Shri Rama Puja: Dassera Day

Les Avants (Switzerland)

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                        श्री राम पूजा

 लेस अवंत्स (स्विट्जरलैंड), 4 अक्टूबर 1987।

आज हम स्विट्जरलैंड में दशहरा दिवस पर श्री राम के राज्याभिषेक का जश्न मना रहे हैं। दशहरा दिवस पर कई बातें हुईं। सबसे खास बात यह थी कि इसी दिन श्री राम का राजा के रूप में राज्याभिषेक हुआ था। इसी दिन उन्होंने रावण का वध भी किया था। कई लोग कह सकते हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है कि उन्होंने रावण को मारा और उसी तारीख को उनका राज्याभिषेक हुआ? उन दिनों भारत में, हमारे पास सुपरसोनिक हवाई जहाज़ थे और, यह एक सच्चाई है, और हवाई जहाज़ का नाम पुष्पक था, जिसका अर्थ है फूल। इसे पुष्पक कहा जाता था और इसकी एक ज़बरदस्त गति होती है। तो रावण का वध करने के बाद वे अपनी पत्नी के साथ अयोध्या आए और उसी दिन उनका राज्याभिषेक हुआ। नौवें दिन, उन्होंने अपने हथियारों के लिए शक्ति, सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए देवी की पूजा की और दसवें दिन उन्होंने रावण का वध किया। तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि श्री राम और उनके राज्य के समय कितने उन्नत लोग थे। कारण यह था कि राजा एक अवतार था; ऐसा भी की वे एक कल्याणकारी  राजा थे जैसा कि सुकरात ने वर्णित किया था।

श्री राम की कहानी आदि से अंत तक बहुत दिलचस्प है और अब हमारे पास भारत में हमारे टेलीविजन द्वारा की गई उनके बारे में एक सुंदर श्रृंखला है, जो बहुत अच्छी कीमत पर बेची जाती है, हो सकता है कि जब आप वहां आएं तो हम आप सभी को एक पूर्ण पेश कर सकें। लेकिन वे कहते हैं कि राम की कहानी उनके जन्म से पहले लिखी गई थी। इसकी भनक लगने से पहले ही द्रष्टा वाल्मीकि ने श्री राम की पूरी कहानी लिख दी थी। श्री राम का जन्म और वह सब अग्नि के आशीर्वाद द्वारा लाया गया, और वह सूर्य के वंश में पैदा हुए, सूर्य है। तो उस सब के साथ, अग्नि के आशीर्वाद से पैदा हुए, वह अग्नि है, और सूर्य के वंश में भी पैदा हुए थे, वह आपके अब तक के सबसे संकोची अवतारों में से एक थे। वह एक बहुत ही मेरा मतलब अंग्रेजी भाषा में फॉर्मल व्यक्ति के रूप में जाना जाता है, संकोच इस अर्थ में – कि वह दूसरों को कुछ करने के लिए कहने के बजाय खुद को समस्याओं को सहन करने के लिए किसी भी हद तक जाएगा। भारत में अभी भी इस तरह के बहुत से लोग थे।

जैसे हमारे पास एक प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे, और अगर वह कमरे में बैठे थे और लोग बैठे थे और बिजली किसी भी तरह चालू थी, जैसे लेम्प  या कुछ और, और वह इसे बंद करना चाहते है, तो वह किसी से कहेंगे नहीं गा इसे बंद करने के लिए। धीरे-धीरे वह अपनी सीट से उठेंगे, स्विच के पास जायेंगे और बस उसे बंद कर देंगे ताकि वह कुछ भी न मांगे। यह श्री राम के सबसे बड़े गुणों में से एक है कि वे किसी को भी अपने लिए कुछ करने के लिए नहीं कहते या कुछ भी आदेश नहीं देते या उस उद्देश्य के लिए किसी का उपयोग नहीं करते। देखिए, वे अग्नि के वरदान थे और सूर्य में जन्मे थे। लेकिन हम अक्सर ऐसा पाते हैं कि, वे लोग जो पैदा होते हैं, शायद बहुत निम्न परिवारों में, नकारात्मक परिवारों में, बाएं पक्ष वाले, जैसा कि आप इसे कह सकते हैं, सभी प्रकार की समस्याओं के साथ, एक भयानक आज्ञा और एक भयानक सूर्यदा है। सूर्य में जन्म लेने वाले व्यक्ति को अत्यंत विनम्र होना पड़ता है। वही वह व्यक्ति है जिसे साबित करना होता है कि, उसे कुछ भी प्रभावित नहीं कर सकता है| किसी भी तरह उसे उसकी उच्चता का गुमान नहीं हो सकता। अब, जब हम उनके जीवन को और आगे देखते हैं, तो वे बहुत ही विनम्र व्यक्ति थे। तुमने देखा अब ऐसे लोग जो दूसरों का तिरस्कार करने की कोशिश करते हैं, मैं तुम्हें पसंद नहीं करता, मुझे पसंद नहीं है, यह अच्छा नहीं है, यह बहुत मुश्किल है, यह इस बात किया एक संकेत है कि ऐसा व्यवहार करने वाला व्यक्ति चरित्र में बेहद कम है, उसका कोई चरित्र नहीं है बल्कि चरित्र में कम है। जिस किसी का भी कोई चरित्र होता है, वह दूसरे लोगों के प्रति उसकी सहनशीलता से प्रदर्शित होता है। असहिष्णुता एक ऐसे व्यक्ति की निशानी है जो बेहद अहंकारी और व्यर्थ है, उसमें घमंड है।

श्री राम को उनके राज्य की प्रजा ने इतना प्यार किया था और सम्मानित पिता जनक की पुत्री सबसे सुंदर उनकी पत्नी थी, और जो उनके पिता के प्यारे पुत्र थे। लेकिन वह इतने विनम्र आदमी थे, इतने विनम्र आदमी, कि उनके पुरे चरित्र में आप सुंदरता देखते हैं। जैसे, वह एक छोटी नाव से जा रहे थे जब वह अपने निर्वासन के लिए गये थे। और जो उन्हें ले जा रहा था वह एक साधारण नाविक था। और नाविक बहुत परेशान हो रहा था कि वह अयोध्या के राजा के सामने बैठा है और उसके पास उचित कपड़े नहीं हैं। तो श्री राम, जो स्वयं वल्कल के अलावा और कुछ नहीं पहने थे – ऐसे कपड़े हैं जो गाँव के लोग पहनते हैं या आदिम क्षेत्रों में रहने वाले लोगों द्वारा पहने जाते हैं, केवल एक तरह के पत्ते होते हैं। उसे वह पहनने पड़े क्योंकि उनकी सौतेली माँ ने पिता से उस तरह का वरदान मांगा था। और फिर श्री राम ने उस नाविक से कहा, तुम चिंतित क्यों हो? मैंने यह पहन रखे हैं। मैं अब राजा नहीं रहा। मैं इस तरह तुम्हारे सामने बैठा हूं। आपको काफी सुकून से रहना चाहिए। और वास्तव में मैं नाव चलाना नहीं जानता, जबकि आप जानते हैं कि नाव को कैसे चलाना है, तो आपको चिंतित क्यों होना चाहिए? इसी तरह  उन्होंने उन लोगों को भी जिन्हें हम समाज में निम्न कहते हैं, बहुत ऊँचे पायदान पर रखा, जो दर्शाता है कि वह मनुष्यों का सम्मान करते थे।

उन्हें स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, अर्थात ऐसे वह थे जो जानते थे कि किसी व्यक्ति से कैसे व्यवहार करना है, मर्यादा, किसी से कैसे बात करनी है, किसी से किस प्रकार से संपर्क करना है, जबकि हम ऐसे लोग देखते  हैं जो दुर्व्यवहार करते हैं, यहां तक ​​कि अपने पतियों के साथ, अपनी पत्नियों के साथ अपने बच्चों के साथ, सबके साथ और बाहर भी वे दूसरों पर आक्रामक होते हैं – यह बिल्कुल राम के खिलाफ है। यह रावण की तरह है। यहाँ तक की रावण भी ऐसा नहीं था, वह भी उस प्रकृति का नहीं था क्योंकि उसके भीतर कुछ धर्म थे। वह एक साक्षातकारी आत्मा था लेकिन वह एक राक्षस बन गया था क्योंकि वह अहंकारी हो गया था, लेकिन उसके अहंकार की तुलना  कई आधुनिक लोगों और आधुनिक लड़कियों और पुरुषों के साथ भी मेल नहीं खा सकती है जो मैंने सुना और देखा है, यह आश्चर्य की बात है कि वास्तव में वे रावण से भी बढ़ कर हो गए हैं। रावण के केवल दस सिर थे लेकिन कभी-कभी मुझे लगता है कि आधुनिक पुरुषों के, या विशेष रूप से महिलाओं के एक सौ आठ सिर हो सकते हैं। अहंकार, घृणा की अभिव्यक्ति की मात्रा, कितना हास्यास्पद है और किसी व्यक्ति को इतना फ़ालतू दिखने वाला बना देता है, लेकिन मैं ऐसे लोगों को बहुत आम देखती हूं और सहज योग में भी वे किसी तरह घुस आते हैं। दरअसल, ऐसे लोग सर्वशक्तिमान ईश्वर द्वारा बिल्कुल तिरस्कृत होते हैं।

आगे उनके जीवन में तुम देखो, वह उस गाँव में गये जहाँ एक बहुत बूढ़ी औरत, जो कि आदिम जाति की थी, जिसके बहुत कम दाँत थे, और वह कुछ फल, छोटे-छोटे फल, जिन्हें हम बेर कहते हैं,  और वह ले आई और उन्हें दिया, कि श्री राम, तुम देखो, मेरे पास ये तुम्हारे लिए हैं। मेरे पास और कुछ नहीं है। और ये, मैंने उन सभी को चखा है।

दरअसल भारत में अगर आप कोई भी खाद्य पदार्थ मुंह में डालेंगे तो यह जूठा है, इसे कोई दूसरा नहीं खायेगा। परन्तु वह कहती है, कि मैं ने उन में से  हर एक को दांत से कुतर कर चखा हैं, और मैं ने देखा है, कि उन में से कोई भी खट्टा नहीं है। श्री राम को खट्टे फल पसंद नहीं थे, वह जानती थीं, इसलिए, उनमें से कोई भी खट्टा नहीं है और आप खा सकते हैं। मेरा मतलब है, एक तरह से, अगर यह पश्चिम में किसी के साथ किया जाता है तो वे आपको जोरदार प्रत्युत्तर देंगे।

इसके तत्काल बाद श्री राम आगे पहुंचे और उसके हाथ से बेर ले लिये, उसके हाथ चूमें और कहा, ठीक है, ठीक है, मैं उन्हें ग्रहण करने जा रहा हूँ। इतने उत्साह से उन्हें खा लिये।

तो लक्ष्मण को उस महिला पर थोड़ा गुस्सा आया, यह क्या हो रहा है?

और सीताजी ने कहा, अरे क्या तुम्हे यह बहुत पसंद आ रहे हैं?

उन्होंने कहा, हां, लेकिन मैं तुम्हें कुछ नहीं देने वाला हूं।

वो बोली, नहीं, मैं तुम्हारी अर्धांगिनी हूं। आपको मुझे देना होगा। इसलिए उन्होंने सीताजी को कुछ दिये। तो सीताजी ने खा लिया, याह, क्या बात है! यह स्वर्ग के अमृत की तरह है जिसे मैं खा रही हूं।

तो लक्ष्मण को बहुत जलन हुई। उसने कहा, भाभी, क्या मुझे इसमें से थोड़ा भी नहीं मिल सकता है?

उसने कहा, नहीं, मैं तुम्हें नहीं दे सकती। तुम अपने भाई से पूछो। मैं तुम्हें नहीं देने जा रही हूँ। मेरे पास बहुत कम हिस्सा है। आप अपने भाई से क्यों नहीं पूछते?

सो वह अपने भाई के पास जाता है, और कहता है, क्या मैं कुछ बेर ले सकता हूं? तो श्री राम ने मुस्कुराते हुए उन्हें वह बेर दिये जो एक आदिम महिला,  जो वास्तव में भारत के ब्राह्मण कानूनों के अनुसार बहिष्कृत है के दांतों से कुतरी गई थी, या जूठी थी, या छेदी गई थी।

श्री राम की मधुरता, जिस तरह से वे लोगों को सहज महसूस कराते थे, जैसे मैं कहूंगी, एक सीप का एक उदाहरण, जिसे अपने खोल के शरीर में एक छोटा सा कंकर मिलता है, एक प्रकार का चमकदार तरल उत्सर्जित करती  है और उसे ढक देती है उस चमकदार तरल से और आरामदायक बनाने के लिए इसे मोती में बदल देती है। अब, उसे अपने आराम की परवाह नहीं होती है। राम थोड़े अलग हैं कि वे सभी को हीरा, या मोती बनाना चाहते थे, ताकि दूसरा व्यक्ति चमके और अच्छा दिखे, और इसी में उन्हें आराम महसूस हुआ।

यदि आपको उनके गुणों को आत्मसात करना है तो सबसे पहले हमें श्री राम की स्थिति को सहज में समझना होगा। श्री राम आपके हृदय के दाहिनी ओर, दाहिने हाथ की ओर, दाहिने हृदय में विराजमान हैं। उन्हें वहीं रखा गया है। अब इंसान में हृदय दायीं तरफ नहीं होता। अगर आप किसी को बताते हैं कि दायाँ हृदय है, तो वे कहेंगे, क्या? दो दिल होते हैं, या तीन दिल? हमारे सहज योग में हमारे तीन दिल हैं: एक बायां है, दूसरा दायां है, और एक मध्य है।

अब दायाँ हृदय बहुत महत्वपूर्ण चीज है। दायां हृदय पूरे फेफड़े, दोनों फेफड़े, पूरे गले, श्वासनली, नाक के भीतरी भाग की देखभाल करता है। बाहरी भाग अर्थात आकृति\रूप की देखभाल हम कह सकते हैं श्री कृष्ण द्वारा प्रदान की गई हैं, लेकिन इसका आंतरिक भाग श्री राम द्वारा संचालित किया जाता है। वे एक ही हैं, लेकिन एक आंतरिक भाग का संचालन के रूप में कार्य करते है, दूसरे बाहरी भाग के रूप में कार्य करते है। वह तुम्हें कान के आतंरिक अंग देते है,  श्री राम देते हैं। वह तुम्हें आंखें देते है, आंखों के अंदरूनी अंग के रूप में। अब, बाहरी पक्ष की तुलना में आंतरिक पक्ष का ठीक होना बहुत महत्वपूर्ण है। यह श्री राम के उदाहरण हैं कि, उन्होंने कभी किसी व्यक्ति के बाहरी पक्ष या बाहरी रूप की परवाह नहीं की।

क्योंकि वे श्रीकृष्ण के पहले आए थे, उन्होंने मनुष्य के आंतरिक पक्ष का निर्माण करने का प्रयास किया। तो हम कह सकते हैं, हालांकि वह दाहिने हृदय पर है, वह आपके हंसा चक्र के माध्यम से और आंशिक रूप से आपके विशुद्धि चक्र के आंतरिक भाग के माध्यम से कार्य करते हैं। क्योंकि श्री कृष्ण, इसके भीतरी भाग में श्री राम हैं, श्री विष्णु हैं।

तो, जब कोई माना कि, पश्चिमी मानक के अनुसार दिखने में अच्छा नहीं है, तो, मेरे अनुसार पश्चिमी मानक बल्कि अजीब ही हैं क्योंकि पश्चिमी मानक न तो कृष्ण या श्री राम जैसे प्रतीत होते हैं। श्री राम जैसे व्यक्ति घुटनों तक लम्बे हाथों वाले बहुत स्वस्थ, लम्बे व्यक्ति थे, अजानबाहु, अर्थात् जिसके पास घुटनों तक लम्बे हाथ है, और वह मोटा था, दोनों मोटे थे। उन्हें मोटा आदमी होना ही था, बावजूद कि वे अग्नि से पैदा हुए थे, वह अग्नि से पैदा हुए थे, लेकिन जल श्री विष्णु का मुख्य तत्व है। तो वे सभी मोटे लोग थे, वे लाठी की तरह पतले नहीं थे जैसे आज के आधुनिक विचार हैं, छड़ी जैसे पतले किसी टी बी मरीज़ की तरह|

लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सभी मोटे लोग अच्छे हैं। हम हमेशा तार्किक रूप से सोचते हैं कि, अगर माँ ऐसा कहती है, तो मोटे लोग अच्छे होते हैं। ऐसी बात नहीं है, उसका भीतरी भाग, जो मैं कह रही हूँ, उसका भीतरी भाग, बिलकुल विपरीत है। इसका भीतरी भाग बिल्कुल सुंदर है और बिल्कुल प्रेम, स्नेह और गर्मजोशी से भरा हुआ है। जिस व्यक्ति के पास ये चीजें नहीं हैं, वह उस व्यक्ति की निशानी है जो सहजयोगी नहीं है, सबसे पहले। जो व्यक्ति बहुत उच्च स्वर है, तेज़ आवाज़ में बात करता है, जोर से बोलता है, गलत जगहों पर हंसता है वह आधा पागल होना चाहिए लेकिन सहज योगी नहीं हो सकता।

देखिए श्री राम की यह कोमलता उस चरम सीमा तक जाती है जहां मैं संकोच कहती हूं, यथा विधि आचरण, औपचारिक “लेकिन यदि आप देखें, तो अंग्रेजी भाषा, औपचारिक उचित शब्द नहीं है, संकोच है। एक बार वे रावण से युद्ध कर रहे थे और एक के बाद एक उसके दस सिरों को अपने बाणों से काट रहे थे। और अगर वे एक काटते फिर दूसरा काटा तो, पहला वापस आ जाएगा, क्योंकि उसके पास एक तरह का आशीर्वाद था कि कोई भी उसके सिर पर प्रहार कर उसे मार नहीं सकता।

तो लक्ष्मण कहते हैं, आप निश्चित रूप से जानते हैं कि इस रावण को उसके सिर पर प्रहार कर नहीं मारा जा सकता है, तो आप उसके दिल में क्यों नहीं प्रहार करते?

तो उन्होंने कहा, इसका कारण यह है कि अभी उनके हृदय में महालक्ष्मी सीता हैं। उसके हृदय में सीता विराजमान हैं। और मैं उसे उसके दिल पर कैसे प्रहार कर सकता हूँ क्योंकि वह वहाँ है। उसे चोट लग सकती है।

तो सिर पर वार करने से क्या फायदा? उसने कहा।

उन्होंने कहा, क्योंकि एक बार जब मैं उसके सिर पर तेजी से वार करने लगूंगा तो उसका चित्त वहां जाएगा। जैसे ही उसका चित्त उसके सिर में जाएगा तो मैं उसके दिल पर वार कर सकता हूं। संकोच देखें। संकोच देखें, जिस तरह से उन्होने बात की थी।

अब, फिर क्या हुआ, कि वह इतने दयालु थे कि एक बार एक बहुत ही कुरूप महिला, सूर्पणखा, उन्हें लुभाने के लिए आई। और उसने कहा, वह लुभाने आई थी, उसने कहा कि, राम तुम मुझसे शादी क्यों नहीं करते?

मेरा मतलब है, राम जैसे व्यक्ति के लिए जो मर्यादा पुरुषोत्तम है, इतना भयानक प्रश्न पूछने के लिए , कोई और होता तो कुछ अन्य नहीं तो वास्तव में उसे पीटा होता। तो श्री राम मुस्कुराए।

उन्होंने कहा, मैडम, मुझे खेद है, मेरी एक पत्नी है और मैं एक पत्नी में विश्वास करता हूं, “एक पत्नी व्रत “। इसलिए मुझे खेद है कि मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता। परन्तु शरारत से वह कहते है, ठीक है, मेरा भाई है। उनकी पत्नी अयोध्या में रह गई हैं। आप पूछ सकती हैं।

वह उसके पास गई और पूछा, लक्ष्मण तुम मुझसे शादी क्यों नहीं करते?

वह बहुत खूबसूरत हो गई थी। उसने खुद को एक खूबसूरत महिला के रूप में बदल लिया है। वह किसी ब्यूटी पार्लर या कुछ और गई होगी, लेकिन उसने खुद को वैसा ही बनाया, और वह वहां थी।

और लक्ष्मण ने उसे इतने गुस्से में देखा, उसने कहा, तुम, बदसूरत, तुम ऐसा सवाल क्यों पूछना चाहते हो?

उसने उसकी नाक काट दी। जब उसने उसकी नाक काटी, तो वह जगह नासिक में थी और इसलिए – नासिक का मतलब नाक है, और इसलिए आप नासिक गए हैं, यही वह जगह है जहाँ उसने उसकी नाक काटी थी। वह बहुत क्रोधित था। लेकिन श्री राम ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने एक तरह से यह बहुत आश्वस्त करने वाला कहा कि, देखिए मेरी एक पत्नी है और मैं एक ऐसा व्यक्ति हूं जो अपनी, एक पत्नी में विश्वास करता है।

अब उसके बारे में एक और चरित्र यह था कि वह सुसंगत (कथन और करनी में एक रूपता)थे। वह श्रीकृष्ण की तरह कभी असंगत नहीं थे। श्री कृष्ण एक राजनयिक थे और कूटनीति असंगत (विरोधाभासी)होने में है। [हँसी]

श्रीकृष्ण की शैली अलग थी। परंतु-

श्री माताजी किसी बच्चे को : क्यों ? आपके साथ क्या बात हो गयी? क्यों? यह क्या है? तुम यहाँ आकर बैठो, इस तरफ। टीना के साथ आओ, आओ और दूसरी तरफ बैठो। तुम उससे बात क्यों करते हो? जाओ और पीछे बैठो, जाओ! उसने मुझे पहले ही पुणे में बहुत अच्छा समय दिया है। और अब, वह यहाँ है।

जब मैं बात कर रही हूँ, कृपया एक दूसरे से बात न करें। यह कम से कम आप मेरे साथ कर सकते हैं। क्या आपने किसी भारतीय को ऐसा व्यवहार करते देखा है।

यह बहुत परेशान करने वाला है।

मैं आप पर ध्यान केंद्रित कर रही हूं जबकि आप मुझ पर एकाग्र चित्त नहीं  हैं। यह ठीक है जब कोई मजाक होता है, कुछ आप हंसते हैं, एक-दूसरे से बात करने की क्या ज़रूरत है मैं समझ नहीं पा रही हूं? ठीक है। क्षमा करें, मुझे यह कहना पड़ा, आप देखिए, उस समय जब मैं श्री राम की चर्चा कर रही हूं। श्री राम ने ऐसा नहीं कहा होता। [हँसी]

[श्री माताजी कंधे उठाते हैं]

लेकिन सहज योग में आप श्री राम की तरह आगे नहीं बढ़ सकते। कभी-कभी आपको परशुराम की तरह भी बनना पड़ता है, अन्यथा चीजें काम नहीं करती हैं।

अब, जब वह इसके साथ आगे बढ़े, तो उनके चरित्र में, जो इतना सुंदर था, कि आप पाते हैं कि वह इतने सुसंगत व्यक्ति थे। उन्होंने जो कुछ भी कहा, जीवन भर, उन्होंने उसे निभाया। उदाहरण के लिए, उन्होंने कहा, मैं वह हूं जो एक पत्नी, “एक पत्नि व्रत” में विश्वास करता हूं।

अब उसकी एक बहुत अच्छी पत्नी थी, निःसंदेह, बहुत सुंदर पत्नी, लेकिन वह रावण के पास गई थी और वह अकेले रह गये थे। जब वे राजसूर्य यज्ञ नामक एक प्रकार का यज्ञ शुरू करना चाहते थे, जो पूरी दुनिया को जीतने के लिए था, तो उनसे कहा गया कि: “आपको शादी करनी होगी क्योंकि आपकी अपनी पत्नी होना चाहिए”।

उन्होने कहा: “नहीं, मैं शादी नहीं कर सकता क्योंकि कोई भी मेरी पत्नी जैसी नहीं हो सकती और मैं शादी नहीं कर सकता। मैं इस तरह के यज्ञ को छोड़ सकता हूं लेकिन मैं दोबारा शादी नहीं कर सकता।”

तो, फिर उन्होंने कहा: “ठीक है, आप केवल एक ही काम कर सकते हैं कि सोने में सीता की मूर्ति बनाना है और आपको उस मूर्ति का उपयोग एक पत्नी के रूप में करना है, जो प्रतिनिधित्व करती है”।

उन्होंने कहा: “कि मैं सहमत हूँ”।

उन्होने अपने सारे जेवर निकाल दिए, सब कुछ, और उस मूर्ति को बनाया और उन्होने यह यज्ञ किया । तो उन्होने जो कुछ भी कहा, उन्होने पूरी तरह से उस बात का पालन किया। अपने धर्म में वे निश्चल थे।

एक और घटना यह है कि जब सीता खो गईं, वे कभी नहीं सोए, वे कभी बिस्तर पर नहीं सोए, हमेशा धरती माता पर। कभी बिस्तर पर नहीं सोए, हमेशा धरती माता पर।  अपनी पत्नी को ले कर उनकी पीड़ा को भारत के सभी कवियों ने बहुत अच्छी तरह से वर्णित किया है। और जब सीता ने अंततः उन्हें छोड़ दिया, तो एक बहुत ही रहस्यमय तरीके से, वह धरती माता में समा गईं क्योंकि धरती माता ने ही उन्हें जन्म दिया था इसलिए वह धरती माता में समा गईं। तब श्री राम भी बिल्कुल हार गए और वे सरयू नदी में कूद गए और जल तत्व में विलीन हो गए जहां से वे आए थे।

अब इस आदमी को अपनी पत्नी को छोड़ना पड़ा। इस विरोधाभास में, आप एक व्यक्तित्व की लहर को उठते और गिरते देख सकते हैं। जिस समाज में वे रहते थे, जिस राज्य पर उन्होंने शासन किया था, उसे रावण के साथ रह चुकी उनकी पत्नी से आपत्ति थी और जनता इसके बारे में बात करने लगी थी। इसलिए, एक अच्छे राजा के रूप में, उन्होंने एक अच्छे राजा के रूप में बस यह फैसला किया कि उनकी पत्नी को हमेशा के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए। और फिर उन्होने उसे अपने प्रधान मंत्री के साथ एक सुंदर रथ पर भेजा और उसके भाई, लक्ष्मण, जो उसे नीचे ले गए और उसे छोड़ दिया, ने उससे कहा: “यह इस तरह घटित हुआ है और श्री राम ने हमें आपको आश्रम में ले जाने के लिए कहा है। वाल्मीकि के”

इसके परिणामस्वरूप वह बहुत उलझन में पड़ गई और उसने कहा, वह आदि शक्ति थी इसलिए उसे परेशान होने की जरूरत नहीं है। उसने कहा: “तुम मुझे यहाँ छोड़ दो”। बहुत स्वाभिमानी व्यक्तित्व। उसने यह नहीं कहा: “नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, मैं उसके पास आऊंगी या मैं उस पर मुकदमा करूंगी। मैं अदालतों में जाऊँगी, उसका सारा पैसा लूंगी। उसने मुझे बाहर निकालने की हिम्मत कैसे की!” ऐसा कुछ नहीं। यह एक महिला की सुघड़ता है।

उसने कृपा पूर्वक कहा: “ठीक है, अब तुमने अपने भाई की बात मान ली है। मैं तुम्हारी भाभी हूँ, बड़ी भी। अब तुम मेरी आज्ञा मानो। और मैं तुमसे कहता हूं, तुम्हारी भाभी के रूप में, कि अब तुम जा सकते हो। मुझे यहाँ अकेला छोड़ दो और मैं नहीं चाहती कि तुम किसी और के साथ मुझे निर्वासित करने के लिए मेरे साथ और आगे जाओ।” और वह गर्भवती थी।

यहां अगर ऐसा होता है, तो भयानक चीजें हो सकती हैं, लेकिन भारत में अगर ऐसा होता है, तो पत्नी खुद को मार देगी या वह इसे सहन नहीं कर पाएगी। मुझे लगता है कि दोनों चीजें समान हैं, पलायन। अगर आक्रामकता नहीं है तो पलायन है।

लेकिन उसने कहा: “नहीं। मुझे इन दो बच्चों को जन्म देना है। मैं अपनी देखभाल कर सकती हूँ, ठीक है। सुघड़ता से उसने यह किया है, मेरे पास कुछ भी नहीं है और कृपया उनसे कहें कि वह मेरी चिंता न करे”। और उसने श्री लक्ष्मण से कहा कि: “ठीक है, तुम उसकी देखभाल करो, मुझे बस इतना ही चाहिए”। और उसने मुख्यमंत्री, मंत्री से कहा, कि: “आपको राज्य की देखभाल करनी चाहिए”।

गरिमा देखें, संतुलन देखें, चरित्र देखें, श्री राम का व्यक्तित्व। उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता था। और उसकी पत्नी को देखो! वह हर तरह से उनके बराबर थी।

जब उसे रावण ने रखा, तो रावण उसकी शक्ति से इतना भयभीत था कि उसने उसे छुआ तक नहीं था। वह उसे डराता था, कहता था: “मैं भारत की महिलाओं के साथ ऐसा करूँगा। मैं दुनिया की महिलाओं के साथ ऐसा करूंगा। मैं उस तरह का एक भयानक काम करूँगा। मैं दूसरा जन्म लूंगा। मैं गलत व्यवहार करूंगा।” उसने कहा: “जो तुम्हें पसंद है वैसा करो। तुम मुझे छू नहीं सकते।”

वह उसका हाथ नहीं छू सका, वह बहुत डरा हुआ था! और जब हनुमान श्री राम की अंगूठी लाए और उन्हें भेंट की और कहा कि: “यह श्री राम की अंगूठी है।”

उसने कहा: “हाँ, मुझे पता है। वह कैसे है?”

उसने कहा: “ठीक है।” सभी पूछताछ उसने उनके बारे में की थी।

तो उसने कहा: “माँ, मैं तुम्हें अपनी पीठ पर ले जा सकता हूँ। मैं आपको आसानी से ले सकता हूं। तुम मेरी पीठ पर आओ और मैं तुम्हें ले जाऊंगा।”

उसने कहा, नहीं। मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊँगी। यह मेरा- यह श्री राम हैं जो एक बहादुर राजा हैं, उन्हें स्वयं आना चाहिए, इस रावण से लड़ना चाहिए, उसे मार देना चाहिए क्योंकि वह दुष्ट है। तब मैं उनके साथ सारे गौरव के साथ चलूंगी।”

वह किसी चीज से नहीं डरती थी। उसके लिए, महत्वपूर्ण बात यह थी कि रावण को मारा जाना चाहिए, वह दुष्ट है और उसे राम द्वारा मारा जाना चाहिए। एक महिला के लिए इतना बड़ा साहस! दोनों पक्षों को, यदि आप देखें, तो आपको आश्चर्य होगा कि एक महिला का चरित्र इतना शक्तिशाली कैसे होता है। यह कोई प्रतिक्रियावादी बात नहीं है: ” चूँकि, मेरे पति ऐसे हैं, इसलिए मैं ऐसी हूं” या “मेरे पति मेरे लिए ऐसा नहीं करते हैं, इसलिए मैं ऐसी हूं। मेरे पति चले गए हैं इसलिए मैं बर्बाद हो गई हूँ। मैं अपने पति के बिना क्या करूँ?” ऐसा कुछ नहीं। वह अपने पैरों पर खड़ी है।

उसने हनुमना को “नहीं” कहा और वह अपने पैरों पर खड़ी हो गई और वह कहती है: “जब राम आएंगे और इस बुराई को मारेंगे और इस बुराई को इस धरती से हटा देंगे, तभी वे मुझे अपने साथ ले जा सकते हैं। मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊँगी। मैं भाग कर नहीं बचूंगी। मैं नहीं भागूंगी। ऐसा बिलकुल भी नहीं। यहां मैं खुद इसका सामना करने जा रही हूं।”

एक महिला के लिए ऐसा कहना बहुत ज्यादा है जो कि किसी भयानक व्यक्ति की जेल में हो, या उसके लिए इतनी खतरनाक जगह में कैद हो कर भी, यह कहना कि: “मैं नहीं जाऊंगी। आप जो भी कोशिश करें, आप जो भी कोशिश कर सकते हैं, आप जो भी कह सकते हैं। मैं नहीं जाऊंगी।” ज़रा कल्पना करें! और रावण इतना भयानक व्यक्ति था। उसने उसके साथ हर तरह की चीजें कीं लेकिन वह बिल्कुल उत्तेजनाहीन और शांत रही, अपने पति के वापस आने का इंतजार करती रही। क्या हम आधुनिक समय में ऐसी महिलाओं के बारे में सोच सकते हैं?  खुद से इतनी संतुष्ट, इतनी संतुलन में, इतनी आत्मविश्वास और मज़बूती से भरी| यही सीता के जीवन का संदेश है।

श्री राम की उदारता तब प्रकट हुई, जब उन्होंने लोगों पर शासन करना शुरू किया। वही थे जो लोगों की जरूरतों का ख्याल रखते थे। उनके लिए, यह महत्वपूर्ण था कि जिन लोगों पर उन्होने शासन किया, वे सुखी और हर्षित हों। वह बड़े प्रेम से उनकी देखभाल करते थे|

उनके दो पुत्र थे जिनकी उन्होंने थोड़े समय के लिए देखभाल की चूँकि वे माता सीता के साथ खो गए थे। और वे ही हैं जिन्होंने उन्हें ढूंढ निकाला इस तरह से चूँकि वाल्मीकि ने उन्हें रामायण गाना सिखाया। और वे अयोध्या गए और रामायण गाया। राम उनके साथ गए। और एक दिन एक यज्ञ में, जब उन्होंने श्री राम के घोड़े को पकड़ा, तो हनुमान को उन दो लड़कों से लड़ना असंभव लगा और वे समझ नहीं पाए।

यहाँ अब, महान हनुमान के चरित्र का वर्णन करना होगा। उन्होंने जाकर श्री राम से कहा: “मैं नहीं समझ सकता, ये दो लड़के, मैं उनका सामना नहीं कर सकता। मुझे नहीं पता कि वे कौन हैं।”

तो, श्री राम वहाँ गए। और ये लड़के उनके बाण लिए खड़े थे। तब श्री सीता उनके सामने प्रकट हुईं और उन्होंने कहा: “तुम युद्ध नहीं कर सकते। वह तुम्हारे पिता हैं।”

इस बात का हनुमान को जब एहसास हुआ। और उन्होंने कहा: “ठीक है, मैं अब श्री राम से लड़ सकता हूं। उन्होने आपको इस तरह क्यों छोड़ दिया?” श्री हनुमान की मधुरता देखिए जो इतने महान भक्त थे, श्री राम के इतने महान भक्त, देख सके थे कि उन्होंने मेरी माँ के साथ अन्याय किया है और वे उसके पक्ष में खड़े हैं। ऐसा करना श्री हनुमान की बहुत मधुरता है।

हनुमान, जैसा कि आप जानते हैं, फरिश्ता गेब्रियल है जो मासूमियत, सादगी और गतिशीलता है। उनकी गतिशीलता ऐसी थी कि जैसे ही उनका जन्म हुआ, उन्होंने कहा: “इस सूरज को खा जाओ क्योंकि सूरज भारत में लोगों को झुलसा रहा है”। सो उन्होने जाकर सूर्य को निगल लिया।

लोगों को कहना पड़ा था कि: “माना कि, सूरज झुलसा भी रहा है, लेकिन यह बहुत मददगार है। कृपया सूर्य को मुक्त करें। आपने इसे खा क्यों लिया?” तो फिर उन्होंने सूरज को छोड़ दिया।

हनुमान का पूरा जीवन श्री राम की सेवा में व्यतीत हुआ। और वे श्री राम के इतने समर्पित भक्त थे। अब यहाँ विरोधाभास यह भी है कि हनुमान के पास “नवधा”, “नवधा सिद्धियाँ”, “नवधा सिद्धियाँ”, नौ सिद्धियाँ: जैसे, “अणिमा, गनीमा, लघुमा” और सभी प्रकार की चीजें थीं, जिससे वह छोटा हो सकते थे, वह बड़ा हो सकते थे, उनके पास कितनी चीजें थीं।

इन सभी सिद्धियों और उनके पास जितनी शक्ति थी, उसके बावजूद, श्री राम ने एक बार उनसे पूछा था कि: “मेरे भाई, लक्ष्मण पर प्रहार हुआ है और वे बहुत बीमार हैं। मेरा मतलब है, वह बस मर रहा है, तो आप जाओ और एक विशेष प्रकार की “संजीवनी”, एक प्रकार की जड़ी-बूटी लाओ, जिसे मैं उसके सिर पर रगड़ना चाहता हूं।”

तो वह वहाँ गये और वे उसे पहचान नहीं पाए, इसलिए उन्होने पूरे पहाड़ को अपने हाथ में ले लिया और राम को ला कर दे दिया: “अब आप ही चुनो। मुझें नहीं पता। मुझे यह नहीं मिल रहा है।”

ऐसी है हनुमान शक्ति ! और उन सारी शक्तियों के साथ, वह इतने विनम्र और इतने समर्पित व्यक्ति थे। यह एक शक्तिशाली सहजयोगी की निशानी है। जो भी शक्तिशाली है उसे विनम्र और अहिंसक होना चाहिए।

महात्मा गांधी कहा करते थे कि: “कमजोर की अहिंसा क्या है? एक कमजोर को अहिंसक होना ही पड़ता है, इसमें क्या महानता है? वह एक नीति या एक प्रकार की सुरक्षा है जो उसके पास है। तो एक कमजोर व्यक्ति को अहिंसक होना पड़ता है क्योंकि वह सामना करने में सक्षम नहीं होता है, वह विरोध नहीं कर सकता। लेकिन शक्तिशाली की अहिंसा वास्तविक अहिंसा की निशानी है।”

जो शक्तिशाली हैं, अगर वे अहिंसक हैं, तो इसका मतलब है कि उन्हें अपनी शक्तियों पर पूरा भरोसा है। जिन लोगों को अपनी शक्तियों का भरोसा है, वे दूसरों पर आक्रमण क्यों करें? वे बस खड़े हैं, “ठीक है, सामने आओ, तुम्हें क्या चाहिए?” ऐसा कहने पर ही लोग भाग जाते हैं।

तो जो हिंसक, क्रोधी, गर्म स्वभाव वाले, हर किसी पर झपटने वाले हैं, सभी को प्रताड़ित करते हैं, सभी को परेशान करते हैं, वे लोग बहुत कमजोर चरित्र वाले होते हैं। उनका चरित्र कमजोर है। अगर उनका चरित्र ठीक होता तो वे ये सब काम नहीं करते।

यह उस व्यक्ति की निशानी है जो या तो बाधा ग्रसित है या किसी बाधा ग्रसित के प्रभाव में है – इसीलिए वह ऐसा कर रहा है; या वह बहुत कमजोर है और वह अपने क्रोध से ग्रस्त है क्योंकि उसके पास कुछ भी सहन करने की इतनी शक्ति नहीं है।

धरती माता सबसे शक्तिशाली चीज है क्योंकि उसमें सहन करने की शक्ति है। जिसके पास सहन करने की शक्ति है, वही शक्तिशाली है। जिसके पास सहन करने की शक्ति नहीं है कि, मैं सहन नहीं कर सकता। मुझे पसंद नहीं है। मैं यह… ऐसा व्यक्ति इस धरती के लिए एक बेकार चीज है और कभी-कभी मुझे लगता है, भगवान ने उन्हें क्यों बनाया? आपके आसपास ऐसे एक व्यक्ति का होना सिरदर्द है, मैं यह नहीं खा सकता\सकती । मुझे यह पसंद नहीं है। तब तुम यहां क्यों हो? आपको कोई भी पसंद नहीं करता। ऐसे व्यक्ति को कोई भी पसंद नहीं करता है और इसलिए वह व्यक्ति हमेशा ऐसा करता है कि, “मुझे यह पसंद नहीं है। मुझे वह पसंद नहीं है”। मैं | अतः व्यक्ति की शक्ति वस्तुओं को सहन करने में होती है। आप कितना सह सकते हैं, आप बिना इसे महसूस किए कितना झेल सकते हैं? जैसे, उदहारण के लिए, तुम जंगल में भी हो मगर तुम सुखी हो। अगर आप किसी महल में हैं तो भी आप खुश हैं। यदि आप इस रंग या उस रंग के साथ हैं, यदि आप इस जाति या उस जाति के साथ हैं, यदि आप इस तरह के जीवन या उस तरह के जीवन के साथ हैं, तो आप इस में से गुज़र सकते हैं। और वह सहन  करने वाली शक्ति आपको क्षमता देती है, सहज योग के लिए क्षमता प्रदान करती है। ऐसा नहीं है कि यह प्रदर्शित किया जाता है, ऐसा नहीं है कि भुगतना पड़ रहा है, कहना नहीं पड़ता है कि, मैं ऐसा होने के कारण पीड़ा भोग रहा हूँ। नहीं, आप पीड़ा नहीं भोगते हैं। यह तो बस प्रसंगवश है। एक व्यक्ति जो सभी सुख चाहता है, एक व्यक्ति जो सभी विलासिता के साथ रहना चाहता है, लेकिन किसी भी प्रकार के दोष या किसी भी कमी से गुजरना नहीं चाहता है, ऐसा व्यक्ति एक भिखारी है, मैं शब्द के हर अर्थ में कहूंगी।

मेरा मतलब है, समस्याओं से छुटकारा पाने का सबसे बढ़िया तरीका है उनका न होना। इस अर्थ में कि: अब चूँकि मैं गाड़ी नहीं चलाती इसलिए मुझे ड्राइविंग की कोई समस्या नहीं है। मेरे पास नहीं है – मैं कभी टेलीफोन नहीं करती हूँ, इसलिए मुझे टेलीफोन की समस्या नहीं है। मैं बैंकों में नहीं जाती, इसलिए मुझे बैंकों की समस्या नहीं है। सबसे अच्छा यह है: मेरी कोई आय नहीं है इसलिए मुझे आयकर की कोई समस्या नहीं है। जो कुछ भी आपको परेशान करता है, उसे आपके पास नहीं होना चाहिए। आप इसे क्यों पाना चाहते हैं? पहले इसे लें और फिर इसके बारे में परेशान हों? यह बहुत मज़ेदार लगता है कि आप इस दुनिया में किसी भी परेशान करने वाली चीज़ से बहुत आसानी से छुटकारा पा सकते हैं, इसलिए आपको अपने सिर पर उस तरह की कोई चीज़ रखने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन जब शब्द ‘समस्या’, विशेष रूप से यूरोपीय समुदाय में ‘समस्या’ एक बहुत ही सामान्य शब्द है, लेकिन अंग्रेजी भाषा में हमने इस शब्द ‘समस्या’ को कभी नहीं सीखा। आप देखते हैं कि जब हम ज्यामिति, ज्योमेट्री गणित की समस्या का अध्ययन कर रहे थे तो केवल ‘समस्या’ का उपयोग किया जाता था, लेकिन हम कभी नहीं जानते थे कि जीवन में कोई समस्या है। बाद में जब मैं यूरोपीय समुदाय के संपर्क में आयी, तो वे कहेंगे, कोई ‘समस्या’ नहीं है। यही ‘समस्या’ है। कम से कम एक दिन में सौ बार वे ‘समस्या’ शब्द कहते हैं। तो, किसी समस्या का समाधान है कि, जो चीज़ आपको समस्या देती है उसे ना अपनाये। आप कुछ भी त्याग सकते हैं। आप जो कुछ भी चाहते हैं, आप उसे त्याग सकते हैं यदि आप जानते हैं कि इससे खुद को कैसे निर्लिप्त किया जाए।

बहुत से लोग आकर मुझसे कहते हैं, माँ हमें अहंकार है। यही समस्या है।

मैंने कहा, फिर छोड़ दो।

मेरा मतलब है, सरल है, आपके पास यह क्यों है? मानो, आप देखिए, वे कहना चाहते हैं कि, हमें इस चीज़ से परेशानी है लेकिन फिर भी हम इस पर चिपके हुए हैं। जैसे हम मगरमच्छ से डरते हैं लेकिन हम मगरमच्छ के मुंह में अपना पैर रखना चाहते हैं। और हमें एक समस्या है कि हमारा पैर मगरमच्छ द्वारा खा लिया जाएगा। अब छोड़ भी दो। परन्तु वे एक मगरमच्छ को ढूंढ़कर मुंह खोलेंगे, और उस में अपना पांव डालेंगे, और फिर मेरे पास आकर कहेंगे, हे माता हम को समस्या है। मेरा पैर मगरमच्छ के मुंह में है।

समस्याएं होने के लिए आपको उस तक पहुंचना होगा। लेकिन यदि आप उस तक जाते ही नहीं, आपको कोई समस्या कैसे होगी? मान लीजिए, उदाहरण के लिए, लोगों को बहुत ही मूर्खतापूर्ण, बेवकूफाना समस्याएँ हैं। अब, पहली समस्या किसी को हो सकती है, ओह, मुझे अपने कपड़े प्रेस करवाने होंगे। जरूरत क्या है? कोई दिक्कत नहीं है। उन्हें वैसे ही पहनें जैसे वे हैं। इसे कौन देखता है? आप देखते हैं कि सभी लोग हैं जिन्होंने कपड़े प्रेस करवाए हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि वहां क्या है। अगर ये प्रेस किये हुए ना हों तो, यह उनके लिए एक समस्या है। यह इस तरह की मूर्खतापूर्ण बातें हैं, आप बहुत ही मूर्खतापूर्ण चीजें देखेंगे।

लेकिन मुझे लगता है कि सबसे बड़ी समस्या आपकी घड़ी है। स्विट्जरलैंड में, मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए। आप देखिए समस्या ऐसी है कि अब आपको एयरपोर्ट जाना है। अब जैसे ही आप किसी को बताते हैं कि अब हमें  एयरपोर्ट जाना है, मुझे जाना है, आपको नहीं जाना है – हर कोई एक तरह से उछल-कूद करने लगता है जैसे कि जंपिंग बोर्ड पर खड़ा हो। आप उन सभी को ऐसे ही उछल कूद करते हुए देखें।

क्या बात है?

माँ आपको एयरपोर्ट जाना है।

तो, यह सब ठीक है। मुझे जाना है। तुम्हें क्या हुआ?

एक समस्या है।

मैं कहती हूँ, समस्या क्या है? मुझे जाना है। आप बस इतना जान लो कि आपको बिल्कुल भी नहीं जाना है और न ही एयरपोर्ट पर आना है। और हवाई जहाज, अगर यह आता है और मुझे नहीं ले जाता है, तो मैं आपके सिर पर वापस नहीं आने वाली हूं तब मैं एक होटल में रहूंगी। आप चिंता न करें।

लेकिन आप इसे लेकर इतने उत्साहित क्यों हैं? जिस तरह से लोग उत्साहित हैं कि मुझे विमान पकड़ना चाहिए, कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है जैसे वे मुझसे छुटकारा पाना चाहते हैं। तो, यह उन लोगों के लिए एक समस्या है जो बहुत सतर्क हैं। अब, मान लीजिए कि मैं कहती हूं, मुझे पता है कि विमान मुझे नहीं छोड़ेगा। मुझे पता है, क्योंकि मैं बहुत कुछ जानती हूं इसलिए मुझे कोई समस्या नहीं है, लेकिन मान लीजिए कि अगर आपको लगता है कि विमान आपको नहीं मिल सकता है, तो यह नहीं मिल सकता है। लेकिन अगर यह आपको मिलता है, ठीक है। अगर यह आपको नहीं मिलता है, तो यह ठीक है। तो समस्या कहां है? या तो यह आपको ले जाएगा या यह आपको नहीं ले जाएगा। बीच में क्या है? समस्या कहाँ है, मुझे अभी भी समझ में नहीं आता है। या तो यह कार्यान्वित होगा या यह काम नहीं होगा। दो संभावनाएं रखें। बस यही दो संभावनाएं हैं। तीसरी संभावना क्या है जो आपको समस्या देती है? तुम मुझे बताओ।

कहो कि किसी पर मेरा पैसा बकाया है, ठीक है, तो या तो वह मुझे लौटायेंगे या वह मुझे नहीं दे पायेंगे। समस्या क्या है? समस्या यह है कि आप इसे एक समस्या कहते हैं और सच्चाई का सामना करने से बचना चाहते हैं। सच का सामना करोगे तो एक बात जानोगे कि देखो अब इस आदमी को मुझे पैसे देने हैं। ठीक है, मैं जाऊंगा और इसका सामना करूंगा। मैं उससे कहूंगा, सर, आपको मुझे पैसे लौटने होंगे। आपको मुझे भुगतान करना होगा। यह आपका कर्तव्य है और यदि आप मुझे भुगतान नहीं करते हैं, तो आप गलत कर रहे हैं। तुम उसके पास जाओ और उसका सामना करो और उसे बताओ। लेकिन आप ऐसा नहीं करेंगे। तुम घर पर बैठे, हे भगवान, यह एक समस्या है। मैं क्या करूँ, आप देखिए, वह आदमी पैसे नहीं दे रहा है¦ हे भगवान। ये एक समस्या है। यहाँ बैठे-बैठे हर समय सिर मारते रहे, कैसे मिलेगा?

यदि आप इसका सीधे सामना करते हैं तो आप चकित रह जाएंगे, किसी भी चीज की कोई समस्या नहीं है। जैसे कहो कि, आपकी कार विफल हो जाती है। तो यह खराब हो जाती है, नीचे उतरो, किसी के आ कर आप को अपने साथ ले जाने तक अपने आप का आनंद लें| या, यदि मान लें कि आपको कुछ लिफ्ट नहीं मिलती है, तो ठीक है, रात भर वहीं रुकें। इसमें क्या है? कोई बाघ तुम्हें खाने वाला नहीं है। और अगर बाघ को तुम्हें खाना पड़ेगा, तो वह खाएगा। समस्या कहाँ हे? फिर भी मैं नहीं देख पाती। मैं समस्या नहीं देख पाती। अगर बाघ को खाना है, तो यह तय है कि बाघ को खाना पड़ेगा। किसी भी हाल में कोई मरता नहीं है। आप फिर से जन्म लेंगे। यदि आप इसे उस दृष्टीकोण से देखेंगे तो आपको आश्चर्य होगा, अधिकांश समस्याएं मौजूद नहीं हैं। वे हमारी अपनी सोच से बने बुलबुले की तरह हैं, हमारी सोच की लहरें, यही समस्या है। यही दिक्कत है। जैसे आज, उन्होंने कहा कि अमुक -अमुक तारीख पर कोई हॉल नहीं है। ठीक है।

आपके पास हॉल कहाँ है?

वहाँ।

अगर कोई हॉल नहीं है, तो हम उसे खुले में रख दें।

तो इसे सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए, श्री राम जिस तरह से आपको दिखाते हैं। अब, उन्होने किस प्रकार हमारी सहायता की है, आइए देखें। श्री राम ने अपने चरित्र, अपने संतुलन, अपनी शांति और अपनी कोमलता और उनकी मधुरता से हमें दिखाया है कि कैसे एक राजा को एक परोपकारी राजा होना चाहिए और साथ ही साथ एक बहुत ही प्यार करने वाला पति और एक प्यार करने वाला पिता और धर्म में स्थित एक व्यक्ति होना चाहिए। लेकिन इसके अलावा वह महाराष्ट्र गए। उन्होंने इन सभी चीजों की व्यवस्था की ताकि वे जमीन को चैतन्यित करने के लिए नंगे पांव महाराष्ट्र में चल सकें क्योंकि सहज योगी एक दिन महाराष्ट्र जा रहे होंगे और महाराष्ट्र को एक स्पंदित भूमि बनना होगा। अयोध्या में उन्होंने कभी अपने जूते नहीं निकाले क्योंकि वे वहां के राजा थे। लेकिन जब वे गए, और श्री सीता, वे दोनों, जब वे महाराष्ट्र गए, तो उन्होंने इसे चैतन्यित करने के लिए अपने जूते निकाले। अपने रास्ते में, उन्होंने एक बड़ा पत्थर देखा, जो और कुछ नहीं बल्कि एक महिला थी जिसे पत्थर होने का श्राप मिला था, अहिल्या। और उन्होने उसे, बस अपने स्पर्श मात्र से बनाया, वह फिर से जीवित हो गई। उस तरह, एक के बाद एक वे बस, वैसे ही , मानो कर रहे हों, लेकिन वहाँ जाने में उनके जीवन का उद्देश्य था। और इसने हमारे भीतर एक बहुत बड़ी उपलब्धि में मदद की है, श्री राम हैं।

श्री राम का अर्थ है प्राणवायु, हमारे द्वारा ग्रहण की जाने वाली प्राणवायु के लिए है। प्राण वायु के लिए, और उस प्राण वायु के गर्म होने पर, हमें यह जानना होगा कि हम अब श्री राम के साथ नहीं हैं। आपकी नाक और आपके मुंह से बहने वाली ठंडी हवा होनी चाहिए। मैं आप लोगों के बारे में नहीं जानती लेकिन, यह मेरे साथ हर समय होता है। जब तुम क्रोधित होते हो तो नथुने ऊपर जाते हैं, सूज जाते हैं, और गर्म हवा, गर्म शब्द, और सब कुछ गर्म, गर्म आँखें, और सब कुछ उसी तरह ऊपर की ओर मुड़ जाता है, और आप क्रूर रावण बन जाते हैं क्योंकि आप सुंदरता को भूल गए हैं श्री राम के स्वरूप के बारे में|

उन्होंने हमारे मध्य हृदय के साथ जो किया है वह सबसे बड़ी बात है, कि उन्होंने आपको अपने भीतर पितृत्व दिया है क्योंकि श्री राम पितृत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। अब आप किस तरह के पिता हैं, यह आपको तय करना है। वे लोग जो अच्छे पिता नहीं हैं, उन्हें दाहिने हृदय की समस्या हो जाती है। साथ ही वे लोग जो अच्छे पति नहीं होते हैं उनका भी दायाँ हृदय विकार होता है। यह दाहिना हृदय इतना महत्वपूर्ण है क्योंकि, विशेष रूप से पश्चिम में जहां जलवायु बहुत अज़ीब है, आपको अपने कमरों के अंदर और हर समय बंद रखना पड़ता है कि आप उस समय अंदर शुष्क हो जाते हैं यदि आपके पास वह मिठास नहीं है, वह गर्मजोशी, श्री राम की वह कृपा, आपको दमा की परेशानी मिलती है। पश्चिम में इतने सारे लोग दमा से मर जाते हैं। उसके ऊपर आप अपनी पत्नियों से लड़ते हैं, उनके साथ बुरा व्यवहार करते हैं, आप उनके पैसे छीन लेते हैं, आप उनके पैसे में धोखा देते हैं और हर तरह से आप उन्हें प्रताड़ित करते हैं तो यह और भी बुरा हो जाता है।

तो इसका पैसे से कुछ लेना-देना है, इस मायने में, चूँकि सीता जी श्री लक्ष्मी थीं और सीता जी श्री राम की शक्ति थीं। तो जब आप एक बुरे पिता या बुरे पति होते हैं श्री लक्ष्मी भी आपसे नाराज हो जाती हैं। इसलिए गृह लक्ष्मी का बहुत महत्व है। लेकिन स्त्री को गृह लक्ष्मी होना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए की वह कर्कशा\झगडालू स्त्री हो और तब भी पति से उसके प्रति दयालु होने की उम्मीद की जाए। फिर तो यह उसे बिगाड़ना हुआ। जो कि, और भी खराब है। महिला को गृह लक्ष्मी होना चाहिए, एक बहुत ही मधुर स्वभाव वाली सुंदर महिला और अपने पति से बहुत संकोच के तरीके से बात करना और बच्चों की देखभाल करना, परिवार की देखभाल करना और उनके घर आने वाले मेहमानों की देखभाल करना।

लेकिन अगर आप ऐसी महिलाओं को प्रोत्साहित करते हैं और उनके पीछे दौड़ते हैं जो अच्छी नहीं हैं, इसका मतलब है कि सामूहिक रूप से उन्हें अच्छा होना चाहिए; यदि सामूहिक रूप से ठीक से व्यवहार नहीं करती हैं, सामूहिक रूप से आक्रामक हैं, सामूहिक रूप से दूसरों को सता रही हैं, तो ऐसी महिलाओं को बिल्कुल भी प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि तब तुलसीदास कहते हैं, उन्हें पीटा जाना चाहिए।

यह बात इस आधुनिक समय में बहुत खराब दिखती है अगर कोई ऐसा कहता है, कि महिलाओं को पीटा जाना चाहिए, अगर उनमें ऐसे सभी अवगुण हैं जो उन्हें गृह लक्ष्मी होने से अयोग्य ठहराते हैं। निश्चित रूप से मारने की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन मेरे कहने का मतलब है कि ऐसा करना है कि आपको अपनी महिलाओं से इन सभी बाधाओं को निकाल बाहर करना होगा, यह बहुत महत्वपूर्ण है, अन्यथा यदि आप अपनी पत्नियों को सही दिशा में रखने की इस गतिविधि में पड़ जाते हैं, आखिर में परिणामस्वरूप आप एक दायें हृदय और अस्थमा रोग पाते है। क्योंकि आपकी पत्नी और आप समाज का हिस्सा हैं। और समाज के कुछ कानून हैं जो बहुत महत्वपूर्ण हैं।

स्त्री धर्म जैसा कुछ होता है, पति धर्म जैसा भी कुछ होता है, कुछ माता धर्म  है, पिता धर्म है, हर चीज का एक धर्म है। जो पुरुष अपनी पत्नियों को प्रताड़ित करते हैं उनका हृदय बहुत बुरा होता है। उसी तरह जो लोग अपनी पत्नियों के हाथों में खेलते हैं, उनका हृदय भी बहुत खराब होता है। आपको संतुलन में रहना होगा। आप पति हैं और वह आपकी पत्नी है और दोनों ही बहुत अच्छे पारिवारिक संबंध रखने के लिए जिम्मेदार हैं। यह एकतरफा नहीं है। यह केवल पति या पत्नी नहीं बल्कि उन दोनों का इस तरह से होना है कि वे स्त्री और पुरुष के अपने-अपने स्वभाव के अनुसार कार्य करें, और एक-दूसरे का सम्मान करें, एक-दूसरे से प्यार करें, एक-दूसरे के साथ सब कुछ साझा करें और इस तरह से मौजूद रहें कि लोगों को दिखना चाहिए कि रथ के दो पहिये हैं, एक बायीं तरफ, एक दाहिनी तरफ, कोई असंतुलन नहीं है। वे बराबर के हैं लेकिन समान नहीं हैं जैसा कि मैंने कई बार बताया है।

अब श्री राम के मामले में, उन्होंने अपनी पत्नी को छोड़ दिया। जब सीता की बात आई, तो उन्होंने भी उन्हें छोड़ दिया। लेकिन सीता जी ने उन्हें इस तरह  छोड़ दिया जैसे एक महिला चली जाएगी और श्री राम ने उन्हें इस तरह छोड़ा  जैसे एक पुरुष छोड़ देगा। सीता जी ने भी उन्हें छोड़ दिया लेकिन एक महिला के लिए उपयुक्त हो उस तरह से। और श्री राम ने इसे इस तरह से किया जो एक राजा के लिए उपयुक्त है। उसी तरह, एक महिला को, जब वह कार्य करती है, तो उसे कार्य एक महिला की तरह करना पड़ता है। वह उसी काम को पुरुष के तरीके से भी कर सकती है लेकिन,  उसे एक महिला जैसा होना चाहिए या एक पुरुष को एक पुरुष जैसा होना चाहिए।

तो वह मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, वही हैं जो सभी पुरुषों में सबसे ऊँचे है, जो सभी मर्यादाओं सभी सीमाओं का पालन करते हैं। सीमाएं ऐसी हैं कि आप दूसरों पर हावी होने की कोशिश नहीं करते हैं या आप उनकी जगह लेने की कोशिश नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, मैंने देखा है कि जो लोग आक्रामक होते हैं वे  हमारे कार्यक्रमों में भी दिखावा करते हैं, वे सबसे पहले मेरे सामने होंगे। वे होंगे, जैसे ही मैं द्वार खोलूंगी, वे वहीँ कहीं खड़े होंगे। वे हर चीज में प्रथम होंगे। यह ‘मर्यादित होना’ नहीं है। आपको पीछे होना चाहिए। होना चाहिए, आपके पास जो नेता हैं, वे सामने बैठ सकते हैं। पीछे रहने की कोशिश करो। मैं पहले बनना चाहता हूं.. फिर मैं एक बार कह चुकी हूँ पहले का पहला । पहले का पहला वाली कहानी तो आप जानते ही हैं। जब आप दिखावा करने की कोशिश करते हैं तो आपके साथ ऐसा होता है कि, आप पहले का पहला  बन जाते हैं। और मैं उन सभी को जानती हूं जो ऐसे हैं। पृष्ठभूमि में होना करने योग्य सबसे सम्मानजनक बात है। पहले आगे बढ़ना, पहले आगे कूदना, अगर माँ आ रही है तो दरवाजे के पास खड़े होना, आप देखिए। जैसे ही मैंने उस व्यक्ति को देखा, मैंने कहा, ओह फिर से। कुछ ऐसे हैं जो सिर्फ दिखावे के लिए आरती करते हैं, कुछ दिखाने के लिए फूल फेंकते हैं, उन्हें अवश्य ही प्रथम रहने की इच्छा रहती है और, किसी न किसी तरह, उनके दावों और माँगों के कारण उन्हें स्थान भी मिलता है। नेताओं को सावधान रहना होगा कि ऐसे लोगों को ऐसे कर्तव्य न दें जो वास्तव में अपने अहंकार के कारण, अपने दिखावे के कारण मुझे बहुत परेशान करते हैं।

मुझे आज एक बात कहनी है कि, इन परिस्थितियों में, हमें यह तय करना होगा कि यदि नेताओं की पत्नियां जो ऐसी नहीं हैं कि, विनम्र हों, जो दयालु हों, जो करुणामयी हों और जो गृह लक्ष्मी हों, जो सामूहिक के साथ बहुत मधुर हों, हमें पति के साथ-साथ पत्नी को भी नेतृत्व से रद्द करना होगा। हम ऐसे नेता नहीं रख सकते जिनकी पत्नियां भयानक हों। हम ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि एक नेता की पत्नी एक माँ के समान होती है। पांच प्रकार की माताओं का वर्णन किया गया है, उनमें से एक वह है जो गुरु या नेता की पत्नी है। और अगर नेता के पास उस तरह की पत्नी है तो बेहतर है कि वह हर तरह से पीछे हट जाए। पत्नी को बेहतर बनाए। जो भी संभव हो वह करें। जब तक वह ठीक नहीं हो जाती, उसे नेता नहीं बनना चाहिए। यह बहुत महत्वपूर्ण बात है क्योंकि मैंने ऐसी महिलाओं को पुरुषों को नीचे गिराते देखा है, इतना ही नहीं, बल्कि सहज योग, सहजयोगियों और परमात्मा के पूरे संगठन को नीचे गिराया है। इसलिए सावधान रहना होगा, और महिलाओं को यह समझना होगा कि यदि वे नेताओं की पत्नियां हैं, तो उन्हें बेहद अच्छी, दयालु, उदार, साझा करने वाली, देखभाल करने वाली, पूरी तरह से ममतामयी होनी चाहिए, और बकवास बर्दाश्त नहीं करनी चाहिए और  जब लोग गलत कर रहे हैं तब सुधार करना चाहिए| अपने पति को किसी की रिपोर्ट नहीं देनी चाहिए, उन चीजों को करने की जिम्मेदारी खुद नहीं लेनी चाहिए जो उन्हें नहीं करनी चाहिए। यदि वे उस स्तर की नहीं हैं, तो वे लोगों के किसी काम की नहीं हैं और उन्हें नेताओं की पत्नी होने का गर्व करने का कोई अधिकार भी नहीं है।

श्री राम के जीवन से हम बहुत कुछ सीखते हैं और सीताजी के जीवन से भी। उन दोनों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया है, इतना महान जीवन प्रस्तुत किया है। उनका सारा जीवन उन्होंने झेला और सहा और सहा। वे गांवों में रहते थे। वे जंगल में रहते थे। जबकि वे राजा और रानी थे, वे कभी नहीं जानते थे कि असुविधा क्या है। उन्होंने पूरे रास्ते नंगे पैर यात्रा की। वे जीवन की हर तरह की यातनाओं से गुज़रे। सीता को रावण ने अपहरण कर लिया था जो एक भयानक व्यक्ति था। उसे एक राक्षस के साथ रहना पड़ा, क्या आप सोच सकते हैं? वह एक राक्षस के साथ रहती थी और वहाँ उसने अपनी महानता दिखाई। सीता और श्री राम जैसे भिन्न प्रकृति के चरित्र, वे पूरक गुण प्रदर्शित कर रहे थे कि वे वहाँ कितने पूरक है, और यदि ऐसा है तो सहज योग में पति पत्नी के संबंध सुंदर हैं। यह इस तरह से ही होना चाहिए। मुझे लगता है कि कुछ लोग बहुत अच्छे होते हैं। कुछ नेता बहुत अच्छे होते हैं, लेकिन पत्नियां बहुत कठोर हो सकती हैं, बहुत सख्त हो सकती हैं, या बहुत शरारती हो सकती हैं, परेशानी वाली, स्वार्थी हो सकती हैं। आप इन गुणों के साथ सहज योग में विकसित नहीं हो सकते। यह एक ऐसा सौभाग्य और मौका है कि आपका पति नेता है, सहज योग में आपके देश का सर्वोच्च व्यक्ति है और जहाँ आपको उसकी योग्यता , क्षमता और उसके नाम पर खरा उतरना है, अन्यथा आपके पास कोई अधिकार नहीं है।

इसलिए मैं आपको बताना चाहती हूं कि दशहरे के दिन हम निश्चय करें कि सहज योग में रामराज होने जा रहा है, जहां परोपकार है, आपस में प्रेम है, करुणा, सुरक्षा, शांति, आनंद, अनुशासन है। सारा अनुशासन हमारे भीतर है। मैं श्री राम के बारे में जो कहती हूं वह यह है कि उन्होंने स्वयं को मर्यादाओं के अनुशासन में डाल दिया है। उसी प्रकार हमें स्वयं को मर्यादाओं के अनुशासन में रखना चाहिए।

ज्यादा बड़ी बात यह है कि स्विटजरलैंड में ऐसा होना चाहिए क्योंकि स्विटजरलैंड को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है, श्री राम का आशीर्वाद। जिस तरह से इस देश में जो भी चल रहा है, यह बहुत ही स्वार्थी, गैर-कल्याणकारी  गतिविधियाँ चल रही हैं, इस तरह के स्वार्थी रवैये से सभी गरीब राष्ट्रों को बर्बाद कर रही हैं, एक बहुत ही संकीर्ण रवैया, इन गरीब राष्ट्रों के धन के प्रति बहुत निम्न स्तर का रवैया . महत्वपूर्ण है, आज हमारे लिए उन लोगों के दिलों की उस दासत्व से मुक्ति की प्रार्थना करना बहुत महत्वपूर्ण है जो सिर्फ कसाईपन कर रहे हैं। इस आधुनिक समय में हमारे पास युद्ध नहीं हैं, लेकिन आर्थिक रूप से वे लोगों को मार रहे हैं, वे उन्हें अपने खुद के धन और खुद के कल्याण से वंचित करके उन्हें मार रहे हैं। तो, अगर रामराज्य को आना है, तो राम को उन लोगों के दिलों में पैदा होना होगा जो मामलों के शीर्ष पर हैं। और इस तरह हमें श्री राम से प्रार्थना करनी है कि, दयालु और करुणामय बनें ताकि आप इन लोगों के दिलों में पैदा हो सकें। 

परमात्मा आप सबको आशीर्वादित करें।

1987-1004: दशहरा पूजा के बाद बातचीत, लेस अवंत्स, स्विट्ज़रलैंड

सहज योग पुस्तक परियोजना से

और ध्यान करें, सुबह और शाम। तब आपको सामूहिक स्वभाव को समझना चाहिए। यदि आप बहुत सामूहिक नहीं हैं, यदि आप दूसरों के साथ अच्छी तरह से बात नहीं कर सकते हैं, यदि आप दूसरों के साथ मित्रतापूर्ण नहीं हो सकते हैं, यदि आप अपने अंदर इस प्रकार का निषेध या एक प्रकार का अवरोध पाते हैं – तो जान लें कि आपको अधिक सामूहिकता की आवश्यकता है। यह ऐसा नहीं है कि, आप कितनी मेरी पूजा करते हैं और मुझसे प्यार करते हैं, यह है कि आप कितने सहज योगी हैं। यह आप सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। कि आपको महान सहजयोगी बनना है। यही मेरी आकांक्षा है। बस यही मेरी मांग है।

दरअसल जैसा कि आप जानते हैं, मैं एक अकेली व्यक्ति हूं, जीवन में एकाकी हूं और मुझे साथी चाहिए। आप में से साथी प्रकट हो सकते हैं लेकिन मेरे साथी बनने के लिए आपके पास एक स्तर होना चाहिए। मुझे यकीन है कि आप निश्चित रूप से उस स्तर को हासिल करेंगे। नम्रता, प्रेम, करुणा, खुलेपन और स्वभाव की कोमलता, हृदय में आप की बोली में गर्मजोशी के माध्यम से। एक दिन आएगा जब मैं आप सभी को एक साथ खूबसूरती से आपस में बुना हुआ देखूंगी। कोई झगड़ा नहीं, कोई तर्क नहीं, कोई विश्लेषण नहीं – किसी चीज की जरूरत नहीं। बहस करने के लिए कुछ भी नहीं है। यदि आप पाते हैं कि कोई आपसे झगड़ा कर रहा है, तो बेहतर होगा कि आप इसकी सूचना नेता को दें। ऐसा नहीं हो कि, आप आपस में झगड़ें और अगले दिन सॉरी, सॉरी, खत्म कह देते हैं। यह तो किसी सड़क पर किसी भी दिन सांसारिक प्रकार की तरह है। आपको लड़ना नहीं है। आपको झगड़ा नहीं करना है। ज्यादा से ज्यादा आप एक दूसरे की थोड़ी सी टांग खींच सकते हैं।

आपको खुले तरीके से जीना चाहिए, निस्संदेह, लेकिन खुले रास्ते का मतलब यह नहीं है कि आप सभी बुरे तरीके और अभद्र तरीके अपनाएं और यहां दुर्व्यवहार करें। जानो कि तुम योगी हो। यह उन लोगों की बहुत ही खास श्रेणी है, जिन्हें अपने बारे में वह गरिमा रखनी होती है। आप अपने आप को सस्ता नहीं कर सकते, आप नहीं कर सकते। आपकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो, अतीत, सब कुछ, भूल जाओ। इस समय मेरे सामने महान योगी जन (लोग) बैठे हैं और मैं आप सभी को नमन करती हूँ।

परमात्मा आप सबको आशिर्वादित करें।

मैं स्विट्ज़रलैंड के सहज योगियों को इतनी खूबसूरती से पूरे आयोजन के लिए धन्यवाद देना चाहती हूं। मैं अब भी अचंभित हूं जो उन्होंने हमारे लिए यह स्तंभ किया है। मेरा मतलब है, मैं कल्पना नहीं कर सकती थी जिस तरह कि यह किया गया है। और पूरी बात बहुत अच्छी तरह से कार्यान्वित की गई है। मैं इस शानदार सिंहासन के बारे में सोच रही थी, उन्होंने मेरे लिए बनाया है। वे हर काम उनके दिल से कर रहे हैं। जो मेरे प्रति प्यार से भरा है। मेरा मतलब है कि भले ही उन्होंने सोना खरीदा हो, यह ठीक है। जैसे चूँकि, उन्होंने इसे अपने दिल से किया है। मैं वह सब कुछ छोड़ जा रही हूं जो यूरोपियन और अंग्रेज अपनी पूजा के लिए इस्तेमाल करेंगे। क्योंकि मैं जानती हूं कि जो मेरा है वह तुम हो, और कुछ नहीं।

तो परमात्मा आप सभी का भला करे। ईश्वर आपको आज के महान सहजयोगी बनने के लिए सारी शक्ति, सारा साहस, सारा विवेक दे।

[एक सहज योगी कुछ कहते हैं]

श्री माताजी : मैं जानती हूँ, मैं जानती हूँ। जो लोग भारत आना चाहते हैं वे जल्द से जल्द अपना नाम दें। जो लोग शादी करना चाहते हैं वे भी अवश्य ही अपना नाम दें और ईमानदारी से फॉर्म भरें। किसी को भी कुछ छिपाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। सहज योग में स्पष्ट रहना बेहतर है। धन्यवाद।

सहज योगी : श्री माताजी, यह थोड़ा साहसिक कार्य है जो हमने किया लेकिन मुझे आशा है कि आप सहमत होंगे। श्री माताजी, हमारी भावना है कि केवल एक व्यक्ति के रूप में, हमें अभिव्यक्त करने दें , हमें कहने दें अन्यथा, हम आपके प्रति अपनी कृतज्ञता की भावना व्यक्त नहीं कर सकते, क्योंकि आप मुझसे, हमसे बहुत उंचाई पर हैं। इसलिए आपने हमें जो महानता दी है, उसे शब्दों के माध्यम से व्यक्त करना असंभव है। तो हमने सोचा कि हमें अपने सभी भाइयों और बहनों को साथ रख कर संभव हो सकेगा, क्योंकि संयुक्त सामूहिकता में, संयुक्त हृदय से, हमारी कृतज्ञता की अभिव्यक्ति की गुणवत्ता ऐसी होना चाहिए कि किसी भी तरह आप इसे स्वीकार करें। और क्योंकि यह श्री राम की ताजपोशी है, यह निश्चित रूप से आपकी श्री माताजी की ताजपोशी है। और ताज में कुछ नन्हें जवाहरात थे श्री माताजी, हमने आपको बताया नहीं।

श्री माताजी : मैंने वह सब देखा। मुझ से कुछ भी अछुता नहीं रहेगा।

सहज योगी: तो यह [अस्पष्ट], आपके बच्चों के दिल और आपकी छत्रछाया, आपके प्यार, आपकी महानता और मैं नहीं जानता के लिए कृतज्ञता की अभिव्यक्ति के अलावा भी कुछ और होना चाहिए। और दूसरी बात, इस राज्याभिषेक के माध्यम से हम जो महसूस करते हैं, वह है, आप रानी हैं। आप ब्रह्मांड की रानी हैं। और हम आपके भक्त हैं, हम आपके शिष्य हैं। तो अगर हमें आपको ताज पहनाने की अनुमति दी जाती है, तो इसका मतलब है कि हमें पूर्ण पालन, निष्ठा और समर्पण करना होगा। नहीं तो हम आपको ताज कैसे दे सकते हैं? हम आपके माथे तक पहुंचने योग्य भी नहीं हैं क्योंकि आपका सिर ब्रह्मांड तक पहुंच रहा है। तो अपने दिल में हमने कोशिश की है गाने, छोटी-छोटी कविताएं, कुछ छोटी-छोटी चीजें देने की, श्री माताजी। और आपसे कुछ तस्वीरें और फोटोग्राफ। और इसके माध्यम से श्री माताजी जो भी इनकी गुणवत्ता हों, मुझे विश्वास है कि हम सभी आपके प्रति पूर्ण आज्ञाकारिता, पूर्ण पालन, पूर्ण कृतज्ञता की इस प्रतिज्ञा को पूरा करने में सक्षम होंगे। और अंत में, हमने सोचा कि आपकी तस्वीरों की छवि के माध्यम से, कुछ कविताओं के माध्यम से और संगीत के माध्यम से, हम अपना वो प्यार व्यक्त कर सकते हैं श्री माताजी जो मैं व्यक्त नहीं कर सकता हूँ।

श्री माताजी: धन्यवाद