Shri Krishna Puja: Announcement of Vishwa Nirmala Dharma

Nashik (भारत)

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श्री कृष्ण पूजा नासिक – 19.01.1985

Announcement of Vishwa Nirmal Dharma

कल, भाषण में, मैंने सहज योग के बारे में एक नई घोषणा की थी। लेकिन पूरा भाषण मराठी भाषा में था और इससे पहले कि इसका अनुवाद हो, मैं आपको बताना चाहूंगी कि मेरी घोषणा क्या थी।

यह एक प्रश्न था कि, अमेरिका और इंग्लैंड में कोई भी ट्रस्ट, जो एक धर्म नहीं है, उसे पंजीकृत नहीं किया जा सकता। वास्तव में सहज योग एक धर्म है। निस्संदेह, विश्वव्यापी धर्म है, एक ऐसा धर्म, जो सभी धर्मों को एकीकृत करता है, सभी धर्मों के सिद्धांतों को एक साथ लाता है और दर्शाता है – एकाकारिता दर्शाता है। यह सभी अवतरणों को एकीकृत करता है। सभी शास्त्रों को एकीकृत करता है। यह एक बहुत ही समन्वित महान धर्म है, जिसे हम विश्वव्यापी धर्म कह सकते हैं और हिंदी भाषा में इसे ‘विश्व धर्म’ कहा जाता है।

अब इसे और अधिक विशेष बनाने के लिए, मैंने सोचा कि, यदि आप विश्वव्यापी धर्म कहते हैं, तो यह उस विशेष रूप में नहीं हो सकता है, जैसे बोद्ध लोग ऐसे लोग हैं, जिन्हें ईसा मसीह के बाद में ईसाई और अन्य लोगों के बाद, अवतरण के अनुसार I ​अब इस बार का अवतरण ‘निर्मला’ होने के नाते, मैंने सोचा कि हम इसे कह सकते हैं “धर्म, जो विश्वव्यापी है निर्मला के नाम पर”, इसलिए इसे छोटा करने के लिए, मुझे लगा कि हम इसे “यूनिवर्सल निर्मला धर्म” (विश्व निर्मल धर्म) कह सकते हैं। इस बारे में आप क्या कहते हैं?

अब निर्मला, आप सभी ‘निर्मलाइट्स’ कहलाएंगें । अर्थात, वह जो निर्मला द्वारा जागृत  किये गये हैं, ​यह भाता है, ​यह “लाइट्स” शब्द भाता है, यह शब्द ‘प्रकाश’ बहुत अच्छी तरह से आप लोगों के साथ जाता है, क्योंकि आप जागृत हैं। अन्य सभी केवल बिना किसी लौ के दीपक (Light) हैं, अतः यह ‘निर्मलाइट्स’ है, अर्थात ‘निर्मला’ द्वारा जागृत किए गए लोग। इसलिए अगर आपको नाम पसंद है, तो हम इसे ‘विश्व (यूनिवर्सल) निर्मला धर्म’ कह सकते हैं। यदि वह आपके लोगों को पश्चिम में सही लगता है, तो मुझे लगता है कि यह एक अच्छा नाम है। इसलिए, हमने अब घोषणा की है और अति स्पष्ट कहा है कि यह एक ऐसा धर्म है जो एक शुद्ध विश्वव्यापी धर्म है। जब आप कहते हैं कि ‘यूनिवर्सल निर्मला’ जिसका अर्थ है, शुद्ध या निष्कलंक धर्म। और मुझे आशा है कि आप इससे सहमत हैं।

अब, एक बार जब हम इस धर्म को स्वीकार कर लेते हैं, एक बार हम विश्वव्यापी हो जाते हैं तो हमें अपनी छोटी-छोटी जाति, रीति-रिवाज़, अपनी पुरानी मृत परंपराओं और उन चीजों के बारे में भूलना होगा, जो हमारी आत्मा के अनुकूल नहीं हैं। जो भी आपकी आत्मा के लिए सुखद (सहज) है, उसे हमारे धर्म के सिद्धांत के रूप में स्वीकार करना होगा। और जो भी इसके लिए सुखद (सहज) नहीं है, हम स्वीकार करने वाले नहीं हैं।

इसलिए जिस भी ढंग से मैंने आपको बताया है, ये मेरी शिक्षा है। मेरी शिक्षा से, आपने जो कुछ भी प्राप्त किया है, उसका इस धर्म से नाता है। बेशक, इस धर्म में, जैसा कि आप जानते हैं, सभी महान धर्म-गुरु वास्तव में सम्मानित किये जाते हैं। इस धर्म का सबसे अच्छा गुण है कि, अब तक, सभी धर्म, यद्यपि वे सच्चे धर्म थे, सच्चे लोगों और धर्म-गुरुओं द्वारा स्थापित किए गए थे, सभी (धर्म), उनके शिष्यों द्वारा बर्बाद हो गए। कारण यह था कि उन्हें आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया गया था पहली बात, और दूसरी यह कि उस धर्म का कोई प्रमाण नहीं था।

अब हम उन्हें प्रत्येक का प्रमाण दे सकते हैं कि यह आपके शरीर के लिए किस तरह से अच्छा ​है। जब एक बार आप जानते हैं कि आप इसे प्रमाणित कर सकते हैं, कि यह आपके लिए अच्छा है, तो लोग इस धर्म को अधिक तीव्रता से अपनाएंगे और वह इसे ​​जाँच सकते हैं। क्योंकि शब्द ‘धर्म’  लोगों को काफी बेचैन करता है। उन्हें लगता है, कि धर्म का मतलब है कि आप (बंधन में) बांध रहे हैं और फिर आपको किसी प्रकार की पारंपरिक शैली में रहना होगा जो मृत है। लेकिन यहां हमारी परंपराएं ये हैं कि हम स्वीकार करते हैं, उसको जो हमारी आत्मा और हमारे उत्थान के लिए सुखद (सहज) है । अतः यह हमें पूर्ण स्वतंत्रता देता है कि हम पूरी तरह से आनंद ले सकें। इन परिस्थितियों में, हम भूल जाते हैं, हम भूल जाते हैं कि हम किस देश से आते हैं, हम किस जाति से आते हैं, हम किन परिवारों से आते हैं, इन सभी अतीत की बातों को हम भूल जाते हैं और हम दुनिया भर में अपनी सुंदर सुगंध फैलाने वाले, नए खिले हुए कमल बन जाते हैं। इसलिए ये सभी पुरानी धारणाएं, जो हमारी प्रगति में बाधा बन रही है, उन्हें त्यागना चाहिए।

अब, मैंने उन्हें एक और बात बताई कि इस दुनिया में हम तीन तरह के लोग हैं, मुख्य रूप से विभाजित, एक वह लोग हैं जो तामसिक हैं, दूसरे वह लोग हैं जो राजसिक हैं, (अब शांत रहें और ध्यान दें) और तीसरा व्यक्ति वह हैं, जिन्हे सात्विक कहा जाता है। अब तामसिक लोग हैं, जैसा कि हम कहते हैं कि, वे गलत चीजें अपनाते हैं, गलत चीजों पर अधिक ध्यान देते हैं और फिर अपना सारा जीवन बर्बाद कर देते हैं। वह कहेंगे, उदाहरण के लिए, एक महिला, वह अपने पुत्र से ​इतना जुड़ जाती है, उसे अपने पुत्र से इतना लगाव हो जाता है कि वह उसकी सारी गतिविधियों को आवृत (ढक) देता है, उसका पूरा जीवन, उसी से आवृत हो जाता है, जो कि एक गलत बात है। और यह कुछ भी हो सकता है। जैसे मैंने अधिकांश सहज योगियों को देखा है, जब वे आते हैं, “माँ, कृपया मेरी बहन का इलाज करें, कृपया मेरे पिता का इलाज करें, मेरे पति, मेरे पति का इलाज करें …”मेरे पति” ये सामान्य है।

तो ये सभी बातें पूर्णतः तुच्छ और अनुचित हैं। तो वे लोग, जो ऐसी क्षुद्र चीजों में लिप्त होते हैं, जो कि गलत हैं और अपना जीवन बर्बाद करते हैं, वे लोग ‘तामसिक’ हैं। तो यह एक अति है। इसमें अच्छाई यह है कि ऐसे लोग प्यार करने वाले होते हैं, वे स्नेही होते हैं, वे दयालु होते हैं, वे आक्रामक नहीं होते हैं, लेकिन वे अपने पारिवारिक जीवन और पारिवारिक विषयों से इतने अधिक जुड़े हुए होते हैं कि उनके लिए बस परिवार ही है और कुछ नहीं। अब ये लोग बहुत बाएं तरफ झुके होने के कारण, इन लोगों के सामान्य से बहुत अधिक संतान होती हैं। इसलिए हमारे भारत में अधिक बच्चे हैं।

अब एक और शैली पश्चिमी शैली है, जिसे राजसिक कहा जाता है। अब राजसिक लोग वे  हैं जो यह नहीं जानते कि क्या सही है और गलत क्या है। वे कहते हैं, उन्हें लगता है कि वे पूरी दुनिया में सबसे बुद्धिमान हैं और वह कहेंगे, “यह भी अच्छा है, वह भी अच्छा है।” जैसे शैतान भी अच्छा है, और भगवान भी अच्छे हैं। आप देखते हैं, वे इस तरह से होतें हैं, जैसे कि वह बहुत उदार लोग हैं, वह बहुत दयालु हैं, दिखावा करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन ऐसे लोग बेहद दाईं तरफ चले जाते हैं। विशेषतः उनकी महिलाएं बहुत दाईं पक्षीय होती हैं। जैसे ही महिलाएं दाईं पक्षीय हो जाती हैं, पुरुष अपना प्रभाव खो देते हैं। क्योंकि मुझे कहना चाहिए, महिलाएं उन पर हर समय हावी होने लगती हैं, इसलिए पुरुष निष्क्रिय (बंद दिमाग) हो जाते हैं। आप बहुत स्पष्ट रूप से देखते हैं। और महिलाएं सब निर्णय लेती हैं, वे उनके सिर पर बैठती हैं, वे ही निर्णय लेंगी और पुरुष सब कुछ स्वीकार करना शुरू कर देते हैं, “सब ठीक है, सब ठीक है” क्योंकि वे किसी भी कीमत पर शांति चाहते हैं। लेकिन “सही” जैसा कुछ नहीं है, इसलिए वे असमंजस​ हैं। आप किसी से भी पूछें, “मैं उलझन में हूँ।” उन्हें यह कहने में शर्म भी नहीं आती । भारत में अगर कोई कहता है, “मैं भ्रांति में​ हूँ,” तो वे कहेंगे, “पागल खाने जाओ।” लेकिन, वे कहते हैं, “मैं असमंजस में हूँ,” क्योंकि इससे वे यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि मैं बहुत जागरूक हूं, क्योंकि मैं व्याकुल हूं, आप देखते हैं? यह कोई लक्षण नहीं है। आपको सही रास्ता पता होना चाहिए। आप कैसे असमंजस मे हैं? अगर आपको सही मार्ग नहीं पता है तो आपके दिमाग में कुछ गड़बड़ है। और ऐसा ही होता है कि लोग निर्णय नहीं ले पाने के परिणामस्वरूप, व निर्णय नहीं लेने के फलस्वरूप, हर समय संदेह करने वाले, कि यह अच्छा है, वह अच्छा है, मुझे यह करना चाहिए या मुझे वह नहीं करना चाहिए। वे वास्तव में कभी-कभी मूर्ख ​बन जाते हैं। उनके लिए, यह उचित है, अगर उनके गालों को नाखूनों या कुछ पिनों या उस तरह की चीज़ से छेदन करना, जिसे आप दंड या कुछ और कहते हैं। वह भी अच्छा है, ठीक है। आखिरकार, “क्या गलत है, क्या गलत है?” आप देखें, उन्हें दंडित होने दें? सभी तरह की मूर्खतापूर्ण बचकानी बातें वे करते हैं। और वे ऐसे मूढ़ बुद्धि (Idiots) बन जाते हैं, मैं आपको बता रही हूं। और उनके लिए, कुछ भी गलत नहीं है। वह दूसरे व्यक्ति पर आक्रामक होंगे। वे जाएंगे और  आक्रामक होंगे, अन्य देशों में और सभी प्रकार के प्रभुत्व वाले, आक्रामक कार्य करेंगे, बिना महसूस किए, कि इसमें कुछ भी गलत है। मेरा मतलब है, वे अपने सभी दिशा निर्देशों को खो देते हैं। कोई विवेक नहीं है। कोई मार्गदर्शन नहीं है। और वे नहीं जानते कि उन्हें कैसे करना है। यह एक राह भटके हुए जहाज की तरह है, आप देखिए। लेकिन फिर भी, इसका सबसे बुरा पक्ष यह है कि आप सोचते हैं, “क्या गलत है?” मेरा मतलब है, अगर यह मूर्खतापूर्ण नहीं है, तो ये सीधे नरक में जाने से खुश है। इस तरह की मानसिकता विकसित होती है और यह बहुत भयंकर है।

अब, यहाँ, स्वाभाविक रूप से इस तरह के दाईं पक्षीय लोग , वे अधिक  बच्चे पैदा नहीं करते हैं। वे बच्चे पैदा नहीं करते, इसीलिए इन सभी पश्चिमी देशों में (जनसंख्या) कमी हो रही हैं क्योंकि प्रेम का पक्ष गायब है। उनके लिए, प्यार भी यांत्रिक है। प्यार भी एक प्रकार की वस्तु है, “मुझे सोचने दो तब मैं प्यार करुंगा।” फिर वह इसे लिखेंगे, मुझे नहीं पता कि वह अपने प्यार के लिए भी क्या करते हैं, अवश्य योजना बनाते होंगे कि कैसे प्यार करें, वे सारी सहजता खो ​देते हैं। बहुत अधिक मशीनी होने और सोचने के कारण, वे सभी सामान्य विषयों की भी सहजता को खो देते हैं और इसलिए वे ऐसे होते हैं। हर समय वे भ्रांति में रहते हैं, वे कहते हैं, ”ओह! क्या मैंने सही किया? क्या मैंने गलत किया? क्या मुझे ऐसा करना चाहिए? ” और वे किसी का भी आनंद नहीं ले सकते। यहां तक कि ऐसा है, अगर आप उन्हें कुछ खाने के लिए देते हैं, तो वे सोचेंगे, “क्या यह अच्छा है या बुरा?” आप इसे खाएं! अपने आप देखो! आपकी जीभ आपको बताएगी। लेकिन जीभ भी वही करती है, मुझे लगता है, उनके मामले में। वे ऐसी उलझन की स्थिति में हैं कि वे अपने विवाह का आनंद नहीं ले सकते, वह अपने पारिवारिक जीवन का आनंद नहीं ले सकते, वह कुछ भी आनंद नहीं ले सकते। वह पूर्णतः आनंदहीन हैं और आनंद की खोज में वे सभी प्रकार की निरर्थक बातें करते हैं जो इतनी मूर्खतापूर्ण और इतनी बुद्धिहीन (मूढ़) और अधार्मिक हैं। फिर भी वे कभी आनंदित नहीं होते। वह कहेंगे, “हम बहुत आनंद में हैं।” प्रमाणित करो​​! ऐसे तमाम विदूषक आपने अवश्य आसपास देखा होगा। इसलिए अब हम उस विदूषक से संबंध नहीं रखते हैं इसलिए आप सतर्क हो जाएं और कहें कि हम जानते हैं कि क्या गलत है, सही और गलत क्या है। संदेह करके रुको नहीं। । अगर आप संदेह करके डगमगा रहे हैं तो आप एक सहज योगी नहीं हैं। अब सही राह पर खड़े हो जाएं और कहें कि, “​ऐसा ही ​है और मैं यह करने जा रहा हूँ।” अगर आप यह जानते हो तो आप  सात्विक हो, और आप मध्य में हो।

इसलिए आप न तो अपने परिवार में बहुत ज्यादा लिप्त हो, यह, वह, और न ही आप अपने विचार  औप समझ में लिप्त हो बल्कि आप मध्य में हैं, जहां न तो आप सोचते हैं और न ही आप चिंता करते हैं, लेकिन आप मध्य में स्थिर रह कर खड़े हैं वर्तमान क्षण का आनंद लेने के लिए, जिसका आनंद लिया जाना है। और इसलिए यह एक स्‍वाभाविक बात है जिसे आपमें स्थित होना है। अब पश्चिम में स्‍वाभाविकता का बड़ा शोर है। उनमें स्‍वाभाविकता कैसे आ सकती है? उनमें स्‍वाभाविकता नहीं हो सकती, इसीलिए उन्हें लगता है कि थोड़ी सी चुभन हो, कुछ संवेदना हो अच्छी है, वह सनसनी के खोज में ​रहते है। यहां तक ​​कि उन्हें अखबारों में भी रोज कुछ सनसनीखेज होना चाहिए क्योंकि वह इस तरह के असमंजस के कारण शिथिल हो रहे हैं। तो अब आप तय करें! और निर्णय केवल उस व्यक्ति में ही आ सकता है जिसमें सुबुद्धि विकसित हुई है, सहज योग की सूझबूझ द्वारा, अपनी कुंडलिनी के माध्यम से, कि आपको मध्य में रहना होगा।

यहाँ तक कि शादी के मामले में भी। यहां तक ​​कि अगर आप उनसे शादी करते हैं, तो उसके बाद, “​माँ, मैं ​सोचता हूं कि क्या मैं उसके साथ निभा सकता या निभा ​सकती हूं ?” मैंने बोला क्यों? आप ऐसा क्यों सोच रहे हैं? ” “मुझे लगता है कि माँ” …”ओह, यह आपकी पत्नी है! आनंद लें!” मैं शादियाँ तय करने में व्यस्त हूं। लेकिन मुझे आशा है कि आप मेरी सारी कोशिशों, मेरे सारे प्रयासों को बेअसर नहीं करेंगे। क्योंकि मैं अभी भी उनमें से कुछ को देखती हूँ, जो शादीशुदा हैं, थोड़े दुखी दिखते हैं। क्योंकि आप सोचते हैं, क्योंकि आप चाहते हैं कि वह इस तरह से रहें, वह वैसे ही हैं जैसे वह हैं, आनंद लेने की कोशिश करें! अब आप अपनी पत्नी को क्यों बदलना चाहते हैं और अपने पति को बदलना चाहते हैं, सब कुछ बदलना चाहते हैं? आप शादीशुदा हो, उसे ऐसे ही ​होना है । ​किसी भी हाल में आप भी बदल ​जाएंगे, जैसे-जैसे आप उम्र में बढ़ेंगे। इसलिए हमें यह समझना चाहिए: “मैंने प्रत्येक पल अपने आप में कितना आनंद उठाया है?” यही एक सहज योगी की परीक्षा है। कुछ लोग जिनकी शादी हुई है, उनके पहले से  बच्चे होंगे क्योंकि उनका तलाक हो चुका है। कुछ ऐसे भी हो सकते हैं जिनके कुछ पूर्व रिश्ते ​रहे ​भूल जाइए। अन्यथा यह दयनीय स्थिति दूर होने वाली नहीं है। इसलिए वह सब भूल जाओ जो दुख​दायी है, मध्य में आओ और हर चीज का आनंद लो।

अब, पहली बार मैं विधवा विवाह करवाने जा ​रही हूं। भारत में विधवा विवाह एक ऐसी चीज है जिसके लिए बहुत समय पहले प्रयास गया था, लोगों ने इसके लिए प्रयास किया लेकिन कहा जा सकता है कि यह इतना सफल नहीं हुआ था।

अब, यदि आपने एक विश्वव्यापी धर्म बनाना है, तो आप लोगों को एक जगह से दूसरी जगह शादी करनी होगी। आपको करनी होगी! यह मुख्य बातों में से एक बात है। हम इसे रोटी-बेटी कहते हैं, इसका मतलब है कि आपको भोजन करना ​पड़ेगा​, भारत में मैंने ऐसे लोगों को देखा है जो भोजन भी नहीं खाएंगे, मैं भारत में इसके बारे में बात नहीं करना चाहती क्योंकि वे इसके बारे में व्यक्तिगत हैं, कि उन्हें कब किसके साथ भोजन करना है। उनके अपने संबंधों में भी ऎसा है, अगर थोड़ा जातिगत अंतर है तो वे उनके घर पर भोजन नहीं करेंगे। ऐसा करने पर उन्होंने जो प्राप्त किया है वह है भुखमरी। वह भूखे रहने का बुरा नहीं मानते। लेकिन वह एक विशेष जाति में भोजन नहीं करेंगे क्योंकि यह एक भिन्न​ जाति है। ऐसे मूर्ख लोग भी यहाँ रहते हैं। तो, यह सब ख़त्म करना होगा।

गाँधीजी ने कोशिश की, इससे पहले कई लोगों ने कोशिश की, कि आपको बाहर शादी करनी चाहिए, लेकिन उन्होंने विदेशों में शादी करने की बात नहीं कही, अन्यथा उनकी दस गुना अधिक हत्या कर दी गई होती। लेकिन अब मैं कह रही हूं, अब यह ‘​​विश्वव्यापी ​धर्म’ के बारे में हम बात कर रहे हैं इसलिए हमें इन विवाह को स्वीकार करना चाहिए और विवाह की शुचिता को बनाए रखना चाहिए।

अब आप महिलाएं, मुझे विशेष रूप से आपसे अनुरोध करना है, कि अब आप ही हैं जो सहज योग को नष्ट करेंगी या बढ़ाएंगी। यदि आप अपने पति पर ​हावी होने और करने की कोशिश करती हैं, तो वे सामान्य (Normal) लोग नहीं ​रहेंगे​ ​और मुझे यहां निष्क्रिय लोग नहीं चाहिए। आपको मीठा, बेहद मीठा, अच्छा, दयालु और सतर्क बनना होगा। तुम देखो, कि इसी प्रकार आप अपने पति को नियंत्रित कर सकते हो। आप नहीं जानते कि कैसे वश में करना है। आप बेवकूफ़ महिलाएं हैं, मुझे कहना चाहिए। आप देखें, हम​​​ने कैसे, वास्तव में अगर आप मेरे पति से पूछेंगे तो वह कहेंगे, “मैं इतना आश्रित हूं, मुझे नहीं पता कि मुझे क्या करना है।” यह बिल्कुल वही है, पूर्णतः निर्भर, 100 प्रतिशत। और फिर वह कभी-कभी क्रोधित हो जाते हैं, “तुमने मुझे निर्भर बना दिया, अब आप मुझे छोड़कर कैसे जा सकती हो?” लेकिन आप लोगों के हास्यजनक विचार हैं, आप पुरुष नहीं हैं, आप महिलाएं हैं। आप पुरुषों की तुलना में बहुत अधिक शक्तिशाली हैं। लेकिन मूर्खता से अगर आप कम शक्तिशाली बनना चाहती हैं, तो पुरुष बन जाइए। तो महिलाओं को थोड़ा सरल, आसान, दयालु, करुणामयी, स्नेहशील बनने की कोशिश करनी चाहिए। उन्हें हावी होने, उन्हें लगता है कि वह हावी हो रहे हैं, उन्हें हावी होने दें। कोई अंतर नहीं पड़ेगा। यदि मान लो आपके पति कहते हैं, “ठीक है, मुझे नीला रंग पसंद है।” आप हरा ​रंग ​खरीदें, कहें कि यह नीला है, वह आपका विश्वास करेंगे। वह नीले और हरे का फर्क नहीं जानते। तुम देखो, वे बहुत सी बातें नहीं जानते हैं। आपको नहीं पता कि वे जीवन के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं। जो चीजें आपके लिए महत्वपूर्ण हैं, वे नहीं जानते हैं, वह केवल यह कहने की कोशिश करते हैं कि “ऐसा करो​”, लेकिन वे कुछ भी नहीं जानते हैं। मेरा मतलब है, कम से कम हमारे पुरुष ऐसे ही हैं। बिल्कुल निराशाजनक, वे कुछ भी नहीं जानते हैं। और अगर आप उन्हें बताते हैं, ठीक है, मैं खरीद रही हूं, जैसे कि हम एक आम का पेड़ लगाना चाहते हैं। वे कहते हैं, “आम का पेड़ नहीं लगाओ।” “तो मेरे पास क्या होना चाहिए?” “नहीं, आपके पास कोई और पेड़ होना चाहिए,” कुछ अन्य नाम वे आपको देंगे। मान लीजिए कि वह कहेंगे, “कुछ ​लगा ​लो, जैसे कि नारियल का पेड़।” अब आप जानते हैं कि आप उस एक विशेष जगह पर नारियल का पेड़ नहीं लगा सकते हैं। लेकिन वे नहीं जानते कि आप नारियल का पेड़ नहीं लगा सकते। तो आप कहते हैं, “ठीक है, मैं नारियल ​लगाऊंगी।” फिर आप आम को वहां रख दें। वे कहेंगे, “​यह कैसा अच्छा एक नारियल का पेड़ है” । और जब आम दिखाई देंगे, तुम देखना, जब आम दिखाई देंगे तब वह उन्हें देखेंगे, “ओह! हमारे नारियल के पेड़ ने आम दिया है! यह तो अद्भुत है। बेहतर है, यह बेहतर है ।” और फिर वे हंसेंगे।

इसलिए आपको नहीं चाहिए। वे बड़ी बातों के बारे में चिंतित रहते हैं जैसे विश्व शांति, परमाणु बम। आप इन बड़े विषयों के बारे में चिंता न करें। उन्हें इन बड़े विषयों के बारे में चिंता करने दें, आप देखें। और वह सब, उन्हें ट्रैफिक लाइट, मोटर कार और सभी के बारे में चिन्तित होने में चिन्ता करने दें। होंगे, ​जिसकी​ ​ वह चिंता करते हैं। आप उन विषयों की चिंता करें जो आपके मतलब की हैं। और आपको आश्चर्य होगा कि यह श्रम का विभाजन अधिक आनंद और अधिक प्रसन्नता देगा।

जैसे कि नाक का कार्य ​​सूंघना ​हैं, मुंह से खाना खाना है, कान से सुनना होता है। लेकिन यही मैंने पश्चिम में देखा है कि प्रत्येक व्यक्ति हर किसी दूसरे व्यक्ति का काम करता है। तुम्हें पता है, एक राष्ट्रपति कचड़ा साफ़ करने वाला भी हो सकता है। ऐसा भारत में नहीं किया जाता है। प्रत्येक इंसान की अपनी क्षमता होती है। बेशक, कुछ नहीं कोई भी बड़ा या छोटा नहीं है, लेकिन जो भी आपकी क्षमता है आपको उसके अनुसार कार्य करना चाहिए। विशेष रूप से महिलाओं और पुरुषों के साथ, यह बहुत महत्वपूर्ण है। और यदि आपने सीखा नहीं है कि मधुर कैसे बनना है, तो कुछ भारतीय महिलाओं से सीखने की कोशिश करें कि वे अपने पति को कैसे ​संभालती ​हैं।

अब सात्त्विकों के संबंध में, यह वे लोग हैं जो जानते हैं कि सही बात क्या है। वे वास्तव में साधकों की श्रेणी ​में आते​ हैं। और ऐसे साधक स्वतः ही सत्य को पा लेते हैं। ये वाले लोग हैं जो सही का चुनाव करते हैं। उनके पास एक विशेष संवेदना होती है, एक विशेष सातवीं इंद्रिय है, यह संवेदना उन्हें बोध प्रदान करती है ​। जिसे हम बहुत गहरी पैठ और शुद्ध बुद्धि कहते हैं, जो उन्हें यह समझ देती है कि यह ऐसा ही है। यही बात है। बेशक, उनमें से कुछ को समय लगता है, क्योंकि वे बायीं पक्षीय हैं अथना दायीं पक्षीय हैं, मध्य में आने में। लेकिन अगर वे ​मध्य में आते हैं, तो वे दाईं ओर भी जा सकते हैं, वे बाईं ओर भी जा सकते हैं, वह थोड़ा बहुत ऎसा कर सकते हैं, लेकिन यही लोग हैं जो सहज योग में आते हैं। जो अति में हैं, वे सहज योग में कभी नहीं आएँगे। आपको उन्हें सहज में अंदर खींचने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, विशेष रूप से पुरुष, जो दाईं ओर हैं। महिलाएं बहुत अधिक बायीं ओर या दाईं ओर,  यहां तक ​​कि वह पुरुष जो बाईं ओर बहुत अधिक हैं, जैसे कि यहां नासिक में, मुझे लगता है कि लोग अनुबंधित हैं । यदि आप बहुत अधिक अनुबंधित हैं, तो भी, आप सहज योग में नहीं आ सकते।

अब ऐसे सभी लोग, भले ही वह सहज योग में आते हैं, वे थोड़े समय के लिए रहेंगे और वे चले जाएंगे। इसलिए कभी-कभी मैं कहती हूँ ​कि वह अमुक शादी सफल नहीं होगी। आपको यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि माँ ने ऐसा क्यों कहा है। क्योंकि वे उस शादी को जानबूझकर मुझ पर बलपूर्वक लादेंगे, “नहीं, माँ, हम शादी करना चाहते हैं। हमने निर्यय ले लिया है।” और तीन दिन के भीतर वह तलाक के लिए वापस आएँगे। अतः आपको यह समझना चाहिए कि माँ ने ऐसा क्यों कहा है कि यह (शादी) सफल नहीं होगी। यह महत्वपूर्ण है, हमारे लिए यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि हमारे भीतर दूसरी और भी कई चीजें हैं जो कार्य करती हैं।

अब कभी-कभी पुरुष भी बेहद हावी हो सकते हैं जो कि उन्हें सहज में आना चाहिए … [अंदर आओ। वह यहां क्यों खड़ा है?] उन्हें हावी नहीं होना चाहिए। मैंने देखा है कि वह बहुत हावी हो जाते हैं। भारतीय लड़कियों से शादी करने वाले कुछ पुरुष इतने हावी हो गए हैं कि मैं हैरान हूं, उन्होंने इसे कैसे सीखा? और फिर पत्नी को बताने की कोशिश करें, “यह करो, वह करो, वह करो,” अगर वे वैसा नहीं करती हैं तो उन्हें बुरा लगता है। इटली के लोगों की भी आदत है, मैंने देखा है। वह इटैलियन महिलाओं पर भी बहुत अधिक हावी होते हैं। और यूनानी भी। क्योंकि वे हमारे जैसे परंपरावादी माने जाते हैं, आप देख रहे हैं, इटालियन, यूनानी और मिस्र और भारतीय। लेकिन भारतीय सबसे बुरे हैं … और मैं बाकी लोगों की गिनती ​नहीं कर सकती। लेकिन वे अपनी महिलाओं पर हावी होने की कोशिश करते हैं। पैसा वह नियंत्रित करेंगे, इसको नियंत्रित करेंगे, उसको  नियंत्रित करेंगे, वह महिलाओं को नियंत्रित करेंगे, परंतु वे स्वयं को नियंत्रित नहीं कर सकते। तो, यही है जिसे ​करने की हमें कोशिश नहीं करनी चाहिए। कि जब महिलाओं की बात आती है, तो आपको उनका सम्मान करना चाहिए। वे आदरणीय हैं। और यदि आप उनका सम्मान नहीं कर सकते, तो आप उनसे शादी नहीं कर सकते और न उनके साथ रह सकते हैं।

अब ये लोग, जो बहुत ही दबंग, उग्र स्वभाव के, उलझे किस्म के लोग हैं, वे वास्तव में सहज योगिनियों को बिगाड़ देते हैं, मैंने उन्हें देखा है। बहुत अच्छी सहज योगिनियां ऐसे पुरुषों द्वारा बिगाड़ दी गईं हैं। उनसे शादी करवा कर, कभी-कभी मुझे महसूस होता है: मैंने इस भयानक आदमी से इस अच्छी लड़की की शादी क्यों करवाई? क्योंकि लड़की, सबसे पहले, ऐसे आदमी का विरोध करती है। वह कहती है, “माँ, मैं ऐसे आदमी को सहन नहीं कर सकती। यह मेरे लिए बहुत ज्यादा है, मैं बस .. यह बहुत असहनीय है। वह बहुत असभ्य है। वह विचित्र ढंग से व्यवहार करता है।” और फिर वह स्वयं भी उसी तरह का व्यवहार करने लगती है। उसकी भाषा बदल जाती है, शैली बदल जाती है, यह आश्चर्यजनक बात है! एक व्यक्ति जो एक अच्छी सहज योगिनी है। अत्यंत अच्छी सहज योगिनी, ​हमारे पास लंदन में है, अमेरिका में है। मैंने ऐसी लड़कियों को देखा है। इसलिए मैं आपसे निवेदन करुँगी कि आप अपनी मनोवृत्तियों  और यह सब उग्रता अपनी पत्नियों पर डालने की कोशिश न करें क्योंकि तब वे प्रतिक्रिया करती हैं और आप उनके जीवन और उनके उत्थान को बर्बाद कर देंगे, साथ ही साथ, ​स्वयं अपना ​आपने पहले ही बर्बाद कर दिया है। शांत रहने का प्रयास करें। आपको ​​शांत, प्रिय, स्नेही व्यक्ति बनना है​।

आपके पास क्रोधित होने का कोई कारण नहीं है चाहे कुछ भी हो। कोई क्रोध नहीं, बिल्कुल नहीं। इसलिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। आपको याद रखना चाहिए कि श्री कृष्ण ने शुरुआत उग्र स्वभाव से की थी। कि कैसे एक व्यक्ति अपने स्वभाव के कारण बिगड़ जाता है। क्रोध की अनुमति नहीं है। जैसे ही आपको क्रोध आता है, जाइए और स्वयं अपने आपको जूतों से पीटिए। यह सबसे अच्छा तरीका है, आप दूसरों की हर पल प्रताड़ना नहीं कर सकते। किसी को भी क्रोध ​जताने​ ​ की अनुमति नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह सहज योग पूरी तरह से नष्ट कर देगा। किसी भी कीमत पर किसी भी प्रकार से क्रोधित होने की अनुमति नहीं है। सिवाए जब आपकी माँ को  ..  बेशक उस समय मैं उन्हें रोक नहीं सकती क्योंकि यह आशा से बहुत ज्यादा है। जब लोग मुझसे अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं, तो बुरा है, पर आप क्रोधित हो जाते हैं, कोई अंतर  नहीं पड़ता।  परंतु उस समय आपको उन्हें वापस जवाब देने की आवश्यकता नहीं है। मैं उन्हें देख लेती हूं। आप चिंता ना करें, उन्हें इसका भुगतान करना पड़ेगा।

तो कोई क्रोध मत करो। बेशक, महिलाओं के लिए प्रश्न ​ही नहीं है। और उन्हें भी मुख्य परिचारिका की तरह नहीं बनना चाहिए जैसे श्रीमती थैचर है। ठीक है? जैसे, “आपने सफाई क्यों नहीं की? यह करो। वह करो।” उन्हें ऐसा नहीं कहना है। एक बार भी नहीं! बेहतर है आप स्वयं ही सब कुछ करें। अपने पति को नहीं कहना चाहिए “यह करो। वह करो।” एक नौकर की तरह। उन्हें नौकर मत बनाओ। सब कुछ करना आपका काम है। आपकी मदद करना उनकी खुशी है। यह एक तथ्य है। लेकिन आप देखेंगे कि एक बार जब आप सब कुछ करने लगते हैं तो, पुरुष आपके गुलाम बन जाते हैं। और …स्वतः ही वह कहते हैं! इसलिए क्योंकि हम आज बहुत आनंदित मनःस्थिति में हैं। इतने लोगों की  शादियां हो रही है, आपको पता है। आपके आने से ठीक पहले मुझे देर हो गई थी क्योंकि मैं विवाह की व्यवस्था कर रही थी। हमने इतने समय में लगभग दस विवाह नियोजित किए हैं।

इसलिए अब हमें मध्य में रहना होगा। हमें आनंदित मनोअवस्था में रहना होगा। हमें अपनी पत्नियों और अपने पतियों के साथ आनंदित रहना है। केवल यही एक चीज है जो आपकी अपनी है, आपकी निजी है, सच में एक महान बात है। लेकिन रोना शुरू मत करो, अतीत के बारे में विलाप करना। अतीत को भूल जाएं! इस पर चर्चा मत करो! बात मत करो! इसे कोई पसंद नहीं करता। इन सभी रोमानी निरर्थक विचारों को, उन्हें बाहर फेंक दो! वे सभी सारहीन विचार हैं। बस इसी एक महान विचार के साथ, आप एक नया जीवन सूझबूझ ​​और आनंद के साथ शुरू करने जा रहे हैं। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि आपकी माँ क्या कहती है, पिता कुछ भी कहते कुछ भी। यह हमारे लिए महत्वपूर्ण नहीं है। मैं तुम्हारी पिता हूँ, मैं तुम्हारी माँ हूँ, मैं तुम्हारी बहन हूँ, जैसे भी आप मुझे बुला सकते हो। और मैंने तुम्हें एक पत्नी दी है। इसलिए अब आप मुझे किसी भी बात के लिए दोषी नहीं ठहरा सकते।

आइए अब, हम एक नए सिरे से इस नए ‘विश्व निर्मला धर्म’ के साथ शुरुआत करते हैं। तो आप सभी ‘विश्व निर्मला धर्म’ के सदस्य हैं, ठीक है? आप सभी सहमत हैं?

सहज योगी: “बोलो विश्व धर्म निर्मला धर्म की जय”

श्री माताजी: “विश्व निर्मला धर्म” इसे इस तरह से कहें।

सहज योगी: “विश्व निर्मला धर्म की जय”