7th Day of Navaratri, Shri Mahadevi Puja

कोलकाता (भारत)

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Shri Mahadevi Puja Date: 10th October 1986    Place: Kolkata    Type: Puja Speech Language: Hindi

आज पूजा में पधारे हुए सभी भाविकों को और साधकों को हमारा प्रणिपात! इस कलियुग में माँ की इतनी सेवा, इतना प्यार, और इतना विचार जब मानव हृदय में आ जाता है  तो सत्ययुग की शुरूआत हो ही गयी। ये परम भाग्य है हमारा भी कि षष्ठी के दिन कलकत्ता में आना हआ। जैसा कि विधि का लेखा है, कि कलकत्ता में षष्ठी के ही दिन आया जाता है। षष्ठी का दिन शाकंभरी देवी का है। और उस वक्त सब दूर हरियाली छानी चाहिये। हालांकि यहाँ पर मैंने सुना कि बहुत जोर की बाढ़ आयी, लोगों को बड़ी परेशानी हुई। लेकिन देखती हूँ कि हर जगह हरियाली छायी हुई है। रास्ते टूटे गये थे, पर कोई पेड़ टूटा हुआ नज़र नहीं आया। मतलब ये कि सृष्टि जो कार्य करती है, उसके पीछे कोई न कोई एक निहित, एक गुप्त सी घटनायें होती हैं। कलकत्ता का वातावरण अनेक कारणों से प्रक्षुब्ध है और अशुद्ध भी हो गया है। इसे हमें समझ लेना चाहिये, ये बहुत जरूरी है। इसीलिये देवी की अवकृपा हुई है या कहना चाहिये कि सफ़ाई हुई है। 

कलकत्ते में, जहाँ कि साक्षात देवी का अवतरण हुआ। उनका स्थान यही है, जो कि सारे विश्व का हृदय चक्र यही पे बसा हुआ है।  ऐसी जगह हम लोगों ने बहुत ही अधार्मिक कार्यों को महत्त्व दिया है। और सबसे बड़ा अधार्मिक कार्य तांत्रिकों को मानना है। तांत्रिक तो वास्तविक में माँ ही है जो कि सारे तंत्र उसके हाथ में हैं। उसी ने तंत्र बनाये हैं और वही तंत्र की जानकारी जानती है। पर जो तंत्र के नाम पर दुनियाभर का व्यभिचार, अविचार और आचार करते हैं, उन सभी के लिये मेरा ये कहना है कि उन्हें ये काम छोड़ देना चाहिये। सतयुग में ऐसे लोगों पर घोर अत्याचार होगा, अन्याय होगा, ऐसे लोग बहुत पीड़ित होगे। इस कलकत्ता में इतने तांत्रिक लोग हैं और उनसे दीक्षित (दीक्षा लिये हये) इतने लोग हैं कि उनसे किस प्रकार कहा जाए कि ये सब गलत चीज़ें हैं। इसे करने से कभी भी लाभ नहीं होगा। ये दुष्टों की चालना है और यही राक्षस हैं, जो कि बार-बार जन्म लेते हैं। इतने बार हनन होने पर भी ये संसार में आ कर के और ऐसे दष्ट कर्म करते हैं और वो भी परमात्मा के नाम पर,  देवी के नाम पर। इस मामले में जो हमारी धारणायें हैं उसे दुरुस्त कर लेना चाहिये। क्योंकि सहजयोग जो है वो सत्य पे खड़ा है, असत्य पे नहीं और जो सत्य है वो हमें आपको बताना ही है। अगर आप ज्वाला की ओर दौड़ रहे हैं, अपने को भस्म कर रहे हैं।  तो हमें साफ़ शब्दों में आपसे बताना है कि ये गलत काम है, उधर नहीं जायें। और इसलिये मैं बड़ी व्यग्र हो जाती हूँ और सोचती हूँ कि किस तरह से समझाया जाये कि इन लोगों से शापित इस भूमि को अगर वाकई में आपको उठाना है तो जरूरी है कि पहले इन लोगों की ओर न बढ़े। ऐसा लगता है कि त्राहि-त्राहि हो कर के लोग सोचते हैं कि यही कुछ लोग फायदा कर देंगे। लेकिन ये फायदे से कहीं अधिक ज्यादा आपका नुकसान करते हैं। इनको तो जहर समझ के दूर रखना चाहिये। जब तक आप ये कार्य यहाँ पर जोरो में शुरू नहीं करियेगा और एक-एक का भांडा नहीं फोडियेगा, तब तक ये भूमि शापित रहेगी। 

मैं इस भूमि पर अनेक बार आयी हूँ, लेकिन इस जन्म में जब मैं आयीं तो देखती हूँ कि धीरे-धीरे ये भूमि नष्ट हुई जा रही है। इतनी बड़ी ऊँची साधना प्राप्त की हुई ये भूमि,  जहाँ कि गंगा भी बह कर के रसातल पे जा कर के और जिन्होंने भगीरथ के प्रयत्न से उनके इतने पूर्वजों को शाप विमुत्त किया। इस भूमि की धूलि को ले जा कर के वो ये कार्य कर सकी। उस पुण्य भूमि पर इस तरह के अपुण्य के कार्य बहुत हो रहे हैं। ये हम लोगों को जान लेना चाहिये कि इन्हीं अत्यंत सूक्ष्म ऐसी बातों से ये हमारा बंग देश इस तरह से आहत हो गया है। जब मैं सुनती थी कि यहाँ पर बहुत से राजकारण और राजकीय दौर पड़ रहे हैं, जिसके कारण मनुष्य में बहुत सा झगड़ा खड़ा हो गया है। आपस में गला काट रहे हैं। इसको, उसको मार-पीट रहे हैं, कोई समाधान नहीं है। हत्या हो रही है, चोरी हो रही है, डकैती हो रही है। तो आप इसे बाह्य से देखते हैं। इसका मूल कारण ये तांत्रिक लोग हैं। ये स्मशान विद्या, प्रेत विद्या आदि अत्यंत हानिकारक विद्या से अपने को बहुत होशियार समझते हैं और सबको बेवकूफ़ बना कर के, उल्लू बना कर के, उनसे रुपया, पैसा ले कर के उनमें ये दुष्ट बाधायें डाल देते हैं। उस बाधा के कारण मनुष्य एक सभ्रान्त स्थिति में पड़ जाता है। और उस स्थिति से वो उलझता हुआ, पूर्णतया भ्रान्तिमय हो जाता है। उस भ्रान्ति में वो समझ नहीं पाता है, कि धर्म क्या है और अधर्म क्या है?  सच्चाई क्या है और बुराई क्या है?  ऐसी दशा में इन लोगों के बारे में मैं अगर साफ़-साफ़ तरह से नहीं कहुँगी तो आपका बचाव कैसे होगा। बहुत से लोग मुझे सलाह देते हैं कि माँ, आपको इतना साफ़ कहना नहीं चाहिये। लेकिन अगर माँ नहीं कहेगी तो कौन आपको बतायेगा?  माँ को ये बात जरूरी बतायें। क्या आप सोच सकते हैं कि आपकी माँ कहेगी कि, ‘अच्छा, जा कर बेटा तू साँप के मुँह में हाथ डाल दे। 

किसी की भी ऐसी माँ इस भारतवर्ष में है जो कहेगी कि, अच्छा, ठीक है ये साँप है, उसके मुँह में डाथ डाल। जिनको इलेक्शन लड़ना है या कुछ पाना है वो इस तरह की बातें करेंगे, वो कॉम्प्रोमाइज करेंगे। वो समझौता करेंगे लेकिन एक माँ जो अपने बच्चों से नितांत प्रेम करती है, वो कभी भी ऐसी बातें नहीं कह सकती जो बातें अपने बच्चों के लिये हानिकारक हैं और उसे किसी का डर भी नहीं है। ये लोग कर भी क्या सकते हैं?   कुछ भी नहीं कर सकते। सिवाय इसके कि भूले-भटके हमारे जो बच्चे हैं, उनको पकड़ कर के उनको सताते रहते हैं। उसी प्रकार अनेक दुष्ट गुरु लोगों ने इस कलियुग में जन्म लिया है। ये भी पूर्व जन्मों के नरकासुर, महिषासुर, और सारे चण्डमुण्ड, जिन-जिन का आप नाम ले रहे हैं उनसे भी अधिक मात्रा में सब के सब पैदा हुये हैं। उनमें से सोलह महामुख्य राक्षस लोग इस संसार में आये हैं। रावण का भी आगमन हो चुका है। सारे ही लोग स्टेज पर आ चुके हैं। अब इनको मारा कैसे जाए?   इनका कर्दनकाल तो आ गया, लेकिन मारा कैसे जाए?   हाथ में तलवार ले कर काट तो सकते हैं, कोई मुश्किल काम नहीं। लेकिन वो जनसाधारण के हृदय में घुस गये हैं। उनके मस्तिष्क में घुस गये हैं। उसके अन्दर जमा हो कर के बैठे हये हैं। उनको ये लोग गुरू मानते हैं, तो मैं क्या कहूँ?   क्या मैं अपने बच्चों की भी गर्दनें काँट दूँ इनके साथ?   तो बेहतर ये है कि इन्हीं को जनता से ही एक दिन हार खानी पड़ेगी। यही पूरी तरह से, सब के सामने स्पष्ट हो कर के इनका स्पष्टीकरण होगा, एक्सपोजर होगा। और लोग देख कर के समझ लेंगे, कि जो माँ इनके बारे में कहती थी एक-एक बात सही है। 

जर्मनी में एक साहब ने गुरुओं के खिलाफ़ लिखा कि ये ऐसी कोई चीज़ है कि इसमें एक गुरु को मानते हैं और फिर दुनिया में कोई चीज़ को नहीं मानते। अब वो आधे-अधूरे लोग हैं। वो नहीं जानते कि हमारे देश में अनेक वर्षों से, अनंत काल से गुरुओं के बारे में बताया गया है कि एक तो होते हैं सद्गुरु। जो कि आपको परमात्मा से मिलाते हैं। ‘सद्गुरु वो ही जो साहिब मिलै’। जो आपको परमात्मा से मिलाता है वो सद्गुरु, फिर गुरु जो कि परमात्मा के बारे में बातचीत कर के आपमें धर्म बिठाता है। फिर अगुरु जिनमें गुरुत्व नहीं है, जो आत्मसाक्षात्कारी भी नहीं है। तो भी वो अपने को गुरु समझ कर के और लोगों को बातें बताते हैं और पैसा हैसा भी लेते होंगे।  

जैसे हमारे पाद्री साहब हैं, समझ लीजिये या पोप साहब हैं, ये लोग अगुरु हैं। इनमें कोई भी इनकी कुण्डलिनी जागृत नहीं हुई है, इनमें कोई विशेषता नहीं है। और धर्म के नाम पे चर्चा करते हैं। ऐसे अपने देश में बहुत से लोग हैं, अधिकतर अपने सारे शंकराचार्य ऐसे ही हैं। एक शंकराचार्य काँची के जो पुराने छोड़ कर के, सब शंकराचार्य बिल्कुल अगुरु हैं। उनकी कुण्डलिनी तो नीचे में बैठी हुई है और जिनकी कुण्डलिनी भी नहीं चढ़ी हुई उनको हम लोग गुरु मान लेते हैं। क्यों मान लेते हैं?   इनका इलेक्शन होता है, इलेक्शन हो सकता है गुरु का।   परमात्मा से ये आनी चाहिये ना चीज़। समझने की बात है, ये तो चीज़ परमात्मा से आनी चाहिये। फिर उसके बाद में होते हैं, जिनको कहा जाता है, कुगुरु। वो वो लोग होते हैं, जो ये तांत्रिक हन्त्रिक, जो राक्षसी प्रवृति के, अत्यंत दष्ट स्वभाव के लोग होते हैं। वो अपने को गुरु मान लेते हैं। और ऐसे बहुत से गुरु जिन्हें कि हम अत्यंत दुष्ट, दुराचारी इस तरह के लोग आज गुरु बन के बैठे हैं। और इस बंग देश में तो सब के सब आ के न जाने कैसे, जैसे गंगाजी सब हिमालय से अपनी जड़ीबूटियाँ ले कर यहाँ पहुँची हुई हैं। ऐसे ये न जाने कहाँ से सब मिलजुल कर के बंगाल में आ कर बैठ गये हैं। और बंग देश को पूरी तरह से गरीब बना दिया, इनको लूट लिया। इस सस्य श्यामला भूमि में उन्होंने जो-जो हरकतें की हैं, वो हम जानते हैं  क्योंकि सूक्ष्म में आप देख नहीं सकते।  आप सोचते हैं कि नॅक्सलाईटों ने ये किया, और  कम्युनिस्टों ने ये किया और काँग्रेसवालों ने ये किया और अमके ने तो किया।  इन लोगों का किसी का दोष नहीं। ये वातावरण जो खराब हो गया है, वो वातावरण खराब करने वाले ये तांत्रिक, ये दृष्ट आदमी हैं। और उनसे भी बढ़ के जो महा,दुष्ट राक्षश, जिनका वर्णन है कि देवी ने जिनको मार डाला, वो भी यहाँ पूजे जाते हैं। महिषासुर अभी तक जिंदा बैठा हुआ है और महिषासुर को भी यहाँ बहुत पूजा गया है। जिसको देवी ने यहाँ मारा, उसी महिषासुर को आपने पूजा है! नरकासुर को भी इतना पूजा है कि उसको करोडों रुपये आपने दे दिये। उसके पास न जाने कितने तरह के रत्न हैं और (अष्पष्ट) कितने हीरे भरे हुये हैं। ऐसे महा दुष्ट लोगों को आपने पोसा हुआ है। तो आप लोग तो गरीब हो ही जायेंगे।   ये तो पूरा यही हुआ कि ‘आ बैल मुझको मार।’ और आप अपनी बुद्धि से नहीं समझ पाते हैं कि ये लोग कितने दुष्ट हैं। आज पूजा के समय में एक माँ को चाहिये कि बताया जायें।  कि पूजा के लिये सब से पहले जाना जाय कि आप ही अपने गुरु हैं। और किसी को गुरु बनाने की जरूरत नहीं। हम तो कोई गुरु वुरु नहीं हैं। क्योंकि गुरु अगर होते तो आप लोग परेशान हो जाते। लेकिन माँ से बढ़ के गुरु कौन है?  माँ तो सब गुरुओं की भी माँ है। और आप चाहें तो हमारे चरणों में बैठें, चाहे हमारे गोद में बैठें, चाहे हमारे सर पे बैठें हमारे आप बच्चे हैं, बात और है। तो भी ये बात कभी भी नहीं मानी जायेगी कि कोई राक्षस या जिसे हम लोग कहते हैं कि निगेटिव पर्सनॅलिटी वो आ कर के आप पे छा जायें। ऐसा अगर घटित हुआ तो फौरन हम आपको बतायेंगे, ‘ये चीज़ आप छोड़ दीजिये।’ जिसके लिये आपको बुरा मानना नहीं चाहिये। क्योंकि हम माँ हैं आपको मोक्ष देना तो हमारा स्वभाव है। उसमें कोई विशेष बात नहीं, लेकिन आपको किसी तरह का हम दुःख नहीं देना चाहते हैं। किंतु अगर आपको सत्य न बताया जाए तो आगे चल के तो आप दु:ख ही पाईयेगा। और सत्य शुरू में प्रिय नहीं लगता है। इसलिये कृष्ण कहा है कि, ‘सत्यं वदेत्, हितं वदेत्, प्रियं वदेत्’। जो आपके हित में है  सो हमें आपको बताना ही है, क्योंकि आप हमारे अपने हैं, हमारे निज के हैं।  थोडी देर हो सकता है आप मुझ से नाराज़ हो जाए, कोई हर्ज नहीं। आप बच तो जायेंगे, आपके दिमाग में बात तो बैठेगी। इस देश का नाश जो हुआ है, वो इसी वजह से। और इतने प्रचुर मात्रा में आपको दिखायी देते हैं, कि आश्चर्य की बात है कि अभी तक ये लोग कैसे यहाँ जीवित बैठे हुए हैं, इनके भी इलाज हो जाएंगे। लेकिन पहले आप लोग इनके चक्करों से निकलिये, नहीं तो मेरा हाथ रूक जाता है। इनके सबके इलाज एकसाथ हो सकते हैं। लेकिन आप लोग मेरे लिये एक बंधन बन जाते हैं। इस प्यार और मोह की वजह से मैं आप से कह रही हूँ, कि कृपया इन लोगों से अपना संबंध पूरा तोड़ दें। और कोई भी तरह की इनकी वस्तु, इनका चित्र, इनका दिया हुआ प्रसाद जो सब विषमय है उसे छोड़िये । 

आज पूजा से पहले क्या कहा जाए,  इतना हृदय गद्गद् है।  कि इतनी सुन्दर रचनायें, इतना सुन्दर आवाहन, इतना सुन्दर स्वागत आप सबने अपने हृदय से किया है। हृदय एकदम गद्गद् हो गया। सब कहते हैं कि  माँ प्रसन्न हैं। लेकिन न जानें क्यों आँखों में इतने आँसू भर आये हैं और गला भी भर आता है।   सोच-सोच के कि इतने मेरे प्यारे बच्चे यहाँ रह रहे हैं। आपकी सारी विपदा खत्म हो सकती हैं, आपकी सब तकलीफ़ें बिलकुलमिट सकती हैं। क्योंकि परमात्मा जो हैं सर्वशक्तिमान हैं । उनसे शक्तिशाली कोई नहीं और उनसे प्रेम करने वाला भी कोई नहीं। अत्यंत प्रेमी और शक्तिशाली ऐसे परमात्मा आपके अपने होते हुए, आपको किसी चीज़़ की क्या जरूरत है या किसी चीज़ का क्या डर है। बस एक ही बात में हार जाते हैं  कि आपको स्वतंत्रता है। आपकी स्वतंत्रता हम छीन नहीं सकते।  क्योंकि आपको परम स्वतंत्रता जब देने की बात होती है, तो इस स्वतंत्रता का पूरी तरह से आदर किया जाता है। पर उस आदर में ही मनुष्य खो जाता है। मनुष्य बहक जाता है और ऐसे लोगों के पास चला जाता है, जो आपके जीवन के दुश्मन हैं, आपके शत्रु हैं। अनेक हजार वर्षों से इन दुष्टों ने इन भक्तों को सताया हुआ है और आज भी सता रहे हैं। लेकिन वो ऐसा सोंग बना के आये हैं और ऐसी खुबी से आये हैं, की आप उसे पहचान नहीं सकते। सीताजी को भी रावण ने भेष बदल कर के भूल में डाल दिया था, तो आप तो मानव जाति हैं। आपको वो अगर भूल में डालते हैं, तो इसमें आपका दोष नहीं। पर पार होने के बाद, रियलाइजेशन के बाद आपको अपने पाँव पर खड़ा हो जाना चाहिये। और इन सब चीज़ों को छोड़ कर, झाड-झूड कर के एकदम स्वच्छ हो जाना चाहिये। आपकी कोई सी भी परेशानी टिक नहीं पायेगी। प्यार की शक्ति सबसे महान है, इसको आज तक हमने इस्तेमाल नहीं किया है, ये आप जान लीजिये। और जिस दिन आप इसको समझ लेंगे कि इस प्यार की शक्ति से आप प्लावित हैं  और आप जब इसका उपयोग करेंगे।  आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे, कि लगेगा कि जैसे तारांगण आपके पैर पे लोट खा रहे हैं। सारी शक्तियाँ आपके चारों तरफ़ हैं, सारे गण आपको सम्भाल रहे हैं। सारे देवदूत आप पे पुष्प की वर्षा कर रहे हैं। आप ही आज इस रंगमंच पे, इस स्टेज पे आये हैं। आपके लिये ही सारी सृष्टि बनायी गयी है। और उस सृष्टि के सर्वोच्च लोग आप ही हैं। और किस के लिये परमात्मा ने सृष्टि बनायी है! लेकिन जो-जो गलत काम हो चुके, जो-जो गलत बातें हो गयी, वो सब भूल कर के आज वर्तमान काल में खड़ा होना है। इस प्रेझेंट में खड़ा हो कर के और उस आनन्द का भोग लेना है। उस अमृत का भोग लेना है, जो आपके लिये लालायित है। स्वयं साक्षात् परमेश्वर चाहता है, कि आप उसके दरबार में आयें और अपने-अपने स्थान पे आसन ग्रहण करें। और वो यथोचित आपका आादर कर के आपको हर तरह का आनन्द प्रदान करें। एक बाप यही चाहेगा और वही वो चाहते हैं और पूर्णतया वो आपके साथ हैं। 

आज यहाँ जो हरियाली देख रहे हैं हम, बड़ा सुन्दर सा रचाया हुआ बाग है। ऐसा ही परमात्मा का बाग है समझ लीजिये। और उसमें हर तरह के फूल, हर तरह का आनन्द,  प्रमोद, मोद सब कुछ भरा हुआ है। बस उसमें बैठने की आपकी क्षमता चाहिये और उसका आनन्द भोगने की गहराई। इतनी होते हुए सब ठीक हो जाता है। यहाँ के लायन क्लब के लिये क्या कहा जाए! मेरे ख्याल से जन्मजन्मांतर का संबंध सिंघ से रहा है। और सिंघ पे ही इतना काम किया गया है इसलिये लायन क्लब से मेरा इतना संबंध जुट गया है। आपका ये बड़ा ही सुन्दर उद्यान है। और इस वाटिका को भी और बहुत सुन्दर आप बना सकते हैं। 

एक बार एक अमेरिकन औरत ने मुझ से पूछा था, कि आपके यहाँ कोई फूल नज़र नहीं आते। मैंने कहा, हमारे देश के फूल बहुत छोटे-छोटे होते हैं, पर अत्यंत सुगंधमय होते हैं। वो बहुत ज्यादा दर्शनी नहीं होते, शोई नहीं होते, जैसे आपके फूल होते हैं। हर फूल में चमत्कार और मंत्र है।  और उन्होंने कहा, ‘अच्छा, फिर बताईये कि आपके यहाँ कितने तरह के फूल होते हैं?   वहीं बैठे- बैठे मैंने उनको चालीस फूल बता दिये और हर फूल में अत्यंत सुगंध है। अब मैं देखती हूँ कि यहाँ भी आपको चाहिये कि ऐसे-ऐसे फूल जैसे कि चमेली है, चंपा है और पारिजातक है। इसका वर्णन आपको देवी माहात्म्य में मिलता है। अनेक तरह के ऐसे सुन्दर-सुन्दर फूल हैं। प्राजक्त के फूल हैं, अनंत के फूल हैं। अपने देश में ऐसे अनेक फूल हैं, और जिसकी बड़ी-बड़ी शाखायें बढ़ जाती हैं। और सबेरे-सबेरे देखिये तो सब दूर आँगन में वो छाये रहते हैं। आपने, जिसे हम लोग बकुल कहते हैं, यूपी में उसे मौलसिरी कहते हैं उसका भी पेड़ बहुत सुन्दर होता है। जास्वंद के, अनेक तरह-तरह के सुगंधमय पेड़ आप लगा सकते हैं। जापान में एक स्त्री से मैंने कहा कि, ‘आपके बाग बहुत सुन्दर हैं, मुझे बड़े पसन्द हैं। कहने लगी, ‘सुन्दर तो हैं, लेकिन आर्टिफिशिअल हैं, नैसर्गिक नहीं हैं।’ और इंडियन किसी भी बाग में जायें तो बड़ी सुगंध रहती है और सुगंध अपने देश की विशेषता, इस मिट्टी की विशेषता। आपको आश्चर्य होगा हम लोग इसे समझ नहीं पाते।  कि खस में भी इतनी सुगन्ध है और हर चीज़ में इतनी सुगन्ध है। हम लोगों को पता नहीं कि बाहर के देशों में आप मिट्टी में हाथ नहीं डाल सकते। अगर डाल दीजिये तो हाथ में फोड़े आ जायेंगे, ब्लिस्टर्स आ जायेंगे।  क्योंकि वहाँ की जमीन जो है, वहाँ के पाप से तप्त हो गयी। तप्त होने के कारण वहाँ चूना है, आप कहीं हाथ नहीं डाल सकते। जब तक आप ग्लव्हज न पहनिये, आप मिट्टी में हाथ नहीं डाल सकते। लंडन में तो मैंने पहले सोचा था, कि मैं वहाँ बाग करूंगी। क्योंकि शाकंभरी का मुझे शौक है, तो मैं चाह रही थी कि वहाँ बाग किया जाये। लेकिन जब देखा कि वहाँ की मिट्टी ऐसी है, तो मैंने छोड़ दिया। मेरा तो शौक ही वहाँ छूट गया। मैंने कहा बाबा अपने हिन्दुस्तान में जा के ये सारा काम करेंगे, ये तो जमीन कुछ और ही है। इस जमीन पर आप खड़े हुये हैं इसकी एक-एक कण-कण से इतना सुन्दर सुगन्ध बहता है। जब जरा सी बरसात हो जाती है तो कितना सुन्दर सुगन्ध इस सुन्दर भूमि से आता है। और आप लोग भी कुछ न कुछ पूर्व पुण्याई से इस देश में पैदा हुये हैं और इस देश में बसे हुये हैं। सिर्फ इस पुण्याई को पूरी तरह से प्रकाशित करना है, प्रगटित करना है। जो आप सहजयोग से आसानी कर सकते हैं। रही बात हमारी, तो हम तो आते जाते रहते ही हैं, हर जगह आते-जाते हैं। लेकिन बंगाल से हमारा प्रेम बहुत पुराना है, बहुत पुराना है। अनेक वर्षों की बातें हैं, जो आप लोग बहुत कुछ जानते हैं, कुछ जानते नहीं। बड़ी कठिन बातें हुई हैं। बहुत तकलीफ़ें उठायी और इसको इतना समृद्ध किया और इसका इतना सुन्दर बन बनाया। और उसके बाद आप देखते हैं कि यहाँ पर इतनी गरीबी, इतनी परेशानी, इतनी आफ़त। जहाँ पर ये भूतविद्या होगी,  जहाँ-जहाँ पर ये भूतविद्या होगी वहाँ-वहाँ गरीबी रहेगी। अब आप कहेंगे कि यहाँ टायफून आते हैं और आप लोग उससे नष्ट हो जाते हैं। 

अब आपको मैं एक किस्सा सुनाती हूँ। मैं एक बार त्रिचूर गयी थी। वहाँ पर बहुत से लोग मुझे लेने आये। वहाँ बहुत रईस लोग रहते हैं, मोटरें वोटरें ले कर आये। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ, कि ये सब मेरे पास किसलिये आये?   पता हुआ कि ये लोग वहाँ तम्बाकू की खेती करते हैं। उनके घर में सब इंग्लिश टाईल्स लगी हुई, सब इंग्लिश बाथ लगे हुये।  सब ये लोग इंग्लंड तम्बाकू भेजते हैं। और वहाँ से, इंग्लंड से सभी चीज़ें इंपोर्ट कर-कर के अपने घर में बड़ी शान से लगाये हैं। अब भई,  हमको तो जरा साफ़ कहना ही पड़ता है, चाहे बुरा मानो, चाहे भला मानो। तो हमने कहा, भाई, ‘आप लोग मोटरें वोटरें ले कर आये,   हमें तो कुछ कहना नहीं चाहिये,  अतिथि रूप से तो भी कुछ कहना नहीं चाहिये।   लेकिन हम माँ स्वरूप हो कर के आप से कहते हैं कि आप ये तम्बाकू लगाना बंद कर दो, ये गलत है। तो उन्होंने कहा, ‘वाह माँ, हम तम्बाकू के अलावा और क्या लगायें।’ तो मैंने कहा, ‘आप कपास लगाईये। बढ़िया कपास यहाँ होगा, तम्बाकू मत लगाईये, तम्बाकू राक्षसी है। इसको मत लगाईये।  तो कहने लगे कि, ‘नहीं, हम थोड़ी पीते हैं, ये तो हम इंग्लंड भेजते हैं।’  मैंने कहा, ‘वाह, अगर इंग्लंड भेजते हैं तो कोई पाप नहीं?’  तो कहने लगे कि, ‘उन्होंने अपने को इतना सताया, पीने दो तम्बाकू और मरने दो उनको।’ तो मैंने कहा, ‘ये कोई तरीका हुआ?’  ये कोई साधु-संतों का तरीका हुआ कि उनको मरने दो, उन्होंने अपने को इतना सताया। जिन्होंने सताया वो तो कब के मर गये। ये तो दूसरे आये हुये हैं। उनको सताने से क्या फायदा?   लेकिन वो किसी भी तरह से नहीं माने। लेकिन जब मैंने कहा कि नहीं, इसको बंद करना पड़ेगा, ये ठीक नहीं है। तो वो लोग बहुत नाराज़ हो गये।  उसके बाद हम इधर-उधर देखने गये तो देखा की बड़ी गरीबी है। एक तरफ़ बहुत अमीर लोग और एक तरफ़ बहुत ही गरीब लोग, बंगाल से भी गरीब लोग। पेड़ पे रहते हैं, मैंने कहा कि भई, ‘ये कैसे ?’ कहने लगे, ‘ये लोग हैं ये बड़ी प्रेतविद्या करते हैं, स्मशान विद्या करते हैं। ऐसा करते हैं, वैसा करते हैं। उसी से पैसा कमाते हैं।’ मैंने कहा, ‘पैसा क्या कमाते हैं, वो तो पेड पे रहते हैं। उनकी हालत तो ये है।’ उसके बाद मैंने उनसे बात कही,  इशारा, ‘देखिये आप समुद्र के किनारे बैठे हैं, सम्भल के रहिये। समुद्र आपका पिता है और जो पिता है वो अत्यंत पवित्र है। उसके किनारे बैठ कर के आप ये गड़बड़ काम मत करिये। अगर ये बिगड़ गया तो आप सब का सर्वनाश हो जायेगा।’ तो उन्होंने कहा कि, ‘ऐसे कैसे हो सकता है?’  मैंने कहा, ‘हो जायेगा, देख लीजिये। एक तो हमने आपको चेतावनी अब दे दी। अब चेतावनी के बाद फिर अगर गड़बड़ हुई है तो फिर हम से न कहना।’ उसी साल वहाँ पर एक बहुत बड़ा,  इसी तरह का एक टायफून का नाना आया और वो सबको लटका गया। सब लोग पेड़ पे लटक गये, हजारों लोग मर गये। उसके बाद जब मैं दिल्ली आयीं तो सब मोटरे ले के दिल्ली पहुँचे कि, ‘माँ, हमको माफ़ कर दो।’ हमने कहा, ‘बेटा क्या माफ़ करने का?   जो था सो वो तो गया। ये तो गड़बड़ का तुमने काम करा, मैंने तुमको चेतावनी दी।’ यही मैं कह रही हूँ, कि चेतावनी आ रही है अब कि ये गलत लोगों को यहाँ से हटाईये। और वहाँ के जो गरीब लोग जो ये करते थे, प्रेत विद्या, स्मशान विद्या आदि वो सब के सब पेड़ पे लटके हये नज़र आये। तो जिस वक्त ये काली विद्यायें और इस तरह की चीज़ें चलती हैं तो वो सकिंग कर लेती हैं, वो अपने अन्दर खींच लेती हैं। इस तरह के आतंक को जो बाहर से आ कर के सब को नष्ट भ्रष्ट कर देता है। 

हालांकि हमारे आने से पहले अधिकतर ऐसा होता है, इंग्लंड में भी हमने देखा है। जहाँ भी हम जाते हैं  तो बड़ी बिजली गरजती है, बहुत बरसात होती है। सब एकदम साफ़ धुल जाता है तो हम पहुँचते हैं। लेकिन तो भी लोगों की समझ में नहीं आता है, कि हमें अपनी सफ़ाई खुद ही करना चाहिये। क्यों सृष्टि से कहा जायें?   कभी-कभी वो भी ऐसा हो जाता है कि उसमें बहुत कुछ नष्ट भी हो सकता है। इसलिये अगर आप ही सत्य को मान ले और स्वीकार्य कर ले और अपने को सत्य के रास्ते पर, सफ़ाई पर ले आये तो सत्य कहीं और से प्रगट हो,  तो बड़ा भयंकर होता है। बहुत जोरो में उठता है वो और उसकी जो चाल होती है उसके अन्दर बहुत से अनाथ, दुःखी, बेसहाय, और बेगुनाह लोग भी मारे जाते हैं ।  इसलिये बेहतर है कि इन्सान ही सत्य पे आ जाये और इन्सान ही अपने को साफ़ कर दे। न कि सारी चराचर सृष्टि में ये बात फैल जायें कि चलो अब कोलकाता को ठिकाने लगाना है तो यहाँ आठ-दस को मारों। और उसका कोई फायदा तो होता नहीं। कोई उसको समझता भी नहीं। कोई इस भाषा को इनकी समझता नहीं है। सब लोग सोचते हैं कि हम तो रोज देवी के मन्दिर जाते हैं फिर ये प्रकोप क्यों हो गया?  उस देवी के मन्दिर में भी वहाँ बैठे हुये हैं राक्षस। बिल्कुल उनके सामने बैठे हुये हैं, बड़ी हिम्मत कर के बैठे हुये हैं। हालांकि जिस वक्त देवी जागृत होंगी तो पता चलेगा, एक-एक का ठिकाना हो जायेगा। एक बार गंगा जी में जागृति आयी थी तो सब, जितने भी ऐसे पंडे वनडे लोग थे, सब अपनी खटिया उठा के, सामान ले के भाग रहे थे।  मैंने देखा था टीवी में,  मैंने कहा, अच्छा हुआ! गंगाजी ने ठिकाने लगा दिया सब को। जितने भी हरिद्वार से ले कर के पटने तक, जितने भी लोग थे, सब अपने झोले उठा कर के भाग रहे थे। लेकिन तो भी मनुष्य सीखता नहीं है। अगर उस पे निसर्ग से कोई उपचार हो, तो वो सीखता नहीं है । सिर्फ वो सीखता है अपनी आत्मा से। इसलिये आप सहजयोग को प्राप्त हों। 

कोई सी भी ऐसी बीमारी नहीं जो सहजयोग ठीक न कर सकता। कोई सी भी ऐसी विपत्ती नहीं जो दूर नहीं हो सकती। हर तरह की मुश्किलें दूर हो सकती हैं। लेकिन पाने के बाद श्रद्धा होनी चाहिये, जो अंधी श्रद्धा नहीं है। देखी हुई बात है, आपने पाया है। आप अपने में बिराजमान होइए, आप स्वयं अपने सिंहासन पर बैठिये। आपने पा लिया है, आप क्यों अब भी भिखारी जैसे बैठे हैं?   आप आराम से समझ लीजिये कि आप परमात्मा के साम्राज्य में हैं और उसके सिंहासन पर बैठिये। और उसके आशीर्वाद से, पूरी तरह से, बेफिकर हो कर के, अपनी जिंदगी का सब से अत्युत्तम जो कुछ भी है उसे पाईये। उसमें मैं ये नहीं कहती कि कोई आप संन्यासी भाव से बैठेंगे या कोई आपका सब कुछ छूट जायेगा, कुछ भी नहीं। लेकिन आप की उपभोग शक्ति जो है, वो बढ़ जाती है। जैसे कि अब यहाँ पर आपने देखा कि यहाँ एक बहुत सुन्दर सा एक चर्म बिछा हुआ है और ये चीते का बनाया है। अब आप लोग सोच रहे होंगे कि ये किसने मारा, ये किसका बनाया है, क्या है, क्या नहीं?  लेकिन हम इसको देखती ही साथ निर्विचार हो गये, हम कुछ सोचते नहीं हैं। हम तो ये देख रहे हैं कि बनाने वाले की करामात कि क्या कमाल की चीज़ बनायी है! और न सोचते हैं न कुछ नहीं। सारा आनन्द जो उपर से नीचे तक दौड़ा चला आता है। तो हम तो भोक्ता हुये असली। ये सुन्दर सा बना हुआ है सब कुछ। कुछ इसके बारे में सोचते नहीं हैं। बस इसे देख भर रहे हैं। और देखते हैं कि इसका बनाया हुआ आनन्द, जिस आर्टिस्ट ने इसको अपने हाथ से बनाया है वो सारा ही आनन्द हमारे अन्दर झरा चला रहा है। उसके बारे में कुछ भी नहीं सोचा, कुछ भी नहीं जाना। बस, ये बनाने वाले की जो सूक्ष्म शक्ति है जिससे ये आनन्द उसने  इसमें डाला है, वो सारा ही आनन्द हम अपने अन्दर ले रहे हैं। तो भोक्ता आप बन गये, सब चीज़ों का भोग आप ले सकते हैं। अभी तक जो भी प्रॉपर्टी है तो भी हाय तोबा है। जो भी सामान है तो भी हाय तोबा है। इन्शुरन्स में लिखाया, इधर लिखाया। उसके पास लिखाया, बिल बनाया और क्या-क्या दुनिया भर की चीजें करते रहते हैं। और ये परेशानी कि चोर न ले जायें, न कुछ हो जाये। हम तो किसी के भी नाम भी कोई चीज़़ हो, अब ये लायन क्लब के नाम है समझ लीजिये, लेकिन हम तो इसको पूरी तरह से भोग रहे हैं। चाहे आपके नाम से हो, चाहे किसी के नाम से हो, भोगने का काम तो हमारा है। हम इसे पूरी तरह से भोग रहे हैं। इसी प्रकार आप को भी अपनी भोगने की शक्ति अपनी बढ़ानी चाहिये। इसमें छोड़ने छाड़ने का क्या है, जब किसी चीज़ को पकड़ा ही नहीं तो किस चीज़ को छोड़ना है और किस चीज़ का संन्यास लें। थोड़ी बात बढ़ती है, लेकिन कहना पड़ेगा क्योंकि आप सहजयोगी हैं। आपसे ही ये बात कही जायेगी। ये ही बात मैं अगर जनरल पब्लिक में कहूँ तो ५०% लोग उठ कर के भाग जायेंगे। 

दूसरी बात ये कहने की कि आपको सब चीज़ भोगना है। लेकिन उससे भी आगे मैं ये बात कहँगी कि सिर्फ आपको भोगना ही नहीं है लेकिन आपको इसी जिंदगी में, यहीं पर मजे से जम के रहना है, कहीं भागना नहीं है। कोई पलायनवाद नहीं है  कि आप गेरूवा वस्त्र पहन कर के अगर आये तो आपके वाइब्रेशन्स गये। रावण भी तो आया था गेरूवा वस्त्र पहन कर के। विशेष कर गेरूवा वस्त्र से मुझे बड़ी चीड़ है। काहे को सन्यास ले रहे हो?  क्या आपकी माँ नहीं है?  आपकी माँ सामने बैठी हुई है। आपकी क्या मजाल है कि आप संन्यास ले लेंगे! इससे बढ़ के माँ के लिये क्या दु:ख की बात होगी। अगर किसी माँ को दुःख देना है तो आप कहेंगे कि, ‘माँ, कल से मैं संन्यास ले रहा हूँ।’ वो कहेगे कि, ‘बेटा, तुझे जो चाहिए सो ले ले, माफ़ कर।’ ये समझ लीजिये कि मैं आपकी माँ हूँ। और माँ को सुख काहे से होता है, वो भी समझ लेना चाहिये और दु:ख काहे से होता है। 

अब दूसरी जो बात है, ये उपवास करने की बीमारी, जो हमारे अन्दर बना दी है।  ये बिल्कुल गलत बात है कि आज शनिवार तो उपवास, कल रविवार तो उपवास। किस दिन आप खाना खाते हैं भगवान जाने! अगर आपको ऐसे उपवास का शौक है तो करिये। भगवान कहता है, ‘अच्छा चलो, हिन्दुस्थानियों को बड़ा उपवास का शौक है।’ तो उपवास ही में मार डालता है। क्योंकि आपको शौक है तो वही करिये। लेकिन अगर माँ को दुःख देना है तो लड़का कहता है कि, ‘माँ, मैं आज खाना नहीं खाऊंगा।’ हो गया, माँ का तो सारा दिन खराब गया। बच्चे ने कह दिया कि खाना नहीं खाऊंगा तो बड़ी बूरी बात है, उसके तो प्राण निकल गये। ‘अरे बाप रे, आज कैसे होगा?   मेरी जान गयी अब तो मेरे बच्चे ने खाना नहीं खाया।’ सारे दिन वो टेप लगा के बैठेगी कि अरे मेरे बच्चे ने खाना नहीं खाया। सारी दुनिया को बतायेगी, पेड़ को बतायेगी, पत्तों को बतायेगी, सबको बतायेगी , मेरे बच्चे ने खाना नहीं खाया। और इस देश में मैं देखती हूँ, जो देखो वही उपवास करता है। तो मेरी तो समझ नहीं आता कि मैं क्या करू?   कैसे समझाऊँ, ‘बाबा, क्यों ऐसा कर रहे हो?’   आराम से खाओ, आराम से पिओ। लेकिन पीने का मतलब गलत नहीं लेना है। जो चेतना के विरोध में बात जाती है वो नहीं करने की। ये सब इसलिये बनाया गया है, कि आप तो भूखे रहो और जो पैसा बचे सो मेरी जेब में दो। 

तो उपवास सहजयोग में मना है, ऐसे ठीक है आपका मन है, आपकी तंदुरुस्ती के लिये कभी खाना नहीं खाना तो नहीं खाओ। और कभी खाना खाना है तो खाओ। जैसे आपको कभी , कहीं जाना हो, किसी के घर और आपको नहीं मन कर रहा उसके घर खाना खाना, तो आप कह दीजिये, ‘मुझे उपवास है।’ तो ठीक है, वो छोड़ देते हैं आपको फिर। इस तरह से आप उपवास करे तो हर्ज नहीं। मतलब उपवास आप अपने लिये करिये। ये नहीं कि उपवास के लिये आप जी रहे हैं । सब चीज़ आपके हाथ में है जब चाहे उपवास करेंगे, नहीं तो नहीं करेंगे। कौन कहने वाला है। ये टाईम ऐसा है, वो टाइम ऐसा है। हम तो मस्ती में बैठे हुए हैं। कोई कहेगा अब खाओ  तो आप खा लेंगे, नहीं तो नहीं खायेंगे। क्योंकि खाने की तरफ चित्त ही नहीं होना चाहिये। और अगर आप पूछेंगे कि क्या खाया, तो मुझे सोचना पड़ेगा, क्या खाया कि नहीं खाया। खाने की तरफ चित्त होने से ही आदमी उपवास करता है। अगर उधर चित्त नहीं हो तो उपवास नहीं करेगा। क्योंकि वो बहुत बार उपवास भी कर जाता है, उसको पता ही नहीं चलता उसने उपवास किया कि खाया। सिर्फ अपना चित्त जो है खाने में से निकालना चाहिये। क्योंकि हमारे भारतीय लोगों में एक बात है कि खाने में बड़ा चित्त है। बीबी भी बड़ी होशियार है यहाँ की, स्त्रियों को बड़ी अकल है। वो कहती है कि ‘चलो इनको ऐसा खाना बना के खिलाओ की ये हमारे चंगल में फँसे रहें।’ कहीं भी जायेंगे दौड़ के घर आ जायेंगे। क्योंकि खाना बनाना हिन्दुस्थानी आदमियों को नहीं आता।  तो औरतों ने उनको ऐसा बना दिया कि वो खाना बना नहीं सकते और बीबी क्या बना रही है इधर ध्यान।  तो बीबी इसी पर आपको पटा लेगी और इसलिये चित्त हमारा ज्यादा खाने पर रहेगा ही! पर और लोगों में ऐसा नहीं। जैसे जापनीज लोग हैं, वो देखेंगे कि वस्तु कैसी बनी है सुन्दर है या नहीं। इसमें रूप है या नहीं। खाने पे वो चित्त नहीं देते। लेकिन हमारा हिन्दुस्थानियों का मुख्य धर्म है खाना।  कि कौनसा खाना बना है आज घर में! या किसी ने कहा भई कि  मेरे घर ये अच्छा खाना बनता है।’ तो पहुँच गये वहाँ सारी मंडली सीधे। गाँवभर को पता हो जाता है कि आज कहीं खाना बन रहा है। सब मंडली पहुँच गयी खाने के लिये।   और खाने की वजह से प्यार भी औरतें बहुत प्रगट करती हैं। 

ऐसी मैंने हमारी ग्रॅण्डडॉटर ( granddaughter) से एक दिन पूछा कि, ‘तुम क्या करना चाहती हो।’ तो मुझसे कहने लगी कि, ‘मैं एअर होस्टेस होना चाहती हूँ और या तो मैं नर्स होना चाहती हूँ।’ मैंने कहा, ‘क्यों?’ कहने लगी कि, ‘नानी, इन्हीं दो प्रोफेशन में ऐसा होता है कि, आप लोगों को खाना दे सकते हैं।’ तो औरतों को बड़ा शौक है यहाँ की। ये कमाल है और कहीं नहीं ऐसा, कहीं नहीं है। आप लंडन में जाईयेगा तो तीन दिन में आपका आधा वजन हो जायेगा। वहाँ तो सब बॉइल्ड ही औरतें खाना देती हैं। तो हिन्दुस्थान की औरतों में ये भी एक खुबी है उनको बड़ा शौक है कि ये बना के खिलाये। मेरे साथ बड़ा अत्याचार होता है। ‘माँ, मैं आपके लिये स्पेशली बना के लायी हूँ रबडी।’ अब मैं रबड़ी खाती नहीं बाबा। तो खाने  पीने में हमारा चित्त जो है उसमें भी एक सुन्दरता है। लेकिन मैं कह ये रही हूँ कि उससे चित्त ही हटा लेना चाहिये, चित्त ही हटा लेना चाहिये। तो आदमी उस सूक्ष्म में उतर सकता है, जैसे कि शबरी के बेर श्रीराम ने इतने शौक से खाये। उसकी जो सूक्ष्मता थी वो श्रीराम ने कैसे पकड़ी। क्योंकि उसके अन्दर उन्होंने उसका प्यार, उसकी नितांतता, उसका आदर, उसका विचार सब देख कर के कितने शौक से वो खाये। यही बात हमारे अन्दर अगर आ जायेगी कि हम खाने की ओर चित्त न दे कर के  और उसके पीछे जो भावना है उसकी ओर ध्यान दें तो हम सहजयोगी हो गये। 

इस जनम में बहुत सी चीजें जो पिछली जनम में मैंने बहुत खायी और पी हैं वो सब छोड़ दी । जैसे वर्णन है कि देवी को श्रीखंड बहुत पसन्द है, मैं बिल्कुल नहीं खाती हूँ। और पूरणपोली पसन्द है, मैं बिल्कुल नहीं खाती हूँ। और दूध बिल्कुल नहीं पीती हूँ, सब चीजें जो होती थी सब छोटी-छोटी उस जनम में कर लिया, अब इस जनम में क्या खाने का! अब इस जनम में भूतों के खाने के लिये देखते हैं कि मेरे पास पेट में जगह ही नहीं रहती और कुछ खाने के लिये। आप लोगों से मिल कर बहुत आनन्द हुआ, जैसे बहुत बिछडे हुये मेरे सब कुछ मिल गये। इस कलकत्ता में एक बार जागृति आ जायेगी, तो आप देखेंगे कि यहीं पर सब चीज़ अत्यंत सुन्दर हो सकती है। और वो होनी चाहिये परमात्मा लालायित हैं आपको आशीर्वादित करने के लिये।   सिर्फ आप इसे झेल सकें, इतनी ही बात है। तो मेरी कोई बात का बुरा नहीं मानना। ये बात मैं कह रही हूँ वो सत्य है वो ही कह रही हूँ। उसको स्वीकार्य करना चाहिये। सबको मेरा अनन्त आशीर्वाद!