Shri Bhumi Dhara Puja

(England)

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धरती माँ के क्रोध से ज्वालामुखी फूटने लगते हैं…..

जय श्री माताजी। कृपया आदि भूमि देवी से प्रार्थना करें कि माँ कृपया हमें क्षमा कर दें और हम सभी को शांति का वरदान दें ताकि संपूर्ण जगत में भी शांति का साम्राज्य हो।
(श्री आदि भूमि पूजा, शूडी कैंप, यू0के0 3 अगस्त 1986)

आज हम सब यहां धरती माता की पूजा करने के लये एकत्र हुये हैं ….. जिसको हम भूमि पूजा कहते हैं …. श्री धरा पूजा…. उनको धरा कहा जाता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि ध का अर्थ है धारण करना … राधा का अर्थ है … शक्ति को धारण करने वाली और धरती तो सभी को धारण करती है … हम को धारण करती है। हम धरती पर ही निवास करते हैं।
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि धरती तीव्र गत से घूम रही है। अगर उनका गुरूत्वाकर्षण न होता तो आज हमारा अस्तित्व भी न होता। इसके अतिरिक्त उन पर वातावरण का भी अत्यधिक दबाव है। वह समझती हैं…सोचती हैं…. समन्वयन और सृजन भी करती है। आपने देखा ही है कि जब आप धरती पर नंगे पांव खड़े होते हैं और मेरे फोटोग्राफ के सामने प्रकाश जलाकर उनसे प्रार्थना करते हैं कि वह आपकी नकारात्मक ऊर्जा को सोख लें तो वह किस प्रकार से आपकी नकारात्मक ऊर्जा को सोख लेती हैं। वह मुझे जानती हैं क्योंकि वह मेरी माँ हैं। वह आप सबकी नानी माँ हैं। इसीलिये वह आपका पोषण करती हैं… आपकी देखभाल करती हैं।
सुबह सवेरे जब हम जागते हैं और अपने पैर जमीन पर रखते हैं तो हमें कहना चाहिये …. हे माँ कृपया हमें क्षमा कर दजिये क्योंकि हम आपके ऊपर पैर रखने जा रहे हैं। लेकिन कोई बात नहीं बच्चे अपनी माँ को हाथ और पैर दोनों से छू सकते हैं … इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन वह श्री गणेश के शरीर का सृजन करने वाली हैं। हमारे अंदर वह कुंडलिनी का प्रतिनिधित्व करने वाली हैं। वह स्वयं सूर्य के चारों ओर गोल-गोल घूमती हैं। सूर्य भी ऊपर और नीचे गति करता है और वह सूर्य के चारों ओर गोल-गोल घूमती हैं। चूंकि दोनों एक दूसरे के सापेक्ष घूमते रहते हैं तो इसीलिये आपको उनकी गति दिखाई नहीं पड़ती है। धरती माँ और अन्य ग्रहों, तारों और तारामंडलों के बीच का संबंध अत्यंत सावधानीपूर्वक स्थिर रहता है या उसमें परिवर्तन होते रहते हैं।
जब हम भौतिकता की बात करते हैं तो हम धरती माँ के विरोध में कार्य करते हैं। उनके सूक्ष्म गुणों के विषय में न जानकर हम उनका दोहन करते रहते हैं …. उनको खोदते हैं .. और अपने निजी स्वार्थों के लिये उनका उपयोग करते रहते हैं। और वह हमारे लिये क्या करती हैं। वह आपके खाने के लिये इन सुंदर फलों को बनाती हैं …. इन सुंदर पेड़ों को बनाती हैं ताकि आप फर्नीचर बना सकें … सुंदर घर बना सकें। उन्होंने आपकी नसों को आराम देने के लिये हरी-हरी घास । उऩके अस्तित्व पर बड़ी-बड़ी नदियां … बड़े-बड़े समुद्र हैं ….. वह सदैव बड़े से बड़े महासागर से भी बड़ी हैं। वह कितनी महान हैं और हम बिना सोचे विचारे उन पर क्या-क्या अत्याचार नहीं करते। इसके बाद उनकी प्रतिक्रियायें प्रारंभ हो जाती हैं। प्रकृति का सुंदर चक्र हमारी उग्र प्रवृत्तियों और विवेकहीनता के कारण टूट जाता है।
धरती माँ स्वयं कुछ नहीं करती हैं … जायादा कुछ नहीं परंतु ईथर तत्व कार्य करने लगता है … और आपको परेशानियां झेलनी पड़ती हैं … जिनको हम एसिड वर्षा , प्लास्टिक जैसी सभी समस्यायें जो इस अविवेक के कारण सामने आती हैं। जब हमने मशीनें बनानी प्रारंभ कीं तो निना किसी संतुलन के हम मशीनें ही बनाते चले गये … एकदम पागलों की तरह से। इसके परिणामस्वरूप आज हम मशानों को दास बन गये हैं। हम अपने हाथों से कुछ भी नहीं कर सकते हैं। इऩ्हीं मशीनों के कारण आज बेरोजगारी बढ़ गई है। जैसा कि मैंने कई बार कहा है कि मशीनें हमारे लिये हैं … हम मशीनों के लिये नहीं हैं। लेकिन आज स्थिति एकदम भिन्न है क्योंकि आज हम पूर्णतया मशीनों के हाथों में खेल रहे हैं जो फिर उसी विवेकहीनता का परिणाम है …. उसी असंतुलन का परिणाम है। धरती माँ हमें संतुलन सिखाती है। यदि वह स्वयं संतुलन में न होतीं तो हम सभी का अंत हो चुका होता। वह हमें गरिमा सिखाती हैं। वही हमें बताती हैं कि किस प्रकार से दूसरे व्यक्ति को बिना पता चले … बिना उसके अनुभव किये हम किस प्रकार से इतने गरिमामय बन सकते हैं … कि लोग हमारे प्रति आकर्षित होने लगते हैं। बिना किसी को बताये…. बिना किसी को सम्मोहित किये …. बिना किसी को लाचार किये लोगों को अपनी ओर खींच लेना । वह बिना किसी अपेक्षा के लोगों को देती रहती हैं … चाहे हम उऩका सम्मान करें या न करें … वह हमें देती ही रहती हैं। लेकिन जब वह अत्यंत क्रोधित हो जाती हैं तो आपको मालूम ही होगा कि मैक्सिको में वह फट पड़ीं…. आप जानते ही हैं वहां क्या हुआ … मैं आपको काफी पहले बता रही थी कि वहां पर लोग काला जादू करते हैं …. यभी प्रकार के मादक पदार्थों का उत्पादन वहां पर होता है। कोलंबिया में भी यही हो रहा है। यदि आप ये सब लोगों को कष्ट पंहुचाने के लिये कर रहे हैं तो वह अत्यंत क्रुद्ध हो जाती हैं और ज्वालामुखी फूटने लगते हैं। लॉस एंजेलस और अमेरिका के पश्चिमी तट पर बसे स्थानों में आज भी इसका खतरा बना हुआ है। सभी प्रकार के गुरू वहां पर जाकर बस गये हैं … हर प्रकार का काला जादू वहां पर चल रहा है। वहां पर एक प्रकार का जादू टोना होता है जिसे आधिकारिक रूप से स्वीकृति मिली हुई है और वहां पर इसको रजिस्टर भी किया गया है। इस प्रकार के कार्यों को करने के लिये लोग कहते हैं हमें इस कार्य को करने की स्वतंत्रता प्राप्त है। मानव की स्वतंत्रता के नाम पर वे लोग इस प्रकार के खराब कार्य कर रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप माँ इन चीजों को विराम देना चाहती हैं। यह सामूहिक विराम है कृपया इसे याद रखिये। जब श्री सीता जी ने श्रीराम को छोड़ना चाहा तो धरती माँ ने उन्हें अपने अंदर समा लिया … लेकिन ये माँ का प्रेम है न कि विनाशलीला। लेकिन ज्वालामुखी सामूहिक रूप से हम को हानि पंहुचाता है और कई बार इसमें कई निर्दोष लोगों की जानें भी जाती हैं। परमात्मा की भाषा में मृत्यु का कोई अर्थ नहीं है। जो मर चुके हैं वे फिर से जन्म ले सकते हैं। पर कई बार मृत्यु लोगों को दंड देने के लिये भी आती है…. उनका विनाश करने के लिये आती है … उनको इस लोक से … इस परिदृश्य से हटाने के लिये आती है। वह ये सब कर सकती हैं। कई बार तो उनका क्रोध इतना अधिक होता है कि वह धरती के हजारों मीलों तक अधार्मिक और आसामूहिक लोगों को नष्ट कर देती हैं। सहजयोग भी जो लोग सामूहिक नहीं होते हैं…. या जो सामूहिक नहीं रहना चाहते हैं … उनको भी माँ दंड देती हैं … लेकिन अत्यंत गुप्त तरीके से और उन्हें इसे समझना होगा …. या हमें कहना चाहिये …. अत्यंत सूक्ष्म तरीके से।
जब सहजयोगी सामूहिक नहीं रह पाते और कहते हैं कि ये मेरा घर है….. ये मेरी प्राइवेसी है … ये मेरी पत्नी है… मेरे बच्चे हैं … मेरी चीजें हैं। मैं पूजा में नहीं आ सकती क्योंकि मेरी कुछ समस्याये हैं। मैं सहजयोग के लिये ये नहीं कर सकती क्योंकि मेरी कोई समस्या हैं। जब वे सामूहिक नहीं रह पाते तो अत्यंत सूक्ष्म तरीके से यह धरती माँ जो हमारे अंदर है वो अत्यंत दुखी हो जाती है। जब वह दुखी हो जाती हैं तो वह इस प्रकार से कार्य करने लगती हैं जो लोगों के लिये अत्यंत भयावह होता है। धरती माँ का गुण नहीं है कि वह हम पर अधिकार जमायें … वह किसी पर भी अधिकार नहीं जमातीं। उदा0 के लिये यदि आप भारतीय हैं तो आप इंग्लैंड आ सकते हैं …… आप कहीं भी जा सकते हैं … कहीं भी रह सकते हैं। वह किसी पर भी अधिकार नहीं जमातीं। हम मनुष्यों ने ही अलग-अलग देश … अलग-अलग स्थान बना लिये हैं जो हमारे मूर्खतापूर्ण विचार हैं। परमात्मा ने तो केवल एक विश्व बनाया है। उन्होंने इन राष्ट्रों को नहीं बनाया है। केवल घाटियों में से होकर बड़ी-बड़ी नदियां बहती हैं। कई बार वह जहां भी खड़ी हुई हैं वहां पर्वत बन गये हैं। सुंदरता का सृजन करने के लिये ये उनकी विविधता का रूप है। माना सारा संसार एक गंजे व्यक्ति की तरह से होता तो हमारा क्या होता। सबसे पहले तो हम सभी फिसल जाते और यदि चारों ओर जंगल ही जंगल होते …. पर्वत ही पर्वत होते या नदियां ही नदियां होती तो फिर क्या होता। सुंदरता का सृजन करने के लिये उन्होंने इन सब चीजों को बनाया है ताकि हम सब लोग प्रसन्न रह सकें .. आनंदित रह सकें … हमारा मनोरंजन हो सके। उन्होंने ये सारा संसार हमारे लिये बनाया है लेकिन हम क्या कर रहे हैं। हमने इसको टुकड़ों में बांट दिया है … ये मेरा देश है … ये उसका देश है। जब हम मरेंगे तो कौन सा देश हमारा है। हम सब मृत शरीर हो जायेंगे जिनको या तो चर्च में या किसी खुले स्थान में दफना दिया जायेगा … आप सभी धरती माँ में मिल जायेंगे। तब हमारा देश कौन सा होगा क्योकि हम तो धरती में ही विलीन हो जाते हैं। हमें यह समझना है कि हमारा शरीर मिट्टी से बना है और फिर से इसे मिट्टी में ही मिल जाना है। और हम मूर्खों की तरह से स्वयं को इस देश के उस देश के कहते फिरते हैं।
निसंदेह यह माया का सबसे बड़ा चमत्कार है कि लोग इसको जानते तो हैं पर फिर भी मानना नहीं चाहते हैं। कई इस प्रकार के सत्य हैं जिनके बारे में उन्हें मालूम है पर वे इसको मानना ही नहीं चाहते हैं। यदि उन्होंने इसे स्वीकार भी कर लिया तो वे इसके बारे में जानना ही नहीं चाहते हैं। ये एक अजीब सा चमत्कार है कि वे सभी जानते हैं कि इस धरती पर हमारा कुछ भी नहीं है। इस धरती पर हम आये भी खाली हाथ थे और जायेंगे भी खाली हाथ। इसके बाद भी हम अपने साथ खेल खेलते रहते हैं … स्वयं को धोखा देते रहते हैं और ये सोचते हैं कि मैं ही ये देश हूं या वो देश हूं … मैं तो कितना महान हूं।
पहले भी मनुष्य ने किन्हीं देशों में जन्म लिया है। इसके कारण परंपराओं और मानव जीवन के दर्शन में कुछ फर्क तो पड़ा है। धरती तो वही है … लेकिन इसमें परिवर्तन आते रहते हैं .. इसकी जलवायु अलग हो सकती है तो वहां के फल भी अलग हो सकते हैं। ये सब एक संयोजन है … इसमें कोई लड़ाई झगड़ा नहीं है। इस पूरी योजना में इतना अच्छा तालमेल है कि यहां किसी प्रकार का लड़ाई झगड़ा ही नहीं है … बस इसमें विविधता है।
माना पूरे विश्व में केलों का उत्पादन होता तो इसकी परवाह कौन करता। उदा0 के लिये यदि आप भारतीयों को केले खाने को दें तो वे हंसेंगे लेकिन यदि आप उन्हें सेब खाने को दें तो वे कहेंगे कि अरे ये तो सेब हैं जरा ठहरो। और यदि इंग्लिश लोगों को कहेंगे तो वह दूसरी तरह से उत्तर देंगे। यदि आप उन्हें सेब देने का प्रयास करें तो वे सभी आपकी ओर देखने लगेंगे कि आखिर इस व्यक्ति के साथ बात क्या है। तो यह भी उनकी अपनी शैली है कि उन्होंने आपको कई प्रकार की जलवायु प्रदान की हैं … विभिन्न प्रकार के उत्पाद दिये हैं ताकि आप उनका आनंद उठायें। वह आपको कितना अधिक समझती हैं और आप उनको कितना समझते हैं। एक सहजयोगी को यह समझना महत्वपूर्ण है कि हमें यहां से कुछ भी लेकर नहीं जाना है। ये सब मिट्टी है और इस मिट्टी ने तो यहीं रह जाना है। हम अपने साथ क्या लेकर जायेंगे। पूरे समय हमारी उत्क्रांति होती रहती है … हम आत्मा बनते रहते हैं। अतः हम आत्मा हैं … हम न ये हैं न वो हैं … हम केवल एक आत्मा हैं। हम पर पदार्थ का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ने वाला है।
हमें धरती माँ का सार देखना चाहिये कि धरती माँ अपने पदार्थों को दूसरों को आनंदित करने के लिये देती रहती है। इसी प्रकार से यदि हम उन्हीं की तरह से लोगों को देने का प्रयास करें तो हम सही तरह से उनके मार्ग पर चल रहे हैं। इसके विपरीत यदि आप उनका दोहन करते हैं तो जैसे उनको खोद कर या धरती पर छेद बना कर तो फिर आपकी माँ कौन हैं।
यदि आप उनके टुकड़े कर देते हैं तो इसका अर्थ है कि हम उनके शरीर के टुकड़े कर रहे हैं। मनुष्य के सभी विचार माँ के विरोध में हैं। परंतु इस सबसे खराब बात तो ये है कि हम अपने अंदर के श्रीगणेश का सम्मान नहीं कर रहे हैं जिसका सृजन इस धरती ने किया है। श्रीगणेश जो हमारे अंदर की अबोधिता है हम उनका सम्मान नहीं करते हैं। जो अबोधिता हमें प्राप्त हुई है हम उसका भी सम्मान नहीं करते हैं। जिस प्रकार से बच्चों पर अत्याचार किये जा रहे हैं और उन्हें मारा काटा जा रहा है उन पर जुल्म किये जा रहे हैं। ये आश्चर्यजनक है कि लोगों को इसका जरा सा भी भय नहीं है कि एक दिन उनके देश में एक बड़ा सा ज्वालामुखी फट जायेगा। तब धरती माँ ऐसे सारे मनुष्यों का विनाश कर देगी जो इस प्रकार से व्यवहार करते हैं। वह अपने सभी प्यारे बच्चों को अपनी गोद में ले लेगी और उनको कहीं और जन्म देगी।
यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि जब तक हम अपने अंदर के श्रीगणेश को आदर नहीं देते हैं … हमारी अबोधिता, हमारी पवित्रता को आदर नहीं देते हैं तो हमें स्वयं को सहजयोगी कहलाने का अधिकार नहीं है। हमारे उत्थान की यह पहली शुरूआत है। हमें किसी और चीज की बात नहीं करनी है जब तक हम इसकी नींव को धरती माँ पर नहीं रखते हैं।
इसीलिये आज मैंने निर्णय लिया है कि हमें इंग्लैंड में भूमि पूजा करनी है। मैं आशा करती हूं कि इस देश में अबोधिता का सम्मान होगा … इससे प्रेम किया जायेगा … उनकी रक्षा की जायेगी .. उनकी अबोधिता … और सबसे अधिक उनकी पवित्रता का सम्मान किया जायेगा।
इस भूमि पूजा से हम धरती माँ के सार का आदर करते हैं जो हमारे अंदर कुंडलिनी ही है और इससे हम अपने आत्मसाक्षात्कार का भी आदर करते हैं। मैं आशा करती हूं कि मैं इस देश को ब्रह्मांड के हृदय के रूप में रूपांतिरत कर दूं। ऐसा करने से धऱती माँ इस देश के पत्थर हृदय लोगों के दिल पिघला कर कमल जैसा बना देगी …… डेजी के सुगंधित फूलों में परिवर्तित कर देगी।
परमात्मा आपको धन्य करें।