Raksha Bandhan and Maryadas

(England)

1984-08-11 1 Raksha Bandhan 1, 7'
Download video - mkv format (standard quality): Watch on Youtube: Transcribe/Translate oTranscribeUpload subtitles

1984-08-11 1 Raksha Bandhan 2, 43' Download subtitles: EN,ES,PT,RU,UK (5)View subtitles:
Download video - mkv format (standard quality): Watch on Youtube: Transcribe/Translate oTranscribeUpload subtitles

1984-08-11 1 Raksha Bandhan 3, 12' Download subtitles: ES,PT,RU,UK (4)View subtitles:
Download video - mkv format (standard quality): Watch on Youtube: Transcribe/Translate oTranscribeUpload subtitles

1984-08-11 1 Raksha Bandhan 4, 14'
Download video - mkv format (standard quality): Watch on Youtube: Transcribe/Translate oTranscribeUpload subtitles

1984-08-11 1 Raksha Bandhan 5, 19' Download subtitles: RU (1)View subtitles:
Download video - mkv format (standard quality): Watch on Youtube: Transcribe/Translate oTranscribeUpload subtitles

1984-08-11 1 Raksha Bandhan 6, 5' Download subtitles: EN (1)View subtitles:
Download video - mkv format (standard quality): Watch on Youtube: Listen on Soundcloud: Transcribe/Translate oTranscribeUpload subtitles

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk


(परम पूज्य श्रीमाताजी निर्मला देवी, रक्षाबंधन, मर्यादा, लंदन, 1984)


यू.के. के इस सुंदर दौरे के बाद मुझे भरोसा हो चला है कि सहजयोग ने अब अपनी जड़ें पकड़ ली हैं और उनमें से कुछ पौधों को उगते हुये भी आप देख सकते हैं। यह हैरान करने वाली बात है कि जैसे ही मैंने घोषणा की कि यह मेरा यू.के. का यह आखिरी दौरा होगा तो सब कुछ क्रियान्वित होने लगा है। जहां-जहां भी हम गये हमारा दौरा सफल और अच्छा रहा खासकर कुछ स्थानों पर तो यह अत्यंत चमत्कारपूर्ण भी था। आपने उस महिला के बारे में तो अवश्य ही सुना होगा जो अपने घर से बाहर निकलती ही नहीं थी …….. क्योंकि वह एग्रोफोबिया नामक रोग से पीड़ित थी। प्रेस ने हमें चुनौती दे डाली थी कि हमें उसको ठीक करना ही होगा क्योंकि वह अपने घर से बाहर निकल ही नहीं पाती थी। उसके फोटोग्राफ पर कार्य करने और थोड़े से उपचार मात्र से ही वह ठीक हो गई और अब वह अच्छी तरह से चल फिर लेती है। मीडिया ने अखबारों में बड़ी खबर बना कर इसे छाप दिया …….. जब गुरू माँ ने अपना वचन निभाया। यह उन चमत्कारों में से केवल एक है जबकि ऐसे कई चमत्कार घटित हो चुके हैं जिसकी रिपोर्ट भी आप देख सकते हैं। मुझे कहना चाहिये कि आप सभी सहजयोगियों ने मुझसे सहयोग किया, वे सभी बहुत सक्रिय और अत्यंत प्रोग्रेसिव भी थे। मुझे यह देखकर बहुत प्रसन्नता हुई कि वे आगे बढ़ना चाहते हैं और स्वयं में सुधार भी लाना चाहते हैं और वे सब मेरी आशाओं से भी अधिक अच्छा कार्य कर रहे हैं। मैं उन सबको देखकर अभिभूत हूं और आशा करती हूं कि बारह वर्ष पूरे होते-होते हम सब विश्व के सर्वोच्च सहजयोगी हो जायेंगे।
आज रक्षाबंधन का महान पर्व है और मुझे आप सबको रक्षाबंधन के विषय में कुछ बाताना है। इससे पहले हमें सहजयोगियों द्वारा पालन की जाने वाली कुछ मर्यादाओं के विषय में बात करनी होगी। एक बात जो मैंने पश्चिम में देखी कि भले ही हमें मूलाधार के महत्व के विषय में मालूम हो गया है … जो अत्यंत महत्वपूर्ण है …. पर जब तक हम अपने मूलाधार को पूर्णतया पुनर्स्थापित नहीं करेंगे तब तक हमारा उत्थान तीव्र गति से नहीं हो पायेगा। इसके बावजूद भी हम अपने आस-पास कुछ ऐसी चीज़ें देखते रहते है जैसे लोग सहजयोग में आकर अपना जीवन साथी ढूंढने लगते हैं। आपको इसकी बिल्कुल आज्ञा नहीं दी जायेगी … बिल्कुल भी नहीं दी जायेगी। आपको आश्रमों को … अपने केंद्रों को जीवनसाथी ढूंढने का केंद्र समझ कर उनकी मर्यादा खराब नहीं करनी है। आपको इस बात का सम्मान करना होगा …… इस बिंदु का सम्मान करना पड़ेगा। अगर आपको विवाह करने ही हैं तो सहजयोग से बाहर जाकर अपना जीवनसाथी तलाश कर लीजिये। लेकिन यदि आप सहजयोग में विवाह करना ही चाहते हैं तो आप सहजयोग में जीवनसाथी मत तलाश करते रहिये। यह सहजयोग के लिये भी और आप लोगों के लिये भी अत्यंत खतरनाक है। यह एक ऐसी चीज है जिसे सहजयोगियों के साथ कभी भी नहीं किया जाना चाहिये। सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिये आप सभी लोग भाई बहन हैं। इसीलिये मैं हमेशा दूसरे देशों के लोगों से या दूसरे केंद्रों के लोगों के बीच विवाहों को प्रोत्साहन देती हूं। 
आज हम विवाह करने जा रहे हैं जो अत्यंत बड़ा कार्यक्रम है। मुझे कहना पड़ेगा कि इस प्रकार से किये गये विवाह (दूसरे देशों या केंद्रों के लोगों के साथ) उन विवाहों की अपेक्षा काफी सफल रहे हैं जिनको यहां आकर चुनाव करने के बाद किया गया हैं। किसी भी सहजयोगी को स्वयं ही चुनकर उसके साथ विवाह (Arranged marriages) करना अत्यंत गलत है। यह अत्यंत खतरनाक है। मैं इस विषय में ज्यादा नहीं कहना चाहती हूं लेकिन ऐसे विवाह अधिक सफल नहीं हो पायेंगे क्योंकि ये परमात्मा के विरोध में हैं …. एकदम परमात्मा के विरोध वाली गतिविधि। आप लोगों को अपने ब्रह्मचर्य को विकसित करना है … आपको अपना मूलाधार ठीक रखना है। इसकी अपेक्षा आप किसी सहजयोगिनी या सहजयोगी को अपना जीवन साथी बनाना चाहते हैं … ये अत्यंत खतरनाक होने वाला है। आपका मूलाधार स्थापित हो ही नहीं सकता। मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि ये आपके आध्यात्मिक विकास के लिये काफी बड़ा आघात पंहुचाने वाली बात हो सकती है।
आपकी पूष्ठभूमि और आपकी कंडीशनिंग के कारण आप लोग यह नहीं समझते हैं कि सहजयोग केंद्रों पर और उस स्थान पर पावनता बनाये रखना कितना महत्वपूर्ण है। अतः एक ही शहर में इस प्रकार के संबंध बहुत गलत हैं। ये सबको खराब करते हैं। इससे भी ज्यादा खराब बात ये होती है कि लोग एक दूसरे की जोड़ी बनाकर उनके साथ मजाक करने लगते हैं कि तुम एक दूसरे के साथ बहुत अच्छे लगते हो। इस तरह से हंसी मजाक करके उन्हें बहुत आनंद आता है … ये मूलाधार का एक विकृत किस्म का आनंद है … कि वे एक दूसरे को चिढ़ाते हैं उनकी जोड़ियां बनाकर।… अरे तुम उसके साथ कितनी सुंदर लग रही हो … अच्छा हो कि तुम दोनों विवाह कर लो। यह एक तरह का रूमानियत भरा बेदूदापन है। निःसंदेह योगियों को ब्रह्मचर्य का पालन करना होगा लेकिन यदि आप ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर पा रहे हैं तो कम से कम (सहज) मर्यादाओं का पालन तो करें। जब तक आपके विवाह नहीं हुये हैं तब तक आपको आपस में जोड़ियां बनाकर एक दूसरे के साथ मज़ाक नहीं करना हैं …… न ही किसी अन्य प्रकार का बेहूदापन करना है। यह विवाह के आनंद को पूर्णतया नष्ट कर देता है क्योंकि फिर विवाहों में किसी प्रकार की भी उत्सुकता बाकी नहीं रहती है। और कई बार तो मैंने देखा है कि कुछ बेहद बेहूदे संबंध स्थापित हो जाते हैं। उनमें से कुछ तो बिल्कुल अच्छे नहीं होते और वो ढंग से स्थापित भी नहीं हो पाते। यदि हो भी जांय हैं तो ये संबंध अत्यत गलत हैं … और यदि स्थापित नहीं हो पाते तो भी हृदयविदारक होते हैं।
अतः आपको ये सब नहीं करना चाहिये। आपको अनुभव हो गया है कि जिन लोगों ने बाहर विवाह किये हैं वे सहजयोग में बहुत से सुंदर लोगों को लाये हैं। यदि आप यह कर सकें तो आपको ऐसा करना चाहिये। लेकिन यदि आपको सहजयोगियों से विवाह करना है तो आपको ऐसा सहजयोग की पावनता और आदर्शों को नष्ट करने के मूल्य पर ऐसा नहीं करना चाहिये। आपको अपने लिये … अपने आनंद के लिये सहजयोग का नाम खराब नहीं करना चाहिये। ये एक ऐसी चीज है जो मैंने देखी है। अतः आज के दिन … जो संबंधों की पावनता का दिन है.. हमें मालूम होना चाहिये कि आपको एक दूसरे से भाई बहन की तरह ही व्यवहार करना चाहिये …. किसी अन्य प्रकार का नहीं। अपने मस्तिष्क को इधर-उधर भटकने मत दीजिये। यदि आप ऐसा करते हैं तो इसका कोई अंत ही नहीं है।
जब ईसामसीह ने कहा था … कि आपकी आंखों में व्यभिचार नहीं होना चाहिये (Thou shalt not have adulterous eyes)। उन्होंने ऐसा इसलिये नहीं कहा था कि यह व्यावहारिक नहीं था। सहजयोगियों के लिये यह अत्यंत व्यावहारिक है। विवाहों के लिये चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। इसमें इतना महत्वपूर्ण क्या है? पहले भी कई लोगों ने विवाह किये हैं उनका का क्या हुआ? सहजयोग के कई विवाह भी इन्हीं बुरी आदतों के कारण असफल हो गये हैं। अतः अच्छा होगा कि आप विवाह से पहले ही इन आदतों को छोड़ दें क्योंकि यदि विवाह के बाद भी यही चलता रहा … लड़के और लड़कियों को ढूंढना तो बहुत मुश्किल हो सकती है। 
यदि इन आदतों पर विवाह से पहले ही लगाम नहीं लगाई गई तो ये बातें चलती ही जायेंगी। इसलिये विवाह से पहले किसी को भी इस प्रकार की चीजों को करने का प्रयास नहीं करना चाहिये। मैंने देखा है कि इस प्रकार के विवाह अभी तक कभी सफल नहीं हुये हैं और यदि हुये भी हैं तो नाम मात्र के लिये ही हैं। इनमें वैसा आनंद नहीं होता ही नहीं … ये बिना आनंद की कवायद मात्र होते हैं। यदि किसी एक के मामले में ये सफल हुआ हो तो इसका अर्थ कदापि यह नहीं है कि आपको इतनी कठिन चीजों से सहायता लेने की जरूरत है। समान्य विवाह करिये लेकिन जो मंगलमय और आनंददायी हों … जिनसे लोगों के आपसी संबंध मधुर व स्थाई बनें। 
अब हमें मर्यादाओं के विषय में समझना पड़ेगा जिनके बारे में पहले भी आपको बता चुकी हूं। पुरूष व स्त्री के बीच संबंध तभी पवित्र हो सकते हैं जब उनमें कुछ सीमायें हों। उदा0 के लिये यदि आपके पास एक बर्तन में दूध और दूसरे बर्तन में कुछ अन्य चीज रखी गई हो। एक बर्तन के पदार्थ की शुद्धता बनाये रखने के लिये आपको इसकी सीमाओं में रखना होगा … जैसे किसी प्याले में। यदि आपने दोनों को मिला दिया या वे गिर कर मिल गये तो उनकी शुद्धता खत्म हो जायेगी। ये भी बिल्कुल ऐसी ही सीधी सच्ची बात है। हमको समझना होगा कि किस प्रकार से एक दूसरे की पवित्रता और मर्यादा का किस प्रकार से समुचित सम्मान करना है। उदा0 के लिये एक लड़की जो उम्र में आपसे छोटी हो … आपको उससे दूरी बनाकर रखनी होगी। यदि वह आपसे उम्र में काफी बड़ी है तो ठीक है। आप उनके साथ बात कर सकते हैं.. हंसी मजाक कर सकते हैं … क्योंकि वह आपसे उम्र में काफी बड़ी हैं। लेकिन जो लड़की आपसे छोटी ….. बहुत छोटी हो … आपको उससे दूरी बना कर रखनी होगी … छोटे बच्चों से नहीं। आपको ये चीजें सीखनी होंगी कि किस प्रकार से दूरी बनानी चाहिये।
अब कोई पुरूष यदि आपसे उम्र में छोटा हो तो आपको उसके बारे में व्यर्थ की बातें नहीं सोचनी चाहिये … ये एकदम बेहूदा बात है। यदि कोई व्यक्ति आपसे उम्र में छोटा हो तो अपनी विकृत मनोवृत्ति के कारण ही आप कुछ इस प्रकार की बातें सोच सकती हैं। देखिये आपको उस व्यक्ति के विषय में इस प्रकार से नहीं सोचना चाहिये। ऐसा तभी किया जा सकता है जब किसी प्रकार की कोई आकस्मिकता हो … जब विवाह की कोई संभावना न हो… जब इतने अधिक पुरूष और उतनी ही स्त्रियां विषम परिस्थितयों में मौजूद हों (अस्पष्ट)। आज इस प्रकार की कोई परिस्थितियां नहीं हैं तो हमें सामान्य लोगों की तरह से व्यवहार करना चाहिये। जब हमको इतना उपयुक्त वातावरण प्रदान कर दिया गया है तो इसका उपयोग क्यों नहीं किया जाना चाहिये? तब हमें क्यों बेहूदा चीजों का सृजन करना चाहिये? इसके बाद वे मेरे पास आते हैं कि माँ हमने विवाह करने का निर्णय लिया है …… अब हमें विवाह कर लेना चाहिये। मुझे फिर हां कहना पड़ता है। कईयों को तो मैं हां कहना भी नहीं चाहती पर मुझे हां कहनी पड़ती है। लेकिन ये गलत उदाहरण स्थापित करना होता है। हो सकता है कि किन्हीं विशेष परिस्थितियों में मैंने किसी के लिये कोई चुनाव किया हो लेकिन इसका अर्थ बिल्कुल यह नहीं है कि आप चीजों को अपने हाथों में ले लें और यही करते चले जांय और बाद में मेरे लिये ….. और अन्य लोगों के लिये भी परेशानियां पैदा करें। वे कहेंगे कि ठीक है जब उसने अपने से बीस साल छोटी लड़की से विवाह किया है तो क्यों न मैं अपने से तीस साल छोटी लड़की से विवाह करूं? आपको मेरी समस्या समझनी चाहिये। यदि आप मुझसे किसी चीज के लिये पूछेंगे कि माँ क्या मैं ये काम कर लूं? तो आप मुझे उस काम के लिये जोर दे रहे हैं। मुझे हां कहनी पड़ती है क्योंकि मैं आपके साथ बहुत कठोर नहीं हो सकती क्योंकि मैं आपकी माँ हूं। परंतु आपको समझना होगा कि आपको मुझसे क्या पूछना चाहिये.. कितना पूछना चाहिये? ये सबसे बड़ी मर्यादा है जो आपको सीखनी है। आप अचानक से आते हैं और पूछते हैं कि माँ क्या मैं यहां बैठ सकता हूं? क्या मैं इस व्यक्ति को यहां बैठा सकता हूं? मैं क्या कहूंगी … आपको स्वयं ही इस प्रकार के प्रश्न नहीं पूछने चाहिये। क्योंकि कई बार आप लोग किसी व्यक्ति को अनावश्यक महत्व देने लगते हैं … मेरा भाई… मेरी बहन और उस व्यक्ति को मेरे सिर पर लाकर खड़ा कर देते हैं। कई बार आप मुझे फोन करके कहते हैं कि माँ वो लड़की आपसे बात करना चाहती है। वह कौन है… क्या वह ठीक है क्या हम उसे माँ के पास लेकर जा सकते हैं ….. वह माँ से बात करने लायक है भी या नहीं। उसकी स्थिति कैसी है? क्या वह माँ को परेशान करेगी? इसके बारे में कोई नहीं सोचता है। अतः आपको पहले मेरे साथ उपयुक्त समझ का अपना संबंध स्थापित करना चाहिये कि आप मुझे परेशान नहीं करेंगे। लेकिन ये एक ऐसी चीज है जो अब तक मेरे हाथ में नहीं है। मैं सोचती हूं कि लोगों को ये समझ में नहीं आता कि वो कर क्या रहे हैं। तो पहले तो आप ये सोचें कि मुझसे फायदा उठाने का प्रयास न करें। दूसरी बात मेरे पास उन लोगों को न लांय जो इसके योग्य नहीं हैं। उनके लिये मेरा समय बरबाद करने का प्रयास न करें। मेरे पास इतना कुछ करने को है .. कई आइडिया … नये विचारों को क्रियान्वित किया जाना है । मुझे अत्यंत कठोर परिश्रम करना है। मैं आप सबमें से … जो सहजयोग करते हैं … अधिक परिश्रम करती हूं। और इस उम्र में यदि आपने मुझे परेशान किया तो … मुझे मालूम नहीं है कि मुझे आपसे किस प्रकार से बात करनी चाहिये … कि आप लोग मुझे परेशान न करें। उसी व्यक्ति के सामने आप उसको मेरे सिर पर खड़ा कर देंगे … ओह माँ वह टिम्बकटू से आया….. है और मैं इसे आपके पास ले आया हूं। कृपया ऐसा करने का प्रयास कतई न करें। ये बहुत गलत बात है। अतः पहले तो मेरे साथ ही मर्यादाओं को स्थापित करने का प्रयास करिये और समझिये कि आपको मुझे परेशान नहीं करना है। 
इसी तरह से कई चीजें ऐसी हैं जो लोग मुझ पर थोपने का प्रयास करते हैं.. मैं कहती हूं हां ठीक है। मैं अत्यंत चालाक और चतुर हूं और इस प्रकार से बोलती हूं कि आप समझ जांये कि मुझे ये बात जरा भी आनंद देने वाली नहीं लगी है।
इसी प्रकार ऐसी कई चीजें हैं जो लोग मुझ पर थोपने का प्रयास करना चाहते हैं और मैं हां कह देती हूं। लेकिन इस मामले में मैं बड़ी चालाक और चतुर हूं क्योंकि मैं इस प्रकार से बातें कहती हूं कि आप को ज्ञान हो जाय कि जो कुछ भी आप कह रहे हैं वह बिल्कुल भी आनंददायक नहीं है। चलो जो भी है ठीक है। दूसरी बात आपके बीच के संबंधों की मर्यादा शुद्ध प्रेम और पावनता की है। अगर आप पवित्र और शुद्ध संबंध नहीं विकसित करते हैं तो आप बरबादी की ओर अग्रसर हैं। देखिये इस अंगुली का हाथ से पवित्र संबंध होना चाहिये। माना ये अंगुली हाथ के बारे में कुछ गलत सोचती है तो वह इसे खराब कर देगी। इसी प्रकार से एक दूसरे से हमारे संबंध भी अत्यंत पवित्र होने चाहिये। इसका अर्थ है कि हमें बिना किसी वासना और लालच के अपना हृदय दूसरे व्यक्ति को दे देना चाहिये …. हमें इसका प्रयास करना चाहिये। एक दूसरे की सहायता करने का प्रयास करें। मैं समझती हूं यदि दूसरे व्यक्ति के लिये आपके मन में लालसा और वासना का भाव है तो आपको मालूम होना चाहिये कि ये सहजयोगियों के लिये नहीं है … जो सहजयोगी नहीं है उनके लिये है जो उस व्यक्ति में अत्यधिक दिलचस्पी लेने लगते हैं। यह आसक्ति का अत्यंत तुच्छ तरीका है। लेकिन सहजयोग में आपकी आसक्ति अपनी आत्मा से है और आत्मा हमारे अस्तित्व का पवित्रतम रूप है। हमें इसको अत्यंत पावन बनाये रखना है। तब इसका आनंद रोमांस, विवाह और अन्य किसी भी सांसारिक वस्तु से बहुत अधिक होगा। यह सर्वोच्च और सर्वश्रेष्ठ आनंद होगा। लेकिन पहले उसे प्राप्त कर लें। सबसे पहले तो आपको बहुत ऊंचा उठ कर उसे प्राप्त करना है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।
अब किसी महिला और पुरूष के संबंध में मर्यादायेः
मैंने आपको बताया है कि आपको किसी भी महिला के भी शयन कक्ष में नहीं जाना चाहिये। यह अऩुचित है। और न ही महिलाओं को पुरूषों के शयन कक्षों में प्रवेश करना चाहिये। लेकिन आपके लिये यह बहुत ही सामान्य बात है। महिलाओं को अन्य (गरिमाविहीन) महिलाओं जैसा व्यवहार नहीं करना चाहिये। जैसा कि मुझे महाराष्ट्र में बताया गया कि महिलाओं ने पुरूषों के सभी वस्त्र निकाल लिये। मेरा मतलब है यह इंग्लैंड नहीं है … यहां के लोगों को तो यह देख कर गहरा आघात पंहुचा। वे लोग तीन-चार दिन तक खाना भी नहीं खा सके। उन्होंने अपने जीवनकाल में इस तरह की महिलायें ही नहीं देखी थीं। अतः आपको उन्हें इस तरह के झटके देने का कोई अधिकार नहीं है।
क्योंकि यदि आप किसी अन्य देश में जाते हैं तो आपको मालूम होना चाहिये कि वे लोग किस प्रकार से रहते हैं। इस तरह से बिल्कुल नहीं किया जाना चाहिये। किसी को भी इस तरह से नग्न नहीं किया जाना चाहिये और यदि अनायास ही आपके सामने बीस लड़कियां यदि नग्न हो जांय तो क्या होगा? अतः महिलाओं और पुरूषों के बीच लाज और शर्म की भावना को विकसित किया जाना चाहिये जो अत्यंत गरिमामय और सुंदर बात है। यदि आपके अंदर लाज व शर्म या शर्मीलेपन का भाव है तो इससे आपके अंदर एक अतिरिक्त आकर्षण पैदा होगा। देखिये आपकी प्रिंसेस ऑफ वेल्स को कितना खूबसूरत समझा जाता है। उनमें थोड़ा लज्जा का भाव है….. वह कुछ लजीली हैं। उनकी लज्जा का यह गुण अत्यंत स्वाभाविक है। लेकिन आपके अंदर उस प्रकार का लज्जाभाव नहीं है। मुझे नहीं मालूम कि कि कोई पशु भी ऐसा नहीं होगा जिसमें शर्मो हया नहीं होती। प्रत्येक व्यक्ति में शर्मो हया की समझ होती है यहां तक कि पशुओं में भी तो फिर हमारे अंदर क्यों नहीं शर्मो हया का भाव होना चाहिये? महिलाओं के प्रति हमारा व्यवहार किस प्रकार का होना चाहिये। मैंने एक महिला को इंग्लैंड से भारत जाते हुये देखा और उसने किन्हीं श्रीमान मोदी की पीठ पर जोर से एक थप्पड़ लगाया कि वह भौचक रह गये वह कह रही थी हलो मि0 मोदी आप कैसे हैं? लेकिन मि0 मोदी हैरान थे। उस महिला का उन्हें परेशान करने का कोई इरादा नहीं था उसका दोष भी नहीं था परंतु सहजयोग हमें इस प्रकार से व्यवहार नहीं करना है। किसी भी अत्याधुनिक फैशनेबल महिला की तरह से व्यवहार नहीं करना है। लेकिन आपको समझना होगा कि आपके अंदर लज्जा का भाव अवश्य होना चाहिये। यहां तक कि मेरे साथ भी किस प्रकार से बात करनी चाहिये उन्हें नहीं मालूम। अपने हाथ ऐसे करके कहेंगे कि माँ देखिये ऐसा हो रहा है … वैसा हो रहा है। लेकिन ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। नम्रतापूर्वक व विनम्रता से बात करने का प्रयास करें। अभी उस दिन मुझे एक बहुत अच्छा टैक्सीवाला मिला। मैं आपको बताना चाहती थी कि उसके हाव भाव बहुत ही सुंदर थे। तुरंत ही मैंने कहा कि यह एक साक्षात्कारी व्यक्ति है। वह बात करते हुये अपने हाथ बांधे हुये और आंखे नीची किये रहता था। वह बिल्कुल भी इस प्रकार से बात नहीं करता था। वह बहुत ही अच्छा आदमी था… उसके हाव भाव भी बहुत ही नम्र थे। वह इंग्लिश ही है और यहीं पला बढ़ा है। वह अपनी भाषा में आपके उस मूर्ख खिलाड़ी की तरह किसी भी गलत शब्द का प्रयोग नहीं कर रहा था। जब प्रिंसेस एन उस खिलाड़ी से मिलने के लिये गईं तो उसने उन्हें बहुत बुरा भला कहा। यह एक तरह का अहंकार है … या फिर मूर्खता है .. क्या है यह मुझे भी नहीं मालूम। आप किस तरह से बातें करते हैं … किस तरह से बोलते हैं … हरेक चीज संतो की तरह से होनी चाहिये। अब आप संत हैं। अतः एक दूसरे से किस प्रकार आप गरिमामय ढंग से बात करें … किस प्रकार से आप एक दूसरे से गरिमामय तरीके से व्यवहार करते हैं ….. किस प्रकार से आप उनका सम्मान करते हैं … किस प्रकार से रहते हैं … यह सब बातें अत्यत महत्वपूर्ण हैं। आपक व्यवहार संतों का तरह से होना चाहिये। … आपको संत बनना है और ऐसा करना आपके लिये बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है। यह भी अत्यंत महत्वपूर्ण है… मुझे आपको बताना है कि यदि आप इन मर्यादाओं का पालन नहीं करते हैं तो यह सहजयोग का अंत हो जायेगा … बिल्कुल अंत हो जायेगा। यह आवश्यक बात सभी को मालूम होनी चाहिये।
मैंने बार बार आपको कहा है कि आपकी वेषभूषा कैसी होनी चाहिये… आप कितने सहनशील हैं .. किस तरह से बात करते हैं … किस प्रकार से बिना स्वयं अधिक बोले हुये आप दूसरों की बाते सुनते हैं … किस प्रकार से आप अपनी उग्रता पर नियंत्रण रखते हैं। ये कुछ बाते लोगों को प्रभावित करने के लिये और सहजयोग की अभिव्यक्ति के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है। मैं आपको बताना चाहती हूं कि पहले ही लोग आपके बारे में कहने लगे हैं कि ये कितने सुंदर लोग हैं। ये तो एकदम अलग प्रकार के लोग हैं … बिल्कुल अलग तरह के लोग। लोग आपके बारे में यही कहते हैं। लेकिन अभी भी आपके अंदर कुछ कमियां हैं। आप उस स्तर तक जाने लगते हैं जो आपके लिये… आफकी गरिमा के लिये … आपके जैसे संतों के लिये बिल्कुल भी उचित नहीं है। हम सब पैगम्बर हैं और पैगम्बरों को पैगम्बरों की ही तरह से व्यवहार करना चाहिये। वे क्षुद्र लोगों का तरह से बर्ताव नहीं कर सकते हैं। तो हमें इस तरह की मर्यादाओं की भी समझ होनी चाहिये।
अब आपके अगुआओं के संबंध में मर्यादायेः 
आपको उनके प्रति आदर व सम्मान का भाव होना चाहिये। मैंने देखा है कि कोई भी किसी को … बच्चे भी बड़ों को इस तरह से बुलाते हैं (अस्पष्ट) जो ठीक नहीं है। उन्हें कहना चाहिये अंकल या कुछ और। आपको अपने बच्चों को सिखाना चाहिये कि बड़ों को अंकल या भैया या इसी तरह से कुछ आदरसूचक शब्दों से बुलाना चाहिये। अपने से बड़ों को सम्मान देना सीखिये। लेकिन जब अगुआ को ही आप आदर नहीं देते हैं तो फिर और किसी चीज का प्रश्न ही नहीं पैदा होता।
मैंने छोटे-छोटे लड़कों को…. तीन चार बच्चों के माता पिता को नाम लेकर बुलाते हुये सुना है। लेकिन ये हमारी शैली नहीं है। आपको ऐसा कभी नहीं करना चाहिये। मैंने देखा है कि मेरे पति के ऑफिस में भी यही समस्या है। जब मैं यहां आई तो लोग उन्हें टॉम कहकर बुलाते थे। वे इतनी बड़ी उम्र के व्यक्ति हैं। लेकिन मि0 सी. पी. हमेशा अपने ड्राइवरों तक को श्रीमान क ख या ग कहकर बुलाते थे। हमें ये समझ में नहीं आया कि ऐसा क्यों है? देखिये शायह यह प्रजातांत्रिक होना है या कुछ और … इसी तरह से लोग प्रजातांत्रिक होते हैं। हमें दूसरों को आदर देना चाहिये… एक दूसरे को सम्मान देना चाहिये … उनको आदर सूचक शब्दों से पुकारना चाहिये। खासकर से जब हम मीटिंग में हों तब एक दूसरे को … उनको मि0 क…ख आदि नामों से पुकारें। मैं यदि आपको इस तरह से पुकारती हूं तो ठीक है क्योंकि आप मेरे बच्चे हैं। अगर मैं किसी को मि0 ब्राउन या मि0 रीब्ज कहकर पुकारूंगी तो यह बहुत हास्यास्पद लगेगा क्योंकि वे मेरे बच्चे हैं और मैं उनकी माँ हूं। लेकिन चूंकि आप लोग हम उम्र हैं तो आपको कम से कम उन्हें मि0 क ख आदि कहकर पुकारना चाहिये या उन्हें किसी और सुंदर तरीके से पुकारें। जिस प्रकार से अंग्रेजी भाषा में प्लीज… थैंक यू जैसे बहुत से शब्द हैं तो इन्हीं की तरह के शब्दों का बहुतायत से उपयोग करें। 
मर्यादा का अर्थ यह है कि यदि आपने किसी को भी बहन या भाई कह दिया तो यह कहने मात्र के लिये नहीं कि आप मेरी बहन है। यह एक अत्यंत स्वाभाविक व अंतर्जात गुण है और अत्यत गहन बात है। क्योंकि ऐसा कहने से ही आप उन्नत हो पायेंगे और आपकी बांई विशुद्धि में सुधार होगा … आपकी विष्णुमाया संतुष्ट होंगी। यदि आप किसी को माँ, बहन कहेंगे या किसी से इस प्रकार के मातृवत या बहन जैसे संबंध रखेंगे तो आपके अहं में कमी आ जायेगी जो आपकी बांई विशुद्धि में छिपी रहती है। जिसको भी आप बहन या भाई कहें उसके प्रति विनम्र रहने का प्रयास करें। उसका साथ दें .. उसकी देखभाल करें …. उसकी सुरक्षा के लिये प्रार्थना करें। परंतु आपको उसे कुछ देना भी चाहिये … उसकी देखभाल करनी चाहिये… अपने घर पर उसका स्वागत करना चाहिये और उसे अपने ही अस्तित्व का अंग समझना चाहिये क्योंकि वह आपका अत्यंत करीबी व्यक्ति है … आपका भाई है। परंतु ऐसे किसी भी भाई को अपनी पत्नी का तिरस्कार नहीं करना चाहिये। ये भी एक मर्यादा है कि यदि कोई महिला किसी को भाई कहती है तो उसे भाई की पत्नी और भाई के बीच मतभेद पैदा करने का प्रयास नहीं करना चाहिये। यह सबसे खराब बात है कि आप उनके बीच मतभेद पैदा करें। जो भी इस प्रकार का कार्य करता है उसे मालूम होना चाहिये कि वह कितना नीच व्यक्ति है। पति पत्नी के बीच दरार पैदा करने का प्रयास न करें। मुझे मालूम है कि पति और पत्नी के बीच समस्यायें होती हैं … पर उन्हें मैं ठीक करूंगी। परंतु आप उनके बीच में दरार न डालें और न ही कोई समस्या खड़ी करें। यदि उनकी कोई समस्या है भी तो उनको ठीक करना मेरा काम है … आपको उन्हें ठीक नहीं करना है। उनके वैवाहिक जीवन में भी हस्तक्षेप न करें। वे जैसे हैं वैसे ही रहने दें। मैं देखूंगी कि वे कैसे हैं और फिर मैं उनकी सहायता करने का प्रयास करूंगी। उनके वैवाहिक जीवन से खिलवाड़ करना ठीक नहीं है और न ही उनकी वैवाहिक जीवन की समस्याओं से। और उनकी समस्याओं में कूद पड़ना भी बहुत गलत है लेकिन यहां पर ये एक सामन्य बात है। यदि कोई महिला परेशानी में है तो कोई पुरूष आगे आकर उसकी सहायता करेगा और बाद में उसके साथ भाग जायेगा। इसी प्रकार से वे उस महिला की परेशानियों को हल करने की अपेक्षा और उलझा देते हैं। लोगों को इसी प्रकार से समझना चाहिये कि दिल लेना-देना एक तरह की क्षुद्र हरकत है …… यह सहजयोग नहीं है। हमारे हृदय में आत्मा का वास है। हम गरिमामय लोग हैं और इसी गरिमा में हमे उन्नत होना है और गरिमामय तरीके से रहना है। हमें इस तुच्छ तरीके से अपनी आत्मा का अपमान नहीं करना है और न ही इसका अपमान किसी अन्य को करने देना है।
बच्चों के साथ संबंधों को भी हमें समझना होगाः मैंने लोगों को देखा है कि लोग बच्चों के विषय में कहते रहते हैं ओह ये बच्चा तो ऐसा है … वैसा है। यह मत करिये …. उनके माता पिता को ही उन्हें हैंडल करने दें। दूसरों के बच्चों के साथ हस्तक्षेप न करें। यदि आप किसी बच्चे के विषय में बताना चाहते हैं तो उन्हें मेरे पास लांये मैं बच्चे को ठीक करूंगी। लेकिन यदि आपके कारण बच्चा बिगड़ रहा है तो ये भी बहुत ही खराब बात है … कि आप किसी बच्चे को बिगाड़ें। आपको मालूम होना चाहिये कि बच्चे बहुत होशियार और चतुर होते हैं। वे गड़बड़ियां करने में बहुत ही कुशल होते हैं क्योंकि वे अत्यंत बुद्धिमान होते हैं। वे साक्षात्कारी आत्मायें हैं जिन्होंने इस देश में जन्म लिया है। देखिये क्या संयोजन है … क्या व्यवस्था है। उनकी ट्रेनिंग के मामले में भी आपको अत्यंत सावधान रहना है। पहले पांच वर्षों में सभी माता-पिताओं को बच्चों के साथ अत्यंत सख्त होना चाहिये। उनको अपने सिर पर मत चढ़ाइये या उन्हें स्वयं को बेवकूफ न बनाने दें। यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि आपने ऐसा किया तो वे आपके सिर पर बैठ जायेंगे। उन्हें ऐसा न करने दें अन्यथा एक दिन आप ही मुझसे आकर कहेंगे कि माँ मैं क्या करूं … ये तो आत्मसाक्षात्कारी बच्चे हैं और हम उनकी देखभाल भी कर रहे हैं। परंतु वे देवी देवता नहीं हैं कि उनकी पूजा अर्चना की जाय। वे केवल आत्मसाक्षात्कारी बच्चे हैं। उन्हें वहीं तक रहने दें। आप उन बच्चों के लिये मेरे ट्रस्टी हैं। यदि आपने उनको बिगाड़ा तो फिर इसका दायित्व भी आप ही लोगों का होगा। सहजयोगियों के रूप में आप इन बच्चों का जीवन बिगाड़ने का और उनके उत्थान को प्रभावित करने का आपका कोई अधिकार नहीं है। अतः आपको समझना होगा कि यदि वे आत्मसाक्षात्कारी बच्चे हैं तो कोई भगवान नहीं हैं। वे बिगड़ नहीं सकते ऐसा मत सोचिये …. वे इन सब चीजों से परे नहीं है। अतः समझें कि बच्चों के साथ व्यवहार में थोड़ी सख्ती भी बरतें। उनको मालूम होना चाहिये कि ध्यान किस प्रकार से करना है … उन्हें मालूम होना चाहिये कि प्रार्थना किस प्रकार से करनी है … उन्हें यह भी मालूम होना चाहिये कि किस प्रकार से लोगों का आदर सम्मान किया जाना चाहिये। अपने बच्चों को सभी अच्छी चीजें सिखाइये। उन्हें सिर मत चढ़ाइये। कई लोगों ने इसी तरह से अपने बच्चों का जीवन बरबाद कर दिया है। क्या आप अब देखेंगे कि बच्चों को किस स्तर पर लाया जाना चाहिये। यदि बच्चा आपसे मनमानी कर रहा है … शैतानी कर रहा है और आपकी बात नहीं सुनता है तो उसे किसी दूसरे ऐसे सहजयोगी को ठीक करने के लिये दे दीजिये जिसको आप समझते हों कि वह उसे सुधार सकता हो। प्रारंभ में ही उसे सुधार लें तो बेहतर है क्योंकि हमें ऐसे बच्चे नहीं चाहिये जो बिगड़े हुये हों और दूसरों को भी बिगाड़ते हों और न ही हमें अपने बच्चों को इस तरह के बच्चों के साथ रखना है जो उन्हें बिगाड़ें ताकि आपके बच्चे अच्छे… समझदार….. चतुर व विवेकवान बच्चे हों। यदि आप उनकी देखभाल ठीक तरीके से नहीं करते हैं तो वे न केवल आपके लिये बल्कि दूसरों के लिये भी बोझ बन सकते हैं। वे हमारी जिम्मेदारी हैं और हमें उनकी देखभाल करनी है। अतः माता पिता और बच्चों का संबंध भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। वास्तव में माताओं को बच्चों की अधिक देखभाल करनी चाहिये। बच्चे को आदर करना सिखाइये। पिता को बच्चे की उपस्थिति में उसकी माँ को डांटना नहीं चाहिये। ये बात आपको समझनी चाहिये क्योंकि यदि आपने ऐसा किया तो बच्चा भी माँ का सम्मान नहीं करेगा। माता व पिता दोनों के सम्मान को बनाये रखना चाहिये। यदि माँ पिता का सम्मान करती है तो बच्चा माँ और पिता दोनों को सम्मान देने लगेगा। बच्चों को इसी तरह से व्यवहार करना चाहिये। पत्नियों को पतियों पर प्रभुत्व नहीं जमाना चाहिये। बच्चे आपसे ही यह सब सीखते हैं। खासकर बच्चों के सामने अपने पतियों पर प्रभुत्व न जतायें। ये बहुत गलत है। बच्चे आपसे ही ये ट्रिक सीखते हैं और फिर आप पर ही प्रभुत्व जमाने लगते हैं। अतः अपने पतियों का इस प्रकार से सम्मान करें कि बच्चों को पता चल जाय कि पिता का सम्मान किया जाना चाहिये। बच्चे तो बंदर की तरह से होते हैं। जैसा भी व्यवहार आप करेंगी वैसा ही वह भी करेंगे। यदि आपने उनके सामने व्यवहार का आदर्श नमूना पेश किया तो वे भी वही ग्रहण करेंगे। अभी कुछ दिन पहले मैं सोच रही थी कि किस प्रकार से भारतीय बच्चे इतने आज्ञाकारी और संवेदनशील होते हैं। वे कभी नहीं कहेंगे कि मुझे ये चाहिये … या वो चाहिये। वे कभी चालाकियां नहीं करेंगे। ऐसा किस प्रकार से होता है।
है। इसका कारण शायद घर का माहौल है। सभी को मालूम होता है कि किसका सम्मान किया जाना चाहिये… और किस प्रकार से किया जाना चाहिये… व्यवहार कैसा होना चाहिये। सहजयोग में भी आपके संबंध इससे भी अच्छे होने चाहिये। ये मैं आपको पहले भी बता चुकी हूं कि यदि आप एक कमरे में हैं तो दूसरे को भी उस कमरे में रहने दें। यदि आपको पैसे देने हैं तो दूसरे व्यक्ति के पैसे भी दे दें न कि उसका इंतजार करें कि वही आपके पैसे दे दे। स्वयं यह करें और इसके लिये दौड़कर आगे आंये। यदि कोई अपना सामान ले जा रहा है तो उसकी सहायता करें। एक सहजयोगी को इसी प्रकार से होना चाहिये। वहां अधिकांश बच्चे इसी तरह के हैं। वे कहेंगे मैं यह काम करूंगा… मैं यह लेकर आऊंगा। चाहे आप इसे उऩका अहं कहें पर आप सबको भी पूरे समाज में इसी तरह की छवि प्रस्तुत करनी चाहिये। किसी को भी किसी चीज की आवश्यकता हो तो आप दौड़कर उस चीज को ले आंये। आपको पानी की आवश्यकता है … आपको ये चीज चाहिये … मुझसे ले लीजिये। खाने के मामले में भी … पहले दूसरों को खाने दीजिये न कि पहले स्वयं खा लें। आप खाना किस प्रकार से खाते हैं … यह भी बहुत महत्वपूर्ण है … बच्चों के लिहाज से प्रत्येक चीज बहुत महत्वपूर्ण है।
पैसों के मामले में भी मैंने देखा है कि लोगों को बहुत ही समझदार होना चाहिये और उनको पर्याप्त मर्यादाओं का ज्ञान भी होना चाहिये।
मेरे साथ भी जिस तरह की मर्यादायें आप रखना चाहते हैं रखिये। इसके बारे में बात करने में मुझे अत्यंत संकोच होता है। परंतु अभी तक आप जानते ही हैं कि मैंने कई प्रकार के कार्यों के लिये अपना कितना पैसा लगाया है। पिछली बार भी कितने लोगों ने यहां पर खाना खाया … लेकिन कोई बात नहीं है परंतु जब हम मर्यादाओं की बात कर रहे हैं तो हमें इस बात का भी ज्ञान होना चाहिये कि माँ को अब अधिक पैसा खर्च नहीं करना चाहिये क्योंकि हम इतने सारे लोग हैं तो जहां तक संभव है हमें अपनी व्यवस्था स्वयं करनी चाहिये। अभी कल ही बीबीसी का एक व्यक्ति मुझे मिला वह कहने लगा कि यह गलत है आप लोगों से बिल्कुल भी पैसे नहीं लेतीं। मैंने कहा पैसे लेने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता।… मैं तो उल्टे स्वयं ही उनका पैसा देती हूं। मैंने उसको बताया यह इतनी अमूल्य चीज है कि इसका आप पैसा ले ही नहीं सकते हैं। आत्मा बहुत ही अमूल्य है और इसके लिये आप किसी तरह का पैसा नहीं ले सकते हैं। लेकिन वह जिद कर रहा था और उसने इसी विषय पर मेरा आधा घंटा लिया। उसने कहा कि उसका एंग्लो-सेक्सन मस्तिष्क इस बात को कभी भी स्वीकार नहीं कर सकता कि आप इस कार्य के लिये पैसा न लें… कृपया इसको अधिक मनी-ओरियेंटेड बनाइये या ऐसा ही कुछ और। मैंने कहा कि नहीं। उसको चुप कराने के लिये मैंने कहा कि ईसामसीह ने कितना पैसा लिया था? परमात्मा की कृपा से मेरे पास धन की कोई कमी नहीं है और मुझे धन चाहिये भी नहीं। ईसामसीह को तो जरूरत भी थी लेकिन उन्होंने कभी किसी से पैसा लिया ही नहीं। तब वह व्यक्ति चुप हो पाया। लेकिन लोग सोचते हैं कि यह आपको आसानी से मिल गया है तो इसका फायदा उठाना चाहिये जो एकदम गलत बात है। आपको इसके लिये आदर का भाव होना चाहिये और समझना चाहिये कि सहजयोग का फायदा उठाना ठीक बात नहीं है। इसके विपरीत जब भी संभव हो सहजयोग के लिये कुछ करने का प्रयास करें। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। समर्पण का प्रयास करें। आपको मालूम है कि मैं आपसे पैसा या कुछ भी नहीं लूंगी। लेकिन सहजयोग के लिये पूर्णतया समर्पित होने का प्रयास करें। ये सबसे अच्छा तरीका है और इसी तरह से लोग इसमें बहुत उन्नत हुये हैं और उन्होंने बहुत अच्छा कार्य किया है।
आप लोगों, विभिन्न समूहों , विभिन्न राष्ट्रों के बीच की मर्यादायेः
हम लोगों को दूसरों की सहायता करने का प्रयास करना चाहिये। माना कोई दंपत्ति भारत जाकर विवाह करना चाहते हैं और यदि उनके पास वहां जाने के लिये धन नहीं है … निःसंदेह उनके लिये मैं भी वहां हूं। मैंने कहा उनको पैसा वैसा देने की जरूरत नहीं है मैं स्वयं उनका पैसा दूंगी। लेकिन वॉरेन ने जिद पकड़ ली कि कुछ समय के लिये क्यों नहीं हम लोग या केंद्र उनकी सहायता कर सकते हैं माँ ? अब उन लोगों ने उस समय उसकी सहायता की क्योंकि उसके पास पैसे नहीं थे। वह भारत गया …विवाह किया और बाद में गायब हो गया। देखिये उसका व्यवहार गलत था। वह किसी से भी बात तक नहीं करता था … और वो वह स्वयं को कुछ विशेष ही समझता था और बाद में तो उसका व्यवहार अत्यंत हास्यास्पद हो गया। इसके बाद इन लोगों के दिमाग में ये बात आने लगी कि हम क्यों ऐसे लोगों का खर्च उठायें जो काम निकलने के बाद इस प्रकार का व्यवहार करते हैं? क्या ये स्वाभाविक प्रतिक्रिया है कि यदि कोई आपकी सहायता करे तो आप उनके साथ दुर्व्यवहार करें। ऐसा नहीं होना चाहिये। हो सकता है कि ऐसा केवल एक व्यक्ति ने किया हो … हो सकता है कि सभी लोग ऐसे न हों। वे कहते हैं कि जिसकी भी वे सहायता करते हैं उस व्यक्ति के बीच और सहायता करने वाले के बीच एक प्रकार का अवरोध पैदा हो जाता है क्योंकि उस व्यक्ति के अहं को चुनौती मिलती है और अनायास ही वह ऐसा व्यवहार करने लगता है जैसा पहले कभी देखा नहीं गया। इस व्यक्ति का व्यवहार काफी अजीबोगरीब हो जाता है और वह किसी से बात ही नहीं करना चाहता है। वह बाहर ही रहता है और अपने अहं के कारण पगला जाता है। उसके अहं को इससे चोट पंहुचती है। पर इसमें बुरा मानने की कोई बात नहीं है। अगर आपके पास पैसे नहीं हैं और आप सभी एक ही शरीर के विभिन्न हिस्से हैं … कौन सी बड़ी बात है यदि किसी ने आपका पैसा दे दिया है तो? जब आपकी स्थिति सुधर जाय तो आप भी किसी की सहायता कर सकते हैं। लेकिन जब आपकी बारी आती है तो आप ये काम नहीं कर पाते हैं तो किसी का भी इस तरह का व्यवहार काफी बचकाना है। कोई बात नहीं लेकिन फिर भी हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि हमें ज्यादा से ज्यादा दूसरों की सहायता करनी चाहिये। जैसा भी बन सके हमें सबकी सहायता करनी चाहिये। यह बहुत महत्वपूर्ण है। यदि हम सहजयोगियों की सहायता नहीं कर सकते हैं तो फिर किसकी सहायता कर सकते हैं? अतः हमें सभी की सहायता करनी चाहिये।
अब सहजयोग के अंदर, सूक्ष्म रूप से ही हमें किसी के वाइब्रेशन नहीं चेक करने चाहिये। लोगों में यह बात बहुत ही आम है। वे कहेंगे आपका आज्ञा पकड़ा हुआ है। आपके अंदर कुछ ये है … वो है.. आइये मैं आपको ठीक कर देता हूं। बस सुबह से शाम तक आप बैठ जाते हैं। बिना ध्यान किये ही वो एक दूसरे के चक्रों को स्वच्छ करने लगते हैं और बाद में स्वयं ही पकड़ जाते हैं। यह एकदम गलत विचार है। प्रत्येक सुबह आपको को मेरे फोटोग्राफ के सामने बैठकर, चैतन्य का अनुभव करना चाहिये। ये सब अनुशासन में होना चाहिये। आपको मालूम होना चाहिये कि सहजयोग की प्रणाली इस प्रकार से क्रियान्वित हो गई है कि मैंने आप लोगों को आत्मसाक्षात्कार दे दिया है …. कह सकते हैं कि आपको प्रकाशित कर दिया गया है। अब आपको अपने दीपक या लैंप का खयाल रखना है कि यह स्वच्छ है या नहीं … ये कार्य तभी हो सकता है जब आपके अंदर प्रकाश हो जाय या आप प्रकाशित हो जांय। अपने लैंप को देखें कि यह प्रकाशित है या नहीं। देखिये कि ……. क्या कोई व्यक्ति अत्यंत उग्र है यदि हां तो आप सभी लोग उस व्यक्ति को बतायें या अपने अगुआ से कहकर उसमें सुधार लाने का प्रयास करें। लेकिन प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे को जज करने का अधिकार नहीं है। अच्छा हो यदि आप स्वयं को जज करें … स्वयं को स्वच्छ करें अपनी देखभाल करें और देखें कि आपके दीपक या लैंप किस स्थिति में हैं? क्या यह स्वच्छ हैं? माँ ने हमें देखने के लिये प्रकाश दिया है तो हमें उसको क्यों नहीं देखना चाहिये? अगर आप इसी तर्ज पर इसे क्रियान्वित करें तो आप तीव्रता से उन्नत होंगे। परंतु अब आपको स्वयं को दोष रहित करना होगा। हमारे पास सहजयोगी तो बहुत सारे हैं पर उनमें से कितने दोष रहित हैं या परफेक्ट हैं यह सोचने की बात है। 
सहजयोग से आपके संबंध भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इसमें भी एक मर्यादा है। इसकी मर्यादायें बहुत महत्वपूर्ण है। सहजयोग को हल्के में मत लीजिये। कोई भी यह न समझे कि उसने आत्मसाक्षात्कार ले लिये है तो वह विश्व में सबसे ऊंचा हो गया है… ऐसा नहीं है। आपको इसे कार्यान्वित करना होगा …. अपने अंदर एक प्रकार का अनुशासन लाना होगा। बीबीसी के जिस व्यक्ति के विषय में मैंने आपको पहले बताया था वही व्यक्ति कह रहा था कि प्राचीन काल में ब्रह्मचर्च का पालन करना पड़ता था और मंदिरों की सीढ़ियां धोनी और पोंछनी पड़ती थीं … और भी बहुत से कार्य करने पड़ते थे… परिश्रम करना पड़ता था … ये ….. वो सभी प्रकार के कार्य करने पड़ते थे तब कहीं जाकर आपका एक चक्र जागृत होता था। मैंने उसको बताया कि अब हम इसे दूसरी तरह से करते हैं। हम पहले मंदिर का गुंबद बनाते हैं और बाद में उसकी नींव रखते हैं। सहजयोग ऐसा ही है। क्या आप जानते हैं कि अब उस गुंबद के नीचे आप सब सुरक्षित हैं। लेकिन लोग इसे हल्के में लेने लगते हैं। जैसे वो कहेंगे इस कार्य को माँ पर छोड़ दो … माँ यह कार्य करेंगी … । नहीं यह ऐसा नहीं है। आप लोग ही तो मेरे हाथ हैं। माना मेरे हाथों को इस चीज को उठाना है तो मुझे कहना चाहिये कि निर्मला इसे उठायेंगी। अब निर्मला कौन है? इस बिंदु पर यही हाथ तो निर्मला हैं। अतः इस तरह से कई लोग भटक जाते हैं। अतः सहजयोग के लिये भी आपके अंदर सम्मान होना चाहिये। दूसरों के सामने आपको स्वयं को बंधन नहीं लेने चाहिये … आपको ये नहीं करना चाहिये लेकिन आपको गरिमामय तरीके से सहजयोग का सम्मान करना चाहिये। सबसे पहले सहजयोग से आपके संबंध इस प्रकार के होने चाहिये कि आप जाने सहजयोग क्या है? अन्यथा हर समय आपको सहज के बारे में बात करनी है (अस्पष्ट) … गेविन को सामने आना चाहिये या कोई और व्यक्ति सामने आये। गेविन को सहजयोग के विषय में एक भी शब्द नहीं मालूम था… भारतीय परंपराओं के विषय में कुछ भी नहीं मालूम था… उसे कुछ भी मालूम नहीं था … आत्मसाक्षात्कार क्या है उसे तो ये भी मालूम नहीं था। पर उसने पढ़ा .. वह संस्कृत भी पढ़ रहा है जिस प्रकार से आपमें से कई लोगों ने किया है। परंतु आप सभी को एक बड़ा पंडित बन जाना चाहिये। लेकिन आप तो अपने विवाह की समस्याओं में ही फंस गये हैं … फिर उसके बाद आपके बच्चों की समस्यायें आती हैं .. फिर मेरी माँ .. मेरी बहन आदि आदि। मेरा मतलब है कि अभी आपको बहुत ज्यादा समय लगेगा। सबसे पहले आपको देखना चाहिये कि मैं सहजयोगी हूं। मुझे काम करने जाना है। इससे भी हमें समस्यायें होती हैं। कयोंकि आपकी पत्नी आपको सूली पर टांग देगी … आपके बच्चे सामने आ जायेंगे … या इसी प्रकार का कुछ और। आपको कहना चाहिये मेरा इस सबसे कोई लेना देना नहीं बस मुझे तो सहजयोग का अध्ययन करना है। मैं हैरान थी कि कई लोगों ने द एडवॅट नाम की पुस्तक को बाइबिल की तरह से देखना प्रारंभ कर दिया… बिल्कुल बाइबिल की तरह। उन्होंने उस बाइबिल को कभी पढ़ा ही नहीं। मुझे आश्चर्य होता है कि कई लोगों को तो ये भी पता नहीं है कि बाइबिल में लिखा क्या है? ये यहूदियों की तरह से है कि बाइबिल को वे सुनहरी पोथी में लपेट कर रखते हैं। ये लोग भी एडवॅट को मेरे फोटोग्राफ के साथ अच्छी तरह से लपेट कर सहेज कर रखते हैं ….. उसकी पूजा करते हैं और बस। तब उनको ज्ञान किस प्रकार से आयेगा। आपको एडवॅट के अधिक नहीं तो कम से कम कुछ अध्याय तो पढ़ने ही चाहिये। मैंने आपको बताया है कि ऐसी बहुत सी किताबें हैं जो आपको पढ़नी चाहिये। अपनी स्वयं की लाइब्रेरी बनाइये। इसमें सुधार लाइये। प्रत्येक व्यक्ति को अपने अंदर परफेक्शन लाना चाहिये… पूर्णता लाने का प्रयास करना चाहिये। आपको सहजयोग के ऊपर बोझ नहीं बल्कि सहजयोग की धरोहर या संपत्ति बनना बनना चाहिये। सभी को ऐसा ही बनना चाहिये। आपकी समस्यायें है उन्हें मैं हल करूंगी। लेकिन आप अपने उत्थान का मसला हल करिये जो अत्यधिक महत्वपूर्ण है। आपको उन्नत होना होगा अन्यथा जो भी समस्या मैं सुलझाऊंगी आप दूसरी समस्या नें उलझ जायेंगे … फिर तीसरी और फिर चौथी में।
अब संबंधों के विषय मेः माना आपके पास एक आश्रम है और किसी ने उसे खरीद लिया है। तो किसी को भी ये नहीं समझना चाहिये कि ये मेरा घर है। स्वामित्व की भावना से निकलने का यही सबसे अच्छा तरीका है। क्योंकि फिर मैं आपको समस्या में डाल देती हूं। इसी स्थान पर महामाया अपना खेल दिखाती हैं। यदि आप कहते हैं कि ये मेरा घर है तब तो बस आप काम से गये हमेशा के लिये। अतः इस चीज को कभी भी विकसित न होने दैं… यह भावना कि घर मेरा है। मैंने देखा है कि लोग आश्रम में जाते हैं और फिर सोचने लगते हैं कि ये उनका ही घर है। वो वहां रहने लगते हैं। जो कुछ पैसा उनके पास है वे उस पैसे को उड़ाने लगते हैं और आरामपसंद बन जाते हैं वे कभी नहीं सोचते हैं कि आश्रम उनका नहीं है … मैं यहां रह रहा हूं क्योंकि मैं सहजयोगी हूं। ये माँ का आश्रम है। लेकिन उस तरह का अनासक्त भाव उनमें नहीं है… बिल्कुल भी अनासक्ति नहीं है। और ये हैरान करने वाली बात है कि यदि आपको हिमालय पर जाकर के अपना बीमा ही करवाना है तो फिर सहजयोग में आने का क्या फायदा है। ये निहायत ही बचकानी बात है। हम दो तरह की बीमा पॉलिसी लिख रहे हें कि मैं हिमालय पर चला गया हूं। यदि मैं मरता नहीं हूं तो मैं फिर वापस आ जाऊंगा। इसको आप सुंदरता से एक प्लास्टिक बैग में बांध कर रख देते हैं ताकि हिमालय की बर्फ इसे खराब न कर दे। ये भी बहुत ही बचकानी हरकत है। आपके पास कुछ नहीं होना चाहिये। कुछ लोगों की आदत होती है कि मेरे पास एक सुंदर घर होना चाहिये.. उसमें मैं अपनी पत्नी और बच्चों को रखूंगा। बस समाप्त। ऐसे सभी लोगों को चेंज के लिये अपने घर छोड कर आश्रम में आ जाना चाहिये और अपने घरों में किन्हीं दूसरे लोगों को रख देना चाहिये क्योंकि वे आसक्त हो रहे हैं। आप अनासक्त किस प्रकार से होंगे? क्या इसका कोई समाधान है? क्योंकि सहजयोग में यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। जब तक आप अनासक्त नहीं होते तब तक आपका उत्थान संभव नहीं है। माना.. धरती माँ पर अनेकों टेंटेकल्स लगे हों और आपको जहाज को उड़ाना हो तो वह किस प्रकार से उड़ेगा। अतः जिन लोगों के पास अपने घर हैं या बड़े-बड़े भवन या फ्लैट्स हैं उन्हें अपने घर छोड़ देने चाहिये। उसके ऐशोआराम को छोड़ दीजिये। इससे बाहर निकल कर आइये। उनमें रहने के लिये किन्हीं और लोगों को भेज दीजिये और आप आश्रम में शिफ्ट हो जाइये। शिफ्ट होते रहिये और अपने मस्तिष्क को शिफ्ट होने का प्रशिक्षण देते रहिये ताकि आप सबके साथ रह सकें…. सबके साथ मिल बांट कर खा सकें। मैंने अपने विवाह के बाद 40 घर बदले हैं.. जरा कल्पना कीजिये। और जिस घर में मैं रह रही हूं वह एक मल्टीपरपज या बहुउद्देशीय घर है। और मैंने अब तक 40 घर बदल लिये हैं और इस घर को भी बदल दूं तो ये मेरा 41वां घर होगा। जरा सोचिये मेरे विवाह को भी 40 साल हो गये हैं और मैंने 40 घर बदल लिये हैं अब तक। अतः प्रत्येक चीज में पावनता के संबंधों को समझा जाना चाहिये। क्या इस संबंध में पवित्रता है? क्या इस आश्रम में पावनता के संबंध के साथ रह रहा हूं क्योंकि ये घर मुझे सभी प्रकार के ऐशोआराम दे रहा है इसीलिये मैं इस घर में रह रहा हूं। या इस घर में मैं ऐसे ही रह रहा हूं क्योंकि यह एक घर है तो मैं आज यहां रह रहा हूं और कल भी रहूंगा। आपको हैरानी होगी और आप जीवन का पूरी तरह से आनंद उठायेंगे। जैसे ही आप आसक्त हुये और आपका पतन शुरू हुआ। किसी से भी आसक्ति रखना एक तरह का सिरदर्द है। तब आप परेशान होंगे। मेरी पत्नी नहीं आई .. हे भगवान अब मैं क्या करूं … मुझे उसे टेलीफोन करना चाहिये या उसे यहां लेकर आ जाना चाहिये। लेकिन यदि आप अनासक्त हैं तो वह समय पर आ जायेगी। न केवल यह.. बल्कि आपको उसके साथ समय बिताने में आनंद आयेगा। नहीं तो आप उस पर चिल्लायेंगे कि तुम समय पर क्यों नहीं आईं? मैं तो कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा था? पर अगर आप उसका इंतजार कर रहे थे तो आप फिर उसे इतनी जोर से क्यों डांट रहे हैं .. चिल्ला क्यों रहे हैं और सारे संबंध की मधुरता को ही नष्ट किये जा रहे हैं। जरा देखिये सारी चीजों का बचकानापन आसक्ति ही है। आपको प्रत्येक परिस्थिति में अनासक्त होना चाहिये और इसके बाद आप प्रत्येक चीज का आनंद उठायेंगे। लेकिन इसमें भी आपको जज करना पड़ेगा। आप आनंद उठा रहे हैं या आप आनंद उठाने का नाटक कर रहे हैं? संवेदनशील बनने का प्रयत्न करें। संवेदनशीलता से ही पावनता का उदय होगा। यदि आप स्वयं के और दूसरों के प्रति संवेदनशील नहीं हैं तो आप पावन हो ही नहीं सकते और सहजयोग में आपको एकता के अलावा पावनता ही प्राप्त करनी है जो मैं आपको दे चुकी हूं। लेकिन यदि आप इस एकता को पावनता के लिये नहीं उपयोग करते तो फिर कोई फायदा ही नहीं है। अतः यह प्रकाश आपको पूर्ण विवेक देगा और आप एक अच्छा व पावन जीवन व्यतीत करेंगे। आपके विवाह हो चुके हैं आपको अपनी पत्नी के साथ विवाहित जीवन का आनंद उठाना है और इसके बारे में मैं आपको पहले ही बता चुकी हूं कि अपनी पत्नी के साथ आपका व्यवहार कैसा होना चाहिये। ये मैं आपको कई बार बता चुकी हूं या पति के साथ आपका व्यवहार कैसा होना चाहिये। लेकिन दूसरों के साथ आपका संबंध एकदम पवित्रतम होना चाहिये जिसमें किसी प्रकार की दुर्भावना न हो। हमारे देश में यदि कोई किसी के पैसे चालाकी से ले लेता है तो उसे ठग कहा जाता है। लेकिन फ्लर्टिंग के लिये हमारे यहां कोई शब्द नहीं है। ईसा के विचार से ये और भी अधिक गंभीर अपराध है। अतः आपको इस बिंदु पर अत्यंत सावधान रहना है कि एक दूसरे के प्रति आपके संबंध पावनता से भरे होने चाहिये। अब कुछ लोगों की भयानक पत्नियां या भयानक पति होते हैं। मुझे कोई एतराज नहीं है अगर आप उन्हें छोड़ देते हैं। यदि वे एकदम बेकार हैं .. यदि वे पावनता को नष्ट कर रहे हैं… अपनी पत्नियों को परेशान कर रहे हैं तो उनसे पीछा छुड़ाना ही बेहतर है। मुझे कोई परेशानी नहीं है क्योंकि यदि वे इतने ही खराब हैं कि आपके लिये उनकी कोई उपयोगिता ही नहीं है तो उन्हें छोड़ दें। ठीक इस शरीर की भांति यदि इसकी कोई उपयोगिता ही नहीं है तो पिर मर जाना ही बेहतर है। अतः उस संबंध से पीछा छुड़ाना ही बेहतर है। लेकिन इससे आपको मजबूत बनने में सहायता मिलनी चाहिये। अन्यथा इसके बाद यदि आप नर्वस व्यक्तित्व वाली बन जाती हैं तो फिर इसका कुछ फायदा ही नहीं है। यदि ऐसा कुछ आपके साथ हो जाय तो आप क्या करेंगी .. कि आपने एक संबंध तोड़ दिया है और आपको कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने पड़ें तो फिर आपको कुछ समय के लिये सहजयोग छोड़ देना चाहिये। अपनी समस्यायें सुलझायें … अपनी कोर्ट कचहरी की समस्यायें सुलझायें.. सभी समस्याओं को सुलझा लें और तभी सहजयोग में आंये। हम इस प्रकार की किसी भी परेशानी में नहीं पड़ना चाहते हैं।
हम किसी के घर उजाड़ने की किसी भी गतिविधि में लिप्त नहीं होना चाहते हैं। अगर आप अपनी पत्नी से नहीं निभा पा रहे हैं तो सहजयोग का बहाना न बनायें। क्योंकि आप उसके साथ निभा नहीं पा रहे हैं … तो आप सहजयोग छोड़कर चले जांय और जो कुछ भी करना चाहें वो करें और हमेशा के लिये बात खत्म करें। अपनी पत्नी से कहें कि मैं अब सहजयोगी नहीं हूं। इससे बाहर निकलें और तभी सहजयोग में आयें। लेकिन सहजयोग में आकर भी आप मुझे बहुत परेशान करने वाले हैं। मुझे आप लोगों से एक निवेदन करना है कि अगर आपकी ऐसी ही कोई समस्या है तो …. 16 साल से कम उम्र के किसी भी बच्चे को बिना माता पिता की लिखित अऩुमति के आश्रम में न रहने दें या अगर कोई पत्नी जिसने अपने पति के लिये समस्यायें खड़ी की हों उसको भी बच्चों के साथ आश्रम में आकर रहने की अनुमति तब तक नहीं दी जायेगी जब तक कि आपकी समस्या का समाधान न निकल जाय। हम किसी भी प्रकार की समस्या के लिये उत्तरदायी नहीं हैं। बीमार व मानसिक रूप से विक्षिप्त रोगियों को भी आश्रमों में नहीं रखना चाहिये। कई सहजयोगियों की सहानुभूति इस प्रकार के लोगों के लिये होती है परंतु आश्रम मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों के लिये नहीं हैं बल्कि सबसे अच्छे (आध्यात्मिक रूप से) लोगों के लिये हैं। हम ऐसे लोगों को आश्रमों में नहीं रख सकते हैं जो बाद में आश्रमों की ख्याति मिट्टी में मिला दें। 
अब विष्णुमाया के संबंध मेः विष्णुमाया श्रीकृष्ण की बहन हैं। उन्होंने ही श्री कृष्ण के जन्म की घोषणा की थी। उन्होंने ही श्रीकृष्ण का जान बचाने के लिये अपना जीवन खतरे में डाल दिया था। विष्णुमाया ही श्रीकृष्ण के चारों ओर विद्यमान रहती हैं। उन्होंने द्रौपदी के रूप में जन्म लिया। बाद में दुर्योधन ने द्रौपदी का घोर निरादर किया और बाद में श्रीकृष्ण ने ही आकर उनकी लाज बचाई। यह पावित्र्य का अत्यंत मधुर संबंध है। भाई और बहन के नाजुक संबंध को बनाये रखें। और आज तो यह संबंध कुछ विशेष ही है। जो भी अपनी बहनों को राखी बांधना चाहें वे मेरे सामने ही इसे बांधे जो अच्छा रहेगा। यह संबंध सभी संबंधों से बढ़कर है। क्योंकि यदि यहां यदि आपकी सगी बहन है तो कोई बात नहीं लेकिन अगर कोई सगी बहन नहीं भी है तो आप जान लें कि आप सभी एक ही माँ के बच्चे हैं। अतः भाई बहन के बीच का संबंध ठीक रखें। इसमें भी किसी प्रकार की प्रिफरेंस न रखें क्योंकि किसी को अमीर बहन चाहिये तो किसी को कुछ और। या फिर किसी को अत्यंत दीन हीन बहन की जरूरत होगी। यह सब माया है। लेकिन जिसके हाथ में भी आप राखी बांधना चाहें उसके साथ अपने संबंध मधुर रखें। अगर कोई बचा है तो रहने ही दे। जो कोई भी मेरी बात सुन रहा है सबसे अच्छा है कि आप अपना लक्की डिप ले लें। मैं समझती हूं इस तरह के लोगों के लिये ऐसा ही कुछ किया जा सकता है ताकि वे भी अपनी अपनी बहने चुन लें और उससे राखी बंधवायें। जिस तरह से भी आप अपनी बहनें चुनना चाहें चुन लें। मेरे पास आप लोगों के लिये कुछ सुंदर राखियां हैं जिन्हें आज ही बांधा जाना चाहिये। इससे मुझे प्रसन्नता होगी। इसके बाद हम श्रीविष्णुमाया के लिये हवन करेंगे। परमात्मा आपको आशीर्वादित करे।
।। जय श्रीमाताजी।।