The Priorities Are To Be Changed

Chelsham Road Ashram, London (England)

1985-08-06 The Priorities Are To Be Changed, London England, Opt, 132' Download subtitles: EN,RU (2)View subtitles:
Download video - mkv format (standard quality): Watch on Youtube: Listen on Soundcloud: Transcribe/Translate oTranscribeUpload subtitles

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

प्राथमिकताओं को बदला जाना है
चेल्शम रोड, क्लैफम लंदन (यूके), 6 अगस्त 1985।

अब मेरा इंग्लैंड में प्रवास अपना 12वां वर्ष पूरा कर रहा है और यही कारण है कि मैं आप लोगों से सहज योग के बारे में बात करना चाहती थी। यह कहां तक चला गया है और हमारे पास कहां कमी है।

सबसे बड़ी बात यह हुई है कि हमने अपने धर्म की स्थापना की है: निर्मल धर्म, जैसा कि हम इसे कहते हैं, विश्व निर्मल धर्म। और आप शब्दों के अर्थ जानते हैं, विश्व का अर्थ है सार्वभौमिक, निर्मल का अर्थ है शुद्ध और धर्म का अर्थ है धर्म। यह अमेरिका में स्थापित किया गया है। और हमें इसे यहां इंग्लैंड में पंजीकृत करना होगा।

अब यह बहुत महत्वपूर्ण है कि, जब हम किसी धर्म से संबंध रखते हैं, तो हमें यह जानना होगा कि उस धर्म की आज्ञाएं क्या हैं। और अभी तक हमने कुछ भी मसौदा तैयार नहीं किया है। यह ऐसी चीज़ नही हो सकती जिसे लोगों या मनुष्यों के लिये बनायी गईअनुकूल वस्तु नहीं हो सकती है। ऐसा नहीं हो सकता। और आपकी अनुकूलता के लिये इस मे कोई समझौता नहीं किया जा सकता है।
जैसे रूस में, जैसा कि मैंने आपको कहानी सुनाई, मैं वहां गयी और मैंने कहा, “मैं एक चर्च देखना चाहती हूं।” इसलिए वे मुझे एक चर्च में ले गए, जो ऑर्थोडॉक्स ग्रीक चर्च था, और मेरे पति भी वहां थे जहां हम वीआईपी थे, इसलिए चर्च का मुखिया नीचे आया और हमें दोपहर के भोजन के लिए ले गया; और उस ने कहा, कि आज वे उपवास कर रहे हैं, इसलिये वह कुछ भी मांस नहीं खा सकता। हमने कहा, “ठीक है।” हम सब बैठ गए, लेकिन वह पीते रहे, पीते रहे, पीते रहे। इतना अधिक, कि वह भूल गये कि उसके पास मेहमान हैं या कुछ भी! वह हमें विदा करने भी नहीं आये! सो हमारे साथ जो अधिकारी थे वे सब बाहर आने पर हंसने लगे। और वह नहीं जानता था कि वह कहाँ था! क्योंकि वह उपवास कर रहा था तुम्हें पता है! तो जब हम बाहर आए तो इन अधिकारियों ने कहा कि, “देखो, यह धर्म है।” फिर उन्होंने मुझे कहानी सुनाई कि ज़ार का विचार था कि हर किसी का एक धर्म होता है, क्यों न रूस का भी कोई न कोई धर्म हो। इसलिए उन्होंने कैथोलिक लोगों को आने और उन्हें कैथोलिक धर्म के बारे में बताने के लिए न्योता भेजा। तो कैथोलिक आए, उस समय केवल कैथोलिक धर्म था, इसलिए वे आए और उन्होंने कहा, “ठीक है, कैथोलिक धर्म बहुत सरल है कि आप पी सकते हैं, जो आपको पसंद है वह करें, केवल एक चीज, आप दोबारा शादी नहीं कर सकते।” ज़ार ने कहा, “यह रूस में काम नहीं करेगा, मुश्किल है, हमारे लिए नहीं।” तो उसने कहा, “ठीक है, अब एक अन्य को लेते हैं।” इसलिए उन्होंने मुसलमानों इस्लाम के लिए न्योता भेजा। तो मुसलमान आ गए और उन्होंने कहा कि, “आप कितनी भी पत्नियों से शादी कर सकते हैं, कोई बात नहीं, लेकिन आप पी नहीं सकते।” उन्होंने कहा, “यह हमें रुचिकर नहीं !” तो उनका एक और तीसरा धर्म मिला था जिसे [वह] रूढ़िवादी माना जाता था। रूढ़िवादी धर्म, सबसे उदारवादी! यह रूढ़िवादी, ग्रीक धर्म था और उन्होंने कहा, “ओह, आप पी सकते हैं और आप जितनी चाहें उतनी पत्नियां रख सकते हैं जब तक आप हमें पर्याप्त पैसा देते हैं।” केवल उनका हित पैसा था। उन्होंने कहा, “यह ठीक है, बहुत अच्छा धर्म! हमें उन्हें पैसा देना है और उन्हें केवल इतना करना है कि हमें धार्मिक कहें ताकि हम धार्मिक लोग हों; किसी को यह नहीं कहना चाहिए कि उनका कोई धर्म नहीं है!” इस तरह इस देश, रूस में धर्म आया। और इस तरह के धर्म के साथ, इस का कौन भरोसा करेगा? यह सही है! सहज योग में आने के बाद आप देख सकते हैं कि इन सभी तथाकथित धार्मिक निकायों ने धर्म के नाम को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। वे सभी लोग, जिन्होंने धर्म के बारे में यह, वह, और एक सिद्धांत से दूसरे सिद्धांत, एक अवतार से दूसरे अवतार की बात की, वे एक बेतुकी बात बन कर रह गए हैं। और अब हर कोई इतना स्पष्ट रूप से देख पा रहा है कि यह ईश्वरीय अनुभव के रूप में आपको कोई भी समझ नहीं देता है कि परमात्मा क्या है।
तो यह धर्म जो स्थापित किया गया था, जिसे लोगों को संतुलन देना था, उसने उन्हें बहुत असंतुलित कर दिया है। वे कट्टर हैं, हर कोई! जैसा कि मैंने आपको बताया, प्रोटेस्टेंट सबसे बड़े कट्टर हैं क्योंकि वे बहुत कुशाग्र हैं और वे बहुत कृत्रिमऔर परिष्कृत हैं, इसलिए कोई भी उनके कट्टर विचारों का पता नहीं लगा सकता है।

इसके साथ, अब हमारे पास सहज योग है, और सहज योग ने आपको परमात्मा का वास्तविक अनुभव, आत्मबोध प्रदान किया है। पहली बार अब आप महसूस कर सकते हैं कि आप आत्मा हैं, आप आत्मा की शक्तियों को महसूस कर सकते हैं। इतने सारे तरीके हैं, इन 12 वर्षों में आपने देखा होगा, कि आपको विश्वास हो जाना चाहिए कि एक सर्वव्यापी शक्ति है, जो सक्रिय है, जो आपकी मदद कर रही है, जिसके माध्यम से आप इस मुकाम तक पहुंचे हैं और यह कि आपको चमत्कारी कार्य करने की शक्ति दी है। आपको सबूत देने के लिए हमारे पास मेरी तस्वीरें हैं। एक अन्य दिन किसी ने सहस्रार पूजा के समय जॉर्डन में यह सोचकर एक तस्वीर ली कि, “माँ जॉर्डन को एक बंधन दें।” और तस्वीर में रोशनी है, बंधन की रोशनी है! तो अचेतन बहुत दृढ़ता से काम कर रहा है, और यह लोगों को परमेश्वर के तरीकों को समझने में मदद करने का प्रयास कर रहा है, तो हम उसके तरीके, उसकी शैली, उसके कर्मकांड, उसकी विधियों को नहीं बदल सकते। इसलिए मैं यहां आपको यह बताने के लिए हूं कि क्या करना है, क्या सही है, क्या गलत है, क्या नहीं करना है, यह बताने के लिए मैं अचेतन के मुख की तरह हूं।

अब इस धर्म में, तुम स्वयं धर्म में जाग्रत हो! आप स्वयं धर्म के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं! कोडिंग और सब कुछ आपके भीतर है। आपको इसे स्वयं महसूस करना होगा: कैसे आप चैतन्य महसूस करते हैं? कब आप चैतन्य महसूस करते हैं? कैसे आप के वायब्रेशन चले जाते हैं? क्या होता है? वह सब चीजें सिर्फ तुम्हारे भीतर हैं। बेशक, कुछ समय बाद, हम यह कहने में सक्षम हो सकते हैं कि किसी को कौन से व्यवहार परिवर्तन करने चाहिए। लेकिन अगर आप यह जानना चाहते हैं कि क्या सही है और क्या गलत है, तो आप खुद पता लगा सकते हैं और चैतन्य को बनाए रखने के लिए क्या किया जाना चाहिए।

लेकिन वायब्रेशन, में एक तरह से, अत्यंत परोपकारी, बहुत परोपकारी चीजें हैं। यदि आप थोड़ा भी गलत करते हैं तो भी वे उसी क्षण गायब नहीं भी हो सकते हैं, लेकिन आपको अपने भीतर यह अहसास हो जायेगा कि यह गलत है। कुछ समय बाद आप पाएंगे, यह दिखाएगा कि आपके पास कोई वायब्रेशन नहीं है और आपको पता नहीं चलेगा कि आपके पास कोई वायब्रेशन नहीं है! तो सहज धर्म का पहला सिद्धांत है, या जिसे आप विश्व निर्मला धर्म कहते हैं, वह यह है कि आप अपने स्पंदनों को वैसे ही जारी रखने में सक्षम हों, या उन्हें बढ़ाएं या उनकी संवेदनशीलता में सुधार करें। आप जितने अधिक संवेदनशील हों, उतना ही अच्छा हैं। यदि संवेदनशीलता की कमी है तो यह कहना होगा कि सहज योग अब तक आप में विफल रहा है, और आपको इसे अभी कार्यंवित करना होगा।

लेकिन मनुष्य की समस्या बहुत अलग है, वह यह है कि जब वे विकसित हो रहे होते हैं, जब वे भवसागर से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे होते हैं, तो उनके साथ बहुत सारी मानवीय चीजें होती हैं, और वे चीजें उन्हें नीचे लाने की कोशिश करती हैं। फिर से, उस स्थान पर वापस जाते हैं जहाँ से उन्होंने शुरुआत की थी। उदाहरण के लिए, मान लीजिए, आप एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिसके पास जीवन में बिल्कुल भी सत्ता नहीं है और साथ ही कोई एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिसने कुछ सत्ता का आनंद लिया है – दोनों एक जैसे ही हैं; दोनों सत्ता के नशे में हैं या सत्ता के भूखे हैं या आप उन्हें जो भी कहें। भूखा रहना उस आदमी के समान है जो हर समय भोजन की इच्छा रखता है – दोनों भूखे मर रहे हैं। इसी तरह, जो दोनों तरह से सत्ता की आकांक्षा रखता है, वह एक ही प्रकार का व्यक्ति है। जब वह सहज योग में आता है, तो विनम्र होने और यह समझने के बजाय कि मुझमें कुछ कमी है, वह स्वयं समूह बनाना शुरू कर देता है। वह कहने लगता है, “ठीक है, यह अच्छा नहीं है, यह आदमी अच्छा नहीं है, बेहतर है कि आप अपने आप को सुधारें, आप वह करें, आप यह करें,” दूसरों में। वह खुद एक आदर्श व्यक्ति नहीं बनना चाहता। जो शख्स इस तरह की किसी भी चीज़ की ओर ध्यान देता है या किसी भी समूह में पड़ जाता है, वह मुसीबत में पड़ जाता है और उस शख्स के चेहरे से, मुझे तुरंत पता चल जाता है, इस व्यक्ति के साथ कुछ गड़बड़ है।

तो समूह बनना ही हमारे बिगड़ने का संकेत है। जैसे अब हमारे शरीर की कोशिकाओं में, उदाहरण के लिए, रक्त कोशिकाएं हैं जो बह रही हैं: अचानक, जब उन्हें नुकसान होता है या बीमारी या कुछ भी होता है, तो वे एक साथ जमा हो जाते हैं और इसमें एक गांठदार चीज बन जाती है। तो जब आप गतिशील होते हैं तो आप स्वतंत्र होते हैं; तो किसी को समझना चाहिए कि आप स्वस्थ हैं। लेकिन जैसे ही एक बाधा बन जाती है कि, “यह आदमी बुरा है, यह महिला बुरी है,” तो, अब एक बाधा मौजूद है। पूरा समूह बनता है। एक दल इधर और एक दल उधर और एक दल उधर। लेकिन चूंकि सहज योग पूर्ण विवेक है, जिसे इसका अभ्यास करने वाले लोगों द्वारा विकसित किया जाना है – विवेक – उन्हें यह भी जानना होगा कि कुछ लोग हैं जिन से उल्लझना नहीं है, त्याग दिया जाना है – व्यक्तिगत रूप से। जैसे कोई है, एक व्यक्ति है, ‘X’ व्यक्ति है, जो बहुत फंसा हुआ है और उसके पास बहुत सारी बाधा हैं, यह, वह। अब अगर वह बाधित है या कुछ और, तो सभी को उसे व्यक्तिगत रूप से छोड़ना होगा। ना तो उससे बहस करें ना ही सामूहिक रूप से उस के बारे में चर्चा करें बल्कि उसे छोड़ दें – अगर वे संवेदनशील थे। यदि आप संवेदनशील हैं, तो तुरंत आप जान जाते हैं कि इस व्यक्ति के पास एक बाधा है। कोई उसके करीब नहीं जाएगा। लेकिन मैंने हमेशा समूहों में देखा है, जब हम मिलते हैं, हमेशा पांच भूत, यदि वे हों तो, वे सभी एक साथ बैठेंगे। तुरंत आप जान जाते हैं कि भूत वहां है – स्थानीयकृत। और पांच अच्छे लोग कभी एक साथ नहीं बैठेंगे। इसका मतलब है कि हम अभी तक व्यक्तिगत रूप से खुद, अपने ही भीतर विकसित नहीं हुए हैं।

तो, हमारा पहला रवैया, अपने भीतर इस धर्म को विकसित करने का होना चाहिये … यहां धर्म का अर्थ है वह जो हमारे मध्य तंत्रिका तंत्र में विकसित होने वाला है। अपना नया आयाम हमें अपने भीतर विकसित करना होगा। गहरे रूप में, जो हमारे भीतर स्थित सूक्ष्मतम सत्ता कहलाती हैं उसका जागृत होना है ताकि यह स्वयं उन नसों में निहित हो जिन्हें हम केंद्रीय तंत्रिका तंत्र कह सकते हैं। इसे विकसित करने के लिए हमने काम नहीं किया है, क्यों? क्योंकि हमारा चित्तअभी भी बाहर है। हम दूसरे व्यक्ति के बारे में चिंतित हैं, हम तीसरे व्यक्ति के बारे में चिंतित हैं, हम इस बारे में चिंतित हैं, “उसे यह नहीं कहना चाहिए”, “उसे नहीं करना चाहिए।”
लेकिन जो व्यक्ति वास्तव में खुद को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है, वह हमेशा भीतर की ओर जाएगा। अब मान लीजिए कि यह कोई ऐसा व्यक्ति है, जिसके पास बाधा है, वह उस व्यक्ति से किनारा कर लेगा, उस व्यक्ति से दूर हो जाएगा, सामूहिक रूप से कुछ नहीं कहेगा, इस पर चर्चा नहीं करेगा, इसके बारे में बात नहीं करेगा, बस इसे खत्म कर देगा। “वह ठीक नहीं है।” लेकिन तब आप कह सकते हैं, “माँ, तब तो कम से कम 50% सहजयोगी ऐसे ही होंगे।” मुझे ऐसा नहीं लगता। यदि आप इसे स्वयं जांच कर सकते हैं, तो आप पाएंगे कि लगभग 4 या 5 ऐसे हैं जो बाधित हैं – जो मुझे पता है – बाकी आप ठीक हैं। लेकिन जब आप उनके संपर्क में आते हैं तो आपको मिल जाता है क्योंकि आपने अपने भीतर उस शक्तिशाली व्यक्तित्व का विकास नहीं किया है। और इस तरह मैं खुद बीमार हो जाती हूं, क्योंकि तुम मेरे भीतर हो। तो आप सभी को व्यक्तिगत रूप से अपना ख्याल रखना चाहिए, तो सामूहिक रूप से, मैं हूं, मेरी देखभाल की जाती है। लेकिन हम अपना ख्याल नहीं रखते, यही मुख्य बात है। ऐसी बहुत सी विधियाँ हैं जिनके द्वारा हम बिल्कुल पूर्ण बन सकते हैं। हम उसमें कितना समय लगाते हैं?

अब, आश्रमों में मैंने इंग्लैंड के बारे में जो कुछ भी सुना है: कि यह सबसे बड़ी जगह है जहां कोई बिल्कुल खो सकता है! यदि आप अपने वायब्रेशन कम करना चाहते हैं, तो एक अंग्रेजी आश्रम में जाएँ! खासकर लंदन में। आश्रम में चैतन्य सबसे खराब हैं। क्या आप ऐसी कल्पना कर सकते हैं? मेरा मतलब है। ऐसा क्यों होता है? कोई एक आलसी शख्सआश्रम में आता है। उसके अंदर एक भूत है। वह एक आलसी व्यक्ति है। आम तौर पर एक व्यक्ति को सक्रिय होना चाहिए! तो वह क्या करता है? वह सुबह उठना नहीं चाहता। दूसरा उसका अनुकरण करने की कोशिश करता है। आप कैसे विकसित होंगे? आइए इस पर विचार करें। यह व्याख्यान सिर्फ सुनना नहीं है, अभ्यास करना है, समझना है, आपको इसके प्रति गंभीर होना है। हम कैसे विकसित होंगे? क्या हम ‘अवतरण’ पुस्तक को पढ़कर या माता के टेप को सुनकर उत्थान करेंगे, जो कि बहुत दिलचस्प है? हम कैसे सुधार करने जा रहे हैं? दवा लेने से। दवा क्या है? कुछ नहीं बस ध्यान ही दवा है। अब आप ध्यान कब करते हैं? आपको सुबह के समय मेडिटेशन करना है; यह सबसे अच्छा समय है, क्योंकि आप अभी तक व्यस्त नहीं हैं। सुबह जल्दी उठकर इसे करें। लेकिन आप बस उठ नहीं सकते! “मैं उठ नहीं सकता।” क्यों नहीं? उस दिन आप पूरे दिन खाना नहीं खाएं। अगले दिन तुम उठोगे!

आपको अपने शरीर के साथ ऐसा व्यवहार करना होगा कि वह आपका गुलाम बन जाए। आपको इस शरीर का उपयोग दासवत करना है, न कि इस शरीर की आप गुलामी करें, आपकी आत्मा दासता करे। तो अगर आप समझ सकते हैं कि उत्थान का एकमात्र तरीका ध्यान के माध्यम से है, न कि सभी प्रकार की राजनीति, बातचीत, मजाक करना, मानसिक करतब वगैरह के माध्यम से – ऐसा कुछ भी नहीं!

लेकिन मैंने लोगों को देखा है, वे निरंतरता से यह नहीं कर सकते, जिसे हम ‘सतत’ – निरंतरता कहते हैं, जिसका अर्थ है ‘लगातार’। वे आज करेंगे और कल करेंगे। लेकिन आश्रम में यह नियम होना चाहिए! हर सुबह कोई अच्छा संगीत बजना चाहिए। भारत में रेडियो बंबई में लगभग 6 बजे शुरू होता है। मुझे नहीं पता कि क्या आपने इसे देखा है? और छह बजे सबसे पहली बात होती है, जिसे हम देवताओं का जागरण कहते हैं, भूपाली (राग) से वे इसे शुरू करते हैं। वे वही गाना शुरू करते हैं। 6 से 8 बजे तक भजन और ईश्वर के गीत के अलावा और कुछ नहीं। पूरे बंबई को यह सुनना है, और कुछ नहीं, कोई खबर नहीं है। तो, सुबह जल्दी उठकर, आप किसी प्रकार के शंख या कुछ भी जो आप चाहते हैं, या घंटी के साथ शुरू कर सकते हैं या शायद जिसे हम घंटा कहते हैं वह चीज हमारे पास है। या आप एक भजन से शुरू कर सकते हैं ताकि हर कोई उठ जाए। जाओ और स्नान करो। कमरे को गर्म रखें। आओ और अपने ध्यान के लिए बैठ जाओ।

अब जो गृहस्थ हैं, वे इससे भी बदतर हो सकते हैं, क्योंकि वह भी दूसरा है, “मेरा घर, मेरा बच्चा, मेरा परिवार।” यह ‘मेरा’ व्यवसाय। मुझे इन सब से जूझना पड़ रहा है, क्योंकि हर कोई [कहता है] “मैं इस शख्स से शादी कर रहा हूं,” “अब वह व्यक्ति भाग रहा है, इसलिए मुझे दूसरे व्यक्ति से शादी करनी है।” “वह भागने वाला है, फिर मुझे तीसरा पाना है!” बच्चों की समस्या। फिर, “बच्चों को कैसे प्राप्त करें?” यह समस्या हर समय बनी रहती है। हर कोई मुझे इस समस्या से परेशान कर रहा है: “पत्नी का क्या करें? उसे कहाँ रखा जाए? वह बहुत भयानक है!” यह, वह और सब कुछ! अब इन सभी समस्याओं को एक बिंदु पर हल किया जा सकता है, यदि आप एक मजबूत व्यक्ति हैं, तो आप समस्या को उसी तरह आसानी से हल कर सकते हैं।

तो क्यों न आप इन अगल-बगल के मामलों को सुलझाने में अपनी ऊर्जा बर्बाद करने के बजाय खुद कुछ महान बनें और समस्या को स्वयं ही सुलझने दें? यह तार्किक है। लेकिन मैंने लोगों के बारे में जो देखा है, वह यह है कि वे अपने मूल्य और कीमत को नहीं समझते हैं।

अब जैसा मैंने कहा, यह शिव का देश है, सदाशिव का देश, कैलाश ही है। और जहाँ आप पैदा हुए हैं, जहाँ आप सहजयोगी हैं – यहाँ आपकी क्या स्थिति है? आप किस पद पर आए हैं? आप कहाँ हैं? सदाशिव की भूमि में अपनी स्थिति के बारे में सोचें।

एक अन्य दिन ही मैंने उन्हें बताया कि सदाशिव की भूमि में गण हैं। और जैसा कि अमेरिकियों को द स्मर्फ्स का विचार मिला, वे गण हैं। आपको कोई स्मर्फ बैठा नहीं मिलेगा, वह बहुत सक्रिय है। कोई भी स्मर्फ नहीं होगा जिसे आप पाएंगे कि जो बैठा है। या तो वह एक नाई होगा या वह एक धोबी होगा या वह एक नौसिखिया होगा, या वह एक फिडलर होगा या वह कुछ काम करेगा! तो बनने के लिए आपको अपने शरीर में सक्रिय होना होगा। शरीर में गतिविधि आनी है। लेकिन गतिविधि के लिए ऊर्जा कहां से लाएं? आत्मा से। और अगर तुम ध्यान नहीं करोगे तो तुम उस तक कैसे पहुंचोगे? तुम ही बताओ – क्या कोई रास्ता है? यह मूल समस्या है कि लोगों की नियमित आदतें नहीं होती हैं। वे नहीं। वे बहुत हड़्बड़ाए हुए लोग हैं, बेहद व्यस्त हैं। पश्चिम में लोग बेहद हड़्बड़ी मे हैं। बहुत मजबूत पितृत्व के कारण भारतीयों को इस तरह नियमित किया जाता है। माता-पिता स्वयं समझदार और नियमित हैं। हमें भी नियमित रहना होगा। कोई नियमित आदत नहीं है: कोई 6 बजे उठेगा, कोई 9 बजे उठेगा, कोई 10 बजे उठेगा। और अगर तुम एक अंग्रेज को जगाना चाहते हो, तो वे कहते हैं, “बार्जपोल का प्रयोग करो!” बेशक, यह सबसे बड़ा पाप है! यह सबसे बड़ा पाप है! लेकिन भले ही आपको पाप करना पड़े – एक बार्जपोल का प्रयोग करें! तो, नींद उनके लिए इतनी महत्वपुर्ण है और वे हमेशा थके रहते हैं।

अब यह थकान क्यों आती है, हमें समझना चाहिए, दिल की वजह से है। क्योंकि दिल कमजोर है इसलिए थक जाते हो। ह्रदय को बढ़ाओगे तो ठीक हो जाओगे। तो, एक-एक करके हम देखते हैं कि क्यों। दिल कमजोर क्यों है? क्योंकि हमने ईश्वर विरोधी बातें की हैं। हमने ऐसे काम किए हैं जो हमें नहीं करने चाहिए थे, इसलिए हमारा दिल कमजोर है। वे हमेशा थके रहते हैं और उन्हें यह कहते हुए शर्म नहीं आती है, “मैं थक गया हूँ” जो कोई भी टेलीविजन सुनता है वह आश्चर्यचकित हो जाएगा, वे करेंगे, “हुउउह्ह!” पांच मिनट के भीतर आपको कम से कम 6, 7 बार “हुउउह्ह्ह!” बाहर आता सुनायी देगा। युवा लोग! वे आकर कुर्सी पर बैठेंगे “हुउउह्ह!” । पहले मुझे लगता था कि यह एक फैशन है, कि आपको ऐसा करना चाहिए, नहीं तो आप प्रभावशाली नहीं हैं। क्योंकि, आप जानते हैं, लोगों को प्रभावित करने के लिए यहाँ का फैशन कितना अज़ीब है! मुझे समझ नहीं आया, मुझे लगा कि यह एक फैशन है। लेकिन तुम थके हुए क्यों हो? आइए देखें कि आप थके हुए क्यों हैं? आपका दिल, ह्रदय पकड़ रहा है। दिल क्यों पकड़ रहा है? सबसे सूक्ष्मतम में, ऐसा है कि आपने ईश्वर विरोधी बातें की हैं। अब आप इसका इलाज कैसे करते हैं? अब मुझे जवाब लेने हैं।

विकी हेल्परिन: हम आपको, माँ, अपने दिल में रखेंगे।

श्री माताजी : अच्छा विचार है। आपको मुझे अपने ह्रदय में रखना होगा। अब देखिए कि कैसे पूरी सहज योग प्रणाली का ब्रह्मांड लंबे समय से आप में निर्मित किया हुआ है। हृदय सबसे महत्वपूर्ण अंग है,जिससे सब कुछ घूमता है। यह दिल ही है, जब यह विफल हो जाता है, तो आप मर जाते हैं, अन्यथा नहीं। आत्मा हृदय में निवास करती है, ठीक है। अब आप अपने सिर में भी इस तरह बने हैं कि हृदय केंद्र ठीक ब्रह्मरंध्र पर आ जाता है, जहां इसे फोड़ना होता है। इसलिए, यदि आपका हृदय कमजोर है, तो आप छेद नहीं कर सकते। तो, मुझे अपने दिल में रखकर और मुझे अपने सहस्रार पर उठाना, यही सबसे अच्छा तरीका है जिससे आप अपने ह्रदय को ठीक कर सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है! आपने उस पर कुछ धार्मिक अवधारणाएँ भी रखी हैं। मैंने लोगों को करते देखा है। तो, “माँ, मैंने तुम्हें अपने ह्रदय में रखा है, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,” यह, वह, सब कुछ। लेकिन मैं देख रही हूँ कि वहाँ माँ बिल्कुल नहीं है! केवल शब्दों का चातुर्य या होंठ सेवा! “मैं आप को अपने दिल में रख रहा हूँ, बेशक आप वहाँ हो!” लेकिन मैं कहाँ हूँ? मैं पता करने की कोशिश कर रही हूँ। मैं वहां खुद को नहीं देख पाती। नहीं, मैं वहां नहीं हूं। तो मैं तुम्हें कहाँ से देखूँ? तुम्हारी आँखों से! अगर मैं वहां हूं तो मैं तुम्हारी आंखों से देख सकती हूं, मैं वहां तक प्रवेश कर सकती हूं। ऐसी आंखें बहुत ही भिन्न होती हैं। आपकी आंखों मे आप के ह्रदय के माध्यम से परिवर्तन आना चाहिये। बीच में कोई धोखा नहीं । ह्रदय मे परिवार्तन होगा तो आंखें परिवर्तित हो जाएंगी। आपको मुझे बताने की जरूरत नहीं है। मुझे पता है। तो यह, “आई लव यू,” क्यों? “क्योंकि मैं नौकरी पाना चाहता था,” समाप्त! “मैं तआप से प्यार करता हूँ माँ, क्योंकि मुझे लगा कि मेरी शादी की समस्या हल हो जाएगी।” “मैं आप को यह देता हूं, क्योंकि मुझे पैसे मिलेंगे!” “मैं आप से प्रार्थना करता हूँ, क्योंकि मेरा एक बच्चा होना चाहिए,” या ऐसा ही कुछ। यह बहुत निम्न है।
लेकिन आप को ऐसी अवस्था हासिल करना चाहिए, जहां “मैं आपको बिना किसी चाहत के प्यार करता हूं। बस आपसे प्यार करता हूँ क्योंकि मैं इसका आनंद लेती हूँ। मैं अपने आनंद के लिए उस प्यार का आनंद लेता हूं। सिर्फ अपने आनंद के लिए मैं आपसे प्यार करता हूँ। किसी भी चीज़ यहां तक की उत्थान के लिए भी नहीं, लेकिन मैं बस अपने भीतर उस प्यार का आनंद लेता हूं। अकारण, सिर्फ अपने लिए मैं आपसे प्यार करता हूँ।”

जब तक आप सापेक्ष शब्दावली पर जीते हैं तब तक आप इसे हल नहीं कर सकते। अब, “मैं आश्रम में क्यों रहता हूँ? इसलिये की वहां रहना सस्ता है, यह आसान है, आप जानते हैं, बच्चों की देखभाल बहुत अच्छे से हो जाती है, आप सुरक्षित हैं। मां भी कभी-कभी आती हैं। अगर तुम बीमार हो तो वह हमारी देखभाल करेगी, तो, वह हमारा इलाज करती है। अन्यथा, मैं सब कुछ करने का काम मां पर छोड़ देता हूं।” अब भी तुम द्वैत में हो। आपको बस इसलिये मुझ से प्यार करना है क्योंकि आप इसका आनंद लेते हैं। नहीं तो, मैं तुमसे प्यार करने के लिए नहीं कह रही हूँ क्या मैं कहा रही हूँ? आप किसी से कैसे मांग कर सकते हैं, “तुम, मुझे प्यार करो! आगे आओ!” और तुम एक पिस्तौल रख दो कि, “आओ, मुझे प्यार करो!” क्या आप ऐसा कर सकते हैं? आप नहीं कर सकते। आप पैसे की मांग कर सकते हैं, आप कुछ भी मांग सकते हैं, लेकिन क्या आप ऐसा कह सकते हैं कि, “ठीक है, अब हाथ उपर उठाओ, मुझे अपना प्यार दो!”? तो, इसमे जबरदस्ती नहीं की जा सकती।

तो दिल की गहनता को अंदर लाना होगा। अब दिल अजीब ख्यालों से आच्छादित है। विचार, जो मन में है, जैसा हम कहते हैं। वास्तव में विचार मस्तिष्क को ढँक रहे हैं और वे विचार अंततः हृदय को ढँक लेते हैं। मैंने आपको बताया है कि दिल और दिमाग के बीच क्या संबंध है। अब, तो अगर ये विचार हमारे दिल को ढँक दे रहे हैं, तो हम में खुलापन कैसे रह सकता हैं? उदाहरण के लिए, एक विचार है कि, “मैं माँ से प्यार करता हूँ, क्योंकि उन्हे मेरा घर बिकवाना है।” ठीक है, अब घर नहीं बिकता। “यह कैसा है? माँ मैंने कहा था यह बिक जाए, फिर क्यों नहीं बिकता?” यह प्रेम का ईश्वरीय स्तर नहीं है। आप परमात्मा से प्रेम करने जा रहे हैं। यह सरल पवित्रता का शुद्ध प्रेम होना चाहिए। और वह गहनता आप सभी के पास है, यही आपके पास खास चीज है। आप सभी के अंदर वो है, वो ह्रदय आपके अंदर है। यह बहुत छोटी सी बात समझ में आ जाए तो वास्तव में सभी मंत्रों का बीज है।

अब जब तुम कहते हो कि तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो, मुझे नहीं लगता कि तुम प्यार करते हो। लेकिन आप अपने आप से पूछिये, “क्या मैं वास्तव में माँ से प्यार करता हूँ?” अब इस का सामना करें। “नहीं, मैं नहीं करता।” “अभी भी मेरे दिमाग में और भी बहुत सारे मूर्खतापूर्ण विचार हैं। फिर भी मैं एक बुद्धिजीवी हूँ, फिर भी मैं माँ को बौद्धिक दृष्टि से या भावनात्मक पक्ष से देख रहा हूँ।”यह एक अवस्था है, यहएक निरानंद की अवस्था है। और ऐसे व्यक्ति को कभी चुनौती नहीं दी जाती और चुनौती देने पर भी वह कभी प्रभावित नहीं होता। ऐसा व्यक्ति अचानक अलग ही खड़ा होता है और आप अपनी आंखों के सामने कमल देखते हैं।

अब आप उस शहर में बैठे हैं जो सदाशिव द्वारा शासित है। यहाँ आप पैदा हुए हैं। आप सभी यहां उत्पन्न हुई महान आत्माएं हैं। अब तुमको ही सारी दुनिया को सुगंध देनी है। इसका किसी अन्य चीज जैसे हैसियत, पैसा, पद, कुछ भी से कोई लेना-देना नहीं है । मसीह की सामाजिक स्थिति क्या थी? वह एक बढ़ई का बेटा था। उसने कितना कमाया? कुछ भी तो नहीं। क्या वह किसी विश्वविद्यालय में गया था? कभी नहीँ। क्या उसने किसी ग्रीक पौराणिक कथाओं का अध्ययन किया था या ऐसा ही कुछ? कभी नहीँ। क्या उन्होंने पुस्तकालयों के द्वाराअपने दिमाग को परेशान किया? कभी नहीँ। लेकिन, वह ईसामसीह थे। उसी तरह, यह मायने नहीं रखता कि आप किस सामजिक स्तर से आते हैं, आप अपने भौतिक पक्ष में किस हद तक जा पाते हैं, यह आपका आध्यात्मिक पक्ष है जो महत्वपूर्ण है। और इसके लिए जरूरी है कि आप इसका सामना करें। यह ध्यान के माध्यम से ही संभव है। ईमानदारी से इसका सामना करें! लेकिन दिक्कत यह है कि जैसे ही मां व्याख्यान देती हैं, वह वहीं समाप्त हो जाता है। कोई नहीं सोचता….(एक बच्चा रो रहा है) क्या हुआ है? रो क्यों रही हो? तुम मम्मी के पास जाना चाहती हो? मत रोओ, मत रोओ! मम्मी वहीं हैं। रोओ मत, रोओ मत, यह ठीक है।

अब, जैसा कि मैंने कहा, मेरी तपस्या के 12 वर्ष पूरे हो गए हैं। मैंने वास्तव में बहुत मेहनत की है, मुझे कहना होगा। इंग्लैंड आसान नहीं है, और लंदन और भी बुरा है। और तुम्हारे लीवर से भयंकर दर्द होता है, इस देश में, वह तुम्हारे हृदय की ओर, खंजर की तरह गति करने लगता है। लीवर खराब है, ह्रदय काला है। यहां रहना आसान नहीं है। इसके अलावा मैंने आप सभी को अपने ह्रदय में रखा है और आप मेरे शरीर में घूम रहे हैं इसलिए आपको मुझ पर मेहरबानी करनी होगी। आपका स्तर बहुत बेहतर होना चाहिए। लेकिन जैसे ही कोई व्यक्ति किसी स्तर पर पहुंच जाता है, लोग उसकी आलोचना करने लगते हैं, उस व्यक्ति के खिलाफ बातें कहते हैं, समूह बनाते हैं, चीजें बनाते हैं।

जैसा कि मैंने आपको पहले बताया, आप भी बहुत भाग्यशाली हैं कि मैं यहां इंग्लैंड में हूं। मैंने कहीं और जितना समय बिताया है उससे कहीं अधिक समय यहां बिताया है। और फिर भी मैं आप में से किसी के बारे में निश्चित रूप से नहीं कह सकती, मेरा मतलब है कि उनमें से कुछ परिपूर्ण हैं, लेकिन अन्यथा, तो किसी भी दिन आप जॉन गिलपिन की तरह अहंकार के घोड़े की सवारी करने वाले बन जाएंगे। आप नहीं कह सकते। अचानक मैं देखती हूं कि कोई अचानक घोड़े पर कूद रहा है। तो जॉन गिलपिन बनने वाले हमारे अंदर जो किरदार है, उसे जरूर देखना चाहिए। विनम्रता की जरूरत है। हमें विनम्र होना होगा और अपने भीतर देखना होगा: “हम अचानक जॉन गिलपिन क्यों बन जाते हैं? हमारे साथ क्या होता है?” यह एक बहुत ही सामान्य चरित्र है। मैं आपको जो उदाहरण दूंगी : मैं अपने पति के साथ एक होटल में गई, रात भर रुकी। यह इंग्लैंड में था और अगली सुबह, मुझे लगता है कि शादी थी या कुछ और या जो कुछ भी था। और दो महिलाओं, युवा लड़कियों, मैं कहुंगी लगभग 25 साल की उम्र की, एक अच्छी पोशाक और एक टोपी वगैरह पहनी हुई, अपने बॉयफ्रेंड से बात कर रही थी, जो बहुत ही सुंदर कपड़े पहने हुए थे, जैसे कि वे किसी प्रकार के ड्यूक या डचेस वगैरह थे अपनी टोपी पहने इतनी बड़ी-बड़ी बात कर रहा है। मेरे पति ने मेरी तरफ देखा, “वैसे तमाशा मत करना, ये वो लड़कियां हैं, जो हमारे ऑफिस में सफाई करने आती हैं।” मैंने कहा, “सच में? उन्हें देखिये! बस टोपी लगाने मात्र से, उन्हें लगता है कि वे डचेस या क्या बन गए हैं ?” और जैसे ही उन्होंने उसे देखा, वे बहुत चिढ़ गए। (हँसी) लेकिन मैं बहुत हैरान थी कि वे अचानक किसी शाही परिवार जैसी भूमिका कैसे निभा सकते हैं, आप जानते हैं, जिस तरह से वे चल रहे थे! (हँसी) और हम दोनों को हँसने से रोक नहीं पाए, लेकिन, मेरा मतलब है, वह बहुत अधिक हँसे क्योंकि उन्होंने कहा, “मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि ये वही हैं…” और वह कुछ देर के लिए इस पर विश्वास नहीं कर सके, लेकिन जब वे चिड़चिड़े हो गए, प्रतिक्रिया, उनकी प्रतिक्रिया ने वास्तव में साबित कर दिया कि वे सिर्फ एक डचेस बन गई हैं। उनके पास कुछ टोपियाँ थीं। टोपी पहनकर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं–तो अब बड़े हो गए हैं। वैसे ही तरीके अध्यात्म में: सिर्फ इसलिए कि आप सहज योग के लिए गए हैं – बर्बाद हो गया है – तो अब आप स्वयं श्री कृष्ण से अधिक योगेश्वर के योगी हैं। तो एक बात यह जॉन गिलपिन बनने का धंधा, जो बेवकूफी है, जो खुद का मजाक उड़ाता है। इस मज़ाक के बारे में मैं आपको कहानियाँ पर कहानियाँ सुना सकती हूँ कि: कैसे अहंकार आपको मूर्ख बनाता है।
तो यही बाधा सबसे बड़ी है, मुझे लगता है कि हमारे यहाँ अहंकार है। लेकिन फिर अगर आप किसी से कहते भी हैं तो, वे कहेंगे, “यह मेरा अहंकार था। मेंने यह किया!” मानो बंदर की तरह अहंकार कहीं लटका हुआ है, और बंदर आया और काम किया और फिर से अपने घुमने-फिरने के मूड मे चला गया! (हँसी) नहीं तो, “यह मेरा भूत है जिसने यह किया!” (हँसी) लेकिन तुम कब कुछ करते हो? हमें खुद को धोखा क्यों देना चाहिए? यह स्वयं को दिया गया एक बहुत ही गंभीर प्रकार का धोखा है। क्यों? हम सहजयोगी हैं, हम सदाशिव की भूमि में पैदा हुए हैं; क्यों न हम वह सुंदर प्राणी बनें जो सत्य है, जो वास्तविक है, जो हमारे भीतर है, जो आत्मा है?

तो सबसे बड़ी बाधा है हमारे अहंकार की। जिसे कई तरह से दिखाया जा सकता है। क्योंकि वहां आप अपना प्रतिबिंब देखते हैं। पहला है, जैसा कि मैंने आपको बताया, हेट पहनना: इसका मतलब है कि अचानक ऊपरी होंठ ऊपर चला जाता है (ब्रिटिशों के ‘कठोर ऊपरी होंठ’ का संदर्भ)। मुझे लगता है कि टोपी बेकार है [यह] मुझे लगता है! (हँसी) फिर वे ऐसे वाक्य कहने लगते हैं जो अज़ीब होते हैं! मैंने इसके बारे में बताया, हमारे परिवार में एक व्यक्ति था, जिसे मिर्गी की बीमारी थी, और वह मानसिक रूप से विक्षिप्त था! और कभी-कभी वह ईगो-ट्रिप में आ जाता था। फिर वह बहुत अच्छे मोज़े पहनता और वह अपने जूतों को अच्छी तरह से पॉलिश करता, उन्हें चमकाता, एक अच्छे जूते पहनता, एक अच्छा सूट, शायद थ्री-पीस या कुछ और पहनता, और हमारे घर के पुल पर बैठ जाता जहाँ उसके पास एक प्रकार का द्वार का प्रवेश होगाऔर वहाँ बैठ जाएगा। और वह किसी को पुकारेगा, ” आइ से बिग बॉट”, आइ से बिग बॉट,” “आइ से बिग बॉट ” मेरा मतलब अंग्रेजी भाषा में वह केवल “बिग बॉट” शब्द ही जानता था। तो उसने सोचा कि वह वही था, अब वह एक अंग्रेज है! वह सभी को इसी तरह से ही पुकारता था। और हमें आश्चर्य होता कि वह ऐसा क्यों करता है? वह कौन सी बात है जो उसे ये शब्द कहने पर मजबूर करती है, जैसे “आइ से बिग बॉट”? उसने कुछ अंग्रेज़ों को इस तरह बात करते देखा था। तो वह सड़क पर जाने वाले सभी लोगों को इस तरह बुलाते थे, “आइ से बिग बॉट” “आइ से बिग बॉट”। तो फिर ऐसा हुआ कि हमारे परिवार में, अगर कोई जॉन गिलपिन बन जाता, तो हम कहते कि वह बिग बॉट बन गया है।

तो यह, ‘बिग बॉट’ होने का धंधा भयानक है। पूरी तरह से बचना चाहिए।

लेकिन दूसरी बात जो हमारे साथ होती है वह बहुत अच्छी होती है, जब हम नहीं करते हैं, मेरा मतलब है कि अगर आप परिष्कृत, सुशिक्षित हैं, तो यह “बिग बॉट” नहीं है, यह “बॉट बिट” है। तब हम कटाक्षपुर्ण बातें कहते हैं! किसी बात को कटाक्षपुर्ण तरीके से बात करना, सीधे तौर पर कभी नहीं। कटाक्षपुर्ण तरीके से हम आनंद लेते हैं। मेरा मतलब है, आप टेलीविजन पर देखते हैं कि आप वास्तव में आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि किस तरह लोग एक-दूसरे से कटाक्षपुर्ण तरीके से बात करते हैं। “तो क्या, होह, होह, होह, होह!” चलता रहता। और ऐसे ताने। और उनके अनुसार कटाक्ष शायद तीव्र बुद्धि या ऐसा ही कुछ है। मुझे नहीं पता, यह किस रूप मे प्रमाणित है। लेकिन इसका प्रमाण पत्र कुछ भी हो, यह सबसे वीभत्स कृत्य है।

इन दिनों हम लोगों को वध नही करते, है ना? अगर हम मारें, तो हमें हथकड़ी लगा दी जाएगी। हम बच्चों को नहीं पीटते, हम किसी को नहीं पीटते, क्योंकि हमें हथकड़ी लगाई जाएगी। लेकिनआधुनिक समय में कटाक्षपुर्ण बात कहना सबसे भीषण कृत्य है जो कानून के तहत दंडनीय नहीं है। लेकिन विश्व निर्मल धर्म के कानून के तहत ऐसा नहीं। यह कटाक्ष करना अंग्रेजी चरित्र का सार है। मुझसे यह कथन लो। सीधी-सीधे बातें कभी नही कहना। और यह तीव्रबुद्धि का संकेत है और इसका एक बड़ा प्रशिक्षण है।

पहले तो वे कुछ नहीं कहेंगे वे नाराज रहेंगे, चुप रहेंगे। कुछ बोलना नहीं। लेकिन अगर वे कहेंगे, तो वे कहना उन्हें इसी तरह होगा। कुछ ऐसा जो एक तरह का रुका हुआ, गंदा, मैला पानी है जिससे बदबू आती है। वे अपना मुंह नहीं खोलेंगे, लेकिन एक बार जब वे अपना मुंह खोलेंगे, तो भगवान आपकी रक्षा करें! भगवान जाने उस मुंह से क्या निकलेगा, शायद कुछ सांप, शायद कुछ बिच्छू। और किसी को इससे दुख नहीं होता! यह इसका सबसे अच्छा हिस्सा है। तो यह एक चीज है जिससे हमें सावधान रहना है – हमारी विशुद्धि – कटाक्ष का उपयोग नहीं करना। जो की बायीं विशुद्धि की पकड़ से बहुत आता है। [बिल्कुल भी नहीं! क्योंकि यह मेरे खिलाफ है। मैं तुम्हारे साथ कभी कटाक्षपुर्ण नहीं हूँ, है ना? मैं आपके मूहॅ पर सीधा-सीधा कहती हूं, “आपके सिर पर भूत है बस इतना ही।” या यदि तुम्हारे पास अहंकार है तो मैंने कहा, “यह अहंकार है।” कटाक्ष क्यों हो? इसलिए हमें सीखना होगा कि कैसे सीधा और मीठा होना चाहिए।

आइए पहले तय करें कि आज हम दूसरों को अच्छी बातें कहने जा रहे हैं। लेकिन नहीं! अच्छी चीजें इस तरह होंगी। यदि कोई, मान लिजिये कि कोई व्यक्ति है, जो जैसे कि, बौना है। तो अच्छी बातें कहने के लिए, वे कहेंगे, “अरे क्या लंबा आदमी आ रहा है!” या कोई अंधा आदमी आ रहा है, वे कुछ कहेंगे, “ओह क्या आंखें हैं, सुंदर!” इसलिए वे शारीरिक से लेकर मानसिक स्तर तक किसी भी चीज की शुरुआत करते हैं। वे किसी व्यक्ति का वर्णन किए चले जाते हैं। आप दूसरों का वर्णन क्यों करते हैं? आप अपना वर्णन क्यों नहीं करते? पूरी ऊर्जा दूसरों का वर्णन करने में खर्च हो जाती है। खुद आपके बारे में क्या? तो यह एक और चरित्र है जो हमारे पास है; हम अपनी जुबान से दूसरों को चोट पहुँचाते हैं।
यह जीभ दूसरों को परमात्मा का स्वाद देने के लिए है। ऐसी बातें कहना जिससे लोगों को सुकून मिले। मंत्र कहने के लिए। देखो, यदि तुम झूठ बोलते रहोगे, तो तुम्हारे मन्त्र कभी फलीभूत नहीं होंगे, कभी सक्रिय नहीं होंगे। लेकिन अगर आप कटाक्षपुर्ण हैं, तो वे कभी कार्यरत नहीं होंगे। हजार बार कहो, दो हजार बार कहो, लाख बार कहो। अपने मंत्रों को प्रभावी बनाने के लिए आपको उस तरह से बात करना बंद कर देना चाहिए। अगर बात करनी ही है तो कुछ ऐसी बात करें जिससे दूसरे व्यक्ति को अच्छा लगे। अब कोई कह सकता है, “तो फिर अगर आप प्रसन्न करने वाला कहते हैं तो शायद, यह सत्य ना भी हो”, ठीक है, तो इसे मत कहो – कहने की जरूरत नहीं है। बस चुप रहो। लेकिन अब आप अभीअपने दिमाग को उलटने का फैसला करें, जो पहले से ही हमेशा उल्टा रहा है, इसलिए आप इसे अभी सुधारें, और कहें कि, अपने भीतर यह कहें कि, “अब मेरी जीभ से कठोरता नहीं बहेगी,” क्योंकि यह आपको कभी भी मंत्रों की शक्ति नहीं देगी। मंत्र शक्ति नष्ट हो जाती है। कुछ कहना हो तो प्रसन्नता से कहो। हमेशा। इसके अलावा यदि आपको किसी को सुधारना है, यदि आप किसी पद पर हैं, यदि आप नेता हैं, यदि आपको कहना है। साथ ही इसे इस तरह से कहें कि आप इसे बेअसर कर दें। लेकिन कटाक्षपुर्ण बिल्कुल नहीं! यह हमारी विशुद्धि पर हमारे बहुत बड़े बाधाओं में से एक है।

अब हमारे पास और क्या रोड़ा है, देखते हैं। मैं आपसे बात कर रही हूं, क्योंकि अभी मैं खुद एक अंग्रेज हूं। एक और रोड़ा जो मुझे मिल रहा है वह है पाउंड (पैसे)की बचत, श्रम की बचत, आपकी आत्मा को छोड़कर बाकी सब चीज़ की बचत करना। जैसा कि मैं आपको बताती हूँ, यदि आप एक अंग्रेज को खोजना चाहते हैं, तो भारतीय सहजयोगी मुझसे यही कहते हैं, एक अंग्रेज को खोजना बहुत आसान है। अगरआप किसी को खिड़की बंद करने के लिए कहें; अंग्रेज को छोड़कर हर कोई इसे करने की कोशिश करेगा, केवल वही बैठा रहेगा, वह कभी नहीं उठेगा; श्रम की बचत। और अगर तुम किसी अंग्रेज को कोई काम बताओगे तो वह तुम्हें ऐसे ही घूरेगा; इस तरह, “तुमने मुझे काम करने के लिए कहने की हिम्मत कैसे की?”

वैसे भी, मुझे आपको आस्ट्रेलियाई लोगों के बारे में भी बताना चाहिए: मुझे लगता था कि वे बहुत स्वस्थ लोग हैं। वे मेहनती हैं, इसमें कोई शक नहीं, वे बहुत मेहनती हैं वे आगे आते हैं। लेकिन मैं वहां गयी और हमने उनके लिए दो केंद्रों में लगभग 250 लोगों के लिए और फिर लगभग 500 लोगों के लिए खाना बनाने का फैसला किया था। मेरा मतलब है, मैं ऐसे विचारों में जाती हूँ! तो, सबसे पहले, मेरी मदद के लिए आने वाले सभी लड़के, सभी भारतीय थे। वे ही थे, जो सामान वगैरह उठा रहे थे। मैंने कहा, “इन लड़कों से भी कहो, ये ऑस्ट्रेलियन हैं, आखिर इतना मांस खा चुके हैं, इनकी मांसपेशियां अच्छी रही होंगी, केवल आप लोग ही यह क्यों कर रहे हैं?” उन्होंने कहा, “नहीं, वे नाजुक लोग हैं माँ, उन्हें मत कहना।” मैंने कहा “नाजुक? कैसे?” “वे बहुत नाजुक होते हैं, हालांकि वे मांस खाते हैं, वे बहुत नाजुक होते हैं, हम जानते हैं कि कैसे करना है, हम इसे करते हैं।” और दोनों जगहों पर उन्ही लोगों ने कार्य किया! तुम वहाँ थे? पिछली बार?

योगी: नहीं माँ, नहीं।

श्री माताजी : ऑस्ट्रेलिया में कौन था? कोई?

योगिनी : मैं वहाँ थी माँ।

श्री माताजी: तुम वहाँ थी? है न?

योगिनी : हाँ माँ।

है न? वे सभी भारतीय थे, जो मुख्य रूप से वहां काम कर रहे थे। क्या यह सच नहीं है?

योगी: हाँ सच।

श्री माताजी : क्योंकि उन्होंने कहा था कि, “वे नाजुक हैं। जरा सी बात पर उनकी कमर खिसक जाएगी।” (हंसी) “वे इतनी बड़ी चीजें नहीं उठा सकते। वे बस नहीं कर सकते!” और उन्होंने अनुमति नहीं दी, उन्होंने कहा, “नहीं, नहीं, हम इस कार्य को करते हैं। हम जानते हैं कि वे नाजुक लोग हैं।” मैं वास्तव में हैरान थी कि आस्ट्रेलियाई लोगों के लिए वे ऐसा सोच रहे थे। फिर अंग्रेजों का क्या? श्रम से बचने के कारण, श्रम से स्वयं को बचाने के कारण, आप कमजोर लोग हो गए हैं। यदि आप एक उंगली का उपयोग नहीं करते हैं, तो आप काम में नहीं लेते हैं, वह हमेशा एक कमजोर उंगली बन जाएगी। जैसे कहो, अगर आपका हाथ प्लास्टर में है, मान लीजिए कि एक या दो सप्ताह के के लिये – आप प्लास्टर से हाथ निकाल भी लेते हैं, हाथ खुद की पकड़ खो देता है। कमजोर हो जाता है। क्यों डॉक्टर है ना? यह कमजोर हो जाता है, यदि आप अपने हाथ का उपयोग नहीं करते हैं, तो यह कमजोर हो जाता है। यदि आप अपने शरीर का उपयोग नहीं करते हैं, तो आपका शरीर कमजोर हो जाता है। यदि आप आलसी हो जाते हैं, यदि आप आलसी हो जाते हैं, आप कोई कार्य नहीं कर सकते हैं, आप कोई कार्य नहीं करना चाहते हैं, तो आपकी सभी मांसपेशियां बेकार हो जाएंगी। कम से कम साठ साल की उम्र तक आपको अपने शरीर का इस्तेमाल जितना इस्तेमाल कर रहे हैं उससे कहीं ज्यादा करना चाहिये।

इसलिए अब वे जॉगिंग करेंगे। वे जॉगिंग करेंगे। जॉगिंग के बाद,चुंकि यह एक अनुपातहीन चीज है जो वे करते हैं। वे इतने थके होते हैं। लेकिन अपने व्यायाम, या जो भी हो, सामान्य तरीके से करें। लेकिन, वास्तव में, अपना काम करें! लेकिन वे नहीं कर सकते। वे तेजी से नहीं उठ सकते, वे अमेरिकन कर सकते हैं, “मैं इसे कर लूंगा।” अमेरिकन, इस तरह के हैंअमेरिकन, यदि आप उन्हें कहेंगे, तो वे कहेंगे “मैं इसे कर दुंगा।” कोई टेलीफोन आता है, “मैं इसे कर दुंगा,” दस व्यक्ति दौड़ेंगे और आपको पता चल जाएगा कि वे सभी अमेरिकी हैं! इसलिए उनमें सुधार हुआ है। वे इतने मेहनती हैं। बहुत मेहनती लोग। जापानी बेहद मेहनती हैं। उन्हें समस्या थी, क्योंकि कारें सड़कों पर नहीं निकल पा रही थीं, सभी सड़के कारों से भरी हुई थीं। इसलिए वे इन फ्लाईओवरों का निर्माण करना चाहते थे और एक वर्ष के भीतर, एक वर्ष के भीतर, उन्होंने पूरे टोक्यो में, पूरे टोक्यो में, जो एक बहुत बड़ा शहर है, फ्लाईओवरों का निर्माण किया। ये छोटी-छोटी बातें, आप जानते हैं, ये ऐसे ही चलते हैं।
छोटी, छोटी चीजें छोटे, छोटे पैर के साथ। (हँसी) हिरोशिमा, जिस पर बमबारी की गई थी, अगर आप उस जगह को जाकर देखेंगे तो आपको विश्वास नहीं होगा कि यहां बमबारी हुई थी! संग्रहालय को छोड़कर। और उन्होंने यह दिखाने के लिए एक इमारत रखी है कि यह वह जगह है जिस पर बमबारी की गई थी। नहीं तो आप यकीन नहीं करेंगे, वो हिरोशिमा थी! नागासाकी के साथ भी, मैंने इसे खुद दोनों को देखा है। मेरा मतलब है कि मैं कल्पना नहीं कर सकती थी कि इन लोगों ने कैसे इसे कार्यंवित किया है! इतने मेहनती! इतनी मेहनत!

तो एक है सुस्ती। कृष्ण ने कहा है… सबसे पहली बात उन्होंने रखी है, सबसे बुरी बात है सुस्ती। उसके लिए सबसे बुरी चीज जो इंसान के साथ हो सकती है, वह है सुस्ती। यानी “अलास्यो बिजायते”। सब कुछ आलस्य से निकलता है – आलस्य। चुस्ती रखो! कुछ काम करो!

लेकिन भारतीय जीवन में, मैं आपको बताती हूं, मेरी मां भी ऐसी थी, किसी से भी कहतीं,अगर आप खड़े हैं तो, “आप क्यों खड़े हैं?”, अगर आप बैठे हैं तो, “आप क्यों बैठे हैं?”, अगर आप चल रहे हैं तो, “कहाँ चल रहे हो?” आपको हर समय कुछ न कुछ करते रहना चाहिए। आपने भारत में किसी को नहीं देखा। आपने गांवों को देखा है- छोटे बच्चे भी कुछ कर रहे हैं। इतना गर्म देश। दिन में वे थोड़ा आराम कर सकते हैं। यह एक बहुत, बहुत गर्म देश है। लेकिन अन्य सभी, वे काम कर रहे हैं। यही है, मेहनत ही आपकी मदद करेगी और आपके दिमाग को शरारतों से दूर रखेगी।

सब कुछ तब आता है जब आप सुस्त न होने का फैसला कर लेते हैं। अपने मन से कहें कि आलस्य न करें। सुस्त दिमाग आपके लिए ये सभी बेतुके विचार लाते हैं। उसके लिए आपकी आदतें नियमितता की होनी चाहिए, जो आपके पास नहीं है। मुझे बताया गया है कि जो लोग कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में गए हैं, वे इस चीज़ से गुज़रे हैं या कुछ अच्छे स्कूलों में नियमित रूप से गए हैं। लेकिन एक बार जब वे नशा करने चले गए तो सब कुछ धुल गया। तो नशा एक ऐसी चीज है जो आपके सारे अनुशासन, सत्य के आपके उचित प्रशिक्षण, निरंतरता को खत्म कर देती है। तो उस पर काबू पाने के लिए, आपको इसे एक नियमित आदत की बात, निश्चित चीज़ बनानी होगी। बिल्कुल नियमित। फिर आप इसे खत्म कर देंगे। मेरा मतलब है, यह होना चाहिए; क्योंकि दिनचर्या भी एक तरह से आपकी मदद करती है कि आप इसके बारे में ज्यादा ऊर्जा बर्बाद नहीं करते हैं, उदाहरण के लिए, मुझे पता है कि मुझे अपने बालों को सुलझाने के लिए पांच स्ट्रोक देना है, इसलिए मैं पांच स्ट्रोक देती हूं, समाप्त। एक, दो, तीन, चार, पाँच, किया। लेकिन मान लीजिए कि मैं कहूं, “नहीं, कभी पांच, कभी आठ, कभी सात,” तो मैं अपने बालों को ब्रश करने में अपना समय बर्बाद करती हूं। तो बालों के लिए पांच स्ट्रोक ठीक हैं। एक धोने के लिए, एक धोने के लिए, तीन बार इसे धोने के लिए। यदि आप इस तरह की चीजों को सुधार सकते हैं, तो आपको आश्चर्य होगा कि आप बहुत समय बचा रहे होंगे। तो यह एक और चीज है जो हमारे पास नहीं है वह निश्चित संख्या में चीजें हैं जो हमें करनी हैं। मैं आपको गांधीजी की कहानी बताती हूं, जिसे सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। उनके जैसा महान व्यक्ति। उनके बाथरूम में जाने के लिए, उनके बाथरूम की तथाकथित झोंपड़ी थी। उनकी झोंपड़ी और उस झोपड़ी के बीच में, सात पत्थर थे। मुझे नहीं पता कि उन्होने क्यों उन्हें संख्या में सात रखा था। एक के बाद एक सात पत्थर। वहाँ जाते समय वह उन्हें गिनते थे, सात, लौटकर वह उन्हें गिनते थे, सात। ठीक है। और किसी ने एक बार वहां एक और पत्थर डाल दिया। ऐसा सोचकर कि वे पत्थर एक-दूसरे से बहुत दूर हैं, चाहे जो भी हुआ हो। उन्होने तुरंत कहा, “आठवां क्यों? इसे हटा दो!” फिर से उन्होने सात डाल दिए! मेरा मतलब है, आप कहेंगे कि इतने महान व्यक्ति इन पत्थरों को गिनने में ऊर्जा बर्बाद करते हैं। क्या वह अपना समय बचा रहे थे: “एक, दो, तीन, चार, पांच, छह, सात, मैं वहां हूं। फिर मैं अगला काम करता हूं।”

तो जहां तक ​​इस भौतिक संसार का संबंध है, आपको एक मशीन की तरह बनना होगा । जहां तक ​​आध्यात्मिक जीवन का संबंध है, आपको एक सागर की तरह होना होगा। या ऊर्जा की तरह। मशीन को ठीक करना पड़ता है और तब ऊर्जा बेहतर तरीके से प्रवाहित होती है। क्या आप दो चीजें देखते हैं? ऊर्जा का सागर काम कर रहा है और मशीन एकदम सही है क्योंकि इसकी चीज़ों में निरंतरता हैं। मान लीजिए अब यह मशीन यहां दो तारों से बनी है: मान लीजिए कि आप अचानक एक को निकाल लेते हैं, तो यह काम नहीं करेगी! ये सब स्थिर चीजें हैं क्योंकि आप मशीनों को अच्छी तरह समझते हैं। और ये सभी निश्चित चीजें आपके समय की काफी बचत कर सकती हैं। जबकि हम समय बचाने की कोशिश इस तरह करते हैं कि, “मेरे पास समय नहीं है।” क्यों? “क्योंकि मैं लगभग एक घंटे तक आईने के सामने खड़ा रहा।” ध्यान ! हमारे पास समय नहीं है। एक घंटे आईने के सामने खड़े हो जाओगे! “आप आईने के सामने क्या कर रहे थे?” “मेरे बालों में कंघी करने की कोशिश कर रहा हूँ,” एक घंटे के लिए!

तो जहां आप इतना समय बिताते हैं इसे बचाया जा सकता है, इसलिए समय बचाएं। उसके लिए आपको अपनी प्राथमिकताओं को जानना चाहिए और आपको अपना महत्व पता होना चाहिए, कि समय बचाने का मतलब है हमारे उत्थान के लिए समय की बचत करना। लेकिन हमारे दैनिक जीवन में हम ऐसा करते हैं, मान लीजिए कि एक आदमी है, जिसे कुछ हवाई जहाजों का प्रबंधन करना है, वह क्या करता है? वह कपड़े पहनने में अपना समय लेता है, कभी-कभी अगर उसे देर हो जाती है, तो वह बस उठता है, जल्दी करता है, किसी न किसी तरह अपनी कैब या कार में बैठ जाता है, जो भी हो, सबसे तेज दौड़ता है और हवाई जहाज में कूद जाता है, क्योंकि उसे ले जाना होता है हवाई जहाज, यही उसका काम है। इसलिए उसकी प्राथमिकता यह नहीं है कि वह कितनी बार आईने के सामने खड़ा होता है, अपने बालों में कंघी करता है, बल्कि प्राथमिकता यह है कि उसे हवाई जहाज तक पहुंचना चाहिए। हमारे साथ भी यही होना चाहिए कि हम कितना समय लेते हैं इन सब फालतू बातों को करने में? और कितना समय सही चीजों के लिए ?

इसलिए प्राथमिकताओं को बदलना होगा और तब आपको आश्चर्य होगा कि आपके पास बहुत सी चीजें करने के लिए बहुत समय होगा। आपकी प्राथमिकता क्या है? यही तय किया जाना है। और अपनी बुद्धि में आपको पता होना चाहिए कि आपकी प्राथमिकता आपका उत्थान है क्योंकि यह मौका आपको फिर से कभी नहीं मिलने वाला है। यह एक विशेष अवसर है, विशेष रूप से आपके लिए, विशेष रूप से आप इसे प्राप्त करने जा रहे हैं, और यदि आप अपनी प्राथमिकताओं को सही रखते हैं तो आपके बहुत ऊपर जाने की पूरी संभावना है।

तो आपकी प्राथमिकता क्या है? पहले तो। समय की बचत, अब पैसे की बचत। मैंने लोगों को देखा है, मुझे यह नहीं कहना चाहिए, लेकिन मुझे लोगों के बारे में भयानक अनुभव हुए हैं कि वे अपना पैसा कैसे बर्बाद करते हैं। हम कई बार भारत जाते रहे हैं, और जब भी लोग आते हैं, वे व्यापारियों की तरह ही आते हैं। और एक बार ऐसा हुआ, इस हद तक चला गया, कि दिल्ली में एयर इंडिया के साथ मैंने अपने झूमरों के लिए आने के लिए बहुत सी जगह आरक्षित कर दी थी। मैंने इसके लिए भुगतान किया था, और मैंने उनसे कहा कि उन्हें सहजयोगियों के साथ आने दो। क्योंकि वे हाथ में ले जा सकते हैं, मैं नहीं चाहती थी कि अगर मैं इसे भेजूं तो इसे तुम्हारे लोग फेंक दें। उन्होंने कहा, “ठीक है, हम उन्हें सहजयोगियों के पास रख देंगे।” लेकिन मैंने उन्हें बताया नही कि झुमर या कुछ है बल्कि अपना सामान बताया था। सहज योगियों के सामान का वजन इतना अधिक था कि उन्होंने मेरे पूरे क्षेत्र, सब कुछ को कवर कर लिया, और फिर भी अधिक वजन था, जिसे एयर इंडिया ने माफ कर दिया था। और मेरे सारे झूमर हवाईअड्डे पर एक तरफ पड़े थे, उन्हें लेने वाला भी कोई नहीं था। और वे इन सब लादी गई वस्तुओं को लेकर यहां आए; मुझे नहीं पता कि यह सब चीजें कहां गायब हो गई हैं जो वे वहां से लाए थे। यह उन बातों में से एक है। लेकिन ऐसा कई बार हो चुका है, ऐसी बातें।

तो आप अपना पैसा कहां बचाते हैं? आप अपना पैसा क्यों नहीं बचा सकते? मैंने ऐसे दो व्यक्तियों को देखा है, मैं कहूंगी, एक व्यक्ति जो मेरे घर में रहता था। उसके पास भोजन था, उसके पास आश्रय था, उसके पास सब कुछ था। उसे कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ा। मैं उसे कुछ पैसे भी दे रही थी। उसके पास जीवन भर कभी पैसा नहीं रहा। एक और है जो आया और रहा, जो उसी तरह था। मैंने उसे कभी पैसे नहीं दिए, उसके पास हमेशा पैसा था। उसने बचाया। मैंने कहा, “आप कैसे बचाते हैं?” उसने कहा, “माँ, मैं कहाँ खर्च करूँ? आप मेरे लिए खर्च करती हो मैं अपना खाना यहाँ खाता हूँ, मेरे पास सब कुछ है, मुझे किराया नहीं देना है, कुछ भी नहीं, मैं यहाँ बहुत अच्छी तरह से रहता हूँ। मैं वह सारा पैसा कहाँ खर्च करूँ जो मेरे पास एक उपहार के रूप में आता है जो मेरे लिए एक तरह की बचत बन जाता है? ” एक व्यक्ति के पास कभी पैसा नहीं रहा और दूसरे व्यक्ति के पास बहुत सारा पैसा बचा था। उसका क्या कारण है? फिर से प्राथमिकताएं।

तो ये बुरी आदतें जो आपकी पहले से हैं जिनके लिए आप पैसा खर्च कर रहे हैं और वह सब, बचा जाना चाहिए। अब, ठीक है, जब हम यात्रा करते हैं, तो निश्चित रूप से हमें आपकी यात्रा और ठहरने और भोजन के लिए भुगतान करना होगा और वह सब, यह एक अलग बिंदु है। लेकिन आपको पता होना चाहिए कि हमें अपनी खुद की परियोजनाओं के लिये बहुत बड़ी समस्याएं होने वाली हैं। मेरा मतलब है, इसके लिए हमें पैसे की जरूरत होगी। मैं आप लोगों से मांगने नहीं जा रही हूं, लेकिन मुझे पता है कि पैसा मेरे पास आएगा। लेकिन सबसे पहले तो आपके पास पैसा भी नहीं है, क्योंकि कोई हिसाब नहीं है, आपके पास कितना है, कितना खर्च करना है, कहां खर्च करना है, क्या करना है, इसकी कोई उचित समझ नहीं है। और पैसा यूं ही खर्च हो जाता है।

आपको उस पैसे का भी एक डिब्बा बनाना चाहिए, क्योंकि एक माँ के रूप में मुझे आपको सब कुछ बताना होगा। अब देखो, माना की किसी काम के लिये तुम मुझे पैसे देते हो, मैं एक डिब्बा बनाती हूँ। तुमने मुझे पूजा में पैसे दिए, मैंने एक डिब्बा बनाया, यह पूजा का पैसा है। ठीक है, अब यह मैंने खुद तय किया है, मुझे ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन मैंने फैसला किया है कि मैं आप लोगों के लिए इसमें से चांदी खरीदूंगी क्योंकि चांदी है और यह सब चांदी जो मैंने तुम्हें दी थी और मेरे पास भी बहुत कुछ है आपको देने के लिए, क्योंकि आप प्लास्टिक से पूजा नहीं कर सकते, ठीक है, मुझे वह चांदी देनी है। जिससे पूजा के पैसे का सदुपयोग हो सके। तो मेरे पास एक डिब्बा है, मैंने इसे लिख दिया है। एक-एक पाई (पैसा) मैंने इसे लिख दिया है। मैंने एक कम्पार्टमेंट बनाया है, यह इसके लिए, एक इसके लिए, इसके लिए एक। लेकिन तुम बहुत बेफिक्र हो! आपके पास कभी
भी पैसा नहीं होगा, क्योंकि भगवान ही जानता है कि आप अपना पैसा कहां खर्च करते हैं!

इसलिए यह समझने के लिए कि आपकी उचित प्राथमिकताएं होनी चाहिए, आपको उन चीजों से दूर रहना होगा, जिनकी जरूरत नहीं है। जैसे मैं एक सहज योगी के बारे में जानती हूं, जो बहुत पैसा खर्च करता था, और मैंने कहा, “आप अपना पैसा कहां खर्च करते हैं?” उन्हें भारतीय खाने का बहुत शौक था, वह रोज भारतीय रेस्टोरेंट में जाया करते थे। आप कल्पना कर सकते हैं? एक दिन ऐसा हुआ कि हम उस भारतीय रेस्तरां में गए, और उस शख्स ने उस साथी को पहचान लिया, क्योंकि वह ड्रायविंग कर रहा था और बोला, “ओह, आज तुम यहाँ कैसे हो?” उसने कहा, “क्यों, तुम पिछले पाँच दिनों से नहीं आए?” मैंने कहा, “क्या तुम्हारा मतलब है कि वह हर दिन यहाँ आता है?” उन्होंने कहा, “हां, व्यावहारिक रूप से।” हम भारतीय रेस्तरां में जाने का खर्च नहीं उठा सकते। हर महीने शायद कभी-कभार हमें कुछ मेहमानों को ले जाना पड़ता है और वह सब और सीपी को उसके लिए पैसे मिलते हैं। मुझे नहीं पता कि आप भारतीय रेस्तरां में कैसे जा सकते हैं, रेस्तरां में खाना कैसे खा सकते हैं।
तो, प्राथमिकताएं ऐसी होती हैं कि हम अपना पैसा इधर-उधर बर्बाद करते हैं, इसलिए हमारे पास पैसा नहीं है। फिर हम पैसे बचाने की कोशिश करते हैं: हम कुछ चीजों के बारे में कभी-कभी हास्यास्पद हो जाते हैं, जो कि कुछ ऐसी चीजें हैं जिन पर मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि सहज योगी ऐसे हो सकते हैं। तो कैसे हो सकता है, वे सब भिखारी की तरह हैं। फिर भिखारी उदार कैसे हो सकते हैं, उदार कैसे हो सकते हैं? वे नहीं हो सकते। जब आप भारत जाते हैं तो भारतीय आपकी देखभाल कैसे करते हैं। आपने वह देखा है। वे इतनी मेहनत करते हैं। तुम किसी के घर जाओ। वे वहाँ सबसे अच्छा देंगे जो उनके पास खाने के लिए घर में है। पिछली बार, जब शादी का प्रसंग था – वॉरेन एक और महान है, मैं क्या कहूं, एक राजसी व्यक्ति; वह शादी करने वाले लोगों को बहुत महंगे उपहार देना चाहता था। बहुत महँगा। प्रत्येक के लिये 2000 रुपये की राशि, लगभग। तो, और हाथ की चीजें और वह सब जो लगभग 25,000 रहा होगा। मेरा मतलब 2,500 है। तो मैंने वॉरेन से कहा, मैंने कहा, “वॉरेन, यह बहुत ज्यादा होने वाला है,” ठीक है, इसलिए मैंने इसका 600 हिस्सा निकाल लिया। 600 मैंने प्रत्येक का भुगतान किया। प्रत्येक व्यक्ति जिसने शादी की है, मैंने उनमें से प्रत्येक के लिए 600 का भुगतान किया है। उन्होंने सभी सहजयोगियों से, जो वहां मौजूद थे, 108 रुपये का भुगतान करने के लिए कहा, जिसका अर्थ है £8। 54 शादियों के लिए एक-एक रुपये। उस पर भी मुझे लंदन आने पर शिकायत थी! और खुद भारतीय सहजयोगियों ने एकत्र किया खर्चों को कवर करने के लिए 10,000 रुपये दिए। 108 क्या है? और फिर वे नाराज हुए! यह इसका सबसे बुरा हिस्सा है! जब मैं वापस आयी तो उन्होंने इस पर नाराजगी जताई। मैं बस … आप देखते हैं, उदात्त से हास्यास्पद तक मुझे बस लगा – मैं क्या कहूं? उन्होंने एक बड़ा प्रतिनिधिमंडल भेजा! “ओह, कि हमे अनुचित सज़ा दी गई!” और यह और वह। तो क्या, आप उन्हें 1p (£0.01) देने जा रहे हैं या क्या? और अगर आप शादी के लिए जा रहे हैं, तो क्या आप उन्हें कुछ उपहार नहीं देंगे? क्यों? क्योंकि आपको किसी ऐसे व्यक्ति के लिए चीजें खरीदनी है जो संबंधों के संबंधों का संबंध है। ऐसे दूर के शख्स को उपकृत करने की क्या आवश्यकता है? आपका रिश्ता क्या है? आपका संबंध सहज योगियों से है। वे आपके भाई-बहन हैं। वास्तव में वे आपके अपने हैं, जिन्हें आपको कम से कम उनकी शादी के दिन उपहार देना चाहिए, अन्यथा नहीं। मैं अन्यथा नहीं जानती कि सहजयोगी किसी को देते हैं या नहीं। लेकिन “मेरे चाचा की माँ का भाई किसी का कोई है, उसने मुझे उसके लिए इसे खरीदने के लिए कहा है। तो मैं ले रहा हूँ।”

इसलिए फिर से प्राथमिकताओं को बदलना होगा। आपके भाई कौन हैं और आपकी बहनें कौन हैं? आपका परिवार कौन है, आपकी माँ कौन है? यह एक मातृसत्तात्मक समाज है। हमारी एक माँ है और उसके बच्चे हैं और हम सब एक दूसरे से संबंधित हैं। अन्य सभी दुसरे हैं; हम एक हैं। लेकिन मैंने देखा है, चर्चाओं में भी, लोगों ने मुझसे कहा है कि सहज योगी नए सहज योगियों का पक्ष लेंगे और लड़ेंगे। किसी तीसरे व्यक्ति अंदर आने वाले का पक्ष लेने के बजाय आप सभी को एक दूसरे का समर्थन करना चाहिए। अचानक आप उस व्यक्ति से जुड़ जाते हैं, क्यों? तो यह एक विशेष विशेषता है, अगर हमें मिल गई है, तो हमें समझने की कोशिश करनी चाहिए। यदि आप नहीं जा सकते तो मत जाओ। लेकिन अगर आप जाते हैं तो आपको खुद उचित व्यवहार करना होगा। यदि आप वहन नहीं कर सकते, तो आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। लेकिन अगर आप इसे वहन कर सकते हैं, और अगर आपको वहां जाना है, तो जाएं, लेकिन भिखारियों की तरह व्यवहार न करें कि जब हम यहां वापस आए, तो मुझे क्या झटका लगा कि इन सौ आठ रुपये के लिए मुझे लोगों से बात करनी पड़ी, मैं मतलब वास्तव में इसने मुझे पूरी तरह से चौंका दिया! और मैं उसे वापस चुका सकती थी, आप सभी के लिए एक सौ आठ ज्यादा नहीं है। लेकिन ऐसा ही हुआ था और चर्चा इसी को लेकर थी. ठीक है, तो किसी को इस पर चर्चा नहीं करनी चाहिए। आपकी जानकारी के लिए बता दे कि आपकी मां ने बहुत पैसा खर्च किया है लेकिन मैंने ऐसा कभी नहीं कहा और कोई नहीं जानता कि मैंने कितना खर्च किया है. अगर आप गेविन से पूछ भी लें तो वह नहीं कह पाएंगे। कोई नहीं। वे यहां थोड़ा और वहां थोड़ा जानते हैं और वारेन वहां थोड़ा जानते हैं और कोई यहां जानता है। लेकिन बताने की आवश्यकता नहीं है। जब आप कुछ खर्च करते हैं तो आपको बताना नहीं है। बस चुपचाप, मधुरता से, खूबसूरती से किया जाना है। लेकिन यहाँ ऐसा है – उस तरह की छोटी सी बात और उस तरह की बात करना। मेरा मतलब है, मैं वास्तव में था … आप संत हैं, आप जानते हैं कि आप संत हैं, आप महान लोग हैं, आप विकसित लोग हैं, आप कल के धार्मिक नेता हैं। तुम क्या कह रहे हो? आप क्या बात कर रहे हैं ज़रा सोचिए: जीवन में आपकी स्थिति क्या है?
इसलिए श्रम की बचत, पैसे की बचत और सबसे आखिर में हम सब कुछ अपने लिए बचाने की कोशिश करते हैं – स्वार्थ। जबरदस्त स्वार्थ और हम इसे कभी-कभी नहीं देखते हैं। तो कृपया यह समझने की कोशिश करें कि यह सारा भौतिक स्वार्थ आध्यात्मिक स्वार्थ पर समाप्त होना चाहिए। यदि आप वास्तव में स्वार्थी हैं, तो स्वयं को जानो, जो कि हर चीज का स्रोत है, यदि आप वास्तव में समझदारी से स्वार्थी हैं। क्या आप हैं? तब उस स्व को जानो। यह आपको सब कुछ देता है। और अब तुमने रास्ता खोल दिया, तुम भीतर आ गए, अब तुम वहां हो, तुम यहां बैठे हो। आप और क्या चाहते हैं? मुझे समझ नहीं आया।

तो, कुछ अच्छे लोग हैं, मैं यह नहीं कह रही हूं कि नहीं हैं, कई अच्छे लोग हैं, लेकिन जो नहीं हैं, वे इन सभी चीजों को सामने लाते हैं और वे ऐसी एक स्थिति पैदा करते हैं। ऐसे में मान लीजिए कि कोई चर्चा में शुरू होती है, तो आपको बस इतना कहना चाहिए, “चुप रहो! हम संत हैं। हमें इन बातों पर बात नहीं करनी है।” जैसे, अगर तुम एक साथ कुछ संतों से मिलते हो, वे बैठे हैं। क्या वे इन विषयों पर चर्चा करेंगे? क्या वे इन बातों पर चर्चा करेंगे? क्या वे इन विषयों के बारे में बात करेंगे? ज़रा सोचो। आप संत हैं। पहले यह जान लो कि तुम सब संत हो। अब तुम सब संत हो। आपको क्या चर्चा करनी चाहिए? हम सहज योग का प्रसार कैसे करेंगे, ईश्वर के बारे में कैसे बात करें, इसे कैसे कार्यान्वित करें, ईश्वर के कार्य के लिए अपनी ऊर्जा को कैसे मुक्त करें। यह हमारी मुख्य चिंता होनी चाहिए, है ना?

मैं गगनगड़ महाराज के दर्शन करने गयी थी। सबसे पहले तो उन्होंने कहा, “मैं आपसे ही बात करना चाहता हूं।” वह सहज योगियों से बात नहीं करना चाहते थे। तो उन्होने मुझसे पूछा, “तो आप पृथ्वी पर आए, ठीक है, लेकिन क्या आप हमें ठीक पाते हैं, क्या हम आपको स्वागत करने के लिए पर्याप्त सक्षम हैं?” मेरा मतलब है, उनके द्वारा मुझसे पूछे गए प्रश्न देखें। और फिर वह कहते है कि, “हमें इस धरती पर क्या करना चाहिए कि आपको आराम मिले? क्या करने की जरूरत है, क्योंकि आखिर आपने अपना अवतार यहीं लिया है?” उन्होने मुझसे इस तरह बात की! मैं हैरान थी। फिर उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, “अब यह आपके सामने बैठी देवी है। आप क्या कर रहे हो? उनकी पूजा करो। तुम मेरी पूजा करते हो। मेरी पूजा करने का क्या फायदा? उनकी पूजा करो। इनकी हर तरह से। ” मैं उनकी प्रतिक्रिया से चकित थी। यही हमें समझना होगा कि हम आज हैं…क्या है?

योगी: नहीं, मैं नहीं चाहता था कि अगर तेल जले तो दीया से धुंआ निकले।

श्री माताजी : वे सब ठीक जल रहे हैं?

योगी: क्या कोई मुझे कुछ तेल दे सकता है?

श्री माताजी : नहीं, नहीं, यह ठीक जल रहा है। यह जलता रहेगा।

योगी: यह समाप्त होने वाला है।

श्री माताजी : बर्न आउट? लेकिन फिर भी जल रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि यह बिना तेल के कब से जल रहा है? (हंसी) मैंने इसे बहुत देर पहले देखा है! (हँसना)

इसलिए! अब हम एक ऐसे बिंदु पर आते हैं, जहां हम खुद को हास्यास्पद से लेकर उदात्त बिंदु तक समझें। कि हमें अब और बहकना नहीं चाहिए। आइए हम एक के बाद एक अपने उदात्त विचारों को ठीक करें। किस तरह हम एक पहाड़ पर चढ़ाई करते हैं, एक किल को जमाते हैं, फिर दूसरा उदात्त विचार। अपने मन में कुछ उदात्त विचार आने दें, “ओह, यह कितना सुंदर विचार है, ठीक है, इसे मज़बूत करें।” उस तरह। फिर एक और उदात्त विचार – आप उसके स्रोत हैं! अब एक और उदात्त विचार आया, “आह्ह्ह यह बहुत अच्छा है! उस पर रुको। ” ऐसे ही तुम ऊपर चढ़ो। उदात्तता के माध्यम से, उदात्त। अपमानजनक विचार नहीं। लेकिन तुरंत अगर कोई अपमानजनक तर्क या सुझाव या किसी प्रकार का आ जाता है … और एक बड़ी चर्चा वहां बैठे सभी लोगों के साथ शुरू हो जाएगी। यह टेबल परअब चर्चा कर रहे बीबीसी के इन लोगों से भी बदतर है। कभी-कभी, बहुत बुरा हो सकता है। इसलिए किसी को यह समझना होगा कि हमारी प्राथमिकताएं अन्य सभी से बहुत अलग होने वाली हैं। उनके लिए हास्यास्पद महत्वपूर्ण है, हमारे लिए उदात्त महत्वपूर्ण है। अगर कोई ऐसा कुछ सुझाता है, तो आपको कहना चाहिए, “नहीं, यह उदात्त नहीं है। नहीं, हमारे पास ऐसा नहीं हो सकता। इस तरह से बात नहीं कर सकते। यह काम ना करें!” आइए हम स्वयं को अपने भीतर उदात्त प्राप्त करने के लिए पूरी तरह से प्रतिस्पर्धा करते हुए देखें।

आपके पास संपत्ति है, जैसा कि मैंने आपको बताया, कि आप सदाशिव के इस देश में पैदा हुए हैं। आप ब्रह्मांड के हृदय हैं। कि आप यहां पैदा होने वाले खास लोग हैं। आपके सामने विलियम ब्लेक जैसे लोग थे। वायब्रेशन देखें! क्या उन्होंने कुछ हास्यास्पद बात की? क्या उन्होंने कुछ भी बेमानी की बात की? क्या वह पैसे के बारे में नाराज था? क्या उन्होंने इसके बारे में कुछ कहा? वह किस तरह खड़ा हुआ और उसने कैसे कहा और उसने क्या प्रतिपादित किया। वह यरूशलेम बनाना चाहता है। क्या हम ऐसा सोचते हैं? हमें जेरूसलम बनाना है? फिर कैसे हम इन सभी हास्यास्पद बातों को सोचते हैं: बात करना, गपशप करना और बातें करना और अपने उत्थान को ध्यान के माध्यम से कार्यांवित न करना।

मुझे नहीं पता कि हमें और कितने सहजयोगी मिलेंगे। क्योंकि हो सकता है कि इसके बाद केवल गधे ही मिलें, शायद मैं नहीं कह सकती। आइए आशा करते हैं कि हमें बेहतर लोग मिलेंगे, आइए आशा करते हैं। लेकिन आप जो भी हैं, आने वाले लोगों की छवि आप तय करने वाले हैं। इसलिए मैं आपसे आज विशेष रूप से बात करना चाहती थी, इस उद्देश्य के लिए कि, हमें यह सीखना है कि अभी बहुत कुछ करना बाकी है और माँ अब जा रही हैं। अगर मैं अभी जाती हूं, तो निश्चित रूप से थोड़े समय के लिए वापस आऊंगी लेकिन अधिक से अधिक दो साल और फिर क्या? हमें ऊपर आने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। इन दो वर्षों में हम सभी को बहुत मेहनत करनी है। विशेष रूप से आश्रमों में। मैंने आपको शुद्धता के बारे में बताया है – यह इसका पहला भाग है। और आपस में बिल्कुल भाई-बहन का रिश्ता होना चाहिए। जैसे भाई-बहन कभी जा कर एक-दूसरे को पटाने की कोशिश नही करते हैं, है ना? मेरा मतलब फ़्लर्ट नाम की इस चीज़ से है, जिसे आप फ़्लर्टिंग कहते हैं। वह, क्या वे ऐसा करते हैं? और ऐसा आश्रमों और चीजों में चलता रहना। यह बहुत गलत है, मुझे लगता है कि ऐसा करना बहुत गलत है। यह उन ऋषि-मुनियों का आश्रम है, जिन्होंने युगों-युगों में जन्म लिया है। तो ऋषियों की हमें ऋषियों की तरह पूजा करनी चाहिए। आप गुंडा की तरह कपड़े पहन कर ऋषि नहीं बन सकते। आप अन्य लोगों की तरह नहीं हो सकते। साधु का चेहरा, भाव, आंखें, उसकी पूरी चाल औरों से अलग होती है। उसके पास आत्मविश्वास है, साथ ही करुणा भी है। हमें उन छवियों को आप में अभिव्यक्त होती दिखना चाहिये।

अब तक ठीक है कि हम अपने लाभ के लिए सहज योग में आए। अब हम यहां दूसरों के लाभ के लिए हैं। जो कुछ भी संभव है हमने हासिल किया, हम और हासिल नहीं करना चाहते हैं। अब हम इसे दूसरों को दें। उसके लिए हमारे पास एक छवि होनी चाहिए, हमें उस तरह से तैयार होना होगा। उदाहरण के लिए मैं उस दिन कह रही थी … मुझे नहीं लगता कि आप लोगों के लिए इस पर विश्वास करना बहुत ज्यादा हो सकता है, लेकिन यह एक तथ्य है कि यहां यह मस्तिष्क जो है औंधा है। ह्रदय बेशक जड़ है, लेकिन दिमाग जिम्मेदार है। और मैंने उनसे कहा कि आप हर शनिवार को अपने सिर को काफी मात्रा में तेल से अच्छी तरह से रगड़ें। हर शनिवार, रविवार को आप इसे धो लें। लेकिन कुल मिलाकर, इससे पहले जो व्यवस्था थी, लगभग बीस साल पहले: सभी अंग्रेज पुरुषों के बाल बहुत अच्छे होते थे, मेरा मतलब है, उनके कभी भी रूखे बाल या इस तरह का कुछ भी नहीं था। लेकिन मुझे लगता है कि जब से यह हेयरड्रेसिंग का चलन शुरू हुआ है, लोगों ने इस तरह की चीज़ों को अपनाया, और यह बहुत ही अव्यवस्थित और अज़ीब है।

एक संत के लिए इसे ठीक से संवारा हुआ होना चाहिए। उसके बारे में साफ-सफाई होनी चाहिए। अस्वछता संत का लक्षण नहीं है। तुम आकर देखो मेरा घर, यह बहुत बड़ा है, मैं अस्वच्छता के साथ नहीं रह सकती। यदि यह अस्थायी रूप से है, तो आप कहीं हैं तो ठीक है, लेकिन अगर आपको कहीं रहना है तो आपको साफ-सुथरा होना चाहिए। लेकिन वैसा यह है नहीं। मैंने लोगों को कुढ़ते देखा है; मान लीजिए कि आप ब्राइटन गए हैं, ब्राइटन के लोग कहते हैं कि वे यहां आए और यहां तक ​​कि बिस्तर ठीक किए बिना भी चले गए। जब वे आते हैं, वही ब्राइटन के लोग, जब वे यहां लंदन आते हैं, तो लंदन के लोग मुझसे कहते हैं कि वे यहां आए, सब कुछ खराब कर दिया, कुछ भी ठीक से नहीं किया और चले गए।

इसलिए अपना नहीं परंतु दूसरों का सामान खराब करने का नजरिया गलत है। आपको इसे बदलना होगा। समग्र रूप से हमें प्रस्तुति को समझना है, जीवन पद्ध्ति को व्यवस्थित करना है, व्यवस्थित करना है: ताकि आप उस प्रणाली को स्थापित करने में अपनी ऊर्जा बर्बाद न करें – जो ना तो इतनी महत्वपूर्ण ही है ना ही व्यवस्थित है, जो ऊर्जा है, वह तब बेहतर ढंग से काम करती है यदि तुम व्यवस्थित हो।

तो एक तरह की साफ-सफाई, एक तरह की व्यवस्था आपके जीवन में होनी चाहिए। मेरा मतलब है, मैं गांधीजी के बारे में जानती हूं, वे टहलने के लिए बाहर जाते थे और उनके टहलने के समय से लोग अपनी घड़ियां मिलान कर सकते थे, जिस तरह से वे आते-जाते थे और मैं… बेशक, आपको घड़ियों के दास होने की जरूरत नहीं है, निश्चित रूप से, यह वह बात नहीं है जो मैं कह रही हूँ, फिर से मुझे दूसरी बात कहनी है, क्योंकि तुम दूसरी अति पर जा सकते हो।
ऐसा है कि, जैसा कि कुल मिलाकर पाश्चात्य मन के बहुत से व्यक्तिगत मत हैं, खुद की बहुत मान्यताएं है, वे किसी से कुछ भी सीखना नहीं चाहते, उन्हें लगता है कि वे सबसे अच्छे हैं। जैसे वे किसी के घर जाएंगे तो कहेंगे, “मुझे यह पसंद नहीं है”, अच्छा नहीं है। या कहें कि कोई एक कलाकार भी हो, मान लीजिए एक व्यक्ति, जो कला में अच्छी तरह से शिक्षित है, उसने भी दूसरी दुनिया नहीं देखी है। तो उनके लिए कोई भी चीज़ थोड़ा अजीब होती है। जैसा कि मैंने उस दिन आपको बताया था, जब मैं ब्राइटन गयी तो इन लोगों से मैंने ब्राइटन से सम्बंधित बात की कि ब्राइटन में आपको कला का एक ऐसा सुंदर नमूना प्राप्त है जहाँ राजपूत कला और मुगल कला को एक साथ उस शाही मंडप में बाहर, अंदर स्थान मिला है, वे जवाब देते हैं , मैंने अंदर देखा ही नहीं है। बल्कि जब मैंने टूरिस्ट बुक में देखा तो उसके बारे मे विवरण यह था कि, “यह विचित्र है, यह बेतुका है।” अगर उनमें से कोई एक भी उस तरह एक मेहराब बना सकता है, तो मैं समझ सकती हूँ। लेकिन बसआलोचना करने के लिए, लेकिन क्यों? चुंकि आप खुद इसे नहीं कर सकते। क्योंकि आप ऐसा नहीं बना सकते हैं, तो यह ‘विचित्र’ है, तो यह बुरा है। और ऐसा अन्य कहीं की तुलना में एक अंग्रेज चरित्र में बहुत अधिक है। वे हर किसी को हमेशा अपनी तुलना में बहुत नीचा दिखाते हैं। विदेश से कुछ सहज योगिनियों की तरह, मैं चाहती थी कि वे इंग्लैंड आएं, शादी करने के लिए, उन्होंने कहा, “इंग्लैंड में नहीं, हम वहां नहीं रह सकते,” क्योंकि वे सभी उन्हें नीचा दिखाते हैं। इटालियन आप लोगों से डरते हैं, अगर आप अर्जेंटीना के लोगों से पूछें, तो वे आपसे डरते हैं, स्पेनिश आपसे डरते हैं। फ्रेंच, वे कहते हैं, “हम भी वैसे ही हैं जैसे वे हैं – नहीं जा सकते।” ऑस्ट्रियाई भी नहीं आना चाहते।

यद्यपि हो सकता है कि,आपके पास वायब्रेशन भी नहीं हों, बावजूद के आप आत्मबोध में भी बहुत अच्छे नहीं हों, शायदआप कुछ भी नहीं हों, लेकिन आप बस एक टोपी पहन लेते हैं और आप ” कहने को बिग बॉट ” बन जाते हैं। आप सभी को नीचा दिखाते हैं, उन्हें नीचा दिखाते हैं। इस दुनिया में मौजूदगी का सबसे अच्छा तरीका अन्य कुछ भी नहीं, बस किसी व्यक्ति को ऐसा जताने की कोशिश कि, “आप अच्छे नहीं हैं।”

यह बहुत आश्चर्य की बात है कि सहज योग में, लोग अंग्रेजों के बारे में कहते हैं कि वे इंग्लैंड नहीं आना चाहते, क्योंकि हर कोई आपको निम्न दृष्टि से देखता है। आपने दूसरों कोनिम्न दृष्टि से देखने का एक तरीका विकसित कर लिया है, लेकिन आप खुद क्या करते हैं, आपके पास क्या सम्पदा है। चलो,जैसा कि वे अमेरिका में कहते हैं brass tacks शास्त्रार्थ करें। आइए देखते हैं। क्या आप उतना अच्छा गा सकते हैं जितना [अश्रव्य] उस साथी ने दूसरे दिन बजाया, क्या आप कर सकते हैं? आप में से कोई ?आपकी पीढ़ियों में? क्या आप ताजमहल बना सकते हैं, अजंता को तो छोड़ ही दें? क्या आप ये गलीचे बना सकते हैं जो फारसी बना सकते हैं? आपने अपनी योग्यता के बारे में क्या प्रदर्शन किया है जिस पर आप गर्व कर रहे हैं? आप कढ़ाई नहीं कर सकते, यहां की महिलाएं नहीं कर सकतीं। आप हमारी तरह खाना नहीं बना सकते, है ना? आप स्पेनिश की तरह कढ़ाई भी नहीं कर सकते। आप इटालियंस की तरह फर्नीचर नहीं बना सकते, है ना? आप कर क्या सकते हैं? आपने कौन सी कला का निर्माण किया है? सिपाही? टर्नर? ठीक है, मैं कलाकारों के रूप में उनका सम्मान करती हूं, लेकिन क्या वे सबसे ऊच्चतम हैं? क्या वो हैं? डेरेक, तुम मुझे बताओ। आपको ऐसा नहीं लगता। ठीक है।

तो अब, हमने ऐसा क्या हासिल किया है कि हमें लगता है कि खुद का कोई अंत नहीं है? सबसे पहले सवाल अपने आप से रखो। कि हम हर किसी को इस तरह निम्न दृष्टि से देखते हैं और सोचते हैं कि हर कोई बैवकूफ मूर्ख है और आप ही सबसे चतुर व्यक्ति हैं और सहज योग में भी आप यही काम करते हैं। यह केवल अहंकार नहीं है, यह मूर्खता है, जो दिखावा करने की कोशिश करती है। तो यह सबसे बुरी चीज है जो हमारे साथ हुई है, हमारे चरित्र के लिए, मैं आपको बताती हूं। हमारे पास किसी भी प्रकार की कोई विनम्रता नहीं है। कोई भी, जो काम का जानकार नहीं है, हमेशा ऐसा ही व्यवहार करेगा। हम सहज योग नहीं जानते, हम नहीं जानते कि कैसे आत्मसाक्षात्कार देना है, हम कुछ भी नहीं समझ पाते कि दूसरे व्यक्ति के साथ क्या हो रहा है, लेकिन हम महान सहज योगी हैं जो चारों ओर खेल रहे हैं: “मैं कहता हूं बिग बॉट,” फिर से। ऐसे में यह गंभीर मामला है। हमें अपने अलावा किसी और को नीचा दिखाने का कोई काम नहीं है। हमने क्या हासिल किया है?

मुझे कहना होगा कि सहज योग में मुझे आप सभी के प्रति पूरे सम्मान के साथ स्वीकार करना होगा: सभी लोगों में, सभी लोगों में, ऑस्ट्रेलियाई सबसे अच्छे हैं। मुझे यह कहते हुए खेद है, लेकिन ऐसा है। व्यावहारिक रूप से प्रत्येक ऑस्ट्रेलियाई अधिक संवेदनशील है, आप कह सकते हैं। वे अपराधी थे, अपराधियों के रूप में भेजे गए, वे अपराधियों के बच्चे हैं या आप उन्हें जो भी कह सकते हैं। फिर दूसरे ऑस्ट्रियाई हैं। फ्रेंच आखिरी हैं, मैं सहमत हूं। लेकिन अंग्रेजी और फ्रेंच के बीच प्रतिस्पर्धा है कि, कौन आखिरी है। वे सभी को, फ्रांसीसी को भी नीची दृष्टि से देखते हैं।

तो अब आपके लिए, मुझे पता है कि हम घुड़दौड़ के बहुत शौकीन हैं, इसलिए मैं आपको एक स्पर्धा में डाल रही हूं। आप सभी को ऊपर आना होगा। आप यह कर सकते हैं, क्योंकि आपके पास सबसे बड़ी संपत्ति है, जो किसी के पास नहीं है: कि आप इंग्लैंड में पैदा हुए हैं, जहां विलियम ब्लेक जैसे लोगों का जन्म हुआ था। स्वयं भैरव ने ही जन्म लिया था। वह कहीं और जन्म नहीं ले सकता था, लेकिन यहाँ उसने जन्म लिया – जिसने इस घर के बारे में वर्णन किया, जिसने मेरे घर का वर्णन किया, जिसने सहज योग के बारे में सब कुछ बताया है। और उसने कहा कि, “परमेश्वर के लोग पैगम्बर बनेंगे और उनके पास दूसरों को नबी बनाने की शक्ति होगी।” क्या तुम अब नबी हो गए हो? शक्तियां वहां नहीं हैं। तुम उपदेश तो कर सकते हो, [लेकिन] शक्तियाँ नहीं हैं क्योंकि तुम इन सब तुच्छ, मूढ़, बेतुकी बातों में खोए हो। मंत्र काम नहीं कर रहे हैं, आपमें भविष्यवक्ता की शक्तियां नहीं हैं। यहांआपकी कुंडलिनी शक्तियाँ हैं नहीं। शक्तियां काम नहीं कर रही हैं। कमजोर, कमजोर साधन। इन्हे ठीक करो! इसे व्यवस्थित करें।

आपको सबसे ज्यादा सुविधा है, मैं आपको बताती हूं, आपको सबसे अनूकुल परिस्थिति है और इसलिए मैंने अभी यह बैठक बुलाई है। मैं इस आश्रम में कई बार गयी हूं, मैं कभी भी ऐसे किसी आश्रम में नहीं गयी हूं, मैं अपना अधिकांश समय यहीं रही हूं। कहीं नहीं, दुनिया में कहीं भी मैं इस तरह नहीं रही। ऑस्ट्रेलिया, मैं वहां केवल तीन बार गयी हूं, मुझे लगता है। और अब चीजों को हल्के में नहीं लेना चाहिए। बेशक, सहज योग का प्रसार महत्वपूर्ण है लेकिन उत्थान भी बहुत महत्वपूर्ण है।

आइए अब हम एक तप करें, एक तपस्या का व्रत, आइए हम इसे एक तपस्या के रूप में करें, एक तपस्या के रूप में, आप सभी। चाहे आप आश्रम में हों या घर में। जो घर में हैं वो भी खो गए हैं। वे पीते नहीं हैं, लेकिन सोते हैं। तो क्या फायदा? तो आइए अब हम सब इसे तपस्या के रूप में लें। और आंतरिक, निरर्थक राजनीति में शामिल न हों। अन्य लोग भी हैं, जो आपके लिए इसे कर ही रहे हैं, आप चिंता न करें! बस अपनी आत्म-जागरूकता विकसित करें। और जब मैं भारत में होती हूं, तो अपने आप को समर्पित कर दें। जब मैं आपसे दूर होती हूं – तथाकथित ‘दूर’ – सहज योग फैलाने और उत्थान करने के लिए खुद को समर्पित करें। इस तरह विकसित हों जिससे पूरे ब्रह्मांड का निर्माण हो – निर्माण। निर्माण शक्ति को आप से शुरू होना होगा। यह निर्माण का एक चक्र है, जिसे आपके माध्यम से कार्यांवित होना है। मैंने जो कुछ भी कहा है, उसे आपकी भलाई के लिए एक सलाह के रूप में लिया जाना चाहिए। इसे कार्यांवित करें! ऐसा नही कि, बस इसे सुनो और भूल जाओ। यह एक दवा है। तो कृपया इसे बार-बार सुनें। इसे अपने जीवन में पालन करने का प्रयास करें, अपने जीवन में, दूसरों के नहीं’! ज्यादातर लोग सोचते हैं, “ओह, वह किसी और के बारे में बात कर रही है!”

एक छोटा सा संकेत है, जिसे गेविन चाहता था कि मैं कहूं कि आपको इसके बारे में नहीं खेल नही करना चाहिए, और वे सामान्य रूप से ऐसा नहीं करते हैं, लेकिन फिर भी वह चाहता था कि मैं आपको बता दूं कि इसका पैसा सम्बंधि भाग भी है – जिसमे किसी भी तरह से आपको मुझे धोखा देने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, क्योंकि हमने हाल ही में कुछ बुरे परिणाम देखे हैं। तो उस पर सावधान रहें। वह चाहता था कि मैं आपको बता दूं कि हर शख्स को सावधान रहना होगा कि वह मुझे धोखा न दे।

तो परमात्मा आप सभी का भला करे।

श्री माताजी: तो कैंब्रिज की समस्या क्या है? जिम कहाँ है? समस्या क्या है?

योगी: सामूहिकता।

श्री माताजी: अब, आप सामूहिक हैं या आपकी पत्नी? मुझे बताओ, सामूहिक कौन है?

योगी: कैम्ब्रिज में सभी लोग, माँ।

श्री माताजी: डेरेक (ली), आपको क्या कहना है?

श्री माताजी : लेकिन क्यों? क्या हुआ? यह दोनों तरह से खेलता है। ठीक है, मैं कहती हूँ कि यह दोनों तरह से खेलता है। चुंकि आप नेता हैं और वे वहां हैं। यह देखना आपकी ज़िम्मेदारी है कि आप उन्हें हर समय सुधारने की कोशिश न करें! ठीक है? अब यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप स्वयं को सुधारें और सुनिश्चित करें कि आप सामूहिक हैं। यह तो सम्भालने के आपके तरीके की बात है। एक नेता की कला है कि वह परिस्थितियों को कैसे संभालता है।

आपको एक अमेरिकी (जिम) होने के नाते बेहतर तरीके से पता होना चाहिए कि कैसे संभालना है। समस्या क्या है? और मैं तुमसे कहती हूं, तुम्हारी पत्नी, वह अभी भी ग्रस्त होती है? क्या आप प्रतिदिन ध्यान करते हैं?

हिलेरी: हाँ

श्री माताजी: क्या आप करती हैं? पक्का? यह वहां है, अभी भी ग्रसित है, मैं इसे महसूस कर सकती हूं। आइए हम उसे वहां से, कैम्ब्रिज से, किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित कर दें, ताकि वह खुद को ठीक कर सके। क्या वह बहुत बुरी तरह से पकड़ नहीं रही है? आपको एक समस्या है जो आपको लगता है कि आपको प्रभारी होना चाहिए। सभी नेताओं की पत्नियां ऐसी नहीं होतीं, लेकिन उनमें से कुछ ऐसी भी होती हैं। मैडम चांदबाई की तरह? आप कह सकते हैं, या श्रीमती मन्नार? या श्रीमती केनेडी या हमारे पास एक अन्य थी, उसका नाम क्या है, यह इंडोनेशियाई, भयानक! वे खुद को ऐसे लोगों के रूप में पेश करना चाहती हैं, जिन्हें नियंत्रण का प्रभार मिलना चाहिए। क्या यह सच है डेरेक? प्रत्यक्ष नहीं, परोक्ष। पहलेआपको उसे ठीक करने की कोशिश करनी चाहिए। क्योंकि शायद इसका आप पर असर हो रहा है, संभवतः जिम। क्या आप मेरी बात समझे? वह पकड़ रही है। मैं तुम्हें बता सकती हूं। वह पकड़ रही है, किसी से पूछो। उसका दायाँ ह्रदय है, बायाँ दिल। जो भी संवेदनशील होगा, वही कहेगा। अब सबसे अच्छी बात यह है कि आपको पहले उसके वायब्रेशनन देखना चाहिए। आप अपनी पत्नियों को,पतियों को चैतन्य देख कर सुधारें। अन्यथा, जब तक आप पुरी तरह से इसके बारे में काम पर नही लग जाते, तब तक आप इसे हल नहीं कर सकते। उनकी एक पत्नी है, उनका एक पति है, यह सब बकवास है। बस इस बात का ध्यान रखें कि आप इसे पूरी तरह से साफ कर दें। मुझे लगता है कि उसे किसी और आश्रम में जाना चाहिए जो बेहतर होगा, और चुप रहना चाहिए। आप प्रभारी नहीं हैं, वह प्रभारी हैं। यह एक बहुत ही सामान्य बात है कि उनके पास दयालूता इस तरह की चीज होती है फिर: पत्नी नियंत्रित करने लगती है। आप जानते हैं कि यह ऑस्ट्रेलिया में हुआ था, और हमें पत्नी को स्ट्रैटफ़ोर्ड भेजना पड़ा, जहाँ वह बदली। क्या हमें उसे स्ट्रैटफ़ोर्ड भेज देना चाहिए। आप एक अमेरिकी के नाते तुम खाना बनाना जानते हो या नहीं? अच्छा यह बढ़िया है। उसे कहीं भेज दो। तुम्हें ठीक हो जाना चाहिए क्योंकि तुम उसे प्रभावित करती हो और सब कुछ बिगड़ जाता है।

अब डेनिस, तुम्हारी समस्या क्या है? आप उसके दोष खोजने की कोशिश करते हैं, है ना? वह उसमें कमियां ढूंढ़ने की कोशिश करता है। समस्या क्या है? समस्या क्या है, आपको मुझे बताना होगा।

सहज योगी: [अश्रव्य]।

श्री माताजी: ठीक है, यह क्या है? मेरा मतलब है, मैं इतनी सीधी बात कहती हूं । मैं इतनी बुद्धिमान महिला नहीं हूं, दोधारी बातें कहूं। अब यह क्या है, किस बिंदु पर? मुझे देखने दो।
सहजयोगी: हम में से कुछ, माँ, मैं समझता हूँ कि आप कहती हैं कि हमें प्यार और सहनशीलता से लोगों को जीतना चाहिए।

श्री माताजी: ठीक है।

सहजयोगी: और दूसरे समझते हैं कि हमें लोगों को यह दिखाना चाहिए कि कुछ ऐसे मानक हैं जिन पर उन्हें खरा उतरना है, और अधिकांश लोग हमें असंगत लगते हैं।

श्री माताजी : इसे बहुत अच्छी तरह समझा जा सकता है। देखिए, पहले मान लीजिए कि मैं आपको एक कार देती हूँ और आप कहते हैं, “माँ, आपने कहा है कि मुझे गाड़ी चलानी है, इसलिए मैं गाड़ी चलाना शुरू करता हूँ।” मुझे नहीं पता कि कैसे चलाना है, क्या उपयोग है। देखिए, लोग आपके पास चरणों में आते हैं। दोनों बातें सही हैं। पहला: “चलो, चलो, चलो!” उन्हें भोजन दो, उन्हें यह दो, कि, “आओ, आओ, चलो।” बहुत अच्छे बनो। तथाकथित प्रोटोकॉल उनके साथ किया जाना है क्योंकि वे नवागंतुक हैं। ठीक है? उन्हें तुरंत पूरी बात बताने की जरूरत नहीं है! ठीक है? उन्हें आने दो।

जब वे अच्छी तरह से स्थापित हो जाते हैं तो आप उन्हें आनंद का अनुभव करने देते हैं, इसलिए वे आपके पीछे पड़े रहते हैं।

अब मैं ने आज तुम से बहुत सी बातें कही हैं, जो बारह वर्ष पूर्व मैं ने नहीं कही थी। कहो, अगर मैंने बारह साल पहले कहा होता, तो क्या आपको लगता है कि गेविन मेरे साथ रुका रहता? गेविन से पूछो, कि उन में से सात ने मुझे कितना परेशान किया; सबने मुझे इतना परेशान किया। मैं बहुत धैर्यवान और दयालु और स्नेही और अच्छी थी। और फिर, जब वे सहजयोगी बने, तो अब मैंने कहा, “अब आगेआओ।” फिर वे पूछने लगे, “हमें अपने आप को बेहतर बनाने के लिए क्या करना चाहिए माँ, हम कैसे स्वच्छ करें?”

तो अब आप किस अवस्था में हैं, लव साइड पर या करेक्शन साइड में? आप इसकी व्याख्या कैसे करते हैं? आप मेरी व्याख्या कैसे करते हैं?

तुम क्या सोचते हो? मैंने क्या कहा? डेरेक?

डेरेक: हम दोनों को होना है।

श्री माताजी: नहीं! एक ही समय में दोनों साथ-साथ नहीं! कल्पना कीजिए कि आप किसी को भोजन के लिए बुलाते हैं और उसी समय चोट करते हैं! पहले प्यार से। उन्हें अंदर आने दो और फिर। इन सात महान अंग्रेज सहज योगियों को स्थापित करने में मुझे चार साल लगे। वहाँ एक बैठा है, उससे पूछो। वे मेरे घर में आते थे, मैं उनके लिए खाना बनाती थी, मैं यह करती थी और मैंने एक आश्रम शुरू किया और वह किया और उन्हें सब कुछ दिया।

मैट, तुम क्या कहते हो? तो, शुरुआत में आपको ऐसा करना होगा। मैंने हाल ही में ग्रेगोइरे से कहा था: जर्मनों के साथ वह गया और उसने बस उन्हें सब कह डाला! और ? परेशान था कि, क्योंकि ग्रेगोइरे ने कुछ कहा और, वे सब भाग गए! तो निश्चित रूप से मैंने ग्रेगोइरे का पक्ष लिया, क्योंकि मैं उसे निराश नहीं करना चाहती थी, लेकिन मैंने कहा कि, ठीक है, ऐसे भगोड़े हैं, आप क्या कर सकते हैं? लेकिन जर्मनों से मुझे ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं, मुझे अंग्रेजों से बहुत उम्मीदें हैं।

वास्तव में इसलिए, मेरे कार्यक्रम में मैंने नहीं देखा कि कोई समस्या थी, अगर यह माताजी का कार्यक्रम है, तो पूरा हॉल भर जाएगा और फिर अगले दिन सभी पक्षी भाग जाएंगे। मामला क्या है? तो सबसे पहले, हमें बहुत कोमल तरीके, बहुत, बहुत कोमल तरीके का इस्तेमाल करना होगा। तुम्हारी माँ की यही शैली है। जब तुम पहली बार मेरे पास आए, तो मैंने तुमसे कैसे बात की? क्या मैंने ये सब बातें तुमसे कही थीं? अगर मैंने कही होती कि, “एक अंग्रेज, आप कटाक्ष पुर्ण हो सकते हैं,” तो आप अगले दिन चले गए होते! आज मैं कह सकती हूं, क्योंकि आप जानते हैं कि, चुंकि अब वहां कोई अंग्रेज है ही नहीं, यह अब समाप्त हो गया है, आप एक सहज योगी हैं। और आप अपने आप को सुधारना चाहते हैं, तो अगर मैं कुछ भी कहूं तो आपको बुरा नहीं लगेगा, है ना? यह ऐसा ही है।

इसलिए दोनों काम नहीं करने चाहिए। सबसे पहले, बस प्यार: स्नेह, उन्हें खाने के लिए भोजन दें, चैतन्यित भोजन,चैतन्यित नमक, यह, वह, उनका भौतिक पक्ष की देखभालभी करने का प्रयास करें। फिर, फिर धीरे-धीरे आपको उन्हें बताना होगा, “हां, मुझे वायब्रेशन महसूस नहीं हो रहे। मुझे बायां मूलाधार महसूस हो रहा हैं, इसका क्या मतलब है – कैसे बताना है। बहुत मुश्किल है, तुम्हें पता है, यह एक मज़ेदार बात है। लेकिन बेहतर होगा कि आप थोड़ा विकसित हो जाएं फिर हम आपको बताते हैं।” जिज्ञासा बनी रहना चाहिये।

बायां मूलाधार एक खतरनाक चीज है, ऐसा किसी के भी साथ होना बहुत बुरी चीज है, बायां मूलाधार, और उसके ऊपर सेअब आप बाएं स्वाधिष्ठान को पकड़ रहे हैं! तो वह क्या है? यह एक और है, यह बहुत मुश्किल है। अब आपस में बातचीत में कहना चाहिए, ‘उनके बाएं मूलाधार का क्या करें? ठीक है, चलो हम देखते हैं, हम स्वयं मंत्र देखते हैं।” आप स्वयं एक समूह बनायें और उस पर पूरा ध्यान दें कि आप चिंतित हैं, “अब कहाँ है, ओह रास्ते में है।” तृतीय् व्यक्ति के रूप में बात करें। “अब कुंडलिनी कहाँ है? बाईं ओर की नाभि पर। ” अब आप तुरंत जाकर पूछेंगे, “क्या आप अपनी पत्नी के साथ ठीक हैं?” सब बर्बाद! आपको क्यों ऐसा पूछना चाहिए? मैं ऐसा कहती हूं क्योंकि यह एक सामान्य बात है।

जैसे एक शख्स आया और मुझसे पूछा, “माँ, इन लोगों के साथ क्या गलत है, वे सब कह रहे हैं, ‘तुम्हारे पिता के साथ क्या हुआ है?” मैंने कहा, “सच में? तुम्हारे पिता के साथ कुछ भी गलत नहीं है?” “कोई नही, मां। मेरे और उनके बीच समस्या है, लेकिन मैं इस पर खुलकर चर्चा नहीं करना चाहूंगा। मैंने कहा, “ठीक है। ठीक है, लेकिन उन्हें ऐसा कहना नहीं चाहिए, देखें कि वे वह सब कुछ जानते हैं जो मैं आपको बताती हूं, लेकिन आप इसके बारे में भी बेहतर जानिये।” इसी तरह मैंने उससे बात की। लेकिन आपको ऐसा सब कहने की ज़रूरत नहीं है, “आपके पिता के बारे में क्या?” मैंने लोगों को देखा है, जब उन्होंने आत्मसाक्षात्कार दिया, तो अचानक वे ऐसा प्रश्न पूछ बैठेंगे। नहीं! आपको केवल कुंडलिनी पर बात करनी चाहिए, “यह(कुंडलिनी) यहाँ नहीं है, इसे चलना है, इसे जाना है, इसे करना है।” फिर तुम धीरे-धीरे, नीचे बढ़ो, ठीक है।
हमें चतुराई में प्रवीण लोग बनना है, श्री कृष्ण। नहीं तो आप इन महान अंग्रेजों को अपने पाले में कैसे लाएंगे? वे उन मछुआरों सम नहीं हैं जिन्हें मसीह ने पकड़ा था। ये अंग्रेज हैं, आप जानते ही होंगे, इस नाम के साथ ये भी हिलता है। इसलिए जब आप उन्हें संभालें तो सावधान रहें। मैंने कहा यह करने में कला निहित है, ठीक है जेम्स?

तो अब मैं कहती हूं कि,एक नेता के रूप में आप यह सुनिश्चित करें कि आप उन्हें पहले ही जोड़ लें, उनके आने से पहले हीआपको एक बैठक करनी चाहिए कि, “हम उन्हें कैसे संभालेंगे, हम उन्हें कैसे अंदर लाने जा रहे हैं। चलो एक उचित जाल फैलाओ, ताकि कुछ तुम कहो और कुछ मैं कहता हूं। उन्हें यह महसूस करने दें कि हम इसे समझ रहे हैं। कि कोई ऐसा कह सकता है, “ओह,” और फिर दूसरे को कहना चाहिए, “बायीं विशुद्धि।” नहीं नहीं नहीं। आप किसी व्यक्ति से ऐसा नहीं पूछें, “क्याआप दोषी महसूस करते हैं?” तीसरे व्यक्ति से बात करते हुए आपको इस तरह कहना चाहिए कि, “इसमें ज्यादा दोषी महसूस नहीं करना चाहिए।” तब वह व्यक्ति कह सकता है, “हाँ, मैं बहुत दोषी महसूस करता हूँ,” आप कहते हैं, “दोषी महसूस करने की कोई बात ही नही है?” तब यह ठीक है। लेकिन अगर आप सिर्फ ऐसा कह देते हैं, “क्याआप दोषी महसूस करते हैं?”, वे कहते हैं, “हां, मैं दोषी महसूस करता हूं।”

लोग बहुत विचित्र हैं, मुझे कहना होगा। जैसे सैन फ्रांसिस्को में उन्होंने कहा था कि, “हम खुद को नष्ट करना चाहते हैं, आप हमें क्यों बचाना चाहते हैं?” अब उसके बाद आप क्या कहेंगे? मैं कहती हूं, “ठीक है, मुझे क्षमा करें।” हर तरफ
बहुत विचित्र लोग हैं, वे अजीब लोग हो गए हैं। सभी बाधित, सब औंधे। देखिए, जैसे मुझे लगता है कि दो बेल्ट घुम रहे हैं, एक ऊपर की ओर बढ़ रहा है, एक दुसरा जबदस्त तेज़ गति से लोगों के साथ नीचे की ओर बढ़ रहा है। हम पहले वाले पर हैं, जो ऊपर की ओर जा रहा है। हमें लोगों को दूसरे बेल्ट से बाहर निकालना होगा। तुम देखो, वे एक साथ बढ़ रहे हैं, उन्हें खींचने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन क्या हो रहा है? वे नीचे की ओर बढ़ रहे हैं, हम ऊपर की ओर बढ़ रहे हैं। तो हमें क्या करना है, किसी न किसी तरह से खुद को इस तरह से तैनात करें कि उन्हें लगे कि हम स्थिर हैं और हम उन्हें खींच लेते हैं। अन्यथा, यदि आप सोचते हैं कि यह [अश्रव्य] है, तो वे सोचने लगते हैं कि, “ओह, ये अपने आप का महान समझते हैं, वे दबाव बना रहे हैं।” यहां उन्होंने मानसिक रूप से बहुत सी चीजों का पता लगा लिया है, जैसेकि – कोई आप पर दबाव न डाले, कोई आपको कंडीशन न करे, कोई आपको आइडिया न दे। तो कुण्डलिनी पर ही बात करो—तृतीय पुरुष भाव में—तब फिर तुम उन्हें पाओगे।

हमेशा, मुझे मिलने के लिये एक बड़ा समूह आता था। लेकिन दूसरा कम होगा और उससे दुसरा कम होगा, क्योंकि जैसे ही वे सहजयोगियों को देखते हैं, उनमें से आधे आना छोड़ देते हैं। ऐसा नहीं है कि वे बहुत अच्छे लोग हैं, वे बाहर हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें बाहर किया जाना है, कोई बात नहीं, लेकिन हमें कोशिश करनी चाहिए। वे स्वाभाविक रूप से आप जैसी गुणवत्ता के नहीं हो सकते। ठीक है, तो आइए हम इसके बारे में एक बहुत ही तार्किक, समझदार विवेक विकसित करें।

सहज योगी : कैम्ब्रिज में चीजें बेहतर होंगी, मां।
श्री माताजी : बिल्कुल। आपको अच्छा सेल्समैन बनना होगा। इस तरह के कुछ शब्द हैं, आपको अवश्य कहना चाहिए “धन्यवाद, महोदय, बिल्कुल”। “बेशक”, हम कहेंगे, “क्या ऐसा है”, “बिल्कुल”, या कुछ और। “बेशक” एक अच्छे तरीके से। अगर वे कहते हैं, “क्या हम ठीक हो सकते हैं?”, “बिल्कुल, क्यों नहीं”। उस तरह। आप अपनी सकारात्मकता जैसा कुछ भी कहेंगे तो उन्हें खुशी होगी।

ठीक है, तो अब क्या कोई और समस्या है; अब आप, कृपया, सुनिश्चित करें कि आप कहीं जाएं और इसे हल करें। कैम्ब्रिज को विकसित होना चाहिए, कैम्ब्रिज को विकसित होना चाहिए, यह बहुत महत्वपूर्ण है। यह कोई चर्चा की जरूरत नहीं है, कुछ नहीं, मुझे समझना सबसे आसान काम है। तुम बैठ कर मेरा एक-एक बाल मत तोड़ो और बांटो। अपना विवेक विकसित करें। मैं महामाया हूं, आप जानते हैं, अगर आप उस तरह की यात्रा में जाते हैं, तो आप इसे कभी खत्म नहीं करेंगे। मेरा विश्लेषण बिल्कुल मत करो, उसके बारे में स्थूल बनो। आप जो कुछ भी सुनते हैं, “ठीक है, यह है, माँ ने कहा है। ठीक है। ”करो! खत्म! विश्लेषण न करें। यदि आप विश्लेषण में जाते हैं, तो आप उस संश्लेषण को खो देते हैं जिसे बनाया गया है। आपको किसी भी बात का विश्लेषण नहीं करना चाहिए। मैं जो कुछ भी कहती हूं, “ठीक है, यही माँ ने कहा है। ठीक है।” मैं विरोधाभासी नहीं हूं। मैं कभी खुद का खंडन नहीं करती, है ना? तब यह ठीक है।

लेकिन मेरा व्याख्यान सुनो; हर शब्द और शब्द यदि आप इसे विभाजित करने का प्रयास करते हैं, तो आप कहीं भी नहीं पहुंचेंगे। वे मंत्र हैं। हर शब्द एक मंत्र है, मैं जो कुछ भी कहती हूं वह एक मंत्र है। वास्तव में। मैं किसी विशेष समय पर किसी विशेष शब्द का प्रयोग नहीं करूंगी, यदि वह मंत्र में फिट नहीं बैठता है। यहां तक की मेरी गतिविधि भी; आप जानते हैं, इससे पूरा ब्रह्मांड चलता है, आप इसे अच्छी तरह जानते हैं। तो, हर चीज का एक बड़ा अर्थ होता है। तो तुम बस जा
करऔर मुझे विभाजित कर बुद्धिमत्ता से समझने की कोशिश मत करो। आप नहीं कर सकते! कोई नहीं समझ सकता। मेरे पास कोई बुद्धि नहीं है, इस हद तक कि मैं आपकी बुद्धि से परे हूं। मैं परे हूँ। तुम मुझे शब्दों में, वस्तु में विभाजित करने का प्रयास नहीं करो। ऐसा नहीं … आप ऐसा नहीं कर सकते। मैंने जो कुछ कहा है, तुम उसे लो, नीचे रख दो। ठीक है। अब कोई और समस्या हो, कोई और बात हो, तुम मुझे बताओ। हाँ डॉक्टर?

सहजयोगी: [अश्रव्य] परिणाम हासिल किये बिना अभिमानी, जैसा कि आपने अंग्रेजों के अस्तित्व का वर्णन किया है। क्या आप समझा सकते हैं कि वास्तविक शब्द के अर्थ में क्या शामिल है?

श्री माताजी : अब देखते हैं यह शब्द कहाँ से आता है। आइए सबसे पहले इस शब्द की उत्पत्ति को देखें। शब्द की उत्पत्ति परावाणी है, जिसे परावाणी कहा जाता है, वह ध्वनि से परे, परावाणी ध्वनि से परे ऊर्जा है। ध्वनि की ऊर्जा को परावाणी कहा जाता है, ठीक है? यह परावाणी हमारे पेट में हमारे भीतर ही निरूपित होती है। यह सबसे पहले पेट में होता है। और फिर यह पेट से धीरे-धीरे ऊपर उठता है। यह वह हिस्सा है जहां यह धड़कता है, मान लीजिए कि किसी को पेट के लिए कैंसर है, तो आप उस क्षेत्र में धड़कन महसूस कर सकते हैं। आप यह पता लगाना चाहते हैं कि क्या किसी के पेट में कैंसर है, आप इसमें अपनी उंगली रखते हैं और आप देखते हैं कि एक धड़कन हो रही है। बेशक इसका उल्टा भी सही नहीं है कि अगर धड़कन है तो कैंसर है! लेकिन अगर कैंसर होता है तो हमेशा धड़कते रहना पड़ता है। पेट में कोई धड़कन नहीं होनी चाहिए। अगर धड़क रहा है तो इसका मतलब है: हमारे साथ कुछ गड़बड़ है। तो सबसे पहले पेट में उस परावाणी के माध्यम से रुकावट होती है और इस तरह वहाँ की यह रुकावट “लब, ड्ब, लब, डब, लब, डब की” ध्वनि उत्पन्न करती है। ठीक है। फिर यह में ऊँचा उठ जाता है,ह्रदय तक। हृदय में वही ध्वनि सुनाई देने लगती है। जब यह श्रव्य हो जाता है, जब आप इसे सुनना शुरू करते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह ऊर्जा हृदय से पंप करवाती है, और वह पंपिंग ध्वनि बनाती है। लेकिन अनाहत है, जो बिना ताल के है। फिर वही ध्वनि, ऊर्जा विशुद्धि चक्र में जाती है। जब विशुद्धि चक्र में जाती है, तब पश्यंती है, वही दृष्टा है, [अश्रव्य] यहाँ [अश्रव्य] यहाँ [अश्रव्य] है। पश्यंती का अर्थ है “वही दृष्टा है”। यह उस ध्वनि को देखता है। बस देखता है। अर्थ: यदि कहीं कोई ध्वनि है, तो वह देखता है, जानता है, देखता है। यह यहाँ ध्वनि की साक्षी अवस्था है। और इस ध्वनि पर ही आपने देखा है कि कैसे जानवर, हर कोई उस ध्वनि के साथ रहता है, उस ध्वनि के साथ कार्य करता है। जैसे, एक जानवर, मान लीजिए कि एक प्रकार की ध्वनि है, लगातार “टैप, टैप, टैप” चल रहा है – यह जानता है कि सब कुछ ठीक है। लेकिन अगर कोई बदलाव होता है, तो वह जानता है कि बदलाव है। तो विशुद्धि में ध्वनि पश्यंती बन जाती है, अर्थात दृष्टा। कोई भी आवाज आती है, हम तुरंत देखने लगते हैं। यह [अश्रव्य] कार्य करता है। कोई भी ध्वनि, तो वह पश्यंती अवस्था में होती है। लेकिन तब फिर यह वैखरी बन जाता है, साउंड बॉक्स में। वैखरी का अर्थ है यह बोलता है। तो अब, यह परावाणी, मध्यमा से आता है, फिर यह पश्यंती हो जाता है और फिर यह वैखरी हो जाता है, जो बोलता है। ठीक है। तो जब यह बोलता है, तो यह कई चीजों से नियंत्रित होता है यानी यह सब दिमाग से जुड़ा होता है। हम दिमाग से जुड़े हुए हैं। मस्तिष्क के दो पहलू होते हैं: एक है कंडीशनिंग (संस्कारबद्धता) दूसरा है अहंकार। और ये दोनों पक्ष विशुद्धि पर कार्य करते हैं जैसा कि आप जानते हैं कि यहां पहला क्रॉसिंग इस स्थान[अश्रव्य] पर होता है। तो विशुद्धि में, यदि आपको दायीं विशुद्धि ग्र्स्त है, तो आप घमंडी हैं, आप मूंहफट हैं, आप बातें बस ऐसे ही कह देते हैं बिना यह सोचे कि कोई दूसरा व्यक्ति इसके बारे में कैसा महसूस करेगा, वह कैसे प्रतिक्रिया करेगा या और कुछ भी। क्यों? मैं सवाल पूछती हूं। मध्य में श्रीकृष्ण निवास करते हैं और श्री कृष्ण माधुर्य हैं, मधुरता हैं। चुंकि तुमने अपने आप को वहाँ से हटा लिया है, तुम कठोर हो जाते हो। बायीं ओर विष्णुमाया है, शक्ति है। दाहिनी ओर विट्ठल है, “ठॅ, ठॅ”, बातचीत में इस तरह से बोलते हैं, जो हम संस्कृत भाषा में सबसे अधिक तब उपयोग करते हैं, वे कहेंगे कि जब आपको युद्ध का वर्णन करना होगा, यदि आपको करना है, युद्ध का वर्णन करने के लिए, आपको “ठॅ, ठॅ, ठॅ” का उपयोग करना होगा। ये चीजें हैं, “ठॅ, ठॅ”। विट्ठल, विट्ठल, विट्ठल जैसा कि आप यहां कहते हैं। यह “ठॅ,” संकेत है चोट करने का,कि किसी भी भारतीय भाषा या यहां तक ​​​​कि संस्कृत भाषा भी है जैसा कि हम कहते हैं, चोट किसी को मारना है, “ठक्कार” इन सभी शब्दों का हम उपयोग करते हैं। अतः भाषा ध्वन्यात्मक होने के साथ-साथ अभिव्यंजक (अभिव्यक्ति पुर्ण)भी है। तो क्या होता है कि दाहिनी ओर आप “ठॅ, ठॅ, ठॅ, ठॅ” बन जाते हैं, उसी तरह बोलते हैं।

बाईं ओर विष्णुमाया है। विष्णुमाया वह है जो बादलों का संचय है और जब वे टकरातें हैं, तो आपको विष्णुमाया प्राप्त होती है, बिजली है। तो यह एक बिजली की चीज की तरह आती है, इसलिए [अश्रव्य] जिसे आप कटाक्ष कहते हैं। यह हमारे भीतर इन सभी कंडीशनिंग (कुसंस्कार बद्धता)का संचय है जो अचानक सामने आता है। तो इस ऊर्जा की ये दो प्रतिक्रियाएं घटित होती हैं, जो यहां “धा”, “धा” के रूप में है। आप ऐसा कह सकते हैं यह एक कोमल “धा” है। तो यह “धा” जो हमारे भीतर है, उसका उपयोग हमारी मधुरता, नम्रता के संकेत के रूप में किया जाना है। लेकिन कुछ लोग जो दबाव की वजह से कोमल होते हैं, उन्हें कोमल होने के लिए मजबूर किया जाता है, तो अचानक वे विष्णुमाया के साथ के रूप में प्रकट होते हैं। आप देखिए, वे सामान्य रूप से कोमल, ठीक और बहुत दयालु ऐसा, वैसे हैं, बहुत अच्छे हैं। फिर वे एक बिंदु पर टूट जाते हैं। जब आप टुटते हैं, तो आप कुछ कटाक्षपुर्ण कहते हैं या आप राइट साइड का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन ज्यादातर यह व्यंग्यात्मक होता है, क्योंकि इस तरह आप अपनी कंडीशनिंग को बाहर प्रकट होने का रास्ता देते हैं। तो इस प्रकार ये दो चीजें होती हैं, ठीक है। लेकिन बीच में है माधुर्य[अश्रव्य], श्री कृष्ण के बारे में सोचो, उनके बचपन के बारे में, वे क्या मज़ाक करते थे। कितने प्यारे थे, कैसे मां के साथ खेलते थे, कैसे मक्खन चुराते थे। और इसलिए उन्होंने कहा कि मक्खन समाधान है, घी आपकी आवाज को मधुर बनाने का उपाय है, आपकी वाणी को,बातचीत को मीठा करने के लिए आपको मक्खन की तरह बनना होगा।

एक संस्कृत दोहा है, सुंदर, वास्तव में संस्कृत नहीं, लेकिन इसका अनुवाद इस प्रकार है, “कुछ लोग कहते हैं कि संत का हृदय मक्खन जैसा होता है, लेकिन गर्म किये जाने पर मक्खन पिघल जाता है, लेकिन संत का हृदय दुसरे लोगों के गर्म (कष्ट में)होने पर पिघलता है।”

तो तुम संत हो। तो यहां मध्य में रहना यही सबसे अच्छा तरीका है। और मुझे कहना होगा कि विशुद्धि इंग्लैंड में एक बड़ी, बड़ी, बड़ी समस्या है। खासतौर पर लेफ्ट विशुद्धि तो बहुत है। तुम्हें पता है कि मुझे बाईं विशुद्धि से इतना भयानक दर्द होता है। तो किसी भी व्यक्ति को बहुत मीठा बोलना चाहिए। अब, कौन मुझसे यह वादा करता है? मुझे उंचे उठे हाथ देखने दो। आप मुझसे वादा कर रहे हैं, ठीक है? आप आदि शक्ति से वादा कर रहे हैं! उसे याद रखो। सावधान रहें!

दाहिना हाथ, दाहिना हाथ ऊपर रखना बेहतर है।

शुक्रिया।

परमात्मा आपको आशिर्वादित करे।