी प्रकार आपकी भी दृष्टि में समझदारी का प्यार होना चाहिए। उसमें ये नहीं कि आप लोगों म को कहें कि कोई आप बहुत बड़े अकडूखाँ हैं लेकिन पहली बात ये है कि ऐसी ओछी बात नहीं करनी। दूसरी ये कि बहुत से लोगों में होता है कि हमारी ही जाति में हम विवाह करेंगे ये भी मूर्खता का लक्षण है। आपकी जाति कौन सी है? आपकी तो जाति नहीं है, आप तो योगी हो गये योगियों की कोई जाति नहीं होती। सन्यासियों की भी कोई जाति होती है क्या? अभी हम एक दरगाह पर गये थे तो उन्होंने एक अत्यन्त सरल, सहज प्रेम-भाव अपने अन्दर रखना चाहिए। और उस सहज-सरल प्रेम भाव में पितृत्व की धारणा, एक समझदारी की भावना रखनी चाहिए। मैं तो आप पर बहुत विश्वास रखती हूँ। किसी भी मामले में चाहे वो पैसे की बात हो चाहे. समझदारी की। मैं यही सोचती हूँ मेरे बच्चे कभी नासमझ नहीं हो सकते। कभी-कभी होते हैं । लेकिन विश्वास मेरा पूरा है कि आप लोग सब समझदार, बहुत ऊँचे किस्म के आदमी हैं। कहा कि साहब ये तो औलिया चिश्ती, चिश्ती जो थे उनके nephew’ (मतीजे) ये भी औलिया थे। तो मैंने कहा “औलिया की क्या जात होती है” कहने लगे “औलिया की तो कोई जात नही होती। हम भी औलिया हैं हमारी तो कोई जात नहीं। ” अब देखिये अपने देश में भी कितने हालात खराब है। यहाँ ढूंढ़े से भी कायदे का एक आदमी नहीं मिलता। अब सहजयोग में आने के बाद अगर आप जात का मतलब होता है aptitude जाति। अपने हालात ठीक नहीं करेंगे तो जैसे करोड़ों इस देश में पड़े हैं वैसे ही आप होंगे, विशेष क्या होंगे? जात-जो जन्म से पाया हो। जन्म से वो पाना नही होता कि ब्राह्मण कुल में पैदा हुए. कि वैश्य में कि शूद र में ये नहीं होता। आप जो पैदा हुए. आपका aptitude आपको एक विशेष रूप में होना है। (क्षमता) क्या है? अब बहुत से लोग ये कहेंगे कि “माँ. देखो भई आजकल अगर बेईमानी नहीं करो तो पेट नहीं भरता। ये बात सही नहीं है। आप छोड़के देखिये। परमात्मा के साम्राज्य में कोई भूखा नहीं अपने देश की दूसरी बीमारी है, जाति। जिसको नानक साहब ने बहुत तोड़ा है। बहुत तोड़ा नानक साहब ने, कबीर ने तौड़ा। लेकिन अब इन्होंने

Original Transcript : Hindi दूसरी जाति बना ली। उसमें भी अब जाति बन गयी। सिक्खों में भी कोई कम जातियाँ है? वो भी जातिये हो क्यों बनाया? सोचना चाहिए। इसलिए कि मामा होते भी उसका मर्दन करना है। हुए गए। सिक्ख एक जात हो ही नहीं सकती। जो सिक्ख हैं वो तो जात हो ही नहीं सकती। वही तो बात है। जो कुछ जो तोड़ता है वही वो बन जाता है, पता नहीं कैसे? रिश्तेदारी जो है, जिसके पीछे में हम लोग देश बेच देते हैं- ये रिश्तेदार, मेरा भाई, ये मेरा बेटा , ये फलाना, ये सब हो जाए, ऐसी जो व्यर्थ की चीजों में हम जो इतना महत्व देते हैं। उन्होंने कहा कि “कंस अगर राक्षस है तो चाहे वो मेरा मामा हो, उसको मारेंगे हिन्दुओं में जो जातियां थीं वो भी सारी जितनी भी जाति थी, वो सारी अपने कर्म के अनुसार थीं। नहीं तो आप ही बताइये कि मत्स्यगंधा, जो कि ।” इसलिए इस तरह की जो हमारे अन्दर, हिन्दुस्तानियों की खास चीजू है। अंग्रेजों की बात और है. उनसे बात करते वक्त तो और बात करनी एक धीमरनी थी, उसका लड़का, जो कि उसका विवाहित रूप में बच्चा नहीं जन्मा था, इस तरह का बच्चा व्यास हुआ जिसने गीता लिखी। सोचिये कहाँ से कहाँ बात पहुँच गयी। क्यों? ऐसा क्यों? क्यों नहीं किसी ब्राह्मण कुल का ‘शुद्ध मनुष्य जिसे कहते हैं ये तो बड़ा भारी मजाक है! लेकिन, ऐसे आदमी ने क्यों नहीं गीता लिखी? सोचना चाहिए। कृष्ण ने व्यास से क्यों लिखवाई? क्या बात है? बो तो इसलिए कि यही धारणा तोड़ने के लिए कि मत्स्यगधा से जो पुत्र हुआ है, उससे मैं गीता लिखवाऊ। विदुर के घर जाकर पड़ती है, आप लोग की बात और है। उन लोग के यहां तो बेटा क्या. वो तो किसी को नहीं मानते। माने तो और उससे नजदीक रिश्ता कोई नहीं होता। बेटा है बाप को मार डालेगा, बाप है बेटे को मार डालेगा। मानो सभी राक्षस हैं इस मामले में और हिन्दुस्तान के लोग ये हैं कि अगर बेटा, अगर वो murderer (खूनी) भी है तो भी माँ जो है कहेगी “बेटे कोई बात नहीं murder ही करके आया है न, हाथ धो लो खाना खा लो। कुछ बात नहीं है तुम तो मेरी जान हों, कुछ हर्जा नहीं। तुम ये खाना खा लो चाहे murder करके आए हो।” ये अपना देश है! ऐसी जो हमारी अंधी आंख है, उसको खोलने के लिए ही ये किया। इसी प्रकार जाति-पाति में फिर हमारा जो एक अंध-विश्वास मन्दिरों में, मस्जिदो में और इन सब चीजों में है, मै तो कहूँ गुरुद्वारों में भी, उसकी तरफ दृष्टि उठाने के लिए भी लोगों ने बड़ी मेहनत की, बड़ी मेहनत की नानक साहब ने खुद ग्रंथ साहब इसलिए उन्होंने साग खाया, क्यों? इसी चीज को तोड़ने के लिये। भीलनी के झूठे बेर राम ने खाए। क्यों? क्यों कि ये इसी तरह की बेवकूफी की बातें तोड़ने के लिये। क्या बेर के बगैर जी नहीं सकते थे? और पर कोई खा भी ले क्योंकि रामचन्द्र जी ने खाए, तो फौरन जाकर मुँह धो लेंगे। ये सब काम उन्होंने क्यों किये? ये सोचना चाहिए। जान बूझकर क्यों किए? क्योंकि इस तरह की जो प्रथाएं अपने देश में व्यवस्थित हो रही थीं-जाति-पाति सब फालतू की चीजें- उसको पूरी तरह से तोड़ने के लिए। अब सोचिए. हजारों वर्ष पहले ये काम हुआ। राक्षस के घर में प्रहलाद को पैदा किया। स्वयं कृष्ण के मामा राक्षस थे कहाँ से कहाँ देखिये उनकी छलाँग कहाँ मारी, देखिए । कृष्ण भी उतरे कहाँ, तो मामा राक्षस! अरे भई कोई और अच्छा नहीं मिला था तुमको! कंस ही को मामा बनाना था? बनाया कि उन्होंने कहा कि शास्त्रों में ये लोग तो interpretations (अर्थ) लगाते हैं, तो उन्होंने जो realised souls (सिद्ध आत्माएं) थे. ऐसे ही गुरुओं का वो ग्रंथ साहब बनाया। अब वो ही ग्रन्थ साहब पढ़ रहे हैं अरे भई उसमें क्या लिखा है वो तो देखो। जो बात उन्होंने असल कही है उसका essence (निचोड़) तो पकड़ो, नहीं तो नानक साहब के साथ भी तो

Original Transcript : Hindi ज्यादती हो रही है इसलिए इस तरह का confusion (भांत स्थिति) अपने सभी धर्मों में इतनी बुरी तरह से हो गयी है। यहां तक लोग कहते है कि मुहम्मद गजनी स्वयं साक्षात् कृष्ण का अवतार था क्योंकि ब्राह्मणों ने लूट मचायी थी. इसलिएकृष्ण’ ने लीजिए एक योगी साहब है वो बन्दूक बना रहे हैं। अभी मेरी तो कुछ समझ में ही नहीं आता कि योगी का और बन्दूक का क्या सम्बन्ध है (भई तुम बता दो. तुम्हारा नाम योगी है)। मुझसे बहुतों ने पूछा किं योग का बन्दूक का क्या सम्बन्ध है? मैंने कहा न तो कृष्ण मुहम्मद गजनी का अवतार लिया था। कहानी ऐसी है। और जब उन्होंने सोमनाथ को लूटा तो वहां से शंकर जी भागे और भागते-भागते भैरों नाथ जी के गये और उनसे कहा “मईया तुम मुझे का आयुध है, न देवी का बन्दूक, बहरहाल ये कोई जोड़ रहे होगे! तो इस प्रकार के विक्षिप्त और विचित्र लोग आजकल के जमाने में संसार में आए हैं। इससे भी भगवान का नाम जो है, लोग सोचते है कि ये तो कहने की बात है कि भगवान है. भगवान ो हो नहीं सकता। अब सहजयोगी ही सिर्फ जानते हैं पक्की बात ‘जानते’ माने सिर्फ बुद्धि से नहीं, लेकिन , vibration (चैतन्य लहरियों) से कि परमात्मा है और उनकी विश्वव्यापी शक्ति जो है संचालित है। सिर्फ आयुध मन्दिर में घुस हुए बचाओ उससे, ये तो मेरे पीछे पड़ गये। उन्होंने कहा कि “आप तो शिवजी हैं, आप किससे डरते है आपको क्या डरने की बात है, आप तो एक नेत्र खोल दीजिए तो ठीक हो जाए।” उन्होंने कहा “भईया, तुम जाके देखो ये कौन है। वो सो रहा है।” जाकर देखा इन्होंने -कहते हैं, मैरों नाथ जी जो गए तो उन्होंने देखा कि सहजयोगी जानते है। अब जान तो बहुत कुछ लिया है आप लोगों ने। मैं आपसे बताती हूँ कि आप लोग जितना जानते है बड़े-बड़े योगी भी नहीं जानते-माने वहां विराट साक्षात् सो रहे हैं। उन्होने कहा, “बाबा रे बाबा इनको कौन मारेगा?” तो भैरोंनाथ जी ने कहा कि “एक चीज माँ ने मुझे दी है, वो शक्ति मैं इस्तेमाल असली योगी। असली योगी की बात कह रही हूँ मैं वो भी नहीं जानते होंगे। लेकिन कुछ जानना ऐसा हो गया है जैसे रेडियो के अन्दर से music (संगीत) आता है और रेडियो पर असर नहीं होता। आर-पार। करता हूँ।” तो भ्रनामरी देवी ने भुंगों की शक्ति दी थी। तो उन्होंने भृंगों की शक्ति के इस्तेमाल करने से भ्नमर गए और उन्होंने गुनगुना के उनको सोने ही नहीं दिया। तो कृष्णा को सोना जरूरी है, बीच- बीच में, नहीं तो जो बहुत ही उपद्रव हो जाय संसार भर में। क्योंकि उनकी बहुत जबरदस्त है। और वो परेशान होकर के चले गये, ऐसा लोग कहते हैं, इसमें सही तथ्य है या नहीं इस मामले में मैं नहीं कहूँगी। लेकिन इतना जरूर कहूँगी कि जब इन्सान को किसी भी चीज़ के बारे में इस तरह से लोग तंग कर देते हैं तो वो उस तरह की कहानी भी बना सकता है। जब धर्म के नाम कुछ भी जाना है, बहुत कुछ जान गये आप लोग। और vibrations में भी जाना है लेकिन वो कुछ vibrations अपने ‘अन्दर’ नहीं चल रहे। बाहर चल रहे हैं। उनको कुछ ‘अन्दर भी चलाना चाहिए । इसलिए मैं कहती हैँ कि अपने को discipline करिए अपना instrument (यंत्र) ठीक करके इन vibrations को अन्दर ले लीजिए। हुनन शक्ति इसमें मैं कहती हैं कि महाराष्ट्र में लोग मेहनत बहुत करते हैं बड़े मेहनती हैं। और इस लिए सहजयोग में उनकी प्रगति बड़ी गहन हो रही है। गहरी हो रही है । इसलिए आपको ध्यान देना चाहिए कि रोज सवेरे उठ करके-अब इंग्लैंड में जहाँ इतनी ठंड पड़ती है और अंग्रेज़ को सबसे बड़ा गुनाह है, चाहे आप मार डालिए. पर इतने अत्याचार, खून-खराबा, ये चो सब हो रहा है, तो भगवान को भी लोग कह सकते हैं कि भगवान कोई चीज़ नहीं है। भगवान में भी विश्वास करना असम्भव सा हो जाता है। उसमें मैं उनका दोष नहीं समझती, क्योंकि जो भगवान का नाम लेकर के काम कर रहे हैं वो अगर इतने महादुष्ट हैं- अब समझ 8.

Original Transcript : Hindi उसका खून कर डालिए वो कुछ नहीं कहेगा. लेकिन अगर उस को आपने जगा दिया ता वो गया. खत्म । उसके बाद, इससे बढ़कर महान पाप है ही नहीं इंग्लैंड में अगर आपने किसी को सवेरे नौ बजे से पहले जगा दिया तो बस आपसे महापापी. दुष्ट, राक्षस कोई नहीं। ऐसे देश में लोग चार बजे उठकर नहाते हैं, चार बजे। उनकी मेहनल। क्योंकि वो जो पहले ही discipline थी अब उन्होंने सहजयोग में लगा दी। हम लोग तो कभी disciplined ही नहीं रहे। हम लोग तो सब मुक्त लोग है। सब लोग ब्रह्म बने बैठे हैं उन लोगों ने इतनी मेहनत की तो क्या हम लोग नही लीजिये ये ego, superego को, ये टूट करके और आप अब पक्षी हो गये। लेकिन एक छोटा-सा बच्चा पक्षी अंडे से भी कमजोर होता है। इसलिए इसे बहुत बढ़ावा देना चाहिए। सम्भालना चाहिए, संजोना चाहिए। और शुद्धता रखिये; प्रेम ‘शुद्ध’ होना चाहिए। शुद्ध प्रेम इसकी भी भावना बहुत कम लोगों को है। सुबह ये शुद्ध प्रेम क्या होता है? शुद्ध प्रेम वो होता है कि जिस में न तो कोई किसी प्रकार का greed (लालच) है और न ही किसी प्रकार की lust है. माने न कोई तरह की लालसा है, न लालच है और न ही उसमें कोई तरह की गंदगी है। वो बहते रहता है। कर सकते?” अब सवेरे चार बजे माताजी उठने को इस शुद्ध प्रेम का अपने अन्दर से प्रकाश बहना चाहिए, ये शुद्ध इच्छा हमारे अन्दर होनी चाहिए। और जब ये होने लग जाता है तभी आप वन्दनीय सत बोलिए, बहुत ज्यादा हो जाएगा। मैं नहीं बोलती। पर आप खुद ही साचिए कि आपको time ही कब है? सवेरे उठकर के ध्यान में वो लोग बैठते है, लन्दन की ठंड में। और उस मेहनत से ही वो लोग पा गए। वहां तो नर्क है। जब नर्क में उन्हाने स्वर्ग खड़ा किया है तो स्वर्ग में थोड़े से दीप जलाना कोई मुश्किल नहीं है ये तो स्वर्ग ही है ऊपरी बातें छोड़ दीजिए । ये तो बड़ी चीज़ है ये देश बहुत महान देश है। इसमें ये काम करना कोई मुश्किल काम नहीं है। सहजयोगी हो जाते हैं। उससे पहले नहीं । और ये एक जो बनने की विशेषता है, इसकी ओर जरूर ध्यान दिया जाए। आप आज कहेंगे कि ‘देखिए माँ हमारा ये चीज ठीक कर दीजिए, माँ वो ठीक कर दीजिए। हाँ, भई चलो ठीक कर देंगे। कर देंगे। लेकिन आपका कुछ बनेगा नहीं मामला। कोई बच्चा है कहंता है “माँ हमें ये दे दो।” चलो भई लो. तुमको चाहिए, लो। लेकिन आप कोई विशेष तो बने नहीं। आपने कुछ पाया तो नहीं। आप ऐसे ही माँ के आगे पीछे दौड़ते रहे। क्या फायदा? आपको जो कुछ माँ बनाना चाहती हैं वो अगर आप नहीं बनेंगे तो माँ की भी तो शुद्ध इच्छा पूरी नहीं होती। एक ‘अजीब तरह की बात है. कि आपको बनाना चाहिए, ये मेरे तो इसलिए मैं बता रही हूँ कि कल के, भविष्य के जो नेता लोग हैं तो आप ही यहाँ बैठे हुए हैं। अब कोई राजकीय या सामाजिक और जितने भी तरह के “इक’ है, वो सबमें आत्मा का ही प्रादुर्भाव होगा. नही तो काम नहीं चलने वाला। कल के नेता आप लोग है। आप ही में से, सहजयोग से ही तैयार होंगे। और अब मुझे पूछना ये है कि आप मे से इतने कौन लोग हैं जो इसके लिए तैयार हैं कि अपना जीवन एक शुद्ध सुन्दर एवम् पूरी अन्दर शुद्ध इच्छा है। और आपके अन्दर शुद्ध इच्छा है कि आपको कुछ बनना चाहिए। जब हमारा ऐसा मेल बैठा हुआ है तो सिर्फ शुद्ध इच्छा से रहे हम। तरह से Dynamic (कार्यशील) बनाएं। निर्भय, पूरी तरह से निर्भय होकर के. हम विशेष रूप के इंसान बनने वाले हैं और हैं। आपको हो गया है। आप जैसे कहते हैं कि द्विज हो गये एक अंडा था, जैसे समझ और शुद्ध इच्छा पर रहने के लिए, ‘शुद्ध प्रेम-पहली चीज। शुद्ध प्रेम। और शुद्धता लाने के लिए अपने चित्त को शुद्ध करना चाहिए । हम किसी के

Original Transcript : Hindi यहाँ जाते है, तो क्या देखते हैं- अरे इनके यहाँ इतनी अच्छी चीज आयी है, ये कहाँ से आ गई? ये कैसे आ गई? आप देखेंगे कि गहन में तो भई कमाल है। ऊपर से चाहे जैसे भी हो, और ज्यादातर से जो ऊपर से चाहे जैसे भी हो, और ज्यादातर से जो ऊपर से बहुत होते हैं कभी-कभी बड़े गड़बड़ होते हैं, अन्दर से। गई?” लगा दिमाग दौड़ने। ये नहीं देखते कितनी अच्छी चीज है, कैसी बनी है; वाह, वाह, वाह! देखिये इसका मजा उठाइये । , दूसरे की है, बड़ा अच्छा है। अच्छा है, सरदर्द अपनी नहीं इसलिए गहन में क्या है उधर दृष्टि है क्या? फिर देखिये प्रेम कितमा बढ़ता है। प्रेम गहन चीज है। किसी की ओर दृष्टि करने में उसकी गहनता को नापें । और आप खुद ही गहन उतरते चले जाएगे| एक है न. “दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ।” किसी के दिल में मैं राह किए जा रहा हूँ। रास्ता बनाते इस तरह से जब आप दूसरों की ओर देखेंगे appreciative temperament (खुश मिजाज) होना चाहिए लेकिन ज्यादातर दृष्टि दोषों पर जाती है मनुष्यों की। जैसे कोई कहेगा “साहब वो अच्छी तो है लड़की, लेकिन attractive (आकर्षक) नहीं है मतलब जा रहा हूँ। इसी प्रकार उसकी गहनता पर उतरिये; Superficialities (बाह्य बातों पर) पर रहने से आदमी का चित्त गहन नहीं उतर सकता। और जब तक चित्त गहन नहीं उतरेगा, तब तक आपकी गहनता क्या? attractive माने क्या? आप एकदम जाके एकदम क्या उससे ‘चिपक जायेंगे क्या, attractive क्या होता है? मेरी आज तक समझ नहीं आया. कि नहीं बढ़ने वाली। attractive’ के माने क्या होता है खासकर तो चित्त को पहले गहन उतारिये। बाह्य की attractive शब्द आज तक मेरे समझ में नहीं आया। कि “साहब वो attractive नहीं है।” मैंने कहा भई attractive के माने क्या होता है? क्या चीज़ आपको attract करती है? उसका नाक, मुँह, हाथ skin (चमड़ी, कपड़े, शपड़े क्या? कौनसी चीज? चीजों में बहुत है। जैसे हमारे ladies है – आदमियों का भी बताऊंगी,- कि अब ब्लाऊज match हुआ कि नहीं हुआ, उसके लिए सर फोड़ डालेंगी। Blouse should be matching । जब हम लोग यहाँ थे तो कोई matching ब्लाऊज ही नहीं पहनता था। नीले रंग की साड़ी तो पीले रंग का ब्लाऊज । सीधा हिसाब । और पीला नहीं हुआ तो लाल रंग चल जाएगा। मतलब कती Attract तो एक ही चीज करनी चाहिए दूसरे दूसरे की आत्मा; वही तो आनन्द देने वाली चीज है ै की। वाह्य की दृष्टि जो है इसमें चित्त हमारा बड़ा contrast border तो पहले होता नहीं था, वो con- उलझता है। trast कर लिया। नहीं हुआ तो नहीं, पहन लिया। अब पहले होती ही कितनी साड़ियाँ थी किसी के पास में । दो या तीन, चाहे कितने भी रईस हों ज्यादा कपड़े कोई रखता ही नहीं था। अथ साहब तो matching हो गया। औरतों का इतना problem है कि अगर कोई औरत matching पहन के नहीं आयी तो खलबली मच जाएगी सारे शहर में। “क्या कपड़े पहन के आयी थी बेवकूफ जैसे!” लेकिन वो अगर अजीब सा jean पहन के आए, दो सींग लगा के आए तो वो माडर्न है, वो modern (आधुनिक) हो गयी। ‘ उतारना पड़ता है। Penitrating, गहन । तब कैसे possible (सम्भव) है। अगर आप पहले ही देखते साथ, “साहब वो तो चित्त को ‘गहन ठीक नहीं है, इनका ठीक नहीं है। हो गया काम खत्म। वो आदमी खत्म, उसकी सब आत्मा खत्म। उसकी सब जो कुछ भगवान ने मेहनत की है वो सब खत्म। “वो तो ठीक नहीं है” -बस हो गया काम । आप उसके गहन उतरे क्या? देखा क्या? खोजा है क्या, क्या चीज है? गहन उतरके देखिए । और फिर 10

Original Transcript : Hindi कुछ होता है। और उसका ताँता आप जोड़ते जाएं तो कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है। ऐसी जो हम लोगों ने चीजें norms (असूल) बना ली है, अपनी उस norms में हम उलझे रहते हैं। अब आदमियों की दूसरी बीमारी होती है उनको इतना कपड़ों से मैचिंग वैचिंग का time कहां, वो तो घड़ी देखते रहते है। हरेक आदमी की घड़ी, रही है?” कितना time हो रहा है?” जब निकलने का time होगा. तो बजाय इसके कि बाहर निकल एक बार में Geneva से जा रही थी। बहरहाल मेरा तो प्लेन miss नहीं हुआ अभी तक कभी भी – ये भी एक आश्चर्य की बात है। एक साहब “कितना बजा का miss हो गया था। तो वो तड़पड़ाते हुए पहुँचे प्लेन में। और उनको इत्तफाक से मेरे पास जगह भी जाएं, इत्मिनान करें, औरतों के पीछे में चलो भई दो मिनट बचे है; एक मिनट बचा है। time keeper रहे होंगे! उतने में औरतें जो हैं पच्चीस चीज़ भूल गये. वो मिली। बड़े nervous (परेशान), उनकी हालत खराब । महाराष्ट्रीयन थे। तो मैंने समझ लिया कि ये आ गए मेरे चक्कर में! मैंने कहा “करेला नीम चढ़ा” इनको अब फाँसना चाहिए। तो मैंने मराठी में कहा “साहब आपको परेशानी क्या हो गयी।” तो उन्होंने मराठी में शुरु कर दिया, असली मराठी में। कहने लगे “ये प्लैन मैंने miss कर दिया। देखिये कितनी ये हो गया।” मैंने कहा “कुछ नहीं miss किया आपने। आपके लिए कुछ अच्छी चीज़ ही होने वाली है इस प्लेन में।” मेरी ओर देखा, उन्होंने कहा, क्या अच्छी चीज होगी? तो देखा “क्या आप माता जी निर्मला देवी हैं?” मैंने कहा “हाँ”। वो गए काम से! हो गए पार, प्लेन में ही! उनका नाम है डा. मुतालिक। और उन्होंने कहा, ” मुझे क्या मालूम था. कि आत्म साक्षात्कार मिलने वाला है।” मैंने कहा “हाँ, इत्मिनान से चलो।” और उसके बाद मालूम है कहाँ से कहाँ बात पहुँच गयी UN में वो ले आए इसको ले आए. उसको ले आए। वो बहुत बड़े आदमी हैं. WHO के वो डायरेक्टर हैं। लेकिन वैसे’ वो ना आते शायद। और इत्तफाक-सहज, हो भी भूल गए और भागे बाहर। हड़बड़, हड़बड़। “इतना time हो गया।” घड़ी देखना, और बताना और जताना, ये भी modern चीज है. पहले जमाने में कोई ऐसा नहीं करता था। क्योंकि न ता पहले रेल गाड़ियां थी, और रेलगाड़ी कौन आपके यहाँ time रखती है, जो आप इतनी जल्दी कर रहे हैं? न Plane (जहाज) कौन आपका Time रखते हैं? प्लेन में भागे जाओ, आपको पता है, yesterday (कल) सवेरे के गए हुए वहीं शाम तक बैठे रहे. plane ही नहीं आया। बैठे हुए हैं। लेकिन घर से निकलते हुए ऐसी हड़बड़, सड़बड़ उसमें ये रह गया रे, वो रह गया तीन बार गाड़ी जाके लायी, तो भी प्लेन नहीं आया! आप कहोगे कि माँ ही ये सब कर रही है क्योंकि हम घड़ी के गुलाम हैं । हो सकता है। इतनी घड़ी की गुलामी करना आदमी को साहब में तो इतना परेशान था और भी पागल बना देता है। जब आप सहजयोग में आते हैं, आपको पता होना चाहिए कि plane खड़ा रहेगा आपके लिए । गए पार। तो ये सब मजे देखने के हैं। तो इतनी ज़्यादा घड़ी की गुलामी नहीं करनी चाहिए। आइए आराम से राजा साहब जैसे! plane जाने वाला नहीं है, चाहे कुछ हो जाए। plane वहा खड़ा रहेगा. आखिर ये सोचिए कि इतने दिन घड़ी बाँध के भी हमने क्या पाया? यूं ही-मतलब अपने बाप-दादाओं ने भी घड़ी बाँधी ही थी, हालांकि उनकी ज्यादातर खराब ही रहती होगी इतनी घड़ी से अपने को बाँध के सिवाय nervousness के हमने कुछ या देरी से आ रहा होगा। अगर आपको देर हो रही है तो कोई हर्ज नहीं, राजा साहब जैसे जाइये और अगर समझ लीजिए प्लेन miss (छूट) भी हो गया. दूसरे प्लेन से जाइये। हो सकता है उसमें कोई चीज बनने वाली हो। कोई सहजयोग मिलने वाला है। ऐसा बहुत 11

Original Transcript : Hindi बच के चलना चाहिए। ये आपको पता होना चाहिए। ये हमारे आने से पहले से ही सब जमे हुए यहीं पर बैठे हुए हैं वो इधर भी बैठे हैं, उधर भी बैठे हैं, वहाँ भी बैठे हैं। इसलिए माँ के साथ liberty नहीं पाया. और इस घड़ी की गुलामी में जो आजकल modern चीज हमने जानी हैं और जो निकल आयी है वो है Leukaemia, (बीमारी जिसमें रक्त की कमी हो जाती है) इसलिए अगर आपको Leukaemia नहीं पाना है तो इस घड़ी को आप तिलाजलि दे दीजिए। कभी इसको आगे रखिए कभी पीछे रखिए । मैं भी ऐसे ही करती हूँ। या एक ही काँटा रख लीजिए । जैसे किसी ने पूछा “कितना बजा है?” तो कहना “साढ़े”। या “पौना”। ठीक है। किसी से भी जोड़ लीजिए, कोई सा भी नम्बर समझ लीजिये नहीं तो time ही नहीं रहेगा enjoy (मौज-मस्ती) करने का। अगर आप हर समय घड़ी की ही गुलामी करियेगा तो आपके पास time ही कहाँ है enjoy करने के लिए ? “भई अभी time नहीं enjoyment के लिए।” पर कहाँ जा रहे हैं आप? इसको पकड़ना है, उसको पकड़ना। ये जो भागा-दौड़ है इसे आप बद कीजिए। (स्वच्छन्दता) नहीं लेनी चाहिए इस तरह की। वहाँ पर समय से पहले पहुँचना चाहिए। परमात्मा का काम है। परमात्मा के काम के लिए पहले से सुसज्ज होके आइये। जान लेना चाहिए। लेकिन ये disci- pline (अनुशासन) आप अपना लगाइये, मैं नहीं लगाने वाली दो चार चपट पड़ेगी फिर आप लोग फिर आ जायेंगे। नुकसान होगा। समय से पहले वहाँ पहुँचना चाहिए। अपने ऊपर जिम्मेदारी लेकर के आप जिम्मेदार लोग हैं पहले से पहुँचना चाहिए। बच्चों को भी सिखाएं।” माँ का प्रोग्राम है।” कोई हर्ज नहीं एक कप चाय कम पी ली तो कोई हर्ज नहीं चलो, आज माँ का प्रोग्राम है बहुत बड़ी बात है।” इसलिए समय से पहले पहुँचना चाहिए। लेकिन में नहीं कहूँगी। मैंने इनसे भी कहा दरवाजा खुला 1. सब पागल जैसे भाग रहे हैं। इसी प्रकार स्त्री की बातें और होती है पुरुषों की बातें और होती है। लेकिन हमने अपने norms रखो। (नियम) बना लिए है। जैसे समय से जरूर जाना है । ये मैं नहीं कहती कि गलत बात है। अंग्रेजों ने ये बात बनायी कि अब समय से जाने से उन्होंने ‘वाटरलू” की लेकिन आप ही को समझना है, आप ही को जानना है, और आप ही को मानना है और अपने को सम्भालना है। किसी पर भी सहजयोग में जबरदस्ती लड़ाई जीत ली। पर हार भी सकते थे वो। time से कोई फूर्क नहीं। जब time आ गया था तो जीत गये जुल्म, कोई चीज का restriction (गेक) नहीं है हमारी ओर से। लेकिन वो हो ही जाता है। automatically (स्वतः) आप जानते हैं। आप पर automatically इसका प्रतिबन्ध लग जाता है क्योांकि परमात्मा के साम्राज्य का जो आनन्द है वो तो आदी रहा है, लेकिन उनके Rules-regulations (नियम अधिनियम) भी चलते हैं और वो ‘बड़े ही’ कमाल के Rules- regulations हैं इसलिए अपने को ही सम्भाल के रखना है नतमस्तक होकर के ये सोचना है कि ” आज दरबार में जाने का है।” समझ लीजिए आपको-दिल्ली और हार गये इसका मतलब नही है कि अगर माता जी का प्रोग्राम छः बजे है तो आप नौ बजे आइये। जिसके लिए ये योगी परेशान हैं, और वर्मा साहब कि माँ जब भाषण देती हैं तब चले आते हैं बीबी-बच्चे, सब लाइन से चले आ रहे हैं, माँ बोल रही हैं अपने चले आ रहे हैं। तो कहते हैं कि भई माँ के दरवाजे सबको बंद नहीं। लेकिन माँ का तो दरबार होता है। दरवाजे दरबार में पहले लोग जाते थे, आपको पता होगा। तो r leBi I Y sunch gs वहाँ “बहुत’ से बैठे हुए दो महीने पहले से तैयारी होती थी। special (खास) ह हैं। बहुत से ऐसे-वैसे बैठे हुए हैं जिनसे ‘बहुत ‘ र 12

Original Transcript : Hindi मैं कोई restriction (बन्धन) नहीं डालती आप पर, आपको ही खुद grow (बढ़ना) होना है जो खुद grow होगा, जो खुद ही इसमें बढ़कर के ऊचां उठेगा. वो स्वयं को वैसे ही संवार लेगा उसको कहने की जरूरत नहीं। कहने से जो काम होगा वो फिर क्या कपड़े पहनाये जाते थे और कैसे जाते हैं उसका rehearsal (पूर्वाभ्यास) होता था और अगर आप गये हैं, तो victory (जीत) के सामने आप पीठ़ नहीं दिखा सकते। के और पीछे ऐसे सीधे चले आइये। झुक अरे ये वायसराय होता किस बला का नाम सहज हुआ ? आप खुद’ अपनी समझदारी से इसमें एक बड़प्पन, अपनी प्रतिष्ठा लेकर उठें। आप स्वयं है। परमात्मा के पैर के धूल के बराबर भी नहीं है। उससे भी कम। उसका तो इतना महात्म्य है। फिर, वो प्रतिष्ठित है और उस ‘स्वयं को सामने रखकर के चलिये। आपसी बातचीत, आपसी का बोलना चालना. सब चीज़ Driven को स्वयं चालित कहते हैं। पर स्व तो हमारी माँ क्यो न हो, लेकिन दरबार मरा हुआ है। और जो बड़े-बड़े देवता लोग है वो कायदे से बैठे रहते में स्वयं’ चालित होना चाहिए। Own है, सब आयुध पहन के। पूरा इंतजाम रहता है। पूरे खड़े रहते है। और सब तैयारी से पहुँचते हैं। देखिये vibrations भी आ गए। कितने जोर के vibration missing (गायब) होता है उसमें। आपका स्व जागृत है। उस स्व’ के तंत्र में चलिए। वही स्वतन्त्र है। और छूट रहे हैं वो सब सज्ज होते है इस वक्त। जब हम उस तत्र में चलते हुए जो एक “विशेष रूप” आप धारण करते हैं उसको देखकर ही लोग सोचेंगे “वाह, बोलते है तो देखिए कितने जोर के vibrations छटते हैं। इसलिए आपका भी सतर्क होना चाहिए । वो देख रहे है आप सबको, कि कैसे आप चलते हैं। इसलिए वाह। ये क्या चीज सामने चली आ रही है।” सम्मल करके, बहुत नतमस्तक होकर के आना चाहिए। ये बात आपको धीरे-धीरे जान जाएगी कि आप कहाँ इस पागल दुनिया में बहुत जरूरत है इस थोड़ी सी आपकी मदद की जरूरत है अगर हो जाए तो ये दुनिया पलटने वाली है, बहुत जल्दी पलट जाएगी। वक्त। मुझे ाहुँचे है, आपका स्थान क्या है. आप कौन सी ऊँची दशा में हैं। उस दशा के अनुसार आप चलें। अभी लन्दन में शादी हुई थी वहाँ के युवराज आप लोग सब मिलकर के कोशिश करें। पूरी कोशिश करें, अपना महात्म्य समझे। माताजी का की। बहुत दूर-दूर से लोग आए थे, क्या उसका तमाशा था, पता नहीं। लेकिन उसके लिए अमेरिका से रीगन साहब की बीबी आयी। और वो 15 मिनट देर से आयीं, दौड़ते-दौड़ते। और सारे लोगों की commentary (तानेबाजी) ये हुई कि “ये औरत क्या समझेगी ये एक model थी अभी हो गयी राष्ट्रपति महात्म्य है, जो तो बहुत लिख गए। अब आप अपना महात्मय लिखिये। और ये जानिये कि कहाँ से कहाँ आप लोग पहुँच गए हैं, और कहाँ से कहाँ आपने है। पहुँचना कहने का है।” आनन्द से रहे, सुख से रहें, चैन से रहें. आज नव बर्ष के दिन विशेष रूप से ये की बीबी तो क्या हुआ? जो असली था वो तो सामने सामने नजर आ गयी। ये क्या समझेगी कायदे?” हँसते रहें।” पर अपनी प्रतिष्ठा में बंधे रहें, प्रतिष्ठा अपनी छोड़े न। और वो दिन दूर नहीं कि जब कि तो वो तो कोई चीज ही नहीं। वो तो कोई चीज ही नहीं। लेकिन ये जो चीज़ है उससे कितनी “बड़ी’ है, कितनी “ऊंची हैं, कितनी ‘महान’ है. उसको समझें और इस महानता को पहचानते ही आप स्वयं आप देखिएगा कि दुनिया सारी आप लोग रोशन कर देंगे। आप सबको मेरा अनन्त आशीर्वाद उस महानता का विशेष आदर करेंगे। 13