मैं सभी सहजयोगियों को नमन करती हूं।
इन खूबसूरत परिवेश में, आप में से कई लोग सोच रहे होंगे कि परमात्मा ने इन खूबसूरत चीजों को क्यों बनाया है। क्योंकि आप लोगों को इस धरती पर आना था और उस सुंदरता का आनंद लेना था, जो कि इसका एक कारण है। और अब ईश्वर आनंद और संतुष्टि के साथ बहुत अधिक तृप्ति और एक प्र्कार से अपनी इच्छापुर्ति को महसूस करते हैं।
“भगवान ने यह सुंदर ब्रह्मांड क्यों बनाया है?” हजारों वर्षों से ऐसा एक प्रश्न पूछा गया है।
कारण समझने में बहुत सरल है: यह जो सौंदर्य बनाया गया है वह स्वयं को नहीं देख सकता है। उसी तरह, सुंदरता का स्रोत ईश्वर अपनी सुंदरता को नहीं देख सकता है। जैसे मोती अपनी सुंदरता को देखने के लिए अपने आप में प्रवेश नहीं कर सकता। जैसे आकाश अपनी सुंदरता को नहीं समझ सकता। सितारे अपनी सुंदरता नहीं देख सकते। सूर्य अपना तेज नहीं देख सकता। उसी तरह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर अपने स्वयं के अस्तित्व को नहीं देख सकते हैं। उन्हे एक दर्पण की जरूरत है और इसी तरह उसने इस सुंदर ब्रह्मांड को अपने दर्पण के रूप में बनाया है।
इस दर्पण में उसने सूर्य की तरह अब सुंदर चीजें बनाई हैं, फिर सूर्य को अपना प्रतिबिंब भी देखना होगा। तो, उसने इन खूबसूरत पेड़ों को यह देखने के लिए बनाया है कि जब वह चमकता है, तो वे इतनी अच्छी तरह से ऊपर आते हैं और इतने हरे दिखते हैं।
फिर उन्होंने उन पक्षियों को बनाया है जो सुबह जल्दी उठकर सूर्य को नमस्कार करते हैं, इसलिए सूर्य जान जाता है कि: “हाँ, मैं वहाँ हूँ, मेरा अस्तित्व है”; या फिर उसने इन पेड़ों के लिए इन खूबसूरत झीलों को अपना प्रतिबिंब देखने के लिए और झीलों को उनके अस्तित्व को महसूस करवाने के लिए उसके भीतर घुमने वाली लहरों को बनाया है।
तब फिर उन्होंने इंसानों को बनाया। मनुष्य भी अपना सौंदर्य, अपना वैभव नहीं देख सकता। इसलिए वे अन्धकार में हैं, अज्ञानी हैं। वे नहीं देख पाते कि उनके भीतर क्या है। इसलिए वे किसी ऐसी चीज के पीछे भाग रहे हैं जो बिल्कुल उनके खिलाफ है, जो कुरूपता है, जो आत्म-विनाशकारी है। और हकीकत को पाने की जद्दोजहद इतनी होती है कि खुद को तबाह कर लेते हैं। जैसे लोगों ने इन नशीले पदार्थों का सेवन कर लिया है, सभी बुरी आदतों को अपना लिया है – इस जगह के बारे में, वे बतातें हैं कि बहुत सारी तस्करी चल रही है – और ऐसे ही सभी प्रयास, जो लोग केवल इसलिए करते हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि वे कौन सी खूबसूरत चीजें हैं।
तो अब उनके लिए एक आईने की रचना करना होगी, ताकि वे खुद देख सके कि वे कितने खूबसूरत हैं। उनका दर्पण उनकी आत्मा है। उस आत्मा को उनकी चेतना में, उनके चित्त में लाना है। अगर यह उनके चित्त में आ जाता है तो वे अपनी छवि देख सकते हैं। अब यह चित्त जो प्रबुद्ध चित्त के रूप में आता है, उसे संस्कृत भाषा में चिदभास कहा जाता है, जो ऐसे चित्त की अभिव्यक्ति है जो प्रबुद्ध है। लेकिन यह भी कहा जाता है कि ऐसी एक प्रवृति है कि, यह जो है बहुत क्षणभंगुर है, या, हम कह सकते हैं, जो हर पल प्रतिपल गायब हो रहा है। जब ऐसा हो रहा है तो क्या करना है? उसके लिए आपको अपने आप को ध्यान से स्थिर करना होगा, प्रबुद्ध बातों को सुनकर, जीवन की अच्छी चीजों निर्विचारिता मे देखकर, दूसरों की अच्छाइयों को भी देखना होगा और फिर आपको खुद में भी अच्छाई नजर आने लगेगी।
इसलिए मैं हमेशा कहती हूं कि किसी को दोषी भाव महसूस नहीं करना चाहिए, क्योंकि आप किसी ऐसी चीज के लिए दोषी महसूस कर रहे हैं, जो कि सिर्फ एक माया है। यह कुछ ऐसा है जैसे कि तुम इसलिये दोषी हो कि तुम्हारे पास छाया है।। इसलिए यदि आप जानते हैं कि आप सुंदर प्राणी हैं और आपके पास एक छाया है तो इसका आपसे और आपकी सुंदरता से कोई लेना-देना नहीं है। अगर आप खुद की सुंदरता देख सकते हैं तो आपको आश्चर्य होगा कि हमारे भीतर आनंद देने वाली सभी, सभी सुंदर चीजें हैं, जिन्हें हम बाहर देख रहे हैं। लेकिन अभी, आईना ठीक नहीं है, इसलिए आपको सुंदरता प्रकृति में देखनी होगी। लेकिन, जब आप स्वयं के साथ एकाकर होते हैं, तो आप अपने ही भीतर इस सारी प्रकृति को देखते हैं, इस प्रकृति के सभी आनंद देने वाले गुण अपने भीतर देखते हैं।
इसलिए मैं चाहती थी कि आप इस जगह पर सिर्फ यह जानने के लिए आएं कि कैसे परमात्मा ने आप लोगों के आनंद पाने और यहां रहने के लिए इस खूबसूरत क्षेत्र को बनाया है।
[मराठी अनुवाद] मराठी भाषण 15:10 से शुरू होता है
मैं उन्हें बता रही थी कि बहुत से लोग पूछते हैं, “ईश्वर ने इस दुनिया को क्यों बनाया है। यह दुनिया क्यों जरूरी थी?” “इसका कारण यह है कि ईश्वर सुंदरता, आनंद और प्रेम का स्रोत है और वह स्वयं को नहीं देख सकता है। वह नहीं समझ सकता कि वह कितना बड़ा स्रोत है। इसी प्रकार आप सहजयोगी भी इसके स्रोत हैं। इसलिए ईश्वर ने इतना बड़ा दर्पण बनाया है। वह इस आईने में अपनी सुंदरता देखना चाहता है। वह इस आईने में देखकर संतुष्ट महसूस करता है लेकिन वह इस आईने में एक और चीज देखना चाहता है। वह देखना चाहता है कि क्या यह दर्पण मनुष्य में जागृत हुआ है या नही, क्या यह सुंदरता उसके द्वारा बनाए गए मनुष्य में व्याप्त है, क्या मनुष्य को पता है कि वह स्वयं कितना सुंदर है, उसने कितने गुण अर्जित किए हैं, क्या वह इस बात को समझने के योग्य है कि,वह कितना महत्वपूर्ण है वह कितना महान है। संत तुकाराम ने कहा है, “हालांकि, मैं सबसे छोटे से छोटा हूं, मैं आकाश के समान बड़ा हूं।” जिस व्यक्ति ने अपने बारे में यह जान लिया है, वह अपना जीवन तुच्छ, फालतू की बातों में बर्बाद नहीं करेगा। छोटी-छोटी बातों पर अपना जीवन बर्बाद करना मूर्खता है। जहां तक हमारे देश का सवाल है, हम जानते हैं कि ऐसी कई गंदी प्रथाएं प्रचलन में आ चुकी हैं। अब, शराबखोरी। अगर कोई शराब पीने के खिलाफ सलाह देता है, तो कोई भी सहमत नहीं होगा और आधे लोग नाराज हो सकते हैं और छोड़ कर जा सकते हैं। लेकिन, जब यह दर्पण, जो कि आपकी आत्मा है, जाग्रत होता है तो आप स्वयं को उस दर्पण में देखते हैं। जिस क्षण आपको पता चलेगा कि आप बहुत गंदी चीज का सेवन करने वाले हैं, जो आपको नुकसान पहुंचाएगी, आप इसे खुद ही छोड़ देंगे। दूसरे, इस दर्पण के जागृत होने से आप में स्थित एक अहंकारी खुद हीअपना अहंकार देख सकता है जिससे वह दूसरों की भावनाओं को आहत करता है और दूसरों को परेशान करता है। अन्यथाआप इन चीजों को नहीं देखेंगे पायेंगे, आप चाहे जो कुछ पढ़ सकते हैं,ईश्वर के नाम का जो भी जप कर सकते हैं, आप ईश्वर के नाम पर कितना भी नृत्य कर सकते हैं। केवल जब आप स्पष्ट रूप से आत्मा के प्रकाश को देखते हैं और अपनी आत्मा को देखना शुरू करते हैं, तब आप महसूस करेंगे कि मैं जो करने जा रहा हूं वह मेरे विरोध में है। मैं कितना सज्जन हूँ, मैं कितना महान हूँ, वह कितना महत्वपूर्ण है वह कितना महान है, ईश्वर ने मुझे इतना महान बनाया है! मुझमें कोई जानवर नहीं है। मनुष्य के रूप में मुझे अच्छी बुद्धि दी गई है, मुझे वह स्वतंत्रता प्रदान की गई है जो सर्वोच्च स्वतंत्रता है और मुझे इसे प्राप्त करना चाहिए। फिर बेतुकी बातों की गुलामी, लत की गुलामी को मैं क्यों ले जाऊं? चूंकि मैं इतना स्वतंत्र हूं, और आत्मा, “स्व-तंत्र” की तकनीक में रहता हूं, गुलामी नहीं होनी चाहिए। इसलिए शिवाजी महाराज ने स्व-धर्म के साथ पहचान करने पर जोर दिया है, जिसका अर्थ है “स्व” के धर्म के साथ पहचान करना, स्व का अर्थ है आपका दर्पण जो आपकी आत्मा है और आपको इसे प्राप्त करना चाहिए। अब, हमारे गाँवों में इतनी अजीबोगरीब धारणाएँ प्रचलित हैं कि कभी-कभी मैं चकित रह जाती हूँ। बहुत से लोग सोचते हैं कि ईश्वर आदि किसी के शरीर में प्रवेश करते हैं और हवा चलने की आवाज निकालते हैं। कई महिलाओं को लगता है कि उनमें देवी का प्रवेश होता है। लेकिन मैं आपको बताना चाहती हूं कि शरीर में देवी का होना कोई आसान बात नहीं है। देवी की शक्ति है जिससे कुंडलिनी जाग्रत होती है। यदि आप उस महिला को देवी के रूप में सम्मान देते हैं जिसमें भूत प्रविष्ठ्होते हैं, तो आप ईश्वर विरोधी हैं। ये भूत होते हैं और इनका माध्यम होने के कारण स्त्री शारीरिक और मानसिक रूप से पीड़ित होती है। इतना ही नहीं उनके परिवार के अन्य सभी सदस्य गरीब हैं। इसलिए किसी को भी उनके बहकावे में नहीं आना चाहिए। इसी तरह हर गांव में कोई न कोई व्यक्ति होता है जो इन गतिविधियों को अंजाम देता है। यह कोंकण क्षेत्र में मुख्य्तः होता है। इस साल मुझे लगता है, यह इतना बुरा नहीं हुआ है। वे बेतुकी कहानियां सुनाते हैं जैसे, इस व्यक्ति से भूत आ गया है और वह व्यक्ति इस शैली में है जो लोगों को मंत्रमुग्ध कर देता है। फिर ऐसे मंत्रमुग्ध व्यक्ति को मूर्ख बनाकर पैसे निकालो। यहाँ यह एक सामान्य प्रथा है। बाद में कोई पुजारी बनकर आता है और भगवान के नाम पर पैसे की मांग करता है। परमात्मा पैसे को नहीं समझते हैं, न ही उन्हें आपका पैसा चाहिए। परमेश्वर चाहता है कि आप अपनी आत्मा का दर्पण अपने हाथ में पकड़ें और अपना स्वयं का रूप देखें। लेकिन ऐसा कहा जाता है कि जब आपके हाथ में दर्पण होता है तो आपको इसके बारे मे एक अस्पष्ट समझ होती है और स्पष्ट समझ और उसमें स्थिरता पाने के लिए व्यक्ति को इसे ध्यान के माध्यम से बनाए रखना होता है। तो, पहले कुंडलिनी जागरण करें और फिर ध्यान और अपनी जिम्मेदारी और स्वतंत्रता की समझ के साथ अपने सिंहासन पर विराजमान हों। हम जानवर नहीं इंसान हैं। हमने उन्हें इस तरह की बेतुकी गतिविधियों में बर्बाद करने के लिए अपना जन्म नही पाया है। लेकिन आज तक हमने अपनी इज्जत नहीं की। लेकिन अपनी आत्मा को जानने पर, व्यक्ति तुरंत अपने आप को जान लेता है और उसके सभी बुरे गुण दूर हो जाते हैं। जब मैंने इंग्लैण्ड में सहज योग का उपदेश देना आरम्भ किया तो सात ऐसे व्यक्ति आये जिन्हें बहुत अधिक व्यसन थे। लेकिन, जब उन्हें उसी दिन आत्म-साक्षात्कार हुआ तो वे अपने व्यसनों से मुक्त हो गए। तो, अब आप किसी भी गुलामी को स्वीकार न करने का संकल्प लें। लत होना गुलामी है, भले ही आप इसका मज़ा लेते हों, लेकिन वास्तव में यह गुलामी है। इसलिए आप संकल्प लें कि आप किसी भी दासता को स्वीकार नहीं करेंगे। और जब आप ऐसा संकल्प करते हैं तो आपकी आत्मा स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त होती है और इसका प्रभाव महसूस होता है। उस प्रभाव के कारण जो कुछ भी अनावश्यक है वह स्व्चछ हो जाता है। लेकिन उससे पहले हम वही पसंद करते हैं जो हमें नहीं करना चाहिए, जो बुरा है। हम वही अपनाते हैं जो गलत है। इसलिए मैं आपको अपनी मां के रूप में बताती हूं कि आपको इस मे बुरा नहीं मानना चाहिए, इसलिए यदि आपको कोई व्यसन है तो डरो मत, आत्मा के जागरण से सभी अपने व्यसनों से मुक्त हो जाएंगे। सभी गुलामी से मुक्त होंगे। सभी लोगों की गरीबी दूर हो जाएगी। सभी प्रकार के दर्द, सभी प्रकार की शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और साथ ही पारिवारिक समस्याएं गायब हो जाएंगी और यह होना ही है। तो हम आपके गांव चलगांव में हैं। इन लोगों ने इस जगह की पवित्रता भी देखी है। वे आपसे मिले हैं, आपके साथ नृत्य किया है और आपके साथ आनंद लिया है। साथ ही आपने उनका अच्छी तरह से अभिनंदन किया है और उनके लिए स्वादिष्ट भोजन बनाया है। इसलिए, उन्होंने सुझाव दिया है, “श्री माताजी, कृपया उन्हें उनके जीवन की पूर्ति प्रदान करें।” अब हमारी प्रथा है कि हम जिस स्थान पर जाते हैं, उसकी मकान मालकिन को उपहार दें। तदनुसार, श्री हरीश चंद्र कोली, जिन्हें आप जानते हैं, ने बहुत मेहनत की है, यहां अपना घर स्थापित किया, सहज योग की स्थापना की। उनकी पत्नी ने भी उनकी काफी मदद की है। इसलिए हम उसे अपने प्यार और प्रशंसा के प्रतीक के रूप में कम से कम कुछ तो देना चाहते हैं। मैं अन्य सभी लोगों को भी कुछ देना चाहती हूं। जिसे हम आशीर्वाद कहते हैं। उस आशीर्वाद में, आपको “समर्थ” अर्थ बनाया जाना है; अपनी कुण्डलिनी शक्ति को जाग्रत करने से आपके जीवन के अर्थ के बराबर-इसका अर्थ भी मजबूत है। साथ ही आपको स्वावलंबी बनाना है। इससे पहले कि मैं इस जगह को छोड़ दूं, मैं कुछ ऐसा करना चाहती हूं जिससे आप अपनी महिमा को पूरी तरह से समझ सकें, आप अपनी महानता को समझ सकें, और आपके पास ऐसी समझ के साथ आने वाला विवेक होगा। इस प्रकार, यहां की अपनी अगली यात्रा में, मैं सभी लोगों को बहुत सुंदर, उनके चेहरों पर की ताजगी और नएपन के साथ और उनके दिलों में परमेश्वर के लिए बनाए गए सुंदर स्थानों को देखूंगा, वह स्थान जो पूरी तरह से खिले हुए कमल के फूलों के समान है। आप सभी का मेरा आशीर्वाद है।
परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी
परमात्मा आपको आशिर्वादित करे।