Devi Puja: How To Ascend Into Nirvikalpa

Sydney (Australia)

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             देवी पूजा, “निर्विकल्प तक उत्थान कैसे पाएँ ” 

सिडनी (ऑस्ट्रेलिया), 10 मार्च 1985

बयार चलेगी, अब आपको परेशानी नहीं होगी।

इतने उच्च विकसित बहुत सारे सहजयोगियों को देखकर बहुत खुशी होती है। मुझे यकीन है कि सभी देवी-देवता और स्वयं सर्वशक्तिमान ईश्वर इस उपलब्धि को देखकर बहुत प्रसन्न होंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है।

लेकिन मुझे बताया गया था कि आप उच्च तरीके, या ऊँची बातें जानना चाहते हैं, जिसके द्वारा आप उच्च और अधिक ऊंचाई का उत्थान चाहते हैं।

समाधि अवस्था में, सबसे पहले निर्विचार समाधि होती है, जैसा कि आप जानते हैं, निर्विचार समाधि कहलाती है। और फिर दूसरी अवस्था में, जिसे निर्विकल्प समाधि कहा जाता है, जहां यह निस्संदेह जागरूकता है, दो चरण हैं: सविकल्प और निर्विकल्प। अधिकांश सहजयोगी अब सविकल्प पर हैं, अभी तक निर्विकल्प पर नहीं हैं। और निर्विकल्प तक उठने के लिए, हमें यह समझना होगा कि हमें इसके बारे में कुछ और करना होगा।

अब तक हमारी शारीरिक समस्याएं थीं जिनका समाधान हो गया है – शारीरिक जरूरतें, सुख-सुविधाएं अब हम पर हावी नहीं हो सकतीं। हम ब्रह्मपुरी जैसी किसी भी स्थिति में रह सकते हैं। हम उस सबका आनंद लेते हैं, जो दर्शाता है कि हम अब भौतिक जीवन या पदार्थ द्वारा निर्धारित बंधनों  से ऊपर उठ गए हैं। यह एक अच्छी स्थिति है जहां हम पहुंच गए हैं, जो लोगों के लिए भी बहुत मुश्किल है। आम तौर पर, लोग बेहद उधम मचाते हैं; वे सांसारिक चीजों, सांसारिक संपत्ति, सांसारिक भौतिक समस्याओं के बारे में चिंतित हैं। उनमें से बहुत से लोग आकर मुझसे कहते, “मुझे यह नौकरी नहीं मिली है, मुझे वह नौकरी नहीं मिली है। यह किया जाना है, वह करना है।”

फिर दूसरा सूक्ष्म लगाव हमारे भावनात्मक पक्ष से है, जैसे, “मेरी माँ,” जैसे “मेरा भाई, मेरी बहन, मेरी पत्नी, मेरे बच्चे।” और हम उसके लिए सहज योग को परेशान करते रहते हैं, कि, “मेरा दोस्त ठीक हो जाए, मेरा भाई ठीक हो जाए, मेरी बहन ठीक हो जाए।”

यह एक बहुत ही सूक्ष्म बात है कि हम यह नहीं समझते हैं कि, केवल परमात्मा के राज्य में प्रवेश करने वाले ही इससे लाभ उठा सकते हैं, न कि वे जो उसमें प्रवेश नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आपका भारत में रहने वाला कोई रिश्तेदार है, तो आप उसे ऑस्ट्रेलियाई नागरिक को प्राप्त लाभ नहीं भेज सकते। इसलिए सबसे पहले हमें यह जान लेना चाहिए कि उन्हें परमेश्वर के राज्य का नागरिक होना चाहिए। तो जब तक हम उन्हें आत्म साक्षात्कार नहीं देते, उन्हें उस स्तर तक नहीं ले जाते, वे हकदार नहीं हैं। तो हमें इसमें कोई हठ नहीं होना चाहिए, कोई जिद नहीं होना चाहिए। आप में से कई लोगों ने उस हिस्से को पार कर लिया है कि, आप एक विशेष प्रकार के रिश्ते से लिप्त नहीं हैं जो सहज योग में नहीं हैं। आप में से कई लोग इससे बाहर आ चुके हैं।

लेकिन फिर उच्च आसक्तियों को कैसे दूर किया जाए? जैसे लगाव हैं कि, “मुझे सहज योग पर एक किताब लिखनी चाहिए,” या “मुझे सहज योग के लिए कुछ पेंट करना चाहिए,” “मुझे सहज योग के लिए कमाना चाहिए,” “मुझे यह सहज योग के लिए करना चाहिए।” यह भी, बहुत सूक्ष्म तरीके से, अहंकार है कि, “मुझे सहज योग का नेता होना चाहिए।” फिर ईर्ष्या होती है।

यदि माँ कहती हैं, “यह अच्छा नहीं है,” तो आपको दुख होता है। अगर माँ कहती है, “यह अच्छा है,” तो आप खुश महसूस करते हैं। इसका मतलब है कि आप अभी भी अहंकार की बहुत सूक्ष्म स्थिति में हैं, जहां आप सोचते हैं कि जो कुछ भी आप कहते हैं वह मुझे मंजूर होना चाहिए। यह कुछ [जो] बहुत सूक्ष्म है, और हम यह नहीं समझते हैं कि यदि माता इसे स्वीकार नहीं कर रही हैं, तो एक मूल ईश्वरीय कारण होना चाहिए, अन्यथा मैं क्यों इसे मंजूर नहीं करती?

तो जब आपके पास इतने सूक्ष्म लगाव भी हों, उच्च स्तर के, हमें कहना चाहिए, आपको पता होना चाहिए कि यह सब परमात्मा का काम है और हम परमात्मा के हाथों में सिर्फ निमित्त हैं।

अब हमारे पास एक बहुत अच्छा उदाहरण है, जैसा कि मैंने आपको कई बार कहा है, एक पेड़ की जड़ की नोक पर छोटी कोशिका का: जो इतनी विवेक वान है कि, जो कुछ भी कठोर है उससे बचना और जो कुछ भी नरम है उसे अपना कर पेड़ को मिट्टी में स्थापित कर देना जानती है। इसमें वह सहज ज्ञान है जिससे हम भी संपन्न हैं। और हमें इसे इस तरह से कार्यान्वित करना होगा कि हम किसी ऐसी चीज में शामिल न हों जो बेहद कठोर हो। जैसे, मैं कहूंगी, कुछ लोग तस्मानिया जाना चाहते थे। अपने संकेत से मैंने उनसे कहा, “मत जाओ। यह नहीं चलेगा।” तस्मानिया ऐसी जगह नहीं है जहां आप कुछ भी हासिल कर सकें! मुझे पता था कि यह असंभव था। लेकिन उन्हें लगा कि वे सहज योग में बहुत अच्छा काम करने जा रहे हैं, इसलिए वे वहां गए। वे सभी खराब स्थिति से ग्रसित वापस आ गए, और फिर मुझे उन्हें ठीक करना पड़ा।

तो अब तुम लोग मुझे समझने में इतनी भूल मत करना, जैसा तुम्हारा अभ्यास रहा है। लेकिन फिर भी आप वो काम करते हैं जो नहीं करना चाहिए। इसे समझने के लिए, जो कुछ भी मैं तुमसे कहती हूं, वह तुम्हारे उत्थान के लिए है, तुम्हें एक प्रकार की मनःस्थिति की जरूरत है, एक ऐसी मनःस्थिति जो एक विरक्त मन हो।

और एक व्यक्ति में वैराग्य बहुत स्पष्ट दिखाई देता है, कि वह न तो बहुत भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है, न ही बहुत शारीरिक रूप से जुड़ा हुआ है, लेकिन वह उसकी और समाज की प्रगति के बिंदु को देखता है। जैसे कोशिका जानती है कि उसे पेड़ की भलाई के लिए प्रगति करनी है, लेकिन उसमे ऐसा इस तरह से करने की सहज बुद्धि है, कि वह कभी खुद को नुकसान नहीं पहुंचाती है, और पेड़ को नुकसान नहीं पहुंचाती है।

तो जिस मन को विकसित होना है उसकी प्रगति ऐसी होनी चाहिए कि आप संतुलन के साथ, साक्षी अवस्था के साथ आगे बढ़ें, और स्वयं सुनिश्चित करें कि आपको कहाँ तक जाना चाहिए और कहाँ नहीं जाना चाहिए।

चरम पर जाना सहज योग शैली नहीं है, उत्थान है।

तो अगर आप कहीं जाते हैं और पाते हैं कि कोई उत्साह जनक परिणाम नहीं है, तो आपको पता होना चाहिए कि, सहज योग में कुछ भी गलत नहीं है, आपके साथ भी कुछ गलत नहीं है, लेकिन शायद आप सही जगह पर नहीं पहुंचे हैं या आपने सही तरीके से संपर्क नहीं किया है; आपने वैसा नहीं किया जैसा होना चाहिए था। इसलिए अपनी शैली बदलें। सहज योग में हमें समय की आवश्यकता के अनुसार अपने तरीके बदलते रहना है। आप निश्चित मात्रा नहीं हैं, अडियल रवैया नहीं हैं। ज्यादातर लोग सोचते हैं कि हम इतने अडियल हैं कि हम इस तरफ या उस तरफ नहीं जा सकते।

हमारे आंदोलन की गतिशीलता इतनी महान है – मैं तीन सौ साठ डिग्री कहती हूं – क्योंकि आप अपनी आत्मा में केंद्र में स्थित हैं। जब तक आप अपनी आत्मा में केंद्रित हैं, तब तक आप किसी भी तरह से आगे बढ़ सकते हैं। लेकिन यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है जिसे हम छोड़ देते हैं: कि हम अपनी आत्मा में केंद्रित हैं और हम जो भी गतिविधि करें, जब तक हम आत्मा में केंद्रित रहे, यह हमारे विकास के लिए और सामूहिकता के विकास के लिए आवश्यक है।

अब आइए देखें कि हमारे कुछ भावनात्मक पक्ष हैं, कैसे उन्हें हम जीत सकते हैं, यह बहुत आसान है। आप बहुत भाग्यशाली हैं, मुझे कहना चाहिए, एक तरह से, किसी भी अन्य साधक की तुलना में, क्योंकि आपके सामने मैं हूँ, आपके सामने स्वयं मैं बैठी हूँ। मैं अपने सामने बैठा हूं और मैं खुद को देखता हूं यह अनुसरण करने के एक अच्छा उदाहरण है। जब आपके पास ऐसा कोई व्यक्ति हो, तो यह देखना बहुत आसान होता है।

लोगों के पास ऐसा कोई व्यक्ति या कोई नेता या कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था जो एक आदर्श हो। तो, यह ठीक था कि वे गलत हो गए। लेकिन उनके लिए जिनके पास उनके सामने कुछ है यह बहुत आसान है। रहस्य इस प्रकार है।

अब जब आप किसी चीज़ से सूक्ष्म रूप से जुड़े होते हैं, कहने के लिए, किसी चीज़ के भावनात्मक पक्ष से, या आप हमेशा नकारात्मक पक्ष पर रहना पसंद करते हैं, या अत्यधिक सकारात्मक पक्ष – इस अर्थ में कि आप दूसरों पर आक्रमण करते हैं – तो आपको विवेकपूर्ण बनना चाहिए। यदि आप अपने आप में आक्रामकता देखते हैं, तो अपने भीतर साक्षी हों; तब फिर आप अपने आप पर क्रोध करें। इससे छुटकारा पाने का यही सबसे अच्छा तरीका है।

यदि आप एक गर्म स्वभाव वाले व्यक्ति हैं, तो बेहतर होगा कि आप अपने आप पर कम से कम दस बार क्रोध करें और फिर आप देखेंगे कि आपका स्वभाव शांत हो जाएगा। क्योंकि जो कुछ भी बाहर आ रहा है, वह आपकी ओर ही निर्देशित होगा। अब यह वह विवेक है जिसका आपको उपयोग करना है। और इसके बारे में ईमानदार रहें।

दूसरा पक्ष यह हो सकता है कि आप चीजों के बारे में बहुत ही लेफ्ट-साइडेड, भावुक, बेहद भावुक हैं और आप उन से उबर नहीं पाते हैं, तो यह सबसे अच्छा है कि: अपनी भावनाओं को मेरी ओर मोड़ो, अपनी भावनाओं को मुझ पर रखो, लेकिन मुझ पर गुस्सा मत करो . यह वह विवेक है जिसका आपको उपयोग करना है।

जब आपके पास आक्रामकता होती है, तो आप खुद पर क्रोध करें हैं और जब आपको भावनात्मक जुड़ाव होता है, तो उसे निर्देशित करें। करना बहुत आसान है। माँ को क्या भाता है? बहुत ही सरल बातें! उन्हें क्या अच्छा लगता है? फूल जैसी बहुत ही साधारण चीजें उन्हें अच्छी लगती हैं।

अब लोग कहते हैं कि, “हम बगीचे में जा रहे थे, माँ। हमने आपके लिए ये फूल ढूंढे हैं,” एक अच्छा विचार है, लेकिन आपने इस पर कितना ध्यान दिया है कि हमें माँ को एक फूल देना है? अब, उन्हें कौन से फूल पसंद हैं? उन्हें सुगंधित फूल पसंद हैं। अच्छा, सुगन्धित फूल कहाँ से मिलेंगे ? यह बहुत सरल है। यह एक दुकान है। जब आप इधर-उधर जा रहे हों, तो चौकस रहें। सुगंधित फूलों की कोई दुकान होनी चाहिए। उन महीनों में कौन से फूल आते हैं? मैं माँ को कौन सा फूल देने जा रहा हूँ?

पूरी दिशा बदल जाती है, आप देखिए। तुम मुझसे इतनी खूबसूरती से जुड़ जाते हो, और मुझे इससे कुछ हासिल नहीं करना है, लेकिन खुद को मुझसे जोड़कर, तुम कुछ हासिल करते हो। जैसे गंगा बहती है, और गंगा में डुबकी लगाओ तो गरीब गंगा को कुछ नहीं मिलता, लेकिन आपको गंगा नदी का आशीर्वाद मिलता है। उसी तरह आपको यह सोचना होगा कि अगर हमें अपने आप को माता से जोड़ना है, तो हमें अपना चित्त पूर्णत:, पूरी तरह से उस पर लगाना होगा।

छोटी-छोटी,चीजें आपको करनी चाहिए: “मैं अपनी माँ के लिए क्या करूँ? मैं  कैसे प्रसन्न करूँ?” यह महत्वपूर्ण नहीं है कि, आप मुझे क्या देते हैं, यह मायने रखता है कि आप उसमें कितना हृदय लगाते हैं।

शबरी की कहानी तो आप जानते ही हैं। वह एक बहुत ही साधारण महिला थी, बहुत कम दांतों वाली एक बूढ़ी औरत। जब राम आ रहे थे तो उन्होंने कहा: “मैं श्री राम को क्या दूं?” ठीक है, वह इधर-उधर घूमती रही। जंगल में, कुछ छोटे छोटे फल थे, जिन्हें हम बेर कहते हैं, और उसने सोचा, “हो सकता है यह मेरे राम के लिए मीठे नहीं भी हों। मैं उसे कैसे दूँगी?” तो उसने उन्हें चुना। वह अपने दांतों से उनको चख लेती थी। एक दांत से वह छेदती थी और सुनिश्चित करती थी कि यह मीठा है या नहीं। और फिर वह उन्हें इकट्ठा कर लेती थी और जो बुरे थे उसे वह फेंक देती थी। जब श्री राम आए तो उन्होंने कहा, “श्री राम, मुझे आपके लिए इसके अलावा कुछ नहीं मिला। क्या आप इसे ग्रहण करेंगे?” अब श्री राम अवतार होने के कारण इस महिला के प्रेम की गहराई को जानते थे। उन्होने इसे अपने हाथ में ले लिया। वह जानते थे कि यह एक महान हृदय के महान प्रेम द्वारा दिया जा रहा है। तो वह कहती है, “मैंने उनमें से हर एक को परखा है। कोई शंका न करें। मैंने उनमें से हर एक चखा  है। वे सभी बहुत मीठे हैं। आप उन्हें खा सकते हैं!” तो वह उसे मुंह में डालते है, अपनी पत्नी से कहते है, “मैंने पहले कभी इतने सुंदर फल, इतने महान फल नहीं खाए।” मेरा मतलब है, यह इतना साधारण फल है, आप देखिए। सीताजी, उनकी पत्नी, स्वयं एक अवतार होने के नाते, उन्होंने कहा, “आपको मुझे कुछ देने होंगे। आखिर मैं ही आपकी अर्धांगिनी हूं।” वह, बेहतर आधा हिस्सा better half हैं। लेकिन लक्ष्मण क्रोधित हो रहे थे। उसने कहा, “कौन है यह बूढ़ी औरत यहाँ बैठी और ऐसी चीजें दे रही है?” हम ऐसी चीजें नहीं खाते, आप देखिए, जो दूसरों द्वारा चख लिया जाता है; हम इसे उत्थिष्ठ कहते हैं, जिस में से कुछ हिस्सा खाया गया हो वह कभी नहीं दिया जाता है; और फिर राम को! तो वह बहुत गुस्से में था, गुस्से से आगबबूला हो गया। तो वह इसे अपने हाथ में लेती है और वह अपने देवर से कहती है, “ओह, यह मेरे लिए अति उत्तम है, मेरे देवर। मैंने कभी इतने सुंदर फल नहीं चखे थे!” अब वह आतुर हो जाता है और वह कहता है, “सच? क्या मैं थोड़े ले सकता हूँ?” सीता ने कहा, “नहीं, यह केवल मेरे और मेरे पति के लिए है! बेहतर हो आप उसी से पूछें। ” तो वह शबरी से पूछता है, “क्या आप मुझे कुछ दे सकती हैं?” सारा क्रोध काफुर हो जाता है और फिर वह उस फल की सुंदरता को देखता है क्योंकि यह प्यार से परिपूर्ण किया गया है।

तो यह ऐसा ही है। प्यार जो आपके पास है उसका विस्तार किया जाना चाहिए। और यह बहुत सरल है: यदि आप मुझसे जुड़े हुए हैं तो मैं एक ऐसी व्यक्ति हूं जो इतना फैला हुआ है, चारों ओर, यह सम्पूर्ण में व्याप्त हो जाता है, यह प्रकृति में जाता है, यह हर जगह व्याप्त होता है। आप मुझे जो भी प्यार देते हैं, वह समुद्र में एक बूंद की तरह नहीं है, बल्कि यह बूंद में समुद्र है, और यही हमें समझना चाहिए – माँ से प्यार कैसे करें।

लेकिन जब आप मुझसे प्यार करते हैं, तो अगर मैं आपसे कुछ कहूं आपको बुरा नहीं लगेगा, “यह आपके लिए अच्छा नहीं है, आप सभी को यह नहीं करना चाहिए था!” क्योंकि अगर आप ठीक होना चाहते हैं, तो आप कहेंगे, “ठीक है, माँ, यह गलत था। ठीक है, मुझे खेद है। मैं इसे फिर कभी नहीं करूंगा। ” यह बहुत ही आसान तरीका है। लेकिन इंसान के लिए यह बहुत मुश्किल काम है। ये इतना सरल है। मैंने वारेन से पूछा कि, “क्या वे मेरी बात मानने के लिए तैयार हैं?”

तब आपको आश्चर्य होगा, जब हम किसी के प्यार में होते हैं, तो हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कैसे सड़कें पार करते हैं, हम वहां कैसे जाते हैं, कैसे हम बाढ़ पार कर जाते है, यह, वह – वह प्रेम की शक्ति हमें वहां ले जाती है। उसी तरह, पूरे पेड़ के लिए पानी लाने के लिए, प्यार की शक्ति, उस छोटी सी जड़ को ले जाती है – वह अंतर्जात ज्ञान और कुछ नहीं बल्कि पूरे पेड़ के लिए उसका प्यार है – कि वह पानी तक जाती है, उसे शोषित करती है उस विशाल वृक्ष के लिए। ऐसा नहीं है कि पेड़ के लिए वही महत्वपूर्ण है। यदि एक जड़ नहीं हो, तो पेड़ को कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन जब हम संपूर्ण के साथ एकाकार हो जाता हैं तो व्यक्ति को अस्तित्व की अखंडता का अनुभव होता है। और इस अखंडता को महसूस करना है और यही सबसे बड़ा आनंद है। अखंडता को अपने भीतर महसूस करना है: सबसे बड़ा आनंद है, और इसी तरह हम उच्च और उच्चतर प्रगति करते हैं।

तो सविकल्प यह है: कि हम अभी भी अपने रिश्तों में व्यस्त हैं; हम देखते हैं कि माँ ने हमारी शादी करवा दी है, हमें अच्छे पति, अच्छी पत्नियाँ दी हैं। हम बहुत खुशी से विवाहित हैं और हम अपने विवाहित जीवन का आनंद ले रहे हैं और हम अधिक से अधिक विवाह और बेहतर विवाह की आशा कर रहे हैं। लेकिन यह उसका अंत नहीं है, बिलकुल नहीं, यह तो बस शुरुआत है, बस शुरुआत है। और इसके हो जाने के बाद, यदि आप इससे बहुत अधिक लिप्त जाते हैं, तो आप मुख्य बात खो चुके हैं, आपने बिंदु खो दिया है।

शादी हुई हैं, आप देखिए, बिजली की तरह, अगर आप प्लग में इसे मुख्य से जोड़ देते हैं, तो यह किसी से लिप्त होने के लिए नहीं है, बल्कि उस उपकरण के उपयोग के लिए है। पूरी तरह से समझना है कि, विवाह तो एक साधन है जिसका उपयोग करना है, दूसरों को प्रबुद्ध करने के उद्देश्य से।

तो पहली बात यह है कि सहज योग हमारा लक्ष्य है, हमारा धर्म है, हमारा अस्तित्व है। यही मुख्य बात है। बाकी सब बातें बाद में आती हैं। मान लीजिए, आप पाते हैं कि आपकी पत्नी या आपके पति भौतिकतावादी हो रहे हैं, तो बेहतर होगा कि आप चले जाएं। उनसे कहो, “नहीं, हम नहीं कर सकते। देखो, मेरे लिए यह महत्वपूर्ण है!” विवाह मंजिल पाने का साधन मात्र था। लेकिन मंजिल अलग है। तो हम इस साधन को त्याग सकते हैं, हम दुसरे साधन अपनाएंगे| और इसे इसके असली रंग में समझना है: अगर आपका विवाह आपको अपने आध्यात्मिक जीवन में प्रगति नहीं देता है, तो इसे त्याग देना बेहतर है। और यही मैं सभी को इसके बारे में बता रही हूं कि अपनी भावनात्मक समस्या को कैसे दूर किया जाए।

कुछ लोगों में आक्रामकता होती है। अब जब वो आक्रामक होते हैं तो क्या होता है कि कुछ लोग…

मैंने तुमसे कहा था कि तुम्हें बयार मिलेगी, तुम्हे शीतल बयार मिल रही है ठीक है। और छाया को देखो, तुम देखते हो? प्रकृति कैसे काम करती है! प्रकृति कैसे मदद करती है! जरा देखिए प्रकृति को, कितनी सेवाभावी है। उसे ऐसे में मजा आता है। पर्थ में क्या हुआ, हर जगह क्या हुआ, इसके बारे में तो आपने सुना ही होगा। प्रकृति इतनी सहायक है। क्यों? क्या ज़रुरत है? क्योंकि इससे आशीर्वाद प्राप्त होता है। संपूर्ण के लिए कुछ न कुछ करने से ही उसे अखंडता का सौन्दर्य प्राप्त होता है। यही कल्याणकारी है। सारे कार्य की अखंडता को समझना है और जब यह समझ में आता है, तब ही आप अपने सहजयोगी होने की सुंदरता को महसूस करते हैं। नहीं तो तुम बस – एक सीमित बात के लिए कि, “मेरी शादी हो गई, मैं बहुत बेहतर हूं, मैंने अपनी बुरी आदतों से छुटकारा पा लिया।” यह पर्याप्त नहीं है!

अखंडता का गुण, जब इसे अपने भीतर अनुभव किया जाता है, तभी वह आनंद आता है।

तो हम एक बिंदु तक जाते हैं और फिर हम पीछे हट जाते हैं। समुद्र की तरह, यह एक बिंदु तक जाता है और फिर पीछे हट जाता है। यह एक निश्चित बिंदु से आगे नहीं जाता है; इसकी अपनी मर्यादा हैं; यह जानता है कि कहाँ तक  जाना है। लेकिन यह क्या करता है? यह बादलों के रूप में उत्थान करता है। यह अपने आप को शुद्ध करता है, बादलों के रूप में चढ़ता है और फिर हिमालय से मिलता है और फिर आपको अन्य सभी के लाभ के लिए बारिश मिलती है। यह एक बड़ा वृत्त है जो बना है और उस चक्र की पूर्णता समुद्र के द्वारा साकार की जाती है।

उसी तरह, आपको पता होना चाहिए कि आप प्रकृति के उस महान चक्र में हैं जहां आपको अपनी भूमिका पूरी तरह से निभानी है, और एक बार जब आप मानसिक रूप से महसूस करते हैं, तो आपको जैसा मैंने कहा है उस तरह इसे अपने हृदय में रखना चाहिए। क्योंकि कुछ लोगों के लिए इसे दिल में बसाना बहुत मुश्किल होता है. जैसे, वे मेरी पूजा करेंगे, ठीक है, यंत्रवत्। लेकिन कुछ लोग पूजा भी नहीं करते हैं, वे फोटो के सामने बैठ जाते हैं और मुझसे दिल से दिल की बात करते हैं, बिना कुछ कहे। और पूजा में भी, जब मैं लोगों को पूजा करते देखती हूं, तो मैं जानती हूं कि वे कहाँ तक समर्पित हैं क्योंकि जिस तरह से वे इसे सावधानी से, सावधानी से, विस्मय के साथ, समझ के साथ करते हैं – सब कुछ कितना सुंदर है। लेकिन अगर कोई सिर्फ एक कर्मकांड कर रहा है, तो मुझे डर लगता है। मैं बस नहीं समझ पाती। अब अगली बार तुम मेरे पैर चोट पहुँचाओगे या ऐसा ही कुछ।

इसलिए व्यक्ति को हर समय उत्थान करते रहना चाहिए। उत्थान हासिल करना है। और वह प्रगति तभी संभव है, जब हम अपने द्वारा पाले गए इन सभी बंधनों और नामकरण को छोड़ना शुरू कर दें। ये बंधन और टैग हमें नीचे बनाये रखते हैं। तो बंधनों और टैगों को खत्म करें।

दूसरे दिन मैं वारेन से कह रही थी कि, “देखो, पैंतालीस-पचास के बाद भी स्त्री-पुरुष अभी भी विवाह के बारे में सोचते रहते हैं, बहुत हो गया!” सब ठीक है, चालीस के बाद भी ठीक है होना चाहिए, लेकिन कम से कम पैंतालीस, पचास। लेकिन साठ साल की उम्र में भी कोई आकर कहता है, “माँ, मेरी शादी करा दो!” तब मैं सचमुच तंग आ जाती हूँ! मानो मेरा काम किसी पादरी की तरह तुम्हारी शादी कराना है। तो यह तरीका नहीं है। शादी में क्या है? कुछ लोग जीवन भर अपने पति की तलाश में रहते हैं। आप कब उस वास्तविक की तलाश करने जा रहे हैं जो आपकी आत्मा है?

तो उस वर्ग के लोगों को ऊपर उठ कर उस तरह से काम करना होगा, तभी हमारे परिवार, हमारे रिश्ते, हमारे समाज का ईश्वर के राज्य में कुछ अर्थ होगा। अन्यथा इसका कोई अर्थ नहीं है।

 उसके लिए हमें अर्थपूर्ण होना चाहिए, न कि ऐसा कि वह हमारे लिए अर्थपूर्ण हो। हमें उसके प्रति अपना दृष्टिकोण बदलना चाहिए, कि, “ईश्वर  ने हमारे लिए क्या किया है? आइए देखते हैं।” हमें कहना चाहिए, “हमने परमेश्वर के लिए क्या किया है? हमने परमात्मा के लिए क्या किया है?” तब आपको विचार प्राप्त होंगे कि क्या करना है, कैसे फैलाना है, कैसे आगे बढ़ना है, कैसे कार्य करना है।

लेकिन फिर भी सीमाएं हैं, मुझे पता है, कुछ लोगों की सीमाएं हैं। उनकी सीमाएँ हैं क्योंकि उनकी एक पृष्ठभूमि है। उनमें से कुछ उन देशों से आते हैं जिनकी पृष्ठभूमि है। और दूसरा यह भी है कि इन लोगों की समस्याएँ  दूसरों को अमर्यादित करती है। मुझे कहना चाहिए, जब वे आपके संपर्क में आते हैं तो वे उनकी बातों से, उनके द्वारा,  बिना यह समझे कि उनका क्या मतलब है: किसी प्रकार की तुच्छ, व्यंग्यात्मक बातों से मर्यादा भंग करने की कोशिश करते हैं। और लोग ऐसे लोगों से प्रभावित हो जाते हैं। और अगर आप प्रभावित होते हैं, तो आपको पता होना चाहिए कि आप सहज योगी नहीं हैं।

सहजयोगी की पहचान उसके चरित्र से, उसकी धार्मिकता से, उसके व्यवहार से होती है। एक सहज योगी का व्यवहार अत्यंत शांतिपूर्ण, शांतिपूर्ण होना चाहिए। जो सहजयोगी बस ऊपर और नीचे भाग रहे हैं, परेशान हैं, वे सहजयोगी नहीं हैं। शांतिपूर्ण।

अब आपको शांति कैसे मिलेगी? शांति आपकी आत्मा से आती है। क्योंकि आप जानते हैं कि आप अपनी आत्मा में हैं, आप जानते हैं कि आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के साथ एकाकार हैं, जल्दी करने की क्या बात है? वह कहाँ जा रहा है और तुम कहाँ जा रहे हो? आप साथ हैं। जो कुछ है, तुम वहीं हो। तो जल्दी करने की क्या बात है? किसी काम में जल्दबाजी करने या परेशान होने के लिए क्या है? एक शांतिपूर्ण व्यक्तित्व तब आता है जब आप कहते हैं, “नहीं, यह नहीं।” जब जल्दबाजी शुरू हो, तब कहना चाहिए, “यह नहीं, यह नहीं, यह नहीं।”

एक और ऐसा हो सकता है कि जब आप किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जिसे आप पसंद नहीं करते हैं या जो आपके लिए कठोर है, जो आपके प्रति क्रूर रहा है, तो आप नाराज हो जाते हैं और फिर आप परेशान हो जाते हैं। उस समय तुम्हें कहना चाहिए, “मैं क्षमा करता हूँ। मैं क्षमा करता हूँ। मैं क्षमा करता हूँ।” मुख्य बात यह है कि आपको शांत रहना होगा। ऐसा नहीं है कि कुछ लोग कहते हैं कि, “माँ, मैं क्षमा करने की कोशिश करता हूँ। माफ करना मुश्किल है।” यह सब झूठी मान्यता है। आप यह अच्छी तरह जानते हैं। लेकिन आपको क्या कहना है, “मैं क्षमा करता हूँ। मैं क्षमा करता हूँ। मैं क्षमा करता हूँ,” अगर कोई गड़बड़ी है।

मेरा मामला दूसरा है। मान लीजिए मैं किसी राक्षस को देखती हूं, तो मुझमें एक ऐसी चीज का निर्माण हो जाता है, जिसे मैं नहीं जानती कि आप मानवीय भाषा में क्या कहेंगें, लेकिन हम कह सकते हैं कि उस व्यक्ति के खिलाफ विरोधी-बल, जबरदस्त वायब्रेशन की तरह प्रकट होते हैं, और जब वे छूटते हैं तो वे उस राक्षस को घेर लेते हैं और वह अपनी ही नज़रों में, दूसरों की नज़रों से गिर जाता है। किसी न किसी तरह वह आधुनिक तरीके से नष्ट हो जाता है। वह मारा नहीं जाता, बल्कि एक तरह से मारा जाता है। तो ऐसा होता है लेकिन हो सकता है कि आपके साथ न हो।

तो, आपको क्या करना है जब आप मान लीजिये, किसी बहुत शैतानी गुरु के खिलाफ कोई क्रोध महसूस करना शुरू करते हैं, तो आप इसे अपने आप में बनाते हैं और आपके भीतर निर्मित क्रोध उस व्यक्ति को बेअसर कर देगा। आपको इसे बाहर कहने की जरूरत नहीं है। आपको इसके बारे में बात करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन यह निर्मित क्रोध आपको थोड़ा परेशान भी करेगा क्योंकि इसकी थोड़ी प्रतिक्रिया होती है, लेकिन जब इसे प्रदर्शित किया जाता है, तो इसका असर होगा और ऐसा व्यक्ति सहज योगी का सामना नहीं कर सकता है।

ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो घटित होती हैं, वे स्वतः घटित होंगी। जैसा कि आप जानते हैं कि,  मैंने लोगों से कहा था कि, “रजनीश के लोगों को मेरे पास मत लाओ,” लेकिन उन्होंने मेरी एक नहीं सुनी। वे एक कार्यक्रम में तीन लोगों को लाए और उनमें से तीन ढह गए, एक बड़े शिलाखंड की तरह ढह गए, और उन्हें नहीं पता था कि उनके साथ क्या करना है। तो वे वास्तव में, सचमुच हटा कर बाहर कर दिए गए थे जैसे आप एक बड़ा पत्थर निकालेंगे! तो, उस मामले में मुझे क्रोध नहीं आया। मैंने कुछ नहीं किया। लेकिन जैसे ही वे आए, मेरे भीतर की निर्मित शक्ति ने उन्हें पूरी तरह से जमा के रख  दिया। मैंने कुछ नहीं किया। इसके विपरीत, यह हमारे कार्यक्रम को बाधित कर रहा था, लेकिन निर्मित बल इंतजार नहीं कर सकता था, बस उन्हें फ्रीज कर दिया।

तो यह इसका दूसरा पहलू है कि,  यदि आप किसी गुरु से घृणा भी करते हैं, आप उसे पसंद नहीं करते, क्योंकि वह इतना निर्दयी रहा है, उस शक्ति का निर्माण होता है। उसके लिए आपको शक्ति की जरूरत है क्योंकि यह थोड़ा कष्टदायक है। उस तलवार को अपने हाथ में पकड़ने के लिए अपने भीतर उस शक्ति का निर्माण करो। फिर तुम्हें तलवार मिलती है और फिर तुम बिना कुछ किए उसे काट देते हो, वह बस काट दिया जाता है। तो उस सीमा तक जाना जहां हम पाते हैं कि कुछ लोग इतने पापी, इतने भयानक, इतने शैतानी हैं कि उन्हें दंडित किया जाना चाहिए, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन इसके लिए आप उसे दंडित नहीं करें, परमात्मा को ऐसा करने दें। लेकिन आपके भीतर अंतर्निमित आप ही की शक्ति ऐसा कर सकती है। आपको इन सभी चीजों को अपने भीतर आजमाना चाहिए और देखना चाहिए कि यह कैसे काम करता है।

अब, ध्यानस्थ होने के लिए, बहुत से लोग सोचते हैं कि, “चार बजे, उठो, यह करो, यह, वह,” और शुरुआत में यह बहुत मुश्किल है। अन्यथा आपको चार बजे उठने की कोई जरूरत नहीं है, लेकिन शुरुआत में यह जरूरी है। क्योंकि मैं क्यों कहती हूं, चार बजे उठो? तुम अपनी नींद के ऐसे गुलाम हो, क्योंकि तुम बहुत सोते हो। सुबह-सुबह आप इतना सो जाते हैं। तो अपने सोने की, आलस्य की उस आदत पर काबू पाने के लिए, आपको कभी भी उठने में सक्षम होना चाहिए कि आपको उठना पड़े क्योंकि हम युद्ध पर हैं। हम युद्ध पथ पर हैं। हमारे लिए कौन सा समय खाली है? किसी भी समय, चाहे मैं सोऊं या मैं जाग रहा हूं, मैं लड़ रहा हूं। मुझे एक मिनट भी नहीं लगता कि मैं काम नहीं कर रही हूं।

तो यह ऐसा ही है। आपको सुबह इसलिए उठना है क्योंकि आपको अपने शरीर को प्रशिक्षित करना है, “बेहतर है ठीक से व्यवहार करें!” मान लीजिए कि आपका शरीर जमीन पर नहीं सो सकता है, अपने शरीर को सुलाएं – देखते हैं क्या होता है। यह तपस्या है, यही तपस्या है, जिससे सहजयोगियों को गुज़रना पड़ता है, कि वे अपने शरीर को अपना दास बना लें, इस अर्थ में कि वे अपने शरीर का उपयोग कर सकें। इसका मतलब यह नहीं है कि कल मैं चाहती हूं कि तुम कांटों की शय्या पर बैठो! फिर से मुझे हमेशा उस चरम पक्ष को बताना पड़ेगा जिस पर आप लोग चले जाते हैं। लेकिन अगर आपका शरीर अजीब व्यवहार करने की कोशिश करता है, तो बेहतर होगा कि आप शरीर से कहें, “अपनी औकात में रहो! आपके कहने का मतलब क्या है? आप ऐसा क्यों नहीं कर सकते? आप वैसा क्यों नहीं कर सकते?”

हमारी बहुत सी ऐसी आदतें होती हैं जिन पर हमें ध्यान देना चाहिए। कुछ लोगों की आदत होती है कि हर समय बहुत आगे आना, जनता में रहना, हर समय वहाँ रहना, यह, वह। अपने आप से कहें, “कोई ज़रूरत नहीं है! अगर आपको बुलाया जाता है, बेहतर होगा कि तभी आप जाएं।” अपने आप को खुद से अलग करें और खुद देखें। जैसा कि मैंने कहा, मैं खुद को अपने सामने बैठा हुआ देखती हूं। इसी तरह, आप अपने आप को अपने सामने बैठे हुए देखिये और आप अपने आप को बहुत स्पष्ट रूप से बता सकते हैं, “अब, यह इस तरह नहीं करना है! यह तरीका नहीं है। यह सहज नहीं है! आप हर समय आगे क्यों जा रहे हैं? आप क्यों दिखावा \नियंत्रण करने की कोशिश कर रहे हैं?” बेहतर है खुद को डांटें!

मैंने यही कहा है – अपने आप पर क्रोध। और अपने आप से कहो कि,  आपको सहजयोगी की तरह बनना है। कभी-कभी मैं देखती हूं कि लोग गलत समय पर हंसते हैं, वे गलत समय पर रोते हैं, वे गलत समय पर चीजें करते हैं। यदि ऐसा हो गया है, तो हो गया है – इसके बारे में चिंता न करें। लेकिन अगली बार सुनिश्चित कर विचारें कि, “मैंने ऐसा क्यों किया? ठीक है, अगली बार से मैं ऐसा नहीं करूँगा। मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मैं दिखावा करना चाहता था या मैं गलत समय पर भावनात्मक रूप से परेशान था।”

लेकिन प्रेम की अभिव्यक्ति बहुत सहज होती है। लेकिन इस सहजता के आने के लिए आपको अपनी आदतों से छुटकारा पाना होगा। अन्यथा तुम कभी सहज नहीं हो सकते; जिस व्यक्ति को आदत है वह नहीं कर सकता। दूसरे दिन मैं व्याख्यान दे रही थी और एक साथी ध्यान के दौरान उठा और बाहर चला गया, क्योंकि वह धूम्रपान करना चाहता था। तो आप सोच सकते हैं, आदतों के कारण हम कैसे इतनी महत्वपूर्ण,इतनी शुभ चीज़ों का बलिदान कर देते हैं! आप इसे महसूस कर सकते हैं कि आपकी आदतें आपके भीतर अंतर्निमित हैं, क्योंकि धर्म की कोई परंपरा भी नहीं थी। अगर धर्म की परंपरा होती है, तो क्या होता है कि – जैसा कि मैंने दूसरे दिन बताया, उन्हें समझाया –  कि हमारे पेट में वसा कोशिकाओं को ऐसा अनुभवकर्ता मिलता है, जो पुण्य, धार्मिकता, अच्छाई, अबोधिता की संवेदनशीलता से मुग्ध हो। .

लेकिन अगर ऐसा नहीं है, तो यह एक और मृत कोशिका की तरह है, जो सिर में जा रही है, और गंदी चीजों में, गंदी चीजें करने में, कुछ ऐसा करने में जो विनाशकारी है अनुभव की जा रही है। ये सभी आधुनिक तरीके विनाशकारी हैं। और तब आपको उससे केवल सनसनी लगती है चूँकि यह एक मृत वस्तु है, इसे हर समय एक सनसनी की आवश्यकता होती है, और वे यह सब करने लगते हैं।

लेकिन अब, कुंडलिनी जागरण के साथ, आपका धर्म निर्मित हो गया है, आपकी कोशिकाएं उससे मोहित हो गई हैं, इसलिए आप उस शक्ति का उपयोग अपने मस्तिष्क को प्रबुद्ध करने के लिए करते हैं, जो वास्तव में, हृदय के ऊपर प्रभामंडल के रूप में है। यह दोनों के बीच एक ऐसी आपसी समझ है, लेकिन आपको उस आपसी समझ को स्थापित करना होगा।

हमारा विचार यह है कि ईश्वर की कृपा से हम इतने सारे हैं, और यदि आप चाहें, तो हम दुनिया को रूपांतरित कर सकते हैं: हम इस दुनिया में शांति, आनंद और प्रसन्नता ला सकते हैं। यदि आप हमारे आशीर्वादों को गिनें तो हम आनंदित हो सकते हैं, और यदि आप अपने नामकरण से छुटकारा पा लेते हैं, तो हम आनंदित होंगे। हमें उड़ना होगा, तभी हम आनंदित हो सकते हैं।

और इसके लिए हमें अपना संतुलन, अपना उत्थान और फिर पूरे ब्रह्मांड में उड़ने की इच्छा रखनी होगी। यह कैसे करें? आप खुद पता लगा सकते हैं, यह मुश्किल नहीं है: “मैं इसे कैसे कर सकता हूं?” खुद का सामना करें, अपने बारे में जानें। अपने आप को सही मत ठहराओ। दयनीय मत बनो। कुछ लोग खुद को अपने दुखों से पहचानते हैं और अपने दुखों का आनंद लेना पसंद करते हैं। बेवकूफी भरी बातें ये हैं, बिल्कुल! ऐसे दयनीय दिखने वाले लोगों का सहज योग से कोई लेना-देना नहीं है।

तो, आपको हर्षित, खुश, संतुलित, अच्छा व्यवहार, शांत होना होगा। बाह्य रूप से यह दिखाएगा, जो कुछ भी भीतर है। अगर गरिमा है तो आपकी सारी गरिमा व्यक्त होगी। आप देखिए, अगर आपके पास सिर्फ बाहर की गरिमा है, तो यह कुछ ही समय में खत्म हो जाएगी।

तो इन सब चीजों को अंदर से बाहर की तरफ बनाया जा सकता है, बाहर से भीतर नहीं। और एक बार जब बाहर से भी बन जाते हैं, तो वे सबसे अच्छे होते हैं। लेकिन बाहर, हमें खुद को बाहर रखना है, बस इतना ही। “अब निर्मला वहाँ बैठी है। मैं यहाँ बैठी हूँ। अब निर्मला मुझे बताती है, फिर मैं निर्मला को बताती हूं। आइए इसे इस तरह से हल करें। और जब हम इस पर काम करेंगे, तो चीजें बहुत आसान हो जाएंगी क्योंकि अब आपके पास एक ऐसी स्थिति है जहां आप खुद से अलग हो गए हैं।

तो वह निर्विकल्प की स्थिति है, जहाँ आप किसी भी चीज़ से आसक्त नहीं होते हैं। आपकी कोई आदत नहीं है, आप किसी चीज से लिप्त नहीं हैं: आपको कोई बीमारी नहीं है, आपको कोई परेशानी नहीं है, आप हर चीज से ऊपर हैं। तुम मेरे लिए चीजों को उलझाने की कोशिश मत करो, तुम मुझसे ज्यादा बातें कहने की कोशिश मत करो। तुम बस इसे ले लो, एक संकेत ही पर्याप्त है, “माँ ने ऐसा कहा, ठीक है।”

लेकिन कुछ लोगों की एक और बुरी आदत होती है, ”मां ने ऐसा कहा। तो यह ऐसा है।” अपने विवेक का प्रयोग करें! “माँ कैसे कह सकती हैं?” अगर उसने कुछ कहा है, तो उसमें जरूर कुछ होगा, आपको समझना चाहिए। जैसे वॉरेन ने मुझसे पूछा, “माँ, क्या मुझे शादी करनी चाहिए?” मैं स्तब्ध थी, तुम्हें पता है! मैं चकित रह गयी! लेकिन मुझे नहीं पता था कि उसे कैसे बताना है। मैंने कहा, “जब तक आपको लगता है कि आप खुश रहेंगे, यह ठीक है।” मेरा मतलब है कि कोई भी व्यक्ति, उस समय जो इतना पागल नहीं था, वह बात देख सकता था, लेकिन उस समय वह नहीं समझता था। ऐसे ही सबके साथ ऐसा होता है कि जब मैं कुछ कहती हूँ तो तुम नहीं समझते। अधिकांश शादियां विफल हो गई हैं जहां आपने कहा है, “मैं किसी से शादी करना चाहता हूं,” निन्यानवे दशमलव नौ [प्रतिशत]। जब मैंने कहा है कि आप किसी से शादी करते हैं क्योंकि आप उस व्यक्ति के साथ रह रहे हैं, कुछ, ऐसी शादियां भी विफल हो गई हैं, मैंने देखा है। लेकिन ज्यादातर शादियां जो हमने चुनी हैं, असफल नहीं होती हैं क्योंकि एक ईश्वरीय हाथ है, यह सब योजनाबद्ध है।

परमात्मा आप सबको आशीर्वादित करें।

एक और बात है, आप सभी के लिए एक अच्छी खबर है जो मुझे आपको बतानी चाहिए: जो यह है कि, अब मुझे लगता है कि आप सभी ऐसी स्थिति में हैं कि जब मैं कुछ कहती हूं, तो यह आप पर कार्य करता है; तुम ऊंचे उठे हो। अगर मैं कुछ उच्चतर के बारे में बात कर रही हूं, तो यह हो जाता है। अभी-अभी तुम्हारे साथ ऐसा हुआ है, इसमें कोई शक नहीं, लेकिन फिर तुम कभी-कभी नीचे आ जाते हो। तो केवल आप ही अपने आप को सहारा दें और बस। अभी आप उसी अवस्था में बैठे हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। यह कुछ अच्छा है।

मैं उन लोगों के साथ ऐसा नहीं कर सकती थी जिन्हें आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया गया था या बस बोध मात्र ही हुआ था, लेकिन आपके स्तर के लोगों के साथ मैं यह कर सकती हूं। और बहुतों ने ऐसा महसूस किया होगा कि हम वहां हैं, बिल्कुल वहीं हैं। लेकिन फिर गिर जाता है। तो उस बिंदु पर सावधान रहें।

तो, यह कोई गंभीर मामला नहीं है; यह बहुत ही सुखद और प्रसन्नता की बात है कि हम सभी इसे कर सकते हैं। यह बहुत बढ़िया है। आप नहीं जानते, पहले से ही हमने जो कुछ भी किया है वह बहुत अच्छा है और हमें बड़े से बड़े काम करने हैं और यही बहुत उत्साहजनक है।

बस मुझे कुछ और पानी दीजिये।

(पूजा शुरू)

छोटे बच्चे आ सकते हैं।

योगी : छोटे बच्चे प्लीज ऊपर आ जाओ।

श्री माताजी : लेकिन बहुत छोटा नहीं!

योगी : करीब छह साल, सात साल।

श्री माताजी : बहुत छोटा नहीं है। बच्चे नहीं।