Public Program, Hridhay Aur Vishuddhi Chakra

New Delhi (भारत)

1984-03-16 Heart And Vishuddhi Chakras Hindi CAM 1 Delhi India DP-RAW, 132'
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1984-03-16 Heart And Vishuddhi Chakras Hindi CAM 2 Delhi India DP-RAW, 132'
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Hridaya Aur Vishuddhi Chakra Date 16th March 1984 : Place Delhi : Public Program Type : Speech Language Hindi

[Original transcript Hindi talk, Scanned from Hindi Nirmala Yog]

शान्त-चित्त, धार्मिक और बहुत सरल, शुद्ध और सादे परादमी हैं। वो मेरे पर पर गिरके रोने लगे । कहने लगे, “माँ, ये सब मैंने किया। लेकिन मैं बड़ा सत्य को खोजने वाले सारे भाविक, सात्विक साधकों को मेरा अशान्त हो गया है। मैंने कहा, क्यों, क्या बात है ? श्रपने तो बहुत कुछ पा लिया। यहाँ सबकी सुभत्ता अ्र गयी कहने लगे, मैंने एक बात नहीं जानी प्रणाम । कल आपको मैंने आ्रपने अन्दर बसा हुआ जो नाभि चक्र है उसके वारे में बताया या कि ये नाभि चक् हमारे अन्दर जिससे हम अपने क्षेम थी कि इस सभत्ता से दुनिया इतनी खराव ही जायेगी। हमारे यहाँ लोग जो हैं इतने आदततयी को गये हैं । यहाँ शराब इस कदर ज्यादा चलने लग गयी है। यहां पर बच्चे बिलकुल वाहियात हो गये सर्वसे बड़ी शक्ति देता है को पाते हैं। जैमे कि कृष्ण ने कही था ” योग क्षेम वहाम्यहम । पहले योग होना चाहिए, फिर अ्षम होगा । योग के बगैर क्षम नहीं ही सकता औोर है। यहां पर कोई किसी की सुनता नहीं । औरतें ी पपने को पेसे में ही तोलने लग गई हैं। ये सब देखक र के मुझे लगता है कि ये मैने क्या कर क्योंकि हमने इस देश में पहले योग को खयोजा नहीं इसलिए हमारा देश क्षेम को प्राप्त नहीं। क्षेम के बारे में मैंने वताया था कि दुनिया दिया। मेरी तो कोई सुनेगा नहीं, क्योंकि माड़ी बहत चल पड़ी। लेकिन मा आप सन्त है, प कहगे तो आपकी बात ये लोग शायद सुन ले और शायद में हम लोग सोवते हैं, कि जिन देशों में सभ्यता हो गयी और बहुत पेसा हो गया तो लोग हमसे कही मुड़ पड़े। क्योंकि ये रास्ता हो इन्होंने गलत ले लिया है। इनके यहाँ divorces (तलाक) होने लग गये इन के बच्चे भाग करके आजकल गांजा वर्गरा पीते हैं और बड़ी दुर्दशा है । जो कुछ भी हमने विचारों ने किया हुआ है-लेकिन वो अधिक सुखी हैं । ये बड़ी गलतफ़हमो है। रभी में एक जगह वर्णानिगर महाराष्ट्र में वहाँ गयी थी। वहां एक ‘कोरे साहूब है. उन्होंने किया- बहुत मेहनत करके उस वणनिगर में सुभत्ता बहुत कहते हैं कि यहां मनुष्य बिलकुल शान्त नहीं । लायी हुई है । वहां पर जिस तरह से लंदन में अर बहुत दुखीो जीव हैं, आपस में भगड़े, टंटे बड़े-बड़े Departmental Stores हैं इस तरह के किसी भी तरह से व्यव स्था वहाँ पर कुटुम्ब की Stores हैं प्रोर सब तरह के प्रसावन वहाँ मिलते हैं। औरतों के लिए वहाँ पर सब शोभा के लिए है। beauty aids (सौन्द्य प्रसाधन) वगे रा सब कुछ हैं। वहा जाने पर लगता है कि जैसे आप विलायत के किसी अच्छे district (जिला) की जगह पर आ गए। कोरे साहव विचारे नि:स्वार्थी, नहीं है, जिसे आप कह सकते हैं कि ये कुटुम्ब ठीक इसलिए मैंने आपसे कल कहा था कि हमारे अन्दर लक्ष्मी का तत्व जागृत होना चाहिए। और लक्ष्मी का तत्व कुण्डलिनी से जागृत होता है । पेसा ন

आप दूनिया में कमा सकते हैं । आज पंजाब का शक्ति नहीं है कि आप अपनी ‘शान्ति को प्राप्त करें । इसमें ये शक्ति नहीं है कि इससे आपको कमा करके ऐसा सोचा था कि अब हनमें और अपना आनन्द मिले । इसमें ये शक्ति नहीं है कि আগका चित्त उस ऊंचे स्तर पर जाए। आप विलकुल नोचे गिरते-गिरते ऐसी दशा में पहेच जाएंगे कि आपको स्वयं आ्रश्वयं होगा कि हम हाल देखिए, जहा लोगों ने कितना लाखों रूपया आकाश में कोई अन्त र नहीं रह गया। उस वक्त भगवान का नाम भी लेना उस पंजाब में मुश्किल हो गया। और ग्राज उसी पंजाब का ये हाल है कि लागों को समझ नहीं श्र रहा कि क्या होने वाला है। वही हाल हरियाणा का है । इतने जोर से ये लोग अ्पने को बढावा देते चले गये। लेकिन इन्होंने इतनो ऊँची हस्ती से कहाँ आकर गिरे । इसलिए हमारे अन्दर कुण्डलिनी का जागरण जहत घावश्यक है। ये जागरण जब नाभि चक्र ये नहीं सोचा कि हमारी जड़ कहीं है। उस जड़ मे ओर तरफ फेलता है, चारों तरफ, तो मैने आपसे को पकड़ा नहीं । इसलिए उध्वस्त होकर के रह गए । यही हाल पूतंगाल का है, यही हाल इंग्लेंड का का तत्व है जो आपको ये कहा था कि यहाँ गुरू 1 हैं। हरेक देश में अ्राप जाइए, तो लग रहीं है सन्तुलन दता है। अभी आपने जो गाना सुना स्वय पार हो गए। साक्षात्कार हो गया इन्हें । घीरे-धीरे जैसे इन पर हर तरह की गरीबी, हर इसलिए इनमें बहुत हो फर्क प्रा गया है गाने में । तरह की परेशानियां, हर तरह की दुष्ट ता धीरें- धोरे छा रही हैं। अपने शहरों में भी यही हाल हो और वो गाना जो है वी अरान्दोलित करता है तरत्मा के तार को । क्योंक्ि भारत का जो संगीत है ये भी ओम से बना हुआ है। हमारे साब वहुत से विदेशी लोग रहते हैं हर समय, श्रौर हमेशा अपने Indian classical music (भारतीय शास्त्रीय संगीत) को विलकुल वेसुध होकर सूनते हैं । ऐसे राग जो कि ‘श्रो और ‘मारवाह-ऐसे राग कि जो हम लोगों ने सुने भी नहीं। जो हम सुनते भी नहीं। हम लोग तो आजकल इतने सस्ते गाने सनने लग गये हैं। मब मामले में हम लोग इतने हमारे तौर- तरोके, हमारे रहन-सहन के तरीके, बात-चीत के रहा है। इसकी वजह क्या है ? ऐसी कोन सी बात है, जिसके कारण मनुध्य खराब हो गया है ? एक ही व जह सीधी है कि उसके अन्दर लक्ष्मी तत्व जागृत नहीं है । पैसा बहुत ही दुखदायी चीज़ है । निरा किसी में आ जाए तो उससे बढ़कर दुखदायी चीज भोर कोई नहीं हो सकती। अव अपने मूल की ओर दृष्टि देनी चाहिए । उसके अन्दर अगर पंसा आ जाए, तो पसा अगर cheap (सस्ते /हल्के) हो गए हैं बहुत से लोग हैं जो कि पेसे से परमात्मा को भी खरीद सकते हैं। और इसलिए बो मंडिरों तरीके, हमारे खान-पीन के तरी के, सब चीज इतनी में जाते हैं, वहाँ बहुत बहुत पसे देकर मदिर बनवाते हैं, गुरूद्वारे बनवाते हैं और दुनिया भर हैमारा संगीत कितना ऊंचा है। इस संगीत में सारा की चीज़ करते हैं । और बहत से लोग ऐसा सोचते हैं कि हम किसी गुरू को पैसा दे दे तो उसका हुम कमाने के लिए music (संगीत) गाते हैं । न ही खरीद सकते हैं । विलकुल ओ्छी हो गयी है कि हम जानते नहीं कि ओ३म् है । लेकिन आजकल के संगीतकार भी शराब पीते हैं, हर तरह के व्यसन में धुले हुए हैं । पसा उन्होंने कभी परमात्मा को जाना और न ही आप परमात्मा को नहों खरीद सकते । आप उधर उनकी रुचि है । फिर ऐ से संगीतकार क्या सब दुनिया खरीद सकते हैं, परमात्मा को पाप दे सकते हैं ? इस संगीत को जानने के लिए भी नहीं खरीद सकते, और इसलिए इस पेसे में ये आपको चाहिए कि आप अपनी आत्मा को प्राप्त प्राप्त

कर । नहीं तो इसको गहराई में आप नहीं जान तक वो धर्म पर नहीं होगा तब तक सह के राज सकते । अव इसने foreign (विदेश) हमारे साथ में । हर जगह classical music लेकिन इनका (शास्त्रोय संगीत) का प्रोग्राम होना है औौर एक- धुर्म तान सनते हैं। उनले पूछिए कि भई तुमने क्या यह देश हमारा भारतव् घर्म पर खडा हुआ सता ? वो उस पर किसी भी तरह का वाद-विवाद जब तक घर्म पर हम राजकरण करना सीखगे नहीं करते । बो कहते हैं कि ये जो ये आत्मा का नहों, रामचन्द्रजी का जब तक हम राजकरण संगात है, इससे हमारे हाथ के vibretions लाएगे नहीं, Socrates (सुकरात) का राज- (चंतन्य लहरियां) वढ़ते हैं और हमें परम शान्ति कारम हम जब तक लाएगे नहीं तब तक ये देश मिलती है। लेकिन हमारे लोगों के सामने तो आज कभी भी आगे नहीं बढ़ सकता । लोग है कारी लोग आएगे मिटॅगे लोग थूकेगे उन पर राजकारण चलते नहीं वाला, जव तक अपना नहीं हो सकता है, क्योंकि है । के । ( शास्त्रीय संगीत ) करके इसान और कल classical music गाना मानो जैसे गाए कि कहीं लोग लट्ू न मारने आ जाए। बहुत स्ते तरह का इसको य्रगर छुता है तो महात्मा गाँधी जैसे अपने music ग नल और इस तरह का सगीत आजकल घ्म पर खड़े होओो-जिस आदमो के लिए आप हमारे यहा प्रचलित हो गया है, जिसमें कि किमी हाथ उठा करके कह सबते थे कि ये आदमी शुद्ध ये देश की भूमि और है, इसकी जमीन शऔर है। ये समझना चाहिए। इसकी आत्मा और है। घबड़ा नहीं पता गाए भी तरह की परमात्मा की बू तक न श्राए इतना है, सवच्छ गंदा music आजकल हमारे यहाँ चलने लगा है । न जाने कसे आजकल हिन्दूस्तान में लोगों ने ये सव परमात्मा को याद नहीं करता और परमात्मा के चोज मान ली। पहले कुछ गंदे राजे-महाराजे या प्रति जिसकी दष्टि नहीं, इतना ही नहीं, अपने नवाब लोग ऐसे गाने बेठकर मुनते थे । Demo- eracy (जनतन्त्रवाद ) का मतलब ये ही गयो कि सकलीभूत हो नहीं सकता । होगा, लेकिन युकेगे हर आरादमी वैसा ही गंदा महाराजा बन गया या लोग उस पर । उस पर जब इतिहास लिखेगा, तो गंदा नवाब बन गया है । Democracy (जन- कहेगा, “इस अ्रादमी ने इस देश का घात किया । तंत्रवाद) का मतलब ये ही ही गया है कि जितनी ये अपना देश है, ऐसा ऊँचा देश है । इस देश के गंदगी इन सब दूष्ट लोगों में थी, जिनके पास सत्ता लिए जिनको भी कार्य क रना है, या थोड़ा-सा पेंसा था, वही हमारे अन्दर भी आ जाए। ये सबसे बड़ी demonocacy (राक्षस- वाद) – मैं तो इस demonocracy कहती है-जिससे हरेक आदमो demon (राक्षिस होने पर लगा हुआ है। इस democracy से तुम क्या कर रहे हो? मैं राजकारण कर रहा किस आदमी में अपते पाया है कि वो उठकर है।” मैंने कहा ये कोई धघा है ? ये क्या चीज़ के कोई विशेष हो गया : काई अदर्श ऐसा इसान हई जो ठोस खड़ा होकर कहे कि कोई मुझे छू वही राजकारण करने लग गया। नहीं सकता, कोई मुझे खरीद नहीं सकता ?ै श्रीर धर्म पर खड़ा हुआ हमेशा याद करने वाला है। जो आदमी है परमात्मा को जीवन में जिसके घम नहीं, वो इस देश में कभी पहले अपने धर्म पर सड़े हो। जिसको देखिए वही राजकारण में चला माता है । मैं देहात में गयी, मैंने किसी से कहा कि भाई (राक्षसवाद) , राजकारण कर रहे हैं ! जसे कि जो उठा का आरज मैं आपके सामने जो बक् बताने वाली हैं इस देश में जितना भी राजकारग है, जब जिस पर श्रीराम विराजमान हैं। प्और इसीलिए

मैंने पापसे वताया कि श्रीराम का राज्य इस बारे में जानने का मेरे पिता भी कांग्रेस में थे बहुत संसार में आना चाहिए । ! स्तान में लाना एड़ेगा । जिसने देश के कारण, लोगों के मत के कारण, अपनी पत्नी का त्याग किया। हालांकि वो अ्रादिशक्ति थी वो जानते मगिल्ले लोग इस देश में कहां से आ गये, मेरी थे कि इनके कोई हाथ नहीं लगा स कता-तो भी, समझ में नहीं आता। इनको क्या कहना चाहिए इतनी बड़ो मिसाल उनके जीवन की हमारे सामने कि जो अपने को हिन्दुस्तानी कहलाते हैं अ्और है और कितने घामिक, संकोचपूर्ण, कितने प्नु- जिनके अन्दर जरा सा भी ध्येय नही है । कोई भी कम्पा से भरे हुए श्रीराम वो हमारे सामने प्रादर्श तस्व नहीं है। वगर किसो तत्व के संसार में प्ाप होने चाहिएं । ऐसा हमारे सामने नायक होना चाहिए जिसे हम देखकर कहें कि ऐसे हम बने । शरजकल भ्राप सिनेमा का नायक देख लीजिए, तो कि ये इतनी बड़ी democracy (जनतंत्र) वो शराब पीता है, खून खरावाা करता है । हुर ये demonocracy (राक्षसतन्त्र) बन रहो है, कि तरह के गलत काम करता है और नायक, नायक कि ये कडछ विशेष का मतलब क्या है? हिन्दुस्तान में एसा नायक ही इलाज है कि आप धर्म को प्राप्त हों। जब तक पहले नहीं होता था । ये अंग्रेजों के नायक होएगे, ग्रापके देश में धर्म नहीं आएगा, आप चाहे दुनिया या किसी० का आदमी । उनके यहाँ कोन रामचन्द्रजी हो गए । एक राजा ने अपनी सात बीबीयों की गर्दन काट डाली। बताइये ! सात रानियों की जिसने गर्दन काट आएगा। हमने अपनी, इसमें देखा है कभी भी हम दी, वहा पर एक राजा साहव वो बैठे हुए हैं। बहाँ किसी भी राजा का आप जीवन पढ़ तो इस कदर दराबी-कवाबी, दृुनिया भर की उसमें गंदगी भरी जगह । कीई मंज़ाल नहीं कि कोई बहाँ पर अराज- है । और वो वहाँ का राजा है और वहाँ सबसे पहले इसे हिन्दु- पुराने । मैंने एक-एक आदरमी देखे हैं । क्या लोग थे इनके जैसे लोग अब दिखाई नहीं देते। ये मगिल्ले कसे जल सकते हैं ? सारे देश आपकी ओर औख उठाये देख रहे हैं चौज है? इसका एक । उनके यहाँ तो था हो नहीं कार्यदे इघर से उधर कर लीजिए, ये देश आप शासन में नहीं ला सकते । यहाँ अराजकता आएगी, य हा प्रशासन देहात से जा रहे हैं, कहीं से भी जा रहे हों, सन्तों के प्रति इतनी श्रद्धा हर एक जगह है ! हरे एक कता करता ही । हुई तो भी, ये कहना चाहिए, ये होते हुए भी, वहाँ लोग ये जानते हैं कि जब तक हम सही रास्त से उसे समेटना चाहिए। उस पर बुनियाद डालकर नहों चलंगे, righteousness ( सदाचार) से नहीं के जिस दिन हम प्रपनी देश की नई नींव डालेंगे, रहेंगे, हमारा राज्य चल नहीं सकता । हालांकि वेसी बात है नहीं, क्योंकि उनके बुनियाद में हो नहीं है स्वतंश्रता, गांधी जी लड़े स्वतंत्रता के लिए । अगर बातें हमारे बुनियाद में क्या? एक से एक, शिवाजी जैसे शाह महाराजा शिवाजी जेैसे ये । उनका खों जो। “स्व” का तन्त्र ही सहजयोग। “स्व” के वो सन्तों की श्रद्धा, बो भक्ति का सागर जो ह तभी हमारा देश असल में स्वतंत्र होगा। क्योंकि ” का तन्त्र” वो जीवित होते तो कहते “स्त्र चरित्र क्या था ? कितने उज्जवल आदमी थे ! माँ के भक्त थे । उनको माँ कितनी तेजस्वो स्त्री थीं। एक एक को देखिए हमारे यहां, कि हमारा इतिहास भरा पड़ा है; राणा प्रताव । मैं अभी आ रही थो चौदह हजार वर्ष पूर्व नाड़ी ग्रन्थ में लिखा हआा है लाजपतनगर यहाँ से । मैंने कहा लाला लाजपत- कि ऐसा होगा इस बक्त में । और सारे दुनिया के राय क्या आदमी थे। मुझे इतफाक हुआ उनके देश यहाँ पर भुक कर आएगे और हमसे सीखंगे कि वारे में जानना ही स्वतन्त्रता हैं। ऐसा होना चाहिए आऔर होगा भी, क्योंकि प

धर्म क्या है योर परमात्मा क्या है। ऐसा होना चाहिए। लेकिन आप लोग सब अपने पर विश्वास जो heart (हृदय) के चक्र का दोष होता है, वो रखें, सहजयोग में गहरे उतरिये तभी ये कार्य हो आापकी मां की वजह से आता है। अगर आपकी सकता है। अब आपके left hand side (बांयी तरफ) में मां परमात्मा में विरिद्वास नही करती, आपको गलत रास्ते पर ते जाती है, या जरूरत से ज्यादा आ्रापको हृदय चकर जो है उसमें तीन उसको sides हैं । प्यार करके आपको सराय करती है तो भी मां एक तो 1eft (बये) एक रिight ( दायें) और एक बड़ी दोपी है। बीच की । right side में श्रीराम का स्थान है । श्रीराम जो पितानुल्य हैं, जोकि benevolent king (उदार राजा) हैं। जो Socrates (मुक रात) ने (परयोग) में ऐसा देखा कि ए इसान आकर बताया ऐसे रा जा थे । के उसे बार-बार बताता था कि मेरी मा का के और मुछ सूभता नहीं था। हित कसे होगा, लोगों मुभे स्वरप्न आता है कि वो एक witch का ठीक कैसे होगा, उनका भला केसे होगा। (पिशाचिती ) हे, एक राक्ष सनी है। बार-बार मुझे ्न्होंने जो कूछ किया है, इस संर में सिर्फ एक ऐसा स्वप्न आता है। तो उन्होंने अब लडके विचार से कि मनुष्य का भला केसे होगा। नगे से पूछा कि भाई तुम्हारी मां का तुम्हारे साथ पांव वन में गये कि वहाँ की भूमि vibrate (चेतन्यमय) हो जाए। सारा नाटक खेला ऐसी हैं कि मुझको इतना pamper (अत्याधिक दुःखदायी नाटक था। शरीर तो उनका था ही जो लाड़) करती हैं, इस क़दर उसने मुझे spoil सहत करता था, ले कन ये सारा नाटक उन्होंने खेला (विंगाड़) करके रखा सिर्फ ये दिखाने को कि एक पादर्श राजा कै सा होना नहीं। उन्होंने कहा ठीक हे, इसका मतलब है चाहिए। एक आदर्श पिता कसे होने चाहिए। एक तुम्हारी मां राक्षसनी है इसका स्वप्न तुम्हारे अचे- आदर्श पुत्र कंसे होना चाहिए। ये आपका right तन से, unconscious से आ रहा है और तुमको heart (दायां हृदय) है । अगर को ई भी इंसान वता रहा है कि सम्भल के रहो। एक अरादमी का right heart (दायों हृदय) पकडइता है, माने बेताता था कि मुझे अ्पने वेटे के बारे में ऐसा ये कि किसी भी इंसान में कोई पिता का दोष हो समझ लीजिए उसके पिता की मृत्यु जल्दी हो गयी। और उसके सामने मैं हमेगा नतमस्तक हैं । Jung उसने पिता का सुख न देखा हो, या अगर उसका यु ग) ने पूछी कि तुम्हारी अपने लड़के से कंसा अपने पिता से सम्बन्ध ठीक न हो, या पिता अगर गलत रास्ते पर चलता हो या बो पिता से दुश्मनी मैं उस लड़के की परवाह नहीं करता है । वहू लिए हुए है कोई सा भी पिता का जो तत्व गर खराब हो जाए तो ऐसे आदमी का right श्रर मुझे ऐसा स्वप्न आता है। अचेतन उसे बता heart (दांया हृदय) पकड़ता है और ऐसे आदमी रहा था कि तुम्हारा लड़का जो है वो सिंहासन पर को asthma (दमा) होने का अंदेशा हैं। वैठने लायक है, और तुम उसके नीचे सखवड़े हुए हो, देखिए कहाँ से बात कहाँ ला दी । इस वक्त प्रापको उसके नतमस्तक तुम्हें रहना चाहिए, बजाय इसके श्री राम का ध्यान करना चाहिए, asthma हो। इससे आपका asthma ठीक हो से, इस तरह से व्यवहार करो जिससे वो नगण्य हो सकता है । Jung यंग) ने अपने एक experiment जो Socrates (सुकगत) जितको सि्राय लोगों के हित इमान पकर पच। उतनके चररों से क्यवहार कसा हैं । उन्होंने कहा कि भई मेरी मां तो है कि मैं किसी काम का । हमेशा स्वप्न आता है कि वो सिंहासन पर बैठा है रिश्ता है ? कहने लगे मैंने दूसरी शादी कर ली । है । तो घर में नौकर जेमा हो है, किसी काम का नहीं ME कि उससे तुम छल करो और उसे तुम किसी तरह जब आपको जाए ।

यही बात है कि मां और बाप का बहुत बड़ा करते हुम पगला जाते हैं। खास कर टी. बी. की देना बच्चों को होता है। एक तो प्रपने देश में बोमारी जो ये मां से होती है । किसी को अगर नां बाप का इस कदर अपने बच्चों के प्रति स्वार्थ टी. बी. की बीमारी है तो जिसकी मां बचपन में होता है, इतना ज्यादा स्वार्थ होता है कि आश्चर्य मर गयी हो या मां का प्यार जिसे न मिला हो, है ! इसी देश में पन्ना घायो जैसी औरते हो गयीं जिस प्रदमी ने मां को जाना नहीं उसे टो. बी. की इसो देश में ऐसे लोग हो गये जिन्होंने अपने बच्चे बीमारी हो जाती हैं देश के लिए कुर्बान कर दिए। हम खुद अपने बाप इस महान देश में जहाँ मां की लोग पूजा करते हैं, की बात कह सकते हैं कि जो हम लोगों को कुर्बान वहाँ कितने लोगों को टी. बी. हो जाती है । इसका करने में एक क्षण भी न ठहर, और उसमें वो मतलब ये है कि माँ जो है बच्चों को खराब कर बड़ा अपने को गर्व समझते थे । और ऐसे हमने रही है, मां उनको दोष लगा रही है, मां उनसे अनेक इनके मित्रों को देखा और अनेक लोगों को बुरी तरह से पेश अ रही है। इसका मतलब ये देखा उस उम्र के जो अ्पने बच्चों से कहते कि नहीं कि आप बचत्रों को हर समय डांटते रहें, फट- कुर्बान हो जाओ प्रपने देश के लिए । । आप सोचिए इस देश में, लि का रते रहें । लेकिन अपनी प्रतिष्ठा के साथ, अपने बचा के सामने ऐसा एक उदाहरण रखना चाहिए कि बच्चे देखें कि ये देखिए ये हमारी मां है, उनका बर्ताव केसा है श्र हमारा ब्ताव कसे । ग्राप ही उनके सामने अगर बहुत cheap वा गया एक तरफ भगतसिंह का जमाना और आज ये आया है कि मेरा बेटा, मरी बेटी, मे रा, मेरा, मेरा । यहाँ पर भी जो बता रहे थे, बात सही है कि आकर के मेरा बाप ऐसा, मेरी मां है। (अभद्र) ते रीके से रहें, रात दिन अपने श्रू गार में लगो मे रा ये ऐसा। दूसरा ऐसा, रहें या पति से हुर समय लड़ती रहें, तो वो extreme (पराका्ठी) हे इंगलेड में जो मैंने आप से कल बताया कि अपने बच्वों को ही मार डालते है। काम सफ़ा । बचा भी आपको क्या इज्जत करेगा ? जब तक बो बात नहीं प्राएगी, तब तक वच्चे में कैसे आएगी ? वही बात पिता की है । अगर पिता स्त्री में ये दो extremes (पराकाष्ठामओं) के बीच में स्त्रयं शराब पोता है आवारा है, घुमता है, घर में मनुष्य को रहना चाहिए। अपने बच्वों के प्रति भी नहीं बेठता है, बच्चों से मिलता जुलता नहीं हैं, आपका बड़ा भारी परम करतव्य है कि उनको बीवो को बातें सुनाता है, ऐसों के बच्चे केमे खराब न करें। उनको ये नहीं लगना चाहिए कि हेंगे? व्या बड़े अध्छे हो सकते हैं ? हमारे मां वाष हमारे आदर्शों से छोटे हैं । लड़के हैं। सिगरेट पीते हैं वचपन से । उनको बुरी अदित लगती हैं। इसका कारण उनके मां बाप हैं। [श्रीर कोई नहीं। अगर लड़के बिगडते हैं तो मां वाप कारण हैं। मा बाप अगर उनके साथ रहें, उनके साथ घुमें फिर, उनसे दोस्तो कर, उनसे इज्जत से पेश आएं तो बच्चे नहीं बिगड़ सकते । वो जगह जहाँ “यान्हनेवे भागने लग्न संस्कार उम्र में जो संस्कार हमारे ऊपर लगते हैं वो ऐसे हो होते हैं जसे कि जिस घड़े के कच्चे रहते वक्त जो उस पर दाग पड जाए, उसी प्रकार वो पक्के हो जाते हैं। उस वक्त इतना सम्भालना जरूरी है, इतना उनको प्रेम देना जरूरी वृद्धि है बो कायदे से हो अब ये दोनों नक्र जो हमारे अन्दर हैं । और मां जाह । पर ऐसा होता नही है। ज्यादातर ऐसा के दोष से अनेक रोग आ सकते हैं। मां के दोष से होता नहीं है। हम या तो उनको ज्यादा ही पानी ऐसे ऐसे रोग आते हैं कि जिसका निवारण करते- देते हैं औ्रोर या नहीं देते । बी चों-बीच खड़े रहकर छोटे-छोटे उसके है कि जिससे उनकी जो

कहते हैं और माताजी दूसरो बात कहती हैं। के देखना चाहिए कि हमारे बच्चे किस रास्ते पर चल रहे हैं । सषत्कार-प्राप्त हम। री लड़की की लड़ की है। वो फिर ये कहना समाज ऐसा बना हुआ है, (ealised soul है। वो एक दिन कहती है कि “नानी माँ क्या करें ? लड़़के खराब हो ही जाते हैं । के से ? एक बात बताइये ये जो देर होता है पूर्व जन्म में आपका चित्त ही नहीं है बच्चे की ओर । कम से कम प तो कोई शिकायत नहीं कर सकते । इंगलेंड, किउसके मां बाप कहते हैं कि तुम इंसान को खाओ अमेरिका में तो लड़ कों को dole (वेराजगारी ओर उनको भगवान कहता है कि मत खा, तो वो भत्ता) मिल जाता है १८ साल में, ती वी बकार कुशा करे ? देखिग ! उसके गामने ये प्रश्न खुडा हो जाते हैं। पर आप लोग, आफ लोग तो जिन्दगों गया कि इसने पूर्व जन्म में कूछ बुरे कर्म करे होंगे, भट उन बच्चों को पालते हैं । “फिर भी क ह थोड़ा सा शराब ही तो पीता है ना। सिंगरेट कहते है इसान को खा लो। यहीं प्रश्न हमारे दिमाग पीता है तो आजकस सभी पौते हैं, उसकी गर्दी में शता व हिएा आखिर ऐसा कौन सा हमने पूर्वजन्म आदते है थोड़ी बहुत, ओरतों के पीछे भागता है में कम किया है चाि जिमके कारग हम अपने बच्चों कोई ह्जा नहीं !”-इस तरह से आप अपने बच्चा को ठीक रास्ते पर नहीं लगा सकते । ये दोनों के प्रति अपना रुभान रखें, ये तो इसको मैं कहती है कि अप उनके दृष्मत हो गये। कयोकि जो औ्रीप का कर्तव्य है उससे अगर आप च्युत हो गए तो आपने उनको तो ऐसे ही गड़ढे में घकेल दिया। यहां तक मैंने सुना है, कुछ लोग जो अपने की बहुत कुछ खराब कोम किए होंगे । मैंने कहा कयों ? क्यों आ कमों पदा हुआ नहीं तो ये ऐसे मां बाप कि जो से चक् ठीक हो जाने से, अपकी मां ्रोर बाप, ये दोतों स्थितियां जो है ठीक हो जाती हैं। आप अगर बाप है तो मप वाप की दुष्टि से ठीक हो जाते हैं। की से ठोक हो अगर आप पुत्र है तो आप पुत्र की दृष्टि से ठीक हो जाते हैं। प्रगर अराप मो है, तो श्राग मां की दुष्टि हैं जाते हैं । अगर आप मां की बेटी से ठीक हो साथ बैठकर शराब पीता हैं।” वधा कहने आपके ! इस प्रकार की जिनकी मनोबृत्ति है ऐ से लोग जाने क्यों मां बाप हो जाते है ? और होने पर भी उंन बच्चों को रात दिन खराव किये जाते नहीं तो इतना बचचों के साथ कड़ा रुख होता है कि बच्चे घर से भाग खड़े हैं। सोचते हैं हमारे मां बाप का हमारे प्रति कोई प्रेम ही नहीं। उनको कोई दुलार ही नहीं है । हैं। या पुत्र है तो उस तरह से ठीक हो ाते हैं । ये दोनों चक्र ठीक हो जाने से ही अपने देश के जो नव- युवक हैं ये संभले गे । हैं । आप जानते हैं कि हजारों लोग परदेश से हमारे शिष्य हैं । इनके मां-बाप तो पागल ही लोग है रधिक न र । वो लोग शराब पीना, रात भर बाहर रहना। वहाँ की औरतें चार-चार बार इसलिए मैं कहती हैं कि आप सहजयोग में शादियाँ करती हैं। आदमी छः छ: वार शादियाँ अपने बच्चों को लाएं । पार होने के बाद फिर हम करते हैं । और सब अनाथालय में बृढ़ापा काटते देख लेंगे। उसके बाद बात और हो जाती है। पर हैं। ऐसे बिचारों ने कोन से पूर्वकर्म किर हैं कि पहले प्राप पार होइये । अगर मा बाप को ही अकन उनको ऐसे माँ-बाप निले । पर ये लोग जब सहज- गए तब से सम्भल गए हैं कि अब फ़ायदा ? वो तो गलत रास्ते प्पने जो हैं प्राप हमारी शादियाँ हो गयी सहजयोगियों में । अब वच्वों को सिखाएंगे यरोर हम उनको सही रास्ते हम।रे यहाँ बड़े-बड़े ऋषि मुनि पदा हो रहे हैं । ओर सिलाएंगे तो बो कहेंगे, हमारे बाप तो एक बात इनके लिए हमें केसे बर्ताव रखना चाहिए । उन्होंने ख राब हो तो बच्चों को पार करा के भी कया योग में अ ০

एक नयी घारा बता ली है कि इनके सामने किस तरह से रहना चाहिए। जो जो भी कार्य अब जागृत हो जाता है तो शपके अन्दर से भय, सहजयोग में हो रहा है, उसमें सबसे बड़ी चीज़ जो ध्यान में रखने की है कि हमारी आत्मा क्या बोलती की भय-अशंका नहीं रह जाती। है। और आत्मा शब्दों से बोलती नहीं है। ये चतन्य लहरियों से बोलती है और उसी से जाना जाता है कि हम कहां चल रहे हैं। हो जाता है, जब जगदम्बा का चक्र आपके अन्दर आशंका सब भाग जाती है । कोई किसी प्रकार जिस वक्त किसी स्त्री में ये चक्र पकड़ जाता है जब भय हो जाता है उसे या उसका विशेष करके जब left heart (वांया हृदय) उसका पकड़ता है और उसे ये लगता है कि उमका सातृत्व अब बीच का जो चक्र है, ये साक्षात् देवी जग- दम्बा का है। जो कि सारी सृष्टि की मां है । ये जो है, उस पर हा अधात रहा है, उसका पत्ति जो है आरोर औरतों के पीछे भाग रहा है, उसके मातृत्व भक्त, इस गोल जगह बना हआ जगह जहाँ है, जहां को ही ग्रब कि पी तह से लोछन आने वाली है तब पर कि भक्त लोग सब भगवान को खोजते हैं, उसको जो बीमारी होतो है इसे हम लोग breast उनका रक्षण करती है। उनके लिए उन्होंने राक्षसों cancer कहते हैं। ये इन दो चक्रों की वजह से का वध किया, उनका रक्त पिया, उनके भूतों के औरतों में होतो है । विवोष करके left चक्र को भूत खालिए, उन्होंने संहार कर करके इन लोगों वजह से, जब कि माँ का मातृत्व जो है वा ्रादमी सोचता है कि हमें क्या करना है, हमारी बीबी है जगदम्बा जो है ये भक्तों का रक्षण करती है। जो को ठीक किया । तो क्या, वच्चे हैं तो कया । हैम जेमे चाहेंगे, हमें स्वतन्त्रता है, हम जैसे चाहे रहें । ऐसे पतियों की से लोग ऐसा कहते हैं. भई हिन्दुप्रों के बहुत देवी देवता जो हैं ये बड़े क र हैं, श्रोर nonvege- tarian (मांस भक्षी) हैं । तो मैं कहती हूँ अगर ये परेशानी की बजह से अस्तों की breast cancer हो जाता हैं । इस्ले ड, अमेरिका में भी लोग कहते हैं राक्षमों को देवी न खाएं तो क्या आप लोग खाइयेगा ? इसमें क्या है? ये सब कुछ ठीक नहीं? एक ही इन राक्षसों को देवी न मारे तो व्या आप लोग पुतनी क्यों होनी चाहिए ? और औरते भी मारियेगा ? कंस को अगर कृष्ण नही मारते तो कहती हैं एक ही १ति क्यों होना क्या आप लोग मारते ? रावण को राम ने मारते नाहिए? पर वहां फिर औरतों को breast तो कौन मारता ? उस पर बहुतों का ये हना है, cancer व्यों हो जाता है ? ्र आदमियों को कि ये तो देव यौनी के लोग हैं अऔर ये सबको मारते परेशानियाँ क्यों हो जाती हैं ? अगर ये चीज़ कुछ रहते हैं। इस तरह का विचार करने से आप जो अच्छी होती, नैमगिक चौज होती, तो मनुष्य दुष्ट और राक्षस हैं उन सबको खोपड़ी पर बिठा उससे सुखो होता । पर आपने कभी देखा है ल । उनका नाश न करिए, उनको आप কिसी तरह जिस आदमी ने अपनी पत्नी को छोडा है और से नष्ट न करिए, उनके साथ कोई दूब्यंवहा रन दूसरे आदमो के साथ स्वेच्छावार कर रहा है वो करिए, उनको विठा करके उनकी आरती उतारिए । सुखी है ? जगदम्बा ने अनेक वार जन्म लिए। इनके ऐसे तो नौजन्म बहुत विशेष माने जाते हैं, लेकिन उनके उमका वडा मान करनेा चाहिए। और ये समझ हजार जन्म कम से कम हुए हैं। अोर हजार बार तेना चाहिए कि अपनी पत्नी जो है ये धर की गृह- संसार में माकर उन्होंने, जो भक्त लोग थे, उनको लक्ष्मी है। इसका आपमान करने से, इसको दूख रक्षा की। जब ये चक प्रपके प्रन्दर जागृत तो इस वजह से हमारी जो विवाह संस्था है देने से, इस को तक बीक देने से हुम रपती घर की

का स्थान बहत ऊँची चीजज़ है । श्री गणेश इतने ऊंते स्थान पर इसलिए हैं क्योंकि वो अपनी माँ को ही मानते हैं और किसी को मानते ही नही । क्यों कि वो जानते हैं कि मां ही शक्ति हैं । गुरू दुनिया भर के जो भी सही गुरू हो गए, वो भी मां को ऐसी दुखी पल्नियों को, अगर कोई तकलीफ़ हो मानते हैं। वेद हैं वे भी मां को मानते हैं । दुनिया जाए, तो उसके लिए हमें समझ लेना चाहिए कि में कोई भी ऐेसा शास्त्र नहीं जो आदि मां को न गृहलक्ष्मी को सता रहे हैं । अर्थात् जैसे मैने कल आ्पसे बताया कि गहलक्ष्मी को भी इस यो ग्य होना चाहिए कि वो गृहलक्ष्मी कहलाये | ले कित ये सब होते हुए, ऐसी पत्नियों और इतके घर में हो कोई तकलीफ़ ऐसी बन रही है जिसकी वजह से ये स्त्री बिचारी धीरे-घीरे जा रही है । घलती मानता हो। और हम भी मां को मानते हैं। लेकिन हम ये नहीं जानते कि मां चौज़ कितनी ऊंत्री है। कभी-कभी ये भी होता है कि मनुष्य के अन्दर अब जो जगदम्बा का चक्र है, उसकी व जह से आशंका और भय इस बजह से आता है कि- उसको जब पकड़ जाता है, तब मनुष्य जो है वो भोतू उसके मां बाप से वो प्यार, वो संरक्षण हो सकता हो जाता है, इरपोक हो जाता है, उसको भय सा है -उमे किसी और भी बजह से भय आ जाए, रहता है, वो हर समय इरता है। कैसे भाष दें क्या उसकी कोई सौ भी वजह हो जा ए, ३समें जाने की हम लोग psychologist नहीं कह सकता । और जब उसका ये च क्र ठीक ( ये नहीं पूछते बैठते कि तृम्हारी मां कैसो से aro- है, तुम्हारी क्या कैसा । ज्यादा से ज्यादा gance (उद्दण्डता) नहीं करता लेकिन उसकी भावा ये पूछेगे कि तुम्हारे मां बाप जिन्दा हैं या नहीं। में एक तरह की ममता, उस मां की, जो कति उसके लेकिन जंसे ही वो जागत हो जाता है, जैसे ही ये अन्दर जागृत हो गयी है, आ जाती है। लेकिन वो चक् जागृत हो जाते हैं, मनुष्य एकदम शेर दिल हो जाता है । शेर दिल हो जाता है। क्योंकि देवी जी आप देख लीजिए कि जिन्होंने सूली पर चढ़के ये देर पर ही विराजती हैं । वहत से लोग दुर्गांजी को कहा कि प्रभु ये लोग जानते नहीं, क्या करें इन मानते हैं । मैं मानती हैं कि उनके प्रति बहुतों की को माफ कर दें । वो ही हाथ में हंटर लेकर के धद्धा है और उनके बारे में जानकारी बहुत उन्होंने सबको मारा था जो वहां पर चीजें बेच रहे कम है । बहुत कम जानकारी है कि वो कितनी थे । और जिस तरह मारी मगदागलनी ( नामक) प्रभावशाली हैं और एक बार मगर उनको प्रसन्न कर लीजिए तो दुनिया में किसी से इरने की बात बोलें, किसमे क्या कहें, मूझे तो डर लगता है । मैं जहरत नहीं । मनोवेज्ञानिक) जैसे भई तुम्हारे वाप कैसे हैं हो जाता है तब उसके अन्दर घ्य आ जाता है। वो उद्दड नहीं होता, वो किसी तरह ं, किसी से डरता नहीं। ईस मसीह का उदाहरण एक वेश्या थी-बेश्या और सन्तों का क्या सम्बन्ध, कुछ हो ही नहीं सकता-जब लोग उसको पत्थर उठाकर मारने लगे तो उनके सामने जाकर के छाती खोल कर खड़े हो गए और कहा कि तुममें से नहीं । इसके बाद जो चक्र इससे ऊपर है, जिसे कि जिसने कोई पाप नही किया हो, वो मुझे पत्थर विशुद्धि चक्र कहते हैं, ये बहुत महर्वपूर्ण चक्र है । मारे । ये हिम्मत ! ये अपने पर विश्वास । ये देवी ये चक्र श्री कृष्ण का है और अब होली प्रा रही है, की कृपा से, माँ की कृपा से होता है ! इसलिए कल ही श्री कृष्ण के चक्र पर जितना कहें सो हमारे यहाँ शक्ति को बहुत बड़ा मानते हैं । लेकिन कम । इस चक्र में सोलह कलियाँ हैं. क्योंकि सोलह हम लोग खुद ही अपने की शक्तिहीन कर लेते हैं । उनकी कला हैं-श्री कृषप्णा की। ग्रौर उतकी जो सोलह कितने लोग संसार में हैं जो ये समझते हैं कि मां हजार वीवियाँ थीं वो उनकी सारी शक्तियाँ थीं,

जिनको कि उन्होंने इस संसार में जन्म देकर के थे उनको कुछ मालूमात नहीं था। लेकिन जब उस राजा के यहाँ फंसाया और उसके बाद उलसे उनको realisation (साक्षात्कार) हुआरा तो मुझे विवाह कर लिया। कृष्ण की लीला समझने के कहते लगे कि मां मैंने एक अरजीव चीज़ देखी लिए भी सहजयोग करना पड़ता है । उसके बगेर realisation आप कृषण को नहीं समझ सकते । उनके होलो का लगे मेंने ये देखा कि वहुत से हम लोग बच्चे खेल अर्थ भी आप नहीं समझ सकते, होली क्या थी ? रहे हैं अौर एक बड़ा प्रदील लड़का है जिसका रंग होली में यही था कि जो पानी जमुना जो में बहुता था उसमें श्री राधा के पेर पड़ने से वो चेतत्यमय हम लोगों का पिरामिड (pyramid) बना कर हो जाता था, उस पानी को गगरी में ले कर के उस हमारे उपर चढ़ गया। और ऊपर में एक मिट्टी का में लाल रंग घोल करके और जब वो किसी के पीठ pot (धड़ा) रखा पर छोड़ते थे तो बो असल में उनकी कुण्डलिनी उसने अपने ही जागृत करते थे । उन्होंने बचपन में जो उनकी लीलाएं की सबमें सहजयोग किया। उस गया। [शऔर वहते ही हमारे अन्दर एकदम बक्त कोई ऐसे हॉल (hall ) परमात्मा को खोजने वाले लोग नहीं थे । कोई इंस बडा आश्चर्य हप्रा वि इसने कसे जाना । उसने कभी तरह की व्यवस्था नहीं थी। ऐसे यंत्र नहीं थे । जाना नहीं था कि गोपाल काला क्या होता है और ये तो सब अब देन हो गयी है ( विज्ञान के बाद । मैंने पूछा क्या देखा ? कहने थोड़ा सांवला है, लेकिन वडा प्रदीप्त है, और बो उसको था । हुआ हाथ की एक लकड़ी से तोड़ा । और वो हम। रे सब के ऊपर घर-घर-धर, देखए, बहने लग कुछ ट नहीं बने हुए थे । ऐसे चतन्य ्राने लगा । उसने जो बात बतायी तो मुझे अपने Science ये जाकर के ऊ र क्यों तोड़ते थे । ये ही उनकी इस्ते माल लोला थी, जिससे वो सबके सहस्त्रार पर चढ़के श्र वक्त उन्होंने जो बहा से वो पानी तोड़ते थे जिससे सबके ऊपर घर- ) की, कि जिसको हम कर सकते हैं । लोलाएं करी वो सब लीला सिर्फ सहजयोग की थीं। घर पानी नौचे आ जाए, जिससे लोग जागृत जैसे कि गोपियाँ थीं वो जब पानी भरने जाती थीं, हो जाएं । वो अ्रपने सर पर गगरी रखके जब लोटती थी तो पीछे से उनको कंकड़ मारते थे । उससे वी जो पानी था, जो चैतन्यमय उनके पीठ के रोह की की थीं। और उन्होंने जो कृषि की है इसलिए उनको हड्डी पर दौड़े, जिससे इनमें जागति आ जाए। रास, रास माने रा माने शक्ति प्रौर ‘स’ माने साहित्य | जैसे सहज है वैसे ही । हाथ में सबके हाथ पकड़ करके और प्रपनी शक्ति सबमें बो दौड़ाते थे प्रौर उसके फल का देना मेरे लिए साध्य है, मुझे देना इसी को ‘रास’ कहते थे । ये ‘रासलीला’ जो होती ही होगा । ऐसे कुषण के बारे में क्या कहें प्रीर थी, उसी से वो शक्ति दौड़ा करके और लोगों को कितनी बातें बताएं । उस उनकी सारी लोलाएं जितनी थीं सब सहजयोग कुरा कहा जाता है । उन्होंने जो कृषि की है आज बढ़क र के प्राप लोगों के रूप में मेरे सामने आज वो तैयार चोज आयी हुई है जिससे कि वही जागृत करते थे । गीता, जिसके बारे में लोग हजारों बातें कहते हैं, समझने के लिए भी आपको सहजयोग में आना उसके बगेैर आप गीता भी नहीं समझ भी तो, उन दिनों में मैं तो गयी हुई थो १६७३ में, सकते । सिर्फ गीता पढ पढ़ के कुछ गीता समझ उन दिनों उन्होंने कोई कृष्ण के बारे में सुना नहीं में नहीं पराएगी। गीता जो जिसने मुनायी है, वो कोन थे । पहले उतके वारे में जान लेना चाहिए मैं जब अमेरिका में पहली बार गयी वहां पर एक ईंजीनियर Lord साहब मिले । उन्होंने कभी चाहिए । था प्ोर वो प्रोहियो में बोवों-ब्रोच प्रमेरिका के रहते iho/

बड़े होशियार हैं । होशियार ही नहीं थे, बो स बोबतायी वहत मने तरीके से, कम की। कि वेटे तुम वक्त के राजदूत थे, अ्औौर diplomacy का विल्कुल कर्म कारते रहो और सब कम परमात्मा के चरण में जो अर्थ है, eSsence है, उसको जानते थे । अत्र डाल दो । हो नहीं सकता, absurd (असंभव) ! बहुत diplomacy का क्या essence है? कि कोई से लोग आकर कहते हैं, माताजी हम जो भी कम चररों में डाल देते से आदमी मह के बल गिरे। कृष्ण का खेल जो है हैं मैंने कहा ‘पच्छा’, ये कंसे ? फिर याप कर्म उसको समझने के लिए पहले आपकेी सहजयोग में ही नहीं करते। अगर यए परमात्म। के चरण में उतरना चाहिए अच्छा, मैं समझाने की कोशिश डालते हैं तो प्राप ऐसा क्यों कहते हैं कि मैं जो कमी करता है ? इस तरह की हमारे अन्दर अपने बारे में एक myth (भरान्ति) हम लोग बना ले ते हैं कि हम जे से कि उन्होंने शुरू शुरू में ही वता देवा। तो भाई जो भी कार ते हैं परमात्मा के चरणों में ऐसी absurd (वाहियात) बात करो कि जिसके करने करते हैं वी हम परमात्मा के करती है । लेकिन आप समने को कोिग कर । क्योंकि दुकानदार तो थे नहीं कि रहते बुरी चौ जञ डाल देते हैं। लेकिन कुछ ऐसे सयाने लोग है जो दिखाओ, किर धीरे धीरे प्रच्छी तोज दिख। प्री । तो कर कहते हैं कि मां हम तो सोचते थे कि मैं उन्होंने पहले ही बढ़िया चीज दिवा दी। उन्होंने पुरमार्मा के चरों में डालता है, पर होता नहीं कहा कि प्रापको ज्ञान होना । ज्ञात माने है। कोई ने कोई गडबड बात । सो कृषण ने बया क्या ? बुद्धि से नहीं, दुद्धि से नही। ज्ञान माने कहा। उन्होंने जो बताया एक absurd बात बता आपके central nervous system में अापकी दो, कि आप ऐसा करते रहिए। माने जसे आप जानना चाहिए, आपको प्रचीती होती चचाहिए, कि समझ लीजिए, एक लड़का है वो बैलगाड़ी हक रहा परम क्या है जिससे अाप स्थितप्रज्ञ होते है। साफ है और घोडा पोछे रखा है । तो बाप आया बाहर । साफ उन्होंने दूसरे हो chapter (खण्ड) में कह दिया, उसने कहा, बेटा, क्या कर रहे हो, कहने लगा। मैं ठपाख्या दे दो कि सहजयोगी कैसा होना चाहिए । गाडी होक रहा हूँ । उन्होंने कहा, भई घोड़ा सामने पर उसके बाद उन्होंने देखा कि प्रजन तो जो हैं करो तब गाड़ी होकेगे । नहीं, मैं तो गाड़ी हाकूगा । वो अपनी लगा रहे थे । उन्होंते कहा कि इधर तो उन्होंने कहा, अचंछा, हाकते रहो, घोड़े पर चित्त तुम कह रहे ही कि तुम साक्षी बतो, इधर तुम कह रखना । जब तक तुमें घोड़े पर चित्त रखोगे, तो रहे हो कि तुम जानी बनो और उर तूम कह रहे किर गाड़ी चलेगी और वो गाड़ी चली नहीं। लेकिन मां की ये बात नहीं। मां ने कहा ‘बेटे बो घोड़ा है। अब तो जान गए क्ि ये सीवे नहीं परने वाले। सामने रखो और बधो, नहीं तो घोड़ी नहीं चलने वाली । शऔर न ही घोड़ी चलेगो और न ही तुम्हारी अर्जन जो है उस बक्त का भक्त है समझ गाडी चलने वाली है। तुम जब तक ये नहीं करोगे लीजिए। उसको ो. उसका वो प्रतिनिधिव तब तक हो नहीं सकता। पहले आत्मा को प्राप्त करो । तो ये कसे हो सकता हो कि तुम युद्ध में जाओो |Tद करता है, represent करता है । उनमे अर्जन ने फिर गागे की बात करो कि अगर में । जब आप पार ही जाते हैं तो आप क्या कहते हैं, ‘आ रहा है, जा रहा है, हो आप ये नहीं कहते कि मैं श्रा रहा है, मेरे कि ये कसे हो सकता है ? पूछा साक्षी हो जाऊँ, फिर तो मैं लड़ गा ही न हीं । वसे भी मैं रहा है।” अन्दर से आ रहा है, मैं ये हैं, कुछ नहीं करूगा, मैं विल्कुल बेकार हो जाऊंगा । मैं कर रहा हूँ । ऐसे ये सब बाते क्या हैं ? सो कृषण ने कह। अब इनको तो कोई नहीं कहता। अभी आपने सहजयोगियों सीवे तरीके से समझाने से नहीं होगा। उल्टे तरीके को देखा होगा माँ इनका नहीं बन रहा, इसका से समझाओ । तो पहली चीज उम्होंने जो बतायी, नहीं जमता है, ये जमने नहीं वाला”। Third छा) ব

person (तृतीय पुरुष) में आ्दमी बात करने person aata दूसरा है। क्योंकि आप उस परमात्मा के अंग औ्र प्रत्यंग बन जाते हैं । यही विराट का स्वरूप है । ले किन स्वरूप को पाना चाहिए और Jung लगता है-प्रकर्म ! हम अमेरिका गए थे तो एक स्त्री हमारे साथ गयी थी बो कहने लगी, मां मेरे (श्री लड़के को जरूर पार करा देना । मैंने कहा भाई युक्म) ने साफ-साफ वकहा है कि अरब मनुष्य कभी तुम ही certificate दे दो। मैंने तो हाथ तोड़ डाले, उठेगा तो वो collectively conscious (सामु- अब] तुम ही पार करा दो। कहने लगी मां लेकिन अगर पार नहीं होता तो कसे certificate दें । ये नहीं कि हम आप भाई भाई। और मैंने कहा, यही तो बात है जब होता ही नहीं है अगर मोका मिला तो कल सरफुटब्यल । अब आप वो पार, तो तूम उसको false (झुडा) तो certi- हमारे शरीर के अंग प्रत्यग बन गये सामूहिक ficate (सर्टीफिकेट) दे नहीं सकतीं तो उसको पार चेतना में अरप जागुत हो गये। तभी कृष्ण का काम कराओो । पहली बात पार कराओ। ये तो नहीं होगा । यहीं विशुद्धी चक्र है, जो यहाँ जा करके कह सकते कि हुआ नहीं तो पार कैसे ? वो तो होता ह ही नहीं । तो जो तृतीय पुरुष में हम लोग बोलना शुरू करते हैं, अकर्म में मनुष्य हो जाता है, वो ये नहीं सोचता मैं कर रहा है । कोई विवार ही नहीं आता कि भक्ति हुई, तो कृष्ण ने उसमें भी चालाकी करी है । आप अकर्म में कर रहे हैं, कोई काम कर रहे हैं। । कोई लोग कहते हैं, माँ आपने हमें ठोक कर दिया मूझे तो याद भी नहीं रहता । मैं पूछती है, भेया चलने वाला दिमाग) जिसे कहते हैं, बस, लग गये, बया वीमारी थी, बताओ भूल गये ? मेरे को angiana (अन्जायना) था, की । कृष्ण ने कहा कि ‘पत्र म् पुष्पम् फलं तोयम्’ मैं (होस्टन) Houston अच्छा मैया, क्या हो गया, सो अब क्या हम स्वीकारेंगे । लेकिन देने के time (समय) में एक बात है । हो गया न ठीक ! हा श्राप भूल गये क्या ? शब्द में उन्होंने नचाया है जो लोगों की समझ में मैंने कहा, हाँ मैं तो भूल गरयी। मुझे तो याद नहीं नहीं प्राता । कहा है कि लेकिन तुमको ‘अ्नस्य’ भक्ति कि मैंने तुमको ठीक कर दिया, क्योंंकि कृष्ण करनी होगी। ‘अनन्य जव दूसरा नहीं रह जाता. के हिसाब से आप अगर व्िराट में आ्प समा गये, जब आप हमारे अग प्रत्यंग हो जाते हैं। जब परा- विराट के आप अंग प्रत्यंग हो गए हैं, अरकबर हो भक्ति में आप उतरते है तव हम लेंगे, उससे पहले गये हैं, जिसे हम अल्लाह-हो-अकबर कहते हैं, वो अगर गाप अल्लाह हो गये हैं। तो प्रापकी ये उगली और बड़े-बड़े Lecture (भापण) लोग देते हैं मैंने जो है, उसी का ए5 हिस्सा है । अब इस उगली को देखा हआ है, घन्टों Lecture (भाषण) देते हैं । सोचे अगर आपने थोड़ा सा कुछ rub (मसल) करके या तीन इसमें आप समझ सकते हैं. उनका कम योग, इसको कुछ किसी तरह से संजो करके ठीक किया उनका ज्ञान वोग तो क्या आ्रापने अपने ऊपर उपकार किया है कि अगर परमात्मा को पाना है तो पहले उसके अंग दूसरों के ऊपर उपकार किया। दूसरा है कौन ? दूस रा कौन है ? ये भावना ही टूट जाती है कि कोई तक अ्रप अनन्य नहीं हैं , ग्रनत्य भक्ति जो है उसको हिक चेतनायुक्त) होगा। समभूहिक बेतना में जागृत तो होंगा विराट बन जाता है। इस सर में जो सात चक्र है उसके पीठ है, उस पीट पर बैठे हुए वो विराट हैं । तुमने पार करा दिया । क्योंकि जब सौ इस कृष्ण को समझने के लिए जबे कृष्ण क्योकि भक्त भी बड़े थ्रासानी से हाथ नहीं लगते । वो भी एक one trek nmind (एक ही रास्ते पर । कहने लगे मा तो लग गये अब हम भक्ति कर रहे हैं भगवान जो भी पत्र, पुष्प, फल, पानी कुछ भी आप दी जिएगा, रहा था। नहीं। लेकिन शनन्य शाबदे को तो हम खा गये, योग। कि श्रीर उनकी भक्ति प्रत्यंग बनना चाहिए. ‘अनत्य’ होना चाहिए। जब 13

प्राप्त होना चाहिए। ये कृष्ण ने साफ-साफ कह कोई भी गुरू आए उसके चरर छु लिए, उसके दिया है। लेकिन जो पंडित होते हैं और जो वेदाभ्पास चरण छू लिए प्रर सब चीज के चररग छुते फिरे रात कारते हैं वो शायरद चश्मे की वजह से बो चीज़ें दे बते दिन, उनकी left विशुद्धिध पकड़ जाती है। जो आदमी ही नहीं जो देखने की होती है और कृष्ण को अपने को हमेशा दोषी समझता है, जो समझता है समझने के लिए तो तीक्षण दृष्टि चाहिए क्योंकि कि मेरे में अन्त दोष है, उसकी left side पकड़ बुद्धि की बिल्कुल पराकाष्ठा है । आव, सामने आप ठहर हो नहीं सकते उनकी बुद्धि के मैं तो दुनिया का सबसे वड़ा हैं, मैं जो करू सो सामने, इतने प्रकाशवान बुद्धिमान वो है । और वो कार्यदा, मैं जो कहं सो दिशा । ऐसा जो अदमी] चाहते हैं अपको जरा नवाएं जिससे रप ठोक वोलता है उस प्रादमी की ight side पकड़ जाती रास्ते पर आएं। पब मैं नाच्यो वहत गोताल । और जब ये आप उससे कहिएगा कि भईया अ्त (स्पोत्डिलाइटिस) गोर दुनिया भर की बीमारियां नचाना बंद कर और मूझे तो बस प्रपने परात्म- साक्षाकार में उतार ले, तब ही उतरते हैं। इस लिए उन्होंने कहा मुझे कुछरण शरणागित हो जा तो। इस निज्ञुद्धि में बसे जुकाम, सदी इतना ही नहीं और जिसे हम काहते हुए श्री कृष्ण जो हैं इनको आपको जागृत करना ह पड़ेगा । आपको विशुद्धि चक्र की तकलीफ रहेगी। उसके जाती है। और जो मनुष्य अपने को सोचता है कि है । और right side पकड़ने से Spondylitis हो सकती है। Left side पकड़नेसे angina (हृदय में रक्त संचार कम होने से होने वाली बीमारी) बगैरह हो सकता है और right side पकड़ने से रगागत हो जा तु श । हैं कि asthma (दमा) उसका भी इसमें प्रादुर्भावि है सकता है। जिस अ्रदमी का वहुत काम करता है जो आदमी, श्रीर बहुत चीख-चीख के बोलता है और सबसे बहुत दरोगागिरी करता है उस आदमी अब विशुद्धि चक्र में भी तीन श्रंग हैं right, को जो heart attack (दिल का दौरा) आता है left और बीच में । जब श्री कृष्ण बाल्शवस्था में जिसे हम active heart attack कहते हैं वो आदमो heart attack (दिल का दौरा) उसको माया थी तब उनका left side में, यहाँ पर प्रादु- आ करके, बहुत लोग तो बोलते ही बोलते साफ हो भवि था, बाल कृष्ण की तरह। आोर जब वो बड़े जाते हैं । भाषण देते ही देत समाप्त, सीधे । होकर के राजा हो गए तो उनका right side क्योंकि इस कदर प्रपने को वो शब्दों से दूसरों को यहां पर ‘विद्ठल यहाँ पर कि वो राजा बन करके दबाते हैं उनको नीचा करते हैं, उनके लिए ऐसी- जब तक ये जागृत नहीं होंगे तब त क थे, जब उनका जन्म हुआ, जब उनकी बहन विष्णु- और द्वारिका में राज्य करने गए । औ्र बीचों बी च ऐसी बाते कहते हैं जिससे दूस रा आदमी जो है साक्षात् थ्री कृष्ण जो कि हर हालत में श्री कृष्ण एकदम अवाक रह जाता है। और बहत ही हैं। इस तरह से इस चक्र के तीन अंग] हैं । अब ज्यादा उद्द्ड और घमंड और जिसे कहना चाहिए पूरी तरह से arrogant आदमी होता है जिसको ची खने की प्रौर दूसरों को अ्रपने शब्दों में रखने को किसी की भावना का विवार नहीं रहता है और और दूसरों को बुरी तरह से बात करने की अऔर दूसरों उसे बुरी तरह से डंटिता रहता है, ऐसा आदमी को दूःख देने की अपने शब्दों से, ऐसी अादते जिस किसी भी बिमारी से प्रभावित हो सकता है और पकड़ी उसको दूसरी बीनारी जो हो सकती है वो है paralysis, heart attack, paralysis ( लकवा, जिस अदमी की ये आादत है कि सबके सामने गर्दन दिल का दौरा, लकवा)। हाथ उसका जकड़ सकता भुकी रहती है। चाहे जो भी कहो, हां भाई ठीक है, है ight hand उसका जकड़ सकता है । ऐसे जिनकी आदत बहुत ज्यादा डाटते की, चिल्लाने की, आदमी की होती है उसकी right विशुद्धि जाती है। और उससे अनेक रोग उसे हो जाते हैं । 1

आदमी जोकि अपने को बड़ा विद्वान समझते हैं दिखाई देती बो एक साक्षी है। इसके ओर साक्षी उनकी तो ये हालत हो सकती है कि बो इतने अरति के स्वरूप से देखते हैं। बो जो कुछ भी उनको पहले है बही वो हूट कर के बो देखता है, श्ररे ! ये तो नाटक था । ये तो नाटक टूट गया। अब क्रिस हैं । पहले तो a point (प्रापकी होशियारी किसी वक्त पे प्रापको जब शिवाजी महाराज श्राये समझ लीजिए स्टेज घोखा देती है) और अपने को, दूसरों को चकाते पर तो इन्होंने भी तलवार निकाल ली। जब वो चकाते आ्राप अपने की चकाने लंग जाते हैं श्र गुस्सा करने लगे तो ये भी गुसा करने लगे ये आपको आकचयं होता है कि भई मुझी को मैं चक्ा भी शिवाजो महाराज हो गये। जिस वक्त ये नाटक खत्म हआा कहने लगे हे भगवान ये तो को, मेरे को कैसे चकाने लग गया ? और इसमें नाटक था । तो वो नाटक सब खत्म हो जाता है फिर कोई-कोई बीमारीयों ऐसी लोगों को हो जाती और मनुष्य अपनी जगह आ जाता है । ये हैं कि जिसमें वो जब चाहे तब बो ठीक भी नहीं हो श्रीकृष्ण की देन है । ये इन्होंने हमारी चेतना में सकते हैं। क्योंकि जैसे हो बो चाहते हैं उनको विशेष स्वरूप दिया है। कि जयब वो जागरूक हो फिर वो चकाने वाली बूद्धि फिर से उनको परास्त जाते हैं तो हम साक्षी स्वरूप हो जाते हैं। और कर देती है। ये सब बातें सही हैं । आपको हम दूसरा एक महत्वपूर्ण कार्य करते हैं, क्योंकि लीला- इसको दिखा सकते हैं । बहुत लोगों को ऐसे ही मय है कि हमारे अन्दर जो अरहंकार और प्रति- बीमारियों में जब हमने मदद करने की कोशिश अहंकार जिससे कि हम हमेशा इरते हैं और दूसरों की तो हठात् वो कोई भी काम कर लेते हैं, से दबते हैं, दोनों को वो अपने अन्दर खींच सकते हठात् । लेकिन अगर आप कहें अब पेर हटाइये, हैं, दोनों को अपने अन्दर समा सकते हैं । और इसलिए किसी भी प्रहंकारी आादमी को आप देख लीजिए । जैसे कि आपने देखा कि दु्योधन को बहुत अहंकार था, उसको उन्होंते ठिकाने लगा दिया । साडी द्रोपदी की बढ़ती गयी, बढ़ती गयी, दुर्योधन थक गया, उसका अहकार चुकनाचूर । जो भी अहं- कारी परादमी होता है उसपर इनकी गदा पगर चल पड़े तो वो खेल खेल में ऐसा बचा देते हैं कि वो को बिल्कुल ग्रसित कर दिया था, उसको अच्छे से अदमी परास्त हो जाए। उसी प्रकार अगर कोई तोड़-फोड करके ठीक कर दिया। किसी भी विधि दव्ब यादमी है, या कोई आदमी जो समाज से दबा है, जिसके पास सुदामा जैसे, उसका मान करना, उसके मित्रत्व को इतना बढ़वा लिया । उन्होंने हर तरह से जितनी भी विधियां देना और उसके लिए इस कद्र दिल भरके दिल प्रौर जितनो भो पारस्परिक गंदगियां थीं उनपर खोल के उसके लिए सब कुछ देना ये भी काम ऐसी तलवार उठायो कि सब बीज़ को तोड़-ताड़ श्रीकृष्ण का है । उनकी महिमा जितनी गायी जाये सो कम है । आज ६००० वर्ष हो गये वो यहां उनके लिए ये लोला है । और जब सहजयोगी पार पधारे थे । उनको किसने जाना ? सिर्फ गीता हो जाते हैं, तत् उनके लिए भी सारी सुष्टि जो अर्जुन से बतायी और किसी से बतायो नहीं। पर हरेक चीज़ से लगाव था व्रद्वान हो जाते हैं कि आपकी जो बुद्धि आपको चकाने लगती है । वहीं अाप के खिलाफ at Your intelligence cheats you at लिए दौड़ रहे रहा है । मैं दूसरों को चकाने गया था, मैं अपने तो नहीं हो सकता । क्योंकि उनकी खुद हो दुद्धि जो है वो परास्त हो गयी है। अब [आपते देखा है कि जो बीच में श्रीकृष्ण हैं वो लीलामय हैं । उनके लिए सब सृष्टि एक लीला है। होलो भी एक लौला है । उस स सार में आकर जितनी भी विधि क गेरह से लोगों वक्त उन्होंने को नहीं छोड़ा। सुदामा को सिर पर चढ़ा लिया। उन्होंने जाकरके और विधुर के घर साग खा हुआा है, जो दरिद्र ह करके, नष्ट करके। ये सारी सुष्टि एक लोला है,

लिखायी किससे ? वो सोचना चाहिए। देखिए का मतलब होता है कि जो कुछ भी कृष्ण स्वयं । कृप्ण की लीला हर जगह किस तरह से बन्धनों उनकी राधा क्या थी, अ्रह्ाद आार्दिशक्ति, जो को तोड़ती है । लिखाई उससे जो व्यास । पराशर का लड़का था, लेकिन वास्तव में वो चाहे ये तो आपके धर का मेहतर हो, चाहे एक धोमरती का लड़का था। और बो भी किसी कोई सब जमादार हो सबसे गले मिलिए, सबसे कायदे कानून का नहीं, बेकायदा । इसलिए व्यास अपना प्रेम बाटिए ये ृष्ण की मुख्य इच्छा थी से लिखाई कि ऐसा हो आदमी सद्पुखूष कसे हो जिस लिए उन्होंने होली का आरम्भ किया था । सकता है? क्योंकि जाति औोर उस के बन्धन और और हम लोग जो हैं उस वक्त सबको गाली देते हैं ये बहुत कायदे कानून करने वाते लोगों को दिाने अपनी जधान खराब करते हैं। जो जबान श्रीकृष्ण के लिए कि सद्पुराप कहीं भा पंदा हो सकता है। सद की वजह से ही चल रही है, ये जबान भी हमारी की जाति, धर्म ग्रादि कुछ नहीं पूछा जाता। ब्यास जो दुनिया को पाह्वाद दे, जिससे मन वाछित हों, बरगेरह, सब जो सोलह चीज़ हैं जैसे नाक, कान पुतुष ले किन यही पूछा जाता है कि स पुरुप कोन है ? कुछ जो वर्ग रह सब कुछ है, ये सब को श्रीकृष्ण की इसको तोड़ने के लिए, इसका सबका निदेध करने अजा से चलत हैं व ही हम लोग गाली गलोच करते के लिए, श्रोकृण्ण ने गीता भी लिखाई तो किससे, हैं। उनकी सुभता, उनकी मधुरता, उनकी मोहकता, तो व्यास से । उनको जाकर लोला दखि ए तो जंसे बो हम रे जोवन में अनी चाहिए । तभी हम कहेंगे कहत है कि हरेक उस चुहुल से हरेक को ठीक कर दिया। उनकी अपने सौंदर्य को पाया । हमने सौदर्य को बांटा, चुहुल बडी प्यारी थी उनकी चूहल बड़ी गहरी थी और लोगों को इसका मज़ा दिया। लेकिन जिस और इतनी तीक्षणा थी कि उसके चक्र से कोई बच तरीके से गंदगी और बहुत ही नग्नता से होली नहीं सकता । कि ये होली हुई। जिसमें कि एक तरह से हमने को उन्होंने, उनकी जो चूहल था, खेली जाती है, मेरी समझ में नहीं आता कि लोगों ने हरेक चीज का इतना विपर्यास कसे कर दिया कन होली है, ्प सबको होली मुवारक हो । और इस कृष्ण को भी कितना यपमानित कर होली के दिन हमको ये सोचना चाहिए कि कोई से दिया। कल आपकी होली है, प्राप लोग खूब होली भी गदे काम करने से कृष्णा का कभी भी विचार खेलिए । लेकिन उस कृष को याद रखें, जिसने नहीं आ सकता। गंदगी करना, गालियां देना, आपसे बताया कि आपको उस विराट के अंग आर वरगैरह, ये कृष्ण के काम नहीं है। हमको बहुत प्रत्यंग होना है। माधुय से एक दूसरे से बात करनी चाहिए । होली