Puja for the 61° Birthday (Be sweet, loving and peaceful), Juhu, Bombay (India), 22 March 1984.
[English to Hindi Translation]
HINDI TRANSLATION (English Talk) अभी-अभी मैंने इन्हें (भारतीय सहजयोगियों) को बताया कि वे अहंचालित पाश्चात्य समाज की शैली की नकल करने का प्रयत्न न करें। क्योंकि उसमें ये लोग कठोर शब्द उपयोग करते हैं और ऐसा करके हम सोचते हैं कि हम आधुनिक बन गये हैं। वो ऐसे कठोर शब्द उपयोग करते हैं, ‘मैं क्या परवाह करता हूँ।’ ऐसे सभी वाक्य जो हमने कभी उपयोग नहीं किए, ऐसे वाक्यों से हम परिचित नहीं है। किसी से भी ऐसे वाक्य कहना अभद्रता है। किस | प्रकार आप कह सकते है, ‘मैं तुमसे घृणा करता हूँ।’ परन्तु अब मैंने लोगों को इस प्रकार बात करते देखा है कि ‘हममें क्या दोष है?’ आप ऐसा कहने वाले कौन होते हैं? हम इस प्रकार बात नहीं करते। ये हमारा बात करने का तरीका नहीं है। बात करने का ये तरीका नहीं है। किसी भी अच्छे परिवार का व्यक्ति इस प्रकार बात नहीं कर सकता क्योंकि इस प्रकार की बातों से उसका परिवार प्रतिबिम्बित होता है। परन्तु यहाँ पाश्चात्य देशों की अपेक्षा भाषा की नकल अधिक होती हैं। जिस प्रकार लोग बसों में, टैक्सियों में, रास्ते पर बातचीत करते हैं उस पर मुझे हैरानी होती है। ये मेरी समझ में नहीं आता। अत: मैंने उनसे कहा कि भाषा प्रेममय तथा हमारी पारम्परिक शैली की होनी चाहिए। इस प्रकार तो हम अपने बच्चों को भी नहीं डाँटते। अपने बच्चों को भी यदि हमें डाँटना हो तो भी हम ऐसी भाषा का उपयोग करते है जो उनहें सम्मानमय बनाये (श्रेष्ठमानव)। (दामले साहब ने कुर्ता पजामा पहना हुआ है, ‘आप शिवाजी महाराज जैसे लग रहे है। शिवाजी महाराज आपका स्वागत है।’) हमें ऐसी सम्मानमय भाषा में बोलना चाहिए जिससे वो घबरा न जायें । सुधार यदि आवश्यक होता तो हम इस प्रकार सुधार किया करते थे। दूसरी विधि ठीक नहीं है क्योंकि इससे सुधार नहीं होता। देखिए, दूसरे तरीके से आप अपने बच्चों को नियन्त्रित नहीं कर सकते। हर समय आप उन्हें डाँटते रहते हैं, अपमानित करते रहते हैं, अन्य लोगों को अपमानित करते रहते हैं। अपमानजनक तरीके और भावनात्मक धमकी तथा ये सारी व्यवस्था इस देश की परम्परा नहीं है। ऐसा करने वाले लोगों को बाहर फेंक दिया जाएगा। आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। मैं आपको बताती हूँ कि सहजयोग में आप ऐसा नहीं कर सकते। लोगों को अपमानित करने की, उनके लिए अपमानजनक परिस्थितियाँ उत्पन्न करने की धारणाएं आपमें नहीं होनी चाहिए। ये सब आधुनिक शैली है। अत: हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। सहजयोग में हमें अत्यन्त गरिमामय आचरण करना चाहिए जो हमारी शैली और हमारी परम्परा के अनुरूप हो। सहजयोग परम्परा ये है कि हम लोगों से अत्यन्त सभ्य, मधुर, स्नेहमय एवं प्रोत्साहित करने वाले तरीके से व्यवहार करें। हम सबको इसी प्रकार बोलना चाहिए । अतः पहली बात मैं ये बताती हैँ कि अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करते हैं, आपको चिल्लाना नहीं चाहिए। मैं उन लोगों पर चिल्लाती हूँ जिनमें भूत हैं। परन्तु मेरे चिल्लाने से भूत भाग जाते हैं, परन्तु यदि आप चिल्लाएंगे तो 17
Hindi Translation (English Talk) आपको भूत पकड़ लेंगे। भूत भागेंगे नहीं। अत: बेहतर होगा कि आप चिल्लाएं नहीं। यदि आप में मेरी तरह से शक्तियाँ हैं तो आप ऐसा कर सकते हैं। परन्तु आपमें ये शक्तियाँ नहीं हैं। किसी भूत वाले व्यक्ति पर यदि आप चिल्लाएंगे तो भूत आपको पकड़ लेंगे। अत: सावधान रहें। मेरी विधियाँ न अपनाएं। मैं बिल्कुल भिन्न प्रकार की व्यक्ति हूँ और सोच-समझकर बात कहती हैँ। आप ऐसा नहीं करते। अतः यदि आपने मेरी बातों का अनुसरण करना हो तो मेरी क्षमा, प्रेम और स्नेह आदि गुणों को अपनाएं, उन चीज़़ों को नहीं जहाँ मैं भयंकर होती हैँ। मेरे भयावने स्वभाव में भी मेरा प्रेम निहित होता है। यह प्रेम, ये शक्तियाँ आपमें नहीं हैं। अत: किसी अन्य व्यक्ति पर ये विधियाँ न अपनाएं। चिल्लाने और क्रोधित होने का आपको कोई अधिकार नहीं है क्योंकि यदि आप चिल्लाते हैं तो सारे भूत आपके अन्दर आ जाते हैं क्योंकि यही भूत आपको गुस्सा दिलाते हैं। वो आपको इसलिए गुस्सा दिलाते हैं कि आप इसमें फँस जाएं और इतना अधिक इस कार्य को करें कि पूर्णतः नष्ट हो जाएं। अत: मध्य में बने रहना तथा स्नेह एवं प्रेम की शक्ति जो मैंने आपको दी है उसे बनाए रखना सर्वोत्तम है। वह शक्ति आपने विकसित करनी है । वह प्रेम की शक्ति। सर्वप्रथम प्रेम की वह शक्ति विकसित करें फिर आपको कोई चिन्ता नहीं करनी होगी, न चिल्लाना पड़ेगा और न ही ऐसा कुछ और करना पड़ेगा। आपकी शक्ति कृत ( गतिशील) हो उठेगी। यह स्वत: कार्य करेगी और ऐसे सुन्दर वातावरण का सृजन करेगी जिसमें हम किसी को नष्ट करने की इच्छा न करें। परन्तु आप चिल्लाएंगे तो आप दौड़ जाएंगे विशेषरूप से किसी भी अहंवादी समाज में आप चिल्ला नहीं सकते, यह उन्हें नहीं सुहाता। अहंचालित समाज में यदि आप चिल्लाएंगे तो इससे उनका चित्त भटकेगा और वो दौड़ जाएंगे। अब मैं दो चीजें माँग रही हूँ। बड़ी अटपटी सी बात है कि माँ अपने मुँह से कोई उपहार माँगे जो उपहार आपने देना हैं उसमें पहली चीज़ तो ये है कि आपके चरित्र में शक्ति की अभिव्यक्ति होनी चाहिए। परन्तु इसका अर्थ ये भी नहीं है कि शान्त लोग भीरु होते हैं, अस्वस्थ, जो सभी मूर्खताओं को सहन कर लेते हैं। नहीं। परन्तु वो शान्तिपूर्वक विरोध करने वाले लोग होते हैं। आपको किसी चीज़ से भय नहीं है । किसी चीज़़ के आगे आपने झुकना नहीं है, किसी चीज़ से समझौता नहीं करना। परन्तु आपमें ऐसे स्वभाव का विकसित होना अत्यन्त आवश्यक है। दूसरी चीज़ ये है कि आपकी इस शक्ति से, आपके प्रेम की अभिव्यक्ति होनी चाहिए, अन्य लोगों के प्रति प्रेम की। जैसे अब आगाभी दो-तीन वर्षों में सर्वत्र आपके आश्रय होंगे, ऐसा मुझे विश्वास है। इन आश्रमों में आने वालो लोगों के प्रति मैं आपका प्रेममय सुहृद, स्नेहमय एवं आश्रयप्रदायी सुन्दर दृष्टिकोण देखना चाहँगी । इसके विपरीत, ये दृष्टिकोण यदि आपका नहीं है। तो आश्रम व्यर्थ हो जाएंगे। बहुत से स्थानों पर ऐसा ही हुआ है। मुझे दोष नहीं देना कि हमारे आश्रम क्यों नहीं चल रहे । ये देखना आपकी जिम्मेदारी होगी कि यह माँ का घर है और लोग माँ के घर आ रहे हैं। माँ इनसे किस प्रकार व्यवहार करेंगी ? प्रेम एवं स्नेहपूर्वक। आप जो चाहे करें – चाहे भूखे रहें, परन्तु अन्य लोगों से करुणा एवं स्नेहपूर्वक व्यवहार करें ताकि अन्य लोगों पर प्रभाव पड़े और वे सोचें कि यह व्यक्ति अक्खड नहीं है । मैं चाहती हूँ कि चोटी के व्यक्ति आश्रमों में कार्यभारी हों। मध्यम दर्जे के व्यक्ति को नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए। अगले साल तक सभी ज़मीने आपके हाथ आ जाएंगी और अगले वर्ष तक आश्रम बनने आरम्भ हो जाएंगे। परमात्मा आपको धन्य करें 18
Hindi Translation (English Talk) मैं आपको यह प्रदान करती हैँ अत: मुझे बताना है कि, ‘आप उच्चतम से भी उच्च हैं।’ पहली चीज़ जो आप आपने मुझे देनी हैं – अपनी बातचीत में, अपने आचरण में, अपने हृदय में मुझे प्रेमपूर्वक स्थापित करें । दूसरी चीज़ जो मुझे माँगनी है वो ये है कि आप शान्त हो जाएं। अपने अन्दर शान्ति स्थापित करने का प्रयत्न करें। स्वयं से झगड़े नहीं। पश्चिमी लोगों के साथ ये समस्या है कि वे स्वयं से झगड़ते हैं। ‘मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? मैं ऐसा हूँ! मैं इतना खराब हूँ, मैं बिल्कुल अच्छा नहीं हूँ।’ आप यदि स्वयं से लड़ते रहेंगे तो उन्नत नहीं होंगे। आपको स्वयं से कहना चाहिए, ‘मैं बहुत अच्छा हूँ, मुझ में क्या कमी है? मुझे आत्मसाक्षात्कार मिल गया है, मुझमें क्या दोष है? मुझमें कोई दोष नहीं है ।’ ये आत्मविश्वास अपने अन्दर उत्पन्न करें तब ये कार्यान्वित होगा। मान लो आप ये जान भी जाएं कि आपमें कोई दोष नहीं है तो भी ये नहीं कि आप अन्य लोगों पर चिल्लाने लगें। आपको अत्यन्त शान्त होना होगा। आपने देखा है कि मेरे शान्त स्वभाव से किस प्रकार इतनी समस्याओं का समाधान हुआ है। किसी भी कीमत पर, किसी भी प्रकार से, ये शान्ति नष्ट नहीं होनी चाहिए। बाहर इसकी अभिव्यक्ति होनी चाहिए। मेरी शान्ति अपने आप में इतनी भयंकर हो जाती है। आपमें ऐसी संभावना नहीं है । ऐसा न करें, इस प्रकार कभी न करें, अपने मस्तक को शान्त रखने का प्रयत्न करें। इस तरह के बिगड़े हुए, विकृत चेहरों वाले बहुत से लोग मेरे पास आते हैं और उनके मस्तक में मैं भूत बैठे हुए देखती हैँ और मेरे उन पर चिल्लाने से उनके मस्तक शान्त हो जाते हैं। ‘मैं कुछ नहीं कर रहा’ श्रीमाताजी कर रही हैं। शान्त हो जाएं। शान्त होने पर आपको लगेगा कि आपका हृदय खुल जाता है। आप अपना हृदय क्यों नहीं खोलते ? क्योंकि आपको स्वयं पर विश्वास नहीं है। इससे आपकी आज्ञा खुलेगी, आपका सहस्त्रार खुलेगा और आपको शान्त जीवन प्राप्त होगा । आज मेरे जन्मदिवस पर आपको वचन देना होगा कि अगले वर्ष के अन्त तक आपको ठीक प्रकार से स्थापित होना है, परन्तु पहली दो शर्तें बनी रहनी चाहिएं । आप यदि इसके लिए तैयार नहीं हैं तो परमात्मा कभी आपको आश्रम प्रदान नहीं करेंगे। बेतुके लोगों को वे आश्रम नहीं देना चाहते। कभी – कभी ऐसा भी होता है कि जिन लोगों को कहीं और स्थान नहीं मिलता वे आश्रम में आ जाते हैं। अत: जब तक उस क्षमता के लोग नहीं होंगे जो प्रेममय और शान्त न बने रह सकें आश्रम स्थापित नहीं होंगे। सभी स्थानों पर आश्रम बनाने की योग्यता आपमें हो परमात्मा आपको धन्य करें। 19