श्री माताजी की डॉक्टरों से बातचीत
ब्राइटन (यूके), 26 जुलाई 1984।
श्री माताजी: जिस चौथे आयाम के बारे में उन्होंने उल्लेख किया है, वे उसका क्या अर्थ लगाते है? वह महत्वपूर्ण बात है।
वारेन: वे उस अतींद्रिय अवस्था को कहते हैं।
श्री माताजी: लेकिन क्या?
वारेन: वे इसका वर्णन नहीं कर सकते।
(यहाँ माँ फिर से कहती है “क्या?”, जबकि वॉरेन शब्द “वर्णन” कह रहा है)
श्री माताजी: वे इसका वर्णन नहीं कर सकते, आप देखिए। मान लें कि किसी के दिल की धड़कन कम है, नाड़ी की दर कम है या ऑक्सीजन की ग्रहण क्षमता या कुछ भी कम है।
वारेन: यह अतींद्रिय स्थिति नहीं है।
श्री माताजी: वह अतींद्रिय अवस्था नहीं है, क्योंकि आप अभी भी उस अवस्था में हैं, जहाँ आपका ध्यान आपके शरीर पर है। तो, यह एक अतींद्रिय नहीं है, आपको इन्द्रियों के पार जाना होगा। (ट्रान्सडैंटल) अतींद्रिय का मतलब है कि आपको परानुकम्पी (पैरासिम्पेथेटिक) पर कूदना होगा। देखें, हम कह सकते हैं, हमारे पास चार आयाम हैं ।
एक आयाम है बायीं अनुकम्पी (लेफ्ट सिम्पैथेटिक)का, दूसरा दायीं अनुकंपी (राईट सिम्पैथेटिक)का है, फिर हमें मध्य तंत्रिका तंत्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टम )प्राप्त हुआ है, जो हमारा चेतन मन है और चौथा आयाम परानुकम्पी (पैरासिम्पैथेटिक) है। क्या वह परानुकम्पी (पैरासिम्पैथेटिक)पर कूदता है?
वारेन: हम करते हैं।
श्री माताजी: हाँ। सहज योग में आप परानुकम्पी (पैरासिम्पैथेटिक) पर कूदते हैं; अर्थात आपका चित्त परानुकम्पी तंत्रिका तंत्र (पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम )को नियंत्रित करना शुरू कर देता है। फिर हम यह कैसे साबित करते हैं कि हम चौथे आयाम के हो गए हैं? पहली बात, यह है कि जो व्यक्ति पैरासिम्पेथेटिक का नियंत्रक बन जाता है, वह “स्वचालित” बन जाता है। वह चीजें कर सकता है। वह चीजें कर सकता है, जैसे वह बिना किसी भी प्रयोगशाला में गए, बिना किसी चिकित्सा जांच के, अपनी उंगलियों पर बता सकती है कि कोई अन्य व्यक्ति किन चक्रों पर पीड़ित है। तो, जो व्यक्ति, चौथा आयाम बन जाता है, वह “स्वचालित” बन जाता है, जो कि स्वायत्त तंत्रिका तंत्र है, आप देखिए, इसकी “स्वचालित” वाली भूमिका। वह पैरासिम्पेथेटिक को नियंत्रित करता है। अब, जब वह पैरासिम्पेथेटिक को नियंत्रित करता है, तो वह कुछ विशेष तकनीकों के माध्यम से, कुछ गतिविधियों के माध्यम से चक्रों को होने वाली इस आपूर्ति को नियंत्रित करता है। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति हृदय की किसी बीमारी से पीड़ित है। अब, एक सामान्य व्यक्ति, जिसके पास यह चौथा आयाम नहीं है, वह नहीं जानता होगा कि वह किसी भी हृदय की परेशानी से पीड़ित है। उसको इस सम्बन्ध में कोई विचार नहीं होगा, वह कभी भी अपने हृदय या किसी चीज को महसूस नहीं करेगा, जब तक कि उसे अचानक अटैक नहीं आता है, और फिर वह मर जाता है। लेकिन वह व्यक्ति, जो चौथे आयाम में है, जो कि आत्मसाक्षात्कारी है, इसकी शुरुआत में ही महसूस कर सकता है कि कुछ गलत हो रहा है। इसके अलावा, वह जानता है कि खुद को कैसे ठीक किया जाए, खुद को ठीक करने की तकनीक, वह यह भी जानता है कि वह दवाओं का स्रोत धारण करता है और यह कि, उसे यह जीवंत शक्ति देना है।
तो, यह चौथा आयाम है, एक बड़ी क्षमता है, जो गतिज बल बन रहा है। जैसे कोई अंडा,पक्षी बन रहा है। तो, अंडा, जिस अंडे को हम देख पाते हैं, उसके पास बाहर उड़ने का कोई तरीका नहीं है, लेकिन पक्षी ऐसा कर सकता है। यह एक अंडे और एक पक्षी के बीच एक जबरदस्त अंतर है। तो, ऐसा व्यक्ति, जिसे आत्मसाक्षात्कार मिलता है और वह स्थापित हो जाता है, वह अब कोई ऐसा व्यक्ति नहीं रहा है, जिसका इन मशीनों वगैरह से परीक्षण किया जा सकता है, क्योंकि ये मशीनें केवल भौतिक पक्ष पर काम करती हैं, लेकिन वह वो व्यक्ति है जो परीक्षण कर सकता है। यहां तक कि एक बच्चा, जो एक आत्मसाक्षात्कारी है, दूसरे व्यक्ति का परीक्षण कर सकता है। आपको उसके साथ किसी मशीन की आवश्यकता नहीं है वह ऐसा एक व्यक्ति बन जाता है, जो निदान करता है; वह एक ऐसा व्यक्ति हो जाता है, जो इलाज कर सकता है; वह ऐसा व्यक्ति बन जाता है, जो आपको शांत कर सकता है।
न केवल शारीरिक स्तर पर, बल्कि माना कि, कोई भावनात्मक रूप से परेशान होता है, तो ऐसे व्यक्ति को पता होता है कि कोई दूसरा व्यक्ति भावनात्मक रूप से परेशान है। वह ठीक-ठीक यह भी जानता है कि कौन सा चक्र पीड़ित है; वह यह भी जानता है कि उस चक्र को कैसे सुधारा जाए। आपको ठीक होने के लिए मानसिक चिकित्सालय की शरण में नहीं जाना होगा, लेकिन एक व्यक्ति, जो चौथा आयाम रखता है, उस बीमारी के व्यक्ति को ठीक कर सकता है, क्योंकि वह ठीक से जानता है कि परेशानी कहां है और इसे कैसे ठीक किया जाए। तो, सभी रोग, जो केवल शारीरिक हैं, ठीक हो सकते हैं; जो मनोदैहिक हैं वे ठीक हो सकते हैं; दोनों के संयोजन को ठीक किया जा सकता है। इन चीजों के किसी भी संयोजन को ऐसे एक व्यक्ति द्वारा ठीक किया जा सकता है, जो एक स्थापित सहज योगी है। लेकिन अगर कोई बीमारी इतनी दूर चली गई है तो यह अपूरणीय है या शरीर में कुछ कृत्रिम रूप से स्थापित किया गया है, क्योंकि वे शल्य क्रिया द्वारा शरीर में रॉड, स्टील-छड़ें और यह सब स्थापित करते हैं, फिर, सहज योग मृत चीजों पर काम नहीं करता है। यह जीवंत चीज़ों पर काम करता है। यदि अंग अभी भी जीवित है, तो यह काम कर सकता है, लेकिन यदि यह जीवित नहीं है, तो यह काम नहीं करता है।
यह अस्सी प्रतिशत लोगों पर काम करता है, लेकिन जिन बीस प्रतिशत लोगों पर यह काम नहीं कर सकता है, वह वे लोग हैं, जिनके पास मनुष्य होने के लिए मूल आधार नहीं है। वे पशुओं की तरह हैं; उनके रवैया जानवरों के सामान उन से भी बदतर है। तो, एक अवस्था जो एक तथाकथित चौथा आयाम हो सकता है, ऐसा भी हो सकता है कि, जहां एक व्यक्ति एक इंसान भी नहीं हो; वह या तो शैतान या शैतानी व्यक्ति बन जाता है। इसे चिकित्सा विज्ञान को स्वीकार करना होगा कि ऐसे लोग हैं, जो बहुत शैतानी कर सकते हैं और वे कुछ आगे उन्नत हो कर चौथे आयाम में प्रवेश नहीं कर सकते हैं।
चौथा आयाम एक यांत्रिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि विकास की एक जीवंत प्रक्रिया है जिसके द्वारा आप उच्च स्तर के अस्तित्व तक विकसित होते हैं। लेकिन इसके लिए आपका कुछ मूलाधार होना होगा। एक व्यक्ति, जो एक शराबी है, उसकी शराब की लत का उपचार हो सकता है, लेकिन एक व्यक्ति, जो खुद को धोखा दे रहा है, दूसरे लोगों को धोखा दे रहा है, दूसरों के प्रति क्रूर है, या कहें, हिटलर जैसा व्यक्ति, उसका उत्थान नहीं हो सकता। वह उस अवस्था से दूर जा चुका है, जहाँ हम उसका इलाज नहीं कर सकते। हम जानवरों को ठीक कर सकते हैं, हम मनुष्यों को ठीक कर सकते हैं, लेकिन ऐसे लोगों को नहीं, जो असामान्य हैं या हम कह सकते हैं, कुछ लोगों के लिए कोई शब्द नहीं है… लेकिन शैतानी लोग, और यह, कुछ लोगों में कैसे कार्यान्वित नहीं होता है। इसके अलावा, ऐसे मामले जो, स्थिति से इतने गिर गए हैं, जहां हम अब कह सकते हैं, बिल्कुल बिगड़े हुए, फिर सहज योग ऐसे व्यक्ति के शरीर को एक और जन्म ले कर फिर कोशिश करने की अनुमति देता है।
इसलिए, चूँकि यह एक चौथा आयाम है, हम हर चीज को व्यक्त करने के लिए चिकित्सा विज्ञान को एक साधन के रूप में नहीं ले सकते, क्योंकि यह इससे उच्च स्तर पर है। लेकिन कई मायनों में, हम चिकित्सकीय रूप से प्रदर्शित कर सकते हैं कि लोगों को पैरासिम्पेथेटिक तंत्रिका तंत्र के उपयोग के माध्यम से एंजाइना, कैंसर, ल्यूकेमिया के हर रोग़ के पीड़ित को सुधार किया गया है, जिसे डॉक्टर संभाल नहीं सकते हैं। क्योंकि उनकी अपनी सीमा होती है, वे पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम पर कार्यशील नहीं हो सकते हैं, और इसीलिए वे किसी ऐसे व्यक्ति को ठीक नहीं कर सकते हैं, जिसे पैरासिम्पेथेटिक की समस्या है।
सभी स्थितियों को पैरासिम्पेथेटिक के माध्यम से हल किया जा सकता है, बशर्ते, जब मूल स्थितियां (शर्ते)हों; अगर वे पूरी होती हैं। चिकित्सा विज्ञान में लोग हिटलर का भी इलाज करेंगे – कोई भेदभाव नहीं है। लेकिन जैसे-जैसे विकास में आप उच्च और उच्चतर होते जाते हैं, वैसे-वैसे आप अधिक विवेकशील होते जाते हैं, और इस स्तर पर आप किसी ऐसे व्यक्ति का इलाज नहीं कर सकते, जो एक पाखंडी है या जो एक क्रूर आदमी है या जो दूसरों के लिए आक्रामक है या जो लोगों को वश में करने के लिए तरीके अपना रहा है।
और हमारे पास कई गुरु हैं, जो पैसे लेते हैं और बहुत से लोगों को सिर्फ पैसे के लिए नष्ट करते हैं। ऐसे लोग कभी चौथे आयाम पर नहीं जा सकते, उन्हें चौथे आयाम की बात ही क्यों करनी चाहिए? ऐसे लोगों को कुछ असाधारण होना पड़ेगा ताकि वे धर्मी, गुणी, करुणामय और बहुत गतिशील लोग बनें। उनके पास सबसे बड़ा गुण है, करुणा का है, जिसे हम अपने सामान्य जीवन में तो स्वीकार करते हैं, लेकिन चिकित्सा विज्ञान में हम स्वीकार नहीं करते हैं। लेकिन आधार क्या है चिकित्सा विज्ञान का ? करुणा है। तो, तुम करुणा बन जाते हो। अपने उत्थान में, यह न्यूनतम उपलब्धि हमें सुनिश्चित करना है। जब हम चौथे आयाम की बात करते हैं, हम अपनी सीमा के परे की बात करते हैं। और जब हम परे की बात करते हैं, तो हमें यह देखने के लिए अपने मन को प्रक्षेपित करना होगा कि, कुछ परे का बनने से तात्पर्य में हम खुद से क्या उम्मीद करते हैं। क्या हम वही मतलबी, आक्रामक, जटिल इंसान होने जा रहे हैं या हम संत जैसा कुछ बनने जा रहे हैं? तो, इस प्रक्षेपण को डॉक्टरों के दिमाग में लाया जाना चाहिए। जहाँ तक और जब तक वे अपने मन को उस सीमा तक यह देखने के लिए नहीं ले जाते कि, “अगर हमें उच्च स्थिति पर होना है, तो हमें स्वीकार करना होगा कि हमें बेहतर लोग बनना है।”
अब सहज योग हमारे अंदर स्थित तीनों शक्तियों का संश्लेषण (संयुक्त उपक्रम)है। पहली भौतिक शक्ति है, दूसरी भावनात्मक शक्ति है और तीसरी विकासवादी शक्ति है। आप इन तीनों शक्तियों के संश्लेषण बन जाते हैं। यह आंकलन अथवा अध्ययन नहीं है, लेकिन चिकित्सा विज्ञान विश्लेषण है। तो, यह सिर्फ भौतिक पक्ष का विश्लेषण करता है, विश्लेषण करता है ताकि आपके पास एक आंख के लिए एक चिकित्सक और दूसरी आंख के लिए एक दूसरा चिकित्सक हो। लेकिन एक डॉक्टर को यह समझना होगा कि हमारे पास कई समस्याओं का कोई समाधान नहीं है। इसलिए, उन्हें यह देखने के लिए अपनी आँखें ऊपर उठानी होंगी कि, “कोई ऐसी चीज़ छूट रही है जिसे हमें जानना है।” बेशक, चिकित्सा विज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि एक बार जब आपको अपना आत्मसाक्षात्कार हो जाता है, भले ही आप डॉक्टर नहीं भी हों, और आप स्थापित सहज योगी बन जाते हैं, तो आप लोगों की रोगमुक्ति कर सकते हैं। लेकिन चिकित्सा विज्ञान से आप साबित कर सकते हैं कि यह ठीक हो गया है। अतः चिकित्सा विज्ञान का भी अपना उद्देश्य है। और करुणा जो कि, चिकित्सा विज्ञान का आधार है, अब मानव के माध्यम से व्यक्त की जाती है, जो करुणा का अवतार बन जाता है। यह कविता नहीं है, यह किसी अमूर्त चीज की तरह नहीं है, लेकिन मानव विकास की एक घटना है जो घटित होनी है और यह अंतिम सफलता है जिसके बारे में बहुत से लोग, वैज्ञानिक और डॉक्टर और, हम कह सकते हैं की मनोवैज्ञानिकों ने भी जिसके बारे में बात की है, हालांकि उन्हें गंभीरता से नहीं लिया जाता। इसलिए अब समय है हमारे लिए, इस बारे में गंभीरता से सोचने और यह जानने का समय है कि हम केवल यह शरीर, मन और अहंकार नहीं हैं, बल्कि हम इससे परे कुछ हैं जो कि,चौथा आयाम हैं। और हम वहां क्या हैं? हम “स्वचालित” हैं और “ऑटो” को “स्व” कहा जाता है।
जब तक आप अपने मन को ऊँचा नहीं उठाते और सतही भौतिक स्तर पर जो भी खोज करते हैं, उससे असंतुष्ट नहीं होते हैं, आप सहज योग के दृष्टिकोण को नहीं देख सकते हैं। और इसके बारे में बहस करने के लिए क्या है? जब सहज योग लोगों को रोगमुक्त कर रहा है, तो आप बहस क्यों करते हैं? आप यह क्यों नहीं देख रहे हैं कि यह कैसे ठीक हो रहा है? माना कि एक डॉक्टर चिकित्सा कर रहा है, और लोग उसके साथ बहस करते हैं: “आप कैसे ठीक करते हैं?” आप उससे कहेंगे: “क्या मतलब है तुम्हारा? मैं आपको वह सब बताने वाला नहीं हूँ, लेकिन मैं इलाज करता हूँ”। अब आपके पास एक सर्टिफिकेट है, मेडिकल कॉलेज से या कहीं और से , इसलिए आप सोचते हैं कि आप एक डॉक्टर हैं, लेकिन माना कि, किसी के पास स्वयं ईश्वरीय सर्टिफिकेट प्राप्त है, तो क्यों नहीं देखते, क्यों न आप भी एक वैज्ञानिक की तरह अपनी आंखें खुली रखें, अब तक आपने जो भी जाना है, उस कारण से उन्हें बंद करके क्यों रखें। आपने जो वैज्ञानिक शोध किया है, उसे एक बाधा क्यों बनाएं, सहज योग में भी शोध छात्र क्यों न बनें और खुद देखें कि आप वास्तव में उस अवस्था को प्राप्त करते हैं या नहीं। “वह अवस्था”आपको बन जाना है। अन्यथा चौथे आयाम की बात करने वाले व्यक्ति, लोगों को पागल बना देते हैं, उन्हें मानसिक रोगी बना देते हैं। उनका अंजाम दौड़ हारे हुए लोगो जैसा होता है। तो वह चौथा आयाम कैसे हो सकता है? इन लोगों के बहुत सारे मामले हैं, कोई व्यक्ति यह दिखा सकता है कि उन भयानक पाठ्यक्रमों और चीजों को करने से वे वास्तव में पागल हो गए हैं। और वे किसी काम के नहीं हैं, वे धोखेबाज़ हैं। वे सभी बुरे काम कर रहे हैं जो कोई भी कर सकता है। तो आप कैसे कह सकते हैं कि यह ध्यान किसी को भी बेहतर व्यक्ति या स्वास्थ्य में बेहतर व्यक्ति बनने में मदद करता है?
इसके अलावा, केवल शारीरिक स्वास्थ्य में ठीक होना पर्याप्त नहीं है। उस बिंदु को भी देखना चाहिए। किसी को शरीर से इतना अधिक लगाव नहीं होना चाहिए, क्योंकि, माना कि, अगर आपके पास इस देश के सभी पहलवान या मुक्केबाज हैं, अब ऐसी स्थिति मान भी लें, तो क्या होगा? जैसा कि यह है, हमारे पास ऐसे बहुत सारे हैं। अब हमें जो चाहिए, वह संत हैं। शारीरिक रूप से अधिक स्वस्थ लोग नहीं , जो दूसरों पर हावी होने की कोशिश करेंगे, लेकिन वे लोग, जो संत हैं, जो निशुल्क, बिना किसी आक्रामकता के, करुणावश, सहजता से शारीरिक रूप से पीड़ित लोगों की मदद कर सकते हैं।
लेकिन एक और बाधा है, जिसे बहुत स्पष्ट रूप से कहा जाना चाहिए, कि जब आप सहज योगी बन जाते हैं, तो नए आयाम की जीवंत शक्ति सहज रूप से बहने लगती हैं और आप इसके लिए कोई पैसा नहीं लेते हैं। आप अपनी करुणा का आनंद लेते हैं। करुणा, यही चिकित्सा विज्ञान का आधार है। इसलिए, ऐसी अवस्था पाने की शायद डॉक्टरों कोशिश ना करें। लेकिन बहुत से लोग हैं, जिन्हें सहज योग द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता है और वे डॉक्टरों के पास आ सकते हैं, इसलिए डॉक्टरों को इससे डर नहीं होना चाहिए। सहज योग द्वारा कितने लोगों की मदद की जा सकती है, कहा नहीं जा सकता, लेकिन जो लोग सहज योग में आते हैं, उनकी मदद की जा सकती है। तो, इसे कम से कम एक उच्च प्रकार के उपचार या एक रोग मुक्ति शक्ति के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए, जिसे स्वीकार किया जाना चाहिए और जो इस के माध्यम से रोग मुक्त हो सकते हैं, उन्हें एक मौका दिया जाना चाहिए और इसके बारे में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए।
वारेन: वास्तव में यह पैरासिम्पेथेटिक है क्या, अगर इसे चिकित्सा विज्ञान में, एक संतुलन बनाने वाली चीज, जो हर चीज़ को वापस से संतुलन में लाता है वर्णित किया गया है। श्री माताजी: यह निर्भर करता है, यह निर्भर करता है। यह वास्तव में विकासवादी प्रक्रिया है। परानुकम्पी Parasympathetic हमारे विकास के विभिन्न स्तरों पर काम करता है। जैसे कि, जब आप पदार्थ की अवस्था में हों, तो यह आपको आवधिक तालिकाओं (पीरियाडिक टेबल) में व्यवस्थित करता है। वह व्यवस्था कौन करता है? परानुकम्पी Parasympathetic करता है। फिर, जब आप उन्नति करते हैं एक जानवर के रूप में विकसित होते हैं, तो यह आपको भोजन खाने की समझ देता है, जिससे भोजन की तलाश होती है। फिर जैसे-जैसे यह उन्नत होता है यह आपको सुरक्षा की संवेदना देता है, आप सुरक्षा चाहते हैं। पशु भी सुरक्षा चाहते हैं। यह कैसे विकसित होता है – इन भावनाओं को हमारे भीतर देकर या हम कह सकते हैं कि परानुकम्पी (पैरासिम्पेथेटिक) उच्च और उच्चतर प्रकट करना शुरू कर देता है, ख़ोज उच्च और उच्चतर होने लगती है। फिर मानव अवस्था पर आता है, जहां लोग भोजन, सुरक्षा चाहते हैं। फिर जब वे इसे प्राप्त करते हैं, तो वे शक्ति की तलाश करते हैं, वे धन की तलाश करते हैं, वे संपत्ति की तलाश करते हैं, वे अन्य लोगों पर मालकियत की इच्छा करते हैं, जिसे कभी-कभी प्यार कहा जाता है। वे हर तरह की ऐसी चीजों की तलाश करते हैं, लेकिन फिर भी उनकी इच्छाएँ पूरी नहीं होती है, फिर भी वे चाहते हैं।
फिर वही पैरासिम्पेथेटिक हमारे भीतर एक उत्कंठा पैदा करता है कि हमें कुछ ऊंचा उठना है। मानव चरण के बाद यह अंतिम भावना अभिव्यक्त होना है, और इसके लिए हमारे भीतर एक अवशिष्ट शक्ति रखी जाती है जिसे ‘कुंडलिनी’ कहा जाता है, जो वास्तव में हमारे भीतर इच्छा की शक्ति है, सब कुछ उसी ने अभिव्यक्त किया है। लेकिन फिर भी यह शेष (बची हुई) है, क्योंकि इसने अभी तक खुद को अभिव्यक्त नहीं किया है। क्योंकि यह दिव्य जीवन शक्ति के साथ एकाकार होने की इच्छा की शक्ति है। और इसीलिए यह त्रिकोनाकर अस्थि में स्थित है – ’सेक्रम’ का अर्थ ‘पवित्र’, इसलिए लोगों को इसके बारे में पता था। और फिर जब यह बल विभिन्न चक्रों के माध्यम से उन्नत होती है और तालू भाग की (फॉन्टनेल) हड्डी क्षेत्र के माध्यम से भेदन करती है, तो आप वास्तव में अपने सिर से बाहर शीतल हवा निकलती हुई महसूस करते हैं।
इसके लिए आपको किसी भी चिकित्सा विज्ञान, किसी भी प्रयोगशाला की आवश्यकता नहीं है, बस ऐसे व्यक्ति के ऊपर अपना हाथ रखें और आप ऐसे व्यक्ति से बाहर निकलने वाली ठंडी हवा प्राप्त करें। केवल इतना ही नहीं, बल्कि वह व्यक्ति स्वयं अपने सिर से निकलने वाली ठंडी-ठंडी हवा को महसूस करता है। और कुछ समय बाद, वह महसूस करता है कि यह उसके हाथों से भी निकल रहा है। फिर वह इसका इस्तेमाल करने की कोशिश करता है। जब वह इसका उपयोग करता है, तो वह पाता है कि, यह वह शक्ति है जो सभी रोग मुक्ति करती है।
इसलिए, किसी भी व्यक्ति को यह समझना और स्वीकार करना होगा कि ‘मानव स्तर’ पर आप चौथे आयाम को प्राप्त नहीं कर सकते। आपको कुछ उन्नत बनना होगा । और यह वह चीज है जहां पैसे के लिए आपको धोखा देने वाले लोग आपका इस्तेमाल करते हैं, इस प्रकार की आप एक बाधा ग्रसित व्यक्ति बन जाते हैं। वे आपका ब्रेनवॉश करते हैं; आप एक अलग व्यक्ति बन जाते हैं। वे आप के अंदर कोई बाधा डाल देते हैं, आप ग्रसित हो जाते हैं और आप सोचते हैं कि आप पहले से ही कुछ अलग हैं। लेकिन मुद्दा भिन्न बन जाना नहीं है, उच्चतर होना सुनिश्चित करना है। और उच्चतर का अर्थ है, जिसका स्वयं पर पूर्ण नियंत्रण है; जो पूरी तरह से शांत है, जो शांति में है, जो करुणामय है और जो एक उच्च व्यक्तित्व है। कोई भी व्यक्ति, जो शारीरिक रूप से फिट है, आवश्यक नहीं है कि, उन्नत व्यक्तित्व है या चौथा आयाम उपलब्ध व्यक्ति है। इसके विपरीत, वे भी मेरे पास आते हैं और मुझसे मांगते हैं कि, “माँ, हमें शांति दे”।
वॉरेन: यदि अनुकम्पी (सिम्पेथेटिक) व्यवहार में अति पर रहने का मामला है तो परानुकम्पी (पैरासिम्पेथेटिक) संतुलन में रहने का मामला है।
श्री माताजी: लेकिन आप देखिए कि मैंने जो कहा है कि, कुल मिला कर यह परानुकम्पी (पैरासिम्पेथेटिक) है, एक शब्द में कहें तो, आपको यह स्पष्ट रूप से स्पष्ट कर देना चाहिए कि यह एक बिंदु पर संतुलन देता है, आप देखिये। संतुलन एक परिणाम है | काम करके अपनी ही ग़लती से सीखना, का एक नतीजा है| आप साइकिल चलाना कैसे सीखते हैं? पहले आप ग़लतियाँ करते हैं, आप लड़खड़ाते हैं, फिर आप नीचे गिरते हैं, फिर आप सीखेंगे। आप उनसे बात कर सकते हैं। यदि आपको यह कहना है कि शारीरिक भलाई ही इसका अंत नहीं है।
(इसके अलावा
हेलो, श्रीदेवी! श्रीदेवी, कैसी हो तुम? श्रीदेवी, क्या आप ठीक हैं? आज आप कैसा महसूस कर रही हैं? आज तुम बिलकुल नहीं रो रही हो।
(उसे उठाने की कोशिश करती हैं।) यह शांत हवा निकल रही है। काफी बेहतर? मैंने कल रात उस पर काम किया। आह!
हेलो श्रीदेवी! (एक बच्चा रो रहा है)
नहीं न! नहीं न! रोना नहीं।
अभी भी थोड़ा सा … क्या यह आ रहा है?