The Innocence of a Child & purpose of Ganapatipule, Evening Program, Eve of Shri Mahaganesha Puja

Ganapatipule (भारत)

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एक बच्चे सी अबोधिता
गणपतिपुले (भारत), 31 दिसंबर 1985।

गणपतिपुले एक बहुत ही खूबसूरत जगह थी और आप सभी के लिए बहुत सुकून देने वाली जगह थी इसके अलावा यहांआने का मेरा एक विशेष उद्देश्य था । कारण यह है कि – मैंने पाया कि इस जगह में चैतन्य थे जो आपको बहुत आसानी से स्वच्छ कर देंगे, सबसे पहले। लेकिन आपको इसकी इच्छा करनी होगी, वास्तव में, तीव्र्ता के साथ। आपको वह इच्छा रखनी चाहिए अन्यथा कुंडलिनी नहीं उठ सकती है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु है; कि तुम्हें अपने उत्थान की इच्छा करनी है, और कुछ नहीं।

यह ऐसी जगह नहीं है जहां आप छुट्टी मनाने आए हैं या सिर्फ किसी तरह के विश्राम के लिए या किसी आनंद या सोने या किसी भी चीज के लिए आए हैं, बल्कि आप यहां तपस्या के लिए, तपस्या के लिए, अपने आप को पूरी तरह से शुद्ध करने के लिए आए हैं।

यह श्री गणेश के मंदिर का एक स्थान है, जहां लोगों का आना-जाना बहुत कम है और यह अभी भी बहुत, बहुत शुद्ध है। और मैंने सोचा था कि आप में गणेश तत्व जागृत हो जाएगा जो कि हर चीज का स्रोत है।

श्री गणेश के तत्व, जैसा कि आप जानते हैं, बड़े पैमाने पर या विस्तृत तरीके से, हम इसे ‘अबोधिता’ कहते हैं, लेकिन हम उन पेचीदगियों और विवरणों को नहीं जानते हैं जिन पर जाकर यह काम कर सकता है।

श्री गणेश की अबोधिता में लोगों को शुद्ध करने, आपको पवित्र बनाने, आपको शुभ बनाने की जबरदस्त शक्ति है। जिस भी व्यक्ति ने श्रीगणेश का तत्त्व जगाया है, वह उसकी उपस्थिति मात्र में शुभ होता है। ऐसा व्यक्ति, जब भी गति करता है, चीजें इस दिशा में चलती हैं कि दक्षता काम करती है, यह बिल्कुल शुभ हो जाता है; ऐसा श्री गणेश की सहायता के बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता है। अब इस शुभता को, अब हम सहजयोगी मानते हैं; कि शुभता जैसी कोई चीज है जिससे सब कुछ सुचारू रूप से चलता है। हमारी सारी अनुभुति ईश्वर की शक्ति द्वारा संचालित होती है, ऐसा कि हम प्रकृति द्वारा हमेशा वांछित होते हैं, परिवेश और वातावरण से प्यार पाते हैं।

लेकिन यह समझ तभी आ सकती है जब तुम्हारे भीतर वह शुद्ध इच्छा हो, कि तुम्हें उत्थान करना है। आप यहां उत्थान के लिए आए हैं, न कि खुद कोई मज़ा लेने के लिए या किसी रिसॉर्ट की जगह या ऐसा ही कुछ करने के लिए।

जैसा कि आप देख रहे हैं, यह तत्व यहां के स्थानीय लोगों में बहुत अधिक जागृत है। और वे कितने संयमी हैं, कितनी मेहनती हैं। वे एक साथ कई दिन और रात एक साथ जागते रहे हैं लेकिन फिर भी वे बहुत, बहुत आराम से हैं और उन्हें किसी मदद की आवश्यकता नहीं है। बस इसी जोश में वे कार्यरत रहे हैं!

तो गणेश का दूसरा आशीर्वाद यह है कि वे चंचल हैं, वे प्रसन्न हैं, वे हमेशा एक आनंददायी व्यक्तित्व हैं। वह नृत्य करते है। वह आपको प्रसन्न करते है। उनके पास आपको प्रसन्न करने के विभीन्न तौर-तरीके हैं। और इसी तरह, जिस व्यक्ति ने अपने भीतर गणेश को जागृत किया है, वह हमेशा एक बहुत ही आनंददायी व्यक्तित्व है, एक तनाव ग्रस्त चेहरा नहीं, एक ऐसा चेहरा नहीं जो आपको परे छिट्का दे, ऐसा चेहरा जो आपको दुखी करता है, बल्कि एक ऐसा व्यक्तित्व है जो आपको बहुत सरल, बहुत समझने योग्य, पसंदीदा बनाता है: आप मे उस तरह का व्यक्तित्व विकसित होता हैं।

लेकिन, विदेशों मे अब तक जैसा ​​जीवन रहा है, मैंने देखा है कि स्थिति बहुत अलग रही है। और आक्रामकता और झगड़ालूपन, हम कह सकते हैं, चोट पहुँचाने की क्षमता इतनी अधिक विकसित है कि आप लोगों को किसी न किसी तरह से श्री गणेश की शुभता के आगे समर्पित होना ही होगा।

क्योंकि सहज योग के प्रसार के लिए या ईश्वर के प्रेम को फैलाने के लिए, ईश्वर की शुभता फैलाने के लिए, उनके अभिप्राय और योजनाओं को पूरा करने के लिए और ईश्वर की इच्छाओं के नियमों में खुद को समायोजित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले सभी उपकरण – यह बहुत महत्वपूर्ण था कि हम हमारे उपकरणों को इस तरह से व्यवस्थित करें कि वे बिल्कुल उपयोगी हों। उल्टे हमने उनका दुरुपयोग किया है, उन्हें खराब किया है और उन्हें पूरी तरह से अपवित्र बना दिया है।

तो यह एक और बात है: हमें यहां खुद को देखना है, हम अपने साथ क्या कर रहे हैं, हमें खुद को अपवित्र बनाने की क्या आवश्यकता है और हम अपवित्र क्यों हों। जब श्री गणेश वहां हैं, तो हम अपने आप को बहुत पवित्र, शुभ बना सकते हैं।

अब ऐसा मान लेने का कोई फायदा नहीं कि हम परिपूर्ण हैं! ऐसा मानने वाले उत्थान नहीं कर सकते। हर किसी को पता होना चाहिए कि बहुत सारी खामियां हैं और, “मुझ में ये जो अपूर्णताएं , उन का पता लगा कर, उन्हें जीत लिया जाना चाहिए।” केवल श्री गणेश की अबोधिता के प्रकाश में ही आप इसे देख सकते हैं।
एक छोटा बच्चा आपको दिखा सकता है कि हम कैसे बैवकूफऔर मूर्ख हैं और हम कैसा व्यवहार करते हैं। आपने कई बार देखा होगा कि बच्चे भी ऐसी बातें करते हैं कि बड़े लज्जित हो जाते हैं! तो हमारे अंदर भी बच्चों जैसा स्वभाव विकसित किया जा सकता है, अगर हम अपने भीतर श्री गणेश के सिद्धांत को जाग्रत करें ; जो कि एक अत्यंत ही शक्तिशाली, बहुत, बहुत शक्तिशाली देवता है। बहुत शक्तिशाली देवता।

क्योंकि एक बच्चा, माना कि एक बच्चा खो जाता है, मान लीजिए कि कोई बच्चा भाग जाता है या कोई बच्चा पेड़ पर कहीं लटका हुआ है – बच्चे को निकालने के लिए पूरा समुदाय दौड़ेगा, चिंता होगी। पश्चिमी देशों में भी, मैंने देखा है, अगर एक छोटी बच्ची को प्रताड़ित किया जाता है, तो हर कोई बच्चे के लिए चिंतित होता है, हर कोई उसका विरोध करता है। हो सकता है कि कुछ लोग भयानक हों, निसंदेह, हो सकता है कि यहां से कहीं ज्यादा वहां हो लेकिन व्यक्ति चिंतित हो जाता है। तो एक बच्चा, अपने आप में, हर जगह से सभी सुरक्षा प्राप्त करने का एक बहुत ही स्रोत है। क्योंकि बच्चा विकसित हो रहा है, बच्चा बढ़ रहा है। हर कोई बच्चे की मदद करना चाहता है।

तो उसी तरह जब यह गणेश तत्व आपके अंदर विकसित हो जाता है, तो आपको एहसास होता है कि आपको विकसित होना है, आप अभी भी बढ़ रहे हैं। एक छोटा बच्चा इतने कम समय में इतने शब्द सीख जाता है जोकि हम बड़े होने पर बाद में नहीं सीख सकते। जैसे, साठ साल के बाद, अगर आपको तीन वाक्य भी सीखना है, तो यह असंभव है!

तो बच्चा विकसित हो रहा है और उसकी जिज्ञासा और अधिक चीजों को जानने की उसकी क्षमता भी बहुत तीव्र है और वह और अधिक सीखना शुरू कर देता है। उसे नहीं लगता कि वह सब कुछ जानता है। ऐसा सोचने वाले अभी ठीक से पैदा नहीं हुए हैं। “मुझे तो कुछ ज्ञान नही! मुझे यह जानना है, मुझे यह जानना है। मुझे यह जानना है। मुझे अब तक कुछ ज्ञान नहीं है।” और बच्चे यह इतनी आसानी से करते हैं कि आपने देखा होगा। थोड़ा सा आप इस तरह या उस तरह से करते हैं, वे तुरंत आपका अनुसरण करते हैं।

तो आपको करना क्या है कि यह जानना है कि आप अभी भी बाल अवस्था में हैं, आपविकसित हो रहे हैं। हमें विनम्र होना होगा और हमें बहुत कुछ जानना होगा। और जहां से भी हमें ज्ञान मिले, हमें जानना है। अहंकार, ऐसा विचार कि हम खुद बहुत कुछ जानते हैं, विकास के लिए बहुत खतरनाक है, बहुत खतरनाक है। और यही वह बात है जिसे त्यागना है और जानना चाहिए कि हम कुछ नहीं जानते लेकिन हमें जानना है।

बहुत से लोग जो सहज योग में आते हैं, “हम सहज योगी हैं” के रूप में बस जाते हैं, लेकिन वे सहज योग के बारे में एक शब्द भी नहीं जानते हैं। उन लोगों में से बहुत सारे! विशेष रूप से महिलाएं, मुझे आश्चर्य है। वे सहज योग के बारे में बहुत कम जानती हैं। यह बल्कि आश्चर्यजनक है।

अब सहज योग में महिला या पुरुष जैसा कुछ नहीं है, सभी को समान अधिकार हैं। महिलाओं का काम सिर्फ गाना गाना नहीं है। नहीं! ऐसा नहीं है! उन्हें सहज योग के बारे में सब कुछ जानना होगा। उन्हें यह जानना होगा कि रोग क्या हैं, वे कैसे ठीक होते हैं, मानसिक समस्याएं क्या हैं, ये चक्र कैसे बनते हैं। सब कुछ उन्हें जानना है। उन्हें जो दवाएं जाननी हैं, मनोविज्ञान। उन्हें दैवीय शक्तियों को जानना होगा। उन्हें सब कुछ पता होना चाहिए कि यह कैसे काम करता है। और उस अज्ञानता को कभी माफ नहीं किया जाएगा क्योंकि यह आप ही हैं जिन्हें इसके बारे में दूसरों से बात करनी है।

तीसरी बात यह है कि बच्चा कभी मूर्ख नहीं होता, कभी मूर्ख नहीं होता। वह कभी भी मूर्खतापूर्ण तरीके से कुछ नहीं करता है। जबकि आप देखते हैं कि बहुत से लोग जो बहुत सख्त तरीके से पाले जाते हैं, बुढ़ापे में अचानक बहुत मूर्ख हो जाते हैं। बहुत मूर्खतापूर्ण। ऐसी घटनाएं मैं पश्चिम में बहुत अधिक देखती हूं। अचानक वे बहुत युवा-प्रकार के बनने की कोशिश करेंगे और बस वे इस तरह ताली बजाएंगे और बहुत ही अज़ीब तरीके से व्यवहार करना शुरू कर देंगे। मुझे आश्चर्य होता था, “उनके साथ क्या गलत है? वे ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं?” लेकिन ऐसा है, मुझे लगता है कि वे बोतलबंद हैं। और फिर अचानक वे व्यवहार करने की कोशिश करते हैं। लेकिन बच्चे ऐसा नहीं करते हैं। बच्चा कभी मूर्ख नहीं होता। इसके विपरीत, अगर कोई मूर्ख है तो उन्होंने बताया कि, “वह एक जोकर है!” वे आकर मुझसे कहेंगे, “वह एक जोकर है, आपको पता है। वह ठीक नहीं है!” या, “वह एक बफून है!” वे जो भी शब्द जानते हैं वे व्यक्त करेंगे। वे इसे पसंद नहीं करते हैं। वे सोचने लगते हैं, “इस व्यक्ति के साथ क्या बात है?” तो ये सभी चीजें हमारे पास आती हैं क्योंकि हमें इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि हमें एक स्थिर, समझदार जागरूकता, जागरूकता में विकसित होना है। यह ऐसा नही है कि सहज योग में आप अपने आप को कैसे व्यक्त करते हैं, अथवा, आप सहज योग में चीजों को कैसे करते हैं। यह कि, आप इस बारे में अंदर से कैसे जागरूक हैं।

उसी तरह भावनात्मक रूप से: जब मैं कुछ कहती हूं, तो मुझे नहीं लगता कि लोग समझ रहे हैं कि मेरा तात्पर्य क्या है। अब मैंने कहा कि, “तुम बिंदी लगाओ।” फिर से मुझे लगता है कि तुम वही हो! कम से कम यहाँ तो लगाना चाहिए। यह गणेश का चिन्ह है। उन्होंने नहीं लगाया होगा। ऐसा मैंने कई बार कहा है। मेरा मतलब है, इसे लगाने में कितना समय लगता है? अब यह एक बहुत ही सामान्य बात है जो चल रही है।

अब एक और बात यह है कि कोई भी बच्चा बिल्कुल भी अस्त-व्यस्त नहीं रहना चाहता। आज एक बच्चा नहाने गया था और वापस आ रहा था। उसके पिता चाहते थे कि वह बच्चा मुझ से मिले उसने कहा, “नहीं, मेरे कपड़े ठीक नहीं हैं। मेरे बाल सब अस्त-व्यस्त हैं। मैं माँ को इस अवस्था में कैसे मिल सकता हूँ?” तो वह वापस चला गया, उसने अपने बालों पर कुछ तेल लगाया, ठीक से उसने कपड़े पहने, चतुराई से। जब हम छोटे थे, हम हमेशा जानते थे कि सभी पश्चिमी लोग बहुत सफाई से तैयार होते हैं, ठीक से संवारे हुए तैयार होते हैं। वे कभी बिखरे बालों के साथ नहीं आएंगे। लेकिन उसने कहा, “नहीं, मेरे बाल बिखरे हुए हैं, मैं कैसे जाकर माँ को मिल सकता हूँ?” इसलिए हमें फैशन वगैरह के इन अज़ीब से विचारों को छोड़ना होगा, क्योंकि यह सब दूर हो जाएगा, आप अपने बाल खो देंगे, आप सभी बहुत अज़ीब दिखने वाले गंजे हो जाएंगे। इसमें कोई समझदारी नहीं है। लेकिन एक बच्चे के पास ज्ञान है! वह नहीं आया होगा। उसने अपने आप को ठीक से तैयार किया, फिर वह आया और मेरे सामने खड़ा हो गया। और हमें यही समझना है कि हमारी प्रस्तुतीकरण हमारे आंतरिक अस्तित्व की अभिव्यक्ति है और हमें कुछ चीजें करनी होंगी क्योंकि हम चीजों को स्वीकार करना नहीं जानते हैं, कार्य इस तरह करें जैसे बच्चे करते है।

एक बच्चा, अगर आप उसे कुछ भी कहते हैं, तो वह बात मानता है और वह सुनता है। अन्यथा बच्चा कोई सामान्य बच्चा नहीं है। भारत में अगर कोई बच्चा है जो आज्ञा नहीं मानता है, तो वे उसे अच्छी तरह से पीटते हैं, उसे तीन दिनों के लिए कमरे में रखते हैं, उसे भूखा रखते हैं और उसे ठीक करते हैं; नहीं चलेगा! इसका मतलब यह नहीं है कि यहां लोग बच्चों के साथ कठोर बने। कोई भी बच्चों को कोई मार नही डालता है। लेकिन आपको अपने बच्चों के मामले मे बहुत, बहुत सावधान रहना होगा, आपको उन्हें बिगड़्ने नहीं देना चाहिए, उन्हेअस्वच्छ होने की, सुस्त होने की, कमल खाने वालों की तरह या बुद्धु लोगों जैसे बन जाने कीअनुमति नहीं देनी चाहिए। आप सभी सहजयोगी हैं और आपको उसी तरीके से वैसा ही बनना है।

एक बच्चे की एक और विशेषता यह है कि वह हमेशा हर चीज के तत्व पर पहुंचता है। हमेशा तत्व। एक बच्चा हर चीज के तत्व को देखता है। और कभी-कभी वे जो प्रश्न पूछते हैं वे इतने उल्लेखनीय रूप से सामूहिक होते हैं कि मुझे आश्चर्य होता है कि वे उस बिंदु तक कैसे पहुंच जाते हैं। वे कभी भी फालतू की बातों में समय बर्बाद नहीं करते, कभी नहीं। कभी भी व्यर्थ की बातों में, फालतू की बातों में समय बर्बाद न करें। ऐसा कुछ नहीं। मैंने बच्चों को उनके कपड़ों के बारे में या उन्हें मिली सीटों या घरों के बारे में बात करते नहीं देखा – ऐसा कुछ भी नहीं। वे कुछ निर्माण करने में व्यस्त हैं! बहुत व्यस्त, आप देखिए। आप उनसे पूछिए, “आप क्या कर रहे हैं?” “आप देखिए, हम पूरे हवाई अड्डे को बांधने की कोशिश कर रहे हैं,” या पूरा बॉम्बे, जैसा कि वे आपको बताएंगे।

वे बहुत व्यस्त लोग हैं। यदि आप बोध प्राप्त आत्माओं को देखें जो बच्चे हों, तो वे हमेशा सामूहिक के बारे में परवाह करते रहते हैं। और यही आपकी स्थिति होनी चाहिए कि आप एक बच्चे के रूप में सामूहिक के बारे में हमेशा चिंतित रहें: कि, “मैं सामूहिकता की मदद कैसे करूंगा?” लेकिन अपने बारे में परवाह नही करते कि, “मेरा व्यक्तित्व कैसा है, क्या मैं इतना प्रभावशाली हूँ? अगर मैं लोगों के पास जाऊं, तो क्या वे मानेंगे कि मैं कुछ हूं? एक आत्मसाक्षत्कारी-आत्मा? या मैं दुसरी महिलाओं या दुसरे पुरुषों की तरह हूं जो नाई के पास जा रहे हैं और हर तरह के बाल बनवा रहे हैं और दूसरों को प्रभावित करने के लिए हर तरह के अजीब कपड़े पहन रहे हैं? क्या मैं एक संत की तरह दिख रहा हूँ? क्या मैं एक संत की तरह व्यवहार कर रहा हूँ?” ऐसी समझआपमें बहुत आसानी से आ जानी चाहिए। यदि आप किसी बच्चे से कहते हैं, “आप एक सहज योगी हैं,” तो वे कहते हैं, “मैं एक सहज योगी हूँ, मैं ऐसा नहीं कर सकता!”

ऐसी सब बकवास उनमें अहंकार बढ जाने पर शुरू होती है। और फिर वे अज़ीब तरीके से व्यवहार करने लगते हैं और यह पहले पश्चिम में बहुत अधिक विकसित होता है, लेकिन यहां समय लगता है। और बच्चे बस वही ग्र्हण कर रहे हैं जो परमात्मा उन्हें देते हैं। उनके मामले मे सतर्कता बहुत स्वाभाविक है। अगर कोई हवाई जहाज जा रहा है, तो वे कहेंगे, “अलविदा हवाई जहाज।” फिर जहाज जा रहे हैं, “अलविदा।” समुद्र के लिए वे कहेंगे, “ठीक है, समुद्र, हम कल आएंगे और आपसे मिलेंगे!” सब कुछ उनके मन में है। उनके लिए सब कुछ वहीं है। वे आएंगे, आप उनसे पूछें, “आपको यह कैसा लगा?” “ओह, हमें घास बहुत अच्छी लगी। यह अच्छा था, ”और वे सब कुछ जो वे आपको बताएंगे, हर चीज के बारे में विवरण। इतना जागरूकता पुर्ण! और फिर वे कहेंगे, “ओह, आपने ऐसा क्यों नहीं किया? आप यहाँ कुछ फूल लगा सकते थे, कुछ फूल सज़ा सकते थे, झोंपड़ी के लिए अच्छे लगते। या कुछ और, एक सुझाव वे देंगे। साफ-सफाई पर बहुत खास, कुछ भी।

और बचपन में बच्चे बहुत जल्दी उठ जाते हैं। बचपन में सभी बच्चे बहुत जल्दी उठ जाते हैं। यह माताओं के लिए परेशानी का सबब है लेकिन वे बहुत जल्दी उठ जाते हैं और इसी तरह मैं भी बहुत जल्दी उठ जाती हूं।

जल्दी उठना बच्चों जैसा व्यवहार है। क्योंकि पक्षी गा रहे हैं, सूरज उग रहा है, आकाश में ऐसी सुंदरता और, “और मैं क्यों सो रहा हूँ?” वे पूरे घर को जगा देंगे! लेकिन लोग इसे पसंद नहीं करते, कभी-कभी वे मारते हैं, भारत में नहीं। भारत में लोग सुबह जल्दी उठने की कोशिश करते हैं। इसे कुछ बहुत ही धार्मिक और अच्छा माना जाता है। हम देर से सोते भी हैं तो भी सुबह जल्दी उठ जाते हैं, ये एक बात है। फिर आप दिन में सो सकते हैं। लेकिन इस तरह से नौ बजे, दस बजे तक कोई नहीं सोता, कोई ऐसे नहीं सोता। मेरा मतलब है, मुझे एक समस्या है, मुझे नहीं पता कि मुझे अपने साथ क्या करना है। अगर आप रात की नींद और सब कुछ दूर करना चाहते हैं तो आप दिन में थोड़ी देर सो सकते हैं। और आप काफी फ्रेश हो सकते हैं। और अगर आप थोड़ी देर दिन में सोते हैं तो आप शाम को बिल्कुल ठीक हो सकते हैं।

लेकिन बच्चा न ज्यादा सोचता है, न ज्यादा योजना बनाता है। वह हर चीज का मजा
उठाता है। आप उन्हें कहीं भी ले जाएं, जैसे, आप उन्हें एक हवाई अड्डे पर ले जाते हैं। वहां खेलने के लिए कुछ भी नहीं है! वे कहीं खांचे खोज लेंगे, वे उसमें कूदेंगे, वे वहां छिपेंगे, वहां खेलेंगे। वे किसी भी स्थूल सामान जो हमें लगता है कि बेकार है से खेल बना सकते हैं, वे उसी से खेल बना लेंगे। वे बहुत रचनात्मक और चंचल हैं और हमें यही बनना होगा, अपने जीवन को खेल बना लें। हर चीज़! आप देखते हैं, लोगों से मिलना, उनसे बात करना: यह सब स्वाभाविक रूप से होना चाहिए, कृत्रिम रूप से नहीं।

साथ ही, कुछ लोगों को, मैंने देखा है, हर समय कोई भंगीमा बनाने की आदत होती है, जैसे मुस्कान या मूंह बनाना अथवा कोइ अभिनय। बच्चे ऐसे कभी नहीं होते। उनकी मांसपेशियां इतनी लचीली होती हैं। वे हर समय प्रतिक्रिया करते हैं। कभी जब वे खुश होते हैं, जब वे दुखी होते हैं, हमेशा। मांसपेशियां हर समय इसी तरह काम कर रही हैं। कोई तनाव में नहीं है। इसलिए हमें अपने चेहरों से परेशानी होती है, क्योंकि हम उन्हें एक ही अंदाज में बनाये रखते हैं। और इन दिनों जो जितना अधिक दुखी दिखता है, आपको उतना ही सुंदर माना जाता है! वह बर्बाद हो गया!

या फिर कुछ लोग ऐसे ही हर समय बस मुस्कुराते चले जाते हैं, यह बहुत बुरा है। या हर समय बिल्कुल दुखी महसूस करना। आपको अपनी भावनाओं की क्रिया को अपने चेहरे पर व्यक्त होने देना चाहिए। मुझे बताया गया है कि ऐसा कहा गया है कि, “आपके चेहरों पर कोई भाव नहीं दिखना चाहिए।” मेरा मतलब है, मैं समझ नहीं पाती कि! ऐसे व्यक्तित्व का क्या फायदा जो भावनाओं को प्रदर्शित नहीं करता? मेरा मतलब है, तुम एक पत्थर नहीं हो?

तो ये सभी बैवकूफी के, मूर्ख विचार जो हमें दिए गए हैं, उन्हें छोड़ देना चाहिए। और हमें मुस्कुराना चाहिए, हमें स्वाभाविक रूप से हंसना चाहिए। हमें लोगों से स्वाभाविक तरीके से बात करनी चाहिए। और बच्चा बेहद गरीमा पुर्ण होता है। श्री गणेश अपनी गरिमा के साथ नृत्य करते हैं। वह तुच्छ, निरर्थक बातें नहीं करता है। उसके कदम-ताल में और उसकी गतिविधियों और उसके कदमों में, वह अपने वजन अर्थात गरीमा केअलावा और कुछ नहीं है। तो कुछ सस्ती हरकत वह नहीं करता। इसी प्रकार सर्वत्र गरिमा होनी चाहिए। सम्मानजनक व्यवहार हमारे भीतर होना चाहिए।

अब आपको खुद ही आंकना है कि आप अपने ही भीतर श्री गणेश से कितने दूर हो गए हैं। क्या आप निर्दोष हैं? आप दूसरों को धोखा देने, दूसरों को बिगाड़ने की सोचते हैं। जैसेअपना टेलीविजन, मैं चकित थी! मेरा मतलब है, मैं कभी भी एक टेलीविजन अथवा कोई अन्य वस्तु को बिगाड़्ने के बारे में सोच भी नही सकती। ये विचार, वे आपके दिमाग में कहाँ से आते हैं? हमें ऐसा क्यों करना चाहिए? मैंने ऐसा अपने पूरे जीवन में कभी नहीं किया है, ऐसा कुछ। आप जानते हैं कि मैंने हमेशा हर कर्तव्य, हर चीज का भुगतान किया है। टेलीविजन को बिगाड़् देना और खराब कर देना, ऐसा सस्तापन दिखाना, हम ऐसी बेतुकी हरकत क्यों करें, किसलिए? आप इससे कितनी बचत करने जा रहे हैं? लेकिन ये सारे विचार आपके दिमाग में आते हैं, मुझे नहीं पता कि कहां से। धोखा क्यों? हम सहज योगी हैं। हम किसी को धोखा नहीं दे सकते। मेरा मतलब है, आप कस्टम वालों को बता सकते हैं, “यही स्थिति है। अगर आप इजाजत देंगे तो हम जायेंगे, नहीं तो हम रुकें रहेगे।” यह एक नकारात्मक रवैया है। ऐसा बच्चों में कभी नहीं होता। वे इतने सीधे-सादे और सरल हैं।

एक बार जब हम चले गए, तो मैं आपको बताना चाहती हूं कि बच्चे कितने सरल होते हैं। एक बार हम एक हवाई अड्डे के अंदर गए थे और मेरे भतीजे ने मुझे पनीर के दो टिन दिए और हम इसे बाहर ला रहे थे। तो मेरी बेटी जो बहुत छोटी लड़की थी, तो जब हम आ रहे थे और उसने पूछा, “क्या तुम्हारे पास कुछ है?” मैंने कहा, “हमारे पास पनीर के कुछ दो टिन हैं।” “हाँ, हाँ और हम इसे भी खाने जा रहे हैं। देखो हमने एक खोल दिया है और हम खा रहे हैं!” सीमा शुल्क वाला व्यक्ति उसकी मासूमियत से बहुत प्रभावित हुआ। वह बोला, “आपके खाने के लिए?” “हाँ, हाँ, हमारे खाने के लिए, हमने इसे लिया है। क्या यह बिलकुल ठीक है?” उन्होंने कहा, “सब ठीक है।”

आप देखिए, सादगी और मासूमियत अपने आप में आपके लिए एक प्रमाण पत्र है। ना की यह चालाक तरीके। उसमे क्या रखा है। मेरा मतलब है, ठीक फोन पर मैं उन्हें बता देती हूं, “हे बाबा, भगवान के लिए! मैं हर शुल्क का भुगतान कर दुंगी, आपको कुछ नहीं करना है। बस इस चीज को वहीं रख दो, कह दो कि यह मेरी है। आपको कुछ नहीं करना है। इसे घोषित कर दो, यह वह है।” क्यों? हमारा दिमाग कहाँ जा रहा है? सब ठीक है! हम वहां कितना खोने जा रहे हैं? हमने अब तक पैसे में कितना कमाया है? हमारे पास है ही क्या? यहां पैसा बचा रहे है, वहां पैसा बचा रहे है। बच्चे ऐसा नहीं करते! नहीं, वे नहीं करते।

जैसे मेरा पोता, वह कह रहा था, “आप इस मनहूस जगह में क्यों रहते हो? लंदन में बहुत खराब वायब्रेशन!” मैंने कहा, “देखो, तुम्हारे दादाजी को यहाँ पैसा कमाने के लिए रहना है।” उसने कहा, “पैसा? आपको इतने पैसे की जरूरत क्यों है, आपको पैसे की जरूरत क्यों है, आप भारत क्यों नहीं आते? मैंने कहा, “इंसान को पैसे की जरूरत होती है।” तो जब मेरे पति वापस आए, तो उसने टू-पी (पैसा) निकाला, उसने कहा, “आपको पैसे चाहिए? यह लो! अब इसे अपने सिर पर रखो! आप पैसा क्यों चाहते हो?” और मेरे पति को नहीं पता था कि कहाँ देखें। “आपको पैसा चाहिए, ठीक है, ले लो, इसे अपने सिर पर रखो!” वह एक छोटा बालक था, तुम देखो!

लेकिन पैसे में रुची बाद में शुरू होती है। जब हम बड़े होते हैं, जैसे ही पैसा होता है हम उसे देखना शुरू करते हैं, उसके पहले तो हम नहीं करते। यह सारी पैसे में रुचि बाद में आने लगती है। गणेश को क्या है? पैसा उनके चरणों की धूल है। उनके लिए स्वर्ण क्या है? उसके लिए कुछ भी क्या? चाहे वह सोने का ताज पहने या कुछ भी नहीं पहने, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता! वह उस स्थिति में है! उनका सिर वैसा ही है। आदर के लिए, आराधना के लिये, लोग अपने संतोष के लिये सोना या कुछ भी दे सकते हैं, यह ठीक है। उनके लिए यह क्या मायने रखता है?

और कोई भी बच्चा जो एक वास्तविक बच्चा है, वह किसी और से कुछ भी स्वीकार नहीं करेगा, कुछ भी नहीं। लेकिन अगर वह लेता है, तो वह सोचेगा, “मैं इसे वापस कैसे करूँ?” हमेशा! मुझे पता है कि मेरे अपने पोते-पोतियों ने यह किया है। यदि आप उन्हें कुछ देते हैं, तो वे एक दिल बनाएंगे, उसके अंदर डालेंगे, उसे अच्छी तरह लिखेंगे और जब मैं अपने बाथरूम से बाहर आऊंगी, तो वे मुझे वह दिल देंगे, आप देखिये, “बहुत-बहुत धन्यवाद,” इसके लिए और उसके लिए।

लेकिन जब हम बड़े होते हैं तो लोगों को धन्यवाद देना भी भूल जाते हैं, हम हर चीज को हल्के में लेते हैं, हमारे पास वह कृतज्ञता नही है। हम सोचते हैं कि हमें हर समय हर किसी का आकलन करना है, “यह ठीक नहीं है, यह अच्छा नहीं है, बेहतर हो सकता था!” हम कभी इस तरह नहीं सोचते कि, “यह हमें दिया गया है, आभारी रहें!” आभारी हो। लेकिन बच्चों के में ऐसा नहीं है। यदि आप उन्हें एक छोटी सी चीज देते हैं, तो वे इसे सम्भाल कर रखेंगे, “यह मुझे मेरी दादी ने दिया है!” मैंने इसे अपने पोते-पोतियों में देखा है। सबसे बड़ी जब वह छोटी थी तो मैंने उसे एक छोटी सी साड़ी दी थी, एक बहुत छोटी साड़ी उसके पहनने के लिए। तो जब मैं वहाँ गयी तो उसने कहा, “देखो, नानी, मुझे तुम्हें बताना होगा, एक गंभीर बात हो रही है।” मैंने कहा, क्या?” “देखो, आपने मुझे जो साड़ी दी थी, मैंने उसे बहुत सावधानी से रखा है लेकिन मेरी माँ अज़ीब हरकत करने की कोशिश कर रही है!” मैंने कहा, “क्या हुआ?” “आप जानती हैं, उसने इसे किसी को दिया तो नहीं लेकिन उसने इसे कुछ लोगों को दिखाया, उसे नहीं दिखाना चाहिए था!” बहुत गंभीरता से कहती है!

जब वे बातें कहते हैं तो वे बहुत प्यारी और इतनी सुंदर होती हैं। जैसे एक बार मैंने उसे एक वेंडी घर (खिलौने का घर)और एक वेंडी घर दिया था, उसने इसे अच्छी तरह से बनाया था, उसने अपनी माँ को बुलाया, “मैंने आपके लिए एक बहुत अच्छा घर बनाया है, साथ आओ!” तो मेरी बेटी काफी लंबी है। उसे यह मुश्किल लग रहा था, वह वेंडी हाउस के अंदर गई और वहीं बैठ गई और उसने कहा, “हा! तो तुम्हारे पास मेरे खाने के लिए क्या है?” उसने कहा, “मम्मी, जब तुम किसी के घर जाती हो तो ऐसी बात नहीं कहते!” और वह हंस पड़ी। और वह इतनी हँसी कि उसने सारा वेंडी घर तोड़ दिया। तो वह बाहर आई और उसने मुझसे कहा, “दादी, आपने अपनी बेटियों को कोई अच्छी तालीम नहीं दी है! सबसे पहले वह मेरे घर आती है, अजीब सवाल पूछती है और फिर मेरा घर तोड़ देती है, क्या आप किसी और के साथ ऐसा करते हो?” कितने मासूम और सरल हैं! ऐसे ही बहुत सी चीजें हैं जो मैं आपको बता सकती हूं जोकि मैंने देखा है। जिस तरह से वे बात करते हैं और बातें कहते हैं, और वह सब। इतना सरल और इतना अच्छा और इतना सामूहिक और इतना सुंदर। वैसा ही हमें बनना है।

दूसरी बात, बच्चे को कोई डर नहीं है। बच्चे को कोई डर नहीं है। गणेश जी को जरा भी भय नहीं है। उसी तरह तुम्हें कोई भय नहीं, बिल्कुल भी भय नहीं, कोई भय नहीं होना चाहिए। जब तक तुम्हारी माँ तुम्हारे साथ है, तुम्हें कोई भय क्यों है? इस का भय, उस का भय, “मैं भयभीत हूँ।” “मैं यह नहीं कर सकता,” “मैं ऐसा नहीं कर सकता।” ऐसा बच्चे कभी नहीं करते। यदि आप उन्हें बताएंगे तो वे सब कुछ करने की कोशिश करेंगे। आपको कोई डर नहीं होना चाहिए। मुझे नहीं पता कि डर क्या है। उसी प्रकार तुम्हें किसी बात का भय नहीं होना चाहिये, किसी का भय नहीं होना चाहिए। आपके साथ कुछ भी गलत नहीं होने वाला है। लेकिन गलत काम न करें। यदि आप गलत काम करते हैं तो यह आपको पीछे धकेल देगा, यह आप पर काम करेगा। लेकिन गलत काम न करें, सीधे ढंग सेआगे बढ़ें और कुछ भी आपको नुकसान नहीं पहुंचा सकता, कुछ भी आपको नुकसान नहीं पहुंचा सकता।

हमें इसके इतने अनुभव हुए हैं कि कैसे हर जगह आपके लिए निर्धारित की गई, हर कोई आपकी देखभाल कर रहा है। बहुत सारे देवता हैं जो आपके लिए काम कर रहे हैं। लेकिन आपको होना चाहिए, आपको बेहद सावधान रहना होगा कि आप इस डर के धंधे को ना बढ़ाएं। क्योंकि डर आपको बाईं ओर ले जाता है और एक बार जब आप बाईं ओर जाते हैं, तो आप बाईं ओर की समस्याओं को जानते हैं – सबसे पहले – आप गणेश के खिलाफ जाते हैं। गणेश बायीं साईड के आधार पर ही स्थित हैं। और फिर आप कैंसर विकसित कर लेते हैं, आप ऐसी सभी चीजों को बढ़ा लेते हैं, भय, भय, भय और भावनात्मक समस्याएं और ऐसी सभी चीजें आ जाती हैं।

भावनाओं में आनंद से उछलते रहना चाहिए। आनंद आपकी भावना है। कार्य शैली में आपको निर्विचार होना चाहिए। और उत्थान में तुम्हें समर्पण कर देना चाहिए। बस इतना ही, यह बहुत आसान है, बच्चों के लिए तीन मंत्र बहुत सरल हैं। वे ऐसे हैं।

आज श्री गणेश की पहाड़ी की तलहटी में हमें अपने भीतर गणेश तत्त्व को जागृत करने के बारे में सोचना है। इसके लिए हमें ध्यान करना होगा। हमें इसके बारे में सोचना होगा। हमें अपना समय इसमें लगाना होगा। दरअसल अगर मैं तुम्हारी जगह होती तो शायद मुझे नींद न आती, मैं समुंदर के किनारे चली जाऊं, वहीं बैठ जाऊं, सारा समय ध्यान करती रहूं!

सहस्रार को तोड़ने से पहले मैं दो रातों तक जागती रही और मैं बिलकुल अकेली थी, समुद्र के पास बिलकुल अकेली, पूरी रात अकेली, दो रातों तक यह काम कर रही थी। लेकिन हम क्या करते हैं? हम अपने आराम के बारे में सोचते हैं, हम इसके बारे में सोचते हैं, उसके बारे में सोचते हैं। एसा नहीँ! आप यहां हैं! ऐसा मौका है! हम थक जाते हैं क्योंकि हम बहुत ज्यादा सोचते हैं। जबकि इस थकान और इस और उस से कैसे बाहर निकलना है,हम जानते हैं ।

तो यह आपके लिए बहुत अच्छा मौका है [कि] हम यहां आए हैं। बेशक यह एक खूबसूरत जगह है और वह सब। लेकिन यह मुख्य रूप से यही कारण है कि मैंने आपको यहां लाने के बारे में सोचा है कि यह अचानक आपको एक बड़ा उत्थान दे सकता है और आप बहुत ऊंचे उठ सकते हैं; जिसके लिए मैं वास्तव में अन्यथा व्यवस्था नहीं कर सकती, ऐसा उत्थान जो संभव है।

बहुत से भारतीयों ने इस जगह को पहले देखा भी नहीं है। यह इतनी खूबसूरत जगह है और वे हैरान हैं कि भारत में हमारे पास इतनी खूबसूरत जगहें हैं! और यहां आने के बाद उन्होंने इस जगह की सुंदरता , शुभता, और इसे चुनने की समझदारी को महसूस किया है। यह बहुत प्यारा है, बहुत सुंदर है। बल्कि, मुझे आशा है कि मैं आप में इसका प्रभाव देख पाउंगी।

अब आपको जा कर और अपना भोजन करना है। हमारे पास एक बहुत उदार आदमी है जो आपके लिए खाना बना रहा है। सावधानी से! आपको अपना स्वास्थ्य खराब नहीं करना चाहिए! खासकर उनके लिए जिन्हें हमारे साथ आगे जाना है। तो सावधान रहें! वे बहुत उदार लोग हैं। मेरे भाई और वह सज्जन जो आपके लिए खाना बना रहे हैं – दोनों ही दरियादिली में होड़ कर रहे हैं। तो आप सावधान रहें!

अब केवल विदेश से आये सहजयोगियों और मांसाहारी लोगों को ही पहले जाना होगा और फिर शाकाहारी जाएंगे और उसके बाद हमारा कोई संगीत कार्यक्रम होगा। ऐसा ही होने वाला है।

कल सुबह मैं उम्मीद करती हूं कि आप सुबह करीब पांच बजे ध्यान के लिए जाएंगे। फिर समुद्र में स्नान करें।