1987-04-19 ईस्टर पूजा वार्ता, भौतिकवाद, रोम आश्रम, रोम, इटली, डीपी
आप सभी को ईस्टर की शुभकामनाएँ! आज का दिन महान दिन है।
जब ईसा मसीह के पुनरुत्थान का उत्सव मनाने हेतु रोम में आकर अब हमें ईसाई धर्म का पुनरुत्थान करना है, जो ईसा मसीह के पुनरुत्थान की विपरीत दिशा में बढ़ रहा है।
जैसा कि आप जानते हैं कि ईसा मसीह केवल चैतन्य थे, लेकिन वे चैतन्य-रूपी शरीर में आए। उनका सम्पूर्ण शरीर चैतन्य का बना हुआ था, और उन्होंने स्वयं को पुनर्जीवित किया दुनिया को यह दिखाने के लिए आप स्वयं को पुनर्जीवित भी कर सकते हैं, यदि आप अपने शरीर को चैतन्य से भर लें।
भौतिक पदार्थ और आत्मा के बीच हमेशा संघर्ष होता है। मानव जीवन में जो हम देखते हैं भौतिक पदार्थ सदैव आत्मा को अपने अधीन करने का प्रयत्न कर रहे हैं और इस तरह हम अपने पुनरुत्थान में असफल हो जाते हैं। हम अपने पुनरुत्थान में असफल होते हैं क्योंकि हम भौतिकता के लिए राज़ी होते हैं। हम जड़ वस्तुओं से आए हैं – उसमें वापस जाना आसान है। परंतु सभी ईसाई राष्ट्रों ने भौतिक विकास अपना लिया है – भौतिकता के साथ पहचान, न कि जड़ वस्तुओं से उच्च बनाने का कार्य।
हम ग़लत क्यों हो गए हैं क्योंकि भौतिक पदार्थ हमारे लिए अधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं ।
हमारा इस जड़ता के साथ इतना तादात्म्य बनता जा रहा है, हमारे शरीर के साथ, और वे सब जो हमारे लिए भौतिक पदार्थ हैं। लोग भौतिक चीज़ों को लेकर बहुत चिंतित हैं। मैं क्या देखती हूँ कि संपूर्ण संस्कृति भौतिकतावादी हो गयी है और वे इसके लिए बहुत लज्जित हैं, परंतु फिर भी वे निरन्तर ऐसा करते हैं यह बहुत लज्जाजनक है और बहुत अपमानजनक । यह मानव जाति का पतन है।
जब से मैं पश्चिमी देशों में आयी हूँ मैं इस प्रवृत्ति को बहुत स्पष्ट रूप से देखती हूँ । उदाहरण के लिए, एक घर में वे जो कुछ भी ख़रीदते हैं, वे सामान बिक्री के लिए हैं, हर समय । तो वे जो कुछ भी ख़रीदेंगे, वे देखेंगे कि यह एक निश्चित मानक का होना चाहिए। जैसे कि, अगर यह एक हीरा है तो यह एक उत्तम हीरा होना चाहिए, क्योंकि उसे फिर बेचा जाना है । अगर वे घर ख़रीदते हैं तो उन्हें डर लगता है कि कहीं हम उसे ख़राब न कर दें या हमें उसे अधिक सुन्दर नहीं बनाना चाहिए, हमें कुछ ऐसा करने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए जिससे घर का मूल्य कम हो जाए क्योंकि हमें विशेष प्रकार की सजावट पसंद है। सब कुछ बिक्री के लिए है। वे किसी भी भौतिक वस्तु का आनंद कभी नहीं लेते, आप देखिए । वहाँ आनंद नहीं है।वे जो कुछ भी ख़रीदते हैं, वे सोचते हैं कि “क्या हम इसे वापस बेच सकते हैं?” यहां तक कि किसी बहुमूल्य पत्थर के बारे में भी मैंने देखा है। जैसे भारत में, प्रत्येक व्यक्ति बहुमूल्य पत्थरों का आनंद उठा सकता है, क्योंकि अमीर सबसे महंगे ख़रीदेंगे, फिर निर्धन लोग साधारण पत्थरों को ख़रीद सकते हैं, जैसे चांदी हर कोई ख़रीद सकता है, क्योंकि कुछ लोग चांदी ले सकते हैं जो कि सौ प्रतिशत शुद्ध है, कुछ लोग थोड़ा मिलावट वाली ले सकते हैं, कुछ अन्य धातु के साथ ले सकते हैं ।
परंतु यदि आप पश्चिम के किसी भी देश में जाते हैं, तो उस पर “हॉलमार्क” चिन्हित होना चाहिए, आप देखते हैं । ‘हॉलमार्क’ अवश्य होना चाहिए, अन्यथा वे इसे कभी नहीं ख़रीदेंगे जब तक कि वहाँ हॉलमार्क चिन्हित न हो , क्योंकि ‘हॉलमार्क’ का अर्थ है कि इसे दुबारा बेचा जा सकता है ।
अब, मान लीजिए कि भारत में आप कुछ ख़रीदते हैं …’ हॉलमार्क’ के बिना सब कुछ … कोई ‘हॉलमार्क’ नहीं है, परंतु, जब आप इसे कभी बेचना भी चाहते हैं, मेरा अभिप्राय है, यदि आप को इसे बेचना है, तो आप बाज़ार में जाना होगा और वे जानते हैं कि इस तरह के चांदी का आंतरिक मूल्य क्या है और उसी तरह वे आपको भुगतान करते हैं । परंतु हमारे यहाँ ‘ हॉलमार्क’ उपलब्ध नहीं है ।
अब सोने में, ऐसा ही वे करते हैं कि नौ कैरेट का सोना है-एक ‘हॉलमार्क’ के साथ । क्या है नौ कैरेट सोना? यह सोना बिल्कुल नहीं है, परंतु इसके लिए वहाँ हॉलमार्क चिन्हित होगा और वह बहुत महंगा होगा क्योंकि आप देखते हैं कि उसमें उनके पास अधिक सोना नहीं है इसलिए वे एक हॉलमार्क चिन्हित कर देते हैं और इसे महंगा बना देते हैं । पूरी अर्थव्यवस्था को मूर्खतापूर्ण रूप से भौतिकवाद के उन्मुख बनाया गया है । ये भौतिक वस्तुएँ आनंद के लिए नहीं बल्कि बेचने के लिए हैं । इसलिए वे किसी भी चीज़ का आनंद नहीं लेते जो कुछ भी उनके जीवन में है।
आजकल, मैं नहीं जानती कि क्या प्लास्टिक को दुबारा बेचा जा सकता है या नहीं, परंतु मैंने लोगों को देखा है जो प्लास्टिक के लिए भी विशेष ध्यान देते हैं, स्टेनलेस स्टील के लिए, और जो कुछ भी उनके पास है उसके लिए। भले ही इसे दुबारा बेचा नहीं जा सकता है, परंतु अब, मनोवैज्ञानिक रूप से वे इस प्रकार से बनाए गए हैं कि वे इसे भी संरक्षित करना चाहते हैं, यदि कोई प्लास्टिक की वस्तु है, जैसे कि एक धागा भी है, कुछ भी, एक पिन , वे इसे भी संरक्षित रखना चाहेंगे, आप देखिए। कुछ भी बाहर फेंकने जैसा नहीं ।
ये सभी चीज़ें हमें दुख, हताशा और मूर्खता की ओर ले जाएंगी। इसलिए अब वे संस्कृति -विरोध का निर्माण करते हैं ये संस्कृति-विरोध अन्य कुछ नहीं , परंतु भौतिकवाद का एक अन्य रूप है, जो कुरूपता है । जैसे आप अपने बालों को रंगते हैं आप संस्कृति विरोधी जैसे बन जाते हैं। यदि आप छेद वाली पैंट पहनते हैं तो आप संस्कृति -विरोधी हैं। यदि आप गंदे कपड़े पहनते हैं, तो आप संस्कृति विरोधी हैं। परंतु ये भी बेचने योग्य हैं। वहां बाज़ार के बाज़ार हैं जहाँ आप सभी तरह के गंदे कपड़े ‘स्टोन-वॉश’ कपड़े प्राप्त कर सकते हैं । ये सभी फ़ैशन दो तरफ़ से आ रहे हैं, मनुष्यों की भौतिकवादी मनोवृत्ति से। और वे कभी लज्जित भी नहीं होते हैं जिस प्रकार वे कुछ वस्तुओं के लिए पूछते हैं। मान लीजिए कि कोई किसी के यहाँ एक चम्मच भूल गया है; तो वे तीन बार टेलीफोन करेंगे, “क्या आपको मेरा चम्मच मिला है? लज्जित भी नहीं होते, इस बारे में उनमें कोई संस्कृति नहीं है ।
जबकि – मैं नहीं जानती – हो सकता है, पहले बेहतर हो सकता है – मैं भारत के बारे में जैसा जानती हूँ, कि आज भी,एक अच्छे परिवार में सदैव कहा जाता है कि “यदि किसी का क़लम आपके पास है तो सावधान रहें और उसे वापस कर दें, परंतु यदि आपका सोना किसी के पास है, तो भी माँगे नहीं,ऐसा नहीं किया जाता है, यह सुसंस्कृति नहीं है, यह सभ्य-शिष्टाचार नहीं है। परंतु सम्पूर्ण सभ्य-शिष्टाचार भौतिकवाद हो गया है, यह दर्दनाक है, और इस ने पाश्चात्य लोगों को पागल बना दिया है। उदाहरण के लिए, यदि आपको वाइन और चीज़ों को परोसना है, तो आपके पास विभिन्न प्रकार के कप, विभिन्न प्रकार की प्लेटें, विभिन्न प्रकार के चम्मच अवश्य होने चाहिए। आपके पास ‘एवोकाडो’ के लिए अलग चम्मच होता है, आपके पास अलग चीज़ों के लिए अलग चम्मच होते हैं – अर्थात्, आप पागल जैसे हो जाते हैं और यदि वह आप के पास नहीं है, तो वे आप पर हंसते हैं. यदि वे आपके घर में आएंगे – “हे भगवान! उन्होंने हमें आइसक्रीम चम्मच के साथ एवोकाडो परोसा! ” यह महानतम पाप है जो कोई कर सकता है। तो पाप का पूरा विचार ही इतना भौतिकतावादी और निरर्थकतापूर्ण बन जाता है। अतः पुनरुत्थान हो नहीं सकता है जब भौतिक वस्तु पूर्णत: मृत और निर्जीव है।
इसके बाद यह जड़ता मस्तिष्क में प्रवेश करती है। जब यह मस्तिष्क में प्रवेश करती है तो यह वहाँ सड़ती है तो फिर आप चर्चा शुरू करते हैं, जैसे बैंकिंग के बारे में या ख़र्च घटाने के बारे में। अभिप्राय है लंदन का मूलमंत्र है,जैसा मैं कहती हूं, सभी जगह यह होना चाहिए “पाउण्ड बचाओ.”( पैसा बचाओ)
जैसे ही आप हवाई अड्डे पर जाते हैं, वहीं बड़ा मंत्र लिखा हुआ है “हीथ्रो में टैक्सी किराए पर लेकर पाउण्ड बचाओ” ।
ज़रा सोचिए – उन्हें इस बात की जानकारी भी नहीं है कि वे क्या कर रहे हैं। हर समय पाउण्ड बचाओ , पैसे बचाओ, वह बचाओ … किसके लिए?
क्योंकि वे इतने निराश हैं, सम्पूर्ण भौतिक सामग्री इतनी निराशाजनक है कि उन्हें पैसे बचाने पड़ते हैं उस कुण्ठा से बाहर निकलने के लिए। और इस कुण्ठा को नशीली दवाओं का सेवन या मदिरा-पान और सभी प्रकार की निरर्थकता पूर्ण चीज़ों से संतुलित किया जाता है, और सड़ा हुआ पनीर या कोई ऐसी चीज़ से जो कि पूर्णतया मृत-पदार्थ है, व्यर्थ चीज़ जो आपको मृत और आलसी बनाती है।
ताकि आप वास्तविकता से दूर भाग जाएं, क्योंकि आप इतने निराश हैं कि आप कुछ ऐसा करना चाहते हैं जो इसका प्रतिकार करे। फिर उसके साथ भी, जब वे पाते हैं, यह नहीं हुआ, अभी भी वे अत्यधिक परेशान हैं । तो आगे क्या करें? यदि आप उससे दुखी हैं तो आपको कुछ और खोजना होगा।
जैसा कि मैं बच्चों के बारे में एक कहानी सुनाती हूँ जो शरारती थे और उनकी मां बाहर जा रही थी उसने कहा कि “देखो, तुम शरारती बच्चे हो, इसलिए मैं तुम्हें रसोई घर में बंद करूँगी”। क्योंकि कहीं और वे कुछ तोड़ सकते हैं, कुछ बिगाड़ सकते हैं और वह उन्हें दुबारा नहीं बेच सकती, शायद । तो, वह उन्हें रसोई-घर में बंद कर देती है ये सोचकर, “वे वहां क्या बर्बाद कर सकते हैं?” तो जब वह वापस आई, बच्चों ने कहा, “हमने आपकी सारी चाय की पत्ती खा ली!”
इसी प्रकार, जब वे इतने कुण्ठित हो जाते हैं, तो नहीं जानते क्या करना है, इसलिए वे अपने कानों में नाखून डालते हैं, अपने गालों में पिन, अपनी नाक में कुछ और वे नहीं जानते कि उन्हें स्वयं अपने साथ क्या करना है, आप देखें इसलिए वे अपनी मूंछें खींचें या वे अपने बालों को रंग करेंगे, या सभी प्रकार की हास्यास्पद निरर्थकतापूर्ण क्रियाएँ करेंगे, पूर्णत: कुंठित लोग!
परंतु सबसे बुरी बात यह है कि जो नहीं समझा जा सकता है कि वे इसके विषय में इतने आत्मविश्वासी हैं। वे इसे किसी आत्मसंशय के साथ नहीं करते हैं, यह पूर्ण आत्मविश्वास है ।
उनका चित्त सभी ओर यह देखने में है “अब, हमें कैसा होना चाहिए?”, अब यदि वे एक पेड़ देखते हैं जिसकी पत्तियां कुपोषण के कारण बिल्कुल मुरझा गई हैं, तो वे ऐसा ही बनना चाहते हैं । वे ऐसे लोग बनना चाहते हैं, जो कुपोषित हैं। तो वे दुखी लोगों की भाँति दिखते हैं, उनके गाल अंदर धँसे हुए हैं, नाक बाहर निकली हुई इस तरह की चीज़ें चलती रहती हैं – और यदि आप उन्हें देखते हैं, तो वे बीमार लोगों की तरह दिखते हैं । यह संकेत है उनकी कुण्ठा की अभिव्यक्ति का कोई रास्ता खोज लेने का। परंतु ईसा मसीह ने मार्ग प्रशस्त किया – इसके विपरीत उन्होंने कहा, “चैतन्य को अपनी जड़- वस्तुओं में प्रवाहित करो”, इस प्रकार आप उस चैतन्य का आनंद लेंगे।
इन जड़ वस्तुओं में चैतन्य, ये चैतन्य लहरियाँ भर दो । यह उनका संदेश है। अपनी आत्मा के बाहर निकलने के बाद उन्होंने पुनरुत्थान नहीं किया परंतु अपने पूर्ण शरीर के साथ पुनरुत्थान किया। इसलिए वे हमारे शरीर में अंतनिर्हित इस जड़त्व के पुनरुत्थान के बारे में बात कर रहे हैं।
सहज योग में भी जब हम आते हैं, कुंडलिनी ऊपर उठती है, वह आपको आत्मसाक्षात्कार देती है आप को अपने हाथों में चैतन्य की अनुभूति होती है, आप इसे अपने चारों ओर अनुभव करते हैं, आपके चेहरे सुंदर कमल की तरह चमकते हैं, आपकी त्वचा अच्छी हो जाती है, आप खिलते हुए दिखते हैं, सब कुछ अच्छा है, परंतु अभी भी भौतिक आसक्तियाँ हैं, जो बहुत सूक्ष्म हो सकती हैं, बहुत स्थूल हो सकती हैं ।
स्थूल जैसे कि “यह मेरा कालीन है, यह मेरी कार है, यह मेरा आभूषण है”- कुछ इस प्रकार।
परन्तु यदि यहाँ ईसा मसीह की शैली की बात आती है, आपको उस भौतिक वस्तु के साथ तादात्म्य स्थापित करना होगा जो कि चैतन्यित है, जिसमें से चैतन्य बह रहा है, जिसका मूल्य उसकी चैतन्य लहरियाँ हैं – भौतिक मूल्य नहीं अपितु जिसका मूल्य चैतन्य हो,आध्यात्मिक मूल्य, दिव्य मूल्य। यह कुछ भी हो सकता है – फूल हो सकते हैं, पानी हो सकता है, एक साड़ी हो सकती है, एक आसन हो सकता है, कुछ भी हो सकता है जो मूल्यवान बन जाता है, इसलिए चित्त स्थूल से चैतन्य लहरियों की ओर परिवर्तित होने लगता है।
परंतु अभी भी आपका चित्त यदि गुप्त रूप से भौतिक चीज़ों में लिप्त है, तो यह आपके लिए तीव्रता से उत्थान करने में एक कठिनाई है। जो कुछ वस्तुएँ आप उपयोग करते हैं क्या यह आपके चैतन्य के लिए सहायक हैं या नहीं? जो कुछ भी आप करते हैं, यह आपके चैतन्य के लिए अच्छा है या नहीं? या यह वही पुरानी चाल- ढाल (फ़ैशन) आप चला रहे हैं, जैसे कि कुछ पागल लोगों को मैंने कल देखा- वे छुट्टी मानने के लिए आए थे और वे नहीं जानते थे कि आनंद कैसे लिया जाए, वे सभी प्रकार से प्रयत्न कर रहे थे, आप जानते हैं। उन्होंने अपने पर्यटन के लिए बहुत सारा पैसा दिया होगा, अभागे लोग, उन्होंने होटलों में बहुत सारा पैसा अवश्य ख़र्च किया होगा, रेस्तराँ में बहुत सारा पैसा दिया होगा, परंतु मुझे प्रतीत हुआ कि उन्हें बिल्कुल भी आनंद नहीं आ रहा था, उसमें से कोई भी आनंद नहीं ले रहा था-वे दुखी थे और वे नहीं जानते थे कि क्या करें, और अंत में मैं सोच रही थी, कि वे जाकर हताशा में अपने सिर फोड़ सकते हैं।तो जड़ वस्तुएँ आपको प्रसन्नता नहीं दे सकती हैं। जड़ वस्तुएँ जो चैतन्यित हैं,जिनमें चैतन्य लहरियाँ आपको प्रसन्नता दे सकती हैं। एक मनुष्य आपको कभी आनंद की अनुभूति नहीं दे सकता। हो सकता है आपकी पत्नी हो,आपके बच्चे हो सकते हैं,आपके पिता, माँ या कोई भी , जब तक कि उस व्यक्ति में चैतन्य ना हो क्योंकि ‘आनंद’ परमात्मा का आशीर्वाद है। और जब तक आप उस परमेश्वर के साथ नहीं जुड़ जाते आप जो भी प्रयास कर लें, जो कुछ भी आप प्राप्त कर लें, आप उस आनंद को कभी प्राप्त नहीं कर सकते। आपको एक कृत्रिम आत्मविश्वास हो सकता है, क्योंकि जो व्यक्ति कुंठित है वह कहेगा -बाहर से दिखाएगा-” ओह, नहीं, मैं निराश नहीं हूँ मैं बहुत प्रसन्न हूँ”। यह इसी प्रकार है कि तनावग्रस्त होना और कहना ,” मैं बहुत आराम से हूँ”, यह ऐसा ही है।अतः वे केवल अपनी छवि को बनाए रखने के लिए, कह सकते हैं कि “हम बहुत आत्मविश्वासी हैं” परंतु वे बहुत संकोची लोग हैं। वे दुर्बल हैं। तो वे आपके बच्चे हो सकते हैं,कोई भी हो सकता है, कोई भी मनुष्य हो सकता है कि आप उस व्यक्ति के बारे में बहुत बड़ा सोच सकते हैं, हो सकता है आपका उस व्यक्ति के साथ बहुत अधिक तादात्म्य स्थापित हो, आप सोच सकते हैं कि यह महानतम बात है, सबसे महान व्यक्ति जिससे आप अभी तक मिले हैं, यह आपको आनंद नहीं दे सकता है। परंतु एक सर्व साधारण व्यक्ति, एक मज़दूर, शायद एक भिखारी, शायद कोई भी व्यक्ति , एक साधु, जंगल में अकेला बैठा हुआ, अति आनंददायक व्यक्तित्व होगा।वह बोले, ना बोले, आपके लिए इतनी अनमोल, मूल्यवान चीज़ होगी, अपेक्षाकृत किसी ऐसे व्यक्ति के जो अमीर है, व्यवसाय में अच्छी जगह स्थापित है, अत्यधिक पसंद किया जाता है। यहीं पर यह ईसाई – धर्म विफल रहा है, राजाओं के साथ होने का लालच। अब यह श्रीमान पोप हैं, मेरे पति गए और उनसे मिले और पोप ने उनसे अच्छा व्यवहार किया क्योंकि वह, जहां से आए हैं, वे इस भौतिक -दुनिया में एक बड़े आदमी हैं। वे मुझसे नहीं मिले अथवा शायद मैं उनसे नहीं मिलूँ! अतः सम्पूर्ण मूल्य-प्रणाली, पूरी मूल्य प्रणाली को बदलना होगा और वह मूल्य प्रणाली यह है कि आप किसी भी बात की परवाह नहीं करते सिवाए अपनी आत्मा के। आत्मा के अतिरिक्त कुछ भी मायने नहीं रखता। यह आत्मा आपको एक महल जैसा सुख देती है।यह आपको सम्पूर्ण सुरक्षा का परम-आनंद देती है। इससे आपको इस दुनिया के सभी रिश्तों का आनंद मिलता है।अतः आपको ऐसी किसी चीज़ की परवाह क्यों करनी चाहिए जिसका कोई लाभ नहीं है? आप इसे इतना स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। यदि आपकी दृष्टि निर्मल है, आप इसे आसपास अनुभव कर सकते हैं कि ये लोग इतने दुखी दिखाई देते हैं, इतने तुच्छ, इसके पीछे भाग रहे हैं उसके पीछे भाग रहे हैं। अब पहले तो वे हिप्पी थे फिर वे बेकार तुच्छ लोग बन गए, अब वे सुसज्जित महानुभाव बन रहे हैं। सब कुछ है यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ, जो कुछ भी है उन्हें कहीं दिशा-निर्देश नहीं दे रहा।तो स्पष्ट रूप से आप देखते हैं कि आप इनसे दूर हैं। आप एक भिन्न क्षेत्र में है और आप उन्हें देखते हैं। इसलिए उनके पास मत जाओ।आप अपनी अन्तनिर्हित उस सुंदरता को उन्हें दिखाने की चेष्टा करें ताकि वे आपके पास आएँ और आप को देखें, स्वयं अपने आप देखें, कि आप पुनर्जीवित लोग हैं, आप को देख रही हैं, आपका अवलोकन कर रही है, लेकिन अब क्योंकि भौतिक पदार्थ जो आत्मा को चारों ओर से घेरे हुए हैं उन्हें पुनर्जीवित किया जा रहा है, चैतन्यित किया जा रहा है, आपकी आँखें चमकती हैं, आपकी त्वचा चमकती है, आपका चेहरा जगमगाता है, आप इतने सुंदर दिखाई देते हैं- यही वह पुनरुत्थान है।सहजयोग में मूर्खतापूर्ण गंभीरता के लिए कोई स्थान नहीं है आप किस बारे में गम्भीर हैं? ओह, मुझे अपने हीरे को बेचना है और आपको पता है कि वे कहते हैं कि वहाँ इसमें थोड़ा कालापन है”। तो क्या? इसे पहनो। यह सारी गम्भीरता आपके दिमाग़ में मृत पदार्थों से आती है, और आप जानते हैं मरी हुई वस्तुओं पर फफूँद बढ़ती है और आप यह भी जानते हैं की यह फफूँद आपको सभी प्रकार की बीमारियाँ देती हैं। इसलिए उन सभी से दूर रहें जो सत्वहीन हैं। केवल चैतन्य ही जड़ पदार्थ को चैतन्यित करता है और जब तक आपका परमात्मा से संबंध नहीं जुड़ जाता, तब तक आप कुछ भी चैतन्यित नहीं कर सकते। उन महान संतों, भविष्यवक्ताओं, अवतरणों ने जो इस पृथ्वी पर आए हम सभी को यह बताने की चेष्टा की, कि ” परमात्मा के साथ योग स्थापित करो।” सभी ने एक ही बात कही नि:संदेह, मैंने स्वयं यह कार्य किया है। यह अच्छी बात है कि वे सराहना कर रहे हैं और आपको बस इसके बारे में सोचना होगा कि यह योग ढीला नहीं होना चाहिए, इसे अशांत नहीं किया जाना चाहिए, इस पर संदेह नहीं करना चाहिए। इसे उचित ढंग से स्थापित करें। तो फिर आप किसी भी चीज़ के लिए इसे नहीं खो सकते चाहे कुछ भी हो। जैसे कि “मेरी पत्नी ऐसी है, मेरे पति ऐसे हैं, मेरे भाई ऐसे हैं”। ये बहुत दुर्बल व्यक्तित्व के संकेत हैं। यदि आप एक शक्तिशाली व्यक्तित्व हैं, उन चैतन्य लहरियों के साथ यदि आप शक्तिशाली हैं तो आप दूसरे व्यक्ति को शक्तिशाली बनाते हैं और दूसरे व्यक्ति को सहजयोग में लाते हैं और उसे जीवन का अमृत प्रदान करते हैं। इसलिए आज यह संदेश है कि हमें अपने जड़त्व का पुनरुत्थान करना होगा, भीतर और बाह्य में इसीलिए आप अपनी कुंडलिनी को ऊपर की ओर उठा रहे हैं, ठीक है। इसके अलावा आपको इसे फैलाना होगा- क्षैतिज रूप से, अपने हाथों में, अपने पैरों में, अपने शरीर में, अपने चेहरे पर, अपने विचारों में, हर चीज़ में। एक मंत्र क्या है? और कुछ नहीं अपितु एक विचार है जो कि चैतन्यित है।कोई भी विचार जो चैतन्यित है- एक मंत्र है, परंतु चैतन्य लहरियाँ केवल एक विशेष प्रकार के लोगों द्वारा संभाली जा सकती हैं या हम कह सकते हैं कि एक विशेष ‘गुणक’ की आवश्यकता है। पहनावे में, सोच में, सांसारिक किसी भी चीज़ में, एक तरह का ‘गुणांक’ है जो चैतन्य लहरियों को कार्यान्वित करता है यदि वह ‘गुणांक’ नहीं है तो आप चैतन्य लहरी महसूस नहीं कर सकते हैं और आप चैतन्य लहरी दे नहीं सकते हैं। तो केवल दो मार्ग हैं एक बायाँ पक्ष है, दूसरा दायाँ पक्ष है, बहुत सारे मोड़ नहीं हैं, उनसे छुटकारा पाना बहुत सरल है।इटली में केवल दो मोड़ हैं एक बायाँ है या दायाँ है। तो उसी प्रकार हमारे भीतर भी है यदि आप बाईं ओर नहीं जाते हैं और आप दाईं ओर नहीं जाते हैं, तो आप मध्य में रहते हैं आप चैतन्यमय हैं आप सब कुछ चैतन्यित कर सकते हैं, परंतु मध्य में स्थित रहना किसी अतिशयता में नहीं जाना है। सहजयोग में भी पागल जैसे कुछ लोग हैं- वे बारह घंटे तक ध्यान धारणा करते हैं बारह घंटे तक ध्यान करने जैसा क्या है? मेरा मतलब है कि आप पहले से ही ध्यान अवस्था में हैं। अन्यथा वे सहजयोग को एक पिकनिक की तरह मनाएँगे। उसकी एक अतिशयता। आवश्यकता है यह विचारने की “मैं एक आत्मा हूँ? “और मैं परमेश्वर से जुड़ा हुआ हूँ। मैं कितना जुड़ा हुआ हूँ? मैं कितना आत्मसात् कर रहा हूँ?” मैं इसे कितना प्राप्त कर पा रहा हूँ।” बस इतना ही।आपको इसके बारे मैं बहुत अधिक नहीं करना है। वे दिन गए जब लोग अपना सिर फोड़ते थे, सिर के बल खड़े होते थे या हिमालय पर्वत जाते थे।परंतु स्वभाव में विलक्षणताएँ किसी एक अच्छे सहजयोगी की निशानी नहीं हैं। सारी विलक्षणताएँ इस भौतिकता से आती हैं। इसलिए सहजयोग में एक विलक्षण व्यक्ति, शायद वह भूत-बाधित भी हो सकता है या अहंकारी भी हो सकता है। दोनों चीज़ों में से एक बात अजीबो- गरीब व्यक्ति में हो सकती है। एक सहज योगी में कोई विलक्षणताएँ नहीं होतीं।उनमें व्यक्तित्व – विभिन्नताएँ होती हैं, परंतु अनोखापन नहीं होता। अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति के पास नाक होगी जो उसके पास थी यह नहीं बदलेगी, उसकी आँखें वही होंगी जो कि उसके पास हैं,परंतु उसकी आँखों में एक प्रकाश होगा। उसी प्रकार अपने कपड़ों के बारे में देख सकते हैं-हम शालीन कपड़े पहनना शुरू कर देते हैं, परंतु बदरंग कपड़े या गंदे कपड़े नहीं: हम रंग बिरंगी चीज़ें पहनते हैं क्योंकि हम रंग बिरंगे हैं। सहस्त्रार के सात रंग होते हैं। आज मैंने यह रंग पहना, क्योंकि भारत में बसंत ऋतु का रंग यही है क्योंकि सभी फूल पीले होते हैं और सरसों भी जो पीली है और उसे भारतीय संस्कृति में ‘बसंत का रंग’ कहा जाता है। आप जानते हैं वहाँ इसके लिए एक दिन है, कि वे बसंत ऋतु का उत्सव मनाने के लिए इस विशेष रंग को पहनते हैं, क्योंकि प्रकृति के एक प्रकार से जुड़े हुए होते हैं। तो आज हमें न्यूयॉर्क से यह बहुत अच्छा संदेश प्राप्त हुआ है जैसे कि उन्होंने सपना देखा हो कि मैं ‘बसंत का रंग’ पहनने जा रही हूँ अतएव मैं चाहती हूँ कि कोई आपके लिए यह पढ़ सकता कि उन्होंने क्या कहा है, और आपको आश्चर्य होगा कि कैसे यह मेल खाता है। यह आज जो मैं पहने हूँ उससे कैसे मेल खाता है। जैसे ही मैंने यह साड़ी पहनी, गर्मी बढ़ गयी और मैं जानती थी कि यह होगा।उसी पल यह गर्मी हो मैं उसके लिए क्षमा चाहती हूँ, क्योंकि आपको यहाँ बहुत अधिक (गर्म) लग रहा है।तो आज का दिन ‘बसंत’ का उत्सव’ मनाने का दिन है और जैसा कि आप जानते हैं मैं बसंत ऋतु मैं पैदा हुई थी और ईसा मसीह भी बसंत में पुनर्जीवित हुए थे।
तो बसंत ऋतु ईसा मसीह के पुनरुत्थान के बाद आरम्भ होती है उसी तरह अब हम बसंत के रंग में हैं आनंद लेने के लिए, प्रसन्न चित्त होने के लिए , बस आनंद विभोर होने के लिए। परंतु ओछा नहीं होना, अभद्र नहीं होना, बचकाना नहीं होना।इसी प्रकार से एक सहजयोगी को होना चाहिए और मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि मेरे इस सहज आयोजन पर, रोम में आने पर आप कई लोग यहाँ आए हैं। यह दर्शाता है कि आप मुझे कितना प्रेम करते हैं और मैं वास्तव में यह अभिव्यक्त नहीं कर सकती जो मैं इस सब के बारे में महसूस करती हूँ, सिवाए आंसुओं के जो मेरी आँखों से बह रहे हैं। जिस कारणवश भी ईसा मसीह ने अपने जीवन का बलिदान दिया है, क्योंकि यह एक भयावह बात थी जो घटित हुई, कि अपने जीवन का बलिदान कर दिया। उन्होंने इतना कष्ट सहा परन्तु उसके परिणाम स्वरूप आप हैं- आप सभी यहाँ जिनका आज पुनरुत्थान हुआ और आपकी आज्ञा(चक्र) स्वच्छ हो गई है और सब कुछ इतना सुंदर है।
परमात्मा आपको आशीर्वादित करें।