Guru Puja (Austria)

Guru Puja आपका चित्त कहाँ है? यदि आप गुरू हैं तो फिर आपका चित्त कहाँ है? यदि आपका चित्त लोगों को व स्वयं को सुधारने और अपना पोषण करने पर है तो फिर आप सहजयोगी हैं। फिर आप गुरू कहलाने योग्य हैं। जो भी चीज जीवंत है वह गुरूत्वाकर्षण के विपरीत एक सीमा तक उठ सकती है …. ये सीमित है। जैसे कि हमने पेड़ों को देखा है… वे धरती माँ की गोद से बाहर आते हैं और ऊपर की ओर बढ़ते हैं लेकिन केवल एक सीमा तक ही। हर पेड़ … हरेक प्रकार के पेड़ की अपनी एक सीमा होती है। चिनार का पेड़ चिनार का ही रहेगा और गुलाब का पेड़ गुलाब ही रहेगा। इसका नियंत्रण गुरूत्वाकर्षण बल द्वारा किया जाता है। लेकिन एक चीज ऐसी है जो गुरूत्व बल के विपरीत दिशा में उठती है…. जिसकी कोई सीमायें नहीं हैं …. और ये है आपकी कुंडलिनी माँ। जब तक आप कुंडलिनी को नियंत्रित नहीं करना चाहते हैं तब तक इसे गुरूत्व बल से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। इसको कोई चीज नियंत्रित नहीं कर सकती है लेकिन आप और केवल आप इसे नियंत्रित कर सकते हैं। अतः जब आप अपनी कुंडलिनी के इंचार्ज बन गये तो आपने एक कदम आगे रख लिया है कि आपने उस बल पर विजय प्राप्त कर ली है जिसको गुरूत्व बल कहते हैं। शायद सहजयोगी लोग नहीं जानते हैं कि उनको क्या प्राप्त हुआ है। आदि गुरू और गुरू के बीच केवल एक ही अंतर है और वो है सद्गुरू। मैं Read More …