8th Day of Navaratri: What We Have To Do Within Ourselves, Talk After the Puja

Complexe sportif René Leduc, Meudon (France)

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1984-09-30 नवरात्रि पूजा वार्ता: हमे अपने भीतर क्या करना है,पेरिस, फ्रांस 

आज नवरात्रि का आठवां दिन है, और यह सहज योगियों के लिए महान दिन है क्योंकि यह सबसे महत्वपूर्ण समय है। यानी हम सातवां चक्र पार कर चुके हैं, और हम आठवें चक्र पर हैं। हमें यह सोचने की आवश्यकता नहीं कि देवी ने आठवें दिन क्या किया, हमें आज यह सोचना होगा कि हमें अपने भीतर क्या करना है।

सातवें दिन को पार करने के बाद, सातवें चक्र को पार करने के बाद-जो कि वास्तव में आप का  आध्यात्मिक उत्थान है, हमें आठवें पर क्या करना चाहिए?

यह कितना सहज है कि आज अष्टमी का दिन है, क्योंकि इसी दिन देवी ने दुष्टों, शैतानों और राक्षसों का वध किया। उन्होंने यह अपने बल से स्वयं ही किया। अब यह शैतानी शक्तियां  मनुष्य में भी प्रकट हो रही हैं। वह फैल चुके हैं। यह शक्तियां हमारे भीतर हैं। इसलिए हम सभी को अपने भीतर उन ताकतों से लड़ना होगा। युद्ध अपने भीतर है, बाहर नहीं। पहले जब आप सातवें चक्र को पार करते हैं और आप आठवें पर होते हैं, तो आप याद रखें कि पहले आपको स्वयं के भीतर उन ताकतों से लड़ना होगा।

आप सब बहुत बुद्धिमान लोग हैं, कभी-कभी कुछ अधिक ही बुद्धिमान। इसलिए मैं जो कुछ भी कहती हूं आप उसे उलट देते हैं, और इसे आप अपनी बुद्धि से उपयोग करने का प्रयत्न करते हैं। लेकिन इसमें आपकी भलाई नहीं है। यह आपके ‘हित’ के लिए नहीं, आपके भले के लिए नहीं है। आप इसका उपयोग करना चाहते हैं क्योंकि आप समझते है कि आप बुद्धिमान हैं, और हो सकता है कि आप को पता ही न हो कि आप इस प्रकार इसका उपयोग कर रहे हैं। और  इसी कारण आपको यह जानना होगा कि यह ताकत हमारे भीतर काम कर रही हैं। वह हमारी बुद्धि के माध्यम से कार्य करती हैं, वह हमारी भावनाओं के माध्यम से कार्य करती हैं, और वह हमारे भौतिक अस्तित्व के माध्यम से कार्य करती हैं। इसलिए हमें बहुत सावधान रहना होगा।

जब आप सहज योग में आगे बढ़ते हैं, तब हमें अपनी बुद्धि से बहुत सतर्क रहना है, क्योंकि बुद्धि में स्वयं को धोखा देने की क्षमता होती है। और यही हमें धोखा देगी, किसी और को नहीं। यह हमारे विरुद्ध है, हमारी संपत्ति के विरुद्ध है, और हमारी अपनी शक्तियों के विरुद्ध है। इसलिए हमें सतर्क होकर स्वयं ही देखना होगा। जैसे ही आप आठवें स्तर पर प्रवेश करते हैं, आपको स्वयं को देखना आरम्भ करना है।

उदाहरण के लिए, अब, जब मैं कहती हूं कि मंत्र है “मैं स्वयं का गुरु हूं”, तो तुरंत ही बुद्धि आपकी सेवा में स्वयं को प्रस्तुत करने के लिए आगे आती है। “ओह! मैं स्वयं का गुरु हूं, मैं किसी और की क्यों सुनू? मैं किसी नेता को क्यों सुनू? मुझे किसी और की बात को क्यों सुनना, चाहे वह बड़ा है और सहज योग को बेहतर समझता हैं? मैं तो स्वयं का गुरु हूँ!” यह बिल्कुल विपरीत है। सीधी बात यह है कि मैं अपना गुरु हूं, मुझे स्वयं को ठीक करना होगा। मुझे स्वयं को ठीक करने के लिए प्रकाश के साधन का उपयोग करना होगा।

अब बुद्धि फिर से धोखा देती है – “माँ ने कहा कि अगर तुम्हें चैतन्य का अनुभव है तो सब  ठीक है। और मैं चैतन्य अनुभव कर रहा हूं, तो मैं ठीक हूं”। फिर से धोखा। आप स्वयं को धोखा दे रहे हैं! क्यों, किस कारण? कारण बहुत रोचक है। मैंने देखा है कि साधारण मनुष्य – विशेष रूप से पश्चिम में – स्वयं के बहुत विरुद्ध होते हैं। जैसे, मैं आपको एक उदाहरण दूंगी, आप किसी को बताएं कि अगर आपको स्टेशन जाना है, तो इस रास्ते से जाएं और आप सीधे स्टेशन पहुँचेंगे। पर वह तुरंत कहेगा, “लेकिन समस्या यह है कि मैं सीधे कैसे जाऊं ? मेरी पीठ स्टेशन की ओर है। अगर मैं सीधे चलूं तो मैं विपरीत दिशा में जाऊंगा”। कितनी मूर्खतापूर्ण बातें! लेकिन वह हर समय ऐसा कहते हैं।

अब उदाहरण के लिए, यदि आप उनसे कहें कि आप अपनी कार जर्मनी में जाकर और अच्छे से बेच सकते हैं, पर वह कहेंगे, “एक समस्या है, जर्मन फिर से अपना युद्ध शुरू कर सकते हैं। हो सकता है कि हिटलर मेरी प्रतीक्षा कर रहा हो, मुझे मारने के लिए।” कोई भी ऊटपटांग समस्या, जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते, इस आधुनिक मस्तिष्क से बाहर आ सकती हैं। और आपको हैरानी होगी कि यह आदमी हर समय खुद के विरुद्ध कैसे है!

पूरा वातावरण बिलकुल ऐसा ही है, क्योंकि आत्म साक्षात्कार से पहले आप हर तरह से बिखरे/ विघटित होते हैं। आपका ह्रदय आपके मस्तिष्क के विरुद्ध है, और आपका मस्तिष्क आपके जिगर के विरुद्ध। यही कारण है कि (पश्चिमी लोगों की) उनकी तीन प्रकार की पत्नियाँ हैं, एक प्रेम संबंध है, एक भौतिक जीवन है और एक पत्नी है। वह इतने विघटित हैं कि हर कोशिका की एक पत्नी हो सकती है या एक पति हो सकता है। नाक एक चीज चाहता है, आँखे कुछ और चाहेंगी और हाथ कुछ और करेंगे और जीभ कुछ और कहेगी।

जब मैं पश्चिमी लोगों से मिली, तो मुझे उन्हे समझने के लिए कई शब्दकोशों की सहायता लेनी पड़ी कि उनका व्यवहार इतना विचित्र क्यों है। वह हर समय स्वयं के विरुद्ध हैं।

इसलिए आत्म साक्षात्कार के बाद यह आदत और भी सूक्ष्म हो जाती है। इसलिए अब वह सहज योग के विरुद्ध कार्य करने के लिए सहज योग का ही उपयोग करते हैं। सहज सरल है, सीधा है। लेकिन वह उसे इस तरह नहीं चाहते। वह हमेशा इस प्रकार से करना चाहेंगे जो पूर्णतः असहज है।

मेरे घर में एक व्यक्ति था जो बाईं ओर की समस्याओं से पीड़ित था। तो मैंने उन्हें कहा कि हर रात आप एक दीपक जलाएं और अपने सभी बाधाओं को बाहर करें। और हमारे घर में तेल का एक बड़ा पीपा था। उन्होंने खाना नहीं खाया, वह सोये नहीं। उन्होंने एक सप्ताह में सारा तेल जला दिया। उन्होंने सभी कंबलों को काला कर दिया, दीवारों को काला कर दिया और सारे पर्दे जला दिए! जब मैं आठ दिनों के बाद वापस आई, तो मैंने कहा कि आप क्या कर रहे हैं? और वास्तव में वह एक भूत जैसे लग रहे थे! उन्होंने कहा, “मैं भूतों को बाहर निकाल रहा था।” मैंने कहा अब यह तो हद है! तो उन्होंने कहा, “माँ आपने ही मुझे बताया।” मैंने कहा, “परमात्मा  का शुक्र है कि आपने पूरे घर को जलाने के लिए मशाल नहीं ली!”

इसलिए मुझे बहुत सावधान होकर आप से बात करनी पड़ती है। जब भी मैं आपको एक बात बताती हूं, तो मैं आपको उसका दूसरा पक्ष तुरंत बताती हूं, क्योंकि मैं नहीं चाहती – कि मैं आपको एक पक्ष बताऊ, और आप दूसरी तरफ जाएं, दूसरी तरफ के अंत तक। तो इस तरह के सभी सनकी, पागलपन, मूर्खता मैंने देखी है।

और आज जब मैं आपसे अनुशासन के बारे में बात करने जा रही हूँ, तो मुझे आपको यह बताना है “अनुशासन सहज होना चाहिए”। अब इसका क्या अर्थ है? सर्वप्रथम, “स्वयं का सामना करें”। मैं देखती हूं, अहंकार के कारण, पाश्चात्य बुद्धि स्वयं को अनुशासित नहीं कर पाती। यदि आप उन्हें कहें कि आपको अनुशासित होना है तो उन्हें लगता है कि मैं उनसे एक सेना तैयार कर रही हूं। एक तरह से यह एक लड़ाई ही है। यह अपने स्वयं से लड़ाई है। लेकिन आप में अगर अनुशासन नहीं है तो आप कैसे लड़ेंगे?

अब अगर मैं कहूं, आपको सुबह उठना है, स्नान करना है, और ध्यान के लिए बैठना है – सहज तरीके से आपको खुद को स्पष्ट रूप से बताना होगा, “चलो, अब तुम्हें सुबह उठना है”। एक सहज तरीके से; जिस तरह से आप अपनी गाड़ी के पहियों को घुमाते हैं।

तो मुझे लगता है कि आप क्या करते हैं, पूरी रात आप सोते नहीं है। हो सकता है कि यह एक अति है, न सोना। और 2 बजे उठो, पूरे घर को परेशान करो, अपने टब भरो, और पूरे घर को पानी से भर दो! और पानी में बैठ जाओ, और तुम्हें ठण्ड लगने से बीमार हो जाओ। यह बेतुका है! क्यों? – क्योंकि आप दिखावा करना चाहते हैं। या हो सकता है कि आप खुद को चोट पहुंचाना चाहते हों। दोनों बातें गलत हैं। जो कुछ भी करना है वह अत्यंत सुखद ढंग से करना है। या तो आप गंदगी नहीं धोएंगे, या आप इसे ऐसे धोएंगे कि सारा कपड़ा फट जाए।

लेकिन आज जैसा कि मैं फ्रांस के लोगों को देखती हूं, विशेष रूप से, फ्रांसीसी सहज योगियों को, – मुझे लगता है कि अनुशासन की कमी है। मैं काफी हैरान हूं इससे। पहली बात यह  कि आप एक सीमित राशि के भीतर अपना काम नहीं चला पाते हैं, मेरा अर्थ पैसे के संदर्भ में है ।  जैसे कमरे में रोशनी है, कोई भी नहीं देखेगा कि इसे बंद करना है, वहाँ एक स्विच है जिसे बंद करना है – एक व्यावहारिक बात है। मेरा मतलब है कि यह पता होना चाहिए। और बिना कारण बिल बढ़ रहा है। यह गैर जिम्मेदारी है, पूरी तरह से गैर जिम्मेदारी। यह पैसा है जो कि खर्च किया जाएगा, यह बेकार का खर्च है, और हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम समझदारी से सीमित साधनों के भीतर रहें।

पहले मैं स्थूल अनुशासन का विषय लूंगी । अब क्या होता है, कि जब कोई कहता है कि रोशनी क्यों जल रही है, तुरंत वह बहुत भावनात्मक हो जाते हैं, वह कहते हैं “हम प्रकाश हैं”। तब तो आपके पास रोशनी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए, रोशनी की आपको कोई जरूरत नहीं है! सारी बिजली बचाओ, आप स्वयं प्रकाश है। आप सूर्य हैं, इसलिए आपको गर्माहट की कोई आवश्यकता ही नहीं है!

इस तरह से यह अजीब बातें हैं। यह समझना चाहिए कि सर्वप्रथम हमें स्थूल बिंदुओं पर अनुशासित होना है। हम हिमालय पर नहीं, बल्कि फ्रांस में रह रहे हैं। इसलिए जब आप फ्रांस में रहते हैं, तो हमें फ्रांस में रहकर स्वयं को सही करना होगा।

अब दूसरा स्थूल बिंदु यह है कि कई ऐसे लोग हैं जो बिल्कुल काम नहीं कर रहे हैं। यह एक हिप्पी की जीवन शैली है। या वह दो दिन या तीन दिन काम करते हैं, और बाकी समय वह क्या करते हैं? वह कहते हैं कि हम ध्यान करते हैं। क्या मतलब है? वह सोते हैं और खर्राटे लेते हैं, यही है। ध्यान करने के लिए आपको 24 घंटे की आवश्यकता नहीं है। आप सभी के पास नौकरी होनी चाहिए। नियमित नौकरी। मुझे कहा गया है, अनेक महिलाएं शादी के बाद नौकरी नहीं करती। वह कहती हैं “पति को नौकरी करने दो”। यह बहुत गलत है। यदि आपका बच्चा है, तो कुछ समय के लिए यह ठीक है। आप सभी को हर दिन काम करना चाहिए। वास्तव में हमारे लिए कोई दिन ऐसा नहीं है जब हम आराम कर सकते हैं।

परमात्मा ने पृथ्वी का सृजन छह दिनों में किया और सातवें दिन उन्होंने विश्राम किया। लेकिन आठवें दिन उन्होंने क्या किया? उन्होंने आत्म साक्षात्कार देना शुरू किया, निरंतर, परिश्रम के साथ। क्या आप विश्वास कर सकते हैं कि इस उम्र में, मैंने पिछले 2 महीनों के भीतर कितनी यात्रा की है? हर रात लगभग 2 बजे सोती, 5 बजे उठती।  मैं अमेरिका गयी, वहाँ से वापस आई, फिर इंग्लैंड में सब जगह, पूरे महीने मैं यात्रा कर रही थी- उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम। अगले महीने स्विटज़रलैंड गयी, जर्मेट। फिर ऑस्ट्रिया, म्यूनिख । फिर वापस लंदन। फिर वापस इटली। फिर से लंदन लौट गयी। वहां एक पूजा थी। फिर वापिस फ्रांस ,फिर लंदन। मुझे अपना घर बदलना है, सारी चीजें “पैक” करनी हैं, भारत वापस जाना है, हांगकांग जाना है, चीन जाना है, वापस आना है। फिर भारत में अपने आश्रमों की देखभाल करना। छह दिन। फिर से वापस आना। और फिर अमेरिका जाना …

यही काम है जो आपकी माँ इस उम्र में कर रही है। कल रात हम 3.30 बजे सोए थे। लेकिन फिर उन्होंने हमें बताया कि यह एक घंटे पहले है। तो हमने कहा ठीक है, “एक घंटा पहले”। तो हम २.३० बजे सोए! लेकिन आपको अपने शरीर को इस तरह बनाना होगा, कि वह सभी प्रकार की असुविधाओं को सहन कर सके।

आप जानते हैं कि सहज योग में बेरोजगारी की अनुमति नहीं है, सरकार से पैसा लेने की अनुमति नहीं है। आप हैरान होंगे, पूरे विश्व में अधिकतम बेरोजगारी इंग्लैंड में है, लेकिन कोई सहज योगी बेरोजगार नहीं हैं। अब आप सभी को अपने रहने के लिए पर्याप्त आय अर्जित करनी होगी। किसी को भी मुफ्तखोरी नहीं करनी चाहिए।

अब वह युवा जो पढ़े-लिखे नहीं हैं, जिनके पास श्रमिक वर्ग के अलावा कोई दूसरा काम नहीं है – या हम इसे कचरा सफाईकर्मी कह सकते हैं – उन्हें किसी तरह की विशेषज्ञता लेनी चाहिए, किसी तरह की महारत हासिल करनी चाहिए, अन्यथा लोग सोचते हैं कि सहज योग भिखारियों का एक समूह है। भिखारी और बेरोजगार और दुखी लोग।

लेकिन आप देखते हैं, जब आप अपने गुरु बन जाते हैं, तो आप सोचते हैं कि सभी गुरु काम नहीं करते, उनके शिष्यों को उनका ध्यान रखना पड़ता है। गुरु एक जगह अच्छी तरह बैठ जाता है, और शिष्य उनकी देखभाल करते हैं। लेकिन आपके गुरु के साथ ऐसा नहीं है! आपके गुरु को बहुत श्रम करना पड़ता है। तो आपको उसी शैली में रहना होगा जैसे आपके गुरु हैं।

और यह सुनने के लिए कि “कोई नहीं सुनता है, आप उन्हें कुछ भी बताएं, वह कोई भी काम नहीं करते हैं, वह आलसी, निठल्ले हैं”, बहुत दुख की बात है। कुछ लोग कभी-कभी कहते हैं कि यह अकर्मण्य समूह हैं या भिखारियों या कुष्ठ रोगियों के समूह जैसे कुछ हैं जो भयानक बीमारियों से पीड़ित हैं। आप जानते हैं तब मुझे बहुत अपमान महसूस होता है। आप मेरे बच्चे हैं, अगर आप में कोई अनुशासन नहीं, तो लोग आपको, या मुझे कैसे सम्मान करेंगे?

फ्रेंच के लिए मुझे कहना चाहिए, उन्हें “मौन” धारण कर लेना चाहिए, जिसका अर्थ है खामोश हो जाना। एक बार जब वह अपने होंठ खोलते हैं, तो वह बस एक पक्षी की तरह हैं, मैंने देखा है- हर समय चक, चक, चक… आपको अंग्रेज़ों के साथ आदान-प्रदान करना चाहिए, जो कभी बात नहीं करते हैं, उनसे बात करवाने के लिए उनके सर पर मारने की आवश्यकता होती है। आप उनसे दस प्रश्न पूछें, और वह कुछ भी नहीं कहेंगे, वह बस घूरेंगे। इन दो चरम सीमाओं को मैं समझ नहीं सकती।

चुप रहना बेहतर है, अगर दूसरों के लिए कुछ सुखद कहना हमारे लिए कठिन है। तो पहला मंत्र यह होना चाहिए, “माँ, हमें कुछ अच्छी बातें सिखाएं जो हम दूसरों से कह सकें”। “मुझे कल क्या अच्छा कहना चाहिए, या आज – चलो कहते हैं, आज-जब मैं उठूँ, मैं क्या कहूँ? दूसरों को क्या शांति देगा?” लेकिन ऐसा नहीं है। कभी नहीँ। मन सोचता है, अब, सुबह एक बड़े चम्मच के साथ शुरू करने जा रही हूं, सभी को मारते हुए, “उठ जाओ, उठ जाओ, उठ जाओ”।

अनुशासन को, आपके ‘अपने भीतर’ से आना है। किसी और को आप से नहीं कहना है। और जब कोई बताता है, तो आपको दुख होता है। इसलिए मुझे नहीं पता कि यह सब कैसे बताया जाए कि यह ह्रदय में जाये और कहीं हवा में न रह जाए। भीतर का अनुशासन,  फूल की सुगंध जैसा है। यह आपको पूर्ण स्वतंत्रता देता है, और यह दूसरों को पूर्ण स्वतंत्रता देता है।

देखिए, मैं कहूँगी, मेरी कुछ बुरी आदतें या अच्छी आदतें हैं। मान लो कि मेरे पास एक चाबी है, जो बहुत ही स्थूल वस्तु है-चाबी। किसी भी कीमत पर मैं इसे यहां-वहां नहीं रखूँगी। मैं इसे सही जगह पर रखूंगी । इसलिए, यदि चाबी गायब है, तो मुझे यकीन होगा कि यह मुझ से नहीं, किसी और से खो गयी है। मैं इसके बारे में निश्चित हूं, क्योंकि मैं स्वयं को बहुत अच्छी तरह से जानती हूं, मैं इसे कहीं और नहीं रख सकती। क्या आप अपने बारे में निश्चित हैं? क्योंकि आप अनुशासित नहीं हैं, आप निश्चित नहीं हैं।

जैसे मैंने किसी से पूछा “आप कैसे हैं”? वह कहेगा, फ्रांसीसी इस तरह से……. फ्रेंच, फ्रेंच अंदाज़ … और इतालियन अंदाज़ ऐसा होगा …… अंग्रेज़ बोलेगा, “उलझन में हूँ, मुझे पता नहीं “। अब, यह क्या है, आप साक्षात्कारी है या नहीं? ……..आप देखे, वह सोचते हैं वह मुझ पर दया कर रहे हैं ।

अब समय इतना कम है और आप ऐसे जा रहे हैं। मुझे कैसा महसूस करना चाहिए? तो आज वह दिन है जब आपकी माँ ने सभी दुश्मनों को मारने के लिए तलवार निकाली, और आपको अपने भीतर सबसे बड़े दुश्मन को मारना है – अनुशासनहीनता और लापरवाही।

लोग अपनी मूर्खता और अनुशासनहीनता को सही ठहराने के लिए विचित्र विचारों का प्रयोग करते हैं। मुझे एक सहज योगी के बारे में पता है, जो कभी भी स्नान नहीं करता था  – कम से कम एक साल। और इसकी सूचना मुझे दी गई और जब मैंने उनसे पूछा, आप क्यों नहीं नहाते? तो उन्होंने कहा, “मैं निर्लिप्त हूं”। इसलिए मैंने कहा कि आप इस निर्लिप्तता के साथ हिमालय में रहने जाएँ, आप देखिये दूसरे लोग आप से जुडने का अनुभव कर रहे हैं। अन्य लोगों के लिए आपके साथ रहना असंभव है।

आपको दूसरों के प्रति दयालु होना है। आपको साफ-सुथरा रहना है, एक बहुत ही साधारण सी बात है जो मुझे आपको बतानी है। यह सब आंतरिक स्वच्छता के संकेत हैं।

अब हमें सूक्ष्मता की बिंदुओं कि ओर आते है। और सहज योग का सूक्ष्म पक्ष अत्यंत सरल है, करुणा, क्षमा , प्रेम। लेकिन सबसे महान परमात्मा की सेवा है। हम परमात्मा का कार्य कर रहे हैं। हम कैसे थक सकते हैं? हम कैसे थक सकते हैं? हम दुखी कैसे हो सकते हैं? हमारे माध्यम से क्रियाशीलता बह रही है, यह करुणा इतनी तृप्त करने वाली है, यह प्रेम इतना अलंकृत करता है, कि हम इसे क्यों न करें? हमें इसे दौड़ के करना चाहिए। हमें यह जानना होगा कि इस प्रेम में अति तीव्र इच्छा है।

उदाहरण के लिए, यदि आप किसी से प्रेम करते हैं, यदि आपका कोई बच्चा है, तो आप उस बच्चे को लेकर कितने चिंतित होते हैं, आप उस बच्चे के लिए कितना कार्य करते हैं। यदि करुणा जाग्रत हो, तो आप देखेंगे कि सारी दुनिया उसी से निर्मित है। परमात्मा ने इस ब्रह्मांड, इस दुनिया और आप लोगों का सृजन केवल अपनी करुणा से किया है, केवल अपनी करुणा से।

किसी ने मुझसे एक दिन पूछा, “परमात्मा ने यह सिरदर्द क्यों लिया?” यह सिरदर्द इतना अच्छा है, इतना सुंदर बोझ है, क्योंकि इसमें बहुत संभावनाएं हैं। तो आशावादी होना होगा।

लेकिन आपको एहसास होगा कि जब आप आशावादी होते हैं, तो आप दूसरों को व्याख्यान देते हैं, लेकिन स्वयं को नहीं कि मुझे स्वयं को सुधारने के बारे में आशावादी होना चाहिए। 

स्वयं के प्रेम में आशावादी। यह बहुत लाभप्रद है, यह इतना आनंददायक है”। ऐसे लोग बहुत तेजी से ऊपर उठते हैं, उनकी कुंडलिनी बहुत तेजी से चढ़ती है। वह अति सुंदर बन जाते हैं। वह सहज योग में रचनात्मक कार्य करते हैं। वह दरार और गुट नहीं बनाते हैं। वह अपने अहंकार को पूरा करने के लिए सहज योग का उपयोग नहीं करते हैं, बल्कि वह सहज योग का उपयोग अपने आध्यात्मिक उत्थान को पूरा करने के लिए करते हैं। यह निर्भर करता है कि आप इसका उपयोग कैसे करना चाहते हैं।

इसलिए आज अष्टमी के दिन, जो कि बहुत शक्तिशाली दिन है, आप अपने भीतर उस शक्ति को ग्रहण करें – “जिससे कि मैं अपने अंदर की इन सभी भयानक बीमारियों से लड़ सकता हूँ ।” और दूसरों के लिए मेरे पास करुणा और प्रेम होगा – मुझ में होगा, दूसरों में ना हो। यह वह बिंदु है जिसे हम हमेशा भूल जाते हैं। उन्हें लगता है कि “माँ दूसरों को व्याख्यान दे रही हैं मुझे नहीं।” 

और वह करुणा, सहज योग की सुंदरता को सामने लाएगी।

कुछ दिव्य कानून हैं। और आप उनका उल्लंघन नहीं कर सकते। यदि आप उन्हें उल्लंघित  करते हैं, तो मैं आपकी सहायता बिल्कुल भी नहीं कर सकती। अब यदि आप कहते हैं, “अब मैं अपनी आँखों में मिर्च डाल देता हूँ, और उन्हें जलना नहीं चाहिए”, इसमें मैं आपकी सहायता नहीं कर सकती। जो भी दिव्य कानून हैं, आपको उनका पालन करना होगा ।

जैसे फ्रांस में अगर आप दाईं ओर गाड़ी चलाते हैं, तो आप नदी में कूद जाएंगे … आप दाहिनी ओर चलते हैं?बायीं ओर, तो ठीक है, तो यहाँ अगर आप बाईं ओर गाड़ी चलाएंगे, तो मुझे कहना होगा कि मैं मुश्किल में पड़ जाउंगी,! क्योंकि मैं मानवीय कानूनों को इतनी अच्छी तरह से नहीं समझती! जैसे इंग्लैंड में अलग कानून, फ्रांस में एक और कानून, अमेरिका में एक और कानून! विचित्र  लोग!

लेकिन परमात्मा के क्षेत्र में, हर जगह एक ही कानून है । चाहे आप फ्रांस में हों, या इंग्लैंड, या भारत, एक ही कानून। चाहे इस धरती पर हों या चंद्रमा पर, या बृहस्पति पर, वही कानून । चाहे इंसान हो, जानवर हो या प्रकृति, एक ही कानून। लेकिन आप कानून जानते हैं। आप चालक हैं, इसलिए आपको सावधान रहना होगा। यदि चालक गाड़ी चलाने के कानून नहीं जानता है, तो यात्रियों को तो  परमात्मा बचायें ।

तो, प्रत्येक को पता होना चाहिए कि यह दिव्य कानून हैं, कि हमें आत्म-सम्मान के साथ जीना है, कि हमें पवित्र रहना है, कि हम में गरिमा होनी चाहिए, कि हम चीज़ों और पैसों की चोरी नहीं कर सकते हैं और परोपजीवी नहीं । हम दूसरों को नहीं मार सकते हैं, पीट नहीं सकते और हम  कठोर बातें नहीं कह सकते हैं, यह एक ही हैं। और यह कि हम में सम्मान हो, उन सभी के लिए सम्मान, जो उत्कृष्ट है। उन सभी संतों के लिए सम्मान, जो सहज योगी हैं। और उन नेताओं के लिए सम्मान जो आपकी माता का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस सब के होने से हम बहुत भिन्न बन  जाते हैं। हम अलग जाति  हैं। हम सदाचारी हैं, हम धार्मिक हैं और हमें ऐसा होने  पर गर्व है। हम इन सब चीजों पर निश्चित है। हम हर बात को जानते हैं। और हम परमात्मा के प्रेम और करुणा का साकार रूप हैं। हम यही हैं। हम आम लोग नहीं हैं।

मैंने एक बच्चे से पूछा, “आपका मित्र कौन है?” 

उसने कहा, “केवल एक”! मैंने पूछा “क्यों?” 

“क्योंकि वह एक सहज योगिनी है, बाकी सभी सामान्य लोग हैं”।

 “और शिक्षक?”

 “बहुत साधारण”। 

“और आपकी प्रधानाचार्य कैसी है?

 “वह अति साधारण है!”

फिर मैंने उसे प्रधानमंत्री की तस्वीर दिखाई। उसने उसे देखा और वह बहुत आश्चर्य चकित थी। उसने कहा, “यह मेरी हेडमिस्ट्रेस से भी अधिक साधारण है”। 

उसने बड़े असंतोष से कहा, “माँ, आप अपने साथ ऐसी तस्वीरें क्यों रखती हैं?” तो हम ऐसे ही हैं, बच्चे हमसे ज्यादा समझते हैं, क्या ऐसा है? क्योंकि कभी-कभी; हमारा मस्तिष्क शायद हमारे विरुद्ध होता है, अति विकसित मस्तिष्क! तो जैसे कि कल मैंने बहुत लोगों में एकादशा देखा, मुझे आश्चर्य हुआ। इसलिए, मैंने उनसे कहा कि केवल यह कहें, “माँ, आप मेरे मस्तिष्क में रहें, क्योंकि मुझ में बुद्धि नहीं है।” मैं बहुत सरल हूं। आप सभी को मेरे जैसा सरल बनना चाहिए। अत्यंत सरल व्यक्ति! यह बहुत प्रभावशाली है!

मैं कहूँगी कि कल मैं दो महिलाओं को देखकर थोड़ा हैरान थी, वह बहुत भावनात्मक रूप से परेशान थीं। बल्कि भयंकर ढंग से परेशान। कार्यक्रम के बाद मैं उनसे मिलना चाहूंगी।

अब मुझे लगता है कि मैंने अधिकांश बिंदुओं के विषय में बता दिया है। लेकिन अगर आपका कोई प्रश्न है, तो आप आज मुझे आज पूछ सकते हैं।

सहज योगी: श्री माँ, हम एक ही चक्र को महसूस करते हैं, पैरों की उंगलियों पर।

श्री माताजी: क्योंकि आप में एकीकरण नहीं है, इसलिए। आपको सामूहिक होना पड़ेगा। आपको अधिक सामूहिक होना होगा; शरीर को सामूहिक होना है। 

बात यह है कि यदि आप एक सामूहिक व्यक्ति नहीं हैं, तो कभी-कभी, आप उस को पैरों पर, कभी हाथ पर, कभी सिर में अनुभव करेंगे। यह अच्छी बात नहीं है। आपको अधिक सामूहिक बनने का प्रयास करना चाहिए, आपको अधिक लोगों से मिलना चाहिए, अधिक रुचि लेनी चाहिए। 

आप देखेंगे कि जब तक आप इसका उपयोग नहीं करते हैं, तब तक आप का शरीर कुशलता से काम नहीं करेगा। आप देखें, यदि आप इसे केवल व्यक्तिगत रूप से कार्यान्वित करते हैं, तो यह सामूहिक रूप से विकसित नहीं होगा, क्योंकि आप इसका उपयोग कहां कर रहे हैं? 

आप दूसरों को देने के लिए अपने आप को ठीक कर रहे हैं। और अगर आप इसे नहीं देते हैं, अगर आप इसे सामूहिक रूप से कार्यान्वित नहीं करते हैं, तो इसका संचालन नहीं होता है। 

उदाहरण के लिए, जैसे एक फल है और आप इसे एक वृक्ष से तोड़ते हैं, और आप इसे बाहर पकाते हैं, तो यह बहुत जल्द ही सड़ जाएगा। लेकिन अगर यह वृक्ष से जुड़ा रहता है तो यह स्वयं ही पक जायेगा और स्वयं को और पेड़ को एक उचित पहचान देगा। और इसका स्वाद भी अच्छा होगा। और जो उस वृक्ष के नीचे आएंगे, उन्हें उस वृक्ष के फल प्राप्त होंगे। लेकिन एक फल जो अलग हो गया है वह कुछ समय बाद खो जाएगा। इसी प्रकार हमें अति सामूहिक होना है।

सहज योगी: हम विवेकशीलता का विकास कैसे करें, माँ?

श्री माताजी: विवेक हम्सा चक्र के माध्यम से आता है। और हम्सा एक बहुत ही साधारण सी चीज है, नाक में कुछ घी डालना है – भौतिक चीज है। भावनात्मक पक्ष पर, व्यक्ति को बहुत अधिक नहीं रोना चाहिए। या, विशेष रूप से, महिलाएं बहुत अधिक रोती है। मुझे भी कभी-कभी रोने का मन करता है, लेकिन शायद ही कभी । इसलिए कभी-कभी पुरुषों को भी रोना चाहिए।

अब आध्यात्मिक रूप से, विवेक का विकास चैतन्य की अनुभूति से जागृत होता है। जब आप में चैतन्य का विकास होता है, तो आप स्वतः ही सही और गलत की पहचान करते हैं। आप इतने बड़े कंप्यूटर हैं। इसे अपने पूरे तरीके से काम करना होगा, और फिर आप हैरान होंगे कि आप किस प्रकार के कंप्यूटर हैं।

मैं अब आपको “वारेन” का उदाहरण देती हूँ। जब वॉरेन सो रहे थे, पैट के पति “[डेविड] प्रोल”, किसी उद्देश्य के लिए मेरे घर को माप रहे थे। बेचारे “डेविड” काम कर रहे थे, “वॉरेन” सो रहे थे। और सपने में, उन्होंने देखा कि वह आखिरी माप ले चुके है। और अपनी आधी नींद में वह उठ गए और उन्होंने कहा कि इस घर का माप है, कितना….?

वारेन: तीन हजार नौ सौ सोलह वर्ग फुट।

श्री माताजी: तीन हजार नौ सौ सोलह वर्ग फुट। और ‘बिल्कुल’ यही “डेविड प्रोल” ने लिखा था! बेचारे “डेविड” ने सब कुछ मापने में इतनी मेहनत की थी! वास्तव में वह अपनी कुर्सी से गिर गए, आप देखें, वह बैठ नहीं सके !

जैसे कि आज मैंने “गुइडो” से कहा कि मुझे लगता है कि मैंने तीन सौ अस्सी पाउंड खर्च किए। और उसने कहा, नहीं, यह तीन सौ थे। मैंने कभी गणना नहीं की, कुछ भी नहीं, मैंने बस ऐसे ही कह दिया । और “गुइडो” ने जब गणना की तो उनके अनुसार, यह 379 थे, लेकिन मैंने उन्हें  एक पाउंड अधिक दिया था! तो यह 380 हुए ।

यह एक तथ्य है! और इस प्रकार आप कंप्यूटर बन जाते हैं। सारा गणित आपके दिमाग से आता है। यह इतना क्रियाशील है। लेकिन सबसे पहले आपको अपनी भक्ति को एकाग्र करना होगा । ऐसा ही व्यक्ति उसे प्राप्त करता है। बहुत सारे आशीर्वाद आप सभी में व्यक्त होने की प्रतीक्षा में हैं। बस आपको अपने प्रयासों को भक्ति और समर्पण में केंद्रित करना होगा।

परमात्मा आपको आशीर्वाद प्रदान करें ।