देवी पूजा, फ्रेंच सेमिनार। डोरडन (फ्रांस), 18 मई 1986।
आज हम यहां इस खूबसूरत जगह पर कुछ बहुत गहन काम करने के लिए इकट्ठे हुए हैं। कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिनके बारे में हमें जानकारी नहीं होती है, जो इतिहास में हैं, और कुछ चीजें वातावरण में हैं, वे हमें बहुत प्रभावित करती हैं क्योंकि हम पांच तत्वों की उपज हैं, जिनमें से पृथ्वी मां हमारे भीतर बाईं ओर है। धरती माता अपने वातावरण को बदलती है, अपनी पहाड़ियाँ और डलियाँ, नदियाँ, उन्हें इस तरह बनाती हैं कि यह उनके स्वभाव को विविधता प्रदान करती है। अब ईश्वर ने एक ही दुनिया बनाई है, उसने कई दुनिया नहीं बनाई हैं, उसने एक ही दुनिया बनाई है, यह दुनिया बॅस अकेले यहां इंसानों की रचना की गई है। तो, यह सबसे महत्वपूर्ण ग्रह है, आप एसा कह सकते हैं, जोपरमात्मा के ध्यान में रहा है। तो, संपूर्ण ब्रह्मांड इस ग्रह के कल्याण के लिए काम करता है, और उस ब्रह्मांड के कार्य ने इस पृथ्वी को बनाया है, और फिर मनुष्य को, और फिर सहजयोगियों को तो, सहजयोगी रचनात्मक शक्तियों का साकार स्वरुप हैं, वे ईश्वर की इच्छा की अभिव्यक्ति हैं, यही उन्होंने चाहा, इसलिए उन्होंने इस ब्रह्मांड, इस ब्रह्मांड और इस पृथ्वी की रचना की। तो अब उनकी इच्छा पूरी होती है जब वे सहजयोगियों के माध्यम से बीज प्रतिबिम्बित होते देखते हैं। लेकिन अभी भी कुछ चीजें हैं जो हमें अपने भीतर स्पष्ट करनी हैं।
हमारे भीतर महाकाली शक्ति उनकी इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है। अब हमें यह देखना होगा कि कैसे उनकी इच्छा ने हमारे स्व को बनाने में काम किया है। पहली बात तो यह कि,वह एसी इच्छा है जो पूरी तरह से आतुर है। और कुछ भी वांछित नहीं है, अन्य कुछ भी वांछित नहीं है, केवल सहजयोगियों की रचना करना है। तो, किसी भी सहज योगी की प्रमुख इच्छा अधिक सहजयोगियों का निर्माण करना है। कोई अन्य इच्छा एक तरह से प्रबल या अस्तित्व में नहीं होनी चाहिए; लेकिन उस इच्छा को पूरा करने के लिए हमें कुछ शर्तें पूरी करनी पड़ती हैं। तो, शर्तों में से एक, सबसे महत्वपूर्ण, ईमानदारी है, क्योंकि ईश्वर को ऐसी योग्यता की आवश्यकता नहीं है, भले ही वह बनना चाहे, वह गैरनिष्ठावान नहीं हो सकते। क्योंकी उनके पास तुम्हारे जैसी कुटिल भूमिकाएँ निभाने वाली बुद्धि नहीं है, लेकिन मनुष्यों के पास यह कुटिल बुद्धि है जो चारों ओर बहुत नाट्क खेलती है। लेकिन सहजयोगियों के रूप में आप उस बुद्धि को बहुत ध्यान से और स्पष्ट रूप से देख सकते हैं।
ईश्वर अहंकार रहित है क्योंकि वही सब कुछ करता है, इसलिए वह निरहंकार है, या हम कह सकते हैं कि केवल वही है जो अहंकार है, यदि इसका अर्थ कुछ करना है तब। लेकिनअहंकार इंसानों में होता है जबकि वे कुछ करते नहींऔर सोचते हैं कि वे कुछ कर रहे हैं। यह आप अच्छी तरह जानते हैं। इसलिए, जब आप ऐसा मानने लगते हैं कि आप कुछ करते हैं, तो आप ऐसे मिथकों से बहुत आसानी से तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं, केवल मनुष्य की पहचान मिथकों से हो सकती है, ईश्वर की नहीं। लेकिन आत्मबोध के बाद आप अपने अहंकार को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। यह विभिन्न तरीकों से कार्य करता है। यदि हम किसी को नेता के रूप में नियुक्त करते हैं, तो नेता यह सोचना शुरू कर सकता है कि वह वास्तव में नेता है, और फिर वास्तव में यह उसके लिए एक समस्या बन जाती है क्योंकि वह वह सब कुछ गंवाने लगता है जो नेतृत्व है। लेकिन सबसे बुरी बात यह है कि उनकी पत्नियां सोचने लगती हैं कि वे नेता हैं, और कभी-कभी बच्चे भी ऐसा सोचते हैं; और मुझे आश्चर्य नहीं होगा, भले ही उनके कुत्ते और पालतू जानवर ऐसा व्यवहार करें। (इन सभी टिप्पणियों के दौरान हंसी) यह कोई भी बेवकूफी भरी बात हो सकती है। तो, इस तरह के अहंकार के साथ एक सहज योगी देख सकता है, आप देखिये कि वह कैसा व्यवहार करता है। मैं उन्हें देखती हूं और यह मेरे लिए बहुत हास्य प्रदान करता है। वे हर जगह आगे-आगे बढ़ते हैं, वे आगे की पंक्ति में बैठते हैं, वे आगे बढ़ते हैं, वे आगे की पंक्ति में आने वाले पहले होते हैं, कुछ ऐसा है। लेकिन अगर आप एक सच्चे व्यक्ति हैं, अगर आपके पास सच्चाई है तो आप जहां भी खड़े हैं, जहां भी बैठे हैं, आप उस सच्चाई का आनंद लेंगे। तो, अहंकार आपको हर समय बहुत धोखा देने की कोशिश कर सकता है, इसलिए आपको इस अहंकार से सावधान रहना होगा क्योंकि वह आपके सिर पर बैठ सकता है और आपकी निगरानी कर सकता है। मैंने लोगों को ऐसे विचार के साथ बहुत तेजी से गिरते देखा है कि वे कुछ खास हैं। तो, हालांकि सच्चाई, यह बाईं बाजु का गुण है, इस पर दाईं बाजु इस तरह हावी हो सकती है।
दूसरी बात, आपकी इच्छा के बारे में यह कि इसे एक शुद्ध इच्छा होनी चाहिए और आपके लिए शुद्ध इच्छा करना बहुत आसान है क्योंकि मैं आपके सामने बैठी हु।साधक की शुद्ध इच्छा ईश्वर को देखना, ईश्वर की संगति में रहना, ईश्वर की संगति में रहना है। जैसा कि वे इसे कहते हैं, सालोक्य, सामीप्य और सानिद्य; इसका वर्णन करने वाले तीन शब्द हैं। लेकिन बिना मांगे, निर्विचारिता में, आपको चौथा आयाम दिया गया है जिसे तादत्म्य (प्रकृति से समानता) कहा जाता है, जिसका अर्थ है मेरे शरीर, मेरे अस्तित्व के साथ एक होना; ताकि तुम मेरे अस्तित्व में सुरक्षित, पूर्ण रूप से शुद्ध और पोषित हो जाओ। लेकिन जब आपको इसकी जागरुकता नहीं होती है, तो क्या होता है कि मुझे आपको शुद्ध करने के लिए अपने शरीर में कष्ट उठाना पड़ता है। तो, अन्य सभी इच्छाएं आपके भीतर समस्याएं पैदा कर सकती हैं।
अब जैसा कि मैं आपको बता रही थी कि यह फ्रांस अपनी विशेष विशेषताओं के साथ धरती माता की रचना है। हमें यह जांचना होगा कि इसका फ्रांसीसी मन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। इस देश को एक ऐतिहासिक पृष्ठ्भुमि भी प्रभावित करती है। यह एक बहुत समृद्ध देश है, आपके पास बहुत समृद्ध मिट्टी है और आप सुंदर कृषि उत्पादों का उत्पादन करते हैं। तो, जब आप भौतिक स्तर पर तृप्त होते हैं तो आप बाएं या दाएं गति करना शुरू करते हैं,क्योंकि, एक बात के बारे में आप बहुत अनाडी हैं, कि हमें अपने उत्थान में ऊंचा, ऊंचा उठना है। साथ ही, हम इस बात के प्रति जागरुक नहीं हैं कि हमारी उत्क्रांति का यही लक्ष्य है। तो, हम सभी को विकसित होना है, बस, अन्य कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। तो जैसे ही आप पाते हैं कि भौतिक रूप से आप ठीक हैं, तो यदि आपके पास ऐसी जागरुकता नहीं है कि आपको विकसित होना है, तो आप वास्तव में बाएं और दाएं तरफआगे बढ़ सकते हैं।
अधिकांश यूरोपीयन और अंग्रेज देश के बीच फ्रांस एक बहुत समृद्ध देश होने के कारण, वे किसी भी अन्य देश की तुलना में बहुत पहले इस आंदोलन में शामिल हो गए। इसलिए, यदि आप इन पंक्तियों के आधार पर फ्रांसीसी की आक्रामकता को समझ सकते हैं, क्योंकि वे दाईं ओर जाते हैं। जैसे फ्रांसीसी कभी यह देखने की या यह जानने की जहमत नहीं उठाते कि दूसरे लोगों की संस्कृति क्या है। वे बहुत हीअपनी ही विचारधारा वाले हैं और उन्होंने खुद से परे कुछ नहीं सोचा और उन्हें लगा कि वे सब जानते हैं कि संस्कृति क्या है। परिणामस्वरूप, वे अन्य सभी संस्कृतियों से पूरी तरह अनभिज्ञ हो गए जो उनकी तुलना में बहुत अधिक विकसित थीं। समझ के एक निश्चित स्तर तक सुंदरता की अवधारणा आई और फिर यह गलत दिशा में भटक गई। साथ ही, मैं यह भी कहूंगी कि उन दिनों जिस तरह ईसाई धर्म का प्रचार किया जाता था, उसमे महिलाओं का कोई सम्मान नहीं था। इसलिए, महिलाओं को यह समझ नहीं पायी कि वे बायी बाजु हैं और उन्हें अपनी शुद्धता का ध्यान रखना है। शुरुआत में जब भी मैं फ्रेंच के बारे में पढ़ती हूं, जैसे एमिल ज़ोला या अन्य लोग, मौपासेंट, उन सब को, जो मैंने पाया कि महिलाओं का बिल्कुल भी सम्मान नहीं था और न ही वे सम्मानजनक थी, या यदि आप पढ़ते हैं, उदाहरण के लिए, नाना, वह एक है, जिसे लिखा गया था, एमिल ज़ोला; अगर आप उसे पढ़ेंगे, तो आपको आश्चर्य होगा कि उसने एक महिला में स्थित एक महिला के चार पहलू दिए हैं, उसने चार पक्षों का वर्णन किया है। और एक भाग जो वास्तविकता में एक महिला का है जब वह दयालु और अच्छी होती है, उसका समाज में कभी सम्मान नहीं किया गया है उस हिस्से का सम्मान नहीं किया जाता है: इसके विपरीत उसे बाहर निकाल दिया जाता है। तो, अन्य भागों में, वह एक चालाक महिला का व्यवहार करती है, या वह एक वेश्या की तरह व्यवहार करती है, या वह एक आक्रामक महिला की तरह व्यवहार करती है क्योंकि वह हिस्सा जो सम्मानजनक है, और वह जो उसके उत्थान के लिए था और जो उसका जन्मजात गुण था, उस
को बिल्कुल नही समझा या सम्मानित किया। अत: लेफ्ट साईड का साधन जो कि इस देश की महिलाएं हैं, सबसे पहले उनको हानि पहुंचाई गई और यही फ्रांस में मुसीबतों का मुख्य कारण बने।
दूसरी ओर, वे अत्यंत आक्रामक हो गए; पुरुष आक्रामक हो गए और महिलाओं का सम्मान न होने के कारण वे भी आक्रामक हो गई। अन्य महिलाएं जो ऐसा नहीं कर सकीं, वे अति बाएं साइड वाली हो गईं, रोने, धोने और उदास होने लगीं; उदासीन चरित्र उन्होंने विकसित किया, उदासी। फिर आप देखिये, उन्होंने शुरू किया, इस सभी उदासीन बकवास चरित्र के बारे में लिखना, जो वास्तव में मौजूद नहीं है और इसमें लिप्त होने लगे, जैसे शराब या किसी प्रकार की चीज।
स्वाभाविक रूप से बाईं ओर की तरफ गति , क्योंकि पुरुष भी इसकी ओर आकर्षित हो गए थे, उन्होंने भी उन्हें बाईं ओर का भोजन करने के लिए प्रेरित किया। अब, उदाहरण के लिए, उन्होंने पनीर विकसित किया जो पुरा ही फंगस(कवक) से भरा था, जो कि मृत पदार्थ था। फंगस उस सब को मार देता है जो दाहिनी साईड है; कुछ भी जीवित चीज़ को कवक से मारा जा सकता है। न केवल भोजन से संबंधित बल्कि स्वभाव से, वे धीरे-धीरे फंगस(कवक) जैसे बनने लगे। तो, फंगस(कवक)में ही एक गुण होता है, वह यह है कि यह मृत पदार्थ पर पनपता है। सो वे मिस्र की तरह उन सब स्थानों पर गए, जहां उन्हें मरी हुई वस्तु मिली। वे भारत में, यहां तक कि भारत पर शासन करने में भी बहुत रुचि नहीं रखते थे, लेकिन वे मिस्र की मृत चीजों और अन्य जगहों में बहुत रुचि रखते थे जहां उन्हें यह मृत चीज़े उपलब्ध थी। साथ ही, मैं कहूंगी कि ईसाई धर्म, जो बहुत क्षय होने लगा था, फ्रांस में उसकी एक बड़ी पकड़ बन गई। धर्म भी फंगस की तरह हो गया। जैसे, बड़े चर्च का निर्माण, और उनके आसपास मृतकों को दफनाना।
अब, मैं चार्टर्स को देखने गयी; आपके पास एक सुंदर, एक बहुत ही सुंदर चर्च है और कलाकार द्वारा किया गया बहुत अच्छा काम है, लेकिन उसके चारों तरफ लाशें गड़ी हैं, यह भयानक है। दरअसल, मरे हुए लोगों को जलाया ही जाना चाहिए, केवल आत्मज्ञानी को ही दफनाया जा सकता है। सम्मान की भावना का बहुत अभाव था, इतिहास में भी, आप स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। पूरे समय जो महत्वपूर्ण था वह था पैसा। जैसा कि मैं देख पा रही हूं कि फ्रांसीसी क्रांति हुई तब मुझे कहना ही होगा कि रानी एक बुरी महिला नहीं थी। वह वास्तव में एक महान शिष्य थी- वह फ्रांस के सभी कलाकारों की रक्षक थी और वही है जिसने फ्रांस की कला को इतनी बड़ी गति दी। अगर उसने फर्नीचर के सामान या किसी इमारत जैसा कुछ बनाया है, तो आज भी आप उसे गर्व से दिखाते हैं। आख़िरकार वह उसे अपने साथ नहीं ले जाने वाली थी; फ्रांस के लिए उसने सब कुछ बनाया। लेकिन फ्रांसीसी चाहते थे कि अधिक धन वितरित किया जाए। किसलिए? अधिक शराब पीने के लिए, शाश्वत रुचिकर कुछ भी बनाने के लिए नहीं। इसलिए मैं कहती हूं कि जो शराब पीते हैं उन्हें हड़ताल करने या अधिक पैसे मांगने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि उनके पास अधिक पैसा है, इसलिए वे पीते हैं।
इसलिए, मैं पूंजीवाद में विश्वास नहीं करती, लेकिन मेरा मानना है कि जो लोग कुछ नया बना सकते हैं, जो कुछ बना सकते हैं – नया बकवास के अर्थ में नहीं, बल्कि शाश्वत मूल्यों की चीज – उसे बनाने के लिये अवश्य धन दिया जाना चाहिए।ऐसे बहुत से पूंजीपति हैं जो काम करते हैं जैसे युद्ध के उपकरण खरीदना और इस तरह की चीजें । अब हमारे पास इंग्लैंड है, हमारे पास अमेरिका है, वे ऐसा कर रहे हैं और संतानों के लिए कंक्रीट का जंगल बना रहे हैं। (ग्रेगोइरे स्पष्टीकरण का अनुरोध करता है) इंग्लैंड और अमेरिका ऐसा कर रहे हैं, हथियार खरीदना और अन्यथा कंक्रीट के जंगल बनाना। और रूस में वे कहते तो ऐसा हैं कि हम बराबर बंटवारा कर रहे हैं लेकिन लोग मछली की तरह पीते हैं। तो, इस फ्रांसीसी क्रांति के साथ भी, शराब पीना फ्रांसीसियों के जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया क्योंकि उन्हें आसानी से पैसा मिल गया था। तो, अधिक धन सभी प्रकार के अधर्मी कामों, अपवित्र चीजों और, हम कह सकते हैं, अशुभ चीजों को करने के लिए अर्जित किया गया था। लेकिन गरीब लोग भी थे, शायद उन्होंने इतना नहीं पिया, जिन्होंने इस देश में यहां महान वास्तुकला का निर्माण किया। इसके बावजूद इस देश में महान कलाकारों का जन्म हुआ जिनके पास पैसे नहीं थे। वे मर गए, पागल हो गए या कंगाल हो गए।
अब हमारे पास नेपोलियन है, एक और व्यक्ति जिसने अन्य स्थानों को जीतने की कोशिश की; वह भी एक और अहंकार यात्रा है जो उसने इतिहास में की है। लेकिन फिर भी वह बहुत नीच व्यक्ति नहीं था जैसेकि आजकल हम देखते हैं कि उनमें से बहुत से लोग शासक हैं। मैं उसके बारे में केवल एक चीज महसूस करती हूं कि उनके पास लोगों पर कोई बड़ा प्रभाव छोड़ने योग्य कोई महान चरित्र नहीं था कि,उनकी गुणवत्ता में उनके जीवन को कैसे बढ़ाया जाए। तो, जो लोग वास्तव में आपके मन को उत्थान की दिशा मे जाने को प्रभावित कर सकते थे, वे सभी कंगाल थे या पागल हो गए थे या बर्बाद हो गए थे। अंत में, मुझे लगता है कि पूरी आक्रामकता इस समझ के साथ गायब हो गई कि इसआक्रामकता का कोई फायदा नहीं है, लेकिन वाम पक्षीय आंदोलन अभी भी बहुत प्रचलित है।
तो, दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए, फ्रेंच बहुत विचित्र, अनोखे, अजीब लोग हैं। उन्होंने चीजों से निपटने के अपने स्वयं के संकुचित तरीके विकसित किए। यह, मैं कहूंगी, एक अभिशाप है क्योंकि उस तरह का अभिशाप जब यह काम करता है, तो आप सुधार नहीं कर सकते क्योंकि आपके पास देखने और संबंध स्थापित करने और आगे बढ़ने के लिए और कुछ नहीं है। क्योंकि अहंकार जब वामपंथी समस्याओं के साथ कार्यंवित होता है, तो आप बहुत ही विचित्र, अनोखे और अजीब हो सकते हैं। मैं देख पाती थी कि पहले दिन मैं पेरिस आयी थी, और उन्होंने मुझे बहुत स्पष्ट रूप से कहा कि, “माँ, बिल्कुल मुस्कुराओ मत, और तुम्हें बहुत गंभीर रहना है।” और मैं दो मिनट से ज्यादा कभी भी गंभीर नहीं हो सकती, मुझे लगता है, दो मिनट। तो, मैंने कहा, “लेकिन क्यों?” कारण, उन्होंने कहा, “वे सोचेंगे कि आप एक अज्ञानी हैं, आप नहीं जानते कि इस दुनिया में क्या हो रहा है: गंभीर चीजें हो रही हैं और आप हंस रही हैं। इसलिए, वे सोचेंगे कि आप बिल्कुल भी परिपक्व नहीं हैं।” लेकिन जैसे ही मैंने अपना व्याख्यान शुरू किया, मैंने उन लोगों की ओर देखा जो इतने गंभीर थे और मैं अपनी हँसी को नियंत्रित नहीं कर पाती थी! (सभी हंसें) और फिर मैंने कहा, “क्षमा करें, मैं उन सभी दुखों को संबोधित कर रही हूं जिनके बारे में मैंने सुना है।”
आज यह देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है कि उदासी का परदा पलट गया है। मानो यहाँ बहुत गंदी मिट्टी जमा हो गई थी और कमल खिलने ही वाले थे, चाहे जो भी वातावरण रहा हो, इतिहास कुछ भी हो, जो कुछ भी मनुष्य द्वारा बनाया गया हो, उसके भीतर कमल की सुंदर पंखुड़ियाँ रहती हैं, सब कुछ अक्षुण्ण रहता है। . एक छोटे से धक्के के साथ वे अब पूरे वातावरण में हैं, इस गंदे पूल जिसे हम फ्रांस कहते हैं, में अपनी सुगंध फैला रहे हैं। और वे इतने मजबूत लोग हैं, फ्रांस में बहुत मजबूत सहज योगी जो वास्तव में मुझे बहुत प्रसन्न और गौरवान्वित करते हैं। शुरुआत में मैं हर तीसरे हफ्ते पेरिस आती थी और एक बैठक करती थी और जब वे पूछते थे कि, “माँ, आप पेरिस का इतना दौरा क्यों कर रही हैं?”
मैंने कहा, “वह नरक का द्वार है।” मैंने आपको विज्ञापन विभाग के बारे में जो कहानी सुनाई है, वह आपने जरूर सुनी होगी। नहीं? बेहतर होगा, मैं उन्हें बताती हूं। आप देखिए, दो व्यक्ति जिन्होंने सहजयोगियों के रूप में बहुत अच्छा किया था, शायद, जब उनकी मृत्यु हुई, तो उन्हें स्वर्ग जाने के लिए कहा गया। तो वे स्वर्ग में गए और वहां उन्होंने पाया कि हर कोई ध्यान कर रहा था, तो उन्होंने कहा, “इसमें नया क्या है, हम दुनिया में ध्यान कर रहे थे” तो उन्होंने कहा, “क्यों नहीं हम – उन्होंने भगवान से अनुमति मांगी कि- क्या हम नर्क भी देखें, अगर हमारे पास मौका है क्योंकि तब हम फैसला कर सकते हैं, आप देखिए, हम यहां रहना चाहते हैं या वहां। आप देखिये कि यही अहंकार है, आपके पास विकल्प होना चाहिए। इसलिए वे नर्क में गए, और जब उन्होंने पहले बड़े हॉल में प्रवेश किया, तो उन्होंने पाया कि हर तरह का संगीत चल रहा था, अजीब तरह का संगीत और आप जानते हैं कि हैलोवीन की तरह आपके पास हर तरह की गंदी चीजें हैं और महिलाएं नग्न नृत्य कर रही थीं, और पुरुष नग्न गा रहे थे और वे वहाँ सभी अज़ीब, अज़ीब चीज़ें कर रहे थे, जिन्हें हम मज़ेदार कहते हैं। तो, उन्होंने कहा, “यह बदलाव के लिए बेहतर जगह लगती है,” क्योंकि शराब पीना मुफ़्त था, वहाँ सब कुछ मुफ़्त था; ड्रग्स, सभी अच्छी, अच्छी चीज़ें वहाँ! (माँ दिल खोलकर हँसती हैं) तो उन्होंने कहा, “यह बहुत अच्छी जगह है”, तो प्रभारी लोगों ने पूछा, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” उन्होंने कहा, “हम नर्क देखने आए हैं, नर्क कहाँ है?” तो, उन्होंने कहा, “आप इस छेद से देख सकते हैं”, और वे उन्हें एक छेद तक ले गए जहां से वे नरक की तस्वीर देख सकते थे। और वहां उन्होंने देखा कि लोग आग के उपर लटके हुए हैं, वा खौलता हुआ तेल डाल रहे हैं, और गंदी मिट्टी डाल रहे हैं; सब प्रकार की चीजें, तुम देखो, और वे भयभीत थे। और कुछ को बहुत बुरी तरह से पीटा गया था, और मुझे नहीं पता, सभी प्रकार के दंड जो संभव हैं। तो, वे डर गए और उन्होंने पुछा, “अब अगर वह नर्क है, तो इस हॉल में क्या है?” उन्होंने कहा, “यह नरक का विज्ञापन विभाग है।” (दर्शक तालियाँ और हँसी देते हैं) और ऐसे विचार फ्रेंच और अंग्रेजी विशेषज्ञों और अन्य यूरोपीय देशों के अन्य विशेषज्ञों से भी आ रहे थे। और आजकल स्विस वहां की सारी बैंकिंग कर रहे होंगे। तो वह विज्ञापन विभाग है जिसके बारे में, आप देखिये, यह जानने के लिए काफी जानकार होना चाहिए कि नर्क का विज्ञापन विभाग क्या है।
इसलिए, नीतिपरायणता और पवित्रता को तभी बनाए रखा जा सकता है जब आप इस विज्ञापन विभाग के बारे में बहुत सावधान रहें, खासकर फ्रांस और अन्य देशों में। लेफ्ट साइड की कार्य प्रणाली इस तरह से काम करती है कि हम खुद को नष्ट करना चाहते हैं, क्योंकि लेफ्ट साइड का मतलब इच्छा के साथ-साथ विनाश भी होता है। यदि ईश्वर की इच्छा न रही तो यह सब नष्ट कर सकता है। इसलिए, जब आप अपनी इच्छाओं की दूसरी दिशा मे जाने लगते हैं, तो आपके मन में खुद को नष्ट करने की इच्छा होती है। कल ही मैंने एक अख़बार में पढ़ा कि एक अंग्रेज़ महिला ने, जिसने अपने पीछे लाखों पाउंड छोड़े, ने कुपोषण के कारण खुद को खत्म कर लिया। तो, अब खुद को नष्ट करने की इस सोच से हम इस दुनिया में जो कुछ भी करते हैं उसे ही उचित ठहराते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, हमारे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए भी नही किया जाना चाहिए। और इस प्रवृत्ति के बारे में सहजयोगियों को भी अपने भीतर झांकना है। जब सहजयोगी फिसलने लगते हैं और आप उनसे कहते हैं, “तुम फिसल रहे हो, अब उस रास्ते पर मत जाओ,” तो वे कहते हैं, “नहीं, मुझे अकेला छोड़ दो, यह ठीक है, मैं अपने आप को संभाल सकता हूँ,” अर्थात, “मैं खुद को नष्ट कर सकता हूँ।” और यह जीवन-विरोधी व्यवहार इस हद तक शुरू हो जाता है कि उन्होंने सारी आध्यात्मिक,स्वास्थजनक बातो को नकार दिया।
इसके अलावा बाईं ओर आपके पास कुछ भयानक लेखक और रचयिता थे जो इस धरती पर आपको बहुत, बहुत, बहुत, बहुत जीवन-विरोधी विचार देने के लिए आए थे; साद जैसे व्यक्ति की तरह जिसने परपीड़नवाद वगैरह शुरू किया, इस तरह के लोग केवल फ्रांस में ही समृद्ध हो सकते थे – भारत में ऐसे व्यक्ति को निकाल बाहर किया जाता। हो सकता है किसी पागल ने “कामसूत्र” लिखा हो लेकिन मैं उस किताब को कभी नहीं जानती, मैंने वह किताब कभी नहीं पढ़ी, मुझे इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है और मुझे नहीं पता कि यदिआप किसी से पूछेंगे तो वे कहेंगे, “वह किताब क्या है? हमें पता नहीं।” लेकिन यदि आप “गीता” कहते हैं, यदि आप “रामायण” कहते हैं, तो आप उनमें से कई या अधिकतर को जानता हुआ पाएंगे। भारत में ईसाई भी ऐसी किताब नहीं पढ़ेंगे। अब, लेकिन इन किताबों को बहुत सराहा गया। आप पाते हैं, यूरोप में किसी को भी खोजना मुश्किल है, जो शिक्षित है और जिसने इन पुस्तकों को नहीं पढ़ा है, जैसे यह उनके लिए बाइबिल की तरह है। मेरा मतलब है, इन सभी चीजों ने उन्हें पाप, पाप की गंदगी के प्रति प्रतिरक्षित कर दिया है। समस्याओं को और भी बढाने के लिए, आप लोगो के पास बहुत सारे युद्ध थे लेकिन पिछले युद्ध में फ्रांस पर इन भयानक जर्मनों का कब्जा हो गया था। तो, वे पूरी तरह से भयग्रस्त थे, फिर से एक और लेफ्ट साईड की गतिविधी। इन सब बातों ने लेफ्ट साईड समस्याओं को और बढ़ा दिया है।
हमारी समस्या है किअब इनसे कैसे छुटकारा पाया जाए। जब मैं यहां आयी, तो पैट्रिक ने मुझे बताया कि कैसे उन्होंने लोगों को सभी प्रकार के भूतों से ग्रसित पाया, और मुझे आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि मैं कभी ना कभी ऐसा होने की उम्मीद कर रही थी। अभी भी बहुत से सहजयोगी हैं, विशेषकर योगिनियाँ, जो ग्रसित हैं। मैं एक पागल के बारे में जानती हूं जो मेरे घर आया, उसने सारा घर और सब कुछ तोड़ दिया और बहुत कुछ किया, फ्रेंच, आप जानते हैं, एक आदमी। इसलिए इससे मुक्त होंने के लिए सबसे पहले हमें इसके खतरों को जानना होगा। अगर औरतें ऐसे ही चलती हैं, अपने नेताओं की बात नहीं मानतीं और यह कहते हुए चलती हैं कि, “यह मेरा अधिकार है”, ध्यान नही करती और हर तरह की चीजें करती है वे सिज़ोफ्रेनिक हो जाएंगी। सिज़ोफ्रेनिया, मेरे अनुसार, सहज योग के अनुसार, एक ऐसी बीमारी है जिसमें आप ऐसी कई मृत आत्माओं से स्थायी रूप से ग्रसित रहते हैं, और भारत में उन्हें पागलखाने में भेज दिया जाएगा। लेकिन मुझे बताया गया है कि यहा उन्होंने अब हर जगह सभी पागलखानों को बंद कर दिया है और पागल सड़कों पर घूम रहे हैं। यह बहुत गंभीर स्थिति है। सरकार को समझता नहीं है कि वे क्या कर रहे हैं। एक बार जब मैंने पेरिस में बस से यात्रा की और मैंने देखा कि, एक के बाद एक लोग, एक महिला, फिर एक सज्जन, फिर एक अन्य सज्जन, वे अंदर आये, और वे खुद ही से जोर-जोर से बात कर रहे थे। ऐसे वे सभी लोग ग्रसित हैं और वे आपको ग्रसित कर लेंगे। वे आपको ग्रसित कर लेंगे, वे आपके बच्चों को ग्रसित कर लेंगे, वे आपके पालतू जानवरों को ग्रसित कर लेंगे, किसी को भी ग्रसित कर सकते हैं। ऐसे असामान्य लोगों को जनता से दूर रखना चाहिए। लेकिन मैरी ने मुझसे कहा कि, “देखिये, हम फ्रांसीसी उनके प्रति बहुत सहानुभूति रखते हैं।” उनके भूत भी हैं, मैं आपको बता दूं, ऐसे लेफ्ट साईडेड लोग, वे आपकी सहानुभूति हासिल करने के लिए कुछ करने की कोशिश करते हैं।
जिस तरह दायीं ओर के लोगों आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए आक्रामक होते हैं, वैसे ही लेफ्ट साईडेड लोग आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए खुद के प्रति आक्रामक होते हैं। तो ऐसे लोग जिनका सोच ऐसा हैं कि, “सर्दियों के समय में हम कुछ कम कपड़े पहन कर, या हम अपने सिर के बल खड़े हो कर खुद अपने जीवन को सता कर दिखा सकते हैं”, ऐसे सभी लोग अब बिल्कुल विज्ञापन विभाग की सीमा पार कर रहे हैं।
तो, सबसे पहले सहजयोगियों को यह याद रखना होगा कि आप इस धरती पर आनंद लेने आए हैं। कल्पना कीजिए, उन्होंने कहा कि फ्रेंच में आनंद के लिए कोई शब्द नहीं है जैसा कि मैंने आज सुना, लेकिन मनोरंजन के लिए … भगवान का शुक्र है! तो, यह मनोरंजन है, आपको जीवन के मनोरंजन का आनंद लेना है, और आप यहां अब और पीड़ित होने के लिये नहीं हैं, आपको अब और पीड़ित नहीं होना है। और ना ही गंभीर होना – किस लिए? और तनावग्रस्त होना मना है, बिल्कुल हम कह सकते हैं, विषय से बाहर है, बेकार है। इतने सुकून भरे माहौल में आप कैसे तनाव में हो सकते हैं? अगर ऐसी चीजें खुद को व्यक्त कर पा रही हैं, तो आपको पता होना चाहिए कि सहज योग में आप अभी तकअपने सही बिंदु पर नहीं आए हैं। यदि आप अभी भी चिंता करते हैं और चिंता करते रहते हैं, तो आप बाईं ओर जाएंगे और आप सहज योग से बाहर निकल जाएंगे। यह दूसरा गंभीर बिंदु है। तो, पहला बिंदु यह है कि आप सिज़ोफ्रेनिक, पागल, पागल हो जाएंगे। यह पहली बात है, मैं कोई व्यवसायी नहीं हूँ इसलिए मैं आपको सबसे पहले सबसे बुरा पहलु बता रही हूँ।
जैसा कि अभी मैंने आपको बताया है दूसरी बात होगी कि आप सहज योग से बाहर निकल जाएंगे। उसके परिणाम स्वरूप आपको कैंसर जैसी कोई बीमारी हो सकती है या कोई भी बीमारी जो बाईं ओर से आती है, बहुत हैं। इसलिए, यह सुनिश्चित कर लेना बहुत महत्वपूर्ण है कि आप उत्थान के मध्य मार्ग पर बने रहने का प्रयास करें, उपचारात्मक विधियों के माध्यम से, ध्यान विधियों के माध्यम से, स्पंदनात्मक विधियों के माध्यम से आपको खुद को मध्य में रखने की कोशिश करनी चाहिए और दाईं ओर नहीं जाना चाहिए। क्योंकि इस विनाशकारी शक्ति के साथ, इस विनाशकारी शक्ति के साथ, यदि आप दाईं ओर जाते हैं, तो आप बेहद अशुभ हो जाएंगे और आप लोगों को नष्ट करना शुरू कर देंगे, खासकर नेताओं की पत्नियों के लिए, मैं उन्हें बताना चाहती हूं कि उन्हें बहुत विनम्र बनना चाहिए। अन्यथा उनके पास ऐसी यह चीज होगी, एक शक्ति, जिसके द्वारा वे खुद को और दूसरों को नष्ट कर देंगी। यह ऐसी शक्ति है, जैसे माना की, आग या ज्योती है, यदि इसका उपयोग उस कार्य के लिये नहीं किया जाता है जिसके लिए इसे बनाया गया है, यदि आप अपना हाथ आग में डालते हैं, तो यह जल जाएगा।
इसलिए, हमें समझना चाहिए कि महिलाओं की शक्ति करुणा है, पोषण है, और उन्हें पुरुषों की तरह बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए क्योंकि तब वे लोगों को जला देंगी और खुद को जला लेंगी। इसलिए, जैसा कि मैंने आपको पहले बताया है कि यह महिलाएं ही हैं जो बाईं पहलु को बेहतर बनाने में बहुत मददगार हो सकती हैं। पुरुषों पर हावी होकर आप उन्हें लेफ्ट साइडेड कर देती हैं जो कि उनका स्टाइल नहीं है, उन्हें लेफ्ट साइडेड नहीं होना चाहिए। लेकिन अगर वे वास्तव में पुरुष हैं, तो वे मध्य मार्ग पर चलेंगे; और अगर महिलाएं वास्तव में महिलाएं हैं, तो वे भी मध्य पथ पर चल सकेंगी। तो मध्य मार्ग पर चलने के लिए हमारे भीतर स्थित इस प्रकार की इन सभी चीजों से छुटकारा पाना होगा।
तीसरी बात जो वास्तव में, मैं कहूंगी, आप लोगों को चेतावनी दुंगी कि आप अपनी चीजों से, अपनी संपत्ति से, अपने बच्चों से, अपने परिवेश से आसक्त होते हैं: जैसे कि कई फ्रांसीसी कहेंगे, “ओह, मुझे फ्रांस से बाहर जाने से नफरत है। ” जब वे किसी दूसरे देश में जाते हैं तो हमेशा आलोचना करते रहते हैं। मुझे नहीं पता कि सबसे अच्छे आलोचक कौन हैं, लेकिन वे सभी एक-दूसरे की आलोचना करते हैं; वे कभी दूसरों की अच्छाइयों को देखने की कोशिश नहीं करते; और ऐसा करने में, आप जो करते हैं वह अपनी बाईं ओर की शक्तियों का उपयोग करके दूसरों पर एक प्रकार की हीन भावना को कायम रखना है जिससे आप दूसरों को छोटा दिखाते हैं। जैसे किसी पर बिना किसी बात के दया करना; जैसे मान लीजिए कि आप मुझ पर दया करने लगें, तो यह कैसा लगेगा? ऐसा बेतुका है।
[श्री माताजी हंसते हैं]
ग्रेगोइरे : हाँ श्री माताजी। मैं इसका अनुवाद करना भी नहीं जानता।
श्री माताजी : हाँ, मुझे पता है, लेकिन यह ऐसा ही है।
तो कोई दया नहीं होनी चाहिए, करुणा होनी चाहिए, और यह आपको खुद पर दया करने, दूसरों पर दया करने और हर समय किसी भी चीज़ के लिए खेद महसूस करने के इस निरर्थक विचार से बाहर निकाल देगी; क्योंकि अगर तुम ऐसी दया मांगोगे तो तुम पर भी दया की जायेगी। मेरा मतलब है, आप स्वयं दयनीय स्थिति में होंगे। लेकिन अगर आपके पास करुणा है, तो आप उस व्यक्ति को नीचा नहीं बनाते हैं, आप उसे हीन महसूस नहीं कराते हैं, लेकिन आप उसे प्रोत्साहित करते हैं और वह शक्तिशाली महसूस करता है। जैसे आपके भीतर एक उंगली चोटिल हो जाती है, आप बस उसे शांत करने की कोशिश करते हैं और उसके प्रति दयालु होते हैं, आप उसे ऐसा जताने की कोशिश नहीं करते हैं कि “आप अच्छे नहीं हैं,” क्योंकि वह आपके ही अस्तित्व का ही एक अंग-प्र्तयंग है।
तो, करुणा निंदा और दया के बीच में खड़ी है। करुणा में आपको जो कुछ भी गलत है उसकी निंदा करनी होगी, आपको भूतों की निंदा करनी होगी, आपको उस कुरूपता की निंदा करनी होगी, जो गलत है उसकी निंदा करनी होगी। तो, आप देखिये, इसके द्वारा, आप उस व्यक्ति को यह समझा देते हैं कि जैसा भी वह है उस बात कीआप बिल्कुल भी सराहना नहीं करते हैं और यह केवल करुणा है और इसके बारे में कोई दया नहीं है; चुंकि लेफ्ट साईडेड लोग दया पाने के इच्छुक होते हैं और यदि आप उन पर दया करते हैं तो वे और भी बदतर हो जाते हैं। तो, “गरीब आदमी, गरीब आदमी”, या “गरीब बूढ़ी औरत- इस प्र्कार का कुछ” कहना गलत है। तो जो लोग भुतआविष्ट होते हैं, वे उन भूतों की निंदा करने लगते हैं, वे इससे उबर जाते हैं। जब वे अपने भूतों से घृणा करते हैं, तो वे कुछ ही समय में उनसे छुटकारा पा सकते हैं। लेकिन कभी-कभी, इससे भी बुरा यह हो जाता हैं कि, वे उनकी पहचान ही हो जाते है। बेशक इसका आकलन करने के लिए, वाय्ब्रेशन के माध्यम से परखना सबसे अच्छा है, लेकिन आप इसे तार्किक रूप से भी परख सकते हैं कि हम अपनी ग्रस्त्तता के प्रति, दूसरों के प्रति कैसा व्यवहार करते हैं।
मैं कहूंगी कि बाईं ओर से कैसे बाहर निकला जाए भारत में इस पर बहुत सूक्ष्म स्तर पर बहुत काम किया गया है। मैं कहूंगी कि यह महावीर ही थे जिन्होंने नरक से लेकर स्वर्ग तक के पूरी जानकारी देने के लिए वास्तव में बहुत मेहनत की है, जो की बायॉ बाजु है। एक और, मैं कहूंगी, उनका अपना अवतार विलियम ब्लेक था, जिन्होंने भी इसके बारे में पूरी जानकारी दी है। मैं कहूंगी कि दांते ने भी ऐसा ही किया। तो, यह वही है जैसा उन्होंने तुम्हें दिखाया है, नर्क कैसा है और स्वर्ग कैसा है।
अब सहजयोगियों के लिए,अगर अभी भी वे उनमें उलझे हुए हैं तो यह देखना जरूरी है कि उनकी लेफ्ट साईड की समस्याएं क्या हैं। ग्रसित होने का मतलब है कि आपके पास कुछ सोच है, कुछ ऐसे विचार जो तर्कसंगत नहीं हैं, जो अतार्किक हैं। और आधुनिक समय में, मैंने देखा है कि कैसे वे विषय से बचते हैं यदि आप उनसे पूछते हैं, तो उनका जवाब होता हैं, “मुझे नहीं पता।” या “मुझे नहीं पता कि मुझे ऐसा क्यों लगता है,” और फिर उस भावना को ही त्याग देते हैं कि, यह गलत है; यदि आपको नहीं पता, तो यह अच्छा नहीं है। शुरु-शुरु में मैंने जाना कि, आपने किसी फ्रेंच, किसी भी फ्रांसीसी से पूछा, “आप कैसे हैं?” वे कहेंगे, इस तरह। [श्री माताजी ने अपना दाहिना हाथ हिलाया; यह एक इशारा है जिसका अर्थ है “अच्छा नहीं, बुरा नहीं, बीच में” तो यह ठीक उत्तर नहीं है]
और मैं उनके हाथों को देखती, इसका क्या मतलब है? नहीं, इस तरह। [श्री माताजी ग्रेगोइरे से बात करते हैं और फिर से हाथ की गतिविधी दिखाते हैं] तो, मैं सोचती थी, इनके हाथों में क्या खराबी है! और वे इसके बारे में बहुत घमण्डी थे [एक भ्रामक तरीके से उत्तर देने के बारे में], यह इसका सबसे अच्छा हिस्सा है; क्योंकि निश्चित रूप से कुछ कहना, पक्का, शायद उनके दृष्टिकोण से अहंकार माना जाता था, लेकिन सहज योगियों को सुनिश्चित कथन वाला होना पड़ता है।
अब, अंग्रेज, अगर मैं उनसे पूछूं, “आप कैसे हैं?” वे कहेंगे, “भ्रमित।” तो, मेरा मतलब है, “मुझे पता नहीं “क्यों? और अकड से कहना कि, “मैं उलझन में हूँ,” जैसे कुछ महान बात कही हो इस तरह से, आप जानते हैं कि “मैं भ्रमित हूँ।” तो, स्पष्टीकरण इसतरह दिया गया था, कि, कि हम अपनी स्थिति के बारे में जानते हैं, हम कुछ भी सुनिश्चित तरीके से नहीं कह रहे हैं।
एक सहज योगी, यदि वह भ्रमित है, तो वह सहज योगी नहीं है। इस स्तर पर आपको अपने बारे में, मेरे बारे में निश्चित, सहज योग के बारे में निश्चित होना चाहिए और दुनिया के सभी सहज योगियों के बारे में निश्चित होना चाहिए। अन्यथा आप सहजयोगी नहीं हैं। इसका मतलब है कि ईश्वर के साथ आपका संबंध एक ढीले प्लग की तरह है। इसलिए हमें यह समझना होगा कि जब हम मध्य में होते हैं, तो हमें यकीन होता है कि हम क्या हैं, बिल्कुल निश्चित हैं, हम गर्व और महिमा में अपना सिर उठाते हैं। हमारे पास दाएं का घमंड नहीं है और बाएं की दया नहीं है। अब हम फ्रांस में यही हासिल करने जा रहे हैं। अब हमे अवचेतन या सामूहिक अवचेतन में नहीं जाना है। अब अपने पूर्वजों के बारे में मत सोचो कि उन्होंने क्या किया, और न ही भविष्य के बारे में सोचो कि तुम्हारी संतान क्या करने जा रही है। आप खुद के बारे में सोचें कि आप उन दोनों के लिए क्या करने जा रहे हैं। एक अच्छे सहज योगी द्वारा कई शापित परिवारों को पूरी तरह से मुक्त किया जा सकता है; और एक सहजयोगी द्वारा हजारों वर्ष की सन्तान को आशीषित किया जा सकता है। यह एक सच्चाई है, अब आप वायब्रेशनों को महसूस कर सकते हैं।
तो, व्यक्ति के पास एक बहुत ही सुस्थिर, शांतिपूर्ण समझ का व्यक्तित्व होना चाहिए; लेकिन यह समझ मानसिक नहीं बल्कि आपके मध्य पथ पर होने का एक रस होना चाहिए, वह महत्वपूर्ण ऊर्जा जो सभी चक्रों, आपके अस्तित्व और वातावरण का पोषण करती है।
मुझे विश्वास है कि सभी फ्रांसीसी सहजयोगी अब मध्य मार्ग के नए रास्तों को अपनायेंगे। उन्हें ऐसे कपड़े पहनने चाहिए जो फ्रेश हों, उनके चेहरे पर फ्रेश लुक हो, चारों ओर एक फ्रेश माहौल बनाना चाहिए। वे सभी घिसी-पिटी चीजें छोड़ दें, जिन्हें वे घिसी-पिटी चीजों से बहुत प्यार करते हैं, और वे पुराने घरों को भी पसंद करते हैं, वे कहते हैं कि यह प्राचीन है। (माँ दोहराती है पुराने कपड़े और पुराने घर)। नहीं, प्राचीन वस्तुओं के विचार को भी छोड़ दे क्योंकि, आप देखिये, प्राचीन वस्तुएं तब तक ठीक नहीं हैं जब तक उन्हें ठीक से संरक्षित ना किया जाता है, लेकिन यदि आप उन्हें प्राचीन वस्तुओं जैसा बनाते हैं, तो आप देखिये, यह उन्हें कोई सम्मान नहीं दिया जा रहा है।
मैं पोलैंड गयी और मुझे आश्चर्य हुआ कि युद्ध के बाद उनके सभी पुराने स्मारकों को फिर से जीवित कर दिया गया और सब कुछ चित्रित किया गया और बिल्कुल नए स्वरूप में वापस लाया गया। उन्होंने कुछ भी टूटा हुआ या मैला या किसी भी तरह से खराब नहीं रखा है। इसलिए, मुझे लगता है कि इन प्राचीन वस्तुओं को वैसे ही संरक्षित रखने का जो भी विचार है, वह बहुत ही भूतिया और वामपंथी हैं। इसलिए, आपके पास जो कुछ भी प्राचीन वस्तुएं हैं, उन्हें भी साफ किया जाना चाहिए और ठीक से रखा जाना चाहिए और उन्हें एक नए रूप में लाया जाना चाहिए। अब यह हार जो मैंने पहना है वह बहुत प्राचीन है, बहुत पुराना है, लेकिन पुराना नहीं लगता, है ना? क्योंकि इसकी देखभाल की जाती है और एक देवी के लिए, इसे पहनना अजीब लगेगा, एक प्राचीन वस्तु पहनना जो इतनी घिसी हुई लगती है।
तो, एक मानदंड ऐसा भी हो सकता है कि हम जो कुछ भी पहनते हैं या करते हैं, क्या माँ उसे पसंद करेगी? यह एक प्रश्न है जिसे आप पूछ सकते हैं यदि आप वायब्रेशनों से नहीं पूछना चाहते हैं, “क्या वह इसे पसंद करेगी? हमें उन्हे प्रसन्न करना है।” और मैं तुमसे कहती हूं: बहुत छोटी, छोटी चीजें मुझे प्रसन्न करती हैं। आपको बहुत अधिक काम करने की ज़रूरत नहीं है, बस कुछ चीज़ें जो मुझे प्रसन्न करती हैं, जो बहुत ही सरल और आसान और सहज हैं। जैसे आपको अबोध होना है। यह बहुत आसान है यदि आप एक बच्चे जैसे व्यक्ति हैं, तो आप किसी भी चालाकी को अपने दिमाग में आने नहीं देते हैं, कोई भी बेतुका विचार, बस मासुम रहे; आपको अबोध होने के लिए कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है। गैर-मासुमियत वाला होने के लिए आपको कुछ करना होगा।
तो, यही आपको समझना होगा कि हमारे बाएं पक्ष का आधार मासूमियत है। तो, कुछ भी जो मासुमियत नहीं है, हमें नहीं करना चाहिए। यह बहुत आसान है, हम सभी के साथ उचित ही होना चाहिए अगर हम बस यह भरोसा रखते हैं कि हमारे भीतर मासूमियत का यह गुण बिल्कुल बरकरार है, और आपको बस इसे जगाना है और इसका आनंद लेना है, बस।
तो परमात्मा आप सभी को आशीर्वादित करे,
परमात्मा आपको निर्दोष होने की शक्ति दे। आप प्रार्थना करें कि आप अबोध हों और मासूमियत आपकी सभी समस्याओं को शोषित कर ले, आपकी बाईं ओर की समस्याओं को शोषित कर ले, और अबोधिता के प्रतीक श्री गणेश हैं, जो सिर्फ अपनी माँ को जानते हैं, और अन्य किसी को नहीं और उनकी अबोधिता सभी ज्ञान का स्रोत है। तो, आपको पूरी तरह से अबोध इंसान बनने के लिए प्रार्थना करनी होगी।
परमात्मा आपको आशिर्वादित करे!
ग्रेगोइरे : श्री माताजी, यदि मैं आपका ध्यान इस सज़ावट की ओर आकर्षित करूं। इस शिखा पर लिली है जो प्राचीन फ्रांस का प्रतीक है, जो फ्रांसीसी परंपरा में पवित्रता के फूल का प्रतिनिधित्व करती है और एक कुंडलिनी का प्रतिनिधित्व करती है जो आज्ञा चक्र से गुजरती है और अहंकार और प्रति-अहंकार दोनों को धक्का दिया जाता है और किनारे पर कम किया जाता है। और हम प्रार्थना करते हैं, श्री माताजी, कि हमारी इस अबोधिता का परिणाम यह हो, कि हम सभी आपके लिए सुंदर फ्रेंच लिली बने, श्री माताजी।
श्री माताजी: धन्यवाद।
ग्रेगोइरे : जय श्री माताजी!