“The light of love”, Evening before Diwali Puja

Lecco (Italy)

Feedback
Share
Upload transcript or translation for this talk

“प्रेम का प्रकाश”
कोमो झील (इटली), 24 ऑक्टुबर 1987।

[मंत्र उच्चारण के बाद।]
परमात्मा आप सबको आशीर्वादित करें।
और लक्ष्मी की, समस्त अष्ट लक्ष्मी की कृपा आप पर हो। परमात्मा आपका भला करें।

आज हम यहां दीपावली का एक बड़ा उत्सव मनाने के लिए आए हैं, जिसका अर्थ है रोशनी की पंक्तियाँ, या प्रकाश का त्योहार। यह श्री राम के राज्याभिषेक का जश्न मनाने के लिए भी था, यानी प्रतीकात्मक रूप से एक ऐसे राज्य की स्थापना का जश्न मनाने के लिए जिसमें एक कल्याकारी प्रशासन हो।
आज मैं आप सभी को यहां अपने सामने बैठी रोशनी के रूप में पाती हूं और इन रोशनीयों के साथ मुझे लगता है कि दीपावली वास्तव में मनाई गई है; मैं उन आँखों की दमकते हुए, तुम्हारे भीतर स्थित उस प्रकाश को उनआँखो में टीमटिमाते हुए देखती हूँ। रोशनी देने वाले दीये में हमें घी जैसी कोई स्निग्ध चीज डालनी है; जो बहुत ही सौम्य और कोमल चीज है, यह हमारे दिल का प्यार है। और वह दूसरों को प्रेम का यह सुखदायक प्रकाश देने के लिए जलता है।
ऐसा व्यक्ति जिसके पास प्रेम का यह प्रकाश है, वह स्वयं से भी प्रेम करता है और दूसरों के प्रति प्रेम का संचार करता है। मैं सुन रही थी कि जिस तरह से लोग संत बनने के लिए खुद को प्रताड़ित करते थे। सहजयोगियों को स्वयं को प्रताड़ित करने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है। लेकिन उच्च गुणवत्ता का प्रकाश बनने के लिए उन्हें प्रेम से परिपूर्ण होना पड़ता है और यह प्रेम उन्हें मिलता कहां से है? आप कह सकते हैं कि यह मेरी ओर से है। यह सच है लेकिन पेड़ का रस चारों ओर बहता है और सभी वृक्षों को एक साथ रहना चाहिए। जो पत्ता खुद को अलग करना चाहता है वह मर जाएगा। तो यह सामूहिकता है जो आपको विकसित करने वाली है। आपके पास ऐसा कोई भी विचार हो, जो… अपने आप को बाहर रखना, या खुद को अलग रखना, या अपने घरों को सामूहिकता से अलग रखना खतरनाक हो सकता है। घर अलग हो सकते हैं लेकिन वे घर सभी सहजयोगियों के लिये होने चाहिए। जो कोई भी आपके घर आता है, जो सहजयोगी है, वह उस घर का स्वामी है। ऐसी भावना विकसित करनी चाहिए। जब आप एक कमरे से दूसरे कमरे में दीप ले जाते हैं, तो वह ऐसा नहीं कहता कि ‘यह मेरा कमरा है इसलिए मैं रोशनी दूंगा, अगर मैं दूसरे कमरे में जाऊं तो मैं रोशनी नहीं दूंगा।’
अब, द्दीप बिल्कुल अलग है। यदि आप अपने दीप की देखभाल नहीं करते हैं तो यह बुझ जाएगा। आपको इसकी देखभाल तब तक करनी है जब तक कि यह अपना उचित आधार न बना ले और एक बार जब यह एक विशेष स्टैंड ले लेता है तो आप एक मजबूत सहज योगी हैं। तब वे आपके चेहरे पर प्रकाश देखते हैं और फिर आप उनके जीवन में प्रकाश प्रकट करते हैं। ये ज्वाला अगर आप इस पर उंगली डालोगे तो ये जल जाएगी लेकिन प्यार की रोशनी कभी नहीं जलाती। वह जो कुछ भी बुरा है उसे समाप्त कर देती है, वह अस्वीकार कर देती है, जो कुछ भी गलत है उसे दूर कर देती है। इसमें धैर्य है और यह अंधकार को दूर करता है। भीतर और बाहर काअँधेरा।
दिवाली का दिन विशेष रूप से लक्ष्मी के जन्म के दिन रोशनी के साथ मनाने के लिए होता है। अब यह लक्ष्मी समुद्र से निकली, और आज भी समुद्र तल के नीचे बहुत सी लक्ष्मी पड़ी हैं। (इतालवी सहज योगी को अनुवाद करने में परेशानी होती है और कहते हैं, “मुझे खेद है श्री माताजी मुझे समझ नहीं आया।” श्री माताजी आगे कहते हैं…)
लेकिन जब आप लक्ष्मी के वास्तविक महत्व को नहीं समझते हैं तो यह अंधेरा लाती है और लक्ष्मी गायब हो जाती है। उदाहरण के लिए, किसी को बहुत सारा पैसा मिलता है। तत्काल उसके घर में प्रथम श्रेणी का बार होगा। फिर उसके पास उसके दोस्त आएंगे और ड्रिंक करेंगे। वह उनके साथ पीएगा और अचानक उसे पता चलेगा कि लक्ष्मी गायब हो गई है। तो जहां शराब है वहां अंधेरा है और लक्ष्मी के साथ जो अंधेरा आपके पास आता है वह लक्ष्मी को गायब कर देता है।
पूरा ब्रह्मांड, पूरा ब्रह्मांड, इतनी अच्छी तरह से बुना हुआ है कि अगर आप एक तरफ एक भी गलत काम करने की कोशिश करते हैं, तो सब कुछ बंद हो जाता है। यह इतनी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है, जैसे एक फ्युज हो जाता है, सारे बल्ब फ्यूज हो जाते है। सहज योग में भी ऐसा होता है कि जो व्यक्ति प्रबुद्ध है और बुरा बनने की कोशिश करता है, समस्या पैदा करने की कोशिश करता है, वह दूसरों को नकारात्मक बना सकता है। शुरुआत में यह बहुत बार होता था, जैसे एक खराब सेब सभी अच्छे सेबों को खराब कर सकता है लेकिन एक खराब सेब को सभी अच्छे सेबों से ठीक नहीं किया जा सकता है। एक हिटलर कई हिटलर बना सकता था। लेकिन सहज योग में जब आप बड़े हो जाते हैं और स्थापित हो जाते हैं, फिर यदि एक बुरा आदमी आता है, या तो उसे भागना पड़ता है या उसे ठीक होना पड़ता है। ऐसा आदमी खुद अपना सारा सामान बांधकर चला जाएगा।
लेकिन मुख्य लोग, जो लोग बड़े हो गए हैं और जो परिपक्व हो गए हैं, उन्हें अपनी परिपक्वता बनाए रखनी चाहिए और इस पर जोर देना चाहिए। यह फिर से दीप के रूप में है। अब अगर इस तरह के कई दीप हैं, और उनमें से एक चला जाता है, तो कोई बात नहीं, क्योंकि इसकी… और भी बहुत सी ऐसी हैं। लेकिन अगर कोई एक दीप है जो पर्याप्त परिपक्व है, यहां तक ​​कि फिर अन्य वे सभी चले भी जायें, कोई फर्क नहीं पड़ता। तो जो लोग अर्ध-सहयोगी या चौथाई-सहज योगी, उन्हें समझना होगा कि वे सहज योग में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाते हैं। सभी को पूर्ण सहजयोगी बनना है। उसके बाद यह बहुत मायने रखता है।इतना कि अगर ऐसा कोई सहज योगी बीमार है या समस्या में है, तो सभी फरिश्ते उसकी मदद के लिए दौड़ पड़ें।
इसलिए आज पृथ्वी पर परमेश्वर के राज्य का जश्न मनाने का एक विशेष दिन है। जैसा कि हम प्रार्थना करते थे कि ‘तेरा राज्य इस धरती पर आए’ और यह आज इस पहाड़ पर आ गया है और हम यहां परमात्मा के राज्य के आने का जश्न मनाने के लिए आये हैं जैसा कि हम युगों से प्रार्थना करते आ रहे हैं। और ईश्वर के राज्य का आशीर्वाद यह है कि आप आनंद में सराबोर जाते हैं – ऐसा आनंद जिसमें सुख और दुख जैसे कोई द्वैत नहीं है। यह निरपेक्षता का अनुभव है और बस आनंद ही पर्याप्त है, आपको कोई भोजन नहीं चाहिए, आपको नींद की चाहत नहीं, आपको कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कहां हैं, बस आनंद लेंते हैं, पूरी तरह से सराबोर हो जाते हैं। दुख के लिए कोई जगह नहीं है, इसके लिए तुम्हारे पास कोई दिल नहीं है। इटालियंस उदास लोगों के रूप में जाने जाते थे, लेकिन अब मुझे लगता है कि वे सभी इतने हर्षित हैं कि कोई भी विश्वास नहीं कर सकता कि किसी समय में वे उदास रहते थे। इतना ही नहीं वे कितनी खुशी दे रहे हैं।
इस कार्यक्रम के माध्यम से सभी यूरोपीय लोगों की आंखें यह देख कर खुल जानी चाहिए कि, कैसे वे मंच पर मेरे लिए गीत गा रहे थे और दर्शकों में हर कोई ताली बजा रहा था और इसका आनंद ले रहा था। क्योंकि इटालियंस बहुत विनम्र लोग हैं और यह विनम्र लोग ही है जो परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करेंगे, अभिमानी नहीं। उन्हें अपने अहंकार से छुटकारा पाने के लिए नरक में जाना होगा।
यह तो बहुत अच्छी बात है कि हम यहां दिवाली मना रहे हैं, कि जहां लोग विनम्र हों और उन्हें आनंदित होने का अधिकार हो। उन्हें अपनी मां पर अधिकार है, उन्हें कुछ भी मांगने का अधिकार है जो वे चाहते हैं। यही समर्पण है। विनम्र व्यक्ति का अर्थ है वह व्यक्ति जिसके पास अहंकार नहीं है। तो अहंकार को जलाने के लिए और अपनी कंडीशनिंग को जलाने के लिए हमने यह होली नामक त्योहार पाया है। होली। लेकिन अब हमारे पास एक नया त्योहार है जो आनंद के केवल आनंद के गीत गाने का त्योहार है। इस दीवाली के दिन हम कामना करते हैं कि इतने सारे लोग आनंद के इस सागर में गिरें और आनंद के सागर को अपनी सीमाओं, तटों का विस्तार करना पड़े। समुद्र ऐसा कभी नहीं करता लेकिन सहजयोगी ऐसा कर सकते हैं क्योंकि उनके हृदय में प्रेम का सागर है।
इसलिए मैं आप सभी को दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं इस अर्थ में देती हूं कि आप अधिक रोशनी देंगे, प्रत्येक सहज योगी को इस वर्ष कम से कम सौ (आत्मसाक्षात्कार)रोशनी देनी चाहिए। आप जिस भी व्यक्ति से मिलते हैं, उससे सहज योग के बारे में बात कर सकते हैं, मेरे बारे में नहीं। बाद में, धीरे-धीरे। इसलिए मुझे आशा है कि आप सभी यहां अपनी दिवाली का आनंद लेंगे, और हम एक ऐसा महासागर बनाएंगे जो इस आनंदमयी चैतन्य में अधिक से अधिक लोगों का विस्तार, विकास और समावेश करेगा।
आज मैं यह नहीं कहना चाहती कि मुझे खेद है क्योंकि मैं देर से आयी, जो इस तरह के आनंददायक दिन ठीक नहीं होगा। लेकिन प्रतीक्षा करने के अपने फायदे हैं, प्रतीक्षा आपकी मुलाकात को एक भिन्न तरह का मुल्य देती है।
परमात्मा आप सबको आशीर्वादित करे!
तो, हमें संगीत जारी रखना चाहिए…